बीजेन्द्र जैमिनी का प्रथम एकल लघुकथा संग्रह प्रातःकाल

  इस संग्रह में 77 लघुकथाएं है। पुस्तक का प्रकाशन अप्रैल- 1991 में जैमिनी पांकेट बुक्स, पानीपत द्वारा प्रकाशित हुआ है।
             बीजेन्द्र जैमिनी की 77 लघुकथाएं के शीर्षक :-
01. रंग में भंग
02. गवाही
03. पार्टी वर्कर
04. आदर्शवाद
05. मेरा भाग्य
06. शादी का खर्च
07. वास्तविक उल्ट
08. अदालत में भ्रष्टाचार
09. वैश्या का जन्म
10. समय का उचित उपयोग
11. ‎मेहनत बेकार
12. ‎मजबूरी या फिर बाहाना
13. ‎आमन्त्रित पत्र
14. ‎दासी नहीं पत्नी
15. ‎चाची की शादी
16. ‎सम्मान 
17. ‎विमोचन का रहस्य
18. ‎हड़ताल में सुरक्षा
19. ‎धनवान और सम्मान
20. ‎वसीयत से बेदखली
21. ‎चालाकों की कामयाबी
22. ‎प्रतिभा का दमन
23. ‎इन्टरव्यू
24. ‎पहला वेतन
25. ‎साजिश से तलाक
26. ‎काम की तलाश
27. ‎शर्म
28. ‎प्रमाण पत्र
29. ‎प्यार की सज़ा
30. ‎प्रभाव जमा या घटा
31. ‎पागल और सरकार
32. ‎गुलाम और अनमोल
33. ‎हाथ की सफाई
34. ‎रजाई और दादा
35. ‎दोस्ती टूंटी : छुआछात 
36. ‎समय की बात
37. ‎इन्सान और शैतान
38. ‎विश्वास नहीं
39. ‎स्वकृति
40. ‎जन्मदिन 
41. ‎शादी और पैसे
42. ‎अहिंसा का संकेत
43. ‎आरश्रण
44. ‎तीर
45. ‎दहेज और बेरोजगार
46. ‎शराबी की सुहागरात
47. ‎बड़ी बात नहीं
48. ‎खुदगर्ज
49. ‎इनाम 
50. ‎गिरवान में झांकें
51. ‎इन्साफ में लाभ
52. ‎सही - गलत
53. ‎सच्चाई का सामना
54. ‎भाषणों तक सीमित
55. ‎औकात
56. ‎पड़ौसी और पुलिस
57. ‎समाधान
58. ‎इलजाम
59. ‎साजिश की करामात
60. ‎क्या इंसाफ हुआ
61. ‎कालगर्ल का बच्चा 
62. ‎रिकार्ड
63. ‎प्राथमिकता
64. ‎जिन्दगी से बड़ा ब्याज
65. ‎अपनाया
66. ‎रिश्ता
67. ‎स्वतन्त्रता का महत्व
68. ‎ढंग
69. ‎हिन्दी के दुश्मन
70. ‎अन्तर
71. ‎बेश्वा
72. ‎अपना खर्च
73. ‎मुक्ति  प्राप्त
74. ‎कर्तव्य
75. ‎कर्ज का भुगतान
76. ‎आरोप 
77. ‎अन्तर 
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                        समीक्षा
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           प्रातःकाल ( एकल लघुकथा संग्रह )
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1. आपकी पुस्तक ' प्रातःकाल ' पूरी पढ़ ली । इसमें जन - जीवन की यथार्थ अनुभूतियां लघुकथाओं के माध्यम से मुखर हुई हैं ।     
                   - प्रो. राजेन्द्र रंजन चतुर्वेदी , पानीपत
                      
2. प्रातःकाल लघुकथा संग्रह मैने मन लगाकर पूरा पढ़ लिया है । आपकी लघुकथाओं ने प्रभावित किया है । जन्मदिन , आरक्षण , इन्सान और शैतान , हिन्दी के दुश्मन लघुकथाएं बहुत बढियां कृतियां बन पड़ी है।   
                          - नूर संतोखपुरी , जालंधर शहर
                                
3. यह संग्रह एक अलग ही ढंग का लगा । कुछ एक लघुकथाएं हमारे समाज के कटु सत्य को उद्घाटित करती है तो कुछ आदर्शवादी भी है ।        
                              - राजकुमार सिंह , कानपुर
                                      
4. ' प्रातःकाल ' अत्यंत सुन्दर लघुकथा संग्रह है।    
                - वासुदेव हरगोविंद याज्ञिक , अहमदाबाद
                   
5. ' प्रातःकाल ' की लघुकथाएं अधिक चोटदार हैं । 
             - डॉ. कमल पुजाणी , जामनगर ( गुजरात )
                  
6. समाज में व्याप्त विसंगतियों पर खासे तरीक़े से कलम चलाई है। मेरी शुभकामनाएं स्वीकारें । कुछ लघुकथाएं भीतर तक कुरेदती चली जाती है ।  
                        - सतीश सागर
           उपसम्पादक : दैनिक हिन्दुस्तान , दिल्ली
 
7. प्रातःकाल के श्री बीजेन्द्र कुमार जैमिनी का यह प्रयास बहुत सराहनीय है । इस पुस्तक में प्रकाशित लघुकथाओं के माध्यम से लेखक ने समाज में फैली बुराईयों व कुरीतियों पर जो प्रकाश डालने का प्रयास किया है । उसके लिए लेखक बधाई के पात्र है। 
               - योगेश कुमार गोयल , बादली ( रोहतक )
                  
8. रचनाओं से ऐसा प्रतीक होता है कि रचनाकार ने कल्पनाओं का सहारा न लेकर अपने अनुभवों के आधार पर यथार्थ को बड़ें सुन्दर ढंग से उजागर किया है । 
         - निहाल हाश्मी ' निहाल ' , बंगलौर ( कर्नाटक )
             
9. प्रातःकाल की लघुकथाओं में पहला वेतन , दहेज और बेरोजगार , जिन्दगी से बड़ा ब्याज आदि रचनाएं पसंद आयी ।।       
       - रामदुलार सिंह ' पराया ' , मीरजापुर ( उ० प्र० )
          
10. आपकी पुस्तक ' प्रातःकाल ' की समीक्षा 25 - 12 - 1992 के पंजाब केसरी में प्रकाशित कर दी गई थी । जिसकी एक प्रति आपको जानकारी एवं रिकॉर्ड हेतु साथ भेजी जा रही है ।   
                                         - अमित चौपड़ा
         साहित्य सम्पादक : पंजाब केसरी , जालंधर
        
11. आपकी पुस्तक को देखा । खोलकर सारी रात पढता रहा । इस अनुपम उपलब्धि हेतु किस तरह बधाई दूँ। पर्याप्त शब्द दर्शित नहीं पड़ रहे हैं ।  
                - अयुब सौरबाजारवी , सहरसा ( बिहार )
                    
12. प्रातःकाल की लघुकथाएं विचारवर्द्वक हैं । 
                                 - डॉ. ह. दुरैस्वामी , मद्रास
                                      
13. पाठक के मस्तिक तथा हदय पर गम्भीर प्रभाव छोड़ती हैं । पाठक को चितनशील बना देती है । प्रायः संकलित लघुकथाओं का विषय विचार तथा भाव जीवन के सभसामायिक और सामयिक माहौल तथा वातावरण से लिया गया है। पुस्तक पाठनीय , विचारणीय तथा संग्रहणीय है ।              
                     - रामकिशोर सिंह ' विरागी '
                      ( साहित्याकाश में प्रकाशित )

14. बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक बीजेन्द्र कुमार जैमिनी की 77 लघुकथाओं का एक सुन्दर संग्रह है। व्यक्ति , समाज एवं राजनीति की असंगति विसंगति पर चोट लेखक का यंहा मंतव्य है । लघुकथाओं में सहजता ,स्वाभाविकता एवं शिल्प अन्य सरलता लेखक की दीर्घकालीन साधना का घोतक है ।लेखक का सुधारवादी दृष्टि संग्रह में स्पष्टत: प्रतिबिम्बित है।
      - डॉ. स्वर्ण किरण ( नालन्दा दर्पण में प्रकाशित )
         
15. आम जिन्दगी में प्रतिदिन घटित हो रही घटनाओं को को बारीक दृष्टि से पकड़कर सीधी - सादी भाषा में व्यक्त किया गया है। सामाजिक विसंगतियों का उजागर करती लघुकथाएं ' समय का उचित उपयोग , सम्मान , पहला वेतन , कर्त्तव्य आदि कुछ अच्छी लघुकथाएं हैं । 
       - ओम सपरा ( मित्र संगम पत्रिका में प्रकाशित )
           
16. सामाजिक विडम्बनाओं पर लिखी कथाओं का यह संग्रह अच्छा बन पड़ा है ।।      
         - घनश्याम पंडित ( पंजाब केसरी में प्रकाशित )
             
17. प्रातःकाल के अन्दर दिन प्रतिदिन घटने वाली घटनाओं का समावेश है । जो वर्तमान परिवेश का प्रतिनिधि करती है । 
   - प्रो रेनु गोस्वामी ( जैमिनी अकादमी में प्रकाशित )

                            ( साभार )
       डॉ. बीजेन्द्र कुमार जैमिनी : बिम्ब - प्रतिबिम्ब
                    सम्पादक : संगीता रानी 
                प्रथम प्रकाशन : 25 मई 1999
                             


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