क्या वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी गलती का अहसास होता है ?

हर इंसान से गलती होती है । इसलिए कहते हैं कि इंसान गलतियों का पुतला होता है । कई बार ऐसा होता है कि अपनी गलती का अहसास कुछ वक्त के बाद होता है ।यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मनुष्मात्र भूल का पात्र ! ऐसा हम कहते हैं... गल्तियों से ही तो हम सीखते हैं पर कुछ गल्तियाँ ऐसी होती हैं  जिसका मूल्यांकन वक्त बीत जाने के बाद यानि वक्त के साथ ठोकर लगने पर हम कर पाते हैं ! जैसे शिक्षा का महत्व अपनी नादानी में न कर पाने की गलती का अहसास वक्त बीत जाने के बाद होता है किंतु वह अपनी गलती सुधार अपने बच्चों को शिक्षा देने की अवश्य कोशिश करता है ! जब जागो तब सबेरा ... व्यक्ति अपनी गलती का आंकलन तभी कर सकता है जब उसे वह स्वीकारता है ! माफी और पश्चाताप से सुधार कर पुनः नहीं दोहराता !
यह सच है जीवन में ऐसी  गल्तियाँ भी हो जाती है जिसके घाव पश्चाताप से भी आजीवन नहीं भरते !
अपनी गलती एवं दूसरे की गल्तियों से सीखते हुए आगे बढ़ते जाना ही व्यक्ति के सफल जीवन
की पहचान है !
              - चंद्रिका व्यास
              मुंबई - महाराष्ट्र
        इस बात का अहसास उन्हें होता होगा जिन्होंने वक्त रहते गलतियां करने का ठेका लिया होता है। जबकि मेरा अनुभव है कि मैंने वक्त रहते अपनी सतर्कता का दण्ड भोगा है और दूसरों की गलतियों का खामियाजा भी भुगत रहा हूं।
        उल्लेखनीय है कि मेरे भ्रष्ट अधिकारियों ने मुझे बीमारी की दशा में लेह-लद्दाख जेसे दुर्गम क्षेत्र में 1994 में स्थानांतरित किया था। जिसका मैंने पालन भी किया था और परिणाम स्वरूप वहां सेना के विषेशज्ञों के बोर्ड ने मुझे उस क्षेत्र के लिए अनुपयुक्त पाया था। जिसके साथ ही उन्होंने मुझे परामर्श दिया था कि यदि आप यहां तैनात रहे तो आपको पेरालिसिस हो जाएगा या आपकी मृत्यु हो जाएगी।
        जब वैसा होने चला तो विभागीय अधिकारियों ने मुझे जहाज़ द्वारा जम्मू भेज दिया और उसके बाद मुझे पुनः वहां भेजने का ऐड़ी-चोटी का जोर लगाया। लेकिन मैंने वह गलती नहीं की थी। इसलिए हर हाल में उनके द्वारा रचित साजिशों के विरुद्ध लड़ता रहा। जबकि इस लड़ाई में मेरे तथाकथित विद्वान भाई, साले, वकील भी मेरे से घृणा करने लगे। किंतु मैं अडिग रहा था। जिसका दण्ड मेरे साथ-साथ मेरा परिवार भी भोग रहा है। 
        परंतु मेरा अटल विश्वास है कि मैं उस समय भी गलत नहीं था और ना ही अब गलती कर रहा हूं। जिसके कारण आज न्यायालय में संघर्षरत हूं और विजयश्री की ओर अग्रसर हूं।
        अंततः देखना बाकी है कि मेरे विरुद्ध रचि साजिशों रूपी अपनी गलतियों का अहसास विभागीय अधिकारियों के साथ-साथ किस-किस को होता है? चूंकि मेरा वक्त ही नहीं बल्कि अनमोल जीवन भी बीत गया है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
सामान्य तौर पर यही देखा जाता है कि समय रहते यदि किसी कार्य को न कर पाए तो गलती का एहसास भी होता है और पछतावा भी होता है। जानबूझ कर तो बहुत ही कम लोग इस तरह का व्यवहार करते हैं। परिस्थिति बस कभी-कभी समय पर कार्य नहीं हो पाता। कारण जो भी हो पर पछतावा तो होता ही है और गलती का एहसास भी।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है । भगवान ने मनुष्य मात्र को तेरह प्रकार की दक्षतायें प्रदान की हैं लेकिन सभी में ये दक्षतायें नहीं हो सकती है इसी कारण से टीम बनाई जाती है । यदि सभी दक्षतायें एक मनुष्य में हों तो वह देवत्व का स्तर प्राप्त कर लेता है ।
   यही कारण है कि वह मानवीय अहम के कारण गल्तियाँ कर देता है लेकिन उन्हें स्वीकार नहीं करता है । समय व्यतीत हो जाने पर जब उसके साथ भी वही व्यवहार दूसरा करता है तो उसका विवेक जाग्रत हो जाता है और वह अपने द्वारा पूर्व में की गयी गल्तियों का आकलन कर अपने सुधार कर पश्चाताप करता है ।
- निहाल चन्द्र शिवहरे 
झाँसी - उत्तर प्रदेश
यह सही है, कि वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी गलती का अहसास होता है. अगर पहली ही पता चल जाए कि हम जो काम कर रहे हैं, जो बोल रहे हैं, जहां जा रहे हैं, वह गलत है तो हमसे गलती होगी ही नहीं. फिर गलती का अहसास भी नहीं होगा. इसलिए यह कहना सही है, कि वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी गलती का अहसास होता है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति है समय जीवन में सबसे महत्वपूर्ण है यदि उपयुक्त समय निकल जाता है तो उसके अनुरूप गलती का एहसास होना एक सामान्य सी प्रक्रिया है अवसर हमेशा आपके सामने नहीं आते हैं लेकिन अवसर आने पर यदि आप उस समय का सदुपयोग नहीं करते हैं तो आपको उसकी गलती का एहसास होना ही चाहिए विशेषता इस बात की है कि आज आप उस अफसर को कितनी गंभीरता से समय के अनुसार उपयोग कर पाते हैं मेरे जीवन में इस तरह के बहुत सारे अवसर आए जिनके निकल जाने के बाद में बहुत पछताया  अधिकतर लोगों के जीवन में हंड्रेड परसेंट तो कोई कुछ भी नही होता जीवन में अपने समय का सदुपयोग नहीं कर पाता है लेकिन जो लोग कर पाते हैं वह इस जीवन के अंदर सफल मनुष्य कहलाते हैं मानवीय जीवन में पांच प्रकार के परिवेश अत्यधिक महत्वपूर्ण है नंबर 1 भोजन नंबर दो समय की सदुपयोगता नंबर तीन शिक्षा नंबर 4 सामाजिक व्यवहार आचरण नंबर 5 आत्मिक उत्थान के लिए समय का सदुपयोग माननीय संपादक महोदय जी आपके इस विषय का मैं स्वागत करता हूं तथा धन्यवाद करता हूं आपने मुझे इस महत्वपूर्ण विषय में अपनी बात रखने का मौका दिया तथा अपने विचार इस चर्चा में प्रस्तुत करने का अवसर दिया 
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
वक्त बीतने के बाद अक्सर गलती हो जाने की बात स्वीकार नहीं की जा सकती है । किसी कार्य के परिणाम को देखने के बाद या तो खुशियाँ मिलती हैं या होश उड़ जाते हैं । खुशियाँ मिल गयी तो ठीक है अगर होश उड़ गए तो एहसास होता है कि कहीं कुछ गलतियाँ हो गयीं। चूक जाने के बाद तो समय भी गुजर चुका होता है। काश समय को पीछे की ओर मोड़कर ले जाना सम्भव हो पाता।
किसी नए कार्य करते हुए गलती हो जाना स्वाभाविक क्रिया है उसके लिए खुद को कोसते रहने से बेहतर होता है कि गलती से हुई उन गलतियों को सुधारने का प्रयत्न किया जाए ।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
गलती का एहसास तो वक्त बीतने पर क्या,वक्त रहते भी होता है।भीतर मन से आवाज आती है,यह ग़लत है। परंतु हमारा अहम, मस्तिष्क इस गलती को मानने नहीं देता। इसके चलते 
समय निकल जाता है और फिर पछतावा होता ही है,पर उसे भी मानव जाहिर नहीं करता।कभी अहं वश,कभी स्वार्थवश अपने अंतर्मन की बात हम सुनते नहीं,गलती करते रहते हैं,गलती का खामियाजा भुगतने पर अफसोस करते हैं।जबकि गलती का एहसास तो गलती करने के विचार के साथ ही हो जाता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
"वक्त के रहते अगर तुम नहीं संभले तो बाद में पछताने के सिवा कुछ हाथ नही आएगा",दादी अक्सर हम सबको नसीहत दिया करती थीं।
उस वक्त उनकी बातें कम ही समझ आया करती थीं परन्तु जैसे-जैसे बड़े होते गए इस बात का मतलब और औचित्य समझ आने लगा। हम अगर कभी भी अपने जीवन में कुछ ग़लत करते हैं तो हमसे बड़े-बुजुर्ग अथवा तज़ुर्बेकार लोग हमें चेतावनी देते हैं कि ग़लत रास्ते पर जा रहे हो,संभल जाओ या अपना रास्ता बदल लो वरना नुकसान उठाना पड़ सकता है।पर हममें से कई लोग इन बातों को अनसुना करते हुए पूर्ववत अपना काम करते हैं फलस्वरूप दुखदाई स्थितियों में पहुंच जाते हैं और तब हमारे पास पछताने के सिवा कोई और विकल्प नही बचता।उस वक्त हमें ये मलाल अवश्य होता है कि काश! हमने बड़ों की बात पहले मान ली होती तो शायद आज परेशानी से बच जाते।पर तब तक देर हो चुकी होती है।
वो कहावत है न.."अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत"!
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
"बिना विचारे जो करे, सो पाछे पछिताय"। इस कहावत के अनुसार कार्य करते समय पूर्ण रूप से विचार ना करना हमारे पछताने का कारण बनता है परन्तु यह भी सही है कि कार्य करते समय कुछ कमी रह जाती है और अक्सर अपनी गलती का अहसास वक्त बीतने के बाद ही होता है क्योंकि कार्य का नकारात्मक परिणाम हमें गलतियों का अहसास कराता है परन्तु तब तक वक्त बीत चुका होता है। 
किसी कार्य में गलती होने के कई कारण हो सकते हैं। जैसे, किसी भी कार्य के विषय में अनुभवहीनता, उस कार्य में पारंगत न होना अथवा लापरवाही आदि। 
इसलिए जब कार्य में असफलता मिलती है तो मनुष्य को अपनी गलतियों का अहसास होता है परन्तु तब तक वक्त बीत चुका होता है और यह कहावत चरितार्थ होती है....."अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत"। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
हम अक्सर कार्य करते हुए गलतियां कर जाते हैं । यह आवश्यक नहीं कि गलती जानबूझकर ही की जाये। कई बार अनजाने में भी गलती हो सकती है। कई बार हम अज्ञानता वश गलती कर जाते हैं किंतु ज़रूरी यह है कि उस गलती का सुधार लिया जाए। कई बार हम क्रोध में आकर कुछ बोल जाते हैं और हमें बाद में अपनी गलती काअहसास होता है। कभी हम अकेले में बैठकर सोचें तो हम यह देखते हैं कि दिन भर में हम कितनी गलतियां अनजाने ही कर बैठते हैं हमें अपनी गलती का अहसास होता है। कुछ गलतियों का अहसास तो हमें बहुत लंबा समय बीत जाने पर होता है।उनका सुधार भी समय रहते कर लेना चाहिए
- अंजू बहल
चंडीगढ़
     जिसने समय के मूल्यों को मूलभूत सुविधाओं को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर समझ लिया तो उसके समस्त प्रकार के कार्यों को सम्पादित कर सफलता अर्जित करने में सर्व सुविधाएं उपलब्ध आसानी से हो जाती हैं। जिसके परिपेक्ष्य में आज का काम आज करने में सक्षम हो जाता हैं। अगर हम नैतिकतावादी बन कर दिखाने का प्रयास करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होना चाहते हैं, तो समय निकलने उपरान्त अक्सर अपनी गलतियों का अहसास होता, जो सीधे तौर पर पछताने के सिवाय कुछ नहीं कर सकते हैं। समयसीमा, समय चक्रों का अपना ही एक अलग-अलग महत्वपूर्ण योगदान होता हैं, प्राकृतिक आपदाओं को देख लीजिए,  जो क्षण भर में सब कुछ तवा कर चले जाती, फिर प्रारंभ होता हैं, उसकी बसाहट-कसावट का सिलसिला? अगर हम अपनी नीतिगत दायित्वों का प्रयास करें, तो प्राकृतिक संसाधनों से सामना कर, उसी समय सीधे तौर पर रुकवाने में सफलता हासिल कर सकते हैं।  
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
जी वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी गलती का एहसास अवश्य होता है।  समय निरंतर प्रवाहमान है ,गतिमान है ,समय का महत्व जिसने जान लिया उसने जीवन को सार्थक बना लिया ,लेकिन "मनुष्य गलती का पुतला है" जाने अनजाने में कोई गलत निर्णय उसके जीवन को अवश्य प्रभावित करता है। यदि हम उस गलती का पश्चाताप करके अपना समय यूं ही बर्बाद करते रहे तो यह भी अच्छा नहीं है गलतियों का पश्चाताप न कर उन्हें सुधारने की कोशिश होनी चाहिए । किसी गलती के एहसास को सुधारवादी तरीके से सही करना ही बुद्धिमता है । जीवन की सार्थकता समय की महत्ता को आधार बनाकर ऑंकी जाती है ,अतः गलती की आवृत्ति या दोहराई बार-बार न हो यही प्रयास होना श्रेयकर रहता है कहते हैं -गया वक्त हाथ नहीं आता लेकिन आने वाले वक्त को योजनाबद्ध करके सहजता से अनुकूल किया जा सकता है। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
    यह एक सच्चाई  है कि हर मनुष्य से छोटी- बड़ी गलतियां जीवन में  होती रहती है । जोश- जुनून, उत्तेजना के माहौल में वह गलती कर वैठता है या उससे गलती हुई है को पहचान नहीं पाता है। कभी-कभी इंसान  स्वयं को संयमित नहीं कर पाता है और गलतियां कर बैठता है। लेकिन यह भी देखा जाता है कि  जैसे-जैसे वक्त व्यतीत होता है,  मानसिक उत्तेजना समाप्त हो जाती है, दिमाग ठंडा हो जाता है तो व्यक्ति को अपनी गलती का एहसास होने लगता  है ।यह भी देखा गया है कि वक्त के साथ-साथ मनुष्य की सूझ-बूझ भी विकसित होती है, विवेक जागृत होता है और ऐसी स्थिति में उसे  अहसास भी पैदा होता है कि भूतकाल में उसके द्वारा क्यों गलती की गई। इसलिए यह कहा जा सकता है कि जोश, जुनून ,जज्बात या उत्तेजना में आकर, बदले की भावना से जो गलती हो जाती है वह भविष्य के आंचल में  अक्सर मानव को इस बात का अहसास करा देती  है।
  निःसंदेह, वक्त बीतने के बाद   मानव को अपनी गलती का अहसास होता  है ।
 - अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश
बिल्कुल सही तथ्य है गलतियां तो जीवन में होती रहती हैं कुछ अज्ञानता बस कुछ जानबूझकर लेकिन समय बीत जाने के बाद यह एहसास होता है कि मैंने वह गलती की थी इसे ही तो अनुभव करते हैं और उससे फिर आने वाले जीवन में स्वयं को सुधारने की कोशिश लोग करता है तभी यह कहावत बनी है धूप में बाल सफेद नहीं किए हैं
सही निर्णय नहीं लेने के कारण या कभी-कभी भावेश में इंसान गलत निर्णय ले लेता है कभी-कभी अपने ऊपर विश्वास नहीं होने के कारण दूसरों के बातों में उलझने के कारण गलतियां हो जाती हैं बाद में यह एहसास होने लगता है यह गलती मुझसे हुई है तब तक समय गुजर जाता है और पश्चाताप करने के सिवा कोई उपाय नहीं रह जाता है अगर सही समय पर अपनी गलती का एहसास हो जाए तो शायद गलतियां हो ही नहीं।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
वक्त बीतने के बाद अक्सर गलती का अहसास होता है। अगर बहुत किस्मत अच्छी हो तो वक्त रहते अहसास हो जाता है। जब उसके द्वारा पूर्व में लिए निर्णय का परिणाम मिलना शुरू हो जाता है, क्योंकि भूतकाल को अब हम बदल नहीं सकते हैं इसलिए उसे चाहिए कि अपनी गलतियों से सबक लें और भविष्य में इन गलतियों को न दोहराते हुए भविष्य के लिए काम करें।
लेखक का विचार:-मनुष्य कई बार अज्ञानता व आदत के कारण भी अपनी गलतियों को दोहरा देता है,हमें जीवन में अपनी भूल से सबक लेते हुए आगे बढ़ते रहना चाहिए।इंसान के हर निर्णय के पीछे सही तथा गलत दो तर्क जुड़े रहते हैं, यदि कार्य में सफलता मिली तो सही कदम असफलता मिली तो उसे गलती की श्रेणी में ले लेते हैं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
वक्त के साथ-साथ व्यक्ति बहुत कुछ सीखता जाता है । जब अपने कार्यों का मूल्यांकन करो तो समझ में आता है कि कहाँ गलती हुई । खैर जब जागो तभी सबेरा समझो । अपनी गलती को पहचान कर दुबारा उससे बचना व दूसरों की गलतियों से सबक लेकर आगे बढ़ते जाना ही सफल व्यक्ति के लक्षण होते हैं ।
जो कुछ करेगा गलतियाँ तो उसी से होंगी अतः कार्य करते हुए आगे बढ़े और जब अहसास हो कि आपसे भूल हो गयी है तो उसे सुधार कर सम्बंधित व्यक्ति से क्षमा माँग लें या क्षमा करते हुए बढ़ते रहें ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
-जी हाँ। वक्त बीतने के बाद ही हमें अपनी गलती का अहसास होता है। हम अति उत्साह में, विवेक का उपयोग ना करते हुए या क्रोध की अवस्था में कुछ ऐसे कार्य कर जाते हैं, जो कि त्रुटिपूर्ण होते हैं। फिर हमें उस कृत्य की की गई गलती का अहसास होता है, अफसोस होता है। 
    जब वक्त बीत जाता है,तब हमें नफे-नुकसान का पता चलता है और पछताने या अफ़सोस करने के सिवा हमारे हाथ कुछ नहीं आता।
    बेहतर यह हो कि हम किसी भी कारण से, की गई गलती का सबक लेवें। भविष्य में फिर से गलती ना करने का संकल्प लेवें ।कोई भी कार्य सोच-समझकर ,भविष्य को देखते हुए, उसके परिणाम को ध्यान में रखते हुए, करने की शपथ लेवें। तभी परिणाम भी सुखद होगा ।उस कार्य से हमें यश प्राप्त होगा।
     भविष्य में हमारे द्वारा की गई गलती का पश्चाताप भी नहीं होगा बशर्ते कि हमें उस गलती से सबक प्राप्त हुआ हो।नहीं तो यही कहा जायेगा कि "अब पछताए क्या होत है जब चिडियाँ चुग गयी खेत"।
  - डाॅ •मधुकर राव लारोकर 
   नागपुर - महाराष्ट्र
हां वक्त बीतने के बाद अपनी गलती का एहसास अवश्य होता है। हमारे जीवन में ऐसे कई मुकाम आते हैं जिनसे हम अक्सर घबराकर संयम खो देते हैं। जो व्यक्ति धीरज संयम से रहता है वही उन्नति करता है ।कई ऐसे मौके होते हैं जो परिवार में समाज में जो हम अपने बड़े लोगों से तालमेल नहीं बिठा पाते हैं। अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाते। हमारे मुंह से न कहने वाली बात निकल जाती है बाद में हमें विचार करने पर अपनी गलती का एहसास होता है। जब तक हम माफी मांगने का भी अवसर खो देते है। इस बात से हम अपने मन ही मन काफी व्यथित होते हैं। इसलिए संयम से देखकर अपने सामान्य आचार विचार व्यवहार से किसी को ठेस न लगे ऐसी कोशिश करें।
- पदमा तिवारी 
दमोह - मध्यप्रदेश
ऐसा ही होता है क्योंकि उस समय हम वर्तमान को भूतकाल से जोड़ते हुए अपनी गलतियों का आकलन कर पाते हैं परन्तु गलती करते समय ऐसा नहीं कर पाते क्योंकि उस समय हम अपने हिसाब से ठीक ही कर रहे होते हैं। बाद में यह सोचना कि ऐसा करते तो वैसा हो जाता, वैसा करते तो ऐसा हो जाता केवल अनुभव ही देता है। आवेश में आकर जब इंसान क्रोधित हो कुछ अनर्गल कर्म कर बैठता है तो उस समय पछतावा नहीं होता, किन्तु वक्त बीतने के बाद अवश्य ही अपनी गलती का एहसास होता है।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
वक्त बीत जाने के बाद अक्सर लोगों को अपनी गलती का एहसास होता है। इसलिए जरूरी है कि आप खुद गलती को दोहराने से बचें। एक बार कोई गलती हो गई हो तो उसी गलती को दोबारा करने से बचना चाहिए।जब कुछ लोग एक ही गलती को बार-बार करते हैं और फिर माफी मांगते हैं।जब कोई बार-बार कोई गलती करता है तो वह आदत बन जाती है जिसे आदमी का अपना सम्मान खो देना पड़ता है। इंसान को खुद की गलती का एहसास तब होता है जब वक्त निकल जाता है और तब कुछ नहीं हो सकता सिर्फ इंसान पछताता ही रह जाता है इसलिए समय रहते अपनी गलतियों का एहसास कर लिया करो वरना जब वक्त ना रहेगा तो पछताने के अलावा और कोई रास्ता नहीं मिलेगा। मनुष्य सच में अपनी गलती क्यों स्वीकार नहीं करता है? सभी इंसान अनिवार्य रूप से अंक आज से प्रेरित प्राणी है। एक छोटी उम्र से हम अपनी मान्यताओं और अनुभव से निर्मित पहचान विकसित करते हैं। हम में से ज्यादातर अपने आप को सभ्य लोगों के रूप में सोचते हैं कुछ क्षेत्रों में औसत से बेहतर कुछ में औसत से थोड़ा बदतर हो सकता है लेकिन हमेशा सर्वश्रेष्ठ होना चाहते हैं और हम यथार्थवादी रूप में दुनिया को देखने का प्रयास करते हैं और तर्कसंगत तरीके से कार्य करते हैं। कई बार हमारा अहंकार हमें गलती स्वीकार करने से रोकता है जिसके कारण हम साबित करने के लिए सबूत चाहते हैं असल में किसी को गलती होने पर उचित तरीके से माफी मांगने के बारे में बहुत सारी सलाह मिल सकती है लेकिन किसी भी परिस्थिति के बिना हमारी गलतियों की जिम्मेदारी लेने के बाद यह आता है। व्यक्ति को वक्त की पहचान करनी चाहिए और अपनी गलतियों को सुधार करना चाहिए नहीं तो जब भी वक्त बीत जाता है तब हम अपनी गलतियों का एहसास करते हैं
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
" बहुत रोये वो हमारे पास आके, जब एहसास हुआ उन्हे् अपनी गल्ती का, 
चुप तो करा देते हम अगर चेहरे पे हमारे कफन न होता"। 
 इन्सान  गलतीयों पुतला है, गलतीयां  तो सभी से होती हैं लेकिन जब हमें इनका एहसास होता है तो सिर्फ पछताबा ही शेष रह जाता है, 
यह सब वक्त बीतने के बाद याद आता है कि जो छूट गया वो लम्हा बेहतर था, 
तो आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी  गलतीयों का एहसास होता है, 
 मेरा मानना है कि यह बिल्कुल सच है इन्सान को  वक्त निकल जाने पर ही अपनी  गलती का एहसास होता है क्योंकी वक्त निकल जानै के वाद कुछ नहीं हो सकता अगर वक्त रहते ही इंसान अपने किये गए कार्य को सुधार ले या माफी मांग ले तो कुछ हद तक सब कुछ द्वारा ठीक हो सकता है, 
देखा जाए इंसान अनिवार्य रूप से  अंहकार से प्रेरित प्राणी है, कई बार हमारा अंहकार हमें गल्ती स्वीकार करने से रोकता है जिसके कारण हम साबित करने के लिए सबूत मांगते हैं, अक्सर देखा गया है गलती तो हो ही जाती है उसको स्वाीकार कर लेना बड़प्पन की निशानी है और स्वीकार करके माफी मांगना सोने पै सुहागा जैसा हो जाता है क्योंकी  गलत होने पर  गलती का एहसास होना जरूरी है इसलिए कि आपके द्वारा की गई  गलती का भाव ही उसे आगे  गलती करने से रोकता है और भविष्य में  गल्तियां न दोहराने के लिए प्रोत्साहित करती है, 
आखिर में यही कहुंगा की अक्सर हम से गलतियां हो जाती हैं जिनका हमें एहसास भी होता है ऐसा होने पर हमे तरूंत माफी मांग लेनी चाहिए
जिससे गहरे से गहरे रिश्ते भी बने रहते हैं और हमारी गलतियों मैं भी सुधार आता है, 
सच कहा है, 
"रिश्तों में दूरियां आती जाती हैं फिर भी दोस्ती दिलों को मिला देती है, वो  दोस्ती ही  क्या जिसमें नराजगी न हो
     पर
सच्ची दोस्ती दोस्तों को मना ही लेती है" ़। 
इसलिए  हमें जब भी किसी  गलती का एहसास होने लगे   
हमें उसे तरूंत सुधारने की कोशिश करनी चाहिए और अगर हमारी गलती से  कोई भी रिश्ता टूटता नजर आने लगे तो हमें  माफी मांगने से परहेज नहीं करना चाहिए, 
यह सच है, 
शीशा और रिश्ता दोनो् ही बड़े नाजुक होते हैं, 
फर्क  इतना होता है कि शी़शा गलती से टूट जाता है और रि़श्ता गलतफहमियों से। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
          यह अक्सर कहा जाता है कि इन्सान गलतियों का पुतला है। इस से सपषट हो जाता है कि इन्सान गलतियाँ करता रहता है। गलती करना कोई गुनाह नहीं। जाने अनजाने में हम गलती कर लेते हैं। कई बार गलती करते ही हमें अहसास हो जाता है कि हम से गलती हो गई है लेकिन हम मानने को तैयार ही नहीं होते। अगर कोई हमें उसी समय गलती का अहसास कराता भी है तो उल्टा हम उस से लड़कर रिशते खराब कर लेते हैं। वक्त बीतने के बाद इन्सान को अक्सर गलती का अहसास होता है 
जब वक्त निकल जाता है तब कुछ नहीं हो सकता सिर्फ इन्सान पछताता ही रह जाता है ।इस लिए वक्त रहते अपनी गलतियों का अहसास कर लिया जाना चाहिए। 
         सच्चाई यह है कि गलत होने से हमें दर्द होता है। गलती से भी अधिक यह स्वीकार करते हुए दर्द होता है कि हम गलत हैं एक चुनौती है।हमारा अहम् हमारा दिमाग गलती नहीं मानता।जीवन में वही इन्सान सफल होता है जो गलतियों से सीख लेकर आगे बढ़ता है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब

१००℅ सही बात। वक्त बीतने पर ही अपनी गलती का अहसास होता है। मेरे साथ कई बार ऐसा हुआ है या कहें बार-बार हो जाता है। काम हो जाने के बाद याद आता है कि ऐसा होने से ठीक रहता।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
 वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी गलती का एहसास इस स्थिति में होता है जब मनुष्य  पुनः समस्या में फंसता है उसी समय उसे पूर्वाग्रह गलती का एहसास होता है और अपने अंदर एक अलग से महसूस होता है अर्थात गलती को सुधारने के लिए सहमत होता है अगर गलती को सुधार आ ना जाए और पुनाह पुनाह गलती होता ही रहता है तो ऐसी स्थिति में समस्या ग्रसित होकर के जीना होता है और मूलतः देखा जाए तो कोई समस्या में जीना नहीं चाहता हर व्यक्ति खुश होकर जीना चाहता है भले ही उसे किस तरह से सुख पूर्वक जिया जाए इसकी जीने की शैली का पता नहीं होता है और सुख पूर्वक जीने के लिए ही वह गलती करना नहीं चाहता लेकिन हो जाता है इसी का नाम है वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी गलती का एहसास होता है। गलती ना चाहते हुए भी गलती होता है और इस गलती के लिए मन में सही करने के लिए पछतावा भी होता है अतः अपनी गलती का एहसास वक्त गुजर जाने के बाद भी होता है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जाने- अनजाने में हमसे गलतियां होना स्वभाविक है। गलती कैसी भी हो, गलती ही होती है। जो नहीं होना चाहिए। गलती का पश्चाताप भी किया जा सकता है, माफी भी मांगी जा सकती है और माफ भी किया जा सकता है।
  जीवन में कभी-कभी ऐसी गलतियां भी हो जाती हैं, जिनका पश्चाताप आजीवन रहता है और कुछ गलतियां ऐसी हो जातीं हैं, जिनका अहसास या जिनका नुकसान का आभास बहुत समय के बाद नजर आता है। जब उसकी वजह में कोई भूल या गलतफहमी की जानकारी मिलती है।
अतः यह कहना कि वक्त बीतने के बाद अक्सर अपनी गलती का अहसास होता है, सही होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जिन्दगी में बहुत बार एेसा होता है कि हम जाने -अनजाने गलती कर बैठते हैं जिसका अहसास या पछतावा हमें बाद में होता है ।यह एकदम सत्य है कि ऐसी गलती हर किसी से होती है । ऐसी परिस्थिती में हमें अपनी गलती का प्रयश्चित कर लेना ज्यादा अच्छा है ।मनमें कोई कटुता ,न हो तो हम आगे विश्वास के साथ बढ़ते हैं ।सकारात्मक ऊर्जा हमारी मदद करती है । लेकिन कभी -कभी ऐसी गलती हो जाती है जिसकी भरपाई करना जिंदगी में मुश्किल ही नहीं नामुमकिन भी हो जाता है । समझदारी इसी में है कि वक्त को पहचान कर चलो । समय का चूका आदमी कहीं का नहीं होता ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
कहा गया है कि जब जागो तभी सवेरा। व्यक्ति बहुत बार अपनी गलती का एहसास  सही समय पर नहीं करता है फलतः उसे बाद में अपनी गलतियों का एहसास होता है तब तक बहुत बार बहुत देर हो चुकी होती है और तब व्यक्ति घोर पछतावा और क्षोभ में डूब जाता है। अतः वक्त का हमें  क़दर करनी चाहिए और "काल करे सो आज कर आज करे सो अब"  की प्रकिया सदा अपनानी चाहिए तभी हम समय पर अपना काम करे तभी हमें समय बीत जाने का पछतावा का सामना कभी ना करना पड़े।
- डाॅ पूनम  देवा 
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " गलती का अहसास ही जीवन का मार्गदर्शन करता है । परन्तु गलती का अहसास वक्त लेता है । जो समय रहते अहसास हो जाऐ तो सबसे अच्छा माना जाता है । यदि वक्त निकल गया तो फिर हाथ मलते रह जाऐंगे ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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