डॉ. अनिता कपूर से साक्षात्कार


जन्म : रिवाड़ी - भारत 
शिक्षा : एम .ए.,(हिंदी एवं अँग्रेजी ), पी-एच.डी (अँग्रेजी ), सितार एवं पत्रकारिता में डिप्लोमा।

कार्यरत : कवयित्री / लेखिका/ पत्रकार (नमस्ते अमेरिका, हिन्दी समाचारपत्र, संपादकीय विभाग में सेवायें) हिन्दी के प्रचार-प्रसार और समाज सेवा में कार्यरत।

व्यवसाय: अनुवादिका एवं ज्योतिष
 
विशेष : -

 बिखरे मोती ,कादम्बरी, अछूते स्वर, ओस में भीगते सपने, साँसों के हस्ताक्षर, (काव्य-संग्रह), दर्पण के सवाल, आधी आबादी का आकाश एवं बोंजाई (हाइकु संग्रह) धूप की मछलियाँ (लघुकथा-संग्रह)। अनेकों भारतीय एवं अमरीका की पत्र-पत्रिकाओं में कहानी, कविता, कॉलम, साक्षात्कार एवं  लेख प्रकाशित। एक काव्य-संग्रह एवं हाइकु-संग्रह प्रकाशाधीन ,प्रवासी भारतीयों के दुःख-दर्द और अहसासों पर एक पुस्तक और लघु-कथा प्रकाशन में। अनेकों समान और अवार्ड्स से सम्मानित।
 
पता :
अध्यक्ष और संस्थापक: “ग्लोबल हिन्दी ज्योति”
हेवर्ड , कैलिफ़ॉर्न्या - अमेरिका
प्रश्न न.1 - आपने किस उम्र से लिखना आरंभ किया और प्रेरणा का स्रोत क्या है?
उत्तर - पाठ्यपुस्तक की कविताएँ हमसे सबसे पहले रूबरू होती हैं। वहीं से रूचि-सुरुचि की भूमिका जाने-अनजाने बनती है। मेरी भावनाओं ने कब रचना-प्रक्रिया और अभिव्यक्ति की कूँची पकड़ शब्द रूपी रंगों में डुबोकर लिखना शुरू किया, पता ही नहीं चला ! माँ कहती है कि, जब बहुत छोटी ही थी, तब पहली छोटी-सी कविता “गुड़िया” लिखी थी। फिर ज्यों-ज्यों बड़ी होने लगी और समझ आने लगी तो देखा की हमेशा खुद को किताबों में घिरा पाती। पढ़ने के लगाव ने धीरे-धीरे लेखन में भी रूचि पैदा कर दी थी हाँ, हमारे परिवार में लेखक तो कोई और नहीं रहा पर घर में माँ को किताबें पड़ने का शौक रहा है, इसी के चलते घर में आस-पास पुस्तकें देख कर पढ़ने-पढ़ते लेखन में आई।  
 
प्रश्न न. 2 - आप की पहली रचना कब और कैसे प्रकाशित या प्रसारित हुई है ?
उत्तर - मेरी पहली रचना स्कूल की पत्रिका में प्रकाशित हुई थी। फिर कॉलेज की पत्रिकाओं में रचना भी छपती रही। फिर धीरे-धीरे पत्र-पत्रिकाओं में तथा समाचारपत्रों में भी मेरी लिखी रचनाएँ, खास कर कविताएँ प्रकाशित होने लगी। इससे हिम्मत और बढ़ी तथा लिखने से प्यार और जुड़ाव और बढ़ता गया । संवेदनशील मन की छटपटाहट, जिंदगी का कभी मुस्कराना और कभी रूठना, जीवन की लकीरें-कभी पूर्णविराम, कभी अर्धविराम, कभी प्रश्नवाचक-सभी को कलम की नोंक से भावनाओं की स्याही में डुबोकर लेखन करती रही। कभी बेबसी का बगावत करना और आँधी का अंधी गलियों से गुज़रना रफ्ता-रफ्ता साहित्य के मैदान में ले आया। दबाव की पीड़ा मेरी रचनाओं में आत्मसात होकर अनेक रूपों और रसों में बिखरी हुई है।
 
प्रश्न न. 3 - आप किन-किन विधाओं में लिखते हैं और सहज रूप से सबसे अधिक किस विधा में लिखना पंसद करते हैं ?
उत्तर - जहां तक लेखन का सवाल है मैं सभी विधाओं में लिखती हूँ। दायरे और नियम के अनुसार भी लेखन करती हूँ मुझे व्यक्तिगत रूप से छ्ंदमुक्त कविता लिखना ज्यादा प्रिय है। हाइकु, सदोका, चोका और महिया यह सब छंदोबद्ध कविता है और मैंने इन सभी विधायों में लिखा भी है। मेरे विचारों को अपने ही आकाश में स्व्छंदमुक्त विचरण करने की आदत ज़्यादा रही है, वर्णों और मात्राओं की बंदिश में रह कर लिखना मुझे प्रिय होते हुए भी, और अपनी बात को पाठकों तक पहुँचा पाने में समर्थ होने के बावजूद भी, अनायास मेरे विचारों की उड़ान फिर-फिर अपने ही आकाश में विचरण करने लगती है। कविता सम्भवतया सबसे प्राचीन विधा है, जिसका पारंपरिक दर्शनीय लक्षण छंदोबद्धता के रूप में आता है। हिन्दी में तुक भी कविता की पहचान बनी रही है, परंतु छंद की उपस्थिति ही स्थायी रही है ।
 
प्रश्न न. 4 - आप साहित्य के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं ?
उत्तर - हमें यह भी अच्छी तरह समझ लेना चाहिए कि लेखन का समाज से कोई यांत्रिक संबंध नहीं होता हांलाकि लेखन और समाज के विकास का परस्पर सबंध गहरा होता है। मुक्तिबोध के अनुसार, “मानव-चेतना, वस्तुत: मानव-संबंधों से निर्मित तथा उससे उद्गत चेतना है।“ ये मानव-संबंध समाज के विकास के साथ परिवर्तित होते रहते हैं, तथा समाज की विशेष स्थितियों की उनमें विशेषताएं प्रकट होती रहती हैं आज संवेदनाएं सूख रही हैं और बाजार पनप रहा है, अपने समय से टकराना और ऐतिहासिक समझ के साथ हस्‍तक्षेप करना लेखन का मूल चरित्र है। हमें जो क्षतिग्रस्‍त कर रहा है, उसका पुनर्निर्माण ही समकालीन लेखन है। जो समाज को दर्पण है।
 
प्रश्न न. 5 - वर्तमान साहित्य में आप के पसंदीदा लेखक या लेखिका की कौन सी पुस्तक है ?
उत्तर - मैं किसी एक का नाम नहीं लेना चाहती, नामों की सूची बहुत लंबी हो जाएगी क्योंकि आज डिजिटल युग है और अंतर्जाल के माध्यम फेस्बूक आदि के ज़रिये विदेश में रहने के बावजूद इतने नए लेखकों को पढ़ने को मिल रहा है जो हर विधा में इतना सुंदर लिख रहें है...चाहे वो कविता हो कहानी हो हाइकु हो गज़ल या गीत हों। मेरी नज़रों में वो ही महत्वपूर्ण रचना है जिसका लेखन काफी समय तक पाठक के दिलो दिमाग पर असर करता है और उससे जीवन और समाज को कुछ अच्छा करने और सुधारने के लिए प्रोत्साहित करता है।
 
प्रश्न न. 6 - क्या आपको आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होने का अवसर मिला है ? ये अनुभव कैसा रहा है ?
उत्तर - जी जब भारत में थी तो दिल्ली में आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होने के खूब अवसर मिलते रहे थे। आकाशवाणी से एक फिल्मी गीतों का कार्यक्रम “महफ़िल” के नाम से आता था जिसे मैंने काफी समय था प्रसारित किया। साथ ही
दूरदर्शन से भी कई कार्यक्रम किए जिनकी यादें आज भी साथ हैं। और यह अनुभव यहाँ अमेरिका में भी काम आया। यहाँ भी रेडियो कार्यक्रमों को करने में सहजता रही।

प्रश्न न. 7 - आप वर्तमान में कवि सम्मेलनों को कितना प्रासंगिक मानते हैं और क्यों?
उत्तर - कवि सम्मेलन या मुशायरे तो पहले भी होते थे जब राजा महाराजों का शासन रहा और आज भी है। तब भी सुनाने वालों को धन मिलता था और आज भी पर पर स्तर में ज़मीन आसमान का अंतर है। आज कवि सम्मेलनों में कविता कम और चुट्कुले ज्यादा रहते है। और हास्य कवि सम्मेलन के नाम पर परोसा जाता है।

प्रश्न न. 8 - आपकी नज़र में साहित्य क्या है तथा फेसबुक के साहित्य को किस दृष्टि से देखते हैं ?
उत्तर - कहते है साहित्य समाज का दर्पण होता है। जैसे की मैंने पहले भी कहाँ की लेखन का समाज से कोई यांत्रिक संबंध नहीं होता हांलाकि लेखन और समाज के विकास का परस्पर सबंध गहरा होता। ये मानव-संबंध समाज के विकास के साथ परिवर्तित होते रहते हैं, तथा समाज की विशेष स्थितियों की उनमें विशेषताएं प्रकट होती रहती हैं। जहां तक फेसबूक का साहित्य की बात है तो फेसबूक का कोई अलग साहित्य नहीं है। वो तो एक ज़रिया बना है। आज का जमाना डिजिटल युग का है और अंतर्जाल के माध्यम के द्वारा विदेश में रहने के बावजूद इतने नए लेखकों को पढ़ने को मिल रहा है, जो हर विधा में इतना सुंदर लिख रहें है। इसके पहले हम प्रवासियों तक साहित्य और नया लेखन पहुँच ही नहीं पाता था या देरी से परिचय होता था। पर अब साहित्य तक पहुँच बहुत आसान होने से साहित्य का आकाश विस्तृत हो गया है। और सिर्फ पढ़ना है नहीं उन्हें हम मंच और यू ट्यूब के द्वारा देख भी सकते हैं। हाँ एक बात जरूर कहना चाहूँगी की हर जागरूक पाठक और रचनाकार इन वैबजालों से आज परिचित है। कभी कभी तो लगता है कि लेखन अधिक है और पाठक कम। लेखक ही संपादक है और संपादक ही लेखक। इसी भीड़ में वो पहले जैसे संबंध अपनी गर्माहट और परिचय खोते जा रहें हैं।

प्रश्न न.9 - वर्तमान साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सरकारी व गैरसरकारी पुरस्कारों की क्या स्थिति है ?
उत्तर - आजकल मार्केटिंग का ज़माना है हर तरफ एक होड़ लगी है इसी के चलते कई बार अच्छे लिखने वाले आगे नहीं आ पाते और गुमनाम लोग कुछ भी करके पुरस्कार पा रहे हैं। मैं यही कहना चाहूंगी की साहित्य और लेखन को व्यवसाय न बना कर सिर्फ अच्छे और समाज के भले के लिए अगर साहित्य सृजन हो तो पुरस्कार स्वत ही आ जाते हैं।
 
प्रश्न न. 10 - आपके लेखन में , आपके परिवार की क्या भूमिका है ?
उत्तर - हर स्त्री के लिए परिवार पहली प्राथमिकता होती है और नारी के तो कई रूप हैं  जैसे बेटी, बहन, पत्नी और माँ। इन सब की जिम्मेदारी निभाते हुए भी लेखन करना हो तो परिवार के साथ के बिना तो मुमकिन ही नहीं। बस मुझे भी हमेशा परिवार का साथ मिला जिनसे चलते आज यहाँ तक पहुंची हूँ। अपने रिश्तों को साथ लेकर चलने की यात्रा और अभिव्यक्ति में मैंने अपने अंदर की नारी के आत्मसम्मान और स्वाभिमान का साथ नहीं छोड़ा। संवेदनाओं के दबाव कैनवास बनते गए और विचार रंग बन शब्दों की कूची से अभिव्यक्त होते रहे हैं। सिलसिला आज तक जारी है।


 


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