क्या प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है ?

प्रेम से बहुत कुछ पा सकते है । परन्तु सब कुछ सम्भव नहीं है । यही प्रेम की सीमाएं कहं सकते हैं । बाकी प्रेम बहुत बड़ा दुनियां का शब्द के साथ - साथ ज्ञान का भण्डार है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
प्रेम से सबकुछ प्राप्त किया जा सकता प्रेम ही शास्वत है प्रेम ही दुनियां संसार है।प्रेम मे कायनात भी झुक जाता है प्रेम ही जग सार है। जीवन के हर एक मोड़ पर हमें अपने अस्तित्व को आजमाने के लिए एक प्रेम एहसास की जरूरत होती है।परंतु प्रेम की परिभाषा हमेशा यादों में बेहद मार्मिक और पावन है। जिंदगी बहुत ही खूबसूरत और मार्मिकता के भाव में प्रेम हो जाते हैं।इस राह में एक हमसफ़र का साथ देना बेहद  जरूरी होता है । प्रेम ही है जो मानव जिंदगी को खूबसूरत प्रगति पथ पर ले जाते हैं प्रेम एहसासों का वचन है।एक डोर है जो आत्मा के रूपों तक पहुंच कर आपसी  तालमेल  में और सानिध्य को उजागर करती है। वासना के स्वभाव को प्रेम रूपी मेंहदी लगा करके तपस्या का दामन थाम भावनाओं को  संवेदनशील होने का संकेत देता है प्रेम। जब हम किसी की यादों में रहते हैं और प्रेम की परिभाषा ढूंढने लगते हैं तो निराकार की एक अद्भुत अस्तित्व  बनती है।और  तस्वीर जो निगाहों में बस कर आत्मा  रूहों तक जाती है कभी भी इसका अंदाजा हम शब्दों मे बाँध कर नही लगा सकते है।प्रेम की रूह को पहचान पाना बेहद मुश्किल होता है ,एहसासों के खुशबू में हवाओं के झोंकों के साथ सागर के तरंगों के साथ प्रेम मोती प्रेम शंख के रूप आकार में हमारे स्वरूप में हमारे मानसिक भाव में समाविष्ट होता है।निशानी है प्रेम जब इंसान किसी से प्रेम  में होता है  तो सब कुछ जीवन की डोर अच्छी और मधुर होती है और तपस्या से मनुष्य जीवन जीने की आरजू करता है अपने जज्बात को लिखकर शब्दों के माध्यम से कलमकार प्रेम की परिभाषा लिखने की कोशिश अवश्य करते हैं ।परंतु प्रेम का कोई आकार कोई परिभाषा नहीं होता  यह तो रग-रग और सच्चाई के कण-कण में विराजमान हैं।आस्तिक होना भी एक प्रेम का परिचायक होता है मानव जीवन में प्रीत निभाना बेहद कठिन होता है जिस तरह कली अपने अस्तित्व को बनाने के लिए अपने जीवन को काँटों के बीच मे समावेश हो कर खिलने का सूचकांक बनती है । उसी प्रकार प्रेम भाव परिश्रम से मानवीय संवेदनाओं को उजागर करता है । प्रेम जीवन को शांति मार्ग पथ निर्माण राहत सुकून देने का कार्य करता है हम कभी-कभी उलझन में प्रेम धागों को उलझा देते हैं ।परंतु इस अवस्था में उलझन भी एक मीठास पैदा करती है इसके स्वरूप निराले होते हैं आत्मा परमात्मा की एक छवि को हम अपने प्रेम भाव से पा सकते है। और अपने छवि को साबित करते हैं ।जिस प्रकार मां की ममता अपरंपार और अद्भुत होती है उसी प्रकार प्रेम बड़े ही ममता स्वभाव की परिधि होती है प्रेम बड़ा कठिन होता है परंतु सच्चाई विश्वास और आस्था से इसे  निभाया जा सकता है ।इसका रूप निराकार होता है इसे परिभाषित नहीं कर सकते परंतु इसके स्वरूप को एहसास महसूस जरूर कर सकते हैं। दुनिया में प्रेम मानवता को संवेदना देती है और मानवीय भावनाओं को प्रफुल्लित कर टुटे हृदय मे दीपक जलाती है।प्रेम को सीमाओं मे बाँध कर जोर जबरदस्ती से हासिल कतई नही कर सकते है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है पर इसके लिए ‘सब कुछ’ की परिभाषा जाननी जरूरी है। ईश्वर से भी प्रेम से मांगा जाए तो सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। बस यह जरूरी है कि प्रेम से मांगने वाले की मांग उचित हो, नैतिक हो, किसी को नुकसान पहुंचाने वाली न हो, संभव हो या देने वाले की सामथ्र्य में हो। यह कलयुग है। इस युग में ‘सब कुछ’ में कुछ भी हो सकता है। अतः देने वाला यह जानने का अधिकार रखता है कि जो भी प्रेम से मांगा जा रहा है यदि वह उपरोक्त पैमानों के अन्तर्गत है।  
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
सर्वप्रथम प्रेम की परिभाषा को समझना होगा कि प्रेम है क्या? सच देखा जाए तो प्रेम परिभाषा से भी परे है। शब्दों के द्वारा इसे व्यक्त नहीं किया जा सकता। समुद्र की गहराई को नापा जा सकता है लेकिन प्रेम की गहराई तक नहीं पहुंचा जा सकता है। प्रेम एक अवस्था है, इबादत है ,पूजा है ,प्रार्थना है ,नशा है जिसकी कोई सीमा नहीं है । न नापा जाये न ताैला जाये । रही बात प्रेम से सब कुछ प्राप्त करने की ऐसा प्रेम चापलूसी ,स्वार्थ, लालच से परे होना चाहिए। दिखावा भी प्रेम की महत्ता को कम करता है। प्रेम से दूसरों का विश्वास जीता जा सकता है। कठिन कार्य को आसान बनाया जा सकता है। प्यार प्रेम सुदृढ़ पारिवारिक संबंधों का आधार है। प्यार प्रेम का वातावरण घर में खुशियां लाता है। छोटे बड़ों का आदर करते हैं आज्ञा का पालन करते हैं। प्रेम सौहार्द को जन्म देता है। मनुष्य जीवन की आधे से ज्यादा समस्याएं प्रेम भाव के आधार पर ही सुलझा लेता है । महापुरुषों के प्रवचनों में  प्रेम अमूल्य भाव है जो ईश्वर प्राप्ति का मार्ग दिखाता है। आपसी कटुता प्रेम से ही दूर की जा सकती है । प्रेमी स्वभाव से युक्त व्यक्ति समाज में इज्जत पाता है सभा का श्रृंगार रूप होता है । सीमाओं पर भी केवल युद्ध को मुख्यता न देते हुए प्रेम भाव की नीति को अपनाया जाना चाहिए। दो देशों द्वारा किसी मसले  या शर्त पर की गई आपसी संधि का आधार भी अधिकतर  प्रेम भाव को ही मजबूती देता है । पड़ोसी पड़ोसी का आपसी व्यवहार भी प्रेम से ही सौहार्दपूर्ण बनता है । अतः प्रेम की भाषा को अपनाते हुए जीवन शांतिमय रूप से कट जाता है ।
 - शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
प्रेम से लोग जानवर को भी वश में कर लेतें हैं, इसका मतलब प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। प्रेम के जाल में ही फँसकर लड़कियाँ अपना सब कुछ गवां बैठती हैं। माँ-बाप जाति धर्म सबको तिलांजलि दे कर घर से भाग जाती है। प्रेम के ही वश में आकर व्यक्ति जो नहीं करने का वो भी कर गुजरता है।
प्रेम के वश में ही भगवान शबरी के जूठे बेर कहा लेते हैं। प्रेम के ही वश में भगवान भक्त के बुलावे पर उसकी रक्षा के लिए नंगे पैर दौड़े चले आते हैं। बच्चे जितना प्रेम से सब कुछ समझ जाते हैं उतना डाँटने डपटने से नहीं समझ पाते हैं। और जिद्दी हो जाते हैं। प्रेम की भाषा सभी समझते हैं।
प्रेम के कारण ही भगवान दुर्योधन के घर मेवा-मिष्ठान,पुआ-पकवान छोड़ कर महात्मा विदुर के घर साग रोटी खाते हैं।
प्रेम से ही लोकनायक जयप्रकाश नारायण चम्बल के प्रसिद्ध डाकू मोहर सिंह वगैरह को समर्पण के लिए राजी करवाये थे।
प्रेम एक ऐसी दवा है जो हर बीमारी को ठीक कर देती है। अपने देश से प्रेम के चलते ही सैनिक सीमा पर अपनी जान सहर्ष गवांते हैं।
इसलिए हम ये कह सकते हैं कि प्रेम से सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
प्रेम एक भावना है मधुर भावना है वशीकरण मंत्र है इस वशीकरण मंत्र से दैत्य दानव को भी देवता बनाया जा सकता है मधुर वाणी प्रेम से बोला गया कहां गया कोई भी विषय प्रसंग दूसरे को शीतल करती है और साथ ही साथ में व्यक्ति स्वयं भी शीतल हो जाता है इसलिए प्रेम से किसी भी चीज को वश में किया जा सकता है रहीम कवि का दोहा है रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय टूटे तो फिर ना जुड़े जुड़े गांठ पड़ जाए।
रिश्तो में परिवार में समाज में किसी अन्य सार्वजनिक जगह पर मधुर वाणी और प्रेम से बोले गए शब्द से किसी भी मनवांछित चीजों को आप आसानी से पा सकते हैं लेकिन यह भाषा काल्पनिक या आडंबर नहीं होनी चाहिए दिल से प्रेम से निकलने वाली मधुर वाणी ही इतना बड़ा प्राप्ति कर सकता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला पवित्र भाव है।यह ऐसा भाव है जो कठिन से कठिन परिस्थिति में आप अपनी इच्छा के अनुसार पा सकते हैं।
प्रेम का जीवन में वास्तविक महत्व है उसे शब्दों में व्यक्त कर पाना निश्चित रूप से कठिन है। हम सभी मूल रूप मैं मानव है, किसी भी राष्ट्र,समाज,परिवार व धर्म के सदस्य होने से पूर्व हम सब एक विश्व के सदस्य हैं। समस्त विश्व परस्पर आश्रय व परस्पर पोषण पर आधारित है यदि मानव मात्र के प्रति "प्रेम" का स्थिर बनाए रखना हो तो सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है।
लेखक का विचार:-सच्चा प्यार केवल देने और देते रहने में ही विश्वास करता है। जहां प्यार है वहां समर्पण है,और जहां समर्पण है वहां अपनापन है की भावना है
 और जहां यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है वही प्रेम की भी अंकुरित होने की संभावना है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
प्रेम जीवन का सार है, जगत का सार है, प्रकृति का सार है. प्रेम के बिना सृष्टि की सृजन की कल्पना भी नहीं की जा सकती. सागर-से गहरे, पर्वत-से ऊंचे प्रेम ने सदियों से कवियों और गीतकारों को सम्मोहित किया है. प्रेम शब्दों से परे है, इसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है. हर युग में प्रेम था, है और रहेगा. प्रेम इबादत है, प्रेम ही पूजा है, प्रार्थना है, एक नशा है जो उतरते नहीं उतरता, समय के साथ-साथ और गहरा होता जाता है. प्रेम और इसकी कथाएं दोनों ही अनंत है. प्रेम से बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है. इसके बावजूद हमारे मनीषियों ने उपाय-चतुष्ठय' (चार उपाय) साम-दाम-दंड-भेद बताए हैं. 'साम' का अर्थ है 'शांति और समझदारी के साथ व्यवहार'. जो काम साम अर्थात प्रेम, शांति और समझदारी से नहीं हो पाते, वहां कभी-कभी दाम-दंड-भेद से काम लेना आवश्यक हो जाता है. अतः सृष्टि को संयमित और संतुलित रखने के लिए प्रेम के साथ-साथ दाम-दंड-भेद का भी प्रावधान किया गया है. प्रसंग और स्थिति के अनुसार प्रेम का प्रयोग करने की अपेक्षा रखते हुए भी प्रेम की शक्ति को सीमित नहीं किया जा सकता है. प्रेम ही सृष्टि का सार है और इसकी शक्ति अपार है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
सब कुछ प्राप्त होने की परिभाषा में तो अन्य चीजें भी प्रमुख होती हैं। परन्तु भौतिक सुखों की प्राप्ति हेतु अन्य कारणों के साथ प्रेम भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। प्रेम का स्पर्श जिस हृदय को हो जाये उसे भले ही सब कुछ प्राप्त न हो परन्तु मानसिक सुख-शांति अवश्य प्राप्त हो जाती है।
'सब कुछ' की प्राप्ति मनुष्य के आवश्यकताओं और संतोष की सीमा पर निर्भर करती है। मनुष्य जीवन का प्रत्येक क्षण कुछ-न-कुछ की मांग करता रहता है। प्रेम भावना से परिपूर्ण हृदय संतोषी प्रवृति जैसी अन्य मानवीय संवेदनाओं से ओत-प्रोत रहते हैं। इसलिए यदि प्रेम से सब कुछ प्राप्त न भी किया जा सके तो भी प्रेम से मनुष्य को सब कुछ प्राप्त होने की अनुभूति अवश्य हो सकती है। 
साथ ही, प्रेम ऐसा शास्वत सत्य है कि इसकी उपस्थिति मनुष्य को सब कुछ प्राप्त होने की दिशा में अत्यावश्यक सहायक का कार्य करती है।
प्रेम भावयुक्त वाले मनुष्य, परिवार और समाज निरन्तर प्रगतिशीलता की दिशा में अग्रसर रहते हैं। इसलिए आज के भौतिकवादी समय में पारिवारिक, सामाजिक, राष्ट्रीय एवं वैश्विक उन्नति के प्रयासों में 'प्रेम' का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। 
उलझे हों जब सब स्वार्थ के जाल में, 
धरा घिरी हो भ्रष्ट समय के काल में।
नफरत का बीज जहाँ मिलता है, 
दुकानें वो सारी बन्द करायें।
दरख्त वो काट दें 'प्रेम' की कुल्हाड़ी से, 
समानता के फल जिनमें न आयें।
मिल जुलकर पथ के कंटक साफ करें, 
प्रेम रूपी वृक्षों का उपवन बनायें।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
"साक्षरों विपरीतत्वे राक्षसों भवति ध्रुवम " अर्थात प्रेम रहित साक्षर व्यक्ति भी राक्षस हो जाता है l 
    प्रेम एवं संस्कार की शून्यता एक बीमार समाज की रचना करती है और यदि मानव समुदाय को इस बीमारी से छुटकारा दिलाना है तो अपनी शिक्षा में नैतिकता एवं प्रेम का रंग भरना ही होगा l 
  कबीर ने भी कहा है -"ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित
 होय l "
मानव समुदाय में व्याप्त राग -द्वेष -ईर्ष्या यहाँ तक कि शत्रुता मिटाने के लिए प्रेमपूर्ण व्यवहार ही परमौषधि है l 
धर्म और सम्प्रदाय के नाम पर मानव हत्यारा हो गया है, क्योंकि "मर्म न काहू जाना "l धर्म का मूल तत्व प्रेम और करुणा है l जीवन प्रेम के बिना व्यर्थ है, शुष्क है, नीरस है l 
भौतिकवादी संस्कृति एवं पाश्चात्य अंधानुकरण के कारण मीरा और कृष्ण की धरती पर दृश्य -नैतिकता की ढहती दीवारें l मर्यादाओं एवं वर्जनाओं में आई दरारें और उनके मध्य कुम्हलाता हुआ मानव समुदाय जो स्वच्छंदता के उन्माद में वर्तमान एवं भविष्य की बलि चढ़ा रहा है l इन दृश्यों में कही जीवन में प्रेम के रंगों का अभाव तो नहीं? बौद्धिकता के होते हुए भी भ्रम जाल....  
    चलते चलते ------
कछू प्रीत की रीत सुनो समझो.... 
सफलता के लिए दृढ़ निश्चय, प्रेम, प्रीति, सौहार्द के साथ हमारे मंतव्य, वक्तव्य, गन्तव्य और कर्तव्य में एक रूपता होने पर ही अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति संभव है l 
      - डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है?उत्तर है हां और ना दोनों ही।  सामान्यतःप्रेम से बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि प्रेम एक भावना है, संवेदनशीलता है,प्रेम शब्द है,प्रेम आवश्यक मानवीय गुण है, प्रेम के बिना व्यक्ति और व्यक्ति का जीवन अधूरा है, अपूर्ण है। 
    इस संसार में प्रेम की भाषा,हर प्राणी समझता है। चाहे वह व्यक्ति हो या कोई जानवर। प्रेम एक सम्मोहन है जिसके आकर्षक, से कोई अछूता नहीं है। 
    सच यह भी है कि कठिन से कठिन कार्य, प्रेम के कारण संभव हो जाते हैं। इसका प्रमाण हमें अपने जीवन में, आसानी से मिल जाता है।
    दशरथ मांझी ने पहाड़ काटकर गाँव में आने-जाने का, अकेले ही रास्ता बनाया था। क्योंकि उसकी पत्नी प्रसव पीड़ा में चल बसी थी और वह पहाड़ रास्ते में बाधित हो रहा था।यह प्रेम का सटीक और आधुनिक उदाहरण हैं। परंतु खूंखार शेर या जघन्य अपराधी से हम प्रेम की, उम्मीद नहीं कर सकते।उससे हम अपने प्राणों की भीख भी नहीं मांग सकते।ऐसे लोगों के लिए प्रेम जैसी भावना या शब्दों का कोई मतलब नहीं होता है। ।
- डॉ• मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
बिलकुल प्रेम से सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है ।प्रेम स्वयं में इतना परिपूर्ण होता है कि अन्यान्य की इच्छा शेष नहीं रहती।प्रेम में सकारात्मकता का ऐसा बहाव रहता है कि कोई भी बाधा रूकावट बन कर खड़ी नहीं रह सकती।नफरत और द्वेष से बनती बात बिगड़ जाती है।क्रोध से सारा मामला पलट जाता है।लोगों के रिश्ते बिगड़ जाते हैं और व्यक्ति सिर्फ खोता ही है।कुछ पाने का तो सवाल ही नहीं उठता ।लेकिन जहाँ प्रेम है ,वहाँ प्यार भरा वातावरण होता है।लोगों के अन्दर एक दूसरे के लिए प्यार की भावना और सहयोग होता है।असाध्य कार्य भी सफल हो जाता है ।प्रेम पर संत कबीर ने कहा है-
*सबै रसायन हम किया,* *प्रेम समान ना कोये*
*रंचक तन मे संचरै, सब तन कंचन होये।*
         -  रंजना वर्मा उन्मुक्त
रांची - झारखण्ड
     प्रेम की गाथाओं का अपना एक  अपन्तव अलग महत्व हैं, जहाँ  अहसास जनों, परिवारजनों, बंधुबांधवों, मित्रवत, गुरु कुल, समसामयिक जीवन, राजतंत्र, प्रेम रसावादन, प्रेम लीला, प्रेम भक्ति जो भी हो आदि माध्यमों से आकर्षित करने तत्परता के साथ ही साथ जीवन यापन प्रभावित होता हैं। जिसनें प्रेम कला को सिख लिया तो उसे हर पल खुशी ही दिखाई देती हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं। जो सब कुछ प्राप्त कर भौतिकता की ओर अग्रसर होता हैं। प्रेम रस में इतनी शक्ति हैं, कि दुश्मन भी गर्व के साथ झुक जाता हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
प्रेम  निश्चल और निश्छल होतघ है, इसके साथर ही इसमें  त्याग और समर्पण भी निहित होता है। जब कोई इहमें पूरी तरहक्ष डूबा होता है तो निसंदेह उसे वह सब कुछ मिल जाता है,जो उसे चाहिए होता है। प्रेम एक प्रकार की आसक्ति और भक्ति होती है जिसमें तपस्या करनी होती है जो यदि पवित्र मन से की जाती है । इसके बदले में वरदान मिलता है और वह भी ऐसा जिसे मांगने की जरूरत नहीं पड़ती स्वतः ही मिल जाता है। राधा, मीरा, सूरदास, प्रहलाद ऐसे अनेक उदाहरण हैं  जिशकी भगवान के प्रति आसक्ति और भक्ति से उन्हें भगवान की प्राप्ति हुई। भगवद्गीता में भी भगवान कृष्ण जी ने  बतलाया  है कि " मनुष्य को पूजने वालों की मनुष्य मिलते हैं और मुझे पूजने वाले को मैं।"
  अतः जिससे भी प्रेम करो सच्चे मन से करो।समर्पित भावना से करो। फल प्राप्ति होगी। याने कि सार यह कि प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आज की चर्चा में जहाँ तक यह प्रश्न है कि क्या प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा हां प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता है परंतु इस रास्ते पर चलकर उपलब्धियां प्राप्त करने में थोड़ा समय लग सकता है परंतु जब हम प्यार सद्भाव के रास्ते पर चलकर कुछ प्राप्त करते हैं तो उसकी उम्र बहुत लंबी होती है क्योंकि तब आपका विरोधी कोई नहीं होता और यदि आपने गलत रास्ते पर चलकर कुछ हासिल कर लिया है तो थोड़े समय तो तो सब कुछ ठीक रहता है परंतु आप के विरोधी भी बनने लगते हैं जिनका हक आपने गलत रास्ते से चलकर हासिल कर लिया है अथवा जबरदस्ती से हासिल कर लिया है कभी ना कभी परिस्थितियां उनके भी अनुकूल होती हैं और तब वह आप पर हावी हो जाते हैं इसलिए प्रेम सौहार्द और मनुष्यता का रास्ता ही सबसे अच्छा रास्ता है और उस पर चलकर ही सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है इसमें समय अवश्य लग सकता है परंतु यह सुकून देने वाला है और आपकी ख्याति को बढ़ाने वाला होता है !
- प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश

इस प्रश्न का सीधा उत्तर है कि सब कुछ तो नहीं पर बहुत कुछ प्राप्त किया जा सकता है । प्रेम वह कुंजी है जिससे कठिन से कठिन कार्य रुपी ताले को खोला जा सकता है या खुलने के लिये तैयार किया जा सकता है । यदि हम किसी ऑफ़िस में अपने काम के बारे जाते हैं और कर्मचारी से रुखे से बात कर के अपने काम के बारे बात करते हैं तो सम्बंधित कर्मचारी का बर्ताव भी हमारे प्रति और ज्यादा रुखा होगा । यदि हम उसी काम के लिये उस कर्मचारी से प्यार और शालीनता से बात करते हैं तो उसका हमारे प्रति बर्ताव बहुत अछा और सहयोग वाला होगा । प्यार साए हम दुसरे का दिल जीत कर असम्भव काम को भी करवा सकते हैं ।
    - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
जी बिल्कुल प्रेम से ईश्वर को भी प्राप्त किया जा सकता है ,कहते हैं ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय,वाकई निष्काम एवं निस्वार्थ प्रेम से सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है।प्रेम में तो परमात्मा का वास है ।प्रेम का परिष्कृत रूप श्रद्धा है ,परिमार्जित प्रेम ईश्वरप्रदत्त होता है । 
जी बिल्कुल प्रेम से ईश्वर को भी प्राप्त किया जा सकता है ,कहते हैं ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय,वाकई निष्काम एवं निस्वार्थ प्रेम से सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है।प्रेम में तो परमात्मा का वास है ।प्रेम का परिष्कृत रूप श्रद्धा है ,परिमार्जित प्रेम ईश्वरप्रदत्त होता है ।
जी बिल्कुल प्रेम से ईश्वर को भी प्राप्त किया जा सकता है ,कहते हैं ढाई अक्षर प्रेम के पढ़े सो पंडित होय,वाकई निष्काम एवं निस्वार्थ प्रेम से सभी कुछ प्राप्त किया जा सकता है।प्रेम में तो परमात्मा का वास है ।प्रेम का परिष्कृत रूप श्रद्धा है ,परिमार्जित प्रेम ईश्वरप्रदत्त होता है ।
प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पवित्र भाव है ।दिल में उठने वाली भावनाओं को आप बखूबी व्यक्त कर सकते हैं किंतु यदि आप हृदय में किसी के प्रति प्रेम है तो आप उसे अभिव्यक्त कर ही नहीं सकते ,क्योंकि यह एक एहसास है और एहसास बेजुबान होता है उसकी कोई भाषा नहीं होती ।
जहां प्रेम है वहां समर्पण है जहां समर्पण है वह अपनापन है जहां यह भावना रूपी उपजाऊ जमीन है वही प्रेम का बीज अंकुरित होता है।
 प्रेम ही जीवन की आधारशिला है। प्रेम में बहुत शक्ति होती है जिसकी सहायता से सब कुछ संभव है ,तभी तो प्यार की बेजुबान बोली जानवर भी समझते हैं।
 सारे शब्दों के अर्थ जहां जाकर अर्थ रहित हो जाते हैं वहीं से प्रेम के बीच का प्रस्फुटन होता है ।
प्रेम का अर्थ शब्दों से परे है।प्रेम ही ईश्वर है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
"तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुं और। 
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर"। 
तुलसीदास जी कहते हैं कि प्रेम वाणी सभी और सुख पैदा करती है इसलिए कटु वाणी  त्याग कर प्रेम की भाषा ही वोलनी चाहिए क्योंकी प्रेम से सबकुछ प्राप्त किया जा सकता है। 
तो आईये आज चर्चा करते हैं कि प्रेम से  सब कु़छ हासिल किया जा सकता है या नहीं, 
मेरे ख्याल में पेम मे अटूट शक्ति है इसकी सहायता से सब कु़छ संभव है, 
प्रेम के अभाव मेंजीवन कोरी कल्पना से ज्यादा कुछ नहीं कहने का मतलब प्रेम इंसान की आत्मा में पलने वाला एक पावित्र भाव है, 
प्रेम से हम इंसान तो क्या भगवान  को भी पाने में सफल हो सकते हैं। 
प्रेम में वह शक्ति है जो भगवान को भक्त के नजदीक खींच लाता है और प्रेम ही भगवान को पाने का़ ऋेष्ठ साधन है। 
यही नही प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसके बारे में कवियों, गीतकारों, इतिहासकारों ने लिखा है और लिखते रहेंगे लेकिन इसकी जिज्ञासा कभी कम नहीं होगी, 
मानव जीवन को सुखी और सफल बनाने के लिए यह एक सर्वऋेष्ठ गुण है। 
यह एक ऐसा गुण है जो किसी भी क्षेत्र में हमें कामयाबी ही दिखलाता है, 
प्रेम से असंभव कार्य भी संभव हो जाता है क्योंकी जिंदगी प्रेम की शक्ति से ही चलती है, 
जव तक धरा पर मानव रहेगा प्रेम का बजूद भी कायम रहेगा। 
प्रेम ही मानव जीवन की नींव है इसके बिना सार्थक एंव सुखमय जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती इसलिए इसको हमेशा हर दायरे मे अपना कर रखियै अगर आप कामयाब वनना चाहते हो। 
प्रेम पूर्वक किया गया कार्य आंतरिक प्रकाश का ही विस्तार है, 
सोचा जाए तो प्रेम और युद्द दोंनो शब्द एक ही  सिक्के के दो पहलु हैं यह दोनों भावनाओं के परस्पर मेल या भावनाओं की लगी चोट के कारण तैयार होते हैं लेकिन  प्रेम समपर्ण की पूर्व चाह रखता है जब की युद्द सिर्फ विनाश की और ले जाता है अगर इससे कोई कामयाबी   भी मिल जाती है तो वो भी सारी उम्र के लिए कष्टदायक ही सिद्द होती है लेकिन प्रेम द्वारा किया गया कार्य लगभग सुख ही प्रधान करता है। 
आखिरकार यही कहुंगा कि इस संसार मेंअलग अलग किस्म  के लोग हैं इसलिए यही कोशिश होनी चाहिए कि हरेक से प्रेम भाव से  रहना चाहिए, जैसे  तुलसीदास जी ने कहा है, 
"तुलसी इस संसार में भांती  भांती के लोग, 
सबसे हंस मिल बोलिए नदी नाव संजोग"। 
 कहने का मतलब जो कार्य हम प्रेम से मिलकर सु़धार सकते हैं वो  विगाड़ कर हासिल नहीं कर सकते इसलिए किसी से विगाड़ने से पहले कईबार सोचिए   क्योंकी जो मजा प्रेम में है वो नफरत में नहीं इसलिए प्रेम से रहिए ओर अपना जीवन सुखमय व सफल बनाने में कामयाब रहिए, 
रहीम जी ने सच कहा है, 
" रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाये, 
टूटे से फिर न जुटे, जुटे गांठ परि जाये"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
 प्रेम पूर्ण मूल्यहै । ईश्वर पूर्ण है। ईश्वर पूर्ण स्वरूप में  सर्वत्र व्याप्त  है। इस पुण्य मूल्य की अनुभूति ज्ञान स्वरूप में होता है। एक नाम ईश्वर का प्रेम है। प्रेम ही ज्ञान और ज्ञान ही ईश्वर है। जो मनुष्य ईश्वर को ज्ञान स्वरूप में अनुभूति करता है अर्थात ईश्वर हर मनुष्य के पास ज्ञान स्वरूप में विद्यमान है इसी ज्ञान की अनुभूति कर मनुष्य सब कुछ पा सकता है। अर्थात सुख शांति संतोष आनंद और परमानंद के स्वरूप में मान्यता को पा सकता है मान्यता को प्रेम से पाकर मान्यता से जीते हुए मनुष्य सर्वत्र पा सकता है मनुष्य को ज्ञान आत्मा के लिए और धन शरीर के लिए तथा सुसंस्कार इक घर परिवार समाज और प्रगति में सुखद संतुलन से मनुष्य सब कुछ पा सकता है। अतः अंत में यही कहते बनता है कि प्रेम ही ईश्वर और ईश्वर ही ज्ञान ज्ञान से मनुष्य सब कुछ पा सकता है अतः मनुष्य की मूलभूत आवश्यकता ज्ञान है समाज है अतः ज्ञान की अनुभूति करना सर्व मानव जाति के लिए समीचीन आवश्यकता है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
       यदि प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता तो क्या हमारे अराध्य ईश्वर पागल थे। जिन्होंने फूलों के साथ-साथ अस्त्र-शस्त्र भी थामें हुए हैं। क्या रामायण एवं महाभारत जैसे हमारे धार्मिक ग्रन्थ प्रेमकथा का गुणगान कर रहे हैं? क्या पूज्यनीय भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने समंदर से प्रेमपूर्वक रास्ते के लिए आग्रह नहीं किया था? क्या समंदर ने प्रेम की सद्भावना का स्वागत करते हुए रास्ता दे दिया था? या यूं कहें कि क्या श्रीरामचन्द्र जी ने मछलियों का शिकार करने के लिए धनुष-बाण उठाया था और महापंडित राजा रावण ने माता सीताजी को प्रेम आग्रह से वापस लौटा दिया था? क्या पूजनीय परशुराम जी को शिवजी ने 'परशु' दिखावे के लिए दिया था?
       दूसरी ओर क्या श्रीकृष्णजी के प्रेम आग्रह को कौरवों ने मान लिया था? क्या दुर्योधन द्वारा उन्हें गिरफ्तार करने के आदेश पर उन्होंने प्रेम आग्रह से स्वयं को बचाया था और कुरूक्षेत्र क्या प्रेम की प्रेरणा देता है?
       उपरोक्त समस्त प्रश्नों का एक ही उत्तर मिलेगा कि यदि प्रेम से सब कुछ प्राप्त किया जा सकता तो त्रेता युग की रामायण, द्वापर युग की महाभारत एवं कलयुग के प्रथम एवं द्वितीय विश्व युद्ध कदापि ना हुए होते। इनके अलावा एटम बमों से हिरोशिमा और नागासाकी बर्बाद नहीं किए जाते और यदि प्रेम व शांति का ही राग अलापते तो हम आज भी अंग्रेजों के दास होते।
       अतः यह कहना मेरा सौभाग्य है कि कोई यदि प्रेम की भाषा ना समझे तो अपने अधिकारों के लिए गीता के उपदेश का प्रयोग करना अतिश्योक्ति नहीं है।
- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
कहा गया है * ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय* । यह बात बहुत से मामलों में सटीक बैठता है।  हम असंभव को भी संभव कर सकते हैं इतनी अद्भुत शक्ति है इस प्रेम शब्द में। प्रेम पूर्वक किया गया कोई भी कार्य हमें अत्याधिक लाभ देता है। प्रेम के शब्दों से हम कभी - कभी दुश्मन को भी दोस्त बना लेते हैं। हम गुस्से या अहम से बहुत बार जो नहीं प्राप्त कर पाते हैं वहां हमारे द्वारा प्रेम से बोला गया शब्द संजीवनी बूटी सदृशय कारगर साबित होता है। इसलिए प्रेम व्यक्ति का अचूक शस्त्र है जिसके उपयोग से व्यक्ति सब कुछ प्राप्त कर हीं लेता है। इसलिए हमें सदैव प्रेम की वाणी बोलनी चाहिए। प्रेम में अद्भुत शक्ति होती है। जो चीज या वस्तु हम लड़ या छीन‌ कर नहीं पा सकते उसे हम प्रेम पूर्वक किये गये‌ व्यवहार से बहुत हीं सरलता पूर्वक पा सकते हैं। इसलिए कहा जाता है प्रेम एक अचूक बाण‌ होता है जिससे बच पाना बहुत हीं मुश्किल है। 
- डॉ पूनम देवा
पटना -  बिहार
  "रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय।टूटे पे फिर ना जुरे,जुरे गांठ परी जाय।"
 रहीम जी कहते कि यह प्रेम रूपी धागा मत तोड़ो।अगर यह प्रेम रूपी टूट जाता है तो दोबारा जुड़ने पर गांठ पड़ जाती है वह मन जुड़ने पर भी  वह प्रेम रूपी रस सम्बन्धों में नहीं घुल पाता है।अर्थात मिल-जुल कर रहना ही सुखकारी माना जाता है।
 जो कार्य प्रेम पूर्वक सम्पन्न हो सकता है वह गुस्सा करने व हठपूर्वक नहीं हो सकता।
मन शांत अपने कार्य मे लीन होकर किया जाय तो ही अच्छा है, मनःस्थिति सही न होकर दिन की शुरुआत भी अच्छी नहीं रहती और जब शुरुआत अच्छी हो दिन भी अच्छा हो जाय।आप हमेशा मुसकुराते रहिये....आपकी सुबह की मुस्कान किसी के दिन की शुरूआत हो सकती है।आपके अंदर भाई-चारा व प्रेम का वास समाज में सभ्यता को विस्तृत कर मिलनसार बनाता है,प्रेम की यही विधा है।
            - तरसेम शर्मा
         कैथल - हरियाणा


" मेरी दृष्टि में " प्रेम ईश्वर की अनुभूति है । जिससे संसार में सकारात्मक सोच उत्पन्न होती है । जिससे इंसान बनता है । वरन् हम सब जानवर है । कहते है कि प्रेम तो जानवर में भी होता है ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान

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