हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

वर्तमान में सबसे अधिक लघुकथा पढ़ीं जा रही है । यहीं सबसे बड़ी उपलब्धि है । लघुकथा पर विभिन्न कार्य हो रहें हैं । सभी की अपनी सफलता है । अभी हाल में भारतीय लघुकथा विकास मंच के माध्यम से श्रृंखला शुरू की है । जिसमें मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) , हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) , मुम्बई की प्रमुख हिन्दी महिला  लघुकथाकार ( ई लघुकथा संकलन ) की सफलता के बाद " हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार " (ई लघुकथा संकलन ) तैयार किया है । जिसमें इक्कीस लघुकथाकारों की , प्रत्येक की ग्यारह लघुकथाएं  दी गई है । इस प्रकार से इक्कीस परिचय के साथ 231 लघुकथाएं हैं । जो बारह राज्यों की हिन्दी की इक्कीस महिला  लघुकथाकार हैं । जो अब तक के मेरे सम्पादन में सबसे बड़ा लघुकथा संकलन है ।
 लघुकथा अपने आपमें सम्पूर्ण साहित्य है । जो पाठक से लेकर शोंध कार्य में सफलता अर्जित कर रहा है । फिर भी कुछ लोगों ने लघुकथा में कुछ मापदंड बना रखें है । वहीं लोग इन मापदंड का पालने नहीं करते हैं । फिर वे मापदंड किसके लिए बनतें हैं ? फिर भी इस ई- लघुकथा संकलन में सभी तरह की लघुकथाओं को देने का सफल प्रयोग किया है । बाकी पाठकों व आलोचकों पर छोड़ा है ।

क्रमांक : - 01
शिक्षा : एम. ए हिन्दी साहित्य

पति : सुनील कुमार जी जैन (निवर्तमान पार्षद)
रुचि दर्शन शास्त्र मनोविज्ञान ,धर्म, लेखन और पढ़ने के साथ कुछ नया सीखना सिखाना

प्रमुख : गृहिणी 

लेखन : -
लेखन की साहित्यिक यात्रा में  लघुकथा के साथ कविता, छंद, गीत,नवगीत...आदि अनेक विधाओं में समान रूप से कार्य 
विभिन्न साहित्यिक मंचों से उपनाम यथा मनीषी -अटल कवि परिवार, विभा--विज्ञात की कलम  व अनुभूति

सम्मान : -
 -जैन आचार्य 108विराग सागर जी महाराज 
साहित्य वाचस्पति, 
ब्रिट्रिश वर्ल्ड रिकार्ड होल्डर (जैनिज्म राइटिंग)
तीन बार इंटरनेशनल सम्मान (जैनिज्म राइटिंग)
बेस्ट कंटेट राइटर अवार्ड, 
वुमन इंस्पायर्ड अवार्ड ,
नारी रत्न 2019सम्मान,
 बाबूमुकुंद लाल गुप्त सम्मान ,
 फणीश्वरनाथ रेणु सम्मान ,
 वीणापाणि सम्मान
 साहित्य दीप प्रज्ञा सम्मान , 
 साहित्य दीप शलभ सम्मान ,
विष्णुप्रभाकर स्मृति लघुकथा सम्मान

 2021,ब्लैकब्यूटी काव्य प्रहरी सम्मान सम्मान,
 प्रेम भूषण सम्मान,
 कालीचरण प्रेमी स्मृति लघुकथा सम्मान
 ........लगभग 80

साझा संकलन --ये कुंडलियाँ बोलती हैं, दोहे बोलते हैं,चौपाई ,नवगीत ,गीत शतक ,के अलावा चार अन्य काव्य संग्रह , दो लघुकथा संग्रह, एक साझा उपन्यास बरनाली,के अलावा आसाम नराकास में विगत तीन वर्षों से  रचनाएँ प्रकाशित , झारखंड के जागरण अंक व अन्य मंच व पत्र पत्रिकाओं से रचनाएँ प्रकाशित।
जिसमें अमेरिका की साहित्यिक पत्रिका हम भारतीय में भी रचना को स्थान ... आदि ।

सम्पादन : -
जैन पत्रिका भावना की अतिथि संपादिका, शालेय पत्रिका शारदा की मुख्य संपादिका, लघुकथा संग्रह की सहसंपादिका, प्रखरगूंज से पब्लिश्ड  कलरव वीथिका की संपादिका, विचार वीथिका की सहसंपादिका। 

विभिन्न संस्थाओं में : -
 जैन संस्थाओं में पदाधिकारी व आँचलिक प्रभारी ,व फाउंडर अध्यक्ष 

पता : - शाह गन हाउस
            देवनगर कालोनी भिण्ड - 477001, मध्यप्रदेश


1.पुनर्मिलन
   ********

"सुन पीहू,मुझे माफ कर देना।तुझे पहचान ने में भूल हो गई।काश पहले ही पहिचान लेती तो दोंनों  को ही तकलीफ नही होती।..मैं जा रही हूँ बेटा ,माफ कर देना.।"
"अरे आँटी जी ,आप?बीस साल बाद!!और कहाँ जा रही हैं आप" चौंक कर पूछा पीहू ने।
"बेटा अपनी गलती की क्षमा माँगने आई हूँ।सपना से उम्मीद नहीं है।पर तू वादा कर अपने अंकल का ध्यान रखेगी।"
"आँटी,प्लीज ।ऐसे मत बोलिये।और क्षमा तो मैं माँगती हूँ इतने सालों तक आपके मन में रह कर गुस्सा ही बढ़ाया।सोच रही थी कि आप भूल गई होंगी।मुझे माफ किया होगा या नहीं..बहुत कोशिश की एक बार आपसे बात कर के सब ठीक कर दूँ।पर..."अपने आँसू नहीं रोक पाई पीहू।
"मत रो,अब जा रही हूँ तुझसे मिलना जरूरी था।इक बोझ दिल पर था आज उतर गया।.अपना ध्यान रखना..।""
अपने सिर पर प्यार भरा स्पर्श महसूस किया और .आँटी..रूकिये...."
झटके से आँख खुल गई पीहू की।अंधेरे में एक पल को समझ ही नहीं आया कि सपना था या हक़ीकत।आँखों से आँसू बह रह थे ।मतलब पवन की माँ आई थी बीस साल बाद उस से अपने मन की बात कहने।पर यूँ???अजीब सी बैचेनी महसूस हुई।आँटी का स्पर्श भी महसूस हो रहा था।क्या हुआ ??ऊहापोह में घड़ी देखी रात के तीन बज रहे थे।
पवन और उसका प्यार का रिश्ता पवन के घरवालों को मंजूर नहीं था।बहुत कोशिश की पवन ने दोनों के परिवार वालों को मनाने की।पर कोई नहीं माना । तब पवन ने उसके कहने पर अपने घर में बोल दिया कि पीहू की शादी होने के बाद ही शादी करेगा।पवन की माँ जो उसे बहुत चाहती थी ,नफरत करने लगी थी।उसकी शादी हो गई तो पवन ने भी कर ली ।यूँ ही पता लग जाता कि सपना के तेज स्वभाव से सब परेशान थे और कभी कभी उस के साथ सपना की तुलना कर के देखते थे।और कहते थे कि पीहू सही थी ।।
यादों में बाकी रात गुजर गई ।आँटी के ममता भरे स्पर्श का अहसास बाकी था ।तभी एक परिचित नेफोन से सूचना दी कि पवन की माँ का रात के चार बजे देहावसान हो गया है।सन्न रह गई।ये कैसा पुनर्मिलन थाबीस साल बाद ।****


2.ग्रहण 
   *****

""तुम नहीं जा सकती बेटे को तिलक लगाने"
क्यूँ? 
सुबह से प्रतीक्षा कर रही थी वो इस पल की और जब पल आया तो ये रूकावट।
"क्यूँ क्या ?ग्रहण है तू अपने बेटे के लिये आज.."
"मैं.......ग्रहण .....बेटे के लिये।"
चक्कर आ गये माधवी को।
"हाँ ,तुम "रामा बोली।"भूल गई तू विधवा है"माधवी के हाथ से तिलक की थाली छीनते हुये बोली रामा ।घोड़े पर बैेठा मलय माँ का इंतजार कर रहा था जब उसे आने में देर हुई तो खुद ही माँ को बुलाने अंदर आ गया और माँ -बुआ के बीच की सारी बात सुनी।
"माँ ,टीका कर तू"
"ब्ब्बबेटटटा...."हकला गई माधवी।
"हाँ ,माँ ,टीका कर "
"अरे बाबला है क्या ।ये ग्रहण है तेरे शुभ कार्यों में।हम लोग हैं टीका करने को ।चल ,मैं करती हूँ।"अपनी महँगी साड़ी को नजाकत से संभालती माधवी को देख बोली रामा।
"बुआ, टीका तो माँ ही करेगी"रामा के हाथ से तिलक की थाली लेते हुये बोला मलय "अगर माँ टीका नहीं करेगी तो मैं शादी कैंसल कर दूँगा।आज माँ मेरे लिये ग्रहण हो गई ।लेकिन पापा के जाने के बाद आज तक मेरे हर वक्त में मेरा साथ देने कोन शुभ ग्रहण आया था ।बताइये।हम जी रहें हैं ,मर रहे हैं पूछने भी आया कोई।जिस माँ ने अपने गम,दुःख छिपा कर मुझे इस योग्य बनाया ।और आज वही मेरे लिये ग्रहण।वाह।..माँ कर टीका।"कहते हुये तिलक की थाली माधवी के हाथ में पकड़ा दी ! *****

3.समर्पण
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"माँ,फेंको उसका सारा सामान ,मैं अब उसे बर्दास्त नहीं कर सकती एक पल भी।"कोर्ट से वापिस आ तमतमाई सी बोली तान्या।
"न बेटा ,वो कहाँ जायेंगे?रहने दो उनको यहीं।"
बेटी से आँखें चुराते हुये बोली दामिनी।
"जानती थी तुम नहीं सुधर सकती।दिया क्या है उस आदमी ने तुमको?जिल्लत भरी जिंदगी,बेवफाई,धोखा और फरेब के सिवा।"अब जाये न उसी के पास जहाँ अपनी रातें. काली करता रहा है अब तक,लुटा के आया तुम्हारी इज्जत,घर की दौलत और हम सब का भविष्य।"तान्या के मुँह से जहर बुझे सच के तीर निकलते जा रहे थे।
"पर अब वो जायेंगे कहाँ..सब कुछ खत्म हो गया तब आज कोर्ट नेभी तलाक मंजूर किया।बीमार है पड़े रहेंगे एक कमरे में"अपने मन की पीड़ा को छुपाती बोली दामिनी पर उसकी आँखों में छलक आये आँसू तान्या से छिप न सके।"अब भी प्यार करती हो न,"क्रोध और नफरत से मुँह टेड़ा करती हुई बोली तान्या।
"कोर्ट का आर्डर है न कि इनको घर में रहने के लिये एक कमरा देना होगा।"तान्या की बात को अनसुना करती हुई रसोई की ओर बढ गई।"आज भी मेरी माँग में सिंदूर है इनके नाम का ...जिसे मैं अपने हाथ से नहीं मिटा सकती ।कोर्ट ने जो भी फैसला किया हो..मैं अपने प्यार के लिये आज भी समर्पित हूँ।"बीमारी में साथ नहीं छोड़ सकती।"आँखों में छलक आये पीड़ा के आँसुओं को समर्पण की मुस्कान से छिपाती बोली दामिनी और चाय का प्याला लेकर बढ़ गई उस कमरे की ओर जिसमें उसका पति था पर कोर्ट के निर्णय के बाद ..। *****

4.अनामिका
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""जब कह दिया न एक बार कि नहीं ,तो नहीं समझी।"
"क्यूँ?नहीं का क्या मतलब? कोई गलत काम तो नहीं करने जा रही।"
"जानता हूँ कि क्या करने जा रही हो।अपने रूप पर बड़ा इतराती हो ना ।सब समझ रहा हूँ।"व्यंग से होंठ चबाते बोला वह।उस के मन का कालुष छलक रहा था.
"उफ्फ।ये है आपकी सोच मेरे बारे में"सन्न रह गई .
"अब बता भी दीजिये ऐसा क्या कर दिया मैने जो आप ये बोल रहें हैं।"गुस्से,हिकारत से खौलते मन को जबरन शांत करते पूछा उसने
"मैं कुछ नही कह रहा ।बस इस घर से बाहर कदम निकाला तो लौट के मत आना बापिस...।समझी।समझ रहा हूँ तू क्यूँ फड़फडा रही है ..बाहर जाकर नौकरी करने को..।""
""बस।अब एक शब्द नहीं।मुझे शौक नहीं है बाहर जाकर खपने का ।पर आपने जो कांड किये उनकी भरपाई का जिम्मा जो मेरे माथे मँढ दिया है उसी दायित्व को पूरा करने की कोशिश कर रही हूँ।क्यूँ कि आप के पाँच आधारों की जिम्मेदारी मेरी ही तो है"न चाहते हुये भी तल्खी,घुटन ,पीड़ा फूट पड़ी ।
"इस पित्तसत्तात्मक समाज के दोहरे मापदंड में गलती पिता,पति,बेटे की हो,खामियाजा औरत को ही चुकाना पड़ा।परिवार-बच्चे,रिश्तेे,समाज,मान-मर्यादा ,इज्जत रूपी पंच तत्वों का भार उसी के ऊपरतो है।बिना गलती के कभी सीता ,कभी अहिल्या,कभी द्रोपदी,मीरा तो कभी अंजना..पुरूष की ज्यादितियों से अभिशप्त ही हुई है।मैं अब और नहीं सह सकती।जरूरत है नौकरी की इसलिये कर रही हूँ।"अभिशप्त नारी रोक न सकी अनामिका होने के दर्द को आँखों से बहने से। ******


5.विभाजन की पीड़ा  
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"साहब ...ग्यारह बरस की है वो मासूम ...।बता दो न कहाँ हैं??.....ऐ साब ....आपही बता दो न ...कहीं देखा उसे ?"
रोज पुलिसकर्मियों और आने जाने वालों से पूछती वह पागल सी औरत ।जिसके बदन के कपड़े अपना रंग खो चुके थे और हो चुके थे अस्तित्व हीन। ठीक उसी औरत की तरह बेनूर और पहिचान रहित।
अचानक ठक ठक की आवाज प्लेटफार्म पर गूंजने लगी और सब तामझाम व्यवस्थित होने लगे।
"ए ,परे हट!साहब आ रहे हैं..।"एक सिपाही ने उस औरत को झटके से पीछे धकेलते हुये कहा।
एक पल को सहमी औरत की आँखों में दहशत के साये लहराये। और दूसरे ही पल वह साहब के सामने थी।
"साहब .।उसे छोड़ दो ..बख्श दो साहब। ग्यारह बरस की ही है । कुड़माई हो गयी ....अगले बरस उसका ब्याह करूँगी साहब । छोड़ दो उसे ...साहब..।"वह साहब के कदमों में लिपट बुरी तरह गिड़गिड़ा रही थी।"
"अररर .कौन हो तुम ..दूर हटो।"
साहब ने अपने पाँव झटकते कहा..।
"साहब ..मैं ...मेरी ग्यारह बरस की ननद दलजीत । जिसे तुम लोगों ने उठा लिया था...उस मासूम को तीन लोगों ने ...।साहब ..छोड़ दो उसे साहब..। उसकी शादी कर दूँगी तो रिश्ते जुड़ जायेगें ।फिर कोई उसके साथ जबरदस्ती न करेगा..।
साहब ...साहब...।" 
एक क्षण को सन्नाटा छा गया। दूसरे ही पल साहब के इशारे पर उसे अलग किया गया ...तो वह नये रिश्तों को जोड़ने के लिये दूसरी दुनिया  में जा चुकी थी। ****

6.दो धारों के बीच 
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शुभाँगी आज विह्वल थी ।एक तरफ अग्नि के समझ लिये फेरों के संस्कार थे तो दूसरी तरफ कोख के दर्द से उपजा खुला आसमान।किसे चुने ,किसे छोड़े? 
संस्कार कहते थे --"पति कैसा भी हो तुम्हारा धर्म है उसका सम्मान करना उसे मान और इज्जत देना ।उसकी कमियों को छिपा उसके दिये हर दर्द हर चोट के निशान छिपाना।"
कोख के दर्द से उपजा बीज बोला --"जिसने कभी तुम्हें पत्नी का मान नहीं दिया ,हर वक्त अपमान की आग में झौंका ।जो इतना स्वार्थी है कि सिवा अपने वह कभी आपके दर्द को देख नहीं पाया फिर क्यों साथ रहना है?क्या निभाने का ठेका सिर्फ तुम्हारे पास है? चुनो अपने लिए खुला आसमान जो मैं दे रहा हूँ।"
शुभांगी सोच में डूबी थी संस्कारों की कैदी बन उस कोठरी में जा दुबके या दर्द से उपजे खुले आसमान में बेखौफ उड़े। ****

7.फ़ीस
   *****

"क्यूँ बार बार घड़ी देख रहे हो पापा ?"छम्मो ने पूछा
"बस यूँ ही बेटा, आज समय कट नहीं रहा।"रतन बाबू बोले।उनकी आवाज में अजीब सी बैचेनी,दर्द था जिसे छम्मो समझ नहीं पाई।इस समय कैंसर हाँस्पीटल में बाप- बेटी ही थे। तभी सुखवती के कराहने से दोनों चौंक गये।
"क्या हुआ?तबियत ठीक तो है???झटके से बेड के पास पहूँच ,सुखवती का हाथ अपने हाथों में थामते रतन बाबू ने घबरा के पूछा।पिता को आज इस तरह बदहबास 18 साल में पहली बार देखा छम्मों ने।न जाने क्यूँ झिझक कर वो कमरे से बाहर चली गई।सुखवती कैंसर के अंतिम पड़ाव पर थी और डाँक्टर उम्मीद बंधाये थे सही होने की।
"चिरैया..."आवाज सुन आँखों में छलक आये आँसु छिपा कर अंदर आई।देखा कि सुखवती हौले से मुस्कुरा रही थी।अजीब सी आभा चेहरे पर झलक रही थी।"देख,जब तक तू इस घर में है अपने पापा का ध्यान रखियो..जरा भी तकलीफ न होने देना ,चिरैया..अन्नु को देखने का बड़ा मन था .जाने क्या होगा उसका?"आँखों में बेटे केलिये अन्जानी चिंता उभर आई..।"और सुन..घर में कुछ भी हो तू चुपचाप सुन लेना ,जबाब नहीं देना ,जैसे अभी तक हँसती थी ,सब सह कर वैसे ही..।"
"अब तुम आराम करो  ...."रतन बाबू के गले में जैसे कुछ अटक गया ..उनकी आँखें छलछला आई।
"अब तो हमेशा के लिये आराम ही करना है...बस चिरैया अपने घर की हो जाती..।"कहते कहते सुखवती की आँखेंउस पर टिकी तो टिकी ही रह गईं..।
दोमिनिट के लिये जैसे अजीब सा सन्नाटा फैल गया.।
"खेल खत्म......."आवाज सुनकर छम्मो की चेतना लौटी।उसने जल्दी से घबरा कर माँ को हिलाया ..उनकी आँखें अपने हाथों से बंद कीऔर कमरे के बाहर भागी डाँक्टर को लाने ।पिता की भी न सुनी।आनन फानन डाँक्टर आये ।देखा ,जाँच की ।उनके चेहरे को देख समझ गये दोनों की पंछी उड़ गया ।पर डाँक्टर ने आँक्सीजन लगाया और कुछ ट्रीटमेंट डेडबाडी पर किये कुछ दवाइयाँ लिखी और साथ में बिल भी थमा दिया।"ये बिल क्यूँ डाक्टर.."आपको तो पता चल ही गया था कि ,शी इज नो मोर ....फिर..."ये पहले देना पड़ेगा"कह कर डाँक्टर कमरे से बाहर निकल गये।तीन हजार का बिल और सामने पड़ी माँ की निर्जीव देह..प्राणहीन से हो गये पिता ।पर डाक्टर नहीं पसीजा ।उनकी निर्जीव देह के पास तभी बैठ सकी जब उसने खुद को संभाल कर फ़ीस  चुका दी। *****

8.विज्ञापन 
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अपनी साँवली पर गुणवान बेटी राधा के लिए रामकिशन तीन सालों से परेशान थे ।जो भी रिश्ता देखते ,लड़के वाले उनकी छोटी बेटी को पसंद कर मानों राधा के मुंह.पर थप्पड जड़ देते ।
हँसती खेलती राधा मानों पत्थर बनने.लगी थी।गुमसुम हमेशा।चुपचाप
घर के काम करती और अपना भविष्य सोचती रहती।
हार कर मित्र की सलाह मान विज्ञापन देने शादी.काम ऑफिस गये. ।राधा की डिटेल दी ।
"अरे ,सर ..साँवली मत लिखवाइये ।गोरी चिट्टी, सर्वगुण संपन्न लिखवाइये।रिश्ता जल्दी हो जाएगा।फर्स्ट इंप्रेसन ,लास्ट इंप्रेसन।"आँख दबाते बोला मैनेजर 
रामकिशन ससोपंज में थे।मैनेजर ने उनको सब विज्ञापन दिखाये।दिल पर पत्थर रख झूठा विज्ञापन लिखवाया ।
कुछ दिन बाद रिश्ते आने शुरू हो गये।
आज लड़के वाले फिर देखने आ रहे थे राधा को और ब्यूटीपार्लर वाली राधा के साँवले सलोने रंग को गोरा बना रही थी। *****

9.अम्मां जी
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रोज कालेज आते जाते नीम के पेड़ के नीचे बैठी अम्मां जी दिख जाती।उसी एक मुद्रा में सर झुकाये,गुमसुम।शुरू में लगा कि थक कर बैठ गयीं होगीं।पर रोज वहीं बैठी दिखतीं तो ये ख्याल भी मिथ्या साबित हुआ।
आज घर से जरा जल्दी निकली कोतुहल में कि आखिर बात क्या है,पता तो लगे।
"अम्मां जी ,कुछ खाओगी"कहते हुये टिफिन खोल रोटी रोल निकाला।
न हँसी ,न बोली।न जाने जमीन में क्या खोज रहीं थी उनकी आँखें।
"लीजिये.."कहते हुये उनके हाथ में रोटी रोल पकड़ा दिया।आसपास नजर डाली शायद कोई उनके साथ हो।दस कदम की दूरी पर वृद्धाश्रम देख उस तरफ गयी।तब पता लगा कि वो सौम्य ,स्नेहिल चेहरे वाली अम्मां जी शहर के नामी परिवार की मालकिन हैं।ये आश्रम भी  उन्हीं का है।बहु -बेटे के लिये,पति के देहावसान के बाद,अवाँछित हो गयीं तो यहाँ छोड़ दिया।बेटे-बहु रोज इधर से ही आते जाते हैं उनको देखने का मोह इनको नीम के नीचे खींच ले जाता है।
ओह्ह!!आँखें भर आईं ।स्मृतियों में कुछ झलका   और अम्मां जी को अपने साथ घर ले आई। ****


10.जलन 
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"हाँ ,नहीं चाहता तुम जैसी मनहूस को ।बहुत दिनों से कहना चाह रहा था आज मौका मिला "
"मेरा कसूर ...."
"तुम्हारे जैसी बहुत हैं।और अब तुम्हारे साथ है ही कौन?"
"इसलिये मीठा बोल कर मेरे दोस्तों में शामिल हुये थे ?दोस्तों को मेरे खिलाफ करने के लिये।"
"बेवकूफ..तेरे हर समूह में तेरे साथ रह कर तेरे दोस्तों तक पहुँचा ।आज सब तुझे छोड़कर मेरे साथ है तुझे छोड़कर ।तेरे हर समूह को तेरे सामने ही खत्म किया ।और तू बेवकूफ ...हर बार नया समूह बनाती और मुझे जोड़ती ।हाहाहाहाह..इक बच्चा भी समझ जाता इतनी सी बात को ।साइको औरत ..."
"उफ्फ ....मैं तेरे कहने पर हर बार खुद को कसूरवार समझ कर घुटती रही ।ये थी तेरी साजिश।पर क्यूँ ??कोनसी दुश्मनी थी मेरे साथ "
"तेरे दोस्त तेरा इतना ख्याल जो करते थे ,तेरी रिस्पेक्ट ...जलन होती थी ।अब जा ..तेरे मेरे रास्ते अलग ..हाहाहा.. ! ****

11.तोहफ़ा 
     ******

"डाकिया ...।"आवाज के साथ ही दरवाजे पर डोरबेल बजी।प्रियंका ने चाय का कप टेबल पर रखा और दरवाजे की ओर चल दी।
"मोबाइल के समय में डाकिया की आवाज...किसने भेजा होगा खत?"सोचते हुये दरवाजा खोला।
"ये लो मैडम ..यहाँ साइन कर दो.।"कहते हुये प्रौढ़ डाकिया ने रजि.और पेन बढ़ाया।जब तक प्रियंका ने साइन किये डाकिया अपने थैले से चिट्ठी निकाल चुका था। 
एयर फोर्स की सील देख प्रियंका चौंकी ।सूखे होंठों पर एक क्षण को मुस्कान झिलमिलाई और फिर आँखों में नमी उतर आई। डाकिये की आँखों में भी नाउम्मीदी की नमी गहरा गयी।
        प्रियंका के हाथ काँप रहे थे।पाँच साल से एक झूठी उम्मीद ही सही ,सँबल तो थी जीने की। 
"मम्मां, क्या है यह ?"
"कुछ नहीं बेटा ...अपना दूध फिनिश करो आप।"
प्रियंका समझ नहीं पा रही थी उस मासूम से क्या कहे।स्वयं उसकी हिम्मत न हो रही थी उस लिफाफे को खोलने की। 
तीन साल पहले भी तो ऐसा ही लिफाफा आया था जो उसका संसार उजाड़़ गया था।
".....आपको सेचित करते खेद है कि कमांडर सुकेश का विमान दुश्मन ऐरिया में पहुँचने के बाद संपर्क सूत्र टूट गया।काफी छान-बीन के बाद भी उनका कोई पता न चल सका। अतः रेजीमेंट आप के दुख को समझते हुये क्षमा चाहती है। कमांडर सुकेश का सामान आपको पहुँचाने की जिम्मेदारी ....।"
प्रियंका पर तो जैसे वज्रपात हुआ था। तीन साल पहले ही तो दोनों ने लव मैरिज की थी। गोद में प्यार का फूल भी खिल चुका था नन्हीं सुप्रिया के रुप में। ससुराल वालों ने बेटे के आगे मौन धारण कर लिया था। सीमा पर आक्रमण होने पर सुकेश को तत्काल जाना पड़ा था।
ससुराल वालों ने उसे घर से अलग कर दिया कि उसके बेटे का जीवन उसी की बदकिस्मती से समाप्त हुआ। मायके आकर स्वयं को सँभाला। पति के सरकारी अफसर होने के कारण उस की नौकरी लग गयी तो माता पिता के घर के पास ही किराये पर दो कमरों का छोटा सा घर ले लिया। अक्सर बीती बातें ,बीती यादें उसे रुला जाती थीं।पर सुप्रिया में सुकेश की छवि देख खुद को बहला लेती।
"बेटा ...डाकिया  कैसी खबर लाया ..?"पिता की आवाज सुन कर वह चौंक गयी। 
बेध्यानी में दरवाजा बंद करना भूल गयी थी। 
"पापा , मेरी हिम्मत ही न हुई खोलने की ...पता न इस बार क्या खबर भेजी हो एयर फोर्स ने।"
"बेटा ..ऐसे काम न चलेगा, हिम्मत तो रखनी ही होगी।ला,मुझे दे ..।"कहते हुये पापा ने हाथ बढ़ाते हुये लिफाफा ले कर खोल लिया।
".... अर्रे ...सुकेश वापिस आ रहा है ...ग्यारह तारीख को ...बाकी सब वह आकर बतायेगा।"कहते हुये पिता के चेहरे पर खुशी छा गयी।
"क्याआआआआआ....?"प्रियंका अवाक् रह गयी। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या कहे ..
"ग्यारह...पर ग्यारह तो आज..।"कैलेंडर पर नज़र पड़ते ही वह चौंक गयी। चिट्ठी पर तारीख देखी ..एक माह पहले की पड़ी थी। यानि सुकेश .जिंदा है ..!वह सच में आ रहा है..!! हड़बड़ा गयी वह। 
उसके पापा ने फोन कर उसकी माँ को भी  सूचित करते हुये आने को कहा।
माँ बेटी ने जल्दी जल्दी भोजन आदि की तैयारी कर घर को सजाया। चार साल सुप्रिया को भी पता लग गया था कि पापा आ रहे हैं तो उसके सवालों की झड़ी बंद ही न हो रही थी ।माँ ने जो बहला रखा था कि पापा आयेंगे तो बहुत सारे  तोहफे लायेगे।
"ट्रिन ..ट्रिन...।"डोरवेल की आवाज सुन कर प्रियंका ने जल्दी से सशंकित मन से दरवाजा खोला। 
दरवाजे पर सुकेश को देख वह विश्वास न कर पाई और एकटक देखती रह गयी। 
"पापा आये ..प पापा आये...नानू ..मेरे पापा आये..।"खुशी से चीखते सुप्रिया दरवाजे की तरफ भागी। 
आइये न ..कहते हुये प्रियंका ने सुकेश को निहारा।  रोबीला चेहरा ,गठा हुआ बदन कुछ कमजोर और थका लग रहा था। माता पिता के होते वह कुछ न कह पाई।छलछलाती आँखों ने बहुत कुछ कह दिया  था।
"पापा ....आप अंदर आओ न ...पर पहले दिखाओ क्या लाये हो जो छिपा रहे हो..।दीजिए न पापा..।"अपनी दोनों बाँहें उठा कर गोद में चढ़ने को मचलती सुप्रिया बोली।
सुकेश के चेहरे की खुशी बेबसी में बदली। फिर उल्टे हाथ में पकड़ा सूटकेस जमीन पर रखते हुये उसने सुप्रिया को गोद में उठा लिया। इस प्रयास में उसका दायाँ हाथ आगे झूल गया।
"बेटा ...तुम्हारा तोहफा....।"कहते हुये सुकेश का गला भर्रा गया । ****
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क्रमांक - 02
जन्मस्थान : रतनगढ़ 
जन्मतिथि : 15 नवम्बर
शिक्षा : एम ए, बी एड बनस्थली विद्यापीठ

व्यवसाय : -
पति के व्यवसाय में सहयोग व गृह संचालन

विधाएं : -
लघुकथा,कहानी ,आलेख, संस्मरण इत्यादि

पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित : -

 लघुकथा कलश ,अविराम साहित्यिकी, गृह स्वामिनी, शैक्षिक-दखल,  किस्सा कोताह, सहित्यनामा  ,
राजस्थान पत्रिका,दैनिक भास्कर क्षेत्रिय- युग पक्ष, जनसंसार आदि

ऑन लाइन पत्र पत्रिकाएं : -

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सम्मान : -

हिंदी प्रतिलिपि द्वारा आयोजित "प्रतिलिपि पर्यावरण सम्मान, में  रचना 'अवलम्बन"को तृतीय पुरस्कार मिला।
श्रीमती कांता रॉय जी द्वारा आयोजित लघुकथा अधिवेशन दिल्ली में "लघुकथा श्री" से नवाजा गया  श्रीमति कृष्णा  स्मृति लघुकथा सम्मान में रचना "समर्पण"प्रथम स्थान के लिए पुरस्कृत हुई।
सोशल मीडिया पर विभिन्न समूहों द्वारा आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में  कई बार विजेता।

पता : -
बी - 305 राजमोती फेज सेकंड , छरवाड़ा रोड
पो.ओ.वापी , जिला वलसाड - गुजरात
1.रोबोट
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 अच्छी खासी प्रतिष्ठित प्राध्यापिका , लेकिन आज दो महीने से अस्पताल की दीवारों को शून्य में घूरती रहती थी।  हमारी पूरी टीम अपने अथक प्रयासों के बावजूद उसकी चुप्पी तोड़ने में खुद को असहाय महसूस कर रही थी।
नींद में वह बड़बड़ाती रहती थी कभी  गणित का कोई सूत्र या मनोविज्ञान का  कोई विश्लेषण। कई बार ऐसी अनसुलझी बातों के रहस्य उगल जाती जिसे सुनकर, हम उसका वाक्य पकड़ कर अपनी डायरी में नोट कर लेते कि क्या पता कौनसा सूत्र या भावना,कब व किस मरीज की समस्या सुलझाने के काम आ जाए? लगता था जैसे ज्ञान का खज़ाना हो उसके दिमाग में।
लेकिन जब आँखें खुली होती तब वह हमेशा एक  अंतहीन चुप्पी में रहती थी। कई बार वह पास में पड़े नैपकिन से अपना मुँह ढक लेती थी जिसे हम सामान्य क्रिया समझते।
हमारी पूरी टीम असमंजस में थी कि नींद में जो दिमाग इतना काम करता है वह जागने पर इतना सुप्त कैसे हो जाता है?
उसके घर वालों से बात की लेकिन समस्या का कहीं कोई ओर-छोर नही मिल पा रहा था ।
आज अचानक उसने सामने पड़े नैपकिन को उठाया और अपने मुँह पर पट्टी की तरह बाँधते हुए  धीरे से  बुदबुदाई ," डॉक्टर!आप अपनी पत्नी का मुँह भी ऐसे ही बन्द करते होंगे न जब वह बोलती है!"
मैं अचकचा कर बोल पड़ा," मतलब?कहना क्या चाहती हैं आप? मैं उसका मुंह बंद क्यों करूँगा ?वह जो बोलना चाहे बोल सकती है आखिर है तो इंसान ही न।"
"नहीं डॉक्टर, नहीं! इंसान नहीं पुरुष के इशारों पर चलने वाली रोबोट कहिए जो केवल उसकी रजामंदी पर नौकरी करे, किस से बात करनी है  किससे नहीं करनी है यह भी उसका पति ही निर्धारित करे।
उसकी सैलेरी कहाँ खर्च होगी? और तो और उसकी मित्रता का दायरा भी पति ही निश्चित करता है।
वह अपना विवेक,पति नामक पिंजरे में कैद करके रखती है जिसे समय-समय पर  निर्देश मिलते रहते है कि कब तुम्हें  काम करना है और कहाँ जाकर रुक जाना है ?"
 अब मैं महसूस कर रहा था पिंजरे में बन्द विवेक इस कैद से बाहर आने हेतु छटपटा रहा था । ****

 2. छुपा-खंजर
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आज जब तुम मेरे पास आए तब तुम्हारी आँखों में दरिंदगी  साफ दिखाई दे रही थी .. एक चमकीला सा नया चोला धारण करके आए थे और उसी में छुपे खंजर से तुमने मेरी हत्या कर दी।
तुम कैसे भूल गए कि मैं ही तुम्हारा पहला प्यार थी? सोते-जागते, उठते-बैठते हर वक़्त तुम्हारे चिंतन में मैं ही रहती थी।
बहुत लोगों ने तुम्हें मेरे ख़िलाफ़ भड़काने की भी कोशिश की लेकिन तुमने कभी किसी को तवज़्ज़ो नहीं दी और बड़ी शिद्दत से मुझे प्यार करते रहे ।
मैंने तुम्हारे प्यार को इतनी गहराई से महसूस किया है ,जब तुम्हारे एक मित्र ने तुमसे कहा था ," इसके भरोसे कैसे तुम अपनी जिंदगी को सौंप सकते हो जो तुम्हें दो वक़्त की रोटी भी बमुश्किल समय पर देती हो।" 
उस समय तुम्हारा जवाब सुनकर मेरा सर गर्व से ऊँचा हो गया था जब तुमने कहा था ," यही मेरा पहला प्यार है मैं इसको पूरी शिद्दत से चाहूँगा। जब तक सांस है,यही मेरा मान है..यही मेरा अभिमान है ।"
अब मैं  आखिरी सांस गिन रही हूँ ।
मैं कोई और नहीं..मैं ही तुम्हारी निष्पक्ष पत्रकारिता हूँ।
आखिर पीत-पत्रकारिता वालों ने तुम्हें खरीद ही लिया। ****

3.क्षमता
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"फिर वही पुराना राग छेड़ दिया तुमने,
मैंने मेरी पूरी जमा पूंजी लगा दी है तुम्हारी पढ़ाई व कोचिंग में, अब मैं अब कुछ नहीं सुनना चाहता वही घिसे पिटे बहाने हैं न तुम्हारे।"
"पा----प..आ
"विज्ञान पढ़ते हुए सिर दुखता है,मुझे साहित्य में रुचि है ;ऐसे बहाने तुमने पिछले साल से बहुत बार कर  लिए हैं।
तुम्हारे बचपन से ही मैंने सबको बता रखा है कि देखना एक दिन मेरा बेटा डॉक्टर बनेगा।"
यह कह कर मैं दनदनाता हुआ बाहर बैठक में आ गया,मेरे सामने नंदू को खड़ा हुआ पाया, उसके मुँह पर हवाइयां उड़ रही थी ,बोला,"साहब इस बार पूरी फसल अधिक मात्रा में रासायनिक खाद डालने व मिट्टी के अनुकूल  न बोई जाने से बर्बाद हो चुकी है।"
"क्या!ऐसा कैसे हो गया?"
"मालिक,फसल तो चौपट हुई जो हुई ,ऊपर से जमीन भी अब कहीं की न रही।
कम से कम पांच साल तक उस पर अनाज उपजने से रहा।"
"हे भगवान,ज़्यादा फसल उगाने के लालच ने आज मुझे कहीं का नहीं छोड़ा।" 
"अरे! "मैं मेहुल के साथ भी तो कुछ वैसा ही कर रहा हूँ ,
उसकी क्षमता व कौशल से ज्यादा वह भी कैसे पढ़ पाएगा?"
मुझे इतनी तेज आवाज़ में उससे बात नहीं करनी चाहिए थी ।अब वह जहां  कहेगा वहीं पर एडमिशन करवा दूँगा।"
अचानक उसके कमरे से उठती लपटों ने एक अनजानी आशंका से भर दिया मुझे ।
किसी तरह कमरे के दरवाज़े को धक्का देकर तोड़ा गया व मैं उसको बचाने के लिए भुजंग की  तरह  उससे लिपट गया।
जब दो दिन बाद मुझे होश आया तो मेरे दोनों हाथों को संक्रमण फैलने से बचाने हेतु काटा जा चुका था।
मेहुल  जा चुका था ,आज मेरे पास प्रायश्चित के आँसूओं के सिवाय कुछ नहीं था।  ****

4. गूँज
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जब से मेरी जिठानी की मृत्यु हुई है ,सास ने पीछे वाले बाड़े में जहां बकरियाँ बंधी रहती हैं,वहां की सफाई का ज़िम्मा मुझे दे दिया,लेकिन मैं जब भी उधर जाती ,तब दो घूरती हुई आँखे मुझे ऐसे चुभती हुई महसूस होती ," जैसे कि मेरे जिस्म को अंदर तक चीर कर निकल रही हों ।"
ऐसा नहीं है कि वे आँखे घर में मेरा पीछा नहीं करती ,लेकिन वहाँ मेरे सुरक्षित रहने के कई कारण ,आवरण का काम करते ।
  हमेशा की तरह आज भी मैं अपना काम जल्दी निपटा कर जाना चाहती थी ,परन्तु सासु मां ने आज लकड़ियां भी मंगवाई थी जिससे देर भी लग सकती है व अंधेरा होने का भी भय था ।
किसी तरह मैंने ,बकरी के बाड़े की सफाई की व लकड़ियों के गट्ठे को उठाकर जाने लगी ,अचानक मेरे पैरों में एक मेमने का बच्चा आ गया ,जो में ,में करता हुआ मुझसे लिपट गया ।
मैंने देखा कि वहीं पर एक कुत्ता खड़ा है ,जो लपलपाती नज़रों से उसे अपना शिकार बनाने की फ़िराक में है । 
तब तक गट्ठर  नीचे पटका जा चुका था ,मेमने को गोदी में लेते हुए स्वत: ही मेरे कदम  बकरियों के बाड़े  की तरफ वापिस मुड़ गए,जहाँ उसे उसकी मां के पास सुरक्षित छोड़ सकूँ ,उसे बकरियों के झुंड में  छोड़ कर,मैंने एक लट्ठ उठाया व साहस के साथ कुत्ते पर दे मारा, वह कोय-कोय करता जा  चुका था । 
 लेकिन एक और कुत्ता था जो अपनी हैवानियत से मेरी तरफ जीभ लपलपा रहा था ।
वह मुझ पर झपटना ही चाहता था परन्तु बिना कोई मौका दिए , लकड़ी काटने वाली कुल्हाड़ी उसके हाथ को काट चुकी थी ।
इस कुत्ते की तो कोय-कोय करने की भी औकात नहीं बची थी । ****

5. खण्डहर का सन्नाटा
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सुनो,मेरा नी कैप कहाँ है ? आज अद्वैत की स्कूल में स्पोर्ट्स डे है ,वहाँ चलना है ना !  
हाँ ,चलना तो है ही क्यों नहीं जाएंगे आखिर हमारा पोता जो है,यह लीजिये आपका नी कैप ,
गुप्तजी को नई कैप पकड़ाती हुई शर्मिला जी अपनी कलप लगी डोरिया की साड़ी को ठीक करने लगी ।
हालांकि उनके भी सर्वाइकल का दर्द था ,लेकिन सब कुछ भूल कर दोनों अपनी जरूरत का सामान व पोते का बैग जो पहले से ही तैयार था ,लेकर स्कूल के लिए निकल पड़े ।
अद्वैत दौड़ रहा है और दोनों अपनी अपनी जगह खड़े होकर तालियां बजा रहे हैं । 
पोते को जब मेडल मिला तो गुप्ता जी लगभग दौड़ते हुए पहुंच गए ,पोते को गोदी में लेकर ।
वहां से लौटते हुए दोनों उसके पिता विवेक का बचपन याद कर रहे थे जब वह ऐसे ही मेडल लेकर आता था लेकिन तभी फ़ोन की घण्टी घनघना उठी ।
गुप्ता जी ने हंसते हुए फ़ोन उठाया ,
"हाँ ,स्वाति ! अद्वैत फर्स्ट आया है अपनी रेस में,
मैं और तुम्हारी मम्मी घर जा रहे हैं वापिस।"
धीमी आवाज में ---- " ल..लेकिन तुम शाम को ले जाना उसको!"
"ठीक है।"
मरियल सी आवाज में "ठ.. ठी क^^ है।"
अब तक आवाज एकदम दब चुकी थी ,"ड्राइवर गाड़ी को डे केअर सेंटर की तरफ मोड़ लो"  ।
और पनियाई आँखों से शर्मिला जी को देखते हुए अद्वैत को इस तरह छाती से लगा लिया ,मानो अमूल्य निधि को कोई छीन कर ले जा रहा हो । ****
 
6.वादा
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तुमने कहा था कि तुम हमेशा मेरा साथ दोगे और हर कदम पर मेरे सहायक बनोगे।"
"हाँ कहा तो था।"
"फिर अब मुझे अकेले ही क्यों लड़नी पड़ रही है यह समानता की लड़ाई?"
"क्योंकि तुमने चाही है समानता तो यह तुम्हारी लड़ाई हुई।"
"हाँ, लेकिन तुम्हारा वादा?"
"वादा ,कौनसा वादा? खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मारने का शौक मुझे नहीं है।" ****

7.धरोहर
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मनु व शतरूपा आज नाव में नहीं थे उस सूखे, बंजर धरातल पर थे, जहाँ शताब्दियों से कोई आर्द्रता नहीं दिखाई दी थी। वहीं सामने बैठे थे प्रजापति ब्रह्मा। दोनों के हाथों में एक -एक पोटली थी जिसे एक अज्ञात भय के साये में दोनों ने अपने हाथों से जकड़ कर हृदय से लगा रखा था।
दोनों के क्लांत तन से ज्यादा मन  पर परतें थीं जो अनकहीं दास्तां की निशानी थे।  बीच की  गहरी खाई उनकी दूरी को और बढ़ा रही थी।
  प्रजापति भी असमंजस में थे और यह तय नहीं कर पा रहे थे कि कौन किसका अपराधी है?
अचानक एक अश्रु पथरीली जमीन पर गिरा और शतरूपा बोल पड़ी,"हम दोनों के आपसी सम्बन्धों  की विडम्बना यही है कि जिस  तरह  से  हम बँधे एक दूसरे से बन्धे हैं, उसी की क्रूरता से मुक्ति पाने का संघर्ष हमारे जीवन का हिस्सा बन चुका है। यदि तुम चाहो तो मेरे लिए खींची गई सारी लक्ष्मण रेखाएँ रेत पर उँगली से खिंची लकीरों में बदल सकते हो। आँसुओं की तरह ही इन्हें भी हाथ के एक झटके से पोंछा जा सकता है। गुज़री सदियों में  तमाम मानसिक और शारिरिक समझौतों के बाद भी तुम्हारा आतंक अगर बना रहता है, और मुझ पर आधिपत्य की वृत्ति अगर टूटती नहीं तो --" अचानक वह रुक जाती है।
एक आह भरते हुए मनु ने शरीर को साधने का प्रयास किया और अपने हाथों में जकड़ी पोटली को संभालते हुए  एक शिकायती स्वर में बोला,  "इन परिस्थितियों के लिए क्या सारा दोष मेरा है? तुमने कभी समझने की कोशिश भी की क्या कि मैं क्या चाहता हूँ? क्या तुमने मुझे कभी पीड़ा नहीं पहुंचाई?"
अनंत काल तक इस बहस का कोई नतीजा न निकलते देख  प्रजापति बोले," इन आरोपों-प्रत्यारोपों से तुम कभी साथ नहीं रह पाओगे इसका एक ही रास्ता है। यह दोनों पोटलिया एक दूसरे को दे दो और ध्यान रहे,इसकी सार सम्भाल अच्छी तरह से हो।
अब  स्त्री के पास सहेजने के लिए पुरुष का दम्भ  व  पुरुष के पास स्त्री का सम्मान था। ****

8.अवलम्बन
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मैं बिना मुकुट के राजा की उपाधि से नवाजा गया और हमेशा इसी  तर्ज़ पर लोगो की भलाई के लिए काम करता रहा ।लेकिन अब मैं केवल तुम्हारी यादों में तुम्हारे आसपास ही रहूँगा और तुम सबको मेरे बिना ही अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़नी होगी ।" एक दर्दभरी मर्दानी आवाज़ वातावरण में गूँज उठी ।
"नहींईईई...." एक भयंकर चीत्कार  वहाँ की  नीरवता को भेदते हुए आसमान तक को कम्पा गया था ।
"इस तरह हमें अकेला छोड़कर कैसे जा सकते हो तुम  ? तुमने कितने वादे किए थे साथ-साथ जीने मरने के ,कैसे भूल गए ? "
"जब तुम अपनी बलिष्ठ भुजाओं को फैलाकर अपने आग़ोश में भर लेते थे तब  जीवन का कोई भी संताप छू नहीं पाता था ।
आंधी-तूफान , सर्दी-गर्मी  जीवन के हर पड़ाव पर तुम साथ खड़े थे । "
"मैंने मेरा परिवार भी तुम्हारे ही भरोसे बढ़ाया जिसके संरक्षक का उत्तरदायित्व तुमने बखूबी निभाया  ।" गला भर्राई हुई एक कोमल आवाज़ आई ।
"केवल मैंने ही  तुम्हें आश्रय नहीं दिया, बदले में तुमने भी कितना कुछ किया है मेरे लिए..उसी मर्दानी आवाज ने कहना जारी रखा,"
तुम्हारे ही सानिध्य से मैं पोषित , पल्लवित और फलित हुआ हूँ ..
तुम्हारे नन्हे मुन्ने बच्चे जब मेरे ऊपर इधर उधर चहकते थे और उनकी धमाचौकड़ी व हंसी जब मेरे घर -आंगन में गूँजती थी तब मैं भी हराभरा हो जाता था क्योंकि यही मेरे लिए संजीवनी थी ..
तुम्ही हो जो  इस पर्यावरण के लिए आकर्षण पैदा करती हो, इसलिए इंसान सुंदरता को प्रतिबिंबित करने के लिए तुम्हारी तस्वीरों को सहेजना चाहते  हैं।"
कराहते हुए फिर  वही आवाज़ अंतिम बार गूँजी । वातावरण में अजीब सा कोहराम मच गया उसकी आवाज थी भी इतनी दर्द भरी हुई ।
चारों तरफ फैली हुई हवा भी सांय सांय करना बंद करके पत्तों के बीच छुप गई थी ।  सरगम को खुद को नहीं पता कि वह कब और कैसे चुप हो गई ? भौरों का संगीत भी अब मस्त न होकर वेदना देने लगा था क्योंकि फूलों में रस बनना बन्द हो चुका था ।
पत्ते अब क्यों खिलेंगे ?वे भी मुरझाने लगे थे ।  सामने खड़े ऊंचे पर्वत ने पिघलना शुरू कर दिया ।
देखा जाए तो त्रासदी का वह मंजर था जिसमें केवल और केवल विनाश था ।
कोमल आवाज का करहना अब भी बदस्तूर चालू था ,
"आज तुम्हारी लाश  पड़ी है लहूलुहान ,
 इस इंसान को न याद आई तुम्हारी ठंडी कोमल छांव ।"
" उसने कुल्हाड़ी से  तुम्हारे ऊपर प्रहार नहीं किया बल्कि  अपने पाँवों पर किया है  । दिख रहा है मुझे वह दिन भी जब बहती हुई नदी के जल को रोकने के लिए तुम नहीं होंगे और पानी का बहाव चारों तरफ तबाही मचा देगा ।
देख पा रही  हैं मेरी अनुभवी आँखे वह मंजर,जब  ग्लोबल वार्मिंग के चलते चारों तरफ  गर्मी से झुलसते लोगों  को दूषित हवा में सांस लेना दूभर हो जाएगा ,तब उन सबको  बचाने के लिए तुम मौजूद नहीं रहोगे ।
" तुम्हारे बिना मुझे नहीं पता अब मेरी प्रजाति भी कब लुप्त हो जाए ?"
वैसे भी प्रदूषण ,कीटनाशकों के अधिक प्रयोग और आधुनिकीकरण के कारण मेरे कई कबीले लुप्त हो चुके हैं व कुछ लुप्त होने की कगार पर हैं ।
कहते हुए विरहणी चिड़िया ने भी दम तोड़ दिया । ****

9. डाह के परवाज़
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पापा ने सख्त हिदायत दे डाली थी स्नेहा को कि कल से कॉलेज नहीं जाएगी।
छोटी बहन को कटघरे में खड़ा करके , सलिल मन ही मन मुस्कुराता हुआ सीटी बजाते हुए बाहर निकल गया था।
बचपन से ही उसे, हक़ से ज्यादा मिलने का परिणाम यह रहा कि वह हर वस्तु पर खुद का ही अधिकार समझता गया।
इस विशेष अधिकार ने उसे आत्ममुग्ध के साथ-साथ अहंकारी भी बना दिया था और उसकी बढ़ती आवारागर्दी की वजह इस वर्ष वह फेल होकर स्नेहा की कक्षा में ही बैठने लगा था।
स्नेहा,सभी अध्यापकों की चहेती होने के कारण  कई बार सलिल को नीचा देखना पड़ता था परिणामस्वरूप  छोटी बहन के प्रति एक अनदेखे अधिकार के साथ-साथ डाह भी उसके मन में पनपती चली गई थी।
ऐसा नहीं था कि वह उससे नफरत करता था ,कई बार सबके सामने अच्छा बनने की चाहत हो या बहन के प्रति स्नेह, वह अपनी फैलती हुए ईर्ष्या को समेटने की कोशिश करता लेकिन घर हो या स्कूल, फिर ऐसा कुछ न कुछ हो जाता जिसमें छोटी स्नेहा उससे बाजी मार ले जाती थी।
और उसके ईर्ष्या के पंख दुबारा फड़फड़ाने लगते क्योंकि स्नेहा से हार जाना उसे किसी भी कीमत पर मंजूर नहीं था।
 और जब बारहवीं का परिणाम आया तब वह तृतीय श्रेणी से पास हुआ व स्नेहा मेरिट में आई थी।
न चाहते हुए भी उसके मन की ईर्ष्या ने पँख फैलाने शुरू कर दिए थे।
ऐसा नहीं है कि वह हमेशा ही स्नेहा को नीचा दिखाना चाहता हो,लेकिन जब कभी मैं असफल होता और निराशा के तारों में फंस कर घायल होता तब कोई मेरी मरहम पट्टी नहीं करता बल्कि मजाक बनाया जाता कि देखो,छोटी बहन के सामने हार गया।
और  फिर वह लहूलुहान पँखों से उड़ान भरता हुआ  इसकी जड़ खत्म करने का उपाय सोचने लगता और कल अचानक ही वह मौका उसके हाथ में आ ही गया था।
 पापा की आँखों से निकलते अंगारों को देख कर मम्मी भी सहमी सी एक तरफ खड़ी थी व एक कोने में सिर झुकाए स्नेहा भी।
पापा की एक गर्जन में ही मेरा उद्देश्य पूरा हो गया था जब उन्होंने एक फोटो मम्मी को दिखाते हुए कहा,"यह तो अच्छा हुआ सलिल ने समय रहते मुझे बता दिया अन्यथा पता नहीं तुम्हारी बेटी क्या क्या गुल खिला रही होती कॉलेज में!
स्तब्द्ध सी स्नेहा अपने कटे हुए लहूलुहान पँखों को समेटते हुए सुबकती हुई कोने में दुबकी जा रही थी क्योंकि उसे पता था कि
उसकी एक भी नहीं सुनी जाएगी और सलिल भी जानता था कि उसके पुरातन सोच वाले परिवार में उन उड़ान भरते पंखों को कैसे काटा जा सकता है? ****

10. पदचिन्ह
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पिछले महीने ही मेरा ट्रांसफर हुआ तब से मेरे पांव जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे ।
मैं बार बार सुधा के सामने खुशी जाहिर करते हुए कह रहा था ,"अच्छा है!अब हम लोग भैया से मिल पाएंगे ,देखना वे हमें देखकर कितने खुश होते हैं !"
थोड़े दिनों बाद जब  हम लोग नए घर मे शिफ्ट हो गए, तब भैया के ऑफिस से उनके घर का पता लिया व  एक रविवार को समय निकाल कर सुधा  के साथ भैया-भाभी से  मिलने चल पड़ा ।
घण्टी बजाने पर एक लड़की ने दरवाजा खोला ।
अंदर गया तो देखा ,भैया एक कमरे में लेटे हुए थे ।
कृशकाय देह और वह भी हिलने डुलने में असमर्थ !  सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता था कि भैया  लकवाग्रस्त हो चुके हैं ।भाभी भी इतने वर्षों में काफी कमजोर हो चुकी थी जिनके चेहरे पर वेदना व दुःख को साफ तौर पर महसूस किया जा सकता था ।
मैंने कहा ," भैया आपकी यह हालत कैसे हो गई ? बच्चे कहाँ हैं ,आपकी देखभाल करने के लिए कोई नहीं है क्या ?
भैया की आंखों से तो केवल गंगा जमुना ही बह रही  थी ।
भाभी ने ही  बताया ,"दोनों बच्चे अपनी अपनी गृहस्थी में मस्त हैं, यहां आकर हमें सम्भालने के लिए उनके पास समय ही नहीं है ।
तुम्हारे भैया को अब अच्छे डॉक्टर व देखभाल की जरूरत है जो पैसों की कमी की वजह से नहीं हो पा रही है ।"
सुनते ही मुझे धक्का लगा और यादों की परत दर पर खुलती हुई उस दिन पर जा अटकी जब भैया का सामान पैक हो चुका था और वह मुझे व  माँ को छोड़कर जा रहे थे ।
"आज आप हमें इस तरह छोड़ कर नहीं जा सकते भैया,
मैं आपके बिना नहीं रह पाऊंगा ।"
"प्लीज भाभी---आप ही भैया को समझाओ न !  हम कम खाकर गुजारा कर लेंगे लेकिन अलग नहीं रहेंगे।"
भाभी ने भी उस समय उन्हें समझाने की कोशिश की थी लेकिन वह भी भैया की ज़िद्द तोड़ने में कामयाब न हो पाई थीं।
मैं गिड़गिड़ाए जा रहा था ,लेकिन भैया संवेदनाओं को नकारते हुए हमें अनदेखा कर दिया और भाभी के साथ आज से पच्चीस वर्ष पूर्व घर छोड़ दिया था ।
वह दिन मेरे जीवन में काले अध्याय के रूप में अंकित हो गया था, किशोरवय का अबोध बच्चा अपनी पिता की तस्वीर हाथ में लेकर विधवा मां के आंचल में सिर रख कर फफक पड़ा था ।
जब मेरे  पिताजी की मृत्यु हुई तब मैं केवल आठ वर्ष का  था और अपने भैया को ही हमेशा पिता की जगह समझता हुआ बड़ा हो रहा था।
 लेकिन नई नौकरी का मोह कहो या जिम्मेदारियां भारी लगने लगी हो,भैया मुझे व मां को छोड़ कर सपरिवार शहर चले गए  थे ।
कुछ सालों तक भैया ने आना जाना व पैसे भेजना निरन्तर जारी रखा परन्तु बाद में वह सब भी बंद हो गया था लेकिन समय भी कहाँ किसे के रोके रुकता है ,अच्छा निकले या बुरा ,निकलता जाता है।
हम मां-बेटे भी अपनी जिंदगी को किसी तरह जीने की कोशिश कर रहे थे ।
मैं पढ़ाई में अच्छा था , मुझे छात्रवृति भी मिलने लगी थी और थोड़ी ट्यूशन पढ़ानी भी शुरू कर दी थी जिससे खर्च चलाना आसान हो गया था।
 माँ के हौंसलों और मेरी निरन्तर मेहनत से एक ऊंचाई को नापता हुआ मैं बड़ा प्रशासनिक अधिकारी बन गया था ।
मेरी शादी में भी भैया-भाभी औपचारिकता के लिए केवल दो दिन आए थे ।
उसके बाद इन पंद्रह वर्षों में कभी मिलना भी नही हुआ ।
भैया की गर्र गर्र ररर की आवाज से में वर्तमान में लौट आया।
मैंने देखा जैसे कि वे कुछ कहना चाह रहे हैं ।
भाभी को देखते हुए मैंने कहा ," भाभी आप चिंता मत करिए ,आज से हम लोग एक साथ ही रहेंगे और भैया का अच्छा इलाज़ भी करवाएंगे ।
तभी सुधा बोल उठी ," हाँ भाभी ,आप बिलकुल चिंता मत करिए, सब ठीक हो जाएगा ।इतने वर्षों तक इनकी आंखों में मैंने एक सूनापन देखा है जो भैया के घर छोड़कर जाते हुए पदचिन्हों का हमेशा पीछा करता रहा है और आज आप लोगों को देख कर उनके चेहरे पर जो चमक आई है वह किसी सपने के पूरे होने से कम नहीं है।
भैया की आँखें एक तरफ़ घूमकर वहाँ अटक गई जहां उनके दोनों बच्चे भैया के कंधे पर बैठे थे ।
आंखों से अनवरत बहते आँसू शायद कह रहे थे ,"तुम जैसे पदचिन्ह छोड़कर आए,उन्हीं का अनुसरण तुम्हारे पुत्र कर रहे हैं।" ****

11. अहंकार
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अकेलेपन से त्रस्त जिंदगी अपनी गहराई तक मुझे नाप चुकी थी यूं कहिए  काफी हद तक अपने में डुबो चुकी थी।
 नौकरी के लिए जगह-जगह धक्के खाने के बाद आज मायूसी अपने चरम पर थी अचानक दर्पण ने मुझे अपना अक्स दिखा दिया। खुद को पहचानना मुश्किल था।  ऐसा महसूस हो रहा था जैसे अंदर से कुछ पिघल कर तिरोहित होने को व्याकुल था। 
कहा था कौशल ने,"एक बार सोच लो दुबारा, मेरा-तुम्हारा नही तो इस बच्ची का सोचो जिसे बिना अपराध तुम परेशानी में डाल रही हो।"
"लेकिन तुम्हारी गलतियां बर्दाश्त नहीं होती मुझसे, प्लीज रेकॉग्नीज़ योर मिस्टेकस।"
"ओनली मय मिस्टेक्स!लड़ाई तुमने भी बराबर की है मेरे साथ।"
"डोंट जस्टिफाई योरसेल्फ"
मेरा पारा तब तक और चढ़ चुका था।
" केवल मैं ही क्यों सोचूँ, तुम गलती करते जाओ और मैं तुम्हारे साथ रहूँ?"
  "गलती हम दोनों की थी ,और माफी भी मांग रहा हूँ  कि सब भूल कर आगे बढ़ते हैं। ऐसे झगड़े जब दो इंसान साथ मे रहते है तब होना मामूली बात है।"
"मेरी गलती बिल्कुल नही है ,जो कुछ किया है तुमने किया है।  मैंने तुमसे बहुत बार कहा है कि मुझसे कोई गलती नही होती, मैं एक दम सही हूँ।"
"वाह भई वाह!तुम्हारी गलती,गलती नहीं है और मेरी गलती अपराध।" 
भुनभुनाता हुआ कौशल बिना टिफिन लिए ऑफिस जा चुका था
अब मन के एक कोने से फुंफकारती एक विशाल आकृति सामने आकर खड़ी हो गई थी जो मुझे किसी भी कीमत पर न झुकने की सलाह दे रही थी और खुद के घेरे में लेकर थोड़ी देर बाद मुझे देहरी पार करवा चुकी थी क्योंकि उसने मुझे क्षण भर के लिए राजा बना दिया था और भावनाओं को प्यादा।
लेकिन जीवन के थपेड़ों ने मुझे एहसास करवा दिया कि यह आकृति केवल बिम्ब है वास्तविकता तो मेरा मन है जो अभी भी कौशल से बहुत प्यार करता है।
और बिम्ब में कोई सच्चाई नहीं होती उसमें वही दिखता है जो हम देखना चाहते हैं। ****
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क्रमांक - 03
जन्म तिथि :  08/08/1955
 शिक्षा : एम ए हिन्दी साहित्य , पी एच डी 
पिता का नाम : श्री मोहनलाल जी शुक्ल 
पति का नाम : श्री विजय रामदुलारे मिश्र
दो पुत्र :-
हेमंत मिश्रा : मेकेनिकल इंजी
मयूर मिश्रा : आई टी इंजी
स्थाई पता - -  अभ्यंकरनगर नागपुर 

 व्यवसाय-- भारतीय वायुसेना से सेवानिवृत्ति 
 प्रकाशन विवरण
 प्रकाशित पुस्तक/पुस्तकों की संख्या-04 
अनुवादित मराठी और अंग्रेजी से हिंदी 03

प्रकाशित पुस्तकें : - 
1---और शिला मानवी नहीं बनी
प्रकाशन वर्ष-सितंबर 1999
विधा कहानी
महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी के प्रकाशन अनुदान से सम्मानित /प्रकाशित। 

2 सूखी स्याही 
प्रकाशन वर्ष 2019 
विधा लघुकथा संग्रह 

25 वर्षों तक वायुसेना की हिन्दी पत्रिका किरण की संस्थापिका संपादिका। भारतीय वायुसेना से डिप्टी डायरेक्टर आॅफिशियल लैंग्वेज हिन्दी की वित्तीय संरचना से सेवानिवृत
सम्मान :- 
 ऑनलाइन प्राप्त सम्मान की संख्या-लगभग 30
 प्रत्यक्ष में प्राप्त सम्मान की संख्या-35

अंतर्राष्ट्रीय अग्नि शिखा मंच की नागपुर इकाई अध्यक्ष ।

विदर्भ हिन्दी साहित्य सम्मेलन नागपुर की संयोजन समिति की सदस्य

पता : -
श्री विजयकुमार मिश्र
नूतन भारत स्कूल के पास अभ्यंकरनगर नागपुर 440010 - महाराष्ट्र

1.खानदानी
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              ओह ये मरी गर्मी तो जान लिए जा रही है।
       उमस भरे उस कमरे में पंखे भी काम नहीं दे रहे थे। बडी़ सी खानदानी हवेली बडे़ बडे़ दामी पर्दों, चिक और ऊंचे रोशनदानों से सुसज्जित थी।
         मीनल शहरी रीति रिवाजों में पली बढ़ी लडकी-- ब्याह कर उस बड़ी सी हवेली में आई। वह क्या जाने पर्दे और रोशनदानों की कहानियाँ। पति किसी कार्य से बाहर गांव गए थे। मीनल को उस उमस भरे कमरे में नींद नहीं आ रही थी। सासुजी ससुरजी और दादा ससुरजी अपने-अपने कमरे में आराम से सो रहे थे।उमस और गर्मी से परेशान मीनल ने कमरे में रखा पुराना सोफा बाहर हवेली के सामने बने छोटे से बगीचे में खींच लिया और उस पर लेट गई । ठंडी ठंडी खुशबूदार हवा में कब उसकी आंख लग गयी उसे पता ही नहीं चला।
          सुबह सुबह आँख खुली। प्यारी पुरवैया के साथ नींद की खुमारी। मीनल बिलकुल भूल गई थी कि वह अपने खानदानी ससुराल में है।अंगडाई लेते हुए आराम से उठ कर बैठी तो उसने देखा कि कुछ ही दूर पर कुर्सी पर एक धुंधली सी आकृति दिखाई दे रही है।
      हड़बडा़ई सी वह उठ कर खडी़ हो गई।  देखा कि वे उसके पूजनीय वृद्ध दादा ससुरजी थे जो ना जाने कब से वहाँ बैठे थे। उनके चरणस्पर्श करते हुए मीनल ने पूछा दादाजी आप यहाँ इतनी सुबह?
     - - - और उन्होने जो कहा उसे सुनकर मीनल खुद अपने आपमें शर्मिंदगी से भर गई - -" वे कह रहे थे बिटिया जिस घर की अनमोल बहू बेटियाँ खुले आसमान के नीचे बगीचे में बेसुध सो रही हों उस घर के बुजुर्ग को कैसे नींद आ सकेगी। अब खानदान की इज्ज़त की रक्षा की खातिर तुम्हारी चौकीदारी करने के लिए किसी नौकर को भी नहीं कह सकता था मैं। इसलिए मैंने ही यहाँ रात की पहरेदारी सँभाल ली - - कहते कहते वे अपने अर्धपोपले मुख  से हँस दिए"--और मीनल उस पर तो घडों पानी पड़ गया था मानो।  उनकी बात पर ना कुछ प्रतिक्रिया दे पाई ना कुछ कह पाई-- चुपचाप अपने कमरे में चली आई----  खानदान की आन- बान- शान को सदैव बनाए रखने के दृढ़ संकल्प के साथ। ****

2.अनचीन्हे रिश्ते 
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आओ ना--आओ ना ओ  बाबूजी देखो तो अभी बहुत जलवे बाकी हैं मेरे पास। डांस करूंगी गाना गाऊंगी हर तरह से खुश करूंगी। आओ ना बाबू। बीस पच्चीस छोटी छोटी कोठरियों के दरवाजे छज्जे या खिड़कियों से उठती आवाजें मुनीश को विचलित कर देतीं। वह चिल्ला-चिल्ला कर कह देना चाहता कि मैं कोई बाबू नहीं हूँ। तुम जैसा ही एक मजदूर हूँ। तुम अपना हुनर बेचती हो और मैं दिमाग  बेचकर पेट भरने का एक जरिया तलाश करता हूँ।
  उस गली के शाॅर्टकट से स्टेशन पर निकलते हुए रोज मुनीश सौ सौ लानते भेजता खुद पर मगर पाँच मिनट के लिए पच्चीस मिनट गँवाना उसे गवारा नहीं था।अतः वह वहीं से जाया करता। 
     छः महीने पहले ही वह अपने गाँव से इस मँझोले से शहर में आया था। यहां स्टेशन के पास एक कंप्यूटर सेंटर में बैठकर टिकिट निकालना, शहर में घूमने आने वालों को टैक्सी वाहन गाईड दिलवाना , होटल रूम दिलवाना आदि कार्य करता रहता।
      अलबत्ता आधी रात के बाद वह  बरबस उस मोगरा गली से ही होकर घर जाता। भीनी भीनी महक से महकती वह सुनसान गली उसे किसी मंदिर का सा आभास देती। साथ ही एक कोठरी के सामने रोज खिड़की  पर बैठी वह तीन वर्षीय छोटी सी गुड़िया मानों राह देखती बैठी मिलती। उसकी प्यारी मुस्कान और चमकीली आँखें उसे पूरे समय पुकारती रहतीं।
      एकबार लगातार तीन चार दिन वह बच्ची नहीं दिखाई दी तो मुनीश की बेचैनी बहुत बढ़ गई और अपना पूरा साहस बटोर कर उसने द्वार खटका दिया। द्वार सहज ही  खुल गया। भीतर के टिमटिमाते बल्ब में देखा कि एक अत्यंत क्षीणकाया मटमैले बिस्तर पर बेहोश सी पड़ी है और उसके सिरहाने वही बच्ची रो रही है। एक अनजानी करुणा से मुनीश का दिल सिहर गया। बच्ची के प्यार से बँधे उसके फर्ज ने उसे साहस दिया। पुलिस को फोन लगाकर उसने पूरी स्थिति बतायी।पुलिस ने वहां पहुंच कर उस बच्ची की माँ को अस्पताल पहुंचाया और बच्ची को अनाथाश्रम भेजने की कार्रवाई करने लगे। लेकिन मुनीश की करुणा - - - बीच में आ गई और बच्ची को अपनी भानजी बताकर उसने बच्ची को अपने पास रखने की प्रार्थना की। न जाने क्या सोचकर बच्ची की माँ ने भी इस रिश्ते की हामी भर दी और बहन ने भाई को अपनी बच्ची सौंप दी। पुलिस वालों ने भी  मानवता की पुकार पर परिस्थितियों की  गंभीरता को समझते हुए बच्ची को उसकी तथाकथित नानी और मामा को सौंप दिया कुछ डाक्यूमेंट्स पर हस्ताक्षर करवाके। - - - और करुणा का मूर्तिमंत रूप बने वे अनचीन्हे रिश्ते खुद पर ही गौरवान्वित हो उठे। ****
      
      
3.क्या सचमुच बसंत आया था
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         चिड़िया अपने घोंसले में बैठी चूज़ों को दाना चुगा रही थी। इतने में ठंडी सी बयार के साथ महमह महकती गंध घोंसले में घुस आई। चिड़िया मदहोश सी उस बसंती बयार में उब-डूब होने लगी। चूजे सीपी सी चोंच खोलकर चिड़िया को तकते रहे लेकिन चिड़िया तो भटक गई थी बसंत की लरजती पुकार पर----घोंसले से बाहर झांका। अनाज के खेत में सुनहरी बाली के साथ फुनगी पर वह दिखा। अहा कितना सुदर्शन कितना खूबसूरत कितने प्यारे रंगों में ढला है  उसका वजूद तो पूरा वसंत अपने भीतर समेटे है। चिड़िया सम्मोहित सी उसकी ओर उड़ चली। चूजे मुँह खोले चुग्गे की राह तकते रहे मगर चिरैया तो नव यौवना सी न्यौछावर हुई जा रही थी उस अनजान गंधर्व से चिडे़ की तनी हुई ग्रीवा और पंखों के रंग रूप पर उसकी यही कमजोरी उसे रुसवाई की राहों पर खींच ले गई। घोंसले के परले सिरे पर उदास सा खड़ा उसका चिड़ा-- उसके चूज़ों का जीवनदाता, उस चिड़िया की दीवानी उड़ान को देखता रह गया।सोचता सा कि बसंत तो दिलों को जोड़ने वाला पर्व  है फिर उसका घर क्यों टूटा। बसंत ने उसकी चिड़िया को क्यों मोह लिया। कुछ समय बीत गया। लेकिन बसंत तो छलिया है। कब किसी एक का हुआ है भला। बसंत बीतते ना बीतते वह खूबसूरत रंगीला चिड़ा पंख पसारे उड़ गया किसी अनजानी मंजिल की ओर। यायावर था वह, कौनसे पडा़व उसे बाँध पाते! रह गई चिड़िया नये घोंसले में - -नयी दीवारों में कैद नये चूज़ों की जिम्मेदारियों के साथ। ना घर ही मिला ना विसाले सनम।।री चिरैया क्या सचमुच बसंत आया था? कि जज़्बातों का शोर उठा था हर ओर या बसंत की कामयाबी का जोर उठा था हर ओर।। ****
     

4.बदलाव
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         दस वर्षीय रीनी से डैडी ने कहा - - "बेटा ताऊजी को प्रणाम करो" । बड़े नखरे से रीनी ने ताऊजी के पास जाकर उन्हें प्रणाम किया। ताऊजी ने पीठ पर हाथ रखकर आशीर्वाद दिया। रीनी एकदम छिटक कर अलग हो गई- - बोली "ताऊजी बॅड मॅनर्स--गर्ल्स की पीठ पर हाथ नहीं रखते। " ताऊजी सकते में खड़े रह गये। सोचते रह गए मानवीय सांस्कृतिक व्यवहार की परिभाषाओं में आए बदलाव के बारे में - आशीर्वाद के अर्थ के बारे में और आज की दस वर्षीय सोच के बारे में।****

5.उसकी ईदी
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आज की ईद असलम के लिए सचमुच बड़ी मुबारक है। आज ईदी के रूप में  उसे भारतीय वायुसेना के शिक्षा निदेशालय की एक यूनिट में एल ए सी के पद पर नियुक्ति और ट्रेनिंग पर जाने का आदेश मिला है। आखिरकार उसने साबित कर दिया कि वो एक सच्चा हिन्दुस्तानी है। बचपन से ही उसे सेना में नौकरी करने का जुनून की हद तक शौक था। बार्डर से कुछ ही दूर सेना कैंप के पास की बस्ती में असलम के पिता की हार्डवेयर की  शाप थी। छोटी सी कील से लेकर घर की लौह अलमारी तक वे मंगवा देते थे इसी बिजनेस के चलते उनके अच्छे व्यापारिक संबंध थे! "हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता साहब" यह उनका तकिया कलाम था- - - - और आज असलम की वायुसेना में नियुक्ति ने उनकी ईद यादगार बना दी थी।
      पिछले दिनों होली के दौरान असलम ने अपनी जान पर खेलकर स्कूली बच्चों की एक बस को आतंकवादियों के चंगुल से छुड़ाया था! उसके सीवी बायोडाटा में ऐसे अनेक प्रसंग शामिल थे और आज ईद की दुआएँ उसके लिए देशसेवा का पैगाम लाई थीं। परंतु किस्मत को तो कुछ और ही मंजूर था। कुछ असामाजिक तत्वों ने शाम को  मंदिर मस्जिद में सुअर और गाय का मांस फेंक कर दंगों को न्यौता दे दिया था। अपनी सरकारी ईदी बाल सखा मोहन को दिखाने पहुंचा असलम दंगाईयों के बीच घिर गया । मोहन पर पड़ने वाला वार असलम ने खुद पर झेल लिया - - - अल्लाह ने उसे सबाब का वाली बना दिया और हाथ में --ईद का तोहफा रक्षामंत्रालय का नियुक्ति पत्र सिग्नल उसके हाथों में फड़फड़ाता रहा-- फड़फडाती ही रह गयी उसकी चिरसंचित तमन्ना - - उसकी ईदी सेना में नौकरी की। ***

6.किसका सच? 
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ना जाने क्या हो गया है छोटे को आजकल । कभी कभी अपने आप में गुम सिर्फ पत्नी से बात करेगा और निकल लेगा। कभी अजीब सी वीरान निगाह से बहन को निहारेगा 
       ससुराल वासी बडी बहन जो एक पारिवारिक फंक्शन में शामिल होने के लिए मायके आई थी-- अपने आप को बड़ी उपेक्षित और अपमानित महसूस कर रही थी मगर बात की तह तक नहीं पहुंच पा रही थी।
         शाम को माँ बाबूजी के साथ बैठकर हँसती बतियाती सुधा एकाएक चौंक गई छोटू के शब्दों से--पत्नी से कह रहा था पूछ लो बहनजी से घर का कौनसा हिस्सा उनके नाम लिखवाना है। नहीं तो अपनी कहानी की पात्र कामिनी की तरह हंगामे मचा देंगी पिता की प्रापर्टी में हिस्सा लेने के लिए।
   मानों साँप सूंघ गया उस खिलखिलाती संध्या में सब को और सोचती रह गयी सुधा--कि मायके के लिए शुभाकांक्षा जिसकी रग रग में बसी है, भाई की सुखी गृहस्थी के लिए पल पल प्रभु से दुआएं मांगती है - - - मगर नारी के हक में बोलने वाली  , नारीवादी विचारों की रचनाकार सुधा क्या सचमुच भीतर से इतनी स्वार्थी है? रचनाकार के सृजन को क्यों उसके जीवन की सच्चाई मान लिया जाता है - - साहित्य तो समष्टि के कल्याण के लिए किया गया सृजन होता है उसे क्यों व्यष्टि के लिए अनिवार्य सच मान लिया जाता है। आखिर क्यों? कब तक? *****

7. एक झोंका 
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          हां हां बोल ले जीजी जितना बोलना है। तू तो माँ है - - दादी है ना। मैं तो ठहरी बंझोटी विधवा मुझे क्या हक है तेरे बेटे तेरे पोते को कुछ कहने का।
         नन्हा सा बालक मधुर गौर से दादी माँ और मौसी दादी की बातें सुन रहा था - - - एकाएक दादी माँ से कहा दादी मौसी ने मुझे नहीं मारा मैं मिट्टी में खेल रहा था और गिर गया।
    अबोध बालक की संवेदना मौसीदादी  के जख्मों को सहला गई। तत्काल उसे छाती से लगा लिया और 62 वर्ष की उम्र की वह वृद्धा 42 वर्षों के कटु वैधव्य और रिश्ते विहीन, संवेदनहीन जीवन की  समस्त कटुता के पार नन्हे मधुर के छोटे से झूठ के रूप में अपनी गूंगी ममता का प्रतिदान पाकर फूल सी हल्की हो गई और चल दी अपने कान्हा जी को शयन करवाने। चालीस सालों में पहली बार उस भावहीन चेहरे की कठोरता के पीछे से झांकती मीठी सी संतुष्टि उस परिवार की भी संतुष्टि बन गई।****


8. बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ
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         पापा पापा मां ने छोटी गुड़िया को अभी तक दूध नहीं पिलाया। रो रही थीं बस।
       मंझली बेटी की बात सुनकर बिष्णुप्रसाद उठ कर पत्नी के पास चल दिए। उन्हें देखकर मंजुला ने आंसु पोंछ लिए और बोली माफ कर दीजिए जी - - तीसरी बार भी मैं आपको बेटा नहीं दे पाई। आपके वंश का चिराग नहीं दे पाई
          क्या मालूम ऐसा कैसे हो सकता है जी - - मुझे तो डॉक्टर ने कहा था कि मेरे गर्भ में बेटा पल रहा
 है। पर अब यह तीसरी भी आ गई छाती पर मूंग दलने।
       मंजुला की बातें सुनकर बिष्णुप्रसाद मंद मंद मुस्कुराते रहे फिर बोले अरे पगली मेरे लिए बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं है। मैं तुम्हारे मन को समझ रहा था - - अपनी दुविधा के चलते तुम कोई गलत कदम ना उठालो इसलिए मैंने ही डाॅ से कहा था कि तुम्हें बेटा ही बताए।
          चलो कोई बात नहीं हम इस तृतीया को अनाथालय में दे देते हैं या किसी को गोद देते हैं।
      बिष्णुप्रसाद की बात सुनकर मंजुला ने आंख भरकर तृतीया की ओर देखा। गोल चांद सी दमकती गुलगोथनी आंखें मूदें सपनों की दुनिया में मुस्करा रही थी।
        बोल उठी नहीं जी अब आ ही गई है तो पल भी जाएगी जी। किसी को क्यों दें। और बिष्णुप्रसाद मन ही मन धन्यवाद करने लगे उस क्षण का जब "बेटी बचाओ बेटी पढाओ" अभियान के एक विज्ञापन से प्रेरित होकर उन्होंने मंजुला से झूठ बोलने का विचार बना लिया था और डाॅ से भी कहलवा दिया था--- बिना किसी जांच के ही। उन्होंने देखा कि मंजुला तृतीया को अपने अंक में भरकर अपने आप में मगन सी बोले जा रही थी---मेरी गुड़िया मेरी लाडो - - - तुझे खूब पढाउंगी खूब विद्या दूंगी---तुझे मैं अपने देश की बड़ी अच्छी नागरिक बनाऊंगी ---
         और बिष्णुप्रसाद  भी खुशबू और खुशी का हाथ थामे चल दिए उन्हें विद्यालय पहुंचाने जहाँ बडे़ बड़े अक्षरों में लिखा था #"बेटी बचाओ बेटी पढा़ओ"---।। *****

9. बिना शीर्षक का वृद्धाश्रम
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    बहू ओ बहू जरा सुन तो बेटा--ये पैरों का दर्द चैन नहीं लेने दे रहा है थोड़ा गरम पानी दे दे सिंकाई करूंगी तो अच्छा लगेगा---कराहती कांखती अम्मा चौथी बार गुहार कर रही थी लेकिन सोफे पर बैठी टीवी देख  रही बहू के कानों पर जूं नहीं रेंगी। फोन बंद कर जोर से सास का हाथ पकड कर उसे पीछे वाले दडबेनुमा  कमरे में ले जाकर झिलंगी खाट पर बैठा दिया - चीखती हुई बोली" कितनी बार कहा है अपने कमरे में ही रहा करो बाहर ना निकला करो सुनती ही नहीं हो खबरदार जो अब बाहर निकली।मेरी सहेलियों के साथ आकर बैठने  की जरूरत नहीं है - -चुपचाप बैठी रहो कमरे में" 
       रेखा की सहेलियाँ बतिया रहीं थी। टाॅपिक था वे लोग जो अपने वृद्ध मां बाप को वृद्धाश्रम में पहुंचा देते  हैं कैसा कलेजा होगा  कितने गिरे हुए होते हैं वे लोग आदि। इतने में एक सहेली ने पूछा अरे रेखा तेरी सासु माँ नहीं दिख रहीं हैं कहां हैं? बडे गर्व से रेखा ने बताया कि वे अपने कमरे में आराम कर रहीं हैं, हम उन्हें वक्त बेवक्त परेशान नहीं करते। अपनी मर्ज़ी की मालिक हैं। 
      एक पल के लिए भी उस कमरे से निकल कर बेटे बहू पोते के साथ बैठने को तरसती हुई--घर की किसी भी बात में हस्तक्षेप न करने की हिदायतों से सहमी--कमरे से बाहर बहू की परमिशन के बिना न आने से बंधी अम्मा अपने घर के भीतर  के उस वृद्धाश्रम में बैठी इंतजार कर रही हैं- - जब सबका खाना पीना होने के बाद उसे भी कुछ टुकड़े मिल जाएंगे और अपनी मर्जी की मालकिन नींद उनके साथ साथ उनकी भावुक तमन्नाओं को भी सुला देगी। ****
      
10.मूर्तिमान करुणा 
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लाॅक डाउन के चलते उस बदनाम "लाल गली" का सूनापन बड़ा भयावह लगता।आमने-सामने मिलाकर कुल बीस छोटे-छोटे घरों की वह गली - - हर दरवाजे पर अधमैले से पर्दे के भीतर टिमटिमाते बल्ब की रोशनी उस गली की बेबसी की कहानी बयां करती रहती।      
      गली के मुहाने पर ड्यूटी पर तैनात कांस्टेबल 59 वर्षीय माँगीलालजी बडे़ भावुक और दुःखी हो जाते वहां रहने वालों की स्थिति पर। सबसे ज्यादा बुरा लगता वहां गली में खेलते सात-आठ बच्चों को देखकर। अधनंगे से पेट पीठ से चिपके कुपोषित चार-पांच लड़के और तीन चार  लड़कियाँ। हर पंद्रह बीस मिनट में एक ना एक कोठरी से पुकार आती जिसमें लडकों के नाम के साथ ही एक बड़ी ही वर्जित गाली भी होती। मैल से भरा वह चेहरा आतंकित हो जाता और उस वर्जित शब्द से शर्मिंदा भी।  माँगीलालजी उन बच्चों से दूर - दूर से बतियाते रहते। उनकी भोली-भाली बातों, तमन्नाओं और पढ़ने की इच्छा से वे आप्लावित हो जाते---।
      - - - और एक दिन पुनर्वास कार्यालय में एक आवेदन ने सबकी आँखे नम कर दीं जब उस बदनाम गली के बच्चों को गोद लेने की इच्छा के साथ उन सबको अपना नाम देने की इच्छा और अपने दस बारह कमरों के पैतृक घर को बच्चों के लिए आश्रम बनाने की मंशा जाहिर की थी निःसंतान माँगीलालजी दंपत्ति ने। समाज के ठेकेदारों की भौंहे तनें इससे पहले ही अनेक समाज सेवी संस्थाओं ने भी सहमति की मोहर लगा दी और मूर्तिमान करुणा का प्रतीक बन गया गाँव और शहर की सीमा पर बसा "नीड़ "!! ****

11. टोकरी में सूरज 
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     बड़ी आई छोटी औरत कहीं की। भाजी बेचने वाली होकर  छोटा मुँह बड़ी बात करती है। कहती है सब्जी-भाजी बेच कर बेटे को बड़ा आदमी बनाएगी। अपनी  औकात से बड़ी बात करती है। हुँह।
    उस पाॅश कालोनी की सबसे अमीर महिला समझी जाने वाली मिसेज सिंह ने मुँह बिचका कर कहा और ठुमकती हुई अपने बँगले में प्रवेश कर लिया।
       उसी समय उनके बेटे ने कालोनी के गेट के पास कार रोकी। उसका उतरा हुआ चेहरा देखकर सब्जी वाली के पास खड़ी सारी महिलाएँ उससे उदासी का कारण पूछने लगी।
         इससे पहले कि वह कुछ बोले सब्जी वाली का बेटा दौड़ता-दौड़ता आया और अपनी माँ के पाँव छू कर उसे खुशी से गोल गोल घुमा दिया - - - माँ मैं नीट की परीक्षा में पास हो गया हूँ। तेरी तपस्या सफल हो गई-- तेरा बेटा डॉ बनेगा माँ।
       उसकी बात सुनकर वहाँ खडी सारी महिलाएं मिसेज सिंह के बेटे की उदासी का कारण समझ गयीं--अरे हाँ आशीष सिंह ने भी तो नीट की एक्झाम दी थी--और सचमुच उस सुरमयी शाम में गरीब सब्ची वाली की टोकरी में सूरज उतर आया था। ****
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क्रमांक - 04
पति- अरुण कु गुप्ता 
माता का नाम-सरस्वती गुप्ता 
जन्मतिथि-१६ सितंबर 
शिक्षा-स्नातक (दर्शनशास्त्र)ऑनर्स -राँची विश्वविद्यालय 
बी एड -प्रयाग राज विधा पीठ

संप्रति- गृहिणी व लेखन

प्रकाशित पुस्तकें-

  लघुकथा संकलन-घरौंदा।
साहित्यनामा साँझा संग्रह,
भोर पत्रिका ,संझावत भोजपुरी पत्रिका,
अविरल प्रवाह पत्रिका आदि पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएँ ।

सम्मान-
१)जैमिनी अकादमी (पानीपत)द्वारा झारखंड रत्न सम्मान ।
२)स्टोरी मिरर द्वारा प्राप्त सम्मान।
३)नवीन कदम द्वारा प्राप्त सम्मान।
४)साहित्योदय मंच से प्राप्त सम्मान।

कई पत्र ,पत्रिकाओं में प्रकाशित रचनाएँ व ब्लॉग लेखन

पता : -
 श्री ए.के.गुप्ता 
न्यू ए जी कोऑपरेटिव काॅलोनी
एच.नं. 72 / कडरु ,रांची - झारखंड

1. पानी रे पानी 
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कल स्कूलों और कार्यालयों (झारखंड)में आदिवासियों का पर्व ‘सरहुल ‘की छुट्टी है।मंगरी बेहद उत्साहित है क्योंकि साल में एक बार ही तो मइया, गइया का दूध नहीं बेचती है।सब के लिए खीर बनती है।रात भर मांदर के थाप पर नाच गाना होता है।वैसे आजकल मांदर पर बाबू ,चाचा,दादू ही नाचते और बजाते हैं।जवान और बच्चे तो बड़े -बड़े साउंड बॉक्स लगा कर रात भर नाचते गाते हैं।गाँव तक बिजली जो आ गई थी।
 दो साल से  टूटे चापाकल की मरम्मत को तरसते गाँव के लोग ,जो दो सौ लोगों के बीच पानी लेने का एकमात्र साधन था।जिसमें से पानी  कभी नहीं निकला था...सब कहते हैं गाँव की धरती की छाती सूखी हुई है ...कभी पानी नहीं उतरेगा।महज़ सरकारी ख़ाना पूर्ति... पाँच फ़ीट गड्डा खोदकर चापाकल गाड़ कर ,तस्वीर खींच कर सरकारी बाबू चले गए थे।उस दिन सभी गाँव वाले कितने खुश थे ...अब गाँव के पानी की समस्या दूर हो जाएगी।...लेकिन...बाबू कहते हैं कि अब अगले चुनाव के समय ही कुछ हो पाएगा।मंगरी इन्हीं बातों में खोई ...रिनिया ,टेंगरा के साथ खाली तसला,गगरी (पानी भरने के पात्र)लिए जल्दी -जल्दी कदम बढ़ा रही थी।पानी लेने के लिए गाँव से दो किलोमीटर दूर झरने के पास आ गई...
अरे!ये क्या !”झरने में पानी क्यों नहीं ?”
“अब आगे डेढ़ किलोमीटर पर एक छोटा तालाब है ...वहाँ पानी मिलेगा रिनिया बोली...”
तीनों बच्चे रुआंसे हो गए।
त्योहार में ख़लल पड़ने का अंदेशा सताने लगा।हफ़्ता हो गया नहाए ...कल सरहुल पूजा में नहा कर नए कपड़े पहनना था।
इधर- उधर नज़र दौड़ाया...
टेंगरा चिल्लाया ,”मिल गया...!”
एक गड्ढे के तरफ़ इशारा किया। नीचे तलहटी में कुछ जल दिखे।
तीनों बच्चे कड़ी मशक़्क़त से गमछा भिगोकर उसे निचोड़ कर अपने -अपने तसले में पानी इकट्ठा करने में कामयाब हो गए।
घर लौटते वक्त तीनों के चेहरे पर त्योहार मनाने की ख़ुशी साफ़ -साफ़ झलक रही थी। ****


2. उपकार 
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“इंगलिश पढ़ने आता है?”होने वाले ससुर जी कि कड़कती आवाज से काँप गई थी ,”साँवली और साधारण रूप रंग की ,कांता।”
पापा का हकलाना और ससुर जी की बातों का गोल मोल जवाब देना।देख कर रोने का मन हो रहा था।ठीक है ,ठीक है!उसकी ज़रूरत नहीं,”जतिन ने परिस्थिति को सँभाल लिया था।”
विधी विधान ,रस्मों और सात वचनों को पल्लू में बांध कांता जतिन की हो गई।
मुँह दिखाई के वक्त बुआ सास के कहे शब्द -हे !भगवान “हमार हीरे जैसे भतीजा को कोयला मिल गया! “पिघलते शीशे की तरह कानों को चीर गए थे।जतिन ने पहली बार जेठ की तपती धूप की तरह आग बरसाया था और सभी चुप।जतिन का चट्टान की तरह मेरे साथ खड़े रहना ठंडी फुहार की  तरह मेरे अंतर्मन को भिगो दिया था।
वक्त के साथ ही साथ ,बदलते मौसम की तरह मेरे जीवन में भी बदलाव आने लगे।
जतिन ने ना सिर्फ़ मुझे पढ़ाया,लिखाया बल्कि एक कामयाब डॉक्टर बना दिया।
बीमार बुआ सास ,पंद्रह दिनों से मेरे घर पर आकर इलाज करवा रही थी।बढ़े हुए डायबिटीज़ के कारण उन्हें खीरा ,ककड़ी खाने को देती तो कहती अरे! “सेब ,अंगूर खाओ इतना कमाती हो!”तब उन्हें मैंने मौसमी फलों और सब्ज़ियों के गुण बताए।बुआ जी ने कहा-बताओ तो !”हमको तो ज़रा भी नहीं सोहाता है ।हम समझते थे इ सब गरीबन सब का फल है।”
कांता ने,बुआ जी के इलाज में जी जान लगा दिया था।ठीक होकर वापस अपने घर जाते वक्त बुआ जी ने कहा -मेरी बहू को हीरा बना दिया मेरे भतीजे ने ...”तेरा यह उपकार मैं कैसे उतारूँगी?”
बुआ जी के गालों पर लुढ़कते आँसुओं के सैलाब को पोंछने के लिए जब कांता ने रूमाल बढ़ाया तो बुआ जी ने कहा “बेटा बहने दो यह शर्मिंदगी के आँसू है...।” ****
                    
                     
3. मैं हूँ ना
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“ये क्या हो रहा है?”अपनी बेटी मान्या को काम वाली (बुधनी)के साथ नाचते हुए देख कर रीना ने ज़ोर से चीख कर डाँटा “तुझे शर्म नहीं आती काम करने का पैसा लेती है या डांस करने का?”
अरे!”मम्मा क्या डांस करती है बुधनी...ग़ज़ब का टैलेंट है बुधनी में क्या नाचती है...वो भी बिना कहीं से सीखे।”
मान्या ने बिना बुधनी से पूछे ‘डाँस टैलेंट एक खोज ‘में फ़ॉर्म भर दिया।इसके लिए मम्मी से ख़ूब लड़ी ,पापा को भी अपने इस प्रयास में शामिल कर लिया और तो और इस अभियान में अपने भाई मोहित जो मुंबई में इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था ,को भी शामिल कर लिया।
आज ऑडिशन देने बुधनी को लेकर मान्या के साथ रीना भी गई थी क्योंकि मान्या भी एक प्रतिभागी थी।बुधनी को कुछ समझ नहीं आ रहा था ये सब ताम -झाम देखकर वह आश्चर्यचकित थी पर मान्या के पेट में गुड़ गड़ हो रहा था वह बहुत घबराई हुई थी।
जैसा कि होना था वह ही हुआ बुधनी चुन ली गईं।रीना का पारा चढ़ा हुआ था..”काम कौन करेगा ?”,अपने बदले किसी को लगा जा समझी और “हाँ जितने दिन काम नहीं करोगी मैं पैसे नहीं देने वाली...”बड़ा नाचने का शौक़ चढ़ा है...लगातार रीना अपना भड़ास निकाल रही थी।
मोहित कॉलेज से घर आया हुआ था।सब सुन रहा था और देख रहा था सहमी हुई सोलह साल की बुधनी को चुपचाप बर्तन धोते हुए ...।आख़िर मोहित से रहा नहीं गया बोला “क्या मम्मी दूसरी रख लो “,इसे मैं ले जाऊँगा मुंबई में ही प्रतियोगिता हो रहा है तो कॉलेज से आते जाते इसे देखता रहूँगा।
क्या?रीना,ज़ोर से चीखी।”चूप कर बहुत मुँह चलाने लगा है...।”
लेकिन रीना की एक न चली।बुधनी अपने नृत्य के जलवे से एक के बाद एक पड़ाव जीत कर श्रेष्ठ तीन तक पहुँच गई।मोहित हर परफ़ॉर्मेंस के वक्त कॉलेज छोड़ कर ज़रूर जाता बुधनी का हौसलाअफ़जाई करने।हर बार बुधनी मोहित का पैर छूती तो मोहित झिड़क देता और बुधनी के माथे पर प्यार का स्पर्श अंकित कर देता।बुधनी इस प्यार से ऊर्जावान होती और हर बार जजों को चकित कर देती।
स्टेज पर सिन्दूरी आभा देदीप्यमान प्रभाकर का शनैः शनैः आगमन का दृश्य दर्शाया जा रहा था और अंत में डांस प्रतियोगिता का परिणाम घोषित होते ही जीत की ट्रॉफ़ी उठाते हुए बुधनी ने समस्त देशवासियों के समक्ष अपनी सफलता का श्रेय मोहित और मान्या को दिया और उन दोनों को स्टेज पर आमंत्रित किया।
मोहित ने भी यह कहते हुए सबको चौंका दिया...क्या तुम रियलिटी शो के मंच से मेरी रियल लाइफ़ पार्टनर बनना स्वीकार करोगी? ****

4. विवाह बंधन
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माँ!”ये गुलाब के फूलों वाली साड़ी तुझे पहननी ही पड़ेगी...”मेरी क़सम  जो इसे रखा तो...।
“मेरी पहली कमाई का तोहफ़ा है “...समझ गई ना...।”

नेहा,बचपन से माँ को देख रही थी।जो भी अच्छी साड़ी या अच्छी चीज़ कोई देता या ख़रीदती।उसे जतन से सहेजकर बड़े वाले अलमुनियम के बक्से में रख देती थी ।कहती ये बक्सा तेरा सुहाग पिटारा है।बाबूजी ने मेरी शादी पर यह बक्सा अपनी साइकिल बेच कर ख़रीदा था।
“हाँ!और क्या मिला नाना जी को और तुम्हें इसके बदले?”
दिवाकर द्वारा तिरस्कार!अपमान और ज़िन्दगी भर की सजा...मुझे पेट में भरकर ...नाना जी,मामा जी से न जाने क्या बिकवाए...
चुप कर!माँ ने डाट कर चुप कराना चाहा।
...क्यों चुप रहूँ ...
नेहा ने जबसे होश सँभाला 
मामीजी के ताने से उसे समझ में आने लगा था कि कैसे माँ को दिवाकर ने दो महीने रखकर घर से निकाल दिया था क्योंकि माँ को पता चल गया था कि दिवाकर की एक रखैल है जिसके गिरफ़्त से निकालना माँ के बस में नहीं।उल्टे माँ पर बदचलन का ठप्पा लगाकर घर से निकाल दिया था।तब से नेहा अपने पिता को दिवाकर के नाम से ही संबोधित करती।
नेहा ,शादी के नाम से ही चिढ़ जाती थी लेकिन माँ के जिद के आगे उसे झुकना पड़ा।मामा जी के दोस्त का लड़का था इसलिए माँ और मामा जी आश्वस्त थे।नेहा ने भी अनमने ढंग से हामी भर दी।
शादी के दूसरे ही दिन संजय ने नेहा को दो टूक शब्दों में बता दिया था “हमारी शादी को बस एक समझौता समझना।”माँ,बाबूजी की ख़ुशी के लिए ये सब करना पड़ा।
अनु ,”मेरी पहली प्यार थी और रहेगी...”उसे मैं धोखा नहीं दे सकता।”
नेहा ने भी जानना चाहा -“और तुमने मुझे जो धोखा दिया,उसका क्या?उन सात वचनों का क्या?मैं तो अब कहीं की नहीं रही,ग़रीबों की क्या इज़्ज़त नहीं होतीं ?”
नेहा ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।
जज के सामने नेहा ने जब कहा,जज साहब -“अगर आपकी बेटी के साथ ये होता तो आप क्या करते?”ऐसी दलील की शायद जज साहब को भी उम्मीद नहीं थी...
कई तरह की अग्निपरीक्षा को पार करके नेहा को,दो महीने में ही संजय को ऑफिस से नोटिस दिलवाने में कामयाबी मिल गई।नौकरी पर मंडराते ख़तरे और जेल जाने के डर के सामने वासना का अंधा प्यार खोखला साबित हुआ।
सात फेरों का पवित्र बंधन ,धैर्य और मज़बूत इरादों से ,नेहा ने अपने हक़ को न सिर्फ़ छीना बल्कि समाज के वैसी महिलाओं लिए मार्ग प्रशस्त किया जो ऐसी परिस्थिति में टूट जाती हैं,अंधेरे में गुम हो जाती है या हार मान जाती हैं।
नेहा ने अपने प्रेम के मंगलसूत्र से ससुराल में ऐसा पौधा लगाया जिसका शीतल छाँव संजय को धीरे- धीरे भाने लगा। ****

5. ख़ुशी के रंग
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सरिता देवी, पैर के दर्द को अनदेखी कर दो दिनों से होली की तैयारी में जुटी हैं।
इस बार बाज़ार नहीं जा पाने का कसक तो था लेकिन मन मसोस कर पुरानी साड़ी ही पहनने का मन बना  लिया है।
कोरोना के डर से कोई किसी के घर पर  नहीं जा रहा...फिर भी पर्व मनाने के उत्साह में कोई कमी नहीं है।
“सुनो ,बाज़ार जाना तो ये सामान ला देना सामानों की लिस्ट पकड़ाते हुए सरिता ने पति से कहा।साल भर का त्योहार है इसी  बहाने पकवान बन जाते हैं।
फ़ोन पकड़ाते हुए जितेंद्र से सरिता ने कहा “ध्यान कहाँ है आपका ?कब से बज रहा है...”
फ़ोन रखते हुए जितेंद्र ने कहा-
“चलो चलो तैयारी कर लो गाँव चलते हैं...”
क्या गाँव?
क्या हुआ?
 कैसे ?कब ?क्यों ?कई प्रश्न कर डाले सरिता ने।
हाँ !”अपनी गाड़ी से चलेंगे ड्राइवर मिल गया है।”कल सुबह -सुबह छ: बजे निकल चलेंगे।
“कुछ बताएँगे भी क्या हुआ ?”
इस बार होली वहीं मनाएँगे।जितेंद्र ने कहा तो सरिता का ख़ुशी का ठिकाना ही नहीं रहा।
अच्छा सुनो अम्मा,बाबूजी के लिए कुछ कपड़े खरीद लेते हैं पिछले साल भी नहीं जा पाए थे।पूरे दो साल हो जाएँगे गए हुए ।
“दो साल नहीं पूरे बीस साल हो जाएँगे “
“पहली होली के बाद हम अब बीस साल बाद तुम्हारे ससुराल नहीं मैं अपने ससुराल जाऊँगा।”
सरिता अवाक होकर जितेन्द्र का चेहरा पढ़ने की कोशिश कर रही थी।
“क्या देख रही हो ऐसे?”
आजतक तुमने कभी कहा ही नहीं...”मेरे परिवार और बच्चों के इर्द-गिर्द ही सारे ख़ुशी के रंग बाँटती रही।”
सरिता पति के इस रंग से वाक़िफ़ नहीं थी।अप्रत्याशित प्रेम के तोहफ़े से सराबोर सरिता मायके में आकर बिलकुल बचपन के रंग में रंग गई थी। ****

6. कौआ मामा
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काँव ,काँव ...क्या बात है?कौन आ रहा है?दादी को कौए से बातें करते सुन सात साल की काव्या पूछ बैठी -“क्या हुआ दादी किससे बात कर रही हो?”
देख न पोतियाँ कौआ मामा आ गए संदेशा लेकर ...”ये जब आँगन में आकर काँव काँव करते हैं न तो ज़रूर कोई घर में मेहमान आते हैं...”
अच्छा!इसे कैसे पता चलता है?काव्या ने प्रश्न किया।
अरे !”ये अंतर्यामी होते हैं।इनकी छठी इंद्रियाँ बहुत जागृत होती है।”पहले के जमाने में तो कबूतर डाकिया का काम करता था।
अब तो चिट्ठी पत्री लिखना ,भेजना सब मुँआ मोबाइल और इंटरनेट ने निगल लिया...
डाकिया?ये क्या होता है?काव्या ने दादी से फिर प्रश्न किया।
वो ,”अब तो मोबाइल से बात चीत हो जाती हैं न “
आज से दस बारह साल पहले तो किसी को कुछ जानना ,पूछना या हाल -चाल लेना होता था तो चिट्ठी लिखी जाती थी और उसे एक लाल से डब्बे में डाल दिया जाता था ।एक सरकारी आदमी जिसे डाकिया कहा जाता है वह उस चिट्ठी को अपने गंतव्य पर पहुँचाता था।
बाप रे!”बहुत समय लगता होगा न ,दादी?”
पोती के मासूम प्रश्न पर दादी ने आह!भर कर कहा ,हाँ!”बेटा लगता तो था...”लेकिन चिट्ठी लिखना फिर जवाब का इंतज़ार करना और फिर कई -कई बार उन चिट्ठियों को पढ़ना बहुत अच्छा लगता था।तेरे पापा की,दादा जी की चिट्ठियों को तो मैंने अब तक संजो कर रखा है।
अच्छा?”मुझे दिखाओ कैसी होती थी चिट्ठी ?”
पोती के ज़िद पर जब दादी ने, दादा जी की चिट्ठी पढ़ने को दी तो नन्ही काव्या बोल पड़ी “ओ दादी !दादाजी की हैंडराइटिंग कितनी सुंदर थी “
सो स्वीट ,”इसे मैं अपने पास रखूँगी मेरे दादाजी की स्पेशल मेमोरी...।”कहकर काव्या ने चिट्ठी को सीने से लगा लिया लिया मानो वह अपने दादाजी को गले से लगा रही हो...। ****


7. पिता का दिल
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फ़ोन लगातार बज रहा था...अजनबी नंबर देख विकास उठा नहीं रहा था।
घर में महज़ चार दिन का राशन ही बचा है..”आगे कैसे चलेगा चार लोगों का पेट?”सोच सोच कर चिंता में घुला जा रहा था।
शायद ,सेठ फिर से बुला रहा हो ?नए नंबर से फ़ोन कर रहा हो?अचानक यह बात दिमाग़ में कौंधीं और विकास फ़ोन लगा दिया -उस अनजान नंबर पर-“आपका एकांउट समाप्त हो चुका है कृपया रीचार्ज करने के लिए ...दबाए।”उस ओर से यह आवाज़ सुन कर विकास,मन मसोस कर रह गया।
रात के ग्यारह बजे एक बार फिर उसी नंबर से फ़ोन आते ही लपक कर विकास ने फ़ोन उठाया...क क कौन?
प्रणाम-बाबूजी!
मेरा नंबर कैसे मिला?
“आँखों से अश्रु धार बह कर पुराने गिले शिकवे को धो रहे थे।”
“लॉकडाउन में मेरी भी नौकरी चली गई है”-पिताजी!
हाँ-“मगर किस मुँह से आएँ।”मैं तो आपसे लड़ झगड़कर अपना हिस्सा का पैसा लेकर शहर आकर बस गया हूँ।आपसे ,भइया -भाभी ,सबसे नाता तोड़कर पाँच साल हो गए ,एक बार भी आप लोगों की सुध नहीं ली।
दूसरे तरफ़ से पिताजी ने कहा भइया से बोल कर तुम्हारा फ़ोन रीचार्ज करवा देंगे और बस का भाड़ा भी  पे :टी :एम करवा देंगे।कल हम सब तुमलोगों का इंतज़ार करेंगे “सबको लेकर यहाँ आ जाओ परिस्थिति ठीक होने के बाद में चले जाना,”तुम्हें मेरी क़सम।” ****


8. वसंत 
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कला,”देखो मोटर चला दो पानी आ गया होगा...।”
“आज चाय नहीं मिलेगी क्या?”
विमल जी,प्रतिदिन पत्नी को यह कह कर उठाते।
कला,झल्लाते हुए कहती।अरे!”कभी ख़ुद भी तो कुछ कर लिया करो!”
सुबह की शुरुआत नोक झोंक से ही होती।
पूरा घर ,नाते -रिश्तेदारों की चहेती थी।सभी कला के इर्द-गिर्द और कहे का अनुसरण आँख मूँद कर करते...।
घर में उल्लास का वातावरण था।कोई मेहंदी लगा रहा था तो कोई पार्लर जाने की तैयारी...शादी की पचासवीं वर्षगाँठ का उत्सव मनाने के लिए कला ने सभी रिश्तेदारों को बुला लिया था।वसंत पंचमी के दिन ही पाणिग्रहण हुआ था।कैसे पचास वर्ष गुज़र गए।उबड़ खाबड़ राह भरे रहे जीवन के पचास वसंत।लेकिन कला और विमल जी दोनों एक दूजे के पूरक थे।
विमल जी ने जब सामने सजी धजी वासंती साड़ी में कला को देखा तो सहसा उनका मन वासंती हो गया”इस उम्र में भी सुंदर लग रही हो” कहने पर लजा गई कला।
कला,उठो !”आज कितना सो रही हो?”जाओ देखो तो विहान क्यों रो रहा है?दो साल का पोता जो ऑस्ट्रेलिया से कल ही चार साल बाद बेटा बहू के साथ आया था।मगर कला तो अपनी कला दिखा कर पचास वसंत का साथ निभा,सबको बुला कर ख़ुद अंतिम सफ़र पर निकल गई थी...। ****

9. बातों-बातों में
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प्रत्येक वर्ष  हम चंद दिनों की छुट्टी लेकर बच्चों सहित गर्मी की छुट्टी में गाँव जाते थे|आम के बगीचे, खेत,ताल -तलैया ,गाँव की मीठी बोली की मिठास और अपनों का निश्छल प्रेम भरा अपनापन |हमें बरबस खींच लाता|
बच्चे भी बुजुर्गों का संस्कार और रिश्तेदारों को पहचानते और उनका महत्व समझते |
उस साल भी हर साल की तरह हम सपरिवार गाँव गए थे|अब अम्मा-बाबूजी नही रहे पर बड़े भइया -भाभी और उनके स्नेह में ज़रा भी कमी नहीं |भरपूर प्यार मिलता |
दलान में बैठक लगती |उस दिन भी वैसा ही मजलिस लगा था |पड़ोस के चाचा जी का बेटा रघुवर “यूँ तो कभी आता नहीं था “|उस दिन आया और बातों -बातों में “आग लगा कर चला गया|”
मेरी भी मति मारी गई थी|रात में खाना खाते समय बातों -बातों में ही भइया से पूछ बैठा “भइया आपने खेत बेच दिया ?बताया नहीं “पड़ोस के चाचा का बिटवा रघुवर बता रहा था|कितने में बिकी?
पिता समान भइया ने बात को झूठा कहा |पर शक ने घेरे में ले लिया और मुझसे ज़्यादा पत्नी ने ख़ूब बखेड़ा किया फिर क्या था मनमुटाव  |जो आज दस साल बीत गए पर दो भाइयों के बीच के दरार को पाट नहीं सका| ****


10.गुडबाय 
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...जल्दी करो किरण...
आ रही हूँ ...आ रही हूँ...
जतिन ,मोटर साइकिल स्टार्ट कर किरण के आने का इंतज़ार कर रहा था ।आजकल पंद्रह दिनों से रोज़ जतिन ,किरण को इंग्लिश स्पीकिंग क्लास छोड़ने जाता था।
किरण ,जब से नए सोसायटी में आई है,सोसायटी की महिलाओं को अंग्रेज़ी बोलते सुन उसे ग्लानि होती।हीन भावना से ग्रसित सोसायटी के कार्यक्रमों में भी नहीं जाती।तब जतिन ने समझाया ।क्या हुआ ?”अपनी मातृभाषा में ही संवाद करो  और गर्व करो”देखो सरकार ने कार्यालयों में भी हिंदी अपनाने पर ज़ोर दिया है।लेकिन चंचल ,शोख किरण अंतर्मुखी होती जा रही थी।बच्चे घर पर कोशिश करते किरण से अंग्रेज़ी बोलना पर वो संकोच करती ।तब बच्चों के कहने पर जतिन ने किरण को इंग्लिश स्पीकिंग कोर्स में दाख़िला करा दिया।
आज सोसायटी में दिवाली मिलन समारोह में किरण भी आई थी उसका आत्मविश्वास कुछ कुछ लौट आया था।
सकुचाई सी किरण महिलाओं से टूटी फूटी इंग्लिश बोल पा रही थी।
पार्टी ख़त्म हुई सभी एक-दूसरे को हैप्पी दिवाली,गुड नाइट बोल रहे थे।किरण भी सभी को बदले में हैप्पी दिवाली और गुडबाय बोल रही थी-मैंने धीरे से किरण को चिकोटी काटी।किरण समझ गई कुछ गड़बड़ हो रहा है।
घर आकर बच्चों का हँसते हँसते बुरा हाल था।
किरण के चेहरे पर प्रश्न चिन्ह देख जतिन ने समझाया,”गुडबाय किसी को विदाई देते वक़्त कहते हैं ।जैसे मान लो हमें किसी वर्ष को अलविदा कहना हो तो अंग्रेज़ी में गुडबाय कहेंगे...”।
अरे!“नहीं ,मैं तो बैड बॉय कहूँगी इस कोरोना साल को ।बाप रे जीना मुहाल कर रखा है।“और किरण खिलखिला पड़ी।****

11.टाई
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प्रकाश, को पहली बार टाई पहन कर ऐसा लग रहा था मानों वह कितनी बड़ी जीत को हासिल कर लिया हो।इस दिन का सपना उसने खुले आँखों से तो हरगिज़ नहीं देखा था।
 कहाँ था वह,आज कहाँ पहुँच गया ?शायद ,आज वह इस मुक़ाम तक नहीं पहुँच पाता अगर वहाँ नहीं होता।यहाँ तक पहुँचने की प्रेरणा उसे उसी पराए घर से मिली थी। जहाँ उसे कई भाई बहनों का साथ मिला जिनके साथ वह लड़ते झगड़ते बड़ा हुआ।कुछ बड़ा हुआ तो बहनों का साथ छूट गया।रात रात भर बहनों की याद में रोता रहता था क्योंकि उनसे जो स्नेह मिलता था उससे वह अपने आप को सुरक्षित महसूस करता।जगत चाचा हैं तो अच्छे पर उनमें वैसी ममत्व नहीं...क्या करे बेचारे के ऊपर इतने सारे बच्चों की देखभाल की ज़िम्मेदारी जो थी।लेकिन वो नही होते तो शायद आज वह इस मंच पर नहीं होता।
सभागार में मंच पर आसीन गणमान्य लोगों के मध्य वह बैठा था।सभी विद्वत्जन बारी -बारी से अपना वक्तव्य रख कर बैठ चूके थे।अंत में प्रकाश जो आज का मुख्य अतिथि भी था।बिरला महाविद्यालय के वार्षिक महोत्सव में बच्चों को संबोधित करते हुए कहा कि “सपना देखना कभी मत छोड़ना।”कामयाबी अवश्य मिलेगी।फिर इशारे से प्रकाश ने नीचे एक कोने में बैठे कुछ बच्चों को ऊपर बुलाया और कहा ये सभी हमारे रिश्तेदार हैं ;’’पालना घर ‘’के अनाथ बच्चे। मैंने भी बीस साल इस घर में बिताया है।
मुझे जब संस्था के लोग आकर कपड़े ,खाद्य सामग्री देते थे तो लगता था ज़मीन फट जाए और मैं समा जाऊँ। मैं सोचता कब मैं किसी को देने लायक़ बनूँगा। आज मैं दान में मिले पुस्तकों को पढ़कर आपके समक्ष खड़ा हूँ और ये टाई जो मैंने पहन रखा है,इसे बचपन में किसी ने पुराने कपड़ों के साथ दान किया था।जिसे मैंने संजों कर रखा था...।
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क्रमांक - 05
जन्मतिथि  :-  15 अगस्त      

जन्मस्थान  :-  कलकत्ता  ( पश्चिम बंगाल )

शिक्षा  :-  स्नातकोत्तर हिन्दी , श्री शिक्षायतन कॉलेज , कलकत्ता (पश्चिम बंगाल )

प्रकाशन : -

कई पत्र पत्रिकाओं में यथा लघुकथा साहित्य कलश भाग -१ , भाग -२ , भाग -३ , भाग -४ ,भाग - ५ , अविराम साहित्यिकि , अट्टहास , आधुनिक साहित्य , ऊषा ज्योति , क्षितिज , दृष्टि आदि आदि।

संपादित लघुकथा संकलन 'सफर संवेदनाओं का ' में , साझा संग्रह बालमन की लघुकथा , 
किन्नर समाज की लघुकथा., स्वाभिमान.,
कलम की कसौटी में द्वितीय पुरुष्कृत.।

सम्प्रति  :- पठन पाठन , एंव स्वतंत्र लेखन

पता :- 
हरलालका बिल्डिंग
एच . एन. रोड , धूबरी - 783301 असम

1. गिद्ध धर्म
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"अरे भाई, कहाँ जा रहे हो?"
"सुना है कहीं पर महामारी का प्रकोप हुआ है। बड़े परिमाण में मृतदेह मिल रही है।"
गिद्धों के दो झुंड उड़ते हुए आपस में मिले। तभी उनकी दृष्टि नीचे की ओर पड़ी।
"लगता है यही वह जगह है..।"
"हाँ..चलो थोड़ा नीचे चलते हैं..।"
"अरे.. यहाँ तो कोई दल पहले से ही लाशों के ऊपर मंडरा रहा है..।"
"हाँ यह दल तो अर्द्ध मृतकों को भी नहीं छोड़ रहा।"
"ठहरो" तभी उनके मुखिया ने उन्हें रोकते हुए कहा "जो गिद्धों का दल पहले से ही उनके भोजन में जुटा है वह किसी दूसरी प्रजाति का लगता है..।"
"इनके चेहरे तो इन्सानों के जैसे हैं।"
"चलो.., मुझे लगता है ये हमसे अधिक भूखे हैं और दूसरों का भोजन छीनना हमारे धर्म में नहीं है।"
गिद्धों का दल पुनः आकाश में ऊपर उठ कर दूसरी तरफ मुड़ गया ..।। ****

2.नामकरण
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      विनय बाबू अपने नवजात पोते को गोद में लिए  खिला रहे थे "अरे रे रे..मेरा लॉक डाउन... कैसा है रे..किस समय पर पैदा हुए हो...परेशानी के बावजूद बड़े प्यारे हो.... आहा हा हा...।"
तभी उन्होंने सुना उनकी पत्नी काम वाली बाई से पूछ रही थी "अरे रमली.. आज समय मिला तुझे.. बड़े दिनों की छुट्टी कर ली..।"
"हां अम्मा जी..एक तो चारों तरफ बन्द.. ऊपर से बहू के बच्चा होने वाला जो था...।"
"अरे तो कह कर जाना न था.. अच्छा ..क्या हुआ..?"
"लड़का हुआ है अम्मा जी.."
"चलो अच्छा हुआ। क्या नाम रक्खा..।"
"कुछ नहीं अम्मा जी..बन्दी में पइदा हुआ है न... तो सभी लाकडाउन करके बुलाते हैं.."
तभी बेटे ने आकर कहा "लॉकडाउन को दे दीजिए पिताजी । उसकी माँ दूध पिला दे।"
"उसका नाम लक्ष्य है लॉकडाउन नहीं..।" पिताजी जी ने बच्चे को देते समय चिढ़ते हुए से कहा। ****

3.आह्वान
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"सुनो... सुन रहे हो...?"
"कौन?"
"पहचाना नहीं मुझे? मै.... कविता... ! तुम्हारी कविता!! तुम्हारे हृदय की गहराइयों में मैं आज भी एक क्षीण धारा मात्र के रूप में प्रवाहित हूँ। देख तूने आधुनिकता के कठोर तपते सूर्य के कारण अपनी भावभूमि को किस तरह बंजर बना दिया है। मेरी धारा को भी तूने अपनी व्यावसायिकता के चलते कितना मटमैला कर डाला है। देखो...अब तुमको अपने जज्बात व्यक्त करने के लिए भी मेरे गंदले जल की तलहटी से छोटी सी बाल्टी भर शब्दों का जल भी नहीं मिल पाता।"
"तो मैं अब क्या करूँ? आज प्रदूषित मानसिकता के चलते जज्बात ही कितने गलत हो गए है।"
"जज्बात गलत या सही नहीं होते मित्र, जज्बात केवल जज्बात होते हैं। तुझे उनका परिष्करण करना होगा। एक सच्चे साधक की तपस्या से दृढ़ प्रतिज्ञ्य होकर अगर तू अपनी एक एक बाल्टी जल को भी परिष्कृत करता जाएगा तो एकदिन मैं नवप्राण होकर तेरी बंजर भावभूमि को पुनः हरित करने में सक्षम हो सकूंगी। इसीलिए मैं तेरी शरण में आई हूं। उठ...जाग... मेरे कवि... लग जा पुनः ... !! तू निश्चित ही भाववृष्टि का आह्वान कर इस शुष्कता को हरियाली में बदलने में सक्षम हो सकेगा । ****


4.भाग्यवान
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"ये मेरी माँ है... मेरे साथ रहेगी..!!"
"नहीं.. ये मेरी माँ है...मेरे साथ रहेगी..!!"
लगाव माँ का नहीं माँ की अकूत सम्पत्ति का था।
वह विवश अपने दो बेटों की करतूतों पर शर्म से सिर झुकाए खड़ी थी। दोनों बेटे अपने साथ समर्थकों की भीड़तन्त्र का सहारा लिए एक दूसरे के ऊपर पत्थर उछाल रहे थे।
 माँ की सम्पत्ति पर सत्ता और अधिकार पाने के लिए हर प्रकार के पत्थर धर्म, वोट बैंक, अंधविश्वास, रूढिवाद, जुलूस, भ्रष्टाचार, मारपीट, हिंसा उन्होंने अपने झोले में जमा कर रक्खे थे।
 दोनों में से कोई भी पत्थर फेंकता हर पत्थर, हर चोट माँ के कलेजे को छलनी और तन मन को /लहुलुहान और घायल कर रही थी।
वह माँ जो थी।
"कौन?"
विवश , घायल माँ को तभी अपने कंधों पर दो हाथों का सहारा सम्बल देता महसूस हुआ।
"मैं भी आपकी सन्तान हूं माँ 'मानवता'। इन दोनों के झगड़ों के कारण मैं घर छोड़ गया था। पर मैं अब आपकी और दुर्दशा नहीं होने दूंगा।"
माँ की झुकी नजरें धीरे से ऊपर उठीं।
"मैं और मेरा पुत्र विकास अब से आपके साथ रह कर पुनः आपको स्वस्थ और सबल बनाने के लिए प्रतिबद्ध होते हैं।"
"चिरंजीवी भवः तुम।"
मां ने आशिर्वाद दिया ।
"कितनी भाग्यशाली है वह माँ जिसकी विरासत में उसकी एक भी सन्तान का नाम आग लगाने वालों में नहीं, आग बुझाने वालों में अगर लिखा गया हो।" ****

5. उड़ता पंछी
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"कुछ देर तो रुक जाओ" रुआँसे स्वर में उसने कहा।
कैंसर के आखिरी समय में उसे कीमो लग रहा था।
"नहीं... मैं नहीं रुक सकता। मैं गति मान हूँ। मुझे चलते ही रहना है।"
"पर मैं तुम्हारे साथ अब नहीं चल पा रहा हूँ।"
"क्यों... एक समय तो तुम  मुझसे आगे दौड़ जाना चाहते थे। किशोरावस्था में जवानी का जीवन जीना चाहते थे।"
"उसी भूल का खामियाजा भोग रहा हूँ। ड्रग्स.. मस्ती..जोश.. मैंनें तुम्हें पकड़ कर अपनी मुठ्ठी  में करना चाहा था..।।"
"तुम नहीं जानते वक्त को कोई नहीं बांध सकता। वह उड़ता पंछी है। वह अपनी गति से चलता जाता है..चलता जाता है..चलता चला जाता है..चलता ही चला जाता है..."
तभी नर्स ने आकर देखा मरीज का वक्त जा चुका था।
कई बार कमबख्त वक्त ही वक्त नहीं देता । ****

6.बंधुआ
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मेरे जमींदार मित्र अस्पताल में हैं सुनकर उनसे मिलने जाना तो लाजिमी ही था।
"क्या हुआ दोस्त? अस्पताल कैसे पंहुच गए?"
"कुछ न पूछो यार... हरामजादे कुत्ते ने काट.खाया।"
"कुत्ते ने...? तुम्हारा तो पालतू कुत्ता था..?"
"हाँ वही.." मित्र ने मुंह बनाते हुए कहा।
"पर तुम तो उसे बहुत अनुशासन में रखते थे। हमेशा ही तो कहते थे कुत्ते की जात बड़ी नमकहलाल और ईमानदार होती है, बस उन्हें वश में रखने का हुनर आना चाहिए। जब भी देखता था उन्हें अपने इशारे पर चलाते थे। यहां तक कि मोटर साइकिल पर बैठ कर उन्हें अपने पीछे पीछे दौड़ाते थे। फिर ऐसा क्या हो गया..?"
"हाँ यार..उस दिन जरा एक नया तमाशा करने के लिए दो दिन भूखा रख कर रोटी जरा जोर से उछाल दी तो हरामी ने उछल कर काट खाया। मुझे क्या पता था उसे भी जमाने की हवा लग गई है।" ****

7.गुलाबी आसमान
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"मित्रों.. यह तस्वीर मेरी बिटिया मीनाक्षी की है। वह एक ऐसी बीमारी से ग्रसित है जिस के इलाज का खर्च इतना है कि मेरी सीमाएं उसे पूरा नहीं कर सकतीं।  आप सभी से मेरी हाथ जोड़कर विनती है कृपया अपनी विशाल तिजोरी से थोड़ी सी धनराशि अगर नीचे लिखें बैंक अकाउंट में डाल सके तो मेरी मीनाक्षी की आंखें फिर से जनसमुद्र का हिस्सा बन सकेंगी।" 
फोन हाथ में लिए रश्मि दिनेश के पास आई,  "देखिए यह वीडियो फेसबुक, व्हाट्सएप हर जगह वायरल हो रहा है। "
"देखा है मैंने। सब फ्रॉड है, तुम इस चक्कर में मत पड़ो। मैं अपनी बेटी की चिंता करूं कि दूसरों की बेटी को बचाऊं। मेरे पास पैसे नहीं है बर्बाद करने को।"
"अगर किसी लड़की की जान बचती है तो कुछ पैसे जमा करवा देने में क्या हर्ज है। तुमने उसकी आवाज सुनी थी कितना दर्द, बेबसी और सच्चाई थी उसकी आवाज में।और वह मासूम सी बच्ची.. जीवन की आशा से चमकती उसकी मीन सी आंखें.."
"हुंह्ह "  हितेश मुंह बना कर उठ गए।
 पर वहीं बैठी ड्राइंग कर रही छुटकी ने अपनी पेंटिंग देख रही थी। बचपन में जब वह पेंटिंग बनाती थी तो आकाश को हमेशा गुलाबी बना देती थी। उसे टीचर भी डांटती थी, और सहेलियां 'बुद्धू' बोलती थीं कि आकाश तो नीला होता है गुलाबी नहीं। उसके रोने पर मां ने उसे हमेशा यह कहकर धीरज बंधाया था, "बिटिया अगर तुम्हारा आकाश गुलाबी है तो उसे गुलाबी ही रहने दो। हर किसी का अपना आकाश होता है, और उस आकाश का रंग उसकी अपनी पसंद का होता है।"
 तभी रश्मि को अपने हाथों में किसी के मुलायम से स्पर्श का एहसास हुआ। देखा उसकी बेटी एक हाथ में अपना पिगी बैंक पकड़े दूसरे हाथ से उसकी उंगली पकड़े खड़ी थी। ***

8.जीवन का सत्य 
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उसे मानव जीवन के सत्य की तलाश थी।
जवान रक्त.. महावीर, बुद्ध, विवेकानंद पढ़ पढ़ कर उसने भी जीवन के सत्य की तलाश शुरू की थी। 
आज तीसरा दिन था जब वह अपने घर की छत पर बने कमरे में आसन लगाए बैठा था। 
पहला दिन उत्तेजना में और दूसरा दिन जिद्द के कारण तपस्या में कट गया था।
पर कल रात से उसे अपने चारों तरफ रोटियों की गन्ध सी आती लग रही थी।
उफ्फ... ये रोटियां उसे तपस्या नहीं करने दे रही थीं।
उर्वशी, मेनका सदृश्य उसके चारों तरफ नाच नाच कर उसकी तपस्या भंग करने की चेष्टा में लगी थीं।
आज तीसरे दिन के सुबह पांच ही बजे थे।
वह नीचे उतर कर रसोई में गया।
रोटी के डब्बे में कामवाली के लिए दो रोटी पड़ी थी।
और एक डब्बे में चार पांच रोटियां कुत्तो और गायों के लिए रखी हुई थीं।
पेट पूजा कर वह कमरे में जाकर सो गया।
उसे मानव जीवन का सत्य मिल चुका था। *****

9.उसका घर
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"बाप रे ...!! पूरा घर का सामान इकट्ठा कर रखा है गायत्री ने...!!"
पति की मृत्यु के बाद तेरहवीं वाले दिन सारे समाज, देवरानियां, ननद सबके सामने कमरे की सफाई में पलंग के नीचे से एक के बाद एक सामान निकलता जा रहा था– चकला, बेलन, स्टील के बर्तन, चाय की केटली, कप, तकिया, चद्दर, परदे, शो पीस जिसे ड्राइंगरूम की टेबल पर रखना था, तस्वीरें जो दीवालों पर सजाने के लिए खरीदी गईं   थी। 
बचपन से ही गुड़ियों का घर सजाते सजाते गायत्री के मन में बस एक ही सपना बस गया था अपना घर सजाने का। संयुक्त परिवार में ब्याही गायत्री ने पहली रात अपने पति से भी कहा था 'बस मुझे मेरा अपना घर चाहिए।"
संयुक्त परिवार की बड़ी बहू गायत्री देवरों के विवाह के बाद से उन्हें अपना कमरा देते देते आज एक छोटे से कमरे में अपने सपनों के घर की बिखरती हुई ईंटो के बीच चुपचाप खड़ी थी जोकि अब केवल सपना बन कर रह गया था। ****

10 .सबरंग
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आज पन्द्रह अगस्त है। 
स्कूल की चौहत्तर वर्षीय भारती अम्मा ने सुबह ही ऑफिस में आकर अल्मारी से एक बक्सा निकाला। उसकी धूल झाड़ कर उसे खोला और स्वतंत्रता दिवस पर फहराए जाने वाले तिरंगे को देखा तो चिन्तित सी हो उठी। लगा जैसे तिरंगा कह रहा हो वर्ष में दो बार सुधि लेने पर मेरी यह अवस्था होनी ही है। झण्डे के रंग अपनी चमक खो सी बैठे थे जैसे। कहीं पर हरा रंग दुबका हुआ सा बैठा था तो कहीं पर भगवा रंग हरे रंग की छांव में मटमैला सा प्रतीत हो रहा था।सफेद रंग वाले क्षेत्र में दोनों रंगों ने मिलकर लाल रंग के धब्बे लगा रखे थे।बीच के चक्र की विकास धारियां भी अपना रंग रूप खो बैठी थीं।
भारती अम्मा ने चिन्तित सी नजरों से तिरंगे के बिगड़े रंगरूप को देखा। कुछ ही देर में उन्हें झण्डे को फहराना था। क्या किया जाए....?
तभी उन्हें बक्से के एक कोने में एकता रूपी ब्रश दुबकी हुई दिखाई दी ।उन्होंने उसे उठा कर झण्डे के रंगों को पुनः  लेकर रंगों के उपर फेरा तो सभी रंग पुनः अपने पुराने तेजस्वी और उज्जवल रंगों में चमक उठे।
भारती अम्मा ने पताका को उठा कर डण्डे मे लगा कर स्कूल के आंगन में फहरा दिया। कुछ ही समय बाद अहाता सैल्यूट और जय हिन्द ,जय भारत के नारों से गुंजरित हो रहा था। ****

11. ख्वाहिशें
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     मन्दिर में प्रार्थना पूरी करने के बाद देवता के सामने झुके हुए दो सिर करीब करीब एक साथ ऊपर उठे।
"अरे कमली तू..?"
"हाँ मालकिन, आप भी..?"
"बस, पूजा करने आई थी। क्या मांगा तूने भगवान से"
"मालकिन, गरीब आदमी, और क्या मांगूंगी। बस आप सा सुख मांग रही थी, बड़ा सा घर..मोटर गाड़ी.. दोनों जून भर पेट व्यंजन...!! आपने क्या मांगा मालकिन..?"
"....."
"बतलाईए न मालकिन। वैसे आपके पास तो सारे सुख हैं, आपको भगवान से और क्या मांगने की जरूरत है ।"
मालकिन ने उसे देखा। वह उसके जैसा जीवन मांग रही थी जहां सारा दिन मेहनत करने के बाद उसका पति कम से कम उसको साथ बैठा कर एक ही थाली में प्यार से रूखी सूखी दालरोटी ही सही का पहला निवाला उसे खिला कर एक साथ खाना खाता था।
"अरी पगली, हर आदमी की सुख की परिभाषा अलग होती है।"
 कह कर उसने प्रसाद कमली की.हथेली पर रखा और जल्दी जल्दी मन्दिर की सीढियां उतरने लगी। ****
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क्रमांक - 06
पति : श्री ईश्वर सिंह तोमर
पिता : श्री चरणसिंह वर्मा
माता : श्रीमती कलावती वर्मा
शिक्षा:- एम.ए.(हिन्दी), एम.एड़., नेट, पीएच.डी.,डी.लिट्.

सम्प्रति-
एसोसिएट प्रोफेसर एवं अध्यक्षा,हिन्दी विभाग
जनता वैदिक कॉलिज बड़ौत (बागपत) उत्तर प्रदेश

प्रकाशित रचनाएं एवं पुस्तकें:- 
 प्रकाशित(दो काव्य-संग्रह, एक सन्दर्भ पुस्तक) 
-जीवन है गीत  (काव्य-संग्रह) 
- साधना -सतसई( दोहा -संग्रह)
-कवि शान्ति स्वरूप कुसुम :व्यकितत्व एवं कृतित्व(सन्दर्भ- पुस्तक) 
 
- बत्तीस शोध-पत्र प्रकाशित। 

 सम्मान:  
अड़तीस  पुरस्कार, सम्मान एवं उपाधि साहित्य-सृजन पर
शोध -निर्देशन : 8 विद्यार्थियों को शोध -उपाधि प्राप्त, 6 विद्यार्थी  शोधरत
- साठ राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठियों/सम्मेलनों और कार्यशालाओं में सहभागिता और शोध-पत्र प्रस्तुति

पता : -
जनता वैदिक कॉलिज 
बड़ौत (बागपत) उत्तर प्रदेश
1. माली
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हरे-भरे उपवन, खिलखिलाते पुष्पों,मुस्काती हुई कलियों और फलों से लदे वृक्षों को देखकर रामचरण  असीम आनन्द की अनुभूति कर रहा था।भावनाएं मन में हिलौरें ले रही थी-
"आज मेरा स्वप्न पूरा हो गया,अब मैं इन वृक्षों की छाया में बैठकर आराम से जीवन व्यतीत करूँगा।" 
बाहरअचानक बेटे की कर्कश ध्वनि सुनाई दी-
"क्या सारा दिन स्वप्नों में खोये रहते हो? काम-धाम तो कुछ है नहीं!काम के न काज के ,ढाई सेर अनाज के ।"
रामचरण पर तो मानो वज्रपात हो गया। 
" क्या कह रहे हो बेटा! मैंने  तुम्हारे लिए क्या नहीं किया?रात -दिन मेहनत करके तुम्हे आत्मनिर्भर बनाया, स्वयं भूखा रहकर  तुम्हे किसी चीज की कमी नहीं होने दी।"  "क्या किया, सरकारी स्कूल में पढ़ाया,कभी अच्छे कपडे़ नहीं मिले, कभी जेब-खर्च नहीं मिला।" 
 "बेटे!मैंने तो तुम्हारे लिए खून-पसीना एक कर दिया और तुम कहते कुछ नहीं किया।"
 "यह तो आपका  फर्ज था।"
 "औलाद का कोई फर्ज नहीं?"
 "कुछ भी हो, मैं अब आपको नहीं निभा सकता।"
"बेटा! अगर माली द्वारा पोषित वृक्ष ही उसे छाया और फल देने से मना करेगा तो कौन उन्हें पोषित करने की सोचेगा?" 
"मैं कुछ नहीं जानता, आपको जाना ही होगा।"
"दादाजी! आप कहीं नहीं जायेंगे यह घर आपका है,यहीं रहेंगे हमारे साथ।"
   "पर बेटे तुम्हारे पिताजी नहीं चाहते।"
"राहुल अन्दर चलो ,जाने दो अपने दादाजी को।" 
"नहीं पापा! दादाजी कहीं नहीं जायेंगे और हाँ सुन लीजिए अगर आपने दादाजी को घर से निकाला तो आपको बुढ़ापे में मैं भी एक दिन ऐसे ही बाहर निकालूंगा। "
"शर्म नहीं आती तुम्हे ऐसा कहते, इसी दिन के लिए तुझे पाला- पोसा और पढ़ा-लिखा रहा हूँ? "
"अपने अन्दर भी तो झांककर देखिए पापा!   रामफल को काटो तो खून नहीं, भौचक्का सा बेटे को देखता रह गया। ****

2.दहेज
   *****

 शिवांश एक कम्पनी में इंजीनियर था। उसके साथ कम्पनी में अक्षिता भी कार्य करती थी, दोनों एक दूसरे को पसन्द करते थे परन्तु डरते थे कि कहीं दोनों के माता - पिता जाति -भेद के कारण मना न कर दें। दोनों ने अपने माता-पिता को विवाह के लिए मना लिया परन्तु दोनों की शर्त थी कि पहले दोनों परिवार आपस में मिलेंगे तभी अन्तिम निर्णय होगा। शिवांश के घर अक्षिता  अपने माता-पिता, मामा-मामी और बुआ-फूफाजी के साथ आयी। दोनों परिवार खुश थे, सब ठीक था तभी अक्षिता की मम्मी बोली-"बहन जी! बच्चों की खुशी में हमारी खुशी। आप  इस रिश्ते से सहमत हैं ना, आपको कोई मांग  तो नहीं। "
"मांग है बहन जी  दो मांगे है। अगर पूरी कर सके तो ही यह विवाह होगा। "
 अक्षिता की मम्मी तो घबरा ही  गयी थी, समझ ही नहीं पा रही थी क्या करे। शिवांश को भी मम्मी पर गुस्सा आ रहा था किन्तु सबके सामने कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसे मम्मी से ये अपेक्षा तो बिल्कुल भी नहीं थी। 
"देखिए मीना जी! मेरी मांग आपसे नहीं इन बच्चों से है। हम दोनों परिवार इनकी खुशी के लिए अन्तर्जातीय विवाह करने को तैयार  हो गये। अगर ये इस रिश्ते को आजीवन निभाने का वादा करें तो ही हमें स्वीकार है। आज विवाह और छ: महीने बाद कहने लगें कि हम अलग  होना चाहते हैं वह हमसे सहन नहीं होगा। दूसरी मांग है कि अक्षिता हम दोनों का सम्मान भी उसी भावना से करे जैसे अपने माता-पिता  का करती है और शिवांश हमारी तरह अक्षिता के माता -पिता का। हमें इनके पास जाकर कभी परायापन  अनुभव न हो। यही दहेज़ हम चाहते हैं। ****

3.स्वतन्त्रता
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        महेश दो वर्ष से बेटी के लिए वर ढूँढ रहा था परन्तु सफलता प्राप्त नहीं हो पा रही थी जो भी लड़का देखता पत्नी मालती और बेटी उसे ही नापसन्द कर देती। आज भी एक लडका देखा जो उसे पसन्द था।पूर्ण विश्वास था कि पत्नी व बेटी को पसन्द आ जाएगा। 
"मालती! एक लड़का देखकर आ रहा हूँ।आयकर विभाग में अधिकारी है, माता - पिता और उनका इकलौता पुत्र है,पिता भी कालेज में प्रोफेसर  हैं।"
"कहाँ पर नियुक्ति है लड़के की? "
"दिल्ली में है, माता-पिता भी साथ ही रहते हैं। छोटा सा परिवार है, जैसा तुम चाहती थी। "
"देखो मेरी बेटी सास- ससुर के साथ बन्धन में नहीं रह सकती।" 
"क्या बात कर रही हो? उनका इकलौता बेटा है उसके साथ  क्यों नहीं रहेंगे? मेरी माँ संयुक्त परिवार में रही है, मेरे दादा -दादी की बहुत  सेवा की उन्होंने। हम सब एक साथ रहते थे, एक दूसरे  के दुख- दर्द बांटते थे। तीन पीढ़ी एक साथ मजे में रहती थी। "
"वह जमाना ओर था। अब समय बदल गया  है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है। मेरी बेटी स्वतन्त्र जीवन जीना  चाहती है। " 
"यह कैसी स्वतन्त्रता  है मालती? कैसा परिवर्तन है जो  माता पिता को बच्चों से अलग कर दे, वृद्धाश्रम में रहने को मजबूर करे।ऐसा परिवर्तन बोझ है जिन्दगी के लिए।"
"पर आजकल बच्चें अपना जीवन अपने तरीके से जीना चाहते हैं बिना किसी हस्तक्षेप के। "
"मुझे एक बात बताओ मालती! हमारे भी एक बेटा है, कल उसकी शादी हो और वह हमें बुढ़ापे में, बीमारी में अकेले छोड़ जाए तुम्हे कैसा लगेगा? उनके स्थान पर स्वयं को रखकर सोचो । " *****

4.अन्नदाता
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"ताऊ जी राम राम! "
"राम राम  बेटा! आओ! आज कैसे आ गये? "
"माता जी, पिताजी के पास आया था,सोचा आपसे मिलता चलूँ । "
"ठीक किया।घर में तो सब ठीक  है।  "
"हाँ ताऊजी सब ठीक हैं।  आप सुनाओ , आप  कैसे हैं ?"
"क्या बताऊँ बेटा! कैसा भी नहीं, हमारी फिकर  ही किसे है? "
"क्यों ऐसा क्यों कह रहे हो ताऊजी! आपकी फिक्र क्यों नहीं होगी? आप तो देश के अन्नदाता हैं। "
"कैसा अन्नदाता ?जो स्वयं भूखा हो हमसे ज्यादा दुःखी और गरीब ओर कौन होगा? "
"इतना परेशान क्यों हो ताऊजी!क्या इस बार फसल अच्छी नहीं हुई? 
" क्या बताऊँ बेटा! कभी इन्सान की मार तो कभी भगवान की मार । गेंहू बोये थे, कभी बारिश तो कभी ओले, फसल बहुत कम हुई । अब फसल खेत से काटी ही थी कि मशीन लगा भी नहीं पाया था, दो दिन से मूसलाधार बारिश हो रही है। सारी फसल बर्बाद हो गयी। अब तो खाने के भी दाने भी ना निकलेंगे, बेचना तो दूर की बात है। "
"ईंख की की फसल भी नहीं हुई क्या? "
"अरे बेटा! गन्ना तो खड़ा खड़ा खेत में सूख गया।लॉकडाउन  के चक्कर में न तो इस बार मिल चले,न ही कोल्हू।  पिछले साल के पैसे भी गन्ना मिल ने अब तक ना दिये। सरकार भी कुछ ना करे है।  कभी कभी तो मन में आवे है कि खुद भी जहर खा लूं और परिवार को भी खिला दूं। "
"नहीं नहीं ताऊजी !ऐसा नहीं कहते सब ठीक हो जाएगा।  "
"कुछ भी ठीक ना होगा बेटा! अरे तुम्हे दाल रोटी तो भरपेट मिल जाती होगी? हमें तो वो भी नहीं मिलती। नमक की रोटी चाय के पानी के साथ खावें।  "
"क्यों ताऊजी! घर में गाय भैंस तो हैं दूध, छाछ तो होता होगा।" 
"अरे बेटा! दूध बेच के ही दो वक्त की रोटी मिले।दूध ना बेचें तो वो भी ना मिले।  अपने लिए तो आधा किलो दूध रखें हैं जिसमें दो बार की चाय बन जावे, उसी से नमक की रोटी खा के पेट भरें । किसान से बुरी हालत इस देश में किसी की भी नहीं, दूसरों का पेट भरने वाला अन्नदाता खुद भूखा सोये। " *****

5.इंसानियत
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"क्या बात है गीता ! पिछले दो दिन से मैं देख रही हूँ  तू कुछ परेशान सी है।"
"नहीं दीदी कोई बात नहीं।"
"झूठ बोल रही है। साफ साफ बता क्या बात है? ये तेरी आँखो में आंसू क्यों है? "
"क्या बताऊँ दीदी! हमने पिछले साल बैंक से लोन  लेकर मकान खरीदा था। दस हजार रुपये महीने की किश्त बंधी थी, मैं जैसे तैसे घरों में खाना और झाड़ू पोछा का काम करके किश्त जमा कर रही थी परन्तु पांच महीने पहले मेरा आदमी बीमार हो गया । सारा पैसा उसकी बीमारी में लग जाता था, मैं पांच महीने से किश्त जमा नहीं कर पायी । कल बैंक वाले मेरे घर के बाहर नोटिस चस्पा कर गए और कहा कि या तो दो दिन में  दो लाख रुपये जमा कर दो नही तो दो दिन बाद इस मकान पर हमारा कब्जा होगा, मकान खाली कर देना । कहाँ से लाऊँ इतना पैसा, बच्चों को लेकर कहाँ जाऊँ? मेरे बच्चों के सिर से छत छिन जाएगी,  हम बेघर हो जायेंगे ।"
"परेशान मत हो सब ठीक हो जाएगा । तू जिस जिस के यहाँ काम करती है उनसे पच्चीस पच्चीस हजार रुपये मांग ले, वे जरूर तेरी मदद करेंगे,कुछ अपनी बहन और माँ से मदद ले बाकि पचास हजार मैं दूंगी।"
" दीदी! आप कितनी अच्छी हैं, मै आपका अहसान कभी नहीं भूलूंगी।"
"चल ज्यादा बात न बना,काम छोड़, मैं कर लूंगी तू जा इंतजाम कर।"
"तेरा दिमाग खराब हो गया क्या जो तू उसे पचास हज़ार रुपये देगी।अभी काम करते दिन ही कितने हुए हैं उसे, इतने पैसे कैसे लौटा पाएगी वह? "
"तो क्या उसे बेघर होते देखती रहूँ? जब तक देगी दे देगी, नहीं भी देगी तो कोई बात नहीं इन्सानियत के नाते क्या एक गरीब आदमी की मदद करना हमारा फर्ज नहीं । भगवान न करें किसी पर ऐसी मुसीबत आये, फिर भगवान ने हमें सक्षम बनाया है तो हम मदद क्यों न करें, आपको उस पर जरा भी दया नहीं आती?"
"हमने सबका ठेका ले रखा है क्या? न जाने कितने गरीब हैं इस दुनिया में। "
"मेरा भी फैसला सुन लीजिए ,आप माने या न माने  इंसानियत के नाते मैं उसकी मदद अवश्य करूंगा । ****

6.इन्तजार 
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"माताजी! क्या बात है आप रोजाना द्वार पर आकर बैठ जाती हो? किसका इन्तजार करती हो?"
"बेटी!अपने बेटे का,एक दिन जरूर आएगा वह मुझे लेने।"
"वह नहीं आएगा माताजी! अगर उसे लेने आता तो आपको यहाँ वृद्धाश्रम में छोड़कर ही क्यों जाता? "
"नहीं बेटी! एक दिन उसे अपनी गलती का अहसास जरूर होगा, आखिर मैं उसकी माँ हूँ। "
"माताजी! आजकल  की सन्तान संवेदना शून्य हो गयी है। वह यह भी भूल जाती है कि उनके माता पिता ने उन्हें पाल पोस कर बड़ा किया, आत्मनिर्भर बनाया।"
"नहीं!  मेरा बेटा ऐसा नहीं है।"
"आप माँ हो इसलिए ऐसा सोचती हो।माताजी क्या आपको यहाँ कोई परेशानी है? क्या हमसे कोई भूल हुई या रेखा जी ने कुछ कहा जो आप यहाँ रहना नहीं चाहती ? "
"नहीं बेटा! तुम सब तो बहुत अच्छे हो।मेरा इतना ध्यान रखते हो, रेखा बेटी भी बहुत अच्छी है दोनों समय आकर हम सब से पूछती है कि हमें कोई तकलीफ तो नहीं मुझ यहाँ कोई परेशानी नहीं बिटिया।"
"फिर भी आप वहाँ क्यों जाना चाहती हो जिस घर में आपका सम्मान नहीं, आपको भरपेट भोजन नहीं मिलता, आपके बेटा बहु आप पर अत्याचार करते हैं। "
"अपनी ममता को कैसे समझाऊँ बेटी? जैसा भी है वह मेरा बेटा है, मेरा मन होता है रोज अपने बेटे को देखूँ, अपने पोते पोती को  गोद में खिलाऊं, उनकी बाल लीलाओं को देखूँ। "
"इतना सब आपके साथ होने पर भी माताजी? "
"बेटी! वह पछताएगा अपनी गलती पर, उसे मेरी याद भी आएगी।"
"हां माताजी वह पछताएगा भी और उसे याद भी आएगी आपकी किन्तु तब बहुत देर हो चुकी होगी जब उसके साथ भी यही कहानी दुहराई जाएगी। "  

 7.नेह के पल्लव
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 "माँ जी! आप मेरे बुखार की खबर सुनकर तो दौडी़  चली आयी अस्पताल में परन्तु अपनी पोती को देखने नहीं आयी।तीन दिन से प्रतीक्षा कर रही है आपकी?"
 "अरे बेटी! पोता होता तो जरूर आती।इसका क्या देखूँ?ये तो पराया धन है।बेटी तो माँ-बाप के लिए बोझ है जिसे सारी जिंदगी ढो़ना पड़ता है। आते ही तुम्हे  बीमार  कर दिया।" 
"माँ जी! इसने नहीं मैं खुद की लापरवाही से बीमार हुई हूँ और बेटी  कभी बोझ नहीं होती।बेटी तो शान होती है, लक्ष्मी होती है घर की । हमें बेटी भी इतनी ही प्यारी है जितना कि बेटा।"
 "बेटी के माँ-बाप को सदा ही झुकना पड़ता है बेटी।" 
"अगर बेटी को आत्मनिर्भर बनाये तो नहीं झुकना पड़ेगा माँ जी।" 
"पर वंश-बेल तो बेटे से ही बढ़ती है।" 
"क्या बेटे को जन्म देने वाली किसी की बेटी नहीं होती?क्या आप किसी की बेटी नहीं, मैं किसी की बेटी नहीं?आप ये तो चाहती हैं कि आपके पोता हो । उसका विवाह होकर घर में बहु आये परन्तु यह नहीं चाहती कि आपके घर में बेटी जन्म ले।अगर सभी ऐसा सोचने लगे तो बेटियां रहेंगी नहीं,बहु कहाँ से आएंगी, वंश-बेल कैसे बढे़गी?"
 "बेटी! बात तो तू सही कह रही है।ला मेरी बच्ची को मेरी गोद में दे।" बच्ची की मुस्कान देखकर दादी के मन में अपनी पोती के प्रति नेह के पल्लव प्रस्फुटित होने लगे थे । ****

 8.सबसे बड़ी दौलत
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निशा के स्नानगृह में  फिसलने  से कमर  की नस में खिंचाव आ गया था। दर्द निवारक दवाई के सहारे कालेज जा रही थी, ऊपर से  दिवाली का त्यौहार और घर की सफाई। इस बार बच्चें भी दिवाली पर घर नहीं आ पा रहे थे। बहु के गर्भवती होने के कारण डाक्टर ने उसे लम्बी यात्रा करने से मना कर दिया था। निशा के पति  सुबह ही यह कहकर चले गये  थे कि उन्हें दिल्ली  में कुछ काम है।  वह रसोई के काम में लगी थी, द्वार पर घंटी बजी तो बाहर आयी देखा तो दंग रह  गयी, पति के साथ बेटा, बहु और बेटी,तीनों बच्चें माँ से लिपट गये। 
"अरे तुम लोग तो मना कर  रहे थे आने को,फिर कैसे आ गये? डाक्टर ने तो मना किया था। " 
" हमारी  मम्मी बीमार हो और हम न आये ऐसा कैसे हो सकता है और ऊपर से दिवाली, हमारी मम्मी को तो सफाई की सनक है, नहीं मानेगी इसलिए कुछ भी हो ,हमें आना ही था। " 
" तुम्हारे पापा ने भी मुझे नहीं बताया कि एयरपोर्ट तुम्हें लेने जा रहे हैं। "
"हमने ही मना किया था। आपको सरप्राइज देना चाहते थे। बिना बताये आने से जितनी खुशी आपको अब हुई तब उतनी   नहीं होती। कर दी ना आपकी शाम सुहानी। "
"मेरा तो अब हर पल सुहाना है मेरे बच्चों! मैं आज कितनी खुश हूँ, शब्दों में नहीं बता सकती। माँ, बाप के लिए उनके बच्चें ही सबसे बड़ी दौलत होते हैं और जब वे उनकी परवाह करते हैं तो उनकी खुशी दोगुनी हो जाती है।। "
"मम्मी जी! अब आप यहाँ बिस्तर पर आराम करेंगी। हम तीनों मिलकर दिवाली का सारा काम संभाल लेंगे। "
"शुक्रिया बेटी! तुम कितनी अच्छी हो। ऐसी हालत में भी मेरे लिए यहाँ आयी और सब संभाल लिया। "
"मम्मी! मैं आपकी बेटी हूँ ना फिर शुक्रिया क्यों? चलिए आराम कीजिए। "
निशा की आंखों में आंसू थे परन्तु बेबसी  के नहीं,खुशी के। आज वह अपनी सब पीड़ा को भूल चुकी थी। ****

 9.करवाचौथ
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नीरा सुबह-सुबह घर के सब कार्य निपटाने में लगी थी।कालेज से उसने आज छुट्टी ले ली थी,साथ ही धीरे -धीरे कोई गीत गुनगुना रही थी।
"क्या बात है आज बड़े मूड में हो,कालेज नहीं जाना क्या?"
"नहीं, आज मैंने छुट्टी ले ली?"
"अच्छा चलो दो कप चाय बना लो,बालकनी में साथ-साथ बैठकर पीते हैं।"
"आपके लिए बना देती हूँ,मेरा तो व्रत है।"
"मुझे एक बात बताओ!तुम इतने व्रत क्यों करती हो? पूरा दिन भूखी रहोगी, कमजोरी आएगी और फिर क्या होता है व्रत करने से?"
"देखिए ये तो श्रृद्धा और विश्वास की बात है ।आप नहीं समझेंगे।"
"अगर तुम्हारे अनुसार इस व्रत को करने से मेरी उम्र बढ़ती है तो फिर तो मुझे भी तुम्हारी लम्बी उम्र के लिए व्रत करना चाहिए। मैं अगर नहीं करता तो मैं तुमसे प्यार नहीं करता?"
"यह कोई तर्क-वितर्क का विषय नहीं है। देखिए! मैंने आपसे पहले भी कहा कि ये अपने-अपने  विश्वास और आस्था की बात है। हमारे कितने पर्व है जो हम अपनी आस्था और विश्वास के कारण ही मनाते हैं। जब हम इन  पर्वो को हर्षोल्लास से मिलजुल कर मनाते हैं तो  ये हमारे रिश्तों को मधुरता और समरसता  से सराबोर कर देते हैं। होली हो या दिवाली,ईद हो या क्रिसमस, लोहड़ी हो या बैसाखी, करवाचौथ हो या रक्षाबंधन,ये पर्व ही तो हमें परस्पर प्रेम और सौहार्द से रहना सिखाते हैं,आपसी रिश्तों की मर्यादा का ज्ञान कराते हैं। आप नहीं समझ सकते मेरे उस आत्मिक आनंद को जो मैं आपके लिए करवाचौथ, अपने बच्चों के लिए अहोई-अष्टमी,भाई के लिए रक्षाबंधन पर व्रत करके और परम पिता परमेश्वर की ध्यान-साधना करके प्राप्त करती हूँ।इन पर्वों पर बुजुर्गों को उपहार भेंट कर उन्हें खुशी प्रदान करती हूँ।"
"बस हो गयी शुरू तुमसे तो बहस करना बेकार है, तुम नहीं समझने वाली।"
"आप अगर नहीं मानते तो न मानें पर मेरे उस आत्मिक आनन्द से मुझे वंचित न करें।"
"तुमसे कोई नहीं जीत सकता।" ****

 10.भटकती राहें
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         अजय ने पिछले तीन साल से कालेज का वातावरण दूषित कर रखा था। आठ दस आवारा लड़कों के साथ आती-जाती लडकियों पर भद्दी टिप्पणी करना, सीधे-साधे बच्चों को पीटना,बस यही उसका कार्य था। पूरा कालेज परेशान था परन्तु किसी की हिम्मत नहीं थी कि उसे रोक सके। यहाँ तक कि प्राचार्य भी उसके खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं कर पा रहे थे, दबंग विधायक का बेटा जो था। ।  सीमा चीफ प्रोक्टर थी उसे यह  बात बहुत अखरती थी कि कोई उसके खिलाफ कुछ भी क्यों नहीं कर पा रहा है? एक दिन  सीमा ने अजय को अपने केबिन में  बुलाया। 
"बेटे! मुझे तुमसे कुछ बात करनी है। "
"जल्दी बोलो मैडम जी मेरे पास टाइम ना। "
"क्यों, चौराहे पर बच्चों के साथ मारपीट करनी है? "
"मैडम जी इससे आपको के मतलब, आज तक किसी में हिम्मत ना हुई मुझे कुछ कहने की। अपना काम बताओ? "
"मतलब है क्योंकि मैं तुम्हें अपने बेटे जैसा मानती हूँ और दूसरे लोग एक आवारा लड़का। कोई माँ अपने बेटे को भटकते हुए नहीं देख सकती। मै चाहती हूँ कि लोग तुमसे डरे नहीं तुम्हारा सम्मान करें। "
"मैडम जी यू तो अब हो ना सके अब तो मैं इस राह  पे बहुत आगे बढ़ चुका। "
" अभी भी कुछ नही बिगड़ा बेटा! जब जागो तभी सवेरा। अपनी राह बदल दो बेटा!इतना परिश्रम करो कि इस महाविद्यालय के सर्वोत्तम छात्र को रूप में तुम्हारी पहचान हो। मैं तुम्हारा मार्गदर्शन करूंगी। तुम चाहो तो अपने परिश्रम के बल पर एक दिन इसी कालेज के प्रोफेसर भी बन सकते हो। "
"मैडम जी! क्या ये सम्भव है? "
" बेटे!सब कुछ सम्भव है, अगर तुम्हारी इच्छा शक्ति प्रबल है तो तुम कुछ भी कर सकते हो परन्तु अपनी उर्जा को अच्छे कार्य में लगाओ  बुरे में नहीं। जहाँ चाह वहाँ राह होती है। "
"मैडम जी! आपने मुझे बेटा कहा,अब  से पहले सब आवारा कहते थे,ये आपका बेटा  अब अच्छा और सफल इन्सान बनकर दिखाएगा।  मुझे आशीर्वाद दो मैडम जी। " ****

 11.बदलते रिश्ते
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         शालू  ग्रीष्मकालीन अवकाश में एक महीने के लिए बच्चों के पास पूना आयी थी। बेटा, बहु और बेटी सब एक साथ रहते थे। बेटी, बहु दोनों एक ही कम्पनी में इंजीनियर थी और बेटा अलग कम्पनी में।  बेटा बहुत कम बोलता था, हर समय अपने काम में लगा रहता। उसे न घूमने का शौक था न ही खरीदारी का जबकि बहु और बेटी दोनों  इसके विपरीत। दोनों में बहुत अधिक प्रेम था, साथ घूमना, खरीदारी करना, रसोई में गप्पे मारते हुए काम करना। उन्हें देखकर शालू बहुत खुश थी। पिछले चार सालों में एक साथ रहते हुए कभी भी उनमें कहा-सुनी नहीं हुई। विभा अपने भाई से पांच साल  छोटी थी, दीपा उससे तीन साल बड़ी थी। वह भाभी को दिब्बी कह कहकर बुलाती और वह उसे विभु। भाभी के बेटी हुई तो सुबह भाभी को अस्पताल से घर आना था, विभा सारी रात दीपा का कमरा और घर सजाने में लगी रही। अपने हाथों से इतनी सुन्दर सज्जा की कि सब  देखकर  दंग रह गये। दीपा भी गदगद थी। शालू तो फूली नहीं समा रही थी ननद भाभी के इस बदलते रिश्ते को देखकर। उसे अपना जमाना याद आ रहा था ,कितना डरती थी वह अपनी ननद  और सास से। ननद उसकी सास को उसके खिलाफ भड़काती रहती थी।दोनों मिलकर उसे कितनी मानसिक प्रताड़ना देती थी।"  ****
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क्रमांक - 07
पति : श्री उमेश ठाकुर 
शैक्षिक योग्यता : 
M.A.(हिन्दी, अर्थ शास्त्र)M.Ed. ,B.Ed..
रिटायरड :  T.G.T. पंजाब शिक्षा विभाग  

प्रकाशित पुस्तकें : -
तीन पंजाबी में
 एक हिन्दी में
छः साझा काव्य संकलन 
चार पंजाबी के दो हिन्दी के

सम्मान : -
हिन्दी लघुकथा मुकाबले में कई बार विजेता घोषित 
स्थानीय और जिला प्रशासन की ओर से बहुत ईनाम और सम्मान पत्र ।
अभी कोविड--19 में S.D.M. की ओर से "करोना योद्धा " सम्मान पत्र 

सोशल वर्क : -
मैंबर जे.जे.बोर्ड, रोपड़ (पंजाब)
मैंबर--जिला कानूनी सेवा आथर्टी, रोपड़ 
मैंबर जिला रैड क्रास सोसायटी, रोपड़ 

पता :-
कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
1. सही हकदार
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     आज शहर के व्यापारियों ने सर्व सहमति से सेठ बनारसी लाल को व्यापार मंडल का प्रधान चुन लिया। सभी उस को फूल मालाएं डाल  रहे थे। अब बनारसी बाबू व्यापारी गण को संबोधित करते हुए बोले ,"मैं तन मन से आप लोगों के साथ हूँ। सभी मसले मिलजुल कर निपटाएंगे और अपनी आवाज़ सरकार तक पहुँचाएं गे।जो हमारे भाई छोटे दुकानदार हैं, उनको भी साथ लेकर चलें गे।मै एक बात आप सब को बता दूँ कि मैं बहुत पढ़ा लिखा नहीं हूँ----कुछ साल पहले----- मैं भी छोटा सा  दुकानदार था।एक दिन मेरे पास बेरोजगार पढ़ा लिखा, बहुत मायूस नौजवान आया और रोजगार मांगा।पता नहीं ---क्या सोच कर मैंने उसे अपने पास काम पर रख लिया। 
           उस लड़के की बदौलत मैं कुछ ही अर्से में फर्श से अर्श पर पहुँच गया। आज डिजिटल का जमाना है। मेरे जैसे को तो डिजिटल का कुछ पता ही नहीं----उसी नौजवान ने डिजिटल के माध्यम से दूर दूर तक व्यापार फैला दिया। वह नौजवान ही मेरे अंधे की लाठी है। आप लोगों ने मुझे प्रधान चुना है लेकिन मेरा प्रधान वो ही है। फिर बनारसी बाबू ने रोशन को स्टेज पर बुलाया और अपने गले के हार उतार कर उसके गले में डाल दिए।सभी व्यापारी हैरान हो गए।वो तो रोशन को बनारसी लाल का बेटा समझते थे।सभी एक दूसरे का मुंह ताकते कहने लगे---अरे ----इतना भरोसा व्यापार में-------। ****

2. कहनी और कथनी 
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        कमला बाई मेन गेट खोलकर अंदर आई तो अंदर से साहब और मैडम के लड़ने की आवाजें आ रही थी। वह वही ठिठक गई और बातें सुनने लगी।साहब किसी महकमें में उच्च अधिकारी हैं और मैडम समाज सेविका है। झगड़ा साहब के माता-पिता को लेकर हो रहा था जो गाँव से बेटे के पास आ रहे थे----मैडम कह रही थीं--उन ग्रामीणों को यहां लाना ठीक नहीं----हमारे रहन सहन में बाधा पड़ेगी---जब गाँव में ही उन्हें हर महीने इतने रूपये देकर आते हैं, फिर उन्हें यहां लाने की क्या जरूरत है ----साहब की कड़क आवाज कानों में पड़ी---वो मेरे माता-पिता हैं----मैं आज जो भी हूँ, उनकी बदौलत ही हूँ----जो तुम ऐशोआराम की जिंदगी बतीत कर रही हो,यह उनकी दी हुई है----मैडम अभी भी जिद्द कर रही थी----कमला बाई को कल की बातें याद आने लगीं, जब वह मैडम के साथ वृद्ध आश्रम में फल और कपड़े बांटने गई थी और मैडम वृद्ध आश्रम के संचालक के सामने आंखों में आंसू भर कर कह रही थीं----कैसे बच्चे हैं जो अपने माता-पिता को साथ नहीं रख सकते----कमला बाई के मुख से निकला---ओफ---कथनी और करनी में इतना अंतर।
         कमला बाई ने जोर से दरवाजा खटखटाया। अब कोठी के भीतर से मैडम ने मुसकुराते हुए दरवाजा खोला  और बोली,"कब आई हो?"  अभी अभी-----कमला बाई ने गहरी मुस्कुराहट से कहा। ****

3. सपनों को परवाज़
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           रीता के घर सुबह से बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। आज उसने मनोविज्ञान की मास्टर्स मे गोल्ड मेडल लेकर उतीर्ण कर ली है। बार बार उसकी आँखों में खुशी के आंसू छलक आते।उसका अतीत आंखों के आगे चलचित्र की भांति आंखों के आगे घूमने लगा----- उसने अभी स्नातक के दूसरे वर्ष की परीक्षा ही दी थी कि पापा की अचानक मृत्यु हो गई----तीन बहनें एक भाई---भाई को भाग दौड़ करके पापा की जगह नौकरी दिलवा दी कि लड़कियां तो पराया धन है।माँ का सहारा तो लड़का ही बनेगा---रिशतेदारों के कहने पर मेरी "झट मंगनी, पट ब्याह "हो गया। मैं अपने सपनों की गठरी बांध कर सुसराल आ गई। परंपरा वादी परिवार----घर गृहस्थी में रम गई।
          दीपक को जब पता चला कि मैं पढ़ने में बहुत होशियार थी लेकिन हालातों में बंधे मेरी शादी शीघ्र हो गई। शादी की पहली वर्ष गाँठ पर दीपक ने स्नातक के तीसरे वर्ष की किताबें और फार्म लाकर भरने को कहा। मैं हैरान हो गई और कहा---अम्मा और बाबूजी----दीपक ने ढारस बंधवाया कि उनको मैं समझा लूँ गा। मैंने प्रथम डिविजन में स्नातक की डिग्री ले ली।
           फिर दीपक ने मेरा दाखिला शहर के काॅलेज में मनोविज्ञान की मास्टर्स डिग्री में करवा दिया।अम्मा कई बार ताना देती कि सोचा था दीपक की शादी के बाद पोता-पोती के साथ खेलेंगे लेकिन यह कया----?
       दीपक हंसते हुए मेरी स्नातक की डिग्री अम्मा की गोदी में रखते हुए कहते,"अम्मा, यह लो पोती----दो साल बाद पोता भी होगा----सभी खूब हंसते-----अम्मा और बाबूजी धीरे-धीरे सहमत होते गए।तभी अम्मा की हंसती खनकती आवाज ने रीता को चौकाया---अरे बहु----आज पोता हुआ है-----खूब जश्न होगा----रात को मेरी सखियाँ खाने पर आयें गी---चलो खाने की लिस्ट तैयार करें। आज रीता के सपनों ने खुले आसमां में परवाज़ भरी।****

4. रिसते जख्म 
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            सुरेश साहिब के पैरों की मालिश करते हुए कालू राम सोच रहा था कि----यह वो ही साहिब हैं----आफिस में मेरे हाथ का पानी पीना तो दूर की कौड़ी---पास भी नहीं फटकने देते थे---खैर,साहिब का क्या कसूर? मैं तो था अदना सा सफाई सेवक---अगर अभी भी साहिब होश में होते तो----।भगवान का शुक्र है जब गाड़ी ने साहिब को फेट मारी,मैं पास से गुजर रहा था।इन की जेब में पड़े कार्ड से बंगले का पता मिला तो वो लोग सिर पर लगी चोट की पट्टी करवा कर हमें यहां छोड़ कर नौ दो ग्यारह हो गए। पर गाड़ी वाले का कोई कसूर नहीं था।उसने बहुत बार जोर जोर से हार्न बजाया लेकिन साहिब इतना अपने आप में खोये हुए थे कि सुन ही नहीं रहे थे। 
       बंगले के चौकीदार बिहारी लाल ने बताया है कि अगर साहिब की जगह कोई और होता तो पागल हो गया होता----छःमहीने में दो मौतें। पहले माँ समान बहन ,जिसने साहिब को पाला-पोसा और इन की खातिर शादी भी नहीं करवाई थी--दो महीने बाद पत्नी भी चल बसी। तब से साहिब गुमसुम खोये खोये से रहते हैं। बच्चे दोनों बाहर विदेशों में रहते हैं। पुरानी काम वाली बाई तीनों समय खाना तैयार कर जाती है। बतियाने के लिए कोई पास नहीं। अपना दुख किस को बताएं?यहां आदमी की जरूरत है, वहां रुपये पैसे तो दिल का दुख नही बांटेंगे----।
      कालू राम और बिहारी लाल की सांस मे सांस आई ,जब साहिब को कुछ देर में  होश आ गया।कालू राम एक दम पीछे हट कर हाथ  जोड़ कर खड़ा हो गया। शायद भगवान का शुक्रिया कर रहा था या हीन भावना से ग्रसित हाथ जोड़ कर खड़ा था।
           सुरेश साहिब ने भौचक्का हो कर खुद को घर के बैड पर लेटे पाया तो आंखों से पानी बहने लगा। शायद बहुत दिनों बाद  दिल के रिसते जख्म आंखों के रास्ते बह रहे थे। *****

5.ममता
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अरे माँ-----मुझे यकीन नहीं हो रहा--सब ठीक तो है---भैया भाभी से----कितने ही सवाल रीता ने माँ के गले लिपटते पूछ डाले।
      बेटी, सब ठीक है। तेरे भैया,तेरी भाभी और बच्चों के साथ दो दिन के लिए सुसराल गए हैं। माँ ने कहा।
     रीता, तुम तो कुछ बताती नहीं हो पर एक माँ की ममता अपने बच्चों के दिल की बात उनके बताए बगैर भी जान लेती है। मुझे सब मालूम है---पल्लवी ने फोन पर बताया था कि उस का एम.एस.सी.का नंबर बढ़िया कालेज में आ गया है बाकी देखते हैं------।मैंने अपनी नातिन की बातों से सब कुछ समझ लिया। 
       माँ ने अपने पर्स से एक लाख रुपये निकाल कर रीता को देते हुए कहा, "बेटी, जिस काॅलेज में पल्लवी का नंबर आया है, वहां दाखिला फीस भर दो।तेरे पापा और मैंने कुछ साल पहले अपनी नातिन की शादी के लिए बैंक में जमां किए थे और अब डबल हो गए हैं। यह रक्म सुबह बैंक से निकलवा कर, बस पकड़ी और चली आई।तेरे पापा की आत्मा को भी शांति मिलेगी कि उनकी नातिन एम.एस.सी.कर रही है। 
       रीता की आंखें भर आई और माँ के गले लिपटते हुए बोली,"माँ, इतनी दूर बैठे आप कैसे मेरी मुश्किल को समझ लेती हो।"
      चलो----चलो---नानी खाना खाएं। टेबल पर लगा दिया है। पल्लवी ने कहा।
     हाँ--हाँ--भई-मैंने शाम तक घर भी पहुँचना है। माँ ने कहा। 
    माँ आज यहां रुक जाओ।भैया, भाभी और बच्चे भी तो घर नहीं हैं। वहां अकेले क्या करोगी?रीता ने कहा।
      नहीं बेटा,मैंने तेरे भाई,भाभी को कुछ नहीं बताया। यह तो माँ बेटी के बीच की बात है----।माँ ने ठंडी सांस भरते हुए कहा। ****

6.उम्रदराज 
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      राम लाल घर से जाने लगा तो पत्नी ने कहा, "आज काम मिल जाए तो अच्छा है क्योंकि घर में अभी के खाने का ही जुगाड़ था।" कोई जवाब दिए बिना वह साइकिल पर सवार होकर घर से निकल पड़ा। प्रति दिन की भांति "लेबर चौंक "पर जाकर खड़ा हो गया। 
            एक ठेकेदार आया और छांट कर युवा मजदूरों को ले गया।वह वहां खड़ा लाचार आंखों से ताकता रहा।  उसे बार बार पत्नी के शब्द आने लगे और बच्चों के चेहरे आँखों के आगे आते ही कलेजा मुंह को आने लगा। उस की तंद्रा भंग हुई जब "लेबर चौंक "की घड़ी ने नौ बजे का घंटा बजाया।
       हे भगवान! आज भी घर खाली हाथ जाना पड़ेगा।अभी सोच में डूबा हुआ था कि एक कार आकर रुकी। कार में बैठे साहिब ने अपना सिर बाहर निकाल कर पूछा, "क्यों रे भाई! एक दिन की मजदूरी का काम है,चलेगा। "राम लाल ने तीव्रता से जवाब दिया "हाँ जी, जरूर चलूँगा।"वैसे तो वह हमेशा  राज मिस्त्री के साथ काम करता, लेकिन उस ने सोचा, आज जो भी काम मिलेगा, कर लूँ गा।बच्चों को भूखा नहीं सोना पड़ेगा। 
              कार वाले साहिब बोले,"क्या मजदूरी लेगा? जनाब, आप को पता ही है,मजदूर की दिहाड़ी पांच सौ रुपए  है।वो सामने "लेबर चौंक "पर बोर्ड पर भी लिखा हुआ है। "राम लाल ने विनती भरे लहजे में कहा।
        मुंह बचकाते हुए कार वाले साहिब बोले,"वो तो ठीक है---लेकिन तू है भी तो उम्र दराज। चार सौ में चलना है तो चल।
         राम लाल ने ठंडी सांस भरी और हाँ में सिर हिलाया।अब कार वाले साहिब अपनी जीत पर गर्दन अकड़ाकर कार चला रहे थे और राम लाल गरीबी और लाचारी के बोझ तले दबी गर्दन झुकाकर अपनी साइकिल कार के पीछे पीछे चल रहा था।****

7.दीये तले अंधेरा 
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        "   बालिका दिवस" पर प्रो.रश्मि  सुबह आठ बजे अपनी क्लब की तरफ से झुग्गी झोपड़ी में प्रभावशाली भाषण देकर और कुछ खाद्य पदार्थ विवरण करके घर पहुँची तो पति देव गुस्से से भभक पड़े।"घर की सुधि ले नहीं होती,बाहर प्रधान बन कर घूम रही हो।सुबह के दस बजने को हैं, अभी तक नाश्ता भी नसीब नहीं हुआ।"
           रश्मि ने प्यार से कहा,"विनोद जी,सब कुछ तो किचिन में पड़ा हैं---अंडा,ब्रैड, जैम,बटर और फल आदि।फिर मैंने सुबह उठ कर आलू के  परांठे भी बना कर ,आप को बता कर गई हूँ। आप को बस किचिन में जाना की जहमत उठानी थी" रश्मि की बातें सुनकर विनोद साहिब का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया और बोले, "पहले नौकरी के कारण सब झेल लिया,अब रिटायरमैंट के बाद भी गर्म रोटी नसीब नहीं----तुम आवारागर्दी करती फिरो और मैं किचिन में बाई बन जाऊं------कल को बोलोगी,दोपहर का खाना भी बनाओ----आदि।रश्मि ने ऐसे जवाब की कल्पना भी नहीं की थी।उस ने धैर्य से कहा,"मै तो यह कहती हूँ कि आप रिटायरमैंट के बाद यूँ खाली बैठे परेशान होते रहते हो,कोई समाज सेवी संस्था में शामिल होकर समाज सेवा करो।सकूँ भी मिलता है और समय का पता भी नहीं चलेगा। रश्मि की बातें सुनकर विनोद साहिब आग बबूला हो गए।हाँ---हाँ  --मैं तो बेकार हूँ----इन बकवास के कामों के लिए मेरे पास समय नहीं। पति -पत्नी में तू तू--मैं - मैं होने लगी।उन दोनों को पता ही नही चला कि कब से कमला बाई उन दोनों के झगड़े को देख सुन रही थी।कमला बाई ने मन ही मन में सोचा,"मेरा पति तो अनपढ़, गँवार है जो गाली गलोच करता है---यह दोनो तो------।*****

8.अटकी सांसे 
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       घर के बगीचे में बैठे ठाकुर ज्वाला सिंह अपनी पत्नी गीता के साथ शाम की चाय पीते हुए बोले, "अजी!आप को पता है आज गाँव से रूलिया राम हमारे खेतों में बुवाई करने आया था तो बता रहा था कि हमारी बेटी अंजलि की सहेली रमा ने दूसरी बिरादरी में अपने सहकर्मी लड़के से अपनी मर्ज़ी से शादी कर ली है। माता-पिता ने बहुत समझाया और विरोध किया लेकिन आज कल के बच्चे कहां परवाह करते हैं ।"रूलिया राम की बताई बात खत्म करते ही ठाकुर ज्वाला सिंह बोले,"सच कहता हूँ गीता,अगर रमा की जगह मेरी बेटी होती तो मैं तो जमीन में गाड देता,कहते हुए उसका चेहरा तमतमा उठा।
         गीता के माथे पर भय की लकीरें उभर आईं और चाहते हुए भी कुछ न कह पाई।चाय के कप-प्लेट उठाते बोली,"रात के लिए दाल -सब्जी तैयार कर लूँ, कह कर खिसक ली।
      अंदर आकर धम से कुर्सी पर बैठ कर रात को फोन पर अंजलि से हुई बातें सोच कर दिल बैठने लगा।ज्वाला सिंह जो कि अंजलि की सहेली की मनमर्जी से बिरादरी के बाहर शादी पर इतना तिलमिला रहे हैं जब यह पता चलेगा कि अंजलि भी अपनी पसंद के डा.लड़के से, जो दूसरी बिरादरी का है,शादी की ठान ली है तो फिर क्या होगा? गीता को पति का तमतमाया चेहरा आँखों के आगे घूमते ही शरीर पसीने से तर हो गया मानो सांसे अटक रही हो----।*****

9.बर्फ पिघल गई 
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           "तेरा मुंह दुबारा न देखूँ कलमुँहे----कितनी जुबान चलाता है---कहो तो सही कुछ---हाँ--हाँ--तेरे जैसी का मुँह देखने पर तो रोटी भी नसीब न हो--ऐसी ऐसी जनाना-मर्दाना आवाजें प्रति दिन मुहल्ले वालों को सुनने को मिलती।कभी देवरानी-जेठानी का झगड़ा---'कभी देवर-भाभी का और कभी भतीजे राजेश के साथ। 
      "अरे----राधे शयाम चाचा ! आप को मालूम है राजेश का एक्सिडेंट हो गया है और शहर के बड़े हस्पताल ले गए हैं। कोई ट्रक टक्कर मार गया है।  "मुहल्ले के बंटी ने बताया। यह सुनते ही राधे श्याम का चेहरा उतर गया। दूसरे ही पल मन में सोचा, मुझे क्या? कौन सी चाचे-भतीजे वाली बात है--रोज़ रोज़ की किच--किच---गाली गलोच---।फिर मन में बेचैनी सी होने लगी----खून उबालें खाने लगा--भाई का चेहरा आँखों के आगे घूमने लगा---वो बचपन की बातों ने घेर लिया----कैसे मुझे थोड़ी सी चोट पर मोहन विचलित हो जाता था----मुझे बुखार भी होता था तो पूरी रात सोता न था---कभी आंखें से ओझल न होने देता। 
        अच्छा चाचा! मैं हस्पताल जा रहा हूँ। "जब बंटी ने कहा तो राधे श्याम वर्तमान में लौटा।अंदर जा कर राधे श्याम ने अलमारी खोली और रुपये निकाल कर गिनने लगा।पत्नी को आवाज़ देकर कहा, "सावित्री मुझे बैंक की कापी दो।"जब सावित्री ने देखा कि इतनी रकम हाथ में है और फिर भी बैंक की कापी मांग रहे हैं। क्यों क्या हुआ?पैसे की क्या जरूरत आन पड़ी? "सावित्री ने हैरानी से पूछा। वो राजेश का एक्सिडेंट हो गया है, हस्पताल ले गए हैं, पैसों की जरूरत तो होगी। "राधे श्याम ने घबराए स्वर में कहा।
          सुनो----हमें क्या जरूरत है?"अभी सुबह ही तो कलमुंहे से गाली गलोच हुआ है---भाड़ में जाए---"सावित्री गुस्से में बोली।पत्नी की बात सुनकर राधे श्याम की आंखें गुस्से से लाल हो गईं ।गुस्से भरीआँखें  देख कर बिना हील-हुज्जत के सावित्री ने बैंक की कापी निकाल कर पकड़ा दी।
      रकम लेकर राधे श्याम हस्पताल पहुँचा तो आपातकालीन वार्ड में ऑपरेशन कक्ष के बाहर बैठा मोहन शून्य आंखों से इधर उधर देख रहा था। जब राधे श्याम को पास खड़ा देखा तो उसके गले लग कर फूट फूट कर रोने लगा।वर्षों से रिश्तों पर पड़ी बर्फ पिघलने लगी । ****

10. माई-बाप 
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          रामदीन जब अपनी कील,पॅलिश और ब्रश आदि वाली संदूकची उठा कर जाने लगा तो कमला ने अपने पति से कहा, "जी आज आते हुए बच्चों के लिए कुछ गर्म कपड़े और पांव में पहनने के लिए बूट लेते आना।ठंड बहुत हो गई है, कहीं बच्चे बीमार न हो जाएं। यह पकड़ो,सौ रूपए, मैंने बड़ी मुश्किल से पाई पाई करके जमां किये हैं। 
       रामदीन ने रास्ते में सोच कर फैसला किया कि आज बस अड्डे के बाहर नहीं, अंदर ही अपनी संदूकची खोलूं, शायद कुछ ज्यादा कमा सकूं।रामदीन बस में आने जाने वाली सवारियों को देखकर आवाज़ लगाता,"बूट पॉलिश---टूटी चपलें,जूते गंठवा लो----।लेकिन दोपहर हो गई---कोई ग्राहक न मिला।निराश होकर सोचने लगा---बीवी सच ही कहती है कि मैं यह काम छोड़कर कोई ठेला लगा लो---आजकल चमड़े के जूते पहनता कौन है?--टूटी चपलें गंठवाता कौन है? कमला ठीक कहती है अगर वो कुछ घरों में काम न करती होती तो बच्चों का पेट कैसे पालते---कड़ाके की सर्दी  है---चलो एक कप चाय ही पी लूँ। लेकिन---जेब में तो वही सौ रुपये हैं जो बीवी ने बच्चों के गर्म कपड़े और जूते लाने को दिये हैं। वह मन मारकर सर्दी में ठिठुरता रहा। 
         इतने में पुलिस वाला आकर संदूकची को डंडे से ठकोरने लगा।क्यों  रे----यह जगह तेरे बाप की है?यहाँ क्यों अड्डा जमां लिया? चल भाग यहां से"---पुलिस  वाला कड़क लहजे में  बोला।रामदीन हाथ जोड़ कर बोला, माईबाप, आज ही यहां बैठा हूँ। वैसे तो मैं रोज़ बाहर पटरी पर ही बैठता हूँ। मैंने सोचा, शायद यहां कुछ ग्राहक मिल जाएं और चार पैसे बना लूँ? पुलिस वाला रामदीन के कान के पास बोला,"अच्छा, यहां बैठना है तो पचास रुपये निकाल।"पचास का नाम सुनते ही रामदीन की जुबान सूखने लगी।हकलाते हुए बोला,"माईबाप , जेब में तो फूटी कौड़ी भी नहीं, पचास कहां से दूँ।इतना कहते ही वह अपनी संदूकची लेकर खड़ा हो गया।
         पुलिस वाले ने एक डंडा उस की टांग पर मारा और बोला, "झूठ बोलता है--कहते ही उस की जेब से हाथ डाल कर फटा पुराना पर्स निकाल कर,उस में से उस की बीवी का दिया इकलौता सौ का नोट निकाल कर दांत निकालते हुए बोला,यह क्या है? अब पचास से नहीं, सौ से काम चलेगा और नोट अपनी जेब में ठूंस लिया।रामदीन का शरीर कांपने लगा और हकलाते हुए हाथ जोड़ कर बोला--माईबाप ,यह तो ब-च---चों के---लिए-गगग--र--म।सिपाही पांव की ठोकर मार कर आगे बढ़ गया। रामदीन वहीं बेसुध होकर गिर पड़ा। ****

11. नई सास 
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प्रिय ने हंसते हुए कहा, "अनु लगता है कुछ ही दिनों में तेरी नई सासू माँ आने वाली है। " क्या बक रही हो यार,ऐसे मजाक मुझे अच्छे नहीं लगते। अनु ने तुनक कर कहा "।प्रिय ने कहा, अरे!मैं सच कह रही हूँ। मैं हर रोज़ बच्चों को लेकर नेहरू पार्क जाती हूँ। वहां तेरे ससुर अपनी हमउम्र महिला के साथ हंस हंस कर बातें कर रहे होते हैं। कल तो वह खाने के टिफन में कुछ लेकर भी आई थीं। खूब चटुकारे ले ले कर दोनों खा रहे थे। 
           रात जब खाने की टेबल पर अनु,विजय और उन का आठ वर्षीय बेटा सूरज बैठे हुए थे तो अनु  विजय  से कहने लगी,"सासू माँ की मृत्यु के बाद लगता है कि बाबू जी सठिया गए हैं और लगता है ,हमारी इज्जत मिट्टी में मिला कर ही रहें गे।प्रिय कह रही थी कि तेरी नई सासू माँ आने वाली है। बाबू जी रोज़ पार्क में एक  हमउम्र  महिला के साथ गप्पें लड़ाते और इकट्ठे खाते- पीते हैं। "अनु की बात सुनकर विजय ठहाका मार कर हंसा और बोला, तुम औरतें भी बस राई का पहाड़ बनाती हो। सूरज ये बातें सुन तो रहा था लेकिन ये बातें उस के पल्ले नहीं पड़ रही थीं ।
       अगले दिन रविवार था।सूरज ने कहा, दादू  ,आज मैं भी आप के साथ पार्क जाऊँगा ।"दोनों दादा -पोता पार्क पहुँच गए। यहां महेश बाबू रोज़ बैठते थे, वहां जाकर वे दोनों बैठ गए। कुछ देर बाद एक सभ्य महिला भी आकर बैठ गई। महेश बाबू ने सूरज से कहा, "बेटा ,यह मेरी दोस्त रजनी है। "सूरज तपाक से बोला, हाँ दादू, मुझे पता है। प्रिय आंटी ने मम्मी को बताया था कि तेरे नई सास आने वाली है। "सूरज की बात सुनकर महेश बाबू और रजनी हैरानी से एक दूसरे का मुंह ताकने लगे कि लोगों की सोच इतनी संकीर्ण। ****
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क्रमांक - 08
जन्म तिथि- 04 अक्टूबर 1957 
माँ - श्रीमती कमला वर्मा 
पिता - श्री बाबूराम वर्मा 
संतान -  एक पुत्री, एक पुत्र 

शिक्षा- एम० ए०, बीएड, डी फिल (शोध द्वारा) गद्यकार “ बच्चन : एक आलोचनात्मक अध्ययन “ विषय पर 

कार्य क्षेत्र/ व्यवसाय-—24 वर्ष अरूणाचल प्रदेश में अध्यापन। 2005 में स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति। वर्तमान में स्वतंत्र अध्ययन और लेखन।

रुचि
यात्रा करना, फोटोग्राफी, कुकिंग, सिक्कों का संग्रह करना, विवाह के निमंत्रण पत्रों से फोटो काट कर कोलॉज बनाना 

निवास स्थान— देहरादून, उत्तराखंड 


ब्लॉग - www.kamalvithi.com
वेबसाइट - www.kamalvithi.com

लेखन :-
 कविता, गीत, नवगीत, मुक्त छंद, लेख, दोहे, संस्मरण, कहानी, लघुकथा, समीक्षा, मुक्तक, वर्ण पिरामिड, पत्र विधा, व्यंग्य आदि।

प्रकाशित कृतियाँ : -
एकल (१२ ):-

एकल कविता संग्रह—०७
आलोचना पुस्तक—०१
सृजन समीक्षा—०१
लघुकथा संग्रह—०२
आलेख संग्रह—०१

साझा संग्रह - ८०

साझा काव्य संग्रह—६८
साझा लघुकथा संग्रह— १०
साझा आलेख संग्रह—०१
साझा पत्र संग्रह— ०१

लगभग ८० पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित 

संपादित कृतियाँ—१– प्रवाह विद्यालय पत्रिका)
२– आदर्श कौमुदी ( मासिक पत्रिका बिजनौर) के गंगा 
विशेषांक का संपादन
३- माँ (संस्मरण संग्रह)
४- पिता (संस्मरण संग्रह )

 सम्मान— 
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ( पूर्व रक्षा मंत्री ) द्वारा हिंदी साहित्य सेवा के लिए सम्मान सहित अब तक अन्य ३० सम्मान प्राप्त।

सामाजिक कार्य: -
अपने पति के “ अविराम प्रवाह” ट्रस्ट द्वारा किए जाने वाले सेवा कार्यों में सहयोग 

मेरी प्रेरणा : मेरे पापा और मेरी माँ 

लेखन का उद्देश्य— 
अपने पापा से मिली लेखन की विरासत को आगे बढ़ाते हुए माँ हिंदी को समृद्ध बनाने के लिए प्रयत्नशील।

पता : -
डा० भारती वर्मा बौड़ाई
95, ब्लॉक- H, दिव्य विहार , डांडा धर्मपुर, 
डाकघर- नेहरूग्राम ,देहरादून-248001 ( उत्तराखंड )
१- हल    
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      हारी-बीमारी ने ऐसे घर में ऐसे पैर पसारे कि घर-द्वार, खेती सब लील गयी।
       कर्जे में दबता बुधिया सोचने-समझने की शक्ति खोहता जा रहा था।
        बेटे-बहू शहर के ऐसे हुए कि लौट कर न आए।
        दिन भर हाड़ तोड़ मजूरी कर, रोटी का इंतजाम करके घर पहुँचा।
       पर सुक्खी सदा के लिए दो जून की रोटी का हल निकाल राम जी के पास पहुँच चुकी थी। *****

२- पाठ    
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       एक्सिडेंट में पति की मृत्यु, नौकरी में दोनों बच्चे दूसरे शहरों में सैटल...अकेला घर और अकेलापन पंखुड़ी को खोखला करता जा रहा था। तीनों बच्चों ने इनमें पर आकर जैसे धमाका कर डाला। उसके एक कमरे को अध्ययन कक्ष बना, कुर्सी-मेज, अलमारी में उसकी रूचि की पुस्तकें, डायरी,पैन और लैपटाप से सज्जित कर, आँखें बंद कर उसको बुलाया। “ माँ!जन्मदिन का उपहार आपके लिए”....कह कर तीनों बच्चे उससे लिपट गए। बच्चों और उनके दिए उपहार को देख पंखुड़ी को लगा उसके जीवन का नया पाठ आरंभ हो गया है।****

३- जीत  
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       काव्या का विवाह हुए तीन वर्ष होने जा रहे थे। सब कुछ होते भी उसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं दिखती थी। वह कुछ भी, कैसे भी करे....यही सुनने को मिलता कि ऐसे करना चाहिए,वैसे करना चाहिए, पर यह कोई न कहता कि तुमने बहुत अच्छा किया।
           काव्या को ऐसा लगने लगा जैसे उसका अपने ऊपर विश्वास कम होने लगा है। वह कोई भी काम करती तो पहले यही सोचती..हो भी पायेगा मुझसे? सबको पसंद भी आयेगा?
             तभी घंटी बजी। देखा काम वाली मोहिनी आ गई थी।
          क्या बात बहू जी! आज कोई दीख ना रहा घर में?
         हाँ, सब काम से बाजार गये हैं।
          तुम्हारी तबियत भी ठीक ना लग री बहू जी!
           ना, ऐसी कोई बात नहीं। बस सोच रही थी कहाँ से, कैसे काम शुरू करूँ?
           तुम्हें एक बात बताऊँ....यहाँ सबके सब मेरे काम की तारीफों के पुल बाँधें हैं, और वहाँ मेरे घर में मेरे मरद को मेरा किया कोई काम ना पसंद आवे। हर समय नुक्स निकालने को ही जैसे तैयार बैठा रहवे।
         मैंने तो अपना रस्ता निकाल लियो।मैं जो भी करूँ पूरा मन लगा के करूँ हूँ, तो डरूँ काहे। बताओ.. सही करूँ ना मैं?
      मोहिनी की बात सुन कर काव्या को भी जैसे अपना रास्ता मिल गया। सही तो है, जब काम पूरी ईमानदारी से मन लगा कर करना है तो डरना किसलिए। रास्ता सही होना चाहिए बस।
        तू तो बड़ी समझदार है मोहिनी... कहते हुए काव्या अपने बचे हुए काम समेटने लगी। डर पर जीत की खुशी दिखने लगी थी। *****

४- कसाई    
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       कहीं आज भी डाक्टर निकल न जाये और रिपोर्ट दिखाने से रह जाये, यह सोचते हुए वृद्ध व्यक्ति भरसक तेजी से चलते हुए डाक्टर के कमरे में पहुँच कर थैले से ऐक्सरे की रिपोर्ट निकाल ही रहा था...... डाक्टर ने उसे बीच में ही रोक दिया। जाओ कल मरीज को लेकर आना...कह कर टाल ही दिया।
         सूट बूट धारी दम्पति को देख डाक्टर की आँखों में गजब की चमक आ गई थी। हृष्ट-पुष्ट बकरा हलाल होने जो चला आया था।*****

५- परंपरा    
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         बत्तीस वर्ष विद्यालय में अध्यापक के रूप में अपनी सेवाएँ देने के उपरांत मोहन लाल जब सेवानिवृत्त हुए तो उन्होंने चैन की साँस ली।
          एक बँधी-बँधाई दिनचर्या से मुक्ति वे उसी तरह अनुभव कर रहे थे जैसे पिंजरे से मुक्त होने पर पक्षी अनुभव करता है।
         इसीलिए आज स्वतंत्रता दिवस होने पर भी उन्होंने सुबह होते ही उन्होंने घोषणा कर दी कि आज सब एक सप्ताह के लिए जयपुर घूमने के लिए निकल रहे हैं।
             “पर बाबू जी! आज ही क्यों? हम कल भी तो निकल सकते हैं?”
               “ भला कल क्यों, आज क्यों नहीं?”
        “ बचपन से लेकर आप हमें बताते-सिखाते आए हैं कि गणतंत्र दिवस और स्वतंत्रता दिवस हमारे राष्ट्रीय त्योहार हैं , व्यक्ति जहाँ भी भी उसे वहीं उपस्थित होकर मनाना चाहिए। शिक्षक के रूप में अपने विद्यार्थियों को भी यही बताते आए, तो फिर आज ही गणतंत्र दिवस को छोड़ कर हम घूमने जाएँ... बात कुछ समझ नहीं आई बाबू जी?”
        “ बात तो तुम सही कह रहे हो बेटे!  सेवनिवृत्ति के उत्साह में मैं अपनी ही दी हुई शिक्षा भूल गया था। अपनी कॉलोनी में जो आज कहीं नहीं जाते उन्हें एकत्रित करके आज हम स्वतंत्रया दिवस मना कर नयी परंपरा आरंभ करेंगे”...कह कर मोहन लाल तैयार होने लगे। ****

६- अंत    
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      विवाह-विच्छेद हो जाने के बाद भी पंक्ति के मन से उस विवाह की भयावहता समाप्त होने का नाम नहीं ले रही थी। हर समय के ताने, मारपीट के दृश्य उसकी आँखों के सामने रह -रह कर आते रहते थे और उसकी घृणा इतनी बढ़ गई थी कि उसने उस नर पिशाच को सबक सिखाने का दृढ़ संकल्प कर लिया था।
                 “क्या मोल है तेरी पढ़ाई का? है तो पहली-दूसरी के बच्चों को पढ़ाने वाली!”.... ये कटु बोल हर समय उसके कानों में गूँजते रहते थे।
          दिन-रात एक कर उसने नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की और उसी नर पिशाच के स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्राध्यापक बनी।
              आज आत्मनिर्भर बन जाने के बाद उसकी पीड़ा का अंत हो गया था।*****

७- बोलता परिश्रम      
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         शोभा की कामवाली अपने लड़के को लेकर आई थी। आते ही कहने लगी...” आंटी जी! आपको बहुत मानता है। इसे समझाइए। कहता है काम के साथ पढ़ूँगा।
        शोभा ने कहा.... चल तू काम में लग, मैं इससे बात करती हूँ।”
        उससे बात पर पता चला कि पिता का साया  जल्दी उठ जाने पर उसकी माँ ने घर-घर बर्तन माँज कर उसे मुश्किलों से पाला। अब वह काम करके माँ की मदद करते हुए पढ़ेगा।
            शोभा ने उसे परिचित दाँत के डॉक्टर के यहाँ लगवा दिया। अपनी परिश्रम की आदत के चलते आज वह डॉक्टर का दाहिना हाथ बन चुका है।****

८- निर्णय      
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         विवाह के उत्सव में बहुत दिनों बाद गौरी को प्रभा दिखी तो एक दृष्टि में तो वह उसे पहचान ही नहीं पायी। खाना खा लेने के बाद दोनों सहेलियाँ बैठ कर बात करने लगी।
            “ प्रभा! आखिर तुझे हो क्या गया? इतनी परेशानी तेरे चेहरे पर झलक रही है। बुझी-बुझी सी क्यों रहती है तू?”
          “ अब तुझे क्या बताऊँ गौरी! मैं अपने सिरदर्द से इतना परेशान हो चुकी हूँ कि क्या बताऊँ? दवाइयाँ खाते-खाते, डॉक्टर बदलते-बदलते थक गयी, पर कुछ फायदा नहीं हुआ। काम सारे करने होते हैं और चैन जरा सा नहीं। तू ही बता क्या करूँ?”
             “अरे! सुन भी! लगभग एक महीना पहले आरोग्य भारती से एक योगाचार्य प्रवास पर आये थे। महिलाएँ स्वास्थ्य पर ध्यान नहीं दे पाती, इसी कारण वे स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं से जूझती रहती हैं... तो इसी उद्देश्य से उन्होंने मोहल्लों में 
एक, दो, तीन और पाँच दिन के शिविर महिलाओं के लिए किए। जिसमें वे दो घंटे में से एक घंटे की कक्षा लेकर उपयोगी बातें, भारतीय मसालों की विशेषताएँ, एल्यूमिनियम के बर्तनों का बहिष्कार, खानपान कैसा हो, कुछ आसन, कुछ मुद्रायें आदि बताते थे और बाकी एक घंटे महिलाओं की समस्या सुन कर उसके करणीय समाधान बताते थे।”
           तो सिरदर्द के बारे में भी कुछ बताया क्या?” 
           “ वही तो तुझे बताना चाहती हूँ। बताई तो उन्होंने बहुत सी बातें, पर मैं तुझे दो-तीन बातें बताती हूँ जिसे तू आसानी से कर सकती है। सुबह जल्दी उठ कर दो गिलास गरम पानी पीना। उसके बाद शौच आदि से निवृत्त होकर अनुलोम-विलोम करना।”
          “अनुलोम-विलोम करना कैसे है?”
         ”नाक को एक ओर से अंगूठे से दबा कर दूसरी ओर से लम्बी साँस फिर उसे दूसरी अंगुली से दबा कर, अँगूठा हटाते हुए धीरे-धीरे साँस छोड़ना। इसी तरह दूसरी ओर से। पहले पंद्रह बार करो, फिर धीरे-धीरे क्रम बढ़ाती जाना। नियम से रोज करना”... कह कर गौरी ने उसे करके दिखाया।
“ अब तीसरी आवश्यक बात... खाने से एक या आधा घंटा पहले पानी पाई लेना, पर खाने के बाद तुरंत पानी नहीं पीना। एक घंटे बाद पीना। इतना कठिन नहीं है करना।तू एक महीना करके देख, तुझे फायदा स्वयं ही पता चल जायेगा पर शर्त यही है कि करना पड़ेगा।”
           “ चल गौरी! तेरे कहे अनुसार करके अब एक महीने बाद ही फोन करूँगी या मिलूँगी”... कह कर वे दोनों अपने पति-बच्चों के साथ निकलीं।
            गौरी तो यह सब बता कर अपने काम की व्यस्तताओं में भूल गयी। जब प्रभा का फोन आया कि वह उससे मिलने आ रही है, तब उसे याद आया।
          आते ही प्रभा ने... “तेरे मुँह में घी-शक्कर! मेरा सिरदर्द तो गायब हो ही गया और सबसे अच्छी बात कि अब मुझे कब्ज भी नहीं रहती।
मेरी डॉक्टर साहिबा! जुग-जुग जियो। और हाँ! जब वे योगाचार्य आयें तो मुझे भी जरूर बताना।”
             प्रभा के जाने के बाद गौरी सोच रही थी कि ऐसी लाभदायक जानकरियाँ वह अपनी किटी पार्टी में भी दिया करेगी।*****

९- गर्मी      
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          मोहित अपनी कार पीछे कर रहा था तो बचाते-बचाते भी पीछे खड़ी एक मोटर साइकिल पर हल्के से लगी और वह गिर गयी।
           गिरते ही पास के घर में रहने वाला किरायेदार तुरंत बाहर आया। ये क्या तमीज है! कर दिया मेरी गाड़ी का सत्यानाश! हजार रुपये निकालो।
          मोहित ने पर्स से हजार रुपये निकाल कर दे दिये।
          पैसे लेकर भुनभुनाते हुए बोला... हर समय गाड़ी बाहर खड़ी रखते हैं! किसी दिन शीशा तोड़ डालूँगा।
            मोहित भी ताव में आ गया। पैसे हाथ में आते ही गर्मी चढ़ गयी। जहाँ किराया देकर रहते हो वहाँ गाड़ी खड़ी करो। बाहर खड़ी दिखी तो ग़ायब ही कर दूँगा समझा! 
           किरायेदार ने घर के अंदर जाने में ही अपनी भलाई समझी। उसकी गर्मी उतर गयी थी। ****

१०- जिम्मेदारी           
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       विद्यालय पहुँचते ही बच्चे दौड़े-दौड़े अपने व्यायाम शिक्षक के पास गए और उनका हाथ पकड़ कर विद्यालय की वाटिका में ले गए
          “ये क्या गुरु जी! देखिए तो, हमने विद्यालय की वाटिका में जो दस फूलों के पौधे लगाए थे, सब सूख गए। ऐसा क्यों?”
          “क्योंकि तुम सबने अपनी जिम्मेदारी नहीं निभाई।”
          “ हमारी ये धरती हमें बहुत कुछ देती है। इसी का अन्न-जल हमें जीवन देता है , तो अपनी धरती को हरा-भरा और स्वच्छ रखने की भी तो हमारी जिम्मेदारी है।”
         “वो कैसे गुरु जी?”
           “जैसे हमारे सैनिक सेना में भर्ती होने के बाद देश की सुरक्षा के लिए दिन-रात चौकन्ने रह कर देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए अपने प्राण तक न्योछावर कर देते हैं, उसी तरह बच्चों! अपने किए किसी भी काम को अपने सैनिकों की तरह जिम्मेदार होकर करना चाहिए।”
            समझ गए गुरु जी! हम कल पुनः नए पौधे लगाएँगे और उनकी पूरी तरह से देखभाल करते उन्हें मरने नहीं देंगे। इस तरह तो हम भी सैनिक ही हुए न!
          “ हाँ, हाँ मेरे सैनिकों! घंटी बज गई। अब प्रार्थना की तैयारी करो”....कहते गुरु जी प्रार्थना के लिए शिक्षकों की पंक्ति में खड़े हो गए। ****

११- आग          
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          बेटे को पिकनिक जाने के लिए मना ही तो किया था वो भी इसलिए कि पत्नी की तबियत ठीक नहीं थी और वह छुट्टी नहीं ले सकता था।
           पर सुनते ही जिस तरह उसने कहा...” पैंतालिस की उम्र में ही सठिया गये हो क्या पापा! सारे दोस्त जा रहे हैं और मैं घर में बैठ जाऊँ नर्स बन कर, ये नहीं होने वाला...खुद बैठो छुट्टी लेकर।”
          इस बात ने जैसे विदित को अपने अतीत में  ला पटका। वह स्वयं बात-बात में अपने पापा को कितना सुना दिया करता था। सठिया गये हो आप! तो जैसे उसने अपना तकिया कलाम ही बना लिया था। हद तो तब हो गयी थी जब एक बार उसने पापा पर हाथ उठा कर पागल तक कह डाला था।
              पापा एकदम चुप रह गये थे। बाद में उन्होंने केवल इतना ही कहा था कि जब खुद बेटे का बाप बनेगा तब स्वयं अक्ल ठिकाने आयेगी। उस दिन के बाद से विदित और उसके पापा के बीच संवाद लगभग ना के बराबर हुआ करता था।
           उसका सिर जैसे जकड़ता जा रहा था। उसने कितना दुख था, कितना सताया था पापा को, माँ को भी खून के आँसू रुलाये थे। उसी का फल आज वह भुगत रहा है। अपना कतरा-कतरा देकर नाजों से पाली गयी संतान जब अपनी दुश्मन बन जाती है उससे बढ़ कर अभिशाप तो कोई हो ही नहीं सकता। पश्चाताप की आग में वह जैसे जला रहा था। माँ-पिता भी जैसे इसी दुख में असमय चल बसे थे। कहना माँग कर प्रायश्चित करे भी तो किससे!
           अब तो जीवन भर विदित को इसी आग में जलते हुए अपने पिता को दिये दुख को अनुभव करते हुए जीना है.... सोचते हुए कब वह अपने पिता के चित्र के सम्मुख हाथ जोड़े जा खड़ा हुआ उसे पता ही नहीं चला। ****
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क्रमांक - 09
जन्म स्थान - मधुबनी (बिहार)

लेखन : -
2014 से गद्य एवं पद्य में हिंदी व मैथिली में लेखन

सम्पादन : -
डेढ़ वर्ष तक H for Hindi के संपादक

एकल पुस्तक -
1)  चौंक क्यों गए (लघुकथा संग्रह)।
2) एकल ई बुक - बेवफा हो तुम

ब्लॉग- दो
सांझा संकलन  - 23

सम्मान  -- 15
फेसबुक और वाट्सएप पर भी कई सम्मान प्राप्त हुए हैं ।

पत्र - पत्रिकाएं : -
अक्सर पत्रिकाओं एवं अखबारों में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है । अभी तक 350 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है ।

पता : -
मकान नं. बी / 9 , के टी पी एस , थर्मल कालोनी , साकातपुरा , कोटा - राजस्थान - 324008

1. धूल हटते ही
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दो साल बाद घर आये थे रवि कांत पत्नी  शीला भी साथ थी । घर के लोग  अनमने से उससे मिल रहे थे । मिल क्या रहे थे अनदेखा करने की कोशिश कर रहे थे । शीला अपने कमरे में गई । सभी सामानों के ऊपर धूल-मिट्टी भरा हुआ था, जिससे उसका रंग भी समझ में नहीं आ रहा था । पूरा कमरा जाले,  धूल-मिट्टी से भरा हुआ और  बिस्तर पर ही झाड़ू, कुर्सी-टेबल,तगारी आदि रखा हुआ था, मानो सोने का कमरा न हो कबारखाना हो ।  शीला मन ही मन--"पच्चीस वर्ष हो गए ।  शादी करके इस घर में आये हुए । जब से आयी, कभी किसी को पराया नहीं समझी । लेकिन यहाँ के लोगों में मेरे लिए कभी अपनापन नहीं देखी । दूर रहने की वजह से ससुराल आना तो  साल में एक बार ही होता रहा, पर मैं अपने कमरे या सामानों को सबको उपयोग करने के लिए छोड़ती रही । कभी किसी को रोका नहीं क्योंकि सब मेरे लिए अपने थे । सबने उपयोग तो किया किन्तु पराये की तरह । खैर ..... ।"--एक लम्बी सांस ली । 
रवि कांत आंगन में एक कुर्सी पर बैठ गए । तभी रवि कांत के बचपन के मित्र ( देवेन्द्र ) आंगन में प्रवेश किया । बीस साल बाद मिले थे दोनों दोस्त, क्योंकि दोनों नौकरी बहुत दूर-दूर  करते थे । एक घर आते तो दूसरे नहीं । इस बार  संयोग से मुलाक़ात हो गयी । दोनों गले मिले एक दूसरे की कुशलक्षेम पूछी ।  बैठकर बातें करने लगे । 
देवेन्द्र--"कहो कहीं मकान वगैरह लिया या नहीं  ?"
रवि कांत--"नहीं लिया है । पैसे कहाँ बचते हैं ।"
तभी घर के एक कमरे से आवाज आयी ।--"भविष्य के लिए बचाते तब बचते न ।"
ये आवाज रवि कांत की भाभी की थी ।
रवि कांत स्तब्ध हो गए और अतीत में खो गए--"नौकरी लगने के बाद से ही हमेशा जो भी पैसे बचते अपने बड़े भईया को भेज देते थे । बचते क्या थे,  खुद और अपने परिवार कष्ट में रह कर भी उन्हें भेज देते थे, क्योंकि भैया की चिट्ठी जो आ जाती थी कि कभी  छत बनवाना है, तो कभी दीवार टूट रही है, तो कभी किसी की शादी है तो,  किसी का मुण्डन । हमारे लिए तो सब अपने थे । हमने तो हमेशा सबकी मदद की है, बिना किसी से कोई अपेक्षा किये । शीला मुझे आगाह करती रही कि पैसे  भेजो मगर अपने  भविष्य के लिए भी कुछ  बचाया करो । तुम अपने भविष्य के लिए  नहीं बचाकर बहुत बड़ी गलती कर रहे हो ।  पर मैं था कि ...।  किन्तु ये उम्मीद नहीं थी कि मेरे अपनेपन के बदले मुझे ही नीचा दिखाने की कोशिश की जाएगी । मुझे मालूम है सभी भाईयों ने कहीं मकान, फ्लैट, प्लाॅट ले लिया है मगर सब मुझसे छिपाते हैं ।" 
दोस्त ने हिलाकर कहा--"अच्छा अभी मैं चलता हूँ । फिर शाम को मिलते हैं ।"
रवि कांत ने जबरदस्ती हंसने की कोशिश की । फिर उठकर अपने कमरे में गए जहाँ शीला कमरे की सफाई में व्यस्त थी ।
रवि कांत--"शीला तुम बिल्कुल सही थी । तुम्हारा ये कहना कि तुम अपने भविष्य के लिए जो कुछ नहीं  बचा रहे हो, तो देख  लेना जब सबके काम निकल जाएंगें तब  यही लोग तुम्हें  'मूर्ख' कहेंगे ।"
शीला ने एक नजर सामानों को देखा और हांफते हुए बुदबुदायी-- "चलो, अब कमरे से धूल हटते ही सामानों का रंग साफ-साफ दिखाई देने लगा।" ****

2.छोटे कदम
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--"रवि! तैयार हो गए क्या ? चलो दुकान खोलने का समय हो रहा है । जल्दी करो ।" बनवारी जी पैर जूता में डालते हुए कह रहे थे ।
-"......." कोई आवाज नहीं ।
बनवारी जी के दो पुत्र हैं । एक गांव के ही सरकारी स्कूल में शिक्षक हैं । दूसरा पुत्र किसी तरह बी.ए. कर चुका है और वह चाहता है कि शहर में बड़ी दुकान खोले । जबकि बनवारी जी चाहते हैं कि कुछ दिन उनके साथ दुकान पर बैठे और दुकानदारी के तौर-तरीके पहले सीख ले । किन्तु रवि को गांव के इस दुकान पर बैठना भी अपमानजनक लगता था । 
आंगन में बैठी आनंदी देवी ( बनवारी जी की पत्नी ) अपने दस महीने के पोते को चलाने की कोशिश कर रही थी । बच्चा खटिया पकड़-पकड़ कर चलने लगा । 
--"दादी माँ! देखिए बाबू कितना छोटा-छोटा कदम बढ़ा रहा है ।" वहीं खेलती हुई छः वर्ष की उनकी पोती बोली ।
--"अरे हाँ रे गुड़िया ! बड़े-बड़े कदम बढ़ाने के लिए इसी तरह पहले छोटे-छोटे कदम उठाने पड़ते हैं ।" आनंदी देवी रवि की तरफ देखते हुए बोली । 
रवि जो मुंह लटकाये हुए कुर्सी पर बैठा था । ये सुनकर, बही-खाते का थैला उठाकर बनवारी जी के पीछे-पीछे चल दिया । *****

3. खतरा 
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 दो साल के बच्चे के सिर से माता पिता का साया उठ गया था । कहते हैं कि मौसी माँ समान होती है।उस बच्चे की परवरिश भी मौसी बड़े लाड़ प्यार से करने लगी। अक्सर बच्चा दोस्तों से लड़ाई- झगड़ा करता ।छोटी -मोटी चीजें भी किसी की उठा ले आता । मौसी उसे नजर अंदाज कर देती थी। बच्चा जैसे जैसे बड़ा हुआ उसकी छोटी -छोटी गलती गुनाहों में परिवर्तित होने लगा।
 गुण्डागर्दी चोरी डकैती में जेल जाना आम बात हो गयी । हद तो तब हो गयी जब उसने सरेआम एक की हत्या कर दी। पुलिस उसे पकड़ कर ले गई।
 मुकदमा चला और फिर उसे फांसी की सजा हो गई। फांसी से पहले उसकी अंतिम इच्छा पूछी गई तो उसने अपनी मौसी के कान में कुछ कहने की इच्छा जाहिर की।
उसकी मौसी रोती बिलखती पहुँची और कहा "कहो मेरे लाल क्या कहना है?" जैसे ही मौसी ने कान उसके पास ले गई उसने उसके कान काट खाया । 
मौसी जोर से चीखी और पूछी कि "ऐसा क्यों किया तूने ?" 
"बचपन में जब मैं लड़ाई- झगड़ा या आम -अमरूद की चोरी करता था। उस समय यदि तुमने मुझे कान पकड़ कर मारा होता तो आज तुम इस तरह रोती नहीं होती और मुझे फांसी नहीं होती।" बिना रुके कहता गया वह । ******

4. बचत
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सुरेश ने बेटी के बारे सोचते-सोचते विनय का डोर बेल बजा दिया ।
"अरे सुरेश तुम ? सुबह-सुबह ? कैसे ? सब खैरियत तो है ?" दरवाजा खोलते ही विनय ने कई सवाल पूछ बैठा ।
"यार विनय ! मुझे कुछ रुपये चाहिए । बेटी बीमार है । उसे डाक्टर के पास ले जाना पड़ेगा ।"
"ओह !"
"मेरे पास बिल्कुल पैसे नहीं हैं । खाता पूरा खाली है ।"
"कितना चाहिए ? वैसे ऐसे कैसे पूरा खाली कर दिया खाता ?"
"तुम तो जानते हो कि मैं हमेशा घर भैया-भाभी को  पैसे भेजता हूँ । कल ही सारे पैसे घर भेज दिया । मुझे लगा अब 28 तारीख हो  गयी  है  । दो दिन बाद सेलरी आ ही जाएगी । पर मुझे क्या मालूम था कि इस तरह अचानक जरूरत आ जाएगी । रात से ही बेटी को बुखार है । पांच हजार रुपए चाहिए । क्या पता टेस्ट वगैरह में कितना खर्च होगा ?"चिंतित आवाज में सुरेश  ने कहा ।
"ठीक है, मैं देखता हूँ ।"
विनय रुपये लाकर सुरेश को देते हुए--"वैसे दस साल हो गए नौकरी करते हुए तुम्हें । तुम भविष्य के लिए कुछ जमा भी करते हो या नहीं ?"
"नहीं । पैसे बचते कहां हैं ? हर काम लोन लेकर करना पड़ता है ।"
"कितना भी कम मिलता हो, पर भविष्य के लिए  तो बचाना जरूरी है । जरूरत तो कभी भी आ जाती है ।"-- विनय कहता जा रहा था--"देखो सुरेश ! मेरी बातों का बुरा मत मानना, लेकिन जब तुम्हारे पास पैसे नहीं थे तो कल खाता से सारे पैसे घर क्यों भेज दिया  ? पास में कुछ तो रखना चाहिए । क्या इसके लिए भाभी जी कुछ नहीं कहती हैं तुमको  ?"
"कहती हैं, पर मैं ही अनसुनी कर देता हूँ और भैया-भाभी को कहूँ तो वे लोग इसे बहाना समझते हैं ।"
"पर अभी .. ......?"
"सच, तुम सही कह रहे हो । आज मुझे ये अहसास हो रहा है।"
सुरेश अपना मोबाइल निकाल कर एक एजेंट को फोन किया "देवेंद्र जी आप मुझे जो बचत के कुछ प्लान के बारे बता रहे थे ।  विस्तार से मुझे उसकी जानकारी चाहिए । इसलिए आप कल  आ जाइएगा ।" *****

5. आवाज 
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पवन कोचिंग से रूम में आकर मोबाइल देखा तो पापा का 14 मिस काल । वो समझ गया कि कोचिंग से मेरे टेस्ट के रिजल्ट का मैसेज पापा को मिल गया होगा और वो इसीलिए फोन मिला रहे होंगे । पवन खुद ही पाँच - छ: दिन से अपने टेस्ट को लेकर ही परेशान है । पवन मन ही मन --" आखिर मैं क्या करूँ मैं इतनी तैयारी के साथ टेस्ट देता हूँ फिर भी बैच ऊपर नहीं आता वही तीसरे चौथे बैच में रहता हूँ । एक साल हो गए । अब फिर फी जमा कराना होगा । फिर से लोन लेना होगा पापा को । उनलोगों ने मुझसे बहुत उम्मीदें लगा रखी है और मेरा क्या होगा मुझे खुद मालूम नहीं । "
उसी समय फिर फोन आ गया ----" हैलो , पवन ये क्या हो रहा है ? इस बार तो तुम्हारी रैंक और पीछे चली गई । तुम किसी गलत संगति में तो नहीं पर गए हो ? तुम्हें मैं अकेला कमरा इसीलिए दिला रखा हूँ, जिससे तुम्हें पढ़ने में कोई परेशानी नहीं हो । फिर भी तुम ...?" एक सांस में बोलते जा रहे थे पवन के पापा ---" हाँ तो इस तरह चुप क्यों हो गए । अच्छा चलो ये बताओ कि फी जमा करने की अंतिम तारीख क्या है ? मकान मालिक से कोई परेशानी तो नहीं है ? " 
पवन --" नहीं कोई परेशानी नहीं है । फी जमा करने की अंतिम तारीख मैं कल पता करके बता दुंगा । "
" अच्छा लो मम्मी से बात करो "
" हैलो पवन फोन जल्दी उठा लिया कर बेटा, चिंता हो जाती है । "--पवन की माँ बोली ।
पवन --" जी ठीक है । अच्छा मैं अभी फोन रखता हूँ । ".....कहकर पवन फोन रख दिया ।
पवन सोचने लगा --" अब फी नहीं जमा करूँगा , मगर पापा को क्या कहूं ? मैं उनकी उम्मीद को पूरा नहीं कर पाऊंगा ऐसा लगता है । फिर मैं ..??
 कम से कम मझ पर पैसे तो नहीं खर्च होंगे "
इसी कश्मकश में पवन बैठा रहा खाना खाने भी नहीं गया ।
पंखा देखा और उसमें फंदा लगाकर नीचे स्टूल रख दिया और स्टूल पर चढ़कर फंदा गले में डाल ही रहा था कि --मकान मालकिन आंटी की आवाज सुनाई दी वो अपने बेटे से कह रही थी -- "बेटा गोलू खाना खा लो फिर कहीं जाना " । 
पवन के आँखों के सामने अपनी माँ की तस्वीर आ गई, जो हमेशा कहती है 'तू मेरा संसार है  ।'
फिर सोचा --"मेरे जाने के बाद मम्मी क्या करेगी ?"
आँखें भर आयी और गले से फंदा निकालकर --" नहीं !!! "--
कहकर स्टूल से नीचे उतर गया ।
ऊपर मकान मालिक की टीवी में गाना बज रहा था-"हिम्मत न हार, ओ राही चल चला चल ...।" ****

6. गुब्बारा 
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मिस्टर एंड मिसेज शुक्ला माल से निकल कर अपनी गाड़ी की तरफ जाने लगे । मिस्टर शुक्ला थोड़ी तेजी से आगे बढ़ गए । मिसेज शुक्ला कुछ पीछे थी । तभी सामने से ...........
" ऐ माई जी ले लो गुब्बारा " --एक चार-पाँच साल का छोटा सा बच्चा आगे - आगे चलते हुए कहे जा रहा था।
" हमें नहीं लेना बच्चे । गुब्बारा लेकर मैं क्या करूँगी ? " --मिसेज शुक्ला ने कहा ।
बच्चा --" ले लो दस रुपए का ही है । ".........
" नहीं लेना भई "---कहकर मिसेज शुक्ला चलने लगी ।
वो बच्चा एकदम से सामने आकर ---" अरे ले लो न मुझे बहुत भूख लगी है । "
उसकी आवाज में ऐसी मासूमियत थी कि मिसेज शुक्ला रुक गई और कहा ---" ठीक है दे दो, दे दो। "
दो गुब्बारा लिया मिसेज शुक्ला ने और उसे 20 रुपये दे दिए ।
मिस्टर शुक्ला गुब्बारा देखकर ---" ये क्या करोगी ? क्यों लिया ये ? अपने बच्चे अब छोटे तो नहीं हैं । ".....
मिसेज शुक्ला --" वो बच्चा भूखा था इसलिए बेच रहा था । ".
" पैसे दे देती । गुब्बारे लेने की क्या जरूरत थी । "---मिस्टर शुक्ला ने कहा ।............
मिसेज शुक्ला --- " अजी ! यही गलती हमलोग करते हैं । वो बच्चा भीख नहीं मांग रहा था । कुछ बेचकर अपना पेट भरने की कोशिश कर रहा है । उससे गुब्बारा न लेकर यूं ही पैसा देकर क्या हम उसे अकर्मण्यता की राह पर चलने का बढ़ावा नहीं देंगे ? " ****

7. भूख और बादाम 
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"अरे मुनिया चल । यहाँ क्यों खड़ी है ?"--झुनकी बोली ।
मुनिया --"सेठ कुछ बांट रहा है । शायद कोई खुशी की बात होगी ।"
दुकान के सामने हथेली फैलाये मुनिया भी खड़ी धी ।
एक मुट्ठी बादाम उसकी हधेली में सेठ ने रख दिया ।
झुनकी ने भी मांग लिया ।
झुनकी मुँह बनाती हुई ( मुनिया से ) --"अरे हट इससे क्या पेट भरेगा अपना ।"
मुनिया--"पेट क्यों नहीं भरेगा ? चल मेरे साथ ।"
बादाम लेकर मुनिया आगे चलने लगी और एक होटल के पास आकर --"ऐ काका जी, ये बादाम लेलो और इसके बदले में रोटी सब्जी दे दो ।" ****

8.खुशी के आंसू 
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दरवाजे की घंटी की आवाज सुनकर रोमा--"कान्ता ( कामवाली ) जरा देखना कौन आया है।"
कान्ता थरथराते हुए--"बीबी जी पुलिससssss ।"
कान्ता की आवाज सुनकर रोमा भागती हुई आयी और देखकर ठिठकर खड़ी रह गयी  ।
रोमा के मन में कई उथल-पुथल होने लगा ।
 ससुराल में सास ननद जेठानी सभी के ताने कानों में गूंजने लगी ।--"बेटी ही तो है और ऐसा प्यार लुटाती है जैसे बेटा हो । कभी-कभी ये भी मजाक कर ही लेते थे ।"
"मम्मा !!! यूँ ही देखती रहोगी  ? क्या मुझे लगे  नहीं लगाओगी ?"--काव्या रोमा के गले से लिपटती हुई --"ओ ! मेरी मम्मा !!!!!"
रोमा कुछ कह नहीं पा रही थी बस बेटी काव्या को इस वर्दी में पहली बार देखकर खुशी से आँखों से आंसू बहते जा रहे थे। *****

9. मन की शुद्धि 
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छंगानी जी पूजा-पाठ और हवन वगैरह बहुत किया करते हैं । अपने घर ही नहीं आस-पड़ोस और सार्वजनिक तौर पर भी बढचढकर हिस्सा लेते हैं । पेसे से इंजीनियर हैं । सादगी में ही रहते हैं उनकी पत्नी और बच्चे भी उसी संस्कार   को पालन करते हैं । जहाँ भी जाते पूजा-पाठ के साथ-साथ कुछ प्रवचन भी देना उनके स्वभाव में है । जैसे- सादगीपूर्ण जीवन जीना चाहिए, भजन कीर्तन करने से मन का विकार दूर होता है वगैरह-वगैरह ......।
इसीप्रकार एक घर में पूजा हो रही थी छंगानी जी ही सर्वेसर्वा थे । यानी पूजा वही करवा रहे थे । महिला पुरुष सभी वहां मौजूद थे । 
अब छंगानी जी का प्रवचन शुरू हो गया ।
"देखो! सादगी ही सच्चा संस्कार है ।"
सभी ने सहमति जताई "हूं !!!!.....।
"अब महिलाएं दुनिया भर का श्रृंगार करती हैं । इतना करने की क्या आवश्यकता है ?" महिलाओं की ओर नजर घुमाते हुए छंगानी जी बोले ।
महिलाएं थोड़ी झेंप सी गईं ।
बीच-बीच में मंत्र उच्चारण और तिलक चंदन भी देवी देवताओं को अर्पण किया जा रहा था ।
"अब देवी जी को रोली,कुमकुम चढ़ाईये ।"
चढायी गयी ।
"अब माता जी को सभी श्रृंगार की सामग्री और  चुनरी चढ़ाएं ।"
तभी वहां बैठी एक 13 वर्ष की बच्ची ने कहा "अंकल जी ! सभी महिलाओं को आप देवी कहते हैं । है न ?"
"हाँ बेटा! सभी महिलाएं देवी समान हैं और आप भी ।" छंगानी जी ने हामी भरते हुए जवाब दिया ।
"अंकल जी ! यदि देवी माँ को श्रृंगार की सामग्री पसंद है तो महिलाओं को इससे दूर रहने की क्या आवश्यकता है ?" बच्ची की बात सुनते ही छंगानी जी बगलें झांकने लगे । 
ये सुनते ही महिलाओं की आंखों में हर्ष की चमक आ गई । बच्ची ने सबकी आंखें जो खोल दी थी ।  बच्ची की बातों का समर्थन करते हुए महिलाएं आपस में खुसर-फुसर करने लगीं ।
एक ने "पाखंडी है । केवल औरतों पर नजर घुमाता रहता है ।"
दूसरे ने-"और नहीं तो क्या ? भजन-कीर्तन से अपने मन का विकार तो दूर किया नहीं दूसरे को प्रवचन देता है । ढोंगी कहीं का !!!! ।"
तीसरी ने-"वही तो !!! .... । मन यदि शुद्ध हो तो विकार प्रवेश ही नहीं करेगा ।" *****

10. मनमीत
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"रमा आज चाय में इतनी देर क्यों लगाई ? मैं कब से इंतजार कर रहा हूँ ।"- सुबोध बाबू ने  बिस्तर पर से ही आवाज लगाई ।
"अभी लाई ।"--कहते हुए रमा पहुंची और "आज आप बालकनी में नहीं बैठे ?"
"नहीं ।" 
"क्यों ?" रमा चाय पकड़ाते हुए ।
"बस यूँ ही । पर तुम चाय लाने में क्यों देरी कर दी ? तबीयत खराब है क्या  ? या किसी बात की तकलीफ है ?"
"नहीं तो  ।"
"कोई बात तो है, पर तुम मुझे क्यों बताओगी ।
आखिर मैं कौन होता हूँ ? मैं समझ गया हूँ कि तुम किसको बताती हो । कल मैं मिल चुका उससे । क्यों रमा मैं इतना पराया ......... ?" नाराज और दुखी होते हुए बोले सुबोध बाबू ।
"हाँ अब ये भी मुझपर....... ! देखिए जी सुबह-सुबह इस तरह दीमाग मत खराब कीजिए ।"
"और कल से मेरा है उसका क्या ?"
"क्या हुआ ? क्या किया मैंने ? आपको तो मुझमें बस........।"
"मुझे अफसोस  है कि मैं तुम्हारा हमसफर तो हूँ किन्तु अपनी व्यस्तता और क्रोधी स्वभाव की वजह से इतने सालों बाद भी  तुम्हारा मीत नहीं बन पाया । जिसके कारण तुमने किसी को अपना मनमीत बना लिया है । काश  .......  ।" सुबोध बाबू अपराध बोध सी आवाज में "ये लो तुम्हारा मनमीत तुम्हारी डायरी ।"
रमा के आंसू उस डायरी पर भोर की किरण की तरह चमक रहा था । ****

11. टिकट
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रमा के मोबाइल पर दो-तीन बार रिंग आ चुका था। पर वो सुन नहीं पायी । रात के खाने से निवृत्त होकर जब आराम से बैठी तो मोबाइल में  कई मिस काॅल । खोलकर देखा तो अनिल का था । 
तुरंत रमा ने अनिल को फोन लगाया--"हेलो बेटा ! तुमने फोन किया था ?"
अनिल--"हाँ माँ पूछ रहा था कि दीपावली पर आपलोग मुम्बई आ रहे हैं या नहीं ?"
"तुम लोग ही यहाँ आ जाते तो अच्छा रहता ।"
"माँ! हम क्या कर सकते हैं । बताया तो था कहीं भी रिजर्वेशन नहीं मिल पाया । फ्लाईट की वहां सुविधा है नहीं । मैं भी क्या करूँ ?"
रमा सोचने लगी हाँ बेटा याद है कहा था कि 'स्लीपर क्लास में केवल सीट खाली है बहू और बच्चों को परेशानी होगी ।' 
फिर मैंने कहा था कि 'यहाँ से भी तो यही हाल होगा बेटा तो हमलोग भी कैसे आ पाएंगे बोल ?' तो तुमने कहा कि 'क्या माँ आप भी ? आप और बाबूजी तो पहले स्लीपर क्लास से ही  सफर किया करते थे ?' मुझे याद है बेटा। सच में तुम्हें काबिल बनाने के लिए हमने तो इधर ध्यान ही नहीं दिया ।
तभी राजेंद्र जी जो टिकट बुक कर करा रहे थे उन्होंने कहा--"रमा ! टिकट बुक हो गया ।"
अनिल--"हेलो माँ क्या हुआ ? आप कुछ बोल नहीं रही हैं ?"
रमा--"अरे नहीं, वो तेरे बाबूजी कुछ कह रहे थे , वही सुनने लगी ।"
"अच्छा ।"
"खैर कोई बात नहीं बेटा । तेरे बाबूजी ने दीपावली के दो दिन के बाद सिंगापुर का टिकट बुक कराया है । वहां से वापसी में मुम्बई होते हुए आऊंगी ।" ****
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क्रमांक - 10
पति : अशोक खरबंदा  
 पिता का नाम : श्री ताराचंद भाटिया
 जन्म दिनांक : 31 अक्टूबर 
 शिक्षा - स्नातक (कला)

लेखन :-
 लघुकथा, कहानी, संस्मरण व कविता

रुचियां :-
साहित्य, पर्यटन, पाककला 

 संप्रति - अध्यापिका, लेखिका, रेडियो आर्टिस्ट 
ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन दिल्ली, रेडियो आर्टिस्ट
 मुल्तानी फिल्म में चीफ गेस्ट का रोल

संस्थाओं में भूमिका : -
 लघुकथा शोध केंद्र भोपाल की दिल्ली शाखा की संचालिका
 विश्ववाणी हिंदी संस्थान जबलपुर की दिल्ली शाखा की शाखा प्रमुख
 विश्व भाषा अकादमी (रजि0) भारत की उत्तरी दिल्ली की अध्यक्ष

रचनाएं : -
हिन्दुस्तान, सांध्य टाईम्स, लोकमत, गोस्वामी एक्सप्रेस, डैनिक नव समाचार ,दृष्टि, क्षितिज, लघुकथा कलश, किस्सा कोताह, लघुकथा डॉट कॉम, पुष्पंजलि, पलाश, अविराम साहित्यिकी, साहित्य सिलसिला, महिला अधिकार अभियान, बाल कहानियाँ, सत्य की मशाल आदि में  प्रकाशित

साझा लघुकथा संकलन :- 
 समय की दस्तक, 
महानगरीय लघुकथाएं, 
हिन्दीतर लघुकथाएं, 
साझा कहानी संग्रह: बारहबाना 
साझा काव्य संकलन : शुभारंभ, किसलय,

अनुवाद : 
पंजाबी, सिरायकी, मराठी, अंग्रेजी, मैथिली व नेपाली भाषाओं में रचनाओं का अनुवाद

ब्लॉगर : -
मातृभारती, स्टोरी मिरर, प्रतिलिपि, मॉम्सप्रेसो आदि पर ब्लॉग्स

पता - 
 207, द्वितीय तल , भाई परमानंद कालोनी, दिल्ली 110009
1. सौ बटा सौ 
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रामू बगिया में पिता के साथ पौधे रोपने और गुड़ाई करने में मदद कर रहा था ।
"क्यूं रे रामू, पेपर मिल गये क्या!" 
बड़ी मालकिन ने अचानक आकर पूछा तो रामू सकपका गया ।
"जी...जी... मिल गये!" 
हकलाते हुए उसने जवाब दिया ।
"कितने नम्बर आए !" 
रोबीली आवाज में पूछा गया ।
"35..."
"सिर्फ 35... कुछ शर्म हया है कि नहीं! देखता भी है कि सारा दिन तेरा बाप खटता है! क्या जरा भी दया नही तेरे मन में!"
जोरदार डांट पड़ी और अभी जाने कितनी ही देर पड़ती रहती कि अचानक से बापू बीच में आ गये ।
"मालकिन! सारा दिन ये भी तो खटता है मेरे साथ! स्कूल से आते ही कपड़े बदल जल्दी जल्दी खाना खा, मेरे लिये खाना लेकर आता है और फिर मेरे साथ ही काम पर जुट जाता है और फिर घर पहुंच कर देर रात तक पढ़ता भी है ।"
"पढ़ाई के बिना आजकल कुछ नहीं । इसके भले के लिये ही समझाती हूँ!" 
बड़ी मालकिन ने समझाने के लहजे में कहा ।
"जो बच्चा अपने पिता के प्रति दयाभाव रखे, उससे बड़ी बात और क्या होगी मालकिन!"
"और नम्बर....!"
"भले ही इसके पढ़ाई में 35 नम्बर आये... पर मेरी तरफ से तो सौ बटा सौ ही हैं ।" *****

2.  सोलमेट 
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"रमा क्या हुआ उदास क्यूं बैठी हो!" राकेश कुमार जी ने टीवी से नजरें हटा कर पूछा तो सर्द आवाज में उत्तर मिला-
"नहीं तो !"
"अरे जैसे मैं तुम्हारा चेहरा पढ़ना नहीं जानता! देखो तो आँखों मे कैसे मोती झिलमिला रहे हैं!"
"अरे वो तो अभी प्याज काटे न! तभी !"
"प्याज ! दो घंटे पहले सब्जी बनायी थी तुमने! अब मुझसे भी झूठ बोलने लगी । बोलो क्या बात है!"
"बस माँ की याद .. !"
"अरे इतनी सी बात! चलो इसी रविवार मिल आते हैं उनसे!"
"नहीं! रहने दीजिये !"
"पर क्यूं!"
"वापिस आकर माँ की याद और सताती है, मन और अधिक उचाट हो उठता हैं, उथल-पुथल और गहरी हो जाती है!" 
दीर्घ श्वास के साथ भर्राई आवाज़ ने वातावरण को और उदासी से भर दिया । राकेश कुमार जी रमा के करीब जाकर उसके कंधे पर हाथ रखते हुए बोले-
"रमा! बाबूजी के जाने के बाद वे बहुत अकेली हो गयी है तो तुम बीच बीच में जाकर मिल आया करो ।"
"इतना आसान कहाँ है सब! आपको, बच्चों और मांजी को किसके सहारे छोड़कर जाऊँ!"
"...तो उन्हें ही यहाँ लिवा लाओ!"
" यहाँ ! लेकिन.. !
" बाबूजी के जाने के बाद से तुम्हारा शरीर तो यहाँ है पर मन ... माँ की ओर!"
"...वो अकेली न होती तो शायद इतनी चिंता न होती मुझे !"
"तभी तो कह रहा हूँ कि उन्हें यही ले आते हैं ! यूँ आधी अधूरी बेटी होने की दुविधा से निकलकर तुम पूरी पत्नी, बहू, बेटी और माँ का दायित्व तो निभा पाओगी और यूँ पल पल खुद को कोसोगी तो नहीं!"
"पर क्या ये कह देने भर जितना आसान होगा!"
"ठान लो तो सब आसान होगा ! और फिर मैं हूँ न तुम्हारे साथ! तुम्हारा सोलमेट!" 
कहते हुए राकेश कुमार जी ने रमा के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर लिया । ****

3. दाह संस्कार 
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"पापा! मत जाओ पापा! हमें आपकी बेहद जरुरत है ।" 
शिखा बिलखती रही पर होनी को जरा भी दया न आई । सब कुछ इतना अचानक हुआ कि आस्ट्रेलिया में नौकरी करने वाला भाई भी पापा के अन्तिम दर्शन करने नहीं आ पाया ।
महामारी के चलते हवाई सेवा बन्द है । उधर बेटा तड़प रहा है और यहाँ माँ बेटी इस अनहोनी के आगे बेबस ।
"अब दाह संस्कार कौन करेगा?"
बिरादरी में बैठे लोगों के चेहरों पर प्रश्नचिंह लटक रहा था । 
"मैं!"
दामाद बाबू ने सिर्फ एक शब्द कहा और अर्थी को कंधा देने को आगे बढ़ गये । 
बेटे दामाद के बीच का अंतर मिट चुका था । माँ ने बेटी की ओर देखा, गहरी साँस लेते हुए उसका हाथ थाम लिया । उनके मन की कोठरी में छाया अन्धेरा धीरे-धीरे छंटने लगा । *****

4. मिथ्याभिमान 
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नई बनी बहुमंजिला आसमान छूती आलीशान भव्य इमारत खुद पर इतराती !
मुझ सा कौन भला! 
आसपास की नन्हीं नन्हीं एक दो मंजिला नाटी नाटी सी इमारतों को देख वह ठठ्ठा मार हँस पड़ी और अभिमान से अपनी उँचाई को निहारने लगी ।
अचानक तेज शोरगुल से उसकी तंद्रा भंग हुई । 
अकस्मात् तकनीकी खराबी के चलते लिफ्ट बन्द हो गई थी।
लोग बहुमंजिला इमारत को कोसते हुए हाँफते गिरते पड़ते सीढ़ियों से ऊपर चढ़ रहे थे । 
शोरगुल तो साथ की नाटी इमारतों से भी आ रहा था ।
वहाँ के बच्चे हँसते खेलते सीढ़ियों पर धमाचौकड़ी मचा जिन्दगी का आनंद जो ले रहे थे । *****

5. गुब्बारे वाला 
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आज भी कितनी देर से रोहिणी दरवाजे पर खड़ी बाट देख रही है । उसके आने का समय तो कब का बीत चुका पर रोहिणी का इंतजार अभी भी कायम है । रह रह कर उसे उस दिन का वाकया याद आ रहा है । 
गुब्बारे वाला रोज उसके दरवाजे पर आकर अपनी चिर परिचित आवाज निकाल भोंपू बजाता जिसे सुनते ही नन्हीं चीनू दरवाजे की ओर दौड़ पड़ती और गुब्बारे वाले से कुछ न कुछ लेकर ही दम लेती।
उस दिन रोहिणी गुब्बारे वाले पर बिफर ही पड़ी 
"यहीं हमारे दरवाजे पर ही क्यों रोज रोज भोंपू बजाते हो। तुम्हारी वजह से रोज ये मुझे परेशान करती है!"
गुब्बारे वाले ने कातर दृष्टि से रोहिणी की ओर देखा और धीरे से फुसफुसाया
"दीदी ! मेरे बच्चे घर पर खाने की राह देखते हैं, कुछ  कमाऊंगा तो उनका पेट भर पाऊंगा ।"
"मेरा ही घर मिलता है रोज तुम्हें?"
"इस गली में आपके घर ही छोटा बच्चा है इसी के लिये इस गली का फेरा लगाता हूँ । मुझे नहीं पता था कि आप नाराज होती होंगी!"
कहते हुए गुब्बारे वाले ने चीनू को गुब्बारा पकड़ाया और चल दिया।
रोहिणी ने पैसे देने के लिये हाथ बढ़ाया पर वह नजरें झुकाए निकल गया 
रोहिणी ने सोचा 
"चलो कल आयेगा तो पकड़ा दूँगी ।" 
पर वह फिर कभी न दिखा । रोहिणी इस बात को ले ग्लानि से भरी रहती कि अचानक एक दिन बाजार में गुब्बारे वाला दिखलाई पड़ा । रोहिणी लपक कर उसकी ओर बढ़ी ही थी कि उसने देखा कि एक बच्ची उसके कुर्ते का कोना खींचते हुए लाड़ से कह रही थी- 
"बाबा कल मेरा जन्मदिन है वो लाल वाली फ्रॉक दिलवा दो न !"
"हाँ हाँ दिलवा दूँगा बिटिया!" 
फिर साथ खड़ी स्त्री की ओर मुखातिब होते हुए बोला- "लक्ष्मी ! तुम इसे अपने साथ क्यों लाई! जाओ अब घर जाओ ।"
इतने में रोहिणी गुब्बारे वाले के पास पहुँच उसकी ओर सजल आँखों से देखने लगी । तत्क्षण उसके दिमाग में विचार कौंधा और वह साथ खड़ी पत्नी व बिटिया का हाथ थाम फ्रॉक की दुकान की ओर बढ़ गई । ****

6. बरगद की छाँव 
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"उफ्फ आज फिर देर हो गई उठते उठते ।" 
"आज ऑफिस में पहुंचते ही बॉस से झिकझिक होगी ।"
खुद से बातें करते हुए रागिनी थोड़े ऊंचे स्वर में बोली-
"झिलमिल ओ झिलमिल! जल्दी उठ बेटा नहीं तो स्कूल बस निकल जाएगी ।"
"मम्मा! सोने दो न थोड़ी देर और!"
"बेटा छह बज चुके है और 6.40 पर तुम्हारी बस आ जाएगी । आज तुम्हारा टेस्ट भी तो है । जल्दी उठो, टाईम वेस्ट मत करो ।"
झिलमिल को उठा रागिनी रसोई मे आ गई । 
"अरे! आज तो झिलमिल ने ब्रेड रोल लेकर जाने है । 
रात को आलू उबालना ही भूल गई । अभी उबाले तो बहुत समय लगेगा । अभी सब्जी भी बनानी है और तैयार होकर ऑफिस के लिये भी निकलना है! दिमाग कुछ काम नही कर रहा! क्या करुँ ! क्या बनाऊं !"
"रागिनी !"
"राम राम मांजी ! बस अभी चाय रख रही हूँ ।" 
सासु जी की आवाज से उसकी तंद्रा टूटी ।
"कोई नहीं बेटा, तुम पहले झिलमिल के लिये टिफ़िन बना लो । कल रात भी तुम उसे पढ़ाते पढ़ाते देर से सोई ।"
"मांजी इस चक्कर में रात को आलू उबालना भी भूल गई । अब झिलमिल को टिफ़िन में क्या दूँ कुछ समझ नहीं आ रहा!"
"अरे चिंता मत करो ।" मांजी ने मुस्करा कर कहा ।
"आज सुबह चार बजे ही मेरी नींद खुल गई । रसोई में पानी पीने आई तो याद आया कि झिलमिल तुमसे जिद कर रही थी ब्रेड रोल लेकर जाने की तो मैंने आलू उबाल दिये । तुम जल्दी से कड़ाही रखो तब तक मैं आलू छीलकर मैश कर देती हूँ ।"
"मांजी! आप मेरे लिये बरगद की घनी छाँव की तरह हैं शीतल और सुखद !"
कहते हुए रागिनी ने माँजी को गलबहियाँ डाल दी।****

7. मुखिया 
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"भैया टूर से आ गये क्या!"
"नहीं अभी नहीं आये ।" 
सुलभा ने धीरे से जवाब दिया । 
"फिर बाहर गैलरी में मर्दाना कपड़े किसके सूख रहे हैं!" कौतूहल से रीटा ने पूछा ।
"लोगों की नजरों से बचने के लिये गाहे बगाहे पति के कपड़े बाहर गैलरी में सूखने डाल देती हूँ!
"क्यूं !"
"इससे लोगो को लगता है कोई मर्द घर पर है 
"मतलब !"
"नही तो वे सोचते हैं अकेली औरत जात... छोटे बच्चों के साथ हमारा क्या बिगाड़ लेगी !" *****

8. संस्कार के बीज 
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"मम्मा आज तो बड़ा ठंडा मौसम है । घर जाकर पनीर के पकौड़े बनाना!" 
पीटीएम से लौटते हुए कपिल ने मीनाक्षी को कहा जो रिक्शा में बैठते ही सर्द हवा से खुद को बचाते हुए शॉल को और भी अच्छे से जकड़ रही थी ।
"अरे वाह! गुड आइडिया ! साथ में गर्मा गर्म अदरक वाली चाय!"
"सोच कर ही मुँह में पानी आ गया!" 
कपिल की इस बाल सुलभ अदा पर मीनाक्षी को हँसी आ गई । 
"भैया ! दो मिनट रिक्शा साईड पर रोक दीजिये, सामने दुकान से पनीर ले लूँ!"
पनीर लेकर मीनाक्षी वापिस आई तो उसके हाथ में एक दोना था जिस में पनीर के छोटे छोटे टुकड़े थे और उस पर चाट मसाला छिड़का हुआ था!
"मम्मा ये क्या ! अच्छा लगता है ऐसे रिक्शा में खाना!"
"बुद्धू ये तेरे लिये नहीं! रिक्शा वाले भैया के लिये है!"
कपिल जोर से हँस पड़ा! 
"क्या मम्मा आप भी !"
मीनाक्षी ने उसकी आँखों में देखते हुए कहा- 
"पता है कपिल! जब मैं अपने पापा को ऐसा करते देखती थी तो मैं भी यूँ ही हँसा करती थी ! उन्हें देखते देखते मुझे पता ही नहीं चला कि कब मुझे भी ये आदत पड़ गई ।"
"पर मम्मा....!"
"सच बताऊँ बेटा ! मुझे बहुत खुशी मिलती है इससे!"
कहकर मीनाक्षी ने दुबारा कपिल की ओर देखा । 
अब हँसी की जगह वहाँ चमक थी! ****

9. खुला आसमान 
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"क्या सूझी तुम्हें इस उम्र में स्कूटी सीखने की !" शेखर ने श्रेया को स्कूटी सीखते देख कहा ।
"कुछ सीखने की कोई उम्र होती है क्या ! और फिर मेरी कौन सी उम्र निकल गई !" श्रेया ने हँसकर कहा ।
"एक बार मुझसे पूछा तो होता कि स्कूटी चलाना सीख लूं !" शेखर थोड़े तैश से बोले ।
"पूछने से कौन सा आप हाँ कर देते ! और एक बात बताइए जब आप कुछ करते है तो क्या हम औरतों से पूछ कर करते हैं ! " श्रेया ने भी तुनक कर जवाब दिया ।
"तुम्हारा कुछ जाना नही और सामने वाले का रहना नहीं ! मार मूर दोगी दो चार को !" शेखर तंज कसते हुये बोले ।
"मेरा स्कूटी सीखना इतना नागवर लग रहा है तो सीधा कह दीजिये कि मत सीखो !" श्रेया थोडा रुंआसी सी हो आई ।
"मेरे मना करने से कौन सा तुम मान जाओगी ! ठान लिया है सीखने का तो सीख कर ही रहोगी !" शेखर ने श्रेया को घूरते हुये कहा ।
"अरे वाह ! आप तो खूब जानते है मेरे बारे में !" श्रेया ने हाथ नचाते हुये तल्खी से जचाब दिया ।
"किसी को मार आओगी तो भरना तो मुझे ही पडे़गा ना !" 
शेखर ने ऐसे कहा मानो कोई कांड कर आई हो श्रेया ।
"ये जो सारी औरतें स्कूटी चलाती है वो क्या एक्सीडेंट करती फिरती हैं !" अब श्रेया का पारा भी हाई हो चला ।
"हाँ तुम खुद ही देख लो ! ज्यादातर एक्सीडेंट औरतें ही करती है । लेफ्ट राइट कुछ देखती नही ! बस हर काम की जल्दी होती है इन्हें ! " लगा शेखर आज सारी भड़ास निकाल कर ही छोड़ेगें ।
"एक्सीडेंट किसी की लापरवाही से होता है ना कि इससे कि वाहन आदमी चला रहा है या औरत !" श्रेया ने स्वयं को संयत करते हुये शेखर को समझाने की कोशिश की ।
"तुमसे कौन उलझे सुबह सुबह ! जाओ अब और सीखो जाकर स्कूटी चलाना !" शेखर जाने किस रौ में बोले ही चले जा रहे थे ।
श्रेया ने नकारात्मक विचारो को तेजी से झटका, अपने सपनों की उड़ान को पूरा करने का दृढ़ निश्चय कर स्कूटी उठाई और खुली हवा मे निकल गई ! *****

10.थप्पड़ 
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मंदिर का प्रांगण ! 
"अब आप सभी तीन बार गायत्री मंत्र का जाप करें और दिवंगत आत्मा के लिये प्रार्थना करें !" 
पण्डित जी की आवाज माईक में गूंजी। 
मंत्र समाप्ति के बाद दीनानाथ जी और उनकी पत्नी अपनी जगह से उठे और पूरी पंचायत के सामने हाथ जोड़ खड़े हो गए । लरजती आवाज में दीनानाथ जी ने कहना शुरु किया- 
"आज विमलेश की तेहरवीं है...हमारी बहू... जो अभी केवल 26 साल की है! अभी इसके सामने पूरी जिंदगी पड़ी है । सिर्फ दो ही साल तो हुए शादी को... इतनी छोटी उम्र में ये विधवा हो गयी है... इसमें भला इसकी क्या गलती !"
शोक सभा में नीम सन्नाटा छा गया ।
"अत: मैंने और मेरी पत्नी ने ये निर्णय लिया है कि हम अपनी बहू की दूसरी शादी करवाएंगे... क्योंकि अब ये हमारी बहू नहीं... बेटी है !
दीनानाथ जी के शब्द थप्पड़ की तरह लोगों के मुँह पर पड़े और हवा में खुसुर पुसुर की आवाजें मंदिर की दीवारों से टकराने लगी ।
आज तक न कभी ऐसा देखा न कभी सुना ! कुछ ने दीनानाथ जी व उनकी पत्नी की दूरदर्शिता की तारीफ की तो कुछ ने इसे उनकी नासमझी नादानी कह मुँह बिसूर लिया । सभी अपना अपना राग अलापने लगे । 
" लगता है भाई साहब सठिया गये लगते हैं !"
"बहनजी भी लगता है उनके साथ पगला गई हैं !"
"पहली बार ऐसी अनूठी बात सुनी... क्या संदेश जाएगा समाज को !"
"इन्होने तो नयी रीत ही शुरु कर दी !"
खुसुर पुसुर की आवाजें दीवारें लाँघने लगी तो दीनानाथ जी की पत्नी पंडित जी से माईक हाथ में लेती हुई बोली- 
"आप सभी से निवेदन है कि चाय पीकर जाईएगा! 
और हाँ ! जिन्हें भी हमारे परिवार के इस निर्णय से एतराज़ है उन्हें हमारी आखिरी राम राम !"किसकी भूल ! 
"तू भूल गई शायद कि तू बेटी है बेटा नहीं!" दादाजी ने गरजती आवाज़ में कहा । 
"नहीं दादाजी! मुझे याद है और मुझे बेटा बनने का कोई शौक भी नहीं है । आपके बेटे ने जो किया….!" 
"बहू ! चुप करवा इस लड़की को! कहीं ये न हो कि मैं गुस्से में ….. !" 
"बाबूजी ! मैंने आपसे कभी कुछ नहीं मांगा ! आज झोली फैला कर अपनी बेटी की खुशियों की विनती करती हूँ आपसे । आपका बेटा मुझे छोड़ दूसरी ब्याहा लाया, मैं चुप रही। वे दोनों अपनी अलग दुनिया बसाने शहर चले गए, मैं चुप रही । लड़ झगड़ कर उन्होंने अपने हिस्से की जायदाद मांगी, आपने वो भी दे दी, भले ही बेमन से! मैं तब भी कुछ नहीं बोली । पर बाबूजी आज नही! आप मुझसे बड़े है मेरे शिरोधार्य है इसलिए आपके सामने झोली फैलाई पर फिर भी आपने मना किया तो आज आवाज भी उठाऊँगी । मैं नहीं चाहती कि मेरी बेटी मेरी तरह घुट घुट कर कायरो की जिन्दगी जिये । वह पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ी हो ताकि मुसीबत के समय उसे किसी के आगे अपना सिर न झुकाना पड़े बाबूजी….. अपना सिर न झुकाना पड़े!" कहते कहते रमिया फूट फूट कर रो पड़ी । 
लाला रामप्रकाश जी जैसे किसी गहरी तंद्रा से जागे । 
"ओ रे हरिया ! भाग कर जा तांगा बुला कर ला । आज हम खुद जाएँगे शहर के कॉलेज में... अपनी बिटिया का एडमिशन करवाने !" ****

11. होम ! हैप्पी होम 
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एक दिन नेहा बच्चों को पढ़ा रही थी । एक कविता में दादा दादी नाना नानी की बात आई । रैनेसां ने नेहा की ओर प्रश्न सूचक निगाहों से देखते हुए कहा - "मम्मा घर में दादा दादी की फोटो तो है पर नाना नानी की क्यों नहीं !" 
उसकी बात सुनकर रोहन जोर-जोर से हँसने लगा और बोला - "बुद्धु तुझे इतना भी नही पता ! ये घर तो पापा का है न ... तो पापा के मम्मी पापा की फोटो ही तो लगेगी न ! क्यूं पापा !"
पास ही बैठे पति देव ने नेहा की ओर देखते हुए कहा - "जितना ये घर मेरा है उतना ही तुम्हारी मम्मी का ।" 
इतना कहकर वे उठकर जाने लगे । नेहा ने पूछा- "कहाँ चल दिए एकदम से ।" 
"बच्चों का सवाल वाजिब है तो जवाब भी तो वाजिब ही होना चाहिए न ! तुम मम्मी पापा की अच्छी सी फोटो निकाल दो, मैं आज ही फ्रेम करवा कर लाता हूँ ।" ****
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क्रमांक - 11
जन्म तिथि- 28 दिसम्बर 
जन्म स्थान : गया - बिहार
शिक्षा : एम ए (हिन्दी ) पी एच डी

पति -श्री एच एन  देवा
भारतीय पुलिस सेवा (सेवानिवृत्त )

अभिरूचि: -
कहानी लेखन, लघुकथा,कविता,आलेख, संस्मरण इत्यादि। 
समान्य अभिरूचि--गाना सुनना,पाक कला,देश-विदेश भ्रमण, बागवानी,किताबे पढना, ड्राइविंग। साहित्यिक एवं सामाजिक गोष्ठी में सक्रियता।

प्रकाशित रचनाएं :-
साझा संग्रह, संरचना, सिटी फ्रटं, एवं विभिन्न पत्र पत्रिकाओं  में।

सम्मान : -
जैमिनी अकादमी द्वारा नेता सुभाष चंद्र बोस स्मृति सम्मान 2020 , गोस्वामी तुलसीदास सम्मान 2020, 
एक सौ एक साहित्यकार : 2020 रत्न सम्मान , 
 भारतीय लघुकथा विकास मंच द्वारा  माधवराव सप्रे की जयंति पर लघुकथा दिवस रत्न सम्मान 2020 
लेख्य मंजूषा, जागरण संगिनी क्लब (सावन सौन्दर्य  प्रतियोगिता,में द्वितीय) द्वारा विभिन्न प्रकार के सम्मान प्राप्त। अंताक्षरी में राज्य स्तरीय विजेता (द्वितीय स्थान )

अन्य : -
फिलहाल वर्चुअल संगोष्ठी में लगातार पठन- पाठन में सक्रियता ।डी डी बिहार के कार्यक्रम में आमंत्रित " एक मुठ्ठी धूप " में लाइव वार्ता। 
रेनबो संस्था में बच्चों के उत्थान हेतु समय- समय पर  सक्रिय योगदान।
 दृष्टिहीन बालिका विद्यालय में कुमरार में भी सक्रिय  योगदान। 

 पता : - 
श्री एच एन  देवा
ए/201 , एस बी रेसीडेंसी 
पिलर न0  -70 ,शेखपुरा  , पटना - 14 बिहार
1.ताला
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माँ -- हम सब अब क्या खाएगें ? 
सारा राशन का डब्बा खाली पड़ा है।
हाँ ! बेटा पता है। 
अब ऊपरवाला हीं कुछ चमत्कार करेगा।
माँ  ने ----लम्बी सांस लेते हुए  कहा।
कुछ तो कोरोना  बीमारी का डर,  बाकी अंधकारमय भविष्य ने दोनों पति -पत्नी को निढाल सा कर दिया था।
पिछले तीन  वर्षों से अपने गाँव और अपने परिजनों से कोसों दूर मुम्बई नगरी में रोजी -रोटी कमा खा रहे थे। साथ में उनका इकलौता दस वर्षीय पोलियोग्रस्त बेटा भी था। 
दोनों पति- पत्नी एक बहुमंजिली नवनिर्माण  इमारत में काम करते थे। पति राज मिस्त्री और पत्नी बालू ढोने के काम में लग गई थी। आजकल बेटा भी ईंट- पत्थर  तोड़ने  का काम  बैठकर हीं  करने लगा था।तीनों की सम्मिलित कमाई से गुजारा अच्छी तरह हो जाता था। दो पैसे बेटे की इलाज हेतु भी बचा लेते ।
ठेकेदार ने कुछ मजदूरों को उसी कैम्पस के पिछले भाग में रैन बसेरा बना कर  बसा रखा था।
अचानक आए इस महामारी और "लाॅक डाउन" ने सबकी जिन्दगी जड़वत हीं कर दी थी। सब बंद, काम बंद। लेकिन  पेट, और भूख का क्या?  वहाँ तो  कोई  ताला नहीं लगता?
सब जमा पूंजी तीन महीने की बंदी में स्वाहा हो चुके थे। पति की तबीयत भी खराब चल रही थी।
अब अंत में लाचारी और बेबसी में रोज बेटा घर के बाहर लोगों से रहम के लिए हाथ फैला रहा था।
कुछ  लोग दयनीय स्थिति पर तरस खा कुछ दे देते।
भगवान का चमत्कार हीं हुआ उन पर मानो।
किसी राह गुजरते सज्जन ने उस गरीब,बेबस लड़के की दयनीय स्थिति की तस्वीर लेकर सोशल मीडिया पर डाल दिया।
फलस्वरूप सोनू शूद के मदद से तीनों को तत्काल हर संभव सहयोग और गाँव जाने की व्यवस्था भी।
डबडबाई आखों से अपने घर में ताला लगा चाभी पड़ोसी को थमा दिया रमिया ने ठेकेदार को देने के लिए।
 सोनू शूद को ढेरों आशीर्वाद देते हुए खुद से बोलने लगी----आज घर पर ताला भले लगा है , मगर हमारी भूख और पेट पर लगने वाले  'ताले' को जैसे किसी अदृश्य शक्ति ने अपनी चाभी से खोल दिया हो। 
जय हो प्रभु!
किसी ने सही  हीं लिखा है ------ बड़ा ही C I D है वो 
नीली छतरी वाला,  हर ताले की चाभी रखे, हर चाभी का ताला ।। ****

2.  परछाई का प्रकाश 
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आज रौशन के बनाए गए नव निर्मित  "नशा मुक्ति- बाल सुधार गृह "  का उद्घाटन  था। 
उद्घाटन  श्री राम प्रवेश जी  के हाथों  होना था। 
रामप्रवेश जी सेवानिवृत्त हो चुके थे।  दरवाजे पर गाड़ी रूकने की आवाज से सहसा  चौंक गए। अब इस घर में वो अकेले रह गए थे। पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी। इकलौता पुत्र नशे की बुरी लत में ऐसा डूबा की फिर कभी उबर हीं ना सका। 
सर !मैं अंदर आ सकता हूं?
हाँ भाई! आ जाओ ।
कौन - हो तुम? 
सर ! मैं वही बाल सुधार  गृह का  - बाल बंदी रौशन हूं। आप हीं की कृपा से तो आज इस योग्य बना हूं। आप हीं ने मुझे अपने मित्र के अवासीय विधालय में दाखिला दिलवाया था।
बेटा -- अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ और शायद भूलने भी लगा हूं।
क्या तुम वही रौशन जो ड्रग्स बेचने के जुर्म में ? 
हाँ !सर मैं वही।
सहसा रामप्रवेश जी की पुरानी यादें मानों चलचित्र के सदृश्य आंखों के सामने आ गई। रौशन तेरह वर्षीय अत्यंत मासूम, और चेहरे पर व्याप्त डर का साया।  एक हीं नजर में रामप्रवेश जी ने परख  लिया कि यह बच्चा मजबूरी और गरीबी का शिकार हो जुर्म के दलदल में नाहक फंस गया है। रौशन को सदैव हर तरह से उनकी नजरों ने परखा। बहुत अपना सा लगा शायद अपने खोये बेटे की छवि उसमें दिखती थी। फलतः उसकी सजा माफ करवा कर  उसे अच्छा इंसान बनाना चाहा। 
ईश्वर और रामप्रवेश जी की दया से आज  रौशन अपने नाम के अनुरूप समाज में उजाले की रौशनी बिखेर रहा था। 
अब रौशन के जीवन का मात्र एक ही लक्ष्य  था कि पुन: कोई बच्चा  ड्रग्स ना बेचे और साथ हीं , इस बुरी लत से कोसों दूर रहे। भूलवश कोई फंस भी गया तो अपने प्रयास से उसे सुधारने की कोशिश  करेगा। 
    रामप्रवेश जी की परछाई पर  निरन्तर चल, गिरती खाई से  उबर आकाश की ऊचाईयों को आज रौशन छू रहा था । अब  रौशन कुशल और, योग्य  ब्यक्ति  बन गया था। 
आज रामप्रवेश जी को अपने साथ सदा के लिए ले जा रहा था। 
अनगिनत बच्चों का सहारा " नशा मुक्ति, बाल सुधार गृह " का उद्घाटन करते समय अपने खोये बेटे की परछाई रौशन में सपष्ट देखते हुए, गीली आखों से  रामप्रवेश जी  फीता काटने लगे। ****

 3.. ये कैसी आज़ादी 
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मां ! आज इतना भोंपू क्यूं बज रहा है? अपने पांच वर्षीय गोलू की बात  से मां खिन्न सी हो गई । मां ! आज बगल  वाले स्कूल में जलेबी बंटने वाली है,कल सोनू भैया बता रहे थे । 
बेचारी रमिया का मन इन बाल _ सुलभ बातों से व्यथित हो उठा ।उसे क्या करना है इन बातों से ।
रमिया को तो रोज ठाकुर की हवेली पर जाकर गोइठा थापना हीं है । जिसके बदले ठाकुर जो रुपए देता है,उसी से उसका चूल्हा जलता है ।अपने इकलोते बेटे को अपने साथ ही हटाए रहती है ।पहले पति ठाकुर का बंधुवा मजदूर था,, उसकी मृत्यु के बाद रमिया हीं उसकी जगह हाजिरी लगाती है । आज भी अपने पति की तरह गुलामी का दंश झेल रही है।
दोनों हवेली काम पर पहुंचते हैं। गोलू ठाकुर के लड़के के साथ में झंडा देख  उसके नजदीक जाता है । गोलू को कोतूहल सा देख ठाकुर का बेटा  उसे झंडा और स्वतंत्रता दिवस के बारे में विस्तार से बताया है , गोलू आज तक इन बातों से अनजान था ।बालमन पर ठाकुर साहब के बेटे की कही सारी बातें मानों अंकित हो गयी हों ।
गोलू दोडता हुआ  मां के पास आकर बोलता है,,,,, मां आज तो हमें आजादी मिली थी,,और आज सब की छुट्टियां  भी  है ,,भैया अभी बता रहे  थे । मां उपले थापने हुए जोर से बोलती है ,,,,,ये आजादी और छूट्टी हम सब के नसीब में नहीं है,   आओ मेरा हाथ  बटाओ । मां को गुस्से में देख सहमा गोलू भी पर भर में आजादी , छूट्टी सारी बातें भूल कर मां के साथ काम में लग गया।काम करते-करते खुद से बोलती है_____ ये कैसी आज़ादी? ****

4. मन की राहें
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मम्मी _ मैं उस लड़के से शादी नहीं करूंगी।
बेटी के ये शब्द चित्रा के कानों पर विस्फोट सा असरदार था।
आखिर क्यूं रोमा? पापा ने इतनी अच्छी पदवी वाला लड़का खोजा है , तुम्हारे लिए ।
होगा__मुझे नहीं करनी शादी उससे,बिना जाने_पहचाने ।कदापि नहीं करूंगी।
फिर___ फिर क्या! मैं पिछले पांच वर्षों से रोहन को अच्छी तरह से जानती हूं ।हम दोनों ने आखिरी दो साल की पढ़ाई भी साथ हीं की है।अभी हम  एक हीं कम्पनी में कार्यरत भी हैं। मैं रोहन से हीं शादी करूंगी,आप बस पापा को मना लो मेरी अच्छी मम्मी।
चित्रा को अपने पति के विचार तो मालूम ही थे।
आज ज़िंदगी ने उसे अचानक एक तिराहे पर खड़ा कर दिया।
एक मन की राहें बेटी की ओर खींच रही थी ,दूसरी राह पति के प्रति और उसका अपना मन तीसरी राह पर खींच रहा था, जहां उसका परिवार मान_ सम्मान सब सही रहे।जो कभी उसके साथ हुआ बेटी को भी वैसा समझौता ना करना पड़े।
सुनते हो__ आपको एक बार रोमा के मन की बात भी सुन लेनी चाहिए शादी का फैसला लेने से पहले।
क्यूं__क्या अब बच्चे हमें गाइड़ करेंगे?
नहीं ये बात नहीं , लेकिन जब बच्चे बड़े हो जाएं तो कभी उनको भी सुनना चाहिए।
पत्नी से रोमा की सारी बातें सुनकर मनमोहन जी विचलित हो उठे।
चित्रा__ समाज क्या कहेगा? 
कल को तुम्हारी बेटी ने कुछ ग़लत क़दम उठा लिया __ तब समाज क्या कहेगा ये सोचा है ।अब पुराने जमाने वाली बात तो अब है नहीं । चित्रा ने बड़े सुलझे तरीक़े से समझाया।अब मेरी बातें मानो ।हमारी बेटी इतनी समझदार तो है हीं ,उसने सही हीं परखा होगा अपने जीवन साथी के लिए उसे।
अंततः पत्नी के विचार सही हीं लगने लगे।आखिर पिछले उन्नतिस वर्षों से पूरी गृहस्थी की गाड़ी की कुशल संचालिका चित्रा हीं तो थी ।वो तो अधिकतर बाहरी दौरे या दफ्तर में हीं उलझे रहे। दोनों बच्चों की कुशल नेतृत्व और परवरिश के लिए सभी चित्रा की प्रशंसा करते थे।
रोमा को बड़े प्यार से पुकारा।
बेटा__ कल तुम उस लड़के को शाम को बुला लो। हम सब भी तुम्हारी पसंद से मिलना चाहते हैं।शादी की बात भी तो करनी है ।
आज की रात रोमा, चित्रा और मनमोहन जी के मन की राहें एक ही दिशा में निश्चिंत हो कर होकर दौड़ने लगी जो बेहद सुंदर,सुखद और सुहावना था ।****

5.नया मेहमान 
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बेटा - बहू को विदा कर बोझिल कदमों से रमा और रमाकांत वापस अपने घर लौट रहे थे।
नन्हे पोते की सूरत आंखों से हट हीं नहीं रही थी। पिछले छः महीने से बेटा- बहू साथ हीं रहने आ गए थे। बहू का रात- दिन ख्याल रखने में रमा कुछ  ज्यादा हीं व्यस्त रहती।
कुछ हीं दिन में घर में नया मेहमान आ गया। घर में पहली खुशी आई थी। बेटा- बहू से ज्यादा दादा -दादी खुश और बच्चे को संभाले रहते। समय मानों पंख लगाकर उड़ गया। आज सब को विदा कर रमा को खालीपन ने घेर लिया।अति उदासी का साया चेहरे पर स्पस्ट था, और स्वभाविक भी।
 नित्य की भाॅति सुबह चाय का ट्रे  लेकर बालकनी में आई हीं थी,  कि गमले की झुरमुट में चिड़ियों के बने घोंसले में दोनों को बैठा देखा। बात समझते रमा को देर ना लगी। 
पति को खुशी से आवाज देती हुई बोली देखों ना हमारे घर में पुनः नन्हा मेहमान आने वाला है।
मुठ्ठी भर अनाज के दानों को खुशी से  बिखेर चाय अंदर हीं पीने को लेती आई। पतिदेव भी कल के मुरझाए चेहरे को आज खिला देख मुस्कुरा दिए,,अब कुछ  दिन पुनः चिड़ियाँ के घोंसले में आने वाले नए मेहमान में रमा का मन रम जाएगा। ****

6.उदाहरण
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आजकल काम  कहाँ  मिलता है भाई -- श्याम प्रसाद ने लम्बी सांस लेते हुए अपने मित्र किशोर से कहा।
हाँ,  दिक्कत तो है लेकिन  प्रयास करते रहना चाहिए। 
तुम अपने बेटे को फौज में क्यूं नहीं कोशिश करने को कहते हो, उसमें अवश्य हो जाएगा। 
हाँ,  बात तो सही है लेकिन-- 
क्या लेकिन? 
मेरा एक हीं लड़का है।
तो क्या हुआ? 
मेरे तो दो बेटे हैं पहला तो फौज में है हीं, अब दूसरा भी अभी से तैयारी कर रहा है फौज में हीं जाने के लिए। 
हाँ - किशोर तभी तो तुम्हारे बेटों का पूरे गाँव में उदाहरण दिया जाता है।
मैं भी आज जाकर अपने बेटे को सारी प्रकिया फौज में भर्ती होने के लिए करवाता हूं।  तुमने अच्छी सलाह दी देश के लिए  काम करना सब से अच्छा है और ये अब मेरे लिए भी तुम्हारी तरह गौरव की बात होगी। दोनों मित्र खुशी - खुशी अपने घरों की ओर हो लिए। ****

7. मैं भूखी हूं 
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कल बेटी के आगमन की बात बिस्तर  पर पड़ी माँ के कानों में  भी पड़ चुकी थी। इतने दिनों से बेटा- बहू  देख भाल कर रहे थे। माँ  कि बिमारी बढ़ती जा रही थी। ईलाज चल रहा था पर कुछ खास फायदा नजर नहीं आ रहा था। शायद- अब उम्र का तकाजा हो। इसीलिए राकेश ने मोना दीदी को खबर कर देना उचित समझा । मोना को देखकर माँ  खुशी के आँसू बहाने लगी। माँ की निढ़ाल अवस्था देख वह अंदर से सिहर गई।  सिमटी सी लकड़ी समान माँ बिस्तर पर पड़ी हुई थी। माँ  के सामने दिल को मजबूत कर कहा -  आप जल्दी ठीक हो जाएंगी। अब मैं भी आ गई हूँ।  माँ ने बेटी को दबी आवाज में कहा - मैं भूखी हूं,,,
मोना तुरंत रसोई घर में माँ के लिए खाने की थाली सजाने लगी।
तभी राकेश ने टोका माँ को इतना खाना? उन्हें अब हजम नहीं होता। डाॅ  ने भी कम देने को कहा है। इतना खाना खाएगीं फिर ज्यादा कपड़े , बिस्तर  सब गंदा करेगीं।
ओह! तभी माँ ने कहा 
मैं भूखी हूं,,,  ****

8.देशहित 
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माँ  ! दरवाजा खोल 
देख तेरा बेटा मुम्बई से काम छोड़कर वापस तेरे पास आ गया है।
हाँ-  बेटा  ये तो अच्छा  किया लाॅक डाउन में वहां अकेले तेरा रहना सही ना होता। 
लेकिन  अभी  तुम गांव के चौराहे पर बने कोरंटाइन सेंटर में चौदह दिनों तक रह कर हीं मेरे पास इस घर और गाँव में रह सकते हो। सरकार कि यह सख्त हिदायत है बाहर से आने वालों के लिए। 
मुझे भी वहां रहना होगा ? 
हाँ -तुझे भी। 
मैं अपने ममत्व में गांव का अहित नहीं कर सकती, पहले हमें देशहित  का सोचना है।
तुम चौदह दिनों के बाद हीं मेरे पास आना।
अच्छा माँ  - मैं वहीं रहने जा रहा हूं। 
जाते -जाते रोहण सोच रहा था --आज उसकी अनपढ़ माँ पुन: उसे एक सीख दे दी ,,,देशहित  हेतू। *****

 9.माइक 
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नहीं सर ! मुझे माफ़ करें __ मैं इस गायकी प्रतियोगिता में भाग नहीं ले सकती ।
सर की बातें लगातार मीता के कानों में गूंज रहीं थीं ।
एक तरफ पापा की कठोर बंदिशें जो पिछले पांच वर्षों से उसकी गायकी पर लगी हुई थी । बड़ी बहन पांच बर्ष पूर्व एक मशहूर गायक के साथ,पापा के लाख मना करने के बावजूद भी घर छोड़कर चली गई । जिसका प्रभाव आज तक मीता पर पापा का तंज व्यवहार । पापा को इसी कारण अब गायकी से सख्त नफ़रत हो गयी थी।मीता बराबर पापा को समझाती रहती___ मैं दीदी की तरह कोई ग़लत क़दम कभी नहीं उठाऊंगी । मीता की मां का स्वर्गवास बचपन में ही हो गया था । बहन का  साथ भी  छूट  गयाथा।अब मात्र पापा हीं  उसके सब कुछ थे। 
दोस्तों और सर के बहुत जोर देने पर डरते  हुए मीता ने अपना नाम प्रतियोगिता के लिए दे दिया ।
"राज्य स्तरीय गायकी" प्रतियोगिता में मीता को अव्वल स्थान प्राप्त हुआ।
सारे दोस्त और खुद प्रधान अध्यापक सर मीता को मिलें अनगिनत पुरस्कार लेकर सबके साथ उसके घर जा पहुंचे।पापा को अचानक  सारी बातों की जानकारी हुई । एक पल के लिए वो बेहद  उदिग्न हो गये ,पर पुनः मन को शांत कर बेटी की  उपलब्धि और  उसमें छिपे  अद्भुत प्रतिभा की भी पहचान हुई ।  बेटी को मिले " सम्मान " का उन्होंने भी पिछली सारी बातों को भूलकर  सम्मान  किया  । सभी का स्वागत किया, आभार प्रकट किया । डर  से दुबकी  छिपी  सिमटी  बेटी को आगे बढ़कर गले से लगा  लिया  । अपनी पत्नी  से मिलें बेटी को " स्वर गुण"  को अब और  ना दबाने  का मन में ठान लिया और  आगे बढ़ने का आशीर्वाद देने लगे । इधर मीता अपने बदले हालात से ख़ुशी में झूम उठी  । वर्षों  से दफ़न सपने मानों साकार हो गये  । पापा  के  स्नेहाशीष  से भावविभोर  , अपराधबोध  से  मुक्त  उन्मुक्त  मीता  पुनः  गायन के  लिए  " माइक"  को  डर कर  नहीं  ,,, इस  बार  पूरी  बुलंदी  के  साथ  सदा  के लिए  पकड़  लिया । ****

10. तीस रूपया
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 अंकल  _मुझे भी एक पौंधा चाहिए ।
आवाज सुनकर अपने  नर्सरी रूपी बग़ीचे में पानी देते हुए रामशरण बाबू के हाथ रूक गये । 
लड़के से पूछा   _ तुम तो अभी बहुत छोटे हो ।
लड़के ने तुरंत कहा , मैं और मेरी मां मिलकर सींचेगे।
रामशरण  बाबू उसके इच्छानुसार एक अमरूद का पौधा उसे बढ़ाते हैं । लड़का पुनः प्रश्न करता है  _  इसे  कितने में  देंगे ? 
रामशरण बाबू  __ मैं बिना पैसे लिए हीं सबको पर्यावरण बचाने के लिए मुफ्त में देता हूं ।
 लड़का  _फिर तो मैं  नहीं लूंगा ।
क्यूं ? 
रामशरण जी को उसकी अवस्था देखकर घोर आश्चर्य हुआ । 
मेरे पिता जी को अमरुद  बहुत पसंद था अंकल,,और आज उनकी पुण्यतिथि है , इसीलिए उनकी याद में हम दोनो ने अमरूद लगाने की सोची है ,अगर बिना पैसे दिए लूं गा तो, पिताजी की आत्मा दुःखी हो जाएगी ,कि हम दान का पौधा लगाएं,मोल ना लिया गरीबी के कारण ।
रामशरण बोलें मैं तो पौधा बेचता नहीं हूं ,जो भी देखभाल कर सके, उसे मुफ्त में देता हूं ।
लड़का दुःखी मन से आगे बढ़ने को तत्पर हुआ,,, फिर रहने दीजिए अंकल ।
रामशरण बाबू लड़के की खुद्दारी और मायूसी देख,,पहली बार अपना उसूल तोड़ते हुए बुदबुदाते हुए बोले _ "  ३० रुपए " ।
लड़के के चेहरे पे छाई खुशी साफ झलक रही थी ,, हर्षोल्लादित होते हुए हाथ में भींचे  ३० रूपये गिनकर बढ़ा दिए । पौधा लेकर लड़का पुल्कित भाव लिए आगे बढ़ जाता है।
रामशरण बाबू  भी  पहली बार उसूल तोड़कर भी  लड़के के भाव  देखकर ,, खुश हो जाते हैं,हाथ में भले ३० रुपया चुभन का एहसास दे रहा था ।****
   
11. कच्चे घर
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खटर - खटर करती  हुई  अचानक  गाड़ी  बंद  हो  गयी  । दूर  तक सड़क  पर घुप  अंधेरा । गनीमत थी  कि  कार की  बती  जल  रही  थी । तभी उमेश  को टिमटिमाती  रोशनी  दिखी  । सड़क  के किनारे  पीछे से  एक  आदमी  लालटेन  लिए  आकर  बोला  --- का  हुआ  बाबू ?  कउमेश  ने  अपनी  विवशता  जताते  हुए  पूछा  -- यहां  कोई  गैराज  या  मिस्त्री  मिलेगा ,जो मेरी गाड़ी  ठीक कर  दे ।   
ना  साहेब  अभी  तो  ई  रतिया  में  ई धनुरवा  गांव  बा, शहर  थोड़े ना ।  अब  तो  भोरे  हीं  कौनों उपाय   होखी । उमेश  चिंता  से  अब  मैं  क्या  करूँ   ? भोला सीधा -साधा  गवयी  झट बडी  बेफिक्र  से  बोला  --"आप हमरे  घरे आज रूक जाइए  ।" 
कोई  और  उपाए  ना  देखकर  गाड़ी  बंद कर उमेश  बैग लिए  पगडंडी  पर  लालटेन  के  सहारे उस भोलूवा  के  साथ   आगे  बढ़  गया ।  झोपड़ीनुमा मिट्टी  के कच्चे  घर  के  पास आकर  भोलूआ   बोला  --- बाबू  हमर  ए ही कच्चा  घर  बसेरा है , आव  अंदर  । पत्नी  गिनिया को बाहरे से  आवाज  लगाता  है।  पत्नी ठिठक कर सर  ढापे हुए लोटे में  पानी  लाकर देती है । भोलूआ बोलता है जल्दी  से साहेब  ला कुछ कुछ  बना  ला ,आज इहै  रहेंगे  ,बडा साहब हैं ये  " गाड़ीवाले " । पत्नी  अंदर जाकर  जुट जाती है। थोड़ी  देर बाद  हीं  मोटी मगर सौंधी घी वाली रोटियाँ, प्याज , दाल , और साग  सब कुछ दो  थाली में  बड़े  प्रेम-भाव से लाती है ।
भूख और थकान दोनों   का उमेश पर असर हो  चुका था । 
कूं क डू कूं  की  आवाज़  से उमेश  झटके से खटिए  पर  उठ बैठा  ।बगल हीं  नीचे भोलूआ  बिस्तर  समेट रहा था । चल बाबू तलाब ओरे । बाहर  निकलते  हीं  अदभुत प्राकृतिक भोर बेला  की सौंदर्य मन को  लुभा  रही  थी । शहरों  में  ऊंची  इमारतों के सिवा  कुछ दिखता हीं  कहां  है? कुछ लोग  हल - बैल लिएअपनी खेतों की ओर, तो कुछ  पशुओं को चराने । स्त्रियों का झुंड  मटके लिए पानी लेने । 
तभी  सुन्दरा को जाता देख बोलूआ  चिल्लाया क्योंकि  सुन्दरा  हीं  इस  पूरे गांव  में  इकलौता  टुटपूंजिया  मिस्त्री  था । 
गाड़ी  को थोड़ी देर जाँच  - पड़ताल  के बाद  उसने  फुररररर  से  चालू  कर  दिया । भोलूआ  और उसकी  पत्नी बड़े  प्यार  से उमेश बाबू का बैग  व खाने की पोटली बढा  देता है  । उमेश भोलूवा  की आत्मीयता से ओत- प्रोत  हो रहे थे ।  पाकिट  में  जैसे ही हाथ डाला भोलूवा  बोला ---- ना  बाबू  हम  त मेहमान के भगवान् मानी ला ।"  अब ना  जाने  फिरो कब दर्शन होई ?  उमेश भोलूवा  के  सच्चे और निश्छल  चेहरे को दिल में  समाए  गाड़ी शहर की  ओर बढ़ाने लगा।  यही सोच  रहा  था  सच  कितना अंतर है  इसके  "कच्चे "  और  मेरे  "पक्के  " घर   में  ।। ****
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क्रमांक - 12
जन्म : ग्यारह सितंबर 
शिक्षा : एम.ए.(हिन्दी) बी.एड

प्रकाशित रचनाएँ:- 
फूलों की सुगंध, दोष किस का था, बस, अब और नहीं, मैंने क्या बुरा किया है, नहीं, यह नहीं होगा, मैं नहीं जानती ,  कितने महायुद्ध , चुनिंदा कहानियाँ ,अलकनंदा (कहानी संग्रह) ,
मन पंछी-सा, तिरते बादल (हाइकु एवं माहिया संग्रह) , 
साँझा दर्द (लघुकथा संग्रह), 
क्या वृंदा लौट पाई! ,यादों के झरोखे (उपन्यास ) 
युग बदल रहा है, आसमान मेरा भी है, एक नदी एहसास की ,उठो, आसमान छू लें (कविता संग्रह) 
हवा बहती है (ताँका संग्रह)
व 
 पाँच दर्जन से अधिक संपादित संकलनों में रचनाएँ संगृहीत , 

  अनुवाद : -

  पंजाबी, उर्दू, सिन्धी, अवधी , नेपाली, गुजराती,अँग्रेजी,गढ़वाली में कुछ  रचनाएँ अनूदित ।

वेब -साइट पर प्रकाशन:- 

अनुभूति, अभिव्यक्ति, साहित्य कुंज  त्रिवेणी, सहज साहित्य ,लघुकथा डॉट कॉम, हिन्दी हाइकु आदि।

देश - विदेश में प्रसारण :- 

देश-विदेश की प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएँ प्रकाशित। आकाशवाणी रोहतक , दिल्ली अम्बर रेडियो (यूके.)से कविता, कहानी, वार्ता, चर्चाओं का प्रसारण। 

 पुरस्कार एवं सम्मान—

 हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना पुरस्कार वर्ष 2019
  हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा ' श्रेष्ठ महिला रचनाकार' 2013 से सम्मानित '
 दोष किसका था' कहानी -संग्रह (1999)श्रेष्ठ कृति पुरस्कार ।
 हरियाण साहित्य अकादमी से   चार बार कहानियाँ पुरस्कृत । 
 देश की विभिन्न साहित्यक संस्थानों द्वारा सम्मानित एवं पुरस्कृत।
शिक्षा के क्षेत्र में केन्द्रीय विद्यालय संगठन द्वारा राष्ट्रीय पुरस्कार (1999)से सम्मानित।

शोंध व पाठ्य पुस्तकों में शामिल : -

 कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से एम.फिल तथा पी.एच.डी की उपाधि हेतु छात्रों द्वारा शोध कार्य सम्पन्न। 
 भाषा मंजरी पाठ्य पुस्तकों में कक्षा एक से आठ तक रचनाएँ संगृहीत।

पता : -
 ई-29, नेहरू ग्राँऊड , फ़रीदाबाद -121001
1. समाधान 
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उसने जोड़ तोड़ करके देखा।मकान का किराया, बीमा की किश्त देने के बाद उसके पास घर के खर्च के लिए लगभग पन्द्रह दिन के पैसे बचते हैं।उसमें से भी यदि वह माँ के लिए दवाइयाँ ले आए तो राशन के लिए पैसे और भी कम हो जाएँगे।उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।लॉकडाउन के कारण पत्नी की अस्थायी नौकरी पिछले महीने ही छूट गई थी।उसके वेतन में भी तीस प्रतिशत की कटौती हो गई है।बैंक में जमा पूँजी से एक महीना तो ठीक निकल गया लेकिन अब क्या करे।और कुछ न हो पर जीने के लिए खाना तो चाहिए।
        गरीब,झुग्गीवासियों को तो सरकार सहायता दे रही है।स्वयंसेवी संस्थाएँ भी भोजन बाँट रही हैं।उनके पास तो राशनकार्ड भी नहीं जो सस्ते में राशन ला सकें।विकट स्थिति थी उसके सामने।इस त्रासदी को झेलना कठिन हो रहा था।अंत में उसने निर्णय लिया कि इस माह माँ की दवाइयाँ स्थगित कर देते हैं।
          जब वह पत्नी को बता रहा था तो उसके दस वर्षीय बेटे  समर ने सुन लिया।बोला,” पापा आप दादी की दवाइयाँ ले आएँ, खाने की चिंता नहीं करें मैं मास्क लगा कर लाइन में लग कर खाना ले आया करूँगा, मुझे तो कोई पहचानता नहीं।
    पति-पत्नी उसकी ओर देखने लगे।*****

2. दो छतें
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           साठ वर्ष तक एक कमरे, एक छत के नीचे रहने के बाद उनकी छतें बदल गईं। यही तो जीवन की विडम्बना है। एक सुबह उठते ही पता नहीं कैसे माँ का पाँव सीढ़ी से फिसला और वह फ़र्श पर आ गिरीं। कुल्हे की हड्डी टूट गई। उन्हें चार सीढ़ी ऊपर के कमरे में नहीं रखा जा सकता था।सो दूसरे कमरे में , स्पेशल बैड पर उन्हें सुलाने की व्यवस्था की गई। पिताजी पहले ही बीमार चल रहे थे।तीमारदार के सहारे जीवन चल रहा था।माँ की देखभाल कैसे कर सकते थे। इसलिए पिताजी अपने तीमारदार के साथ ऊपर के कमरे में रहते और माँ अपनी तीमारदार के साथ चार सीढ़ी नीचे के कमरे में। दोनों को तीमारदारों के साथ एक साथ नहीं रखा जा सकता था।उनका जीवन एक छत से हट कर दो छतों के बीच बँट गया । कभी कभी व्हीलचेयर पर बैठा कर आँगन में ले आते। वहीं थोड़ी देर सूरज की गुनगुनी धूप में बैठ कर अपने सुख-दुख साँझा करते।माँ पूछती," आप कैसे हैं जी?"  पिताजी कहते," मैं ठीक हूँ, तुम कैसी हो?" 
         बस बीमारी और हाल-चाल का आदान-प्रदान होता।दोनों अधिक देर तक बैठ नहीं पाते। एकाध घंटे में फिर किसी अगली सुबह मिलने की आस लिए वे अपने अपने कमरों में लौट आते हैं।****
         
3. क्यों नहीं समझ सका   
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जब पता चला कि मुझे ऑफिस की ओर से मुम्बई जाना है तो मेरी प्रसन्नता की सीमा नहीं रही ।काम के साथ साथ मैं अपने चचेरे भाइयों से भी मिल लूँगा जिन्हें मिले बरसों हो गए थे ।मैंने दोनों को होटल के पते के साथ सूचित कर दिया ।रात तक दोनों में से न किसी का फ़ोन आया और  न कोई मिलने ।मैंने अगले दिन अरविंद को फ़ोन किया ।उसने हड़बड़ी में कहा," विपिन तुम्हारी ईमेल मिल गई थी ।यह पूरा सप्ताह ऑफिस में मेरी मीटिंग चलेगी ।रात देर से घर पहुँचता हूँ ।तुम्हारी भाभी भी देर से आती है ।फ़िर घर का काम, बच्चों की पढ़ाई उसे समय ही नहीं मिलता ।तुम ऐसा करो इस रविवार को घर आ जाना ।लंच हमारे साथ ही लेना ।मिल कर बैठेंगे ।"
       मैंने बीच में बोल कर बताना चाहा कि मैं यहाँ केवल तीन दिन रुकने वाला हूँ ।लेकिन उसने मेरी बात की ओर ध्यान ही नहीं दिया ।कहने लगा," अच्छा तो फ़िर संडे पक्का रहा ।ओ के ऑफिस की बस निकल जाएगी ।"
       दूसरे दिन रवि को फ़ोन किया ।उसने थोड़ी देर इधर उधर की बात की और बोला," हाँ, विपिन कमरा नम्बर कितना है, मैं शायद शनिवार तुमसे मिलने आऊँगा "
       अरविंद की तरह ही रवि ने भी मेरी बात नहीं सुनी ।
        यह महानगरों की विवशता है अथवा फ़ासलों की विवशता जो दिलों की दूरियाँ  बढ़ गई हैं, यह मैं क्यों नहीं समझ सका ।  ****

4. भ्रम
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   मैं सालों इस भ्रम में जीती रही कि बच्चे मुझसे बहुत प्यार करते हैं ।आठ वर्ष एक लम्बा अरसा होता है किसी को समझने का, किसी के साथ जुड़ने का ।दिन - रात का साथ और फिर ख़ून का रिश्ता ।माँ कम और दादी उसे अधिक चाहिए थी ।छोटी थी तो गोदी से उतरती नहीं थी, कहीं जाना होता तो साथ जाती ।मेरे साथ ही सोती ।स्कूल जाने लगी तो सुबह उठाना,तैयार करना,टिफ़िन बनाना,स्कूल छोड़ना,वापिस लाना सब काम मैं ही करती ।उसकी माँगें पूरी करना भी मेरा काम था ।लाड़ली थी मेरी, मुझे अच्छा लगता ।लेकिन दादी जितना भी प्यार करे, फिर भी बच्चे माता - पिता के होते हैं।यह जानती थी ।पर समय कितना बदल गया है, यह नहीं जानती थी ।
 नया मकान बनना शुरु हुआ तो वह हमेशा कहती," दादी आप पुराने मकान में रहेंगी, हम अपने नए मकान में चले जाएँगे,"मैं उसका बचपना समझ कर चुप रह जाती ।मेरे प्यार और व्यवहार में कई अंतर नहीं आया ।अपनी दिनचर्या का होम कर मैं बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करने में लगी रहती ।रुद्र अभी छोटा था ।बहुत कुछ नहीं समझता का लेकिन रीवा के सामाजिक ज्ञान का दायरा बढ़ रहा था ।
                 मकान तैयार हो गया, सामान पहुँच गया। जाने का समय भी हो गया ।वह मुझसे बिना मिले कार मे बैठ कर चली गई ।उसने पीछे मुड़ कर भी नहीं देखा ।मेरा बरसों का भ्रम टूट गया । ****

5. शुद्ध जात
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          माँजी मेरे पास रहने के लिए आ रही  थीं ।उनको नहलाना- धुलाना,घुमाना,कपड़े लत्ते, खाना सब काम मुझे ही करने होंगे ।थोड़ा कठिन लगा ।इसलिए मैंने मेड ढूँढनी शुरु कर दी ।पर मिली ही नहीं । तभी पता चला गली के सफ़ाई कर्मचारी की पन्द्रह - सोलह वर्ष की लड़की है ।उससे बात की तो वह उसे काम पर भेजने के लिए तैयार हो गया ।मैंने उसे समझा दिया कि वह किसी को बतायेगा नहीं कि उसकी बेटी यहाँ काम करती है ।माँजी को तो बिलकुल ही पता नहीं चलना चाहिए ।
        राधा माँजी के सारे काम पूरे मन से करती ।उन्हीं के कमरे में सोती थी ।माँजी ख़ुश थीं और मैं निश्चिंत ।
               कई महीने निकल गए ।एक दिन मैं घर पर नहीं थी ।उस दिन राधा का भाई घर पर आ गया ।कोई रिश्तेदार आए थे और उसकी माँ ने उसे घर बुलाया था ।उसके भाई से माँजी को पता चल गया कि राधा कौन जात की है ।मैं माँजी के सामने जाने से डर रही थी कि उनकी क्रोधाग्नि का सामना कैसे कर पाऊँगी ।वह ठहरी जात- पात,छुआ-छूत में  विश्वास रखने तथा नित्य नियम करने वाली महिला ।
                  उन्होंने मुझे बुलाया ।मैं ड़रते -ड़रते उनके पास गई ।उन्होंने पूछा,"बहू ,तुम जानती थी कि राधा कौन जात है ।"
" जी माँजी" मैंने संक्षिप्त सा उत्तर दिया"
"कोनो बात नहीं बहू जब अपने सेवा न कर सकें तो परायों की कौन जात, जो सेवा करे वही शुद्ध जात ।" ****

6. कुछ नहीं ख़रीदा 
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         वह बीच पर बैठी लहरों को उठते -गिरते देख रही थी। सैंकड़ों सैलानी अलग अलग क्रीड़ाओं का आनन्द ले रहे थे। कई घूम रहे थे, कई धूप का सेवन कर रहे थे।उस द्वीप का मूल निवासी दो घंटे तक बीच का चक्कर लगाता रहा। कुछ लोगों ने उससे स्टोल और मालाओं के दाम पूछे पर ख़रीदा कुछ नहीं।एक घंटे बाद वह फिर आया।उसने क़ीमत आधी कर दी थी।लेकिन किसीने तब भी कुछ नहीं ख़रीदा । साँझ ढलने से पहले वह एक बार फिर आया। इस बार उसने क़ीमत और भी कम कर दी। अब बहुत सारे लोगों ने उसका सामान ख़रीद लिया था।पर वह कह रहा था कि उसने वस्तुओं की सिर्फ़ लागत ली है। उसे लाभ कुछ भी नहीं हुआ।
लाखों का ख़र्चा कर के इस टापू पर आकर मनोरंजन करने वाले सैलानी यहाँ की कला को नहीं ख़रीद सकते। मूल निवासियों की सहायता नहीं कर सकते।उसे बहुत अचरज हो रहा था।अनायास ही  उसके मुख से निकला," कितने ओछे हैं लोग।"
                उसका बारह वर्षीय बेटा भी वहीं खेल रहा था, बात सुन कर बोला,"आपने भी तो कुछ नहीं ख़रीदा मम्मा ।" *****

7. काम क्या होता है
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सुबह पाँच बजे अलार्म की टन टन आवाज़ के साथ ही उठ गई। नित्यक्रम से निवृत हो कर वह किचन में गई। कुकर में दाल डाल कर गैस पर रखी।आलू-गोभी की सब्ज़ी को छोंक लगाया। दोनों चीज़ें बना कर बच्चों के नाश्ते की तैयारी में जुट गई। साढ़े छह बज गए थे। पति उठ गए थे। चाय बना कर  कमरे में उनको दे आई।
खाना तैयार हो गया था। अपना और पति का लंच बॉक्स पैक किया।बच्चों के डिब्बों में उनके लिए स्नैक्स रखे। सात बज गए थे।दूध गर्म करने के लिए गैस पर रख कर वह बच्चों को जगाने गई।बडी तो उठ जाती है, छोटी उठने में आनाकानी करती है।उसे कई प्रलोभन देकर फिर डाँट डपट कर जगाया। उन्हें बाथरूम में धकेल कर तथा उनकी यूनिफ़ॉर्म रख कर वह फिर किचन में आ गई। दूध उफन कर थोड़ा गिर गया था।
               उसने बनी हुई चाय गर्म की और चीज़ों को सम्भालते हुए टोस्ट के साथ पीने लगी। तभी डोरबेल बजी,दरवाज़ा खोल कर देखा, मेड का बेटा था।बोला," आज मेरी मम्मी काम पर नहीं आएगी।" कह कर वह  पीछे मुड़ गया।उसकी चाय का स्वाद बिगड  गया।
            दोनों बेटियाँ तैयार हो गईं थी, उनको नाश्ता करवा कर ,बस स्टॉप पर छोड़ आई। पति तैयार हो गए थे। मेज़ पर उनका नाश्ता और लंच बॉक्स रख कर वह किचन में आकर सामान समेटने लगी। थोड़े बर्तन भी साफ़ कर लिए, मेड का फ़रमान जो आ गया था। झाड़ू -पोचे की छुट्टी हो गई। पहले पता होता तो सुबह उठते ही कर लेती।
         सारे काम निबटा कर वह तैयार होने के लिए कमरे में आ गई।सुबह समय बचाने के लिए वह अपने कपडे रात को ही निकाल कर रख लेती है।जल्दी जल्दी साड़ी को बदन पर लपेटा।बालों में एकाध बार ब्रुश घुमा कर बाँध दिया। आँखों में काजल लगाया।पाउडर और लिपस्टिक लगाने का समय तो उसे कभी मिला ही नहीं।
            पति नाश्ता करके बाहर खड़े थे। उसे आता न देख कर बार बार हार्न बजा रहे थे। शीघ्रता से पर्स उठा कर लंच बॉक्स उसमें डाला,ताला लगाया और बाहर आ गई।ऑफ़िस को देर हो रही थी ,पति चिड़चिड़ा कर बोले," काम क्या होता है, क्या करती रहती हो, तैयार होने में इतना समय लगा देती हो।"
         उसने कोई उत्तर नहीं दिया।शरीर पर लिपटी साड़ी को सम्भालते हुए वह स्कूटर के पीछे बैठ गई। ***

8. भेड़िया 
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            सर्दियों की शाम जल्दी ही ढ़ल जाती है । वह टयूशन पढ़ कर निकली तो अंधेरा गली में पसर गया था ।प्रतिदिन उजाला रहते नहीं घर पहुँच जाती है । आज उसे विलम्ब हो गया था ।गली में सूना सूना था । वह शीघ्रता से वहाँ से निकल जाना चाहती थी लेकिन उसे लगा कोई उसका पीछा कर रहा है ।वह डर गई ।एक पल के लिए रुकी ।पीछे से आते क़दमों की आहट रुक गई । वह जल्दी जल्दी क़दम बढ़ाने लगी ।पीछे से आती परछाईं उसकी ओर बढ़ रही थी ।इससे पहले की वह भागती ,वह परछाईं उस तक पहुँच चुकी थी ।उसने आगे बढ़ कर उसका हाथ पकड़ लिया ।उसकी चीख़ निकल गई ।तभी एक अधेड़ उम्र का व्यक्ति घर का दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल आया ।उसे देख कर वह परछाईं उसका हाथ छोड़ कर आगे निकल गई ।उस व्यक्ति ने पूछा,"क्या बात है ?"
"  अंकल वह लड़का मेरा पीछा कर रहा था ।मुझे पकड़ने की कोशिश कर रहा था ।"
" तुम ड़रो नहीं ,यहाँ बहुत अंधेरा है मैं तुम्हें सड़क तक छोड़ आता हूँ।" कह कर वह व्यक्ति उसके कंधे पर हाथ रख कर साथ साथ चलने लगा ।धीरे -धीरे उसका हाथ कंधे से फ़िसल कर उसकी कमर पर आ गया और फिर उसका कसाब बढ़ता गया ।
          वह बाघ से तो बच गई लेकिन भेड़िये के चंगुल में फँस गई थी । ****

9. सचेत
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                     माया ने  बहुत पहले ही कहना शुरु कर दिया था," आँटी मुझे पूरे एक महीने की छुट्टी चाहिये। मेरे भाई के बेटे की शादी है।कई बरसों से उसके पास गई ही नहीं। अब के शादी पर जाऊँगी तो रह कर भी आऊँगी। " तभी से उसने तैयारियाँ शुरु कर दी थीं।मुझसे एक महीने की पगार अग्रिम ले ली । उसने बच्चों के कपड़े लत्ते बनवा लिये। मैंने भी शादी वाले दिन पहनने के लिये एक साड़ी दे दी। जैसे जैसे उसके जाने के दिन पास आते जा रहे थे, उसकी प्रसन्नता और उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
                    कल जब वह आई तो उसका चेहरा बुझा बुझा सा था।काम में भी उसका मन नहीं लग रहा था। मैंने उसकी यह स्थिति देखी तो पूछ ही लिया, " माया आज उदास लग रही हो, क्या बात है!"उसका मन तो भरा हुआ था ।मेरे पूछते ही उसकी आँखों में आँसू आ गये। उन्हें पोंछते हुए बोली, आँटी अब मैं शादी पर नहीं जा सकूँगी।"
" क्यों क्या बात हो गई है! " मैंने चिंतित हो कर पूछा
  वह बोली,"आँटी स्कूल वालों ने पहले तो बताया नहीं, अब छुट्टी के लिये पूछने गई तोटीचर बोली,उन दिनों में तो तेरे बच्चों के पेपर हैं।बताओ भला आँटी मैं कैसे जा सकूँ हूँ। बच्चों के पेपर तो ज़रूरी हैं। साल भर मेहनत कर  के फ़ीस दी है,बच्चों को लेकर चली जाऊँगी तो वह अगली क्लास में कैसे जायेंगे। 
            मुझे उसके शादी पर न जाने का दुख भी हो रहा था और खुशी भी। माया को अपना नाम तक लिखना नहीं आता। पचास से ऊपर गिनती नहीं आती लेकिन वह अपने बच्चों की शिक्षा के प्रति कितनी सचेत हैं। उनके भविष्य के लिये उसने शादी पर  न जाने की सोच ली।****

10 .बदलाव
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        उसकी नींद खुल गई थी पर वह चारपाई से उठा नहीं। माँ तारों की छाँव में उठ गई थी। आँखें बंद किए ही वह आवाज़ से महसूस करता रहा कि  वह क्या कर रही है। उसने भैंस को चारा डाला ।नित्यक्रम से निवृत होकर तुलसी चौरे पर दीपक जलाया। दही बिलोई, मक्खन निकाल कर डिब्बे में रखा। छाछ मिट्टी की दूसरी हांडी में उँडेली। आटा गूँधा और फिर मंदिर चली गई।
                     जब तक माँ वापिस आई। वह उठ कर तैयार हो गया था। बाबूजी भी खेत से सब्ज़ियाँ लेकर लौट आए थे। उन्होंने भैंस का दूध निकाल कर माँ के पास चौके में रख दिया। नहा धोकर वापिस आए तो माँ ने गोभी के पराँठे तैयार कर लिए थे। वह बाबू जी के साथ चौके में ही पालथी मार कर बैठ गया। माँ ने पराँठे के ऊपर ढेर सारा मक्खन रख कर उसे दिया। दही -मक्खन के साथ वह तीन पराँठे खा गया।
  " तुम छुट्टी लेकर आए हो न?" बाबू जी ने उससे पूछा
  " हाँ, दो दिन रहूँगा।"
  " बहू -बच्चों को  भी लेकर आते तो अच्छा लगता।" माँ ने कहा
      उसके मन में हुडक- सी उठी । वह अपने मन की बात कह नहीं पा रहा था कि वह किसी विशेष प्रयोजन से उनके पास आया है। बाबू जी के पास एक एकड़ ही ज़मीन थी और गाँव का यह मकान। वह चाहता था कि बाबू जी ज़मीन मकान बेच कर शहर में उसके पास आ जाएँ और इस पैसे से वह एक फ़्लैट ले लेगा।
 " अगली बार ले आऊँगा।" वह सच कह रहा था या झूठ , पता नहीं।
 पर वह इतना जान गया था कि माँ-बाबू जी की दिनचर्या क्या वह शहर में दे पाएगा।शाँत बहते पानी-सा जीवन चल रहा है और वह कंकड़ मार कर लहरें पैदा करने की कोशिश कर रहा है । उसका मन भारी हो गया।
        बाबू जी चौके से उठ गए थे। कुल्ला करके उन्होंने उससे पूछा," चौपाल पर जा रहा हूँ, तुम चलोगे?"
" जी,बाबू जी, हाँ, माँ अगली बार बच्चों को जरूर साथ लेकर आऊँगा ।"कह कर वह जूते पहनने  लगा । अब वह स्वयं को हल्का महसूस कर रहा था। ****

11. पिता ऐसे ही होते हैं
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           मैं पिताजी से नाराज़ होकर घर से बाहर आ गया जबकि उस दिन छुट्टी थी। मैं अब इतना छोटा भी नहीं कि उनकी बात, उनकी स्थिति को न समझ सकूँ फिर भी उनकी बातें, सीख मुझे अच्छी नहीं लगी। बात नहीं माननी तो न मानते लेकिन इतना लम्बा- चौड़ा भाषण देने और डाँटने की क्या  आवश्यकता थी। मैंने कुछ अधिक माँग तो नहीं की थी। पर वह हैं कि समझते ही नहीं।
                सारा दिन मैं घर से बाहर रहा।थोड़ा समय एक दो मित्रों के साथ रह कर बिताया। फिर कभी पार्क में और कभी सड़क पर निरुद्देश्य घूमता रहा। भूख लगी थी पर जेब में इतने पैसे नहीं थे। एक बडा पाव खा कर पानी पी लिया। सारा दिन उसी में बिता दिया। शाम होने पर लगने लगा , मुझे इस तरह से घर के बाहर नहीं रहना चाहिए। पिता जी को मेरी परवाह नहीं है पर माँ तो चिंता कर रही होगी। अँधेरा होने पर मेरा हौसला पस्त होने लगा था। मेरे क़दम स्वयं ही अपने घर की ओर मुड़ने लगे  थे लेकिन पिता जी के प्रति  मेरा क्रोध ,मेरी नाराज़गी कम नहीं हो रही थी।
               जब घर पहुँचा तब काफ़ी रात हो गई थी। दरवाज़ा माँ ने खोला। मैं बिना बोले कमरे में आ गया।छोटे भाई बहन सो गए थे। माँ खाने की थाली मेज़ पर रखते हुए बोली," मुँह हाथ धोकर खाना खा लो, थके हुए लग रहे हो।" माँ ने न मुझे डाँटा न ही पूछा कि मैं सारा दिन कहाँ रहा। मेरे भीतर कुछ कचोटने लगा।
       हाथ धोकर खाने बैठा तो देखा  मेज़ पर  एक पैकेट रखा था। मैंने उत्सुकता से खोल कर देखा तो उसमें मेरी पसंद का मोबाइल था, जिसकी माँग मैंने सुबह रखी थी। 
पिताजी अपने कमरे में अभी जाग रहे थे। उनके हाथ में वही डायरी थी जिसमें वह महीने भर का हिसाब लिखते हैं। *****
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क्रमांक - 13
जन्म : 5सिम्बर 1941
पिता : स्व०काशीनाथ शर्मा 
माता : स्व०रामकली देवी 
पति : डॉ०  आर०  डी०  जोशी

शिक्षा :- 
MA -हिंदी ,अंग्रेजी। BEd।  संगीतप्रभाकर -सितार ,तबला , कथक ,गायन 
(प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद)

व्यवसाय : -
Engilsh Medium Residancial Public  Schools 
सैनिक स्कूल कुंजपुरा करनाल,
पंजाब पब्लिक स्कूल नाभा ,
 यादवेंद्र पब्लिक स्कूल पटियाला ,
 एपीजे पब्लिक स्कूल फरीदाबाद , 
मोतीलाल नेहरू स्पोर्ट्स स्कूल राई , 
दयावती मोदी पब्लिक स्कूल मोदीनगर  में अध्यापन व प्रिंसिपल ।

प्रकाशन -
9पुस्तकें प्रकाशित 
2 ईबुक -अमेजोन ,किल्डल पर उपलब्ध 
 68 साझा संकलन 
                             
सम्मान :-

अखिल भारतीय कवयित्री सम्मेलन संस्था के दूसरे अधिवेशन बंगलौर में कर्नाटक के महामहिम श्री डी०,एन० तिवारी द्वारा सम्मानित 2006 ।
 कृषि औद्योगिक प्रदर्शनी में जनपद मुजफ्फरनगर के जिलाध्यक्ष द्वारा सम्मानित 
 उत्तर प्रदेश हिंदी साहित्य संस्थान लखनऊ द्वारा अज्ञेय पुस्कार 
 जनपद प्रशासन द्वारा *मलाला* सम्मान के लिये चयनित । 
  आगमन संस्था हापुड़ द्वारा विशिष्ट अतिथि सम्मान 
   नेहरू युवा केन्द्र द्वारा विशिष्ट अतिथि सम्मान 
अर्णव कलश द्वारा प्रदत्त सम्मान: -
  डॉ कमलेश भट्ट " कमल" सम्मान --,हाइकु 
  रामचरन गुप्त सम्मान -लघुकथा 
  मुंशी प्रेमचंद कहानीकार सम्मन -कहानी 
  श्रीमती महादेवी वर्मा सम्मान -संस्मरण 
  राहुल सांकृत्यायन सम्मान-   यात्रा वृतांत 
  जयशंकर प्रसाद सम्मान -एकांकी 
  काका हाथरसी सम्मान -व्यंग 
  प्रताप नारायण मिश्र सम्मान-निबन्ध 
  बलकृष्ण भट्ट सम्मान -,साक्षत्कार 
  गिरधर कविराय सम्मान-कुंडलिया 
  रोला शतकवीर सम्मान -रोला लेखन 
   मुक्तक शतकवीर कलम की सुगंध सम्मान -मुक्तक 
  मनहर शतकवीर कलम की सुगंध सम्मान -घनाक्षरी 
   श्रेठ हाइकुकार सम्मान -,हाइकु 
  स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू वार्षिक साहित्य सम्मान 
  मात्सुओ "बासो"कलम की सुगन्ध सम्मान -,हाइकु
   
अन्य संस्थाओं द्वारा प्रदत्त सम्मान:-

काव्य रंगोली हिंदी साहित्यिक पत्रिका द्वारा -- काव्य रंगोली दादी माँ सम्मान 
 अखिल भारतीय साहित्यिक कला मंच मुरादाबाद द्वारा - साहित्य श्री
 राष्ट्रीय कवि चैपाल द्वारा -*रामेश्वर दयाल दुबे* साहित्य सम्मान 
 जनचेतना साहित्यिक सांस्कृतिक समिति पीलीभीत द्वारा प्रदत्त - *वागेश्वरी -पुंज अलंकरणज़*  
 नव सृजन कला साहित्य एवं संस्कृति न्यास द्वारा - *नवसृजन हिंदी रत्न* सम्मान 
  के० बी०हिंदी साहित्य समिति द्वारा साहित्यकार सम्मान के अंतर्गत - *गौरा पन्त शिवानी स्मृति* सम्मान 
मधुशाला साहित्यक परिवार द्वारा - *साहित्य रत्न 2018सम्मान*
 शिवेत रक्षिति साहित्य मंच द्वारा- *सहित्य सृजक* 
  मधुशाला साहित्यिक परिवार द्वारा -- *काव्य दिग्गज अलंकरण* सम्मान 

अन्य गतिविधियां :-

अखिल भरतीय कविसम्मेलनों में काव्य पाठ 
1961 में दिल्ली आकशवाणी से ध्वन्यात्मक नाटको में ध्वनि प्रसारण 
नजीबाबाद आकाशवाणी केंद्र से कवितापाठ 19 65 
1969 व  2009 में रंगमंच अभिनय 
मंच पर शास्त्रीय गायन व कथक की प्रस्तुती 1968 से 2000 तक 

पैदल पर्वतीय भ्रमण : -

काठगोदाम से नैनीताल 
 नैनीताल से रानीखेत 
 रानीखेत से काठगोदाम 
चकरौता से व्यास शिला ,वापसी 35किलोमीटर 
चकरौता से मसूरी 90 किलोमीटर
कुल्लू से मनाली 
मनाली से रोहतांक पास 
रोहतांक पास से कुल्लू 


पता : -
948/ 3 योगेंद्र पुरी ,रामपुरम गेट
मुजफ्फरनगर -251001 उत्तर प्रदेश
1.दबंग  
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          सुनीला घर से जैसे ही दरवाजा बंद कर सड़क पर आई  बाईं ओर से आता एक साइकिल सवार उसके सामने आ उसकी साइकिल के कैरियर से बंधे कुछ पुराने जंग लगे सरिये , एंगिल , टूटे खुरपे , फूटे तवे और लोहे का अन्य सामान सुनीला को जांघ छूता हुआ निकल गया ।।वह अपनी मस्ती में था । सुनीला ने लपक कर उसका हाथ पकड़ा तो उसका हैंडिल डगमगा गया और वह  नीचे गिर पड़ा । सुनीला ने उसे उठाया और तड़ातड़ तड़ातड़ उसके गालों पर कई थप्पड़ जड़ दिए । उस कांड को देख भीड़ इकट्ठी हो गयी । वह जैसे तैसे सबकुछ छोड़ बीस पच्चीस कदम पर कॉलोनी के गेट की ओर भागा की भीड़ के एक आदमी ने पूछा -" क्या हुआ बहु जी " ?
" इसने मुझे टक्कर मारी  "
इतना सुनते ही भीड़ उसकी तरफ दौड़ी और पिल पड़ी । किसी तरह जान बचा कर सड़क पर आ सरपट भाग खड़ा हुआ । गेट की तरफ से आते हुए रेड़ेवाले को देख सुनला पचास कदम दूर लोहेवाले की दुकान दिखाते हुए बोली -
" भैया क्या यह बिखरा हुआ  लोहा उस दुकान तक पहुंचा दोगे "और जाते जाते सामने साइकिल पंक्चर के दुकानदार गफ्फार से बोली -
" गफ्फार भाई ! इसकी साइकिल उठा कर अपनी दुकान के सामने खड़ी कर ले । वापस आ कर इसका हिसाब भी देखूँगी "।
" क्यों नही बहु जी "-- कहते हुए लोहा समेट रेड़ें में रख कबाड़ी की दुकान की ओर चल दिया । पीछे पीछे सुनीला भी लम्बे डग भरती हुई दुकान पर पहुँच लोहा तुलवाया और पैसे ले कर दस रुपये रेड़ें वाले की ओर बढ़ा कर  चल दी । घर मे घुसने से पहले वह गफ्फार से बोली -
" क्या वह अपनी साइकिल ले गया "?
" नही ,यह खड़ी "।
" ठीक है तीन दिन तक देख लेना । अगर न आये तो इसे बेच लेना 1000₹ में । 500₹ तुम रख लेना "।कहा और अंदर चली गयी और गफ्फार मुस्कुराता रह गया ।। ****

2. नेग
     ***
        
         आज मिथलेश प्रसव पीड़ा में है । वह चौथी बार यह जंग लड़ रही है । पूरी उम्मीद है कि इस बार बेटा ही आएगा । घर के बाहर बैन्ड सूचना सुनने को तैयार खड़ा है । और आँगन में किन्नर बैठे हैं । अचानक बच्चे की रोने की आवाज आई तो सब अंदर दौड़ पड़े । लेकिन सबको पीछे धकेल सुमन किन्नर अंदर घुसा और बच्चे को डॉक्टर के हाथ से ले आँगन में नाचने लगा । उसके साथी ढोलक बजा बजा कर गीत गाने लगे । नाचने वाला किन्नर बच्चे को ले कर आधे घण्टे तक नाचता रहा । घर के बाहर बैंड बज रहा था अचानक बच्चे की दादी ने बढ़ कर किन्नर को पकड़ कर रोका और पूछा ।किन्नर ने बाँह झटकी और नाचते नाचते बोला --"  बच्चा है बच्चा । किन्नर नही है "" 
"अरे , यह तो बता कि लड़का है या लड़की ?""
 "खुश हो जाओ अम्मा । ढेर सारा नेग लूँगी । देवी आई है देवी तुम्हारे घर ।" कह कर जोर जोर से नाचने लगा ।
 " परे को गेर । हमें क्या करनी देवी । हमारे पास पहले ही तीन तीन देवियाँ है । ""
" पर घर मे तो यही नया मेहमान है । इसका तो नेग  मैं लेके ही जाऊँगी "।  
"तू इसे ही ले जा  नेग में । मुझे त दिखा भी मत " --कहा और दादी बाहर निकल गई । 
दरवाजे पर पहुँच बैंडवालो से बोली -" बन्द करो इसे और जाओ वापस । लौंडियों के होने में बैंड नही बजते "।बैंड बन्द हो गया तो मुखिया ने बढ़ कर कहा - "हमारा मेहनताना और समय की कीमत तो दो "" "कैसी कीमत ?  लौंडिया हुई है ,उसे ही ले जाओ"-कहा और दरवाजा बंद करके अंदर चली गयी । ****

3.ये कैसा  प्यार 
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       " इला  मुझे तुम मुक्त कर दो '" पेपर बढ़ाते हुए आलोक ने कहा 
 तो इला बोली " क्यों ?"
"क्योकि अब मेरी जिम्मेदारी यहाँ से अधिक कहीं और हैं " 
" ये जिम्मेदारी कब आयी तुम्हारे ऊपर ?" 
"जब तुम न्यूयॉर्क गयी थी "
 "लेकिन उस समय तो मैं तुम्हारे बीज को अपने भीतर छुपाये उसकी रक्षा कर रही थी जिसे तीन महीने बात तुम्हे सुरक्षित तुम्हारे हाथों में सौप दिया '".
" लेकिन उस समय मैं कहीं और बीज रोपण कर रहा था ।अब उसकी भी देखभाल करनी है ""
" ठीक है ।तुम अपने बीज को बड़ा करो ,फल में बदलो और उसके भविष्य की चिंता करो " 
 पेपर्स ले उन पर हस्ताक्षर कर आलोक के हाथ मे थमाती हुई बोली -
" तुमने भी क्या मांगा -मुक्ति ? जान भी मांगते तो उसे भी दे देते ।" 
"तो अब दे दो "
आलोक की बात सुन कर वह उसके चेहरे की तरफ पांच मिनट तक उसके चेहरे की तरफ देखती रही । फिर अचानक उसने खिड़की खोली और  नीचे कूद गई । सड़क पर उसका लहूलुहान शरीर पड़ा था जिसे लोगों की भीड़ घेरे खड़ी थी ।। ****

4. सिला 
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          पिछले दो महीने से बस का माहौल ऐसा हो चला था कि उसमें बैठ कर सफर करना विवाहित महिलाओं के लिए शर्मनाक था । लेकिन उसी बस में पूरे स्टाफ का आना विवशता थी । स्कूल शहर से 27 किलोमीटर दूर था कभी विवाहितों के चेहरे की रौनक पर ,कभी उम्र के बीच के पड़ाव में बरकरार शोखी व सज संवर कर रहने की चाह पर , कभी उनकी जीवन शैली पर ,कभी शरीर के कटावों पर तो कभी कुँआरियो के हुस्न ,अदाएं व पुरुष स्टाफ के प्रति रुझान की खूब चर्चाएं होती ,फब्तियां कसी जाती और स्कूल में मौका मिलते हो गुदगुदाती शैली में इजहार भी कर दिया जाता । मौका पाते ही अलका श्रीवास्तव ने मैनेजर के कमरे में घुसते ही कहा -
" आपकी बस का माहौल बिगड़ रहा है ।कृपया इसे सम्हलिए "
"क्या हुआ कुछ बताइये तो "
" सर , ये चांडाल चौकड़ी बहुत शोख और वल्गर होती जा रही है । बस में बैठी कुँआरी लड़कियों से आँखे सकते रहते है और वे ..... । हमसे तो देखा भी नही जाता "।
" क्या कम्प्यूटर वाला भी इन्ही में से एक है ?"
"  जी सर । वह तो पूरा भँवरा है "।
" ठीक है ,मैं देख लूँगा "।
अगले दिन मैनेजर ने अलका बुलाया और ऑफिस में दो घण्टे चार अध्यापक व दो ड्राइवर के सामने खूब खिंचाई की और अंत  नोटिस हाथ मे थमा कर हुआ जिसमें लिखा था -
" अलका जी ,आप स्कूल के लिए एक कलंक है । हमेशा किसी न किसी अफवाह फैलाने में सक्रिय रहती है ।भविष्य के लिए आपको हिदायत दी जाती है कि आप अपने काम से काम रखें और विद्यालय को अफवाहों से दूर रखें । आदेश न मानने पर आपको भविष्य में सेवाओ से मुक्त भी किया जा सकता है । कल से आपसे स्कूल की बस सुविधा वापस ली जाती है ।"                         
                                  स्कूल मैनेजर
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5.मायका     
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         पति की नौकरी छूटने के बाद सरोज को अपने दो बच्चों के साथ मायके में रहते डेढ़ साल हो चला था । मायके में वह सिर पर छत और पेट भरने के लिए रह रही थी ।छुट्टियों में जब उसकी बहनें अपने अपने बच्चों के साथ आती तो खाने के अतिरिक्त कुछ और भी खाने पीने की चीजें आती तो वह अक्सर अपने बच्चों को छत पर ले जा कर खेलने लगती  । 
             यह दूसरा समय था जब चारो बहनों के बच्चे एक साथ छुट्टियां बिता रहे थे । सब मिल कर बैठते और कभी चौपड़ तो कभी ताश खेलते और खाते पीते अपना समय बिताते । धीरे धीरे समय बीत गया और बच्चों के स्कूल खुलने का समय आ गया । बहने अपने अपने घर चली गयी और सरोज बच्चो को लिए वहीं रह गयी । 
         तीनो बहनों के जाने के बाद माँ अपना सन्दूक खोले एक घण्टे से कुछ ढूंढ रही थी की सरोज ने पूछ लिया -" क्या ढूंढ रही हो अम्मा ?"
" ढूंढ रही हूँ कुछ । तू मेरी चीजो को उलट- पुलट क्यो करती है ? चाहती क्या है तू ?" -अम्मा झुंझला कर बोली ।
" अम्मा चाबी तो तेरे ही पास रहती है । मैं कैसे उलट -पुलट करूँगी ?" -हैरान होते हए सरोज ने कहा ।
" बस चुप रह । मैं जानूँ तुझे । चालक लोमड़ी है तू ।दाँव देखती रहती है । खबरदार ! जो मेरी चीजो को हाथ लगाया "-अम्मा ने घुड़क कर कहा ।
सरोज रुआँसी हो गयी और ऊपर छत पर जा मुंडेर पर बैठ खूब मन की भड़ास निकाली । 
     बहनों के जाने के बाद लगभग एक हफ्ते बाद उससे छोटी बहन का पत्र आया जिसमे लिखा था -
" अम्मा सोनू तुम्हारा गोल बटुआ ले आयी है लेकिन वह खाली है । उसमें तुम्हारा कुछ था तो नही ?"
सरोज ने पढ़ते पढ़ते अम्मा की तरफ विवशता ,हैरानी ,जीत और आँखों मे सच्चाई लाते हुए  देखा तो अम्मा ने मुँह फेर लिया ।लेकिन सरोज की आँखे बरसने लगी । ****

6. दादी की ई -रिक्शा 
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     प्रतिमा दिल्ली स हरिद्वार की बस से उतर बाहर सड़क पर आ  रिक्शा की प्रतीक्षा करने लगी । बीस मिनट बाद प्रतिमा के सामने एक ई-रिक्शा आ कर रुकी तो जैसे ही वह उसकी तरफ लपकी कि ड्राइवर की सीट पर एक साठ बासठ साल की महिला को देख कर सहम गई । वह सम्हल कर बोली -
" अम्मा ,आप रिक्शा चलाती हो "
" हाँ , मैं रिक्शा क्यों नही चला सकती ? बोल ,तुझे कहाँ जाना है ?"
"गङ्गा कलोनी "
" तो पीछे से आ कर सीट पर बैठ जा । इधर यह बन्द है "।
प्रतिमा मुड़ी और पीछे गई तो हैरान थी । उसके पीछे एक बूढ़ी महिला की तस्वीर पेंटेड थी जिसके नीचे लिखा था --"दादी की ई रिक्शा "। वह उसे देख कर मुस्कराती हुई आयी और सीट पर बैठते हुए बोली -
" चलो दादी "
" दादी ? दादी  क्यों बोल रही है मुझे ?"
" आपकी रिक्शा के पीछे लिखा - दादी की ई-रिक्शा " इसलिए कह दिया "
दादी खिलखिला कर हँस पड़ी और रिक्शा स्टार्ट कर चल दी । 15 मिनट बाद वह गङ्गा कलोनी पहुंच गई । प्रतिमा रिक्शा से उतर अम्मा की तरफ पांच सौ का नोट बढ़ा कर बोली,-
 "छुट्टे नही हैं दादी "
" मेरे पास भी सारे पचास और सौ के ही नोट हैं ।छुट्टे मेरे पास भी नही हैं । तू अंदर से  ला कर देदे "
कहते हुए अम्मा ने पांच सौ का नोट उसे वापस कर दिया ।
" तो मैं ताऊ जी को भेजती हूँ वे देदेंगे आपको "
कहते हुए झपट कर अंदर चली गयी ।अंदर से एक लंबा चौड़ा अधेड़ उम्र का गंजा आदमी आया और बिना देखे वॉलेट से पचास का नोट बढाते हुए बोला -
" अरे तू पचास ही रख ले यार । इस बखत छुट्टे नही है । कहाँ से लाऊं तेरे लिए पैतीस रुपए "
" मुझे खैरात के पैसे नही चाहिए भाई । मेरा हक मुझे 
दे दे '"
जनानी आवाज सुनी तो जैसे ही उसके  मुँह की तरफ देखा तो आँखे फ़टी की फटी रह गयी । जैसे ही उनसे कुछ कहने के लिए मुँह खोल कि अम्मा ने पचास का नोट उसके मुँह पर फेंका और रिक्शा स्टार्ट करके उड़न छू हो गयी । गंजा खड़ा का खड़ा देखता रह गया ।। ****

7.  लॉक डाउन 
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         मुंबई के गोरेगाँववेस्ट की एक पच्च्चीस मंजिल को सील कर दिया गया क्योंकि उसमें ऊपर की तीन मंजिलों पर रह रहे तीन कोरोना संक्रमितो को क्वारन्टीन किया गया था । नीचे पुलिस तैनात थी । लिफ्ट बन्द कर दी गयी थी ।   इमारत की दूसरी मंजिल से एक पन्द्रह ,सोलह साल के उम्र की लड़क सीढ़ियों से उतरी और बगल वाले बाजार से सेनेटरी पैड  का पैकेट ले कर वापस आयी तो जैसे ही  वह सीढ़ियों पर चढ़ी की  खटाक खटाक खटाक तीन डंडे उसकी  टांगो पर पड़े और वह लड़खड़ा कर सीढ़ियों से लुढ़कती नीचे आ गिरी लेकिन उसकी गर्दन में सीढ़ियों की  टूटी रेलिंग का सरिया आर पार हो गया । खून की धार फूट निकली और उसका शरीर निर्जीव हो गया । पुलिस के दोनों आदमियो में से एक सीढ़ियों में ऊपर चढ़ गया और दूसरा टॉयलेट में घुस गया । पन्द्रह मिनट में वापस आया तो ऊपर गए अपने साथी  को आवाज देते हुए बोला -
" राम प्रकाश भाई , समान दे दिया क्या ?"
"हाँ ,भाई दे दिया ।आ रहा हूँ ।"
" भाई जल्दी आ "
बाबूराम ने हेडऑफिस को फोन लगाया और दस मिनट में पूरी फोर्स वहाँ जमा थी ।  देखते ही  एस. एस. पी.ने छूटते ही पूछ -
" तुम लोग कहाँ थे ?"
"सर रामप्रकाश ऊपर चौथी मंजिल पर 110 में समान देने गया था और मैं टॉयलेट । आ कर देखा तो यह सब था "
दुर्घटना विशेषज्ञों ने लड़की को जैसे तैसे करके वहाँ से उठा खुले में लेटाया और बाबूराम कहा -
" पता करो किस मंजिल के किस घर की बच्ची है ? पहली मंजिल से शुरू करो "
दोनों पुलिस कर्मी जीजान से ढूढ़ने में जुट गए । आधे घण्टे में ही जब बाबूराम ने दूसरी मंजिल पर जा कर 88 दरवाजे को खटखटा कर पूछताछ की तो पता चला कि 96 न.फ्लेट से एक लड़कीनीचे गयी थी । 
96 न. पर खटखटा कर उन्हें दुर्घटना के विषय मे सूचित किया और नीचे आ कर एस. एस. पी. को भी सूचित किया । 
      उसके बाद रोने धोने के बीच सभी आवश्यक कार्यवाही की गई और लाश को पोस्टमार्टम के लिए साथ ले कर चले गए ।****

8. कुम्हारी कुम्हार लड़े ,गधे के कान यूँ ही इठे  
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           कल्याणपुरी के गेट पर रमजान के दौरान लॉक डाउन में फल बेचनेवालों की भीड़ इसलिए लग जाती थी क्योंकि वहाँ दो कॉलोनी आमने-सामने है और सम्पन्न लोग रहते है  । गेट के बाहर सड़क के दोनों ओर पेड़ो की छाया रहती है । अतः धंधा सकूँन से हो जाता है। गेट के अंदर पांच सात कदम पर ही जमशेद सब्जीवाले की दुकान है जिसके सामने वह ठेले में फल लगा कर बेच लेता है । गेट के बाहर गेट के पास पहले पेड़ के नीचे जफर अपना ठेला लगता है । लॉक डाउन के दौरान जफर ने गेट के अंदर अपना ठेला  ला कर खड़ा कर दिया । दो दिन तो खूब दोस्ती रही लेकिन तीसरे दिन जमशेद ने अपना ठेला गेट के बाहर गेट की दाहिने पक्खे से  सटा  कर खड़ा कर दिया और जफर ने पहले पेड़ के नीचे थोड़ा गेट के और पास खड़ा कर दिया । जमशेद फल बाजार से दुगुने दामों पर बेचता है लेकिन जफर कमी बेसी करके अपना सामान बेच लेता ।  इसलिए सारे जोड़ जुगत के साथ भी जमशेद की दुकानदारी अपेक्षाकृत  कम रहती है । इसलिए वह हर समय झल्लाया रहता है । गेट पर जफर का धंधा जोरो पर है और जमशेद के पास दो दो आदमी होते हुए भी मंदा पड़ा है । 
        एक ग्राहक ने पहले पपीते के दाम जमशेद से पूछे और फिर जफर से । दामों अंतर था अतः उसने जफर से पपीता खरीद कर चला गया । उसके जाते ही जमशेद और जफर में खूब तू तू मैं मैं हुई ।जफर अपना ठेला ले कर चला गया । लेकिन जब अगले दिन वह पेड़ के नीचे आ कर खड़ा हुआ तो पेड़ नीचे से चार इंच छोड़ कर कटा हुआ मिला । दूसरे दुकानदारों ने मिल कर पेड़ को कटान की विपरीत दिशा में खींच कर पुराने टेलीफोन के केबिल से पास खड़े खम्बे से बांध दिया । उसकी  कटी हुई जगह में गोबर भर दिया और पॉलीथिन बाँध दी । लेकिन जब वह अगले दिन आया तो वह केबिल भी कटा मिला ।
लोगो ने फिर बांधा और फिर कटा मिला । चौथे दिन आंधी आयी पेड़ को धराशायी कर गयी । अब जमशेद गेट के बीच मे खड़ा हो कर जफर की तरफ देख कर मुस्करा रहा था ।  लेकिन उसका धंधा जस का तस था ।।****

9. पहली बार 
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               मुन्नी अपने बारह साल पूरे कर किशोरावस्था में प्रवेश कर चुकी थी । धीरे धीरे माँ उसे सबकुछ सीखा रही थी । आज घर मे नमक खत्म हो गया था तो माँ ने उसे नमक लेने बाजार भेज दिया । जब वह वापस आ रही थी तो उसे लगा कि उसकी टाँगों में घुटने से ऊपर कुछ गीलापन महसूस हो रहा है । फिर भी वह चलती रही । जल्द ही वह गीलापन एड़ी तक पहुँच गया । झुक कर देखा तो खून था जिससे उसका फ्रॉक और चप्पल दोनों खराब दिखने लगे थे । वह घबरा कर पेड़ के नीचे खड़े  एक स्कूटर की गद्दी पर बैठ गयी और रोने लगी । थोड़ी देर बाद एक किन्नर आया और उससे गद्दी से उठने को कहा । पर वह नही उठी । किन्नर ने पास आ कर बगल में हाथ दे जैसे ही उसे उठाया तो उसकी फ्रॉक देख कर हैरान हो गया । उसने उसे वही बैठे रहने के लिए कहा और स्वयं के वापस आने तक रुकने के लिए कह कहीं चला गया । थोड़ी ही देर में एक लड़की हाथ मे एक पैकेट ले आई और उसे सामने की दुकान के बाथरूम में ले गयी ।सब प्रबंध कर वापस आयी तो किन्नर उसकी प्रतीक्षा कर रहा था ।  उसने मुन्नी को स्कूटर के पीछे बैठने को कहा और उसे उसके घर छोड़ आया । ****

10.ट्रेनिगं 
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          आज सुबह उठते ही जैसे ही चाय का कप मुँह से लगाया कि दरवाजे की घण्टी बज उठी । लपक कर जैसे ही दरवाजा खोला कि बहू रानी के रिश्तेदार समाने खड़े बहू रानी के  मामा के निधन की सूचना दे रहे थे । अंदर आने को कहा तो मना कर उल्टे पाँव लौट गए । चाय का घूँट गले मे ही अटका रह गया। जल्दी से  कपडे  बदले और मामा के घर रवाना हो गए । पहुँचने में दो घण्टे लगे ।।दरवाजे मे  पैर रखते ही बहू रानी माँ से लिपट जोर जोर से रोने लगी । पांच मिनट तक यह रोना धोना चलता रहा । पास में खड़ी साँस मुँह ताक रही थी कि अचानक खुसपुसाहट सुनाई  पड़ी । बहू की माता जी कान में कह रही थी -
" मुझसे नही अपनी मामी से लिपट कर जोर जोर से रो "
अब बहू रानी आँख मलती मामी के पास पहुँची और मामी को बाहों में भर कर दहाड़ मार मार रोने लगी । बहू की माता जी वहाँ पहुँची और उनके सिर पकड़ कर दूसरे कंधों पर रखते समय धीरे से कान में खुसपुसाई -
" तेरी मामी की बहन और भाभी भी आई हुई है ,उनसे भी मिल कर ऐसे ही रो ले "
अब बहू रानी कभी बहन से तो कभी भाभी से लिपट लिपट रोने लगी । बहू रानी की सास सभी कौतुक देख देख कभी हैरान  हो रही थी तो कभी परेशान । अचानक बहू रानी की माता जी फिर प्रकट हुई और सिर पर पल्लू ढकते हुए बहू रानी की बगल में खड़ी हो खुसपुसा रही थी -
" अपनी सास को कह  कि  मामी से लिपट कर ऊँचे सुर में रोये "
अब बहू रानी सम्हली और सिर पर पल्लू रख सास  के पास गई और बोली -
" चलो आपको मामी से मिलवा दूँ "
सास आज्ञाकारी बच्चे की तरह पीछे पीछे हो ली । जैसे ही सास ने आगे को पैर बढ़ाया कि मामी अपनी जगह से उठ सास को लिपट किलकारी मार कर रोने लगी । लेकिन सासू जी की आवाज तो सुनाई  ही नही दे रही थी । दोनों को लिपटे लगभग आठ मिनट हो चले थे । सासू जी असहज हो उठी थी । अतः उन्होंने स्वयं को अलग करके कंधे पर हाथ रख कर बोली -
", सबर करो बहन जी । भगवान के समक्ष किसी की चलती है । एक न एक दिन सभी को जाना है  कोई आगे तो कोई पीछे "
बहू रानी की माता जी की आँखे वही गड़ी थी ।अतः वह लपक आई और बहू रानी के पीछे खड़ी हो खुसपुसाने लगी -
" अपनी सास को यहाँ ला कर बिठा दे । यह तो उपदेश देने लगी "
बहू रानी चुपके से आई और सास का हाथ पकड़ कर बोली -
" अब ऐसे समय मे भी इंसान नही रोवेगा तो कब रोवेगा ? आप यहाँ आओ "
सास बहू रानी के पीछे पीछे चल दी ! ****
                       
11.गवाँर 
     *****
                        
          त्रिलोकी की नई नई शादी हुई है ।आज वह कामिनी को पग फेरे के लिये ले ससुराल  जा रहा है। त्रिलोकी ने काली पेंट के साथ सफेद और सुरमई रंग की धारियों वाली कमीज पहनी है ।उस पर काले रंग की टाई  लगा रखी है । कामिनी ने गहरे नीले रंग की जीन्स और क्रीम रंग की  टी शर्ट पहनी है और पैरों में छह इंच की हील्स । जेवर के नाम पर एक पतली सी अंगूठी और दूसरे हाथ मे एक घड़ी पहनी थी । जैसे ही त्रिलोकी ने घर के बाहर कदम रख सड़क पर आ कर दो चार कदम चला तो कामिनी ने लपक कर उसका हाथ पकड़ उंगलियों में उंगली फसाते हुए बोली --
" इतने अलग अलग क्यो चल रहे हो ? मैं तुम्हे पसन्द नही क्या ?"
उसकी बात सुन कर त्रिलोकी सकपका गया । हाथ छुड़ाते हुए बोला -
" यह सड़क है । इस पर हर तरह के लोग चलते है । प्यार करने और चिपटने के लिए घर छोटा नही है । यहाँ  तुम तमीज से चलो मेरे साथ "
इतना सुनते ही कामिनी तमक कर हाथ छुड़ा बोली -
" पूरे गवाँर हो । तुम क्या जानो प्यार करना "
और दूरी बढ़ा कर चलने लगी । त्रिलोकी जेब मे हाथ डाल आगे बढ़ा जा रहा था । कामिनी कितनी पीछे छूट गयी ,इसका उसे  ध्यान ही नही रह । उसका ध्यान तब टूटा जब कामिनी के चीखने की आवाज आई । पलट कर देखा तो लगभग बीस गज की दूरी पर चार आदमी कामिनी को घेरे खड़े थे जिन पर मर्दोवली गलियाई भाषा मे चिल्ला रही थी । त्रिलोकी  पलटा और लपक कर उसके पास पहुँचा और उसका हाथ पकड़ कर कुछ कहनेवाला ही था कि कामिनी  बिजली मि तरहअपना हाथ छुड़ा कर बोली .
" अब क्यो आया है मेरे पास ? अब क्यो पकड़ रखा है है मेरा हाथ ? तब तो बड़ी शर्म आ रही थी ।अब नही आ रही । जब तेरी बीवी को चार गुंडों ने घेर रखा है  तो मर्दानगी दिखा रहा है ।"
बीवी शब्द सुनते ही खड़े लोगो मे से एक नए हाथ जोड़ कर कहा -
" हमे माफ कर दो" और मुड़ कर अपने रस्ते वापस चल दिये । 
 अब त्रिलोकी ने  संयत हो कर कहा -
" देखा ,यह होता है पति का प्रभाव । बीवी का ढक्कन जिसे खोलना हर किसी के वश में नही । जैसे ही तुमने स्वयं को मेरी बीवी कहा ,वे अपने रास्ते हो लिये ।अगर मैं भी तुम्हारे साथ आशिकाना हरकत करता चलता तो हमे कोई पति पत्नी नही कहता ,न समझता । आज मेरे इस गंवारपन ने तुम्हे किसी बड़ी गन्दी स्थिति से  बचा लिया । अब आगे बढ़ो । बस का समय हो रहा है " 
उसका  हाथ पकड़ चलने लगा और कामिनी सिर झुकाए पीछे पीछे चल रही थी । ****
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क्रमांक - 14
जन्म:- 5 फरवरी, 1953 (बसन्त पंचमी), बीकानेर 
माता-पिता:- स्व. श्रीमती रूकमा देवी , स्व. श्री राणालाल 
शिक्षा:- एम. ए. (राजस्थानी भाषा), बी. एड.

व्यवसाय:-
"निरामय जीवन’’ एवं ’’केन्द भारती’’ मासिक पत्रिका जोधपुर के प्रकाशन विभाग कार्यालय में निःशुल्क कार्यरत, रिटायर्ड वरिष्ठ अध्यापिका 

जुड़ाव:- 
महिलाओं की साहित्यिक संस्था ’’सम्भावना’’ की सचिव, ’’खुसदिलान-ए-जोधपुर’’, ’‘नवोदय सबरंग साहित्यकार परिषद’’, ’‘लॅायंस क्लब जोधपुर’’ की सक्रिय सदस्य । 

प्रकाशन:- 
1’‘सौगन‘’, 2 ’’ऐड़ौ क्यूं ?’’ (दो राजस्थानी उपन्यास), एक हिन्दी कविता संग्रह ’’कब आया बसंत’’ । 
राजस्थानी कहानी संग्रह ’‘नुवाै सूरज‘’ ।
 एक राजस्थानी कविता संग्रह-’‘जोवूं एक विस्वास’’
हिन्दी व्यंग्य संग्रह ’नाक का सवाल’, ( अंग्रेजी में अनुवाद भी )
हिन्दी काव्य संग्रह ’’नन्हे अहसास’’ प्रकाशित । दो बाल साहित्य की पुस्तकें-राजस्थानी में एक-‘‘खुश परी’’ कहानी संग्रह एवं एक कविता संग्रह, हिन्दी उपन्यास ’प्यार की तलाश में प्यार’ 

पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन : -
        राजस्थानी और हिन्दी की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, लेख, लघुकथा, संस्मरण, पुस्तक 
समीक्षा आदि का लगातार प्रकाशन । 

आकाशवाणी/ दूरदर्शन : -
        आकाशवाणी जोधपुर, जयपुर दूरदर्शन से वार्ता, कहानी, कविता आदि का प्रसारण ।     
 राजस्थानी भाषा के ’’आखर’’ कार्य क्रम में भागीदारी (जयपुर) 

विशेषः-
राजस्थानी भाषा की पहली महिला उपन्यासकार । 
 यू ट्यूब पर ’’मैं बसंत’’ नाम से चेनल 

पुरस्कार और सम्मान:
1. ‘राजस्थानी भाषा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी बीकानेर’ से ’’सौगन‘’, राजस्थानी उपन्यास पर 
’‘सावर दैया पैली पोथी पुरस्कार’’ -1998 
2. पूर्वोत्तर हिन्दी अकादमी, शिलांग मेघालय की तरफ से ’‘डा. महाराजा कृष्ण जैन स्मृति सम्मान
’’-2011 
3. तमिलनाडु हिन्दी साहित्य अकादमी चैन्नई और तमिलनाडु बहुभाषी लेखिका संघ चैन्नई की तरफ से 
‘‘साहित्यसेवी सम्मान’’-2011 
4. ’आकाश गंगा चेरीटेबल ट्ष्ट’ लूणकरणसर, बीकानेर से सम्मान-2011 
 5.’‘नवोदय सबरंग साहित्यकार परिषद’’ जोधपुर से ’‘बेस्ट स्टोरी राइटर’’ सम्मान -2011 
 6. ’‘जगमग दीपज्योति ‘मासिक पत्रिका अलवर की तरफ से ’’श्रीमती नवनीत गांधी स्मृति’’ 
 सम्मान-2013 
 7. बैंक नगर राजभाषा कार्यान्वयन समिति, जोधपुर से अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर आयोज्य कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2014 
 8. ’मरूगुलशन’ त्रैमासिक पत्रिका के 75 वें अंक के लोकार्पण समारोह में सम्मान-2014 
 9. लाॅयनेस क्लब जोधपुर द्वारा कवयित्री सम्मेलन में सम्मान-2015 
 10. ‘सर्जनात्मक संतुष्टी संस्थान ’द्वारा प्रो. प्रेम शंकर श्रीवास्तव स्मृति पर आयोज्य कार्य क्रम में मरूगुलश में प्रकाशित ’’नारी संवेदना’’ रचना पर ’’गुणवंती सम्मान’’-2015 
 11. न्यू ऋतभरा साहित्य मंच कुम्हारी, जिला दुर्ग -छ. ग. द्वारा न्यू ऋतंभरा मुंशी प्रेमचंद एवं साहित्य 
 अलंकरण-2015 
 12. महिमा प्रकाशन -छ.ग. द्वारा ’’त्रिवेणी साहित्य सम्मान’’-2015 
 13. ‘डाॅ.नृसिंह राजपुरोहित राजस्थानी साहित्य प्र तिभा पुरस्कार’’-2016 
 14. बृजलोक साहित्य-कला-संस्कृति अकादमी, फतेहाबाद (आगरा) उ. प्र. द्वारा ’‘श्रेष्ठ साहित्य साधिका सम्मान-2017 
 15. ’’वीर दुर्गा दास राठौड सम्मान’’ (रजत पदक )-2017 
 16. ’’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता अजमेर)-2017 
 17. ’’दिव्यतूलिका साहित्यायन’’ सम्मान-2017 (ग्वालियर, मध्य प्रदेष) 
 18. ’’शब्द निष्ठा सम्मान’’ (अखिल भारतीय व्यंग्य प्रतियोगिता अजमेर)-2018 
 19. ’’महादेवी वर्मा सम्मान’’(साहित्य कला एवं संस्कृति संस्थान, हल्दीघाटी नाथद्वारा)-2018 
 20. ’’पत्र लेखन सम्मान’’(डाॅ. सूरज सिंह नेगी, सनातन प्रकाशन, जयपुर)-2019
 21. साहित्य क्षेत्र में सतत् सराहनीय योगदान हेत कुं ’’मधेशवाद के प्रणेता गजेन्द्ररायण सिंह सम्मान’’ 
 (नेपाल भारत मैत्री वीरांगना फाउंडेशन, काठमांडौ रौतहट, नेपाल)-2019 
 22. ’’मत प्रेरणा सम्मान’’-2019 (निखिल पब्लिशर्स, आगरा, उत्तर प्रदेश) 
 23. राष्ट्रभाषा हिन्दी प्रचार समिति श्रीडूंगरगढ़  (बीकानेर) द्वारा ’’पं.मुखराम सिखवाल स्मृति राजस्थानी साहित्य सृजन पुरस्कार’’ (14 सितम्बर 2019) 
 24. स्टोरी मिरर द्वारा ’’लिटरेरी केप्टिन’’ सम्मान-2019 
 25. ’’अखिल भारतीय माॅ की पाती बेटी के नाम’’ प्रतियोगिता-2019, सम्मान (जिला प्रसाशन एवं महिला अधिकारिता, बून्दी द्वारा) 
 26. अखिल हिन्दी साहित्य सभा (अहिसास) नासिक (महाराष्ट्र) द्वारा पुस्तक-’’नाक का सवाल’’ पर ’’साहित्य श्री’’ सम्मान-2019 
 27. ’’क्ररान्तिधरा अन्तर्राष्ट्रीय  साहित्य साधक सम्मान’’ (क्रान्तिधरा मेरठ, साहित्यिक महाकुंभ  -2019 में ) 
 28. ’’आध्यात्मिक काव्यभूषण’’ की मानद उपाधि (भारतीय संस्कृति एवं भाषा प्रचार परिषद करनाल 
(हरियाणा) तथा कलमपुत्र काव्य कला मंच मेरठ उ. प्र. (भारत) द्वारा हरिद्वार (उत्तराखण्ड) में आयोजित 
कार्य क्रम में । 
 29. ’’अग्निशिखा गौरव रत्न’’ सम्मान (साहित्य एवं सामाजिक क्षेत्र में अमूल्य योगदान के लिए, अखिल 
भारतीय अग्निशिखा मंच मुम्बई द्वारा ) - 2019 
 30. ’’मैना देवी पाण्डया स्मृति राजस्थानी लेखिका पुरस्कार-2019 (नेम प्रकाशन, नागौर, डेह) -
 31. "चौपाल साहित्य रत्न सम्मान "- दौसा ( राजस्थान )-2020
 32. " नव सृजन कला प्रवीर्ण अवार्ड " छत्रपति प्रशिक्षण संस्थान, कानपुर  ( उ. प्र. ) द्वारा-2020
 33. "शब्द तरंग सम्मान " वसई ( महाराष्ट्र )  2020
 34. " शब्द निष्ठा ( श्रेष्ठ समीक्षक )सम्मान "-2020
 35. "मनांजली साहित्य सम्मान "- चंडीगढ़  2020
 36. जैमिनी अकादमी पानीपत ( हरियाणा ) अटल रत्न, कोरोना योद्धा, तिरंगा, शिक्षक उत्थान, गोस्वामी तुलसीदास, 101 साहित्यकार,विवेकानंद, भारत गौरव, सम्मान-2020-21
 37. " विशिष्ट साहित्यकार सम्मान " - अदबी उड़ान साहित्यिक संस्था द्वारा 2021
 38. "भामाशाह सम्मान " लायन्स क्लब इंटरनेशनल-2021
39.  " लोक साहित्य रत्न सम्मान " इंदौर - मध्यप्रदेश
40.  " हिन्दी साहित्य मनीषी " मानद उपाधि- साहित्य मंडल नाथद्वारा  से-2021
 
 पता : -
 ’विष्णु’, 90, महावीरपुरम,  चैपासनी फनवर्ल्ड पीछे,
 जोधपुर -342008 राजस्थान
 1.पालक 
    *****
       
       दो लड़के हम उम्र थे, यही कोई बारह-तेरह वर्ष के रहे होंगे। वे सुबह अंधेरे- अंधेरे दो घंटे के किराये की साइकिल लाते और घर-घर अखबार पहुंचाते। नौ बजे तक वे सब्जी बेचने चले आते। दस बजे तक वे सब्जी बेचते उसके बाद वे शाम को सब्जी बेचते दिखाई देते। इस बीच शायद वे किसी के यहां काम पर जाते होंगे।
पालक वे बहुत ही ताजा लाते इसलिए हाथोंहाथ बिक जाता। बच्चे बड़े प्यारे और हंसमुख थे। एक दिन हमने उन्हें बातों ही बातों में हंसते-हंसते पूछ लिया-
" बेटा, तुम्हारे पालक कहां है ?"
उनमें से एक ने बड़ी मासूमियत से जो जवाब दिया वो भीतर तक मन को छू गया। उसने कहा-
"आंटी, पालक होते तो हम पालक क्यों बेचते ?" ****   

2.चीरहरण 
    *******

        धनसुखी देवी ने अपने बेटे का विवाह खूब दान-दहेज लेकर धूमधाम से किया । आज के रिसेप्शन भोज में एक बड़ा सा बेग उसके हाथ में था जो उनके नाम के अनुरूप धनसुख में वृद्धि होने के कारण भरता जा रहा था । देने वाले उसे घेरकर खड़े थे । पति महोदय सीधे - साधे थे अतः वे उसके पास खड़े खींसे निपोर रहे थे।
        धनसुखी की एक सखी भीड़ छंटने के इंतज़ार में एक ओर खड़ी थी ताकि बथाई के साथ वह भी सगुन का लिफाफा दे सके । अचानक धनसुखी की नज़र उस पर पड़ी तो--
" अरे ! द्रोपदी तुम, इतनी दूर क्यों खड़ी हो, आओ.. आओ.. पर मैं कहे देती हूं पांच सौ से ज्यादा किसी से भी नहीं लिया है तो तुमसे भी नहीं लूंगी।"
" अरे नहीं धनसुखी, बस सगुनरूपी है । " ये कहते हुए उसने अपना लिफाफा उसे थमा दिया, जिसे धनसुखी ने सबके सामने खोल डाला और जल्दी से उसमें रखा सौ का नोट निकाल कर सबके सामने लहरा दिया और बोली--
" हां हां सौ तो चलेंगे पर मैं पांच सौ से ज्यादा तो हरगिज़ नहीं लेती ।"
वह द्रोपदी, महाभारत की द्रोपदी तो नहीं थी पर वह निर्वस्त्र हो गई उसका चीरहरण हो गया था। ****
              
3. होली के रंग 
    **********

 "अरे यह क्या कर दिया 15000 रुपयों की नई साड़ी पर रंग डाल दिया, थोड़ी तो शर्म करो पर तुम निठल्ले क्या शर्म करोगे, 200 रुपयों की साड़ी लाने की तो औकात ही नहीं है तुम्हारी..........।" 
 पार्वती देवी अपने इकलौते घर जमाई पर त्योरियां चढ़ाकर अनाप-शनाप बोलते जा रही थी ।
         कविता और रवि एक दूसरे को देख रहे थे । भरी-भरी आंखें लिए कविता अपने कमरे में चली गई और रवि..........रवि ससुराल की देहरी से बाहर निकल गया ।
         आज होली है, उस होली को बीते 10 वर्ष हो चुके थे । कविता का जीवन रंगहीन हो गया था । उसकी मां अपनी बेटी की हालत देखकर बहुत पछता रही थी मगर रवि जो गया तो लौट कर नहीं आया । बहुत तलाशा मगर नहीं मिला ।
         कविता ने रवि की भाव भरी कविताएं सुनकर उससे, अपने माता-पिता की इच्छा के विरुद्ध शादी कर ली थी । इकलौती संतान होने के कारण रवि को घर जमाई बनना पड़ा ।
         होली तो एक बार जलकर राख हो जाती है मगर कविता हर पल जलती रही है ।
         आज फिर होली है । अचानक बाहर से किसी ने बेल बजाई बाहर जाकर देखा तो एक भारी-भरकम कार्टून लिए कुरियर वाला खड़ा था ।
         आश्चर्य के साथ हस्ताक्षर कर उसने उस कार्टून को लिया खुलते ही आश्चर्य मिश्रित खुशी से वह उछल पड़ी । मां ........मां......... देखो रवि......। हां, उसमें साड़ियां थीं जो कोई भी 25000 से कम की ना थी, साथ में एक पत्र भी जिसमें बस इतना ही लिखा था- 
 'जो सबसे ज्यादा पसंद आई हो, वह साड़ी पहन कर तैयार रहो ।'
          कुछ ही देर में एक चमचमाती गाड़ी आकार रुकी,  रवि उतरा........उसके सर्वेंट नें रंगों से भरी बोतलें निकाली । रवि ने देखा कि कविता दौड़ती हुई आ रही है और उसके पीछे, उसके माता-पिता भी.........। उसने एक के बाद एक, सभी रंगों से कविता को रंग दिया ।
          25000 की साड़ी खराब हो चुकी थी ।  *****                                              
4. संक्रमण 
    *******
             
         बसु ने सोचा-अभी हमें दूर-दूर रह कर कोरना को हराना है तो क्यों ना हम मानसिक निकटता बना लें........ इससे संक्रमित हो जाएं । ऐसा करने से दिलों की दूरियां कम हो जाएंगी....... .आपसी सद्भाव............ सौहार्द........स्नेह अधिक से अधिक फैलेगा जिससे हमारे जीवन का एकाकीपन.........तनाव........ परायापन........ तेरे मेरे की भावनाएं.......... ईर्ष्या-द्वेष............ क्रोध कामनाएं आदि सभी दूर हो जाएंगी........धरती पर स्वर्ग उतर आएगा । 
         मगर बसु की कोशिश नाकाम रही, मानसिक निकटता का संक्रमण नहीं फैला । ****

5. तुच्छ
    ****
         
        मानव ने चलते-चलते  रेत को ठोकर मारी तो वह उड़ कर उसके सिर पर चढ़ गई । मानव तिलमिला उठा और बोला- 
"तेरी इतनी औकात कि..........।" 
"क्या तुम अपना अपमान सहन कर सकते हो ?"
"नहीं, हरगिज़ नहीं  ।" 
"तो फिर मैं क्यों करूं ? माना कि मैं रेत हूं जिसे तुम तुच्छ समझते हो मगर तुम्हारा पालन-पोषण मैं ही करती हूं और अंत में भी तुम्हें मेरी ही गोद मिलती है । मेरा भी कोई स्वाभिमान है । तुम मेरा अपमान करोगे तो मैं भी खामोश नहीं रहूंगी और कुछ नहीं तो उड़ कर तुम्हारे सिर पर तो चढ़ ही जाऊंगी ।"
        रेत की बात सुनकर अब मानव अपने आप को तुच्छ समझने लगा, उसकी सारी हेकड़ी जाती रही ।   ****
                  
6. शर्म नहीं आती
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             एक खाद्य इंस्पेक्टर ने फल मंडी का निरीक्षण करने का सोचा, वे हाथ में डंडा ले, बड़ी- बड़ी मूछों को ताव दे, मंडी पहुंचे । 
             गर्मी का मौसम था, आम खरबूजे खूब आ रहे थे । वे एक ठेले के पास रुके, जहां एक सीधा- साधा आदमी कुछ आम खरबूजे बेच रहा था, उसे देख वह बोले-
 "तुम अपने स्वार्थ के कारण सड़े-गले बेचकर बीमारी फैला रहे हो शर्म नहीं आती तुम्हें ? 
 " मगर साहब, इनमें से तो कोई सड़ा-गला नहीं है  ।" 
 " दिखता नहीं, सभी में कुछ न कुछ ...... ।" 
 " पर साहब, ये तो ऊपर से ......।" 
 "क्या कहा ? मुझसे जबान लड़ाता है, अभी देखता हूं तुझे ।" यह कहकर जोर से डंडा फटकारा ।
 "नहीं साहब गलती हो गई माफ करना, आप कहते हैं तो सभी  फेंक कर आता हूं ।" 
 "यहां  फेंकेगा ? पर्यावरण खराब करेगा ? तू ऐसा कर, सभी मेरी गाड़ी में रख दे, मैं यहां से बहुत दूर गड्ढा खुदवा कर डलवा दूंगा ।"
           शाम के वक्त खाद्य इंस्पेक्टर जी के घर पर उन सड़े-गले आम खरबूजा की जोरदार पार्टी चल रही थी । ****
                            
7. शिकारी 
    ******

              पिता का खांस-खांसकर बुरा हाल हो गया, भी दवाई खत्म हो गई, अब.......अब क्या करूं ? वह सोच-सोच कर परेशान हो रही थी । ऐसे तो रात कैसे कटेगी । फिर घर में दो ही तो थे । लोगों के घरों में काम करके वह दाल रोटी और अपने बीमार पिता की दवाई का जुगाड़ करती थी । 
             अंधेरा घिर आया था मगर वह निकल पड़ी दवाई लेने । आशंकाओं से घिरी हुई चल रही थी कि उसे लगा कुछ कदम उसका पीछा कर रहे हैं, उसे पीछे वालों की फब्तियां भी सुनाई पड़ रही थी । अब क्या होगा ? शिकारी पीछे बहुत करीब .........एकाएक उसके दिमाग में कुछ आया और वह तुरंत पीछे मुड़ी, वे तीन थे जो धीरे-धीरे उसकी ओर बढ़ रहे थे, वे उसे सामने देख कर रुक गए । वह लड़की बोली-
"तुम सब इतनी तकलीफ क्यों करते हो, मैं ही तुम्हारे पास आ जाती हूं ।"
           उसके इतना बोलने पर एक बारगी तो वे सकपका गये । लड़की आगे बोली-
 "और तो कोई बात नहीं, बस मैं कोरोना पॉजिटिव हूं पर कोई बात नहीं, फर्क तो तुम्हें ही पड़ेगा ना ।"
          उसने यह कह कर अपने कदम उनकी ओर आगे बढ़ाएं मगर यह क्या ? वे तीनों तो नौ दो ग्यारह हो गए.........। 
          लड़की ने आसमान की ओर देखा, हाथ जोड़े और अपनी राह चल दी । ****
                             
 8. सेवा   
     ****

"ठीक है मां, मैं चलता हूं आप अपना ध्यान रखना कल मुंबई पहुंच जाऊंगा और परसों वापस तुम्हारी बहू और बच्चों को लेकर रवाना हो जाऊंगा ।"
         रमेश जो मुंबई की एक कंपनी में काम करता था और परिवार के साथ वहीं रहता था । मां की तबीयत ठीक ना होने के कारण वह उन्हें लेने आया था मगर मां की वहां चलने की इच्छा नहीं हो रही थी तो उसने यह फैसला किया कि पत्नी और बच्चों को कुछ समय के लिए यहां छोड़ देगा मगर लॉक डाउन हो गया, सभी सेवाएं बंद हो गई । 
         अब........अब क्या होगा क्योंकि वह अपनी मां का इकलौता बेटा था पिता थे नहीं । मां पैतृक घर में ही रहती थीं लेकिन उन्हें बीपी, शुगर, हार्ट आदि कई बीमारियों ने घेर रखा था । 
         उसने अपने मित्रों, रिश्तेदारों से बात की, सभी ने अपनी असमर्थता जता दी ।
          दिन में कई बार वीडियो कॉल से बात करता । पड़ोस में समीम चाची रहती थी मगर खानपान की विवशता के चलते, ज्यादा आना जाना नहीं था । एक दिन उनका फोन आया-
" बेटा तू कहे तो मैं नहा धोकर राधा भाभी (तुम्हारी मां) को संभाल लूं, सूखा सामान तो मैंने उन्हें दे दिया है मगर बीपी के चलते उनसे रोटी सेकी नहीं जाती ।"        सुनकर रमेश भावुक हो गया और कहने लगा - 
"चाची आपने तो मेरे मन का बोझ हल्का कर दिया, आप घर पर जाएं , मैं अभी मां से बात करता हूं ।"     रमेश को बहुत सुकून मिला । 
           चाची नहा-धोकर, साड़ी पहन कर माँ की सेवा में लग गई ।
          इधर उसके फ्लैट का पड़ोसी राजस्थान में फंसा हुआ था जो सिर्फ मां बेटे थे । एक दिन रात को 2:00 बजे उसका घबराए हुए फोन आया - 
"प्लीज रमेश, मेरी मां को बचा लो ।"
"क्या......क्या  हुआ हुआ है उन्हें  ?"
"शायद हार्टअटेक, प्लीज जल्दी जाओ, दरवाजा अंदर से बंद नहीं है ।"
          सुनकर पति-पत्नी दोनों दौड़ पड़े, एंबुलेंस को फोन किया और बच्चों को समझा कर वे उनके साथ अस्पताल पहुंच गए । तुरंत उपचार होने से उनकी जान बच गई । 3 दिन बाद जब घर लौट कर आए तो रमेश श्यामा मौसी को अपने ही फ्लैट में ले आया ।         
          उसे लगा इस बहाने से ही सही, मां की सेवा तो कर सका । ****
                         
9.मात्रा 
   *****
            एक हिंदी की अध्यापिका बच्चों को मात्राएं सुधारने हेतु ब्लैक बोर्ड पर कुछ शब्द लिखवा रही थीं, एक बच्चे से लिखवाया-'अमीर', उसने सही लिख दिया ।
"अब बेटा, 'गरीब' लिखो ।" लड़के ने लिखा 'गरिब' ।    
           अध्यापिका के पढ़ाने का अंदाज कुछ अलग था वह बोली-   
"बेटा,आज के जमाने में तुम यदि 'अमीर' की मात्रा छोटी कर देते तो तुम्हारा क्या जाता ? किंतु बेचारे गरीब के पास बीच की एक मात्र ही तो बड़ी है, उसे भी तुमने तो छोटी कर दी । बेचारे गरीब पर मात्रा की तो दया करनी थी ।"
       लड़का भी चतुर था उसने जवाब दिया- 
 "मैडम, आजकल के अफसर तो सबसे ज्यादा गरीब का ही खाते हैं, अमीरों पर तो उनका बस चलता नहीं और फिर मैंने तो सिर्फ उसकी मात्रा ही तो छोटी की है ।" ****
                        
10. जाने में ही भलाई है 
      ***************

        पढ़ी लिखी बहू अपनी अंगूठा छाप सास को समझा रही थी- 
 "आपको क्या पता मजदूरों से कैसे काम करवाया जाता है ? आपके सामने ही ससुर जी, हजम ना होने पर भी खाते जाते हैं, बीमारी बढ़ रही है, इनके मेडिकल बिल का भुगतान कौन करेगा ? अपना तो भट्टा ही बैठ जाएगा । यह काम-धाम तो कुछ करते नहीं है बस टिकट की रट लगा रखी है । पिछली बार वृंदावन गए थे अब वैष्णो देवी जाने की रट लगा रखी है । कल कह रहे थे-कपड़े पुराने हो गए हैं, नए सिलवा दो, पुरानी कंबल में जरा सा छेद है, कहते हैं- नई मंगवा दो । इस प्रकार की फिजूलखर्ची से तो बैलेंस शीट, बजट आदि सब बिगड़ जाएगा । 
           जब यह जिंदगी से रिटायर होंगे कफन, काठी आदि कहां से लाएंगे ?" सासु जी ने कहा- 
 "बेटी, मेरे माता-पिता ने तो यह ज्ञान मुझे दिया नहीं, गृहस्थी भगवान का मंदिर होती है, इससे ज्यादा कुछ समझाया नहीं । अब तू पढ़ी-लिखी घर में आई है, मैं तो इतना ही सोचती हूं कि अब तो जाने में ही भलाई है ।" ****
                         
 11.उदाहरण 
      ********

         चारों ओर कोरोना का तांडव........सभी ओर हाहाकार........मरीज इतने कि पांव रखने की भी जगह नहीं । 
         श्याम जी की किस्मत अच्छी थी कि उन्हें 3 दिन पूर्व बेड मिल गया था । वे लेटे- लेटे इस विनाश को रोकने के लिए ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि अचानक उन्हें एक दर्द भरी गिड़गिड़ाहट सुनाई दी ।  ऐसा करुण दर्द कि पत्थर भी पिघल जाए । सुनकर श्याम जी अपने को रोक नहीं पाए और बाहर आ गए उन्होंने देखा कि एक नवविवाहिता अपने पति के लिए बेड की गुहार लगा रही है और डॉक्टर कह रहे हैं कि हम मजबूर हैं । एक भी बेड खाली नहीं है, सभी पर बुजुर्ग हैं । 
         श्याम जी ने तुरंत कुछ निर्णय लिया और बोले- 
 "मैं अपनी स्वेच्छा से अपना बेड, इस बिटिया के पति के लिए छोड़ रहा हूं । डॉक्टर साहब, आप इन्हें संभालिए ।" 
 "मगर अंकल आप........?" लड़की ने कहा । 
 "बेटी, मैं तो वृक्ष का पका हुआ पत्ता हूं कभी भी गिर सकता हूं मगर तुम्हें तो अभी पल्लवित-पुष्पित होना है, फिर मैं तो अपना जीवन भी जी चुका हूं ।"
          यह कह कर उन्होंने घर जाने की अनुमति ली और चल दिए । 
          लड़की ने उनके पांव छूने चाहे तो उन्होंने दूर से आशीर्वाद दे दिया । 
          वे तो चले गए मगर पीछे कईयों के लिए एक उदाहरण छोड़ गए । ****
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क्रमांक - 15
W/O : एस. के. मिश्रा
पद:  भूतपूर्व शिक्षिका/स्वतंत्र लेखन

विधा - 
दोहा, गीत ,कविता, लघु कथाएं, कहानी,  संस्मरण,  आलेख, संवाद, नाटक, निबंध आदि। 

भाषा ज्ञान - 
हिंदी,अंग्रेजी, संस्कृत
साहित्यिक सेवा हेतु भाषा - हिंदी 

शिक्षा -
M.A ( समाजशास्त्र) , 
B.Ed (हिंदी साहित्य सामाजिकअध्ययन) 

उपलब्धि : -
साहित्यिक समूहों में अनेक पुरस्कार।
लाइव काव्य पाठ व लाइव गोष्ठियों में सहभागिता।

पता -  
बिलहरी  , जबलपुर - मध्य प्रदेश 
 1.अनोखा बंटवारा
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विमला ने अपने बेटे राकेश से कहा-"बहु कुछ काम नहीं करती है।"
राकेश ने कहा -मां में भी जूही से बहुत परेशान हो गया हूं? अधिकतर मुझे भी दफ्तर की कैंटीन में खाना खाना पड़ता है।
विमला ने कहा - "बेटा आज रविवार है ,मैं घर की साफ सफाई करती हूं ।"
मां को खाना बनाते देख राकेश ने कहा- कि मां खाना तुम क्यों बना रही हो? 
तभी जूही ने कहा कि ठीक है आप दोनों काम बांट लो एक दिन खाना माजी बनाएंगे और एक दिन खाना आप बनाना।
विमला जी ने कहा- वाह-वाह जूही बहू खूब अनोखा बंटवारा किया तुमने......।
तुम्हें कोई बात समझाना तो मुर्गी के मुंह में लिपस्टिक लगाना है.......। ****

 2.इंटरनेट है ना
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मैं  अपनी स्टोरी को लेकर पास के साइबर कैफे में गई थी कोई भी सिस्टम खाली ना होने की वजह से मुझे थोड़ा इंतजार करना पड़ा और मैं वहां पास में बैठ गई मेरे बगल में एक 15 साल की लड़की नेट पर कुछ मैटर  सर्च करवा रही थी मैंने देखा उसमें कुछ प्रसिद्ध हिंदी के रचनाकारों की पिक्चर थी क्योंकि मैं खुद लिखती हूं इसलिए मेरी जिज्ञासा बढ़ी और मैंने पूछा आप हिंदी के इन कलम के सिपाहियों के बारे में सच कर रही हैं क्या? आप इनके बारे में जानती हो ?
"थैंक्यू आंटी पर मैं इनके बारे में नहीं जाना चाहती स्कूल में मेरे मुझे फेमस राइटर के बारे में प्रोजेक्ट बनाने को दिया है।"
मैंने कहा बेटा यदि तुम जाना चाहो तो मेरे पास किताबें हैं तुम लेकर प्रोजेक्ट बना सकती हो उसने कहा।
"हम इंटरनेट यूजर हैं हमें दिमाग लगाने की कोई जरूरत नहीं है"।
बस मैडम ने कहा है मैं उनके बारे में सर्च कर कर प्रोजेक्ट बना लूंगी और बुरा मुंह बना लिया और कहां मैं जानकर क्या करूंगी।
मुझे बहुत दुख हुआ क्योंकि वह सब मेरे पसंदीदा हिंदी के लेखक थे खैर मैं चुप हो गई।
लड़की ने बोला आंटी अभी मुझे भूकंप के बारे में 3 पेज का निबंध निकलवाना है क्योंकि यह हिंदी में है और मैं कान्वेंट की स्टूडेंट हूं आपको थोड़ा और इंतजार करना पड़ेगा।
मैंने बोला बेटा अभी कुछ दिन पहले ही समाचार पर भी यह दिखाया गया था और तुम किताब खोलूंगी तो सब मिल जाएगा।
वह बहुत गुस्सा हो गई।
आप क्यों परेशान हैं ?
हमें जो भी मैटर चाहिए होता है वह 2 मिनट में निकल जाता है।  इंटरनेट किस लिए है?
मैं काफी दंग रह गई सोचने लग गई देश का भविष्य क्या होगा। ****

3.उड़ान
    **** 

रोशनी एक रुमाल में कढ़ाई कर रही थी और एक गंभीर समस्या में डूबी हुई थी कढ़ाई करते करते उसके मन के मन में शेर की आकृति आती है और रुमाल पर शेर के चित्र की कढ़ाई हो जाती है। उसके हाथ कांप लगेऔर चूड़ियां   भी खनखन लगी। वह बहुत डर गई  । वह इस बंधन को तोड़ कर स्वतंत्र होना चाहती थी  उसके अंतर्मन में द्वंद चल रहा था।
वह अपनी कल्पना को सच  देखकर  बहुत खुश थी।  शेर की तरह बने  हिम्मत जुटा रही थी। तभी उसने सामने अभिनव आ जाता है। अपने पति को देख कर उसकी आंखों से  आंसू बहने लगते हैं।
वह अपने जीवन से आजाद तो होना चाहती है।डर के मारे उसके मुंह से एक शब्द नहीं निकलता और वह बेहोश हो जाती है।****

4.व्यथा
    *****

आशा आज सुबह से बहुत नाराज थी। मन ही मन भुनभुनाती जा रही थी। और वे अपना सारा गुस्सा अपने पति पर उतार रही थी जो बैठे थे सारे बर्तन फेंक रही थी। राजीव जी से देखा नहीं 
गया - 
"छोड़ो भी भगवान, जब अपना ही सिक्का खोटा हो,
तो परखनेवाले का क्या दोष । कितनी बार समझाया बहू को इतनी छूट मत दे आखिर है तो औरत जात।
बाहर की हवा लग गई काम करने में घर का किसी का मन नहीं लगता, तो सिर पर बिठा कर रखा है तो वह नाचेगी ही लेकिन साहबजादे को कौन समझाए।
हमें क्या करना है कहते हैं घर में रहना है तो रहो नहीं तो गांव चले जाओ।
जब तक यहां रहना है अपना मुंह बंद रखो।"
बड़े सलीके से अपनी पत्नी को अपना ज्ञान परोसा।
पापा की बातें सुनकर उनके बेटे अमित ने उन्हें नाश्ता दिया और अपने ऑनलाइन काम में लग गया।
शाम को अपनी मां से कहा - "मां आज रूबी ऑफिस से आकर बिरयानी बनाई गयी
त्यौहार के लिए हमें गुजिया भी बनाना है।"
आशा ने कहा -"भाई अगर बहू को ऐतराज ना हो तो मैं सब्जी काट कर रख देती हूं"।
बेटे दोनों मुस्कुराने लगे।
आज बहुत देर हो गई है मां अभी तक रूबी ऑफिस से घर नहीं आई ना जाने क्या हुआ?
शाम को 7:00 बजे बाद दर्द से कराहती हुई घर पहुंची।
"क्या हुआ बेबी?"
"कुछ नहीं रास्ते में ना जाने क्या प्रॉब्लम हो गई मेरी स्कूटी रुक गई उससे किसी तरह लोगों की मदद से गैरेज में छोड़ा और ऑटो पकड़ने के लिए निकली तो एक कील मेरे पैर में छुप गई।"
"यह तो काफी गहरा कट गया है डॉक्टर के पास चलना है और टिटनेस का इंजेक्शन लगवा लो।"
ऐसा राजीव ने कहा।
"मैडम जी को तो चोट लग गई है अब बिरयानी का क्या होगा?"आशा ने व्यंगात्मक हंसी के साथ कहा।
"मां तुम कैसी बात कर रही हो उससे जानबूझकर थोड़ी ना कि अपने पैर में घुसा ली।मैं तुम गुजिया बना लेना बिरयानी मैं बना दूंगा।"
रूबी ने कहा- "आप लोग परेशान नहीं हो हम बाहर से गुजिया मठरी और बिरयानी आर्डर करके मंगवा लेते हैं।"
"बाहर का खाना ठीक नहीं रहेगा घर में ही खाना बन जाएगा।
आशा जी ने कहा"।
"हां भाई अब बुढ़ापे में फिर से चूल्हा चौका संभालो वरना दिन भर के थके हारे बेटे को काम पर लगना पड़ेगा बढ़ बढ़ाते हुए सविता जी काम पर लग गई उन्हें अपनी बहू से ज्यादा अपने बेटे की चिंता थी।"
"मां तुमने इतना सारा काम अकेले क्यों कर लिया। मां आपने तो नमकीन मठरी और बिरयानी पूरा ही सब कुछ तैयार कर लिया।"
"हां बेटा अब रसोई साफ करनी है तुम सब खाना खा लो तो बर्तन भी धुल जाएंगे सविता ने चढ़कर कहा।"
"बहुत दिनों बाद आपके हाथ का हाथों का स्वादिष्ट पकवान खाने का मौका मिलेगा, बहुत बढ़िया खुशबू आ रही है।"
अब तुम प्लेट या बर्तन धोने की चिंता मत करो मैं सब धो दूंगा और बर्तनों की घर में कोई कमी नहीं है हम दोनों एक ही प्लेट में खाना खाएंगे एक ही प्लेट में खाना खाने से प्यार बढ़ता है। मुस्कुराता अपने कमरे में चला जाता है।
तब राजीव जी अपनी पत्नी को देख कर हंसते हैं
 वरना बेटे का गुस्सा बाहर निकल जाएगा.......।
 सोचते हैं कि इस संसार में सबकी अपनी-अपनी व्यथा हैं.......। ****

5.शौक
   *****
विमला जी आज सुबह से काम को लेकर बड़ी परेशान थी। 
कुछ बड़बड़ा रही थी और काम पर लगी थी।
मालती उसके साथ रोज नाच गाने में लगी रहती है।
ऐसा लगता है दोनों को कि बस जीवन में नाच गाना ही है...।
  आज अच्छे से खबर लेती हूं..। 
चलो अच्छा है याद तो आएगी।
काम करने भी जाना है दीदी के घर?
दीदी थोड़ा सा समय नाच गा लेती हूं खुश हो जाती हूं तो तुम्हारा क्या बिगड़ता है तुम भी आया करो , फ्रेश हो जाओगी।
तुम दोनों की तरह में फुर्सत नहीं हूं मुझे घर में बहुत काम  हैं।
  घर में तो कोई  बच्चे  नहीं हैं, दिनभर नाच गाने में लगी रहती है।
झुमरी ने गुस्से से बोला-
देखो दीदी तुम किसी की जब तक परिस्थिति नहीं जानती हो तो उसके बारे में कुछ भी मत कहा करो। 
  सब घरों का काम छोड़ कर उसी के घर में काम करना।
ठीक है दीदी तुमसे तो वह दीदी लाख गुना अच्छी हैं ।
थोड़ी देर यदि खुश रहती हैं तो तुम्हारा क्या बिगड़ जाता है?
उनके बाल बच्चे नहीं हैं।
ऐसा उन्हें ताने मत दिया करो।
उनकी एक बिटिया है, जो गूंगी  है।
बहुत होशियार है दीदी उसको पढ़ाती है।
हम सब मिलकर नाच गाना करते हैं इससे वह बहुत खुश हो जाती है।
झुमरी की बातें विमला के मन में एक घाव कर गई ।
अच्छा चल कल से मैं भी नाचने आऊंगी......। ****

6.आग
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नीलिमा की जिंदगी एक मशीन की तरह हो गई। ना पक्षियों का मीठा कलरव उसे लुभाता था ना उसे प्रकृति के सौंदर्य से भी मन में कोई अनुभूति होती थी ना ही उसे बहती हुई नदी अपनी और आकर्षित किए जाती थी उसे यह लगता था कि दिन-रात बस व निरुद्देश भटक रही है जीवन तो है उम्मीद है.....
गीता का ज्ञान 'कर्म करते जाओ फल की चिंता मत करो', दूसरों को सलाह देना कितना आसान काम है । जिस पर बीती है वही समझता है । पतझड़ के बाद बसंत आता है बी पॉजिटिव किसी की तकलीफ देखकर सांत्वना मानो हर कोई देना अपना फर्ज समझता है। नीलिमा के सामने आज पहाड़ टूट पड़ा था उसे उसके बॉस ने बहुत बुरी तरह फटकार लगाई थी उसकी कोई गलती नहीं थी फिर भी उसे सिर्फ दूसरों के चापलूसी के कारण डांट सुननी पड़ी। वह ईमानदारी से अपना काम कर, चापलूसी नहीं करती थी।  
वह क्या करती?
2 बरस पहले ही उसके पति की मृत्यु हो गई थी ,उसके ऊपर अपने दो बच्चों की जिम्मेदारी है।
अपने बच्चों की पेट की आग बुझाने के लिए उसे नौकरी करना अति आवश्यक है। दो रोटी की भूख और गरीबी कितनी बड़ी चीज है, उस मजबूरी का धनवान लोग बहुत फायदा उठाते जा रहे हैं उसे यह बात समझ भी आ रही थी पर कोई रास्ता नहीं दिखाई दे रहा ।
उसकी आंखों से आंसू बहे जा रहे .....। ****

7.पराया धन
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कमला जी जो कि गौरी की सास है। गौरी को जोर-जोर से चिल्लाकर कह रही ।
जल्दी
"गौरी -जल्दी काम कर लो" ?
"बैंक से मेरे जेवर लेकर आना है"  बाजार से आते हुए  सब्जी बिस्किट नमकीन जरूर लेते आना।
सब बातें गौरी के कान में पड़ी वह मन ही मन  बड़बड़  लगी -"इस लॉकडाउन में घर के बाहर निकलने का काम मुझे ही बता देती है,  घर का काम करो  बाहर भी जाओ"।
वह दोपहर में   बाजार गई ।
गौरी सोच में डूब गई-
" किसी को महामारी का डर ही नहीं है, जाने दो  मुझे क्या करना है"। 
जल्दी-जल्दी उसने बैंक और बाजार का काम किया। घर का दरवाजा खटखटाया ही था,फिर कुछ शब्द उसके कानों में पड़े।
"पहले जल्दी से नहा लो फिर जल्दी से आओ चाय बनानी है।"  
स्वाति ने फोन किया था वह आ रही है।
" इस घर में तो सांस लेने की फुर्सत भी नहीं है"।
चाय बनाते बनाते अपनी मां को याद कर रही थी ।" मेरी मां मुझे बाजार से आने पर चाय और कुछ खाने को भी देती  और आराम करने को भी कहती"।  
"सब सुख के दिन कहां ?"
इतने में चाय में उबाल आया और घंटी बजी। उसकी ननंद स्वाति भी आ गई ।
"दीदी प्रणाम  "
"खुश रहो गौरी"
अरे वाह आज तो घर में बहुत सारी सामान  फर्श पर रखा है।
"गौरी भाभी आप कहीं बाहर गई थी"।
सास ने कहा- "अपनी एक सहेली से मिलने गई थी। "
"तो मैंने कहा बाजार से कुछ सामान और फल भी लेते आना"।
"अच्छा ऐसे महामारी में तुम भाभी को बाहर क्यों भेजा "?
सास ने कहा- "कोई बात नहीं स्वाति जाने दे।"
"अकेले बिचारी बोर हो जाती है ,इसलिए मैंने ही कहा था"।
"गौरी जाओ तुम कमरे में आराम कर लो"। 
" स्वाति तुम टीवी देखो"।
मैं सैनिटाइजर लाकर पैकेट को सेनीटाइज कर लेती हूं। 
" वह बहू के कमरे में जाती है"।
"गौरी बैंक से जो गहने निकाल कर लाई हो", यह बात स्वाति को नहीं बताना ।
  "मैंने अपने पोते की बहू के लिए संभाल कर रखा है। महामारी खत्म होने के बाद फिर बैंक में जाकर रख देना"। 
"स्वाति तो पराया धन है।" 
गौरी  सोच में डूब जाती है  .......। ****

 8.संतुष्टि
    *****

मेम साहब यह तो कम है,"पगार
लेती हुई झुमरी ने कहा"।
"हां ,तो इस महीने तूने 6 दिन छुट्टियां भी तो ली है"।
"वह तो मेम साहब मेरे बेटी की तबीयत खराब हो गई थी
अपनी बात पूरी कहीं  पाई।
तभी कमला ने कहा  "देखो झुमरी तुम लोगों का तो हमेशा यही लगा रहता है छुट्टी लोगी तो पैसे कटेंगे आगे से तुम देख लेना छुट्टी लेने से पहले यह बात सोच लेना।"
झुमरी मन मसोस के काम करने लग गई और वह शाम के खाने की भी तैयारी भी करने लग गई क्योंकि शाम का खाना वही बनाती है।
तभी कमला के पति अनुज भी ऑफिस से आ गए।
कमला क्या बात है अनुज आज बहुत दुखी उदास लग रहे हो।
अनुज ने कहा था मैं बहुत थक गया हूं।
आज बॉस ने ऑफिस में एक नया नियम जारी कर दिया है कि जो भी छुट्टियां लेगा चाहे जितने दिन भी ले सकता है उसकी तनख्वाह का पैसा कटेगा जितने दिन काम करोगे उतने दिन का ही पैसा मिलेगा।
"कमला अरे दुख सुख तो लगा ही रहता है"
यह क्या बात हुई तो क्या आप कोई नहीं आएगा जाएगा।
अनुज और कमला की बातें सुनकर काम करते हुए झुमरी को मन ही मन में एक अलग से संतुष्टि मिल रही थी । ****

9.पीर पराई
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ऑफिस जाने के लिए तैयार होते हुए अमर ने कहा "स्वाति तुम मेरे लिए पूरी सब्जी बना देना और नाश्ता क्या बना रही?"
उसने जवाब दिया" पूरी सब्जी का नाश्ता कर लेना और वही टिफिन में लेते जाना क्योंकि आज मेरे दांत में बहुत दर्द है।"
"स्वाति तुम्हारे रोज-रोज के नाटक से मैं थक गया हूँ।"
स्वाति की आंखों से आंसू निकलते रहे और उसने नाश्ते में पोहा बना दिया।
पति के ऑफिस चले जाते ही वह उदास होकर टीवी देखने लग गई कि शायद थोड़ा मन बहल जाए। अचानक 1:00 बजे के करीब किसी ने दरवाजा खटखटया। वह दरवाजा खोलती है और बोलती है "अरे अमर आप इतनी जल्दी घर आ गए।"
अमर ने कहा कि "घर आने के लिए भी तुम्हारी इजाजत लेनी होगी।"
स्वाति ने कहा "नहीं क्या हुआ?"
"मेरे पेट में बहुत जोर से दर्द हो रहा है, इंजेक्शन लगवा लिया दवा ले लिया है थोड़ी देर आराम करूंगा तो ठीक हो जाएगा।"
लगभग  4:00 बजे  तबीयत ठीक लगी तो  अमर ने कहा "मुझे कुछ खाने को दे दो।"
उसने कहा "मैंने अपने लिए खिचड़ी बनाई है आपको दूं क्या?"
"हाँ दे दो, तुम बहुत अच्छी हो धन्यवाद। अब तुम्हारे दांत का दर्द कैसा है चलो मैं डॉक्टर को दिखा देता हूँ।"
नम आंखों से वह अमर को देखती हुई सोचती है। मां बचपन में सच ही कहा करती थी, जाके पैर न फटी .... ! ****

10. कल्याण
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कल्याणी देवी बसंतपुर की पार्षद थी। उनके पतिदेव अरुण कुमार जी बहुत बड़े वकील थे। आज सुबह से बहुत व्यस्त नजर आ रही थी क्योंकि   9 दिन  कन्या भोजन भी करना करवाना था।
एक बालिका विद्यालय में उन्हें मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था ।
सुबह से घर में फोटोग्राफरों को बुलाया  था ।उनकी बेटी रोशनी  ने 12वीं  की परीक्षा टॉप किया था ,और आगे पढ़ना  चाहती थीं।
  उन्होंने उनके बेटे राहुल जिसका पढ़ाई लिखाई में मन नहीं लगता था। उसको अपने मैनेजमेंट कोटा से एमबीए कर रही
थी।
कल्याणी देवी ने अपने नौकर को डांटते हुए कहा- "जल्दी से 9 कन्याएं लेकर आओ।"
   कन्याओं को भोजन के लिए बैठाया और प्लेट मैं चना ,पूरी, हलवा परोसा। माथे पर चुन्नी बांधी गई ।टीका लगाया गया । कल्याणी देवी ने फोटोग्राफर से कहा" मेरी फोटो अच्छे से खींचना मेरा चेहरा स्पष्ट दिखना चाहिए मैं पैर छूने का बस नाटक कर रही हूं  और कल अखबार के मुख्य पृष्ठ पर मेरी यही फोटो होनी चाहिए।"
फिर कल्याणी देवी नौकर से कहा " तुम घर पर यह सब संभाल लो अब  मैं स्कूल में जाकर वृक्षारोपण के कार्यक्रम में जाती हूं।" फोटोग्राफर अनिल से कहा कि देखो मेरी वहां पर फोटो अच्छे से खींचना  वह फोटो अखबार के मुख्य पृष्ठ पर आनी चाहिए।
अनिल ने कहा जी मैडम ऐसा ही होगा।
कल्याणी देवी अच्छे से तैयार होकर स्कूल गई और वहां पर स्कूल के प्रिंसिपल को डांटते हुए कहा " यह गड्ढा और पेड़ पहले से तैयार रखना चाहिए ना मैं बस इसे देख कर फोटो खिंचा लेती अब जल्दी करो।"
एक लगाए हुए पेड़ के पास जाकर फोटो खींच आने लगी और उन्होंने कहा कि इसकी फोटो ले लो मैंने यह पेड़ लगाया है ।
इसके बाद वह मंच पर जाकर बेटियों को लेकर उनका भाषण शुरू हुआ।
सभागृह खचाखच भरा था ।वहां पर बहुत सारी लड़कियां और उनके माता-पिता उपस्थित थे। कल्याणी देवी का भाषण शुरू हुआ बेटियों को पढ़ाना चाहिए ।आज बेटियां किसी से कम नहीं है। उन्हें जो भी पढ़ना है मैं उनकी हर संभव मदद करने के लिए तैयार हूं।   उसके लिए मेरे दरवाजे खुले हैं। आप आप कभी भी मेरे घर आ सकते हैं ।मैं उन बालिकाओं के लिए ₹50,000 स्कूल को दान देती हूं। जो बालिकाएं  आगे पढ़ना चाहते हैं ,उनको उनकी योग्यता के अनुरूप छात्रवृत्ति भी दी जाए।
इस छात्रवृत्ति के कारण लड़कियां जो चाहे उस क्षेत्र में पढ़कर अपना नाम बना सकती हैं।
सभागृह में जोर-जोर से ताली बजने लगी और कल्याणी देवी की जय हो कल्याणी देवी आप महान हैं ।आप बालिकाओं के बारे में कितना सोचती हैं ।सभी लोग कहने लगे यह महिला कितनी उदार है। हम सबका कितना दुख दर्द समझती है ।यही महिलाओं की रक्षक है, यह सब सुनकर कल्याणी देवी फूली नहीं समा रही थी। घर बड़ी खुशी - खुशी आई और उन्होंने अपने भाषण की तारीफ दूसरे दिन अखबार के मुख्य पृष्ठ पर देखा कि उन्हीं की तारीफों से पूरा अखबार भरा था। उन्होंने अपनी बेटी से कहा -आज तुम्हें लड़के वाले देखने आ रहे हैं बहुत ही खानदानी लोग हैं। मुंबई के माने हुए उद्योगपति हैं। वहां पर तुम्हारा रिश्ता तुम्हारे पापा ने तय कर दिया है।
रोशनी उन्हें टकटकी लगाए अपनी मां को और अखबार को देखती ही रह गई.....। ****

11.स्वच्छता
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हमारे पड़ोस में तनु भाभी साफ-सफाई की बहुत करती हैं। आज सुबह वह मुझसे कह रही थी कि प्रीति कोई साफ-सफाई ही नहीं करता तुम मीरा को देखो उसके घर के सामने कितना कचरा पड़ा है, ये लोग कभी सफाई नहीं करते ।भाभी सब लोग आप जैसे नहीं होते हैं।
कुछ देर बाद भाभी की सफाई खत्म होने के बाद मेरे घर के सामने पानी और कचरा 
आ गया मैंने सारा सामान एक डिब्बे में डाला और एक पैकेट बनाया और उसे लेकर उनके घर गई और मैंने कहा-भाभी
आपका कुछ सामान बाहर छूट गया था मैं उसे देने आई हूं। भाभी ने पैकेट खोला और मुझे देखती ही रही.....। ****
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क्रमांक - 16
शिक्षा - 
स्नातक कला वर्ग में, स्नातकोत्तर समाजशास्त्र में, डिप्लोमा पर्यटन में।

पद - 
महासचिव हरियाणा, विश्व भाषा अकादमी, भारत। सहसंपादक : युग-युगांतर ई पत्रिका (विश्व भाषा अकादमी, भारत, हरियाणा ईकाई)
सदस्य संपादन समिति किस्सा कोताह
ब्यूरो चीफ - कंट्री ऑफ इंडिया पत्र

उपलब्धि : -

नुक्कड़ नाट्य मंडल द्वारा विभिन्न लघुकथाओं की पूरी सीरीज का मंचन । नाट्य विद्यालय के छात्रों द्वारा प्रयागराज व विभिन्न क्षेत्रों में मंचन जिसे दैनिक जागरण, अमर उजाला व हिन्दूस्तान टाइम आदि राष्ट्रीय समाचार पत्रों ने प्रमुखता से छापा।
कैंसर पर जागरूक करती लघुकथा "मर्कट_कर्कट" का रूपांतरण नशाखोर के रूप प्रयागराज के प्रतिष्ठित रंगशालाओं में मंचन।

"नुक्कड़ नाटक अभिनय संस्था प्रयागराज" के स्थापना दिवस पर मेरी पांच कहानियों को लेकर प्रस्तुत की गई नाट्य प्रस्तुति "आईना समाज का" कुंभ प्रयागराज के बाद एक बार फिर माघ मेला अरेल घाट संगम प्रयागराज में मंचित हुआ।  उपरोक्त मंचन के बाद "रेड डॉग फिल्म स्टूडियो" एवं "संस्कृति मंत्रालय भारत सरकार" के सहयोग से मेरी लिखी कहानी "शरण स्थली" एवं "दोहरा चरित्र" का फिल्म रूपांतरण किया जा रहा है जिसका निर्देशन भारत सरकार एवं यूपीएसआरएलएम विभाग की डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्देशन कर चुके युवा रंगकर्मी कृष्ण कुमार मौर्य करेंगे!

दैनिक भास्कर में साक्षात्कार प्रकाशित।
जुगरनॉट पर कहानी प्रतियोगिता में प्रथम स्थान।
जुगरनॉट पर साक्षात्कार प्रकाशित।
स्टोरी मिरर में ऑर्थर ऑफ द वीक से सम्मानित।
स्टोरी मिरर द्वारा आयोजित लघुकथा प्रतियोगिता में लघुकथा "खनक" को प्रथम स्थान।
समावर्तन पत्रिका के लघुकथा स्तंभ 'घरौंदा' में मेरी लघुकथाएं दिसंबर दो हजार उन्नीस के अंक में प्रकाशित हुई।
मातृभारती द्वारा "स्वाभिमान" पर राष्ट्रीय लघुकथा प्रतियोगिता में 50 विजेताओं में स्थान।
100 से अधिक लघुकथाएं कई प्रतिष्ठित पत्र, पत्रिकाओं जैसे पडाव और पडताल, किस्सा कोताह, लघुकथा कलश, आधुनिक साहित्य, साहित्य कलश आदि में प्रकाशित।
प्रभात खबर, दैनिक सांध्य टाइम, दैनिक हरियाणा प्रदीप, सुरभि आदि पत्रों में लघुकथाओं व कविताओं का प्रकाशन।
बाल कथा, "बंटू_और_पेड़" पाठ्यक्रम में सम्मिलित।
बाल कविता 'रिश्तों_का_ संसार" पाठ्यक्रम में सम्मिलित।
नंदन के जुलाई 2020 अंक में बाल कथा "भागा राक्षस" प्रकाशित।
अयोध्या शोध संस्थान (संस्कृति विभाग,उत्तर प्रदेश)के सहयोग से साहित्य संचय फाउंडेशन के तत्वावधान में आयोजित एक दिवसीय अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में आलेख वाचन के अवसर के साथ ही रामचरित मानस में राम के विविध रूप पुस्तक में शोध परक आलेख प्रकाशित।
हरिद्वार लिटरेचर फेस्टिवल में लघुकथा पर विचार के लिए आमंत्रित व सम्मानित।
दैनिक जागरण में साक्षात्कार प्रकाशित।

पता : -
C/of. विनोद कुमार,
मकान नंबर-4, गली नंबर - 9A,फेस-2,
निकट हनुमान मंदिर,अशोक विहार,
गुरुग्राम - 122001 हरियाणा
1. बंटवारा
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घर के क्लेश से परेशान हो सुबीर पार्क में जा कर बैठ गए।
दोनों बेटों के बीच बढ़ती नफरत की खाई को रोकने में वे नाकाम हो चुके थे।
जिस घर को इतनी मेहनत से बनाया उसे यूँ बिखरते देख खून के आँसू रो रहे थे।
"क्यों परेशान हो?"किसी ने कंधे पर हाथ रखकर पूछा।
"आ...आप…..?"पार्क में लगी मूर्ति को अपने निकट देख वह भौंचक्के रह गए।
"हाँ मैं,देख रहा हूँ कुछ दिनों से बेहद परेशान हो और अब तो मेरे पास बैठते भी नहीं?"प्रश्नवाचक निगाहों से मूर्ति ने सवाल किया।
"क्या बताऊँ आपको….दिमाग में जैसे एक युद्ध चल रहा है।खुद को असहाय महसूस कर रहा हूं बेहद असहाय।"दुखी होकर सुबीर बोले।
"कैसा युद्ध!और यह कैसी विवशता है जो खुद को असहाय समझ रहे हो?"मूर्ति ने प्रश्न किया।
"अपनी औलादों की महत्वकांक्षा को देखकर।उनके लालच को देखकर।छलनी हो गया है मेरा मन यह देखकर कि सगे भाई होकर भी एक दूसरे से नफरत करते हैं।"कह कर उन्होंने एक आह् सी भरी।
"फिर समझाते क्यों नहीं?आखिर पिता हो तुम।तुम्हारी बात जरूर समझेंगे।"मूर्ति ने कहा।
"बहुत कोशिश कर ली परंतु सब बेकार।घर को टूटने से नहीं रोक सकता हूँ।मेरे मन में क्या है वह जानने की फुर्सत नहीं है बच्चों के पास।"वह बोले
"क्या चाहते हैं बच्चे?"मूर्ति ने पूछा।
"बंटवारा।"वह बोला।
"तुम क्या चाहते हो?"मूर्ति ने पूछा।
"एकता।"वह बोला।
"तो इंकार कर दो बंटवारे को।"मूर्ति ने कांपती आवाज में कहा।
"बापू!क्या आपके इंकार को कोई समझ सका था?आप तो महात्मा थे ना!"
उसने मूर्ति से सवाल किया।
अब मूर्ति खामोश हो गई और उसकी आँखों में आँसू बह चले। ****

2. स्त्रैण
    ****

चलते चलते वह पथरीले मैदान तक पहुंच चुका था।उसनें एक बार पीछे मुड़कर देखा।
दूर तलक सिर्फ वीराना था।
एक शुष्क चट्टान पर वह पसर कर बैठ गया।
दिमाग में उथल पुथल मची हुई थी और शरीर में हलचल।
   हथेलियों से चेहरे को ढंक कर वह सिसक उठा।
अचानक किसी की गर्म हथेलियों का स्पर्श पा वह चौक गया।
सामने कोई मुस्कुरा रहा था।उसकी मुस्कुराहट देख वह कराह उठा।
"आखिर छोड ही दिया ना मेरा साथ!"तड़प कर उसनें कहा और हथेली की मुठ्ठी बना पत्थर पर जोर से प्रहार किया।
"आह्!सी.....उफ्फफ।"चोट के कारण वह खुद ही चीख पड़ा।
"पुरूष होकर पीड़ा का एहसास!!" स्त्री का खनकता हुआ स्वर गूंजा।
उस स्वर में एक व्यंग्य छिपा था।
"क्यों वापस आ गई जब चली गई थी?मेरी स्थिति पर हँसने!"पुरूष ने चिढ़ते हुए कहा।
"मैं कहाँ गई थी वह तो तुमनें ही मुझे खुद से दूर कर दिया था।"दुखी होकर वह स्त्री बोली।
"हाँ….मैने खुद ही…….अपने अहंकार के कारण तुम्हारी उपस्थिति तुम्हारी योग्यता को स्वीकार नहीं कर सका...किन्तु...।"वह वहीं रूक गया और कुछ न बोला।
"किन्तु क्या?"स्त्री ने प्रश्न किया।
पुरूष खामोश ही रहा और पीठ फेर कर खड़ा हो गया।
"बात को यूँ अधूरा न छोडो!बताओ किन्तु क्या?"स्त्री ने पुनः प्रश्न किया।
"किन्तु तुम्हारे बिना मैं मानव ही नहीं रहा।मैं सिर्फ पुरूष की देह लेकर जीता रहा….मैं प्रसन्न नहीं रह सकता।मैं तुम्हारे बिना अपूर्ण हूँ।"
"वापस आ जाओ और पहले की तरह मुझमें समाहित हो कर मुझे मानव बना दो।"कातर स्वर में वह बोला।
"परंतु मैं तो सदैव तुम्हारे साथ ही थी।"उसने मुस्कुरा कर कहा।
"मेरे साथ!झूठ न कहो।यदि मेरे साथ थी तो मुझे नजर क्यों नहीं आई?"वह फिर से बोला।
"तुम्हारी आँखों से बहते आँसू इस बात का प्रमाण है कि मैं तुम्हारे ही साथ थी।हाँ यह बात अलग है इससे तुमनें हमेशा घृणा की।"स्त्री ने दुखी मन से कहा।
"मैं मूर्ख था जो अपने स्त्रीत्व गुण को कमजोरी समझ कर खुद से दूर कर दिया जबकि हर पुरुष के मन में एक स्त्री रहती है जो उसका सदगुण है दुर्गुण नहीं।"पुरुष ने कहा और शिशु की अबोधता के साथ मुस्कुरा उठा। ****

3. सिलौटा
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कुछ घरड घरड की आवाज सुनकर रजत की नींद खुल गई।मोबाइल उठा कर देखा तो रात का एक बज रहा था।
आवाज आंगन से आ रही थी।
  आवाज चिरपरिचित सी लगी।वह ध्यान से सुनने लगा।ऐसा लग रहा था जैसे कोई मसाला पीस रहा हो।
"मसाला!!!"इतना कहकर रजत तेजी से आंगन की ओर दौड पडा।
आंगन में हल्की रोशनी आ रही थी।गमलों के पास कोई बैठा हुआ था।ध्यान से देखा तो रजत की माँ वहां पर थी और कुछ बड़बडा रही थी।
आज इतने सालों बाद उसनें माँ को सिलौटे के पास बैठे देखा।
वर्षों से दबी वह धुंधली यादें फिर रजत के सामने चलचित्र सी चलने लगी।
अपने पिता का गुसैल चेहरा और माँ की हिरणी सी सहमी निगाहें।यही तो देखता था वह अक्सर।
पिता के सामने आते ही वह माँ के आँचल में छिप जाता।
माँ अक्सर सिल पर कुछ पीसती रहती… कुछ ..कुछ बड़बडाती रहती।
 उसे दिखाई देते थे चोट के निशान जो कभी माँ के चेहरे कभी कलाई पर लगे होते।
थोडा बडा होने पर वह समझने लगा था कि  वह तब ऐसा करती है जब उसके पिताजी माँ को........ पीड़ा महसूस हुई उसे।
माँ अपने दर्द को मसाले के साथ रगड कर पीस देती थी।
एक दिन कोई दूसरी औरत पिता के साथ आई और माँ को कमरे से निकाल दिया।
उस दिन माँ पहली बार चिल्लाई और घर से निकल गई।
दो चीजें उसके साथ थी।एक रजत और एक सिलौटा।
वह आज तक नहीं जान पाया कि उसके पिता का व्यवहार माँ के साथ इतना निर्दयी  क्यों था।
आवाजे और तेज होने लगी।
"माँ,क्या हुआ!इस तरह यहाँ क्यों बैठी हो?"माँ के कंधे पर हाथ रखकर उसने कहा।
पलटकर माँ ने देखा और तेजी से बट्टा चलाने लगी।
दाँतों को भींचते हुए वह आँखों के पानी को रोकने की कोशिश कर रही थी।
"माँ..कुछ तो कहो।हुआ क्या है?"रजत ने उनके दोनों हाथों को पकडकर कहा।
"ओ...हाँ….हाँ...हुआ है।"माँ ने हकलाते हुए कहा।
"क्या हुआ माँ?बताओ मुझे।"रजत ने माँ को पूछा।
"वो...वो तुझे बुला रहा है… वो….।"वह बोली।
"कौन बुला रहा है।हुआ क्या है बताओ तो!"रजत ने माँ के कंधों को हिलाकर कहा।
"वो…..तेरे पिता… फोन आया था… अंतिम इच्छा….मुखाग्नि..वे नहीं रहे...वे नहीं रहे रजत...तेरे हाथों से मुखाग्नि दी जाए ऐसी इच्छा करके।"रजत के सीने पर हाथ रख वह दहाड़े मारकर रो पडी।
रजत के पैर जैसे जम गए।वह चुपचाप माँ को रोता देखता रहा।
"वो ...मर गए..।"माँ लगातार विलाप कर रही थी।
रजत ने एक बार माँ की तरफ देखा और सिलौटा उठाकर जोर से पटक दिया।
"हो गया अंतिम संस्कार माँ तेरे दुखों का।" ****

4. जनता जनार्दन 
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"देखो!कितनी गंदगी कर दी चारों तरफ।मुझे साफ रखा करो।"सड़क ने दुखी होकर कहा।
"तुम्हें साफ रखने की जिम्मेदारी हमारी नहीं है।"नाकभौं सिकोड़ कर उसने कहा।
"फिर किसकी जिम्मेदारी है?"सड़क ने पूछा।
"सरकार की।"मुँह पर रूमाल रखकर वह बोली।
"तुम कौन हो?"सड़क ने पूछा।
"जनता जनार्दन।" 
"सीमित भंडारण है मेरा।सोच कर खर्च करो!"नल से बहते हुए पानी ने उसे टोका।
"तो!मैं क्या करूँ?"लापरवाही से वह बोली।
"तो बचत करो।भविष्य में बहुत मुश्किलें आयेंगी।जिम्मेदारी समझो!"पानी ने दोबारा कहा।
"तो क्या इस्तेमाल न करें?यह सरकार की   जिम्मेदारी है वह सोचे।" 
"पर हर बात की चिंता सरकार करेगी तो तुम क्या करोगे?"
"हम इसके लिए आवाज उठायेंगे।"
"पर क्यों?"
"क्योंकि हम जनता जनार्दन हैं।" ****

5. अवगुंठन
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"एक निरापराध पत्नी का त्याग!यह कैसा पाप किया राम?यह क्या कर दिया तुमनें राम।"अंधकार में एक आवाज गूंज उठी।उस आवाज की ध्वनि के रोष से भवन के द्वार पर लगे परदे जोर से हिलने लगे।
"उत्तर दो राम!क्या अपराध था उस स्त्री का जो ऐसा कठोर दण्ड उसके भाग्य आया?आवाज और कठोर हो गई।
राम ने आँखों से अपनी बाँहों को हटा कर देखा तो सामने एक स्त्री की आकृति खड़ी थी।
"आप कौन है देवी?"राम ने कहा।
"प्रश्न यह महत्वपूर्ण नहीं कि मैं कौन हूँ।महत्वपूर्ण है आपका उत्तर!मेरे प्रश्न का उत्तर दीजिए, सीते के साथ यह पाश्विकता क्यों?"वह.आक्रोश के साथ बोली।
"मैं विवश था।मुझे क्षमा करें देवी।"हाथ जोड़कर राम ने कहा और अपने हृदय को मुठ्ठी में भींच लिया।
"विवश..हुँह.... पुरूष की कैसी विवशता!वह तो सर्वश्रेष्ठ और स्त्री का भाग्य विधाता है।वह प्रेम और दण्ड स्वइच्छानुसार स्त्री को भेंट करता रहता है।"वह आकृति क्रोध में बोली।
"आप सही कहती हैं देवी।पुरूष अपनी इच्छानुसार स्त्री को प्रेम देता है।परंतु यह इच्छा स्त्री के द्वारा ही पुरूष को अधिकार से भेंट स्वरूप दी गई है।"
"आह्.....एक पुरूष के हृदय की पीड़ा!"भूमि पर बैठ गए राम।
"हृदय!!पुरूष के पास हृदय नहीं होता।यदि होता तो हृदयहीन होकर अपनी पत्नी का परित्याग न करता।"
"निष्ठुर हो राम बहुत निष्ठुर ..।"इतना कह वह आकृति रोने लगी।
"हाँ मैं निष्ठुर ही हूँ ......एक निष्ठुर मनुष्य ही अपनी को पत्नी  समाज के नश्तरों से बचाने के लिए सारे कलंक अपने माथे ले लेता है।"
"सीता की अग्निपरीक्षा ली ताकि कोई भी उसकी पवित्रता पर प्रश्न न कर सके और एक संकुचित मानसिकता का कलंक अपने माथे लिया।"
"सीते को त्याग दिया ताकि वह सभी के व्यंग भरे नेत्रों से दूर रहे।वह वन में सुख नहीं भोगेगी लेकिन सम्मानित रहेगी।"
मैंने तो सीते के सम्मान के लिए यह वियोग अपना लिया।"
"यह शाब्दिक भ्रमजाल है हम स्त्रियों के लिए।"वह आकृति पुनः क्रोध से बोली।
"हाँ यह भ्रमजाल ही है परंतु शाब्दिक नहीं भावात्मक......अब न  वर्तमान और न ही भविष्य में सीते से कोई प्रश्न होगा।क्योंकि सभी प्रश्नों का उत्तरदायित्व मुझपर होगा और एक पत्नी के साथ दुर्व्यवहार का कलंक भी।"
राम के शब्दों को सुनकर वह स्थिर हो गई।
"ओह....... यह स्त्रीमन यह पक्ष क्यों न देख सका!"इतना कह वह आकृति अदृश्य हो गई।
"कैसे देखता.... पुरूष सदैव अपनी पीड़ा एक आवरण में छिपाए रखता है।"पीडित स्वर गुंजा जो राम के हृदय से आया। ****

6. प्रतिशोध
    *******

कई दिनों से देख रही थी कि पेड़ के नीचे एक आदमी जून की गर्मी में भी अपने शरीर को कम्बल से ढके बैठा हुआ था। लोग खाने को दे जाते….कभी खा लेता, कभी खाना वहीं पड़ा रहता।
     उत्सुकता बढ गई तो रहा नहीं गया | मै उसका चेहरा देखना चाहती थी | कुछ फल हाथ में लिए आखिर मैं उसके पास चली गई |
      “कौन हो तुम ?”
     वह चुप था | मुझको उसकी चुप्पी अखर गई |
     “जवाब दो वरना यहाँ से हटवा दूँगी | और हाँ, मुँह क्यों छुपाया हैं ?”
     “क्योंकि मेरा चेहरा दिखाने लायक नहीं |”
     “ऐसा क्यों, कुरुप हो तो क्या हुआ, खुद का सम्मान करो |”
     “मै अभागा हूँ, सदियों से अपने कर्मों का फल भोग रहा हूँ और सदियों तक भोगूँगा |”
     “मैं समझी नहीं !”
     “रहने दो, कोई नहीं समझ सकता |”
     “बताईये ,शायद कुछ मदद कर सकूँ |”
     “कोई मेरी मदद नहीं कर सकता । ये मेरे पापों का फल है | मैंने सोए हुए पुत्रों को मारा, गर्भस्थ शिशु की हत्या का प्रयास किया, सृष्टि के विनाश की कोशिश की |” 
     “पर मैं उद्धेलित था, मेरे पिता की निर्ममता से हत्या हुई थी |”
     “हाँ, लेकिन मैं भूल गया था कि पिता ने पाप का साथ दिया था | और हाँ, मैं तो अपने पिता की आज्ञा का पालन कर रहा था |”
     “पर शायद मैं पापी, मैं हत्यारा ….मैं जीवित रहूँगा ...श्राप है मुझे अपनी कुरूपता और सड़ते शरीर को युगों तक भोगने का ...” 
     “मैं जीवित हूँ हर पापी के मन में कोढ़ बन कर । मैं मानव मस्तिष्क में रहकर अपने उस श्राप का प्रतिशोध लेता रहूँगा |”
     “तुम कौन हो और ये किस तरह की बातें कर रहे हो ? अपना चेहरा दिखाओ...” मैंने दृढता से कहा।
     “हे भगवान...!” मेरे मुँह से चीख निकल गई,  “अश्वत्थामा...!”
     माथे से खून रिस रहा था ...चेहरा गला हुआ भयंकर….मैंने घृणा से मुँह फेर लिया । कुछ क्षण बाद संयत होकर देखा तो वहाँ कोई नहीं था | वातावरण में एक दुर्गन्ध अवश्य थी ।****

7.मायका
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"माँ कुसुम को मना कर दूँ क्या मायके जाने के लिए?"
"क्यों, मना क्यों करना है?"
"वो बुआजी आ रही हैं और पहली बार कुसुम के सामने।उन्हें बुरा लगेगा।"
"कुसुम भी पहली बार शादी के बाद मायके रहने जा रही हैं नहीं गयीं तो क्या उसके माँ बाबूजी को बुरा नहीं लगेगा?उन्हें दुख नहीं होगा?"
"लेकिन माँ आप भी तो कितनी बार नानी के पास नहीं गई बुआजी के आने पर ।कुसुम नहीं जायेगी तो कौन सी आफत आ जायेगी?"
"आफत कोई नहीं आती बस एक लड़की टूट जाती हैं और मन से कभी नहीं जुड़ पाती ऐसे रिश्तों से जो उसकी भावनाओं को नहीं समझते।तुम्हारी बुआ का मायका हमेशा रहा लेकिन मेरा छूट गया।कुसुम का मायका मैं नहीं छूटने दूंगी और दीदी की देखभाल के लिए मैं हूँ ।"
"लेकिन माँ "
"लेकिन वेकिन कुछ नहीं सुनने वाली मैं ।दूसरी सुनंदा नहीं बनेगी इस घर में कोई।" *****

8.परदा
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आज मन बहुत प्रसन्न था मेरा।हो भी क्यों नहीं आज उनसे मिलने जा रही थी जिनकी कहानियों से मुझे हौसला मिला।मेरे जीवन को दिशा उनके शब्दों ने ही दी थी।
कब से मिलना चाह रही थी उनसे लेकिन कोई नहीं जानता था उनका असली नाम और पहचान।पर मुझे तो जैसे जनून था उनके दर्शन करने का।पूरे एक साल की मेहनत के बाद यह दिन आया था।रास्ते से सफेद गुलाब लिए।उनकी कहानियों में अक्सर इनका ही जिक्र ज्यादा है तो पसंद तो होंगे ही।ऑटो से उतर कर सीढियां चढने लगी।एक एक सीढी मुझे सौ सीढियों के बराबर लग रही थी।इतने सारे फ्लैट्स में से किसी एक फ्लैट में उनका बसेरा है।पता नहीं कैसा लगेगा उन्हें अपनी इस पागल दिवानी प्रशंसिका से मिल कर!यूँ बिना बताए किसी के घर जाना शिष्टाचार तो नहीं है पर वह मेरे लिए अनजान नहीं।मेरी मार्गदर्शक है।उस समय संभाला जब मरने के लिए तैयार थी मैं।उनके शब्दों ने जैसे मुझमें उत्साह भर दिया।अभी तो तीन मंजिल तक ही पहुंची हूँ बस अब वह मेरे करीब होंगी।सोच कर रोमांचित महसूस हो रहा था।अभी कुछ सीढियां बाकी थी कि कुछ चिल्लाने की आवाजें सुनाई देने लगी।मैं उस आवाज के नजदीक पहुंचती जा रही थी।
फ्लैट नंबर तेरह.....कमीनी.... फ्लैट नंबर..... चौदह........जुबान पर ताले लग गए तेरे........ तुझे ही बोल रहा हूँ.....पंद्रह......
....नीच...औरत....फोन..पर किसके साथ लगी रहती है रात दिन.....सोलह.....रण्डी........ सोलह......"यहाँ तो....!!कहीं गलत ऐड्रेस पर तो नहीं आ गई मैं!"गालियों और चिल्लाने की आवाज बढती जा रही थी।मैंने दोबारा पर्स से पते वाला कागज निकाला,"डी,सोलह"पता तो सही था।पर यहाँ... ये सब...तभी... एक आवाज आई.."सिर्फ एक ही सहारा है मेरे जीवन का,मेरे जीने की वजह ,मेरा लेखन।वरना मर गई होती अब तक।क्यों ऐसे इल्जाम देते हो मुझे।" तो...तो..इसका मतलब...मेरा सर चक्कराने लगा।दीवार से सर टिकाए मैं खड़ी हो गई।मेरी हिम्मत टूट गई थी... चिल्ला कर रोने का मन हुआ।पर जैसे दिमाग सुन्न हो गया।
अब तक जिन्हें एक आयरन लेड़ी की तरह मानती आई वे भी खुद को झूठे परदे में छिपाए थी।कुछ देर में अंदर शांति छा गई।मन किया भाग जाऊं और रहने दूँ इस परदे को यूँही पड़ा।
पर हाथों ने पता नहीं क्यों दरवाजा खटखटा दिया।
कुछ देर बाद वह मेरे सामने खड़ी थी।सौम्य सरल सी,चेहरे पर एक मुस्कुराहट लिए।आश्चर्य से मुझे देखने लगी।
"किससे मिलना है बेटा?"उन्होंने पूछा।आवाज में एक वात्सल्य था।
मैंने तुरंत उनके पाँव छूए और कहा"आपसे।"कहकर वह गुलाब मैंने उनके पैरों के पास रख दिए।
"लेकिन मैंने पहचाना नहीं आपको!कौन हो आप?"वह आश्चर्यचकित हो मुझे देख रही थी।
"हिम्मत!"इतना कह कर मैं तेजी से सीढियां उतरने लगी।उनके उस पर्दे को हटाने का हौसला मुझमें न था। जो न जाने कितनो की जिंदगी संवार रहा था। ****

9.दुर्लभ प्रजाति
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“सुनो जरा! मैने सुना है की एक लड़की दिखी है शहर में, शादी के लायक।”
“अच्छा!कहाँ सुना?”
“न्यूज में दिखा रहे थे। कड़ी सुरक्षा के बीच रहती है।”
“हम्म …..! लेकिन शायद अमीर लोग पहले ही अपने बेटे के लिए बुकिंग करवा चुके होंगे। हम इतना पैसा कैसे खर्च कर सकते हैं?”
“अगर हमारी पीढी लड़कियों के साथ इतनी दरिंदगी न करती तो शायद हम विलुप्तप्राय न होतीं।अब हम तो बूढ़ा गई हैं।बच्चे नहीं जन सकतीं। मुझे लगता है अब मानव जाति खतरे में आ गई है। तीस साल में एक लड़की दिखी ।”
“चिंता की बात  तो है लेकिन वैज्ञानिकों ने इसका उपाय खोज लिया है।  प्रयोगशाला में भ्रूण बनाया जा रहा है लेकिन लड़की का भ्रुण विकसित नहीं हो पा रहा। हालांकि प्रयास जारी है।”
“ इतने  तकनीकी विकास के बाद भी हम महिलाओं का भ्रुण नहीं बन पा रहा है! लगता है ईश्वरीय श्राप लग गया है। लगता है अब वे बच्चीयों को इस धरती पर आने नहीं देना चाहते।”
“ हम कर भी क्या सकते हैं,सिवाय अपने बेटे के लिए रोबोट गर्ल लाने के । उसकी 'जरूरत' उससे पूरी हो जायेगी।”
“....और संतान?”
“प्रयोगशाला में....." ****

10.किरदार
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किसी के करहाने की आवाज सुनकर अचानक उसके पांँव  ठिठक गए।मद्धम मद्धम सी आवाज कहीं पास ही सुनाई दे रही थी।शाम धुंधलाने लगी थी और यह आवाज उसे रोक रही थी।
वह आवाज की दिशा में चल पड़ा।सामने एक आकृति दिखी।
“कौन है वहाँ?”उसनें कहा।
“मैं किरदार… आह्...।”करहाते हुए आकृति ने उत्तर दिया।
“कौन किरदार!घायल हो क्या?”प्रश्न करते हुए वह और नजदीक गया।
“मुझे नहीं पहचाना?मैं वही हूँ  जो तुम्हारी कहानियों मे रहता हूँ।”जोर से करहाते हुए उस आकृति ने  कहा।
“समझा नहीं मैं!क्या कहना चाहते हो।तुम मेरी कहानियों के किरदार और इस अवस्था में?”अंचभित होकर वह बोला।
तभी आश्चर्य से उसकी आँखे फैल गई वह पुरूष की आकृति अब महिला बन चुकी थी।शरीर पर फटे कपड़े,बहता खून।चेहरे पर दुख संताप।
“आह्...यह क्या!कौन हो तुम क्या कोई आत्मा?ऐसी अवस्था कैसे..स्पष्ट करो।”
“हाँ मैं आत्मा ही हूँ तुम्हारी कहानियों की जो अलग अलग किरदार निभाती हैं।मेरी इस अवस्था से तुम अनजान तो नहीं।जब भी मुझे किरदार में ढालते हो तो हमेशा शोषण का शिकार स्त्री।एक दरिंदा पुरूष या अत्याचारी सास के रूप में लिखते हो।”
“पाठकों की नफरत और दया की शिकार मैं आत्मा अब मृतप्राय हो चुकी हूं।”कराहट बढ़ गई थी।
“परंतु मैं समाज का सत्य लिखता हूँ वही जो मैं देखता हूँ मैं एक साहित्यकार हूँ।समाज को दिशा दिखाना मेरा कर्तव्य है।”
“सत्य लिखते है तो क्यों नहीं नायिका को मजबूत दिखाते?क्यों अभी भी महिला को अबला दिखा रहे हो।पुरूष तो पूरक हैं ना!उसे दरिंदा बना पेश करते हो।क्या संदेश समाज को देते हो?”
“पर यह दुष्ट आत्माएं इस समाज का हिस्सा है।इनका वर्णन जरूरी है।”उसनें दृढता से जवाब दिया।
“तो बहिष्कृत करो ना!मुझे इन किरदारों में ढाल कर क्यों समाज में इनका प्रचार करते हो।ऐसा न हो तुम्हारी लेखनी इन्हें लिखते लिखते जीवन दे दे।यदि ऐसा हुआ तो मैं साथ छोड़ जाऊंगी।”बेदम हो वह बोली।
“पर मेरे बिना क्या कोई अस्तित्व है तुम्हारा?”अहंकार से वह उससे बोला।
“मेरा अस्तित्व तो हर शख्स में नजर आता है।हर व्यक्ति यहाँ रोज नये किरदार निभाता है।आज से मैं तुम्हारे किरदार का साथ छोड़ती हूँ।”कह कर वह आत्मा उस आकृति के जिस्म को निर्जीव कर निकल गई।****

11. समय_चक्र
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उसनें कुछ पैसे बिस्तर पर फेंके और बाहर निकल गया।गुंजन ने पैसे उठाकर पर्स के हवाले किए और कपड़ों को ठीक करने लगी।अचानक पेट में जोर से दर्द होने लगा। पेट पकड़ कर वह वैसे ही बैठ गई।
      "दर्द ज्यादा है?"किसी ने पूछा।
गुंजन ने सिर उठाकर देखा तो कोई न था।वह गर्दन घुमाकर कमरें में
चारों तरफ देखने लगी।लैंप की रोशनी में कोई आकृति थी जो अस्पष्ट थी।
"क..कौन!"उसनें भयभीत होकर पूछा।
अब आकृति उसके निकट थी और स्पष्ट दिखाई देने लगी।
"कौन हो तू?इस कमरें में कब आई।"गुंजन ने गुस्से में कहा।
"होटल में वेट्रेस हो क्या?"
"वो क्या होता है भवदीया?आपकी पीड़ा को देखकर ठहर गई।मैं तो आकाश में विचरण कर रही थी।"उसने जवाब दिया।
"आकाश में क्या!और मेरा नाम गुंजन है भवदीया नहीं।"दर्द से करहाते हुए उसनें कहा।
"आपको दर्द है ना!"वह बोली।
"हाँ बहुत,साला पैसे देता है तो पूरा वसूलता भी है।"हिकारत से वह बोली।"अपनी मजबूरी है कि यह सहन करना पडेगा।तू बता,तू इस बदनाम होटल में क्या कर रही है?"गुंजन ने उसे ऊपर से नीचे देखते हुए कहा।
"तू भी धंधा करती है क्या?तेरे कपड़ों को देखकर लगता है जैसे राजाओं के जमाने से आई है।नाटक में काम करती है क्या।"गुंजन ने उससे पूछा।
"आपने सत्य कहा।मैं गणिका हूँ और मध्य काल से आई हूँ।मुस्कुराते हुए उसनें कहा।
"मध्य काल!मतलब मौर्य,सम्राट अशोक काल ….गणिका!..भांग खाई है तूने?"
"नहीं!मैं उसी युग से आई हूँ।मैं आत्मा हूँ।गणिका की आत्मा।"शांत हो उसनें कहा।कमरें की रौशनी मद्धिम हो गई और वह मुस्कुरा रही थी।
यह सुनकर गुंजन का चेहरा सफेद पड़ गया।
"ये...ये..क्या बोल रही हो….सच बोलो कौन हैं तू?"पेट को पकड़कर वह खड़ी हो गई।
"सत्य ही कहा है।मैं एक शापित आत्मा हूँ जो भटक रही है।"वह बोली।
"क्यों….मल्लब… मेरे को क्यों डरा रही हो।पहले ही दर्द में अपना भेजा सटकेला है।और किसनें शाप दिया?"
"डरों नहीं!मैं भी आपके समान हूँ बस मृत हूँ।"उसनें ठंडी आह् भरकर कहा।
"  अपुन कौन सा जिंदा है।साला..रोज मरना होता है।पर...शाप..किसनें दिया तुझे?"गुंजन ने डरते हुए पूछा।
"मेरी अतृप्त इच्छाओं ने।मेरी आकांक्षाओं ने।"वह बोली।एक अश्रु धारा उसके नेत्रों से बह निकली।
"इच्छाओं ने!तू जरूर नशे में है।सच बता कौन है तू, और यहां कैसे।भला किसी की अतृप्त इच्छाएँ  शाप कैसे दे सकती हैं?"गुंजन ने क्रोध में कहा।
गुंजन की बात सुनकर वह आकृति क्षण भर में गायब हो गई।गुंजन इधर उधर देखने लगी।
तभी अपने कंधे पर स्पर्श महसूस हुआ।वह पलटकर देखती हैं तो वह वहीं थी।उसे देखकर वह और डर से कांपने लगती है।
"कृपया डरों नहीं।मैं आपको नुकसान नहीं पहुंचाऊंगी।हाँ मुझे शाप मिला है मेरी अतृप्त इच्छाओं से ही।तभी तो भटक रही हूँ  मुक्ति की खोज में।"गणिका ने कहा।
"कैसी इच्छा!कैसी खोज?उसके लिए यहां इस जगह….।"गुंजन का डर अब खत्म हो रहा था।वह उसे बिल्कुल अपने जैसे लगने लगी।
"इच्छा एक परिवार की, इच्छा एक संतान की, इच्छा एक ब्याहता होने की।किंतु… किंतु यह अतृप्त इच्छा मेरे लिए शाप बन गई और मैं भटक रही हूं।"गणिका ने कहा।
"साला अपुन ने तो पढ़ा है उस युग में तो गणिकाओं को सामाजिक सम्मान मिलता था एक विशिष्ट स्थान था फिर यह इच्छा क्यों?तू तो बहुत मजे में रहती होंगी ना!"गुंजन ने सवाल किया।
"एक भ्रमजाल, कोई सम्मान नहीं।वरना हम भी यज्ञ और संध्या की भागीदार होती एक अर्धांगिनी की तरह।"
"रोज प्रसन्न करना होता था अपने स्वामियों को उनकी इच्छानुसार।अथाह दर्द और पीड़ा होती थी हृदय में।पर मैं खोज रही हूं ऐसी स्त्री जो प्रसन्न हो गणिका बन ताकि मुझे मुक्ति मिले।"
"प्रसन्न!हा...हा...हा..,मुर्ख है तू।कौन औरत खुश होगी इस धंधे में आकर।"एक पीड़ा गुंजन के चेहरे पर उभर आई और वह चीखते हुए बोली...
"तू हमेशा ऐसे ही भटकती रहेगी,क्योंकि भले ही युग बदल जाएं परन्तु हम धंधे वालियों  स्थिति ऐसी ही रहेगी।" ****
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क्रमांक - 17
    जन्म : २४ नवम्बर , औरंगाबाद  महाराष्ट्र 
      शिक्षा :हिंदी साहित्य में स्नातक, मुंबई से फेशन डिजाईनिंग में डिग्री.

    वर्त्तमान में :- 

हेरिटेज एकेडमी के नाम से फेशन डिजाईनिंग इंस्टीटयूट व बुटिक संच

पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन : -

    नई दुनिया की नायिका, सिटी भास्कर का माय इशयु, पत्रिका, वीणा, नारी अस्मिता, अक्षरा, साहित्य समीर, शुभ तारिका, शब्द सामयिकी,  वामा साहित्य मंच, क्षितिज साहित्य मंच, रंजन कलश आदि में  लघुकथाएं, कवितायेँ व आलेख प्रकाशित होते रहते है |

साझा संकलन : -

लघुकथा संग्रह “गुलमोहर” व “बूंद बूंद जिंदगी”  प्रकाशित |
       वामा साहित्य मंच के लघुकथा संग्रह “ऋचाएं “ में लघुकथाएं |
       रंजन कलश के लघुकथा संग्रह “मोर पंख” में लघुकथाएं | 
       रंजन कलश के काव्य संग्रह “काव्य कलश’ में कवितायेँ |
       वामा साहित्य मंच के कहानी संग्रह “कतरा कतरा रोशनी” में लम्बी कहानी | 
       इन्डियन सोसायटी ऑफ़ ओथार्स के संग्रह में लघुकथा , कहानी , कवितायेँ व आलेख  आदि प्रकाशित |

आकाशवाणी / टीवी : -

       आकाशवाणी में समकालीन विषयों पर साक्षात्कार 
       टीवी के लोकल चेनल्स में बच्चों के इंटरव्यू लिए 
       लघुकथा संग्रह “गुलमोहर” व “बूंद बूंद जिंदगी”  प्रकाशित |

सम्मान : -

       रंजन कलश द्वारा भोपाल में माहेश्वरी सम्मान से सम्मानित 
       २०१६ में शिलोंग में महाराज कृष्ण जैन स्मृति सम्मान से सम्मानित 
       जे.एम.डी.पुब्लिकेशन दिल्ली द्वारा नारी चेतना के प्रचार प्रसार हेतु प्रकाशान हेतु सम्मानित

पता : -
२०१, प्रिंसेस हाउस. ८९,९० साकेत नगर. इंदौर. ४५२०१८ - मध्यप्रदेश
1. इतनी असमानता क्यों? 
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         हमारे एक परिचित के बेटे के विवाह की पहली सालगिरह का कार्यक्रम था | करीब     पांच,छ सौ लोगों को आमंत्रित किया गया था | पति पत्नी मुस्कुराते हुए कभी उपहार स्वीकार     करते तो कभी बड़ों को प्रणाम करके उनका आशीर्वाद ले रहे थे |
        इतने में शोर हुआ “ पकड़ो पकड़ो चोर चोर “ पलट कर देखा तो एक दस गारह वर्षीय 
  बालक झूठन के डिब्बे से कुछ पुरियां व मिठाई लेकर भाग रहा था | चंद लोगों ने दौड़कर 
  उस बालक को पकड़ लिया | और बेरहमी से उसे पीटने लगे | 
       बालक गिड़गिड़ाते हुए कह रहा था “ मुझे मत मारो | मेरी माँ को बहुत तेज बुखार है |
  उसे बहुत भूख लगी है | वह बेहोशी में रोटी रोटी कहकर पुकार रही है | इसलिए मैंने ये झूठी 
  रोटियाँ चुराई है |” बालक का क्रंदन सुनकर धीरे धीरे भीड़ छंटने लगी | लेकिन मेरे मन में 
  एक सवाल छोड़ गई |
        समाज में क्यों इतनी असमानता है ? ये सफेद पोश लोग गरीबी पर  तरस क्यों नहीं  
  खाते अन्न की इतनी बर्बादी क्यों है ? भूख की आग क्या होती है इसको लोग कब समझेंगे 
  ? गरीबों की भूख मिटाने लोग कब आगे आएँगे ?
         सोचते सोचते मै समारोह से वापस घर आ गई | पति ने बहुत आग्रह किया कि मै
   कुछ तो खा लू | पर मेरे से प्लेट उठाई ही नहीं गई | ****
                           
 2.आदर्श बहू
    *********

         भाई भाभी का अपने माता पिता के प्रति उपेक्षित व्यवहार देख कर सुमन मन 
  ही मन कलपती थी | समय समय पर भाई भाभी को समझाती, तो कई बार उन दोनों से लड़ 
  भी पड़ती थी | उसके समझ में नहीं आता था कि माता पिता के साथ बच्चे ऐसा व्यवहार क्यों करते है? अपने बच्चों के लिए किए गए बलिदान की तो दुनिया में कोई मिसाल ही नहीं हो सकती है |
       “ सुनो सुमन , बाबूजी का पत्र आया है | उनकी आखों का ओपरेशन करवाना है | माँ व 
  बाबूजी का मन है कि बड़ा शहर होने की वजह से ओपरेशन यहाँ हमारे पास रहकर करवा ले | 
  एक तो यह बड़ा शहर है | दुसरे हमारे  होते उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी |” राहुल ने सुमन  
  से कहां |
         बापरे, महीना दो महीने तो इनकी तिमारदारी में चला जाएगा | घर का बजट बिगड़ 
 जाएगा सो अलग | सुमन मन ही मन हिसाब लगाने लगी |  
          दुसरे ही क्षण अपने माता पिता के प्रति भाई भाभी का व्यवहार याद आया | जो उसे हमेशा ही सालता था | वह सोचने लगी भाई भाभी को नासिहत देना कितना आसान है | पर जब खुद पर आन पड़ी तो बजट याद आने लगा | 
        वह उठ खडी हुई | नहीं, वह अपने सास ससुर के साथ वही व्यवहार नहीं दोहराएगी |
  जो उसके भाई भाभी उसके माता पिता के साथ कर रहे है | वह एक आदर्श बहू बनकर उन 
  दोनों की सेवा करेगी व उनका ढेरो आशर्वाद प्राप्त करेगी | 
       अतिरिक्त खर्च का वह कहाँ से व कैसे इंतजाम करेगी | सुमन सोचने लगी | कर लेगी,      उसने आत्मविश्वास के साथ मन ही मन में कहा | और ख़ुशी ख़ुशी रोजमर्रा के कार्यों में लग गई | ****

 3. गरीबी का मजाक  
*************

        ट्रेन से उतरते ही कुली की भीड़ ने मुझे घेर लिया | लेकीन  मेरा एक ही बैग वो भी   मीडियम साइज का देख कर बड़ी आसामी की तलाश में वो सब पलट गए | 
         थोड़ी देर में डिब्बे से करीब करीब चौदह पंद्रह लोगों का काफिला निचे उतारा | अच्छी 
मजदूरी की आशा में सब कुली उस और मुड गए | ये लोग शायद कहीं दूर से यात्रा करके आ रहे थे | क्योंकि उनका सामान काफी भारी भरकम लग रहा था | नग भी करीब पच्चीतीस थे | मोल भाव शुरू हुआ | कुली ने पुरे सामान के बारह सौ रुपये मांगे | उनका कहना था “हम तीन कुली मिलकर सामान उठाएंगे और दो सीढियां चढ़कर चौथे प्लेटफोर्म पर जाना होगा | साथ में हाथ गाडी का सौ रूपए किराया भी देना होगा |
        भीड़ में से एक आवाज आई “ पाँच सौ रूपए | दूसरी आवाज आई छ सौ रूपए | मै
  हैरान सी सोचने लगी “अपना एक छोटा सा सूटकेस लेकर दो सीढ़ियाँ चढ़कर चौथे प्लेटफोर्म 
  पर ले जाय तो पता चलेगा इन लोगों को |
        थोड़ी देर मे एक कुली ने जिसके पास दो नग किसी और के थे, मेरे पास आकर मेरे हाथ से मेरा सूटकेस ले लिया | मैंने उसके हाथ पर पचास रूपए का एक नोट रखा व उसके साथ चल पड़ी |
       जाते जाते मेरे कानों ने सूना “ “कोई अमीरजादी लगती है |” जाते जाते मै भी हिसाब लगारही थी “ पंद्रह लोगों के भारी भरकम तिस के करीब नग के कुली ने सिर्फ बारह सौ  रूपए मांगे थे | जो कि तीन लोगों में बटनें थे | सौ रूपए गाडी का किराया भी देना था | एक नग का शायद मुश्किल से तीस रूपए पड़ता | उस कुली को तो दो हजार रूपए मांगना चाहिए था | जब कही जाकर सौदा बारह सौ पर तय होता |
          मै सोचने लगी, हमारी मानसिकता क्यों ऐसी हो गई है कि हमारी नजर में  
 मेहनत का कोई मोल नहीं है क्योंकि सामने वाला गरीब  लाचार है | गरीब को और गरीब बनाना और बड़े बड़े मौल में चार गुना दाम देकर चीजें खरीदना लोगों का नजरिया बन गया है |****

 4.एक और एक ग्यारह 
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         “ज़रा सोच बेटा, तुझे डॉक्टर बनाने में देश का कितना रुपया खर्च हुआ है | और तुम 
   हो कि पढ़लिख कर देश के बाहर अमेरिका जाकर बसना चाहते हो | अपने देश में रह कर 
   तुम्हे अपने देशवासियों की सेवा करना चाहिए |” देशभक्त सेवारामजी ने अपने बेटे को 
   समझाने की गरज से कहा |
        ‘ पर पापा, हमारे देश में पढ़े लिखे लोगों की कीमत ही कितनी है ? इतना पढ़लिख 
   कर वही चालीस पचास रुपयों की नौकरी करो या फिर अपना क्लिनिक डालने के लिए ढेर 
   सारा कर्ज लो और उस कर्ज को चुकाने के लिए बेईमानी की प्र्यक्टिस करो | मरीजों की जेब 
   काटो | बिना बिमारी के जांचे करवा कर कट लो | दवाई कंपनी से कट लो | लाखों के बिल 
   बना दो | क्या आप जैसे देशभक्त को यह बात गंवारा है | क्या आपसे ये बातें छिपी है ?”
         “ लेकिन बेटा अगर हवाएं विपरीत दिशा में बहती है तो क्या हमें भी उनके साथ 
   बहना चाहिए या उनका प्रतिरोध करना चाहिए?’सेवारामजी ने अपना तर्क दिया | 
         “ एक के प्रतिरोध करने से हवाओं की दिशा नहीं बदलती पिताजी |’ बेटे ने नाराजगी 
   से  पिता तर्क का जवाब दिया |
         “ एक और एक दो भी होते है और ग्यारह भी होते है | तुम कोशिश करके तो देखो 
   बेटा |” कहते हुए सेवारामजी अपने कमरे में चले गए | ****
                                                            
 5.संतान सुख 
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           लगभग तीस पैंतीस साल के पति पत्नी रोज पूरा खाना बना कर उस शिव मंदिर  
    में लाते व बड़े मनोयोग से वहाँ बैठे माँगने वालों को खिलाते | एक वृद्ध कई दिनों से 
    उनकी यह दिनचर्या देख रहे था | वो सोचता इस स्वार्थी दुनिया में भी गरीबों के बारे में 
    सोचने वाले कुछ लोग है | पेट की आग क्या होती है ये वे ही लोग जानते है जो इस आग 
    से दो दो हाथ गुए है | मन ही मन वो बुजुर्ग उस दंपत्ति को आशीर्वाद देता व उनके सुखी 
    जीवन की कामना करता ||
           एक दिन उन्होंने उस पति पत्नी को आशीर्वाद देते हुए कह ही दिया 
         “ बेटा भूखे की भूख मिटाना बहुत ही नेक और धर्म का काम है | भगवान तुम्हे हर 
    ख़ुशी व हर सुख दे |”
         पत्नी सुबक पड़ी और बोली “बाबा भगवान ने सभी सुख दिए है लेकिन अब तक 
    संतान सुख नहीं दिया है |” 
          बाबा वहां से यह सोचते हुए चल दिया कि आखिर इंसान संतान क्यों चाहता है? क्या  अंतिम दिनों में मेरी तरह दर दर भटकने के लिए ?****

 6. मेरा घर 
*****

         सासू माँ का प्रेमल स्वभाव व अपनापन पाकर पति अशोक द्वारा किए गए दुर्व्यवहार 
 को वह हमेशा से भुलाने की कोशिश करती रही थी | अशोक की बत्तामिजियों के विरोध में 
 सासू माँ हमेशा उसके साथ खड़ी रहती थी | अशोक को समझाने की उन्होंने कई बार कोशिश     की लेकिन ढाक के वाही तीन पात | अशोक पर किसी भी बात का कभी कोई असर हुआ ही नहीं | उस दिन तो हद ही हो गई जब अशोक आशा नाम की लड़की को घर ले आया व उसके सामने खडा रह कर जोर जोर से चिल्लाने लगा 
       “अब आज से आशा इस घर में रहेगी | मै इससे विवाह करूंगा | तुम अपने घर जाओ |” वह हतप्रद सी कभी अशोक को तो कभी सासू माँ को देखने लगी | उसकी रुलाई निकल गई  और सोचने लगी उसका घर कौनसा है ? माँ बाप का घर छोड़े तो उसे ज़माना हो गया है | सब कुछ पीछे छोड़ कर जिस घर में ब्याह कर आई थी वह घर भी उसका नहीं है तो फिर उसका घर कौनसा है ? 
         सासू माँ की आँखों से चिंगारियां निकलने लगी | उन्होंने बेटे अशोक को हाथ से ठेलते हुए दरवाजे से बाहर किया | और उसका हाथ पकड़ कर अशोक के सामने लाकर कहा 
        “यह घर बहू का है | जिस दिन तू इसको ब्याह कर इस घर में लाया था उसी दिन से 
   यह घर बहू का हुआ | तू नै पत्नी के साथ नया घर बसाले | इसके  माँ बाप का घर छुडा 
   कर इसे मै इस घर में लाई थी | यह घर बहू का है | मेरी बहू बेघर नहीं है |” ****

 7.आश्रित 
 ******
    
     “ परिवार में कौन कौन है ?” इंटरव्यू के लिए आए एक उम्मीदवार को ऑफिसर ने पूछा |
     “ जी, मै, मेरी पत्नी और दो बच्चे “उसने हकलाते हुए जवाब दिया |
     “ माता पिता नहीं है ?”
     “ जी, है वो हमारे साथ ही रहते है |”
     “ मकान क्या किराए का है ?”
     “ नहीं , करीब पच्चीस साल पहले पापा ने बनवाया था |”
     “ फिर तुम माँ बाप के साथ रहते हो कि वो तुम्हारे साथ रहते है ?” ऑफिसर ने रोष में 
     आकर उसे डपटा 
     “वो क्या है ना ,पापा रिटायर हो गए है | सरकारी नौकरी नहीं होने से उन्हें पेंशन भी 
     नहीं मिलाती है |” वह बगले झांकने लगा |
     “तुम्हारे कहने का तात्पर्य है कि वे तुम पर आश्रित है | तुम भूल गए कि जीवन के   
      पच्चीस वर्ष तुम भी उन पर आश्रित थे | ऑफिसर ने कड़कते हुए कहा | ****
      
 8.कब बदलेगी मानसिकता 
  *******************
     
     “ मम्मी मेरे मोज़े कहाँ रखे है ?” छोटी विनी ने चिल्लाकर पूछा 
      “बेटा वहीं तुम्हारे बैग के पास तो रखे है |
      “ मेरी गणित की कॉपी नहीं मिल रही है मम्मी |”विनीत शोर मचा रहा था |
      “ वहीँ टेबल पर रखी होगी | रात को तुम्हे होमवर्क कराया था न ?
      “ मेरा टिफिन अभी तक तैयार नहीं किया मम्मी |” विनी फिर चीखी |
      “तुम लोग भी न ,मै कोई मशीन थोड़े ही हूँ | तुम लोगों को सब चीज हाथ में 
      चाहिए |” मै थोड़ा चिढ कर बोली |
            पतिदेव को घर व बच्चों से बेखबर वात्सएप्प में डूबे देख मै जल भुन कर राख    
       हो गई | क्या ये घर य बच्चे सिर्फ मेरे ही है ? फिर सोचा छोडो | अभी घर में 
       महाभारत शुरू हो जाएगी और सुनने को मिलेगा कि “ सारा दिन ऑफिस में सर खपा कर आता हूँ | पूरा दिन क्या काम होता है तुम्हे ? आराम ही तो करती हो | सुबह  
       थोड़ा जल्दी उठकर बच्चों का काम ज़रा ढंग से कर दिया करो |”
       मै कुढ़ती हुई कमरे में चली गई | पता नहीं ये पुरुष वर्ग औरतों के काम का मोल कब  
       जानेगा | *****

 9.अपमान का बदला 
 ***************
         
         “अकेली जान | क्या खाना और क्या बनाना | सुबह की दो रोटी खाकर वह छत पर 
   आ गई | आकाश में पूनम का चाँद चमक रहा था | 
          पुरानी यादों ने उसे फिर आ घेरा | अकेला रहना शायद उसकी नियति थी | पति की 
   चहेती को जब पता चला कि पति की जिंदगी में कोई और भी है तो सोचा मै अपने बच्चों 
   को साथ एक अलग आशियाँ बनाऊँगी | पर कैसे एक सिर्फ ग्रेजुएट औरत को ऐसी नौकरी तो 
   नहीं मिल सकती थी कि तिन बच्चों के साथ वह अपना अलग से घर बसा ले | पिता की 
   भी इतनी हैसियत नहीं थी कि तीन बच्चों के साथ बेटी की जिम्मेवारी ले सके या फिर  
   वकीलों की तगड़ी फीस देकर बेटी को मुआवजा दिला सके |
         दिन गुजरने लगे | वह मन मारकर उसी घर में रहती रही | उसने भी अपने अपमान 
   का बदला लेने की अनोखी गाँठ बाँध ली | अपनी बेटियों को अपने पैरों पर खडा करके ही 
   उनका विवाह करेगी | ताकि भविष्य में उनको भी ऐसी परिस्थिति से दो दो हाथ न होना पड़े 
   और वो स्वाभिमान के साथ जी सके | बेटियाँ भी कुशाग्र  बुध्धि थी | हालात ने भी उन्हें 
   मेहनती बना दिया था | तीनों ऊँचे ओहदों पर पहुँच गई | 
          पति द्वारा अपने साथ किए गए अपमान का बदला आज पूरा हुआ था | आज वह 
   बिलकुल भी उदास नहीं होएगी | सबसे छोटी बेटी के दीक्षांत समारोह से वह अभी अभी लौटी 
   है | आज वह बहुत खुश है | अकेली रहकर बेटियों को ओसाने जिंदगी से समझौता करना 
   नहीं बल्कि चुनौतियों का सामना करना सिखाया है | ****

 10. अपने हिस्से का आसमान 
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      “ सीमा तुम यहाँ ?” अपनी बचपन की सहेली सीमा को उस बड़े से मौल में अचानक      
देख कर मुझे सुखद आनंद की अनुभूति हुई | सीमा की गोद में उसका छ सात साल का बेटा   था | उसके पैरों को देख कर लगता था, या तो वह पोलियो से ग्रस्त है या फिर वह चल फिर 
नहीं सकता था | क्योंकि उसके पैर बहुत पतले थे | शायद इसीलिए सीमा ने उसे गोद में उठा  रखा था | वही चंचल, अल्हड अंदाज व बात बात में खिलखिलाना | कॉफी पिने के बहाने हम  दोनों एक रेस्तरा में जा बैठे| 
        अपने माता पिता की मर्जी के खिलाफ जाकर शादी की थी सीमा ने | माता पिता की    नाराजी वाजिब थी | उसने बताना शुरू किया | दो साल बाद ही सड़क दुर्घटना में उसके पति 
उमेश बच नहीं सके | अपने दुखों को अपनी झोली में समेत कर एक साल के अपाहिज बेटे   को लेकर नइ जिंदगी शुरू की | ये इतना आसान नहीं था ,कहते कहते उसकी आँखें गीली हो 
चली थी खुद को संभालते हुए उसने कहना प्रारम्भ किया | “तू समझ रही है ना ? ये इतना 
आसान नहीं था | स्कूल समय में नृत्य में किया युआ डिप्लोमा अब काम आया और मैंने घर 
में ही बच्चियों को नृत्य सिखाने लगी | थोड़े समय बाद शहर के नामी कॉलेज में नौकरी मिल  गई |  
      “ माता पिता के पास क्यों नहीं चली गई ?”मेरे इस प्रश्न पर वह पहले तो चुप रही फिर आँखें पोछते हुए वही खिलखिलाहट | कहने लगी मै जानती हूँ , मैंने उन्हें कितना दुःख दिया है| आज खुद माँ बनने पर सोचती हूँ तो अपने को जरुर दोषी पाती हूँ |”
       फिर उसी तरह खिलखिला कर बोली | “वक्त ने मुझे एक बात सिखाई है | नियति पर 
किसी का भी जोर नहीं है | जो मिला वही हमारे हिस्से का आसमान है | मै तो यही सोच कर आज में जीती हूँ |”
       आज की मुलाक़ात में भी सीमा मुझे कुछ सिखा ही गई थी | ****

 11. आँचल की छाव 
    **************

          “ तुमको किससे मिलना है ?”
          “ शांता बाई वागले से |”
          “ वो तुम्हारी कौन है ?”
          “ मेरी माँ है | मै उन्हें घर ले जाने आया हूँ |”
          “ तो अब माँ की सुध आई तुम्हे ?”मकान वकान अपने नाम करवाना है क्या ?”
          “ ऐसी कोई बात नहीं है |    
          “ तो फिर कैसी बात है ?” अमित व वृद्धाश्रम के केअर टेकर में नोंक झोंक चल 
    रही थी | इतने में राघव सपत्नी वहां आ गया | और केअर टेकर से बोला  “ ये मेरी माँ 
    है | इन्हें मै अपने साथ लेकर जाउंगा |”केअर टेकर नाराज होते हुए बोला ,
          “ ये क्या तमाशा लगा रखा है ?” तुम दोनों भाइयों को एक साथ माँ की सुध आई 
    क्या ? या फिर माँ की जमीं या मकान हड़पना है ? इसीलिए शायद दोनों की नींद एक 
    साथ खुली है ?”अब राघव आगे आकर बोला ,
          “ यह मेरी काकी है | लेकिन माँ से बढकर है | मम्मी पापा के अचानक चले जाने
    के बाद इस काकी के आँचल की छावं में मेरा बचपन बिता | नहीं तो पता नहीं मेरा बचपन 
    कहाँ, कहाँ की ठोकरे खाता | दो साल की पढ़ाई करके मै कल ही अमेरिका से लौटा हूँ |  
    काकी के घर गया तो पता चला वो वृद्धाश्रम में है | मै उन्हें लेने आया हूँ | आप कृपया 
    इन्हें मेरे साथ ही भेजे |”
          “ तुम दोनों मेरे बेटे हो | दोनों ही बराबरी से प्यारे हो | लेकिन अब यह वृध्हाश्रम 
    ही मेरा घर है | और एक बात बताऊँ, मेरे पास उस छोटे से घर के सिवा कुछ भी नहीं है |
    जो आज ही मै तुम दोनों के नाम करती हूँ |” 
            दरवाजे की आड़ से सब सुन रही शांता बाई बाहर आकर बोली | और उन दोनों  
    को अपनी बाहों में लेते हुए अपने आँचल को उन पर दाल दिया ****
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क्रमांक : - 18
पिता : ओमप्रकाश वैद
जन्मतिथि : 07 अगस्त 1955
जन्मस्थान : दिल्ली
शिक्षा : एम.ए..हिंदी , अग्रेंजी , बी.एड. , पी एच डी हिंदी
सम्प्रति: स्वतंत्र लेखन

पुस्तकें : -

1. आंकाक्षा की ओर   काव्य संग्रह
2.मनोवैज्ञानिक उपन्यासों मे असामान्य पात्र।  शोध प्रबंध
3. टचस्क्रीन ओर अन्य लघुकथाएं  संग्रह( एकल )
4. नदी खिलखिलायी.. हाइकु संग्रह ..एकल 

साझा संग्रह : -

1. खिडकियों में टंगे हुऐ लोग । लघुकथा संग्रंह सांझा ।
2 किस को पुकारू। कन्या भ्रूण हत्या पर लघुकथा संग्रह
3 एक सौ इककीस लघुकथाए सह लेखन
4 शब्दों की अदालत  अंतरराष्ट्रीय काव्य संग्रह
5. परदे के पीछे की बे खौफ आवाजे अंतराष्ट्रीय काव्य संग्रंह
6 अविरल धाराकाव्य संग्रंह
7.सहोदरी सोपान काव्य एवं लघुकथा संग्रंह
8.दीप देहरी पर।  लघुकथा संग्रह।
9. वर्जिन साहित्य लघुकथा मंजुषा ,2
10. अविराम कविता खंड  1 कविताऐ
11.  समकालीन हिंदी कविता खंड 2 कविताऐ
12. प्रतिमान मे नवयुग कथा पंजाबी मे अनुदित
13. काव्य रत्नावली संकलन
14.  समकालीन प्रेम विषयक लघुकथाए.
15.दास्तानें किन्नर.... लघुकथा संग्रह
16. सहोदरी कहानी संग्रह 2
17. संरचना में लघुकथा।
18. समय की दस्तक लघुकथा संकलन
19. मशाल काव्य संग्रह. परिवर्तन साहित्यिक मंच ।
20. सपनों से हकीकत तक काव्य संकलन    पटियाला
21. अग्नि शिखा काव्य धारा संकलन  2019
22.. चमकते कलमकार भाग दो. साझा संग्रह कविता में सहभागिता ।
23  . दलित विमर्श की लघुकथाएं ..

सम्मान : -

कथादेश 2017 अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता मे पाँचवा स्थान।
 विश्व हिंदी संस्थान कनाडा की ओर से , कविता आमंत्रण  मे कविता  बेटियाँ को प्रशस्ति पत्र।
उदीप्त प्रकाशन द्वारा  लघुकथा श्री एवं  काव्य भूषण सम्मान।
हरियाणा स्वर्ण जयंती उत्सव 2017 हिंदी साहित्य सेवा सम्मान
काव्य रंगोली साहित्य भूषण सम्मान 2017
भाषा सहोदरी   2016/2017  लघुकथा एवं कविता के लिए प्रशस्ति पत्र।
कलम की आवाज ऐरावत  आन लाईन विराट कवि सम्मेलन मे  सम्मान पत्र।
काव्य रंगोली मातृत्व ममता सम्मान 2018
साहित्य सरोज लघुकथा प्रतियोगिता2018 लघुकथा चक्की को तृतीय स्थान।
इंदौर की शुभसंकल्प संस्था की ओर से कहानी प्रतियोगिता में तृतीय स्थान।
जैमिनी अकादमी द्वारा अखिल भारतीय हिंदी लघुकथा- 24 में प्रतियोगिता  प्रथम पुरस्कार।
अमृत धारा साहित्य महोत्सव 2018
अमृतादित्य साहित्य गौरव।
शब्द शक्ति साहित्यिक संस्था गुरूग्राम(  पिता) विषय पर श्रेष्ठ कविता  सम्मान पत्र। 2019
इंड़िया बेस्टीज अवार्ड 2019  जयपुर (,शिक्षा और साहित्य के क्षेत्र में)
 नारी अभिव्यक्ति मंच पहचान  हिंदी लघुकथा प्रतियोगिता 2019 माँ शकुंतला कपूर स्मृति सम्मान  श्रेष्ठ लघुकथा पुरस्कार।
अग्नि शिखा साहित्य ग़रव सम्मान2019
साहित्योदय ,साहित्य कला,संगम द्वारा ...साहित्योदय शक्ति सम्मान 2020.
  समर्पण फाउड़ेशन जोधपुर महिला दिवस 2020 आलेख प्रतियोगिता विषय (सशक्त नारी सशक्त समाज) द्वितीय पुरस्कार।।
मगसम संस्था द्वारा रचना धर्मिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट लेखन
गणतंत्र  साहित्य गौरव सम्मान.।।
 प्रखर गूँज प्रकाशन द्वारा अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस 2020 रत्नावली सम्मान।
 मीरा भाषा सम्मान ..लघुकथा विधा...  2020
रक्त फाउड़ेशन कोष आलेख ..प्रथम स्थान 2020

पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन : -

 नवल पत्रिका. कथा बिंब, कथादेश, मधुमती, साहित्य समीर दस्तक, सृजन कुंज, दृष्टि, प्रतिमान. आधुनिक साहित्यिक ,सुसंभाव्य पत्रिका ,सृजन महोत्सव  मगसम मे लघुकथाए एवं कविताएँ
ई पत्रिकाएं : -हस्ताक्षर वेब, साहित्य सुधा ,परिवर्तन ई पत्रिका ,शब्दार्थ पत्रिका, नारी अस्मिता पत्रिका मे लघुकथाए एवं कविताएं।

पता : - 
17/653 , चौपासनी हाऊसिंग बोर्ड
जोधपुर 342008 राजस्थान
   1.आडी जाऊँगी
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    अमर रमेश पटेल ,उम्र पचपन,कपड़ा व्यापारी, मूल निवासी पाली,हाल निवासी मुम्बई अपने दो बच्चों एवं पत्नी के साथ तीन बेडरूम  वाले फ्लैट
मे तकरीबन बीस-बाईस सालों से रह रहा है।
अमर के पिता रमेश ग्रामीण परिवेश मे पले बडे,युवावस्था मे मुम्बई आकर कपडे का व्यापार 
आरंभ किया ।मेहनत, लगन, ईमानदारी से अच्छा नाम कमाया।अपनी बेटी राखी का उच्च शिक्षा के बाद विवाह किया।
               पुत्र अमर के लिए पाली शहर की सुघड,सुशिक्षित, सुंदर कंचन  को जीवन का हमसफर  बना दिया।कंचन नये दौर के तौर तरीक़े 
   को अपनाने मे  हिचकती नहीं थी पर अति आधुनिकता एवं दिखावटीपन से नफरत करती थी।  दोनों की गृहस्थी चल पडी। इसी बीच घर मे दो नये मेहमान आए और दो वरद हस्त देवलोक गमन हुए।
             अमर अब कंचन को मुम्बई के नवीनतम
तौर तरीके अपनाने के लिए बाध्य करने लगा।वह मित्रों की अतिआधुनिक पत्नियों को देखकर ,स्वयं के  दाम्पत्य जीवन को हीन मानने लगा। यदि वह कंचन को जबरदस्ती क्लब,पब,या पार्टी मे ले जाता तो वह.असहज महसूस करती, अमर के मित्र उसे
उकसाते कि व्यापार का बादशाह पर  संगिनी
मेल की नही। कंचन और अमर की गृहस्थी  डगमगाने लगी।अब अमर उसे विभिन्न प्रकार से प्रताडित करता,गावडी ग्वार, बेमेल कहकर मनोबल गिराता ,पर वो तो मुसकुराते हुए  बच्चों का जीवन सवारती रही।
      . एकदिन अमर ने अपना फैसला सुना दिया कि मै तुम्हारे साथ नहीं रह सकता। जितना धन चाहिए लो और जाओ ।पर कंचन एक ही बात कहती सीधी आई हूँ आडी जाऊँगी।  इसी बात को दोहराती। शने शने  अमर बाहर की दुनिया और कंचन भीतर की दुनिया मे अगरबत्ती की तरह सुलगती रही। 
              एक अलसुबह हृदयाघात से कंचन ने चिर निद्रा पाई। पूरा परिवार, समाज, मित्रगण, बच्चे शोकमगन थे। दोपहर को कंचन की बूढी माँ ने गाँव से आकर दहाड़े मारते हुए कहा"  हाय रे मेरी बेटी,कर दिखाया तूने सीधी आई थी और आडी जा रही है। 
         अमर को यह सुनकर काठ मार गया। कंचन का "आडी जाऊँगी "का मतलब अब समझ आया, पर बहुत देर से।****
             
2.पद चिन्ह
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  ..प्रसिद्ध ,धनाढ्य ,समाज सेवी,मिस्टर सहगल के हाथों मे फोन का रिसीवर था और चेहरे पर मुर्दनी थी।अपने कानो पर विश्वास नही हो रहा था। पुलिस अधिकारी की बातें पिघले सीसे की तरह कानो मे बह रही थी।" मान्यवर, अपने पुत्र सौम्य को थाने से आकर ले जाइये।मात्र आपकी प्रतिष्ठा मे दाग न लगे  इसीलिए आपके पुत्र को अन्य लडको से अलग रखा है। सौम्य ग्यारह बारह साल का ,सातवी कक्षा का छात्र था।जिसे कभी अभावों की आँच भी पिता ने आने नही दी थी।आज विधालय समय मे उच्च कक्षा के छात्रों के साथ बगीचे मे बियर पार्टी
मनाते हुए पकड़ा गया। बाल अपराध कानून के तहत उसे दंडित ना करके ,मुक्त किया गया क्योंकि वह धनाढय सहगल का पुत्र था।
          चमचमाती कार मे बैठते ही मासूम निसंकोच बोला, पापा पुलिस अंकल गंदे हैं।मै तो आप के पदचिन्हों पर चलने की कोशिश कर रहा था। आप ही परसों शाम शर्मा अंकल के साथ घर मे 
पार्टी कर रहे थे,हाथ मे गिलास था,जब मै पास से निकला तो आप ने अंकल से कहा शर्मा देखना मेरा बेटा मुझ से दो कदम आगे जाएगा। तभी मुझे गर्व होगा.।यह करेगा मेरा नाम रोशन।
मैने तो बारहवी मे पहला घूंट लिया था।पर  आज के बच्चे आगे जाएंगे, बहुत आगे, हर क्षेत्र मे।
                मैंने सोचा पढाई मे तो मै अव्वल हूँ ही आपके चेहरे पर एकस्ट्रा मुस्कान लाने के लिए यह सब किया।आप ही तो मेरे आदर्श हैं।आप को  प्राउडफील  करवाने के लिए ही पार्टी दी।
           माफ करना, पापा, मैं तो बच्चा हूँ ना! नादान हूँ ना!पता नही था की पार्टी  घर मे देनी चाहिए बगीचे मे नही। घर पर तो पुलिस अंकल  भी आते हैं। आगे से ध्यान रखूंगा। सहगल साहब, निरूत्तर हो कर अपने ही भीतर झाकनें से डरने लगे।क्या कहे उसे और कैसे । ****
        
3.वाईब्रेशन मोड
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   अपर्णा ने बडे प्यार से रोमेश को पूछा कि पिछले कई महीनों से आपके व्यवहार मे अनोखा परिवर्तन देख रही हूँ जब नयी नौकरी  लगी थी तब तो आप खूब खुश थे ,फिर अब अजीब सा व्यवहार  क्यों कर रहे हो।कल मैंने आप की पसंद का खाना बनाया, साडी आप के पसंद की,यूँ कहें कि घर की सजावट से लेकर खुशबू तक आपके मनरूप, पर आप प्रतिक्रिया हीन थे।
   अपर्णा ने प्रेमल शब्दों मे रोमेश से उसकी दुविधा जाननी चाही।दोनों युवा थे स्वप्निल समय था पर माहौल भावशून्य।रोमेश ने कुछ पल नजरे यहाँ वहाँ दौडाई। अपर्णा को गुस्सा आ गया उसनें जोर से झकझोर दिया।सुनते हो। वह ऐसे हिल्ला जैसे वाईब्रेशन मोड पर रखा मोबाईल कंपन करता है।
       रोमेश झटके से उठा और बोला सब ठीक है, सब ठीक है जान। पर लगता है जीवन भी वाईब्रेशन मोड पर चला गया है जहाँ आवाजें नहीं सिर्फ झटके, ही एहसास जगाते है ।****
    
 4.भूल सुधार
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   शर्मा जी अपने एरिया के प्रमुख थे,उन्हें प्रतिदिन इस बात का लेखा जोखा रखना पडता था कि किस एरिया मे कितने आक्सीजन सिलेंडरो का वितरण कब,कहाँ,कैसे करना है।आज भी रोज की तरह  एक हाथ मे चाय का कप,दूसरे मे कलम लेकर काम कर रहे थे।अचानक दरवाजे पर धडाधड की ध्वनि हुई।शर्मा जी बौखलाए कौन मूर्ख है जिसे घंटी नही दिख रही। अ़दर से चिल्लाए    ,   भ ई दरवाजा खुला है आ जाओ पर कोई उत्तर नही,आवाजें और तेज। गुस्से से बाहर आए तो दृश्य देखकर पैरों तले की जमीन खिसक गई।
            सामने एक पीपल का पेड़ खडा था।हाथ जोड कर बोला कृपया मुझे प्रतिदिन दो आक्सीजन सिलेंडर दे सकते हैं क्या?शर्मा जी ने अपने आप को चूयँटी काटी ,जो वृक्ष स्वयं चौबीसों घंटे सब जीवों को आक्सीजन देता है वह माँग रहा है। पेड ने कहा मैं आक्सीजन देता हूँ ,नहीं पहले देता था क्योंकि लोगों ने मुझे इस काबिल भी नही छोडा। मैं अपने साथ सबूत लाया हूँ।
          पीपल के  शाखा रूपी हाथों पर सूखे फूलों की मालाऐ, अगरबत्ती की डंडिया, अधजली रूई की बतियाँ, टूटे दीपक, फटे कैलेंडर, पुरानी ईश्वर की मूर्तियां, बचा खुचा प्रसाद था।सबसे अजीब सी गंध आ रही थी।शर्मा जी की नजरे झुक गई। पीपल बोला ,दिवाली से पहले तो मैं कचरा पात्र से बदतर बन जाता हूँ।
मेरे चबूतरे पर इतना प्लास्टिक का सामान है कि साँस लेना दूभर हो गया है।
          आज दाता याचक बन दरवाजे पर खडा है।शर्मा जी ने क्षमा माँगी और वचन दिया कि हम सब  इस भूल को सुधारेंगे। प्रकृति केअकूत  आक्सीजन भंडार को एवं देवतुल्य पीपल को स्वच्छ रखेंगे। संपूर्ण मानवजाति की ओर से पुनः क्षमा याचना की।****

5.मजबूत
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शामजी अपनी पत्नी माला के साथ ठेकेदार के बताए पते पर पहुँच गया। ठेकेदार ने उन्हें हमेशा की तरह पत्थर तोड़ना, रेत छानना और रात को सामान की जिम्मेदारी का काम सौंपा। यह काम कम से कम छः महिने चलने वाला था।सबसे पहले दोनों ने अन्य मजदूरों से परिचय किया। फिर  ठेकेदार से  टिन की चादरें लेकर ,प्लास्टिक की शीट और बाँस खपच्चियों से घर तैयार किया। शामजी ने पत्थरों का चूल्हा बनाया और माला ने चाय  बनाई । दोनों दसियों जगह ऐसा ही अस्थाई घर बना कर लोगों के स्थाई घर बनाते थे ।
             जहाँ शेष मजदूर  गरीबी, बदकिस्मती, परेशानियों की बातें कर के खुद भी दुखी होते और ओरों को भी करते थे वहीं दोनों पत्थर तोड़ते हुए कभी- कभी आपस में आँख मटका भी कर लेते तब पसीने से तरबतर चेहरे पर अलग ही नूर आ जाता। शामजी तो सूरज से  बातें करता "चल तेरी मेरी पकड़म पकड़ाई। काम खत्म होते ही औरतें गप्पे मारती हुँई खाना पकाती। अधिक तर  मर्द  देसी दारु पी कर हंगामा करते, वहीं शामजी और माला आज के अभाव और कल की आवशकताओं की लिस्ट बनाते- बिगाड़ते। 
     हाँ अपने घर की आस तो थी पर हाथों पर विश्वास भी था। 
रात को छोटे घर में दरी बिछा कर लेटते हुए कई बार पहले जो मकान बनाए और उनमें रहने का अनुभव याद कर के खुश होते।
दोनों मजाक करते कि शहर के कई कोनों में हमारा घर है।उन दोनों की खुशी इसी बात में थी कि मकानमालिक के पहले तो मजदूर ही रहते हैं।शाम जी जानते थे कि मंहगाई के इस दौर में जीना सब के लिए कठिन है वह उन मित्रों को  भी समझाता जो नशे पते में पैसे खराब करते थे कि मेहनत को गटर में क्यों बहाते हो।
       ठेकेदार भी उसे मजदूर शामजी नहीं मजबूत शामजी  कहता था।****
    
6.परिंदों का घर
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    मालती ने जी कडा कर के अपने बेटे सक्षम को प्रतियोगी परीक्षा पूर्व तैयारी के लिए कोटा भेज ही दिया, पर नौकरी की व्यस्तता के कारण पहली बार उसके साथ ना जा सकी.।आज एक साथ तीन छुट्टियाँ पडने पर  ,अकेले ही अचानक पहुँच कर सक्ष्म को आंनद एवं स्वयं को विश्वास दिलाना चाह रही थी कि सब ठीक है।दिल और दिमाग मे सदा कशमकश चलती थी कि अकेले ,घर से दूर ,अनजान लोगो के बीच कैसे रहता होगा।अनेक अच्छी बुरी घटनाएं कभी कभी मन को हताश करती पर विश्वास की डोर उम्मीद  को जिंदा रखती।
            दोपहर के तीन बजे थे, छात्रों का आराम करने का समय।मालती ने धडकते दिल से मेन गेट खोला, नीचे के हिस्से मे मकान मालिक एवं ऊपर दो कमरो मे छात्र। सीढियां चढते एक तस्वीर आँखों के सामने   थी,बिखरा कमरा,उल्टे सीधे पडे कपडे, जूते,, पलंग पर पानी की खाली बोतलें, कुछ नमकीन के खाली रैपर व सब के बीच बच्चे बतियाते या मोबाईल के साथ। जैसे ही दरवाजे पर थपकी देने लगी, दरवाजे पर लिखे शब्दों ने मंत्रमुग्ध कर दिया। परिंदों का घर।
              धीरे से धक्का देते ही दरवाजा खुला, चारों ओर शांति, पलंगों पर करीने से बिछी चादरें, अलमारी बंद,  हाँ मेज पर कुछ किताबें खुली पडी थीं जो दर्शा रही थीं कि कार्य प्रगति पर है।एक छात्र चाय बना रहा था,शेष तीन फर्श पर अधलेटे किसी सवाल का हल निकाल रहे थे। सक्षम मुडा,माँ को देख कर चीखा और गले लग गया। शेष तीनों ने सामान संभाला, पानी पिलाया व चाय भी ले आए। मालती हतप्रभ, समझ गई ,सुरक्षा चक्र से निकल, परिस्थितियों , काल व आवश्यकता ने परिंदों को बहुत कुछ सीखा दिया। मालती ने सब को प्यार किया। सब ने एक साथ कहा, सब ठीक है ना, पर आप लोगों के लिए अविश्सनीय
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7.चिड़िया उड़
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    करोना महामारी के चलते पूरा परिवार ही घर के अंदर   कई दिनों से   एक तरह से स्वेच्छा से बंद था। सब एक दूसरे का मनोबल बढ़ाने का प्रयास करते । मिल जुल कर काम और फिर कभी -कभी पुराने खेल ।दादाजी भी खेल में बराबर टक्कर देते थे ।
     आज दादाजी ने कहा कि राज बेटा 'आज तेरे पापा के पसंद वाला चिड़िया उड़ खेलते हैं।बचपन में यह हमेशा जीतता था।  बच्चों ने पूछा ," वही ना जिस में गल्त पक्षी उड़ाने पर मार खानी पड़ती है वो भी स्टाईल से । हथेलियों को जोड़ कर ऊपर नमक -मिर्च ,हल्दी बु्रकने का मंत्र और दे चाँटा। पर होशियार खिलाड़ी बच जाता है ।चतुराई का खेल है ।
   तो फर्श पर राज , टीना, दादाजी और पापा बैठ गये । चिडिया,  उड़. कबूतर उड़. हाथी उड़ चल रहा था। बीच -बीच में गल्त  जवाब पर ठहाका गूँजता। फिर वही चाँटा प्रक्रिया ।अचानक पापा ने कहा मैं बोलूँगा। सब ध्यान से सुनना,दादाजी ने कहा, अब आया चैंपियन।चिड़िया उड़, कबूतर उड़,  बकरी उड़, जि़दगी उड़, पर सब की ऊँगलियाँ नीचे थीं पर पापा की ऊपर ।
       दादाजी ने कहा ,"रमेश बेटा यह क्या ?" रमेश ने गीली आवाज में कहा पर पिताजी जि़दगी तो उड़नी ही  चाहिए। मैं उड़ाऊगा चाहे कितने ही चाँटे खाने पड़े । सब ने एक साथ  दादाजी ने को देखा और अपनी -अपनी उँगलियाँ हस कर उठा दी। सच है जि़दगी की उड़ान कौन सकता है।*****
      
8. दोलो गुरू
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किन्नर समाज आज शोकमग्न है क्योंकि दोलो गुरू (मीना बाई)कई दिनों से अस्वस्थ थीं और आज तो डाक्टर ने भी जवाब दे दिया है।नये पुराने सभी चेले उनके कमरे में एकत्र होकर भजन गा रहें हैं। पर दोलो गुरू बिस्तर पर संतुष्ट, शांत ,मुग्ध अवस्था में लेटी थीं।उनके चेहरे पर बीच बीच में मधुर मुस्कान आ जा रही थी क्योंकि वह खुश हैं .,संतुष्ट है इस नयी किन्नर पीढ़ी की दृढता ,व आत्मविश्वास देखकर। उन्हें आज भी याद है ,जब वह समाज से तिरस्कृत घर -घर बधाई देने व ताली बजा कर नाचने व कभी- कभी तंगी में माँग कर खाने के लिए मजबूर हो जाती थी तब अत्यंत  शर्मनाक व अपमानित महसूस करती थी । ऐसे में एक शिक्षिका के घर में बधाई मांगने जब वह गई तो जीवन में अनोखा परिवर्तन आया।
             उस शिक्षिका ने कपड़ें, मिठाई, व रूपयों के साथ उसे साक्षरता अभियान का एक बस्ता दिया,जिसमें पढ़ने लिखने की साम्रगी थी व सिर पर हाथ रख कर दृढ़ता से आँखों में देखा।फिर दृढ़ पर आत्मिय आवाज में कहा,"इसे खोलना, पढ़ना, समझना तब देखना ,जिंदगी में बधाई दोगी नहीं लोगी ।यह आवाज भीतर तक उतरी, तब से परिश्रम से खुद पढ़ी अपने चेलों को भी गंडा बाँधते हुए एक ही गुरू मंत्र देती।"समाज में अपना नाम  अब बधाई देने नहीं लेने के लिए आगे लाना है"
               शुरुआत में सब ने दोलो ,दोलो कह कर खूब चिडाया,अपमानित किया ,पर मीना बाई ने हार नही मानी ।शिक्षा व गृह उधोग  में  सब को पारंगत किया। अनेकों को नारकीय जीवन से बचाया और वह कब मीना बाई से दोलो गुरू बनी पता ही ना चला। ****
    
9.ट्राई -ट्राई फिर से
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    कर्मचारियों के आंदोलन विभिन्न चरणों से गुजरता रहा। अपनी मागों के लिए संघर्ष हड़ताल, संसद भवन तक कूच आदि कई योजनाएं क्रियान्वित हुईं।पर सरकार के कानों पर जूं भी नहीं रेंगी।.निजी स्कूल के अध्यापक,अध्यापिकाएं,कर्मचारीगण नय जोश इक्ठ्ठा कर के मैदान में ड़टे थे।पर उनका आंदोलन पुरजोर असर नहीं पा रहा था। कम वेतन, कम हिम्मत, कम सहायता ज्यादा काम और ज्यादा दबाव उनकी नियति थी। सरकार और विभाग मौखिक आशवासन देकर अपना उल्लू तो सीधा कर लेते पर शेष वादे नीतियों के बवंड़र में उलझा देते। आज निर्णयाक आंदोलन था। थके -हारे चेहरे और निम्न स्तरीय विश्वास पर नेता उत्साह लाने की कोशिश कर रहे थे।पर वे  भीतर स्वयं जानते थे कि आज यदि कुछ सकरात्मक नहीं हुआ तो सब खत्म हो जाएगा।फिर से शून्य से प्रारंभ करना होगा। बुद्धिजीवी जब हार मान लेते हैं तो फिर मुश्किल हो जाती है ।
     एक समूह में युवा बैठे थे।कुछ ज्यादा ही निरूत्साहित हो रहे थे।धीरे-धीरे उनकी ठंड़ी भावनाएं सभी में फैलने लगी ।किसी ने कहा  यारों लगता है आज भी सब टाँय-टाँय फिस्स होने वाला है। उसी समूह के पीछे वृद्ध अध्यापकों का दल बैठा था। उम्र के इस पड़ाव पर भी हौसला जवान था।  खड़े होकर बोले , "अरे भाईयों जोर से बोलो ट्राई -ट्राई फिर"। एकदम ठहाका गूंजा और माहौल बदल गया। सभी एक दूसरे का हाथ थामें  सधे कदमों और नये उत्साह से, नये नारे के साथ निकल पड़े"    ट्राई -ट्राई फिर से । ****

 10.माँ बोली
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  मूल सिंह ने जैसे ही पर्यटन बस में पैर रखा।सभी विदेशी एक साथ अलग लहजे में बोले,नामस्ते, खामा घानी। सुनते ही मूलसिंह का मुँह खुला का खुला रह गया। कहाँ वो जर्मनी और अँग्रेजी के भारी -भारी शब्द याद कर के आया था कि प्रभाव पड़ेगा पर यहाँ तो नजारा ही और था। केसरिया साफे, दुप्पटे  पहन हिन्दी बोलने की ललक ने उसे अचंभित कर दिया। जयपुर के बारे में ऐतिहासिक जानकारी आरंभ करने से पहले उसने अँग्रेजी में कहा, मैं आप को अँग्रेजी और हिन्दी दोनों में सारी बातें बताऊँगा।
पर सब से वरिष्ठ अँग्रेज बोला , पहले  आप का माँ बोली हिन्डी  फिर हमारा भाषा।  उस  पूरे दिन मूल सिंह से अधिक उत्सुकता से हिन्दी बोलते, बीच -बीच में छाछ, मिर्ची बड़े और जलेबी खाते- खाते कब शाम हो गयी और गुलाबी नगरी में सारे फिरंगी केसरी हो गये पता ही नहीं चला। आज फिर से मूल सिंह ने अपने हिन्दी अध्यापक की सिखाई कविताएं और लोकोक्तियों को सरल तरीके से बातों बातों में सब को सुनाई और एक बार  फिर हीरो बना गया। हिन्दी की शिक्षा ने गौरव दिलवाया।****
 
11.परत
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जालपा गाँव के एक जाति विशेष के लोगों में अनोखा उत्साह नजर आ रहा था। कारण भी बड़ा था। उनके गाँव का पहला सरकारी उच्च अधिकारी किशनलाल था और उस के पोते का विवाह शहर में शानोशौकत से होने वाला था और  सभी उसके साक्षी बनने के लिए तैयार बैठे थे। रोज शाम चौपाल पर इसी बात की चर्चा कि किशनलाल की बहू चाहे बामन है पर बेटा और पोता तो अपना खून है देखना न्यौता जरूर आएगा। 
          शादी के मात्र सप्ताह भर पहले किशन बड़ी सी कार में सपरिवार आया।  गाँव के बडे बुजुर्गों को घर पर आमंत्रित कर आदर भाव से कहा कि थान पर आशीर्वाद लेने व आप सब को पोते से मिलाने लाया हूँ । एक और बात शादी के बाद पूरे गाँव को यहीं पर शानदार भोज दूंगा। तब आप लोग पतोहू को भी आशीष दे देना। फिर खोखली हंसी हसते हुए बोले.,,,",पतोहू भी तो एकबार अपने लोग देखे। 
      सब हतप्रभ, मौन,अनमने से एकदूसरे को देख रहे थे। क्या यह हमारा ही किशनवा है जो सुसभ्य भाषा में यह कह रहा है कि आप लोगों से दूरी ही ,आज की व भविष्य की जरूरत है। परतों के नीचे एक और जनजाति पनपने लगी है। शिक्षा ,ज्ञान, पद भी आँखों पर  यदि जाले बढ़ाती है फिर नैया कैसे पार लगेगी ? ****
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क्रमांक - 19
जन्म स्थान : रीवा (म.प्र.)
शिक्षा : बी एस सी , बी एड, एम ए राजनीति विज्ञान, एम फिल ( नीति  शोध ) 
व्यवसाय:  पूर्व उच्च श्रेणी शिक्षिका


लेखन विधा: -
सभी विधाओं पर 

प्रकाशित कृतियाँ- 
ई पुस्तक धवल काव्य, 
ई लघुकथा संग्रह -ड्योढ़ी के पार, 
ई उपन्यास- चंपा के फूल , बाल कविता ,कहानी संग्रह- आहुति।

सम्प्रति- 
प्रधान सम्पादक अविचल प्रभा, मासिक ई पत्रिका
कोषाध्यक्ष - साहित्य संगम संस्थान
अधीक्षिका- संगम सुवास नारी मंच

संपादन-
लघुकथा संगम, 
बरनाली- साझा उपन्यास, 
भाव स्पंदन काव्य संग्रह, 
रचनाकार विशेषांक- सहित्यमेध, शब्द समिधा ,अंतर्मन 

पता : - 

माँ नर्मदे नगर, म. न. 12, फेज -1,  बिलहरी 

जबलपुर - 482020  मध्यप्रदेश

1.लाचारी
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सुबह से घनघोर बारिश हो रही थी। न्यूज़ सुनते हुए रमन ने कहा " अनु आज बेसन की सब्जी बनाओ , इतनी बारिश में कोई सब्जी बेचने नहीं आयेगा ।
तभी उसे सब्जी वाले की आवाज सुनाई दी ।
अनु देखो तो इस बारिश में भी ये सब्जी वाला आया है ।
अनु छाता लेकर बाहर गयी, उसने उससे पूछा , भैया चारों ओर तो पानी - पानी है ; फिर तुम कैसे आए?
 तुम तो पूरा भींग गये हो, इतनी तेज बारिश में मत आया करो ।
क्या करूँ दीदी , ऐसे समय जब कोई नहीं निकलता तब ज्यादा दाम मिल जाता है । आज कोई ग्राहक मोल तोल भी नहीं कर रहा है , पूरी कालोनी में मेरा ही राज चल रहा है ।
कोरोना के समय बहुत से लोग इस धंधे में आ गए थे जिससे बिक्री कम हो गयी थी ।****

2.आड़ा वक्त
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 फोन पर सर से बात  करने के बाद वो अनमना सा हो गया ; सोफे पर बैठे- बैठे उसे कुरेदते हुए  सोचने लगा कि काश सही समय पर उसने माँ की बातों पर ध्यान दिया होता । माँ हमेशा कहती कि बेटा " केवल पढ़ाई में डूबे रहने से जिंदगी नहीं चलती , कोई न कोई ऐसा हुनर सीखो ,  जो आड़े वक्त में तुम्हारी रोजी- रोटी का एक जरिया भी हो जायेगा ।
पर मुझे तो उनकी बातें हमेशा से कड़वी ही लगतीं थीं ।
माँ ये बिना मतलब की बातें मुझे मत सिखाया करो , मुझे पता है, क्या सही है, क्या गलत, भड़कते हुए उसने कहा ।
माँ चुपचाप अपना सा मुँह लेकर रह गयी ।
कोरोना काल में जब अधिकांश लोगों की छटनी हो रही थी, तभी उसे भी काम से निकाल दिया गया; अब माँ की सीख याद आ रही थी,  काश मैंने अपने खाली क्षणों का सदुपयोग किया होता ।
तभी माँ ने उससे कहा बेटा,  मैं हमेशा से ही एक बुटीक खोलना चाहती थी, अब तो सरकार बहुत सी सुविधाएँ भी दे रही है ; ऐसा करो मेरे पास कुछ पैसा है जिससे  जरूरत का सामान आ जायेगा । तुम बुटीक खोल लो,  तो हम लोग मिलकर इसे आगे बढ़ा सकते हैं । ******

3.अनुत्तरित
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आकाश की ओर देखकर धरती रानी व्यथित हो कहने लगी,   क्षितिज ज्यादा दिनों का मेहमान नहीं ,वृक्ष भी, वर्षा भी परन्तु शहरीकरण ने मेरे आवरण को कांक्रीट से भर कर मुझे प्यासा करके छोड़ा, लगातार गिरती बूंदों को देखकर ख़ुश होती हूँ पर ये  अस्थायी है,  कुछ नहीं कर पाती , जल सोखने के लिए कोई जगह ही नहीं तभी तो भूकम्प , अचानक से भूस्खलन जैसे कदम उठाने पड़ जाते हैं ।
आकाश  भी कहने लगा जब मिलने की आस  न हो तो व्यर्थ बरसने से क्या फायदा इसलिए  कहीं  तो मैं अति वृष्टि कर देता हूँ, कहीं मौन रहकर प्रतीक्षा करता हूँ  जन मन के निर्णय का ।
अभी तक मौन बैठा पर्यावरण कराहते हुए कहने लगा कि ओजोन परत तो टूटने लगी, मेरे हिस्से जीव -जंतु,  वायु,  हरियाली सब एक - एक कर मेरी आँखों के सामने  दम तोड़ रहें हैं और में बेबस लाचार होकर देख  रहा हूँ , बस अब और  नहीं .....
समझना होगा तुम्हें भी कि मैं  ज्यादा दिन का मेहमान नहीं,   जितना जरूरी नदी और सागर का मिलन है उससे कहीं अधिक जरूरी धरती आकाश का मिलन ....
तीनों ही प्रश्न भरी निगाह से जन मन ओर देखे जा रहे थे ।******

4.आखिरी बार
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सुमी का मुरझा हुआ चेहरा देख कर उसकी माँ ने पूछा,  क्या हुआ बेटा ?
कुछ नहीं माँ, कल हिंदी का पेपर है; एक उत्तर याद करो तो दूसरा भूल जाता  है , झुंझलाते हुए उसने कहा ।
कितनी बार समझाया कि इसे विषय की तरह नहीं , अपनी माँ समझ कर पढ़ा करो । पहले पूरे पाठ को पढ़ो, समझो फिर अपने शब्दों में उसी तरह लिख कर अभिव्यक्त करो ; मानो मुझसे बात कर रही हो ।
पर क्या करूँ माँ, मैं तो बोलचाल में हिंगलिश का प्रयोग करती हूँ ।भाषा की ऐसी खिचड़ी देखकर तो मुझे मैम से डाँट पड़ेगी ।
अब समझ में आया कि मैं क्यों टोकती हूँ, उसकी माँ ने गम्भीर स्वर में कहा । तुम्हें, यही तो सदैव समझाने की कोशिश करती रही हूं , कि जैसा बोलोगी ,वैसा लिखोगी, जो पढ़ोगी वही सोचोगी ।
पर अब क्या करूँ ...? सुमी ने निराश होते हुए पूछा ।
बस ये आखिरी बार है , पूरा पढ़कर तुम्हें , अपने शब्दों में समझाती हूँ , ताकि कल के पेपर में अच्छे अंक आ सके ।
माँ , मैं वादा करती हूँ, अब हिंदी बोलते व लिखते समय शुद्ध हिंदी का प्रयोग करूँगी , कहते हुए सुमी माँ के गले लग गयी । *****

5.बात में वजन
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मानसी विचारों की उधेड़बुन में खोयी हुई थी, उसके कानों में अपशब्द की गूँज हमेशा सुनाई देती रहती ।
उसने अपने पति से पूछा क्या आप लोग बिना गाली के बात नहीं कर सकते ? 
देखो तुम मेरे मामले में दखल मत दिया करो , उसके पति ने बिना उसकी ओर देखे ही कहा ।
वो तो ठीक है , पर कहते हैं;  शब्द तो ब्रह्म होता है , इसमें सरस्वती का वास होता , और आप तो रोज सुबह पूजा व नियमित धार्मिक ग्रन्थों का पाठ भी करते हैं , फिर भी मुझे ये याद दिलाना पड़ रहा है , मानसी ने उदासी भरे स्वर से कहा ।
सौ बार समझा चुका हूँ , कुछ नौकरी ऐसी होती हैं, जिसमें इसके बिना काम नहीं चलता , अब ज्यादा ज्ञान मत बघारो, जाओ यहाँ से ।  तुम औरतों की यही आदत होती है ; थोड़ा सा ढंग से बात कर लो तो सिर पर चढ़ जाती हैं ।
आकाश की ओर देखकर मानसी ने केवल सिर हिला दिया ; मन ही मन सोचने लगी ;  कैसी - कैसी सोच के इंसान होते हैं ।
ये देखकर उसके पति ने कुटिल मुस्कान बिखेरते हुए कहा , बात में वजन बढ़ाने हेतु ये सब जरूरी होता है । देखो तुम को जो ऐसोआराम मिल रहा है, उसी में मगन रहो ; भविष्य में मुझे समझाने की भूल मत करना ।******

6.संकल्प
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सरपंच जी ने अचानक से चौपाल क्यों बुलाई सभी के मन में ये प्रश्न उठ रहा था । 
एक तो महामारी दूसरे गॉंव की सीमा पर शहर से लौटे परिवार जिसके कारण सभी चिंतित थे ।
जेठ की भरी दुपहरी में बरगद की छाया तले चौपाल में बैठे सरपंच जी ने अन्य पंचों व ग्रामवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि , "आप लोग तो जानते ही हैं कि , अपने गाँव के बेटे सपरिवार शहरों से लौट रहे हैं । अभी तो वे लोग कोरेन्टीन हैं , जैसे ही 14 दिन पूरे होंगे वे लोग अपने- अपने घरों में आ जायेंगे  , तो बताइए काका जी आप सबसे बुजुर्ग हैं , इस हेतु हमें क्या करना चाहिए ?
देखो बेटा , मेरी राय तो यही है कि इस समय वे लोग मानसिक , शारीरिक व आर्थिक रूप से कमजोर हैं , काम चले जाने का दुःख भी उन लोगों को खाये जा रहा होगा । उनमें से सारे ही लोग हमें या तो काका , दादा या ताऊ कहते हैं , सो पिता का फर्ज तो हम सबको निभाना चाहिए ।
सरपंच जी  ने सिर हिलाते हुए कहा ,आपने सही कहा ताऊ ।
अब पंचों की ओर देखते हुए सरपंच जी ने कहा आप लोग भी कुछ सुझाव दें ।
उनमें से एक पंच ने कहा ,  देखिए हम लोग थोड़ी- थोड़ी मदद करें तो उन सबको पुनः नया जीवन दे सकते हैं ।
वहाँ बैठे जमीदार साहब ने कहा मैं हर  जरूरतमंद परिवार को 30 - 30 किलो गेंहू दूँगा । 
दूसरे बड़े किसान ने कहा मैं दाल दूँगा , इसी तरह अन्य लोग भी मदद के लिए आगे आये ।
देखते ही देखते दैनिक जरूरतों की चीजों की आपूर्ति हेतु लोग आगे आने लगे।
जिन- जिन घरों के बच्चे लौट कर आये थे उन सबके घरों में सारी सामग्री पहुँचा दी गयी । जिससे उन लोगों के माता - पिता भी बहुत खुश हुए ।
जब वे लोग कोरेन्टीन सेंटर से अपने- अपने घरों को जाने हेतु निकले  तो देखा कि सारे ग्रामवासी आरती का थाल लेकर  स्वागत हेतु खड़े हैं ।
अब तो सबकी आँखों से खुशी के आँसू बहने लगे ।
सरपंच जी ने कहा आप लोग चिंता न करें ,  यहाँ जरूरत की सभी चीजें हम लोग मिलकर आप सब तक पहुँचायेंगे , अब निश्चिन्त होकर अपने- अपने घरों में चैन से रहें ।
शहर से लौटे हुए सभी लोगों ने एक स्वर में कहा वास्तव में अपना गाँव अपना घर ही होता  है ।
 हम अब यहीं रहकर काम करेंगे ,और अपने गाँव को ही शहर से बेहतर बनायेंगे । *****

7.उदारता
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अपने प्रशासनिक अधिकारी बेटे की तारीफ में कसीदे गढ़ती हुई माँ फूली नहीं समा रही थी । लगभग 50 लड़कियों को देखकर मना करने के बाद अंततः इसी पर उनकी सहमति बनी । बड़े धूमधाम से बहू घर आयी । 
सभी तारीफ़ करते नहीं थक  रहे थे कि वास्तव में आपने  बिना दहेज की शादी करके मिशाल कायम की है ।सदियों तक लोग आपकी उदारता का उदाहरण देंगे ।
उन्होंने कहा बेटे ने साफ कह दिया था ;  मुझे बिना नौकरी, बिना दहेज वाली लड़की ही चाहिए । सो उसकी बात तो माननी ही थी ।
  ऐसी क्या बात है ; जो आपने इसका ही चुनाव किया ; भाभी ? ननद ने पूछा ।
लगभग सारे लोग बार - बार  यही प्रश्न कर रहे थे । सबसे  तंग आकर  आखिरकार उनके मुँह से निकल ही गया  इकलौती लड़की । *****

8.धरोहर
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कई पीढ़ियों से बूढ़े बरगद की छाँव में बैठ कर सज्जनपुर गाँव के पंच न्याय करते चले आ रहे  थे । समय के साथ-साथ लोगो की सोच, वेश- भूषा, रहन -सहन का ढंग बदल रहा था । यहाँ सरपंच पद हेतु महिला सीट आरक्षित थी । 
  इस बार सरपंच  सुनीता देवी बनी , तो उनके घर का दबदबा बढ़ गया ।  पति, बच्चे, देवर, जेठ यहाँ तक कि पड़ोसी भी अपने आप को सरपंच मानने लगे । एक दिन बातों ही बातों में  परिवार के सभी सदस्यों ने मिलकर तय किया कि हमारे घर की बहू  बरगद  के नीचे खुले में नहीं बैठेगी  उसके लिए यहाँ एक कमरा बनना चाहिए । आनन -फानन में निर्णय हुआ कि इस पेड़ को काट दिया जावे ।  वैसे भी यहाँ  बीच में लगा  जगह ही घेर रहा है ।
किसी चीज़ के विनाश की बात हो तो लोगों की सहमति मिलते देर नहीं लगती ,जैसे ही प्रस्ताव रखा गया , सहर्ष सहमति मिल गयी ; अब तो पेड़ की कटाई शुरू ही होने वाली थी तभी  ये बात सुनीता देवी को पता चली । 
उन्होंने क्रोधित हुए कहा कि " सरपंच मैं हूँ, कोई भी निर्णय करना मेरा अधिकार है , न कि आप लोगों का ।  ये पेड़ हमारे पुरखों की  धरोहर है ;  इसकी छाँव से आप किसी को वंचित नहीं कर सकते  , मैं इसकी छाँव में बैठकर अपने दायित्वों का पालन करूँगी ।*****

9.कैनवास
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दादी देखो ये लट्टू कैसे घूम रहा नन्हीं परी ने कहा । हाँ बेटा , लट्टू ही तो है जो सदैव घूमने की प्रेरणा देता है कहते - कहते रमा चुप हो गयी । अब तीन वर्ष की बच्ची से क्या कहे ? मन ही मन सोचने लगी कर्तव्यों का पालन करते हुए जीवन व्यतीत करती रही, कभी अपने लिए सोचा ही नहीं । कार्यों का क्या एक पूरा होता नहीं कि दूसरा अचानक से आ जाता है । जब भी इस बारे में विक्रम से कहा तो गंभीर होकर वे कहते कि बस बच्चों को पढ़ा लिखा कर लाइन में लगा दो वो अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ तो जी भर अपने शौक पूरे करना, तब तक मैं भी रिटायर हो जाऊँगा , बस तुम ये समझ लो कि तुम्हें मुफ्त का पर्सनल असिस्टेंट मिल जाएगा । वो भी ठंडी आह भरते हुए कहती ठीक है जो आज्ञा सरकार । इसी तरह दिन बीतते गए समय पंख लगा कर कैसे उड़ गया पता ही नहीं चला , जीवन के 55 बसंत पूरे कर लिए ,दादी व नानी भी बन गयी । बेटा - बहू , बेटी - दामाद सभी नौकरी करते हैं, जहाँ भी जरूरत होती बुलावा आ जाता अब तो एक पैर घर में तो दूसरा बाहर ; ऐसे हालत हो गए थे । महत्वाकांक्षा पूर्ण होने तो दूर अपना सुख- दुख साझा करने वाला साथी भी दिन पर दिन दूर होने लगा । तभी पोती की आवाज से तंद्रा टूटी और मन ही मन ये निर्णय लिया कि इन दायित्वों के साथ- साथ अपने शौक को भी जीवित रखूँगी , बस अब और नहीं , जल्दी ही मेरे कैनवास में आत्मविश्वास के नए रंग झलकेंगे ।
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10.लिली के फूल
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रमा अपने बगीचे में इधर से उधर टहल रही थी, उसका मन बहुत व्यथित था । जब से डॉ ने उससे कहा कि उसके बच्चे का जीवन कुछ ही दिनों का है; उसके आँसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे । उथल-पुथल जीवन में आना कोई बड़ी बात नहीं पर जिससे खून का रिश्ता हो , जिसे नौ माह तक सहेजा हो अचानक से उसके मिट जाने का दंश , वो खुद को कैसे सम्हाले .....? डॉक्टर ने तो कह दिया अब केवल दुआ ही बचा सकती है । क्या माँ में इतनी शक्ति है कि वो इस चुनौती को स्वीकार करे, वो कैसी माँ जो अपने बच्चे की जिंदगी न बचा पाए ....? कहा तो यही जाता है कि माँ धरती पर भगवान का प्रतिरूप है । टहलते-टहलते वह लिली की क्यारी तक आ गयी, वहाँ उसकी नज़र कुछ कलियाँ, कुछ फूल, कुछ सूखे फूल पर गयी, उसे ऐसा लगा कि वे सब उसे जीवन का मर्म समझा रहे हैं । अपने मन में उठ रहे इसी अनुत्तरित प्रश्न को तलाशते हुए वो लिली की खिलती कलियों से मन ही मन प्रश्न कर बैठी जिसका उत्तर उसे अपने भीतर ही तलाशना है ......। *****

11.नयी सुबह
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सारी रात आँसू बहते रहे, करवट बदलते हुए वो यही सोचे जा रही थी कि इस बार फिर एक नंबर कम होने से मेडिकल की पढ़ाई हेतु चयनित नहीं हो सकी ; बड़ी दुविधा में थी क्या करे क्या न करे ? अचानक से उम्मीदों का टूटना , वर्षों से जो स्वप्न संजोये थे वे सब आँखों के सामने एक-एक कर नजऱ आ रहे थे, उसे ऐसा लगा मानो किसी ने उसे आसमान से गिरा दिया हो , वो मन ही मन सोचने लगी , मैं सबका सामना कैसे करूँगी, लोग क्या कहेंगे , बड़े- बड़े बोल बोलती थी अब क्या होगा ? उसके कानों में तरह-तरह की आवाजें गूँजने लगीं उसने तय कर लिया कि वो अब अपना जीवन समाप्त कर देगी । सहसा उसे पक्षियों के चहचहाने की आवाज सुनाई दी, ऐसा लगा मानो वे एक स्वर में कह रहे हैं कि " रीना तुम इतनी कमज़ोर नहीं हो सकती, तुम्हें लोगों को दिखा देना है, कि हर रात एक नयी सुबह लेकर आती है । " 
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क्रमांक - 20
 माता : श्रीमती रमा सक्सेना
 पिता:श्री जगदीश सरन 
 पति: श्री यू.सी.सक्सेना (Sr.EDPM N.Rly)
 शिक्षा : एम.ए. प्रशिक्षित ,पी-एच.डी (हिन्दी)

 संप्रति: -
 इंटर कॉलेज में अध्यापन कार्य से सेवानिवृत्त होकर स्वतन्त्र लेखन में व्यस्त

उपलब्धि : -
सन् 1980 से आकाशवाणी रामपुर से कविता प्रसारित। पांच काव्य-संग्रहों में 20 कविताएं छप चुकी हैं।
लघुकथा,कहानी एवं परिचर्चा इत्यादि ब्लाग तथा मंचों पर प्रकाशित हो चुकी है ;जिनमे कई रचनाओं पर सम्मान प्राप्त हो चुका है

पता : -
 सी -  2/202 मानसरोवर कालोनी , 
मुरादाबाद - 244001 उत्तर प्रदेश
1. प्रकृति का खेल
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 पंडित बाबूलाल, कॉन्ट्रैक्टर भिखारी लाल और फाॅरेस्ट ऑफिसर नैनसुख में दोस्ती थी।
भिखारी लाल ने वनविभाग के अधिकारी नैनसुख से कहा----" हमारे घर से 70 किलोमीटर दूर पर एक घना जंगल है। आपको मोटी रकम मिल जाएगी। आप उसे खरीदवाने में हमारी मदद करें। हम संपूर्ण सुविधा से युक्त एक काॅलोनी वहां बनाएंगे"। नैन सुख ने हाँ कर दी।
 जंगल काटा जाने लगा। वहां बड़े-बड़े वृक्षों का करूण क्रंदन किसी ने नहीं सुना।
 उधर भिखारी लाल की पत्नी ने अपनी सहेली, रिश्तेदारों को फोन पर निमंत्रण भी दे दिया कि पंडित बाबूलाल ने 01 मई को हमारे द्वारा खरीदी गई भूमि पूजन का शुभ मुहूर्त निकाला है। आप सब पधारें।
 बाबूलाल उच्च कोटि के पंडित थे। सारे मुहूर्त निकाल लेते थे । टीवी स्क्रीन पर उनके कार्यक्रम आए दिन श्रोता बड़े ध्यान से सुनते।  एक दिन अपने  कथा प्रवचन में वह सब को संतुष्ट कर रहे थे  --"ऑक्सीजन बचाने के लिए पेड़ लगाते रहो पुराने पेड़ों को जिंदा रखो"।
 तभी कुछ लोगों ने 30 मई को tv न्यूज़ में सुना कि तीनों व्यक्ति कोरोना संक्रमित  होकर आक्सीजन की किल्लत झेलते- झेलते......  भगवान के धाम आक्सीजन की गुहार लगाने पहुंच गए। ****

2. नौटंकी
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 एक महामहिम अपने देश की अपार जनशक्ति से खुशहाल तो थे पर सब को भरपूर सुख सुविधा भविष्य में भी मिलती रहे हैं यह सोच थोड़ा गंभीर हुए ।एक दिन इस चिंतन को अपने परम मित्र से शेयर कर राय मांगी। परम मित्र ने कहा "चिंता क्या?? एक वायरस तैयार करते हैं। छुपा कर रखेंगे और उचित समय पर इसे प्रयोग कर लेंगे।"
    मित्र ने तुरंत एक विश्वासपात्र वैज्ञानिक से संपर्क कर इस विषय पर नया अविष्कार करने की बात रखी।
    वैज्ञानिक गुमनामी जी ने भी वायरस तैयार हो गया ओके सर कहकर राहत की सांस ली पर यह क्या वह तो कुछ दिन बाद दुनिया से चल बसे।
 पत्रकारों का दल गुमनामी जी की मृत्यु के कारणों को खोजता तह में पहुंच ही गया। एक पत्रकार ने कहा - "गुमनामी जी ने मानव- मारक वायरस तैयार किया था। अचानक उन पर ही यह प्रयोग क्यों? क्यों? कैसे? ओह!  मुख्य  मुख्य लोग चाऊमीन हो गए"। 
   यह बातें जनता तक पहुंची इधर पेपर में खबरें छपती रही। गणितीय आंकड़ा हजारों से लाखों में पहुंच सबको संक्रमित करने लगा। एक विदेशी जो बाहर रह रहा था बोला-- "यह सब हमें मारने की तैयारी है। इंसान को इंसान खा रहा है। हमें स्वदेश लौटना होगा"।
 यह खबर हवा होती तेजी से सारे वहां रह रहे विदेशियों ही क्या आम जनता में पहुंची। दूसरा विदेशी, तीसरा विदेशी, चौथा विदेशी कुछ संक्रमित कुछ असंक्रमित लौटने लगे अपने वतन को।
 महामहिम अपने परम मित्र से बोले-- "यह क्या हो रहा है??? ऐसा तो हमने सोचा भी न था"। ****

3. हींग लगे न फिटकरी
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 दादी ओ दादी! एक बात बताओ। क्या बताऊं दादी ने रामू से कहा।
 दादी मैं पढ़ता हूं फिर भी मेरे नंबर इतने कम आए हैं और अंग्रेजी में तो फेल ही हो गया हूं।
 सुन बेटा-" मेहनत कर; रात दिन पढ़। अंग्रेजी तो बहुत कठिन होती है।
" हां दादी इस बार स्कूल जाना तो हो ही नहीं रहा। करोना के कारण स्कूल बंद है। कई महीने बीत गए। परीक्षाएं भी निकट हैं। क्या करू -- ऑनलाइन पढ़ाई तो समझ ही नहीं आती।"
 देख बेटा घर पर तो और मन लगाकर पढ़। पास हो जाएगा।
 तभी एकाएक सरकारी घोषणा हुई कि कोरोना के चलते दसवीं के बच्चों को भी बिना परीक्षा के अगली कक्षा मिल जाएगी। अब क्या था।
 हंसता हुआ रामू दो-दो हाथ उछलता- कूदता, हंसी के फव्वारे छोड़ता दादी के पास आया।
 "देखो दादी देखो- मैं पास हो गया। लो मां ने भी यह मिठाई बना कर दी है। खा लो, खा लो।
 जय हो भगवान हमारा बिटवा पास हो गवा रे।
 तभी कमरे से बाहर आते हुए रामू के पिता ने कहा-" हां बेटा , पास होने में कोई परिश्रम तो तुम्हें करना नहीं पड़ा ठीक ही है; हींग लगी न फिटकरी रंग चोखा ही चोखा"।
सब के  चेहरे खिले- खिले थे कि रामू पास हो गया।****
  
4.हीरे की कीमत जौहरी जाने 
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डाॅ.विदुषी सर्वगुण संपन्न महिला हैं । कॉलेज में प्रवक्ता पद से सेवानिवृत्त होकर वह घर गृहस्थी के कार्य से निवृत्त होकर अपना खाली समय साहित्य लेखन में लगाती हैं। उन्होंने सोचा - "रिटायर्ड भले ही हो गई हूं पर मैं मानसिक श्रम मनोरंजन हेतु बड़े मनोयोग से करती रहूंगी ।" वह विभिन्न साहित्यिक मंचों से जुड़ गई और पेपर पत्रिकाओं में छपने लगी उनके पति देव सरकारी नौकरी में ऑफीसर पद से रिटायर्ड हो गए थे। वह गंभीर प्रकृति के अल्पभाषी अपने पति का बहुत ध्यान रखती हैं। एक दिन डॉक्टर विदुषी कविता लिख रही थी। पतिदेव बाजार से सामान लेने गए हुए थे । गेट पर रिंग हुई उन्होंने देखा- तो पति देव मार्केट से वापस आ गए वह फिर उन्हें पानी देकर लिखने बैठ गई। तभी अचानक वह कहने लगे-" मुझे तो यह लेखक कवि पागल हिंदुस्तानी डॉक्टर लगते हैं। अपनी धुन में मस्त ....।आम पब्लिक नहीं सुनती उनकी कविता कहानी । मुझे बिल्कुल भी पसंद नहीं है और तुम भी  पागल हो गई हो जब देखो लिखती रहती हो। गुनगुनाती रहती हो "। डाॅ.विदुषी बोलीं -" अब शांत हो जाओ ;बहुत गर्मी है ।  AC में बैठ जाओ " पर वह बोले ही जा रहे थे। कहने लगे - " लगता है एकदिन  तुम ईटें बजाने लगोगी " ।  यह सुनते ही डॉ विदुषी  ने कहा -" क्या बात है  इतना गरम क्यों पड़ रहे हो । अरे रिटायर हुई हूँ   पर मानसिक रूप से नहीं ;  मुझे सृजन से सक्रियता बनाए रखनी है। क्या बात है जब मैं आपके सारे कार्य समय पर निपटा देती हूं तो....। आप सारा दिन टी वी पर राजनीतिक- बहस देखते रहते हैं तो मैं क्या कुछ कहती हूं।" डॉक्टर विदुषी आंखों में आंसू लिए मन ही मन सोचने लगी..... " साहित्य एक ऐसा हीरा है जो बहुत कीमती होता है इसकी कीमत  और कद्र तो  .................   । ****
         
5. प्याज़
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 एक दिन तुम्हारी दादी बैंगन का भरता बनाने जा रहीं थीं । उनके हाथ में दो प्याज थे। प्याज छीलती जायें और कहतीं-- " गोल मटोल हो" 
 दबे ढके हो पर सजाने लायक ना हो; तुम में गुण बहुत हैं। प्याज छिलता जा रहा और सुंदर सफेद होता जा रहा पर स्वयं में मुस्कुरा रहा था और शायद स्वयं अपनी आगे की कार्यवाही पर बड़ा गर्वित हो रहा था। तुम्हारी दादी ने उसे काटना शुरू किया । प्याज को अपने छिलके उतरवाने पर तो बुरा नहीं लगा । उसने सोचा कि  गर्मी बहुत है कोई  बात नहीं पर जब उसके अहंकार पर चोट हुई तो उसने पता है; क्या किया? तुम्हारी दादी को बहुत रुलाया। मार  असुंबन की धार बहे ।
  भरता बना सब ने खाया ठहाका लगाया । बेचारा प्याज अब अपना मूल अस्तित्व मिटाकर स्वाद के रंग  की ऊंचाइयों में मिल गया।
  बच्चों--" ऐसी ही हम मनुष्यों को प्याज की तरह दूसरे के जीवन में काम आना चाहिए। जैसे एक सैनिक देश के लिए........। एक सरकारी कर्मचारी पूरी निष्ठा से अपने विभाग में..... "।तो बच्चो समझे- "संस्कार रूपी प्याज परिवार के लिए कितना जरूरी है।" ******
   
6. मूढ़मति 
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 ओए शेरू बड़ा खुश नजर आवे ।तुसी क्या लागे??? क्यों ना खुश होऊं। आज हमें इतिहास रचना है। काहे ?  26 जनवरी में लाल किले पर झंडा फहराना है।
       दोनों लोग बात कर ही रहे थे, अंदर से शेरू की पत्नी जसवंती बोली- अजी तुसी नहीं पता- लालकिले पर तो स्वतंत्रता दिवस वाले दिन प्रधानमंत्री ध्वजारोहण करते हैं और 26 जनवरी को तो राजपथ पर राष्ट्रपति झंडा फहराते हैं। ओए जनानी- मुझे भाषण वाषण न दे। हमें तो किसान आंदोलन को बड़ी हवा देनी है। चाहे कुछ भी हो जाए ।सरकार और पुलिसियों को धूल चटानी है।सारी दुनिया हमारा लोहा मान लेगी।
       ओए मेरी गल सुण !  यह लोहा मनवाना नहीं है  , ना ही किसी को धूल चटाणी हुई , सुन- हम अपने घर के त्यौहार  कितनी खुशी से बिना किसी से फ़साद किए, खुशनुमा माहौल में मनाते हैं। फिर तू क्यों नहीं समझता ?  26 जनवरी तो हमारा राष्ट्रीय त्यौहार है। यह देश हमारा घर है, यहां के रहने वाले सब अपने ही हैं, अरे आंदोलन करना है तो कर। पर राष्ट्रीय त्यौहार पर तो धैर्य और शांति रख । ओए मैनू तेरी गल नहीं सुनणी..........।****
            
7.ज़मीर
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 बहुत समय से कॉलोनी में कई कबाड़ी आते हैं। दिवाली से पहले नैना ने कई कबाड़ियों से पूछा - अखबार की रद्दी का क्या रेट है? वह बोला- 8रू.  किलो । नैना ने कहा- पड़ोस  में दूसरे ने बेचा, तो  ₹14 भाव से।वह बोला- चलो ले आओ । बोनी का टाइम है ,नहीं तो सारा दिन खराब हो जायेगा। 10 किलो रद्दी के कबाड़ी ने ₹140 नैना को दिए।
      वह रोज आता पर उसकी नज़र नैना के दूसरी मंजिल पर रखी इलेक्ट्रिक बैटरी पर पड़ी
       इन दिनों जून की तेज गर्मी सब एसी कूलर में आराम फरमा रहे होते हैं। जेंट्स सब ऑफिस गए होते हैं। कबाड़ी ने मौका पाकर दूसरी मंजिल पर अवैध रास्ते से पहुंचकर बैटरी को नीचे फेंका। दोपहर में सुनसान था। एक आवाज जरूर हुई तो पड़ोस की शर्मा जी की मिसेज ने सोचा किसी की गाड़ी के पहिए में वस्टॆ हुआ होगा, ऐसा सोच वह भी  बाहर नहीं निकलीं।
      अगले दिन नैना ने देखा तो 5000 की बैटरी गायब। वह सन्न  रह गई ।उसने सीसी टीवी कैमरे से परख की तो तुरंत ताड़ गई और आने वाले कबाड़ी पर नजर रखने लगी और सोचने लगी रद्दी का   भाव ₹10 चल रहा है ।मैंने भी कबाड़ी को क्यों ₹14 में रद्दी लेने की बात कही।कहीं कबाड़ी तो......। थोड़े से लाभ के लिए मेरा ....... .। 
   15 दिन के बाद वही कबाड़ी सीसी टीवी कैमरे की फुटेज से पकड़े जाने पर सोचने लगा काश..............। ****

8.दृष्टिकोण
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2020 -21 के सत्र में स्कूल में पहला पीरियड मिसेज प्रेमा का हिंदी का होता है।सभी विद्यार्थी असेंबली से आने के बाद कक्षा में बड़ी तन्मयता के साथ प्रेमा मैम की पढ़ाई  का अंदाज और हिंदी के प्रति उनकी आत्मीयता पर मंत्रमुग्ध थे।
         आज क्लास में प्रेमा मैंम ने छात्रों से कहा--" सितंबर मास चल रहा है। बताओ इस माह में कौन सा दिवस हम सब मनाएंगे"? कुछ विद्यार्थियों ने प्रत्युत्तर में कहा  -"14 सितम्बर"।कुछ ने कहा- "हिन्दी दिवस"।मैम ने कहा--"ठीक है।हमें इस दिन को उत्सव के रूप में मनाना है कुछ बच्चे भाषण और कविताएं तैयार कर लें"।
   कक्षा के होनहार विद्यार्थियों में प्रेम एवं लवी ने सहभागिता के लिए हामी भर दी।
       उत्सव शुरु हुआ प्रेम ने मंच पर आकर बोलना शुरु किया। प्रेम ने  कहा-" जैसे मेरे नाम में ढाई अक्षर हैं;  वैसे ही मेरी मातृभाषा "हिंदी" ढाई आखर स्वरूपा, मेरी प्रेमा मैम की देववाणी सी सरल, सहज, मधुर,सर्वहितकारी है।"
         तालियों की गड़गड़ाहट से विद्यालय प्रांगण गूंज उठा। एक छात्र ने दूसरे से कहा ----  "अरे यार, क्या शिक्षाप्रद भाषण दे रहा है"? दूसरा बोला-- "हां यार, ठीक तो कह रहा है ........। *****
  
9.मिक्सदाल
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 "क्या है मम्मी? यह क्या दाल बनाई है"; बेटे ने पहला कौर खाते ही मां से पूछा ।
"बेटा तुम और तुम्हारे पापा दोनों ही एक जैसे हो"
 "क्यों क्यों?? यह तो पसंद- पसंद की बात है। मुझे तो केवल उड़द की धुली दाल  चाहिए"- बेटे ने उत्तर दिया। 
"तुम तो रामपुरी नवाब ही हो रहे हो। तुम्हें पता है मिक्स दाल में कितनी ताकत होती है। अरे एक दाल में एक ही प्रकार की पोषकता होती है; पर जब हम कई दाल मिलाकर बनाते हैं, तो उसकी पोषकता, ताकत और मजा गजब का होता है; जैसे --संयुक्त परिवार की विशेषताएं ,ऐसा मां ने बेटे से कहा"। *****

10.कड़वा सच
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"अजी सुनते हो, अपना बेटा घर आ रहा है।" " हाँ, हाँ "।
 "जानती भी हो, मुंबई से पैदल आ रहा है; कोरोना का लॉक डाउन जो चल रहा है। मेरी तो समझ में नहीं आ रहा; कैसे- कैसे वह घर पहुंचेगा? अपने गांव के तो कई लोग हैं। सब साथ में हैं। 8 दिन से पहले नहीं पहुंचेगा"।
     टीवी में समाचार सुनते ही सबके होश उड़ गए। पता चला जिस ट्रक से आ रहे हैं; वह तो दूसरे ट्रक से भिड़ गया। कुछ लोग मारे गए हैं।  "नहीं, नहीं ,ऐसा नहीं हो सकता"।
       पूरा घर जोर- जोर से रोने लगा, फिर पता चला कि कुछ लोग बच गए हैं। फिर धन्नो ने कहा  -"7 दिन तो हो गए हैं। जो बचे हैं ;उनमें हमारा बेटा जरूर होगा। मैंने सपने में देखा है"।
       अगले दिन उनके दरवाजे पुलिस पहुंची; चार प्रवासी मज़दूरों के साथ; उन्हें घर तक छोड़ने के लिए।
 घर के मुखिया धर्मपाल ने कहा--" साहब ,अभी रुको, इन्हें अभी 14 दिन पास में ही मेरा खेत है; वही रहने दो। हम वहीं इन्हें रोटी पानी दे आएंगे"।
       2 गज के फासले पर खड़े, आंखों में आंसू भरे रामू के मुंह से यही निकला-" हाँ- हाँ ,बाबू! यह सच है। 14 दिन के एकांतवास के बाद ही, मैं घर आऊंगा। मुझे खेत में ही दूर से रोटी- पानी जरूर- जरूर पहुंचा देना.......।" ****
 
11. आत्मीयता
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 पवन के घर में अमरूद के पेड़ पर चिड़िया का घोंसला बना हुआ था। उसी पेड़ के नीचे पवन की दो गाय बंधी रहती थी। चिड़ियों ने गाय के भूसे में से तिनका- तिनका  जोड़ जाड़ कर वहां घोंसला बनाया था और जो चारा, अनाज गाय खाती थी; उसी में से वह चिड़िया चुन- चुन कर दाने अपने घोसले में रख आती थी। 
एक दिन पवन का बेटा अपने साथियों के साथ डंडे से अमरूद तोड़ने लगा। डंडा घोंसले पर लगा और नीचे गिर पड़ा। चिड़िया चीं चीं करती उड़ती रही। गाय को भी यह सब बुरा लगा और वह खूंटा तोड़ने की कोशिश करती हुई जोर-जोर से रंभाने लगी ।
                    उधर फल प्राप्ति की स्वार्थ- सिद्धि में बेचारी चिड़ियों की किसे परवाह थी। कुछ देर चीं चीं करती घूमती फिरती परेशान दोनों चिड़ियां कभी गाय के सींग पर ,तो कभी पीठ पर फुदकती रहीं। गायें उसका दर्द समझ रही थीं। 
         उसने मालिक के द्वारा दिए गए चारे को मुंह नहीं लगाया और उदास अनमनी होकर अपनी गर्दन नीचे टिका कर अपनी पीठ पर बैठी चिड़ियों  के बारे में सोचने लगीं।
    शाम तक गाय के द्वारा कुछ भी ग्रहण न करना, बेटे से चिड़िया का घोंसला टूटना और दुखी चिड़िया को पूरे दिन गाय द्वारा अपनी पीठ पर बैठाए रखने के कारूणिक दृश्य को पवन और उसके परिवार ने महसूस किया । ****
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क्रमांक - 21
पति का नाम : श्री केवल कृष्ण अग्निहोत्री
जन्मतिथि : 30.अक्टूबर 1945
जन्म स्थान : लायल पुर

सम्प्रति : –

सेवा-निवृत ऐसोशिएट प्रोफेसर व पूर्वाध्यक्ष हिंदी –विभाग ,राजकीय कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय।


प्रकाशित पुस्तकें –

ओशो दर्पण (ओशो –साहित्य पर आधारित )
वान्या –काव्य संग्रह 
सच्ची बात –लघुकथा संग्रह 
गुनगुनी धूप के साये  -- दूसरा काव्य संग्रह

विशेष : -

1973 से किया लघुकथा लेखन का प्रारंभ।सबसे पहली लघुकथा  दैनिक ट्रिब्यून में प्रकाशित हुई---"औरत होने का अर्थ"।
स्तभ लेखन भी

सम्मान : -

हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत (कहानी –अकेली )

सांझा संग्रह : -

गीतिका लोक-सांझा काव्य –संग्रह  में गीतिकायें प्रकाशित  
साहित्य -त्रिवेणी कलकत्ता में छन्दों पर आधारित लेख
दोहा -दोहा नर्मदा सांझा संकलन में दोहे प्रकाशित 

पता : -
#404,सेक्टर----6 पंचकूला (हरियाणा)134109
1. रिश्ते 
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ऐसा नहीं था कि अंजू को खाना बनाना नहीं आता था |वह सब जानती थी फिर भी घर सारा काम सास ही करती थी | रहते अलग  अर्थात  पहली मंजिल पर बेटा-  बहू और ग्राउंड फ्लोर पर माँ -बाप |पर रसोई एक ही थी |
कुछ दिन बाद अंजू के चचेरे भाई की शादी है |उनका घर उसके घर से 12-13 किलोमीटर ही होगा| लेकिन कुछ दिन वहां रहने की अपेक्षा  वह घर से ही अप -डाउन करती थी |सास बिमला ने उसे समझाया भी कि  कोरोना काल में इस तरह रोज़ जाना ठीक नहीं |कुछ दिन बाद ननद का फोन भी आ गया |उसने कहा ,’माँ -पापा बुजुर्ग हैं आपका इस तरह रोज़ घर से बाहरजाकर  शॉपिंग करना ठीक नहीं | एकाध बार तो सावधानी भी बरती जाती है |’
.......तो ऐसा है ,पास ही तुम्हारी मौसी का घर है ,कुछ दिन के लिए मां वहां चली जाएँ |....मुझे तो हर हाल में जाना है |वह मेरे चाचा का घर है |’
कह कर उसने फोन रख दिया | ****

2. सोना
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सोना खेत में जब रोटी लेकर गयी तो वहां रमेश को देखकर हैरान रह गयी |
अभी दो दिन पहले ही खेत में किसी को रख लेने की बात  उसने अपने पापा से की थी |  
 असल में सोना के जन्म लेते ही उनकी मां का देहांत हो गया था| उनके पिता कर्मा ने  उसे  बड़े प्यार से पाल पोस कर बड़ा किया| 
वह दसवीं की परीक्षा पास कर चुकी है |वह सोच रही थी पापा के काम में उसे कुछ हाथ बंटाना  चाहिए | पर कैसे ?
........ पापा  आप काफी कमजोर लग रहे हैं| अब आपसे इतना काम नहीं होता | उसने कहा था |
....... हाँ मैंने किसी से बात की है |वह पैसे भी नहीं लेगा |बस अनाज का कुछ हिस्सा ले लेगा | हमारे खेत के साथ ही उसका खेत लगता है |तो वह हमारी मदद कर दिया करेगा
 अब तो उसे रमेश के लिए भी  खाना  बनाना होगा  |
एक दिन अचानक रमेश  घर आ गया और सोना से झिझकते हुए पूछा  ....तुम मुझे पसंद करती हो सोना  ?सच बताना |
.....मैं पसंद करता हूँ |तुम जैसा होनहार  लड़का कहाँ मिल सकता है भला ?सोना के पापा ने कहा |
वे कब खेत से वापिस आये दोनों को पता नहीं चला था |
..........और जल्दी ही सोना के हाथ पीले कर कर्तव्य मुक्त हो जाऊँगा |जो भी है सोना का है |तुम इसका ख्याल रखोगे यह भी मुझे पता है |
यह सुनकर रमेश पापा के पैरों पर गिर पड़ा |ख़ुशी के मारे उसका दिल बल्लियों उछल रहा था |
.........कहते हैं न इस देश की धरती सोना उगले .......|हमारा खेत भी सोना उगलेगा |...रमेश ने कहा |
सब की आँखे मारे ख़ुशी के छलक गयीं | ****
 
3. दो रोटी
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कैसी हालत हो गयी है उसकी ? नीलम ने सोचा |उसे अपने  बारे में सोचने की कभी फुर्सत ही नहीं मिली थी कभी |उसका पति देव   ऑफिस के काम में इतना व्यस्त था कि  घर और बच्चों के बारे में कभी सोचा नहीं था |वह अपना ख्याल ही नहीं रख पायी |.....ऑफिस की नौकरी ,बच्चों का काम |सास भी तो  साथ ही रहती थीं  इसलिए सब रिश्तेदार भी वहीं उसके  घर ही आते थे |सब काम वही  करती | 
पति को ऑफिस से रिटायर हुए कई वर्ष हो गए थे |लेकिन वे अवैतनिक काम करते थे |यह उनका शौक था |उसने कई बार समझाने  का प्रयास किया था |सुनकर उन्हें क्रोध आता |वे बस उसे चुप रहने के लिए बोलते |
अब घर  के काम के लिए  कामवाली रखी है | वह तो समय -असमय सारे काम करती थी लेकिन काम वाली को तो समय पर काम निपटाना है |खाना  समय पर बन तो जाता था लेकिन  देव समय पर कभी खाना नहीं खाते थे |उसने काम वाली को समझाने का प्रयास किया पर उसे कहीं और भी जाना होता था |आखिर तंग आकर उसने देव से कहा ,’ऑफिस नहीं छोड़ सकते तो कम से कम खाना तो समय पर खा लिया करो |’
उसे जो उत्तर मिला उसे सुनकर वह हतप्रभ हो गयी |
 .......,” सारा दिन करती क्या हो ?दो रोटी ही तो बनवाती हो |मत बनवाया करो |” ****

4. चुभन 
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कुछ दिन  से विभा के  घुटनों की शिकायत बढ़ती ही जा रही थी |पूरी देख -रेख के बाद भी उसे आराम नहीं आया था |अब उसने डॉ के पास जाने की सोची | लेकिन पेशेंट्स इतने होते हैं कि  दो घंटे बाद ही नम्बर आता था |तभी उसके पति  विवेक  का दोस्त नरेश आ गया |
.........  तुम्हें नरेश ही ले जाएगा |इसकी बहुत जान -पहचान है वहां |  
......आप साथ नहीं चलोगे ?
.........नहीं |नरेश जो है |
.......अपनी पत्नी को किसी और के साथ भेज रहे हो और खुद घर बैठे हो ,यह दिखाने के लिए मुझे  अपने दोस्त पर कितना भरोसा है ?यह सब मान भी लें पर जो लोग देखेंगे मुझे उसके साथ ....वे ......|उसने सोचा |
....और सुनाओ |विवेक ने नरेश से पूछा |
वह तैयार होने लगी तभी नरेश किसी की बात करने लगा |
...कुछ नहीं जी, एक लेडी है कोई सत्तर -पचत्तर साल की |उसने अपना  एक घर बेच दिया |मैंने बिकवाया |उसकी  रजिस्ट्री के  पैसे बचवाए | पहले ब्लैक के पैसे लेकर फिर उसे कागज देने थे |सारा काम तो मैंने किया |कुछ दिन मैं जा न सका |पता नहीं कितने खसम बनाए हैं |किसी और से करवा लिया |काफी पैसे लेने थे |बताती भी नहीं |
खसम ......?|
यह सुन कर विभा के पांव तले से जमीन खिसक गयी | वह चप्पल पहन रही थी |दिल और दिमाग की सारी  चुभन जैसे पांव में सिमट गयी |
वह अपने कमरे से ही रोते हुए बोली .......”पांव में बहुत दर्द है |चलना तो पड़ेगा |नहीं जा पाऊँगी |
तभी विवेक  भीतर आया |धीमे से बोला |एक तो वो हमारे काम करता है |और तुम सोचती हो पता नहीं क्यों करता है?....जाओ| उसे लगा ,उसके पांव का दर्द और बढ़ गया था | ****

5. फोर्मेलिटीज़ 
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अपूर्वा   के पिता आंख का ऑपरेशन होना था |हॉस्पिटल उसके घर से तीन-चार किलोमीटर दूर था|शाम को एडमिट करना था ,इसलिए उसकी मां और पिता सांझ को ही अपूर्वा के घर आ गए थे|रात को हॉस्पिटल में ही रुकना था | क्योंकि अपूर्वा का कोई भाई नहीं था |इसलिए उनके  एक पड़ोसी का बेटा आलोक उनके साथ आया था | आलोक और अपूर्वा के पिता तो उसी समय हॉस्पिटलके लिए रवाना हो गए थे|
अपूर्वा  को कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था|
सुबह 7:00 बजे ऑपरेशन था| अपूर्वा  को आशा थी कि उसके पति रवि  जल्दी ही हॉस्पिटल जाने के लिए तैयार हो जाएंगे |लेकिन उसने देखा कि रवि तो  अभी जाने के लिए तैयार भी नहीं हुआ |6:00 बज चुके हैं| 
......आप अभी तक तैयार नहीं हुए |.
......तुमने कहा ही नहीं |
........अगर हम रिक्शा या थ्री  व्हीलर करके गए |तो बहुत देर हो जाएगी | मैंने सोचा आप ही हमें हॉस्पिटल लेकर  जाएंगे |इसमें कहने वाली कौन सी बात थी?
फिर जब अपूर्वा डॉक्टर से मिली |तो डॉक्टर ने कहा..........क्या इनका अपना कोई नहीं|अब क्या करने आए हो? ऑपरेशन तो हो चुका||सारी फॉर्मेलिटीज  तो आलोक जी ने ही की हैं |
अपूर्वा की आंखों से आंसू बह रहे थे और रवि उसे घूर रहा था| ****

6. संस्कार 
     ******

......संध्या!......आज आर्य समाज संस्थान में कुणाल का जनेऊ संस्कार करना है |समय पर तैयार हो जाना| दीपक ने कहा |
......क्यों? जनेऊ  क्यों  पहनाना है उसे  ?
...हमारे घर में सभी पुरुष पहनते हैं |अब समय आ गया है कि उसको भी पहनाया जाए |
......नहीं वह जनेऊ  नहीं पहनेगा |
......देखो संध्या ! तुम्हें  मैंने कभी किसी चीज के लिए मना नहीं किया |.....तुम गुरुद्वारा जाती हो ,वहां लंगर में सेवा भी करती हो ,काफी समय भी देती हो और चर्च भी जाती  हो | मैं तो खुशी खुशी तुम्हारे साथ हर जगह गया| और कोई एहसान भी नहीं किया| यह तो एक संस्कार है |जिसे हम लोग भूलते जा रहे हैं| लेकिन मैं अपनी संस्कृति नहीं भूल सकता| यह सब संस्कार हमारी धरोहर हैं|
......देखो!  मुझे  तुम्हारा यह  कट्टरपन  बिल्कुल पसंद नहीं |अगर तुमने ऐसा किया तो मैं घर छोड़ कर चली जाऊंगी | लेकिन तुम्हारी कट्टरता के आगे नहीं झुकूंगी |
 दीपक ने चुपचाप  कमरे से बाहर जाना ही उचित समझा | ****

7. औकात  
     ******

ज्योति अपने बेटे के साथ पुस्तक मेले में  गयी  कि  उसकी दृष्टि उसी कतार के अंतिम स्टॉल पर पड़ी |पल भर के लिए वह ठिठकी फिर आगे बड़ी | कितने वर्ष बीत गये फिर भी उसे याद है कि वह अनिल ही है |कॉलेज  में उसके ही विभाग का जूनियर सदस्य |
‘.......हेलो |’ ...वहां पहुंचते ही उसने लगभग मुस्कुराते हुए अनिल को संबोधित करते हुए कहा |
‘.......हेलो |’
‘.....पहचाना नहीं |’
‘.....नहीं |’
‘......अरे तुम कालेज में हिंदी विभाग में थे |’
‘...अच्छा |’
यह क्या हो गया है अनिल को?क्या सचमुच वह पहचान नहीं पा रहा था या पहचानना नहीं चाहता |कुछ वर्षों से सुन रही थी कि उसने काव्य के क्षेत्र में काम किया है ...लेखन और सम्पादन का |..... तो भी क्या हुआ ?थोड़ा बहुत नाम होने से क्या व्यक्ति बदल जाता है ?
अचानक उसे याद आया ,किसी ने बताया था कि वह अपने हर जानने  वाले से यह भी पूछता था कि उसने पी .एच .डी की या  नहीं |यह  सोच कर  उसे हंसी आ गयी |
‘....आप तो हमारे घर भी आया करते थे |
‘....तो कोई गुनाह किया था ?
‘....ओह्ह ...|’
उस समय उसका मन किया कि वह वहां से चली जाए |लेकिन उसके पैर क्यों जम से गये थे | शायद वह यह देखना चाहती थी कि उसका गरूर उसे कहाँ तक ले जाता है ?.......कुछ देर बाद  वह हिम्मत करके जैसे ही  मुड़ने को हुई  कि उसने कहा ‘......ये मेरे मित्र ,अजय |मेरी पुस्तकें छापते रहते हैं | मेरी  काफी पुस्तकों का सम्पादन किया है ...इन्होंने  मुझे बहुत सहयोग दिया है |आपको कोई सहयोग चाहिए तो आप इनसे बात कर सकती हैं |
.....हूँ ...|’
उसने विजिटिंग कार्ड दिया |मन किया वहीं फैंक दे |पर वह ऐसा क्यों नहीं कर पायी ,पता नहीं |..... शायद वह अपनी नजरों में नहीं गिरना चाहती थी उसके जैसा व्यवहार करके | 
...यह देखिये मेरी नयी पुस्तक |’
......किस हक से दिखा रहा है पुस्तक ?
उसने पुस्तक देखी |बहुत साधारण सी पुस्तक  लगी |दस पंक्तियों की लघु कथा थी लगता था कोई रूखा –सूखा संस्मरण ही है | कथा में आत्मिक संस्पर्श.... तो दूर की बात थी | 
‘......आपने पी .एच .डी तो नहीं की |’
आखिर आ गया अपनी औकात पर |
.’.....उसकी क्या जरूरत ?मैं तो रिटायर  हो चुकी हूँ | वैसे भी ,मैं तो खैर कुछ भी नहीं पर क्या पन्त ,निराला ,दिनकर ,प्रसाद आदि ने पी .एच. डी की थी ?नहीं न|  
...उसने कहा |
इतने में बेटा आ गया |’...चलें माँ |’
‘.....चलो |’वह बिना  कुछ कहे वहां से चल पड़ी | ****

8. सीख
    *****

...... आज तो आपने बड़ी स्वाद सब्जी बनाई है| अनु के ससुर जी ने कहा
------- चलो अच्छा है पापा| आपको सब्जी अच्छी लगी| .....पहले तो आप ही कहते थे कि मुझे कुछ नहीं आता|
----- कभी-कभी मुझे हैरानी होती है कि मैंने अपनी बेटी शालू को सब कुछ बनाना सिखाया था  यहां तक कि सभी तरह के  केक भी वह अच्छी तरह से बना लेती थी| पर उसकी सास  तो यही कहती रहती थी कि उसे कुछ नहीं आता|
----- सही कहा पापा|..... मेरी मां तो कॉलेज में पढ़ाती हैं फिर भी उन्हें सिलाई, कढ़ाई बुनाई, चरखा चलाना, खड्डी पर कपड़ा बनाना कागज और मिट्टी के डेकोरेशन पीस तैयार आदि सब  करना आता है | वह घर का सारा काम भी करती हैं | फिर भी उन्हें यह सुनना पड़ा था ,' कि  मां ने कुछ नहीं सिखाया?' इसलिए मेरी मां ने मुझे घर के कामों में न डाल कर  डॉक्टर बनाया| और घर के काम तो मैं सीख  ही  गई हूं| ठीक किया न मेरी मां ने?
-- बिल्कुल ठीक किया  एक अच्छी सीख ले कर  ****

9. फॉक्स
    ******

शिखर सारी सारी रात जागकर अपने दोस्तों से बातें करता था| दिन में सो जाता था| अब वह ग्यारहवीं  में हो गया था| लेकिन उसे किसी की परवाह न थी| जब भी उसे रात को जागने के लिए मना किया जाता था तो वह धमकियां देता  कि घर छोड़कर चला जाएगा |या वो  छत से कूद जाएगा  या किसी गाड़ी के नीचे आकर अपनी जान दे देगा| यह सब बातें सुनकर मेघा का कलेजा मुंह को आ जाता|
 फिर एक दिन हुआ भी ऐसा  उसे जल्दी सो जाने के लिए कहा  तो वह जल्दी से उठ कर उसमें दो चार कपड़े एक बैग में डाले और घर से निकल गया| मेघा  ने  देखा तो उसको पकड़ने के लिए उसके पीछे-पीछे  भागी| वह  भागता जा रहा था और बोलता जा रहा था कि अब  जो  भी गाड़ी आएगी  वह  उसके सामने चला जाएगा | दौड़कर  उसे पकड़ा और किसी तरह मना कर उसको घर लेकर आई | उसके पास सब कुछ था.....   पी  एस  फोर , लैपटॉप , लेटेस्ट आईफोन  और भी न जाने  क्या-क्या था? उसके पास सब सुविधाएं थीं .... अलग कमरा था |
 घर आकर मेघा की सांस में सांस आई लेकिन उसने उसे अपने दोस्तों से बात करते हुए सुना | वह अपने दोस्तों के साथ कुछ बातें कर रहा है|
 वह उसके दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गई और सुनने लगी| वह कह रहा था..... आई हैव टॉकड |...... ओके...  विद  फॉक्स  |
-----  नॉट  सॉर्टेड आउट यट |
यह फॉक्स क्या होता है   ?इस शब्द का इस तरह बातचीत में प्रयोग  क्यों कर रहा है वह  ?
नवीन  टूर से वापिस आएगा   तो वह जरूर पूछेगी  |****

10. सोच
      ****

अनु को याद आया  कि   उसके ससुर    के पास  दो  बर्नर वाला  गैस -   स्टोव  है| जिसकी आजकल उन्हें कोई जरूरत नहीं है|ऑफिस के लोगों के लिए चाय बनाई जाती थी तो ही उसका प्रयोग होता था |
आज जबकि मां के शहर  में लॉकडाउन लगा हुआ है |कोई दुकान भी नहीं खुली तो यही एक रास्ता था| कि जल्दी से वह गैस -उसे  अपनी मां के पास पहुंचा देना चाहिए |
क्योंकि काम करने के लिए जो मेड आई है उसे सीधे घर के अंदर ले जाना ठीक नहीं | इसलिए बाहर बरामदे में रसोई का इंतजाम कर देना चाहिए यह सोचकर वह अपनी कार लेकर निकल पड़ी |
साथ ही उसने ससुर की मेड  को फोन किया कि वह गैस-स्टोव  को निकाल कर बाहर गेट पर रख दे |ताकि वह गैस स्टोव को किसी कैब  में रखवा कर भेज सकें|
अनु कैब में  गैस स्टोव को रखवा ही रही थी कि ससुर जी की आवाज आई--कैसा जमाना आ गया है?अब तो लड़की वाले लड़के वालों से चीजें भी ले जाने लगे हैं|
उसने  मन ही मन कहा....दुकान बंद है पापा|लॉकडाउन न होता तो कभी नहीं लेती |जल्दी ही वापस कर दूंगी |****

11.काला रंग
     *******

------चलो दिव्या! आज हम जाएंगे सबके घर होली खेलने।
------नहीं ,वे हमेशा आते हैं ।उन्होंने आने से मना भी नहीं किया ।इसलिए वे लोग ही आएं तो ठीक है ।
------ चलो तैयारी कर लो ।
आज वह क्या बहाना बनाएगी होली न खेलने का , रमेश ने सोचा ।
सब लोग आ गये थे ।सबने जम कर होली खेली ।लेकिन जब रमेश दिव्या को रंग लगाने लगा तो वह भाग कर कमरे में चली गयी ।
----- होली क्यों नहीं खेलती ?
------नहीं खेलती ।क्योंकि काले रंग पर कोई रंग नहीं चढ़ता।
------कौन सा काला रंग?
----- तुम्हारी पहली होली का काला रंग ।सारे रंग तो तुमने अपनी प्रेमिका तनु को लगा दिए थे । मेरे संग होली खेलने से भी मना कर दिया था । तभी मुझे लगा तुमने मुझ पर काला रंग लगा दिया है जो आज तक नहीं उतरा ।
कहकर वह कमरे से बाहर निकल गई। ****
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जन्म : 03 जून 1965
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्

             फिल्म पत्रकारिता कोर्स
            
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
               जैमिनी अकादमी , पानीपत
               ( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )

मौलिक :-

मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001

सम्पादन :-

चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003

ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018  (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019   ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन )  मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन )  जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन )  अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन )  मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) -
2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी महिला लघुकथाकार (ई लघुकथा संकलन ) - 2021

बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-

1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल

1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल

1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल

2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल

2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल

2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल

2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल

सम्मान / पुरस्कार

15 अक्टूबर 1995 को  विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।

13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।

14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित

14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित

14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित

14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।

18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित

अभिनन्दन प्रकाशित :-

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)

डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)

विशेष उल्लेख :-

1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन

2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।

3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित

4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
            शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
            " आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )

पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
          पानीपत - 132103 हरियाणा
          ईमेल : bijender1965@gmail.com
          WhatsApp Mobile No. 9355003609

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Comments

  1. बहुत बहुत बधाईयाँ और अभिनंदन ।अतीव बहुपक्षीय बहुमुखी प्रतिभाशाली महिला लघुकथाकारों कलमकारों को साथ लेकर भव्य (ई लघुकथा संकलन की प्रस्तुति अपने-आप में अभिनव प्रयास है। आभार आपका और समस्त कलम की साथिनों को कोटशः बधाईयाँ। 💐💐💐👍👍👍🙏🙏😊😊✌️💐💐
    - हेमलता मिश्र ' मानवी '
    नागपुर - महाराष्ट्र
    ( फेसबुक से साभार )

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  2. एक साथ इतनी सारी लघुकथाएँ, इनको पढ़कर अवश्य ही पाठक लाभान्वित होंगे । आपको सफल सम्पादन हेतु हार्दिक बधाई ।

    ReplyDelete
  3. आदरणीय बीजेंद्र जैमिनी जी सादर प्रणाम🙏
    आपके द्वारा 21 रचनाकारों की ग्यारह, ग्यारह(21×11=231) लघुकथाओं को संकलित करके आकर्षक मुखपृष्ठ आवरण के साथ-साथ इस अभूतपूर्व महत्तम कार्य के लिए आपको हार्दिक बधाइयां, धन्यवाद एवं आपके उत्तम स्वास्थ्य के साथ भविष्य में भी उज्ज्वल सक्रिय कार्य के लिए अनंत शुभकामनाएं स्वीकार हों ।❤️💐😊

    - डॉ. रेखा सक्सेना
    मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
    ( WhatsApp से साभार )

    ReplyDelete
  4. इस उत्कृष्ट कार्य के लिये आपको बहुत बहुत बधाई। मेरी रचनाओं को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार।
    - सुदर्शन रत्नाकर
    फरीदाबाद - हरियाणा
    ( WhatsApp से साभार )

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  5. आदरणीय बिजेंद्र जैमिनी जी
    सादर प्रणाम
    हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथा रचनाकार में मुझे और मेरी लघुकथाओं को शामिल करने के लिए आपका हार्दिक आभार।
    आपके द्वारा किया उत्साहवर्धन मुझे सदा लघुकथा लेखन के लिए उत्साहित करता रहा है। आपसे मिली प्रेरणा से लघुकथा लेखन में प्रवृत्त रह कर और अच्छा करते रहने का प्रयास करती रहूँगी।
    एक बार पुनः आपका आभार।
    🙏🙏
    - डॉ. भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून - उत्तराखंड
    (WhatsApp से साभार)

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  6. 🙏🙏
    आदरणीय भाई जैमिनी जी

    प्रदेशानुसार महिला लघुकथा कारों का 'ई' संकलन, तदुपरांत 12 राज्यों की समवेत 21 महिला लघुकथाकारों(21×11) के 'ई' संकलन का महत्तम कार्य आपके द्वारा की जा रही हिंदी साहित्य की सेवा का अद्भुत, अनुपम एवं उच्च स्तरीय कार्यक्षमता , कुशलता का प्रत्यक्ष प्रमाण है।
    हम रचनाकार आपके द्वारा दी गई ऊंचाइयों के लिए हृदय से बहुत-बहुत आभार व्यक्त करते हैं।
    ईश्वर से प्रार्थी हैं की भविष्य में भी आप शीघ्र अतिशीघ्र स्वस्थ होकर निर्बाध गति से अपने साहित्यिक कार्यों को सुचारू रूप से गतिमान रखेंगे।
    आपकी कीर्ति विश्व स्तर पर प्रसारित होवे। अनंत शुभकामनाओं के साथ-

    - डॉ. रेखा सक्सेना
    मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
    (WhatsApp से साभार )

    ReplyDelete
  7. डाउनलोड का ऑप्शन नहीं है . संकलन अच्छा है .बधाई

    ReplyDelete
    Replies
    1. पोस्ट को copy कर सकते है । फिर कहीँ पर भी पोस्ट किया जा सकता है ।

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  8. सुंदर, सार्थक और संग्रहणीय प्रयास 🙏🪴🙏🪴🙏
    बहुत बधाई
    - डॉ. ध्रुव कुमार
    पटना - बिहार
    ( WhatsApp से साभार )

    ReplyDelete
  9. नमस्कार बिजेंद्र जी 🙏

    प्रदेशानुसार महिला लघुकथाकारों का ई संकलन, 12 राज्यों की 21 महिला लघुकथाकारों (सभी की ग्यारह ग्यारह लघुकथायें) के ई लघुकथा संकलन का आपके साहित्य की सेवा में की जाने वाली आपकी कार्यकुशलता एवं क्षमता का , निष्ठा से किये प्रयत्न का अद्भुत एवं अप्रतिम प्रमाण है !
    ईश्वर से प्रार्थना है आपकी साहित्य सेवा सदा गतिमान रहे !
    साहित्य के क्षेत्र में हर सोपान को लांघे एवं आपकी कीर्ति शिखर को चूमे!

    अनेकानेक बधाई और शुभकामनाएं 🌹🌹🌹🌹🌹

    - चंद्रिका व्यास खारघर नवी मुंबई
    ( WhatsApp से साभार )

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  10. सुप्रभात 🙏, बहुत सुन्दर संकलन .....👍 खूब बधाई । मेरी लघुकथाओं को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार 🙏🙏
    सभी लघुकथाकारों को बहुत-बहुत बधाई । 💐💐💐💐💐💐
    - बसन्ती पंवार
    ( WhatsApp से साभार )

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  11. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(१७-०७-२०२१) को
    'भाव शून्य'(चर्चा अंक-४१२८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  12. बहुत शानदार संकलन ।
    रचनाकारों को हार्दिक बधाई।

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  13. आपके स्तुत्य प्रयास के लिए आपका साधुवाद
    मुझे शामिल करने के लिए हार्दिक आभार।

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