क्या हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं होता है ?

हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं होता है । सभी इंसान में समानता कभी नहीं हो सकती है । कर्म से ही जीवन बनता है । कर्म से ही आत्मज्ञान मे विभिन्नता आती है । जो इंसान की पहचान से लेकर आत्मज्ञान का परिचय देता है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
नहीं जी,हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं होता।
आत्मज्ञान की पहली सीढ़ी है इन्द्रियों का मौन।
इन्द्रिय क्या, हम तो वाणी का मौन भी नहीं रख पाते।तो फिर भला आत्मज्ञान कैसे होगा?चिंतन मनन भी आत्मज्ञान में सहायक होता है।
आत्मा की आवाज सुनाई तो सबकी देती है,पर मानते मन की, मस्तिष्क की और इंद्रियों की हैं।तो फिर आत्मज्ञान कैसे होगा।
गुरु विरजानंद जी ने स्वामी दयानंद जी से यही प्रश्न पूछा था, तुम कौन?
दयानंद ने उत्तर दिया,यही तो जानना चाहता हूं।
बस यही वह चाह है जो हमें आत्मज्ञान के मार्ग पर ले जाती है और यह राह सरल नहीं। बहुत कठिन है डगर पनघट की।यह पंक्तियां शायद इसी मार्ग के लिए लिखी गयी है।तो आत्मज्ञानी होना सरल नहीं है।इसे यूं भी कह सकते हैं कि कोई बिरला ही आत्मज्ञानी होता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -  उत्तर प्रदेश
हमारे पूर्वज और वंशज उनकी शिक्षा पहले आचार्य अथवा ऋषि मुनियों की देखरेख में होती थी! तब  माता पिता की सेवा में ही ईश्वर है बताया जाता था ! ईश्वर और आत्मा का यथार्थ रूप में ज्ञान कराया जाता था! अपनी पांचो इंद्रियों को कैसे ,बस में करना है इसका आत्मज्ञान देते थे किंतु वर्तमान शिक्षा में हमें ज्ञान विज्ञान तो पढा़ते हैं किंतु आत्मज्ञान नहीं मिलता! अतः आत्मज्ञान हीन अपनी इंद्रियों को वश में नहीं कर पाते! अपनी पांच इंद्रियों काम,क्रोध, मोह, लोभ, अहंकार के वश में  होने से हमारी चित्तवृत्ति खो जाती है हम दिशाहीन हो जाते हैं! 
यह सच है आत्मा ही परमात्मा है किंतु जो हमारा शरीर है चेतनायुक्त उससे हमें अच्छे कर्म करने चाहिए! मैं रुपी अहंकार का त्याग कर अपना अस्तित्व ईश्वर में लगाना  चाहिए! ऋषिमुनि  अपने आत्मज्ञान से ,योग से, प्रभु को पा लेते थे! हम भगवान को पाने और खुश करने मंदिर जाते हैं सतसंग  करते है! माता पिता की सेवा गुरु का आशीर्वाद ले उनकी आत्मा को तृप्त करते हैं! आत्मा ही परमात्मा  है! प्रभु को कण कण में है !
इस  उम्र में मैं इतना समझ पाई हूं
कर्म से मानव पावत है 
परमात्मा से मोक्ष
मानव कर्मानुसार 
आत्मा बदले है देह !
इंद्रियों को बस में करना सच्चा आत्मज्ञान है! 
           - चंद्रिका व्यास
         मुंबई - महाराष्ट्र
     जीवन-यापन करने के लिये, मानव  तंत्र को आत्मज्ञानी बनना पड़ता हैं। जिसके माध्यम से समस्त प्रकार के  कार्यों को फलीभूत करने अग्रसर  होना पड़ता हैं। कई तो बिना आत्मविश्वास से आगे बढ़ते चले जाते हैं, जो मन मस्तिष्क के साथ-साथ, सभी  कार्यों को अंजाम देने में सफलता अर्जित करते हैं।  हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं होता हैं, किन्तु जब तक हम स्वयं को ऊंचा उठने की प्रतिरक्षा नहीं करेंगे, तब तक हम अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं हो पाते।  कोई शनैः-शनैः अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता हैं, तो कोई धीरे-धीरे?  यह एक प्राकृतिक तथ्य हैं। हर कोई ऊँचाईयों को झूना चाहता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
आत्मज्ञान का अर्थ है - जीवन के एक नए आयाम में प्रवेश करना. यह भौतिकता से परे का आयाम है. असल में आत्मज्ञान उस सत्य का साक्षात्कार है, जो पहले से ही मौजूद है. आत्मज्ञान में न पीड़ा होती है, न सुख. यह दुःख-सुख से ऊपर की चीज है. वास्तव में आत्मज्ञान सबके अंदर मौजूद होता है, पर वह अज्ञान के आवरण से आव्रत्त होता है, इसलिए सब इंसानों में इसका प्रभाव नहीं दिखाई देता. जो इस अज्ञान के आवरण को हटाने में सफल होता है, वहीं आत्मज्ञानी होता है. अंत में यही कहना होगा, कि यह सच है, कि हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं होता है. 
- लीला तिवानी 
दिल्ली
        आत्मज्ञान मन के भीतर की जागरूकता है। जिसे भारतीय दर्शन में शिव, विष्णु और शक्ति का प्रतीक मानते हैं। जिसका वर्णन वेदों और उपनिषदों में मिलता है। जिसे चेतना की संज्ञा दी गई है। जो हर प्राणि में कम या अधिक मात्रा में पाई जाती है।
       उल्लेखनीय है कि पांचों उंगलियां एक समान नहीं होतीं। उसी प्रकार हर इंसान अलग-अलग प्रवृत्ति का होता है। इसलिए उसके आत्मज्ञान अर्थात चेतना की शक्ति भी अलग-अलग होती है। जैसे कोई इंसान रस्सी से भी डरता है और कोई सांप को भी रस्सी की भांति पकड़ लेता है।
        इसके अलावा हठी होना भी आत्मज्ञान ही होता है। जिसके बल पर हठी इंसान अंततः विजय प्राप्त करते हैं। जबकि विजय प्राप्ति से पहले समाज उसे हठी के अलावा मूर्ख और पागल कहने से भी नहीं चूकता।
       अतः कहते भी हैं कि ऊंचाइयों को "पागल" ही छूते हैं। बाकी तो तमाशा देखने वाले तमाशबीन ही कहलाते हैं। जो अपने-अपने अल्प आत्मज्ञान के अनुसार जीवनयापन करते हैं। किंतु यह कहना उचित नहीं है कि हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं होता।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं होता l आत्मज्ञान जागृत अवस्था में प्राप्त कर व्यवहार में अंगीकार किया जाता है l
आत्मबोध के द्वारा जो ज्ञान प्राप्त करते हैं वे मनुष्य द्विज कहलाते हैं अर्थात दो बार जन्म लेने वाले l एक बार माता के गर्भ से जन्मजात ज्ञान अर्थात अचेतन रूप से ज्ञान प्राप्त होना तो दूसरा चेतन अवस्था में विभिन्न संस्थाओं से मनुष्य प्राप्त करता है l यह हमारे आचार,विचार, संस्कार और परिवेश पर निर्भर करता है l अतः यह आवश्यक नहीं कि हर इंसान आत्मज्ञानी हो l
आत्मा रूपी दर्पण कभी झूँठ नहीं बोलता है l
आत्मानुभूति हर व्यक्ति अलग अलग तरीके से करते हैं l कोई ज्ञान के स्तर पर, कोई चेतना के स्तर पर तो कोई ऊर्जा के स्तर पर l अतः प्रत्येक व्यक्ति का आत्मज्ञान भी अलग अलग होता है l
आत्मज्ञान मन की प्रकृति पर निर्भर करता है क्योंकि मन की प्रकृति ऐसी होती है कि ये जीवन के अंत तक इंसान को भ्रम में रखती है l मन ऐसा जटिल यंत्र है जो आत्मा की आवाज़ पर शासन करता है l
आत्मज्ञान होने का आशय है कंटकाकीर्ण मार्ग पर चलना l इसके लिए समर्पण, लगन और आत्मनिष्ठ होना आवश्यक है l पद, पैसा, प्रतिष्ठा से उतपन्न अहंकार का मर्दन करना पड़ता है l क्या है आत्म ज्ञान?
1. आत्मज्ञान उस सत्य का साक्षात्कार कहलाता है जो पहले से मौजूद है l
2. आत्मज्ञान का बीज हर प्राणी में मौजूद होता है लेकिन इसका बोध हर व्यक्ति अलग अलग ढंग से करता है l आत्म ज्ञान से हमारा आशय, जीवन के एक नये आयाम में प्रवेश करना जो भौतिकता से परे हो l
       चलतेचलते ----
वर्तमान काल आत्मप्रदूषण का काल है l इसमें आत्मज्ञान के व्यवहारिकरण की बात बेमानी हैl
"गलतफहमीयां इस कदर दिलों में हैं,
दोस्त खंजर छिपाकर मिलते हैं l
   - डॉo छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
आत्मज्ञान का अर्थ आत्म का ज्ञान प्राप्त करना इसका अर्थ है खुद को जानना। व्यक्ति खुद को छोड़कर सब कुछ पा भी लेता है तमाम तरह के ज्ञान को जानने का दम भरता है। जैसे :-ईश्वर ,धर्म ,देश, ज्ञान, विज्ञान, साहित्य, समाज, राजनीति आदि।लेकिन यदि आप खुद को छोड़कर सब कुछ पा भी लेते हैं तो मरने के बाद जो पाया वह खो देते हैं।
आप दर्पण में जिसे देखते हैं,वह आपका शरीर होता है आप नहीं। आप खुद को कभी नहीं देखा। कब से नहीं देखा ऐसा कहना गलत है दरअसल आपने कभी देखा ही नहीं।
लेखक का विचार:-आत्मज्ञान प्राप्त करने के लिए योग एक मात्र ऐसा रास्ता है, जिससे खुद तक पहुंचने के लिए क्रमवार सिड़िया बना हुआ है। आप सबसे पहले यम का पालन करें, फिर नियम को अपनाएं, फिर आसन करे, फिर प्राणायाम करें जिससे  भरपूर ऑक्सीजन का सृजन हो तब छठी इंद्री को जागने में सहयोग मिलेगा और अंत में खुद को प्राप्त करने की सुविधा होगी। तब आत्मज्ञान की बौध होगी अर्थात खुद को जानिए गा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
आत्मा में परमात्मा का वास होता है । हम सब ईश्वर के अंश है किंतु हमारे कर्म ही निर्धारित करते हैं कि हम आत्म मंथन व ध्यान योग से अपनी सोयी हुयी शक्तियों को जाग्रत कर पाते हैं या नहीं।
हर इंसान आत्मज्ञानी होता है ।ये ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्ति है, किंतु सांसारिक उलझनों , मोह - माया, लालच ,ईर्ष्या द्वेष की भूल -भुलैया में गुम होकर वो अपना मुख्य उद्देश्य भूल जाता है ।
जो व्यक्ति श्रेष्ठ गुरु का सानिध्य पा जाता है वो आत्मज्ञानी बनकर अपने पूर्ण लक्ष्य को पाकर जीवन के सभी उदेश्य पूरे कर लेता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
मेरे मतानुसार कुछ इंसान  को छोड़कर आत्मज्ञानी नहीं होते हैं ।अगर इंसान आत्मज्ञानी हो जाए तो संसार में प्रेम शांति का साम्रज्य छा जाएगा लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है।
इसका उत्तर हमें खोजना होगा ।इंसान के हृदय में दो वृतियाँ विराजमान रहती है । दैवीय वृति
और दूसरी राक्षसी वृति ।
इन वृतियों का सम्बन्ध पूर्व जन्म के कर्मों से हैं। बच्चा बचपन में जिस परिवेश में रहता है ।उस माहौल का भी असर होता है। कुछ बच्चों पर संगति का असर पड़ता है । कहावत भी सदसंगति किम न करोति ।
बड़े -बड़े साधु , संत महापुरुष ये एके दिन में आत्मज्ञानी नहीं बन जाते हैं। इनकी बचपन से आध्यात्म , त्याग , अहिंसा के परिवार की शिक्षा दी जाती हैतब इंसान आत्मज्ञानी बनता है । ये तपस्वी अपने ज्ञान से समाज , देश , विश्व का कल्याण करते हैं। पूजनीय देवरहा बाबा के चमत्कार कौन नहीं जानता है ?
 आचार्य महाप्रज्ञ के ज्ञान का दुनिया लोहा मानती है। 9 साल की उम्र में घर का त्याग कर दिया था । बचपन में उनका नाम कालूगणी था । आचार्य तुलसी के सान्निध्य में 
आत्मज्ञान की प्राप्ति कर तेरा पंथ समाज के महागुरु की गद्दी पर बैठे। 
जैन समाज , भारत उनकी ऋणी है । उनके साहित्य को मैंने पढ़ा है और साक्षात्कार भी किया है।
कहने का मतलब यही है कि संस्कारों का प्रभाव ताउम्र पड़ता है ।हमारे साथ जीवनभर चलते हैं । 
स्वामी अवधेशानंद जी भी बचपन से ही घर छोड़ के आध्यात्म की दुनिया से जुड़ गए । आज उन आत्मज्ञानी के प्रवचन समाज को राह दिखाते हैं।
नचिकेता जैसा बुद्धिमान बेटे ने अपने पिता राजा को मोह से त्याग , आध्यात्म , आत्मज्ञान का पाठ पढ़ाया।
- डॉ मंजु गुप्ता
 मुंबई - महाराष्ट्र
नहीं, हर आदमी आत्मज्ञानी नहीं हो सकता है। यदि हर आदमी आत्मज्ञानी होता तो आज दुनिया की ऐसी हालत नहीं होती। आत्मज्ञानी का मतलब मैं आत्मा हूँ। मैं कहाँ से आया, मेरा स्वरूप क्या है, मेरा कर्तव्य क्या है। इन सब बातों का पूरा उसे ज्ञान होना चाहिए या है उसे ही हम आत्मज्ञानी कह सकते हैं या वही व्यक्ति आत्मज्ञानी है। आज जिस तरह हर तरफ लूट,खसोट,चोरी ,डकैती,
बलात्कार, व्यभिचार और बहुत सारी जो घटनाएं घट रही हैं। ये सब लोगों को आत्मज्ञानी नहीं होने के कारण ही घट रही हैं। यदि लोगों के अन्दर आत्म ज्ञान होता तो ये सब घटनाएं नहीं होती अगर होती भी तो नाम मात्र की। इससे साफ पता चलता है कि हर आदमी आत्मज्ञानी नहीं होता।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
        आत्मज्ञानी वह है जो सभी बुराइयों से मुक्त हो जाता है। इस लिए हर इन्सान आत्म ज्ञानी नहीं होता है। आत्म ज्ञान सिर्फ एक बोध है।यह भौतिकता से परे का आयाम है। आज का युग पदार्थवादी है।मनुष्य इसी होड़ में लगा हुआ है। उस का दिन रात इसी भागम-भाग में निकल रहा है। उस ने अपने मन का चैन खो दिया है। 
         आत्मज्ञान तो चिंतन मनन की अवस्था है। खुद को जानने-पहचानने की कोशिश है।मनुष्य के पास  खुद के लिए समय ही नहीं है। आत्म ज्ञान का मूल आधार नैतिकता है।देखा जाए तो आजकल कितने लोगों के पास नैतिकता बची है। अच्छे गुणों वाला आत्म ज्ञानी कहा जाता है। इस लिए हर इन्सान आत्म ज्ञानी नहीं होता है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
आत्मज्ञान का ज्ञान का अर्थ है जीवन के एक नए आयाम में प्रवेश करना। यह भौतिकता से परे आयाम है ।
आत्मज्ञान का बोध हर प्राणी में मौजूद है ।
आत्मज्ञान कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो बाहर से आती है ।
आत्मज्ञान सिर्फ एक बोध है। आत्मज्ञान में कोई सुख नहीं होता, कोई पीड़ा नहीं होती बस होता है एक बेनाम आनंद,,, परमानंद ,,,।
न तो किसी औरत को आत्म ज्ञान मिल सकता है ना ही किसी पुरुष को ,,,आत्मज्ञान की संभावना तभी बनती है जब आप लिंग भेद से ऊपर उठ जाते हैं ।
आत्मज्ञान निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
मेरे विचार से भगवान की सुन्दर रचना हर इंसान आत्मज्ञानी होता है। हर इंसान को कुछ न कुछ आत्मज्ञान होता है और हरेक का अलग-अलग आत्मज्ञान होता है। इसी आत्मज्ञान के आधार पर इंसान समाज में अपनी पहचान बनाने का और अन्य इंसानों के ज्ञान को आत्मसात करने का प्रयास करता हैै।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली 
हिंदू धर्म शास्त्रों के अनुसार आत्मज्ञानी वह है जो सारे विकारों से मुक्त हो चुका होता है।  जब तक ये विकार मनुष्य के भीतर निवास करेंगे तब तक आत्मज्ञान कदापि  प्राप्त नहीं हो सकता।गीता उपदेश में भी यही कहा गया है कि जो मनुष्य सारी इच्छाओं का त्याग कर देता है और लालसा रहित होकर कार्य करता है उसे ही शांति मिलती है और ऐसे साधक प्रवृत्ति के लोग ही आत्मज्ञानी कहे जाते हैं  । सांसारिकता के चक्रव्यूह में फंसा व्यक्ति  न तो आत्मज्ञान  प्राप्त कर पाता है और न ही मानव जन्म के मूल लक्ष्य की तरफ बढ़ पाता है। ऐसा भी नहीं है कि गृहस्थ जीवन में रहकर या गृहस्थ जीवन से छूट कर ही आत्म ज्ञान मिलता है।  गुरु नानक देव गृहस्थ थे लेकिन वे ब्रह्मज्ञानी थे ,आत्मज्ञानी  थे। आत्मज्ञान के लिए प्रभु की कृपा और पुरुषार्थ दोनों आवश्यक है। ईश्वर के प्रति सच्ची भक्ति से ही मन के विकार दूर हटते हैं और आत्मज्ञान की उत्पत्ति होती है।  अतः हर इंसान आत्मज्ञानी नहीं हो सकता। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
"न किसी पीर से, न किसी फकीर से, 
खुद को जानना है तो पूछो 
अपने जमीर से"। 
 देखा जाए व्यक्ति खुद को छोड़कर तमाम तरह के ज्ञान को जानने का दंभ करता है जैसे ईश्वर ज्ञान, देश विदेश ज्ञान, राजनिति ज्ञान इत्यादी लेकिन आपने आप के ज्ञान को कभी भी नहीं जानना चाहता, यही चाहता है कि सब उसे जानें जिसके कारण वो आत्मज्ञानहीन ही रह जाता है, 
मगर मनुष्य की पहचान उसके पास बुद्दी सत्य, असत्य, उचित व अनुचित का बोध करने वाली शक्ति से होती है, 
अगर आजकल की शिक्षा की बात की जाए तो तो मनुष्य को अधिकतर अक्षर ज्ञान व तकनीकी शिक्षा ही दी जा रही है लेकिन जीवात्मा, मनुष्य जीवन, मनुष्य का कर्तव्य , शुभ अशुभ  क्या है इसका ज्ञान नहीं  करवाया जाता है जिससे मनुष्य में सन्तुलित  विकास की कमी देखी जा रही है, 
यहां तक की इंसान को अपने आप का भी पता नहीं है,  की उसके अन्दर कितने विकार हैं, 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या हर इन्सान आत्मज्ञानी नहीं होता? 
मेरा मानना है आत्मज्ञान का बीज हर प्राणी में मौजूद है यह कोई ऐसी चीज नहीं जो बाहर से आती है यह तो सिर्फ एक बोध है इसमें कोई सुख नहीं कोई पीड़ा नहीं होती बस एक बेनाम आनंद होता है, 
देखा जाए दुसरों का जानना ज्ञान है और स्वंय को जानना आत्म ज्ञान है।
आत्म ज्ञान का अर्थ है आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना जिसका भावार्थ है खुद को देख लेना यानी खुद के देख लेने को ही आत्मज्ञान कहते हैं और योग ही एक ऐसा ज्ञान है जिससे हम आपने आप को देख सकते हैं, 
धर्मशास्त्र के अनुसार आत्मज्ञानी वो है जो सभी विकारों से मुक्त हो जब तक हमारे अन्दर विकार हैं हमें, ,आत्मज्ञान कभी नहीं  मिलेगा, 
मेरे ख्याल में जो  मनुष्य सारी इच्छाओं को त्याग देता है और लालच रहित कार्य करता है उसे ही शान्ति मिलती है और ऐसी सा़धक प्रवृति के लोग ही आत्मज्ञानी कहेजाते हैं, 
अन्त मे यही कहुंगा की हर आदमी तभी आत्मज्ञानी हो सकता है  अगर वो संकल्प ले,  कि मैं तब तक कोई शिक्षा दुसरों को नहीं दूंगा जब तक जब तक मैं स्वंय उसे अपने जीवन में पालन न कर लूं तो विश्वास रखिए आपकी शिक्षा किसी आत्मज्ञान से कम नहीं, 
यही नहीं जिस तरह अपने हृदय की धड़कन सुनने के लिए मौन होने की जरूरत है उसी तरह अपनी आत्मा की आवाज को सुनने के लिए सारी इन्द्रियों को मौन करने की जरूरत है, जिस दिन इन्सान ने यह सब कर लिया समझो उसे आत्मज्ञान मिल गया, ऐसा करने से ही हर इंसान आत्मज्ञानी बन सकता है बरना ऐसा बनना सब के मन की बात नहीं, 
सच है, 
मलाई हमेशा ठंडे दूध मे जमती है पर उसके लिए दूध को एक बार सही से उबलना पड़ता है, 
इसी तरह मनुष्य को आत्मज्ञान शांत मन से ही प्राप्त हो सकता है पर उसके लिए उसे एकबार गहन अशांति से गुजरना पड़ता है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कहां जाता है कि इंसान तब समझदार नहीं होता जब वह बड़ी-बड़ी बातें करने लगे, बल्कि समझदार तब होता है जब छोटी-छोटी बातों को समझे। आत्मज्ञान से हमें खुद को और दूसरों को सही तरह से समझने का मौका मिलता है। समझ और आत्मज्ञान दो चीज है। इसमें हमें हमेशा सकारात्मक सोच रखने की ताकत मिलती है। होता है कि उन्हें सही दिशा मार्ग दिखाएं। व्यक्ति खुद को छोड़कर तमाम तरह के ज्ञान को जानने का मन करता है। जैसे ईश्वर, धर्म, देश-विदेश, ज्ञान, विज्ञान, तकनीक साहित्य, समाज राजनीति आदि। लेकिन यदि आप खुद को छोड़कर सब कुछ आप भी लेते हैं तो मरने के बाद जो पाया है वह होने ही वाला है हालांकि कोई भी खुद को नहीं जानता सभी चाहते हैं कि उन्हें लोग जाने। यदि योगी आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है तो धर्म अनुसार 1 सोलह कलाओं में पारंगत हो जाता है सोना कलादर्शन बोध प्राप्त योगी की भिन्न-भिन्न स्थितियां है बुध की अवस्था के आधार पर आत्मा के लिए प्रतिपदा से लेकर पूर्णिमा तक चंद्रमा के प्रकाश की 15 अवस्थाएं ली गई है। अमावस्या ज्ञान का प्रतीक है तो पूर्णिमा पूर्ण ज्ञान का। 16 वीं कला पहले और 15 को बाद में स्थान दिया है।इससे निर्गुण सगुण स्थिति भी स्पष्ट हो जाती है। 16 कला युगपुरुष में व्यक्ति व्यक्ति की सभी कलाएं होती है यही दिव्यता है। यह भी कहा जाता है कि सब कुछ हम से ही शुरू होता है और हम इस पर ही खत्म।इसका अर्थ है हम जो करते हैं जैसा करते हैं उसका फल हमें मिलता है,इसलिए भावनात्मक क्षमता को बढ़ाने के लिए समझ और आत्मज्ञान बहुत जरूरी है, क्योंकि मनुष्य में शक्तियों का भाव नहीं होता उसमें शक्तियां बहुत होती है। वह हारता केवल संघर्ष की कमी से है और यह संघर्ष हम सही दिशा में तभी कर सकते हैं जब हम में भावनात्मक क्षमता हो।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " आत्मज्ञान कर्म से मिलता है । जो विभिन्न जन्मों से लेकर वर्तमान शिक्षा पर आधारित होता है । यहीं से ही आत्मज्ञान की शुरुआत होती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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