डॉ.प्रमिला वर्मा से साक्षात्कार

जन्म : 16 अगस्त , जबलपुर - मध्यप्रदेश
शिक्षा : एम ए, पीएच.डी.
संप्रति  : लेखन 

पुस्तकें : -

६ कथा संग्रह,
संयुक्त उपन्यास प्रकाशित।
महिला रचनाकार: अपने आईने में आत्मकथ्य पुस्तक रूप में प्रकाशित

पुरस्कार :-

- ३राज्यस्तरीय पुरस्कार।
- भूटान  ,थाईलैंड में  सम्मान।
- मध्य प्रदेश राष्ट्रभाषा प्रचार समिति एवं हिंदी भवन- न्यास का हिंदी सेवी सम्मान,भोपाल (२०१७)।
- २०१३ बिहार में २५वें अखिल भारतीय लघुकथा सम्मेलन में लघुकथा रत्न सम्मान

विशेष : -

- लगभग दो दशक तक विभिन्न अखबारों में फीचर संपादक के पद पर कार्य।
- 'सखी की बात ' स्त्री विमर्श पर स्तम्भ लेखन। जो वर्षों तक चला।
- जंगलों की तथा देश विदेश की लगातार सैर ।
- चिड़ियों पर विशेष शोध हेतु सुप्रसिद्ध ornithologist श्री सलीम अली के साथ सुदूर सामुद्रिक यात्राएं।
- बीसवीं सदी की महिला कथाकारों की कहानियां (खंड नौ में )कहानी।
- द संडे इंडियन पत्रिका में 21वीं सदी की 111 हिंदी लेखिकाओं में एक नाम। 
- 'कथामध्यप्रदेश' अविभाजित मध्य प्रदेश के कथाकारों पर केन्द्रित वृहद कथाकोश -
- समकालीन  कहानी  खंड -३ में कहानी  संकलित ।
-कविता ,कथा संग्रह का संपादन ।
- प्रख्यात साहित्यकार स्वर्गीय विजय वर्मा की स्मृति में हेमंत फाउंडेशन की स्थापना ।पिछले 20 वर्षों से "विजय वर्मा कथा सम्मान " एवं " हेमंत स्मृति कविता सम्मान "प्रदान करना ।ट्रस्ट की संस्थापक/ सचिव ।

पता:
94- ए,चंदन नगर , जुलै , सोलापुर 413005 महाराष्ट्र

प्रश्न न. 1 -आपने किस उम्र से लिखना आरंभ किया और प्रेरणा का स्रोत क्या है?
उत्तर - २१-२२ की उम्र में कहानी लिखी। वैसे स्कूल के दिनों में अमावट, सपना, देशप्रेम और सीख आदि कहानी कविता 'पराग 'में छपी थीं। प्रेरणा का स्रोत आसपास की घटनाएं  ही होती हैं और उसमें कल्पना को डालकर कहानी का बन जाना यही मैं मानती हूं।

प्रश्न न. 2 - आपकी पहली रचना कब और कैसे प्रकाशित या प्रसारित हुई है।
उत्तर - सबसे पहले माधुरी पत्रिका जो फिल्मी पत्रिका है उसमें कहानी छपी जिसमें कुछ पेज उस समय साहित्य के भी लगाए जाते थे ।लेकिन वह मेरी पहली कहानी नहीं थी। पहली लिखी कहानी साप्ताहिक हिंदुस्तान में छपी थी। बाद की लिखी  कोई कहानी माधुरी में छपी थी। नवनीत में जब "आप की पहली कहानी" की श्रंखला शुरू हुई तो उसमें भी मेरी कहानी सर्वप्रथम छपी। बाद में सभी पत्रिकाओं में कहानियां छपने लगीं।

प्रश्न न. 3 - आप किन-किन विधाओं में लिखते हैं और सहज रूप से सबसे अधिक किस विधा में लिखना पसंद करते हैं ।
उत्तर - सभी विधाओं में लिखती हूं। अब तक तीन हजार के लगभग लेख सभी विधाओं पर प्रकाशित हो चुके हैं। कहानी, कविता, लघु कथा, बोध कथा, उपन्यास आदि प्रकाशित हो चुके हैं। प्रमुख रूप से कहानी और उपन्यास लिखना ही पसंद है।

प्रश्न न. 4 - आप साहित्य के माध्यम से समाज को क्या संदेश देना चाहते हैं?
उत्तर - साहित्य के माध्यम से समाज की कुरीतियों को दूर करना ही प्रमुख उद्देश्य है। लेखों में इन्हीं सब विषयों पर प्रमुखता से लिखा है। मेरा स्थाई स्तंभ "सखी की बात "इन्हीं बातों को लेकर सांध्य दैनिक में कई वर्ष तक चलता रहा।

प्रश्न न.5 - वर्तमान साहित्य में आपके पसंदीदा लेखक या लेखिका की कौन सी पुस्तक है?
उत्तर - बहुत से लेखक पसंद आते हैं । जो रचना दिल को छू गई वही अच्छी है। इसमें वर्गीकरण नहीं किया जा सकता है ।निर्मल वर्मा , अज्ञेय अच्छे लगते हैं। उनकी रचनाओं ने सचमुच बहुत प्रभावित किया। फिर आगे बढ़ें तो किसी विशेष रचना का नाम नहीं लिया जा सकता ।बहुत सी रचनाएं पसंद आती हैं। संतोष श्रीवास्तव का "टेम्स की सरगम "बहुत ही अलग ढंग का उपन्यास है। पसंद आया उस पर मैंने लिखा भी है। हंस में और प्रतिष्ठित कई पत्रिकाओं में छपी वर्तमान लेखकों की कई कहानियों ने बहुत विशेष स्थान बनाया है। अतः किसी एक नाम पर  नहीं जाया जा सकता। बहुत से कथाकारों की रचनाएं अच्छी लगती हैं।

प्रश्न न.6 - क्या आपको आकाशवाणी एवं दूरदर्शन पर प्रसारित होने का अवसर मिला है यह अनुभव कैसा रहा।
उत्तर - लगातार आकाशवाणी पर 22 वर्ष की उम्र से ही आती रही हूं। आकाशवाणी राजकोट से संपूर्ण कहानी की श्रृंखला प्रसारित हुई थी ।उसमें मेरी 8 कहानियां ली गई थीं।  बाद में औरंगाबाद और मुंबई से आज तक भी कहानियों का प्रसारण हो रहा है। बीच-बीच में बच्चों को सिखाते हुए पाठ भी प्रसारित हुए। आजादी की 50वीं वर्षगांठ पर दिल्ली दूरदर्शन से कुबेर दत्त जी के सानिध्य में साक्षात्कार का प्रसारण हुआ। यह अनुभव बहुत ही अच्छा था। शुरू में थोड़ा नर्वस  थी दूरदर्शन पर आने पर। लेकिन बाद में सहज हो गया।

प्रश्नन.7  - आप वर्तमान में कवि   सम्मेलनों को कितना प्रासंगिक मानते हैं और क्यों?
उत्तर - जनता से रूबरू होने का मौका मिलता है ।प्रकाशित साहित्य सीमित लोगों तक पहुंचता है ।लेकिन कवि सम्मेलनों में अपार भीड़ होती है। आप मंच के द्वारा दूर-दूर तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं इसलिए कवि सम्मेलन प्रासंगिक होते हैं।

प्रश्न न.8 - आपकी नजर में साहित्य क्या है तथा फेसबुक के साहित्य को किस दृष्टि से देखते हैं?
उत्तर -साहित्य संपूर्ण समाज का आईना है। साहित्य क्रांति लाता है। साहित्य दिशा निर्देश भी करता है ।जो कुछ हमारे आसपास घटित होता है उसे लेखक अपने शब्द देते हैं ।कितनी  ही ऐसी जानकारियां हैं जो साहित्य के द्वारा हम तक पहुंचती हैं। कितने ही लेखक शोध करके प्रसिद्ध लोगों की जीवनियां लिखते हैं। और वह हम तक पहुंची चाहें वह हिटलर हो या महात्मा गांधी।  हम इन्हीं साहित्यिक शोध के कारण जान सके उनके जीवन को। हम साहित्य द्वारा ही जान पाते हैं यहां तक कि किस गांव शहर में क्या हो रहा है। यह आलेखों द्वारा ही हम तक पहुंचता है ।तो शायद हमेशा से  साहित्य हमारी संपूर्ण जिंदगी का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है । हां !फेसबुक के साहित्य में चोरियां भी हो रही हैं। और फेसबुक पर जो निरंतर छाए रहते हैं आजकल वही महत्वपूर्ण माने जाते हैं  यह गलत है। अर्थात फेसबुक अपने आप को प्रदर्शित करने का एक सुगम रास्ता है। क्या यह जानने का कोई तरीका है कि हमने जो कुछ फेसबुक पर डाला उसे आपने सचमुच पढा़ अथवा लाइक का बटन दबा दिया।

प्रश्नन. 9 - वर्तमान साहित्य के क्षेत्र में मिलने वाले सरकारी व गैर सरकारी पुरस्कारों की क्या स्थिति है।
उत्तर -सरकारी पुरस्कारों के बारे में उत्तर देना नहीं चाहती क्योंकि इसके बारे में बहुत कुछ सुना है। कैसे पद पर बैठे अपने ही व्यक्तियों को पुरस्कृत करते हैं। कुछ गैर सरकारी पुरस्कार अवश्य पारदर्शी आज तक हैं। मेरे अनुसार साहित्य के विकास में पुरस्कार की भूमिका नहीं होनी चाहिए।

प्रश्नन. 10 - क्या आप अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना या संस्मरण का उल्लेख करेंगे।
उत्तर -अवश्य। यह उस समय की घटना है जब मैं जबलपुर में कक्षा चार में पढ़ती थी। हमारे बंगलो के सामने ही कोर्ट बन रहा था। जिसकी नींव खोदी जा चुकी थी ।हमारे बंगले के बाजू में भारत सेवक समाज का ऑफिस था। पिताजी एडवोकेट और मां भी भारत सेवक समाज में कार्यरत  थीं। वहां पर दो व्यक्ति( भाई) काम करते थे जिन्हें हम छोटा पांडे बड़े पांडे पुकारते थे । उनकी डाक हमारे घर पर आती थी। मां ने शाम सात 7:30 के आसपास उनकी डाक का लिफाफा देने मुझे उनके घर भेजा। यह लोग अत्यंत गरीबी से मजदूरों जैसी कोठी में रहते थे दरवाजे भी ऐसे ही बाहर का दरवाजा झटके से खुल जाए। शायद इसलिए कि इन पर किसी का ध्यान ना जाए। सिर्फ हम लोग दोनों ,और दूर-दूर तक कोई नहीं ।कोई घर नहीं। मैं उनके घर गई मैंने पांडे- पांडे करके आवाज लगाई । दरवाजा खुल गया। वहां किसी की आवाज आ रही थी कोई बात कर रहा था। बड़ा पांडे जवाब दे रहा था। कई पेपर्स मशीन में से निकल भी रहे थे। मुझे देखकर  वे स्तब्ध रह गए मैंने लिफाफा दिया और कहा-" कि आप अंदर का कागज रख लो मुझे लिफाफे की टिकट दे दो । (मैं टिकट का कलेक्शन करती थी) लेकिन मैंने जो कुछ देखा और टिकट के आग्रह को उन्होंने मामूली नहीं समझा। घर आकर मैंने बाबूजी को बताया। बाबूजी सब समझ गए उन्होंने घर के सभी दरवाजे बंद कर दिए। किसी अनहोनी की आशंका में। सुबह पुलिस बुला ली बाबू जी ने। लेकिन वह लोग रात को ही घर में ताला लगा कर निकल गए। वे पड़ोसी देश के खुफिया जासूस थे। जो यहां आकर नौकरी कर रहे थे ।अखबारों में निकला । लेकिन बाबू जी ने मेरा नाम  कहीं आने नहीं दिया। बस यही  कि एक छोटी लड़की के द्वारा यह केस सामने आया। पुलिस ने बंद कमरे में मैंने जो देखा का बयान दिया था । लेकिन बाबूजी सामने थे। यह घटना संक्षेप में मैंने यहां बताई। बाबू जी ने बताया था कि वे दिल्ली के आसपास पकड़े गए।

प्रश्नन.11 - आपके लेखन में आपके परिवार की क्या भूमिका है।
उत्तर - शायद परिवार की अहम भूमिका ही कहेंगे ।पिताजी श्री गणेश प्रसाद वर्मा कल्याण में छपते थे। वे धार्मिक लेख आदि लिखते थे ।वे संस्कृत के विद्वान थे । और गीता के फॉलोअर। लेकिन उन्होंने कानून की पढ़ाई की थी ।
मां धर्मयुग,सारिका आदि सभी पत्रिकाएं पढ़ती थीं। बड़े भाई विजय वर्मा जाने-माने साहित्यकार, पत्रकार थे। उनके नाम से हम पिछले 20 वर्षों से विजय वर्मा कथा सम्मान देते आ रहे हैं । बहन संतोष श्रीवास्तव वरिष्ठ साहित्यकार हैं। तो मुझ में लेखन के प्रति रुचि आनी ही थी। फिर मेरे भतीजे हेमंत कवि रहे जो अल्पायु में नहीं रहे। उनके नाम से भी हम हेमंत स्मृति कविता सम्मान समारोह पूर्वक देते हैं। अतः लेखन में परिवार की प्रमुख भूमिका रही।


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