क्या सभी पढें - लिखों को सरकारी नौकरी देना सम्भव है ?

सरकार सभी पढ़ें - लिखों को सरकारी नौकरी कभी भी नहीं दे सकती है । पढें - लिखों को अपने कारोबार खोलने चाहिए । तभी पढें - लिखों के रोजगार में सतुलन बन सकता है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
नहीं, यह बिल्कुल सम्भव नहीं है। सभी पढ़ें-  लिखे लोगों में से आजकल बहुत कम हीं लोगों को सरकारी नौकरी मिल पाती है, चाहत तो लगभग सब की होती है सरकारी नौकरी पाने की,  लेकिन यह सम्भव हीं नहीं है। फिर भी मेरे विचार से विलक्षण प्रतिभा वाले लोगों को सरकारी नौकरी सरकार को अवश्य देनी चाहिए  ताकि उनकी  शैक्षणिक जानकारी का लाभ सरकारी क्षेत्र को मिलता रहे। आजकल हर क्षेत्र,  हर समाज के लोग लगभग शिक्षा को प्राथमिकता दें रहें हैं, इस कारण बहुत से लोग पढ़ -लिख कर इस काबिल होते हुए भी सरकारी नौकरियों से वंचित रह जाते हैं। देश के इस विकराल जनसंख्या में सरकारी नौकरियां कम हैं उस वनिस्पत। फिर देखा जाए तो व्यवस्था को बराबर बनाए रखने हेतु यह भी सही हीं है,  क्योंकि अगर हर व्यक्ति सरकारी नौकरी हीं करेगा  तो फिर ऐसी बहुत सारी गैर-सरकारी जगहों पर कौन कार्य करेगा?  जिनकी भी हमारे समाज को अति आवश्यकता है। हमारा देश एक कृषि - प्रधान देश के नाम से सदैव जाना जाता रहा है फिर इस क्षेत्र हेतु तो लोग चाहिए हीं । इसी प्रकार बहुत सारे क्षेत्र है जिनको सम्हालने के लिए लोगों की आवश्यकता होती है भले हीं वह गैर सरकारी क्षेत्र हीं होते हैं। सरकारी नौकरियों का दायरा कुछ बढ़ाने की आवश्यकता है जनसंख्या को देखते हुए ताकि कुछ अधिक लोग सरकारी नौकरी से लाभान्वित होंगे।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
       वैसे तो असम्भव कुछ भी नहीं होता परन्तु प्रत्येक पढ़े-लिखे को सरकार द्वारा सरकारी नौकरी देना सरकार के लिए सम्भव भी नहीं है। इसके साथ ही यह कहना भी अनुचित नहीं होगा कि यदि कोई मात्र नौकरी के उद्देश्य से पढ़ाई-लिखाई करता है तो ऐसे पढ़े-लिखों पर लानत है।
       इसके अलावा यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगा कि पढ़ाई का अर्थ मात्र नौकरी प्राप्त करना नहीं होता। जबकि पढ़ाई-लिखाई का अर्थ व्यक्ति के उज्ज्वल सुनहरे भविष्य का मार्ग प्रशस्त करना होता है। जो उसके ज्ञान बढाने में सहायक सिद्ध होती है। उसको मौलिक कर्तव्य एवं मौलिक अधिकार के साथ-साथ राष्ट्र निर्माण का पथप्रदर्शक बनाती है। क्योंकि पढ़ाई-लिखाई राष्ट्रीय चरित्र निर्माण कर उसे चरितार्थ करने में सक्षम होती। 
       यही नहीं पढ़े-लिखे को आत्मनिर्भर बनाने में पढ़ाई सर्वश्रेष्ठ भूमिका निभाती है और जो आत्मनिर्भर होता है उसे नौकरी ढूंढने की आवश्यकता ही नहीं पड़ती।
       सर्वविदित है कि पढ़ाई के ज्ञान से व्यक्ति अपने व्यक्तिगत उद्योग लगा सकता है और दूसरो को नौकरियां देकर राष्ट्र निर्माण में अग्रसर पंक्ति का व्यक्तित्व पा सकता है। पढ़ाई-लिखाई वह सामाजिक गुण है जो मूर्ख को भी प्रमाणित बुद्धिमान बना देती है। जिसकी उपाधियों के बल पर वह राष्ट्र के किसी भी संवैधानिक पदस्त व्यक्ति से मिल सकता है और चाहे तो उसी बल से वह स्वयं राष्ट्र का राष्ट्रपति बन सकता है। जो राष्ट्र का सर्वोच्च संवैधानिक पद होता है। 
- इन्दु भूषण बाली
 जम्मू - जम्मू कश्मीर
भारत क्या पूरी दुनिया में भी यह संभव नहीं है कि सभी पढ़े -लिखों को सरकारी नौकरी मिले।भारत में फिलहाल 3.75% लोग ही सरकारी नौकरी करते हैं। यह दर दिन प्रतिदिन कम हो रही है। 
     हमारे देश की यह विडम्बना ही है कि स्नातक तक की शिक्षा वाला दफ्तरी काम चाहता है। घरेलू उद्योग या तकनीकी काम को तरजीह नहीं देता है जिस वजह से घर बैठे बेरोजगारों की तादाद बढ़ रही है। आज का युवा वाइट-कोलर जाॅब चाहता है। जब वो नहीं मिलती तो
 थक हार कर विदेशों को दौड़ता है। वहाँ जाकर घटिया जाॅब भी हंस कर करता है लेकिन अपने देश में हीनता महसूस करता है। 
         हमारे देश के युवाओं को यह बात अच्छी तरह समझ लेनी चाहिए कि कोई भी काम छोटा बड़ा नही होता। जब काम को समर्पित भाव से करें गो तो  कामयाबी  अवश्य मिलेगी। खाली दिमाग शैतान का घर होता है।दिमाग की खुराक  काम में लगे रहना है। इस लिए अपने वित्त के अनुसार कोई भी काम धंधा करने में कोई बुराई नहीं है। सभी पढ़े लिखों को सरकारी नौकरी मिले संभव नहीं है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब।
यह तो असंभव ही है।ऐसा तो किसी काल में न हुआ,न होगा। इतनी नौकरियां आएंगी कहां से?
कौन से पद सृजित होंगे जिन पर नियुक्ति दी जाएगी। चुनावी घोषणा अलग बात है,वरना सब पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरियों की बात दिवास्वप्न ही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक 
देश में लगभग 35 लाख सरकारी केन्द्रीय कर्मचारी हैं। हमारे भारत में सरकारी कर्मचारियों का औसत प्रति एक लाख आबादी में कुल 139 सरकारी कर्मचारी हैं।जबकि अमेरिका में यह औसत प्रति एक लाख पर 668 है। उत्तर प्रदेश में लगभग 16 लाख सरकारी कर्मचारी हैं (राज्य) है।जबकि उत्तर प्रदेश की आबादी 2019 में 22 करोड़ से अधिक हो गई है। इन कुछ आंकड़ों की तस्वीर बताती है कि सब पढ़ें लिखों को सरकारी नौकरी मिलना असंभव ही है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
सभी पढ़े लिखों को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है  क्योंकि पूरे भारतवर्ष में बेरोजगारी   का सबसे बड़ा कारण है जितनी तेजी से कर्मचारी रिटायर हो रहे हैं उसके अनुरूप नए कर्मचारियों की भर्तियां नहीं हो पा रही इसीलिए प्राइवेट क्षेत्र में काम के आधार पर रोजगार, स्वरोजगार तथा परंपरागत हुनर के अनुरूप भी युवा वर्ग रोजी रोटी का जुगाड़ कर सकते  है । यद्यपि हर बेरोजगार को रोजगारपरक बनाना सरकार की प्राथमिकता रहती है परंतु कुछ मापदंडों के आधार पर इस समस्या से निजात पाई जा सकती है। सरकार का भी यही मानना है कि सभी को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है । मेरा यह मानना है कि पढ़ा-लिखा बेरोजगार युवक यदि हुनरमंद है तो वह अपनी प्रतिभा के माध्यम से स्वरोजगार में सफलता प्राप्त कर सकता है । सभी पढ़े-लिखे युवा  केवल सरकारी नौकरी के पीछे न भागकर  अपनी योग्यता और शिक्षा के आधार पर मनपसंद व्यवसाय चुनकर बेरोजगारी का समाधान पा सकते हैं ।
- शीला सिंह
 बिलासपुर -  हिमाचल प्रदेश
सरकारी नौकरियां सभी पढ़े लिखो को देना संभव नहीं है। इसके लिए मेरे नौजवान बहुत ज्यादा प्रयत्नशील नहीं रहे। 
सरकारी नौकरी पाने के लिए बहूत से कड़े नियम है जिसमें हम सभी लोग सम्मिलित नहीं हो पा सकते हैं।
नौजवानों से अपील करते हैं अगर आप में हुनर और काबिलियत है तो प्राइवेट नौकरी में जाकर अपने भविष्य उज्जवल बनाएं। 
अगर आपको कोई मल्टीनेशनल फार्म या अच्छे फर्म मैं सेवा करने का मौका मिला तो सरकारी नौकरी के बराबर वहां सुविधा मिलती है। और आप मे काबिलियत है तो बहुत जल्द पदोन्नति हो सकती है।
 यहां कोई रिजर्वेशन का फंडा नहीं है।
जिस भी व्यक्ति को सरकारी या प्राइवेट नौकरी नहीं मिल पाती है वह अपना व्यापार स्थापित करके 5-10 व्यक्ति को नौकरी देने के लायक हो सकते हैं। सरकार ऋण के  सुविधा मुहैया कर रही हैं।
 बस थोड़ा लग्न की आवश्यकता है।
छोटी-छोटी प्रयास से ही देश विकास की ओर अग्रसर हो सकता है।
 इसमें कॉटेज इंडस्ट्री प्रमुख है।
हमारे नौजवान प्रयास करें सरकार आपके साथ है।
लेखक का विचार:-हमें जो शिक्षा मिल रही है वह सिर्फ सरकारी नौकरियों के लायक ही बनाती है। इसलिए हम सरकारी नौकरी के लिए उत्सुक रहते हैं।
प्रधानमंत्री का कथन है यंग इंडिया हुनर और कौशल विकास पर ध्यान दें तो हमारा देश विकास के आग अग्रिम पंक्ति में खड़ा हो सकता है।
मेरे नौजवान विचार करें।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
सभी पढ़े लिखें लोगों को नौकरी सरकारी  मिले यह आवश्यक नहीं l पोस्ट कमऔर सरकारी नौकरी चाहने वाले अधिक, उस पर फिर आरक्षण l अतः प्रत्येक को सरकारी नौकरी नहीं मिलती l यहाँ तक कि कितनी बार योग्यताओं को भी ताक में रख दिया जाता है l 
     सरकारी नौकरी के लिए आंदोलन करना, बेवकूफी है l पटरी उखाड़ना आदि राष्ट्र को क्षति पहुँचना है l इससे तो अच्छा है हम अपने कौशल, हुनर, व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त कर जीविकोपार्जन करें l नौकरी बहुत हैं, क्षेत्र बहुत हैं अपनी योग्यता के बल पर प्राइवेट /सरकारी या व्यवसाय में सफलता प्राप्त कर सकते हैं l 
      चलते चलते --
सरकारी नौकरी भी अब चक्की में पिसने जैसी हो गई l अपने हुनर से अपनी किस्मत आजमाइए l अम्बानी, टाटा की कम्पनियां यूँ ही खड़ी नहीं हुई है, बुद्धि और परिश्रम के बल पर नाम रोशन कर रही हैं l 
     - डॉo छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
सम्भव - असम्भव की बात तो बाद में करेंगे। पहले तो बात करते हैं बेरोजगारी उन्मूलन के प्रति सरकारों के संकल्प और प्रतिबद्धता की। यह सही है कि सभी पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरी देना किसी भी सरकार के लिए सम्भव नहीं है। हां यदि सरकार साफ नियत से काम करे और सक्षम अधिकारी भ्रष्टाचार की छाया से दूर रहें तो रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सकती है। परन्तु दुर्भाग्य तो यही है कि लोकतंत्र के नुमाइंदों की सोच और कोशिश केवल चुनावी वायदों तक ही सीमित रह गयी हैं। भ्रष्टाचार पूरी सीनाजोरी से कायम है। भाई-भतीजावाद सरकारी नौकरियों के सन्दर्भ में निराशा उत्पन्न करता है और ऐसे में पिस रहा है पढ़ा-लिखा बेरोजगार।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
सवा सौ करोड़ जनसंख्या में सब को सरकारी नौकरी दे पाना असंभव है क्योंकि हमारा देश जनसंख्या की दृष्टि में दूसरा नंबर है हमारे देश के आईटी सेक्टर के बच्चे खुद अमेरिका में नौकरी कर रहे हैं और बाहर दूसरे देशों में जा रहे हैं आजकल बच्चों का रुझान सरकारी नौकरी की अपेक्षा प्राइवेट में ज्यादा है क्योंकि सरकारी में तो प्राइवेट कंपनियों को बेचा जा रहा है तो कहां से सरकारी नौकरियां संभव होगी अब हमें तो बच्चों को यही सिखाना पड़ेगा कि ऐसा कार्य करो जिससे आप स्वयं रोजगार उत्पन्न कर सको और दूसरों को रोजगार दे सको।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
इस का सीधा उत्तर तो "नहीं" है 
किन्तु देश में चयन प्रक्रिया से ले कर इंटरव्यू तक के ऊपर क्वश्चन मार्क लगते रहे हैं ।
      जब कोई भी पोस्ट निकालती है तो ऐप्लाई करने की प्रोसेस बेहद खर्चिली है ऊपर से टेस्ट देने एक पोस्ट के पीछे पाँच हजार बेरोजगार भागते दिखते हैं । शिफारिशी टट्टू अपना जुगाड पैसे खिला कर या वाक्फियत से भिडा लेते हैं । पंचायत प्रधान, जिला पार्षद,एम एल ए,एम पी, परदेश के मन्त्री, मुख्य मन्त्री,केंद्र के मन्त्री  तक अधिकारियों को अपने अपने चहेते तलबगारों की सुचि देते हैं और साथ ही अधिकारियों दो धम्काते हैं कि यदि उसके बन्दे सिलैक्ट ना किये तो देख लेना ।
कहने का भाव ये कि अन्त में उन्हीं के चाहने वाले ही नियुक्ति पाते हैं । योग्यता कोने में बैठ कर सिसकियां भरती है । अब तो सिफारिशी नियुक्तियां फौज तक में होने लगी हैं जो देश की अखंडता और एकता पर भी संकट पैदा करेगी । देश के किसी भी प्रांत की बात ले लो कुर्सियों पर बैठे अधिकांश कर्मचारी और अधिकारी नालायक भरे पडे हैं ।
ये सत्य है कि सरकार सभी को नौकरी नहिं दे सकती परंतु हमारे देश में शिफारिश और रिश्वत ऐसा घुन है जिसका यदि शीघ्र समाधान नहीं किया गया तो देश अंदर से खोखला हो जायेगा और प्रतिभा का पलायन होगा ।।
  -  सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
पढ़ाई लिखाई से इंसान को जीने का व काम करने का  तरीका आता है, अच्छे व बुरे की समझ आती है, हम सब कार्यों को अच्छे तरीके से कर सकते हैं, हिसाब किताब में कोई दिक्कत नहीं आती,| सरकार  लोगों को पड़ने में मदद करती है ताकी एक सुलझा समाज हमें मिल सके ना कि सबको सरकारी नौकरी लगा दे | बेरोजगारी हमारे समाज में नहीं बल्कि हमारे दिमागों में है जोकि घर बैठे रोजगार चाहते हैं जबकि मेरे मायने में सही सोच ये है कि  ऐसा काम करो जोकि औरों को भी रोजगार दिलवाये|
- मोनिका सिंह
डलहौजी - हिमाचल प्रदेश
सरकारी नौकरी के लिए प्रतियोगिता परीक्षा उत्तीर्ण करना जरूरी होता है।  जो  सफल होगा उसे सरकारी नौकरी मिलेगी। कोई जरूरी नहीं कि सभी पढ़े लिखे सफल ही हो जाएं । सरकार को चाहिए कि जो पद रिक्त पड़े हुए हैं उसे वह अवश्य भरे। 
    यह भी हकीकत है कि सरकारी नौकरियों की जिस तरह से कटौती हो रही है, हर संस्थान में निजीकरण हो रहा है, वह आगे चलकर बहुत ही घातक साबित होगा । जब सरकारी नौकरी बचेगी ही नहीं तो देने का सवाल ही नहीं पैदा होगा।
     जब सांसद एक बार चुनाव जीतने के बाद सारी जिंदगी पेंशन  लेने के हकदार हो जाते हैं तो आम जनता क्यों नहीं उम्मीद करें कि उन्हें भी सरकारी नौकरी मिले ताकि वह भी वृद्धावस्था में जीवनयापन  चिंता मुक्त होकर कर सकें।
      हम सभी इन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर गंभीरता से
ध्यान नहीं दे रहे हैं लेकिन आगे चलकर हमारी अगली पीढ़ी के लिए यह बहुत ही नुकसायनदायक साबित होगा।
  निजीकरण के बाद निजी कंपनियां हमारे बच्चों का शोषण करेगी। काम के अनुपात में उन्हें वेतन कम देगी या अपनी मनमानी करेगी, जब मर्जी  नौकरी से निकाल देगी--- अगर हम इन सभी ज्वलंत मुद्दों पर ध्यान दें तो हमें सच्चाई का आभास होगा कि सरकारी नौकरियों का घटना आगे चलकर हमारे बच्चों के लिए कितना घातक साबित होने वाला है।
                  - सुनीता रानी राठौर 
               ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
सभी पढ़े लिखों को सरकारी नौकरी देना बिलकुल सम्भव नहीं है और नहीं पढ़ाई लिखाई केवल सरकारी नौकरी के लिए करना चाहिए ।देश की इतनी बड़ी जनसंख्या है और हर पढ़े लिखे व्यक्ति को सरकारी पद देना असंभव है।पढ़ाई लिखाई इंसान की बौद्धिक क्षमता को विस्तृत करता है।एक अच्छी पढ़ाई लिखाई करने वाला व्यक्ति सिर्फ सरकारी नौकरी पर ही निर्भर नहीं रहता ।उसके लिए बहुत सारे धनोपार्जन के मार्ग खुल जाते हैं ।निजी संस्थानों में  उनकी योग्यता के आधार पर अच्छी नौकरी मिल जाती है।पढ़ा लिखा आदमी चाहे तो वो खुद का कोई कारोबार कर सकता है ,अपना संस्थान खोल दूसरों को भी रोजगार दे सकता है ।
           -  रंजना वर्मा उन्मुक्त
रांची - झारखण्ड
पढ़ाई   व्यक्ति के जीवन का महत्वपूर्ण भाग होता है, जो व्यक्ति अपनी पढ़ाई अच्छे ढंग से  कर लेता है वह व्यक्ति बहुत ही बेहतर ढंग से अपना  जीवन व्यतीत कर सकता है, 
आइयै आज बात करते हैं कि क्या पढ़ने लिखने का  मतलब सिर्फ सरकारी नौकरी लेना ही है, क्या सभी पढ़े लिखों को सरकारी नौकरी देना सम्भव है। 
मेरे ख्याल में  ऐसा किसी भी कंटृी में नहीं हो सकता क्योंकी सरकारी नौकरीयां बहुत सीमित हैं और पढे़ लिखों की जनसंख्या बहुत अधिक है इसलिए हरेक को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है, 
ऐसा में पढ़े लिखों को अपना रोजगार स्थापित करना होगा और स्वरोजगार की और प्रेरित होना होगा। 
अगर ऐजुकेशन की बात करें इसका मतलब सिर्फ नौकरी पाना ही नहीं है, इससे आप अपने पुरे जीवन को सुधार सकते हैं व अपने जीवन में सुधार ला सकते हैं। 
अपने देश की बात करें तो हमारा भारत बहुत वड़ा देश है और इसकी जनसंख्या भी बहुत है इसलिए सभी को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं क्योंकी  पढे़ लिखों की संख्या के मुताबिक पोस्टें है ही नहीं इसके ऐलावा जितने कर्मचारी कार्य करते हैं अगर उन सभी को भी रिटायर कर दिया जाए  तो भी ऐसा कर पाना संभव नहीं हो सकता। 
इस समय देश में जरूरत है जनसंख्या नियंत्रण कानून की लेकिन ऐसा करने में अभी समय लग सकता है, तब तक पढ़े लिखे युवाओं को अपनी  सोच को बदलना होगा क्योंकी आजकल प्राइवेट सैक्टर में पैसा व इज्जत बहुत है इसलिए युवा पीढ़ी को टैक्निकल हुनर पर भी जोर देना होगा ताकी वो अपना रोजगार खुद कर सकें या प्राइवेट  कम्पनी में भी कार्य कर सकें। 
 ऐसे में पुरे संसार में किसी भी गवर्नमैंट के पास ऐसी व्यवस्था नहीं है कि इतने लोगों को सरकारी नौकरी दी जा सके, 
सोचा जाए १३० करोड़आबादी वाले देश में जनसंख्या का अनुपात अभी वढ़ रहा है तो ऐसी स्थिति में हरेक पढ़े लिखे को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं। 
आखिर में यही कहुंगा पढ़ा लिखा  व्यक्ति बहुत ही बेहतर ढंग से अपना जीवन व्यतीत कर सकता है और बहुत आसानी से हर मुश्किल से बाहर निकल सकता है इसलिए पढे़ लिखे युवाओं को सिर्फ सरकारी नौकरी की तलाश मे ही अपना कीमती समय नष्ट नहीं करना चाहिए अपितु टैक्निकल ऐजुकेशन पर भी जोर देना जरूरी है जिससे वो अच्छे से अच्छा प्राइवेट कार्य हासिल कर सकें और अपने जीवन में खूव तरक्की पांए क्योंकी ऐजुकेशन का मेन फंक्शन है एक बेहतर इन्सान का निर्माण करना और उसे अच्छा कैरक्टर देना जिससे वो हर क्षेत्र में कामयाब हो सके। 
सच कहा है, 
"न जाने क्या हुनर पेश करती हैं साहब
बस इतना जानते हैं कि
ये जो किताबें हैं
वे काबिल बनाकर छोड़ती हैं"। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
सरकारी नौकरी को स्थायित्व की गारंटी, अधिक वेतन और बेहतर सुविधाओं वाला मनकर सभी पढ़े-लिखे लोग सरकारी नौकरियों के पीछे भागते हैं. सम्भवतःसभी पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरी देना सम्भव नहीं है.  इसका पहला कारण है जनसंख्या के आधिक्य के साथ-साथ साक्षरता और शिक्षा का अत्यधिक प्रचार-प्रसार-विस्तार. दूसरे शिक्षा में नौकरी पाने की योग्यता भी सब में नहीं ही होती. इसका कारण शिक्षा में रोजगार आधारित शिक्षा न होने जैसी कुछ खामियां होना भी है, फिर सभी शिक्षा को गंभीरता से लेते भी नहीं. शिक्षा महज डिग्री पाने का जरिया बन गई है. सरकार का तो पूरा प्रयास रहता है, कि कम पढ़े-लिखों को भी सरकारी नौकरी मिल जाए, लेकिन ऐसी नौकरियां सभी को स्वीकार्य नहीं होतीं. 
- लीला तिवानी 
दिल्ली
सभी पढ़े लिखे को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है, इस बात को सभी बेरोजगार जानते-समझते हैं और इससे किसी को शिकवा भी नहीं है, परंतु यह कहकर बचा नहीं सकता। जरूरत है रिक्त पड़े पदों की और अतिरिक्त पद सृजन की। किंतु संबंधित विभाग और मंत्री इस विषय को लेकर गंभीर नजर नहीं आते और न उत्साहित। निजीकरण की प्रक्रिया से  विभागों को जिस तरह समाप्त किया जा रहा है, चिंतनीय है। इससे एक तरफ नौकरियां खत्म हो रही हैं दूसरी तरफ शासकीय आमदनी के सतत स्त्रोत भी कम हो रहे हैं। शिक्षक, पुलिस और राजस्व विभाग में काफी पद और भर्तियां संभव हैं मगर इस ओर न ध्यान है न रुझान। जब तक नैतिकता, त्याग,जिम्मेदारी और स्व शक्तियों का एहसास नहीं जागेगा कोई कुछ नहीं कर सकता। नीतियां निर्धारित करना चाहिए, अनावश्यक खर्चों पर रोक लगनी चाहिए। कठिन कुछ भी नहीं, असंभव कुछ भी नहीं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
पढ़ाई-लिखाई, डिग्रियों के अंबार अधिकतर लोग नौकरी की उम्मीद से ही करते हैं। लेकिन यह मुमकिन नहीं है कि हर किसी को मन चाही नौकरी मिल ही जाए। इसलिए बच्चों को दो दिशाओं को लेकर अपना पथ तैयार करना चाहिए।
 इन सब से अलग एक और रास्ता है - खुद का काम। अपनी मनचाही राह चुनो और थोड़ी मेहनत और लगन के साथ आगे बढ़ते जाओ। मेहनत हर जगह करनी ही है। क्यों नहीं अपने लिए करें ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आज की चर्चा में जहाँ तक यह प्रश्न है की क्या सभी पढ़े लिखे को सरकारी नौकरी देना संभव है तो इस पर मैं कहना चाहूंगा की यह एक असंभव कार्य है और जैसा मानना ही गलत है वास्तव में शिक्षा का वास्तविक अर्थ पढ़ लिख कर केवल सरकारी नौकरी प्राप्त करना ही नहीं है और ना ही यह सब को प्राप्त हो सकती है पढ़ लिख कर व्यक्ति को ऐसा बनना आवश्यक है कि वह परिवार समाज और देश के विकास में अपना योगदान दे सकें और इसके लिए केवल नौकरी ही आवश्यक नहीं है बहुत से ऐसे उद्योग उद्योग धंधे लघु व कुटीर किस्म के भी हैं जिन्हें सफलतापूर्वक संचालित करके न केवल अच्छी आय प्राप्त की जा सकती है बल्कि दूसरों को भी प्रेरणा दी जा सकती है और अपने आसपास के लोगों को भी रोजगार दिया जा सकता है इससे न केवल दूसरों को निर्भरता कम होगी बल्कि व्यक्ति स्वंय रोजगार प्रदाता बन सकता है और अन्य लोगों को भी एक रास्ता दिखा सकता है वास्तव में शिक्षा का मतलब एक संस्कारी सुशिक्षित एवं सभ्य  नागरिक तैयार करना होना चाहिए हां आजीविका के लिए धन उपार्जन बहुत आवश्यक है किसके लिए शिक्षा के साथ साथ ही व्यवसायिक रूप से भी तैयारी की जानी चाहिए और शिक्षा का स्वरूप कुछ इस तरह से होना चाहिए कि वह अच्छे नागरिक तैयार करने के साथ-साथ रोजगार परक भी हो जिससे शिक्षा पूर्ण करने के बाद व्यक्ति केवल नौकरी मिलने के भरोसे पर ही न रहे बल्कि यदि कुछ समय प्रयास के बाद नौकरी नहीं मिल पाती तो वह स्वयं का अपना रोजगार कर सकें और अपने जीवन यापन को बेहतर ढंग से कर सके और दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सके़।
प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
           आज के समय में  गरीब अमीर  सभी  का  पढ़ाई का  स्तर  बढ़ता जा रहा है। लाखों व्यक्ति बड़ी-बड़ी डिग्रियां लिए नौकरी की तलाश में घूम रहे हैं। इतने लोगों के लिए सरकारी नौकरी मिलना संभव नहीं है क्योंकि उतने सरकारी पद ही नहीं है ।सभी  पढ़े लिखों को उनकी योग्यता अनुसार सरकारी नौकरी के लिए उससे अधिक नहीं तो कम से कम उतने पदों की संख्या होना चाहिए। पर उतने पदों का सृजन संभव नहीं है। अतः सभी पढ़े लिखों को सरकारी नौकरी देना भी संभव नहीं है।  अन्य क्षेत्रों में व्यवसायियों के व्यवसाय सृजन द्वारा पढ़े लिखों को सरकारी मानक के अनुसार  पद  निर्मित करके कुछ हद तक इस समस्या को हल किया जा सकता है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
अगर सरकार चाहे तो सभी पढ़े- लिखों को सरकारी नौकरी दे सकती है। शत प्रतिशत तो किसी भी चीज में सम्भव नहीं है फिर भी अस्सी से नब्बे प्रतिशत पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरी दे सकती है। जब देश आजाद हुआ था तो यही तय हुआ था कि लोगों ज्यादा से ज़्यादा नौकरी दिया जाय। नो प्रॉफिट नो लॉस के आधार पर सरकारी फैक्टरियों में काम दिया जाय। लेकिन सरकार आज कल मुनाफा खोजती है। उन्हें पैसे लूटना है । तभी तो भारतीय संचार विभाग को जो रोज उस वक्त चौदह करोड़ की आय वाला विभाग था उसे बीएसएनएल बनाकर लूट किया। सरकार के पास तीन बहुत बड़ा-बड़ा विभाग था जिसमें कई लाखों लोगों को नौकरी दिया जाता था और दिया जा सकता है।लेकिन अब तो सरकार नहीं व्यापार हो गया है। वो तीन विभाग था पी एंड टी,रेलवे,और मिलिट्री। लेकिन सब में भर्ती किसी का बन्द तो किसी का अर्धबन्द कर दिया गया है।
    आज मंत्रियों की संख्या अनगिनत है , सबके विभाग है। मंत्री बहाल हो सकते हैं जनता नहीं । ये कहाँ का नियम है। हर विभाग में लोगों की कमी है।चाहे वो केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार। लेकिन नहीं सरकार मुनाफा खोजती है। लोग भर्ती करने से डरते हैं पैसा देना पड़ेगा तो हम लूट नहीं कर पाएंगे।
आज हमारे सभी पड़ोसी देश हमारे दुश्मन बन हुए हैं। तो क्या इस समय ये जरूरी नहीं है कि हम अपनी सैन्य संख्या बढ़ाये। युवा देश के लिए मरने को तैयार हैं। उन्हें क्यों नहीं भर्ती लिया जा रहा है। रेलवे में लाखों जगह खाली है उसमें क्यों नहीं भर्ती हो रहा है। केवल मुनाफा चाहिए और लूटना चाहिए। अपना वेतन बढ़ा लो। पाँच साल एम एल ए , एम पी, रहो पेंशन लो। मगर सरकारी दफ्तर बन्द करो। एम्प्लायमेंट बन्द करो। सारा देश प्राइवेट कर दो। न सरकारी कुछ रहेगा न कोई नौकरी मांगेगा।
कुछ करने का इरादा हो तो बहुत कुछ किया जा सकता है। न करने का हो तो बहुत बहाना बनाया जा सकता है।
शत प्रतिशत न सही फिर भी बहुतों को दिया जा सकता है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
एक करोड़ पैतिस लाख की आबादी वाले देश भारत में सभी पढ़े लिखो को सरकारी नौकरी मिलना दूर-दूर तक संभव नहीं है। इतना ही नहीं भारत में सरकारी नौकरी की बात तो दूर निजी कंपनियों में ठेकेदारी में भी काम मिलना या नौकरी मिलना आसान नहीं है। देश में उच्च शिक्षा प्राप्त युवाओं, जिसमे इंजीनियरिंग और एमबीए पास को क्लर्क और चपरासी जैसे पद के लिए आवेदन देना पड़ रहा है। यह कोई कहावत नहीं बल्कि सच्चाई है कि सरकारी नौकरी पाना भगवान का दर्शन करने जैसा हो गया है। उदाहरण के तौर पर इसी वर्ष रेलवे ने 30 वर्ष के अंतराल में 100000 नौकरियों के लिए वैकेंसी निकाली, जिसमें ट्रैकमैन कुली और इलेक्ट्रिशियन का पद शामिल था। रेलवे में इस 100000 की नौकरी के लिए दो करोड़ 30 लाख आवेदन आए। ऐसी बात नहीं है कि सिर्फ रेलवे में ही नौकरियों के लिए भारी संख्या में आवेदन आते हैं। इसके कुछ ही सप्ताह बाद मुंबई पुलिस में 1137 सिपाही के पद के लिए लगभग दो लाख युवाओं ने आवेदन दिया, जबकि सरकारी पुलिस विभाग और रेलवे में जिन पदों के लिए वैकेंसी निकाली गई थी उसमें 10 वीं पास होना है अनिवार्य होता है। अब एक और बड़ी उदाहरण ले लेते हैं कि देश में सरकारी नौकरी के लिए लाखों की संख्या में युवा वर्ग प्रयास करते हैं कि उनकी नौकरी हो जाए। वर्ष 2015 में उत्तर प्रदेश के सचिवालय में क्लर्क के 368 पदों के लिए 2 करोड़ 30 लाख आवेदन आए। यानी एक पद के लिए 6250 आवेदन आए। इतनी भारी संख्या में आवेदन आने के कारण सरकार को इस भर्ती को रद्द करना पड़ा, क्योंकि यदि इतने लोगों का इंटरव्यू लेना पड़ता तो लगभग 4 साल लग जाते। देश में युवा वर्ग सरकारी नौकरी इसलिए प्राप्त करना चाहते हैं की इसमें जॉब की सिक्योरिटी रहती है। दूसरा कारण है कि सरकारी सुविधाएं मिलती है। इसकी एक और बड़ी वजह है कि शादी ब्याह में दहेज भी खूब मिलता है। लेकिन देश की विडंबना है कि सभी शिक्षित में से तीस प्रतिशत को भी सरकारी नौकरी मिलना आसान नहीं है। देश में स्नातक और स्नातकोत्तर पास युवा लोग प्राइवेट कंपनियों में ठेकेदारी में नौकरी कर रहे हैं। इसकी वजह देश में व्यापक पैमाने पर बेरोजगारी होना बताया जाता है। 
- अंकिता सिन्हा कवयित्री 
जमशेदपुर - झारखंड
     विश्व में पढ़ें-लिखों की एक क्रांति सी आई हैं और सभी वर्ग चाहते हैं, सरकारी नौकरियों में सेवाऐं दें तथा पेंशन के हकदार बनें।
     आजादी के पहले सरकारी नौकरियों का कोई प्रावधान नहीं था, जो चाहे, वे राजा-महाराजाओं के यहाँ इच्छानुसार आजीवन, परिवारवाद की तरह विभिन्न प्रकार की नौकरियां करते थे।
     अग्रेंजो की सत्ताओं के दौरान सरकार तंत्र का प्रावधान प्रारंभ हुआ जो देश आजाद होने उपरान्त भी यथावत हैं।
     वर्तमान समय में पढ़ें-लिखों की संख्याओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तियां होती जा रही हैं, सरकारी तंत्र में पद रिक्त नहीं हैं, जो सेवा निवृत्त होते जा रहे हैं, उनकी पूर्ति की जगहों को समाप्त करते हुए और बेरोजगारों को बेरोजगार बनाया जा रहा हैं। दूसरी ओर ध्यान केन्द्रित किया जाये तो अधिकांशतः अर्द्धशासकीय संस्थाओं में नौकरियां तो दी जा रही हैं किंतु अस्थाई रूप से, जहाँ वेतन तो कम से कम तो हैं, परंतु समयांतर नहीं हैं, जहाँ नौकरियों में सेवाऐं देने तत्पर नहीं दिखाई देते।
     अंत में स्वयं के व्यवसाय पर आत्म निर्भरता दिखानी पड़ती हैं, वहां पर प्रतिस्पर्धात्मक चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं।
     आज परिस्थितियां बिल्कुल बदलती जा रही हैं, सरकारी नौकरियों में तलवार लटकते हुए दिखाई दे रही हैं, जिसका समयानुसार नीजि कम्पनियों के हस्तें हस्तांतरित करते दिखाई दे रहे हैं? फिर आखिर  बेरोजगार जायें तो जायें कहां?
     आज शासकीय हो या अर्द्धशासकीय विभिन्न विभागों की नौकरियों में इंटरव्यू का सामना करना पड़ता हैं, एक प्रतिस्पर्धात्मक नीलामी का माहौल, फिर भ्रष्टाचार का जन्म वही से प्रारंभ होता हैं, जो रिश्वत देकर नौकरियों में आयेगा तो स्वाभाविक ही हैं, भ्रष्टाचार करेगा ही? होनहार देखते रह जाते हैं? स्थितियाँ दिनोंदिन बदलते जा रही हैं? भविष्य में युवाओं का क्या होगा।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सभी पढ़े लिखों को सरकारी नौकरी देना असंभव् है ......ये अलग बात है की हर पढ़े लिखे व्यक्ति की दिल से इच्छा होती है की उसे सरकारी नौकरी मिले  !!
सरकारी नौकरी पाने मैं अनेकविसंगतियां अड़चन बनती हैं .....मंहगे फॉर्म ......समय पर सूचना के लिए सरकार की अनदेखी .....इंटरव्यू व चयन प्रक्रिया हमारे देश का प्रसिद्द भ्रष्टाचार .....आदि
योग्यता के आधार पर केवल पांच प्रतिशत को ही सरकारी नौकरी मिल पाती है .ऐसी स्थिति मैं लोगों कोनिराशहोने के बजाय स्वरोज़गार अथवा अन्य प्राइवेट नौकरी मैं अपनी आजीविका ढूंढ लेनी चाहिए .....अपने अपने हालात के अनुसार .
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
सभी पढ़े-लिखे सरकारी नौकरी में जाना चाहें यह आवश्यक नहीं है। सरकारी नौकरी करने के लिए आवश्यक योग्यता का होना भी आवश्यक है। इन योग्यताओं पर वास्तव में खरे उतरने वाले सभी उम्मीदवारों को सरकारी नौकरी देने की संभावनाओं पर यदि विचार किया जाये और उचित प्रबन्धन किया जाये तो काफी हद तक सफलता मिल सकती है। असंख्य सरकारी विभागों में नौकरियों के लिए स्थान कई-कई वर्षों से रिक्त पड़े हैं जो किसी न किसी सरकारी तंत्र की अड़चन से भरे नहीं गए। यदि भरे भी जाते हैं तो आपत्तियों के चलते पुनः रिक्त हो जाते हैं। हर वर्ष लाखों युवा नौकरी के लिए तैयार हो जाते हैं। सरकारी नौकरियों के इच्छुक उम्मीदवारों का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। यदि यह सिलसिला ऐसा ही चलता रहा तो यही कहना होगा कि सभी पढ़े-लिखों को सरकारी नौकरी देना सम्भव नहीं है। 
- सुदर्शन खन्ना 
दिल्ली 
सभी पढ़े लिखे लोगों को सरकारी नौकरी देने संभव नहीं है । शिक्षा प्रदान करते समय विद्यार्थियों को ऐसा ज्ञान देने चाहिए जिससे वे स्वयं ही रोजगार का निर्माण कर सकें । उनमें छुपी हुई प्रतिभा को उजागर कर उनके भविष्य को सुखद बनाया जा सकता है । कोई भी कार्य छोटा या बड़ा नहीं होता , गुणवत्ता का ध्यान रखना  बहुत जरूरी होता है ।
अभिभावकों को भी ऐसी सोच से बचना चाहिए ,  बच्चों का पालन पोषण करते समय उनमें सकारात्मक चिंतन का गुण अवश्य भरना चाहिए ।  शिक्षा हमारा सर्वांगीण विकास करे इस ओर हमें ध्यान देना होगा । अपनी सोच को बदल कर ही स्वस्थ जीवन जिया जा सकता है । सरकार और सरकारी नौकरी का रोना रोने से कुछ नहीं होगा ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
संभव तो नहीं है किंतु सिस्टमेटिक तरीके से व्यक्ति की योग्यता के आंकलन के आधार पर हो ,भ्रष्टाचार  ,भाई भतीजावाद ना हो  तो कुछ हद्द तक मिल सकती है किंतु इसमें भी कोटा होता है आरक्षण का कोटा ,वीआई पी कोटा , जाने और कौन कौन से अनेक कारण होते हैं ! यह भी तो होता है रेलवे में काम करने वाले का बेटा रेलवे में लग जाता है इसी तरह हर क्षेत्र में होता है ! पढ़ लिखकर मन चाहा काम नहीं मिलता तो क्या अनेक क्षेत्र खुले हैं पढा लिखा तो है ही कहीं भी कमा सकता है ! अपनी बुद्धी और पढा़ई का उपयोग खेती में लोग करते हैं नयी नयी टेक्नीक का उपयोग कर बहुत कमाई करते हैं व्यवसाय में आगे बढ़ते हैं !बस सोच सकारात्मक हो और हिम्मत न हारे कहीं भी काम कर सकता है ! हां यह तो मानना पडे़गा सरकारी नौकरी बिना सिफारिश के मिलना संभव नहीं है चूंकि इंटरव्यू तो नाम के होते हैं सीट पहले ही बुक होती है !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
 सभी पढ़े लिखे को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है ।अगर सब संसार के पढ़े-लिखे हो जाएंगे और उस सब नौकरी करने लगेंगे तो लोग क्या खाएंगे ?पैसा नहीं ना। मनुष्य की भूख वस्तुओं से मिट़ती है ना कि पैसे से ।पैसा एक प्रतीक है ।वर्तमान दुनिया में इसी के पीछे भागे जा रहे हैं, सभी के पास पैसा होगा ,लेकिन खाने के लिए कोई उत्पादन नहीं करेगा, तो पैसा तो खाया नहीं जा सकता ना ।हां कुछ लोग पढ़े लिखे और उनके अंदर हुनर  है ऐसे लोग नौकरी कर सकते हैं। लेकिन कभी नहीं कर सकते। सभी नौकरी करने लगेंगे तो व्यवस्था बिगड़ जाएगी। ऐसा हो ही नहीं सकता। हां व्यवस्था के अर्थ में उत्पादन वाला भी अगर नौकरी है तो ऐसे में नौकरी कर सकते हैं ,लेकिन सिर्फ पैसा वाला है तो इस से काम नहीं चलेगा अतः अंतिम में यही कहते बनता है कि आज वर्तमान दुनिया में पैसे की जरूरत नहीं उत्पादन और वस्तु की जरूरत है जिसके लिए सभी को नौकरी करने की आवश्यकता नहीं है  श्रम करके उत्पादन करने की आवश्यकता है। सरकार सभी को नौकरी नहीं दे सकती।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
विषय दो है सभी पढ़े लिखे लोग और सरकारी नौकरी।
पढ़ाई लिखाई का संबंध बौद्धिक विकास योग्यता के विकास बौद्धिक क्षमता के विकास साथ ही 7 डिग्री से लगाया जाता है किसी भी नौकरी के लिए चाहे वह सरकारी हो या गैर सरकारी हो दोनों प्रकार की नौकरियां के लिए योग्य एवं उपयुक्त व्यक्ति का चुनाव किया जाता है भारत की जनसंख्या इतनी अधिक है कि सभी को सरकारी नौकरी देना सरकार के लिए संभव नहीं है लेकिन साथ ही साथ पढ़ाई लिखाई से इंसान स्वरोजगार कर सकता है वह दूसरे को नौकरियां दे सकता है तो कहीं ना कहीं एंप्लॉयमेंट की समस्या कम हो सकती है
हर पढ़ा लिखा इंसान रोजगार को पा सकता है दोनों के वेतन में बहुत ही बड़ा अंतर देखने को मिलता है अगर इस विषय पर सरकार सजग हो जागरूक हो चाहे वह प्राइवेट कंपनी हो चाहे वह सरकारी वेतन योग्यता के अनुसार है पद के अनुसार ही मिले तो इतनी असंतोष की भावना नहीं आएगी
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
शिक्षा का असली मकसद मनुष्य का सर्वांगीण विकास है। हमारे देश में अधिकतर युवा पढ़ाई के बाद सरकारी नौकरी करना चाहते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण  है आजीवन मिलने वाली सुविधाएं और वित्तीय सुरक्षा।दूसरा कारण है काम करने में कोताही भी की जा सकती है और अगर कोई कमी भी रह जाए तो ज्यादातर उसपर सवाल भी नही उठाया जाता। हालांकि आजकल सरकारी विभागों में भी कड़ाई हो गई हैं जो लोगों को हजम नही हो रही है। हलांकि ये भी सच है कि हमारे देश की जनसंख्या इतनी अधिक है कि हर पढ़े-लिखे लोगों को सरकारी नौकरी मिलना मुश्किल है। हमारे युवाओं को प्राइवेट कंपनियों में नौकरी का अवसर तलाश करने के साथ-साथ स्वरोजगार अपनाकर अपने साथ-साथ समाज और देश के उत्थान में हाथ बंटाने की कोशिश करनी चाहिए।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
जी नही सभी पढ़े लिखे लोगों को नौकरी दे पाना असम्भव है। क्योंकि  पढ़े लिखे लोगों लोगों की संख्या बहुतायत में है न इतनी नौकरियां  हैं  न सरकार के पास इतना पैसा ।कई नौकरियों में अभी  भी विश्वबैंक से कर्ज लेकर सरकार  वेतन दे पाती है ।लेकिन हाँ पढ़ा लिखा व्यक्ति बेरोजगार नही रह सकता अगर उसमे इच्छाशक्ति व दृढ़ संकल्प है तो वह प्राइवेट नौकरी व स्वरोजगार भी भलीभांति कर सकता है पैसे कमा सकता है और स्वाभिमान का जीवन जी सकता है स्वावलम्बी बन सकता है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
शिक्षा मानव के लिए बहुत जरूरी है
शिक्षा उद्देश्य केवल नौकरी पाना ही नहीं इससे आपकी बुद्धिमता ज्ञान अपना अधिकार हित की जागरूकता का विकास होता है सभी पढ़े लिखों को सरकारी नौकरी देना संभव नहीं है
समाज और देश को सुचारू रूप से चलने के लिए हर क्षेत्र में मानव की आवश्यकता है ऐसे विभिन्न क्षेत्र हैं उद्योग इकाइयां हैं वह सरकारी नहीं है प्राइवेट है निजी करण है ऐसे में हर एक पढ़े-लिखे को सरकारी नौकरी मिलना संभव नहीं है हां यदि सरकार पारदर्शिता पूर्ण कार्य करें सभी विभागों में ईमानदारी से नियुक्तियां हो तो इस समस्या को कुछ हद तक कम अवश्य किया जा सकता है अधिक से अधिक लोगों को सरकारी नौकरी मिल सकती है सभी को देना संभव नहीं है।
देश के विकास के लिए प्राइवेट संस्थानों का भी होना आवश्यक है
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली

" मेरी दृष्टि में "  सरकारी नौकरी के अतिरिक्त भी पढें - लिखों के लिए विभिन्न उधोग हैं । जो दुनियां का आधार है । जिन्हें पढें - लिखें ही चलते हैं । यही पढें लिखों की सोच होनी चाहिए । तभी सरकार रोजगार में सतुलन बना कर सरकारी नौकरी देती है।
                                        - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान

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