रामधारी सिंह दिनकर स्मृति सम्मान ‌-2025

       समय बहुत बलवान होता है। जो किसी को माफ़ नहीं करता है। समय से पहले कभी किसी को कुछ नहीं मिलता है। समय की अपनी गति होती है। जो संसार यानी समाज को चलता है। जिस से बड़े बड़ों की अकड़ और अभिमान टूटते देखा है। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का विषय है। अब जो विचार आयें हैं। उन को देखते हैं :-
       हमारे जीवन की सभी व्यवस्थाएं सामाजिक तौर पर निर्धारित हैं। इसे यूँ भी कह सकते हैं कि हमारा जीवन सामाजिक परिवेश में व्यतीत होता है। समाज के साथ रहकर हम अपना जीवनयापन करते हैं। इसके लिए हमें प्रेम और विश्वास के साथ- साथ सहयोग और सम्मान भी निभाना होता है। अपने व्यवहार में विनम्रता और सौहार्द्रता रखनी होती है।  अपने जीवनयापन के लिए कब, किससे, कौनसी आवश्यकता आ पड़े कहा नहीं जा सकता। समय बड़ा बलवान होता है।  इसलिए अकड़ और अभिमान को हमारे सबसे बड़े चारित्रिक दोषों में से एक माना गया है। जिसे समाज ने कभी स्वीकार नहीं किया है और समय आने पर संबंधितों को सबक सिखाया भी है। सच पूछा जाए तो अकड़ और अभिमान एक मानसिक बीमारी भले ही हो, परंतु लाइलाज कतई नहीं है। यह बात अलग है कि इसका इलाज सिर्फ समय के पास ही होता है और वह करता भी  है।   " अच्छे-अच्छे को पानी पिलाना " समय ने कर दिखलाता है। इसलिए उचित यही होगा कि अकड़ और अभिमान को अपने स्वभाव और चरित्र में कभी भी न आने दें।     

      - नरेन्द्र श्रीवास्तव

     गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

          अक्सर ऐसा देखा गया है जैसे जैसे व्यक्ति की आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती जाती है , वैसे ही साथ साथ उसमें अकड़ , अभिमान , प्रवेश कर जाता है !! इसके कारण व्यक्ति अपने आप को दूसरों की तुलना मैं श्रेष्ठ समझने लगता है , व कम संपन्न लोगों को हीन समझने लगता है !! इतना अभिमानी हो जाता है व्यक्ति , की वह भूल जाता है कि कल तक वह भी उन्हीं परिस्थितियों में था !! ऐसी विकृत स्थिति को मानसिक रोग कहना बिल्कुल उपयुक्त है !! ऐसे व्यक्तियों का इलाज केवल वक्त के पास होता है !! जब समय का पहिया घूमता है , तो बड़े बड़े अभिमानियों की अकड़ छू मंतर हो जाती है !! जो आज है अर्श पर , कल वो ही है , फर्श पर !! इसलिए कभी अभिमान नहीं करना चाहिए !! 

       - नंदिता बाली 

  सोलन - हिमाचल प्रदेश

        अकड़ और अभिमान दोनो ही व्यक्तित्व के लिए हानिकारक होते हैं।लेकिन यह सत्य है कि यह दोनों तत्व मानसिक बीमारी होती है जिसकी अनुभूति स्वयं बीमार को ही नहीं होती है और वह जीवन भर इसी मुगालते में रहता है कि वह ही जीवन में सर्वश्रेष्ठ है और इसी दंभ के बल पर वह एक दिन समाज से विरक्त होकर एकला चलो की नीति का ध्वजवाहक बन जाता है और अंततोगत्वा अपने ही विरोधाभाषी और संशयपूर्ण विचारों के चक्रव्यूह में स्वयं ही घिर कर आत्मघाती अवस्था में नितांत अकेला होकर अपने अस्तित्व की परछाईं को ही ढूंढता हुआ रह जाता है और इस प्रकार न तो वह मानसिक रूप से और न ही सामाजिक रूप से किसी काम का रह जाता है और न ही उसकी विश्वसनीयता ही रह जाती है।इसका सटीक उदाहरण रावण और कंस के अतिरिक्त वर्तमान में हमारे आस पास भी देखने को मिल जाते हैं।अकड़ और अभिमान से ग्रसित व्यक्ति को किसी की बात का भी कोई प्रभाव नहीं होता है और उसे हर वह व्यक्ति बुरा लगता है जो उसे इन  बीमारियों के बारे में सतर्क करता है और यही कारण है कि ऐसे रोगी व्यक्ति का इलाज सिर्फ समय के पास होता है।

  - पी एस खरे "आकाश"

  पीलीभीत - उत्तर प्रदेश 

        अकड़ और अभिमान एक अदृश्य मानसिक रोग हैं जो धीरे-धीरे व्यक्ति की सोच, व्यवहार और रिश्तों को खोखला बना देते हैं। अहंकार से ग्रसित व्यक्ति वास्तविकता को पहचानने में असमर्थ हो जाता है और अपने ही बनाए भ्रमजाल में जीते हुए दूसरों के सम्मान और भावनाओं की अनदेखी करने लगता है। ऐसी बीमारी की पकड़ में सर्वाधिक अधिवक्ता और न्यायाधीश हैं जिन्हें मात्र एलएलबी की शिक्षा प्राप्त करने पर ही अकड़ और अहंकार इस प्रकार जकड़ लेते हैं कि वह प्रत्येक मानव को मानव ही नहीं समझते। यही अकड़ और अहंकार उन्हें आत्मविनाश की ओर ले जा रहा है क्योंकि अहंकारी मनुष्य कभी आत्मचिंतन नहीं करता। किंतु समय सबसे बड़ा चिकित्सक है, जो कठिन अनुभवों और जीवन की चुनौतियों के माध्यम से अहंकार को तोड़कर विनम्रता और सहनशीलता का पाठ पढ़ा देता है। उक्त पाठ न्यायाधीश तो अपनी सेवानिवृत्ति पर पढ़ लेते हैं लेकिन कतिपय अधिवक्ता मरणासन्न अवस्था में भी नहीं पढ़ पाते हैं।  अर्थात वह कभी मानव बन ही नहीं पाते जो उनका सर्वोच्च दुर्भाग्य है। उन्हें कभी विनम्रता का महत्व समझ में नहीं आता। वह अपने जीवनकाल में किए गए घोर पापों का प्रायश्चित भी नहीं कर पाते और अन्तिम सत्य से वंचित रह जाते हैं। क्योंकि अकड़ और अभिमान का उपचार किसी डॉक्टर या औषधि के पास नहीं, बल्कि केवल समय और अनुभव के पास है। 

 - डॉ. इंदु भूषण बाली 

 ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर 

          अभिमानी अकड़ मे रहते है लेकिन स्वाभिमानी फलदार वृक्ष की तरह झुके रहते हैं। सचमुच अकड़ और अभिमान मानसिक बीमारी हैं जो आपको चार लोगों के बीच लोकप्रिय नहीं होने देते। आप कितने भी ज्ञानी हों पढे लिखे विद्वान हों---धनवान हों लेकिन यदि आपके मानस में दूसरे के प्रति सम्मान ना हो तो आप कभी भी स्वस्थ  मानसिकता नहीं रख पायेंगे और  इसे  मानसिक बीमारी की तरह ढोते रहेंगे। मानसिक रोगी को अभी भी अपनी बीमार होने का एहसास नहीं होता - - वे कभी नही मानते कि वे बीमार हैं। इंसान पागल नहीं होता लेकिन पागलपन की ओर बढ जाती है अकड़ और मिथ्या अहंकार के साथ यह मानसिक बीमारी। इसलिये जल्दी से जल्दी इस भ्रम जाल से निकलना उचित होता है। विद्वत-जनों की संगति करें - - दूसरों की बातों को तव्वजो दें - - दूसरों के गुणों की सराहना करें सच्चे हदय से महसूस करके--तो स्वमेव आपके भीतर की कटुता समाप्त हो जायेगी और सचमुच आनेवाला समय आपको एक स्वस्थ मानसिकता के साथ सामाजिक स्वीकृति भी प्रदान करेगा। 

  - हेमलता मिश्र मानवी

      नागपुर - महाराष्ट्र 

     अकड़ और अभिमान एक सिक्के के दो पहलू है। जिसमें दोनों की सार्थक पहल दिखने को मिलती है, यह एक मानसिक बिमारी होती हैं। जिस का इलाज सिर्फ समय के पास होता है। शेर भी अपने आपको जंगल का राजा समझता है, जब समय आता है, उसके अपने ही मदद करने आते है। उसके बाद भी वह धन्यवाद देना भी पसंद नहीं करता है उसी तरह मानव भी रहता है। जब तक उसका काम रहता है, तब तक मीठा-मीठा बोलता है, जैसे ही काम निकला अकड़ और अभिमान हो जाता है। प्रकृति, बड़े-बड़े राजा-महाराजा [राजतंत्र, जनतंत्र, कुटुम्बतंत्र, पृथ्वीतंत्र सहित], अपनी करणी और अपनी भरणी से समय के साथ विनाश की ओर अग्रसर हुए है, इतिहास साक्षी है, इन्होंने समानता का भाव देखा ही नहीं है। जिस दिन देख लेगें, तब समझ आयेगी जीवन की सही दिशा, मुक्तिधाम की राहत का पैकेज...?

 - आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

         बालाघाट - मध्यप्रदेश

     'अ' से अकड़ और 'अ' से ही अभिमान होता है, दोनों ही मानसिक बीमारी के रूप हैं और लाइलाज हैं. न तो अकड़ की रस्सी का बल जल्दी निकल पाता है और न अभिमान के ताज को छोड़ा जा सकता है. इसका इलाज अगर कोई कर सकता है तो सिर्फ समय ही कर सकता है. समय ही अकड़ की रस्सी का निकाल सकता है और अभिमान के ताज को छुड़वा सकता है. अकड़ और अभिमान से रहित व्यक्ति इस सृष्टि का शृंगार है. 

 - लीला तिवानी 

सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया

         अकड़ और अभिमान एक मानसिक बीमारी है।यह तो ठीक है। इसका इलाज सिर्फ समय के पास होता है। यह बात सही नहीं लग रही। अभिमानी और अकड़ू अपने सामने किसी को कुछ नहीं समझता,हर किसी को अपने से कम आंकता है और खुद को समझता है सबसे महान।हर किसी में कभी निकालना और स्वयं को सुपर मानना इनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग होता है। इसे मानसिक बीमारी ही कह सकते हैं। सुपिएरिटी काम्प्लेक्स के शिकार होते हैं यह। जब कभी वक्त करवट लेता है और वास्तविकता का अहसास होता है तब तक बहुत देर हो चुकी होती है। सुधरने की प्रक्रिया तब भी शुरू नहीं होती और अक्सर अकड़ की वजह से न झुकने के कारण यह टूट जाते हैं।इस टूटने को हम सुधरना तो नहीं मान सकते।

 - डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

     धामपुर - उत्तर प्रदेश 

     अकड़ और अभिमान वास्तव में मनुष्य की प्रगति और संबंधों का सबसे बड़ा शत्रु है। यह अहंकार धीरे-धीरे इंसान को अकेला कर देता है। समय इसका श्रेष्ठ चिकित्सक है, क्योंकि परिस्थितियाँ और अनुभव अहंकार को तोड़कर विनम्रता का पाठ पढ़ाते हैं। अकड़ और अभिमान व्यक्ति को भीतर से खोखला कर देते हैं। यह ऐसी मानसिक अवस्था है जिसमें इंसान दूसरों को छोटा और स्वयं को बड़ा समझने लगता है। लेकिन समय का पहिया जब करवट बदलता है, तब यही अभिमान चूर-चूर होकर मनुष्य को विनम्र बना देता है। इसीलिए कहते हैं—जो झुकता है, वही टिकता है।अकड़ रिश्तों को तोड़ती है, जबकि विनम्रता जोड़ती है। अभिमान क्षणिक है, पर नम्रता शाश्वत मूल्य है।

- डाॅ.छाया शर्मा

 अजमेर -  राजस्थान

        जो लोग कुसंस्कारी होते हैं उनके पास ही अकड़ और अभिमान नामक मानसिक बीमारी होती है. जिसका इलाज किसी पद्धति में नहीं है. उसका इलाज समय ही करता है. लोगों को बल और जरूरत से ज्यादा धन आ जाने पर य़ह बीमारी आ जाती है. अकड़ चलना अभिमान में रहना. अपने से दूसरों को तुच्छ समझना इत्यादि. लेकिन वह यह बात नहीं समझ पाता है कि जिस बल पर वह अकड़ रहा है जिस धन पर वह अभिमान कर रहा है वह एक दिन चला जाएगा. समय के साथ सब कुछ खत्म हो जाएगा. ऐसे बहुतों उदाहरण भरे पड़े हैं दुनिया में जिनके अकड़ और अभिमान पल में खत्म हो गए. समय उनका ऐसा इलाज करता है कि सारी अकड़ भूल जाते हैं. अभिमान मिट्टी में मिल जाता है. समय के पास हर बीमारी का इलाज होता है. 

 - दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "

      कलकत्ता - पं. बंगाल 

       अकड़ और अभिमान एक मानसिक बीमारी है।जिसका इलाज सिर्फ समय के पास होता है। अक्षरशः सत्य है।काल चक्र की धूरियां अविरल क्रियाशील रहती हैं। जो अपने वेग के साथ सबक सिखाकर छोड़ती है। इससे कोई नहीं बच सकता। इसके थपेड़े झेलने ही पड़ते हैं जो राजा को रंक बनाकर दम लेती है। अकड़ और अभिमान ये अवगुण मनोविकार की श्रेणी में आते हैं। आप कितने भी प्रतिभासंपन्न व्यक्ति हो, धनवान हो, सुंदर हो अगर आप में अकड़ और अभिमान की परत चढ़ी हुई है तो आपकी प्रतिभा धूमिल है। आपकी छबि इससे खराब होगी।मानव में सहनशीलता,संयम, सदाचरण के गुण ही उसके व्यक्तित्व को निखारते हैं। अकड़ के कारण ही झंझावते आने पर ध्वस्त हो जाता है मानव तब फिर उसका अभिमान चकनाचूर हो जाता है।मानवता बरकरार रखिए, अकड़ और अभिमान को त्यागिए।समय का चक्र चलता है तो इंसान स्वयं प्रायश्चित करने लगता है।

 - डॉ. माधुरी त्रिपाठी 

   रायगढ़ - छत्तीसगढ़

          देखा‌ जाए मानव एक समाजिक  प्राणी है जो सोचने, समझने,पहचानने में महारत  रखता है लेकिन जब भी मनुष्य को अकड़, अभिमान जैसी बिमारियां घेर लेती हैं तो वोही मनुष्य आत्म विनाशकारी होने लगता‌ है और अपनी सीमाओं को भूलने लगता है और दुसरों को नीचा दिखाने  का प्रयास करता है सिर्फ  अपने ‌आपको महान समझने के कारण अकेला पड़ जाता है और अपना मानसिक संतुलन खो देता है तो  आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि अकड़ और  अभिमान एक मानसिक बिमारी है जिसका ईलाज सिर्फ समय के पास होता है, मेरा मानना है कि  अकड़ और अभिमान कोई शारीरिक बिमारी नहीं है बल्कि ‌एक‌‌ मानसिक बिमारी है जिसका‌ संबंध आत्म सम्मान की कमी तथा दुसरों  के प्रति अनादर होता है इसे मानसिक बिमारी के रूप में वर्णन किया जाता है क्योंकि यह व्यक्ति के व्यवहार और सोच को नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है जिसके कारण व्यक्तिगत विकास में  बाधा देखने को मिलती है,देखा जाए अकड़ और अभिमान को ठीक करने के लिए किसी डाक्टर की जरूरत नहीं पड़ती‌ बल्कि इसका ईलाज प्रकृति और समय के पास है जो लोगों की गलती को सही समय पर सही दिशा में उजागर कर देते हैं और गलत‌ किए गए कार्यों का‌ सबक  सिखा देते हैं ,देखा गया है कि  अकड़ व्यक्ति के व्यवहार में कठोर और अडियल रवैया है जो अक्सर दुसरों को नीचा दिखाने और खुद को सर्वोच्च ‌समझने‌ की प्रवृत्ति से जुड़ा होता है जबकि अभिमान अंहकार,घमंड और आत्म महत्व की भावना प्रकट करता है, दरअसल  अकड़ अभिमान का ही बाहरी रूप है, यह एक ऐसा रवैया है जो व्यक्ति की चाल ढाल और हाव भाव में दिखाई देता है और अभिमान व्यक्ति  की आत्म महत्व की भावना को अंहकार से भर देता है इसलिए अकड़ और अभिमान के कारण व्यक्ति ‌खुद को दुसरों से बेहतर समझने लगता है और दुसरों की सलाह या सुझावों को महत्व नहीं देता ऐसे व्यक्ति बड़ों का‌‌ सम्मान, छोटों पर स्नेह नहीं दिखाते जिससे दुसरों से अलग हो जाते हैं और एक दिन समाज में अकेला महसूस  होने पर  मानसिक बिमारी का शिकार हो जाते हैं, अन्त में यही कहुंगा कि जमीन से जुड़कर रहना,विनम्रता से व्यवहार करना अनुभव लेने और गलतियों से सीख लेने से ही ‌मनुष्य‌ जीवन महान बन सकता है, मगर अकड़ और अभिमान एक ऐसी स्थिति है जिसका ईलाज समय, कुदरत और व्यक्ति के अनुभव ही कर सकते हैं क्योंकि यही चीजें समय आने पर व्यक्ति को सबक सिखाती हैं  इसलिए अकड़ कर चलना,अकड़ दिखाना, अभिमानी होना‌‌ किसी व्यक्ति को शोभा नहीं देते और विनम्र होना रिश्तों को निभाने और‌ सम्मान पाने‌‌ के लिए बहुत आवश्यक है,इतिहास गवाह है कि अभिमान और अकड़ में रहने वालों का अन्त नुकसानदेह ही होता‌ है,सच कहा है,अंहकार में तीनों गए,धन वैभव और वंश न मानो तो देख लो  रावण,कौरव और कंस।

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

    जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

       इसमें कोई संदेह नहीं के अकड़ और अभिमान एक मानसिक बीमारी है क्योंकि यह दोनों तत्व नकारात्मकता से अभिप्रेरित हैं और यह  दोनों ऐसे व्यक्ति के पास होते हैं। जो झूठे  भ्रम में जीता है। वास्तव में कोई भी तत्व जिसे किसी व्यक्ति का बड़ा होना, ये दुनियां तय करती है। वे तत्व ऐसे लोगों द्वारा मापदंड के लिए अपनाए जाते हैं। जो स्वयं झूठे मान सम्मान के लिए जीते हैं। ऊंचे पद पर होना, ज्यादा संपत्ति होना, या किसी भी प्यारी चीज का अपने पास होना। यह सब इस दुनियां का मोह मायाजाल है। यह भी जीवन में यथार्थ है कि  समय परिवर्तनशील है। कोई भी चीज स्थाई नहीं है। ऐसे लोगों से समय जब, इन चीज़ों को छिनता है। वह परिस्थितियां ऐसे लोगों को असहनीय होती हैं। क्योंकि यह लोग उन चीजों के मोहपाश में इतने जकड़ गए होते हैं की जुदा होने पर उनसे यह पीड़ा बर्दाश्त नहीं होती। इसकी पीड़ा ही उनका जीवन पर्यंत तरसाती और तड़पाती रहती है। इसके विपरीत जो लोग दुनियादारी के चक्कर को समझते हैं। अच्छे दिनों में उछलते नहीं और बुरे दिनों में घबराते नहीं। जीवन की प्रत्येक परिस्थिति से  सामंजस्य स्थापित करते हुए। जीवन को बड़े सुखद ढंग से जीते हैं।

- डॉ रवींद्र कुमार ठाकुर 

 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 

" मेरी दृष्टि में " समय के चक्र से कोई नहीं बच पाया है। जो विधि का विधान है। समय आने पर बहुत कुछ अपने आप बदल जाता है। यही समय चक्र है। इंसान की अकड़ और अभिमान सदा किसी का नहीं रहा है। 

        - बीजेन्द्र जैमिनी 

     (संचालन व संपादन)

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