जिस की हार होती है वह रोता तो है। यह सामान्य सी बात लगती है। परन्तु वास्तविकता के बहुत नजदीक स्पष्ट होती है। जो जीवन की सच्चाई भी है । लोग कहते हैं कि हर कोई जीवन में अनेक बार रोता है। ऐसा कुछ जैमिनी अकादमी की चर्चा परिचर्चा का प्रमुख विषय है। जो जीवन में कदम कदम पर सभी देखते हैं। अब आयें विचारों को देखते हैं :- हार और जीत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं " जिंदगी की यही रीत है हार के बाद ही जीत है" जहाँ जीत है वहां हार भी अवश्यंभावी है। इसलिये हार का गम मनाते हुए रोना उचित नहीं है। हार तो जीवन को गति देती है जीत की ओर कदम बढाने का हौसला देती है। भले ही किन्ही परिस्थिति में हार रोने पर मजबूर कर देती हो लेकिन हमेशा ही ऐसा होना जरूरी नहीं है। मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि हार का सामना करने वाले ज्यादा मजबूत हो जाते हैं--रही बात यह कि सोचता वही है जो कामयाबी हासिल करता है। इस बारे में मै यही कहना चाहती हूँ कि अच्छी और सच्ची सोच रखने वाले इंसान हार का सामना करते हुए भी कामयाबी पर संतुष्ट नहीं होते बल्कि और अधिक कामयाब होने के रास्ते खोजते हैं। वे "थोड़ा है थोड़े की जरूरत है" सोच शांत नहीं बैठते बल्कि कामयाबी की राह पर निरंतर कदम बढाते हैं।
- हेमलता मिश्र मानवी
नागपुर - महाराष्ट्र
हार कैसी भी हो,दुख तो होता ही है और जब दुख हो तो मन भर आता है, नयनों से अश्रु छलक उठते हैं।रोना शुरू हो ही जाता है। वैसे रोना तो खुशी में भी आ जाता है।जो व्यक्ति अपने लक्ष्य में कामयाबी हासिल करना चाहता है,कर लेता है, उसके लिए सोच विचार करना आवश्यक हो जाता है क्योंकि एक भी ग़लत कदम लक्ष्य को दूर कर देता है।सोच विचार करना मानवीय स्वभाव है और जो इसके विपरीत हुआ,तो हानि होना स्वाभाविक ही है।कहावत भी है - बिना विचारे जो करे,सो पाछे पछताय। अब रही रोने की बात तो यह हर्ष और विषाद दोनों ही स्थिति में आ जाता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
ज़िंदगी में रोता वही है जो हार का सामना करता है, क्योंकि वही जानता है कि कोशिशों के बाद किसी चीज़ का ना मिलना कितना चुभता है। लेकिन असल में वही आँसू इंसान को मजबूत भी बनाते हैं।जब कोई हारता है, तो वो अपने अंदर झाँकना शुरू करता है कि आखिर कहाँ गलती हुई, क्या बदलना चाहिए। यही सोच उसे आगे बढ़ने की राह दिखाती है।जो जीत जाता है, वो बस मुस्कुराता है, पर जो हारकर भी सोचता है, वही अगली बार जीत की असली वजह बनता है। कामयाबी उन्हीं के पास जाती है जो हार से भागते नहीं, बल्कि उससे कुछ नया सीखते हैं।आख़िर, जो रोता है वही समझता है, और जो सोचता है वही जीतता है।
- सीमा रानी
पटना - बिहार
ऐसा समझाया गया है कि " असफलता यह सिद्ध करती है कि सफलता का प्रयास सच्चे मन से नहीं किया गया है। " और यह भी कहा गया है कि " मन के हारे हार है, मन के जीते जीत। " असल में हार-जीत जीवन का हिस्सा है। इसमें हमेशा धैर्य रखना चाहिए। हारने पर हताश न हों और जीतने पर अहंकारी न बनें। जीवन में सबको सब कुछ सहजता से नहीं मिलता। तन्मयता , हौसला, हिम्मत,परिश्रम, विवेक, दृढ़ संकल्प आदि भाव के साथ आगे बढ़ना होता है। हार मिलने पर माना कि दुख होता है परंतु दुख मनाने से अच्छा होगा कि जो कमियां रहीं, उन्हें दूर करने की तैयारी के साथ, अगले अवसर के लिए प्रतीक्षा करना चाहिए। और यदि एक ही अवसर था तो इस हार को अनुभव मानकर अन्य कोई दूसरा विकल्प चुनकर उसके लिए प्रयास करना चाहिए। बात तो तभी बनेगी और उचित भी यही होगा। एक रास्ता बंद हो जाने से सब कुछ खत्म नहीं होता। रास्ते और भी होते हैं या निकालने होते हैं। माना कि " रोता वही है जो हार का सामना करता है। सोचता वही है जो कामयाबी हासिल करता है। " किंतु एक पड़ाव की तरह मानकर आगे का सफर तो तय करना ही होगा, करना भी चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
रोता वही है जो हार का सामना जानता ही नही ,या यूँ कहे जो हँसना जानता वही हार का सामना करना जानता है ! काल के कपाल पर लिखता मिटाता जाता है !हार के बाद हो जंग जीत की बाजी होती है! सिकंदर तो बहुत देखे फौलादी जिगर शिवाजी की सोच वही थी जो कामयाबी हासिल करता है।व्यक्तित्व की पहचान बताते
जीत कर भी जीता ये अभिमान
हार कर भी हारने का स्वाभिमान
के सच्चे सपूत, अभिमानी थे
कर्तव्यपथ चल जननहित में जल तरंगो प्रकृति के संग मिल जागरण लाये थे !हार नही माना । सच्चाई सफलता के लिए कभी बाधक नहीं होती कहते संघर्षों में जीत तुम्हारी होगी कभी हार नहीं माना कामयाबी ही अस्तित्व की पहचान जीत का हौसला जगाती है ! हर इंसान रोते आता है जाना चाहता है हँसते हुए !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
यह दो-पंक्तियाँ बहुत सुंदर हैं, इनमें गहरी जीवन-दर्शन की झलक है — पहली पंक्ति “रोता वही है जो हार का सामना करता है” में पीड़ा के भीतर छिपी संवेदना और संघर्ष की सच्चाई है। जबकि दूसरी पंक्ति “सोचता वही है जो कामयाबी हासिल करता है” में अनुभव से उपजा चिंतन झलकता है।यह इस बात का संकेत देती है कि हार इंसान को रुलाती है, पर वही रुलाई आगे बढ़ने की प्रेरणा बनती है, और सफलता सोचने, समझने और आत्ममंथन करने का अवसर देती है। हम इसे इस तरह भी कह सकते हैं —रोता वही है जो हारा नहीं है भीतर से,सोचता वही है जो जीता है खुद पर। इसे इस लघुकथा से समझा जा सकता है।
“सोचता वही...”
कक्षा की अंतिम पंक्ति में बैठा मोहन चुपचाप अपनी कॉपी पर कुछ लिख रहा था। आज स्कूल की दौड़ प्रतियोगिता में वह अंतिम आया था। सब हँस रहे थे — “तू तो धूल ही खाता रह गया!” मोहन ने किसी से कुछ नहीं कहा, बस मुस्कुराकर मैदान की ओर देखा और धीरे से बुदबुदाया —“रोता वही है जो हार का सामना करता है।” घर आकर वह देर तक चुप रहा। फिर पिता ने पूछा — “बेटा, दुखी हो क्या?”मोहन ने सिर झुकाकर कहा — “हाँ पापा, पर अब सोच रहा हूँ कि अगली बार कैसे जीतूँ।”पिता ने स्नेह से उसके कंधे पर हाथ रखा — “यही तो असली शुरुआत है। सोचता वही है जो कामयाबी हासिल करता है।” जिसने हार पर आँसू छिपाए थे, अब उसके चेहरे पर मुस्कान थी और अब उसकी आंखों में संकल्प की चमक थी।
- डाॅ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
नवजात शिशु का जन्म रोने से प्रारंभ होता हैं, जो अन्त तक सुख-दुःख में समय-समय पर रोता ही है। रोता वहीं है जो जीवन में विशिष्ट घटनाचक्र घटेश्वर हो जाता है, सहनशील नहीं होने के परिप्रेक्ष्य हार का सामना करता है, ऐसा नहीं जब अति सुख की अनुभूति होती है, तो आंसू अपने आप निकलने लग जाते है। कई तो ऐसे होते है, रोते कम है, अब आवाज निकली है, आंख में आंसू रहते ही नहीं है? सोचने की भी एक बीमारी होती है, जो रात-दिन सोचते ही रहते है, फिर सबको बताते हुए फिरते है, रात में नींद नहीं लगी, क्या बात है, नींद ले लो या सोचते ही रह जाईए। सोचना भी दो प्रकार का होता है, कामयाबी हासिल करने के लिए सोचता है। कुछ कर्मकांड करने के लिए सोचता है इसमें भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से कामयाबी मिलती है.....
-आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
जो हार का सामना करता है वही रोता है. कई बार बहुत मेहनत करने पर भी हार का सामना करना पड़ता है, तब उसके समक्ष दो विकल्प होते हैं, या तो रोए या अपनी कमियों पर विचार करे! इसके विपरीत जो कामयाबी हासिल करता है, उसके समक्ष भी दो विकल्प होते हैं, या तो वहीं रुक जाए या फिर कामयाबी के शिखर तक पहुंचने के उपायों पर विचार करे! रोने का विकल्प हारने वाले के पास ही होता है, पर अक्सर कामयाबी हासिल करने वाले भी रोते देखे गए हैं. उसकी कमीज मुझसे सफेद क्यों है? मेरे नंबर 95 प्रतिशत आए, उसके 97 प्रतिशत क्यों सोचकर उदास होते हुए भी देखे गए हैं, जब कि 33 प्रतिशत लेकर पास होने वाले खुशी से नाचते हुए देखे गए हैं. यह तो बस अपनी-अपनी सोच का नजरिया है- रोना या विचार करना!
- लीला तिवानी
सम्प्रति - ऑस्ट्रेलिया
ज्यों खैरात में मिल जाती कामयाबी तो हर शख्स कामयाब होता,फिर कदर न होती हुनर की और न कोई शख्स लाजवाब होता, अगर कामयाबी की बात करें तो कामयाबी कोई जादू नहीं है यह मेहनत,धैर्य और आत्मविश्वास का नतीजा होती है,जब कोई ठान लेता है कि मैंने अपने सपनों को हकीकत बनाना है तो रास्ते खुद व खुद बनते हैं इसलिए कामयाबी हासिल करने के लिए सकारात्मक सोच होनी चाहिए और हार मानने वाले हमेशा नकारात्मक सोच से घिरे होते हैं और हारने से पहले ही रोना धोना शुरू कर देते हैं जबकि कामयाब होने वाले बड़ी सोच समझ के साथ आत्म निर्भर और सक्रिय होते हैं तो आईये आज इसी बिचार को आगे बढ़ाते हैं कि क्या रोता वोही है जो हार का सामना करता है और सोचता वोही है जो कामयाबी हासिल करता है, मेरा मानना है कि सफलता के लिए दूरदर्शी सोच और दृढ़ संकल्प की जरूरत होती है और जो व्यक्ति हार नहीं मानता वही व्यक्ति चुनौतियों के बीच भी समाधान ढूंढता है और कामयाबी हासिल कर लेता है जबकि हार मानने वाला व्यक्ति प्रयास कम करता है, नकारात्मक सोच ज्यादा रखता है,कार्य देख कर रोता है चिल्लाता है,हार मान लेता है और निराश रहता है जिससे उसका प्रयास कमजोर पड़ जाता है दुसरी तरफ हार न मानने वाला व्यक्ति कठिनाइयाँ का सामना करता है,सकारात्मक सोच के साथ आगे बढ़ने का प्रयास जारी रखता है,सोचता है योजना बना कर चलता है,विचार करते हुए बाधाओं में संघर्ष करते करते कामयाबी हासिल कर लेता है क्योंकि उसकी सकारात्मक सोच उसे आत्मविश्वास की तरफ दौड़ाती है जिससे सफलता पाना संभव हो जाता है,उसके अन्दर कामयाबी का आत्मविश्वास भरा होता है जिससे वो अधिक उर्जा से कार्य करता है तथा आत्म निर्भर और सक्रिय रहता है और किसी की मदद के इंतजार में नहीं बैठता और खुद प्रयास जारी रखता है तथा आखिर में कामयाब हो जाता है जबकि केवल सपने देखने वालों के लिए रातें छोटी हो जाती हैं और सपना पूरा करने वालों के लिए दिन छोटे लगने लगते हैं कहने का मतलब प्रयास ही वो सीढी है जो कामयाबी की मंजिल तक ले जाती है रोना तो कायरों का काम है जो जिंदगी में मेहनत,पसीने से नहा कर किसी भी कार्य में ईमानदारी से जुट जाते हैं तो सफलता को एक न एक दिन ग्रहण कर ही लेते हैं क्योंकि सफलता एक दिन में नहीं मिलती इसके लिए लगातार प्रयास की जरूरत होती है आखिरकार यही कहुंगा कि जो व्यक्ति कार्यों को देख कर ही हार मान लेता है वो व्यक्ति जिंदगी में कभी कामयाब नहीं होता और उम्रभर पछताता रहता है तथा रोने धोने के सिवाय कुछ हासिल नहीं कर सकता और जो व्यक्ति कार्यों को देख कर घबराते नहीं हैं तथा सकारात्मक सोच रख कर उनका तब तक पीछा नहीं छोडते जब तक कामयाबी नहीं मिलती वो अपनी सोच,समझ व ईमानदारी को अपने साथ लेते हुए अपने लक्ष्य को पाने में हमेशा कामयाब हो जाते हैं क्योंकि सच भी है,परिन्दों को मिलेगी मंजिल एक न एक दिन में फैले हुए उनके पर बोलते हैं,वही लोग रहते हैं खामोश जिनके हुनर बोलते हैं।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
जीवन में हार का सामना तो होते रहता है। हारकर हमें रोते हुए बैठना नहीं है कहते हैं ना...हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं। हमें इस हार को जीत में बदलने के लिए संघर्ष करना होगा। जीत और कामयाबी हासिल करने के लिए हमें पहले लक्ष्य तक पहुंचने के लिए विचार तो करना होगा किंतु साथ ही हमें परिश्रम मेहनत ,लगन एवं अपनी जिद्द को भी लक्ष्य तक पहुंचने के लिए तैयार रखना है। सबसे पहले हमें अपनी हार के लिए भी तैयार रहना चाहिए। चूंकि मंजिल तक पहूंचने के लिए हार को पार करते हुए भी पहूंचना है ना कि रोकर बैठना है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
युद्ध जो लड़ता है,वही हारता या जीतता है। हारने पर रोना उसका काम है।जिसकी सोच अच्छी होती है,वही कामयाबी हासिल करता है।हमें हमेशा अच्छी सोच रखनी चाहिए।इंसान परिश्रम और अच्छी सोच से सफलता अवश्य प्राप्त करते हैं।मनुष्य अच्छी सोच से अच्छी जानकारी लोगों को देते हैं। हमें अच्छा ज्ञान अच्छी सोच से मिलती है।हम अपने ज्ञान से दूसरे लोगों में भी बांटते हैं। इस प्रकार हमलोग लाभान्वित होते हैं।
- दुर्गेश मोहन
पटना -बिहार
जो हार का सामना करता है वही रोता है,कई बार कमर कसकर परिश्रम करने पर भी हार का सामना करना पड़ता है।उस दौरान मन में यही विचार उत्पन्न होते हैं कहीं हमसे चूक तो नहीं है गई । दूसरी तरफ यह बात आती है कि जितना मेहनत हमने किया, उसमें और अधिक मेहनत की आवश्यकता थी।सफलता हासिल करने के लिए अपनी कमियों को उजागर कर,उसकी भरपाई नितांत जरूरी होती है। कामयाबी का परचम तभी लहराया जाता है जब परिश्रम सार्थक साबित होता है ।हार का सामना करने पर कमजोर पड़ना नहीं है।बल्कि जीत का सेहरा सिर पे बांधे इसकी कोशिश करनी चाहिए। प्रतिस्पर्धा का दौर है हमेशा हमें अपना कार्य प्रतिद्वंद्वी को मात देने के रूप में करनी चाहिए।तब हम अपने लक्ष्य को हासिल कर सकते हैं।हार कर मन मसोस कर रह जाना कायरता की निशानी है। कोशिश हमेशा जारी रखनी चाहिए। सफलता मिलेगी ही। हमें दृढ़ संकल्पित होकर कार्य करना चाहिए।रोने से समस्या का समाधान नहीं है।हंसकर हौसला बुलंद रखिए, तैयारी में जुट जाइये देखें फिर सफलता मिलेगी ही।
- डॉ. माधुरी त्रिपाठी
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
. वास्तव में, ऐसा अटपटा प्रश्न ही जीवन के वास्तविक दर्शन की ओर संकेत करता है। क्योंकि विजयश्री प्राप्त करने वाले गर्व से नहीं बल्कि अनुभव से गौरवान्वित होते हैं चूंकि सफलता केवल माला पहनाने से नहीं, संघर्ष झेलने से मिलती है। जो पराजय का स्वाद चखते हैं, वे रोते भी हैं, परंतु वही आँसू उनके भीतर नव–विजय की ज्वाला प्रज्वलित करते हैं। इसलिए विजय कोई आकस्मिक उपलब्धि नहीं है बल्कि निरन्तर चिंतन, मंथन और आत्मसंयम का परिणाम है। जो हार में भी सोचता है और जीत में भी विनम्र रहता है। वही असली विजेता है। अन्ततः कह सकते हैं कि “विजयश्री की चमक उन आँखों में दिखती है, जिनमें कभी पराजय के आँसू चमके थे।” यही जीवन का व्यंग्य भी है और सत्य भी है कि हारने वाला रोता है, सोचता है, और अंत में वही इतिहास में अमर होता है।
- डॉ. इंदु भूषण बाली
ज्यौड़ियॉं (जम्मू) - जम्मू और कश्मीर
" मेरी दृष्टि में " सोच विचार भी जीवन का अभिन्न अंग है। जो प्रतिदिन देखने को मिलता है। फिर भी जीवन यात्रा के कष्ट दूर नहीं होते हैं । यह कर्मों का परिणाम होता है। जो जीवन धारा के साथ - साथ चलते रहते हैं।
- बीजेन्द्र जैमिनी
(संचालन व संपादन)
ये सत्य बात है कि हारने वाले ही रोते हैं कि मैं हार गया मैं हार गया. कामयाबी हासिल करने के लिए सोचना पड़ता है कि कैसे किस विधि से कामयाबी हासिल करें .और वो हासिल कर के रहते हैं.
ReplyDelete- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश "
कलकता - पं. बंगाल
( WhatsApp से साभार)
सम्माननीय भाईसाहब ,सादर नमन 🙏
ReplyDelete“मेघनाथ साहा स्मृति सम्मान” मेरे लिए केवल सम्मान नहीं,
बल्कि प्रेरणा का आलोक है।
यह उस यात्रा की पहचान है जहाँ शब्द साधना बनते हैं
और सृजन समाज से संवाद।
मैं इस सम्मान के लिए हृदय से आभारी हूँ।यह गौरव मुझे और अधिक संवेदनशीलता व समर्पण के साथ अपने कार्य को आगे बढ़ाने की प्रेरणा देगा।
सृजन ही मेरी साधना है और हर सम्मान उस साधना का पुष्प।
— डॉ. छाया शर्मा, अजमेर
(WhatsApp से साभार)