पेरियार ई वी रामासामी नायकर स्मृति सम्मान - 2025
कर्म की प्रधानता हर जगह दी गई है. कर्म से ही मनुष्य अपना भाग्य बनाता है. इससे बड़ा कोई धर्म नहीं है." कर्म प्रधान विश्व रची रखा. को करी तर्क बढाव ही साखा." कहने का मतलब है कर्म ही इस विश्व को रचने में प्रधान है. या विश्व की रचना कर्म से ही हुई है. इसमें तर्क की कोई गुंजाइश नहीं है.कर्म से ही सब कुछ सम्भव है. कर्म नहीं करेंगे तो बने बनाये भोजन की भी प्राप्ति नहीं होगी. कर्म के अनुसार ही हमारा धर्म बनता है. धर्म कोई ऊपर से नहीं आता है बल्कि जो जैसा जिस माहौल में कर्म करता है वहीं उसका धर्म बनता जाता है. दुनिया के हर कर्म को करने के लिए परिश्रम की आवश्यकता होती है. परिश्रम से ही सबकुछ सम्भव होता है. अगर हम परिश्रम नहीं करेंगे तो कुछ भी नहीं होगा. परिश्रम के अलावा कोई चारा नहीं है. परिश्रम ही सबकुछ है. इसलिए कहा जा सकता है कि परिश्रम से बड़ा कोई कर्म नहीं हो सकता है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - पं. बंगाल
जीवन में कर्म से ही हमारे लक्ष्य की प्राप्ति होती है। कर्म के प्रति समर्पण का भाव ही हमारा धर्म है। व्यक्ति का अपने कार्य के प्रति पूर्ण निष्ठा से समर्पित रहना ही उसका धर्म है। ऐसे व्यक्ति कभी अपने कार्य में असफल नहीं होते । परिश्रम, मेहनत कर पसीना बहा जीवन में आगे आना यही हमारा कर्म है। जीवन में आने वाले संघर्षों को अपने परिश्रम से स्वेद बहा, अपने लक्ष्य की प्राप्ति करते हैं वही हमारा सच्चा कर्म है।कृष्ण भगवान ने भी कहा है कर्म करते जाओ चाहे जितना संघर्ष करना पड़े, मेहनत से बने पसीने की कीमत अवश्य मिलती है बस तुम बिना फल की इच्छा रखे कर्म करते जाओ। यही तुम्हारे परिश्रम का कर्म कहलाएगा।जिसका फल मीठा होगा।
- चंद्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
कर्म किए जाए फल की चिन्ता न करें, यह शब्दांश श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा था। कर्म से बढ़कर कोई शक्ति नहीं, जिसने अपने कर्म को सर्वोपल्ली समझ लिया वह अजर-अमर हो गया। कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है, परिश्रम से बड़ा कोई कर्म नहीं होता है। यह कटु सत्य है नवजात शिशु भी रो-रोकर अपनी इच्छानुसार फल प्राप्त करता है, हम बिना परिश्रम किए फल प्राप्त करना चाहते हैं। मुंह के दांत साफ करने के लिए भी उंगली का सहारा लेना पड़ता है। कोई किसकी के नाम के सहारे फल प्राप्त करते जरुर है, परन्तु यह वास्तविक कर्म नहीं कहा जा सकता। जो वास्तव में जमीन से कर्म करता है, वह फल का हकदार बनता है। किसी-किसी को देखा जाता है, परिश्रम बहुत जरुर करते है, परंतु सफलता नहीं मिलती, जो अपनी मेहनत पर आंसू बहाता है, यह सब पूर्व जन्म का फल है, जैसा कर्म किया होगा, इस जन्म में वैसा फल मिल रहा है.....।- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
चाहे धर्म का कोई भी मार्ग क्यों न हो – पूजा, व्रत, जप-तप, दान या अनुष्ठान – उनका असली सार कर्म में ही है। यदि मनुष्य अपने कर्तव्यों को, अपनी जिम्मेदारियों को ईमानदारी से निभाता है तो वही सबसे बड़ा धर्म है।उदाहरण के लिए – माता-पिता का कर्तव्य है बच्चों का पालन-पोषण करना। यह उनके लिए धर्म है। शिक्षक का धर्म है ज्ञान बाँटना। सैनिक का धर्म है देश की रक्षा करना। यदि कोई केवल धार्मिक कर्मकांड करे पर अपने जीवन के कर्तव्यों को न निभाए तो उसका धर्म अधूरा है। कर्म करते समय सबसे महत्वपूर्ण तत्व है परिश्रम। परिश्रम से ही कर्म सफल होता है। आलस्य, shortcuts या भाग्य भरोसे बैठना कर्म की पवित्रता और परिणाम दोनों को कम कर देता है।इतिहास गवाह है कि जिन्होंने परिश्रम किया, वही महान बने – चाहे किसान हो, वैज्ञानिक, कलाकार या नेता। धर्म का सार कर्म में है और कर्म का सार परिश्रम में। अर्थात यदि हम मेहनत, ईमानदारी और लगन से अपने कर्तव्य निभाएँ तो वही सबसे बड़ा धर्म है।
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
निस्संदेह, धर्म, आस्था और मान्यताएँ मनुष्य के जीवन को दिशा देती हैं, लेकिन कर्म के बिना धर्म भी अधूरा है। गीता उपदेश भी कर्म को ही महत्व देता है। कर्म से ही हम अपने व्यक्तित्व को आकर्षक बना कर सिद्ध कर सकते हैं कि आखिर हम हैं कौन? उल्लेखनीय है कि यदि कोई व्यक्ति केवल धर्म की बातें करे और कर्म न करे, तो वह समाज और स्वयं के लिए किसी उपयोग का नहीं है। क्योंकि हमारे जीवन का कोई विशेष लक्ष्य है जिसके लिए हमने मृत्यु लोक में जन्म लिया है और उसकी पूर्ति हेतु हमें कर्मों का सहारा लेना पड़ता है। क्योंकि कर्म ही वास्तविक धर्म है और जब कर्म परिश्रम के साथ जुड़ता है, तब जीवन सार्थक और ऊँचा हो जाता है। परिश्रम वह साधना है, जो हर असंभव को संभव बना देती है। इसलिए, कर्म ही सबसे बड़ा धर्म है और परिश्रम सबसे बड़ा कर्म। इन्हीं कर्मों से हम ईश्वर को भी सुगमतापूर्वक प्राप्त कर सकते हैं और देखा जाए तो कर्मों के आधार पर ही बिना कानूनी पढ़ाई किए मैं न्याय के बिल्कुल समीप पहुंच चुका हूॅं जो मेरे लिए सत्यम शिवम और सुंदरम है।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं, (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
व्यक्ति का कर्म हीं उसका सब कुछ होता है। कर्म के अनुसार हीं सदैव वैसा हीं फल की प्राप्ति होती है ऐसा हम सभी को जानना और समझना चाहिए। लेकिन कुछ व्यक्ति इसे अनदेखा कर अपनी मनमानी करते हैं। जो सही नहीं होता ,जिसका ज्ञान और भान व्यक्ति को बाद में होता है । परिश्रम हीं हमारा व्यक्ति का सब कुछ होता है। परिश्रम से बढ़कर कोई भी कर्म या धर्म नहीं होता है। यह बात सौ प्रतिशत सही कही गई है। यदि व्यक्ति इस बात को सही मान लेता है, तो निश्चित हीं उसके कर्म और उसी अनुरूप उसके धर्म हो हीं जाएंगे। इसीलिए परिश्रम् पर हमें निर्भर रहना हीं चाहिए। बैठे बिठाए कभी भी कुछ प्राप्त नहीं होता।- डॉ. पूनम देवा
पटना - बिहार
जन्म हुआ है तो जीवन मिला है और जीवन मिला है तो जीवनयापन भी करना है और यह जीवनयापन तब तक है, जब तक जीवन है और इस जीवनयापन की पद्धति में धर्म और कर्म दोनों निहित हैं। हमारे अलावा इस जगत में और भी लोग हैं, अन्य प्राणी भी हैं। उनका भी जीवन है। उन्हें भी हमारी तरह जीवनयापन करना है। इसलिए धर्म के अनुसार हमें अपने जीवनयापन के लिए , कर्म इस तरह से करना है कि हम अपना जीवन बेहतर ढंग से इस तरह से तो गुजारें किंतु किसी अन्य के जीवनयापन में कोई बाधा न पहुंचे। यही धर्म है। अत: धर्म के अनुसार हमारा जो कर्म होगा, उसकी शुचिता और निरंतरता के लिए जो परिश्रम करना होगा, वही सबसे बड़ा कर्म होगा। क्योंकि हमें अपना परिश्रम, कर्म को और कर्म को धर्म को साधे रखने के साथ करना है। यह मर्म जिसने समझ लिया है, वही नियति के निकट है, यानी ईश्वर के सन्निकट है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कर्म और परिश्रम दोनों ही हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं! '"कर्म यानी हमारे कार्य, हमारे द्वारा किए गए काम। " हमारे कर्म ही हमारे जीवन को आकार देते हैं और हमारे भविष्य को निर्धारित करते हैं। प्रतिदिन जो कार्य करने की हमें आदत हो जाती है उसे संस्कार कहते हैं अच्छे कर्म करने से हम अपने जीवन में सकारात्मक परिणाम प्राप्त करते हैं और समाज में भी एक अच्छी छवि बनाते हैं।परिश्रम यानी मेहनत, लगन से काम करना। परिश्रम हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है। परिश्रम करने से हम न केवल अपने काम में सफल होते हैं, बल्कि हमें आत्मसंतुष्टि भी मिलती है। परिश्रम से हम अपने कौशलों को विकसित करते हैं और अपने जीवन में आगे बढ़ते हैं। दोनों का मेल हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। अच्छे कर्म करने के साथ-साथ परिश्रम करना हमें सफलता की ओर ले जाता है। परिश्रम से हम अपने कर्मों को और भी प्रभावी बना कर जीवन में बड़े लक्ष्यों को प्राप्त कर सकते है।- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
। बिल्कुल सत्य है कि कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता।हम इंसान को सदैव अच्छे कर्म करने चाहिए।जो अच्छे कर्म करते हैं।उनका नाम और यश फैलता है।हमें ईश्वर पर विश्वास करना चाहिए।उनकी प्रार्थना करनी चाहिए।वे ही हमे सद्बुद्धि देते हैं।इंसान को परिश्रम करना चाहिए।जो जितना परिश्रम करेगा,वह अवश्य सफ़ल होगा।कहावत सत्य है _परिश्रम का फल मीठा होता है।जो मनुष्य अपनी अभिरुचि के अनुसार परिश्रम करेगा,अपने क्षेत्र में अग्रसर होगा।वरदराज की जीवनी में प्रसंग आया है कि वह काफी मंद बुद्धि के बालक थे,लेकिन वे परिश्रम के बल पर संस्कृत के व्याकरणाचार्य बन गए।इससे स्पष्ट होता है कि परिश्रम से बड़ा कोई कर्म नहीं होता है।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता ... हर परिस्थिति में अपना कर्म करना , हमारा कर्तव्य है !! भगवान से हम विनती या प्रार्थना तब कर सकते हैं , जब हमने अपना कर्म तो ठीक प्रकार से किया , पर हमें उचित व वंचित फल प्राप्त नहीं हुआ !! कर्म करने में परिश्रम , भी आवश्यक है , यथासंभव और यथाशक्ति !! कुछ लोग बिना यत्न किए , बिना अपने कर्म किए , चाहते हैं कि उनको मनवांछित फल प्राप्त हो , जो असंभव है !! ठीक ही कहा गया है .......
कर्म किए जा , फल की
इच्छा मत रख ए इंसान !!
जैसे कर्म करेगा , वैसा फल
देगा भगवान , ये है गीता का
ज्ञान, ये है गीता का जान !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
जीवन के दो महत्वपूर्ण सिदांत हैं जिनमें कर्म किसी व्यक्ति के सभी कर्मों का योग है और उनके परिणामों का नियम जबकि धर्म जीवन जीने का एक नैतिक नियम तो आईये आज की चर्चा में इसी बात का जिक्र करते हैं कि कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं और परिश्रम से बड़ा कोई कर्म नहीं होता, मेरे ख्याल में यह बिल्कुल सत्य और परखी हुई बात है क्योंकि कर्म भविष्य में परिणाम देते हैंऔर धर्म उन कर्मों का मार्गदर्शन करता है वास्तव में शरीर ,मन ,वाणी से किए गए सभी कार्य कर्म कहलाते हैं और धर्म ही कर्म को सही दिशा देता है,यह भी सत्य है कि कर्म हमारे जीवन में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं,कर्म ही हमारे चरित्र और व्यक्तिगत को दर्शाते हैं तथा हमारी आत्म दिशा को सुधार देते हैं इसलिए कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है क्योंकि कर्म ही हमारे जीवन का साथर्क बनता है और हमारे कर्म ही हमें समाज में एक अच्छी प्रतिष्ठा दिलाते हैं और आत्म सुधार की शिक्षा देते हैं जबकि परिश्रम हमारे जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण कारक है इसीके दम से अपने लक्ष्य को प्राप्त किया जा सकता है और इसी से आत्मविश्वास बढता है और आत्मा को संतुष्टि मिलती है यही नहीं परिश्रम से ही व्यक्ति अपने कौशल और क्षमताओं को बढाता है, जिससे उसका स्वयं का विकास होता है इसके साथ साथ समाज और राष्टृ की तरक्की भी परिश्रमी लोग ही करते हैं और परिश्रम से ही सभी कार्य सिद्ध होते हैं अन्त में यही कहुंगा कि कर्म और परिश्रम दोनों ही हमारे जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं जबकि कर्म हमारे कार्यों को दर्शाते हैं और परिश्रम हमारे प्रयासों को तभी तो कहा है,जब हौंसला बना लिया हो उंची उड़ान का फिर देखना फिजूल है कद आसमान का, परिश्रम के साथ कर्म भी अच्छे ,सच्चे व साफ सुथरे हों तो व्यक्ति कुछ भी हासिल कर सकता है क्योंकि कर्म हमें वो देने में कभी असफल नहीं होते जिनके हम हकदार होते हैं सच कहा है ,कर्म तेरे अच्छे हों तो किस्मत तेरी दासी है,नियत तेरी अच्छी हो तो घर में ही मथुरा काशी है।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
हर परिस्थिति में कर्म करना अनिवार्य है। यदि तन से कर्म नहीं भी होता, तो मन से कर्म होता रहता है । और उसी अनुसार हमें उसका फल भी मिलता है। यदि हम किसी का दिल दुखाए बिना अपनी आजीविका के लिए अपने कर्म में लगे रहते हैं, तो वह धर्म अनुसार कर्म कहलाता है। बिना परिश्रम कभी कर्म होता नहीं है। परिश्रम से ही सफल कर्म होता है। जो व्यक्ति परिश्रम से सफल कर्म करता है और धर्म निहित कर्म करता है और उस कर्म का मर्म समझ लेता है। वही जगत में ईश्वरीय अनुकंपा प्राप्त कर लेता है। बिना परिश्रम कोई भी किसी भी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता । अतः अपने कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं है। और परिश्रम बिना कोई कर्म नहीं है।
- रश्मि पाण्डेय शुभि
जबलपुर - मध्यप्रदेश
बिलकुल सही! हम कर्म योगी हैं। कर्म ही हमारा धर्म है। बिना कर्म के कोरी बातें यानी खोखला धर्म, जिसका कोई मायने नहीं। यदि परमार्थ और सेवा भाव नहीं तो कोई धर्म नहीं। और यदि यह है परंतु केवल बातों व प्रवचनों तक सीमित है तो भी यह कोई धर्म नहीं हुआ। बैठे ठाले केवल खड़तालें बजाना कोई धर्म नहीं है। असली धर्म है हमारा कर्म । जिस भी क्षेत्र में हम काम कर रहे हों उसी में परिश्रम लगन व एकाग्रता ही मूल मंत्र है जो हमें विजयी करेगा, ईश्वर के क़रीब लाएगा और समाज में सम्मान दिलाएगा। इतिहास इस बात का गवाह है। कहते हैं ना कि ईश्वर भी उन्हीं की मदद करते हैं जो अपनी मदद स्वयं करते हैं। परिश्रमी ही साहस, गरिमा व आत्मविश्वास के साथ जी सकता है। कर्म व धर्म दोनों का भलीभाँति निर्वाह कर सकता है।
- रेनू चौहान
दिल्ली
कर्म से बड़ा कोई धर्म नहीं होता है जो कर्म की शक्ति लक्ष्यों को प्राप्त करने जीवन में सुधार लाने में मदद करती है। किसी पद की गरिमा सार्थकता की समझ तब होती हैं ! जब आपका समर्पण त्याग की भावना कर्म से बड़ा धर्म होता है !जीवन के हर पहलू को साथ रख जीवन कर दो अर्पण,कर्मठता से समर्पण उपलब्धि सौग़ात लाता है ! मानवता की पहचान बताता है अपना भी अभिमान बनाओ !अच्छाई सच्चाई सेवा समर्पण विजय पताका बन स्वाभिमान बनाओं । इसलिए जब सामान्य कर्मचारी अपनी सेवाए देते है ! वे किसी प्रकार कृतज्ञता सहानुभूति प्रलोभन जागृत जाहिर कर देना चाहते है ! तो उनकी आत्मा धिक्कारती कह उठती है ! हमें हमारे मेहनत के पैसे दीजिए उसमें कोताही मत कीजिए ! हम अपनी स्थिति जानते है ! सामने वाला समझ जाता है !हमसे ख़ुद्दार आत्म स्वाभिमानी वो होते है ! जो कमजोर समझ दुर्व्यवहार करते है ! वो विद्रोह कर कर बैठते है ! तो गुनाहगार ये नहीं आप होते है ! जो स्वार्थ के वशीभूत हो ग़लत कर बैठते हैं !परिश्रम से बड़ा कोई कर्म धर्म नहीं होता जो कर्म और परिश्रम के महत्व को दर्शाता है।कर्म शक्ति धर्म को साथ लेकर मानवता से अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और अपने जीवन में सुधार लाने में मदद करते है। नैतिकता का मूल्य कर्म से जागरूक बनाता है !जो सही और गलत के बीच का अंतर समझने में मदद करता है। परिश्रम का महत्व सफलता की कुंजी है, हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करता है।परिश्रम आत्म-विश्वास को बढ़ावा देता है परिश्रम विकास और प्रगति की ओर ले जाता है, और यह हमें अपने जीवन में सुधार लाने में मदद करता है।आत्म-संतुष्टि मिलती है, और मन कह उठता परिश्रम से जीवन में संतुष्टि और शांति मिलती है! इससेबड़ा कोई कर्म नहीं !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तकदीर से पहले ख़ुदा बन्दे से खुद पूछे ,बता तेरी रज क्या है ? कर्म ही धर्म है और धर्म ही ईश्वर और परिश्रम से बड़ा कोई कर्म नही । यह बात उतनी ही सत्य है जितना हर सुबह सूरज का उगना । भगवान श्री कृष्ण ने गीता में कहा है,,, कर्मण्येवाधिकारस्ते माम फलेषु कदाचन,,। कर्मयोग पर आधारित महाग्रन्थ श्रीमद्भगवत गीता आज भी पूरे विश्व मे प्रासङ्गिक है । जो लोग कर्मठ होते हैं कर्मवीर होते हैं वे ईश्वर के अत्यंत करीब होते हैं । ख़ुदी को कर बुलन्द इतना कि हर तदवीर से पहले खुदा बन्दे से ख़ुद पूछे बता तेरी रजा क्या है ,,,,। अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की पंक्तियां याद आ गई,,देख कर बाधा विविध बहु विघ्न घबराते नहीं । रह भरोसे भाग्य के दुख भोग पछताते नहीं । जो लोग कर्मठ होते हैं वे किसी भी बाधा से घबराते नहीं और भाग्य के भरोसे बैठकर दुख नहीं भोगते ,वे पछताते भी नहीं है । कर्मवीर अपनी योग्यता का दिखावा नही करते हैं वह अपनी लगन और मेहनत से अपनी किसी भी परेशानी को दूर कर सकते हैं। ऐसे लोग सदा सुखी रहते हैं, एवं ईश्वर के करीब रहते हैं । कर्मवीर किसी भी काम को कल पर नहीं छोड़ते जो एक बार सोच लेते हैं करके ही दम लेते हैं। ऐसा कोई काम नहीं है जो कर्मठ व्यक्ति कर नहीं सकता। कर्मवीर अपना समय व्यर्थ की बातों में नहीं गंवाते और किसी काम को कल पर नहीं छोड़ते । वो मेहनत से जी ही नहीं चुराते हैं। कर्मवीर लोग अपनी कार्यकुशलता के दम पर दूसरों के लिए उदाहरण बन जाते हैं। कृष्ण जी ने गीता में कर्म का योग सुना कर पूरे विश्व को संदेश दिया है ।रामायण में भी तुलसीदास जी ने लिखा है ,,, कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। जो जस करहि सो तस फल चाखा । कर्मवीर होना गर्व की बात है ,ऐसे लोग सभी को प्रिय होते हैं व ईश्वर के करीब होते हैं । सच मे परिश्रम से बड़ा कोई कर्म नही कर्म से बड़ा धर्म नही ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
" मेरी दृष्टि में " कर्म से आगे कुछ नहीं है । बिना परिश्रम के कर्म नहीं होता है । सब कुछ कर्म में ही निहित होता है। कर्म से बहुत कुछ यानि सब कुछ बदला जा सकता है । यही कर्म की महिमा है। जो जीवन दर जीवन चलतीं रहतीं है । सिर्फ़ जीवन चक्र मे समय के अनुसार सब कुछ बदलता है। परन्तु कर्म चलते रहते हैं।
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