अकारण टकराव क्या उचित है ?

कुछ लोग अकारण ही लोगों से लड़ते रहते है । जो बिना मतलब ही लोगों को परेशान करते है । जिस का किसी का कोई लाभ नहीं होता है फिर लोगों को परेशान क्यों किया जाता है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को देखते हैं : - 
अकारण टकराव कभी भी उचित नहीं कहा जा सकता। लेकिन अकारण टकराव कम ही देखने को मिलता है।
दो पक्षों में से एक के द्वारा अवश्य टकराव के कारण उत्पन्न किए जाते हैं। 
अक्सर टकराव के कारणों में निकृष्ट विचारधारा और स्वार्थपूर्ति जिम्मेदार होती है। 
व्यक्तिगत जीवन में साधारण मनुष्य सदैव टकराव से बचने का प्रयास करता है परन्तु अनेक बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं कि व्यक्ति को दूसरों से टकराना उसकी विवशता हो जाती है।
ऐसे बहुत उदाहरण हैं जब दो पड़ोसियों में से एक के द्वारा अपने स्वार्थों की पूर्ति हेतु गलत कार्य करके दूसरे पड़ोसियों को परेशान किया जाता है जिससे न चाहते हुए भी अन्य पड़ोसियों को उससे टकराव करना पड़ता है। यही बात रिश्तों में भी लागू होती है जहां स्वार्थवश टकराव की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। 
कार्यालय में भी किसी मेहनतकश व्यक्ति की उन्नति से ईर्ष्या करने वाले लोगों से उस व्यक्ति को टकराव करना ही पड़ता है।
राजनीति के क्षेत्र में अक्सर लोग अथवा पार्टी, अकारण टकराव की स्थिति पैदा करते हैं परन्तु यहां भी दूसरी पार्टी को कमजोर करने के लिए और अपनी राजनीतिक रोटी सेंकने के लिए टकराव रुपी खेल खेले जाते हैं।
यदि भारत के नजरिए से यह बात देखी जाये तो चीन और पाकिस्तान जैसे देश अपनी कायरतापूर्ण हरकतों से भारत को टकराव के लिए उकसाते हैं जबकि भारत कभी भी अकारण टकराव नहीं करता। 
इसलिए व्यक्ति हो, रिश्ते हों, या देश, किसी एक के द्वारा टकराव के कारण बनाये जाने से ही दूसरे को टकराव करना ही पड़ता है। 
अकारण टकराव अनुचित हो सकता है परन्तु अत्याधिक सहनशील होकर टकराव से बचना कायरता ही है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
सुख-दुख की तरह जीवन में जाने-अनजाने टकराव भी होता ही रहता हे. यह टकराव कभी किसी दूसरे के विचारों से भी होता है तो कभी परिस्थितिवश अपने विचारों से भी होता है. सबसे पहले तो हय कहना चाहेंगे कि टकराव होना ही नहीं चाहिए. अपने विचारों से टकराव से तो हम तनिक समझदारी से किनारा कर ही सकते हैं, लेकिम किसी दूसरे के विचारों से, नीति से टकराव से निपटना चुनौती वाली बात है. एक बार चुनौती समक्ष आने पर उसका डटकर नुकाबला करना तो ठीक है, लेकिन अकारण टकराव किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं है. यह तो ''आ बैल मुझे मार---'' वाली बात हो गई! इसलिए यथासंभव टकराव से किनारा करना ही उचित है, इसी में हमारा और सबका कल्याण है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
अकारण टकराव सर्वथा उचित नहीं है। बिना कोई ठोस वजह के,किसी से भी टकराना उचित नहीं होता है। क्योंकि टकराव से आपसी वैमनस्यता, शत्रुता,मनमुटाव,दुश्मनी हो सकती है। जो कि समय के साथ बढ़तीं जाती है। 
   प्रेम से जो कार्य होता है। आपसी सामंजस्य और सौहार्द से जो कार्य होता है, सद्भाव से कार्य होता है, वह कार्य टकराव से नहीं होता है। 
    जब तक टकराव की कोई ठोस वजह नहीं होती है। जैसे कि पुश्तैनी दुश्मनी किसी से चल रही हो,जमीन जायदाद के लिए या जर-जोरू के लिए, टकराव तो समझ में आता है। किन्तु किसी से अकारण टकराव का समर्थन आज के समय में अनुचित व अनावश्यक होता है। 
    एक बड़ा कारण है कि किसी से टकराव हो तो दोनों ही, पक्षों को उससे नुकसान होता है। फिर दुश्मनी का अंत भी नहीं होता है। 
    हमें प्रभू और माता-पिता की कृपा से मिले इस जीवन का, उन्नति  ,प्रगति,सदुपयोग पारस्परिक सहयोग में उपयोग करना चाहिए। 
   ताकि मानवता का परिचय फहराया जा सके ,ना कि हमें अकारण किसी से टकराव करने का रास्ता अख्तियार करना चाहिए। ।
- डॉ. मधुकर राव लारोकर
नागपुर - महाराष्ट्र
अकारण टकराव सर्वथा अनुचित है।टकराव शब्द दुर्घटना सी सम्बोधित होती है अतः कारणवश भी इससे बचना उचित होगा।टकराव एक नकारात्मक उर्जा है जो निश्चित तौर पर दोनों पक्षों को चोट अर्थात नुकसान पहुँचायेगी।कोई भी समस्या से टकराव की स्थिति होने से पुर्व उस विषय मे आपस मे बातचीत करना सर्वदा बेहतर उपाय होता है।हर समस्या का समाधान अवश्य ही होता है।दोनों पक्ष जरा समझदारी और थोड़ा समझौतापूर्ण रवैया अपनाये तो यह टकराव वाली स्थिति टल सकती है और इसे टालना ही दोनो पक्षो के लिए बेहतर है क्योंकि टकराव होने पर नुकसान थोड़ा या ज्यादा,दोनों पक्ष को अवश्य ही होगा ।
             -  रंजना वर्मा उन्मुक्त
रांची - झारखण्ड
टकराव तो ठीक है ही नहीं, और अकारण टकराव करना तो खुद ही मुसीबत को न्यौता देना है।'आ बैल मुझे मार' कहावत ऐसी ही स्थिति में बनी होगी।  अकारण टकराव का परिणाम बहुत विनाशकारी भी हो जाता है । जैसे सूर्पनखा का पंचवटी में राम-लक्ष्मण से जा टकराना,रावण कुल के विनाश का कारण बन गया। बेवजह किसी को कुछ कहना,क्रोध करना,मजाक करना, हंसना जैसी बात भी टकराव का कारण बन जाती है। कहते हैं महाभारत के मूल में द्रौपदी का युधिष्ठिर के प्रति उपहास करना भी था। हम दैनिक जीवन में देखते हैं कहीं पर भी लाईन में खड़े होने वालों में अकारण ही टकराव हो जाना आम व्यवहार है। बस,ट्रेन में सीट को लेकर ऐसी स्थितियां अक्सर सामने आती ही रहती हैं। परिणाम अच्छा तो होता ही नहीं।और भी कुछ न हो टेंशन तो हो ही जाती है। इसलिए अकारण टकराव की स्थिति उचित नहीं।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
मनुष्य को गुण, कर्म और स्वभाव से शांत प्रवृति वाला प्राणी माना जाता है l यद्यपि हर आदमी के भीतरी कोने में अज्ञान रूप से एक हिंसक प्राणी भी छिपा रहता है l जिसे मनुष्य जागने नहीं देता है पर कभी संघर्षात्मक क्रिया -प्रतिक्रियाओं के घर्षण -प्रत्यघर्षण से अकारण टकराव उतपन्न हो जाता है l फलतः सामान्य लड़ाई, गुटीय या साम्प्रदायिक झगड़े जैसे नाम दे दिये जाते हैं l जब दो देशों के मध्य इस प्रकार की बातें हो जाती हैं तब उसे युद्ध कहने लगते हैं l
अकारण टकराव एक ही झटके में युग युगों की साधना को मटिया -मेट कर देता है l कला -संस्कृति के सभी रूप खंडहर बन कर रह जाया करते हैं l वर्षो तक उनका प्रभाव बना रहता है l महाभारत का युद्ध आरम्भ होने से पहले श्रीकृष्ण स्वयं शांति दूत बनकर कौरवसभा में गये थे l पांच गाँव की मांग रखकर महायुद्ध को टालने का प्रयास किया, लेकिन दुर्योधन जैसे दुवृत्तों ने उनका प्रयास सफल नहीं होने दिया l खैर, वह तो बीते युगों की बात है l प्रथम विश्व युद्धहुआ संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना शांति की कामना के लिए की गई पर क्या टकराव की स्थिति में कमी आ पाई है? सीमाओं पर हमेशा युद्ध के बादल मँडराते रहते हैं l
  कई बार शांति बनाये रखने के लिए स्वतंत्रता और स्वाभिमान की रक्षा के लिए भी युद्ध लड़ने पड़ते हैं l जैसे द्वापर युग में पांडवों को, त्रेता युग में श्रीराम को, आज के युग में भी अकारण भारत को टकराव झेलने पड़ते हैं, फिर भी अकारण टकराव उचित नहीं l
      चलते चलते --
टकराव की स्थिति होने पर इसके दुष्परिणामों से अनिवार्यतः दो -चार होना पड़ता है l
दो विलोम परस्पर नीचा दिखाने को कार्यरत हैं और सदा रहेंगे -यह एक चरम सत्य है l
     - डॉo छाया शर्मा   
अजमेर - राजस्थान
     मानव जीवन में हमेशा आते-जाते रहते हैं टकराव? जहाँ स्वार्थों के बिना भी कोई दुष्परिणाम सामने जब-तक नहीं आये, तब-तक मजा नहीं आता।  कभी-कभी अकारण ही टकराव की स्थिति निर्मित हो जाती हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं, जिसके परिणामस्वरूप वास्तविक तथ्यों में परिवारजनों को मुश्किलों का सामना करना पड़ता हैं। टकराव सहज नहीं हैं। पूर्व में राजा-महाराजा अपने-अपने देशों के विस्तार हेतु विभिन्न देशों से टकराकर परचम लहराते थे। आज वर्तमान परिदृश्य में वोटिंग के माध्यम से अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं। टकराव कैसा भी हो, आखिर टकराव ही हैं। ऐसा भी टकराव होता हैं, जहाँ कोर्ट-कचहरी में सब कुछ निकल जाता हैं, किन्तु अपनी कमजोरियाँ का ही नतीजा हैं, जहाँ लम्बे समय तक चलता रहता हैं, जिसका कोई अंतर ही नहीं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
नहीं, अकारण टकराव कतई उचित नहीं है। हर समस्या का समाधान होता है। उससे संबंधित जानकारी लेकर निदान का प्रयास करना चाहिए। बेवजह बात बढ़ाने या झगड़ा मोल लेने से कोई फायदा नहीं। टकराव  अर्थात  "आ बैल मुझे मार " वाली कहावत सिद्ध होती है। जो कार्य आसानी से संपन्न हो जाए उसमें जबरदस्ती उलझने की कोई आवश्यकता नहीं। टकराव और वह भी बिना कारण वह तो सर्वथा  अनुचित है। यह तो जबरदस्ती बुराई मोल लेने वाली बात हो गई। इंसान को हमेशा सुख शांति बनाकर रखना चाहिए और उसी के लिए प्रयत्न भी करते रहना चाहिए। यही मानव धर्म है। मानवता के लिए शांति परमआवश्यक है। समाज को व्यवस्थित रखने के लिए  शांति बनाए रखना जरूरी है जो कि अकारण टकराव से खत्म हो जाती है और विध्वंस चालू हो जाता है। इसीलिए अकारण टकराव की स्थिति कभी नहीं पैदा करनी चाहिए।
-  श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर -  मध्य प्रदेश

वस्तुत: तो टकराव करना हीं ग़लत है, फिर अकारण तो सरासर अनुचित है। हम सब एक शांतिप्रिय देश के निवासी हैं,  जहां जियो और जीने दो कि परंपरा सदियों से चली आ रही है। बिना मतलब किसी से टकराव सर्वथा ग़लत है। व्यक्ति को कभी ऐसा नहीं करना चाहिए। कोई कारण या समस्या उत्पन्न हो भी जाए तो,  सर्व प्रथम हमें शांतिपूर्ण तरीके से उस समस्या का समाधान करना चाहिए, ना कि टकराव करने को सोचना चाहिए। समस्या के समाधान हेतु पंचायत बैठाने के बाद उनकी राय मांगी और मानी जाती है। इसलिए हमें अपने किसी भी समस्या वाली बात का  पहले ठंडे दिमाग से सोचना चाहिए फिर उस पर सोच विचार अच्छी तरह करने के बाद हीं कोई तरीका अपनाएं जाने की जरूरत है,  ना कि  सीधे जाकर टकराव करने को उचित समाधान समझाना चाहिए।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
        अकारण टकराव किसी भी सूरत में उचित नहीं ठहराया जा सकता। क्योंकि अकारण टकराव का अर्थ 'आ बैल मुझे मार' जैसा होता है और ऐसा वही कर सकता है जिसे पैसे देकर लड़ाई करने का शौक होता है।
       किंतु जो कारण रहते भी टकराव से बचते हैं उन्हें कायर कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी और आज यही देखने को मिल रहा है कि स्वार्थी लोग गधे को बाप बना कर पतली गली से निकलना ही उचित व बुद्धिमत्ता मानते हैं। जो निंदनीय ही नहीं बल्कि घृणात्मक कृत्य है।
      अतः अकारण टकराव से हमेशा बचना चाहिए किन्तु पाकिस्तान और चीन की घुसपैठ का उत्तर तोपों के गोलों एवं एयर स्ट्राइक से देना भी उतना ही आवश्यक है जितना जीवित रहने के लिए भोजन आवश्यक होता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
टकराव कारण वंश हो या अकारण दोनों ही ग़लत है क्योकी जो कार्य प्रेम से की गई बात कर सकती है‌ वह टकराव कभी नहीं कर सकता और हमारा भारत देश तो हमेशा से प्रेम में किए गए समझोते पर ही विश्वास करता आया है और कुछ देशों के साथ किया भी है परन्तु कुछ देश बार बार अकारण टकराव की स्थिति पैदा कर रहे हैं तो जवाब देना भी अतिआवश्यक हो जाता है।।।।
सर कटा सकते हैं लेकिन
सर झुका सकते नहीं
हमें आज़ादी हमारे हजारों वीर खोने के बाद मिली है और आज भी सीमा पर वीर शहीद हो रहे हैं हम उनकी शहादत तो जाया बिल्कुल नहीं जाने दे सकते अतः यदि बात आन,बान,शान की हो तो टकराव का जवाब अतिआवश्यक है।।।।।
- ज्योति वधवा रंजना
बीकानेर - राजस्थान
मानव जीवन बहुआयामी दृष्टिकोण से युक्त है। जहां व्यक्ति एक साथ कई जिम्मेदारियों को निभाते हैं। ऐसे में हितों का टकराव कोई अचंभित करने वाली बात नहीं है।
जब व्यक्ति कि कोई प्रमुख निष्ठा दूसरी निष्ठा से टकराती है तो किसी भी उद्देश्य की पूर्ति में एक बड़ा रोड़ा बनकर आगे आता है तो टकराव होने की संभावना बढ़ जाती है।
यह व्यक्तिगत लक्ष्य में समन्वय के अभाव के कारण होता है। 
भारत देश में कानून के अंबार है इसे कम करने से आपस में जो जनप्रतिनिधि करते हैं  टकराव  कम हो जाएगा। 
हमारे अधिकारी एवं जनप्रतिनिधि में अनावश्यक टकराव होते देखा गया है।
लेखक का विचार:-जितना अधिक कानून उतनी टकराव की संभावना बनी रहती है हमें जरूरत है कुछ ऐसे नियमों को जिनसे आवश्यक परिस्थितियों में नजरअंदाज किया जा सके।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
 अकारण हो अथवा कारणवश हो टकराव किसी भी रुप में सहीं नहीं है ! हां,यदि टकराव का कारण हमें ज्ञात है तो हम उसे समझौते से अथवा आपसी बातचीत की मध्यस्तता के जरिये दूर करने की कोशिश करते हैं किंतु अकारण टकराव---यानी अपने शक्ति का प्रदर्षण कर किसी को कमजोर आंकना , उनपर हावी हो जाना,दादागिरी दिखा जबर्जस्ती उनका अधिकार छीनने की कोशिश करना ..यह उचित नहीं है ! हमें किसी को भी कमजोर नहीं समझना चाहिए ! किंतु यदि अकारण कोई हमसे टकराता है या हमारे अधिकारों का हनन करता है तो हमे उसका समय और स्थिति के अनुसार जवाब अवश्य देना चाहिए ! ध्येय यही होना चाहिए किसी को क्षति ना पहूंचे !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
टकराव कारणवश हो या अकारण, टालने का प्रयास किया जाना चाहिए। इसमें जिसकी गलती हो उसे क्षमा माँग लेने और भविष्य में इसकी पुनरावृत्ति नहीं होगी, इस आश्वासन के साथ बात खतम करने का उद्देश्य होना चाहिए। ऐसा करना समझदारी होती है। हम सभी को जीवन में विनम्रता,क्षमा माँगना और क्षमा करना आना चाहिए और अकारण के टकराव से बचना चाहिए। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि जो गलतियां अक्षम्य और अपराध निहित होती हैं, चारित्रिक हनन और मान- सम्मान वाली होती हैं वो अपवाद हो सकती हैं। जीवन में सदैव क्रोध, जिद, हिंसा, लालच, स्वार्थ, छल ,चोरी आदि दुर्गुणों से दूर रहना चाहिए। सामान्यतः टकराव इन्हीं को लेकर होता है। धैर्य, शांति, सहिष्णुता, त्याग आदि ऐसे सद्गुण हैं जो हमें सदैव विषम      स्थितियों से बचा ले जाते हैं। जीवन में एक सीख हमेशा अपनाने का प्रयास करना चाहिए। वह ये कि हमारे मित्र भले ही एक भी न हों मगर शत्रु एक भी नहीं होना चाहिए। कभी-कभी हम या अन्य लोग जिसे कायरता समझते हैं वह असल में समझदारी होती है। टकराव में भले ही हम सामने वाले को तनाव दें मगर तनाव हमारे पास भी आ ही जाता है। जो हमें किसी न किसी रूप में कुप्रभावित करता है,नुकसान पहुंचाता है। टकराव से बचाव करने में हम असल में हमारे हिस्से के उसी संभावित तनाव को बचाते हैं।अस्तु।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
टकराव चाहे अकारण हो या सकारण  ,सदा अनुचित ही होता है
टकराव से सदा विरोधाभास व वैमनस्य उत्पन्न होता है व ये कभी भी समस्या कासमाधान करने के बजाय स्थिति को अप्रिय बना देता है .....टकराव मैं दो व्यक्ति व उनके स्वाभिमान टकराते हैं .......कोई झुकना नहीं चाहता .......व समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती है
अकारण टकराव वही व्यक्ति करते हैं जिन्हे बात का बतंगड़ बनाने मैं और बिना बात के लड़ने मैं आनंद आता है
ऐसे व्यक्तियों से दूरी बनाये रखने मैं ही भलाई है व समस्या का समाधान शांति से हो सकता है
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
अकारण टकराव यदि किसी अप्रिय स्थिति, शत्रुता या हिंसात्मक माहौल का कारण बनता है तो उचित नहीं है। ऐसा होना तो मानवीय संबंधों के नाश का कारण बनेगा। अकारण टकराव के पीछे एक पक्ष का स्वार्थ तो निहित होगा होता है। दुर्योधन पांडवों का हक नहीं देना चाहता था अतः पांडवों से अकारण टकराव कर बैठा जिसका परिणाम महाभारत हुआ। अकारण टकराव तो वे करते हैं जिनकी नीयत अच्छी नहीं होती अन्यथा अकारण टकराव कौन करता है? हमारे शांतिप्रिय देश भारत के साथ कुछ पड़ोसी देश अकारण ही टकराव करते रहते हैं जो उचित नहीं है। 
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
अकारण ही कभी-कभी अहम और आन बान शान के लिए टकराव हो जाते हैं उदाहरण के लिए हम घर में छोटे-मोटे झगड़े ही सोचे तो कभी-कभी बिना बात के ही बात आगे बढ़ जाती है और जब हम शांति से एक-दो दिन बाद सोचते हैं तो हमें हंसी आती है कि किस बात पर टकराव हो गया टकराव होने के लिए कोई वजह नहीं रहती।
जब भी झगड़ा या टकराव हो उसे बचना चाहिए और 2 मिनट के लिए हमें सोचना चाहिए यदि सब ऐसा करें तो पूरे देश और विश्व में शांति हो जाएगी और अलगाव कभी किसी का घर परिवार ना टूटेगा।
क्योंकि टकराव और अलगाव से अशांति और अराजकता ही भर्ती है धैर्य और संयम से हमें काम लेना चाहिए यह सब क्षणिक आवेश ही रहता है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर -  मध्य प्रदेश
अकारण टकराव कभी भी उचित नहीं है। टकराव ही क्यों कोई भी कार्य अकारण उचित नहीं होता है। लेकिन कुछ लोगों की आदत होती हैं लोगों से टकराने की। जैसे गांव में कोई -कोई आदमी होता है बेवजह लोगों को परेशान करता है। लोगों की धन जमीन हड़पने की चेष्टा करता रहता है। अकारण लोगों से झगड़ा करता रहता है।
आज जैसे चीन और पाकिस्तान कर रहे हैं। अकारण ही सीमा पर गोलाबारी करते हैं। अपनी हड़प नीति के तहत अकारण चीन हमारी सीमा में  
घुसपैठ करता रहता है। ये कतई उचित नहीं है। दफ्तरों में भी कुछ ऐसे लोग हैं जो अकारण लोगों से टकराव मोल लेते रहते हैं। ये सब किसी भी तरह से उचित नहीं है।
टकराव कारण से हो या अकारण से हो किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं कहा जा सकता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं.बंगाल
अकारण टकराव उचित नही है।कोई कारणवश इंसान टकराव या आपसी मतभेद करें तो जीवन मे अपने अधिकार के लिए समक्षता होती है ।पंरतु अकारण व्यक्ति बहस और टकराव करें तो बेहद ही बुरा प्रभाव और परिणाम स्वरूप रिजल्ट जारी होता है।टकराव करके कभी भी जीवन सुखद नही हो सकता ।आपसी सहमति तालमेल जीवन के गतिविधियों को नया मोड़ और मंजिल देती है।अकारणवश ही टकराव करना इंसान की तुक्ष्य मानसिकता को प्रदशित करत है।हमें कभी भु जीवन मे अकारण मतभेद करके अपनी अभिव्यक्ति को उजागर नही करना चाहिए ।इससे अपना ही क्षति पहुंचाने की भाव उल्लेखित होती है।मानव जीवन मे कभी कभी खुद को सही साबित करने हेतू हम आपसी बातों को अकारण टकराव मतभेद पैदा कर लेते हैं जिससे हमारे आपसी तालमेल और रिश्तें बिगड़ने लगते हैं।जो की बेवकूफी की निशानी होती है।उचित और अनुचित लाभ के लिए हम कभी कभी टकराव की प्रणाली को महत्त्व देते है जो हमारे मानवीय संवेदनाओं को चोट करती है और असंवेदनशील बनाती है ।अकारण भाषाशैली को गंदा करते हैं हमारी छवि खराब होती है बिना बात के बहस सिर्फ अपने नजरों मे कुछ क्षणिक पलों के लिए सत्य साबित सिद्ध होता है पंरतु आसपास के लोगों के लिए बेहद ही बेवकूफी और मंदबुद्धि लगती है।अकारण टकराव का कोई व़जन नही होता हम जीवन के राहों मे खुद को बौना समझने लगते है।हमारी संस्कृति और सभ्यता पंरपरा को ठेस पहुंचाने की बात होती है जो कभी अगर् अकारण के कारण सब खो देते है तब हम अपनी नजरों में गिर जाते हैं और रिश्ते भु टुटने के पथ संचलन करते हैं।हमे हमेशा उच्च स्तरीय बातचीत और सरलीकरण का सहारा लेना चाहिए कारणों के छोर को सत्य की परतों होनी चाहिए तब ही हम विकासशील से विकसित रूप को धारण कर सकते हैं।और बिना कारण बिना बात के टकराव की कोई आवश्यकता भी नही है जीवन पदचिन्हों पर सरलता से पदचापों को बढ़ाया जाए तो जीवन केंद्र मे अच्छे परिणाम स्वरूप फूल खिलेंगे जिसमें आसपास के वातावरण सुंगधित और सुंदर होगे।हृदय रोग से मुक्ति मिलती है हृदय सैदव खुशमिजाज होता है।आपसी तालमेल प्रेम सांमजस्य बना होता है ।और एक कलात्मकता को उजागर करता है।कारण चाहे कितने बड़े ही क्यो ना हो रिश्तों की डोर को विश्वास मजबूती से बाँधे रखता है।अगर अकारण टकराव की प्रणाली को नही अपनाते तो हम सैदव सुखद अनुभव वातावरण का सेवन करते हैं।उच्चतम मंजिल की सीढियों पर सटीक कारण और तर्क से चढा़व की जाती है।बिना कारण के उचित कुछ भी नही होता।अकारण टकराव कभी फलदायी नही होता।अतःअकारण टकराव उचित मूल्य मे समाविष्ट कतई नहीं है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
अकारण टकराव उचित नहीं है । इतिहास गवाह  है बड़ी -बड़ी राजगद्दी टकराव के चलते तहस  -नहस हो गई  ।टकराव के चलते सुचारु रुप से चलती सरकारें गिर जाती हैं ।टकराव कभी -कभी मृत्यु का कारण भी बन जाता है ,एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं ।टकराव विनाश का रास्ता है  उस से हम सभी को दूर रहना चाहिए ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
 कारण टकराव हो यह कारण दोनों स्थिति में टकराव उचित नहीं है क्योंकि टकराव से कोई समस्या का समाधान नहीं होता बल्कि समस्या उत्पन्न ना होता है कोई भी टकराव एक पक्ष में गलती के कारण हो सकता है या दोनों पक्षों में गलती के कारण हो सकता है लेकिन टकराव होना उचित नहीं है टकराव से कोई संतोष  नहीं होता है बल्कि टकराव में स्थितियां और बिगड़ती है अतः टकराव से हमेशा दूर रहना चाहिए टकराव के दोनों पक्षों को हानि होती है अतः कोई खाने मॉल देना नहीं चाहता टकराव को समझदारी के साथ सुलझा लेना चाहिए ना कि तनाव में आकर और समस्या खड़े करना चाहिए हर कार्य समझदारी के साथ सुलझाया जा सकता है कोई भी टकराव  समाधान से ही सुलझ  सकता है।
 कारण हो या अकारण दोनों ही  स्थिति में उचित नहीं है  अतः हमेशा टकराव से समझौता या तो टकराव से दूर रहना चाहिए।
-  उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
अकारण टकराव शत प्रतिशत उचित नहीं है। भारत में अनेकता में एकता है। भारत में भिन्न भिन्न भाषाएँ, भिन्न भिन्न धर्म, संस्कृति आदि है। धार्मिक परंपराओं में भी भिन्नता है। जब एक धर्म के लोग,अपने धर्म को दूसरे धर्मों से श्रेष्ठ मानने लगते हैं तो अकारण टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है कयोंकि सभी धर्मों में खाने पीने और पहनावे में भी भिन्नता है ।
        भारतीय संस्कृति में "वसुदेव कुटुम्बकम "की भावना समाहित है। अपनी संस्कृति के निर्वाह के लिए संकीर्ण मानसिकता, भेदभाव जैसी भावनाओं से उपर उठकर मिलजुलकर रहना चाहिए। 
     आधुनिक दौर में तकनीकी प्रगति से पूरा विश्व ग्लोबल गाँव बन गया है। पूरा विश्व एक परिवार की तरह है। अकारण टकराव किसी भी देश के विकास के लिए घातक है। टकराव की स्थिति पैदा ही ना हो,इस के लिए समायोजन की अधिक आवश्यकता है। टकराव तोड़ता है और समायोजन जोड़ता है। जब समायोजन का संतुलन बिगड़ता है तो ही टकराव की स्थिति पैदा हो जाती है। आज देश के विकास के लिए समायोजन की आवश्यकता है। अकारण टकराव से बचना चाहिए। आपसी प्यार और भाईचारा बना कर चलना चाहिए। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप -  पंजाब
टकराव से किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता है । अपने विचारों को शांति पूर्वक रखना चाहिए । ये सही है कि लातों के भूत बातों से नहीं मानते हैं किन्तु हमारा ये प्रयास होना चाहिए कि समझौते की राह निकल आवे ।
रामचरित मानस में लिखा  है 'बोले राम सकोप वश, भय बिनु होत न प्रीत ।' परिस्थितियों के अनुरूप निर्णय लेने ही पड़ते है । जब भी ऐसी स्थितियाँ हों तब टकराव का मार्ग अपना लेने में कोई हानि नहीं होती है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
अकारण टकराव बिल्कुल सही नहीं है  टकराव के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है । जहां परस्पर सामंजस्य, तालमेल  नहीं है टकराव की स्थिति स्वंय ही बन जाती है । टकराव किसी भी तरह का हो सकता है । दो विरोधी विचारों का टकराव, अहंकार ,प्रतिष्ठा का टकराव, हितों, स्वार्थों का टकराव । सीमा पर दुश्मन देशों के साथ टकराव। उदाहरण के लिए भारत  के  प्रति चीन  आनापेक्षित घुसपैठ करके टकराव की स्थिति पैदा कर देता है । जिसका परिणाम युद्ध हो सकता है। बड़े पैमाने पर जन धन  हानि हो सकती है । समझदारी इसी में ही है कि इस प्रकार की स्थिति से बचने का प्रयास करना चाहिए। कई बार हितों स्वार्थ और अहंकार का टकराव भी देखने को मिलता है । यदि ये टकराव अकारण है तो इसके बुरे परिणाम भुगतने पड़ते हैं। जो सही नहीं है।
 - शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
       टकराना दो तत्वों मे, दो व्यक्तित्वों में हमेशा चिंगारियाँ ही लाता है। सब से पहले कोशिश यही होनी चाहिए कि बिना टकराव अर्थात भेदभाव,झगडा, मनमुटाव बात बन जाए । यदि कोई  काम मित्रतापूर्वक, सामंजस्य से पूरा हो जाए तो वो अति उतम है ।अकारण टकराव तो यह सिद्ध करता है कि दोनों अपने - अपने अहम के वशीभूत हो अपना वर्चस्व साबित करना चाहते हैं ।
कारण हो तो भी मध्य मार्ग निकालकर शांति पूर्वक निर्णय लेना चाहिए। अकारण टकराव का  मतलब है कि दोनों में से एक जानता है कि मैं गलत हूँ पर बोल कर सामने वाले का काम बिगाड़ कर ही दम लूँगा। यह प्रवृत्ति विनाशक है । 
  किसी भी स्थिति में टकराव बुरा है और अकारण टकराव तो इस बात का ध्योतक है कि यह समय और उर्जा  को निरर्थक करने का मात्र तरीका है । जिसका नतीजा नकरात्मक ही होता है।
मौलिक और स्वरचित है 
  - ड़ा.नीना छिब्बर
    जोधपुर - राजस्थान
टकराव दुष्ट विचारों की निशानी है। जान-बूझ कर टकराव की स्थिति लाना विनाश का कारण होता है। विनाश जिसका भी हो, परन्तु भोगना दोनों ही पक्षों को पड़ता है।
 टकराव की स्थिति ही असंयमित विचारधारा वालों के बीच आती है। जहाँ भी सूझ-बूझ व शांति से काम किया जाता है, वहाँ इतनी खराब नौबत नहीं आती है। 
 इसका दूसरा कारण है अहम का टकराव। जितनी भी लड़ाइयाँ हुई हैं सभी इसी का नतीजा है। दूसरे  को मटियामेट करने की लालसा। परन्तु इससे वर्चस्व बना नहीं बल्कि खुद का भी नुकसान ही हुआ है। 
लेकिन कहाँ कोई मानता है। आज भी चीन वही कर रहा है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
*जब तक  स्थिति विकट ना हो टकराव नहीं करना चाहिए*
मानव जीवन में जो शांति और प्रेम का सुख है वह आपसी वैमनस्य और टकराव और कटुता से नहीं है अकारण 
किसी से भी टकराव करना उचित नहीं उसके बाद की स्थिति बहुत विषम हो जाती है और कई बार हम उन स्थितियों से निकल नहीं पाते हैं समस्या बढ़ती चली जाती है एक छोटी सी समस्या बहुत बड़ी बनकर आर्थिक शारीरिक मानसिक नुकसान भी पहुंचा सकती है हमेशा टकराव की स्थिति से बचना चाहिए समस्याओं को कई तरीके से सुलझाया जा सकता है टकराव किसी भी स्थिति में उचित नहीं होता और हमेशा वह नुकसान ही पहुंचाता है।
*छोटी सी बात का टकराव महाभारत उदाहरण है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
टकराव से हमेशा दुष्परिणाम मिलते हैं टकराव के दो कारण एक तो हम की भावना और दूसरा विपरीत परिस्थिति का उत्पन्न होना दोनों परिस्थितियों में समझौता से रास्ता निकल सकता है अगर हम को लेकर टकराव बनाते हैं तो दोनों पक्षों की हानि होती है और विपरीत परिस्थिति में समझौता के लिए नहीं तैयार होते हैं तब भी हानि का ही सामना करना पड़ता है अनेकों उदाहरण हमारे इस विविध रूपी संसार में व्याप्त है अगर धर्म ग्रंथों को देखा जाए तो महाभारत भी इसी का परिणाम था रामायण में परिस्थितियां उत्पन्न की गई और परिस्थितियों को सामना करने की तैयारियां भी पूरी हुई लेकिन हम के कारण लंका का नाश हो गया तो टकराव की स्थिति में विनाश की संभावना निश्चित होती जब भी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न हो तो विवेक से काम ले कर या तो समय के ऊपर छोड़ देना चाहिए या सकारात्मक सोच के द्वारा नकारात्मक प्रवृत्ति का नाश कर देना चाहिए
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " अकारण लोगो से किसी भी स्तर पर लड़ना उचित नहीं है । फिर भी कदम - कदम पर लोगों को लड़ते देखा जा सकता है । 
- बीजेन्द्र जैमिनी

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