क्या अभ्यास के अभाव में शिक्षा विलुप्त हो जाती है ?

अभ्यास से प्राप्त ज्ञान सर्वश्रेष्ठ शिक्षा मानी गई है । जो निरन्तर अभ्यास पर आधारित है । अभ्यास के अभाव में शिक्षा विलुप्त हो सकती है । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
 आज अभ्यास जीवन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है ।शिक्षा को उच्चतम स्तर पर लाने के लिए निरंतर अभ्यास करने की आवश्यकता होती है है।विलुप्तप्राय इसलिए भी हो सकती है जब अभ्यास करना हम छोड़ देते है।जीवन को उच्च शिक्षा ग्रहण करने हेतू निरंतर नियमित अभ्यास करने की जरूरत होती है।किसी भी ज्ञान को प्राप्त करने के परिश्रमी और अभ्यासप्रयास होना चाहिए।जींदगी की उचाई को पाने के लिए लगातार मेहनत अभ्यास की आदत होनी चाहिए।अभावों मे हमारे पास शिक्षा का विलुप्ति तय है।इसलिए हमेशा अभ्यास की आवश्यकता पड़ती है।प्रयासरत इंसान जीवन मे हमेशा आगे पढ़ता है।लेकिन जो अभ्यास नही करता या मेहनत मे अभाव होता है तो जीवन की सफलता समाप्त हो जाती है।अभ्यासरत होना जीवन की कठिन परिस्थितियों मे खुद को निकालना की एक अद्भुत क्षमता और जीवन की कला है।जिंदगी की भागीदारी सुनिश्चित करना और अभ्यास करते रहना शिक्षा को नही पहचान पत्र मिलती है ।शिक्षा आधुनिकता के नये नये पायाम और मंजिल से होकर गुजरती है। इसलिए हमेशा शिक्षा को उच्चतम स्तर तक ले जाने के लिए हमेशा अभ्यास और परिश्रम करते रहना है ।उच्चतम शिक्षा का अर्जित करने के लिए अभ्यास का दामन थाम कर रखना चाहिए ताकि जीवन मे सफलता प्राप्त हो।हम कभी कभी अपने आन और अभिमान मे मेहनत और परिश्रम अभ्यास को हल्के पन मे लैकर निश्चित तौर तरीकों को अपनाने की कोशिश करते है।और हम अपने जीवन की सफलता को खो देते हैं।इसलिए हमें निरंतर अभ्यास रत होना चाहिए हमारी शिक्षा बरकरार रखने के लिए अभ्यास और परिश्रम करना अत्यंत महत्वपूर्ण और आवश्यक है।नही तो इसके अभाव मे शिक्षा विलुप्त होने की दिशाओं मे प्रयासरत होती है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर -  झारखंड
अभ्यास के अभाव में शिक्षा विलुप्त तो नहीं होती पर उक्त शिक्षा से विकसित हुई कुशलता क्षीण हो जाती है। साइकिल, स्कूटर, कार आदि चलाना सीखने के बाद यदि अभ्यास का अभाव रहता है तो आत्मविश्वास में कमी आ जाती है जिसे अभ्यास से पुनः प्राप्त किया जा सकता है। बड़े-बड़े संगीतज्ञ, गायक कलाकार, नर्तक अपने कौशल को बनाए रखने के लिए निरन्तर अभ्यास करते रहते हैं। अभ्यास के अभाव में उनकी कुशलता प्रभावित होती है। की-बोर्ड चाहे बजाने वाला हो या कम्प्यूटर का हो, अभ्यास के अभाव में कुशलता प्रभावित हो जाती है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं। पर एक बार प्राप्त शिक्षा अभ्यास के अभाव में विलुप्त हो जाए, ऐसा कोई उदाहरण नहीं देखा।
- सुदर्शन खन्ना 
 दिल्ली
शिक्षा ऐसी सम्पत्ति है जो जमा करने पर घटती है और खर्च करने पर बढ़ती है। लेकिन कुशलता हासिल करने के लिए निरंतर अभ्यास जरूरी है। 
 किसी भी गुण को निखारने में बार-बार कार्य को दोहराना जरूरी होता है। तभी उसकी बारीकियों के अवगत हुआ जा सकता है। किसी भी कार्य में पारंगत होना भी जीवन में जरूरी है। वही गुण आपको विशेष बनाता है। आपकी कलात्मकता को निखारता है। आप सबसे हट कर अपनी पहचान बना पाते हैं। आपकी निपुणता आपकी शिक्षा का आईना बनती है। इसलिए जो भी शिक्षा आपको अपने उपयुक्त लगती है उसे संवारें, निखारें अवश्य।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
यह बिल्कुल सही है कि अभ्यास के अभाव में शिक्षा विलुप्त हो जाती है ।' करत करत अभ्यास जड़मति होत सुजान'  यह वाक्य पढ़ाई के लिए, कुछ सीखने के लिए बिल्कुल सही उतरा है। 
अभ्यास के अभाव  कोई भी ज्ञान व्यक्ति के मानस पटल में धुंधला होता चला जाता है। शिक्षा के द्वारा जहां हम अपने जीवन को सफल बनाते हैं, आत्मनिर्भर बनते हैं उसका आधार बार-बार अभ्यास ही है। 
एक प्रशिक्षित व्यक्ति अपने प्रशिक्षण का फायदा तभी ले सकता है जब संबंधित विषय पर बार-बार अभ्यास करें। अभ्यास से किसी भी ज्ञान कला में चमक आती है ,सुधार होता है । 
एक विद्यार्थी वर्ष भर अपने पाठ्यक्रम को पड़ता है साल के अंत में उससे संबंधित परीक्षा के लिए बार-बार उसे दोहराता है तभी अच्छे अंक लेकर आगे बढ़ता है। 
शिक्षा के क्षेत्र भिन्न भिन्न हो सकते हैं। केवल अभ्यास ही से उनमें पारंगतता  प्राप्त की जा सकती है। अभ्यास के बिना संबंधित नियमों, सिद्धांतों से अनभिज्ञता बनी रहती है।  अतः अभ्यास के अभाव में शिक्षा का विलुप्त होना स्वाभाविक ही है।
- शीला सिंह 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
अभ्यास के अभाव में प्रायः हर चीज विलुप्त हो जाती है। अभ्यास करने पर सारी चीजें याद रहती हैं। बहुत से लोग कहते हैं ये काम किये कितना दिन हो गया। अब अभ्यास छूट गया है। हो नहीं पायेगा। बचपन में हम लोग जो चीज पढ़े हैं वह आज पूर्ण रूप से हम नहीं कह पाएंगे या लिख पाएंगे और न ही दूसरे को समझा ही पाएंगे। इसका मतलब अभ्यास छूट गया है। कुछ चीजें ऐसी होती है जो बिना अभ्यास के भी याद रहती हैं।
अंकगणित की बात ही कुछ ऐसी है बिना निरंतर अभ्यास के हम सब कुछ भूल जाते हैं। पहले अंक गणित में सवैया, अढैया इत्यादि की पढ़ाई हुई थी आज उसका अभ्यास छूट गया सब भूल गये। सवैया, अढैया क्या होता है नई पीढ़ी को मालूम ही नहीं और न ही कोई बताने वाला है। कोई होगा भी तो बोलेगा अभ्यास छूट गया है।
शिक्षा का अभ्यास जितना जारी रहेगा शिक्षा उतनी ही तीव्र होगी। अभ्यास खत्म सबकुछ खत्म। अभ्यास कितना प्रभावशाली होता है ये इस बात से पता चलता है कि क्रिकेट खेलने वाले हमेशा क्रिकेट खेलते हैं पर जब किसी मैच की बारी आती है तो अभ्यास शुरू हो जाता है। इसका मतलब अभ्यास नहीं करने से भूल जाएंगे। इसलिए ये कहा जा सकता है कि अभ्यास के अभाव में शिक्षा विलुप्त हो सकती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
 बिना अध्ययन और अभ्यास के शिक्षा अर्थात उसकी परंपरा नहीं बन पाती है अध्ययन अभ्यास यही शिक्षा कार्य व्यवहार के रूप में व्यक्त होता है अतः शिक्षा के माध्यम से हर मनुष्य को अध्ययन अभ्यास और व्यवहार कार्य की आवश्यकता होती है इन्हीं चार आयामों से मनुष्य हर पल हर क्षण जीता  है। अतः मनुष्य को निरंतर अध्ययन अभ्यास की समय की आवश्यकता है तभी शिक्षा की परंपरा हमेशा बनी रहेगी शिक्षा के माध्यम से ही ज्ञान की प्राप्ति होती है और ज्ञान से ही लोगों का जीना संभव होता है बिना ज्ञान के आदमी पंगु के समान है अतः शिक्षा के माध्यम से निरंतर ज्ञान का अध्ययन अभ्यास करना चाहिए।
 - उर्मिला  सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
"करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान"
यह  सत्य है कि  अभ्यास करने से किसी को भी प्रगति मिल सकती है एक अन्जान  व्यक्ति भी  चतुर बन सकता है, अभ्यास किसी की चीज का हो   लेकिन वो  इंसान को परफैक्ट बना देता है, 
तो आईये चर्चा करतै हैं कि अभ्यास केअभाव से शिक्षा पर क्या असर पड़ता है, क्या शिक्षा लुप्त हो जाती है, 
मेरे ख्याल में  पढ़ाई के लिए अभ्यास अति अन्त जरुरी है विना अभ्यास के कोई भी शिक्षा   इंसान को परफैक्ट नहीं बना सकती चाहे तकनीकी ़शिक्षा हे शरीरिक व किताबी शिक्षा हो सब के लिए अभ्यास अति अावश्यक है अभ्यास के अभाव  शिक्षा अधुरी रह जाती है और आहिस्ता आहिस्ता  लुप्त होने के कगार पर पहुंच जाती है। 
कई बार हम को ऐसा लगता है कि अब हम अपनी शिक्षा में निपुण हो चुके हैं और लापरबाही वरतने लगते हैं जिसका नतीजा यह निकलता है कि जब कभी कोई  मुकाबला आता है या इम्तिहान आता है तो हमें नाकामयाबी का सामना करना पड़ता है और हमें साफ साफ महसूस होता है कि हमने अभ्यास में डील रखी थी। 
सोचा जाए अभ्यास का ही दुसरा नाम मेहनत है,  यह सभी जामते हैं मेहमत के विना कुछ भी हासिल नहीं होता,   जब हम किसी कार्य को तन मन धन से करते हैं तो हमारा सफल होना सौ प्रतिशत तय हो जाता है और जब हम  उसी कार्य का  लगातार प्रयास करते हैं तो हम उस कार्य में अव्वल नम्वर का दर्जा हासिल कर लेते हैं अगर हम उक्त कार्य को छोड़ देते हैं तो हम एकदम असफल रह जाते हैं। 
कहने का मतलब है कि अभ्यास हर तरह कि शिक्षा कै लिए बहुत जरूरी माना गया है, अगर हम औलपिंक खेलों की बात करें तो भारत के खिलाड़ी इतने ज्यादा स्थान नहीं कर पाते जितनै दुसरे देशों के कारण यही है बाकि दैशों के लोग वचपन से ही अपने बच्चों को अभ्यास करबाना शूरू कर देते हैं और  जल्दी ही हर कार्य मैं महारत हासिल कर लेतै हैं जबकि हमारे भारत में अभी अभ्यास को लेकर कमी नजंर आ रही है जिसके कारण कुछ  शिक्षा के क्षेत्र मै भारत अभी पिछड़ा हुआ है। आखिरकार यही कहुंगा की , हर प्रकार की शिक्षा के लिए अभ्यास बहुत जरूरी अपितु  अभ्यास के विना हम शिक्षा के हर क्षेत्र में पिछड़े रह जाएंगे। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
*करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान*
मानव जीवन में शिक्षा अति महत्वपूर्ण है शिक्षा स्कूल ही नहीं किसी भी क्षेत्र में शिक्षा का अपना अलग महत्व होता है अध्यात्म योग तकनीकी विज्ञान
चिकित्सा वाणिज्य वकालत किसी भी क्षेत्र में शिक्षा  अभ्यास भी अति आवश्यक है यदि शिक्षा का उपयोग न किया जाए तो वह निश्चित रूप से निष्क्रिय हो जाती है ज्ञान को जितना बाटेंगे  उसका प्रचार प्रसार करेंगे उतना ही ज्ञान का दीप प्रकाशित होगा उतना ही उसका विस्तार होता जाएगा हर बार कुछ न कुछ नया सीखने को मिलता ही है अभ्यास के अभाव में शिक्षा धीरे-धीरे विलुप्त हो जाती है ।
*बिना उपयोग के ज्ञान दीमक की तरह होता है स्वत: ही समाप्त हो जाता है*
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
शिक्षा शब्द संस्कृत के 'शिक्ष' धातु से बना है ।इसका अर्थ है -सीखना, सिखाना। यह  जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है। हमारे मानव जीवन के विकास का यह मूल साधन भी है। सही मायने में कहा जाए तो शिक्षा ही जीवन के विकास की धुरी  है । यह सीखने- सिखाने की एक क्रिया है तथा इसे सोद्देश्य सामाजिक प्रक्रिया के रूप में लिया जाता है इसलिए इसका अभ्यास बहुत आवश्यक है ।यदि जीवन में शिक्षा का अभ्यास रुक जाए या उसमें किसी तरह की रुकावट आ जाए तो हमारी विकास की प्रक्रिया में भी रुकावट या गतिहीनता पैदा हो जाती है ।मानव जीवन वर्तमान में जिस ऊँचाई तक पहुंचा है उसमें योगदान शिक्षा का है। कहा भी जाता है -' प्रेक्टिस मेक्स अ मैन परफेक्ट' अर्थात अभ्यास व्यक्ति को पूर्ण बनाता है । यदि अभ्यास की कमी होती है या अभ्यास का अभाव हो जाता है तो फिर हमारे सीखने- सिखाने की प्रक्रिया भी छूट जाती है और धीरे-धीरे शिक्षा  विलुप्त होने लगती है।
 - अरविंद श्रीवास्तव 'असीम ' 
दतिया - मध्य प्रदेश
अभ्यास के अभाव में शिक्षा विलुप्त हो जाती है यह कहना मुश्किल है किंतु इसे इस तरह कह सकते हैं कि मानव मात्र भूल का पात्र....यदि हम अभ्यास नहीं करते तो कुशलता तो हमारी कमजोर पड़ती ही है साथ ही साथ हम यदि लंबे समय तक अभ्यास नहीं करते तो हमारे मानस पटल से वह शिक्षा लुप्त तो नहीं होती किंतु अन्य पर्ते उपर आ जाती हैं !अभ्यास करते रहने से प्रतिदिन पर्त खुलती है और याद रह जाती है !वास्तव में अभ्यास करना यानी किसी भी बात को दोहराना ! दोहराते रहते हैं तो हम पूर्ण आत्मविश्वास के साथ अपने उस कार्य और अपने हुनर का प्रदर्शन करते हैं किंतु यदि हमने शिक्षा अथवा किसी भी क्षेत्र में विशारद हासिल की है और लंबे समय से अभ्यास नहीं किया है तो हम कहते हैं मैने किया तो है, सीखा तो है किंतु एकबार मुझे देखना होगा ,ट्राई करना होगा वगैरह वगैरह....उसका आत्मविश्वास डगमगाता है ! सोने को जीतना पीटो और निखरता है !उसी तरह अभ्यास करने से शिक्षा ,हुनर और निखरेगा ! जिस तरह साईकिल चलाना ,कार चलाना ,तैरना आदमी सीखने के बाद कभी नहीं भूलता केवल थोडा़ हाथ साफ करना पड़ता है ठीक उसी तरह अभ्यास बिना शिक्षा लुप्त नहीं होती बस एकबार देखने और दोहराने की जरुरत है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
अभ्यास के अभाव में विद्या लुप्त हो ही जाती है।इसका प्रमाण है वह विभिन्न भाषाएं जो लुप्त हो गयी, उनकी लिपि जो लुप्त हो गयी। कितने ही शिलालेख, पांडुलिपियों को प्रतीक्षा है कि कब उन्हें पढ़ा जाएगा।एक दोहा याद आता है
सरस्वती के भंडार की, बड़ी अपूर्व बात। जो खर्चे त्यों-त्यों बढ़े बिन खर्चे घटी जात।
सरस्वती का भंडार यानि ज्ञान,शिक्षा जितना इसको बांटे,खर्च करें,अभ्यास करें यह उतनी ही बढ़ती जाती है। अभ्यास करते रहने से मूर्ख भी
ज्ञानी बन जाता है।  एक दोहा और याद आ गया,
करते करते अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात ये,सिर पर पड़त निशान।।
अभ्यास के बल पर वरदराज जैसा अज्ञानी प्रख्यात व्याकरणाचार्य बना।
जबकि अभ्यास के अभाव में कितनी ही प्राचीन विद्याएं लुप्त हो गयी हैं।
- डॉ अनिल शर्मा 'अनिल '
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अभ्यास के अभाव में जो कुशलता या निखार होना चाहिए वह कम हो जाता है l निरंतर अभ्यास करते रहने वाले व्यक्ति के लिए अनिवार्य सफलता की गारंटी प्रदान करने वाला दोहा -
"करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान l
रसरी आवत जात ते, सिल पर परत निशान ll "
    अभ्यास से तो असाध्य माना जाने वाला कार्य भी सिद्ध हो जाया करता है l असफलता के माथे में कील ठोंककर सफलता पाई जा सकती है l जड़ बुद्धि समझा जाने वाला भी चेष्टा करते रहने से कुछ करने लायक बन सकता है l सफलता और सिद्धि का स्पर्श कर सकता है l
   कविवर कालिदास कवित्व शक्ति प्राप्त करने से पहले निपट जड़मति वाले ही थे l स्पष्ट है निरंतर अभ्यास ने तपाकर उनकी जड़मति को पिघलाकर बहा दिया, जो बाकी बचा वह खरा सोना था l संसार में जो आगे बढ़ते हैं वह असफलताओं को चूर चूर कर सफलता के सिंहासन पर आरूढ़ होकर चकित- विस्मित कर दिया करते हैं l
अपने अध्यवसायी रूपी रस्सी को समय की शिला पर निरंतर रगड़ते रहना चाहिए, अन्यथा धीरे धीरे अभ्यास के अभाव में शिक्षा, ज्ञान विलुप्त हो जाता है l
       चलते चलते ---
यदि हार मानकर मानव असफलता से घबराकर निराश बैठा रहता तो अभी तक आदिम काल की अँधेरी गुफाओं और बीहड़ वनों में ही भटक रहा होताl
       - डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
"करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान "यह कहावत आज तक प्रासंगिक और सामयिक है।अभ्यास, रियाज़,प्रेक्टिस चाहे जो भी दे दीजिये, इनके बिना शिक्षा प्रभावी नहीं रह जाती और शिक्षा शनैः शनैः अपनी समाप्ति की ओर अग्रसर हो जाती है। 
      जितनी भी व्यावसायिक शिक्षा है या कला,अभिनय,विज्ञान का क्षेत्र है। उन्हें संबंधित व्यवसाय के लिए, अभ्यास करते रहना आवश्यक होता है। तभी वे अपने कार्य को प्रभावी और सटीक रूप से कर पाते हैं। जिससे उन्हें नाम,धन,सम्मान मिलता रहता है। यश की प्राप्ति होती रहती है। 
     कोई विधि स्नातक है।अगल वह विधि के नियमों को, अद्यतन पढ़ता नहीं है, अद्यतन स्वयं को नहीं रख पाता है तो उसके व्यवसाय में आशातीत सफलता मिलने की संभावना नहीं रहती है। 
    अभ्यास या प्रैक्टिस के बिना मूल शिक्षा समाप्ति के कगार में पहुँच जाती है। 
- डॉ• मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
करत करत अभ्यास के ,जड़मति होत सुजान....प्रसिद्ध उक्ति पर हमें थोड़ा चिन्तन मनन करके ही  आज की चर्चा को आगे बढ़ाना चाहिए।शिक्षा अभ्यास के बिना पूर्ण रूप से विलुप्त नही होती पर उसकी स्थिति घुटने चलते बालक सी अवश्य हो सकती है जो गतिवान तो है, पर दौड़कर अपनी मंजिल नही पा सकता कहने का अर्थ शिक्षा निरन्तर सतत चलने वाली प्रक्रिया है और यदि उसमें अवरोध आ जायेगा तो वह शिथिलता प्राप्त कर धीरे धीरे विस्मृत होने लगेगी।यह भी सत्य है कि हमने पढ़ना लिखना सीख लिया तो फिर वो कैसे भूल सकते है परन्तु उससे भी बड़ा सत्य यह भी है कि हमने जिस वर्णमाला के आधार पर पढ़ना सीखा आज उसका अभ्यास नही रहने पर हममें से कितने लोग आज भी सही क्रम मे उसे लिख पाते है।आशय स्पष्ट है कि बिना अभ्यास से शिक्षा अपने प्रभावी स्वरूप से कमजोर होती ही है।इसी लिए सीखने को मनुष्य के जन्म से मरण तक अनवरत चलने वाली प्रक्रिया के रूप में स्वीकारा है।अत:शिक्षा के लिए निरन्तर अभ्यास या पाठकीय उपयोग आवश्यक है
- विमला नागला
अजमेर - राजस्थान
     "करत-करत अभ्यास से, जर मति हो सुजान" यह सत्य चरित्रार्थ होता हैं। धीरे-धीरे ही पढ़ाई-लिखाई करने से ही अभ्यास बढ़ता जाता हैं और अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होता हैं। जो पूर्व में गुरुकुल शिक्षा-दीक्षा दी जाती थी, वहां से परिपक्व होकर निकलता था, वहां की शिक्षा- दीक्षा अलग-अलग प्रकार की हुआ करती थी। स्वालंबन एवं समृद्धि की दिशा में ही अपना वर्चस्व स्थापित होता हैं। लेकिन अगर अभ्यास के अभाव में शिक्षा विलोपित हो जाती हैं, फिर अभ्यास पूर्ण नहीं करने से भविष्य में आत्मग्लानी का सामना करना पड़ता हैं। कभी-कभी देखने में यह आता हैं, कि जिसने कभी भी अभ्यास नहीं किया, उसका परिवार होनहार निकलता हैं और अपने आत्म विश्वास से बढ़ते चला जाता हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
         किसी भी चीज की स्मृति करते रहने से वह मानस पटल पर अच्छी तरह से बैठ जाती है इसीलिए शिक्षा के लिए भी अभ्यास बहुत जरूरी है। जितना अधिक अभ्यास होगा उतना ही अधिक शिक्षा का विकास होगा। अधिकांशतः लोग समझने की  बजाए  कुछ प्रश्नों को याद करके परीक्षा पास करने  की खानापूर्ति कर लेते हैं। इससे उनका सही बौद्धिक विकास नहीं होता और न ही उन्हें उस वस्तु विशेष का उचित ज्ञान प्राप्त हो पाता है। अभ्यास न करने से शिक्षा की विस्मृति होने लगती है और कुछ समय उपरांत पूर्णरूपेण उस चीज को भूल जाते हैं। निरंतर अभ्यास करते रहने से वस्तु विशेष का पूर्ण रूप ज्ञान हो जाता है और जीवन पर्यंत याद बना रहता है ।इसीलिए शिक्षा के लिए निरंतर अभ्यास अत्यावश्यक है।
श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
*मेरे विचार से ऐसा बिलकुल भी  नहीं है* 
यहां अपने विचार, मत को बल देने के लिये मै पूर्व चर्चा में व्यक्त पुन्ह: कुछ भाव व्यक्त करना चाहूंगा, मनुष्य का दिमाग सृष्टि के रचनाकार ने बहुत सुगढ़ता व् दूरदृष्टि से रचा है उसमें ३ अतिविशिष्ट हिस्से निर्मित किये,  ये ठीक उसी प्रकार हैं जैसे आज का कंप्यूटर मतलब सीधा २ ये हुआ की मनुष्य ने मनुष्य के ही दिमाग से कॉपी पेस्ट कर के ये मशीन जिसका नाम कम्प्यूटर है बनाई / लेकिन इन ३ अतिविशिष्ट जो  हिस्से हैं इनका जिकर करने से पहले [ क्यू कि इनके लेखन से चर्चा का भाव दुसरे विषय में तबदील हो जायेगा ]]  मैं  इसमें एक बात और जोड़ना चाहूंगा, वो है काल्पनिक यादाश्त [ आर्टिफिशियल मेमोरी ] या artificial intelligence सही technical भाषा में , जो की इस कंप्यूटर को सही सही मनुष्य के दिमाग के अनुसार सोचने को बल देती है साथ में इसकी programing . अब आते हैं आज की चर्चा के असली विषय पर  * *क्या अभ्यास  के अभाव में शिक्षा विलुप्त हो जाती है*  सीधा स्पॉट जबाब मैं दे चुका---- नहीं  !! बिलकुल नही ****
क्यों. ? क्यों कि ---  उसमें ३ अतिविशिष्ट हिस्से निर्मित जो  किये गए उनका काम यही है कि मनुष्य या मनुष्य द्वारा trained - पालतू जानवर भी या अन्य जानवर भी  [[[[ जैसे शरद रितू में आपने देखा होगा असंख्य प्रवासी पक्षी पुरे विश्व में और भारत भर में अन्य अन्य देशो से  जहां बर्फ के कारण सारा प्रिथवी भाग ढक जाता है तो अपने भोजन के लिये वे हजारो मील की यात्रा हर साल करते है लेकिन एक साल का लम्बा अंतराळ भी उनको ये सब भूलणे नही देता , ]] उन सभी पूर्व शिक्षित कार्य को भूल न जाएं हां जैसे ही उन अभ्यासों की पुनरावृति होती, करते  या कराई जाती है पूर्व में सिखलाये या सीखे सभी पाठ,  क्रियाएं बापिस उसी सुर ताल अभ्यास से प्रगट हो जाते हैं |  
यहॉँ मैं मेडिकल साइंस के २ अन्य उदाहरण देता हूँ जो आप अपने सामान्य जीवन में देखते रहते हो / एक साइकिल चलाना , एक पेन से लिखना कितना भी आपका अभ्यास छूटा हो कितना भी समय का अंतराल हो जैसे ही आप पूर्व में सीखे इन कर्मो को दोहराना शुरू करते हो ये उसी प्रशिक्षण के अनुरूप आपके पास आपके अंग संग आपकी धरोहर के रूप में परगट होते जाते हैं 
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
न केवल शिक्षा में, बल्कि जीवन के हर क्षेत्र में अभ्यास की महत्ता निर्विवादित है. अभ्यास के लिए महान कविवर वृन्द ने कहा है-
''करत-करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान।
रसरी आवत जात तें, सिल पर परत निसान।।''
शिक्षा के संदर्भ में तो अभ्यास की महत्ता और भी बढ़ जाती है. जैसे कैंची को बहुत समय तक उपयोग में न लाया जाए तो उसकी धार कुंद पड़ जाती है, उसी प्रकार शिक्षा का अभ्यास न किया जाए तो उसकी धार विलुप्ति की ओर अग्रसर हो जाती है. अभ्यास की महत्ता प्रतिपादित करने के लिए मैं अपनी ही एक मिसाल देना चाहूंगी. 
आज से लगभग 65 वर्ष पहले हम चार सखियों ने हारमोनियम की शिक्षा लेना शुरू किया था. हमारी बुजुर्ग प्रशिक्षिका का नाम श्रीमती सुखवर्षा था. उन्होंने हमें गुरबाणी के शबद बजाना सिखाया. वे एक महीने की फीस 10 रुपये लेती थीं. सीखना शुरू करते ही अपनी आदत के मुताबिक मैंने शिद्दत से सीखने के लिए पिताजी से कहके हारमोनियम भी खरीद लिया. प्रभु की कुछ ऐसी कृपा थी कि मुझे रोज़ एक शबद पक्का हो जाता था जब कि बाकी सबको एक-एक शबद में तीन-चार दिन लग जाते थे. घर में अभ्यास करने के कारण दस दिनों के अंदर मुझे गुरबाणी के अनेक शबद भी निकालने आ गए, साथ ही मैं भजन और फिल्मी गाने भी खुद ही  निकालने लग गई. हमारी प्रशिक्षिका ने  मुझे और सीखने की आवश्यकता न समझने के कारण मुझसे चार रुपये लेकर मुझे सिखाना ही छोड़ दिया, पर मेरा अभ्यास जारी रहा और रोज घर के कीर्तन में मैं हारमोनियम बजाने लग गई. समय मिलते ही शबद का अभ्यास जारी रहा. किसी बड़े गुरबाणी कार्यक्रम में शबद बजाने का अवसर मुझे 50 साल बाद मिला. कार्यक्रम के बाद सबका यह कहना था कि हमें तो आनंद आ गया. यह सब अभ्यास के कारण ही संभव हो सका था. पहले मैं अपनी इच्छुक सखियों को शबद सिखाती रही, फिर अपनी छात्राओं और सह अध्यापिकाओं को, फिर पड़ोसी महिलाओं को. आज भी जब कभी अवसर मिलता है, पोतों के कैसियो पर हाथ चलाती रहयी हूं. अगर अभ्यास जारी न रखा होता, तो अभ्यास के अभाव में मेरी हारमोनिअयम शिक्षा विलुप्त हो गई होती. जीवन के हर क्षेत्र में अभ्यास की महत्ता निर्विवादित है.
 - लीला तिवानी 
दिल्ली
अभ्यास अर्थात् पुनरावृत्ति। यदि किसी भी शिक्षा की पुनरावृति नहीं होगी तो निश्चित रूप से वह विलुप्त हो जायेगी। अभ्यास एक ऐसी सतत् प्रक्रिया है जो मनुष्य की शिक्षा में वृद्धि हेतु निरन्तर अवसर प्रदान करती है। अभ्यास के द्वारा ही किसी भी प्रकार की शिक्षा में त्रुटियों का ज्ञान होता है और उन त्रुटियों को दूर कर शिक्षा के विकास क्रम को जारी रखा जा सकता है। शिक्षा की स्थिरता और विकास के लिए अभ्यास ही एकमात्र माध्यम है। इसलिए यह सही है कि अभ्यास के अभाव में कोई भी शिक्षा धीरे-धीरे मन-मस्तिष्क से विस्मृत होती जाती है और एक दिन स्वमेव विलुप्त हो जाती है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
बिना अभ्यास के शिक्षा या कोई भी काम को हम भूल जाते हैं।फिर जब हम जरूरत के समय शुरु करते हैं तो हमारे अंदर आत्म विश्वास नहीं रहता है।
अभ्यास या शिक्षा ज्ञान ऐसा ज्ञान है जिसको हम जितना दिन पर दिन बाटेंगे उतना ही बढ़ता है जैसे हम गाड़ी चलाना यदि सीखना चाहते हैं और सीख लेते हैं तो उसका रोज अभ्यास करना पड़ता है नहीं तो हम जब सड़क पर चलेंगे तो हम घबरा जाते हैं और बहुत सालों बाद आदत हमारी छूट जाती है।
अक्सर हम महिलाओं के साथ यह होता है कि हम अपनी शिक्षा को भी घर गृहस्ती में भूल जाते हैं और जब हमें कभी लिखना पढ़ना या बहन का या बाहर का कोई काम करना होता है तो हम कर तो लेते हैं पर हमारे मन में एक अजीब सा डर रहता है इसलिए पुराना पढ़ा लिखा हमें याद रखना चाहिए और जो काम हमने सीखा है सीखने और सिखाने की प्रक्रिया जीवन पर्यंत चलती रहती है उसे अच्छे से अपने जीवन में इस्तेमाल करना चाहिए।
स्वास्थ्य ही सच्चा धन है।
प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
      विश्व में शिक्षा ही एकमात्र ऐसा धन है जो खर्च करने पर बढ़ता है। अर्थात शिक्षा समेटना हानिकारक सिद्ध होता है। जिसे प्रयोग ना करने पर उसका हनन होता है और उसी अभाव में धीरे-धीरे विलुप्तता की कगार पर पहुंच जाती है।
      उल्लेखनीय है कि 'करत-करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान' अर्थात जैसे कुएं से पानी निकलने पर रस्सी के बार-बार आने-जाने से कठोर पत्थर पर भी निशान पड़ जाते हैं वैसे ही बार-बार अभ्यास करने पर मूर्ख व्यक्ति भी एक दिन कुशलता प्राप्त कर लेता है।
      अतः प्रत्येक कार्य के अभ्यास की भांति शिक्षा का अभ्यास भी निरंतर जारी रखना चाहिए। क्योंकि किसी भी वस्तु का त्याग करने से वह वस्तु विलुप्त हो जाती है। इसलिए निरंतर पूजा अर्चना के साथ-साथ शिक्षा का अभ्यास भी अति आवश्यक है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
किसी काम में पारंगत होने के लिए उस काम में निरंतरता बनाए रखने की आवश्यकता होती जो बार-बार अभ्यास करने से ही संभव है। जैसे जब एक शिशु  चलना सिखता है तो बार-बार ठोकर खाता है, गिरता है परंतु वह डरकर या थककर चलना नहीं छोड़ता इसलिए वो पहले सहारे के साथ चलना शुरू कर फिर बिना सहारे के चलना सीख लेता है।इस उदाहरण का उल्लेख हमें यही शिक्षा  देता है कि किसी भी कार्य के लिए अथक प्रयास और निरंतरता आवश्यक  है और उसको करने से ही सफलता मिलेगी।अभ्यास करना अगर छोड़ दिया जाय तो बहुत बार हम सबक भूल जाते हैं।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
इस दुनिया में सब कुछ बांटा जा सकता है या बंट जाता है परंतु शिक्षा ही है जो बांटी नहीं जा सकती । शिक्षित व्यक्ति की शिक्षा यदि बंटती रहे तो बढती जाती है किन्तु यदि शिक्षित व्यक्ति उस शिक्षा को अपने में ही समेट कर रखना चाहे या समेट कर रखे तो वो शिक्षा क्षीण होती जाती है और एक दिन वो व्यक्ति शिक्षा शून्य हो जाता है ।
शिक्षित व्यक्ति को चाहिए कि वो अपनी शिक्षा का प्रचार प्रसार करे उसे बांटे तभी उसकी शिक्षा का समुचित विकास सम्भव है ।
शिक्षित व्यक्ति को लगातार अपने ज्ञान और शिक्षा में बढोतरी भी करते जाना चहिये ।
 ऐसा करने से उसकी शिक्षा का जहां विस्तार होगा वहीं उसके शिक्षित होने का समाज को भी लाभ मिलेगा ।
   अन्त में कहना चाहूंगा कि अपने भीतर समेटी रखी गई शिक्षा बावली के पानी पर तैरते उस शैवाल कि तरह है जो निर्मल जल को भी प्रदूषित कर देता है ।।
    - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
एक लकड़हारा है वह जब भी लकड़ी काटने बैठता है तो सबसे पहले अपनी कुल्हारी आरी को खूब हंसता है पत्थर पर जिससे कुल्हाड़ी का धार तेज हो जाए जिसका अर्थ यह हुआ किसी भी काम को करने के लिए अभ्यास की आवश्यकता है दो पंक्ति की दोहा भी है करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान रसरी आवत जात ते सिल पर परत निशान
रस्सी एक कोमल चीज है लेकिन एक पत्थर पर या कुएं के चबूतरे पर बार-बार जिसने से पत्थर भी घिस जाता है ।
उसी प्रकार अभ्यास के माध्यम से सीखी हुई कोई भी कला में निपुणता हो जाती है अगर अभ्यास करना छोड़ दिया जाए तो मस्तिष्क में छवि तो बनी रहेगी परधुंधली पड़ जाएगी
अभ्यास के बिना शिक्षा विलुप्त नहीं होती पर धुंधली हो जाती है इसलिए अभ्यास मस्तिष्क को तीव्र बनाता है जिससे सफलता आसानी से हासिल हो सकता है
वर्तमान शिक्षा प्रणाली मे अभ्यास का बहुत महत्व दिया गया है व्यवहारिक शिक्षा पर जोर दिया गया है सिद्धांत इक शिक्षा के साथ-साथ व्यवहारिक महत्त्व भी है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
शिक्षा विलुप्त नहीं हो रही है संस्कार विलुप्त हो रही है।
वर्तमान शिक्षा प्रणाली में सबसे बड़ा दोष यह है कि हमारे बच्चों के व्यक्तित्व के निर्माण में सहायक नहीं है।
शिष्टाचार एवं नैतिकता किसे कहा जाता है यह कभी सिखाया ही नहीं जाता बल्कि गणित विज्ञान अंग्रेजी आदि विषयों पर जोर दिया जाता है।जिससे बच्चे पढ़ना तो सीख लेते हैं लेकिन संस्कार नैतिकता व शिष्टाचार किसे कहते हैं उस से अनभिज्ञ रहते हैं।
बच्चों के व्यक्तित्व का विकास पारिवारिक वातावरण में रखते हुए करना चाहिए।आजकल की युवा पीढ़ी के सोच पाश्चात्य देशों जैसा हो गया है एकल परिवार का होना ,अपने बुजुर्गों को वृद्धा आश्रम में रख देना।इसलिए आजकल के बच्चे बड़ों का आदर करना भूल रहे हैं हमें आधुनिक बनना चाहिए लेकिन अपने संस्कारों को नहीं भूलना चाहिए।
लेखक का विचार :--शिक्षक व अभिभावक अपने बच्चों को नैतिक मूल्य की जानकारी दें। समय-समय पर अपने परिवारों के साथ मिलकर शिष्टाचार और नैतिकता की बात बताना चाहिए।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
कहा जाता है "करत करत अभ्यास से जड़मत होत सुजान "इस पंक्ति से अभ्यास की महत्ता का पता चल जाता है। अभ्यास  से ही लोग तोते को भी बोलना सिखा देते हैं। जब बच्चा दो साल के आसपास होता है, वो अभ्यास से ही हजारों शब्दों को घर में ही अभ्यास से सीख जाता है 
      मानव जीवन में किसी भी प्रकार की शिक्षा ग्रहण की हो लेकिन जब अभ्यास छूट जाता है तो उस में परिपक्वता नहीं आती ।धीरे-धीरे अभाव में वो शिक्षा विलुप्त होने लगती है। यह बात भी सही है कि एक बार ली गई शिक्षा भूलती नहीं। यह बात भी ध्यान देने योग्य है कि अभ्यास के अभाव में शिक्षा पूर्णता खोने लगती है ।
आज कल करोना की वजह से स्कूल बंद हैं। बच्चों की शिक्षा आनलाइन हो रही है। शहरों में तो ठीक है लेकिन गाँव के बच्चे शिक्षा से पूरी तरह कट गए हैं। अभ्यास ना होने के कारण छोटे छोटे बच्चे तो पूरी तरह कोरे हो गए हैं। बालग होने पर जो शिक्षा ग्रहण की होती है वो जल्दी जल्दी विलुप्त नहीं होती। इस लिए अभ्यास बहुत जरूरी है। 
   - कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 

" मेरी दृष्टि में "  अभ्यास पर ही जीवन का विस्तार निर्भर होता है । जीवन का अनुभव भी अभ्यास से आता है ।   अभ्यास जीवन में निरन्तर जारी रहना चाहिए । तभी अभ्यास सफलता अर्जित करता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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