क्या जीवन में आशा और निराशा धूप - छांव के समान होती है ?

आशा और निराशा तो जीवन के दो पहलू है । जो धूप - छांव के समान साबित होते हैं । अक्सर हमें इन्हें समझ नहीं पाते हैं । यहीं जीवन की कठिनाई है । यहीं कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
हां जीवन में आशा और निराशा धूप छांव के समान ही होते हैं।सच तो यह है कि यदि ऐसा न होता तो शायद कोई बहुत अधिक दुखी और कोई बहुत अधिक सुखी होता।प्रकृति द्वारा निर्मित यह नियम बना ही ऐसा है कि दुख के बाद सुख और सुख के बाद दुख जीवन में एक शीतल लहर बनकर आता है।
- डॉ० विभा जोशी
  दिल्ली
        प्रकृति का चक्र है कि कुछ भी स्थायी नहीं होता। परिवर्तन अवश्यंभावी है। समर्थ से समर्थ इन्सान भी जीवन में उतार-चढ़ाव अवश्य देखता है। यही उतार-चढ़ाव क्रमशः निराशा अथवा आशा को जन्म देते हैं। आशा में मन प्रकाशित होता है और निराशा में घने अंधकार से घिरा होने के समान हो जाता है। 
यह सही है कि जीवन में आशा और निराशा धूप-छाँव के समान होती हैं। परन्तु यह इन्सान की जिजीविषा ही है कि वह निराशा रूपी छाँव पर विजय प्राप्त कर आशा की धूप अपने जीवन में खिलाता है। 
मानव निष्प्राण है यदि मन की निराशा का दास हो गया, 
मानव निष्णात है यदि मन  में  आशा  का वास हो गया।
ईश्वर ने मस्तिष्क दिया मन पर विजय पाने के लिए 'तरंग', 
श्रेष्ठ मनुज वही जिसका मन समकक्ष आकाश हो गया।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
तेरे नैना क्यों भर आये,
वो है जग का रखवाला तू
काहे को घबराये......
जीवन की ये धूप और छाया
सब है खेल तमाशा
मन संग आँख मिचौनी खेले
आशा और निराशा
 आज जो दुःख है कल सुख होगा
काहे नीर बहाये l
मानव अपनी हिम्मत से, साहस से, दृढ़ इच्छा -शक्ति से हर निराशा को आशा में बदल देता है l उसमें चिंगारी है, जिससे भीषण आग प्रज्वलित कर सकता है l
    मानव जीवन में सुख दुःख तो आते रहते हैं l बसंत है तो पतझड़ भी आता है l मनुष्य के जीवन में आशा और निराशा धूप -छाँव के समान ही है, इसमें दुःख या असफलता पर निराश नहीं होना चाहिए l निराश होकर बैठ जाना हारतो है ही, श्रेष्ठता से विमुख होना या उसे काल के हाथों गिरवी रखना भी है l अतः नर मनुष्य होकर उठो और आगे बढ़ो l दिया रात को दिन में बदलने की हिम्मत करता है l बड़े -से -बड़ा अँधेरा भी दीपक को निगल नहीं सकता l अतः मनुष्य तुम जहाँ भी हो संघर्ष करो l 
         चलते चलते ---
1.पथ भूल जाना पथिक कहीं
पथ में काँटे तो होंगे ही l
   हमारा जीवन भी ऐसा ही है, जिसके सुख -दुःख दो किनारे हैं l
हम मजबूत हो, दृढ़ हो और मुसीबतों से लड़ने की ताकत के बल आगे बढे l
2. जब नाव जल में छोड़ दी
तूफान ही में मोड़ दी
दे दी चुनौती सिंधु को
फिर धार क्या मझधार क्या?
 हमें सदा आशा के उजास से भरे रहना है l
      - डॉ. छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
*हां* जीवन में आशा- निराशा, धूप- छांव के तरह है। एक सिक्के के दो पहलू है।
आशा है तो हौसले है, हौसले हैं तो उम्मीद है, उम्मीद है तो सफलता है। इसके विपरीत निराशा है तो कुछ भी नहीं है।
न हौसले हैं न उम्मीद और न ही सफलता है। *निराशा क्या है*? एक मनोदशा है, जो काम के प्रति अरुचि को दर्शाती है।निराशा में व्यक्ति उदास, दुखी ,बेबस, चिड़चिड़ापन और बेचैन हो जाता है। निराश व्यक्ति अपने को इतना हताश कर लेता है कि उसके दिमाग में आत्महत्या  करने के लिए दिमाग में आने  लगता है। निराश व्यक्ति को यह सोचना चाहिए की
जिस तरह अंधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है उसी तरह निराशा के बाद आशा की किरण है। बस हमारे आपके सोचने का फर्क है। बहुत ऐसे लोग अंधकार में रहकर आशा की किरण की खोज करते हैं। क्योंकि अंधकार में रहकर प्रकाश की खोज करना आसान हो जाता है। यह सत्य है  अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा।जैसे:-जन्म है तो मृत्यु भी सत्य है।
लेखक का विचार:-जीवन रात और दिन की तरह है। आशा और निराशा के दो क्षण है। आशा जहां जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है वहीं निराशा पतन के तरफ ले जाती है। यह समझना होगा निराशा में आशा का किरण छुपे हुए हैं। अतः निराश व्यक्ति आशा की किरण खोजें निश्चित रूप से मिलेंगे।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
हमारा जीवन संघर्षो से भरा होता है और इस संघर्षरत जीवन में हार -जीत ,सुख -दुख का धूप -छांव की तरह आना जाना तो होगा ही! हमें ऐसे समय का सामना सकारात्मक सोच के साथ करना होगा ! जो व्यक्ति संघर्षरत होकर भी आने वाले हार का दुख का सामना बिना विचलित हुये कर लेता है उसे कोई विचलित नहीं कर सकता !  जो कमजोर और नकारात्मक सोच लिए रहते हैं वहीं हार कर पुनः उठने की हिम्मत नहीं करते ! अंधेरा होता है तो रवि पुनः उजाला लेकर आता है ! हमें हार नहीं मानना चाहिये ! ठण्डी हवा के झोंके लेने से पहले हमें स्वेद बहाना होता है ! सुंदर कमल के फूल को प्राप्त करने के लिए किचड़ पर उतरना होगा ठीक उसी तरह जीतने के लिए पहले हार मिले तो क्या ...हार ही हमारे जीत की पहली सीढ़ी है  !
हमें निराश नहीं होना चाहिए ! ऐसा भी होता है व्यक्ति की असफलता उसके स्वास्थ पर भी असर करती है और वह केवल अंधकार ही देखता है अवसाद में आ जाता है किंतु इससे व्यक्ति को स्वयं ही बाहर आना होता है !
कभी कभी दुख और हार व्यक्ति को कर्तव्य और पुरुषार्थ से डिगा देती है और वह भाग्य की बातें करने लगता है किंतु  जीवन इतना सहज नहीं है जैसा हम सोचते हैं !
दिन और रात जैसे निश्चित है ! हमें अंधेरे से उजाले में लाने में सूर्य संघर्षरत हो हमें उजाला देता है  ठीक उसी तरह सुख और दुख एक ही कश्ती की सवारी है देखना यह है कि नाव खेने वाले में कितना दम है ! यदि हम छांव में रहना पसंद करते हैं तो हमें धूप को भी स्वीकारना होगा ! कर्म करते रहें फल तो मिलना ही है !
          - चंद्रिका व्यास
         मुंबई - महाराष्ट्र
जी हां,धूप-छांव के समान ही होती है आशा- निराशा।कभी सुख कभी दुख।कभी धूप कभी छांव। प्रदीप जी का बहुत प्रसिद्ध भजन याद आ गया।सुख दुख दोनों रहते जिसमें,जीवन है वो गांव,कभी धूप तो कभी छांव।
आशा निराशा का भाव भी बारी बारी से जीवन में आता रहता है। अपने ही गीत की पंक्तियां याद आ रही है- 
धूप छांव रुपी जीवन में,विपदा की जब धूप निकलती। सूखती नहरें उम्मीदों की, आशाओं  की खेती जलती। ऐसे में मुस्कान की वर्षा, 
हो तो विपदा धूप ढलेगी।
यही है जीवन,सोंग आप द मिलेनियम 'एक प्यार का नगमा है', में महान गीतकार संतोषानंद जी कहते हैं - कुछ पाकर खोना है,कुछ खोकर पाना है,जीवन का मतलब तो आना और जाना है।
यह आना जाना,खोना पाना ही धूप छांव की तरह,आशा निराशा का अहसास कराता है और इन सबके साथ ही जीवन रथ आगे बढ़ता जाता है। जीवन किसी सहज,सरल राह का नाम नहीं। इस पर चलते हुए आशा निराशा,धूप छांव के विभिन्न अनुभवों और परिस्थितियों से गुजरना पड़ता ही है।ऐसा भी कह सकते हैं कि यह जीवन की अनिवार्यता है।
- डॉ अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
आशा और निराशा भी जीवन में धूप छाँव के समान होती हैं। कभी उम्मीद की किरण दिखाई देती है तो कभी सफलता न मिलने पर निराशा का भाव भी आ जाता है ।किंतु फिर नई उम्मीद के साथ प्रयासरत होकर इंसान लक्ष्य सिद्धि के लिए कार्यरत हो जाता है। बिल्कुल धूप और छांव के जैसे ही अनुभूति होती है कभी प्रखर रश्मि किरणें रहती है तो कभी शीतल छांह। यही मानव जीवन का क्रम है। उतार चढ़ाव या कहें आशा निराशा का खेल चलता रहता है।
- गायत्री ठाकुर "सक्षम" 
नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
     जीवन में आशा और निराशा एक सिक्के के दो पहलू हैं। उतार-चढ़ाव मानव का एक स्वभाव हैं। जिसके बिना जीवन संभव नहीं हैं, जिसने भी धूप-छांव का स्वाद नहीं चखा, फिर मजा किस बात का? आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः जन आशाओं पर निर्भर करते हैं, उन्हें उनके उपदेशों की प्राप्ति होती जाती हैं  और उनके विचारों को वृहद स्तर पर विभिन्न प्रकार से मेहनत और मजदूरी के लक्ष्य की पूर्तिका की छबियां, खुशियों में  दिखाई देती रहती हैं, जिसकी महक से जीवन सरोवर आनंदित हो जाता हैं परंतु उस आईने पर नजर अंदाज करें तो निराश आजीवन पीछा नहीं छोड़ती जिसके माध्यम से पछताते के सिवाय कुछ नहीं भी शेष नहीं रहता और अपनी तकदीर की तकनीकी को कोसते हुए जीवन यापन कर जीवित अवस्था में पहुँचता हैं। वैसे भी स्वार्थ के आगे स्वार्थी पन की झलकियां सबसे बड़ी ताकतों को प्रोत्साहित करने में समय व्यतीत करना पड़ता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
मानव जीवन सुख-दुख, लाभ-हानि, गम-प्रसन्नता और आशा- निराशा का मिश्रित रूप है।  यह नितांत सत्य है कि ये पल धूप -छांव की भांति अपना रुख बदलते रहते हैं। इन पलों को जीवन में सुखमय एवंम अनुकूल बनाने के लिए सकारात्मक सोच का सहारा लेना पड़ता है। आशा जहां जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है वही निराशा मनुष्य को पतन की तरफ ले जाती है। निराश व्यक्ति जीवन में उदासीन और विरक्त होने लगता है । उसे अपने चारों तरफ अंधकार नजर आता है । निराशा का संबंध एकतरफा सोच भी हो सकती है साथ ही मनुष्य के दृष्टिकोण पर भी आधारित है। मनुष्य जिस तरह की भावना रखता है वैसी ही प्रेरणा मिलती है। जीवन में निराशा ,अवसाद, असंतोष के दुखद परिणाम ही होते हैं अतः सकारात्मक सोच के आधार पर जीवन में आशा उत्साह के साथ कार्य पूरा करने में सहायक होती है । जीवन में आशा की किरण सफलता व आनंद प्रदान करती है आशावादी व्यक्ति सदैव उत्साही होते हैं।  उत्साह से प्राप्त ऊर्जा व्यक्ति को छाया में भी धूप जैसा आनंद देती है । उत्साहित मन दुख के समय कभी भी हीन भावना से ग्रस्त नहीं होता बल्कि संघर्ष से उस पर विजय पा लेता है । अतः जीवन में आशा और निराशा धूप छांव के समान ही होती है। 
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
       आशा और निराशा जीवन में धूप-छांव के समान होती हैं। इसे सच भी माना जाता है परन्तु कड़वा सच यह है कि निराशा की मूल जड़ ही आशा होती है।
        चूंकि आशा वह कन्या-मित्र है जो सदैव धोखा देने के लिए तत्पर रहती है। जबकि निराशा उस कर्त्तव्यनिष्ठ सखी जैसी होती है जो प्राण जाएं पर वचन न जाएं वाली कहावत को चरितार्थ करती है।
       गूढ़ रहस्य यह है कि भले ही धूप-छांव का चोली-दामन का साथ होता है। परंतु आशा और निराशा से कोई संबंध ही नहीं होता। चूंकि मेरा शोध कहता है कि "आशा" को बेवफा कन्या-मित्र की भांति त्याग दो और फिर देखो निराशा आपके आंगन की ओर तो क्या खिड़की में से भी झांकने का साहस नहीं करेगी?
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
            जीवन में आशा और निराशा धूप छाँव के समान होती है। सुख और दुख, सफलता और असफलता सभी आते जाते रहते हैं। आशा जीवन में स्फूर्ति भरती है और निराशा नकारात्मकता की ओर ले जाती है। फिर भी हमें आशा का दीपक जलाकर रखना चाहिए। परिस्थितियाँ चाहे जैसी भी हों,उनका सामना करना चाहिए। हर रात के बाद सुबह होती है। हर सुबह एक नई ऊर्जा, एक नया संदेश लेकर आती है। परिस्थितियां जो आज है, वो कल बदल भी सकती हैं। हिम्मत  की सीढियों से हम कठिन से कठिन बाधाओं को पार कर जाते हैं। 
         जिस तरह प्रकृति की सुन्दरता के लिए धूप छाँव जरूरी हैं, उसी तरह हमारे जीवन में भी सफल होने के लिए आशा और निराशा, सुख और दुख, हार और जीत का होना बहुत जरूरी है। कभी भी कोई लगातार हार नहीं सकता और न ही लगातार किसी को जीत हासिल होती है। असफलता में ही सफलता छुपी होती है। उसी तरह जब तपती धूप के बाद छांव मिलती है तो हम आनंदित होते हैं। अगर धूप न होती तो हमें छांव भी आनंदित ना करती।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
जी हाँ ! जीवन में आशा और निराशा धूप-छांव के समान ही होती है। जिस तरह से हमेशा छांव अच्छा नहीं लगती है या हमेशा धूप ही अच्छा नहीं लगता है ठीक उसी तरह आशा और निराशा भी है। कोई व्यक्ति हमेशा निराश नहीं रह सकता। कभी न कभी उसकी भी आशा पूरी होगी। जिस तरह से जाड़े में धूप प्रिय हो जाती है और गर्मी में छांव प्यारी हो जाती है। और ये क्रम चलता रहता है। ठीक उसी तरह यदि किसी के जीवन में केवल निराशा ही हो वह कैसे जी पायेगा। उसे कुछ तो आशा होनी चाहिए। दिन के बाद रात होती है। उसी तरह निराशा के बाद तो आशा है ही। आज गम है तो कल है खुशी। सुबह धूप तो शाम में छाया। आज दुःख है तो कल सुख होगा ही। ये निश्चित है। हमेशा किसी के जीवन में दुःख रह नहीं सकता। इसलिए कहा जाता है कि आशा और निराशा धूप छांव के समान होती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
बिपति भए धन  ना रहे, होय जो लाख करोर।
नभ तारे छिपि जात हैं, ज्यों रहीम भए भोर ।। 
जब हमारे ऊपर विपत्ति आती है तो सब रास्ते बंद हो जाते हैं और कोई किसी की मदद नहीं करता सुख के सब साथी होते हैं पर दुख का कोई साथ ही नहीं होता परंतु भगवान परमात्मा जो हजार हाथों से सबकी मदद करता है वह एक कोई न कोई रास्ता खोल देता है और किसी न किसी रूप में आकर हमारी मदद करता है उसके ऊपर हमें विश्वास रखना चाहिए और विपत्ति के समय हमें हिम्मत से सोच विचार करना चाहिए कोई न कोई रास्ता जरूर खुल जाता है और कोई न कोई जरुर भगवान बनकर हमारी मदद करता है विपत्ति में ही सही गलत का ज्ञान होता है क्योंकि इंसान इतना स्वार्थी है कि वह धन के मोह में इतना अंधा हो जाता है कि उसे कुछ दिखाई नहीं देता और विपत्ति में ही उसे सच्चाई ज्ञात होती है।
सुदामा के ऊपर विपत्ति में भगवान कृष्ण ने मित्र होने का ऋण चुकाया था और उसको धनवान किया था।विपत्ति में कभी भी हमें अपना साहस नहीं खोना चाहिए और अधिक विपत्ति आए तो हमें गीता और रामायण पढ़ना चाहिए इसको पढ़ने से ऐसा महाकाव्य की मन को शांति मिलेगी और हमें कुछ न  कुछ रास्ता मिलेगा बहुत कमजोर दिल के लोग विपत्ति में मृत्यु का सहारा लेते हैं या सुसाइड करते हैं यह सब गलत है यह कायरों का काम है जीवन में सुख दुख तो धूप छांव की तरह लगे रहते हैं इसमें हमें अपनी हिम्मत दिखाते हुए सही महापुरुषों के चरित्र को जीवन की गाथाओं को पढ़ना चाहिए और हमें अपने अंदर के उत्साह और जोश को जगाना चाहिए और हमें अपने मस्तिष्क का सही इस्तेमाल करना चाहिए भगवान ने हमें मानव इसी लिए बनाया है कि हम सोच समझ सके उसके बनाए हुए इस सृष्टि को और इसकी रचना को देखकर हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है गम में डूबा हुआ इंसान सही गलत का फैसला नहीं कर पाता उस समय हमें अपनी हिम्मत का परिचय देना चाहिए डूबते हुए को एक तिनके का सहारा होता है।
किसी महान इंसान ने कहां है कि - "बीते की हर मुश्किल की घड़ी, गम छोटा उम्मीद बढ़ी।" 
- प्रीति  मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
बेशक जीवन में आशा और निराशा धूप-छांव के समान होती हैं। कभी सफलता तो कभी असफलता। कभी लाभ तो कभी हानि। आशा स्वयं कभी धूप तो कभी छांव समान होती है। इसी प्रकार निराशा भी कभी धूप तो कभी छांव समान होती है। किसी आशा से धूप की भांति उर्जा मिलती है तो किसी आशा से मन को सुकून देती छांव। इसी प्रकार किसी निराशा से तीखी धूप समान तपन तो कभी निराशा से ढलते जीवन की छांव।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
 आशा और निराशा मनुष्य की मान्यताएं हैं मूल रूप में तो मानो जीने की आशा से ही जन्म लेता है वह निराशा नहीं चाहता फिर भी नासमझी के कारण मान्यता वास अपने जिंदगी को आशा और निराशा 2 स्वरूपों नहीं दिखता है लेकिन चाहत के रूप में तो आशा को ही स्वीकार करता है हर मनुष्य जीने की आशा से ही जीवित रहता है और जीत रहने के लिए ही व्यवहार कार्य करता है अगर व्यवहार कार्य गलत हो जाता है ,तो निराश हो जाता है ।अगर वह समझ कर व्यवहार करेगा और कार्य करेगा तो उससे गलतियां नहीं होंगी। गलतियां नहीं होंगी, तो निराश नहीं होगा। निराश नहीं होने पर ओ जीने की आशा  से  जिंदगी जी पाएगा ।अतःयही कहा जा सकता है कि ,आशा और निराशा मान्यताएं हैं। जीने की आशा ही सच्चाई है ।हर मनुष्य जीना चाहता है ।निराश होना नहीं इसी आशा से वह जिंदा रहता है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मानव जीवन अद्भुत भी है और अनुपम भी है। अनेक विचित्रताओं को लिए हुए है। भाव और स्वभाव ने और भी महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान बना दिया है। जीवन में कर्म और भाग्य भी निहित है। सूक्ष्मता से देखें तो जीवन जैसे दो रूपों में वर्गीकृत है। अच्छा-बुरा, सुख-दुख, आशा-निराशा,उत्साह-हताशा। जब हमारे साथ अच्छा होता है तो सकारात्मकता हमारे पक्ष में होती है और हम खुशी, सुख, उत्साह से भर जाते हैं और जब हमारे साथ बुरा होता है तो नकारात्मकता हमारे पक्ष में होती है और हम दुखी, दुख,हताशा से भर जाते हैं। इसी तरह कभी हम आने वाले कल को लेकर अच्छा होने के प्रति आशावान होते भी हैं और कभी निराशा भी नजर आती है। ठीक वैसे ही जब हम दिन में किसी राह से गुजरते हैं तो आसपास लगे पेड़ों के  मिलने, न मिलने पर धूप- छाया  को पाते हैं।
 जीवन भी एक यात्रा ही तो है। जिसे हम गुजारते हुए चलते हैं।          विद्वानों ने इसी को आधार मानकर समझाइश के लिए  सुख-दुख, अच्छा-बुरा,आशा-निराशा को धूप- छाँव का प्रतीक मान लिया गया है। 
   यहां हमारे सकारात्मक पक्ष को छाँव और नकारात्मक पक्ष को धूप का प्रतीक माना गया है।
अस्तु।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
"कभी न बुझती है वो प्यास है जिंदगी, 
निराशा को मिटाती एक आस है जिंदगी, 
मिल जाती हैं खुशियां  किसी
 को उम्र भर की, 
तो किसी के लिए हर पल उदास है जिंदगी"।  
देखा जाए आशा और निराशा, सुख दुख जिंदगी में आते जाते रहते फिर भी जीवन में आशा की किरण 
 को जगा कर रखना चाहिए 
हर किसी की जिंदगी में कुछ ऐसे पल आते हैं जब उसका मन उदास होता है जिसका कारण सफलता न मिलना या  मनुष्य द्वारा कि गई गल्तियां उसे हताश कर देती हैं जिसके कारण मनुष्य अपने किए गए कर्तव्यों को हीन भावना से देखता है जिस कारण उसका जीवन दुखी होने लगता है और उसे सफलता नहीं मिल पाती, 
लेकिन ऐसी स्थिति में मनुष्य को घवराना नहीं चाहिए वल्कि डट कर मुकावला करना चाहिए क्योंकी जीवन में संघर्ष से लड़कर  जीने मे ही मजा है और उसी में आनंद है जीवन में सुख दुख दो साथी हैं दुख को संघर्ष के साथ जीने में व अपने लक्ष्य की तरफ वढ़ने में अलग ही मजा है जब आप अपना संघर्ष दुख में भी जारी रखेंगे तो आप को अपनी मंजिल जरूर मिलेगी बशर्ते कि आशा की  किरण आप को जगाए रखे क्योंकी आशा ही   विजय, सफलता , आन्ंद सब कुछ दिलाती है जीवन तो धूप  छांव के समान है कभी सुख कभी दुख जिंदगी मे यही दो  पहलु हैं
आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या जीवन में आशा और निराशा धूप छांव के समान है? 
यह सच है कि जीवन में आशा और निराशा धूप व छांव की तरह आती जाती रहती है परंतु मनुष्य को अपने कर्मों पर विश्वास होना चाहिए तो फिर चाहे दुख हो जा सुख इन को भोगने में तनिक भी महसूस नहीं होगा क्योंकी कर्म तो अपना भाव दिखा कर ही रहेंगे, 
सच कहा है, 
"कर्म किये जा फल की इच्छा मत करना इंसान, 
जैसे कर्म करेगा , वैसा फल देगा भगवान"
कहने का भाव कि कर्म ही प्रधान  माना गया है, 
जीवन मो आशा और निराशा हमारे कर्मों के अनुसार मिलती है हमें तनिक  सी मुसीबत से घबराना नहीं चाहिए अपितु डट कर मुकावला करना चाहिए ताकि हमारी  निराशा भी आशा मे बदल जाए, 
इसलिए मन में आशा के दीपक कभी न बुझने दें क्योंकी हिम्मत की सिढ़ी चढ़ते चढ़ते आप कठिन से कठिन बाधाओं का पार कर सकते हैं, 
आपके जैसे विचार होंगे वैसे ही बन जाओगे, 
आशा के दीपक जला कर रखो कोई न कोई झरोखा जरूर मिलेगा, 
सिर्फ परिस्थतियां जैसी भी हों उनका सामना करना चाहिए हर रात के वाद दिन अवश्य आता है और हर दिन  एक नई उर्जा लेकर व एक नया संदेश लेकर आता है हमें दुख देख कर निराश नहीं होना चाहिए अपितु दुख का डट कर मुकावला करके सुख को प्राप्त करने की आशा मन में होनी चाहिए ताकि हम इतनी मेहनत करें की हमें अपने संघर्ष में पता भी न चले कि हम पर दुख भी  कभी आया था, 
सच कहा है, 
राही मनुवा दुख की चिन्ता क्युं सताती है दुख तो अपना साथी है, 
अन्त में यही कहुंगा की दुख सुख या आशा और निराशा जीवन में टिके नहीं रहते  यह धूप छांव की तरह आते जाते रहते हैं, सिर्फ इंसान को अपनी  हिम्मत व मेहनत को जगाए रखना चाहिए फिर दूनिया का कोई भी ऐसा कार्य नहीं  जिसे आप कर न सको व दूनिया में कोई ऐसा लक्ष्य नहीं जिसे आप भेद न सको, 
रात दिन की तरहआशा व निराशा के क्षण आते जाते रहते हैं, 
देखा जाए मनुष्य जिस तरह की भावनांए रखता है वैसी ही प्रेरणाएं मिलती हैं जो लोग सिर्फ अपना ही लाभ देखते हैं उन्हें जीवन में निराशा अवसाद असंतोष ही मिलता है लेकिन परोपकार करने  वाले लोगों पर निराशा कभी नही़ दबाब बना पाती, 
अब हम को देखना है  कि हम कैसा बनें  क्योंकी यहां आशा, उत्साह है  वहां ही सफलता है, 
इसलिए अपने कार्यों को इस प्रकार  करें कि निराशा कभी होने न पाए अगर किसी कारणवश ऐसा हो भी जाता है तो अपने लक्ष्य व विश्वास को कभी टूटने न दें निराशा आपके पास कभी  ज्यादा देर  टिक न पायेगी, 
सच कहा है, 
धूप का सफर था और पैरों में थकान, 
मैं कैसे रूकता क्योंकी बाकी थी मेरी उड़ान। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मनुष्य को अपने सुखी जीवन जीने के लिए सकारात्मक सोच रखनी चाहिए। जीवन में रात और दिन की तरह आशा और निराशा के छोड़ आते जाते रहते हैं। आशा जहां जीवन में संजीवनी शक्ति का संचार करती है, वही निराशा मनुष्य को पतन की तरफ ले जाती है। निराशा मानव जीवन में उदासीन और विरक्त होने लगता है। उसे अपने चारों तरफ अंधकार नजर आता है। निराशा का संबंध एकतरफा सोच भी है। साथ ही मनुष्य का दृष्टिकोण पर भी आधारित है। मनुष्य जिस तरह की भावनाओं को रखता है वैसे ही प्रेरणा मिलती है। आशा हम सभी के जीवन की प्रेरणा स्रोत होती है। मनुष्य को जीने का आधार है आशा। आशा खत्म हो तो जैसे जीवन का मकसद ही नजर नहीं आता है। सकारात्मक आशाए ही उसके जीवन को खूबसूरत बनाती है। जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहन देती हैं। मन को उत्साह से भर देती है। वही निराशा व्यक्ति को अंधकार में ले जाती है। हर व्यक्ति को आशावाद होना नितांत ही जरूरी है क्योंकि आशा है तो जीवन है और जीवन है तो आगे बढ़ने का मकसद भी हमें मिलता है। इसलिए निराशा के भाव को त्याग करने चाहिए।आशा भरी जीवन जीने का सदैव प्रयत्न करना चाहिए।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री 
जमशेदपुर - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " आशा और निराशा शरीर के दोनो हाथ के समान है । जिसमें से एक को भी अलग नहीं किया जा सकता है । इन को नियन्त्रण करने की आवश्यकता है । बाकी तो कर्म का परिणाम है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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