बीजेन्द्र जैमिनी का प्रथम एकल लघुकथा संग्रह प्रातःकाल
प्रातःकाल ( एकल लघुकथा संग्रह )
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1. आपकी पुस्तक ' प्रातःकाल ' पूरी पढ़ ली । इसमें जन - जीवन की यथार्थ अनुभूतियां लघुकथाओं के माध्यम से मुखर हुई हैं ।
- प्रो. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी , पानीपत
2. प्रातःकाल लघुकथा संग्रह मैने मन लगाकर पूरा पढ़ लिया है । आपकी लघुकथाओं ने प्रभावित किया है । जन्मदिन , आरक्षण , इन्सान और शैतान , हिन्दी के दुश्मन लघुकथाएं बहुत बढियां कृतियां बन पड़ी है।
- नूर संतोखपुरी , जालंधर शहर
3. यह संग्रह एक अलग ही ढंग का लगा । कुछ एक लघुकथाएं हमारे समाज के कटु सत्य को उद्घाटित करती है तो कुछ आदर्शवादी भी है ।
- राजकुमार सिंह , कानपुर
4. ' प्रातःकाल ' अत्यंत सुन्दर लघुकथा संग्रह है।
- वासुदेव हरगोविंद याज्ञिक , अहमदाबाद
5. ' प्रातःकाल ' की लघुकथाएं अधिक चोटदार हैं ।
- डॉ. कमल पुजाणी , जामनगर ( गुजरात )
6. समाज में व्याप्त विसंगतियों पर खासे तरीक़े से कलम चलाई है। मेरी शुभकामनाएं स्वीकारें । कुछ लघुकथाएं भीतर तक कुरेदती चली जाती है ।
- सतीश सागर
उपसम्पादक : दैनिक हिन्दुस्तान , दिल्ली
7. प्रातःकाल के श्री बीजेन्द्र कुमार जैमिनी का यह प्रयास बहुत सराहनीय है । इस पुस्तक में प्रकाशित लघुकथाओं के माध्यम से लेखक ने समाज में फैली बुराईयों व कुरीतियों पर जो प्रकाश डालने का प्रयास किया है । उसके लिए लेखक बधाई के पात्र है।
- योगेश कुमार गोयल , बादली ( रोहतक )
8. रचनाओं से ऐसा प्रतीक होता है कि रचनाकार ने कल्पनाओं का सहारा न लेकर अपने अनुभवों के आधार पर यथार्थ को बड़ें सुन्दर ढंग से उजागर किया है ।
- निहाल हाश्मी ' निहाल ' , बंगलौर ( कर्नाटक )
9. प्रातःकाल की लघुकथाओं में पहला वेतन , दहेज और बेरोजगार , जिन्दगी से बड़ा ब्याज आदि रचनाएं पसंद आयी ।।
- रामदुलार सिंह ' पराया ' , मीरजापुर ( उ० प्र० )
10. आपकी पुस्तक ' प्रातःकाल ' की समीक्षा 25 - 12 - 1992 के पंजाब केसरी में प्रकाशित कर दी गई थी । जिसकी एक प्रति आपको जानकारी एवं रिकॉर्ड हेतु साथ भेजी जा रही है ।
- अमित चौपड़ा
साहित्य सम्पादक : पंजाब केसरी , जालंधर
11. आपकी पुस्तक को देखा । खोलकर सारी रात पढता रहा । इस अनुपम उपलब्धि हेतु किस तरह बधाई दूँ। पर्याप्त शब्द दर्शित नहीं पड़ रहे हैं ।
- अयुब सौरबाजारवी , सहरसा ( बिहार )
12. प्रातःकाल की लघुकथाएं विचारवर्द्वक हैं ।
- डॉ. ह. दुरैस्वामी , मद्रास
13. पाठक के मस्तिक तथा हदय पर गम्भीर प्रभाव छोड़ती हैं । पाठक को चितनशील बना देती है । प्रायः संकलित लघुकथाओं का विषय विचार तथा भाव जीवन के सभसामायिक और सामयिक माहौल तथा वातावरण से लिया गया है। पुस्तक पाठनीय , विचारणीय तथा संग्रहणीय है ।
- रामकिशोर सिंह ' विरागी '
( साहित्याकाश में प्रकाशित )
14. बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक बीजेन्द्र कुमार जैमिनी की 77 लघुकथाओं का एक सुन्दर संग्रह है। व्यक्ति , समाज एवं राजनीति की असंगति विसंगति पर चोट लेखक का यंहा मंतव्य है । लघुकथाओं में सहजता ,स्वाभाविकता एवं शिल्प अन्य सरलता लेखक की दीर्घकालीन साधना का घोतक है ।लेखक का सुधारवादी दृष्टि संग्रह में स्पष्टत: प्रतिबिम्बित है।
- डॉ. स्वर्ण किरण ( नालन्दा दर्पण में प्रकाशित )
15. आम जिन्दगी में प्रतिदिन घटित हो रही घटनाओं को को बारीक दृष्टि से पकड़कर सीधी - सादी भाषा में व्यक्त किया गया है। सामाजिक विसंगतियों का उजागर करती लघुकथाएं ' समय का उचित उपयोग , सम्मान , पहला वेतन , कर्त्तव्य आदि कुछ अच्छी लघुकथाएं हैं ।
- ओम सपरा ( मित्र संगम पत्रिका में प्रकाशित )
16. सामाजिक विडम्बनाओं पर लिखी कथाओं का यह संग्रह अच्छा बन पड़ा है ।।
- घनश्याम पंडित ( पंजाब केसरी में प्रकाशित )
17. प्रातःकाल के अन्दर दिन प्रतिदिन घटने वाली घटनाओं का समावेश है । जो वर्तमान परिवेश का प्रतिनिधि करती है ।
- प्रो रेनु गोस्वामी ( जैमिनी अकादमी में प्रकाशित )
( साभार )
डॉ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
सम्पादक : संगीता रानी
प्रथम प्रकाशन : 25 मई 1999
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