कहते हैं भरोसे पर दुनियां क़ायम है। क्या यह वास्तविकता है। भरोसे से बहुत कुछ हो जाता है। जिस की उम्मीद भी नहीं होती है। वह भी हो जाता है। फिर भरोसे से क्या सिद्ध होता है। यही कुछ चर्चा परिचर्चा का विषय तैयार हुआ है। जैमिनी अकादमी ने परिचर्चा के माध्यम से भरोसे की व्याख्या करने का प्रयास किया है। जो आयें विचारों पर निर्भर हैं : - भरोसा-जीवन का अभिन्न अंग है, बिना भरोसा किए कुछ ही नहीं हो सकता, भरोसे पर सृष्टिकाल टीका हुआ है और भरोसे के लिए रोता है, कोई भरोसा करके रोता है। पुराणिक कथाओं, वैवाहिक बंधन [मर्यादित], समसामयिक, रचनात्मक, राजनैतिक [ईवीएम मशीन एक जबरदस्त भरोसा भी है और जिस पर रो भी रहे है] पर अग्रसरित तो है। श्रीराम भी पिताश्री दशरथ पर भरोसा करके ही वनगमन प्रस्थान किए थे। कैकेयी ने भी दशरथ पर भरोसा करके अपनी बात कहीं, श्रीराम को वन और भरत का राज्याभिषेक, इतना सुन दशरथ भरोसा कर रोते रहे, अंतिम समय कोई पुत्र भी पास नहीं? अनगिनत उदाहरण मिलते है, यह भी तो एक भरोसा है, अच्छे-अच्छे अचंभित काम भी सम्पन्न हो जाते है। पू...