क्या नज़र उतारना अंधविश्वास है ?

जिस की व्याख्या नहीं हो पा रही हैं । उसे अंधविश्वास कहते हैं । जिस की व्याख्या हो जाऐं । उसे वैज्ञानिक कहते हैं । ये तो रही अंधविश्वास ? नज़र के मामलें में अभी तक वैज्ञानिक तत्थें सामने नहीं आये हैं । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
जी हाँ ....नज़र उतरना उतना ही बड़ा अंधिश्वास है जितना करवा चौथ का व्रत रखना ....श्राद्धों में खाना खिलाना....नवरात्रों मैं कन्या पूजन आदि
कुछ प्रथाएं ऐसी होती हैं जो भारत मैं पढ़े लिखे लोग सभी सदियों से मानते चले आये हैं
मैं भी विज्ञानं स्नातक हूँ व अपने बच्चों की नज़र उतारती आयी हूँ
शायद ये एक ऐसी प्रथा है जिससे मानसिक संतुष्टि मिलती है ....विशेषकर जब नज़र उतारने के बाद रोता बच्चा चुप हो जाता है
जानते हुए भी की यह अंधविश्वास है ....आम लोग इसे मानते हैं .....व इसका पालन करते हैं
मैने इस विषय पर भिन्न लोगों से चर्चा की व निजी व्यक्तिगत निष्कर्ष पर पहुंची हूँ की नज़र का भी वैज्ञानिक आधार है
किसी किसी व्यक्ति विशेष की आँखों से हानिकारक कॉस्मिककिरणे निकलती हैं जो हानि पहुँचाती हैं
मिर्चेंइन किरणों को सोख लेती हैं हानिकारक प्रभाव को नष्ट कर देती हैं
ये नज़रिया व्यक्तिगत है !
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
नजर जैसी बात को वैज्ञानिक तौर पर सिद्ध नहीं किया जा सकता परन्तु अनुभव के आधार पर देखा गया है कि नजर लग जाने वाली बात कहीं न कहीं सिद्ध हो ही जाती है। यह एक मनोवैज्ञानिक और मानसिक की मिश्रित स्थिति है। 
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
मैं तो कहूँगी कि नजर उतारना मन का भय है, जिस प्रक्रिया को माँ अपने बच्चे के लिए ही अधिकतर इस्तेमाल करती है।
मेरा मानना है कि कुछ हद तक यह प्रक्रिया माँ के मन को शांति प्रदान करती है। उसे यह विश्वास बन जाता है कि उसका बच्चा सुरक्षित है। 
यह अंधविश्वास ही है जो अधिकतर माताओं में देखा जाता है। पिता इस धारणा से बिल्कुल अलग होते हैं। पहले माँ शिक्षित नहीं होती थी इस कारण अंधविश्वास के पीछे भागती थी, परन्तु आज भी लोग इस परंपरा पर विश्वास करते हैं। थोड़ी-सी तकलीफ होने पर नजर उतारने की क्रिया की जाती है।
  वैसे तो मैं भी इसे अंधविश्वास मानती हूँ, परन्तु किसी की ममता को दोषी ठहराना हम सब का ध्येय नहीं हो सकता।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
नहीं,यह अंधविश्वास नहीं है। होता है नजर का असर।यह इतना प्रभावी होता है कि इससे प्रभावित व्यक्ति को कोई दवाई ठीक नहीं कर पाती। नजर के उतरवाने के बाद ही उसका असर होता है। बचपन में हमने,दादी को हमारी नजर उतारते कई बार देखा है।बुरी नजर वाले तेरा मुंह काला
कहावत यूं ही तो नहीं बनी। आपने सुना भी होगा कि फलां आदमी की नजर ठीक नहीं,बद नजर है। नई बिल्डिंग पर नजर न लगे  इसके लिए अपने उस भवन मुखौटा सब लगाते हैं।नजर का असर न हो इसके लिए माताएं बालक के माथे पर काला टीका लगाती है। होता है नजर का असर।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
यह सभ्यता संस्कृति अनोखा तरीका है जब बच्चे बीमार पड़ जाये या हद से ज्यादा सुंदर लगें तब माँ नज़र उतारकर हमें स्नेह बरासाती है। और मंगलकामना करती है ।अद्भुत प्रेम का दृष्टिकोण यहां स्थापित होता है ।अंधविश्वासों की कसौटियों मे यह काफी हद तक शामिल है परंतु यह समयानुसार अच्छी विधि भी है ।जहां प्रेम से बुरी  बलाओं को हमारे मात पिता नज़र उतारकर करते हैं।समयरेखा बदलाव की परिवेशों से गुजर रहा पंरपरागत तरीका बदल चुके हैं यह अंधविश्वास की होड़ कही जाती है ।पंरतु ज़माने की यह रीति रिवाजों का संगम होता हैं बड़ों का आशीर्वाद देते हुए नज़रों का उतारना हमें प्रगतिशील पथ निर्माण कार्य के लिए तैयार करता है।जीवन मे विपरीत परिस्थितियों का प्रभाव कम पड़ता है।और माँ का ममतामयी रूप हमारे जीवन को खुशियाँ देता है।नज़र उतार कर जीवन की बांधाओ को दूर किया जाता है।यह संस्कार को और संवेदनशील बनाने मे अपनी भुमिका निभाते है ।जीवन के हर मोड़ पर अगर हमारे अपने हमारे साथ होते हैं तो हमारी नज़र उतारते है और शुभकामनाएं देते है तथा शुभारंभ कार्य का होता है।आज भी शादी के पहले और हर खुशियों मे बड़ों के द्धारा  नजरें उतारी जाती है।आज लोगों बदलते परिवेशों मे खुद को आधुनिक तकनीक से दिखावा करते है और आजकल के पीढियों को यह सब अधंविश्वास लगता है जो की हमारी संस्कृति को काफी पीछे छोड़ रहे है।आज के समय मे लोगों के पास इसतरह के प्रेम भावना नही और ना ही इतना वक्त होता है सभी सिर्फ अपने ही बारे मे सोचते है अपनी रिति रिवाज को अधंविश्वास की तुलना मे लाकर खड़ा कर देते हैं और समय केंद्र मे खुद को व्यस्त बताते हैं ।समाज की अपनी अलग खासियत होती है समाज मे इस तरह के कार्य बेहद ही शुभ होते हैं जिससे हम अपने जीवन की सारी परेशानी को कम कर आगे बढ़ने के लिए तैयार होते हैं।अधंविश्वास की धारणाएँ पलती हैं पंरतु यह नज़र उतारने की प्रक्रिया शुभ है माँ का ममत्व है प्रेम है।इसे अधंविश्वास की कतार मे रखना नही चाहिए।जीवन मे सुखद अनुभव किया जाता है जब कोई हमारी नज़र उतारे।उस पल मे हम जीवन की सच्ची खुशियों को जीते है ।यह अधंविश्वास नही यह शाश्वत सत्य और स्नेह का तालमेल हैं।जो हमें सदगति और जीवन की हौसला देती है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
आज के समय में किसी को नजर कैसे लग सकती है, जबकि हर व्यक्ति, वस्तु खुला सा दिखता है, मिलता है। नजर तो वहाँ लगती है जब कोई वस्तु, व्यक्ति ढ़॔का छिपा होता है। 
    जब नजर लगी ही नहीं है तो उतारने का कोई प्रश्न ही नहीं है। नजर उतारना तो पूर्णतः अंधविश्वास है अर्थात ऐसा विश्वास जो पूरी तरह से अंधा हो और जिसमें विवेक की कोई जगह ना हो।
   आज शिक्षा का व्यापक और प्रभावी विस्तार हुआ है। जहाँ अशिक्षा है वहीं तो अंधविश्वास है।नजर उतारना अंधविश्वास है और यह शहरों की अपेक्षा ग्रामीण क्षेत्रों में यह अंधविश्वास अधिक पाया जाता है। वह भी अशिक्षा के चलते।
 -  डाॅ.मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
सोचने पर कभी-कभी यह बिल्कुल महसूस होता है कि नजर उतारना एक अंधविश्वास है लेकिन जब मुसीबत में आदमी पड़ता है तो हर प्रकार की उपाय को अपने जीवन में उतारता है जिससे उसके कष्ट मुसीबत कुछ कम हो जाएं और नजर उतारना भी उसी का एक क्रम है नजर लगना एक प्रकार का नकारात्मक ऊर्जा है और नकारात्मक ऊर्जा कहीं ना कहीं मानसिक और शारीरिक तौर पर हनी तो पहुंच आती है हां जहां पर नकारात्मक ऊर्जा है वहां पर यदि सकारात्मक उड़ जाए अत्यधिक हो तो शायद उनका दोष कम लगे फिर भी नकारात्मक ऊर्जा कहीं न कहीं क्षति तो पहुंच आती ही रहती है इसलिए पढ़ा लिखा इंसान हो या अनपढ़ हो किसी न किसी रूप में सभी लोग इस भ्रम को स्वीकारते हैं यह जानते हुए कि यह एक अंधविश्वास है एक भ्रम है फिर भी जब कभी इस्तेमाल करने पर अगर कष्ट में थोड़ी सी भी राहत मिलती है तो यह महसूस होने लगता है कि कहीं न कहीं यह नकारात्मक ऊर्जा हमें कष्ट पहुंचा रही थी यदि अंधविश्वास की बात सोचें तो बहुत सारी ऐसी प्रथाएं हैं जिसमें अंधविश्वास बनी हुई है फिर भी एक आस्था और विश्वास के ऊपर हर समाज में हर परिवार में उन प्रथाओं को माना जा रहा है तुम यह अंधविश्वास है या विश्वास है यह व्यक्ति की मानसिकता के ऊपर निर्भर करता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
                   दुनिया में मन से उठने बाली तरंगों पर  बहुत से परीक्षण होते रहे हैं और वर्तमान में भी कई देशों में  मानसिक तरंगों पर प्रयोग हो रहे हैं ।     मन की सूक्ष्म तरंगे जिन्हें मानव आंखों से नहीं देखा जा सकता है  अपनी- अपनी जगह पर काम करती हैं और इनका प्रभाव होता है। इसके ऊपर बहुत सारे वैज्ञानिक परीक्षण तथा मनोवैज्ञानिक परीक्षण बहुत विस्मयकारी साबित हुए हैं और उन परीक्षणों से यह बात स्पष्ट हुई है कि तरंगों का एक अपना विज्ञान है और आधार है।
              तरंगें नकारात्मक व सकारात्मक हो सकती हैं । नज़र उतारने के पीछे यह मान्यता रही है कि नकारात्मक तरंगों  का प्रभाव सुंदर या छोटे बालक-बालिकाओं पर न पड़ सके। नकारात्मक तरंगें  विपरीत प्रभाव डालती हैं और इससे स्वास्थ्य या किसी भी चीज  पर बुरा असर पड़ जाता है ।बहुत से बालक-बालिकाओं का स्वास्थ्य भी बिगड़ जाता है। इस परिपेक्ष्य  में भारतीय समाज में प्राचीन काल से मान्यता रही है कि इन तरंगों के प्रभाव  को दूर करने के लिए या इन तरंगों के बुरे  प्रभावों से बचने-बचाने के लिए सुंदर या स्वस्थ  बालक या बालिकाओं की नज़र उतारना आवश्यक है। और यह भी देखा गया है कि नज़र उतारने के पश्चात बालक या बालिकाओं का कुम्हलाया हुआ चेहरा, खराब स्वास्थ पर बड़ा सकारात्मक असर पड़ता है।     
                    मेरी मान्यता यह है कि तरंगों का विज्ञान है मान्यता है और किसी को नजर लगना नकारात्मक या बुरी तरंगों का प्रभाव है और इस प्रभाव को हटाने के लिए जो कुछ भी तरीके हमारे समाज में अपनाए जाते हैं वह अपने स्थान पर सही है।  
         नज़र उतारने को अंधविश्वास नहीं माना जाना चाहिए यद्यपि इसका भौतिक रूप में प्रमाण नहीं है फिर भी इस की प्रभावशीलता को कम करके नहीं आंका जा सकता है
-  डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
दतिया - मध्य प्रदेश 
नजर लगना या नजर उतारना मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण है।जिस माहौल में पले-बढ़े हैं उसमें एक आम धारणा बन गई है कि अगर अचानक तबीयत खराब हो या कुछ बुरा घटित हो, अनहोनी हो,तब अपनों को यूं लगता है कि किसी की नजर लग गई और उस नजर को उतारने के लिए तरह -तरह के विकल्प अपनाते हैं।
     नजर उतारना अंधविश्वास तो नहीं पर एक तरह का मानसिक विकार है जो हमें नकारात्मक और उदासीन उर्जा से भर देता है। नजर लगने की बात दिमाग में आते ही हमारे स्वास्थ्य, सोच और प्रगति पर कुछ क्षण के लिए रुकावट आ जाती है। आत्मिक शक्ति विलुप्त सी होने लगती है। मन प्रतिपल परेशान रहने लगता है।
     जब तार्किक दृष्टि से हम बुरा घटना के संबंध में विचार करते हैं तो उसका कारण ढूंढने का प्रयास करते हैं और उसका निदान भी उचित तरीके से करने का प्रयास करते हैं,मिर्ची जलाकर या नींबू बांधकर नजर उतारने वाली प्रक्रिया नहीं अपनाते।
     नजर उतारने की प्रक्रिया हमारी मानसिक संतुष्टि के लिए होती है जो पर्याप्त और सटीक नहीं, हकीकत में यह मानसिक विकार हमें अंधविश्वास की ओर ले जाता है।
                       - सुनीता रानी राठौर
                        ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
हमारी भारतीय संस्कृति में , चाहे वह किसी भी धर्म से संबंधित हो,परंपराओं, रीतिरिवाजों एवं मान्यताओं का पुरातन से विश्वास करता चला आ रहा है और सभी इसे उत्साह, लगन और आत्मीयता से निभाते भी आ रहे हैं। इन्हीं में कुछ ऐसी मान्यताएं भी हैं, जिनका कोई आधार समझ में नहीं आता, किंतु लोग विशेषकर अशिक्षित वर्ग प्राथमिकता से विश्वास और निर्भीकता से अपनाता आ रहा है। ऐसे उदाहरण विशेषरूप से किसी बीमारी के इलाज के रूप में अपनायी जा रही मान्यताओं को देखने में बहुत मिलता है। 
   इन्हीं भावनाओं और आस्थाओं को कुछ लोग इसे अंधविश्वास भी मानते हैं। 
    नजर उतारना का चलन भी ग्रामीण अंचल में बहुतायत से नजर आता है। घर या आसपास के पुरा-पड़ौस की बुजुर्ग महिलाएं विशेषकर इस विधा को कौशलमय तरीके से निभाती हैं।
    यह एक अंधविश्वास ही है, इससे नकारा नहीं जा सकता, यद्यपि धीरे-धीरे लोग जागरूक होते जा रहे हैं और ऐसी मान्यताओं को नजरअंदाज करने लगे हैं। पर, अभी भी अनेक मान्यताएं ऐसी हैं जो प्रभावी रूप में प्रचलन में हैं और उनके सामाजिक अस्वीकार किए जाने की अभी कोई  उम्मीद नहीं है। क्योंकि एक बहुत बड़ा समूह आज भी ऐसी मान्यताओं को लेकर आस्थावान है।दृढ़ विश्वासी है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
नजर लगना एक निगेटिव ऊर्जा के आगमन का संदेश है जो किसी  भी क्षेत्र में हो सकता है और वह मन को भयभीत करता है । इसे हम नजर लगने का नाम दे देते हैं । मेरे विचार से यह एक अंधविश्वास है अशिक्षा इसका कारण है । पढे़ लिखे लोग भी कभी -कभी इसके चक्र में फँस जाते हैं क्यों कि हमारे पूर्वज इन बातों पर विश्वास करते थे ।स्वयं से इसे एकदम से अलग नहीं कर सकते ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद -उत्तर प्रदेश
     नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित करने की मनोवैज्ञानिक क्रिया प्रणाली को नज़र उतारना कहा जाता है। चूंकि मानव जीवन में सकारात्मक, नकारात्मक और उदासीन नामक तीन प्रकार की ऊर्जा कार्य करती हैं। यह ऊर्जा हमारी सोच, व्यवहार, आदत और शब्दों से बनती है हमारे अपने शरीर और घर में आम तौर पर सकारात्मक ऊर्जा होती है। जब किसी के सोच, स्वभाव और सम्पर्क से हमारे ऊपर नकारात्मक असर पड़ जाता है तो इसे हम नज़र लगना कहते हैं। नज़र लगने से हमारे स्वास्थ्य, सोच और प्रगति पर कुछ क्षण के लिए रुकावट आ जाती है। यह रुकावट काफी तेज होती है और एकदम से बिना कारण सब रोक देती है।
       चूंकि मानव शरीर आग, जल, वायु, पृथ्वी और आकाश पंचतत्वों से निर्मित है। इसलिए वायु स्नान, अग्नि स्नान, जल स्नान, मिट्टी स्नान करने से मानव शरीर में अद्वितीय प्राकृतिक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है। जिसे स्वदेसी भाषा के कथनानुसार नज़र उतारना कहा जाता है। जिसे पूर्णतः अंधविश्वास कदापि नहीं कहा जा सकता।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
         हमारे भारतीय समाज में बड़े बूढ़ों के मुंह  से यह बात अक्सर सुनाई देती है कि बच्चे को नज़र लगी है, इस की नज़र उतारो।यह बात तब सुनाई देती है जब अचानक बच्चा बीमार हो जाए और रोने से न हटे।ममता है ही ऐसी कि तब पढ़े लिखे दंपत्ति भी इस पर विश्वास करने लगते हैं। 
         अगर हम धैर्य से इस बात का विशलेषण करें तो यह बातें अंधविश्वास के इलावा कुछ नहीं। छोटे बच्चे के रोने के अनेक कारण हो सकते हैं। छोटे बच्चे बोलने मे असमर्थ  होने कारण अपने दुख दर्द को नहीं बता पाते।कुछ देर बाद थक हार कर चुप हो जाता है तो हम कहते हैं कि नज़र उतर गई है। इस लिए अब चुप है।यह हमारी नकारात्मक सोच ही है जो हमें सकारात्मक सोचने का समय नहीं देती। पश्चिमी देश हम से अधिक समृद्ध हैं लेकिन उन देशों में यह बातें मान्य नहीं। 
        हमारे देश में बहुत सारे लोग अंधविश्वास की दुकानें चला रहे हैं। जब किसी मुसीबत में फंसे लोग इन के पास जाते हैं तो यह खूब लूट मचाते हैं। अंधविश्वासों मे और गहरा धकेल देते हैं। आज विज्ञान का युग है।हरेक बात को क्यों, कैसे और कहां की कसौटी पर परखा जाता है। दूध का दूध और पानी का पानी हो जाता है। इस लिए किसी भी परिस्थिति के पीछे छुपे कारणों को देखना जरूरी है तभी हम समय के साथ तालमेल बैठा सकते हैं। हमें खुद पर विश्वास होना चाहिए कि यह बातें अंधविश्वास के इलावा कुछ नहीं। हमारी सोच सकारात्मक होनी चाहिए। पढ़ा लिखा डिग्री से नहीं बनता बल्कि विचारों में ज्ञान की लौ प्रज्वलित होनी चाहिए। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप -  पंजाब
दुनिया में तीन तरह की और ऊर्जा काम करती है, सकारात्मक नकारात्मक और उदासी ऊर्जा हमारी सोच विभाग आदर्श और शब्दों से बनती है। नजर लगने पर स्वास्थ्य सोच और प्रगति पर कुछ क्षण के लिए रुकावट आती है यह रुकावट काफी तेज होती है और बिना कारण सब रोक देती है। घर में किसी व्यक्ति के नजर दोष लग जाती है तो इसको सुधारने का उपाय पूजा अनुष्ठान कराना उचित है।
लेखक का विचार:--नजर लगना को अंधविश्वास कतई नहीं मानते बल्कि इसको वैज्ञानिक तौर पर मैं मानता हूं।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
नजर उतारना एक मन कि भ्रम स्थिति है। नजर उतारने से कोई शरीर मे और न मन मे परिवर्तन होता है। मात्र यहकिल्पनिक मान्यताये है। कुछ भ्रमित लोगो को ही यह मान्यताये सही लगतु है।लेकिन सच्चाई जानने वालो के लिए यह मान्यताएँ झूठ है। भ्रम है। ऐसे भ्रम से दूर रह कर वास्त विकता समझने का प्रयास करना चाहिए। सच्चाई को समझकरजीने वालो के लिए नजर उ तारना कोई मायने नही रखता। अतः यही कहा जा सकता है कि नजर उतारना अंधविश्वास है।  पवित्र मन को किसी नजर उतारने की आवश्यकता नही होती।समझ की आवश्यकता होती है।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
यह सच है कि पहले भी हमारी मांताएं  अपने बच्चों की नजर उतारती थी, आज भी  पढ़ी लिखी मां ममता में अपने बच्चों की नजर उतारती है !  सोच में फर्क आया है किंतु जब तकलीफ बढ़ती है तो मरता क्या नहीं करता...नयी सोच रखकर भी अंधविश्वास का अमल करने लगता है !
वास्तव में नजर एक नकारात्मक सोच है ! एक कहावत है "कौवे का बैठना और डाल का टूटना " या कही हुई बात का सही होना....यह महज एक इत्तफाक है ! योग के अनुसार हमारा एक औरा होता है उससे यदि संक्रमित तरंगे या नकारात्मक उर्जा सामने किसी हमारे विरोधी पर पड़ती है तो हम उसे नजर कहते हैं !  
वास्तव में हमारे नकारात्मक सोच ही हमें इस ओर खींचती है  वैज्ञानिकों ने भी इसके बारे में रिसर्च किया है ! यदि हमारी सोच पूर्ण तौर से सकारात्मक होती है तो एक सुखद उर्जा का प्रवाह होता हम महसूस करते हैं और वह उर्जा हमारी कार्य करने की शक्ति, हमारे विचार को प्रोत्साहन देती है और हम अपने कार्य में सफल होते हैं किंतु वहीं नकारात्मक उर्जा संघर्ष करने के बावजूद हमारी शक्ति का हास करती है और हमें असफलता मिलती है ...हम समझते हैं किसी की नजर लग गई ! 
मेरी समझ में यह एक अंधविश्वास है !  हमारे विचार सोच सकारात्मक होने चाहिए ! इससे मिलने वाली उर्जा ही हमारी शक्ति बढ़ाती है.... हां यह जरुर कहूंगी कि हमारी भावनाएं शत्रु के प्रति भी निर्मल और शुद्ध हो !
          - चंद्रिका व्यास
        मुंबई - महाराष्ट्र
नज़र उतारना अंधविश्वास ही है। लेकिन कभी-कभी सही भी लगता है। क्योंकि कुछ टोने टोटके कभी-कभी फायदेमंद साबित होते हैं।कभी-कभी कोई छोटा बच्चा बहुत रोता है और चुप नहीं होता है तो नज़र उतारने से वह चुप हो जाता है। ये सब मैंने स्वयं देखा है। जिस बच्चे को नज़र लगती है तो उसको सूखा लाल मिर्च उसके सर से घुमा कर आग में डालने पर मिर्ची जब जलता है तो झाक नहीं लगता है। इसका मतलब  बच्चे को नज़र लगी थी उसकी नज़र उत्तर गई । जब मिर्ची जलाने पर झाक नहीं लगता है इसका मतलब नज़र नहीं लगी है। ऐसा मैंने खुद देखा है। तब लगता है ये अंधविश्वास नहीं है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
जरा सी बात है, लेकिन हवाओं को कौन समझाये?
दिये से मेरी माँ मेरे लिए काजल बनाती है l
एे हवाओं तुम मंद गति से चलो, मेरी माँ बुरी नज़र से बचाने के लिए दिये से काजल बनाती है l
  भारतीय समाज में नज़र लगना और उतारने पर मनवांछित लक्ष्य की प्राप्ति होना आम बात है और भविष्य में भी रहेगी l
लेकिन बदलते परिवेश में नज़र लगने को अन्धविश्वास के रूप में देखते हैं और इसको वैज्ञानिक कसौटी पर कसने का प्रयास करते हैं l नज़र किसी को किसी की भी लग सकती है l प्रायः चंचल छोटे बच्चे को काला टीका नज़र से बचाने का अचूक उपाय है l प्रायः नज़र लगने पर आँखों की निचली पलकें सूज जाती हैं l व्यक्ति निढाल हो जाता है l
   वैज्ञानिक कसौटी पर देखें तो हमारे शरीर के रोम छिदर्र बंद होने पर शरीर का बाहर के वातावरण से सम्पर्क टूट जाता है l इस तापन्नरण से पांच तत्वों का संतुलन बिगड़ जाता है l आयरन की मात्रा बढ़ने से वह रोम छिदररों से बाहर नहीं निकल पाती तो आँखों से निकलने की कोशिश करती है l जिससे भोंहे और पलकें सूज जाती हैं l
नज़र उतारने को अलग अलग नजरिये से देखा जाता है l इस प्रक्रिया में व्यक्ति के आसपास ऐसा वातावरण बनाते हैं कि बंद रोम कूप खुल जाये l जैसे -सरसों के तेल की बाती जलाना, नीबूं, राई, नोंन आदि का प्रयोग करते
हैं l बच्चा दूध पीना बंद कर दे, रोटी -दूध लेकर आठ बार घड़ी की दिशा में बच्चे पर उबारकर गाय या काले कुत्ते को खिला दें, आदि l पीली सरसों, राई, नोंन, पुरानी झाड़ू लेकर भी नज़र उतारते हैं l पाश्चत्य संस्कृति से आयतित टच वुड़ कहना भी नज़र उतारने का प्रारूप है l नवीन भवन के बाहर काली हांड़ी टांगना बुरी नज़र से बचाना है l कहना यूँ है कि नज़र उतारने का वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक आधार है l पीड़ित को इसका लाभ भी मिलता है l अतः यह अभिशाप या अन्धविश्वास नहीं है l
वर्तमान में नज़र के प्रति नजरिया बदल गया है l हमारा दृष्टिकोण बदल गया है l जिस दृष्टि से आप देखेंगे उस दृष्टि से नज़र उतारना
वरदान या अभिशाप साबित होगा, ये विश्वास की बात है l
    ----चलते चलते
1.भूत पिशाच निकट नहीं आवे
महावीर जब नाम कहावे
2.बाँके बिहारी तुझे नज़र न लग जाये
-कजरारे तेरे कारे कारे नैना
  - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कहते हैं कि "मानो तो भगवान है, ना मानो तो पत्थर।" विश्वास और अंधविश्वास में फर्क इतना ही समझता हूं कि जो विचार एवं मान्यता स्वयं के मन को संबल प्रदान करे, और उस संबल की शक्ति से स्वयं का अथवा अन्य किसी का अहित न हो वह अंधविश्वास की परिधि में नहीं आता।
भारतीय संस्कृति में आस्था से उत्पन्न अनेक मान्यतायें है, जिनको बहुत से लोग अंधविश्वास मानते हैं परन्तु एक समय पर उन मान्यताओं ने अपनी सार्थकता सिद्ध की है उन्हीं में से एक 'नजर उतारना' भी है। 
मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि 'नजर उतारना' अंधविश्वास नहीं है अपितु मैं स्वयं इसके सकारात्मक प्रभावों का साक्षी रहा हूं। 
परन्तु साथ ही यह भी सही है कि वर्तमान में, जब मानव प्रकृति के विरूद्ध जीवन-शैली अपना रहा है, तब मात्र 'नजर उतारना' ही पर्याप्त नहीं होता। इसके साथ-साथ समस्या के समाधान के लिए वैज्ञानिक और चिकित्सीय साधनों का भी सहयोग लेना भी अनिवार्य हो जाता है। 
अपनी सन्तान की ममता में डूबी मां जब अपनी सन्तान को शारीरिक अथवा मानसिक रूप से व्यथित पाती है तो उसके पास 'नजर उतारना' अक्सर कारगर उपाय होता है।
अंत में यही कहूंगा कि "मानो तो गंगा मैया, ना मानो तो बहता पानी।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
मैं समझती हूँ कि नज़र उतारना एक अंधविश्वास से बढ़कर और कुछ भी नहीं| यदि नज़र उतारने से ही सारे कार्य सँवर सकते हैं तो कोरोना को भी नज़र उतारने से ही दूर कर लेते| जब भी कोई व्यक्ति सफलता के शिखर पर पहुँच जाता है तो उसे अपने विरोधियों से ऐसा डर सा लगने लगता है कि कोई उसकी सफलता से चिढ़ तो नहीं रहा है और वह ऐसे अंधविश्वासों पर विश्वास करने लगता है| प्रायः माताएँ ममता वश अपने बच्चों की नज़र उतारती हैं और जब भी उनकी संतान पर कोई संकट आता है तो उन्हें यह भ्रम हो जाता है कि उसे किसी की बुरी नज़र लग गई है और वे उसकी नज़र उतारने लगती हैं | 
- अंजु बहल
       चंडीगढ़
     भारतीय संस्कृति में प्राकृतिक संसाधनों को सर्व प्राथमिकता के आधार पर विभिन्न प्रकार के कार्यों को अंजाम दिया जाता हैं,  जैसे जड़ी-बूटी, नज़र उतारना आदि से आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों तथा ग्रामीण कस्बे में तो तुरंत उपयोग किया जाता हैं। जिसे आत्मविश्वास के साथ समस्याओं का समाधान करते हैं। प्रायः जब शिशु जिद्दी पन, रोना अन्य रुपों से ग्रसित हो जाता हैं, तो माँ अपने आँचल से निगाहें झारती, राई, नमक, खड़ी मिर्ची से नज़र उतार कर  जलटी अंगारे में डालकर, आत्म संतोष करती हैं। अगर इससे ठीक-ठाक हो जाता हैं, तो हमेंशा के लिए विश्वास हो जाता हैं, जिसे हम अंधविश्वास भी नहीं कह सकते हैं। अगर आराम नहीं हुआ, तो चिकित्सा पद्धति करवाती हैं। 
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
'नज़र लगा है' अगर यह विश्वास है तो नज़र उतारना अंधविश्वास नहीं हो सकता।
मेरे बेटे का जन्म शाम के लगभग साढ़े चार बजे का था। वह पूरे दिन और पूरी रात गहरी नींद में रहता था। हालात यह था कि घर में छोटा बच्चा है किसी को एहसास ही नहीं हो पा रहा था। कभी-कभी उसके कान मसल कर जगाने/रुलाने की असफल प्रयास होता रहता था।
मेरा बेटा लगभग छः महीने का रहा होगा, उसे किसी ने कहा कि *'यह तो रोता ही नहीं है..।'*
किसी को विश्वास नहीं होगा कि सात दिन और सात रात मेरे बेटे ने ना तो आँखों को बन्द किया और ना रोना बन्द किया। सात दिन में उसकी जो हालत हुई वह उस समय का प्रत्यक्षदर्शी ही समझ सकता था।
मेरी सास तरह-तरह से नज़र उतारने की चेष्टा करती रहीं। उन्हें विश्वास था नज़र लगने पर और उन्हें अपने बच्चों के समय का भी अनुभव था।
वो अक्सर कहा करती थीं माँ की नजर भी बच्चों को लग जाती है।
तीन तरह की ऊर्जा सकारात्मक, नकारात्मक और उदासीन.. सबकी सोच, व्यवहार, आदत और शब्दों में बनती रहती है। हमारे अपने शरीर और घर में आम तौर पर सकारात्मक ऊर्जा होती है.. जब किसी के सोच, स्वभाव और सम्पर्क से हमारे ऊपर नकारात्मक असर पड़ जाता है तो इसे हम नजर लगना कहते हैं। नजर लगने से हमारे स्वास्थ्य, सोच और प्रगति पर कुछ क्षण के लिए रुकावट आ जाती है। यह रुकावट काफी तेज होती है और एकदम से बिना कारण सब रोक देती है। हो सकता है नजर लगने सी बात सही नहीं हो बल्कि वक्त -नियति का तय किया परिणाम हो। लेकिन उस मानसिक परेशानी के अवसाद में नज़र लगना ही कहा जाता है।
हो सकता है कि नज़र उतारने की जो प्रक्रिया अपनायी जाती है उसमें अपना कोई प्रभाव ना होता हो लेकिन उसमें जो विश्वास की सकारात्मक ऊर्जा है उससे कष्ट का निवारण हो जाता हो या यों कहें डूबते को तिनके का सहारा मिल जाता हो...।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
"मत मुस्कराओ इतना की फूलों को खबर लग जाए, 
करें वो तनम्हारी तारिफ इतनी की  नजर लग जाए"
बात नजर लगने की हो रही है, अधिकांश लोग इस जमाने मौ़ भी नजर लगना, नजर उतारना या जादू टोना पर विश्वास करते हैं, 
तो आईये  चर्चा करते हैं कि क्या नजर लगना या नजर उतारना सच बात है या अंधविश्वास है, 
मेरा मानना है कि नजर लगना या नजर उतारना लगभग  अंधविश्वास ही है, कई तरह के रोग जीवन में आते हैं जिनको जंयादातर लोग जादू टोना का नाम दे देते हैं या  यही कहा जाता है इस को किसी की नजर लग गई है, 
आखिर बात यहां तक पहुंच जाती है कि विमारी से ग्रस्त रोगी जादू टोना के चक्कर मे ही अपनी जान गवां देता है
अगर उसी विमार व्यक्ति का अच्छा ईलाज करवाया जाए तो वो व्यक्ति ठीक हे सकता है, 
लेकिन कईबार हमारे बुजुर्ग भी नई नई दुल्हनों व वहुंओं को इसी वहम मैं डाल देते हैं जिससे आपस मे झगड़े तक की नौवत भी आ जाती है  क्योंकी मुहल्ले में किसी को ङायन की संज्ञा दी जाती है किसी को बुरी नजर वाली कह के  पुकारा जाता है जिससे बात यहां तक पहुंच जाती है कि सभी मुहल्ले वाले निर्दोष व्यक्ति को  उकसाते रहते हैं  जिससे झगड़े तक की नौवत आ जाती है, 
अन्त में यही कहुंगा  कि आजकल के जमाने में हम सब को वहम में नहीं पड़ना चाहिए  यह सब   अंदविश्वास में आता है हम सब को   इन बातों में नहीं पड़ना चाहिए। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
नज़र उतारना विश्वास भी है और  अंधविश्वास भी क्योंकि व्यक्ति जब चारों ओर से मुसीबत में घिर  जाते हैं तो उससे छुटकारा पाने के लिए कोई भी उपाय अपनाने को तैयार हो जाते हैं, उसमें नज़र उतारना भी एक है । 
       आज के वैज्ञानिक युग में यह भले ही अंधविश्वास माना जाता है परन्तु कई बार नज़र उतारने के बाद ऐसा महसूस होता है कि अब सब कुछ ठीक है अथवा हो जाएगा  । 
       ऐसे कार्य में अनपढ़ व पढ़े- लिखे सभी सम्मिलित होते हैं  । 
कहा भी है कि 'मरता क्या न करता '
      नज़र उतारने तक तो फिर भी ठीक है परन्तु इसके लिए पंडितों की बातों में आ कर किया जाने वाला कोई भी काम पूर्णतया गलत है, ऐसे कर्मकांडों से बचना चाहिए  । 
       उचित यही है कि बीमारी की अवस्था में इलाज अवश्य करवाएं भले ही मानसिक शांति के लिए नज़र भी उतारें  । 
      -  बसन्ती पंवार 
       जोधपुर - राजस्थान 
जी हां नजर उतारना अंधविश्वास का ही भाव है  ।इसके अलावा नजर उतारना मन की संतुष्टि की ओर इंगित करता है ,कोई भी भ्रम शंका को जन्म देता है, शंका का निवारण रूढ़िवादी मानसिकता पैदा करता है और इसी भावना से ग्रस्त व्यक्ति टोने टोटके के माध्यम से समाधान ढूंढने का प्रयास करता है। मेरी राय से यह अंधविश्वास ही है लेकिन इसका दूसरा पहलू भी है कई धर्म स्थानों पर मोर पंखों से नजर उतारी जाती है ,मोर पंख के लिए कहा जाता है कि यह  सकारात्मकता  का प्रतीक है जब इससे व्यक्ति की नजर उतार जाती है तो नकारात्मक भाव दूर होते हैं, और अच्छी सोच जन्म लेती है। नजर उतारने के और भी अनेकों तरीके हैं जो रूढ़िवादी मानसिकता की निशानी मानी जा सकती है। अंधविश्वास के आधार पर लोगों को मूर्ख बनाया जाता है भारत में नकारात्मकता को  दूर  करने  के लिए नजर उतारना हितकर भी माना गया है लेकिन किसी मानवीय क्षति से हटकर होना चाहिए। पुरातन काल से यह परंपरा चली आई है राजा महाराजा भी उतारने पर विश्वास करते थे । माताएं अपने छोटे बच्चों को काला टीका लगाती हैं ताकि किसी की नजर ना लगे साधारणतय सरल तरीके अपनाते हुए नजर उतारना कोई बुरी बात नहीं है परंतु उसमें ढोंग नहीं होना चाहिए न ही जीवन मूल्यों की हानि होने चाहिए, न ही किसी को नुकसानदेह ही होनी चाहिए ।जब किसी रूढ़िवादी परंपरा को ज्यादा विस्तार देने का प्रयास होता है तब वह आडंबर, ढोंग और अंधविश्वास कहलाता है जो मानव जाति के विकास में बाधक भी बनता है अतः इससे  बचना चाहिए। 
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
क्योंकि यह तंत्र विज्ञान का विषय है इसलिए अंधविश्वास तो नहीं कह सकती ।
नजर उतारना अंधविश्वास नहीं बल्कि एक मनोवैज्ञानिक इलाज है ।
मैं इसे अंधविश्वास नहीं मानती, बल्कि इसको वैज्ञानिक तौर पर मानती हूं ।
जब कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह आप की उपलब्धियों से परेशान होता है और घृणा करता है तब वह प्रतिपल आप के विनाश का चिंतन मन ही मन भीतर ही भीतर करता रहता है ।तो उसकी नकारात्मक ऊर्जा का असर सामने वाले के नुकसान के रूप में आने लगता है ।जो नजर उतारने से निष्क्रिय होने लगता हो या ना होने लगता है ,परंतु जो खुद को नजर का शिकार समझता है उसका मनोवैज्ञानिक इलाज जरूर होता है ,जिससे उसे सकारात्मक ऊर्जा प्राप्त होती है। जो उसके जीवन की गतिविधियों मैं सुधार लाती है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
मैं नजर उतारने को अंधविश्वास नहीं मानती क्योंकि वास्तव में कई बार नजर लग जाती है मैं स्वयं इसकी भुक्तभोगी हूं। नजर किसी को भी लग सकती है बच्चों को तो लगती ही है बड़ों को भी लगतीहै। कोई अधिक सुंदर हो अधिक चपल हो या कुछ अधिक आकर्षक हो तो नजर लग जाती है। कई बार तरक्की करते हुए इंसान को भी नजर लग जाती है पर वो एक तरह से हाय होती है। नजर लगे और अगर उसको  उतारा ना जाए तो इंसान की तबीयत खराब होती जाती है इसीलिए नजर का उतरना जरूरी होता है। उसे अंधविश्वास नहीं कहा जा सकता।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " नज़र उतारना  की प्रतिक्रिया बहुत ही पुरानी है । जो लोगों के विश्वास पर आज तक कायम है और भविष्य में भी कायम रहेंगी । नज़र उतारने से लोगों को लाभ होता होगा । तभी तो यह परम्परा आज तक कायम है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )