पारमिता षड़ंगी से साक्षात्कार

जन्म तिथि : १३ अप्रैल १९७२
जन्म स्थान : निमापडा - ओडिशा
पिता :  बंशीघर षडंगी
पति : स्वप्नेन्दु मिश्र

लेखनी : ओडिआ और हिंदी भाषा में कहानी और कविताएँ
प्रकाशित

पुस्तकें : -

- कहानियों के चार पूस्तकें ओड़िया में
- अनुवाद कविता पूस्तक "जवाहर टनल,"(हिंदी से ओड़िया में)
- कविता पूस्तक हिंदी में -'इज्या'

सम्मान :-

- साहित्य दर्पण श्रेष्ठ गाल्पिका,
-  तिसरा किताब ब्रह्मपुर साहित्य संसद द्वारा  पुरस्कृत ,
-  बॉम्बे ओडिया महिला संगठन (Bowa) द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में सम्मानित,
-  वीरभाषा हिन्दी साहित्य पीठ द्वारा सम्मानित,
- युबा उत्कर्ष साहित्यिक मंच द्वारा 'काव्य गौरव सम्मान' प्राप्त
- प्रवासी साहित्य सम्भार से सम्मानित
- ओड़िया साहित्य महामंच से सम्मानित
- विरजा साहित्य सदन से सम्मानित
- स्टोरी मिरर से कविता केलिए ६ बार सम्मानित
- ईन्कडियू लिटफेस्ट से सम्मानित
- जय मा विरजा साहित्य संसद से कविता के लिए सम्मान पत्र प्राप्ति
- राष्ट्रिय नव साहित्य कुंभ से सम्मान  पत्र प्राप्ति
- सी एफ एम से , उत्कृष्ट कविता प्रस्तुति के लिए सम्मानित
- साहित्य सेतु परिषद से काव्य श्री सम्मान प्राप्त
- साहित्य पीडिया से उत्कृष्ट कविता प्रस्तुति के लिए प्रशस्ति पत्र प्राप्ति
- विविध भारतीय भाषा संस्कृति संगम से हिंदी भाषा साहित्य सम्मान प्राप्ति
- सि एफ एम से हास्य कवि सम्मेलन में उत्कृष्ट प्रदर्शन हेतु
प्रशस्ति पत्र प्राप्त
- जय मा विरजा साहित्य सदन से कहानी प्रतियोगिता में तिसरी स्थान के लिए सम्मानित
- सि एफ एम से प्रेम कविता के लिए काव्य श्री सम्मान प्राप्त
- साहित्य सेतु परिषद से साहित्य गौरव सम्मान प्राप्त
- कौणिडन्य साहित्य सेवा समिति, उत्तर प्रदेश , से ' काव्य गोरव' सम्मान प्राप्त
- सि. एफ . एम  से 'नारी रत्न' सम्मान प्राप्त
- कुछ बात कुछ जज़्बात कवि मंच से अहिल्या बाई होलकर सम्मान प्राप्त
- कहानी "शुन्य इलाका" ब्रह्मपुर साहित्य परिषद के एक प्रतियोगिता में प्रथम स्थान प्राप्त।

पता : -
स्वप्नेन्दु मिश्र ,२-डी -२०४ ,सनसिटी,फेज -१
ठाकुर विलेज ,कांदिवली पूर्व , मुंबई -४००१०१ - महाराष्ट्र

प्रश्न न.1 - आपने किस उम्र से लिखना आरंभ किया और  प्रेरणा का  स्रोत क्या है ?
उत्तर - १३साल की उम्र में मैंने प्रथम कहानी लिखी थी जो स्कूल पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। मेरे पिताजी ओडिशा साहित्य के सुप्रसिद्ध कवि हैं। ओड़िया कविता जगत को उन्होंने नई दिशा दी हैं। बचपन से ही घर में साहित्य आलोचना को सुनती थी।जब पिताजी भागवत के दशम स्कंध का शोध कर रहे थे तब फोटो काॅपी मशीन नहीं थी।हम (तीन बहनें) कार्बन पेपर रख कर उनके शोध कार्य की चार/पाँच काॅपी करते थे। कभी कभी पिताजी पौराणिक कथाएं भी हमें सुनाते थे।तब बहुत कुछ समझ नहीं पाई थी (शायद मेरी उम्र नौ/ दस साल की होगी)।वहीं से कथाएं और कविताओं से अनजाने में ही संपर्क हो गया। मीथ के प्रयोग से रचित पिताजी की कविताएं दिल को छू लेती हैं।शायद यही प्रेरणा का स्त्रोत है।

प्रश्न न. 2 - आप की पहली रचना कब और कैसे प्रकाशित या प्रसारित हुई है ?
उत्तर :   मेरी पहली रचना ओड़िया में एक कहानी थी, जो 2006 में प्रकाशित हुई थी। उस से पहले 1986/1989 स्कूल और कॉलेज की पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई थी मगर उसका अभी कोई प्रमाण नहीं है। मैं कहानी लिखती थी ,यह सिर्फ मेरी छोटी बहन (इप्सिता) को पता था। 2006 में इप्सिता के कहने पर फिर से कहानी लिखने की प्रक्रिया शुरू कर दी, और प्रकाशित होने की प्रक्रिया शुरू हो गई ।

प्रश्न न. 3 - आप किन-किन  विधाओं में लिखते हैं और सहज रूप से सबसे अधिक किस विधा में लिखना पंसद करते हैं ?
उत्तर -  साहित्य की विधाओं में, मैंने कहानी, कविता, समीक्षा, लेख (जगन्नाथ जी के उपर), और लघुकथाएं लिखी हैं। मुझे समीक्षा करने में मज़ा आता है। रचनाओं के माध्यम से लेखकों की भावनाओं को छूने की कोशिश कर आलेख लिखना एक चुनौती है,जिसे स्वीकार कर मैं रोमांचित होती हूँ।

प्रश्न न. 4 - आप साहित्य के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर -  सद्भावना,उत्तम चरित्र और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाना – ये सब मेरी रचनाओं के मूलतत्व है। मेरा मानना है कि परिस्थितियाँ ही वास्तविक खलनायक होती है। इसलिए मनुष्य को सही ग़लत की पहचान होनी चाहिए।

प्रश्न न. 5 - वर्तमान साहित्य में आप के  पसंदीदा लेखक या लेखिका की कौन सी  पुस्तक है ?
उत्तर - बहुत नाम है जिनकी रचनाएँ पढ़कर उन पुस्तकों से बाहर निकल ने को मन नहीं करता। मेरे पिताजी के "स्वरोदय", रमाकांत रथ जी के "श्रीराधा", प्रतिभा राय  जी के"याज्ञसेनी",फकिरमोहन सेनापति जी की सारे रचनाएँ, चित्रा मुद्गल जी के "पोस्ट बॉक्स नं २०३ नाला सोपारा", अनामिका जी की "टोकरी में दिगंत", मैथिली साहित्य के लेखक प्रदीप बिहारी जी की"सरोकार" आदि अनेक पुस्तकें हैं जो दिल को छू लेती है।सब के नाम लिखना संभव नहीं है।

प्रश्न न. 6 - क्या आपको आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होने का अवसर मिला है ? ये अनुभव कैसा रहा  है ?
उत्तर - जी, आकाशवाणी में कहानी प्रसारित होने का अवसर मिला है। अपने आप को किसी और माध्यम से सुनने का अनुभव तो हटकर है। उसे वर्णन किया नहीं जा सकता है। दूरदर्शन का अभी इंतजार है।

प्रश्न न. 7 - आप वर्तमान में कवि सम्मेलनों को कितना प्रासंगिक मानते हैं और क्यों?
उत्तर -  कवि सम्मेलन होना चाहिए, और ये राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी होना चाहिए। इसलिए कि हमें एक दूसरे की भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने तथा समझने का मौका मिल सके। आजकल तो आनलाईन ,सोशल मीडिया में भी मौका मिलता है। हमारे पास आधुनिक टेक्नोलॉजी है तो क्यों नहीं उसका लाभ उठाया जाए। सच कहूं तो कवि सम्मेलन में भाग लेने के बाद मुझे और कविताएँ लिखने की प्रेरणा मिलती है। जबकि गृहणी होने के कारण बाहर निकलना कभी कभी मुश्किल होता है।

प्रश्न न. 8 - आपकी नज़र में साहित्य क्या है  तथा  फेसबुक के साहित्य को किस दृष्टि से देखते हैं ?
उत्तर - हित का साथ होना ही साहित्य है। मैं बोलूंगी , सभ्यता और संस्कृति को धारण करने वाला, समाज को बदलने की क्षमता रखने वाला और मानवीय चेतना की भूख को मिटाने वाला साहित्य ही होता है। फेसबुक हमें अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक प्लैटफॉर्म है। आसानी से हम लिख सकते हैं,एक दूसरे को पढ़ सकते हैं।
डिजिटल हमें एक प्लैटफाॅर्म देता है लिखने और पढ़ने के लिए।इस से हम सहजता से दूसरों के साथ जुड़ जाते हैं। साहित्य का विस्तार हो सकता है मगर कितने उन्नत साहित्य की सृष्टि होगी बोल नहीं सकते।

प्रश्न न.9 - वर्तमान  साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सरकारी व गैर सरकारी पुरस्कारों की क्या स्थिति है ?
उत्तर - कुछ स्थानों पर सिफारिश और कुछ स्थानों पर पैसा खर्च कर पुरस्कार मिल जातें हैं। यह चिंताजनक है। मगर निरपेक्ष विवेचना से भी पुरस्कार दिया जाता है। सबसे ज्यादा गुरुत्व पूर्ण भुमिका तो आप जैसे पारखी नजर रखने वाले प्रकाशकों की है । अच्छी रचनाएं प्रकाशित करना और रचनाकारों को पुरस्कृत कर और कुशल रचनाएं लिखने के लिए प्रेरणा देना प्रकाशकों का दायित्व है। अगर रचनाएं अच्छी होगी तो अवश्य पाठकों की संख्या में वृद्धि होगी।

प्रश्न न. 10 - क्या आप अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना या संस्मरण का उल्लेख करेगें ?
उत्तर - जी जरूर ।एक घटना के बारे में बताने की इच्छा है। बचपन में माँ ने एक बार मंदिर में दीया लगा कर भगवान को फ़ूल चढ़ाने के लिए कहा तो मैंने कहा"जिन्हें मैं देख नहीं सकती ,तो उनकी पूजा कैसे करूं, मुझे तो विश्वास ही नहीं है कि ईश्वर होतें है।"तब  तो पिताजी चुप रहे। बाद में बोले,"पता नहीं मच्छली पानी में कैसे साँस लेती हैं, हमारी नाक में पानी घुस जाता है तो कितनी तकलीफ होती है।" फिर एक दिन बोले ,"हम खाना खा कर हजम कर लेते हैं,मगर ये गुड्डा न खाना खा सकता है न हज़म कर सकता है। पता नहीं हमें किसी ने ऐसे बनाया?"  तब मैं अपनी ग़लती समझ सकी। उन्होंने कहा "सृष्टि है तो कोई न कोई इसको बनाने वाला भी है। तेरे सामने इन्सान है तो वह इंसान रूप में और पेड़ है तो पेड़ के रूप में है,पर है।" पिताजी के समझाने का तरीका अलग होता है और उनकी बातों का मुझ पर प्रभाव पड़ता है।

प्रश्न न. 11 - आपके लेखन में , आपके परिवार की क्या भूमिका है ?
उत्तर - अवश्य परिवार का बहुत बड़ा योगदान होता है। पहले कहा है पिताजी के बातों का मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ता है। मेरे पिताजी कहते हैं ‘जिस रस में रहस्य नहीं वह कविता नहीं ' मतलब पाठकों बांधकर रखने की कला आना चाहिए।माँ ' मेरी रचनाओं की पहली प्रशंसक है।अब घर में बच्चें और पति भी मुझे समय निकालने में मदद करते हैं। उनके साथ बिताने वाले समय से कुछ समय चुरा लेती हूँ, इसलिए मन में क्षमा भी माँग लेती हूँ। मुंबई में रेहती हूँ और घर का एक कोना ऐसा है जो मुझे समाधी अवस्था में ले जाता है। फिर जाके कुछ शब्द उतरते हैं कागज़ में। 

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