काका हाथरसी स्मृति सम्मान - 2025

        जिंदगी तो जलेबी की तरह उलझीं होती है। जिंदगी कभी सीधी-सादी नहीं होती है। बल्कि उलझनों भरी जिंदगी होती है । कदम कदम पर समस्या खड़ी रहती है। इसलिए जिंदगी की तुलना जलेबी से की है। बाकी जिंदगी कर्मों का खेल है ।जो जन्म दर जन्म चलता रहता है। जैमिनी अकादमी की इस परिचर्चा का प्रमुख विषय है। कुछ आयें विचारों को देखते हैं :-
         आपने सच कहा आदरणीय यह जिंदगी उलझी हुई है और सड़क के मोड़ों की भांति टेढ़ी- मेढ़ी है। इस जिंदगी की सड़कों में जलेबी के जैसे बहुत मोड़ आते हैं। हर एक मोड़ कुछ न कुछ शिक्षा देकर चला जाता है। इन मोड़ों पर जाने- अनजाने बहुत लोग मिलते हैं। जिनसें बहुत सी उम्मीदें होती हैं कि वे हमारा साथ देंगे। दुःख- सुख में सुनेंगे, लेकिन सभी साथी एक मोड़ तक साथ देते हैं और दूसरे मोड़ पर बिछुड़ जाते हैं। हमारी सारी आशाओं पर पानी फिर जाता है और तो और अपने ही घर के सदस्य साथ छोड़ देते हैं। जो बहन भाई मां-बाप के घर में घी- खिचड़ी होते हैं वही बड़े होकर, एक पेट के होने के बावजूद भी कई बार एक दूसरे को  पूछते तक भी नहीं। जिन बेटों को माता-पिता, बेटियों से भी ज्यादा चाहते हैं, वह बेटे भी मां-बाप को छोड़कर बाहर घर बसा लेते हैं। बेटियां भी दिखावे मात्र के लिए एक दिन हाल-चाल पूछने आ जाती हैं। फिर किस से और कैसी आशा रखें, जब अपने ही साथ नहीं देते, दूसरे क्या देंगे। इसलिए सबकी आशा छोड़कर जागरूक होकर जीएं। दूसरों के भरोसे जीने वाले जलेबी की भांति उलझ कर निराश और दुःखी रहते हैं। अपना दीप स्वयं बनें। 

  - डॉ. संतोष गर्ग 'तोष'

    पंचकूला - हरियाणा 

     जिस तरह जलेबी को तपती आग की कढ़ाई में तला जाता है,फिर सिंदूरी कलर,चासनी में डाल कर निकाला जाता है, जो कम खर्च में स्वादिष्ट बन जता है, जिसमें सामग्री भी कम, जिसकी कीमत भी कम जिसे आमजन बड़े चाव से खाता और रसास्वादन करता है। इसी परिदृश्य में जलेबी की तरह उलझीं हुई है जिंन्दगी। फिर आशा किस से, किस की आशा। हम मायाजाल में फसते चले जाते है, जीवन के उस पहलूओं को हल करने लग जाते है, जहाँ इच्छा शक्ति कम नहीं होती, उलटे बढ़ने लग जाती है, तरह-तरह के ऋण लेने लगता है, ऋण मुक्त होने में समय लगता है और हम आशा किससे किस तरह कर सकते है, इसी सोच विचार में स्वयं एक दिन मुक्त हो जाता है.....

- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

            बालाघाट - मध्यप्रदेश

          जलेबी का हमारी जिंदगी से क्या ताल-मेल किंतु सच है यह कथन भी कि जिंदगी  जलेबी के जैसी घुमावदार बनकर रह गई है अथवा जलेबी की तरह उलझी सी लगने लगी है। आज की भागदौड़ वाले जीवन में जिंदगी झंड बनकर रह गई है। इतनी भागदौड़ के बाद भी यदि जीवन हताशा से भरा हो, अपने ही द्वारा उठाए गए कामों से जीवन में शांति ना मिले, तो वह किससे आशा करें जो उसकी उलझन को सुलझा सकें। हमसे तो अच्छी कड़ाही से निकली उलझी हुई वह जलेबी है जो चाशनी में डूबकर संतोष तो देती है किंतु हम हैं जो जीवन की सांसारिक उलझन में एक बार फस जाते हैं फिर जीवन भर निकल नहीं पाते। बाहर से तो हम हॅसते हैं किंतु दिल रोता है। ऐसे में हम किससे और किस बात की आशा रखें । जीवन को उलझी हुई जलेबी की तरह तो हमने बना लिया किंतु जलेबी की तरह जिंदगी में मीठास भी तो आनी चाहिए। कहने का तात्पर्य यह है कि जलेबी की तरह हमें भी अपनी जिंदगी को समय के अनुसार ढाल लेना चाहिए... अर्थात हमें स्वयं ही हताशा से बाहर निकल स्वयं में ही आशा की किरण जगानी चाहिए। मानव का सांसारिक जीवन अनेक जटिलताओं से घिरा रहता है। और इसमें से जो पार हो  गया उसने उलझी हुई जलेबी की तरह जीवन की उलझन को समझ लिया।

- चंद्रिका व्यास 

 मुंबई - महाराष्ट्र 

      ज़िंदगी सचमुच जलेबी की तरह उलझी हुई है—मीठी भी और जटिल भी। इन उलझनों में सबसे बड़ी पीड़ा यह है कि मानव हर बार न्याय की आशा करता है, लेकिन न्याय का मार्ग अक्सर सबसे लम्बा और कठिन प्रमाणित होता है। बार-बार न्यायिक द्वार खटखटाने पड़ते हैं, बार-बार अपनी सच्चाई को प्रमाणित करना पड़ता है। यही जीवनभर का संताप बन जाता है कि न्याय, जिसके अधिकार का संविधान ने प्रत्येक नागरिक को वचन दिया हुआ है लेकिन वह किसी सौगात की तरह दुर्लभ बना दिया गया है। यहां तक कि मुख्य न्यायाधीश भी कल्पना की दुनिया में खो जाते हैं। न्याय की इस आशा में ही इंसान का धैर्य भी कसौटी पर खरा उतरता है। जब तक जीवित है, तब तक न्याय की तलाश बनी रहती है—कभी व्यवस्था से, कभी समाज से, और कभी परमात्मा से। इसीलिए कहा जा सकता है कि ज़िंदगी की उलझनें सहने का असली आधार भी यही है कि कहीं न कहीं, कभी न कभी, किसी न किसी मोड़ पर न्याय अवश्य मिलेगा। क्योंकि न्याय की प्राप्ति की आशा न्यायालय से ही की जा सकती है जिसके सूत्रधार न्यायाधीश ही हैं।  

 - डॉ. इंदु भूषण बाली 

 ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर 

      हर एक व्यक्ति की जिंदगी परेशानियों , दिक्कतों , मुश्किलों , समस्याओं से भरी है !! कहते हैं कि जिंदगी फूलों की सेज नहीं , कांटों भरी है अर्थात मुश्किलों से भरी है !! इसीलिए ये कथन सत्य है कि जलेबी की तरह , उलझी हुई है क्योंकि जलेबी सीधी नहीं , अपितु मोड़ों से भरी है !! इन परेशानियों , मुसीबतों से व्यक्ति को स्वयं ही निकलना पड़ता है , किसीसे कोई आशा करना व्यर्थ है !! जरा सा दर्द सांझा करो , तो लोग समाधान निकलने में सहायता करने के बजाय , जगहंसाई करते है , व तमाशा बना देते हैं  !! स्वयं पर विश्वास करके , स्वयं ही हल निकालना ज़िंदगी है , बिना किसीसे कोई आशा किए !! 

        - नंदिता बाली 

   सोलन - हिमाचल प्रदेश

             एक दम सत्य कथन, ये जिंदगी जलेबी की तरह ही उलझी हुई है. लेकिन जलेबी की तरह ही मीठी भी होती है यदि सबकुछ ठीक ठाक रहता है तब. इस जिंदगी का उलझन दूसरा कोई सुलझा नहीं सकता है. ये स्वयं को ही सुलझाना पड़ता है. इसमें किसी से किसी भी चीज़ की कोई भी आशा रखना बेकार ही साबित होगा. क्योंकि इस जिंदगी के जो भी सुख दुःख हैं सब स्वयं को ही भुगतना पड़ेगा. किसी से कुछ भी आशा करना बेकार है क्योंकि कोई आशा पूर्ण करने मे पूरी तरह सक्षम नहीं है. जिससे आशा कीजिएगा और में पता चलेगा वो किसी और से किसी और चीज़ के लिए आस लगाए बैठा है. इसलिए उलझी जिंदगी को जलेबी की तरह तोड़-तोड़ खा जाना ही उचित होता है. 

 - दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "

      कलकत्ता - पं. बंगाल 

         कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन - - उधो करम की गति न्यारी--कर्म और करम। शब्दों के फेर में बहुत बडी पहेली निहित है। कर्म से करम (भाग्य) बनता है। हम भारतवासी भाग्यवादी हैं। ईश कृपा को भाग्य और प्रारब्ध मान कर हमारा जीवन चलता है। इसलिये हमें परिश्रम की आदत नहीं होती है। लेकिन इस सच से मुंह नहीं चुरा सकते कि परिश्रम से बड़ा कोई करम नहीं। श्रम की महिमा अपरम्पार है। श्रम का फल अवश्य मिलता - - श्रम का फल सदैव मीठा होता है। इसलिये जीवन में धर्म की चिंता ना करें। कर्म को ही सबसे बड़ा धर्म माने। इंसान अपनी रोजी-रोटी की चिंता नहीं करेगा कुछ कमाई-धमाई नहीं करेगा तो   धर्म कार्य के लिए भी पैसा कहां से आयेगा। इसलिये जान ले कि मानव देह पाई है तो कर्म ही पूजा है।

 - हेमलता मिश्र मानवी 

     नागपुर - महाराष्ट्र 

       सभी की जिंदगी में इतनी ऊहापोह है कि सभी अपनी - अपनी उलझनों में उलझे हुए हैं और  उनसे निकल नहीं पा रहे हैं। ठीक जलेबी की तरह। जलेबी की तरह कहना इसलिए भी ठीक है क्योंकि वह घुमावदार तो होती ही है, मीठी भी होती है। जिंदगी में ऊहापोह यानी कि जिंदगी की उलझनें  भी  ऐसी  ही घुमावदार और मीठी यूँ कि स्वार्थ की चाशनी से तर। इस घेरे में सभी हैं। इसीलिए आशा किस से और किस की आशा? यह ऐसा पेचीदा प्रश्न बनकर खड़ा हो गया है जिसका उत्तर किसी के पास नहीं है। एक तरह से देखा जावे तो ये रोना सब रो  रहें हैं लेकिन निकलने के लिए जो असल रास्ता है, उससे कोई जाना नहीं चाहता। यह रास्ता है निस्वार्थ का, त्याग, प्रेम का। जिंदगी रसगुल्ले की तरह है, सुंदर , गोलमटोल, मेवे की, रसदार, यानी निश्चल और निश्छल, विशुद्ध प्रेम और अपनत्व से भरी हुई, परोपकार और सहयोग के भाव लिए। लेकिन फिर वही बात, इस रास्ते से कोई नहीं जाना चाहता, क्योंकि हम प्रतिस्पर्धा और प्रतिद्वंदिता  के मार्ग से चलना चाहते हैं, आगे निकलना चाहते हैं। धक्का देना और धक्का खाना हमारी आदत और दिनचर्या में शामिल हो गया है। सार यह कि " नक्कार खाने में तूती की आवाज " की तरह हताश होकर चुपचाप देखते रहो, भुगतते रहो। अपनी और औरों की भी जिंदगी जलेबी की तरह उलझी हुई।      

 - नरेन्द्र श्रीवास्तव

 गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

        जीवन का मूल स्वभाव ही उलझनों से भरा है। हर इंसान की राह में मोड़, घुमाव, जटिलताएँ आती हैं।जलेबी की तरह घुमावदार होते हुए भी उसका स्वाद मीठा होता है। मतलब, उलझनों के बावजूद जीवन जीने का अर्थ है उसमें मिठास तलाशना। यहाँ आशा का प्रश्न उठाना स्वाभाविक है।आशा किससे? — परिस्थितियों से? भाग्य से? ईश्वर से? किसकी आशा? — अपने से? दूसरों से? समाज से? उत्तर यह है कि आशा भीतर से जन्म लेती है। दूसरों पर टिके रहने से निराशा बढ़ती है। स्वयं के प्रयत्न, स्वयं का विश्वास ही असली आशा है। “जलेबी” एक लोकबोधक, सहज और स्वाद से जुड़ा रूपक है। अगर इसे दार्शनिक लेख की भूमिका बनाएँ तो “उलझन और आशा” चिंतन का विषय बन जाता है।

- डॉ. छाया शर्मा 

 अजमेर - राजस्थान 

         अगर जिंदगी के सफर की बात करें तो असल में हम जिंदगी का हर पल महसूस करते हैं,अपने स्वभाव से जुड़ते हैं अपने दोस्तों मित्रों व रिश्तों को गहराई से समझते हैं और अनुभवों से सीखते हैं  कभी गम कभी खुशी के एहसास  महसूस करते हुए आगे बढ़ते चले जाते हैं और कई उलझनों को  झेल कर जिंदगी के टेडे मेडे मोड़ों का सफर खत्म करते हुए इस जिंदगी को अलविदा कर देते हैं तो आईये आज इसी पर चर्चा करते हैं कि क्या जिंदगी जलेबी की तरह उलझी हुई है इसमें  किसी से किसी बात की आशा नहीं रख सकते, सचमुच जिंदगी जलेबी की तरह  उलझी हुई है क्योंकि यह जीवन जटिल और उलझा हुआ है जिसमें कई समस्याएं  और चुनौतियां  आती हैं जिनमें से गुजरना पड़ता है चाहे आर्थिक तंगी हो,परिवारिक या‌ स्वास्थ्य समस्या हो लेकिन फिर भी हम कोई न कोई आशा रख कर जीते  हैं कि आज नहीं तो कल समस्याओं का समाधान मिल जायेगा लेकिन उलझनें हमारा पीछा नहीं छोड़तीं मगर प्रश्न यह उठता है कि क्या हमें इस जलेबी की तरह उलझी हुई जिंदगी से हार मान लेनी चाहिए या‌ किसी के आगे हाथ फैलाने चाहिए, मेरा ख्याल‌‌ में हमें न हार माननी चाहिए न किसी‌‌ से किसी बात की आशा रखनी चाहिए हमें केवल सकारात्मक सोच लेकर चलना चाहिए और समस्याओं को समझकर उनको सुलझा कर समाधान करना चाहिए इसके साथ साथ आत्मविश्वास रख कर चुनौतियों का सामना करना चाहिए ताकि हमारा जीवन सफल हो सके इसमें कोई शक नहीं की जीवन में कई रूकाबटें आती हैं,उतार चढ़ाव आते रहते हैं मगर उनको सहन करके हल करना ही जिंदगी का सही मायने है क्योंकि उलझनों को खुद संभालना ही समस्या का हल हो सकता न कि  उलझी हुई जिंदगी से डर कर बैठे रहने से  जिंदगी के सफर को तय करने के लिए हमें स्वयं पर विश्वास रख कर स्वंय का हल निकालना है  आपनी कमियों को ढूंढ कर उनको दूर करके जिंदगी के हर मोड़ को पार करना है न कि दुसरों के बल पर जीने का रास्ता ढूंढने का प्रयास करना है ऐसा करने से हमारा सफर अधूरा ही रहेगा,हमें खुद पर विश्वास रख कर अपने अन्दर बदलाव लाने होंगे और जीवन की हर स्थिति से निपटना होगा,समस्याआों को स्पष्ट रूप से समझना पड़ेगा और‌‌ समाधान करना  होगा ,माना की जिंदगी उलझनों का घर है टेडी मेडी है लेकिन उलझने व समस्याएं ही हमें सिखाती हैं,हमें उलझनों में नहीं उलझना है उन से उपर उठ कर जिंदगी का भरपूर आनंद भी लेना है, देखा जाए जिंदगी एक अनमोल अवसर है और सीखने की प्रक्रिया का एक सफर है जिसमें सुख दुख और उलझनें शामिल हैं जिनको लम्वी यात्रा में झेल कर पार करते हुए अपने और समाज के कर्तव्यों ‌को निभाना है और इसे खेल‌ की तरह जीतने के लिए पूरे तन मन से खेल कर इसके सुख,दुख,संघर्ष के चक्करों से सीख कर  अपने लिए और‌ दुसरों के लिए सफल बनाना ही हमारा परम धर्म है,अन्त में यही कहुंगा कि हमें आशावादी रहना चाहिए,हर दर्द को सहना चाहिए और अपने लक्ष्यों को हासिल करने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए न की इसे उलझी हुई समझ कर दुसरों पर आस लगाकर जीने का सहारा ढूंढना चाहिए  जब तक हम खुद प्रयास नहीं करते हमें हमारा हर कार्य उलझा हुआ  दिखाई देता है, तभी तो कहा है,किसी को घर से निकलते मिल गई मंजिल ,कोई हमारी तरह उम्र भर सफर में रहा।

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

  जम्मू -  जम्मू व कश्मीर 

      सही कहा कि हमारी यह जिंदगी जलेबी की तरह उलझी हुई है जिंदगी में रोज उलझने पैदा होती हैं उनको सुलझाते जाते हैं, फिर नहीं उलझन सामने आती है, इन उलझन को समझने के लिए हम किस से कितनी आशा करें सारे अनुभव हमें स्वयं उठाने  हैं। खट्टे मीठे चटपटे सारे अनुभव लेकर ही जीवन को आगे बढ़ाना है यह जीवन सारे अनुभवों का निचोड़ है, तभी तो कहते हैं कि यह बाल  यूं ही धूप में सफेद नहीं किए हैं, जीवन के उतार-चढ़ाव उलझन से उलझन को पार कर मानव आगे बढ़ता है और अपने आप से ही सीखना है क्योंकि हाथ थामने वाले कम,उठाने वाले कम और गिरने वाले जीवन में ज्यादा मिलते हैं, इसलिए जलेबी की चासनी में अपने आप को डुबोकर कभी खट्टे कभी कड़वे स्वाद का आनंद लेकर जाना चाहिए क्योंकि कहावत भी है की "अती सदा वर्जिते"  किसी भी चीज की आती करना बड़ा नुकसान दायक होता है ज्यादा मीठा खाओगे तो नुकसान करेगा इसलिए संतुलन भी जीवन में बहुत जरूरी है संतुलन रखकर जीवन में आगे बढ़े और यदि हमारा जीवन संतुलित होगा तो चारों तरफ से आशाओ की किरण हमें नजर आएंगे और एक भविष्य उज्जवल भविष्य हमारा इंतजार करेगा उलझन का क्या है वह तो आती है जाती हैं उलझन से कभी घबराना नहीं चाहिए

   - अलका पांडेय 

    मुम्बई - महाराष्ट्र 

           अपनी जिन्दगी महत्वपूर्ण होती है।यह जीवन जलेबी के समान उलझी हुई है।हमे अपनी जिंदगी सावधानी पूर्वक जीना चाहिए। हमें परिश्रमी बनना चाहिए।जिससे मेरा कल्याण हो।मनुष्य को अपनी आशा पर जीना चाहिए।अपने परिश्रम से पैसे कमाकर जिंदगी खुशहाल पूर्वक जीना चाहिए।किसी इंसान अथवा रिश्तेदार पर आशा नहीं करनी चाहिए,क्योंकि ज़्यादा उम्मीद भी कभी टूट सकता है।इसलिए हमें परिश्रमी एवं आशावान बनना चाहिए।इसी में सभी मनुष्यों की भलाई है,जीत है।

    -  दुर्गेश मोहन 

      पटना - बिहार

      सच में आज के समय में सबकी जिंदगी  जलेबी की तरह उलझी नजर आती है। हर कोई भाग रहा है, और शायद भागने वाले को खुद ही मंजिल का पता नहीं है, फिर भी भागे जा रहा है। परन्तु देखा जाए तो जलेबियां मीठी रसदार भी होती हैं, उसी तरह यदि देखने का नजरिया सकारात्मक हो तो जिंदगी एक खूबसूरत उपवन की तरह हमेशा महकती रहती है। बस इंसान को जीना आना चाहिए। जीवन में आशा तो एक प्रभु से ही रखना है। "आशा एक राम जी से, दूजी आशा छोड़ दो।"आशा ही सभी परेशानियों का कारण है। इसलिए जीवन में मस्त रहें, खुश रहें। 

 ‌- रश्मि पाण्डेय शुभि

 जबलपुर - मध्यप्रदेश

       जिंदगी के रंगमंच में इंसान की जिंदगी एक कलाकार की तरह होती है !खट्टी मीठी रसीली जलेबी की तरह उलझी हुई होती है !सुगंध स्वाद रूप रंग देख अपने किरदार में लीन जीविका पार्जन करता इंसान जिंदगी की तुलना एक सुंदर और वास्तविक चित्रण है। जलेबी की तरह ही जिंदगी में भी कई मोड़ उलझनें होती हैं !जो हमें कभी-कभी परेशान करती हैं ! जितना संभालने की कोशिश करते उलझाती जाती है !  तब  इन उलझनों से बचने परखने देखने की आवश्यकता मित्र परिजन आत्मीय जन से होती है जो मन के भाव जान निराकरण करने सहयोग देते है , जिन पर हमारा विश्वास  क़ायम होत जाता है !लक्ष्य की ओर आगे बढ़ते बढ़ाते है !जलेबी की तरह उलझे रिश्तों में सामंजस्य बिठा जीवन सुखमय जीवन की ओर अग्रसर हो ज़िन्दगी में मिठास घोलते है पर जब कोई स्वार्थ सामने रख समाधान की कोशिश करते ! खटास के रंग दिखाई देने लगती है! और कुछ अट्टहास से सुगंध स्वाद का आनंद लेते है !और कुछ जलेबी की तरह उलझते है ! हास्य व्यंग की तरह बाण मारने से भी नहीं चुकते !कहते अभिक मीठा खाने से पेट में कीड़े पड़ जाते है ! खाते भी है और याने खटास भी ले लाते है और दूर भी भगाते है! और कुछ सुसंस्कृत उलझनों को सुलझाते है !फिर से जिंदगी में आशा उम्मीदों से जगाती है ! और जिंदगी फिर रफ़्तार पकड़ लेती है !जिंदगी में कई अनिश्चितताएं होती हैं जो हमें भविष्य के बारे में सोचने पर मजबूर करती हैं।चुनौतियाँ स्वीकारते हमें मजबूत बनाने और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती हैं।जिंदगी में भावनात्मक उतार-चढ़ाव होते हैं जो हमें कभी खुशी और कभी ग़म से भर देते हैं।आशा की किरणआशा की शक्ति आशा हमें जिंदगी की उलझनों से निकलने में मदद करती है और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करती है।आशा सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करती है और जिंदगी की चुनौतियों का सामना करने में मदद करती है। नई शुरुआत आशा हमें नई शुरुआत करने का अवसर प्रदान करे !और हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती है। 

  - अनिता शरद झा

 रायपुर - छत्तीसगढ़ 

" मेरी दृष्टि में " जलेबी की तरह जिंदगी है। परन्तु दिन प्रतिदिन जिंदगी घुमती रहती है। फिर भी समस्या कभी कम , कभी ज्यादा चलतीं रहतीं हैं। फिर आशा की उम्मीद , बेवकूफ की तरह होती है। जिस का कोई अन्त नहीं होता है। यही घूमतीं फिरतीं जिंदगी है। 

       - बीजेन्द्र जैमिनी 

     (संचालन व संपादन)

Comments

Popular posts from this blog

लघुकथा - 2024 (लघुकथा संकलन) - सम्पादक ; बीजेन्द्र जैमिनी

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी