माटी की सुगन्ध ( लघुकथा संग्रह )

लघुकथा संग्रह के लेखक डॉ. विजयेश कुमार तिवारी है सह- लेखिका श्रीमती अरूणेश तिवारी है। संग्रह में 60 लघुकथाएं है तथा सभी लघुकथाओं के अन्त में संदेश दिया गया है। यह लघुकथा साहित्य में प्रथम प्रयोग नज़र आता है।
        हिन्दी साहित्य में लघुकथा ने जो स्थान प्राप्त किया है । वह लघुकथाकारों का संघर्ष व लेखन का परिणाम है।  यही संघर्ष इस संग्रह के लेखक के जीवन में घटने वाली घटनाओं  ने लघुकथा का रूप ले लिया है। घटनाएं यथार्थ होती है। आनंद की प्राप्ति, भोजन का अपमान, नमक का हक आदि लघुकथा में जीवन की सच्चाई को दिखाया है।
          देवताओं की दुकान, अंधी श्रद्धा, बाबा को सर्वस्व अर्पण कर दो आदि लघुकथाएं सत्य को झिझोड़ती हैं। माटी की सुगन्ध लघुकथा में जन्म भूमि का प्रभाव छोड़ती है। समय का सदुपयोग, ख़ून पसीने की कमाई आदि लघुकथा में लेखक के अनुभव का परिणाम है।
         " मेरी दृष्टि में "  लघुकथा की भाषा एक दम सरल है। कहीं कहीं व्यंग्य भी नज़र आता है। पाठकों को ज्ञान भी देती है ।
            लेखक ने लघुकथा के अतिरिक्त व्यंग्य, लेख, कविताओं की भी रचना की है। चिकित्सा के क्षेत्र में " क्षय रोग चालीसा " प्रथम चालीसा है। धार्मिक क्षेत्र में भी बीस से अधिक पुस्तकें दे चुके हैं। लेखक से साहित्य को बहुत अधिक उम्मीद है।
                         प्रकाशक
                  रंजन पब्लिकेशन
       ' माल- द्वीप ' , 44 - उमंग, पार्ट -2
   महानगर टाउनशिप, बरेली - 243006 उ. प्र
        प्रथम संस्करण : अप्रैल - 2016

                                 - बीजेन्द्र जैमिनी
                                       समीक्षक

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