क्या मजहबी कटृरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या उचित है ?

मजहबी कटृरता नहीं होनी चाहिए । इस से बेकसूर लोगों की हत्या होती है । जिन का कोई कसूर नहीं है । उन की हत्या क्यों ?  दुनियां में मजहबी  कटृरता की आड़ में लोगों की हत्या प्राचीन काल से होती आ रही है।अब आधुनिक युग में किसी भी तरह से उचित नहीं है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मैं तो आज तक यही नहीं समझ पाया हूं कि किस मजहब ने कट्टर होने को कहा है। सच्चाई तो यही है कि बेकसूर लोगों की हत्या मजहबी कट्टरता की आड़ में निरंकुश पागलपन है। एक ऐसा पागलपन जो विकृत मानसिकता से भरा होता है।
अपने धर्म /मजहब से प्यार करने वाले लोग सदैव दूसरे धर्म का सम्मान करते हैं। जिनको कट्टर मजहबी कहा जाता है, वास्तव में वह मजहबी होते ही नहीं है। ऐसे लोगों द्वारा मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या साजिशन किया गया कायरतापूर्ण कृत्य है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या कभी उचित हो ही नहीं सकती। बचपन से ही हम सभी पढ़ते आये हैं --
'मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना'--
 पर वर्तमान में जो दृश्य हमें देखने को मिल रहा है मजहब के नाम पर जो हिंसा, उन्माद फैलाया जा रहा है वह मानव हित में नहीं है।
 कोई भी धर्म कभी भी खून खराबा करना नहीं सिखाती। सभी धर्म हमें भाईचारा, प्रेम का संदेश देती है पर कुछ स्वार्थी तत्व धर्म के नाम पर माहौल बिगाड़ कर अपरिपक्व बच्चों को बरगला कर जो अशांति फैलाते हैं वह धर्म के नाम पर धब्बा है इंसान कहलाने लायक ही नहीं।
 यह मानव के वेश में छुपे हुए भेड़िए हैं जो शांति भंग कर अपनी तुच्छ प्रवृत्ति को पूर्ण करना चाहते हैं। नवयुवाओं को बरगला कर उनका ब्रेनवाश कर अपनी राक्षसी प्रवृत्ति को अंजाम देते हैं।
      हमारा देश हो या फ्रांस या कोई भी देश ऐसे गुनाहगारों को सख्त से सख्त सजा देने का प्रावधान होना चाहिए ताकि दहशतगर्दो को सबक मिल सके और वह दहशतगर्दी करने से बाज आएं।
 धर्म के नाम पर अधर्म कर अशांति न फैलाएं।
                   - सुनीता रानी राठौर 
                   ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
मजहब के नाम पर कट्टरता क्यो फेल यही है? कौन है जो इस कट्टरता और हत्या का समर्थन करता है? यह तो अनुचीत है और हर अनुचीत कृत्यो को कानुन के दायरे मे रखना चाहिये अन्याय करने वालो पर केवल और केवल कानुन को सजा देने का अधिकार हो जो कौई कानुन हाथ मे ले उनहे दूगनी सजा मिले ऐसे कृत्यो को कौई क्यो करता है इस पर भी गौर करना होगा इनका नैतुत्व करने वालो पय भी रासुका लगने चाहिये। 
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
गुरु नानक देव जी ने कहा है, "अव्वल अल्लाह नूर उपाया कुदरत के सब बंदे,
एक नूर ते सब जग उपजाया कौन भले को मंदे |" 
मज़हब एक विचार है, संस्कार है, समाज मे रहने का तरीका है, सही राह दिखाता है जीने की कला सिखाता है, यही मज़हब यही है ना कि मज़हब की आड़ मे लोगों को परेशान करना उनकी हत्या करना 
बेकसूर लोगों के दिलों मे मौत का खौफ भरना, ये मज़हब की प्रवृत्ति नहीं है बल्कि ये मज़हब की आड़ में अपने निजी स्वर्थों को पूरा करना है जो कि एकदम अनुचित है |
- मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
मजहब नहीं सिखाता आपस में वैर रखना  हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्तान हमारा। 
सच कहा  है, 
कुछ लोग मजहब की कट्टरता से एक दुसरे से  झगड़ते रहते हैं यहां तक की बात एक  दुसरे के कत्ल तक   पहुंच जाती है। जबकि ऐसा कभी भी नहीं करना चाहिए, 
आइयै बात करते हैं क्या मजहबी लड़ाई होनी चाहिए, 
मेरा मानना है कि ऐसा कदाचित नहीं होना चाहिए क्योंकी मजहब कोई बुरा नहीं होता  हर मजहब हमें इन्सानियत सिखाता है  किसी भी धर्म में नहीं लिखा है  कि आपस में भेदभाव रखें  सभी ग्रन्थ, चाहे बाईवल हो कुरान हो   गीता हो  या पुराण हों सभी हमें आपस मे भाईचारा ही सिखाते हैं फिर हम सब आपस में क्यों  भेदभाव सो रहते हैं जवकि इन्सान का शरीर एक जैसा है सभी एक ही माट्टी के पुतले हैं पैदा करने वाला भी एक ही परम परमात्मा है हां यह जरुर है कि हमने अलग अलग घर व जगह जन्म लिया है इसका यह मतलब नहीं हुअा कि हम मानवता को ही भुल जाएं। 
हमें इन्सान की बुराई से नफरत करनी चाहिए इन्सान से नहीं और कोशीश करनी चाहिए हम उसकी बुराई को दूर कर सकें जिससे वो भी  एक अच्छा इन्सान बन सके। 
इसी तरह से हर मजहब का इन्सान बुरा नहीं होता  हमें फिजुल में मजहबी लड़ाई नहीं करनी चाहिए। 
जब भारत आजाद हुआ था तब हर मजहब के लोगों ने मिल कर आजादी की लड़ाई मे भाग लिया और भारत को आजाद करबाने में कामजाब हुए,  इसी तरह से हमें हर मजहब का आदर भाव करना चाहिए ताकि हम एकजुट ही रहें क्योंकी एकता मे बल है अगर हम आपस में झगड़ते रहें एक दुसरे के मजहब के खिलाफ रहेंगे तो हमारा भारत हमारा मुल्क कमजोर पड़ेगा  जिससे आने वाली पीढी दर पीढी मे फूट ही पडंती रहेगी, 
इसलिए हमें आपसी फूट को मिटाना है  इन्सान को इन्सान समझना है न कि मजहबी लड़ाई करनी है, तभी हमारा देश तरक्की कर सकता है न की आपसी झगड़े जो हमेशा हमारे देश को हमारे भाईचारे को कमजोर ही करते हैं। 
अत:हमें आपस में प्रेम से मिलजुल कर रहना चाहिए जिससे हमारा भाईचारा वना रहे। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
वास्तव में किसी भी आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या उचित नहीं है. बेकसूर लोगों की हत्या करना तो दूर, उन्हें किसी भी तरह की शारीरिक-मानसिक यातना देना भी उचित नहीं है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
       हत्या किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। वह हत्या चाहे मजहबी आड़ में हो या राजनीतिक आड़ में हो या पुरानी शत्रुता के कारण हो, उसे उचित नहीं कहा जा सकता। चूंकि हत्या तो हत्या ही होती है। उसे हर युग में अनुचित ही माना गया है। उस पर बेकसूर लोगों की हत्या को तो वास्तव में पाप की संज्ञा दी गई है।
       हत्या तो बड़ी बात है। जबकि आत्महत्या को भी संवैधानिक एवं धार्मिक दृष्टि से अपराध घोषित किया गया है। मानवता का कोई धर्म निर्दोषों की हत्या का उपदेश नहीं देता। 
       उल्लेखनीय है कि शत्रुओं एवं बलात्कारी पापियों का नाश करने के लिए अस्त्र-शस्त्र अवश्य उठाए जाते हैं। मानवता के शत्रुओं को यमलोक अवश्य पहुंचाया जाता है। राष्ट्रहित में राष्ट्रद्रोहियों की हत्या भी सार्वजनिक की जाती है। हालांकि मानवीय मूल्यों के प्रतिनिधियों का मानना है कि उपरोक्त हत्याओं सहित विधि द्वारा दी गई फांसी भी न्यायिक हत्या है। जिसका विरोध मानव अधिकार संगठन विश्व स्तर पर करते आ रहे हैं।
       अतः मजहबी कट्टरता की आड़ में कट्टरपंथियों द्वारा बेकसूर लोगों की निर्मम हत्या किसी भी प्रकार से उचित नहीं है।
- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या सर्वथा अनुचित है अति निंदनीय है ।वैसे तो हिंसा व हत्या हमेशा से अति निंदनीय वह गलत है ।
मगर मजहबी उन्माद से प्रेरित हिंसा तो अति निंदनीय है ,जिसे मानवता सदियों से ,पवित्र युद्ध, और ,जेहाद ,के नाम पर झेलती आई है ।
आतंकी उस मानसिकता से प्रेरणा लेते हैं जिसमें धर्म की परंपरा व मूल्यों को नकारने की छटपटाहट होती है। जिससे वे मजहबी  घृणा से प्रेरित होकर नरसंहार करते  आये हैं ।
आतंक का समर्थन तो भस्मासुर को निमंत्रण देना है ,अतः यह सर्वथा अनुचित है।जघन्य है कुकृत्य है ये और अक्षम्य भी ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
मुस्लिम शासक के समय से ही मजहबी कट्टरता की शुरुआत हुई है,क्योंकि उस समाज में शिक्षित न के बराबर हैं उनका एक ही सोच है कि हमारे "आका" इमाम जो भी ऐलान करेंगे उसे हम अमल करेंगे। इमाम तो अपने स्थान पर बैठकर जन समुदाय को उकसा देते हैं लेकिन भीड़ में बेगुनाह की मौत हो जाती है।
जबकि किसी भी धर्म या मजहब में हत्या  करना अपराध है।
बिहार में बौद्ध धर्म को बर्बाद करने वाले मुस्लिम शासक थे। जिसके कारण बौधि लोग नेपाल तिब्बत चले गए। मुस्लिम कट्टरपंथी  होते हैं पूरी दुनिया में इस्लामिक विचार थोपना चाहते हैं।
लेखक का विचार;-कट्टरपंथी मजहबी को कुचलना उचित है। हमारा देश भारत हिंदू बहुल देश है। हमारे देश में लोकतंत्र होने के कारण हमारे कुछ राजनेता सत्ता के लोभ में वोट की राजनीति करते हैं। उस समुदाय को बढ़ावा देते हैं। ऐसे किसी भी धर्म में हत्या अपराध है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
हत्या किसी माने में भी उचित कभी नहीं हो सकता चाहे वह मजहबी कट्टरता की आड़ हो या स्वार्थ सिद्धि हो या प्रतिशोध की भावना हो या निराशा का शिकार हो हत्या हमेशा निराधार और एक अपराधी प्रवृत्ति है।
मजहब पर विश्वास यदि किसी इंसान को बहुत ज्यादा है और उसके लिए हत्या का सहारा लेता है इसका अर्थ यह हुआ कि उसे अपने मजहब का कोई ज्ञान नहीं है क्योंकि मजहब कभी नहीं सिखाता है हत्या करना मजहब का एक ही उद्देश्य होता है आपस में तालमेल बैठाकर शांति बनाए रखना
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या कभी भी उचित नहीं है। लेकिन आज हर तरफ यही हो रहा है। मजहब के नाम पर उन्मादी भीड़  बेकसूर लोगों की हत्याएं कर रहे हैं। वैसे किसी भी व्यक्ति की हत्या उचित नहीं है सिवाय उनके जो दूसरों की हत्या करते हैं। मजहबी जुनून में हमेशा बेकसूर लोग ही मारे जातें हैं।
जो कट्टर या उन्मादी होते हैं वो तो वारदात कर के भाग जातें हैं। एक कौम का ये काम ही है मजहब के नाम पर आतंक फैलाना । उनके लिए बचपन से ही खून खराबे की घुट्टी पिलाई जाती है। अपना मजहब बढ़ाना है गैरों का कत्ल करना है, चाहे वो बेकसूर ही क्यों न हो। लेकिन ये कतई उचित नहीं है। अपने फायदे के लिए किसी बेकसूर को मारना किसी भी सूरत में सही नहीं कहा जा सकता है। लेकिन ये कट्टर मजहबी इस बात को नहीं समझते हैं।
इसलिए ये बात कतई उचित नहीं है कि मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों को मारा जाय।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
 लोगों की हत्या करना किसी भी स्थिति में ठीक नहीं है चाहे लोग गलत हो या सही हो दोनों ही स्थिति में हत्या करना कोई समस्या का समाधान नहीं है लोग नासमझी के कारण ही गलती करते हैं और नासमझी के कारण ही हत्या करते हैं सत्य क्या चीज है ना समझ पाने के कारण हो भय और प्रलोभन में फस कर एक दूसरे की सहयोग की बजाय एक-दूसरे की जान के पीछे अपना मन तन धन लगा देते हैं किसी को मारने से समस्या हल नहीं होती है बल्कि और समस्या उलझ जाती है हर पल हर क्षण अंतरात्मा में ग्लानि होती है ना तो वह किसी से बताते बनता है ना व्यक्त करते बनता है यही नर्क की जिंदगी है अतः अंतिम में यही कहते बनता है कि बेकसूर लोग हो या कसूरवार लोगों किसी भी स्थिति में दोनों की हत्या नहीं होनी चाहिए अगर कसूरवार लोग है तो क्यों कसूर किया है उस बारे में जानकारी उसको बेकसूर की बातें बताकर उसे समझाइए दी जा सकती है हत्या शरीर की होती है आत्मा कि नहीं किसी को मार देने से उसकी आत्मा में समझ आ जाएगी ऐसा नहीं है आत्मा में समझ हीन होने के कारण गलतियां होती है अतः गलतियों को सुधारने के लिए समझ की आवश्यकता होती है और जो व्यक्ति इस कार्य में पारंगत है वही वीर काल आता है ना कि मारने वाला वीर कहलाता है परंपरा में जो जितना अधिक मारकाट करता था उसको वीर कहा जाता था लेकिन वर्तमान में जो जितना अधिक कसूर वालों को समझाइश देकर सुधार देता है वही वीर कहलाता है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
नहीं,यह कतई ठीक नहीं कि मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या कर दी जाए। मध्यकाल की बर्बरता के बाद,अब पिछले तीन दशकों में यह प्रवृत्ति बढ़ी है।भारत ही नहीं, विदेशों में भी ऐसी घटनाएं हो रही है। किसी धर्म विशेष को निशाना बनाने वाले कट्टरपंथियों की पहचान किसी से छुपी नहीं है। विदेशी फंडिंग से धर्म प्रचार की आड़ में यह खेल चल रहा है। लव जेहाद भी इसी का हिस्सा है, जिसका परिणाम हत्या ही होता है।कुल मिलाकर अपनी प्रसारवादी नीति के चलते मजहबी कट्टरपंथी हत्या करने में नहीं हिचकते।
सरकारें प्रशासन इस ओर विशेष ध्यान दें रहा है,फिर भी इस पर अभी पूरी तरह अंकुश नहीं लग पाया है।
- डॉ.अनिल शर्मा अ'निल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
जी नहीं, मज़हबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या किसी भी दृष्टिकोण से उचित नहीं है। इससे बड़ा पाप कार्य कोई हो ही नहीं सकता। अपनी स्वार्थ सिद्धि एवं धर्मांधता के लिए निरीह लोगों को जान से मार देना बहुत ही निंदनीय कार्य है। यह तो एक अक्षम्य अपराध है, जिसे किसी भी तरह से सहन नहीं किया जा सकता ।इस तरह का कार्य करने वालों को कठोरतम सजा दी जानी चाहिए ताकि उसको देखकर अन्य लोगों को भी भय पैदा हो और आगे से इस तरह का कार्य करने से बचें।
    कोई भी धर्म बेकसूर लोगों को मारने का रास्ता नहीं बताता। प्रत्येक धर्म मानव मात्र की सेवा एवं मानवता के संदर्भ में ही उपदेश करता है या ज्ञान देता है।। किंतु उसका दुरुपयोग करके अपनी स्वार्थ पूर्ति के लिए उसे एक अस्त्र की तरह इस्तेमाल करना अक्षम्य अपराध है। धर्म संस्कृति और संस्कार का पोषक है। वह लोगों में मानवीय गुणों के विकास हेतु सृजनात्मक एवं रचनात्मक उपदेश करता है ताकि लोग संस्कारी बनकर वसुधैव कुटुंबकम की भावना को बढ़ावा दें। सभी धर्म अमानवीयता के विरोधी हैं। कुछ सरफिरे लोग इसे अपना अचूक हथियार बनाकर लोगों को गुमराह करते हैं और निरीह लोगों को मौत के घाट उतार देते हैं यह बहुत ही निंदनीय एवं मानव जाति को कलंकित करने वाला कार्य है। कड़ा कानून बनाकर इसको हर हालत में    रोका जाना चाहिए।
-  श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मजहबी या धार्मिक कट्टरता वह चाहे जहां भी हो जिस किसी भी धर्म में हो किसी के लिए भी ठीक नहीं होती धार्मिक उन्माद आदमी को ले डूबता है और जब यह एक सीमा से अधिक बढ़ जाता है तो इसके परिणाम अच्छे नहीं होते इस उन्माद का शिकार वही लोग होते जो सही बात कहने का प्रयास करते हैं और धर्म के नाम पर लड़ने झगड़ने वाले वह लोग होते हैं जो किसी भी धर्म को सही ढंग से नहीं समझते दुनिया का कोई भी धर्म इस बात की इजाजत नहीं देता कि निहत्थे और बेकसूर लोगों को मार दिया जाए सभी धर्म इंसानियत भाईचारे और सद्भावना की बात करते हैं लेकिन धर्म के नाम पर सिर्फ अपना फायदा देखने वाले लोग इनका गलत ढंग से प्रचार करते हैं और लोगों को बहकातें हैं अतः सभी को चाहिए कि धर्म के मर्म को समझें और धर्म के तथाकथित ठेकेदारों की स्वार्थी प्रवृत्ति को समझें इंसानियत और भाईचारे को बढ़ावा दें और वह वैमनष्यता को न फैलने दें 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
राजनेताओं का सत्ता लोलुपता के कारण यह मजहबी बातों को फैलाई जाती है
राजनीति मैं धर्म मजहब जाति पांत
इन सब के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेंकी जाती है मानव को मानव से कोई ईर्ष्या द्वेष भेद नहीं यह भेद भाव राजनीतिक पार्टियां जिनको इन से लाभ प्राप्त होता है धर्म मजहब के नाम पर समय-समय पर चिंगारी की तरह सुलगाती रहती है सत्ता में बने रहे
दंगे फसाद यह सब धर्म के नाम पर होता रहता है इसमें हमेशा ही बेकसूर की ही हत्या होती है वही जान से मारे जाते हैं इसके  लिए सभी मानव को जाति धर्म भेदभाव भूलकर एकजुट होना पड़ेगा राजनीतिक पार्टियों को
उनकी असलियत बतलानी होगी
वोट हमारा अधिकार है उसे हमें बहुत सोच समझ कर ही देना चाहिए हमारा एक वोट इतना कीमती है कि समाज देश राष्ट्र को नई दिशा के लिए परिवर्तन कर सकता है अग्रसर कर सकता है।
रूढ़िवादी परंपराओं को छोड़कर आधुनिक विचारों के साथ बढ़ना होगा विचारों में स्वतंत्रता लानी होगी कट्टरता रूढ़िवादिता को त्याग कर नहीं तो मजहबी आग में हमेशा बेकसूर की हत्या होती रहेगी ।
*सत्ता से बड़ा कोई लालच नहीं चाणक्य नीति*ना कोई माता ना पिता ना भाई ना बंधु सकता है सब कुछ*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
     हद से ज्यादा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने वालों का बोलबाला होने के कारण हौसले बुलंद हैं और अनन्त समय तक चलता नजर आ रहा हैं, उनकी ताकतों को भी नजर अंदाज नहीं किया जा सकता हैं, उनके कारण  बेकसूर लोगों की हत्याओं का सिलसिला चल रहा हैं, जिसकी भरपाई होना संभव नहीं हैं। जातिगत धर्मांतरण का यह शौक ही बन गया हैं,
जिसके कारण प्रशासनिक व्यवस्था बदली जा सकती हैं भले ही उच्चस्तरीय जांच के साथ चिंहांकित कर कदम उठाते हुए, आगे बढ़ने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं, कब तक भय और अराजकता के सायें सैकड़ों सैन्य बलों और जनजीवन की बलियां चढ़ाई जाती रहेगी?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
मजहबी कट्टरता  की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या एक जघन्य अपराध है। यह सरासर दुर्भाग्यपूर्ण दुखद ,अनुचित है। कसूरवार लोगों के साथ बेकसूर लोगों को भी अपनी जान से हाथ धोना पड़ता है । यहां धार्मिक कट्टरवाद और असहिष्णुता का परिणाम है । अपने मजहब ,धर्म, संप्रदाय , समुदाय को ज्यादा महत्व देना उसके नियमों, सिद्धांतों पर दृढ़ता बनाए रखना  और अन्य के धर्म को कम आंकना  कट्टरवाद को जन्म देती है जो मानवता वादी विचारों का विनाश करता है बेकसूर लोगों को इसकी सजा भुगतनी पड़ती है । यह अत्यधिक संगीन मामला है जिसके लिए दोषी को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए और नियत समय पर फैसला होना चाहिए । भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष  राष्ट्र में ऐसी घटनाओं का होना अति दुर्भाग्यपूर्ण है और दुखद विषय है । जब तक धार्मिक समभावना , एक दूजे के धर्म के प्रति आदर की भावना नहीं आती तब तक का सौहार्दपूर्ण वातावरण उत्पन्न नहीं हो सकता।
 - शीला सिंह 
बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश
वसुधैव कुटुंबकम की भूमि पर मज़हब और कटटरता की बात, धर्म निरपेक्ष्य राज्य में सोचनीय
 है l जहाँ प्रत्येक मनुष्य को अपने धर्म व मतानुसार पूजा करने एवं अपनी संस्कृति के संरक्षण का अधिकार प्राप्त है l 
        हिन्दू, मुसलमान, सिक्ख, ईसाई आदि सभी धर्मों के अनुयायी भाई चारे की भावना से एकसाथ वर्षो से प्रेम भाव से रह रहे हैं, देश की अस्मिता बचाने के लिए कंधे से कंधा मिलाकर रण में कूद पड़े हैं ऐसे देश में मजहबी कटटरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या करना कुछ लोभ के लिये उचित नहीं l
        -ड़ॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
मजहबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या कहीं से भी उचित नहीं है,चाहे वह किसी भी धर्म या संप्रदाय के लोग हो। लेकिन अपने देश भारत में धर्म और संप्रदाय के नाम पर लोगों को लड़ाया जाता है, जिसमें सैकड़ों ही नहीं हजारों की संख्या में निर्दोष लोग मारे जाते हैं। खासकर राजनीतिक दलों की ओर से अपना वोट बैंक बढ़ाने के लिए नेता लोग संप्रदायिक दंगे कराते हैं, ताकि उनका वोट बैंक मजबूत हो सके। इसके अलावे जो समाज में कट्टरपंथी है चाहे वह हिंदू हो सीख हो इस आई हो या मुस्लिम समाज के लोग जानबूझकर संप्रदायिक दंगे भड़क आते हैं जिसमें उनका तो कुछ नहीं होता है लेकिन निर्दोष लोग मारे जाते हैं। जम्मू कश्मीर की ही बात ले ली जाए वहां पर मजहबी कट्टरता की आड़ में वर्षों से निर्दोष युवक आतंकवादी बन कर निर्दोषों की हत्या करते रहें। किसके साथ ही हिंदू और मुस्लिम लोग भी धर्म और संप्रदाय के नाम पर आए दिन आपस में लड़ते रहते हैं जिसमें निर्दोष लोग मारे जाते हैं। आम लोगों की संपत्ति और सरकारी संपत्ति का नुकसान होता है।  मुस्लिम समाज में यह माना जाता है कि अल्लाह धरती पर जब किसी को भेजते हैं तो उससे पहले ठीक नसीहत देकर भेजते हैं और कहते हैं कि सीमित समय के लिए धरती पर जा रहे हो, वहां जाकर ने कर्म करो। जीव हत्या, पेड़ काटना, किसी को तकलीफ पहुंचाना, व्यस्त पानी बहाना अन्य गलत कार कुरान के मुताबिक पाप है। हर इंसान को वापस अल्लाह और भगवान के पास ही जाना पड़ेगा। कभी ना कभी अच्छे और बुरे कर्मों का हिसाब जरूर होगा। अल्लाह के सारे खलीफा या नदियों का एक ही पैगाम रहता है कि खुदा के बताए हुए राह पर कायम रहो, ईमान रखो और अल्लाह पर भरोसा रखो। जो हज यात्रा करके वापस आते हैं उन्हें हाजी कहा जाता है मगर हज तभी कुबूल होता है जब हज करने वाला शख्स जकात और फितरा को जीवन में उतार कर अल्लाह के रसूल ओं के मुताबिक कार्य करता है। Pजो कुरान को अच्छी तरह से जानते समझते और उसकी आया तो कुछ जुबान पर रखते हो उन्हें हाफिज कहा जाता है। रमजान के महीने में मुसलमान अक्सर नमाज अदा करते हैं रोजा रखते हैं तकरीर भी करते हैं। कुरान शरीफ को आसानी से समझने और रसूलों से वाकिफ होने के लिए मौलवियों ने अपने तरीके से हदीस की विवेचना की है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
सर्व प्रथम तो हत्या करना एक जघन्य अपराध है, उस पर बेकसूर लोगों की, यह तो और भी निंदनीय है। ऐसा करने वाले लोगों का कैसा धर्म और कैसा इमाम ? जब कोई भी आवाम मजहब के नाम पर दंगा, फसाद करता है  और साथ हीं बेकसूर लोगों की हत्या करता है तो वह सबसे बड़ा अपराधी है।  कहा भी गया है कि *मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना* । यह बात सब को सदैव याद रखनी चाहिए। मज़हबी उन्माद में किया जाने वाला कोई भी ग़लत कार्य ग़लत हीं होता है। मज़हबी कट्टरता की आड़ में बेकसूर लोगों की हत्या करना सरासर ग़लत है इसकी कोई माफ़ी नहीं मिलनी चाहिए।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
प्रथम तो किसी भी स्थिति में हत्या जैसा अपराध ही उचित नहीं है ! किसी भी समस्या का समाधान हत्या नहीं है फिर वह कोई भी कारण हो !आज यह प्रश्न क्यों उठ रहा है ? मजहब है क्या हत्या करने वालों को पता है और यदि हां तो किसने बनाये ? धर्म और जाति में अपने आप को बांटने का काम भी हम लोगो ने ही किया है !ईश्वर ने तो सभी को सब कुछ एक सा देकर भेजा है ! यदि हमने इसे धर्म और जाति में बांटा है तो जवाब भी हमे ही देना है ! धर्म बदल देने से उसकी आत्मा नहीं बदल जाती ! यदि  धर्म के नाम पर जेहाद लव को लेकर यह विवाद है तो हत्या करने वाले को वही मार दिया जाय !वैसे भी उन लोगों को जीने का कोई अधिकार नहीं जिसे धर्म का ज्ञान नहीं और हत्या कर आतंक फैलाते हैं !  मजहब की बात है तो उनको उसकी जगह दिखा देना चाहिए ऐसे कट्टर मजहब वालों को पनाह ही नहीं देना चाहिए !नेस्तनाबूद कर देना चाहिए ताकि कोई और बेकसूरों की हत्या न हो !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में "  वर्तमान में कटृरता का रास्ता , किसी भी स्तर पर उचित नहीं है । लगता है कि तीसरा विश्व युद्ध कटृरता के नाम हो , परन्तु इस की सम्भावना बहुत कम हैं। क्योंकि शान्ति के प्रयास सफल अवश्य होगे । ऐसी उम्मीद हम सब रखते हैं ।
                                    - बीजेन्द्र जैमिनी 

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