आज के युग में हर कोई एक दुसरे से आगे निकलना चाहता है,चाहे मेहनत मजदूरी का कार्य हो शिक्षा के प्रति जागरूकता हो, सर्बिस लेने की दौड़ हो हर जगह लोगों की भीड़ देखने को मिलती है लेकिन कामयाबी उन्हीं को मिलती है जो अपने कर्तव्य के प्रती ईमानदारी,मेहनत व समय के अनुकूल चलते हों लेकिन सही कामयाबी उन्हीं को ही मिलती है जिन्होंने अपने लक्ष्य को साध कर मेहनत की हो क्योंकि अपनी सही मंजिल पर पहुंचने के लिए लक्ष्य को अपनाना अति उत्तम माना गया है ,उससे तनिक भी ध्यान हटाकर चलना मंजिल से पीछे धकेल सकता है,तो आज इसी पर चर्चा करते हैं कि यदि लक्ष्य सर्वोपरि हो तो आलोचना कोई मायने नहीं रखती, सत्य भी है जो व्यक्ति अपने लक्ष्य के प्रति पूरी तरह केंद्रित रहता है और बाहरी टिप्पणियों और आलोचनाओं की प्रवाह नहीं करता केवल अपने लक्ष्य को ध्यान में रख कर नियमपूर्वक कार्य करता है उसे दुनिया की कोई ताकत नहीं हरा सकती बशर्ते लक्ष्य के प्रति निशाना अर्जुन की आंख सा होना चाहिए फिर चाहे कोई निन्दा करे या आलोचना जीत तो कर्ता की निश्चित होगी क्योंकि ऐसे कर्ता का ध्यान केवल अपने उदेश्य को प्राप्त करने पर होता है न कि दुसरों की राय लेने या आलोचना सुनने की तरफ,ऐसे व्यक्ति असफलताओं से भी सीख लेकर आगे बढ़ने का प्रयास करते हैं,यह भी मत भूलें कि जो लोग अपने लक्ष्य के प्रति संचेत रहते हैं उनको लोगों की टिप्पणियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता, अक्सर देखा गया है कि लोग लक्ष्य के खिलाफ बोलने का प्रयास करते हैं या उनकी कामयाबी पर शक जताते हैं लेकिन जिस किसी ने अपने लक्ष्य को ताक पर रख कर अपनी मंजिल तक पहुँचने का रास्ता साध लिया हो वो लोगों की आलोचना की प्रवाह नहीं करते, अन्त में यही कहुंगा कि जब हम लक्ष्य को अपना कर कार्य की शुरूआत करते हैं तो हमें अनेक समस्याएं घेर सकती हैं मगर उनकी प्रवाह किए बिना जो अपने लक्ष्य को अपनाये रखते हैं वही अपनी मंजिल तक पहुंचने में कामयाब होते हैं कईबार अपने परिवार वाले भी हौंसला तोड़ने का प्रयास करते हैं लेकिन उनको भी समझाना पड़ता है कि एक न एक दिन हम मंजिल हासिल करके रहेंगे ताकि घर वालों का भरोसा भी न टूटे और अपना मनोबल भी न टूटे,हमें अपने आप पर यकीन रख कर व अपना लक्ष्य मान कर ही कदम बढाना चाहि नहीं तो जीवन नीरस और धीमा पड़ सकता इसलिए किसी की बातों को किसी की समस्या को अपने लक्ष्य से बड़ा मत समझो सिर्फ अपना फोकस जारी रखे, हमारी कामयाबी ही सभी के लिए मुँह तोड़ जवाब बनेगी,इसलिए भावनाओं को स्वीकार करें और अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें तो बाहरी आलोचनाएँ कम महत्वपूर्ण लगने लगती हैं जिनका हमारे भविष्य पर कोई असर नहीं होता, यही सोच रखो,न पूछो की मेरी मंजिल कहां है,अभी तो सफर का इरादा किया है,न हारूंगा हौंसला उम्र भर,ये मैने खुद से वादा किया है।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
यदि आपका लक्ष्य सर्वोपरि है तो फिर आलोचना कोई मायने नहीं रखती... कुछ हद्द तक कहने सुनने में ठीक लगती है किंतु...हममें प्रशंसा और आलोचना दोनों को स्वीकार करने का गुण होना चाहिए। प्रशंसा और आलोचना दोनों ही हमारे जीवन का हिस्सा है। प्रशंसा हमें प्रेरित करती है वहीं आलोचना हमें स्वयं के गुणों, अवगुणों का आत्म-विश्लेषण करने का मौका देती है।हममें जो कमजोरियां हैं उसकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित करती है। कहने का तात्पर्य यही है कि आलोचना हमें हमारी कमजोरियों को सुधारने का मौका देती है। बुद्ध के अनुसार संसार में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जिसकी हमेशा प्रशंसा या आलोचना ही होती रही हो...जब हम इस सत्य को स्वीकार लेते हैं तो अत्यधिक प्रशंसा और आलोचना का हम पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता एवं हमारे मन में स्थिरता आ जाती है एवं इसका सुखद परिणाम यह होता है... हममें नई उर्जा का संचार होता है हम किसी भी स्थिति का सामना(सुख-दुख) अथवा जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव का सामना धैर्य पूर्वक कर सकते हैं। जीवन में आने वाली हर चुनौतियों का सामना निडरता से कर आनंद की अनुभूति ले सकते हैं।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
यदि हम किसी भी क्षेत्र में लक्ष्य निर्धारित कर आगे बढ़ेगें तो हमें अति सफलता अर्जित होती है, जीवन में लक्ष्य सर्वोपरि होता है। नहीं तो हम एक साथ कई काम करने बैठ जाते है, यहाँ भी चले जाए , वहाँ भी चले जाए, ऐसे में हमारा अपना काम हो नहीं पाता और हमें थकावट महसूस होने लगती है, याददाश्त कम होने लगती, कुछ ही देर में भुलने की परम्परा प्रारंभ हो जाती है। भले ही हमारा व्यवहार कार्य क्षेत्र, परिचय बढ़ता जरुर है, भले ही हमें अच्छा जरुर लगता है, लेकिन आलोचना का सामना भी करना पड़ता है, क्यों ऐसा कार्य करे, जो आलोचना से ग्रसित हो जाए। जैसा कि घर का मुखिया होता है, उसे तो सबकी ओर ध्यान देना होता है, उसकी आलोचना होती है, यदि आप का लक्ष्य सर्वोपरि है, फिर आलोचना कोई मायने नहीं रखती है। हमारे अपने ही आलोचना करते है, दूसरों को इससे मतलब नहीं रहता है। स्वयं तो आगे बढ़ नहीं सकते, दूसरों की आलोचना कर समय पास करते रहते है। यही जीवन का लक्ष्य सत्य है.....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
आलोचनाओं से वे लोग प्रभावित होते हैं जो लक्ष्य विहीन होते हैं या अपने लक्ष्य को महत्वपूर्ण ही नहीं समझते। जिनके लिए लक्ष्य सर्वोपरि होता है उनकी आँख अर्जुन की तरह अपने लक्ष्य मछली की आँख पर होता है। उन्हें फिर ना कुछ और सुनाई देता है और ना दिखाई देता है। ऐसे ही लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करते हैं। दिग्भ्रमित व्यक्ति को अपने लक्ष्य के अतिरिक्त सब कुछ सुनाई देता है सब कुछ दिखाई देता है। ऐसे व्यक्तियों के लिए लक्ष्य प्राप्त करना कठिन ही नहीं असंभव होता है। चुनाव तो व्यक्ति को स्वयं करना है कि उसके लिए सर्वोपरि क्या है उसका लक्ष्य या आलोचना? यह चुनाव ही उसकी सफलता-असफलता का मार्ग निर्धारित करेगा।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
सबके जीवन में कोई न कोई लक्ष्य होता है किसी का बड़ा किसी का छोटा. जितना बड़ा लक्ष्य उतनी ही ज्यादा मेहनत. कई बार होता है कि हम कोई बड़ा लक्ष्य को लेकर चलते हैं तो हमारे बहुत सारे आलोचक कुकुरमुत्ते की तरह पैदा हो जाते हैं. लेकिन हमें उससे कोई मतलब नहीं रखनी चाहिए. सिर्फ अपने लक्ष्य पर ध्यान देना चाहिए. कोई भी अच्छा कार्य करने पर बाधाएं आती रहती हैं. आप अच्छा काम करेंगे तो बहुतों को अच्छा नहीं लगेगा. और कभी-कभी ऐसा भी होता है जब हमारा लक्ष्य अच्छा होता है तो कई मददगार भी आ जाते हैं. इसलिए ये बात सत्य है कि यदि हमारा लक्ष्य सर्वोपरि है तो आलोचना कोई मायने नहीं रखती है.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - प. बंगाल
जब इंसान अपने जीवन का कोई बड़ा लक्ष्य तय करता है, तो उसकी ऊर्जा, ध्यान और समर्पण उसी ओर केंद्रित हो जाते हैं। उस स्थिति में आसपास की नकारात्मक बातें या आलोचनाएँ महत्व खो देती हैं। आलोचना दो प्रकार की होती है—रचनात्मक (जो हमें सुधारती है) और नकारात्मक (जो सिर्फ़ गिराने के लिए होती है)। यदि व्यक्ति अपने लक्ष्य को सर्वोपरि मानता है, तो वह केवल रचनात्मक आलोचना को अपनाता है और बाकी को अनसुना कर देता है। जो लोग इतिहास में बड़े लक्ष्य लेकर चले—चाहे वह महात्मा गांधी हों, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम हों या खेल जगत के सितारे—उन्हें आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने लक्ष्य पर नज़र रखी और अंततः वही आलोचना ताली में बदल गई। उदाहरण :-
मान लीजिए, एक विद्यार्थी का लक्ष्य डॉक्टर बनना है। पढ़ाई में व्यस्त रहने पर उसके मित्र कह सकते हैं—“तुम मज़ा नहीं लेते, हमेशा किताबों में डूबे रहते हो।” अगर विद्यार्थी आलोचना सुनकर हताश हो जाए, तो लक्ष्य से भटक सकता है।लेकिन यदि वह अपने सपने को सर्वोपरि मानकर चलता है, तो वही मेहनत भविष्य में उसे सम्मान और संतोष दिलाएगी। यदि लक्ष्य स्पष्ट और दृढ़ है तो आलोचना शोर बनकर रह जाती है, और शोर कभी भी पथिक को उसकी मंज़िल से रोक नहीं सकता।आलोचना पर ध्यान न देकर, उसे सीढ़ी बनाकर आगे बढ़ना ही सफलता का रहस्य है।
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जीवन में प्रत्येक सफल व्यक्ति को आलोचना और विरोध का सामना करना पड़ता है। परन्तु जब उद्देश्य महान और लक्ष्य स्पष्ट हो, तो बाहरी आवाज़ें हमारी दिशा या गति को नहीं रोक सकतीं। जैसे हाथी अपनी गरिमा और स्थिरता के साथ चलता है और राह में खड़े भौंकते कुत्तों से विचलित नहीं होता, वैसे ही जो व्यक्ति अपने संकल्प और उद्देश्य में दृढ़ है, वह तुच्छ आलोचनाओं या असंतोष से प्रभावित नहीं होता। यह विचार हमें सिखाता है कि सफलता और आत्म-सम्मान केवल स्थिरता, धैर्य और अपने लक्ष्य के प्रति अडिग विश्वास से प्राप्त होते हैं, न कि आलोचनाओं से विचलित होकर। इसलिए, आलोचना को केवल पृष्ठभूमि का शोर समझें और अपने उद्देश्य की ओर अडिग रूप से बढ़ते रहें। भले ही मार्ग में माननीय न्यायालय की खंडपीठों के विद्वान न्यायाधीश भी दिवार बनें अथवा जनहित याचिकाओं को फ्रिवोलस मानकर आर्थिक दण्ड भी क्यों न लगा दें। परन्तु वीर धीर पुरुष अधीर नहीं होते हैं। वह तो उक्त असंवैधानिक एवं असंसदीय आलोचनाओं को पुष्प वर्षा मानते हुए राष्ट्रहित में प्रायः आगे बढ़ते ही चले जाते हैं
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
यदि आपका लक्ष्य सर्वोपरि है !यदि आपका लक्ष्य निर्धारित जीवन का आधार है ! आत्म-विश्वास बढ़ा आपआलोचनाओं का सामना करने में सक्षम होते हैं ! ध्यान केंद्रित कर अपने लक्ष्य तक पहुँचने में कामयाब हो जाते है ! आलोचनाओं को नजरअंदाज नही कर सकते , अपनी कमियों को सुधार कर समीक्षक ही आलोचक बन आपके श्रेष्ठता को साबित कर दुनिया के सामने आपके लक्ष्य कर्म हुनर आँक कर आपकी गरिमा महिमामंडित कर ,विश्व के विभिन्न क्षेत्रों में आपका योगदान सराहनीय उपलब्धियों में शामिल कर आस्कर ,पद्मश्री ,साहित्यसंस्कृति ,शिक्षा ,सामाजिकता धर्म राजनीति से जोड़ आपके लक्ष्य तक पहुँचा , आपको सर्वोप्रिय बनाते ! फिर कोई ये नहीं कह आलोचना मायने नहीं रखती ,इसीलिए हम कहते है ,मन लगे ना लगे ,मन को लगाना आना चाहिए! ध्येय सुनिश्चित हो तो सफलता निश्चित है , अपनी बात रखने में निपुणता होनी चाहिये !कल किसने देखा जंग जीत की बाजी होनी चाहिये । ग़द्दार बहुत देखे फ़ौलादी जिगर होनी चाहिये ! फ़तह तालीम पूरी करने धेय होना चाहिये !अपनी बात कहने का दम दंभ होनी चाहिए !मुक़्क़दर इंसान की फ़ितरत होनी चाहिए !हौसले सिकंदर सा बुलंद होना चाहिये !जीत इंसान की फ़ितरत होनी चाहिए !उद्देश्य पूरा करने के लिए क़लम की धार पैनी होनी चाहिये ! समीक्षा आलोचना सहने की आदत होनी चाहिये ! उद्देश्य पूरा कर मन को मंदिर बनाना चाहिये ! दीया दे कर तो देखिये उजड़े चमन में रोशनी होती है !हर काम ख़ुद्दारी से करने का जिगर होना चाहिये ! उत्साह वर्धन करना आना चाहिये ! झूठी तारीफ़ों से बचना चाहिये !वक़्त में मलहम लगा ! हौसले बुलंद होना चाहिय ! ध्येय हो सुनिश्चित तो सफलता निश्चित हैं ज़िंदगी की जंग हालातो से जीती जाती है !अधूरे सपने पुरा करने उम्र निकल जाती है ! सत्य की क़लम तूलिका धेय जगा चल जाए तो देश दुनिया की हालात बदल जाती हैं !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
जीवन में किसी लक्ष्य को लेकर चलना आवश्यक ही नहीं , महत्वपूर्ण भी है। इससे सबसे बड़ा लाभ यह है कि भटकाव पैदा नहीं हो पाता और लक्ष्य प्राप्ति के लिए निर्धारित पथ पर चलते रहते हैं। निरंतरता बनी रहती है। यह भी कटु सत्य है कि कोई भी लक्ष्य साधना और उस तक पहुंचने में अध्ययन, अभ्यास और अवसर की गहन आवश्यकता पड़ती है। सजग भी रहना पड़ता है। सदैव हिम्मत और हौसला बनाए रखना होता है। भावनाओं और आलोचनाओं पर अंकुश लगाने का जतन कते रहना होता है। ये इतने संवेदनशील मामले होते हैं कि जरा-सा भी डगमगाने पर बहुत बड़ा नुकसान कर सकते हैं। यदि इन से बचाव कर लिया तो लक्ष्य तक पहुंचने में फिर कोई बाधाएं नहीं। बल्कि उल्टा ये लक्ष्य पथ को और आसान करेंगी। क्योंकि आलोचना में जो कमी, खामी या त्रुटियां उजागर होंगी, उन्हें सुधारने का अवसर मिल जाएगा। इससे उत्साहवर्धन होगा, मनोबल बढ़ेगा। सकारात्मकता ऊर्जा का संचयन होगा। इससे सामर्थ्य शक्ति समृद्ध और सशक्त होगी। अत: सार यही कि यदि लक्ष्य सर्वोपरी है, तो फिर आलोचना कोई मायने नहीं रखती है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
लोगों का काम है कहना !!
लोग तो कमी निकलेंगे , आलोचना करेंगे , राह में रुकावटें पैदा करेंगे ,क्योंकि ये उनका काम है , क्योंकि ये किसीकी तरक्की , कामयाबी , सहन नहीं करते !! यदि व्यक्ति का लक्ष्य अथवा मंजिल उसके लिए सर्वोपरि है तो वह इन बातों से विचलित न होकर ,अपनी निर्धारित दिशा मैं आगे बढ़ता जाएगा , वो लक्ष्य को प्राप्त करके ही रुकेगा !! आलोचनाएं तो दृढ़ निश्चय वालों को और प्रेरित करती हैं , लक्ष्य प्राप्ति में !! सच्चे मन से किए गए यत्न , कभी बेकार नहीं जाते वो अंततः सफलता मिलती है अर्थात लक्ष्य प्राप्ति होती है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
बहुत ही सुन्दर विषय है आलोचना तो कुंती पुत्र अर्जुन की भी हुई थी द्रौपदी के स्वयंवर में, किंतु अर्जुन का ध्यान सिर्फ और सिर्फ मछली की आंख पर केंद्रित था। यह तो केवल एक उदाहरण है । यदि हमें अपने लक्ष्य को प्राप्त करना है तो कोई हमारे बारे में क्या कह रहा है यह मायने नहीं रखता। लोगों का काम बातें बनाना है वह तो बातें बनायेंगे ही परंतु लोगों की बातों से परेशान होने से जिंदगी नहीं चल सकती। यदि हम लोगों की आलोचनाओं से सबक लेते हैं तो और भी जल्दी अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।
- संजीव दीपक
धामपुर- उत्तर प्रदेश
बिल्कुल सत्य है कि लक्ष्य हमारा ऊंचा एवं सर्वोपरि होगा, तो आलोचना हमारा कुछ नहीं बिगाड़ पाएगी। हमें आलोचना से घबराना नहीं चाहिए।उसका प्रतिकार करने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए।हमारा लक्ष्य जितना बड़ा होगा , हम जितना अधिक परिश्रम और संघर्ष करेंगे,सफलता मुझे चरण चूमेगी।परिश्रम के सामने आलोचना का कोई महत्व नहीं रह जाता।हम लक्ष्य की प्राप्ति के लिए परिश्रम,लगन,संघर्ष आदि के गुणों को अपनाएंगे,कामयाब अवश्य होंगे।हमारा लक्ष्य सर्वोपरि होना चाहिए। आलोचना का कोई मतलब नहीं रह जाता।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
लक्ष्य तो हर किसी के लिए जरूरी है, लक्ष्य के बिना जिंदगी अधूरी है। लक्ष्य हमारे जीवन को मुकम्मल करने के लिए अति उत्तम होता है। आलोचना करने वाले तो हर वक्त और हर हाल में करते हैं। हमें आलोचना करने वाले को नज़रंदाज़ कर अपने ध्येय या लक्ष्य पर हीं सदैव ध्यान देनी चाहिए तभी हम सफल हो सकतें हैं।
ReplyDelete- डॉ. पूनम देवा
पटना - बिहार
( WhatsApp से साभार)
ReplyDeleteआलोचना सकारात्मक सुधार योग्य नहीं हो तो ऐसी निन्दा किस काम की…! यह दुश्मनी साधने वाली बात होती है। अगर कोई हितैषी है तो वह समालोचक होता है। वह दूसरे की सफलता का आकाँक्षी होता है। वह सकारात्मक बातें करता है
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
(WhatsApp ग्रुप से साभार)
परम आदरणीय जैमिनी अकादमी परिवार,
ReplyDelete"चर्चा-परिचर्चा" के अंतर्गत मुझे भगवत रावत स्मृति सम्मान से सम्मानित किए जाने पर मैं हृदय से कृतज्ञ हूँ।
यह सम्मान मेरे लिए केवल गौरव का विषय नहीं, बल्कि साहित्यिक उत्तरदायित्व को और गहराई से निभाने की प्रेरणा भी है।
भगवत रावत जी की स्मृति में दिया गया यह सम्मान मुझे निरंतर साहित्य साधना के पथ पर दृढ़ रहने और सार्थक लेखन के लिए संकल्पित करता है।
मैं जैमिनी अकादमी और चयन मंडल का हृदय से आभार व्यक्त करती हूँ तथा उन सभी साहित्यकार साथियों को भी प्रणाम करती हूँ जिन्होंने मुझे स्नेह व प्रोत्साहन दिया।
सादर,
डाॅ.छाया शर्मा, अजमेर, राजस्थान
( WhatsApp से साभार )