राजस्थान के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक ,: बीजेन्द्र जैमिनी
जन्म : 11 जुलाई 1953 , अलीगढ़ - उत्तर प्रदेश
शिक्षा : एम. कॉम , पत्रकारिता में उपाधि
प्रकाशित पुस्तकें : -
लघुकथा संग्रह : मेरी सौ लघुकथाएं
सम्पादित लघुकथा संकलन : पड़ाव और पड़ताल ( आठ भाग )
उपन्यास: देहाश्रम का मनजोगी, बेस्वाद मांस का टुकड़ा, वंश, रेत होते रिश्ते, सेज गगन में चांद की, आखेट महल, अकाब, जल तू जलाल तू, राय साहब की चौथी बेटी, ज़बाने यार मनतुर्की।
कहानी संग्रह: अंत्यास्त, थोड़ी देर और ठहर, ख़ाली हाथ वाली अम्मा, सत्ताघर की कंदराएं, प्रोटोकॉल।
आत्मकथा (तीन खंड): इज्तिरार, लेडी ऑन द मून, तेरे शहर के मेरे लोग।
सम्प्राप्ति : पूर्व प्रोफ़ेसर(पत्रकारिता व जनसंचार) एवं निदेशक, ज्योति विद्यापीठ महिला विश्वविद्यालय, जयपुर (राजस्थान)
पता : बी -301 , मंगलम जाग्रति रेसीडेंसी, 447 कृपलानी मार्ग, आदर्श नगर, जयपुर-302004 - राजस्थान
जन्म तिथि:- 4 मार्च 1951
शिक्षा : एम. एस. सी ( जूलोजी ) , बी. एड .
विधा : कविता , लघुकथा , कहानी , हाइकु लेखन इत्यादि
सम्प्रति : स्वतंत्र लेखन
उद्देश्य : समाज में व्याप्त कुरीतियों एवं विसंगतियों को अपने लेखन से दूर करने का एक छोटा सा प्रयास ।
विदेश यात्रा :-अमेरिका , इंग्लैंड , पेरिस , आस्ट्रिया, स्विट्जरलैंड , नीदरलैंड आदि
पुस्तकें :-
1 धूप के रंग -कविता संग्रह(2014)
2 छोटी सी आशा - लघुकथा संग्रह (2015)
3 सुरमई उजाला -काव्य संग्रह (2018 )
4 चाहत का आकाश -कविता संग्रह (2020)
5 शीशे की दीवार -कहानी संग्रह (2021)
6 पिघलता मन- कविता संग्रह,
7 क्षितिज के उजाले -लघुकथा संग्रह (अमेजन किंडल पर )
8 केरल सरकार द्वारा मेरी बाल कहानी 'बिखरते सपने' मलयालम में अनुवादित होकर बाल कहानी संग्रह में प्रकाशित । (2018)
प्रसारण : -
जयपुर आकाशवाणी एवं दूरदर्शन से प्रसारण
पुरस्कार एवं सम्मान:-
- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जयपुर 2015में कविता’आक्रोश’पुरस्कृत
- कुमुद टिक्कु लघुकथा प्रतियोगिता 2015 में लघुकथा ’वसीयत’पुरस्कृत
- म ग स म द्वारा वर्ष 2015 में लाल बहादुर शास्त्री पुरस्कार
- अखिल भारतीय साहित्य परिषद जयपुर 2016 में लघुकथा ’गृह प्रवेश’
- जगमग दीप ज्योति द्वारा वर्ष 2016 में अ .भा.साहित्यकार सम्मान
- कुमुद टिक्कु कहानी प्रतियोगिता वर्ष 2016 में कहानी ’आखरी फैसला’ पुरस्कृत
- शब्द निष्ठा द्वारा कविता के लिये वर्ष 2016 में पुरस्कार
- अ.भा. राष्ट्र समर्पण द्वारा 2017 में बाल कहानी ’अंधेरे कोनों के उजाले " पुरस्कृत
- शब्द निष्ठा लघुकथा प्रतियोगिता वर्ष 2017 में ’बाबूजी का श्राद्ध’ पुरस्कृत
- कुमुद टिक्कु कहानी प्रतियोगिता वर्ष 2017 में कहानी ’सोने का कड़ा ’ पुरस्कृत
- आचार्य महाप्रज्ञ कविता संग्रह में कविता प्रकाशित एवं (ब्रिटिश वर्ल्ड रिकॉर्ड)से सम्मानित ।
पता : 140 , न्यु कालोनी , वाल स्ट्रीट होटल के पास,
एम.आई.रोड., पाँच बत्ती , जयपुर - राजस्थान 302001
1. अन्तर्द्वन्द
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कालेज के दिनों में राजेश एक होनहार विद्यार्थी था । उसने बी.ए.की डिग्री भी अच्छे नम्बरों से हासिल कर ली थी । घर की आर्थिक स्थिती कमजोर होने के कारण गत दो वर्षों से वह अपनी पढ़ाई जारी ना करके लगातार नौकरी के लिये कनिष्ट लिपिकों में भर्ती के लिये आवेदन पत्र भर कर प्रतियोगिता परिक्षा में बैठ रहा था । परन्तु एक ओर जहाँ हजारों परिक्षार्थी इस परिक्षा में प्रतियोगी थे, वहीं सामान्य वर्ग के उपलब्ध पद भी आरक्षित पदों की तुलना में सीमित ही थे । यही कारण था कि परिक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने पर भी उसका चयन अभी तक नहीं हो सका था ।
इस बार भी होने वाली प्रतियोगिता परीक्षा में यद्धपि उसने मेहनत कर के अच्छी तैय्यारी कर ली थी परन्तु भर्ती के लिये उपलब्ध पद आरक्षित पदों के कारण सीमित थे । यही राजेश के लिये मायूसी का कारण था । इन्ही दिनों शहर में आरक्षण विरोधी समर्थकों की गतिविधियाँ भी पूरे जोर पर थीं । उसके लिये नित्य जुलूस आदि भी निकाले जा रहे थे । ऐसा ही एक जुलूस जब राजेश के घर के सामने से निकल रहा था तब वह सोचने पर मजबूर हो गया कि यह परीक्षा दे या जुलूस में शामिल होकर आमरण अनशन पर बैठ जाये ? ****
2.शराब बन्दी
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श्री सुमेर सिंह जी राजस्थान में अपने ही गाँव के सरपंच चुने गये । उन्होंने अपनी पैठ बनाने के लिये तथा गाँवों के विकास हेतु रात दिन बहुत कार्य किया । गाँव के लोगों में शिक्षा एवं साफ-सफाई के प्रति जागरुकता पैदा करने हेतु कई अभियान चलाये गये । ग्राम वासियों के चेहरों पर संतुष्टि का भाव साफ झलक रहा था ।
इधर गाँव की महिलाएं गाँव के लोगों की शराब की लत से बहुत परेशान थीं , सो वे सभी एकत्रित होकर पंचायत में अपनी समस्या लेकर पहुँचीं । सुमेर सिंह जी ने ध्यान पूर्वक उनकी समस्या सुनकर , उन्हें पूर्ण रूप से आश्वस्त किया ।उन्होंने शराब बन्दी को लेकर एक मुहिम चलाई ।आस-पास के सभी गाँव तथा ढ़ाणियों के लोगों को एकत्रित कर बहुत दिनों तक प्रभावशाली भाषण दिये और उन्हें पाबन्द भी किया ।
देशी शराब के ठेके भी बन्द करवा दिये गये । इस प्रकार समझाइश का असर गाँव वालों पर काफ़ी हद तक दिखाई दिया । ग्रामीण महिलाओं ने प्रसन्न होकर सुमेर सिंह जी को धन्यवाद ज्ञापित किया । सुमेर सिंह जी ने चैन की साँस ली ।
फिर उन्होंने अपने सेवक सत्य प्रकाश को बुलाकर कहा,"भाई सत्तू ! हूं तो गाँव मा भाषण देतो देतो घणों थाक ग्यो । शराब बन्दी रे खातिर गाँव का लोगाँ ने समझाता समझाता म्हारो तो जीव निकल ग्यो ।अठे तो इब मिलसी कोनी,तू शहर जार दारू की बोतलां लेर आ । देख जँवाई सा भी आरिया है । आपां आज पार्टी करश्याँ ।"
सेवक तुरन्त जीप लेकर शहर की ओर चल दिया । ****
3.वसीयत
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आलोक नाथ जी रिटायर होने के बाद अपने कमरे तक ही सीमित होकर रह गये थे । रिटायरमेंट पर जो थोड़ा बहुत पैसा मिला था ,वह घर की मरम्मत में और बेटी की शादी में खत्म हो गया । पता नहीं क्यों अपने ही घर में वे बेगाने से हो गये । उन्हें महसूस होने लगा था कि वे अब अपने बेटे बहुओं पर बोझ हो गये थे । वे चाहते थे कि उनकी वजह से घर में कोई झगड़ा ना हो,सभी शान्ति पूर्वक रहें ।
उम्र के इस पड़ाव पर अब नौकरी भी नहीं रही और शरीर भी थकने लगा था । ऐसे में पत्नी भी बिमारी की वजह से उनका साथ छोड़ कर चल बसीं ।अब ये अकेलापन उन्हें निरीह बना रहा था । उन्हें लगता था वे अब ज्यादा दिन जिन्दा नहीं रहेंगे । एक दिन अपने कमरे में बैठे हुए वे कुछ लिख रहे थे । तभी बड़े बेटे ने पूछा,"पिता जी आप यह क्या लिख रहे हैं?"
उन्होंने कहा,"मैं अपने बेटे - पोतों के लिये वसीयत लिख रहा हूँ।"
बेटे ने मज़ाक बनाते हुए कहा ," पिता जी आपके पास है ही क्या , जो आप वसीयत लिख रहे हैं ?"
उन्होंने एक लम्बी साँस भरी और गर्व से कहने लगे," सच कहा बेटा ! धन दौलत,जमीन जायदाद ना सही ,फ़िर भी मेरे पास देने को एक बहुत कीमती पोटली है जिसमें जिन्दगी भर की कमाई हुई ईमानदारी,सच बोलने की हिम्मत,कर्तव्य परायणता है, जिसे मैने आज भी सम्भाल कर रखा है । वही संस्कार के रूप में अपने बेटे और पोतों में बराबर -बराबर बाँट देना चाहता हूँ ।"
यह कहते हुए उनका दिल भर आया था । ****
4. मानवता
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मृदुला की शादी की तैय्यारियाँ चल रहीं थीं । उसी सिलसिले में खरीददारी के लिये अक्सर ही उसे माँ और चाची के साथ बाजार जाना होता था । उन्हें आते-आते शाम तो कभी कभी रात भी हो जाया करती थी ।
एक दिन वे लोग संध्या समय बाजार से लौट रहे थे । तभी पाँच बत्ती के चौराहे पर अचानक उनके सामने ही एक दुर्घटना घटी । एक तरफ से तेजी से आते हुए एक छोटे ट्रक ने दूसरी तरफ से एक स्कूटी पर आ रही एक लड़की को टक्कर मार दी । लड़की करीब उन्नीस-बीस की होगी, उछलकर दूर जा गिरी । हेलमेट होने की वजह से सिर तो बच गया परन्तु उसे बहुत चोट लगी थी । वह उठ नहीं पा रही थी । लगता था,पाँव में फ़्रेक्चर हो गया था । वह दर्द से कराह रही थी । उसे तुरन्त चिकित्सा सहायता की आवश्यकता थी । उसके चारों तरफ भीड़ जमा हो गई थी । कोई उसकी सहयता के लिये आगे नहीं आ रहा था ।
मृदुला का मन विचलित हो रहा था । वह उसकी सहायता के लिये आगे बढ़ने लगी तो चाची ने तुरन्त उसका हाथ कसकर पकड़ लिया ।
कहने लगी, " क्या कर रही हो मुन्नी ? तुम्हारी शादी होने वाली है , बेकार ही चक्कर में नहीं पड़ना हमें । तुम्हारे ससुराल वाले क्या कहेंगे ? जल्दी चलो यहाँ से । "
वह अनमनी सी घर तो चली गई परन्तु उसका अन्तर्मन उसे धिक्कार रहा था । दूसरे ही क्षण वह अपना स्कूटर उठाकर पाँचबत्ती चौराहे की तरफ चल दी । यही सोचकर कि अभी देर नहीं हुई । *****
5. बाबूजी का श्राद्ध
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श्राद्ध पक्ष चल रहे थे । घर में बाबूजी का ग्यारस का श्राद्ध निकालना था । दो चार दिन पहिले ही पंडित जी को न्योता दे दिया था । उस दिन सुबह जब याद दिलाने के लिये उन्हें फोन किया तो, वे कहने लगे,"क्या करूँ मुझे तो बिल्कुल समय नहीं है , दूसरी जगह से भी न्योता है,पहिले वहाँ जाऊँगा । फिर वहीं से आफिस चला जाऊँगा । आपके यहाँ तो शाम को ही आ पाऊँगा " ।
क्या करते ? आजकल पंडित मिलते कहाँ हैं ? सो मानना पड़ा ।
फिर थोड़ी देर में उन्ही का फोन आया बोले,"एक बात और कहनी थी आपसे, खाने का इन्तजाम टेबिल-कुर्सी पर ही कीजियेगा,मैं नीचे बैठ कर खाना नहीं खाता हूँ और दक्षिणा में कम से कम सौ रुपये के साथ पाँच वस्त्र भी मंगवा लीजियेगा । यदि आपको मंजूर हो तो मुझे आफ़िस में ही फोन करके बता देना । "
हम सभी का सिर चकरा गया । ये पंडित जी आ रहे थे या कोई अफसर ? सभी सोच में पड़ गये कि क्या करें ? श्राद्ध का खाना तो हम सुबह ही खिलाना चाह रहे थे । क्योंकि , माँ का कहना था ," जब तक श्राद्ध निकाल कर पंडित जी को भोजन ना करा दें घर का कोई सदस्य भोजन नहीं करता है ,ऐसी परम्परा है "।
थोड़ी देर में देखा कि घर के द्वार पर एक दीन-हीन बूढ़ा आदमी निढ़ाल अवस्था में बैठा था और बुद बुदा रहा था-"मैं बहुत भूखा हूँ--,कई दिनों से ठीक से खाना भी नसीब नहीं हुआ है --,कुछ खाने को देदो ।"
उस पर बड़ी दया आ गयी । उसे घर के अहाते में बैठा कर आग्रह पूर्वक खाना खिलाया । वह भरपेट खाना खाकर और पानी पीकर ,ढ़ेर सारी आशीष देता हुआ चला गया । उस दिन लगा आज बाबूजी का श्राद्ध ठीक से सम्पन्न हुआ । ****
6.परित्यक्ता
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जब से माही के पति ने उसे तलाक दिया है,सामने वाले वर्मा जी बड़े मेहरबान हो गये हैं । कभी उसके बेटे शंटू के लिये चाकलेट लाते हैं,कभी फोन करके खैरियत पूछते हैं । आते-जाते बात करने की कोशिश करते रहते हैं । उसे यह सब अच्छा नहीं लगता । अकेले में बेटे की परवरिश करना उसके लिये मुश्किल होता जा रहा था । ऐसे में उसे कभी शंटू के पापा पर गुस्सा आता तो कभी खुद पर रोष हो आता । उसका कहना था कि वह तो अपनी गृहस्थी में इतनी व्यस्त थी कि समझ ही ना सकी कब उसके पति उससे इतने उदासीन हो गये ? ना जाने उस सहकर्मी मोहिनी में ,ऐसा क्या नज़र आया जो उन्होने पलटकर उनकी ओर एक बार भी नहीं देखा और उन्हें छोड़ कर चले गये ।
उसे पुरुष जाति से ही नफ़रत सी होने लगी थी । वह सोचती रहती कि ये पुरुष भी अपनी पत्नी को छोड़ कर दूसरी स्त्रियों पर ललचाई नज़र क्यों रखते हैं । वह समझ नही पा रही थी कि क्या करे ? बस इन्तज़ार था कि शंटू कब बड़ा होगा और उसका सहारा बनेगा ? परन्तु मन में एक डर भी था कि बड़ा होकर यह बच्चा भी तो एक पुरुष ही बनेगा । तब---?
परन्तु वह घबराई नही ,उसने मन में दृढ़ संकल्प लिया कि वह अपने बेटे को अच्छे संस्कार देगी और उसकी परवरिश में कोई कमी नहीं आने देगी । ****
7. कैसी बदनामी
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"यशोदा बाई आज काम पर देर से कैसे आई ?"रमा ने पूछा ।
वह बहुत दुखी लग रही थी । वहीं दरवाजे पर बैठ गई और भरे गले से बताने लगी ,"आपसे क्या छुपा है मेम साब ? आपतो सब जानते ही हो,कैसे मैने घर-घर झाडू-पोचा और बरतन करके अपने बच्चों को पाल पोस कर बड़ा किया ? पढ़ाया लिखाया । कितनी परेशानियों का सामना किया । कैसे बच्चों की शादियाँ भी करीं ?"
बैचेन होकर रमा ने फिर पूछा,"अब हुआ क्या ,ये तो बता ?"
"मेरी बड़ी लड़की के साथ धोखा हो गया ,मेम साब ।"
रमा ने उसे ढ़ाँढ़स बँधाते हुए कहा,"अब रोना बंद कर और विस्तार से बता क्या हुआ "?
"हमें तो कहा था ,लड़का पढ़ा-लिखा है और नौकरी भी करता है । परन्तु अब जाकर पता चला कि वो पढ़ा-लिखा भी नहीं है और कोई नौकरी भी नहीं करता है ।यूँ ही शहर में आवारा गर्दी करता फिरता है ।"
उत्सुकतावश रमा ने पूछा,"तूने क्या सोचा,क्या करेगी?"
वह बोली ,"मैने अपने समाज में बात की थी । उनसे मदद की भी गुहार लगाई थी । पर मेम साब कोई कुछ नहीं बोला ।कहते हैं कि अब तो शादी कर दी ,कुछ नहीं हो सकता । लड़का पढ़ा नहीं तो क्या हुआ ? उसे तो ससुराल में ही जीवन बिताना होगा ।"
"मेम साब मेरा तो खून खौल गया । ऐसे घर में अपनी बेटी को कैसे छोड़ दूँ ।वो तो मेरी बेटी को मारता भी है । कभी जान से ही मार दिया तो ?"
" मैं उनमें से नहीं हूँ जो बदनामी के डर से बेटी को तलाक नहीं दिलाऊँ। उस समाज से तो मुझे मेरी बेटी ज्यादा प्यारी है । पढ़ी-लिखी है खुद कमा कर खा लेगी ।" ****
8.कौन पागल है ?
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वो जलन्धर जाने वाली बस थी, सवारियों से खचाखच भरी हुई । बैठे हुये लोगों पर खड़े हुए लोगों के बोझ इस कदर थे कि वे नज़र ही नहीं आ रहे थे । उन खड़े हुए लोगों के बीच में एक बूढा आदमी भी था । वह बहुत ही कमजोर, झुर्रियों भरा चेहरा लिये लोगों के बीच में धँसा हुवा खड़ा था ।
जमाने भर का आक्रोश और कुंठायें उसके चेहरे से साफ झलक रहे थे । चढते उतरते लोगों के रेले उसे ढकेलते-पेलते चले जा रहे थे । वह कभी दर्द से कराह उठता था तो कभी कहने लगता था ,"ऐ जमाना ! खाते ते पड़ गया है जी ।"
सारे कहते ,"हाँ जी ।"
"मैं कहँदा हूँ,जे अँग्रेज ताँ चले गये ताँ झोड़ गये अपणी अँग्रेजियत । ओई सबनूँ ले डूबी है ।"
सारे कहते ,"हाँ जी ।"
"ऐ पढ़े लिखे लोग जो हो गये हैं,सीटन तें बैठन वाले,सानूँ कहँदे हैं, ये तो बुद्धू है बुद्धू ।"
बस में बैठे सभी लोग हँसते रहे,उसका मजाक बनाते रहे और उसे पागल करार देते रहे । थोड़ी देर में वह मन के गुस्से को भुला कर गाने लगा ।
"मुझको यारों माफ करना मैं नशे में हूँ ।"
जब किसी का पाँव उस पर पड़ जाता तो वो तिलमिला उठता था । कहता," मैं ताँ बीमार हूँ जी,मैनूँ नां रोंदो ।"
उसे वाकई में ज़्वर था । किसी ने कहा ,"बेचारा समय का सताया हुवा है । कभी इन्ही रोड़वेज की बसों पर ड्राइवर था । रोज हजारों सवारियों को एक जगह से दूसरी जगह पर पहुँचाता था। आज उसे ही बस में बैठने की जगह नहीं मिलती ।"
इस बार जब बस रुकी तो वह सबको दुआऐं देता हुआ उतर गया।
"सब रहो खुश, अब हम ताँ चलते हैं जी ।" उसकी आवाज का दर्द बड़ी देर तक झकझोरता रहा,जिसने सोचने पर मजबूर कर दिया, कौन पागल है,वह या यह जमाना ? ****
9. समझौता
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मेरे एक सहकर्मी थे,मि.चौधरी । वे आदतन दादागिरि और नेतागिरि से बाज़ नहीं आते थे । आफ़िस में कुछ काम-वाम तो करते नहीं थे और बैठे-बैठे अपनी मूंछों पर ताव दिया करते थे । एक दिन उनके ही एक साथी रमेश जी ने उनके पास जाकर धीमे से कहा," चौधरी जी मूछों पर इतने ताव ना दिया करो "।
वे चौंक कर बोले ," क्यों भला? क्यों ना दूँ?"
" अरे भाई ! समझा करो । तुम्हारा इसमें ही भला है कि इनको नीची कर लो । बड़ी समझदारी की बात कह रहा हूँ । ज़माना नहीं रहा । कल को किसी ने शिकायत कर दी तो...?"
" तू भी क्या बात करता है ? मेरी मूछें तो यों ही रहेंगी । रही ज़माने की बात,तो ज़माना तो अपनी मुठ्ठी में है । कोई अपना कुछ नहीं बिगाड़ सकता ।
रमेश जी ने उन्हें बहुत समझाया परन्तु सब व्यर्थ साबित हुआ । सभी जानते थे कि उनकी शिकायतें ऊपर बास तक पहुँच चुकीं थीं ।
कुछ ही दिनों बाद मि.चौधरी के स्थानान्तरण के आदेश आ गये । फिर तो वे बहुत गिड़गिड़ाये । बहुत कोशिश की, पर एक ना चली। आखिर उन्हें जाना ही पड़ा ।
काफी समय बाद जब एक दिन रमेश जी उनसे बाज़ार में टकरा गये तो कहने लगे," यार आजकल तो तुम ईद का चाँद हो गये हो । दिखाई भी नहीं देते ।"
वे निराश स्वर में बोले,"तुम ठीक कहते थे । तुम्हारी बात मान ली होती तो आज ये दिन नहीं देखना पड़ता ।"
जब उनके चेहरे की तरफ देखा तो उनकी मूंछों का अंदाज बदला हुआ था । ****
10. निर्णय
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सीमा अपने परिवेश में माता-पिता के कुंठित विचारों से बहुत दुखी थी। वे उसकी शिक्षा बीच में ही रोक कर शादी कर देना चाह्ते थे क्योंकि उनके समाज में लड़कियों को पढ़ाना अच्छा नहीं माना जाता था।परन्तु वह क्या करे? उसे तो अपनी शिक्षा पूरी करनी थी।कई तरह के विचार उसके मन में उथल-पुथल मचा रहे थे। जिसकी वजह से वह कक्षा में ध्यान नहीं दे पा रही थी ।
सामाजिक ज्ञान की शिक्षिका उसे दो तीन दिन से देख रही थी।आखिर उन्होंने पूछ ही लिया। सारी बात सुनने के बाद उन्होंने सीमा को समझाया,"तुम्ही को निर्णय लेना है । तुम स्त्री हो इस बात से घबरा कर पीछे नहीं हटना ।"
परेशानी में उसने पूछा," तो आप ही बताईये मैं क्या करुँ?"
तब पुनः उन्होंने कहा ," चिन्तन और मनन से खुद को पहिचानो। तुम स्वयं क्या चाहती हो ?"
"किसी के दबाव में आकर खुद को पराधीन ना बनाओ। जिस तरह से पुरुष वर्ग आज भी पूर्ण रूप से स्वतंत्र है और अपने निर्णय स्वयं लेता है उसी तरह से स्त्री को भी चाहिये कि वह शिक्षित होकर अपना जीवन यापन करे। सिर झुका कर नहीं, सिर ऊँचा करके जीना सीखे ।"
सीमा भय मुक्त हो गई थी । उसने अपना निर्णय ले लिया था । दूसरे दिन विद्यालय जाते समय उसके चेहरे पर एक अनोखी विश्वास की चमक थी । ****
11. सुहाग का सुख
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दिन भर अथक परिश्रम के बाद गीता जब थक कर रात को अपने घर लौटती थी, घर पर सुख और शान्ति नहीं बल्कि उसे रोज एक नई मुसीबत का सामना करने के लिये खुद को तैय्यार करना पड़ता था ।
सबके घरों में झाडू कपड़े बरतन साफ करके उसने अपना घर बनाया था।
एक दिन सुबह वह घबराई हुई आई और कहने लगी,"रात झोंपड़पट्टी में आग लग गई। कई घर जल कर राख हो गये। कई लोगों ने तो जितना सामान बचा सकते थे बचा लिया परन्तु मैं अकेली क्या करती? देखते ही देखते सब जल कर राख हो गया।"
मैने पूछा," तेरा पति कहाँ था?"
वो बोली ,"मेम साब सामान की मुझको चिन्ता नहीं है, पर मेरा पति नहीं मिल रहा है क्या करुँ? मुझे बहुत चिन्ता हो रही है।"
सभी जानते थे,वो रोज दारु पीता था। मेरा दिल वितृष्णा से भर गया। मैने गुस्से में कहा," पी कर पड़ा होगा कहीं ? तू उसकी चिन्ता कर रही है,जो तेरी जरा भी परवाह नहीं करता। तुझे खाना, कपड़ा नहीं देता बल्कि तुझसे तेरी कमाई के पैसे छीन कर दारु पी जाता है। तुझे मारता है। घर के सुख के नाम पर उसने तुझे कुछ नहीं दिया, यहाँ तक कि ऐसी विकट परिस्थिती में भी मदद करने नहीं आया। उसी पति से वियोग का गम सता रहा है तुझे।"
वो आँखों में आँसू भरे उसी तरह मुझे देखती रही। उसकी भरी हुई माँग और माथे की बिंदिया जैसे कह रही हो,"आखिर तो वो मेरा पति है।" ****
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क्रमांक - 03
जन्म तारीख- 13 जुलाई1959
जन्म स्थान- सीहोर - मध्यप्रदेश
पति का नाम- दिलीप कुमार गुप्ता
पिता का नाम- गोपीवल्लभ नेमा
माता का नाम- त्रिवेणी नेमा
शिक्षा- एम.एस-सी.(रसायन शास्त्र),एम.एड.
व्यवसाय- 26 वर्षों तक विभिन्न केंद्रीय विद्यालयों में अध्यापन कार्य ,केन्द्रीय वि. लेक्चरर (रसायन शास्त्र)
2013 में ऐच्छिक सेवानिवृत्ति
प्रकाशित पुस्तकें:-
1. बाल काव्य-संग्रह- ‘आओ बच्चों याद करें’
2. काव्य संग्रह- ‛प्रेरणा’
3. पर्यावरण कविताऐं- ‛धरोहर’
4. क्षणिकाओं का संग्रह- ‘क्या यही सच है?’
5. कहानी संग्रह- ‘अपराजिता’
6. लेख संग्रह- ‘बच्चों को सशक्त बनाएं’ ।
7. लघुकथा संग्रह- ‛दुर्गा'
विशेष : -
1991 से 2002 तक आकाशवाणी बाँसवाड़ा(राज)से ‛वातायन' कार्यक्रम में 25 कहानियों का प्रसारण।
अतिथि सम्पादक: 2007 में जगमग दीपज्योति,अलवर के जून-जुलाई बाल-विशेषांक की अतिथि संपादक
पता : -
म. न. 14, प्रकाशपुंज, श्रीमाधव विला कॉलोनी,
मयूर नगर , मेन गेट के सामने, गाँव-लोधा,
बाँसवाड़ा - 327001राजस्थान
1- जवान तुझे सलाम
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प्रतिमा का विवाह सेना में तैनात जवान मृत्युंजय से हुआ। शादी के बाद वे हनीमून पर गए और कई धार्मिक स्थलों पर भी दर्शन करने गए। विवाह के 5 महीने व्यतीत हुए तभी मृत्युंजय की तैनाती कश्मीर के पुंछ जिले में हुई। कश्मीर के पुंछ जिले में नियंत्रण रेखा के पास अग्रिम ठिकानों पर पाकिस्तानी सेना द्वारा गोलाबारी की गई जिसमें भारतीय सेना की तरफ से गोलाबारी का करारा जवाब देते हुए मृत्युंजय शहीद हो गये। एक रक्षा प्रवक्ता ने बताया कि “मृत्युंजय बहादुर और ईमानदार जवान थे। राष्ट्र उनके सर्वोच्च बलिदान और कर्तव्य के प्रति समर्पण के लिए उनका ऋणी रहेगा।” मृत्युंजय का शव जब उनके गांव में पहुँचा तो सड़क के दोनों और 3 किलोमीटर तक जनता मृत्युंजय को अश्रुपूरित विदाई देने के लिए फूल मालायें लेकर उमड़ पड़ी थी। मृत्युंजय का शव उनके घर पहुँचा तो प्रतिमा रो पड़ी। उसने अपने को संयत किया और सास-ससुर को संभाला। वे अपने इकलौते बेटे की मौत से टूट चुके थे। प्रतिमा के ससुर ने बताया कि “प्रतिभा गर्भवती है।” यह सुनकर सभी के रोंगटे खड़े हो गए थे। प्रतिमा मृत्युंजय के दाह संस्कार के समय वहाँ खड़ी थी। वह अग्नि की उठती हुई लपटों को देखकर मन ही मन संकल्प कर रही थी कि वह होने वाले बच्चे को भी सेना में भर्ती करेगी। वह धीरे-धीरे बोल रही थी “मृत्युंजय तुम शहीद हुये देश की खातिर, तुम अमर हो गये हो। मेरी कोख में पल रहा बच्चा लड़का हो या लड़की उस रुप में तुम्ही पैदा होगे, तुम्हें मेरा सलाम और तुम्हारे होने वाले बच्चे का भी सलाम।” ****
2- भेंट
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श्याम गांव से लौटा तो पके हुए दशहरी आम की पेटी लेकर बॉस के घर पहुंचा । बॉस ने मुँह बिदकाते हुए कहा “आम ही तो हैं बहुत खाए सारी गर्मी । ले जाओ इन्हें ।”
श्याम आम की पेटी लेकर खिन्न मन से लौट रहा था और सोच रहा था कि आमों की एक पेटी उसने बाजार में नहीं जाने दी क्योंकि वह बॉस को आम खिलाना चाहता था । तभी उसका ध्यान एक कोढ़ी की दर्द और कराहती आवाज के कारण बंटा जो छोटी सी लकड़ी की गाड़ी को अपने हाथों से धकेलते हुए उसकी तरफ आ रहा था । श्याम ने आम की पेटी खोली और सारे आम उसकी गाड़ी में रख दिये । उसके दोनों हाथ ऊपर उठे जिनमें उंगलियां नहीं थी ,आँखें चमक उठीं , म्लान चेहरे पर खुशी झलक उठी । श्याम खुश था उसकी शिथिलता और खिन्नता काफूर हो चुकी थी । उसके कदम तेजी से घर की ओर बढ़ने लगे थे ।
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3- प्यार
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दिग्विजय के पिता प्रतिष्ठित उद्योगपति थे। दिग्विजय वैभव में पला बढ़ा था। उसका विवाह हो चुका था। पिता की मृत्यु के बाद से पिता का कारोबार वही संभाल रहा था। गर्मी की छुट्टियां शुरु हो गईं थीं। बच्चे बाहर घूमने का प्रोग्राम बना चुके थे । बच्चों के कारण दिग्विजय ने बड़ा कॉन्ट्रेक्ट छोड़ दिया था। पत्नी ने कारण पूछा तो दिग्विजय ने कहा कि "माता-पिता का बच्चों की खुशियों में साथ होना जरूरी है। मेरे पिता ने पैसा तो बहुत कमाया पर प्यार के दो बोल सुनने के लिए हम तरस गए। हम जब ₹10 मांगते तो सौ का नोट हवा में लहरा देते शायद उनके प्यार की परिभाषा इतनी ही थी।" बच्चे भी बातें सुन रहे थे, वे पापा को अपलक निहारते हुये कह रहे थे "यू आर रियली ग्रेट पापा।" ****
4- प्रतीक्षा
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श्याम सुंदर का जन्मदिन उनके पडौसी बड़े उत्साह से मना रहे थे। फिर भी उनकी आंखें दरवाजे पर लगीं थीं। शायद उनका बेटा आ जाए पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। सब लोग जा चुके थे। वह दरवाजे बंद कर अपने कमरे में पहुंच गए थे। वे थकान महसूस कर रहे थे इसलिये लेट गए। सोचते- सोचते वे अतीत की स्मृतियों में खो गए थे। उनकी पत्नी का निधन 5 वर्ष पहले हो गया था। ईशान उनका इकलौता बेटा था। उन्होंने बेटे के विवाह के सपने संजोए थे कि बहू आ जाने के बाद उनका जीवन व्यवस्थित हो जाएगा। विवाह हो जाने के बाद ईशान प्रिया को दिल्ली ले आया था। तीन माह बीत जाने के बाद ईशान प्रिया के कहने पर पिता को दिल्ली ले आया था। जब वह ईशान के घर पहुंचे तो बड़े खुश थे पर दो-तीन दिन में ही हकीकत से वाकिफ हो गये थे। प्रिया ईशान का ध्यान नहीं रखती थी वह सुबह 8:00 बजे घर से निकल जाता था और रात के 8:00 बजे घर आता था। उसके कपड़े गंदे और पसीने से भरे होते थे। श्यामसुंदर को लगा कि प्रिया का व्यवहार ईशान और उसके प्रति ठीक नहीं है। प्रिया अपने ससुर से घर का काम करवाने लगी, उन्हें बाजार सामान भी लाने के लिये भेजने लगी और कहने लगी "बैठे-बैठे रोटियां तोड़ते रहते हो ,काम करोगे तो स्वास्थ्य भी अच्छा रहेगा।" वे अपना काम भी स्वयं ही करते थे। उनका स्वास्थ्य खराब रहने लगा। एक दिन ईशान ने कहा-" मैं बाऊजी को कुछ समय के लिये गांव छोड़ आता हूं।" इस पर प्रिया ने कहा- "यहां का काम कौन करेगा? नौकर भी बड़ी मुश्किल से मिलते हैं।" ये बातें श्यामसुन्दर ने सुन लीं थीं। वे उसी रात बिना किसी को बताये अपने गांव के लिये निकल पड़े थे।
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5- अभिशप्त
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सदानंद जी हीरे के प्रतिष्ठित व्यापारी हैं। उनकी पत्नी सुमन का स्वास्थ्य बिगड़ा तो उन्हें अस्पताल ले गए। चेकअप में सुमन कोरोना पॉजिटिव निकलीं। अस्पताल में एडमिट रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। अस्पताल से डॉक्टर का फोन आया कि, “सदानंद जी आपकी पत्नी सुमन की मृत्यु हो गई है।” सदानंद जी ने सुना तो सन्न रह गए। वे निढ़ाल हो गये और उनका शरीर काँपने लगा। उन्होंने पूरी कोशिश की, कि पत्नी का शव उन्हें मिल जाये पर ऐसा नहीं हो सका। उन्हें याद आया कि सुमन अक्सर कहा करती थीं कि, “अगर मैं पहले मरूं तो तुलसी और गंगाजल मेरे मुँह में डालना, शादी का जोड़ा पहनाना और सोलह श्रृंगार भी तुम ही अपने हाथों से करना।”
सदानंद करुण विलाप करते हुये कहे जा रहे थे, “सुमन मैं कितना अभागा हूं? कितना अभिशप्त हूं कि मैं तुम्हारा पति होते हुये भी तुम्हारी अंतिम इच्छा पूरी नही कर सका। मुझे माफ कर दो। सुमन मुझे माफ कर दो।" ****
6- विधाता की कैसी यह लीला?
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विवाह के मंडप में फेरे चल रहे थे तभी दूल्हे के पिता ने लड़की वालों से केश मांग लिया था नाराज होकर लड़की वालों ने बारातियों की पिटाई कर दी और एक ट्रक में भरकर उन्हें जंगल में छोड़ दिया। बारातियों ने जैसे-तैसे जंगल में रात काटी और पैदल चलकर मुख्य सड़क पर आकर एक गाड़ी ली और अपनी पहचान के दूसरे शहर पहुंचे। दूल्हे के पिता समाज के अध्यक्ष से मिले और अपनी आपबीती सुनाई और बोले “हमें एक लड़की बहू के रूप में चाहिए, हमारी इज्जत का सवाल है। बिना बहू के बारात हम अपने शहर कैसे ले जाएं? ”समाज के अध्यक्ष श्री रामप्रसाद जी लड़के के पिता व लड़के को लेकर लड़की के घर पहुंचे और लड़की के पिता से बोले “आप की लड़की विवाह के योग्य है, आपके सामने लड़का और उसके पिता हैं आप बात कर लें।” लड़की के पिता बोले “अभी तो हम सुबह की चाय पी कर उठे हैं। हमारी हेसियत कहां कि हम आज के आज शादी कर दें?” रामप्रसाद जी बोले “आप लड़का पसंद कर लो, शादी का खर्च हम उठाएंगे।” लड़के के पिता भी बोले “आप तो बस लड़की को एक साड़ी में विदा कर दो। 2:00 बजे हम शादी के फेरे करवाने पहुंच जाएंगे।” रामप्रसाद जी ने समाज के अन्य व्यापारियों से संपर्क किया, मंडप बनवाया बारातियों के खाने की व्यवस्था करवाई और बैंड बाजे की व्यवस्था करवाई। मंडप में लड़के और लड़की ने सात फेरे लिए। लड़की की विदाई हो गई। विधाता की कैसी यह लीला थी? कि अच्छी भली शादी हो रही थी वह तो टूट गई और जिस घर में शादी कराने के लिए फूटी कोड़ी भी नही थी उस घर की लड़की की शादी हो गई। यह शादी संपूर्ण समाज में ही नहीं वरन पूरे शहर में कई महीनों तक चर्चा का विषय बनी रही। ****
7- राजी
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आंधी और तूफान के साथ हुई बारिश के समय वह कच्ची बस्ती में ही थी। जब वह घर आ रही थी तो रमाबाई के कच्चे मकान की दीवार उस पर गिर गई थी। उसका पैर दब गया था। कच्ची बस्ती के लोग उसे अस्पताल ले गए थे। उसके एक हाथ और एक पैर में फ्रैक्चर था। रमाबाई अस्पताल पहुँची और राजी से क्षमा माँगने लगी। राजी ने कहा “रमाबाई मैं तुम्हें इतनी आसानी से माफ नहीं करूंगी,तुम्हारी सजा अभी बाकी है तुम अपने मकान में अकेली हो और मैं भी अकेले ही रहती हूँ। तुम मेरे घर आकर रहो और मेरे काम में मेरी सहायता करो।" राजी,रमा के साथ घर आ गई थी। उसने बैठे-बैठे इशारों से रमा को काम करने का तरीका समझा दिया था।
वह बिस्तर पर लेट गयी थी और अतीत की स्मृतियों में खो गई थी। वह किन्नर थी पर उसके माता-पिता ने उसका मनोबल सदैव बढ़ाया। उसे पढ़ाया लिखाया। वह अपने माता पिता की एकमात्र संतान थी। उसके पिता उससे अक्सर कहते “समाज तुम्हें नहीं अपनाता कोई बात नहीं तुम समाज को अपना लो।" बस इसी वाक्य को राजी ने अपने जीवन का ध्येय बना लिया था। माता-पिता कार दुर्घटना में चल बसे थे। अब वही उस मकान की मालिक थी। मकान का एक हिस्सा उसने किराए पर दे दिया था और शेष हिस्से में कंप्यूटर लेब चलाती थी। बहुत से विद्यार्थी कम्प्यूटर सीखने आते थे। उसने समाज सेवा के लिए स्वयं को समर्पित कर दिया था। कच्ची बस्ती में प्रौढ़ शिक्षा केंद्र पर भी वह पढ़ाने जाती थी। बस्ती की लड़कियों को इकट्ठा कर उनका मनोबल बढ़ाती उन्हें स्कूल जाने की प्रेरणा देती। कोरोना का कहर टूटा, लॉकडाउन हुआ तो उसने कच्ची बस्ती में जाकर राशन बांटा,मास्क बांटे और लोगों को साफ-सफाई के तौर-तरीके सिखाए। तभी 'दीदी -दीदी' बोलते हुये रमाबाई ने उसके कमरे में प्रवेश किया। उसकी विचार तंद्रा टूटी। राजी ने पूछा “क्या बात है रमाबाई ?" रमाबाई बोली “कोई टीवी चैनल से आये हैं आपका इंटरव्यू लेने।आप समाज सेवा करती हो इसलिए।"राजी ने कहा "उन्हें अंदर बुलाओ।" ****
8- ट्रेनिंग
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कॉलोनी में एक नया सब्जी वाला आने लगा था। उसका नाम नारायण था। वह अपाहिज था । लॉकडाउन काल में घर बैठे ताजी सब्जियां मिल जातीं।सभी लोग उसी से सब्जियां ले लेते। यह क्रम चलता रहा उसके साथ उसकी पत्नी भी आती थी। वह उसे सब्जी बेचना और तोलना सिखाता था। एक दिन जेठ की तपती दुपहरी में उसने पानी पीने के लिए मांगा। मैंने उसे पानी दिया उसने धन्यवाद दिया और बताया कि उसे कैंसर है और डॉक्टर ने उसे बताया है कि वह 6 महीने का ही मेहमान है। वह उसकी बीवी को सब्जी बेचना सिखा रहा है ताकि उसकी मृत्यु के बाद वह सब्जी बेचकर पेट भर सके।उसकी जोश भरी बातों से नहीं लगता था कि वह 6 महीने का मेहमान है क्योंकि उसे उसकी पत्नी को सब्जी बेचने की ट्रेनिंग जो देनी थी। ****
9-मां के प्यार से भी ऊंचा ?
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मोबाइल की रिंग बजी, विमला ने देखा जतिन का फोन है । जतिन बोला “ मां आप कल 10:00 बजे एयरपोर्ट पहुंच जाना मैं यू. एस. ए. जा रहा हूं ।” विमला अपनी बात कह पाती उससे पहले ही जतिन ने मोबाइल बंद कर दिया। वह अक्सर जतिन से कहा करती “बेटा जिंदगी में कितनी ही ऊँचाई क्यों न छू लो पर मां के दिल की गहराई में न उतरे तो व्यर्थ हैं ऊँचाईंयां ।” विमला सोच रही थी कि काश जतिन ने दोपहर में सूचना दी होती तो उसके घर जाकर उसे बधाई दे आती । फिर सोचने लगी कि उसे तैयारी भी तो करनी थी ।इसलिए उसने नहीं बताया होगा । विमला ने घड़ी की तरफ नजरें फैलायीं रात के ग्यारह बज रहे थे । अतएव दिसंबर की ठंड में उसने नींद लेना ही बेहतर समझा । विमला दूसरे दिन सवेरे 10:00 बजे एयरपोर्ट पर अटेंडेंट के साथ उपस्थिति थी । उसने देखा जतिन कार में बहू के साथ आया है । जतिन मां के पास आकर बोला “हाय मॉम” बड़ी कठिनता से झुकने का प्रयास करते हुए अचानक सीधा खड़ा हो गया । विमला का हाथ आशीर्वाद के लिए उठा पर मौन के साथ । थोड़ी देर बाद जतिन आसमान में उड़ रहा था। एरोप्लेन के ओझल होने तक वह उसे अपलक निहारती रही ।विमला की अटेंडेंट ने कहा “ मां जी अब चलें ?बेटे के दूर जाने का बहुत दुख है ना आपको?”विमला अपनी आंखों की तरलता को सप्रयास छुपाते हुए बोली “पास रहकर ही वह इतना दूर हो गया है तो दूर जाने के बाद क्या आस करुं?” बहू की तरफ देख उसके पास जाकर बोली- “लीना जब भी तुम मेरे घर आना चाहो आ सकती हो मैं हूं तुम्हारे साथ।" लीना सास की बात सुनकर द्रवित हो गयी थी और सास के पैरों में झुकते हुये बोली-“मां मुझे आज एहसास हुआ कि ,मां के प्यार से ऊंचा इस जहां में कुछ भी नही है।"इतना सुनते ही विमला ने उसे सीने से लगा लिया था। ****
10. देशभक्ति
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पाकिस्तानी बॉर्डर के पास आतंकी हमले में एक जवान बुरी तरह जख्मी हो गया था। मूर्छित अवस्था में पड़ा हुआ जवान बीच-बीच में कराह भी रहा था। तभी एक विदेशी नस्ल का बाज वहां मंडराते हुआ आया और जवान पर टूट पड़ा। उसे अपनी चोंच एवं पंजों से नोंचने लगा। दृश्य इतना भयावह था कि बाज जैसे जवान की आंखें फोड़ उसका सारा मांस नोच लेगा। हमारे देश के पक्षियों ने इस दृश्य को देखा तो वे संकट की घड़ी से जवान को बचाने के लिए जोर-जोर से शोर करते हुए अन्य पक्षियों को बुलाने लगे। देखते-देखते वहां पक्षियों का समूह आ गया, उन्होंने उस बाज को घेरकर कर मूर्छित कर दिया था। सभी पक्षियों ने जवान के चारों ओर सुरक्षा घेरा बना लिया था। तभी आर्मी के कुछ जवान वहां आ गए थे। जवानों ने देखा कि पक्षियों का समूह जवान की सुरक्षा में तैनात है एवं एक विदेशी नस्ल का बाज मूर्छित पड़ा हुआ है। उनके रोंगटे खड़े हो गए थे प्रकृति का अद्भुत नजारा देखकर। वे सारी स्थिति समझ गए थे। उन्होंने सभी पक्षियों को सलामी दी क्योंकि उन्होंने एक जवान को मरने से बचा लिया था। ****
11-आउटडेटेड
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मैं ड्राइंग रुम में बैठा, दबी सी आवाज में बेटे और उसकी मां का वार्तालाप सुन रहा था। बेटा बोला “तुम और पापा मेरे नये मकान में आना चाहते हो तो सारा सामान बेंच दो क्योंकि यह आउटडेटेड हो गया है।" मां सोच में पड़ गई थी कि क्या यही उनका बेटा है जिसे एक महीने पहले मकान की किश्त पूरी करने के लियेे अपनी गाढ़ी कमाई दी है। बेटा बोला “माँ मुझे तुम्हारे निर्णय का इंतजार रहेगा।” बेटा बोलते-बोलते ड्राइंग रूम से गुजर रहा था तो भी मुझसे बगैर आंखें मिलाये धड़ाधड़ सीढ़ियां उतर गया। मैं अंदर पहुंचा तो देखा पत्नी की आंखों से अश्रु की अविरल धारा बह रही थी। मैंने पूछा “क्या हुआ ?” पत्नी बोली “आपका बेटा जिस सामान को उपयोग में लाकर पला-बढ़ा उसको हीे आउटडेटेड बोल रहा है। फिर जब हम सामान बेचकर उसके घर रहने जाएंगे तो हमको भी आउटडेटेड बोलेगा और बिना सामान के हम लौटेंगे कहां ?” पत्नी का यह प्रश्न त्रिशूल की तरह मेरी छाती में धंसता जा रहा था ।****
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क्रमांक - 07
जन्म : 6 अक्टूबर 1950 , बांँसवाड़ा -राजस्थान
शिक्षा : बी. एससी., एम ए (अर्थशास्त्र ,हिंदी ) , CAIIB
संप्रति : पूर्व बैंक अधिकारी SBBJ .BANK, वर्तमान में स्वतंत्र लेखन
प्रकाशित कृतियाँ : -
सुनो पार्थ ( काव्य संग्रह )
अपना अपना आकाश ( कहानी संग्रह )
कामाख्या और अन्य कहानियाँ ( कहानी संग्रह )
टापरा व अन्य कहानियाँ ( कहानी संग्रह )
पीर परबत-सी (उपन्यास)
फुलवारी (बाल कहानियाँ)
तूणीर के तीर (व्यंग्य संग्रह)
सम्मान एवं पुरस्कार : -
- साप्ताहिक हिंदुस्तान काव्य पुरस्कार - 1984 दिल्ली
- साहित्य गुंजन सम्मान - इंदौर
- साहित्य समर्था श्रेष्ठ कथा के अन्तर्गत सम्मान -जयपुर
- शब्द निष्ठा लघुकथा अजमेर धनपती देवी सम्मान
- समवेत कथा सम्मान - सुल्तान पुर
- राजस्थान पत्रिका सृजन सम्मान.
- साहित्य कला एवं संस्कृति रत्नाकर सम्मान हल्दीघाटी
- सलिला साहित्य रत्न सम्मान सलूम्बर
- विधुजा सृजन सम्मान बाँसवाड़ा
विशेष : -
संपादन - शेष यात्राएं (काव्य कृति)
प्रसारण - दूरदर्शन जयपुर, आकाशवाणी -उदयपुर एवं बाँसवाड़ा. से समय समय पर
संपर्क - 1- ए -39 , हाउसिंग बोर्ड़ कालोनी ,
बाँसवाड़ा , राजस्थान - 327001
1. पैसा पेड़ पर नहीं लगता है
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गुरू द्रोण आष्चर्य चकित रह गये । देख रहे है अर्जुन पेड पर चढ़ गया हैं। अरे वत्स वहा पेड़ पर क्या रहे हो ?
जी गुरूजी उस चिडिया को खोज रहा हूँ । जिसकी आँख मुझे फोडनी हैं। निषानेबाजी का यह रोज रोज का झंझट अब मुझसे नहीं होता हैं मुझे एकलव्य का डर लगता है वह हर रात मुझे स्वप्न मंे दिखायी देता है। एक बार ’वो’ चिडिया पकड में आ जाये बस
गुरू द्रोण का माथा ठनका - अरे वत्स मेरी बात सुन मुझ पर भरोसा कर मैने विदेष से पी॰एच॰डी॰ की है कोई झख नही मारी हैं।
पहली बात - एकलव्य का डर मन से निकाल दे। उसको धर्नुविद्या की तस्करी के आरोप में गिरफ्तार किया जा चुका हैं। तुम युवराज हो युवराज की तरह सोचों आत्मविष्वास मजबूत रखो । आज का युवराज ही कल का राजा होता है।
उतरो वस्त पेड से नीचे उतरो, जिस चिडिया को तुम यहाँ खोज रहे हो वह कब की फूर्र हो गयी । वह सात समन्दर पार विदेषी बैंक के लाॅकर में पडी है । वहाँ एकलव्य की सात पुष्ते भी पर नहीं मार सकती है ।
अर्जुन जब पेड से उतर गये तब गुरू द्रोण ने उनके कान में कहा - ’’ पैसा पेड पर नहीं लगता । ’’ ****
2. कुर्सी
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देष का नक्क्षा उनकी टेबल पर पड़ा है, वो लगभग ऊंघते हुए कुर्सी पर बैठे है। तभी उन्हें लगा कुर्सी में कुछ आवाज आ रही है। ध्यान से देखने पर पता लगा कि यह वही कुर्सी जिस पर बैठकर सदियों से शासाकों ने अच्छे बुरे निर्णय लिये है।
कुर्सी बोली - धन्य है राजा दषरथ को जिन्होने सिर में एक बाल सफेद दिखायी देते ही मुझे छोडकर सन्यास लेने का फैसला लिया पर श्रीमान् आपके बालों में चांदी की खेती पक गई है। न आपके आँख से बराबर दिखायी देता है न कानों से सुनायी देता है न बोलने की शक्ति बची हैं । शरीर जीर्ण शीर्ण हो चुका है फिर भीे मेरे प्रति आपका मोह मेरी समझ से परे है।
वे खमोष रहे तो कुर्सी फिर फुसफुसाई कुछ तो लिहाज करो एक राजा भरत हुए जिन्होने कुर्सी को ठोकर मार दी, सत्ता से कोसों दूर रहे । अरे वानप्रस्थ आश्रम का कुछ तो अर्थ समझो जिसके बाद देख तमाषा लकडी का होता है।
आगे लकड़ी पीेछे लकड़ी
तब उन्होने फुसफुसाते हुए कहा - राजा दषरथ को तो अपी संतान को ही सत्ता हस्तान्तण की सुविधा थी । राजा भरत तो असंवैधानिक सत्ता केन्द्र थे । उन लोगों को सत्ता के लिये किसी से वोट की भीख नहीं मांगनी पड़ी थी । आगे लकड़ी पीछे लकड़ी तो बाद की बात है, हाथ में लकड़ी काम की है।
और कुर्सी ने देखा उन पर बैठे महाषय का चेहरा एक दम खिल गया । सिर के सारे बाल काले हो गये और राजा यथाति की तरह उनका यौवन लौट आया। ****
3.पन्द्रह अगस्त: छब्बीस जनवरी
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स्कूली छात्रों को एक प्रष्न पत्र में पूछा गया पन्द्रह अगस्त और छब्बीस जनवरी के बारे में क्या जानते है तथा कैसे मनाये जाते है और कैसे मनाना चाहेगे।
एक बच्चे का उत्तर इस प्रकार था। पन्द्रह अगस्त के दिन देष आजाद हुआ, 26 जनवरी को देष प्रजातंत्र की लोअर के॰जी॰ मे भर्ती हुआ। 15 अगस्त बड़ा भाई है 26 जनवरी छोटी बहन है। 15 अगस्त पुर्लीग है, 26 जनवरी स्त्री लींग है। दोनो ही त्यौहार पर मास्टर परेड़ करवाते है, बच्चे परेड़ करते है अफर और मंत्री सलामी लेते है झंणा फहराते है। बाबु छुट्टी मनाते है। दोनो ही त्यौहार पर केला/समोसा/कचोरी का प्रसाद वितरण किया जाता है। 15 अगस्त वर्षा ऋतु का तथा 26 जनवरी शीत काल का त्यौहार है। दोनो त्यौहार अभी परेड़ कर मनाता हूँ। बड़ा होकर दूसरो की परेड़ लेना पसन्द करूंगा। ****
4. ठहाके गिरफ्त में
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समने न्न्यंबकेष्वर का नेसर्गिक सौन्र्दय से आच्छादित पहाड़ कहीं दृष्य कही अदृष्य सर्पाकार सीढियां और वातावरण में चार चाँद लगाता सीढ़ियाँ चढ़ता एक हनीमुन पेयर चूडियो की खनक और झरनो की निष्चल हंसी बिखेरता एक दूरसे की कमर मे हाथ ड़ाले दुनिया जहान से बेखबर पर्वत की ऊँचाई पर अग्रसर हो रहा था।
तभी बुढ़ापे की दहलीज पर दस्तकें देते फटी धोती और कुर्ता पहने पांवो मे पुराना चमरोधा जूता पहने ड़ोली वाले दो बूढे दाल भात मे मूसलचंद की तरह प्रकट हुए।
साब ! मेम साब थक जायेगी ड़ोली कर लीजिये अभी गोरखनाथ की गुफा और गोदावरी बहुत ऊँचाई पर है।
युवक ने पीछे मुड़कर झिड़का - अरे बूढे ! मेेम साब के थकने की चिन्ता तुझे क्यों है ? जा रास्ते लग।
अपनी नवोढ़ा से मुखातिब होकर कहता है - देखो डार्लिग पर्यटन स्थलो की सुंदरता की सुंदरता की इन लोगो ने एसी तेसी करके रख दी है।
और डार्लिग ने पारदर्षी गोगल्स मे आँखे नचाकर पति की बात का समर्थन किया।
तभी बूढ़े फिर आ टपके - बाबूजी डोली के अस्सी रूपये ले लेगे बैठ लाइये।
अभी नीचे तो सौ बता रहा था आ गया न अब रास्ते पर।
युवक - डार्लिग तुम थक रही हो तो ड़ोली कर ले।
नहीं अभी नही थोड़ा और चढते है अभी और कम करेगा।
और पत्नी की इस समझदारी पर पतिने फिर ठहाका लगाया।
डोली वाले गिडगिडाते रहे और रेट काम करते रहे। अन्ततः बूढो ने प्रस्ताव किया चालीस रूपये दे देना हमारे बच्चों का लिहाज तो करो तीन दिन से कोई ग्राहक नही मिल रहा । आप बैठेगे तो रात को चावल पकेगा।
केमलांगी पत्नी के मुख मंडल पर छलकते स्वेद कण देखकर पति ने यह रेट स्वीकार कर ली।
हाँफते कांपते बूढ़े और दीन दुनिया से बेखबर ड़ोली मे हनीमुन पेयर *****
5. टिकट
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राजस्थान रोड़वेज की बस सवारियों से खचाखच भी थी। कहीं तील धरने की जगह नहीं थी। सामान्यतया होता यह है कि घाघ किस्म के कन्डक्टर अपडाउन करने वालों के तथा कम दूरी की सवारियों के टिकट बहुत कम काटते हैं। किराया राषि में रियायत के कारण दोनों पक्षों की मौन स्वीकृति होती है। ऐसी सवारियों और कन्डक्टर के बीच एक अलग प्रकार का अपनापन होता है।
इन्हीं अपडाउनर्स के बीच बैठे एक बा साहब अस्सी की उमर के बार बार कमजोर कंधे उचका कर टिकट मांग रहे थे। कन्डक्टर उनसे रूपये लेकर आगे बढ़ गया था।
अपडाउनर्स कन्डक्टर की पैरवी करते हुए बुजुर्ग को समझा रहे थे - बा साहब शांति रखीए। टिकट कहाँ भागा जा रहा है। भीड़ कितनी है । शांति रखीए।
सिद्धान्तवादी बा साहब को टिकट के बगैर चैन नहीं था। आखिर खिसक - खिसक कर कन्डक्टर तक पहुँच गये ।
लाओ भाई मेरा टिकट । सुना है आजकल टिकट के साथ दुर्घटना बीमा हो जाता है।
कंडक्टर ने कहाँ - ऐसा होने पर सबसे पहले तो जेबंे साफ होती है । टिकट कहाँ मिलेगा। ****
6.पहचान पत्र
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शहर की सीमा से सटा एक खूंख्वार अपराधी जाति का एक गाँव, जहाँ बचपन से ही बच्चों को चोर उचक्का, डकैत बनने की षिक्षा दी जाती थी। गाँव के आधे आदमी हर वक्त जेल में होते समाजवाद इतना उच्च कोटी का कि गाँव में बच रहे पुरूष चोरी उठाई गीरी से पूरे गाँव का भरण पोषण करते।
बिल्ली के भाग्य से छिका टूटा। गाँव वालांे की जमीने रीको ने अधिग्रहित कर ली पूरे गाँव का मुआवजा लगभग दस करोड़ के ऊपर। शहर की सारी बैंकों के मुँह में डिपोजीट के लिये लार टपकने लगी।
प्रभुलाल भी एक बैंक के मैनेजर थे। उनके फोन की घंटी धनधना उठी। बड़े साहब ने फटकार लगाई - अरे सोये हो क्या वहाँ फलाँ गाँव में रूपयों की बरसात हो रही है। बैंक में बैठे बैठे क्या मक्खियाँ मार रहे हो।
सर वो कुख्यात अपराधियों का गाँव है उन लोगों के पास जंगली और षिकारी कुत्ते हैं।
हाँ तो तुम्ही को खा जायेंगे क्या ? दुसरी बैंक कैसे जा रही है। प्रभुजी ने यस सर कहकर फोन रख दिया । एक कद्दावर गार्ड को मोटर साईकल पर पीछे बिठाकर कुत्तों से बचते बचाते एक ठीक ठाक से घर में प्रवेष कर गये।
घर का मुखिया दारू गटक रहा था। देखो भाई हम बैंक वाले हैं आप लोगांे के खाते खोलने आये है।
हाँ तो खोल दो।
मैनेजर साहब - आप लोगों के आधार कार्ड, वोटर आईडी, राषन कार्ड उपलब्ध करादे फोटो हम खिचवा लेगे।
मुखिया - आप लोग गलत जगह आ गये ये यहाँ कुछ नहीं मिलेगा। आप लोग शहर की कोतवाली में चले जाओ हमारे फोटो भी वहीं मिल जायेगे। ****
7. असर
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’’वो’’ एक आला दर्ज के अफसर है। उनका बेटा एक ऊँचे अंग्रेजी स्कूल में पढ़ता है। बेटे को बड़ा आदमी बनाने के उन्होने पक्के प्रबंध कर रखे हैं। अपने व्यस्त कार्यक्रमों मे से यदा - कदा समय निकाल कर अपने बेटे से पढ़ाई - लिखाई के विषय में बात कर लिया करते हैं। एक बार जब किसी मेहमान ने उनके बेटे को ’’ बढ़े होकर क्या बनोगंे ’’ जैसा सवाल पूछ लिया और बेटे ने ’’ ओटो चलाने वाला ’’ जैसा जवाब दिया तो उन्होंने अपने बेटे को बुरी तरह से डांटा था।
उसके बाद जब भी कोई मेहमान ऐसा सवाल पूछता उनका बेटा सहम कर रटा रटाया जवाब ’’ बड़ा प्रषासनिक अधिकारी ’’ बनूँगा कह देता । अक्सर उनका बेटा उदास और सहमा - सहमा रहता और उन्हें जब भी समय मिलता वे राजा शुद्धोधन की तरह अपने पुत्र सिद्धार्थ की उदासी के कारण खोजते रहते।
आज इन्हंे अपने व्यस्त जीवन में फिर कारण खोजने का समय मिल गया बेटे से अंग्रेजी कविताएं सुनी और उसका बस्ता चैक करने लगे। काॅपियों और किताबों पर चढ़े कवर देखकर वे बेहद नाराज हुए, कवर चढ़ाने वाले नौकर को बुरी तरह से डाँटा यह क्या एक भी तो कवर सही नहीं है । नौकर को हांक लगाकर अपने कमरे से विदेषी रंग बिरंगी पत्रिका का पुलिन्दा मंगवाया। गुस्से और रोष में भरे ’’ वो ’’ किताबों को अनावृत्त कर रहे थे । उन रद्दी अखबारों की काली छाया से जिन पर अकाल, बाढ़, भूखमरी जैसे बहिपात समाचार छपे थे नौकर उन पर चिकने गत्ते रंग - बिरंगे पहाड, नदियों और झरनों के गत्ते चढ़ा रहा था। अचानक एक किताब का गत्ता देखकर वो गुस्से में हाँफने लगे और कवर उतार कर कागज के फरखच्चे उड़ा दिये। रद्दी अखबार में स्कूल की छत गिर जाने से मरने वाले बच्चों का समाचार छपा था। ****
8.योग्य वर
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रामलखनजी एवं उनकी पत्नी को वयस्क होती जा रही बेटी की शादी की चिन्ता सता रही है। एक ही बेटी बडे लाड़ प्यार से पाला है पर एक न एक दिन तो उसको पराये घर तो जाना ही पड़ेगा।
नाते रिष्तेदारों का दबाव भी बढ़ रहा था। आखिर कितने दिन घर पर रखोगे योग्य लड़का देखकर शादी कराओ।
वो पलट कर जवाब देते - मेरी लड़की लाखों में एक है।
योग्य लड़का तो बताओं।
एक रिष्तेदार ने बताया - देखों अमूक लड़का अपने कस्बे मंे ही है। सरकारी नौकरी में भी है। बेटी यही रहेगी तुम्हारे दूसरी संतान तो है नहीं, अतः तुम्हारा भी ध्यान रखेगी।
रामलखनजी माथे पर हाथ फेरते रहे - सो तो ठीक है पर लड़का सयुंक्त परिवार मे रहता है। ना बाबा ना - मेरी बेटी इतने बड़े झमेले की रोटियाँ नही बना सकती।
इसी तरह प्रस्ताव आते रहे । वो कोई न कोई कारण बताकर अस्वीकार करते रहे। हर बार बेटी जब भी प्रस्तावक आता दुसरे कमरे की ओट से वार्तालाप सुनती ।
आज रविवार है और रामलखनजी चाय की चुस्की के साथ वैवाहिक विज्ञापन ध्यान से पढ़ रहे थे। तभी उनका बचपन का मित्र श्याम आ गया।
अरे यह क्या अभी तक तेरी खोज पूरी नहीं हुई।
रामलखन - अरे श्यामू कोई योग्य लड़का तो मिले।
श्याम - यार देख मेेरे ध्यान में एक लड़का है, पर उसमे कुछ परेषानियाँ है। लड़का अच्छा भला स्मार्ट है पर हाई फाई पेकेज पर सात समंदर पर एक मल्टीनेषनल कम्पनी में न्युयार्क मे नौकरी करता है।
फिर तेरी बेटी के तो ’ मंगल ’ भी है कुडंली मैच हो न हो।
रामलखनजी के चेहरे पर एक नई चमक और उत्साह आ गया। पत्नी को आवाज लगाई जरा सुनो तो, खुष - खबरी । श्याम ने कहा - पर तेरी एक ही बेटी बहुत दूर चली जायेगी।
रामलखनजी ने चाय के कप से कप टकराया - ’ चियर्स ’ छोड पोगापंथी की बाते । यकायक उनकी बेटी आकर कंधे से झूल गयी । ’’हाउ स्वीट पापा यू आर।’’ ****
9. ग्राहक सेवा
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आज बैंक की शाखा में प्रधान कार्यालय से बड़े बड़े पोस्टरों एवं बैनरों के बंडल आये है । पन्द्रह दिन तक उत्कृष्ट ग्राहक सेवा पखवाडा मनाने के आदेष है।
बड़े मेनेजर साहब ने सारे स्टाँफ की मीटिंग ली कर्मचारियों को चाय बिस्कीट के साथ ग्राहक सेवा की आवष्यकता एवं उपादेयता पर सविस्तार समझाया।
ग्राहकों की आवाजाही रोजमर्रा की तरह प्रांरभ हो गयी। बडे़ मैनेजर साहब ने अपने केबिन के पर्दे खोल दिये ताकि अंदर ही बैठे कर ग्राहक सेवा का मूल्यांकन कर सके।
सभी कर्मचारी अपने काउन्टरों पर बैठ गये। कोई चाय की चुस्की ले रहा है, कोई काम करता हुआ पास वाले स्टूल पर बैठे से बतिया रहा है। किसी के कन्धे और कान के बीच मोबाईल है जिस पर चहक - चहक कर हैलो हाय कर रहा है।
एब खुबसूरत महिला का प्रवेष होता है जो इन्द्र की किसी अप्सरा से कम नहीं है। काउन्टरों पर खुसुर - पुसुर होती है । अपने काउन्टर के सामने खड़े ग्राहकांे को छोडकर कमोबेष सभी कर्मचारी जलेबी रेस की तरह आगे बढ़कर दाँतों के विज्ञापन वाली मुस्कहराट के साथ उसका स्वागत करतेे है - मेम, मै आई हेल्प यू।
प्रत्युत्तर में वो भी अपनी मुस्कान के अनार दाने बिखेरती हुई अपने काम बताती जाती है। आनन - फानन में कर्मचारी इधर - उधर भागकर उसके सारे काम कर देते हैं। एक अच्छे सोफे पर बिठाकर उसकों काफी मान मनुहार के साथ अच्छी काकरी में काॅफी पिलायी जाती है।
थेंक्स कहती हुई वो सुझाव बाक्स में एक पर्ची ड़ालकर चल देती है।
भीतर बैठे मैनेजर साहब ने यह दृष्य अभी पूरा देखा ही था कि किसी काउन्टर पर झगड़ने की आवाज सुनते हैं।
उन्होंने देखा एक बुजुर्ग जिनको चलने मे भी काफी परेषानी हो रही हैं, लगातार इस काउन्टर से उस काउन्टर पर धक्के खा रहे हैं काम उनका कोई कर नही रहा है। परेषान होकर वो मेनेजर साहब के चैम्बर में प्रवेष कर जाते हंै।
अरे साहब हमारे नाम का पखवाडा मना रहे हो कम से कम इस अवधि मंे तो हमारे काम निपटाओ। कोई बाबू ठीक से जवाब नही दे रहा और बोल रहे है वो उटपटाग तो कोई पत्थर की मूर्ति की तरह बैठे हैं।
बड़े मैनेजर साहब उनको ’ सारी ’ बोलकर कुर्सी पर बिठाते हैं। ठंडा पानी मंगवाकर पिलाते है। स्वंय बाहर जाकर उनके काम अपने हाथ से कर सम्मानपूर्वक बुर्जुग को विदा करते हैं।
शाम को फिर एक मीटिंग लेकर स्टाफ को फटकारते है। वरिष्ठ नागरिकांे के प्रति आप लोग का रवैया ठीक नही एक न एक दिन हम सभी को बुढ़ा होना है।
स्टाफ मे जो नेता किस्म के थे वो प्रतिवाद करते हैं। वरिष्ठ नागरिक के आखिर कौन से सिंग लगे है।
अरे साहब वो आदमी पक्का खडूस और चिम्मड़ है। घरवाली को मरे दस साल हो गये, बेटा बहू गाँठते नही । रोज उठकर एक - एक एन्ट्री के लिये बैंक वालो का भेजा चाटता रहता है।
अरे उसकी पूरी डिपाजीट यहाँ पड़ी है।
पड़ी है तो सर बैंक ब्याज भी तो दे रहा है। यूं कहते हुए नेता नुमा स्टाफ ने चपरासी को आवाज लगाई -
अरे हकरा राम वो सुझाव पेटी में खोल के ला क्या पड़ा है। मैनेजर साहब को पढ़ा वह खुबसूरत महिला लिख के गयी थी।
एक्सीलेन्ट कस्टमर सर्विस, नाइस विहेवियर, हर्टियष्ट थेक्स टू आल स्टाफ।
मेनेजर साहब ने पूछा पर वो किस काम से आयी थी उसका खाता नम्बर लिखवा दो बड़े साहब के आने पर कस्टमर मीट मे उसे भी बुलायेंगे।
अरे सर वो तो ढ़ेर सारे फटे नोट बदलवाने तथा रेजगारी लेने आई थी। अपने यहाँ तो उसका कोई खाता नही है। आप तो नये आये हो सर - उस बूढ़े को भूलकर भी मत बुलाना उसके दिमाग का एक स्क्रू ढ़ीला है।
मेनेजर साहब ने माथे पर अपना हाथ रख लिया स्टाफ खुद की ही पीठ थपथपाता हुआ केबीन से बाहर निकल गया। ****
10. नरक
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आज एक महान लेखक का देहावसान हो गया। देष के साहित्यिक समाज में शोक की लहर छा गयी। अनेक प्रतिष्ठित पुरस्कारांे से सम्मानित लेखक महोदय के सम्मान में देष के बड़े - बड़े शहरांे में शोकसभाएँ आयोजित की गयी। दिल्ली चूंकि देष की राजधानी है अतः वहाँ बड़ी शोकसभा आयोजीत की गयी।
पहली बार किसी बड़े आयोजन में बतौर अध्यक्ष वो नही थे । मंच के पास एक कुर्सी पर उनकी तस्वीर थी, पास में एक दीपक जल रहा था। ढेर सारी फुल मालाएँ चढ़ी हुयी थी।
मंच पर अन्य महान लेखक अथवा महानता की कतार में खड़े अन्य साहित्यकार आसीन थे।
श्रोताओ में अप्रसिद्ध, नये लेखक, संवेदनशील पाठक आदि मौजुद थे।
सभी वक्ताओं ने दिवंगत लेखक के झुझारू व्यक्तित्त्व का उल्लेख किया । किसी ने स्त्री विमर्ष पर उनके विचारों का प्रभाव रेखांकित किया । किस तरह वो जीवन भर धारा के विरूद्ध जाबांज तैराक की तरह तैरते रहे। कुछ लोगों ने मिड़िया को कोसा, जिसने उनकी मृत्यु को शोक खबरों में केवल नीचे चलने वाली लाइन मे स्थान दिया गया। कुछ वक्ताओं ने बताया कि केवल उनके छू लेने भर से किसी नये लेखक की कृति महत्वपूर्ण तथा उल्लेखनीय हो जाती थी। कुल मिलाकर उनके लेखन की भूरी - भूरी प्रषंसा वक्ताओं ने उन्हें आम आदमी का महत्वपूर्ण चेहरा, शोषित पिछडं़े लोगांे तथा पीड़ित लोगांे की लड़ाई का सेनापति बताया। कुछ वक्ताआंे ने शोधार्थियो को उन पर शोध तथा प्रकाषकों को ग्रन्थावली छापने की आवष्कता बतायी।
अन्त मे दो मिनट का मौन प्रारम्भ हुआ।
उधर यमराज के दूत उनको नरक की तरफ धकेलने लगे । आदत के मुताबिक उन्होंने विरोध किया।
यमराज के सामने जब प्रस्तुत किया तब उन्होंने पूछा मुझे किस कृत्य के अपराध मे नरक मे भेजा जा रहा है। भू लोक के तमाम लोग मुझे स्र्वगवासी कर रहे है।
यमराज ने कहा - आपने जिन लोगों पर लिखा उनके नरक का अच्छा और प्रभावी चित्रण किया। किन्तु सारे नरक भोगने के बाद जब धरती पर जाओगें तुम्हारा लेखन भोगे हुए यथार्थ के कारण धारदार तथा प्रभावी हो जायेगा । देखे और भोगे यथार्थ का अन्तर आपको नोबल पुरस्कार दिलायेगा। दूतो नें उनको नरक मे धकेल दिया। ****
11. अस्पताल का कमरा
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वो चार बिस्तरों वाला अस्पताल का कमरा था । उसमे भर्ती मरीज एक - दो दिन के अंतराल पर लगभग साथ ही भर्ती हुए थे ।
मरीजों को तो भर्ती होते वक्त विषेष सुध बुध नही थी । उनकी बीमारियों का इलाज लम्बा चलने वाला था । तय है उन्हे एक लम्बा समय अस्पताल में गुजारना था ।
उनके साथ आये तथा अस्पताल मे साथ रहने वाले मित्र एवं रिष्तेदार एक दूसरे को देखकर नाक भों सिकोढ रहे थे । इसका कारण था सभी एक दूसरे के लिये विधर्मी थे ।
कोई मोहनलाल तो कोई अब्बदुल तो कोई सतबंत सिंह सरदार तो कोई जैन अंकल थे । हर एक का अपना - अपना धर्म, अपने - अपने ईष्वर तथा अपना - अपना खान - पान एवं परहेज था ।
मरीज के साथ एक रिष्तेदार को तो उसकी देख भाल के लिये कमरे मंे जगह मिल जाती थी । शेष रिष्तेदार एवं मित्र जो बाहर बरामदे में ड़ेरा डालते आपस मे पहचानने लगे । समय के साथ दुःख बीमारी एवं दैनिक आवष्यकताओं के कारण मन मे जमी हुई बर्फ पिघलने लगी ।
सभी के मन मे एक दूसरे के प्रति सम्मान भाव जाग रहा था । भावना सम्मान के अन्तर्गत सतबंत के रिष्तोदारो को सतश्री अकाल, मोहनलाल जी को जयश्री कृष्ण तथा अब्दुल्ला को सलाम कहने मे या जय जिनेन्द्र कहने मे संकोच के स्थान पर प्रसन्नता का अनुभव होता था । यह भाई चारा इतना परबान चढ़ा की कभी किसी का रिष्तेदार विलम्ब से आता तो शेष लोग संभाल लेते । दूध, चाय, दवाई, फल जो भी आवष्यकता होती पूरी कर देते ।
एक मरीज जो गुर्दों का रोगी था खून की आवष्यता पडी उसकी पत्नी चिन्ता मे थी, इतने बोतल खून की व्यवस्था कैसे करूँ ?
दूसरे सभी मरीजो के रिष्तेदार आगे आये
- आंटी क्यों चिन्ता करती हो हम सभी तैयार है सभी खून का रंग तो लाल ही होता है । ग्रुप अलग - अलग हो सकता है ।
मोहनलालजी का आॅपरेषन है तो रिष्तेदार चादर चढ़ाने के रूपये दे रहे है । अब्दुल भाई का लकवा ठीक नही हो रहा है वो किसी माताजी के स्थानक पर जाने की इच्छा प्रकट कर रहे है।
यकायक छोटी कहासुनी को लेकर शहर मे बड़े दंगे भड़क गये जो विकराल रूप लेने लगे । अस्पताल में दंगो मे घायल लोगो का ताँता लग गया ।
नेट, मोबाइल, एस.एम.एस सभी जगह से अफवाहंे फैल रही थी । अखबारों की सुखर््िायाँ खून से लथपथ थी । अस्पताल मे चल रहे टी.वी. के चैनल आग मे घी ड़ालने की प्रतिस्र्पधा मे टी.आर.पी. बढ़ा रहे थे ।
कमरे मे मरीज व उनके रिष्तेदारों के प्रति एक दूसरे का गहरा आषवस्ति भाव था । वह आपस मे लगातार एक दूसरे की कुषल क्षेम पूछ रहे थे, सलामती की दुआ मांग रहे थे ।
जब शहर मे अनिष्चित कालीन र्कफ्यू लग गया मौन का सन्नाटा पसर गया ।
अस्पताल के कमरे मे सब अपने - अपने ईष्वर को याद कर रहे थे उनके अलग - अलग ईष्वर थे पर प्रार्थना एक थी ।
हे ! ऊपर वाले तू जल्दी हमारे शहर को अस्पताल के कमरे मे तब्दील कर दे । ***
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लेखन : -
2014 से गद्य एवं पद्य में हिंदी व मैथिली में लेखन
सम्पादन : -
डेढ़ वर्ष तक H for Hindi के संपादक
एकल पुस्तक -
1) चौंक क्यों गए (लघुकथा संग्रह)।
2) एकल ई बुक - बेवफा हो तुम
ब्लॉग- दो
सांझा संकलन - 23
सम्मान -- 15
फेसबुक और वाट्सएप पर भी कई सम्मान प्राप्त हुए हैं ।
पत्र - पत्रिकाएं : -
अक्सर पत्रिकाओं एवं अखबारों में रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है । अभी तक 350 से अधिक रचनाएं प्रकाशित हो चुकी है ।
पता : -
मकान नं. बी / 9 , के टी पी एस , थर्मल कालोनी , साकातपुरा , कोटा - राजस्थान - 324008
जन्म - 15 फरवरी 2002 , बिजवाड़ चौहान , अलवर - राजस्थान
माता – मन्जू शर्मा
पिता – कृष्ण कुमार शर्मा
शिक्षा – स्नातक वर्ष में अध्ययनरत
विधा – कहानी,कविता,लघुकथा,आलेख आदि
प्रकाशित रचनाएँ –
“शब्द-सरोकार”, “शुभ तारिका”, “जगमगदीप ज्योति”, “लघुकथा कलश”, “हरियाणा प्रदीप” “अनुभव पत्रिका”, “रचनाकार”, “मातृभारती”, “प्रतिलिपि” में प्रकाशित रचनाएँ।
पुरस्कार –
शुभ तारिका से प्राप्त “श्रद्धा पुरस्कार”।
“माई वीडियो स्टोरी कॉन्पिटिशन” में पुरस्कृत रचना।
“मोरल स्टोरी स्पर्धा” में पुरस्कृत रचना।
लेखन उद्देश्य –
लिखने का उद्देश्य केवल मन को आनंदित करना नहीं है। बल्कि लिखने का ध्येय तो समाज में कुछ ऐसे नव परिवर्तन करने का है, जो लोगों के दिल और दिमाग को अंदर तक प्रभावित करें। अगर मेरे द्वारा लिखी हुई रचनाओं से समाज में अंशतः भी परिवर्तन संभव हो सके, तो मैं अपनी साहित्यिक सेवा को सफल समझ सकूँगी। मेरी तो असीम कृपालु मां शारदे से यही प्रार्थना है कि वह हर साहित्यकार की कलम को इतनी ताकत प्रदान करें कि समाज में नव परिवर्तन के लिए एवं किसी भी बुराई को समाप्त करने के लिए कोई हथियार उठाने की आवश्यकता ना पड़े। वह स्वतः ही कलम की ताकत से नष्ट हो जाए। अगर ऐसा सम्भव हो सके तो हर रचनाकार अपने जीवन को धन्य मान सकेगा।
पता : नेहा शर्मा D/O श्री कृष्ण कुमार शर्मा , वीपीओ बिजवाड़ चौहान , जिला अलवर - राजस्थान - 301401
1. घर आई लक्ष्मी
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"बधाई हो माजी लड़की हुई है" दरवाजे के पास ही बैठी हुई शैला से नर्स आकर कहती है।
"क्या फिर से लड़की ?"
यह कहते हुए शैला के लफ्ज उसके गले में ही अटक जाते हैं। वह रूआसी-सी होकर नर्स की तरफ देखती है। मुस्कुराती हुई नर्स का चेहरा शैला के हृदय को चूर-चूर कर रहा था। मानो वह भी शैला के घर दूसरी पोती के जन्म पर उसे नकली हंसी दिखा कर उसके भाग्य पर चुटकी ले रही हो।
तभी शैला का बेटा नमन अपनी बड़ी बेटी के साथ वहां आता है। माँ का उतरा हुआ चेहरा देखकर नमन को आभास हो जाता है कि फिर से उनके घर बेटी ही हुई है। माँ- बेटे एक साथ बैठे हुए अपनी किस्मत पर तरस कर रहे थे। तभी उन्हें कमरे के अंदर से जोर-जोर की हंसी की आवाज सुनाई देती है। शैला और नमन दोनों कमरे की तरफ झांकते हैं और देखते हैं कि उनकी बड़ी बेटी डॉक्टर और नर्स को चॉकलेट बांट रही हैं।
शैला - "अरे लड़की तू ये क्या कर रही है और तू यह मिठाई क्यों बाँट रही है? हमारे घर बेटी हुई है बेटा नहीं। और लड़कियों के पैदा होने पर ज्यादा खुशियां नहीं मनाया करते हैं।"
यह कहते हुए शैला अपनी पोती की हाथ से चॉकलेट की थैली छीन लेती है। छोटी पोती उदास होकर कभी अपनी माँ को तो कभी अपनी दादी को देखती है।
अपनी भोली- सी आवाज में कहती है- "पापा ये बेटियों के जन्म पर मिठाईयाँ क्यों नहीं बाँटी जाती है। क्या वे इंसान नहीं। दादी इतनी क्यों उदास है कि उनके घर दूसरी लड़की आई है। पापा जब मेरा जन्म हुआ था क्या तब भी दादी इतनी ही उदास हुई थी। पापा लोग लड़कियों के जन्म पर ही दुखी क्यों होते हैं।"
बेटी के इन सभी सवालों ने नमन को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि "आखिर वे अपनी ही संतान की जन्म पर इतना क्यों दुखी हो रहे हैं। क्योंकि वह संतान बेटा नहीं बेटी है इसीलिए। जब वे ही अपनी संतान के जन्म पर इस तरह दुखी होकर बैठ जाएंगे तो लोगों को तो पूरा हक होगा उनका मजाक बनाने का और आज के वक्त में तो लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से कमजोर नहीं है या फिर कहे तो लड़कियां कभी कमजोर थी ही नहीं बस उनके पास मौका नहीं था या हम जैसे लोगों ने उन्हें मौका मिलने ही नहीं दिया।यह लड़कियां हमारे परिवार का भविष्य हैं और मैं पूरी कोशिश करूंगा कि उन्हें एक उज्जवल भविष्य देख कर इनके पंखों को उड़ने का मौका दूं।"
यह सोचते हुए नमन अपनी नवजात बेटी को गोद में उठाकर देर तक निहारता है और पास ही में खड़ी शैला अपने हाथ में रखी चॉकलेट की थैली से चॉकलेट निकालकर सभी का मुँह मीठा करवाती हुई अपनी पोती को गले से लगा लेती है। और एक बार फिर से पूरे कमरे में हँसी की लहर दौड़ जाती है। ****
2. असली खुशी
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कुम्हार के कठोर परिश्रम से बनकर तैयार हुआ मटका अपने वास्तविक रूप में आने के बाद खुशी से फूला नहीं समा रहा था। सुंदर आकार लिए हुए मटके को कुम्हार अपने कंधे पर रखकर बाजार की तरफ बढ़ता है।
कुम्हार के कंधे पर बैठा हुआ मटका प्रफुल्लित मन से सोच रहा था कि "शायद इस बार तो उसे कोई अपना खरीददार मिल ही जाएगा। क्योंकि पिछली बार वह पूरे दो महीने तक ऐसे ही रखा हुआ था और अंत में कुम्हार ने गुस्से में आकर उसे जमीन पर दे मारा। जिससे उसके छोटे-छोटे टुकड़े उसी गीली मिट्टी में जा मिले जिससे वह बना था।"
कुम्हार ने मटके को चबूतरे पर रख दिया और अब मटका हर राहगीर को आशान्वित दृष्टि से देख रहा था कि शायद आज तो कोई उसे खरीदेगा।
तभी मटके को पीछे से एक जोरदार हंसी की आवाज सुनाई देती है। मटका धीरे से पीछे की ओर घूमता है। पीछे रेफ्रीजिरेटर की एक लंबी कतार थी, जो मटके को इतनी भीड़ में बिल्कुल अकेला पाकर उसकी खिल्ली उड़ा रही थी।
तभी बीच में से एक रेफ्रिजरेटर अपनी घुनघुनाती हुई आवाज में कहने लगा- "अरे मटके तुम यहां बैठे हुए अपने खरीददारों की राह देख कर क्यों अपना समय बर्बाद कर रहे हो। शायद तुम्हें मालूम नहीं है कि अब लोगों को तुम्हारी जरूरत नहीं है। बल्कि लोग तो हम हजारों रुपए वाले रेफ्रीजिरेटरों को खरीदकर ले जाते हैं। और तुम्हारा पानी अब लोगों को इतनी शीतलता प्रदान नहीं करता है। जितना कि हम रेफ्रिजरेटरों का कोल्ड पानी।"
तभी मटका अपनी मीठी आवाज में कहता है कि - "लेकिन रेफ्रीजिरेटर भाई तुम शायद भूल रहे हो। जब तुम्हारा वजूद भी इस दुनिया में नहीं था। तब मेरा ही पानी पहले के लोगों को शीतलता प्रदान कर राहत पहुंचाता था।"
इसी बीच आखिरी में खड़ा हुआ एक रेफ्रीजिरेटर अपनी तनतनाती हुई
आवाज मैं कहता है कि- "रे मटके अब जमाना बदल गया है। अब पहले वाले लोग नहीं है यहां, जो तुझे अपने घर खरीदकर ले जायेंगे। आज की युवा पीढ़ी की तो एकमात्र पसंद हम रेफ्रीजिरेटर हैं। अधिकतर बच्चे तो जानते भी नहीं है कि सच में क्या अभी तेरा वजूद है।"
यह कहते हुए पुनः सारे रेफ्रिजरेटर खिलखिलाकर हंस देते हैं।
तभी एक छोटा- सा बच्चा कुम्हार से आकर मटके के दाम पूछता हुआ मटके को थोड़ा घुमा- फिरा कर देखता है। अपनी जेब में से एक मैला- सा पचास रूपयेे का नोट निकालकर कुम्हार को देेता है। और मटके को अपने कंधे पर रखकर आगे बढ़ता है।
कंधे पर बैठा हुआ मटका जोर से बोलता है -"देखो रेफ्रीजिरेटरों गरीबों के घर की शान तो आज भी मैं ही हूं।और मेरा शीतल जल केवल मन को शांति ही नहीं देेता है। बल्कि मेरी मिट्टी में मौजूद कई तत्व लोगों को बीमारी से लड़ने की ताकत भी प्रदान करते हैं।"
यह कहते हुए मटका जोर से हंसता है और रेफ्रीजिरेटर की लंबी कतारों का सिर नीचे झुक जाता है। ****
3 . विचारों की हेरा - फेरी
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प्रिया सिमरन से कहती है कि -"अरे सिमरन आज श्रावण का पहला सोमवार है। इसीलिए आज हम कॉलेज जाते हुए रास्ते में गौरी शंकर के मंदिर होते हुए चलेंगे।"
सिमरन- "हां बिल्कुल चलेंगे।"
सिमरन और प्रिया दोनों बस से उतरकर पहले मंदिर जाती हैं। प्रिया भगवान के पूजा की सारी सामग्री अपने साथ ही लाई थी। वह भगवान की पूरी विधि- विधान से पूजा करती है और पूजा समाप्त होने के बाद पुजारी को भेंट स्वरूप एक सौ एक रुपये देती है।
सिमरन- "वाह प्रिया। लगता है आज तो शिवजी को पूरी तरह खुश करने का मन है तुम्हारा।"
प्रिया- "अरे नहीं सिमरन मैंने सुना है कि यह मंदिर अपने यहां आने वाली सारी दक्षिणा से गरीब बच्चों की मदद करता है। तो मैंने सोचा क्यों ना मैं भी इस नेक काम में अपनी भागीदारी दूं। वैसे भी भगवान भी तो यही चाहते हैं कि हम किसी गरीब बेसहारा की मदद करें।"
सिमरन -"क्या बात है प्रिया आज तो तुम्हें सैल्यूट करने का मन कर रहा है।"
प्रिया -"बस-बस अब चलो कॉलेज के लिए देर हो रही है।
मंदिर से बाहर निकलते हुए एक गरीब बच्चा जो भूख से बदहवास- सा लग रहा था प्रिया से आकर कहता है कि -"दीदी बहुत भूख लगी है। कुछ पैसे दे दीजिए। मैंने कल से कुछ नहीं खाया है।"
बच्चे की यह सब बातें सुनकर प्रिया झल्ला जाती है और गुस्से से कहती है कि- "बस इन लोगों को सुबह-सुबह कुछ और काम नहीं मिला, जो आगे हाथ फैलाकर। पैसे क्या पेड़ पर लगते है। जो माँगने चले आते हो।कमाकर क्यों नहीं खाते हो।
सिमरन प्रिया की यह सब बातें सुनकर अवाक रह जाती है। सिमरन कभी प्रिया को तो कभी बच्चे को विचित्रता से देखते हुए मंदिर के अंदर वाली और मंदिर के बाहर वाली प्रिया के विचारों की हेरा-फेरी के बारे में सोचने लग जाती है। ****
4. मनीआर्डर
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सामने चबूतरे पर बैठे हुए वसंत काका के पास रघु दौड़ता हुआ आता है और उनके घुटने के सहारे बैठा हुआ अपनी हाँफती हुई आवाज से मैं कहता है कि- "अरे काका यह देख क्या है?" और यह कहता हुआ अपनी जेब में से एक लिफाफा निकालकर वसंत काका के हाथ में रख देता है।
बसंत काका लिफाफे को थोड़ा घुमा- फिरा कर देखते हुए रघु से पूँछ ही बैठते हैं - "क्यों रे रघु क्या शहर से मेरे बेटे ने पैसे भेजे हैं।"
रघु थोड़ा मुस्कुराता हुआ बोल पड़ता है- "हां काका बिल्कुल सही पहचाना आपने। शहर से आपके बेटे ने मनीआर्डर भेजा है। भेजता भी क्यों ना कब से आप इसका इंतजार कर रहे थे।"
वसंत काका खिलखिलाकर बोल पड़ते हैं- "देख रघु बेटा मैं ना कहता था तुझसे कि मेरे बेटे ने तो मेरे लिए कब के पैसे भेज दिए होंगे। लेकिन शहर इतना दूर है कि इसे यहां पहुंचने में थोड़ा वक्त लग गया होगा। मैं अभी अंदर जाकर तेरी काकी को यह बताता हूँ। वह सुनेगी तो खुश हो जाएगी।"
यह कहकर बसंत काका अपनी छड़ी के सहारे धीरे- धीरे अंदर की ओर चल पड़ते हैं। और रघु डाकिया काका के चेहरे पर खुशी देखकर अपने आप को धन्य महसूस करता है। क्योंकि बसंत काका की मदद करकर बेटे का फर्ज तो आखिर रघु ने ही अदा किया था। ****
5. जल की गरिमा
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आज प्रधानाचार्य श्री राम स्वरूप चतुर्वेदी जी अपनी पोस्टिंग के बाद पहली बार भरतपुर राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में आए। प्रार्थना सभा के बाद प्रधानाचार्य जी टहलते हुए विद्यालय की शिक्षा व्यवस्था व साफ-सफाई का निरीक्षण करने लगे। निरीक्षण करते वक्त सहसा प्रधानाचार्य जी की नजर कोने में लगे हुए उस बिना टोंटी के नल पर गई ।जिसमें से पानी व्यर्थ बह रहा था। और विद्यालय के विद्यार्थी उस बहते हुए जल को अनदेखा करते हुए सिर्फ पानी पीते और चले जाते। तभी प्रधानाचार्य जी ने नल पर पानी पी रहे उस बच्चे को इशारे से अपने पास बुलाया। और पूछा बेटा क्या इस नल को बंद करने के लिए कोई टोंटी नहीं है?
बच्चे ने जवाब दिया - नहीं गुरुजी।यह तो हमेशा ऐसे ही बहता रहता है ।बच्चा यह बोलकर अपनी कक्षा की तरफ चला गया।
तभी प्रधानाचार्य जी ने चपरासी को बुलाया और नल बंद करने के लिए टोंटी लाने का आदेश दिया। और साथ में यह भी कहा कि सभी बच्चों को छुट्टी के बाद विद्यालय परिसर में एकत्रित हो जाएँ । छुट्टी के बाद सभी बच्चे एक दूसरे से कानाफूसी करते हुए विद्यालय परिसर में एकत्रित हो गए। सभी शिक्षक सोच रहे थे कि प्रधानाचार्य जी ऐसा क्या कहेंगे जो सभी बच्चों को एक साथ इकट्ठा कर लिया है। तभी प्रधानाचार्य जी ने कहा कि आज मैंने विद्यालय का निरीक्षण करते वक्त कोने में लगे हुए उस व्यर्थ बहते हुए पानी के नल को देखा। जिस पर हमारे शिक्षक, बच्चों किसी का ध्यान नहीं था।
उन्होंने पास ही में खड़े उन शिक्षक महोदय से कहा कि- आज आप बच्चों को कक्षा में जल ही जीवन है पढ़ा रहे थे ना। लेकिन आपके विद्यालय में आपका जीवन रूपी जल ऐसे ही नाली में बहा जा रहा था। हमें सिर्फ किताबों में लिखी हुई बातों को पढ़ना व बच्चों को पढ़ाना नहीं है। बल्कि उसे अपने वास्तविक जीवन में चरितार्थ भी करना है।हमें जल की महत्ता को समझना है व दूसरों को भी जल की एक एक बूंद बचाने के लिए प्रेरित करना है। आज हम सभी यह संकल्प लेते हैं कि हम ना ही व्यर्थ पानी बहाएंगे और ना ही व्यर्थ पानी बहने देंगे ।बच्चों व शिक्षकों की इस गूंजती हुई आवाज से प्रधानाचार्य जी को यह संतोष हो गया कि आज इन सभी को जल ही जीवन है का पाठ लगता है सच्चे अर्थों में समझ आ गया है। ****
6. दोहरी मानसिकता
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बाबूलाल और मदन दोनों ऑफिस में बैठे हुए बातें कर रहे थे।
मदन ने बाबूलाल से पूछा-- क्यों बाबूलाल कल ऑफिस क्यों नहीं आए?
बाबूलाल-- दरअसल कल मैं बेटी रोशनी के रिश्ते के लिए गया था।
मदन-- फिर क्या हुआ बात बनी क्या
बाबूलाल-- बात क्या बननी थी मदन। जहाँ जाते हैं वहाँ सब बस एक ही बात शुरू करते हैं।
दहेज में क्या ••••••••••?
और तुम्हें तो पता है मैंने अपनी बेटी रोशनी की पढ़ाई में कितने पैसे खर्च किए हैं। और अब तो उसकी अच्छी नौकरी भी है। लेकिन लोगों की सोच भी ना अभी तक वहीं अटकी है। मैंने तो तय कर लिया है कि मैं अपनी बेटी की शादी मैं बिल्कुल दहेज नहीं दूंगा।
मदन -- हां बिल्कुल सही सोचा है तुमने बाबूलाल। खैर छोड़ो वैसे भी तुम्हारी बेटी रोशनी बहुत अच्छी है। उसे तो अच्छा लड़का मिल ही जायेगा। लेकिन तुम्हारा बेटा उसकी भी तो रिश्ते की बात चली थी कुछ दिन पहले ।
बाबूलाल -- हां चली तो थी। लेकिन लड़की वाले कुछ भी देने के लिए मान ही नहीं रहे थे। मैंने अपने बेटे की पढ़ाई में इतने पैसे खर्च किए हैं, तो मैं एकदम सिंपल शादी कैसे कर सकता हूँ ।इसीलिए मैंने मना कर दिया।
मदन -- बाबूलाल की दोहरी मानसिकता पर मन ही मुस्करा दिया। ****
7. आज की सोच
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महक ने स्कूल से आकर अपना बैग मेज़ पर रखा और दौडती हुई माँ के पास रसोईघर में गयी।माँ रसोई में कुछ विशेष व्यंजन बना रही थी।महक के पूछने पर माँ ने बताया कि आज रात को गाँव से शान्ति बुआजी आ रही हैं।यह सुनकर महक बहुत ख़ुश हुई ,क्योंकि उसे अपनी बुआ से अत्यधिक लगाव था। रात को क़रीब 8.30 बजे बुआजी रेलवे स्टेशन से ऑटो पकड़कर घर आई।पापा ने उनका बैग उठाया और उन्हे अंदर लेकर गये।माँ ने उनके पैर छुए।महक को देखकर बुआजी ने उसे गले लगा लिया और कहने लगी पिछली बार आए थे, तो बहुत छोटी थी ,लेकिन अब बहुत समझदार हो गयी हैं।दादाजी ने उन्हे बिठाया और कुछ समय बाद पूछा कि -क्यो शान्ति आज अचानक यहाँ आने का मन कैसे बनाया।अभी चार दिन पहले पूछा था, तो तुमने मुझसे कहा था कि खेत पर बहुत काम हैं।
शान्ति ने कहा कि -खेत पर तो काम हैं।लेकिन पिंकी अब बड़ी हो गयी हैं।इसीलिए उसकी शादी भी तो करनी हैं।
दादाजी ने कहा कि -ये क्या कह रही हो शान्ति? अभी तो वह सिर्फ़ सोलह साल की हैं।और पढ़ने में भी होशियार हैं।हमेशा क्लास मे अव्वल आती है।
शान्ति ने कहा कि -यह बात तो ठीक हैं।लेकिन लड़कियों को पढ़ -लिखकर भी करना, तो घर का ही काम हैं।फ़िर ज़्यादा पढ़ा -लिखाकर पैसे ख़र्च करने से क्या फ़ायदा।उसकी पढ़ाई से बचे हुए पैसों को उसकी शादी में ख़र्च कर देगे।
पास में बैठी हुई महक दादाजी और बुआजी की बात बड़ी गौर से सुन रही थी।कुछ देर शांत रहने के बाद महक ने बुआजी से कहा कि -बुआजी पढ़ने का उद्देश्य केवल नौकरी करना नहीं हैं। बल्कि पढ़ाई का उद्देश्य तो व्यक्ति के मानस का विकास करना हैं।अगर आप मानती हैं कि -शिक्षा का उद्देश्य नौकरी ग्रहण करना हैं ,तो इसके भी कई उदाहरण आपको हमारे समाज में देखने को मिल जायेगे।क्योंकि आज लड़कियाँ डॉक्टर, इंजीनियर, प्रशासनिक अधिकारी तथा वकील बनकर हर जगह अपना पैर जमा रही हैं।और रही बात पिंकी दीदी की तो वे महज सोलह साल की हैं और अगर आप उनका विवाह करती है, तो वह विवाह एक बालविवाह की श्रेणी में आएगा ,जो हमारे देश में कानूनी अपराध हैं।बुआजी यह तो इक्कीसवीं सदी चल रही हैं। और आप इस समय ऐसी दकियानुसी सोच रखेगी तो आज की युवा पीढ़ी आपको कचरे के ढेर की तरह फेंक देगी।यह कहकर महक अपने कमरे में चली गयी।
महक की बात सुनकर सभी परिवार वाले अवाक रह गये।वे सभी सोचने लगे की इतनी छोटी -सी लड़की भी क्या इतनी बड़ी बात सोच सकती हैं।शान्ति बुआ को महक की बात समझ आ गयी और उन्होनें महक को अंदर जाकर गले से लगा लिया। ****
8. देवदूत
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तेज बारिश के कारण सामने दिखने वाली वह ऊँची चट्टान नीचे बसी कच्ची बस्ती पर धड़ाम से आ गिरी। शांति से अपने दिनचर्या में लगे हुए ग्रामीणों में अचानक से अफरा- तफरी मच गई और देखते ही देखते वह सुंदर- सा दिखने वाला ग्रामीण इलाका किसी मलबे में तब्दील हो गया। फौरन सेना के जवान वहाँ आते हैं और लोगों के रेस्क्यू में जुट जाते हैं। अपनी जान की परवाह किए बिना वे लोगों की जान बचाते है और आधे से ज्यादा लोगों को सुरक्षित अस्पताल पहुंचाते है।
तभी एक चोटिल महिला सेना के एक जवान के माथे को सहलाते हुए बोल पड़ती हैं -"बेटे तुम हमारे लिए भगवान के भेजे देवदूत से कम नहीं हो। तुमने अपनी जान पर खेलकर हम सबकी जान बचाई है। वास्तव में बेटे मनुष्य होने का सच्चा धर्म तो आप निभा रहे हो, जो केवल अपने लिए ही नहीं जी रहे हैं बल्कि निस्वार्थ भाव से अपने देश व देशवासियों के लिए मर मिटने को तैयार हो जाते हैं। देश को फक्र है तुम्हारे जैसे वीर जवानों पर।"
यह कहते हुए वृद्धा अपने काँपते हुए हाथों से सेना के वीर जवान को सैल्यूट करती हैं। और सेना का जवान मुस्कुराते हुए चल पड़ता है। ****
9. एक कदम
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जग्गू जेब से माचिस निकालकर अपनी सिगरेट को सुलगाता है और दो घूंट मारते हुए सिगरेट अपने दोस्त मुरली की तरफ बढ़ाते हुए कहता है कि -"ये ले मुरली तू भी मार ले दो-चार घूंट। मन एकदम ही तरोताजा हो जाएगा।"
मुरली- "न, न नहीं जग्गू। मैं नहीं पीता हूं।ये सिगरेट- विगरेट।"
जग्गू अपना हाथ पीछे खींचते हुए कहता है कि- "ठीक है भई। तुझे नहीं पीनी है, तो ना सही पर हम तो पिएंगे।"
और यह कहते हुए फिर से सिगरेट के घूंट भरने लगता है।
तभी जग्गू की छोटी- सी बेटी उसके पास आती है और कहती है कि- "पापा देखो ना मेरी पेंसिल बिल्कुल टूट गई है और मेरे पास तो कोई ड्राइंग कलर भी नहीं है। मुझे जल्दी से दिला कर लाओ ना।"
छोटी- सी बच्ची अपने पिता का हाथ खींचती हुई दुकान की ओर इशारा करती है।
लेकिन तभी जग्गू झल्ला जाता है और छोटी बच्ची के हाथ को जोर का झटका मारते हुए कहता हैं कि -"पेन दिला दो, पेंसिल दिला दो। तुम्हारा तो यह रोज का ही काम हो गया है। अभी 10 दिन पहले ही तो दिलाई दिलाया था यह सब। जाओ मेरे पास पैसे नहीं है।"
इसी बीच जग्गू अपनी जेब में हाथ डालकर एक नई सिगरेट निकालता है और उसे सुलगाते हुए पुनः घूँट भरने लगता है।
पास ही में बैठा मुरली कभी जग्गू को तो कभी उसकी सुलगती हुई सिगरेट को आश्चर्य भरी नजरों से देखता हुआ बोल पड़ता है- "जग्गू जरा यह तो बता तेरी यह सिगरेट कितने की है?"
जग्गू अपने मुंह से धुँआ बाहर छोड़ते हुए कहता है कि -"यह सिगरेट, यह तो बस दस रुपये की।"
तभी मुरली अपनी फिकी- सी हँसी हंसता हुआ कहता है - "वाह रे जग्गू तुझे यह दस रुपये का सिगरेट सिर्फ बस लगता है, जिसे तू दिन में न जाने कितनी बार खरीदता है और इसे पीकर अपने शरीर को अनगिनत रोगों के जाल में फसाता जा रहा है। वही तुझे तेरी बेटी के पेन पेंसिल, जो तेरी बेटी के भविष्य को आगे चलकर उज्जवल बनाएंगे। उनके लिए तेरे पास पैसे भी नहीं है। अरे देख जग्गू ये सिगरेट का पैकेट जिसपर साफ- साफ लिखा हुआ है कि ये जानलेवा हैं।फिर भी तू रोज शौक से इसे खरीदता हैं।अगर तू इस सिगरेट से बचे हुए पैसों से अपने बच्चों की ज़रूरतों को पूरा करेगा तो केवल तू ही सुखी नहीं होगा बल्कि अपने बच्चों की नजरों में तेरा सम्मान व प्यार भी दोगुना हो जाएगा।अभी भी समय हैं जग्गू बदल जा।"
यह कहते हुए मुरली सिगरेट का पैकेट जग्गू के हाथ में थमा देता है।
जग्गू पैकेट पर बने हुए जानलेवा के मार्क को देखता हुआ सिगरेट के पैकेट को जोर से फेंकता हैं और बेटी को गोद में उठाकर दूकान की तरफ बढ़ चलता हैं।****
10. हमारा कश्मीर
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रिपोर्टर सामने बेंच पर बैठे हुई नवयुवक से जाकर पूछता है- "श्रीमान आप कश्मीर से धारा 370 हटने पर क्या कुछ कहना चाहेंगे?"
नवयुवक रिपोर्टर पर एक नजर डालते हुए बोल पड़ता है- "मेरा कश्मीर कितने वर्षों तक अपने परिवार से अलग रहा। परिवार से अलग हुए हिस्से को कितने दुख और तकलीफें झेलनी पड़ती है उसे हम कश्मीर वासियों से बेहतर और कौन जान सकता है। धारा 370 के कारण अपने ही देश से अलग- थलग पड़ा कश्मीर अपने ही देश की सुरक्षाबलों पर पत्थर फेंकने जैसी अवैध हरकतों को झेलता रहा। लेकिन अब धारा 370 हट जाने के कारण कश्मीर अपने देश रुपी परिवार से जुड़ कर संगठित और मजबूत हो गया है।अब कश्मीर हर विपदा का सामना अच्छे से करने में समर्थ है।"
यह कहते हुए नवयुवक की आंखों में तेज झर- झर झरनें लगता है। ****
11. नहीं कोई भेद
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एक समूह में इकट्ठा हुए सभी भाषा परिवार पंजाबी, तेलुगु, बंगाली, गुजराती, मराठी अपनी भाषा की श्रेष्ठता स्थापित करने के लिए बहस किए जा रहे थे। कोई भी भाषा अपने आपको दूसरी भाषा के महत्व से कम नहीं आंकना चाह रही थी। सभी अपनी भाषाई उच्चता स्थापित करने के लिए बहस कर रही थी कि अचानक उन सभी के कानों में एक तीव्र स्वर प्रवेश करता है। सभी भाषाओं की नजरें एकदम से उन विभिन्न भाषी लोगों पर जाकर टिक जाती है। वे सभी लोग बड़े- ही सहजता से अपनी भाषा में एक- दूसरे से वार्तालाप कर रहे थे। कभी बंगाली, तेलुगु बोलने की कोशिश करता तो कभी पंजाबी, गुजराती बोलने की कोशिश करता। सभी भाषाएँ यह दृश्य देखकर आश्चर्य से एक- दूसरे की तरफ देखती है।
तभी पीछे से कोई अपनी धीमे से स्वर में बोलता है- "देखा बहनों यहाँ कोई एक दूसरे से छोटा नहीं है सभी एक समान है। जितना महत्व पंजाबी का है उतना ही महत्व बंगाली का भी है। सभी लोग एक दूसरे के रंग में रंगे हुए है, तो किसी की भी श्रेष्ठता का प्रश्न तो उठता ही नहीं है। जब ये लोग ही किसी भाषा को बोलते वक्त किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं करते तो हम क्यों?"
यह सुनकर सभी भाषाएं एक- दूसरे के गले लग जाती हैं और मातृभाषा हिंदी पास खड़ी मुस्कुराती है। ****
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क्रमांक - 11
शिक्षा: एम.ए . हिन्दी, एमएड , पीएचडी
प्रेरणा: मात-पिता-गुरु-मित्र और परिवार
सम्प्रति : प्रधानाचार्य , शिक्षा विभाग, राजस्थान
विधा : गीत, कविता, लेख और लघुकथा
रूचि:
1) लेखन
2) चित्रकारी
3) नृत्य-संगीत
सम्मान: -
1) राज्य स्तरीय शिक्षक सम्मान, राजस्थान सरकार, सत्र -2017
2) प्रशस्ति पत्र : उत्कृष्ट शिक्षक एवं सराहनीय जन-सेवा पर शिक्षा विभाग, राजस्थान सरकार सत्र -2017
3) प्रशंसा पत्र: आदर्श विद्यालय में संस्थाप्रधान के कार्यो का श्रेष्ठ संपादन एवं सराहनीय सेवा पर शासन सचिव, स्कूल शिक्षा एवं भाषा विभाग, राजस्थान सरकार, सत्र -2017
4) अनेक ब्लॉक स्तरीय सम्मान, शिक्षा विभाग, अजमेर, राजस्थान
5) विभिन्न साहित्यिक सम्मान
विशेष : -
1) साहिल वृद्धाश्रम अजमेर, अपना घर वृद्धाश्रम अजमेर में सेवा कार्य
2) बालिका शिक्षा प्रसार
3) बेटी बचाओ अभियान
4) अंध्विश्वास दूर भगाओ
5) घूँघट प्रथा उन्मूलन
6) राष्ट्रीय कार्यक्रम- "एक पेड़ सात ज़िन्दगी" अभियान
7) 200+ घरों में विशेष हस्त लिखित पाती द्वारा जागृति संदेश।
8) स्वयं 151 वृक्ष लगा कर जन जन को संरक्षण का उत्तरदायित्व सौंपा गया|
9) शिक्षा में नवाचार का प्रयोग
10) भामाशाह को प्रेरित कर विद्यालय में विकास कार्य
11) जिलाध्यक्ष: अजमेर महिला प्रकोष्ठ
12) रेडियो प्रसारित कार्यक्रम : शिक्षक दिवस, 2019 को आकाशवाणी केंद्र जोधपुर द्वारा वार्ता प्रसारण
13) लेखनी उद्देश्य : सामाजिक समरसता एवं आत्म सम्मान के साथ निर्भीक लेखक
प्रकाशन: -
1) भरतपुर हिंदी साहित्य समिति से डुगडुगी में समय समय पर लेख प्रकाशित
2) माँ की पाती, बेटी के नाम पुस्तक में पाती का प्रकाशन
3) शिविरा प्रत्रिका और विभिन्न समाचार पत्रों में समय समय पर रचना प्रकाशन
पता : -
528/22 बालूपुरा रोड,आदर्श नगर,
देवनारायण गली नंबर -8 , अजमेर - 305001 राजस्थान
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कल्पना ने उच्च शिक्षण हेतु अरुण को अमेरिका भेजा, वहीं उसकी नौकरी लग गयी l वहीं उसने कैटरीना से शादी कर ली और उसके दो बच्चे हुए जो वहीं पले और बढे l कभी कभी वहबच्चों के साथ गाँव भी आता थाl
इस बार लॉकडाउन के कारण सभी हवाई यात्राएँ केंसिल हो गयी l इस परिस्थिति में वह परिवार के साथ ही रहा l उसके बच्चों को पिजा, बर्गर आदि पसंद थे, गाँव में ये सब कहाँ? उनकी दादी ने पूछा, ये क्या कह रहे हैं? बालक दादी के पास गये और मोबाईल पर खाका खींचा जिसे देख, दादी ने कहा, बस l अगले दिन चूल्हे पर सिकी बाजरे की रोटी, उस पर खूब सारा मक्खन लगा, प्याज़, टमाटर आदि से सजा और गुड़, खांड के साथ पेश किया, बड़े चाव से बालकों ने खाया और दादी के गले में गलबहियां डाल झूलने लगे l ****
2. पड़ोसी
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रामचंद्र और उसकी बीबी छोटी छोटी बातों पर मोहल्ले में झगड़ते थे,फलस्वरूप कोई भी उनके पास फटकता भी नहीं था l यही आदत उनके दोनों बच्चों में अा गयी l
एक बार रामचंद्र बहुत बीमार हुआ l उसकी बीबी परेशान, कैसे क्या करूँ...?ओटो ले उसे हॉस्पिटल ले गई l गेट पर ही उसका पड़ोसी नारायण मिला l उसे बेदहवास घबराया देख बोल उठा, भाभी जी क्या बात है, घबराई हुई क्यों हो, उसे देखते ही उसकी रुलाई फूट पड़ी l नारायण ने उसे ढाढ़स बँधाया और उसकी मदद की l उस दिन का दिन और आज का दिन,रामचंद्र अब किसी से झगड़ा नहीं करता l ****
3.माँ
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रूचि ने सदा माँ को घर और स्कूल के कार्यो को बखूबी संभालते देखा है l कैसे जल्दी उठकर घर के सारे कार्य पूर्ण कर स्कूल जाती और स्कूल से आते ही घर के कार्यो में पुनः जुट जातीl
रूचि को गुस्सा आता,माँ हमसे बात नहीं करती, उनके पास हमारे लिए समय नहीं l मेरी सहेलियों की मम्मी कितनी अच्छी हैं उन्हें पीजा, बर्गर, सेंडवीच आदि तरह तरह की चीजें टिफिन में बनाकर देती हैं और उसकी माँ प्रतिदिन परांठा- सब्जी ही देती
है l
अब रूचि बड़ी हो गयी l उसका भी अपना परिवार है l वह भी माँ की तरह अपना घर का कार्य निपटाकर ऑफिस संभालती है l आज उसे अहसास हुआ कि माँ ये सब कैसे मैनेज़ करती थी l
बिना कुछ कहे सुने सबकी ख़ुशी का ध्यान रखना और ऊपर से हमारे नखरे भी हँसते हँसते पूरे करती l आज मातृ दिवस पर माँ की याद से उसकी आँखों में आँसू छलछला आये l माँ, तुम कितनी अच्छी हो l ****
4.खेत
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रतन लाल बड़े शहर में गार्ड की नौकरी करता था l कोरोना काल में नौकरी छूट गई l जैसे तैसे अपने गाँव पहुंचा l जमा पूंजी उसकी खर्च होती गई l इसी उधेड़ बुन में वह अपने खेत पर पहुंचा l
उसकी नज़र एक गिलहरी पर गई l वह खेत में से एक एक दाना अपने बच्चों को खिला रही थी l जिसे देख उसके मन में विचार
कोंधा, क्यों न मैं भी इस खाली खेत का उपयोग अपने बच्चों के लिए करूँ l बस, फिर क्या था, वह बाज़ार में बीज की दुकान पर गया और नकद की फ़सल के बीज ले आया l खेत में छोटी छोटी क्यारी बना कर, उसमें उसने गोबर की खाद के साथ बीज डाल दिये l आठ से दस दिन में बीज अंकुरित हो गये l धीरे धीरे वह बढ़ने लगे l
इन्हें देख उसके मुख पर संतोष का भाव छाने लगा l टमाटर, मिर्ची, भिंडी, बेंगन लोकी, काशीफल, पालक, धनिया, आदि
को शहर की ओर जाने वाली सड़क पर बेचने लगा l धीरे धीरे उसके घर में समृद्धि आने लगी l
जिस खेत से मुँह मोड़ वह चला गया था आज वही उसका सबसे बड़ा सहारा था l ****
5. उदाहरण
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राकेश के पापा की आदत थी कि जो काम उन्हें दूसरों से करवाना होता था तो स्वयं उस कार्य को प्रारम्भ करने लगते l तब परिवार के सदस्य उनके हाथ से कार्य लेकर खुद करने लगते l
एक बार की बात है कि रसोई के सिंक में चार पानी के गिलास झूँठे पड़े थे l वे रसोई में पानी पीने गये, सिंक में झूँठे गिलास देखते ही स्वयं साफ करने लगते l
इसी प्रकार घर से थोड़ी दूर पर सड़क पर एक बड़ा पत्थर पड़ा था जो काफी समय से राह में बाधा उत्पन्न कर रहा था, किसी ने भी उसे हटाने का प्रयास नहीं किया l
एक दिन उनके पोते ने देखा बाबा गेंतीं लेकर उसको ढलकाने की कोशिश कर रहें हैं फिर क्या था पोता और बाल वानर सेना के साथ नौजवान राहगीर साथ में जुट गये और कुछ ही मिनटों में वह पत्थर जो राह की बाधा था सड़क से हट चुका था l सबके चेहरे पर मुस्कराहट खिल उठी l
उनकी यह आदत परिवार में परम्परा या संस्कार के रूप में( काम तुरंत करने का )उदाहरण आज भी नज़र आता है l
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6. स्वच्छता
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सोमेश अपने मम्मी डैडी और छोटे भाई मोनू के साथ गुजरात भ्रमण पर निकला l रास्ते में दर्शनीय स्थल देखते हुए आगे बढ़ते जा रहे थे l गुजरात की चौड़ी -चौड़ी स्वच्छ सडकें देख मन खुश हो रहा था l एकाएक मोनू ने वेपर्स खाये हुए रेपर्स और फल के छिलके फेंकने के लिए जैसे ही विंडो खोला l सोमेश ने कहा, मोनू भाई तुमको ये साफ सड़कें अच्छी नहीं लग रहीं l जहाँ कचरा पात्र मिलेगा वहीं रुक कर डाल देंगें l यदि हम ही शुरुआत नहीं करेंगे तो देश कैसे स्वच्छ रहेगा l आने वाली जेनरेशन का ध्यान स्वच्छता पर कैसे जायेगा l ये देश भी अपना घर है l ***
7. विरहाग्नि
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सीमा और राजू की शादी को तीन महीने हुए कि राजू को जीविकोपार्जन हेतु बाहर जाना पड़ा l सीमा परिवार में ख़ुशी ख़ुशी काम करने के बाद भी अपनेआप को अकेली महसूस करती l रात को नींद नहीं आ रही थी, वह चाँद से बतिया रही थी और उसकी आँख से झर झर पानी बहने लगा l
ए चाँद, तुम मन ही मन मेरी दशा देख क्यों इतरा रहे हो l मुझे लगता है इस संसार ने तुम्हारे विषय में झूँठ ही कहा है कि तुम शीतलता देते हो पर सच्चाई कुछ और ही है l तुम मुझ जैसी कितनी विरहा की तड़पन पर मुस्करा रहे हो तुमने कितनों के जग जीवन में आग लगाई है l मत इतराओ मन में और उसे नींद आ गई l ****
8. शिक्षा और स्वाभिमान
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संगीता के पिता मजदूर हैं l वह चार भाई -बहन हैं l किसी तरह से दो जून की रोटी मिल जाती है लेकिन मजदूर पिता रतन पढ़ाई की अहमियत को भली -भाँति समझते हैं l स्वाभिमान के साथ कड़ी मेहनत करके हर बच्चे को शिक्षा दिला रहे हैं l सभी भाई -बहन पढ़ाई में होशियार हैं l शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल आने पर शिक्षा बोर्ड द्वारा लेपटॉप प्राप्त कर चुके हैं l संगीता उनकी बड़ी बहन है l वह पैरों पर खड़े होकर पापा का हाथ बटांना चाहती है l उसका प्राइवेट बी एड कॉलेज में दाखिला हो गया है l वह पूर्ण आत्मविश्वास के साथ पढ़ाई में जुटी है l
परीक्षा का समय नजदीक आया l संगीता की तीस हजार रूपये फीस बकाया थी l कॉलेज वालों ने सख्त हिदायत दी कि कल तक यदि बकाया राशि नहीं जमा कराई गई तो बच्ची को प्रवेश कार्ड नहीं दिया जायेगा l उनके ह्रदय पर चोट पहुँची l बेचारे उसके पिता, जहाँ से बच्ची ने स्कूली शिक्षा प्राप्त की वहाँ की प्रधानाचार्य के पास कुछ विश्वास के साथ गये l हाथ जोड़ विनती करी -मैडम जी, बच्ची का साल बिगड़ जायेगा l भविष्य अंधकारमय हो जायेगा, आँखों में आँसू भर लाये, उनका कंठ अवरुद्ध होने लगा l
प्रधानाचार्य को समझते देर न लगी l जहाँ सरकार बालिकाओं को शिक्षित कर रही है वहाँ ऐसी दयनीय स्थिति देख उन्होंने कहा -आप चिंता न करें, आपकी बेटी होनहार है l जैसी आपकी बेटी, वैसी मेरी बेटी l मैं व्यवस्था करती हूँ l तत्काल उन्होंने अपने पति को बैंक भेजकर तीस हजार रूपये निकलवाए और हाथ जोड़कर कहा -आप कॉलेज की बकाया राशि जमा कराये और प्रवेश -पत्र
लेकर बच्ची को परीक्षा में बैठाये l रूपये वापस लौटाने की जल्दी नहीं है l
जब संगीता के पिताजी कॉलेज में फीस जमा कराने पहुँचे तो वहाँ के बाबू ने पूछा -आपने इतनी जल्दी व्यवस्था कैसे की? किससे लेकर आये हो? जब उन्हें यह सब ज्ञात हुआ और स्थिति से प्राचार्या को अवगत कराया तो उन्होंने मानवता के नाम पर अपने अहंकार को टूटते देखा और क्षमा याचना की l
संगीता ने अपने पिताजी से आत्मविश्वास से कहा -पापा, मैं आपके स्वाभिमान को टूटने नहीं दूँगी l दोनों के नयन छलक उठे l ****
9. कोरोना महामारी और मानवता
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चारों ओर दहकती चितायें, लाशों का नंबर,एक के बाद एक l शांति से अंतिम संस्कार करता हुआ एक प्राणी शंभू अपने कर्तव्य को करता हुआ, रात -दिन श्मशान में खड़ा है l
शंभू के माता- पिता बचपन में ही उसे छोड़ चले गये l अकेला वह अनगिनत लाशों का, जिनका कोई नहीं है,अंतिम क्रिया कर्म कर चुका है l
आज कोरोना महामारी में जब अपने भी साथ छोड़ कर चल दिये वह प्रभु से सभी के स्वास्थ्य की मंगल कामना करता हुआ, डटा हैl भूख प्यास की चिंता नहीं है l उस जीवट इंसान को देख मन सिर झुकाने को हो गया l उसके जज़्बे को सलाम l ****
10. रक्त- दान
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गुड्डी का विवाह मध्यमवर्गीय परिवार में तय हुआ l विवाह से पूर्व ही कुवंर साहब का जन्म दिन आया तो उसके मम्मी पापा जन्म दिवस पर उपहार लेकर बधाई देने गुड्डी की ससुराल पहुँचे l वहाँ पहुँचने पर ज्ञात हुआ कि कुंवर साहब घर पर नहीं हैं,खैर.. l इंतजार किया l
जब कुंवर साहब आये ढेरों बधाई दी और पता चला कि वह अपने प्रत्येक जन्म दिन पर रक्त दान किया करते हैं l गुड्डी के मम्मी पापा का सीना गर्व से भर गया l
जब गुड्डी को घर आकर बताया तो वह भी बहुत प्रसन्न हुई कि जिनसे उसका विवाह होने जा रहा है,उसका जीवन साथी कितने बड़े व्यक्तित्व का धनी हैं l वह फूली न समाई l
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11. ममता का सागर
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दामोदर लाल दिल्ली रेलवे में सर्विस करते हैं l उनकी पत्नी ब्यूटी पार्लर चलाती है l उनके दो बेटे और एक लड़की है l
एक दिन जब वह रेलवे क्रोसिंग से गुजर रहे थे कि कहीं से उन्हें नवजात शिशु के रोने की आवाज़ सुनाई दी l वह उस दिशा की ओर उन्मुख हो चले l वहाँ जाकर कचरे के ढेर पर एक नवजात बालिका को देखा l उनका दिल पसीजा और उसे गोदी में उठाकर घर ले आये l घर आ,सारी कथा कह सुनाई l
उनकी पत्नी सरोज ने उसे बहुत ही प्यार से उठाया और कहा, ये मेरी बेटी रिया है l तीनों भाई -बहनों ने भी कभी उसे अपने से अलग नहीं समझा l धीरे -धीरे रिया बड़ी होने लगी l लेकिन किसी ने भी उसे यह अहसास नहीं होने दिया कि वह कचरे के ढेर पर मिली l
जब भी चर्चा होती, उनके दो बेटे और दो बेटी हैं, कहकर की जाती l सरोज की तो वह आँखों का तारा थी l धीरे धीरे रिया ने ब्यूटी पार्लर का काम सीख लिया और मम्मी के कार्य में हाथ बंटाने लगी l आज उसकी शादी हो गई,वह अपने पैरों पर खड़ी है और सुखी जीवन व्यतीत कर रही है l
एक बच्ची का जीवन संवर गया l ****
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जन्म : 03 जून 1965
शिक्षा : एम ए हिन्दी , पत्रकारिता व जंनसंचार विशारद्
फिल्म पत्रकारिता कोर्स
कार्यक्षेत्र : प्रधान सम्पादक / निदेशक
जैमिनी अकादमी , पानीपत
( फरवरी 1995 से निरन्तर प्रसारण )
मौलिक :-
मुस्करान ( काव्य संग्रह ) -1989
प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) -1990
त्रिशूल ( हाईकू संग्रह ) -1991
नई सुबह की तलाश ( लघुकथा संग्रह ) - 1998
इधर उधर से ( लघुकथा संग्रह ) - 2001
धर्म की परिभाषा (कविता का विभिन्न भाषाओं का अनुवाद) - 2001
सम्पादन :-
चांद की चांदनी ( लघुकथा संकलन ) - 1990
पानीपत के हीरे ( काव्य संकलन ) - 1998
शताब्दी रत्न निदेशिका ( परिचित संकलन ) - 2001
प्यारे कवि मंजूल ( अभिनन्दन ग्रंथ ) - 2001
बीसवीं शताब्दी की लघुकथाएं (लघुकथा संकलन ) -2001
बीसवीं शताब्दी की नई कविताएं ( काव्य संकलन ) -2001
संघर्ष का स्वर ( काव्य संकलन ) - 2002
रामवृक्ष बेनीपुरी जन्म शताब्दी ( समारोह संकलन ) -2002
हरियाणा साहित्यकार कोश ( परिचय संकलन ) - 2003
राजभाषा : वर्तमान में हिन्दी या अग्रेजी ? ( परिचर्चा संकलन ) - 2003
ई - बुक : -
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लघुकथा - 2018 (लघुकथा संकलन)
लघुकथा - 2019 ( लघुकथा संकलन )
नारी के विभिन्न रूप ( लघुकथा संकलन ) - जून - 2019
लोकतंत्र का चुनाव ( लघुकथा संकलन ) अप्रैल -2019
मां ( लघुकथा संकलन ) मार्च - 2019
जीवन की प्रथम लघुकथा ( लघुकथा संकलन ) जनवरी - 2019
जय माता दी ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
मतदान ( काव्य संकलन ) अप्रैल - 2019
जल ही जीवन है ( काव्य संकलन ) मई - 2019
भारत की शान : नरेन्द्र मोदी के नाम ( काव्य संकलन ) मई - 2019
लघुकथा - 2020 ( लघुकथा का संकलन ) का सम्पादन - 2020
कोरोना ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2020
कोरोना वायरस का लॉकडाउन ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन-2020
पशु पक्षी ( लघुकथा संकलन ) का सम्पादन- 2020
मन की भाषा हिन्दी ( काव्य संकलन ) का सम्पादन -2021
स्वामी विवेकानंद जयंती ( काव्य संकलन )का सम्पादन - 2021
होली (लघुकथा संकलन ) का सम्पादन - 2021
मध्यप्रदेश के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हरियाणा के प्रमुख लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
महाराष्ट्र के प्रमुख हिन्दी लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
मुम्बई के प्रमुख हिन्दी लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
हिन्दी की प्रमुख महिला लघुकथाकार ( लघुकथा संकलन ) - 2021
- बुजुर्ग ( ई - लघुकथा संकलन ) - 2021
बीजेन्द्र जैमिनी पर विभिन्न शोध कार्य :-
1994 में कु. सुखप्रीत ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लालचंद गुप्त मंगल के निदेशन में " पानीपत नगर : समकालीन हिन्दी साहित्य का अनुशीलन " शोध में शामिल
1995 में श्री अशोक खजूरिया ने जम्मू विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजकुमार शर्मा के निदेशन " लघु कहानियों में जीवन का बहुआयामी एवं बहुपक्षीय समस्याओं का चित्रण " शोध में शामिल
1999 में श्री मदन लाल सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी के निदेशन में " पानीपत के लघु पत्र - पत्रिकाओं के सम्पादन , प्रंबधन व वितरण " शोध में शामिल
2003 में श्री सुभाष सैनी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. रामपत यादव के निदेशन में " हिन्दी लघुकथा : विश्लेषण एवं मूल्यांकन " शोध में शामिल
2003 में कु. अनिता छाबड़ा ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. लाल चन्द गुप्त मंगल के निदेशन में " हरियाणा का हिन्दी लघुकथा साहित्य कथ्य एवम् शिल्प " शोध में शामिल
2013 में आशारानी बी.पी ने केरल विश्वविद्यालय के अधीन डाँ. के. मणिकणठन नायर के निदेशन में " हिन्दी साहित्य के विकास में हिन्दी की प्रमुख साहित्यिक पत्रिकाओं का योगदान " शोध में शामिल
2018 में सुशील बिजला ने दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा , धारवाड़ ( कर्नाटक ) के अधीन डाँ. राजकुमार नायक के निदेशन में " 1947 के बाद हिन्दी के विकास में हिन्दी प्रचार संस्थाओं का योगदान " शोध में शामिल
सम्मान / पुरस्कार
15 अक्टूबर 1995 को विक्रमशिला हिन्दी विद्मापीठ , गांधी नगर ,ईशीपुर ( भागलपुर ) बिहार ने विद्मावाचस्पति ( पी.एच.डी ) की मानद उपाधि से सम्मानित किया ।
13 दिसम्बर 1999 को महानुभाव विश्वभारती , अमरावती - महाराष्ट्र द्वारा बीजेन्द्र जैमिनी की पुस्तक प्रातःकाल ( लघुकथा संग्रह ) को महानुभाव ग्रंथोत्तेजक पुरस्कार प्रदान किया गया ।
14 दिसम्बर 2002 को सुरभि साहित्य संस्कृति अकादमी , खण्डवा - मध्यप्रदेश द्वारा इक्कीस हजार रुपए का आचार्य सत्यपुरी नाहनवी पुरस्कार से सम्मानित
14 सितम्बर 2012 को साहित्य मण्डल ,श्रीनाथद्वारा - राजस्थान द्वारा " सम्पादक - रत्न " उपाधि से सम्मानित
14 सितम्बर 2014 को हरियाणा प्रदेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा के क्षेत्र में इक्कीस सौ रुपए का श्री रमेशचन्द्र शलिहास स्मृति सम्मान से सम्मानित
14 सितम्बर 2016 को मीडिया क्लब , पानीपत - हरियाणा द्वारा हिन्दी दिवस समारोह में नेपाल , भूटान व बांग्लादेश सहित 14 हिन्दी सेवीयों को सम्मानित किया । जिनमें से बीजेन्द्र जैमिनी भी एक है ।
18 दिसम्बर 2016 को हरियाणा प्रादेशिक लघुकथा मंच , सिरसा - हरियाणा द्वारा लघुकथा सेवी सम्मान से सम्मानित
अभिनन्दन प्रकाशित :-
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी ( 25 मई 1999)
डाँ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : अभिनन्दन मंजूषा
सम्पादक : लाल चंद भोला ( 14 सितम्बर 2000)
विशेष उल्लेख :-
1. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता का आयोजन
2. जैमिनी अकादमी के माध्यम से 1995 से प्रतिवर्ष अखिल भारतीय हिन्दी हाईकू प्रतियोगिता का आयोजन । फिलहाल ये प्रतियोगिता बन्द कर दी गई है ।
3. हरियाणा के अतिरिक्त दिल्ली , हिमाचल प्रदेश , उत्तर प्रदेश , मध्यप्रदेश , बिहार , महाराष्ट्र , आंध्रप्रदेश , उत्तराखंड , छत्तीसगढ़ , पश्चिमी बंगाल आदि की पंचास से अधिक संस्थाओं से सम्मानित
4. बीजेन्द्र जैमिनी की अनेंक लघुकथाओं का उर्दू , गुजराती , तमिल व पंजाबी में अनुवाद हुआ है । अयूब सौर बाजाखी द्वारा उर्दू में रंग में भंग , गवाही , पार्टी वर्क , शादी का खर्च , चाची से शादी , शर्म , आदि का अनुवाद हुआ है । डाँ. कमल पुंजाणी द्वारा गुजराती में इन्टरव्यू का अनुवाद हुआ है । डाँ. ह. दुर्रस्वामी द्वारा तमिल में गवाही , पार्टी वर्क , आर्दशवाद , प्रमाण-पत्र , भाषणों तक सीमित , पहला वेतन आदि का अनुवाद हुआ है । सतपाल साहलोन द्वारा पंजाबी में कंलक का विरोध , रिश्वत का अनुवाद हुआ है ।
5. blog पर विशेष :-
शुभ दिन - 365 दिन प्रसारित
" आज की चर्चा " प्रतिदिन 22 सितंबर 2019 से प्रसारित हो रहा है ।
6. भारतीय कलाकार संघ का स्टार प्रचारक
7. महाभारत : आज का प्रश्न ( संचालन व सम्पादन )
8. ऑनलाइन साप्ताहिक कार्यक्रम : कवि सम्मेलन व लघुकथा उत्सव ( संचालन व सम्पादन )
9. स्तभ : इनसे मिलिए ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकाशित )
स्तभ : मेरी दृष्टि में ( दो सौ से अधिक किस्तें प्रकशित )
पता : हिन्दी भवन , 554- सी , सैक्टर -6 ,
पानीपत - 132103 हरियाणा
ईमेल : bijender1965@gmail.com
WhatsApp Mobile No. 9355003609
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