अतीत की बातों पर क्रोध क्यों आता है ?

अतीत की कुछ बातों को बार - बार सोचने पर क्रोध आ ही जाता है । अतीत को भुलाना आसान नही है। फिर भी इस ओर ध्यान नहीं देते हैं । तभी अतीत से छुटकारा पाया जा सकता है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
 हर मनुष्य भूतकाल की पीड़ा, वर्तमान से विरोध और भविष्य की चिंता से ग्रसित है। मनुष्य हरपल वर्तमान में जीता है और अतीत में डूबा जो फल उसे दुःख दिया रहता है ,उसे याद कर वर्तमान जिंदगी को खराब करता है। जिसके प्रभाव में जिंदगी को समझ नहीं पाता और अक्षमता वश क्रोधित हो जाता है। क्रोधित होकर कोई भी मनुष्य सुकून से नहीं जी पा जी पाता और मनुष्य जो भी कार्य व्यवहार करता है। वह सुकून की जिंदगी जीने के लिए ही करता है लेकिन नासमझी में गलत सोच- सोच कर बिना मतलब का दु:खी होकर क्रोधित हो जाता है। जिसका प्रभाव पूरे परिवार पर पड़ता है और परिवार में सुख शांति चाहते हुए भी नहीं रह पाता है ।चाहना और करना अलग अलग होने से कामयाबी नहीं मिलती है, जिससे मन में आवेश आवेश से क्रोध आने लगता है। इन्हीं कारणों से अतीत की बातों पर क्रोध आता है। क्रोध हर पल आता है ऐसा नहीं है ।कुछ समय के लिए आता है ,स्थाई नहीं रहता है ,अतः मनुष्य को वर्तमान में कैसे संतुष्टि के साथ घर परिवार समाज में जी पाएं इसके प्रति ध्यान देने की आवश्यकता है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ -  छत्तीसगढ़
अतीत की सभी बातों पर क्रोध नहीं आता । अतीत की उन्हीं बातों पर क्रोध आता है जिसमें हमारी या किसी और कि गलती रहती है। कि ऐसा नहीं करते तो ऐसा नहीं होता या वैसा नहीं होता। ऐसा कर दिए रहते तो वैसा हो जाता। इसलिए क्रोध आता है। यदि हम घर से देर से निकलते हैं और ट्रेन छूट जाती है तो हमें गुस्सा आता है कि हम देर क्यों किये। इसी तरह से अतीत के बातों पर गुस्सा आता है कि ये काम ऐसा क्यों किया गया। जैसे जाति धर्म के आधार पर देश क्यों भाग किया गया। यदि भाग नहीं किया गया होता तो ऐसा होता। इस तरह की बहुत सी अतीत की बातें हैं जो गुस्सा दिलाती हैं। वैसे अतीत की उन्हीं बातों पर गुस्सा आता है जीन बातों से व्यक्तिगत या सार्वजनिक रूप से नुकसान हुआ रहता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
क्रोध मनुष्य की प्रवृति है।क्रोध हर बंदे को आता है। किसी को ज्यादा क्रोध आता है, किसी को कम।अतीत में मिली असफलताएं, तनाव और कुंठा क्रोध का रूप लेकर बाहर निकलती हैं। क्रोध को कायरता की निशानी भी कहा जाता है। 
      जो लोग अतीत पकड़ कर क्रोध में ही जलते-बुझते रहते हैं ,उनका अतीत तो खराब होता ही है, वो साथ में वर्तमान और भविष्य भी खराब कर लेते हैं। यह नहीं हो सकता कि क्रोध आए ही नहीं। यह क्षणिक होना चाहिए जो हमारी अतीत से सीख लेने में मदद करे ताकि हम अपने आप में सुधार कर सकें। अतीत में मिली असफलताएं का चिंतन -मनन करते हुए आगे बढ़ना चाहिए। ऐसे निश्चय ही हमें सफलता मिलेगी। यह नहीं कि जो अतीत में हो गया है  पूरी जिंदगी उसी का रोना रोते रहें। खाली क्रोध करने से तो बहुत सी बीमारियों जैसे ब्लड प्रेशर, हार्ट अटेक और मधुमेह आदि की पकड़ में आ जाएँ गे। ।
       मनुष्य गल्तियों का पुतला है। हरेक मनुष्य से गलतियाँ होती रहती हैं। उन गल्तियों से सबक लेकर आगे बढ़ना चाहिए न कि क्रोध करके साथ में वर्तमान और भविष्य को भी दांव पर लगाया जाए।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
अतीत हमारा बीता हुआ समय होता है, जो लौटकर कभी नहीं आता। अतीत में हमने अच्छे बुरे कर्म किये होते हैं। हमने किसी के साथ बुरा किया है, नुकसान किया है, कष्ट दिया है,किसी को अपशब्द कहा है,दिल तोड़ा है तो हमें हमारे कृत्र पर पछतावा होता है। यही पछतावा क्रोध का  रूप धारण कर लेता है। 
  क्रोध हमें अपने आप पर आता है। दूसरे पर नहीं। क्रोध हमारे पश्चाताप की निशानी होती है। हम पश्चाताप द्वारा अपनी गलती को सुधारना चाहते हैं। 
 जब हम पश्चाताप करते हैं तो परमेश्वर भी हमें माफ कर देते हैं। प्रभू कहते हैं कि तूने सच्चे हृदय से पश्चाताप किया है तो मैं तुझे तेरी गलती की सजा से मुक्त करता हूँ। 
  वास्तव में क्रोध की अग्नि पश्चाताप करने के बाद ही शांत होती है, अन्यथा वह मनुष्य को अंदर ही अंदर खाये जाती है। ।
- डॉ•मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
अतीत की ऐसी बातें जो दिल से जुड़ी होती है और वह बातें ऐसी होती है जिसको याद करने से बहुत ही गुस्सा आता है। अतीत का वह पल जो आपके जीवन के लिए बहुत ही निराशाजनक रहा हो जिससे  आपकी छवि को नुकसान पहुंचा हो। उसे याद करना ही नहीं चाहिए। यदि उस याद करते है तो वह बुरा वक़्त पर गुस्सा आना स्वाभाविक है। क्योंकि उस अतीत में आपको निराशा, अधीर और परेशानी झेलनी पड़ी होगी ऐसी बातों पर सबसे ज्यादा गुस्सा आता है। गुस्सा किसी भी व्यक्ति मैं प्राकृतिक रूप से मौजूद रहता है। कभी-कभी गुस्सा किसी खास प्रस्तुति की वजह से भी आ सकता है। ऐसे गुस्से पर काबू करना जरूरी है नहीं तो उसका नकारात्मक असर पड़ सकता है। अत्यधिक तक गुस्सा महसूस करना रिश्ते और एक व्यक्ति की मनोवैज्ञानिक स्थिति और जीवन के गुणवत्ता को प्रभावित कर सकता है। लगातार क्रोध को दबाना भी सेहत के लिए नुकसानदायक हो सकता है, इसलिए अगर कभी-कभी क्रोध करना सेहत के लिए ठीक भी हो सकता है। वैसे गुस्सा या क्रोध हम सभी के जीवन का एक हिस्सा है। कई बार हम सभी लोग अपने आसपास घट रही घटनाओं की वजह से भी अपने अनुकूल वातावरण ना होने के कारण भी क्रोधित हो जाते हैं। मनोविज्ञान से जुड़े एक्सपोर्ट के अनुसार 1 सप्ताह में थोड़ा गुस्सा आना सम्मान हो सकता है, लेकिन छोटी-छोटी बातों पर गुस्सा होना आपकी परेशानी में डाल सकता है। गुस्से की वजह से कई बीमारियां का खतरा बना रहता है। गुस्सा एक तरह से अपनी भावना को व्यक्त करने का तरीका है। गुस्सा आने पर आप खुद को दुखी या कभी-कभी असहाय भी महसूस कर सकते हैं। ऐसे में अपने गुस्से का कारण समझे अपने परेशानी अपने कैसे साझा करें ऐसा करने से आप अच्छा महसूस करेंगे। जब अतीत की बातों को याद कराओ गुस्सा करते हैं। उस दौरान शारीरिक बदलाव महसूस किया जा सकता है। जैसे सही कसक सुनाया हाथ पैर कांपना आदि अगर आप ग्रुप में नहीं फंसना चाहते हैं तो अपना ध्यान केंद्रित रखें।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
     मानसिक हलचल के कारण विचारधारा को रोचक अगर हम नैतिकतावादी बन कर दिखाने का प्रयास करते-करते थक कर चूर हो गये तो समस्या का समाधान तभी हो सकता है जब तक किसी भी तरह की कोई विफलताओं का सामना करना पड़ता जहाँ आपस में गलत संदेश के माध्यम से अहसास जनों को बोझ ही लगता हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं। क्रोध एक क्षणिक प्रवृत्ति हैं। जो बच्चे के मन मस्तिष्क में जन्म लेते ही दिखाई देती हैं, जो मृत्यु तक रहती हैं।  इच्छा तंत्रों की पूर्ति नहीं होने से क्रोध आता हैं, जब इतना विकराल रूप धारण कर लेता हैं, तब वहां से निकलना मुश्किल हो जाता हैं। फिर प्रारंभ होती हैं शारीरिक-मानसिक परेशानी, चिकित्सा और कानूनी मामलों का विकेन्द्रीकरण? क्रोध को नियंत्रित करने तरह-तरह के उपाय तो बतायें गये हैं, परंतु कितने प्रभावित होते हैं, इस पर गंभीरता और नियंत्रण स्थापित करने में असफल हैं। क्रोध एक अतीत का आईना हैं और अतीत की बातों पर क्रोध आना स्वाभाविक ही हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट -मध्यप्रदेश
अतीत पर क्रोध इसलिए आता है हम जो अतीत में जिन लोगों ने हमसे ज्यादती की परेशानियों को भोगा है। उन सभी बातों को याद कर हमें अतीत पर क्रोध आता है ।हम चाहते हैं कि सब लोग हमारी बात सुने हमारा कहना माने यदि  कोई हमारी बात नहीं सुनता तो उस पर हमें क्रोध आता है। सबके क्रोध करने का तरीका अलग अलग होता है किसी को जल्दी ही क्रोध आ जाता है कोई शांत रह जाता है हर एक व्यक्ति का स्वभाव अलग-अलग होता है काफी हद तक उसके पुराने अनुभव भी क्रोध का कारण होता है। कभी-कभी हम अपनी गलती नहीं स्वीकार करते हैं ।उस पर भी क्रोध करते हैं।
- पदमा तिवारी 
दमोह - मध्य प्रदेश
क्रोध आने के कई कारण हो सकते हैं। जब मनुष्य की इच्छाएं पूरी नहीं होती है, तब व्यक्ति असंतुष्ट रहने लगता है  और उसके कहना परिवार मित्र ऑफिस के लोग नहीं  मानते हैं एवं आपसी संबंधों में विवाद होने लगता है।तब हमारे मन में नकारात्मक विचार बनने लगते हैं अंदर में जो हार्मोन है अपने आप में  प्रभावित होने लगता है और क्रोध अपने आप उत्पन्न हो जाती है।
लेखक का विचार:-मनुष्य को शांति से अपना जीवन यापन करना चाहिए यह मानसिक  त्रासदी का सबसे बड़ा कारण है। अतः मनुष्य भूत के पीछे बहुत ना सोचे बराबर सकारात्मक सोच रखें।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
      अतीत में कुछ भी न करने या कुछ करने में सक्षम ना होने के कारण क्रोधाग्नि का ज्वलंत होना स्वाभाविक ही है। क्योंकि उस क्रोधाग्नि से वर्तमान में कुछ सकारात्मक करने की शक्ति उत्पन्न होती है। जिस इच्छाशक्ति से नकारात्मकता को सकारात्मकता में परिवर्तित किया जा सकता है। ऐसा करने की प्रेरणा से उपरोक्त क्रोध के आने को अनुचित नहीं ठहराया जा सकता।
      उल्लेखनीय है कि इस क्रोधाग्नि के कारण हम ना केवल इस जन्म को साकार करने में सक्षम होते हैं बल्कि कई पूर्व जन्मों की क्रोधाग्नि को भी ठंडा करने में सक्षम हो जाते हैं। 
      चूंकि सफलता प्राप्तियां वह रामबाण हैं जो अतीत की पराजयों से उत्पन्न भीषण क्रोधाग्नि को चुटकी में शांत करने में सक्षम होती हैं। यही वह शक्ति है जो ब्रह्मांड में शांति स्थापित कर सकती हैं।
      अतः संक्षेप में कहना अतिश्योक्ति नहीं होगा कि अतीत में अपनी समस्त पराजयों के कारण ही क्रोध आता है और उससे उत्पन्न स्वयं के प्रति घृणा रूपी क्रोधाग्नि को चुटकी में शांत करने में सफलता का मलहम ही उपयुक्त होता है।
- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
अतीत की बातों पर क्रोध  कई कारणों से आ सकता  है । अपेक्षित इच्छाओं का पूरा न होना, कलह और झगड़ों के कारण होना, बैर भाव से जीवन प्रभावित होना, दीर्घ काल तक किसी के द्वारा दिया गया दुख ,अड़चन, बाधा  तथा सही समय पर सही फैसला न लेना भी  दुख का कारण बनता है और रह रह कर अतीत की याद दिलाता रहता है । 
इसके लिए एक कहावत भी है-- 'एक कदम के छूटे ,सौ कोस दूर पड़े'
 अर्थात -जीवन में लिया गया कोई गलत फैसला हमें जीवन भर दुख ही देता है और बीते समय की याद दिलाता रहता है । उस घड़ी को याद कर कर के हम अपने पर और अन्य ऊपर क्रोधित होते रहते हैं । 
अतीत में किसी के द्वारा कहे गए अपशब्द या किसी के द्वारा किया गया अपमान, घृणा भी हमें बार-बार दुखी करता है और क्रोध भाव पैदा करता रहता है । क्योंकि अतीत हमारे वर्तमान और भविष्य की तस्वीर बनाने का काम करता है उसमें रंग भरता है खुशियां भरता है। हम अपनी मेहनत ,कोशिश, कर्मठता से अपना वर्तमान और भविष्य तो संवार लेते हैं परंतु अतीत के वो क्षण जो दुखदाई बने रहे हैं और उसके कारण जिस वजह से दुख झेला है उनको स्मरण करके हमें बार-बार  क्रोध आना स्वाभाविक है। लेकिन क्रोध की अतिशयता  हानिकारक है। क्रोध एक विषैला भाव है अतीत में जो दुख झेला है वही दुखी भाव वर्तमान और भविष्य में क्यों पाले? इसे त्यागने में ही भलाई है । क्रोधी प्रवृत्ति को केवल स्कारात्मक सोच के आधार पर ही नियंत्रित किया जा सकता है ।
 - शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
हम अगर समय बरबाद न करते, हमने अगर अपने माता-पिता की सलाह को माना होता, हमने अपने शिक्षक को ध्यान से सुना होता, हमने अगर पढ़ाई में थोड़ी-सी मेहनत और की होती, हमने अगर फलां-फलां से बुरे बोल न बोले होते, हम अगर दुश्मनी भुला कर उसके सुख-दुःख में मिलने चले गये होते, हमने अगर बचत की होती, हमने अगर फिजूलखर्ची न की होती, हमने अगर बाहर जाने का मौका न गंवाया होता, हमने अगर सस्ता सोना खरीद लिया होता, हमने अगर जमीन-जायदाद खरीदने पर गंभीरता से विचार किया होता, हमने अगर व्यापार में यह कौशल प्राप्त किया होता, हमने अपने काम में और हुनर प्राप्त करने के लिए मेहनत की होती, हमने तैश में आकर अमुक नौकरी को लात न मारी होती, हम लापरवाह न होते, हम आलसी न होते, हम समय की कीमत को समझते, हमने अपने बच्चों की संगत की ओर ध्यान दिया होता, हमने अपने बच्चों की समस्याओं को बिना क्रोध किये पूरी तरह से सुना होता, हमने अगर यह किया होता तो ऐसा होता, हमने अगर वह किया होता तो वैसा होता, यह सोच-सोचकर अतीत की बातों पर क्रोध आना स्वाभाविक है। यह मनोवैज्ञानिक भी है। पर बुद्धिमानी इसी में है कि वर्तमान में जियें और अतीत की गलतियों से सबक लेते हुए स्वयं को सुधारें।
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
कहते हैं ना हीरा हीरे को काटता है ,जहर जहर को काटता है किंतु हमारे क्रोध को क्रोध से नहीं प्यार से ही शांत कर सकते हैं ! यदि अतित की बातों को जिसमे हमने अपनी नादानियों से जो गल्तियां की है या काश तब मैने यह न किया होता जैसी बातों को लेकर क्रोध करते हैं तो वर्तमान मेंअतीत की  भूल से कुछ सीखते भी हैं ! हम उन गल्तियों को दोबारा नहीं दोहराते और आगे बढ़ जाते हैं ! हमें अतीत की हर बातों को अपनी नासमझी समझकर भूल जाना चाहिए चूंकि यदि हम अपनी भूल को याद करते हुये क्रोधित होते रहेंगे   तो वर्तमान की खुशीयां खो देंगे !  वर्तमान में वैसे भी हम अपनी अतीत की भूल को हस हसकर याद करते हैं  जिससे हमें क्रोध की जगह आनंद आता है ! दुखी अतीत को याद कर वर्तमान न बिगाड़े !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
मनुष्य एक समाजिक प्राणी है। वह अपने जीवन को सुखदायक तरीक़े से जीना चाहता है। मनुष्य अपने जीवन में अतीत की बुरी बातों को याद नहीं करना चाहता है। परंतु कभी कभी इंसान को अपने अतीत की बातें याद आ जाती है। जिसके कारण मनुष्य को क्रोध आ जाता है। और उस समय व्यक्ति अपने जीवन की उन घटनाओं को याद करता है। जिसके कारण उसके जीवन में कोई बाधा उत्पन्न हुई हो। फिर वह यह सोचता है। काश मैंने अपने जीवन में ये गलती की ही नहीं होती। काश मैंने अपने बडों की सलाह को मान लिया होता। इस तरह के प्रश्न मनुष्य के मस्तिष्क में उत्पन्न होते है। जिसके कारण उन्हें अतीत की बातों पर क्रोध आता है। 
        - नीरू देवी
    करनाल - हरियाणा
क्रोध एक ऐसा मनोभाव है जिसे हम चाहे कितना भी नियंत्रित कर ले लेकिन वह कभी न कभी किसी न किसी रूप में हमारे जीवन में शामिल हो ही जाता है।
 अतीत की कुछ कड़वी यादें और दैनिक जिंदगी में भी कई बार ऐसी परिस्थितियां आ जाती हैं कि हम चाह कर भी अपने गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाते ।
अब हमारे साथ कुछ गलत हुआ हो या हो रहा हो तो गुस्सा आना तो स्वाभाविक है इसलिए हम चाहे कुछ भी कर ले लेकिन सच्चाई यही है कि आज के समय में गुस्से के प्रभाव से बच पाना किसी भी मनुष्य के लिए संभव नहीं ।
क्रोध के प्रकोप से देवता और ऋषि मुनि भी नहीं बच पाए फिर हम तो साधारण मनुष्य हैं ।
सभी पुराण और धर्म ग्रंथों में देवताओं और मुनियों के रोज की कई कथाएं सुनी हैं।
 पुरानी बातें स्मृतियों में सुरक्षित रहती हैं जो दुख दायीं होती हैं जो किसी के कारण मिले हुए दुख की वजह से  होती हैं, तो व्यक्ति का क्रोधित होना स्वाभाविक है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
हर इंसान के अतीत में दो प्रकार की घटनाएं घटती रहती हैं एक सुखदायक और दूसरा तकलीफ दायक। सामान्य तौर पर हर इंसान सुखदायक बातों को कम याद करता है लेकिन दुखदाई बातों को अपने दिल और दिमाग में खूब जगह बनाकर उसे याद करता रहता है वैसे घटना को याद करने पर खुद की असफलता खुद की निराशा अयोग्यता बेवकूफी पर क्रोध आता रहता है तो अतीत की उन घटनाओं को जो हमें पीड़ा पहुंचाती है उसे दिमाग से निकालना ही समझदारी बुद्धिमानी और वर्तमान से संबंध बनाने का उचित तरीका है जितना जल्दी हम उन बातों को भुलाने का या माफ करने का कोशिश करेंगे उतनी जल्दी हम सुखदाई घटना को याद कर सकेंगे अतीत की हर घटना से क्रोध नहीं होता है सिर्फ उन्हें घटनाओं से क्रोध होता है जिसमें हम असफल रहे असमर्थ रहे और लोगों पर हम दोष आरोपित करते रहे।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
        प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में आए अतीत के कटु अनुभव मस्तिष्क में हमेशा बने रहते हैं।अतीत में व्यक्ति के साथ घटने वाली घटनाएं/चुनौतियां/समस्याएं जिनका सकारात्मक परिणाम नहीं मिल पाया हो तो उनका नकारात्मक प्रभाव स्मृति पटल पर बना रहता है।
           अगर हमारे साथ किसी व्यक्ति या समाज द्वारा कुछ  गलत किया गया है।तो भी हमें अतीत की बातों पर क्रोध आता है।
          किसी भी व्यक्ति की अतीत में इच्छा पूर्ति न होने के कारण भी उन बातों को याद करते हुए क्रोध आता है।
         अतीत में परिस्थितियों के कारण प्राप्त असफलता,तनाव और भेदभाव के कारण भी व्यक्ति  की भावनाएं स्मरण कर क्रोधी स्वभाव प्रदर्शित करती हैं।
         अतः कहा जा सकता है कि पुराने कटु अनुभवों को याद करने पर स्वयं को नियंत्रित न कर पाने के कारण क्रोध आता है।
 - सुरेंद्र सिंह 
अफ़ज़लगढ़ - उत्तर प्रदेश
क्रोध एक ऐसा हुनर है जिसमें फंसते भी आप हैं, उलझते भी आप हैं, पछताते भी आप हैं और पिछड़ते भी हम आप ही हैं। 
कहने का मतलब क्रोध एक ऐसा भाव है जो मनुष्य के  वास्तविक अस्तिव को खत्म कर देता है। 
आईये बात करते हैं कि हमें  क्रोध क्यों आता है और खासकर अतीत की बातों पर क्रोध किसी पर  भी कभी भी आ सकता है अपनों पर परायों पर छोटों पर बड़ों पर घर में या बाहर क्रोध का कोई दायरा नहीं होता। 
क्रोध या गुस्सा इंसान की प्रवृति होती है जो किसी मैं अधिक किसी में कम होती है, 
कोई हर बात पर गुस्सा करने लगता है तो कोई वड़ी से वड़ी बात पर भी शांत रहता है।
     इसके पीछे हर व्यक्ति का स्वभाव होता है। 
काफी हद तक व्यक्ति का परिवेश और उसके पुराने अनुभव भी उसके क्रोधी स्वाभाव के  कारण होते हैं। 
कईबार विपरीत हालातों के कारण मिली पुरानी असफलता के कारण तनाव और क्रोध का रूप लेकर वाहर निकलते हैं। 
अतीत की नकारत्मक घटनाओं के कारण आपके लिए वर्तमान में जीना मुश्किल हो सकता है परेशान करने वाली यादों के कारण आपके लिए सोना व दिन गुजारणा भी मुश्किल  हो  जाता है इसलिए अपने अतीत को भुलाकर वर्तमान में क्रोध से वचना चाहिए नहीं तो अतीत ही हमारा वर्तमान  लिखेगा। 
अतीत की यादें उन सपनों मे वांध रखती हैं जो कभी पूरे नहीं हुए उन वादों को याद दिलाती हैं जो तोड़ दिए थे। 
इसलिए अतीत के अनसुलझे अनुभव हमें मानसिक और शरीरिक प्रभाव छोड़ देते हैं जिनसे हर पल गुस्सा पनपता रहता है और हम क्रोध करने लगते हैं। 
कभी कभी अतीत के सदमें इतने गहरे होते हैं कि उन लोगों को प्रभावित कर देते हैं जिसकी आपको   बहुत परवाह होती है,  हम उन सपनों मे खोये रहते हैं जो कभी सच नहीं हो सके परिणाम यह होता है कि हम क्रोधित हो जाते हैं। 
आखिरकार यही कहुंगा कि हमें क्रोध से  वचना चाहिए, हमें  अतीत और भविष्य को भूलकर वर्तमान में खुश रहने की कोशीश करनी चाहिए क्योंकी गुस्से से  दिल की धड़कन तेज हो जाती है, 
हाई बल्ड प्रेशर, हार्ट अटैक, सिर दर्द नींद न आना, पाचन सम्बधीं समस्याएं इत्यादी हमें घेर लेती हैं, 
यही नहीं क्रोध से नकारात्मक विचार ही आते हैं यहां तक की हमारे संबंधो में भी क्षति पहुंचती है, इसलिए हमें हमेशा क्रोध से वचना चाहिए
क्योंकी समय वीत जाने पर  क्रोध का वास  सिर्फ पछतावा ही देता है इसलिए मौन ही  सर्वोच निति है जो क्रोध को वश में कर सकती है  इसलिए क्रोध  को हमेशा व़श में रखें। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अतीत से वर्तमान का जन्म होता है
मानव के जीवन में ऐसी कई घटनाएं घटती हैं अतीत की यादों के पन्ने किसी के लिए अच्छे होते हैं और किसी के लिए बुरे कुछ सफल होते हैं और कुछ असफल कभी ऐसा भी होता है कि मानव बिना गलती के भी अतीत में
सही समय पर सही निर्णय नहीं बना पाते असफल होते हैं खुद की भी कमजोरी और किसी कारण वश दबाव में जब वह वर्तमान में आते हैं उस अतीत के कारण उनके जीवन में दुखद स्थितियां उत्पन्न होती हैं उन्हें वह  सब बातें याद आ कर बहुत क्रोध आता है
अपने ऊपर भी समय पर भी‌ और जो
जो लोग उनसे  जुड़े होते हैं उन पर भी
यह एक प्रकार का मन में अवसाद की धारणा बना देता है इससे निकलना कभी-कभी मानव के लिए बहुत कठिन हो जाता है या हम कह सकते हैं कि
किसी व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुरूप वह सब कुछ नहीं प्राप्त हो पाता जो उसे मिलना चाहिए।
यह स्थितियां भी क्रोध  का कारण बनती है।
*समय के अनुरूप निर्णय लेना सही निर्णय जीवन की दशा और दिशा बदल देती है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
           कोई जरूरी नहीं कि अतीत की बातों पर हर समय क्रोध आए। कभी किसी के साथ कुछ गलत हो जाता है तब उसको याद करके क्रोध आ जाता है पर हर समय यह नहीं होता। और अतीत पर क्रोध करने से होगा भी क्या जो होना था वह तो हो चुका। आगे का सोचना चाहिए। जैसे कि पूर्व समय में हमारे देश में गद्दारों की वजह से अपने ही लोगों की दोगली नीति की वजह से देश को पराधीन होना पड़ा और हमें इतने सालों की दास्तां झेलना पड़ी। पर इसको सोच कर अब क्रोध करने से क्या?  समझदारी इसी में है कि आगे से संभल कर रहा जाए और फिर से यह नौबत न आने पाए।
 - श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर -  मध्य प्रदेश
कहते हैं बीते कल की बात सपना, आने वाले कल की बात कल्पना, आज का पल ही है अपना. अब अतीत यानी कल की बात सपना है, तो सपने तो याद आते ही हैं, अतीत भी याद आता है. अतीत को हम यादों का झरोखा, स्मृतियों का सागर भी कह सकते हैं. ये यादें, ये स्मृतियां हमारी अनमोल पूंजी होती हैं, जो हमें कभी आल्हादित करती हैं, तो कभी क्रोधित भी करती हैं. स्मृतियां मधुर होती हैं, तो मन को मधुरिम कर जाती हैं और कटु होती हैं, तो मन को कटु-कसैला-कष्टमय-क्रोधित कर जाती हैं. अनेक बार अतीत की बातों पर क्रोध तब भी आता है, जब हमको लगता है, कि हमने सही समय पर सही प्रतिकार नहीं किया, अन्यथा आज हमें जो दुष्परिणाम भुगतना पड़ रहा है या जो हादसा हुआ है, वह नहीं होता. निष्कर्ष यही निकलता है, कि अगर अतीत हमारे मन की अपेक्षाओं के प्रतिकूल हो, तो हमें क्रोध आना अवश्यम्भावी है.
-लीला तिवानी 
दिल्ली
अतीत की बात पर क्रोध आना, कहीं न कहीं भविष्य के प्रति चिंता से जुड़ा होता है। इसके मूल में अवमानना,उपेक्षा तो होती ही है।जिस तरह मानव शरीर में वात पित्त और कब तीनों विद्यमान रहते हैं। इनके समुचित अनुपात में जब असंतुलन होता है, तो शरीर रोगी हो जाता है। इनकी ही तरह काम,क्रोध और लोभ मानव मन में रहता सही है। जब जिस भाव के अनुकूल वातावरण मिल जाए तो वह जाग्रत हो जाता है और इसमें एक तथ्य यह भी है कि इनको जाग्रत करने में अतीत की यादें उद्दीपक का काम करती है। बाबा तुलसीदास ने रामचरितमानस में क्रोध को पित्त की तरह बताया है - काम वात,कब लोभ अपारा। 
क्रोध पित्त नित छाती जारा।।
अब स्वयं अंदाजा लगा लीजिए क्रोध की भयावहता का। क्रोध में अहंकार और गुस्से का मिश्रण होता है।यह हमेशा हानिकारक होता है क्रोध करने वाले के लिए भी और जिस पर क्रोध किया गया उसके लिए भी। मानव स्वभाव है अतीत से जुड़े रहना,क्योंकि अतीत की नींव पर ही वर्तमान खड़ा होता है, इसलिए किसी भी मनोभाव, मनोदशा का अतीत से प्रभावित हुए बिना रहना असंभव होता है। यही बात क्रोध पर भी लागू होती है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
मनुष्य का मन-मस्तिष्क जल्दी से अतीत की बातों को भुला नहीं पाता है। सब जानते हैं कि अतीत की बातों को सोचकर क्रोध अथवा कोई भी अनुभूति को स्पर्श करना मूर्खता है। परन्तु फिर भी अतीत में हुई किसी बात को सोचकर क्रोध आना स्वाभाविक है क्योंकि यह मानवीय कमजोरी है कि उसका अतीत रह-रहकर उभर आता है। मनुष्य जीवन का प्रत्येक क्षण किसी न किसी अनुभूति को जन्म देता है। कुछ स्थिति ऐसी होती हैं जो समय के प्रवाह में बह जाती हैं परन्तु तत्समय जब ऐसा कार्य हुआ हो जिस पर विचार करने से स्वयं पर अथवा किसी अन्य पर क्रोध आता है। वही स्थिति एक-न-एक दिन अतीत बन जाती है परन्तु मानव स्वभाव उसको भूल नहीं पाता।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड 
अतीत की बातों पर क्रोध आना अर्थात किसी भी बात को गले लगा बैठना l जब तक हम अतीत की बातों को लेकर बैठेंगे, प्रेम में गांठ पड़ेगी ही और किसी भी समस्या का हल नहीं मिल पयेगा l क्रोध ही तो जीवन से प्रेम दूर करता है, एक दूसरे से नफ़रत पैदा करता है l अतः हमें बीती बातों को भुलाकर, शांत और धीरता से आगे बढ़ना चाहिए l पल भर का क्रोध जीवन की
 तपस्या को भंग कर देता है l 
   क्रोधनल से व्यक्ति खुद का ही अनिष्ट कर बैठता है l क्रोध अविवेक को बढ़ावा देता है l 
   चलते चलते -----
  विवेक -विचार की उर्ध्वमुखी मशाल जलाकर हमेशा हाथों में थामे रखिये और निश्चिन्त होकर प्रगति और विकास के पथ पर बढ़ते चलिए l 
    - डॉo छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
आज की चर्चा में जहांँ तक यह प्रश्न है कि अतीत की बातों पर क्रोध क्यों आता है समय बीतने के साथ-साथ अतीत को व्यक्ति नहीं भूलता वह हमेशा याद रहता है और वह जो कड़वी बातें व असहज व्यवहार समाज अथवा व्यक्ति के द्वारा किसी के साथ किया जाता है वह जब जब याद आता है तो उन बातों पर क्रोध ही क्रोध भी आता है साथ ही साथ अतीत में जो कुछ अच्छा घटा हुआ था होता है वह प्रसन्नता भी प्रदान करता है और इसीलिए कहते हैं कि अतीत सभी को अच्छा लगता है अपना अतीत व्यक्ति हमेशा याद करते हैं अतीत की कड़वी यादें मन और मस्तिष्क पर अमिट छाप छोड़ दी है तो अच्छी यादें प्रशंसा भी देती है परंतु कड़वाहट जल्दी भुलाए नहीं भूलती और पिछली बातें लोगों के द्वारा किया गया गलत वयवहार अक्सर याद आता है और जब व्यक्ति कुछ नहीं कर पाता तो केवल क्रोध आता है परंतु यह अपने ही लिए हानिकारक है जहां तक संभव हो इस प्रकार की यादों को भुलाने का ही प्रयास करना चाहिए ़़
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " अतीत की कड़वाहट को भूलने का प्रयास  किया जा सकता है । परन्तु भूल जाऐ । ऐसा सम्भव नहीं होता है । जो क्रोध के रूप में भविष्य में बार - बार सामना होता है ।
 - बीजेन्द्र जैमिनी

डिजिटल सम्मान


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