ईश्वर चंद्र विद्यासागर स्मृति सम्मान - 2025

      संघर्ष के बिना जीवन संभव नहीं है। संघर्ष से ही जीवन बनता है। जिससे हर मंजिल मिलती है। फिर भी भाग्य की भूमिका जीवन में बनी रहती है। आज का कर्म भविष्य का भाग्य बनता है। ये भाग्य और कर्म का खेल है। यही कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है। जिस पर आयें विचारों को देखते हैं :- 
         संघर्ष से हर मंजिल मिलती है संघर्ष हमें मजबूत बना आत्मविश्वास बढ़ा माता पिता हमेशा कहते जीवन संघर्षों में जीत तुम्हारी ही होगी ! हाथ बढ़ा कर मदद कर आगे बढ़ जाना दोष किसी को ना देना होगा मंज़िल राह खुद ही दिखायेगी जीवन संघर्षों की यही कहानी है ! आदि से अंत तक हमारे प्रबुद्ध बुद्धिजीवी यही कहते आए है !कोई पाप है, तो सिर्फ वो अपने आपको या दूसरों को कमजोर मानना है।आत्मा के लिये कुछ भी नामुमकिन नही हैं !ईश्वर की छवि सत्य आइना तुम ही हो । जिस पल भी देखोगे ,जीवन संघर्ष विश्वास जीत आईना है  धूमिल आईना साफ़ हो जायेगा । भाग्य हमारे कर्म का लेखा जोखा होता है ! जिसे स्वयं के आंकलन से हर काम मिलता है भाग्य हमें अवसर प्रदान करता है और हमारे जीवन को आकार देने में मदद करता है।संघर्ष जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है !चुनौतियों का सामना करने के लिए तैयार रहते है।अनुभवों से आत्म विश्वास पैदा कर सीखने में मदद करता है। सही निर्णय लेने में सक्षम बनाता है। भाग्य हमारे जीवन की दिशा को निर्धारित करने में मदद करता है और हमें अपने लक्ष्यों की ओर बढ़ने में सक्षम बनाता है।नेकी कर दरिया में डाल आगे बढ़ भाग्य के भरोसे ना बैठ क्योंकि ख़ुद ही सत्य का आईना हो ! एक नयी उम्मीद का दीया जलाने के लिये जीते हो । आज से बेहतर कल को बनाना जानते हो पतझड़ के मौसम में हरियाली को ढूँढते ! संघर्ष से हर मंजिल मिलती है ! भाग्य से अंधेरे दूर कर उजाले की और बढ़ते है !

 - अनिता शरद झा

रायपुर - छत्तीसगढ़ 

       पुरानी कहावत के अनुसार कर्म और भाग्य का चोली-दामन जैसा साथ होता है। कोई कुछ भी कहे परंतु इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि कर्म को भाग्य और भाग्य को कर्म प्रभावित करता ही है। किसी भी उद्देश्य को पूरा होना में समय और मेहनत लगती है। यही संघर्ष होता है। धैर्य,लगन, उत्साह और विवेक के साथ सतत किए गए कार्य से ही मंजिल मिलती है। इसमें कभी कोई मुश्किल भी आ जाती हैं, जो बाधित और व्यथित कर देती हैं। यह भाग्य का ही नकारात्मक रूप है, जिसे दुर्भाग्य भी कहा जाता है। इसके विपरीत कभी ऐसा संयोग बनता चलता है कि हमारे हर कार्य में आने वाले माध्यम सरल और सहजता से उपलब्ध होते जाते हैं और कार्य बिना व्यवधान के पूरा होता जाता है। यह भाग्य का सकारात्मक रूप होता है।जिसे सौभाग्य भी कहा जाता है । समझा जावे तो  यही अग्निपरीक्षा का समय होता है। इसी में मन और भाव को दृढ़ता से बांधे रखना है। न तो दुर्भाग्य में हताशा हावी होने दें और न ही सौभाग्य में अहंकार को। दोनों ही विचलित और विघटित करने वाले होते हैं। असफल करने वाले होते हैं। मंजिल से दूर करने वाले होते हैं। सार यही कि संघर्ष से हर मंजिल मिलती है और इस संघर्ष में भाग्य निहित होता है जो हर कर्म निर्धारित करता है और इसका सूक्ष्म भाव यह है कि हमें व्यवहारिक जीवन में नेकी और निष्ठा से निर्वहन करना है, जिससे हमारा भाग्य , सौभाग्य के रूप में हमारे कर्म को सहज और सरल कर, मंजिल को मिलने में आसान करे। 

 - नरेन्द्र श्रीवास्तव

गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

        मानव रूप में जन्म मिलना सबसे बड़ा सौभाग्य है और उससे भी बड़ा सौभाग्य और सुख यह है की मानव रूप में हम स्वस्थ और निरोगी देह लेकर इस संसार में रहें। स्वस्थ मन और स्वस्थ तन लेकर ही हम सारे धर्म और कर्तव्य साध सकते हैं। मनचाहे कर्म करने के अवसर प्राप्त कर सकते हैं। कर्म और संघर्ष एक-दूसरे से परस्पर जुड़े हुए हैं। कर्म को पूर्ण करने के लिए पूर्ण समर्पण के भाव से संघर्ष करना होता है और यही समर्पण और संघर्ष सफलता की भूमिका लिखता है। जैसा हमारा कर्म, उसको करने के लिए जैसा हमारा संघर्ष और प्रयास रहेगा उसी अनुसार फल और परिणाम की प्राप्ति होगी। अपनी मंजिल, अपना लक्ष्य भी तभी प्राप्त होता। कहा भी गया है..

“कर्म प्रधान विश्व करि राखा 

जो जस करइ सो तस फल चाखा”

तो कहने का अर्थ यही है कि सही कर्म का चुनाव, तन-मन और धन से किया गया भगीरथ प्रयास, श्रम ही हमें इच्छित मंजिल, लक्ष्य तक पहुँचने का कार्य करते हैं। जो मिला है उस भाग्य को सौभाग्य में परिवर्तित करने का एक ही मार्ग है लक्ष्य पर आँख और भगीरथ प्रयास।

 - डा० भारती वर्मा बौड़ाई 

     देहरादून - उत्तराखंड

        किसी भी मंजिल को पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है क्योंकि संघर्ष से ही मंजिल मिलती है. और भाग्य से ही कर्म मिलता है या बनता है. भाग्य में जैसा कर्म लिखा रहेगा हम वैसा ही कर्म करेंगे. जैसे दूध को मथने से ही मक्खन निकलता है यानी दूध के साथ संघर्ष करना पड़ता है तब मक्खन निकलता है. उसी तरह मंजिल को पाने के लिए उसके रास्ते में आने वाले हर चीज़ से संघर्ष करना पड़ता है. तभी मंजिल मिलती है. भाग्य के अनुसार ही मनुष्य  इस धरती पर जन्म लेता है कि किसको क्या करना है. कब कैसे कहाँ कौन से कर्म करना है. इसलिए ये बात सटीक लग रहीं हैं कि संघर्ष se मंजिल मिलती है और भाग्य से हर कर्म मिलता है. 

 - दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "

      कलकत्ता - प. बंगाल 

        संघर्ष के बल पर जो मंजिल मिलती है। उसमें अलग ही आनंद होता है। जीवन में संघर्ष एक ऐसी प्रक्रिया है जिस दौर से सभी को कभी न कभी गुजरना पड़ता है। संघर्ष से सफलता की ओर बढ़ते कदम । कहीं फूल तो कहीं शूल बनकर बिखरे रहते हैं।परिश्रम, शारीरिक हो या मानसिक,बुद्धि,बल,सभी का इस्तेमाल करना पड़ता है। इससे आत्मविश्वास प्रबल होता ही है साथ ही कार्य के प्रति एकाग्रता,मन को ध्यान को केन्द्रित रखती है। संघर्ष का अभिप्राय लड़ने-झगड़ने से नहीं। जूझना, संकल्पित भाव से लीन हो जाना, गंतव्य तक पहुंचने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाना, पसीना बहाना, बुद्धि बल का प्रयोग,साहस जुटाना होता है। इसके आधार पर सफलता जीवन में आनंद ही आनंद का समावेश करता है। अंतर्मन में विशेष आनंद की अनुभूति होती है। दूसरी ओर भाग्य से हर कर्म मिलता है। कर्म करते जाइये,भाग्य साथ देगा, सफलता मिलेगी ही।भाग्य के द्वार भी ऐसे नहीं खुलते वे भी कर्म से आबद्ध रहते हैं।भाग्य बनाने में कर्म की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। सकारात्मक सोच, कार्य के प्रति दृढ़ विश्वास,लगन हमें कर्म को पूजा मानकर आगे बढ़ने को प्रेरित करता है। मनुष्य अपने भाग्य से कर्म प्राप्त करता है। कर्मवीर सदैव अडिग होकर जीवन पथ पर तैनात रहता है। कर्म करते जाता है।उस हिसाब से भाग्योदय होता है।

 - डॉ. माधुरी त्रिपाठी 

   रायगढ़ - छत्तीसगढ़

      संघर्ष से हर मंजिल मिलती है और भाग्य से हर कर्म मिलता है। उक्त विचार जीवन का सार है। संघर्ष वह शक्ति है जो मानव को निरन्तर आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है। व्यक्ति जब कठिनाइयों से जूझता है , चुनौतियों का सामना करता है तो उसमें धैर्य, साहस और आत्मविश्वास का विकास होता है, जिससे वह मंजिल तक पहुँचने में सफल होता है। दूसरी ओर, भाग्य भी तभी साथ देता है जब कर्म पूर्ण निष्ठा से किया जाए। भाग्य और संघर्ष दोनों ही जीवन के पहिये के दो पाट हैं; केवल भाग्य पर निर्भर रहना आलस्य को जन्म देता है और केवल संघर्ष बिना विश्वास के अधूरा है।  इसीलिए संघर्ष को जीवन का आधार मानते हुए सत्कर्म करना आवश्यक है। यही संगम व्यक्ति को ही नहीं बल्कि राष्ट्र को भी ऊँचाइयों पर ले जाता है, तिरंगे को सदैव बुलंदियों पर लहराता है और समाज को भी प्रेरणा प्रदान करता है।   

 - डॉ. इंदु भूषण बाली 

 ज्यौड़ियॉं (जम्मू)  - जम्मू और कश्मीर 

        संघर्ष और भाग्य दोनों ही जीवन के दो पहिये हैं। केवल संघर्ष से ही मंज़िल पाना संभव होता है, क्योंकि संघर्ष हमें आगे बढ़ने का साहस, धैर्य और आत्मबल देता है। वहीं भाग्य, हमारे कर्मों के अनुरूप अवसर और दिशा प्रदान करता है। संघर्ष बिना सफलता अधूरी है, और कर्म बिना भाग्य निष्फल है। भाग्य दरवाज़ा दिखाता है, संघर्ष उस दरवाज़े को खोलता है। जीवन का सत्य यही है कि भाग्य और संघर्ष मिलकर ही मंज़िल तक पहुँचाते हैं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि,“भाग्य अवसर देता है, संघर्ष उपलब्धि दिलाता है।”

 - डाॅ.छाया शर्मा

अजमेर - राजस्थान

     जीवन में जब तक संघर्ष न हो तब तक मजा ही नहीं आता है। संघर्ष से ही मंजिल मिलती है। हम अगर सुख ही सुख में रहेगें तो उसके आदी हो जाएगें, अगर अचानक दु:ख आ जाए, फिर अत्यन्त परेशानियों का सामना करना पड़ता है, जिसके परिप्रेक्ष्य में हृदयाघात होने की संभावना रहती है। इसलिए सुख-दु:ख बराबर होने से जीवन जीने में भी मजा आता है। यह भी सच है, भाग्य से ही हर कर्म मिलता है, अगर हम भाग्य के भरोसे रहेंगे, तो कर्म पीछे रह जाएगा। अतएव कर्म करना भी जरुरी और तभी जीवन में संघर्ष, सफलता अर्जित हो सकती है....

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

           बालाघाट -मध्यप्रदेश

     संघर्ष ही जीवन का मूल है | जो व्यक्ति संघर्ष से डरता है उसे सफलता नही मिलती और अगर किसी कारण वश सफलता मिल भी जाती है तो वह टिकती नही है |भाग्य सिर्फ रास्ता दिखा सकता है पर कर्म से ही मन्जिल हासिल की जा सकती है, इस का एक सबसे सरल उदाहरण है कि आप को बहुत भूख लगी है और आप के भाग्य में भोजन है किंतु उसे खाने के लिए आप को  कर्म करना होगा तभी वह आप की भूख शांत कर सकता है, अन्यथा वह भोजन आप की क्षुदा शांत नही कर सकता तो भाग्य एक साधन है और कर्म एक प्रक्रिया उसे पाने की! कर्म ही जीवन है, भाग्य  की कुंजी 

 - संध्या चतुर्वेदी

बंगलौर - कर्नाटक 

      यह बात परखी हुई है कि संघर्ष के बिना सफलता नहीं मिलती क्योंकि ‌संघर्ष ही व्यक्ति को मजबूत बना कर ज्ञान  और अनुभव देता है तथा चरित्र का निर्माण करता है जिससे लक्ष्य की तरफ बढ़ने का मौका मिलता है और हम मंजिल तक पहुँचने में कामयाब हो जाते हैं, लेकिन कुछ लोग संघर्ष कम करते हैं और भाग्य को  ज्यादा कोसते हैं ऐसे  लोग कर्महीन  की गिनती में आते हैं और अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाते हालांकि  भाग्य उन्हें कर्म की तरफ धकेलने का कार्य करता है तो आईये आज इसी विषय पर चर्चा करते हैं कि संघर्ष  से हर मंजिल मिलती है और भाग्य से हर कर्म मिलता है, मेरा मानना है कि संघर्ष जीवन का अभिन्न  अंग है जो हमें सशक्त बनाता है और जीवन के उदेश्यों को प्राप्त करने के लिए तैयार करता है जिसके लिए आत्मविश्वास, निरंतर , प्रयास,लगन इत्यादि मिलकर हमें मंजिल तक पहुंचाने में कामयाबी देते हैं, यह भी  सत्य है कि संघर्ष हमें मजबूत ही नहीं बनाता बल्कि हमारे चरित्र निर्माण व्यक्तित्व विकास में भी सहायक होता है,अगर भाग्य की बात करें तो भाग्य से कर्म नहीं मिलता बल्कि कर्म से भाग्य का निर्माण होता है और भाग्य को हमेशा पिछले कर्मों का परिणाम माना जाता है तथा वर्तमान के कर्म ही भविष्य ‌के भाग्य को बनाते हैं और बिना कर्म के भाग्य अधूरा  रह जाता है इसलिए व्यक्ति को सफल होने के‌‌‌ लिए मेहनत और कर्म की जरूरत रहती है,लेकिन भाग्य एक ऐसी‌ चीज है जिसे नियंत्रत नहीं किया जा सकता,माना कि नए अवसर मिलने में भाग्य का‌ योगदान होता है लेकिन अवसरों को सफलता में बदलने के लिए संघर्ष की जरूरत पड़ती है केवल भाग्य पर निर्भर रहने से कामयाबी मिलना नामुमकिन है इसलिए भाग्य हमेशा कर्म से जुड़ा होता है और बिना कर्म के सफलता नहीं मिलती और बिना भाग्य के  कर्म करने का अवसर नहीं मिलता अन्त में यही कहुंगा कि भाग्य बना हुआ नहीं मिलता संघर्ष ही उसका निर्माण करता है इसलिए भाग्य के कुछ हद तक हम खुद ही निर्माता हैं और कर्म का योगदान व्यक्ति के जीवन को दिशा और आकार देता है जबकि भाग्य कर्मों का ही परिणाम है लेकिन किस कार्य का परिणाम अच्छा होगा या बुरा यह भाग्य  की गति और ईश्वरीय  शक्ति पर निर्भर करता है।

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

   जम्मू - जम्मू व कश्मीर 

     खुशनसीबी आपको बार-बार दस्तक नहीं देती,अगर इसे भी आप अनसुना कर देंगे तो कुछ नहीं हासिल होगा।अक्सर आलस्य में मनुष्य अपने भाग्य को टालता रहता है अर्थात् कर्महीन व्यक्ति कभी अपना भाग्य नहीं बदल सकता।भाग्य से आपको अवसर मिलता है कर्म करने के लिए,और इस कर्म को करने में संघर्ष का सामना भी करना पड़ता है और संघर्ष के पश्चात् लक्ष्य भी पूर्ण होता है। श्रीकृष्ण कर्मयोगी हैं,श्रीराम कर्मयोगी हैं।यदि रानी कैकेयी राम जी को वनवास न दिलवातीं तो राम का  लक्ष्य कभी पूरा न होता।

- वर्तिका अग्रवाल 'वरदा'

  वाराणसी - उत्तर प्रदेश 

             संघर्ष से हर मंजिल मिलती है और भाग्य से हर कर्म मिलता है। कहा भी तो है सकल पदार्थ है जग माहि।करमहीन नर पावत नाहि।यानि कर्म किए बिना कुछ नहीं मिलता और कर्म का अवसर हमारे पूर्व कर्मों के अनुसार ही मिलता है हमें।यह संसार कर्म प्रधान ही है।कहा भी गया कि कर्मप्रधान विश्व रचि राखा।जो जस करहिं हो तब फल चाखा।अब रही बात मंजिल की तो सबकी अपनी अपनी यात्रा और अपनी अपनी चाल और व्यवस्था है। अपने अपने मार्ग हैं और अपने अपने संघर्ष है। इसके साथ ही संघर्ष से निपटने के अपने अपने तरीके भी। इतना सुनिश्चित है कि कर्म से ही भाग्य बनता है और भाग्य से ही कर्म मिलते हैं।यह भी सुनिश्चित है कि कि किसी भी मंजिल कर्म पथ संघर्ष विहीन नहीं होता।

- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'

   धामपुर - उत्तर प्रदेश 

     संघर्ष ही जीवन है और जीवन ही संघर्ष है  यह सत्य है कि कई बार कर्म क्षेत्र भाग्य से मिलता है। लेकिन उसे कर्म को पाने के लिए भी संघर्ष करना पड़ता है। कभी-कभी कर्म करने पर भी भाग्य साथ नहीं देता। लेकिन कर्म की निरंतरता से दक्षता प्राप्त होती है।यही दक्षता कर्म क्षेत्र प्राप्त करने में सहायक सिद्ध होती है। इसलिए कहा गया है कि कर्म ही धर्म और पूजा है। जीवन का सार कर्म द्वारा जीवन को सार्थक बनाना है। हमने देखा है की कई बार संघर्ष करने के बावजूद भी मंजिल नहीं मिलती। क्योंकि कई बार मंजिल पाने के लिए भी भाग्य का होना आवश्यक है वास्तव में जीवन में कर्म ही श्रेष्ठ है  लेकिन श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए भाग्य का साथ होना बहुत जरूरी है। इसलिए मंजिल पाने के लिए कर्म और कर्म के लिए भाग्य का होना आवश्यक है।

- डॉ. रविन्द्र कुमार ठाकुर 

 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 

   मनुष्य को भाग्य से सिर्फ कर्म मिल सकता है।कहने का तात्पर्य कुछ काम ही मिल सकता है।अगर हमें जिंदगी में आगे बढ़ना हो तो संघर्ष करना पड़ेगा।इंसान को संघर्ष करने से मंज़िल अवश्य  मिलती है।एक छोटी सी चींटी बार_बार प्रयास से दीवार पड़ चढ़ने में सफल हो जाती है।अगर मनुष्य संकल्प एवं संघर्ष के सहारे अपना लक्ष्य प्राप्त करना चाहे तो सफलता मिलेगी और हम अपनी मंज़िल पाने में अवश्य सफलता हासिल कर लेंगे।अगर मैंने आई ए एस के लिए मंज़िल पाना चाहा है और उसके लिए परिश्रम तथा संघर्ष जारी रखा है, सफलता एक दिन चरण चूमेगी।अतः हमें परिश्रम एवं संघर्ष पर अडिग रहना चाहिए।

    - दुर्गेश मोहन

    पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " संघर्ष और भाग्य के बीच  कर्म ही सब कुछ होता है। बाकि तो अपने आप चलता रहता है। कभी संघर्ष , कभी भाग्य    । परन्तु कर्म के बिना कुछ नहीं है। कर्म से भाग्य बनता है। कर्म के लिए संघर्ष करना पड़ता है।‌ यही सच्चाई है। यही शुरुआत है ।‌यही अन्त है।

        - बीजेन्द्र जैमिनी 

     (संचालन व संपादन)

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