ममता श्रवण अग्रवाल से साक्षात्कार

नाम-ममता श्रवण अग्रवाल
उपनाम-अपराजिता
पति का नाम  -श्री श्रवण अग्रवाल
पिता का नाम - स्वर्गीय श्री श्याम सुंदर अग्रवाल
माता का नाम - श्रीमती कमला अग्रवाल
जन्म तिथि  - 13 अप्रैल
शिक्षा   - एम ए हिंदी साहित्य और कई डिप्लोमा कोर्स

विधा     छंद मुक्त काव्य  सृजन, गजल, कहानी , लघु कथा ,संस्मरण ,आलेख आदि।

प्रकाशित कृतियाँ : -
श्री साई सच्चरित्र( प्रश्नोत्तरी)
धरती की पुकार (वृहद कविता)
नारी तू नारायणी (नारी की शक्तियों को दर्शाती माँ अम्बे की नव दिवसीय आराधना)
नानी और बेटू(बाल रचना)
अग्र कीर्ति कथा
और अभी 10 अक्टूबर 20 को प्रकाशित हुई मेरी अनुपम कृति
सरल रामायण (जो कि सम्पूर्ण राम कथा है और बाल कांड से उत्तरकांड तक पूरी सरल भाषा में हैऔर अमेजॉन में भी उपलब्ध है )

विशेष : -

- इसके अलावा भारत और विदेश की पत्र पत्रिकाओं में प्रकाशन
- आकाशवाणी रीवा से रचनाओं का नियमित प्रसारण
- प्रकाशन के लिये  15,000 दोहों की एक *साई दोहावली* के नाम से दीर्घ कृति
- भारत माता अभिनंदन संगठन राजस्थान की सतना इकाई की जिलाध्यक्ष
-  अभी  फरवरी को पैंतीस महिलाओं को उनके अलग अलग क्षेत्रों में उल्लेखनीय कार्यों के लिए ऑफ लाइन कार्यक्रम में सम्मानित किया
  -   वाट्स अप ग्रुप के तीन पटल में सचिव और एक पटल में  सह सचिव पद
- हिंददेश परिवार की मध्यप्रदेश इकाई की संरक्षिका का दायित्व भार
- हिन्ददेश की अमेरिका इकाई में समीक्षक और लाइव काव्य पाठ  सह प्रभारी
-  अभी बाइस मार्च को  हिंददेश के स्थापना दिवस पर हिंददेश परिवार की *प्रचार मंत्री* के पद का भी दायित्व का  भार  मिला है।
- पांचवी कक्षा में ही मैने अंताक्षरी के दौरान पहला दोहा लिखा था।
- दो वर्षों से नियमित सुविचारों के लेखन से लोगों में सकारात्मक भावों का प्रवाह करने का भाव।

पता : अपर्णा निकेतन
श्री श्रवण कुमार अग्रवाल
श्री साईनाथ मंदिर के बाएं गेट के सामने धवारी
सतना - 485001  मध्यप्रदेश - भारत

प्रश्न न.1 - आपने किस उम्र से लिखना आरंभ किया और  प्रेरणा का  स्रोत क्या है ? 

उत्तर - पहले मैं मां स्वर,शब्द दायिनी को🙏 नमन करती हुए मैं बताना चाहूंगी कि मैने पांचवी कक्षा में पहला दोहा लिखा था जो दोहे के मापदंड पर सही नही था पर सुनने में सटीक था। हुआ यह है कि हमारे विद्यालय में उन दिनों शनिवार को आधी कक्षा लगने के बाद अंताक्षरी होती थी जिसमे हमारी टीम *ड* अक्षर पर फंस गई ।उन्हीं दिनों हम *रामलीला* देखते थे जिसमें मैने यह दृश्य देखा था कि परशुराम जी को प्रभु श्री राम  धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा कर अपना अस्तित्व बताते हैं । इसी बात को मैने दोहे में कहा :- 

डोर खींच संदेह मिटाई,

परशुराम उर राम लगाई।

और मुझे नही ज्ञात था कि मेरी जीवन की यह शुरुआत आगे जाकर मुझसे *रामायण जैसा* ग्रंथ भी लिखवा लेगी ।

अब बात आती है प्रेरणा की तो यह तो मेरा जन्मजात गुण था जिससे कि मैं हमेशा ही  निबंध आदि लिखते समय अंत में चार लाइन का पद्य अवश्य लिखती थी और फिर मैं तो लोगों की शादियों ,जन्म दिन , आलेख ,संपादकीय आदि बहुतायत में लिखने लगी पर मेरे लेखन को कोई मान नहीं मिला था तभी करीब बीस वर्ष पूर्व जब मुझे मेरे गुरुजी मुझे मिले और उन्हें मेरी लेखनी का भान हुआ और उन्होंने कहा कि मेरे अंदर अध्यात्म का पुट है तो मैं अध्यात्म दर्शन पर अपनी लेखनी चलाऊं और लोगों के लिए लिखना बंद करूं और सच ,प्रभु की महिमा और गुरु जी का आशीष कि आज मैने बड़े बड़े  चार ग्रंथ और छोटी छोटी कितनी पुस्तकें लिख डाली और सुविचार जो कि  करीब दो वर्ष से लगातार लिख रही हूं उनका पठन भी फेस बुक पटल पर कर रही हूं।


प्रश्न न. 2 - आप की पहली रचना कब और कैसे प्रकाशित या प्रसारित हुई है ?

उत्तर - मैं अग्रवाल समाज से हूं तो मेरी पहली रचना  करीब इक्कीस वर्ष पूर्व *अग्र कीर्ति* *कथा* के नाम से हमारे पितृ पुरुष महाराजा अग्रसेन जी जयंती जो कि अक्तूबर  नवरात्रि की प्रतिपदा को होती है  मुझे अपनी कृति।उनकी जयंती के एक दिवस पहले मिली थी और जयंती के दिन सुबह प्रभात फेरी में बांटी गई थी ।फिर इसी पुस्तक को देखकर गुरुजी ने मुझे आगे लेखन की आज्ञा दी थी।


प्रश्न न. 3 - आप किन-किन  विधाओं में लिखते हैं और सहज रूप से सबसे अधिक किस विधा में लिखना पंसद करते हैं ?

उत्तर - मैं, मूलतः आलेख लेखन करती हूं पर बड़ी कहानियां, लघु कहानी, लघुकथा,छंद मुक्त काव्य,गजल (परंपरा से अलग ) मुक्तक आदि लिखती हूं ।लोग मुझे आशु कवि कहते हैं।


प्रश्न न. 4 - आप साहित्य के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं ? 

उत्तर - ये मेरे जीवन का सबसे अमुल्यतम प्रश्न है🙏

मेरा जीवन ही साहित्य को समर्पित है एवम मेरा सदैव यही प्रयास रहता है कि मैं लोगों को एक दिशा दे सकूं और मेरे प्रतिदिन लिखे जाने वाले सुविचार ,मेरी छोटी रचनाएं आदि इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है । मैं ज्यादा क्या बोलूं ,मेरा काम बोलेगा । मेरी लिखी *सरल रामायण* भी *किशोर * से *युवा वर्ग के लिए ही लिखी* गई है।


प्रश्न न. 5 - वर्तमान साहित्य में आप के  पसंदीदा लेखक या लेखिका की कौन सी  पुस्तक है ?

उत्तर - मैं वैसे तो शांत स्वभाव की हूं और सौंदर्य की उपासक भी हूं पर गलत चीजों को सहन नहीं कर पाती हूं तो इस स्वभाव के कारण मैं माननीय जयशंकर प्रसाद जी और दिनकर जी को बहुत मानती हूं और देखिए सभी साहित्यकार इतने  उम्दा और गहन सृजनकारथे कि उन्हें और खुद को मैं किसी परिधि से नहीं बांध सकती। मैं सभी से कुछ सीखने की कोशिश सदैव ही करती हूं । मैं सभी को पढ़ती हूं।


प्रश्न न. 6 - क्या आपको आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होने का अवसर मिला है ? ये अनुभव कैसा रहा  है ?

उत्तर - जी ।दूरदर्शन तक तो अभी नही गई हूं पर रीवा आकाशवाणी में जाने का अवसर कई बार मिला और अभी भी मिल रहा है तो जब पहली बार गई तो बड़ा ही गर्व हुआ मुझे भी और परिवार के लोगों को भी और उनका मानना है कि मेरी आवाज थोड़ा मधुर है तो लोग मेरी कहानियां सुनना ज्यादा पसंद करते हैं और मैं वहां कहानीकार के रूप में जानी जाती हूं।


प्रश्न न. 7 - आप वर्तमान में कविसम्मेलनों को कितना प्रासंगिक मानते हैं और क्यों?

उत्तर - ये बड़ा ही गंभीर और समय के अनुसार पूंछा गया प्रश्न  है। मैने कभी पढ़ा था कि कवि बनते नही पैदा होते हैं पर आज तो मैने देखा कि कवि बन रहे हैं ।मुझे कितने लोग बताते हैं कि वो दो साल से लिखने लगे या छह महीने से लिख रहे हैं और उन्हें इतने पुरस्कार भी मिल गए तो मैं आश्चर्य में पड़ जाती हूं । मैं कहना यह चाहती हूं कि *साहित्य समाज का दर्पण होता* *है और साहित्यकार* *उस दर्पण* का *बोधक* और यदि एक कवि इस श्रेणी का है कि उसकी रचना किसी का मार्ग प्रशस्त नहीं कर सकती तो फिर ऐसे कवि सम्मेलन जैसे आयोजनों का क्या औचित्य और यदि लोग कवि की रचनाओं से प्रभावित होते हैं तो यह तो एक नेक कार्य है।


प्रश्न न. 8 - आपकी नज़र में साहित्य क्या है  तथा  फेसबुक के साहित्य को किस दृष्टि से देखते हैं ?

उत्तर - जैसा कि मैने बताया कि  समाज में पूर्व में घटित या  संभावित घंटना या वर्तमान की स्थितियों से साक्षात्कार करवाना साहित्यकार का उद्देश्य होना चाहिए । *एक सच्चा साहित्यकार* *युग दृष्टा होता है और उसका* *सृजन कालजयी* और आपका दूसरा प्रश्न, तो इस पर मैं  कहूंगी कि मुझे तो फेस बुक ने ही मेरा परिचय अपनों से भी और दुनिया से भी करवाया और यह आज के साहित्यकारों के लिए श्रेष्ठतम और सुविधा जनक साधन है बस रचनाओं का दुरुपयोग न हो तो।


प्रश्न न.9 - वर्तमान  साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सरकारी व गैरसरकारी पुरस्कारों की क्या स्थिति है ?

उत्तर - मैं इस बारे में ज्यादा सटीक नहीं कह पाऊंगी ।कहीं मुझे अच्छे अनुभव हुए हैं और कहीं ऐसे भी कि पुरस्कार दाता को हिंदी तक तो आती नहीं तो वे रचना की श्रेष्ठता को क्या समझेंगे ।मुझे अभी तक सरकारी कोई पुरस्कार नही मिला है और मैं पूरे प्रयास में हूं कि भारत सरकार से एक पुरस्कार प्राप्त करूं । मैने अभी अपनी दो *कृतियां अखिल भारतीय साहित्य सम्मान* हेतु भेजी भी हैं  

और गैर सरकारी सम्मान तो दो सौ तीन सौ होंगे।


प्रश्न न. 10 - क्या आप अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना या संस्मरण का उल्लेख करेगें ? 

उत्तर - जी बिलकुल 🙏😄 यह एक हास्य की बात भी है ।

मैं उन दिनों बीए के द्वितीय वर्ष में थी तभी २८फरवरी को दीदी की शादी थी और १०मार्च की होली । चूंकि दीदी की शादी घर की पहली शादी थी तो सभी में बड़ा उत्साह था ।

इसी के चलते हमने दीदी की ससुराल से उनके देवर , ज्येष्ठ ननद सभी को एक पत्र लिखकर  बुलाया था और वे कोई नही आए थे और एक हफ्ते बाद उनके देवर जिन्हें पत्र की कोई जानकारी नहीं थी , वे अपनी भाभी यानी दीदी से मिलने आए और हम कई सारी चचेरी बहनों ने उन्हें यह कहकर परेशान किया कि आप हम लोगों से डर कर होली में नही आए  जबकि उन्हें इस बारे में कुछ पता नहीं था वे इलाहाबाद से आए थे और दीदी की ससुराल बांदा में है ।

जब वे बांदा गए और पत्र को देखा तो उन्हें यह समझ में नहीं आया कि पत्र लिखा किसने है पर थोड़ा थोड़ा उन्हें मेरे लेखन के बारे में पता लग चुका था । उन्होंने एक मूल पत्र लिखा और तीन कार्बन कॉपी की और हम चार बहनों को अलग अलग भेजा दिया । मेरे हिस्से में मूल कॉपी आई और पिताजी के हांथ लग गई।संस्कारी परिवार में बाबूजी को यह बात बड़ी अनर्गल लगी कि बड़ी होती बच्ची रिश्तेदारी में ऐसा पत्र व्यवहार करे और थोड़ा पत्र की भाषा भी एक नई उम्र के अनुसार प्रेम पत्र जैसी भी थी जो बाबूजी को बिलकुल स्वीकार्य नहीं थी और  इस बात के लिए उन्होंने मुझे  कड़ी डांट लगाई और यह बात जब मेरे ताऊ जी को पता लगी तो जो पहला पत्र था ,वह भी ताऊजी की मर्जी से ही लिखा गया था। अतः उन्होंने मेरा पक्ष लिया और बोले इसमें रोने की क्या बात है ।तुम भी अपनी बात लिख कर भेज दो और जो मैने लिखा वह मेरे जीवन की पहली पूरी लंबी कविता थी । उनके पत्र की शुरुआत थी आपका दर्द निवारक पत्र प्राप्त हुआ और मेरी लाइनें थी

दर्द का ऐसा क्या कारण था, पत्र ने किया जिसका निवारण  आदि आदि। यह पत्र मेरे अपने जीजाजी के हांथ लगा और उन्हें बहुत डांट पड़ी और हमारे बीच  फिर कोई पत्र व्यवहार नहीं हुआ और फिर उनकी शादी मेरी दूसरी बड़ी बहन से हो गई और वे भी हमारे जीजाजी बन गए लेकिन यह मेरा यह लेखन अविस्मरणीय हो गया।


प्रश्न न. 11 - आपके लेखन में , आपके परिवार की क्या भूमिका है ? 

उत्तर -  सबसे पहले तो बता दूं कि मैं उस पिता की संतान हूं जिनके न रहने पर आज तीन वर्ष बाद भी उस गांव के लोग आज भी रोते हैं जिनके बीच वे रहते थे और परिवार की तो कोई बात ही नहीं । वे और मेरे एक बड़े चचेरे भाई मेरी प्रतिभा को पूरी ऊंचाई तक पहुंचाना चाहते थे पर तब संभव नहीं हो पाया और अब ससुराल में पतिदेव का मुझे भरपूर सहयोग है ।बिना उनकी मदद के मैं एक कदम भी नही चल सकती हूं । मेरी एक बेटी है जिसकी शादी हो गई है ।दामाद तहसीलदार हैं और उनका हर तरह का संबल मुझे मिलता  रहता है और आज जब इस ऊंचाई पर हूं तो सभी मुझे मान और सहयोग देते हैं । पहले वे मेरे लेखन को समझ नही पाते थे।


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