क्या हताश ना होना ही सफलता का मूलमंत्र है ?

हताश होने से नुकसान होता है । हताश से बचने के लिए हमेशा सावधानी बरतनी चाहिए । हताश पर नियंत्रण होने से सफलता के द्वार खुल जाते हैं । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा "  का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
हताश ना होना ही अपने आप मे सफलता की मेरे मत से पहली सिडी है, जो हताश हो गया वह क्या संघ्रष करेगा? ओर क्या अपनी मंजिल पायेगा? यह प्रश्न भी विचारणीय है! हमे निरंतर संघ्रष करते रहना होगा, लाख हम असफल हो जाये अपनी कमीयों को दूर कर हमे बार बार फिर मैदान सम्भालना होगा। हमारे  मान्नीय पूर्व राष्टपती ऐ पी जी अब्दुल कलाम जी ने वैज्ञानीक रहते हुये ओर कई बार भारतीय मिशाइल असफल होने पर भी हिम्मत नही हारी हताश नही हुये ओर आज भारत वही मिशाइले निर्यात कर रहा है। हताश ना होना तो सफलता का मूलमंत्र नही कहा जा सकता पर यह पहली सिडी जरूर है सफलता निरंतर प्रयासो से कडी मेहंत से ही मिलती है।
- कुन्दन पाटिल 
देवास - मध्यप्रदेश
किसी ने क्या खूब कहा है कि "झोंपड़ी झट से बन जाती है परन्तु महल बनाने में सालों लग जाते हैं"।ये बात सच है किसी भी कार्य को करने में खुद को समर्पित कर देने से ही सफलता हासिल होती है। बहुत बार ऐसा होता है कि विभिन्न कारणों से कई बार किसी काम में समय पर आपेक्षित सफलता नहीं मिलती और हम हताश हो जाते हैं और हतोत्साहित होकर उस कार्य को बीच में ही छोड़कर भाग जाते हैं। हमारी आदत बन जाती है एक बार असफल होने पर उस काम को छोड़कर अगले कार्य को करने लग जाते हैं और फिर उसमें भी सफलता हासिल न हुई तो फिर उसे छोड़कर कुछ और ।
   इस तरह यह एक कभी न थमने वाला चक्र बन जाता है और अंततः हम जीवन से निराश होकर अवसाद इत्यादि रोगों से पीड़ित होकर एक दुःखी और असफल जीवन जीने को मज़बूर हो जाते हैं। मेरा विचार है कि जिस भी किसी काम को हम अपने हाथ में लेते हैं उसे अच्छे से पकड़ कर चलना चाहिए और असफलता मिलने पर बिना हताश हुए हमें अपना मार्ग नहीं तरीका बदलना चाहिए और तब तक कोशिश करते रहना चाहिए जब तक सफलता हासिल न हो जाए।
- संगीता राय
 पंचकुला - हरियाणा
      जी हां! हताश ना होना ही सफलता का मूलमंत्र है। क्योंकि जो हताशा हो गया उसे तो दरवाजे पर आई सफलता भी ठुकरा कर चली जाती है। कहते भी हैं कि ईश्वर उन्हीं की सहायता करते हैं जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं।कहावत यह भी है कि परिश्रम करने वाले की कभी हार नहीं होती।
      उल्लेखनीय है कि मैं इसी आधार पर पिछले 27 वर्षों से निरंतर न्यायिक संघर्ष कर रहा हूं। उपरोक्त यात्रा में असंख्य कठिनाईयां भी आ रही हैं। परंतु सौभाग्य यह है कि सफलताओं ने भी दामन थामा और सम्पूर्ण विजयश्री प्राप्त करने के निकट पहुंच चुका हूं।
      जैसे विभागीय भ्रष्ट एवं क्रूर अधिकारियों ने मुझे सताया और पागल बना कर न्यायालय में पागल सिद्ध भी कर दिया। समाचार पत्र बेच कर जीवनयापन किया। हताश होने के स्थान पर बेटे को इंजीनियरिंग की उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त करने में सकारात्मक भूमिका निभाई। अधिवक्ताओं के धोखे व दलाली के कारण न्यायिक यात्रा लम्बी होती गई। किन्तु हताशा के स्थान पर माननीय प्रधानमंत्री एवं महामहिम राष्ट्रपति जी को खुलकर पत्र लिखे‌। सूचना के अधिकार का भी सहारा लिया।
      जिनके फलस्वरूप माननीय दिव्यांगजन न्यायालय में पहुंचा। जहां जमकर संघर्ष हुआ और अपराधियों के साथ-साथ कुछ भ्रष्ट डाक्टरों के भी छक्के छुड़ाए। वहीं विभाग ने यह भी लिखित में कहा कि उन्होंने मेरे ऊपर देशद्रोह का आरोप ही नहीं लगाया और अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) नई दिल्ली के मनोविशेषज्ञों के बोर्ड ने भी प्रमाणित कर दिया कि इसमें किसी भी प्रकार की मनोविकृति नहीं है और वर्तमान में ना ही यह दिव्यांग है। जिससे दिव्यांजन न्यायालय ने मुश्किल से यह कहते हुए मुझसे यह कहते हुए पीछा छुड़ाया एवं संक्षिप्त सा आदेश पारित करते हुए कहा कि हम मात्र दिव्यांगजनों की सुनवाई करते हैं और तुम दिव्यांग नहीं हो। जिस पर वह मेरे 207 पन्नों की याचिका पर सम्पूर्ण सकारण आदेश देने से बच गये। 
      वर्णनीय है कि निरंतर संघर्ष के कारण अब माननीय जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय में स्वयं याचिक, पुनर्विचार याचिका और अपील करने में सक्षम होकर व्यक्तिगत रूप से माननीय न्यायाधीश के समक्ष उपस्थित हो रहा हूं और फेसबुक मित्रों की सहायता से सामाजिक शोरगुल से अलग एवं हताश ना होते हुए "सम्पूर्ण विजयश्री" की सफलता के सुनहरे स्वप्नों में खोया हुआ है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी बिल्कुल हताश न होना ही सफलता का मूल मंत्र है 
भारत के प्रधानमंत्री एवं प्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय श्री अटल बिहारी वाजपेई जी की पंक्तियां याद आ गयीं 
 छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता।
 टूटे दिल से कोई खड़ा नहीं होता।
 यदि कोई व्यक्ति किसी कारण बस अपना लक्ष्य प्राप्त करने में विफल हुआ हो तो निराशा के समंदर में गोते लगाने की बजाय यह विचार मन में लाना चाहिए कि विफलता में ही सफलता के सूत्र  छिपा है ।
यह सोचना चाहिए कि मानव जीवन अनमोल है और कुछ विशेष करने के लिए ही जीवन प्राप्त हुआ है ।
सफलता ,असफलता के पीछे नहीं जाना चाहिए और अपने जीवन को ही ईश्वर का अनमोल उपहार मानना चाहिए ।
ऐसे बहुत से कार्य ईश्वर सौपे हैं जिनकी जिम्मेदारी उस व्यक्ति के ऊपर होगी ,उनको पूरा करने का रास्ता भी ईश्वर अवश्य देगा ,इस विचार के साथ उसे असफलता के तनाव से मुक्ति मिलेगी और वह फिर नई राहों की ओर मुड़ सकेगा।
वह अपनी परिस्थिति से समझौता कर नए रास्तों पर चल सकेगा व  सफलता के नए आयाम नये सूत्र खोज सकेगा और  वह एक दिन  निश्चित ही सफल होएगा ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हताशा तो मानो एक नया अवसर है सफलता प्राप्त करने का। हां, हताश होकर बैठ जाना कदापि सफलता का मूलमंत्र नहीं है। असफलता जीवन का अन्त नहीं है। संघर्ष ही जीवन है और संघर्ष करते हुए हताश क्यों होना! नन्हा बालक जब चलना सीखता है तो बार-बार गिरता है। पर वह हताश नहीं होता, वह फिर उठ खड़ा होता है और नई ऊर्जा के साथ चलता है और ऐसा करते हुए वह हर्ष से उल्लासित होता है। नन्हे बालक की यह क्रिया ही हमें यह बताने के लिए पर्याप्त है कि हताश न होना ही सफलता का मूल मंत्र है।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
 हताश न होना ही सफलता का मूल मंत्र नहीं है। सफलता का मूल मंत्र तो मेहनत और लगन मे छिपा होता है। हमें परिणाम की चिंता छोड़ कर अपना सारा ध्यान मेहनत करने में होना चाहिए। फिर सफलता स्वयं आकर हमें मिले गी।
       हमें क्या करना है वो हमें जानना जरूरी है। उस के बाद जीवन में संतुलन बनाना जरूरी है। कभी भी असफलताओं से नहीं डरना चाहिए। ।समय के अनुसार नये विचारों और योजनाओं को अपनाने से नहीं घबराना चाहिए। हताश न होना ही सफलता का मूल मंत्र नहीं है। अगर हाथ जोड़ कर बैठे रहें गे तो सामने पड़ी भोजन की थाली से निवाला अपने आप मुंह में नहीं जाएगा। हिम्मत, मेहनत और लगन जरूरी है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
आत्म मनोबल और आत्मविश्वास बहुत जरूरी है
मानव जीवन सतत  संघर्ष पूर्ण ही होता है संघर्ष है तभी जीवन में आगे बढ़ने की चाह होती है चुनौतियां सामने हो तो नए अविष्कार का भी जन्म होता है यह जीवन का एक भाग होता है
जिस दिन संसार में संघर्ष खत्म हो जाएगा उस दिन जीवन में पाने और खोने को कुछ नहीं रहेगा और सृष्टि की जो प्रगति है‌ वह अवरुद्ध हो जाएगी
मानव को हताशा और निराशा नहीं रखनी चाहिए सुख-दुख सफलता  असफलता किसी एक व्यक्ति के साथ नहीं सभी के साथ घटित होता है और हम एक दूसरे को देखकर सुनकर ही आत्मविश्वास को बढ़ाते हैं और इसे संघर्ष और निराशा से ही आशा की किरण दिखाई देती है जो संघर्ष पार कर लेते हैं वहां इतिहास रचे जाते हैं।
कई बार लोक लाज समाज की मर्यादा
के कारण भी लोग हताश हो जाते हैं
लेकिन उन्हें समझना चाहिए कि
यह संसार किसी का नहीं आज आपका कल दूसरे का आप अपने मन के विश्वास को बढ़ाइए और आगे बढ़ते
चलिए यही जीवन का सार है।
*सफलता असफलता जीवन में हर युग में था हर युग में रहेगा जब तक सृष्टि कायम है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
कहा जाता है कि "असफलता हीं सफलता की कुंजी है"। यह बात बहुत हद तक सही है। अधिकतर व्यक्ति हर कदम सफल, हर काम में सफल होने की हीं ख्वाइश रखता है। लेकिन जरूरी नहीं है कि उसे उसमें सफलता प्राप्त हो हीं। अब ऐसे वक्त व्यक्ति हताश हो जाता है,  लेकिन सही और परिश्रमी व्यक्ति दुगने उत्साह से सफलता हेतु पुनः प्रयास करता है और वह सफल भी हो जाता है। इसलिए कहा जाता है कि हताश ना होना सफलता का मूलमंत्र है,  हां क्योंकि व्यक्ति हताश ना होकर दुगने उत्साह से लगातार प्रयासरत हो जाता है फिर उसे सफ़लता भी प्राप्त हो जाती है। हमें अपने कर्म लगातार करने चाहिए सफल होना या असफल होना ये और बात है, लेकिन हताश और निराश कभी नहीं होना चाहिए अपने आप पर भरोसा रखते हुए सकारात्मक सोच होनी चाहिए फिर मंजिल और सफलता हेतु यही हमारा मूलमंत्र होना चाहिए। 
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
जी हाँ हताश न होना सफलता का मूल मंत्र है ।  हताश मन कमजोर हो जाता है तरह - तरह के विचार उसके एकाग्रता को भंग करते हैं ।इस परिस्थिती में सफलता मुश्किल होती है  ।हम उस मकड़ी से सीखें जो घर बनाते वक्त असफल होकर बार - बार गिरती है फिर भी प्रयास नहीं छोड़ती ,पुनः प्रयास में जुट जाती है और सफल होती है अतः सफलता का मूल मंत्र हताश न होना ही है ...नर हो न निराश करो मन को ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
सफलता का मूल मंत्र है प्रयास परिश्रम एकाग्रता सही निर्णय निरंतर परिश्रम करते रहना।
इस बीच कई बार ऐसी परिस्थितियां उत्पन्न हो जाती है इंसान सोचता कुछ है और वैसा नहीं हो पाता है वैसी परिस्थिति में निराशा होने लगती है और निराशा से मन घबराता है धैर्य टूटता है मन नहीं लगने लगता है भटकने की इच्छा होने लगती है और लोग भटक भी जाते हैं
निराशा होना एक मानसिक स्थिति है इस पर काबू पाना भी एक मानसिक स्थिति है वह मजबूत आत्मबल का परिचय देता है इसलिए निराश नहीं होना और व्यवधान आने पर सही रास्ता खोजना सफलता का मूल मंत्र है कहीं न कहीं निराश न होना पुनः उत्साहित होना बृज सफलता का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है मानसिक रूप से यदि इंसान मजबूत नियंत्रित और स्वतंत्र भरोसा रखता है विश्वास रखता है तो सफलता अवश्य मिलती है
- कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज की चर्चा में जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या हताश न होना ही सफलता का मूल मंत्र है तो मैं कहना चाहूंगा कि हां यह बिल्कुल सही बात है कि हताश न होना ही सफलता का मूल मंत्र है यदि हम हताश हो जाते हैं तो निराशा का भाव हमें घेर लेता है और हम अपने किसी भी कार्य को ठीक प्रकार से नहीं कर पाते इसके विपरीत जो व्यक्ति प्रत्येक दशा में अपने मनोबल को बनाए रखता है और हताश नहीं होता वह अपने सभी कार्यों को ठीक ढंग से पूरे मनोयोग से और पूरी जिम्मेदारी से समय पर पूरा कर पाता है और उसकी सफलता लगभग निश्चित ही रहती है इसलिए हमें हताश नहीं होना चाहिए प्रत्येक हालात और परिस्थिति में अपना मनोबल बनाए रखना चाहिए और यह बात याद रखनी चाहिए कि समय हमेशा परिवर्तित होता रहता है कभी भी एक सा नहीं रहता लगातार गुजरता रहता है और समय के साथ-साथ परिस्थितियां भी बदलती है और जब परिस्थितियां बदलती हैं तब व्यक्ति अपने आप को कुछ सहज महसूस करता है तथा अपने कार्यों में में भी उसे आसानी होती है इसलिए प्रत्येक दशा में अपने आप को संयमित रखें उदारता से काम ले क्रोध न करें क्रोध विवेक को खा जाता है और व्यक्ति सही समय पर सही निर्णय नहीं ले पाता जिस की हानि उसी को होती है इसलिए प्रत्येक समय में चाहे वह परिस्थितियां कितनी है निराशा को अपने आप पर हावी न होने दें और अपने को संयमित रखते हुए हताशा के भाव को दूर रखते हुए अपने कार्य को करते रहे पूरी निष्ठा और ईमानदारी के साथ ....!
 - प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
जी बिल्कुल, हताश ना होना ही सफलता का मूल मंत्र है। हताशा इंसान को शोक के सागर में डुबो देती है, उसकी सोच को बदल कर नकारात्मक सोच में परिणित कर देती है। इंसान अपने आप को हर समय निराशावादी सोच के घेरे में घिरा हुआ पाता है। इंसान को हताश होने की बजाय सकारात्मक सोच रख कर परिस्थिति को सुधारने की कोशिश करना चाहिए एवं निराशावादी सोच से उबरने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। सकारात्मक सोच से आगे का रास्ता स्पष्ट नजर आने लगता है  जो की सफलता के लिए प्रथम सोपान का काम करता है। अतः व्यक्ति को हताश होने की  बजाय सही सोच के साथ सफलता हेतु प्रयासरत होना चाहिए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
कहा गया है कि " करत- करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान। रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निशान।"  ये बहुत ही प्रेरणादायक मूलमंत्र है। संक्षिप्तः आशय यही है कि  हमें  कभी भी हताश नहीं होना चाहिए और जो उद्देश्य, संकल्प एवं योजना बनाई है उसमें असफलता मिलने पर हतोत्साहित नहीं होना चाहिए बल्कि असफल होने के जो कारण हैं उन्हें दूर करने का प्रयास करना चाहिए। सकारात्मक सोच का आधार यही है कि हताश न होना ही सफलता का मूलमंत्र है। याने कि हताश होना किसी काम में सफलता पाने के लिए जितना बाधक है, उत्साहित रहना उतना ही सुलभ और सुगम रास्ता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
हताश होना तो मानव की मानसिक स्थिति है, जिसे कोई भी रोक नहीं सकता। विशेष प्रयत्न से किया गया कार्य जब सम्पन्न नहीं होता तो व्यक्ति हताश होगा ही। परन्तु इससे बाहर निकलना ही मानव की दृढ़ता का प्रतीक है। असफलता का विश्लेषण सही तरीके से तभी हो सकता है जब हताशा के विचार से उबरा जाए। 
 जब हताश शख्स अपने-आप को उस मानसिक आघात से बाहर निकाल लेता है , तभी वह कर्मवीर कहलाता है। तभी सफलता भी कदम चूमती है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
     जीवन वृत्त छाया हैं, जहाँ सफलता   और असफलता का सामना करना पड़ता हैं। जिसने अपनी इंद्रियों को बस में कर लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं और सफलता मिलती जाती हैं। कभी हताश ना होना ही सफलता का मूलमंत्र हैं। आज के दौर में सफलता प्राप्त करना काफी मुश्किल हो गया हैं, व्यवस्थाओं में अनेकों घटनाओं का जन्म होते जा रहा हैं, मन चंचलता की ओर अग्रसर हैं, आवश्यकताओं की पूर्ति नहीं होने से मन विचलित होते जा रहा हैं, परिवारजनों की जिम्मेदारी का निर्वाह करते हैं और तरह-तरह की परेशानियों को देखना पड़ता हैं और यही से प्रारंभ होता हैं, जीवनशैली का बदलाव, उससे संघर्षों का सिलसिला शुरू हो जाता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
हताश शब्द ही अपने आप में निराशा का भाव है जो व्यक्ति के भीतर नकारात्मकता की धुंध छा देता है  ।दुर्भाग्यवश कई बार व्यक्ति ऐसे कदम भी उठा लेता है जो उसकी जान पर भारी हो जाते हैं  । निराशा जिस व्यक्ति को भी घेर लेती है वह ऐसी निम्न मनोदशा में पहुंच जाता है कि किसी भी काम में रुचि नहीं रहती, यहां तक कि उसे अपना जीवन भी बोझ लगने लगता है । 
सर्वप्रथम मानव जीवन के महत्व पर अवश्य ध्यान देना चाहिये यह जीवन एक अनोखा सफर है जन्म से लेकर मृत्यु तक अच्छी -बुरी अनुकूल -प्रतिकूल घटनाएं हमारे जीवन में घटती रहती है,  विवेकशील प्राणी होने के नाते घटनाओं ,बाधाओं पर नियंत्रण पाया जा सकता है । मनोबल को सबल बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए  और आखिर प्रतिकूल घटनाओं से सबक सीखते हुए जीवन में अनुकूलता लाने का प्रयास कर सकते हैं । जीवन में सफलता पाने का मूल मंत्र सबसे बड़ा यही है कि हम निराश या  हताश न  होकर जीवन को सफल बनाने के लिए 
स्कारात्मकता बनाए रखें  और अपने विवेक को सदा जागृत रखें
 ताकि छोटी-छोटी विघ्न/ बाधाओं से घबराकर संतुलन न खो  बैठे ।
जीवन केवल अस्थिर धूप छाँव का मेल है  और निराशा आसमान में छाए हुए बादल की भांति है जो बड़ी देर नहीं टिकता ।  अतः हमें यह समझना चाहिए कि कोई भी कठिन परिस्थिति  केवल  हमारी शक्ति सामर्थ्य की  परीक्षा लेती है , हमारे मनोबल का आकलन करती है । हमें सक्षम ,सफल ,अनुभवी भी बनाती है । यही जीवन में सफलता का मूल मंत्र है ।
 - शीला सिह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
हताश या परेशान ना होना ही सफलता का मूल मंत्र है। यदि इंसान किसी कारण बस अपना लक्ष्य प्राप्त  करने में विफल होते हैं, तो निराश के समंदर में गोते लगाने की बजाय विचार मन में लाएं की विफलता में ही सफलता के मूल मंत्र छूपा हुआ है। इंसान को  सोचना चाहिए मानव जीवन अनमोल है,हर व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार कुछ विशेष करने के लिए जीवन मिला है। अतः जीवन में हताश ना होना चाहिए। जीवन में सफलता पाने के लिए कई रास्ते हैं एक में असफल  हैं दूसरे रास्ते अपनाए उसमें सफलता मिलेगी। जीवन अनमोल है इसे हताश होकर बैठ जाना बुद्धिमत्ता नहीं है।
लेखक का विचार:-हताश परेशान ना होना सफलता का मूल मंत्र है और यही परम सुख का आनंद देता है । उत्साह मनुष्य को आगे बढ़ने और अच्छे कर्म करने को प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफलता बनाता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
हताशा न होना ही सफलता का मूलमंत्र भले ही न हो, पर हताशा न होना सफलता की प्रथम सीढ़ी अवश्य है. यदि हम किसी कारणवश अपना लक्ष्य प्राप्त करने में विफल हुए हों, तो निराशा के समंदर में गोते लगाने की बजाय यह विचार मन में लाएं, कि विफलता में ही सफलता के सूत्र छिपे हैं. हताशा न होने से हम विफलता के कारणों पर चिंतन-मनन-मंथन कर सकेंगे, कोई अन्य विकल्प ढूंढ सकेंगे और सफलता की ओर कदम बढ़ा सकेंगे.  युवाओं की तरह कुछ बच्चों को भी पढ़ाई-लिखाई में असफलता मिलती है या किसी गलती पर उन्हें बड़ों की डांट मिल जाती है, तो वे हताश-निराश हो जाते हैं. कुंठित होकर वे कुछ गलत कदम भी उठा लेते हैं. यह सही नहीं है. बच्चों के मामले में माता-पिता की जिम्मेदारी बनती है कि वे छोटी उम्र से ही बच्चों के मन में यह बात बिठाना शुरू कर दें कि मानव जीवन अनमोल है और हर व्यक्ति को कुछ विशेष करने के लिए ही यह जीवन मिला है. असफलता या सफलता के पीछे अपना जीवन व्यर्थ न करें. ऐसे विचार संस्कारित करने पर हताशा नहीं होगी और हताशा न होना सफलता का मूलमंत्र बन सकता है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत"। मन में हताशा का होना ही मनुष्य के हारने का कारण बन जाता है। जीवन में अनेक बार ऐसी परिस्थितियां मनुष्य के समक्ष आ जाती हैं, जब वह कमजोर पड़कर हताश हो जाता है। और उसके हताश होने से परिस्थितियों की नकारात्मकता उसको सफलता से दूर ढकेल देती है।
हताशा ना होना ही सफलता का मूल मंत्र है.... इस वाक्य में पूर्णतः सच्चाई है। क्योंकि सफलता की प्राप्ति हेतु संघर्ष करना पड़ता है। इस संघर्ष के समय अनेक कारक मन को हताशा के द्वार पर खड़ा कर देते हैं। हताशा सफलता की ओर बढ़ते कदमों को पीछे खींचने का कार्य करती है।
इसलिए मनुष्य को सदैव अपने मन-मस्तिष्क की दृढ़ता को बनाए रखते हुए हताशा जैसी नकारात्मक प्रवृति को स्वयं से दूर रखना चाहिए ।
"एक हसीन खुशनुमा ख्वाब है जिन्दगी, 
हताशा-निराशा में क्यों गुजारी जाए। 
देर से ही सही हक़ीक़त में बदलेंगे ख्वाब,
दिल में आशा की किरण तो बसाई जाए।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
नर हो न निराश करो मन को 
कुछ काम करो, कुछ काम करो l 
जग में रहकर तुम नाम करो ll 
      पुरुष वह है जो मजबूत हो, दृढ़ हो, मुसीबतों से लड़ने की ताकत हो l पुरुष हर निराशा को आशा में बदलने की क्षमता रखता है l उसमें चिंगारी है, जिससे भीषण आग प्रज्वलित कर सकता है l गाँधी जी अकेले अंग्रेजी सरकार के विरुद्ध खड़े हुए, सुभाष आज़ाद हिंद फौज लेकर अंग्रेजों से भिड़ गया, अकेला प्रताप अकबर से लड़ गया, अकेला जुगनू अँधेरी रात से लडता है, दिया रात को दिन में बदलने की हिम्मत रखता है l बड़े से बडा अँधेरा भी दीपक को निगल नहीं सकता l अतः मनुष्य तुम जहाँ भी हो संघर्ष करो l 
हताश न होना ही सफलता का मूल मंत्र है l 
        चलते चलते -----
जब नाव जल में छोड़ दी 
तूफान ही में मोड़ दी 
दे दी चुनौती सिंधु को 
फिर धार क्या मझधार क्या? 
   - डॉo छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
सफलता का कोई एक सुनिश्चित फार्मूला,या मूलमंत्र नहीं है। इसके लिए बहुत से गुण प्रभावी होते है। हताश न होना, उनमें से एक होता है, लेकिन मूलमंत्र है,यह तो नहीं मान सकते। हताश न होना यानि आशान्वित होना,सफलता प्राप्ति के प्रतिशत को बढ़ा देता है। लेकिन आशान्वित हो,कार्य न करना असफलता ही दिलाएगा। कक्षा सात-आठ में पढ़ा था
उद्यमेन हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथैः ।
न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगाः ॥
अर्थात उद्यम से ही कार्य सफल होते हैं, ना कि मनोरथों से। ठीक उसी प्रकार सोए हुए शेर के मुख में हिरण नहीं आते।
हताश होने पर मानव अपना 100% उद्यम,प्रयास नहीं करता और सफलता तो मांगती है सौ प्रतिशत कार्य। तभी तो शून्य दशमलव एक प्रतिशत प्रयास की कमी असफल कर देती है,और यह होता है हताशा के क्षणों में ही। इसमें धैर्य,लगन,कार्य के प्रति समर्पण भाव, कार्ययोजना आदि अनेक गुण सहभागी होते हैं। 
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -  उत्तर प्रदेश
 हताश ना होना है सफलता का एक अंग है सफलता का मूल मंत्र लक्ष्य का पता होना एवं समझदारी के साथ लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास करना ही सफलता का मूल मंत्र है। हताश न होने से सफलता मिल जाएगा ऐसा बात नहीं है। हताश ना होना और गलती का पता लगाकर पुनर्विचार कर प्रयास करते रहने से ही सफलता मिलती है ।कोई भी लक्ष्य का पता लगाइए बिना कार्य करने से सफलता नहीं मिलती। अतः कोई भी कार्य करने के पूर्व लक्ष्य निर्धारण करना और उस लक्ष्य को पाने के लिए पूर्ण समझ और तीव्र इच्छा शक्ति होने से ही सफलतापूर्वक लक्ष्य तक पहुंचा जा सकता है। हताश ना होकर, लेकिन पुनः प्रयास ना करने से सफलता नहीं मिलती है ।अतः अंतिम में यही कहा जा सकता है कि हताश ना होना सफलता का एक कड़ी है। लक्ष्य निर्धारण कर तीव्र शक्ति और पूर्ण समझदारी ही सफलता का मूल मंत्र है।
 - उर्मिला सिधार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
शत प्रतिशत सही है कि किसी भी स्थिति में हताश ना होना ही सफलता का मूलमंत्र है। याने निराश हो जाना,हाथ पर हाथ रखकर बैठ जाना, प्रयास करना छोड़ देना,कुछ भी करने से कतराना।अर्थात हम मान लें कि हम असफल हो चुके हैं, हार चुके हैं। 
   जितने महान लोग हुए हैं, वे सभी पहली कोशिश में सफल नहीं हुए हैं। असफल होने के बाद उन्होंने चिंतन किया कि हमारे प्रयास में कहाँ कमी थी ।उन्होंने कमियों को दूर किया और हताशा छोड़ फिर से कोशिश करना शुरू किया। पहले से ज्यादा परिश्रम किया,अधिक बुद्धि का उपयोग किया और अपनी सोच को सकारात्मक रखकर। 
   वे थके नहीं, रूके नहीं और सकारात्मक प्रयास करते रहे और एक दिन सफलता उनके हाथ लगी।
  कहते हैं ना कि प्रयास या तो सफलता दिलायेगी या फिर अनुभव।दोनों ही स्थिति लाभप्रद होती है। 
   हाँ शर्त यही है कि सफल होने के लिए लक्ष्य का पीछा करना है बिना निराश या हताश हुए।
  अन्ततः सभी को पता है कि कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती।
- डॉ•मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
निराशाजनक और हताश ना होना ही सफलता का मूलमंत्र है हम अपने  जीवन मे सफलतापूर्वक गतिविधियों को संपन्न तभी कर सकते जब हम हताश और निराश ना हो ।जीवन की हर परिस्थितियों मे हम अपना भविष्यफल तय कर सकते हैं।हमें कभी भी निराशाजनक नही होना चाहिए कठिनाइयों का सामना करना ही जीवन की उच्चतम स्तर की जंग है।हम आज अपने अभिमान और दिल की सच्चाई को खोते जा रहे।और उम्मीद की जाल मे फंसते जा रहे है।जिस कारण हम बेहद जीवन से हार जाते है जब उम्मीद टुटती है तब बेहद तकलीफ़ होती है ।हम हताश होने लगते है।जीवन चक्रव्यूह मे हम फंस जाते है।जो सफलता को असफलता मे बदलने लगता है।जीवन की हर विषम परिस्थितियों मे अपना काम ईमानदारी और निष्ठा से करनी चाहिए ताकि सफलता का दामन थाम कर हम प्रेरणादायक बन सके।सफलता का मूलमंत्र हताश नही होना है।हम चाहे कितना भी हताश हो अपने जीवन की मुश्किलों मे सामान्य तौर पर हिम्मत से कार्य करने की जरूरत है।जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता संवेदनशील और आशावादी होन है ताकि सफलताओं का दामन हमेशा हमारे हाथ हो।हम हताश होकर जिंदगी मे अपना नुकसान करते है और अपने विश्वास को खो देते है।हमें धैर्यवान होकर हर मुश्किलों का सामना करना चाहिए।जीवन मे जो लिखा हुआ है होना स्वाभाविक है खोना पाना है।जन्म मृत्यु निश्चित है।परंतु हमे निराकरण होकर हताश नही होना है एक रास्ते बंद हो तो दुसरे राह निश्चित तौर पर मिलती है जिसपर हम चलकर अपनी मंजिल तय करते है ।हताशा जीवन का वह विष है जो जहरीले सांप की भांति होती है जो जीवन को बेह विषाणु उक्त बना देती है ।जीवन मे सफलता को पाने के लिए हताश नही होना चाहिए और जीवन को सरलता से जीकर प्रेरणादायक बनना है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
हाँ ! हताशा ना होना ही सफलता का मूलमंत्र है। यदि हम हताश होकर कोई काम करना छोड़ दें तो फिर सफल कैसे होंगे। सफल होने के लिए  हताश नहीं होना पड़ेगा बल्कि धैर्य धारण करके काम करना पड़ेगा। हताशा हमें कमजोर बनाती है। जो हताश नहीं होते हैं वो ही सफलता प्राप्त करते हैं। पेड़ लगाने पर फल तुरंत नहीं मिल जाता है उसके लिए धैर्य धारण कर इंतजार करना पड़ता है। फूल का पौधा लगाकर माली उसे पानी से सींचता रहता है तब समय आने पर उसमें फूल फूलते हैं। यदि माली हताश होकर पौधों को सींचना बंद कर दे तो पौधे सुख जाएंगे। इसलिए कहा गया है माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये फल होय। इसलिए हम कह सकते हैं कि हताशा ना होना ही सफलता का मूलमंत्र है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
हताश  न होना निःसंदेह सफलता का मूलमंत्र है परन्तु यह भी सर्वविदित तथ्य है की मनुष्य जबअथक प्रयास के बाद जब असफल होता है तो एक बार निराश अवश्य होता है .यह मानव स्वभाव है .
असफलता के पश्चात जो व्यक्ति मैदान छोड़कर भाग जाते हैं या इ मान लेते हैं की वे सफलता प्राप्त ही नहीं कर सकते अथवा जिन्हें अपनी योग्यता पर संदेह होने लगता है कभी सफलता प्राप्त नहीं करते
सफलता तो उनके कदम चूमती है जो निराश होने के पश्चात पुनः दृढ़ निश्चय के साथ नए  सिरे से प्रयास करते हैं व अपनी असफलता से सीखते हैं और स्वयं मैं सुधार लाते है और हिम्मत नहीं हारते
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
"रूकाबटें आती हैं सफलता की राहों में, यह कौन नहीं जानता, फिर भी  वह मंजिल पा ही लेता है जो हार नहीं मानता"। आईये आज बात करते हैं सफलता पर  कि सफलता पाने का मूल मंत्र क्या है, कई लोग  म़जिल को देखकर ही घबरा जाते हैं या  जल्दी ही हताश हो जाते हैं, तो जानते हैं  हताश न होना मंजिल का डट कर मुकाबला करना ही सफलता का मूल मंत्र है। मेरे ख्याल में हताश परेशान न होना सफलता का मूल मंत्र है और यही परम सुख का आनंद देता है, क्योंकी उत्साह मनुष्य कोआगे  वढ़ने औरअच्छे कर्म करने को प्रेरित करता हैऔर उत्साह से ही कर्म सफल बनता है। यह एक बहुत वड़ा सवाल है क् सफल कैसे बनें क्योंकी मानलिक तनाव मैं सफलता पाना ना मुमकिन हो जाता है, सफल वनने के लिए योयनाबृद तरीके से विषेश प्रयास करना पड़ते हैं। हर व्यक्ति चाहता है कि   उसके जीने का मायना इतना हो कि वो  इतना सक्षम हो कि वो अपनी और अपने परिजनों की  आवश्यकताओं को पुरा कर सके, कहने का मतलब हर इंसान चाहता है उसके पास काम, दाम, सम्मान और कमान हो तभी वे सफल इंसान कहलाता है, लेकिन इसके लिए सफल इंसान के पास स्पष्ट दृष्टिकोण होना जरूरी है ऐसे तो मेहनत बहुत करते हैं लेकिन सफलता सभी के हाथ नही़ आती क्येंकी      उन्हें प्रस्तुत समस्या की समझ नहीं आती 
जबकि सफलता के लिए कर्म को पूर्ण लगन व उत्साह से करना पड़ता है, इसके लिए सचेत और जागरूक रहने की जरूरत है तथा साकारात्मक दृष्टिकोण भी जरूरी है, सफलता पाने के लिए कुछ अन्य मूल मंत्र इस प्रकार हैं, 
अपनीक्षमताओं़और कमजेरियों को पहचाने तथा हमें हर कदम सोच समझ कर ऱखना चाहिए, इमानदारी और उदारता को बनाए ऱखें, इससे सहयोग की इमारत वनी रहती है, दुसरों की नकल से बचें, आपना मार्ग खुद निर्माण करें, अपनी क्षमताओं को पहचानें तधा साकारात्मक सोच रखें क्योंकी आशावाद जहाज पर चढ कर हम हल मुसीबत के तुफानों को पार कर सकते हैं। 
आखिरकार यही कहुंगा सतत प्रयास, अवलोकनऔर अभ्यास से सफलता  हर हाल संभव हैऔर हताश होने से असफलता इसलिए जिंदगी में कभी भी किसी भी कार्य के लिए हताश नहीं होना चाहिए, सच है, 
"खुल जाएंगे  सभी रास्ते, 
रूकावटों से लड़ तो सही, 
सब होगा हासिल तू जिद्द पर 
अड़ तो सही"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
जी हाँ बिल्कुल, ये सच है कि हताशा इंसान को गलत दिशा में ले जाती है, इंसान का जीवन को देखने का नज़रिया ही बदल देती है | हताश इंसान समाज को केवल बुराई की नज़र से ही देखता है | 
यदि हम समाज को एक आशावादी नज़रिए से नहीं देख सकते तो हम किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त नहीं कर सकते | 
हम एक स्करात्मक ऊर्जा के साथ आगे बड़ते रहेंगे और हताशा को अपने विचारों में पनपने नहीं देंगे तो सफलता हमारे कदम चूमेगी | 
गलतियों से ही हम सीखते हैं, अगर हम कुछ करेंगे ही नहीं तो गलती का तो सवाल ही नहीं उठता | गलती करना इस बात का सबूत है कि हमने प्रयास किया और अगर हमें यदि किसी काम में सफलता नहीं मिलती तो हम हताशा हो जाते हैं और कोशिश करना ही छोड़ देते हैं जोकि गलत है, हम बिना हताश हुए निरंतर प्रयास करते रहे तो ही सफलता को प्राप्त किया जा सकता है |
कहा भी गया है:-
करत- करत अभ्यास के जद्दमत होत सुजान
इसलिए हताशा को दूर रख कर ही हम जीवन में सफलता प्राप्त कर सकते हैं और यही जीवन का मूल मंत्र है | 
- मोनिका सिंह
डलहौजी -  हिमाचल प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  हताश में जल्दीबाजी ना करे । कुछ समय का अन्तराल देना का प्रयास करें । यही सफलता का मूलमंत्र बन जाता है । 
- बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान

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