सर्वेश्वर दयाल सक्सेना स्मृति सम्मान - 2025
आज की आपाधापी वाले समय में जब घर के सभी सदस्य अपने-अपने कामों में घर और बाहर व्यस्त होते हैं और घर के बड़े-बुजुर्ग घर में अकेले बैठे रहते हैं।कोई उनसे बात करने वाला नहीं होता। ऐसे में उनके मौन के कष्ट को कोई नहीं समझ सकता। शब्द भी उस कष्ट को व्यक्त कर पाने में असमर्थ होते हैं। ऐसे में दूधवाला, कूड़ेवाला भी आ जाये तो उनसे ही दो-चार बात करके उन्हें कितनी अधिक संतुष्टि और प्रसन्नता प्राप्त हो जाती है यह अनुमान लगाना कठिन नहीं होगा।तो यह बात एकदम सत्य है कि जिसने अकेले रह कर मौन के कष्ट को गहनता से अनुभव किया है वही शब्दों के वास्तविक मूल्य को भी उसी शिद्दत से अनुभव कर सकता है।
- डॉ.भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
मौन से बड़ा कोई रहस्य नहीं है, बड़े-बुजूर्ग हमेशा कहा करते थे, शांत रहो, शांतिपूर्ण तरीके अपने-अपने विचारों को व्यक्त करों? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में मौन रहना पसंद नहीं करते, सामने वाले के शब्द निकले नहीं, तुरन्त ही जबाव मिल जाएगा, जो मौन का कष्ट जानते हैं, वो शब्दों की कीमत भी जानते है। इसलिए ऋषि मुनि मौन रहकर ही तप करते थे, सिद्धियाँ प्राप्त करते थे। आज माला लेकर जरुर बैठ जाते है, ध्यान कहीं और रहता है, जब से मोबाइल तंत्र आया है, तब से मौन भंग, वो क्या शब्दों की कीमत जानेंगे, मौन रहना भी दूर.....!
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट -मध्यप्रदेश
जो मौन का कष्ट जानते हैं वह शब्दों " की किमत जानते है जो आपके शब्दों की कद्र नहीं करता, उसके लिए मौन सबसे अच्छा जवाब है ।" क्यो की यह व्यर्थ के लड़ाई झगडे से बचाता है,आत्म चिंतन आत्म करवाता है,की हम कहा क्या कहे सोच विचार कर बोले । हमारा आत्म सम्मान बचाता है। मौन रहने से हमारी उर्जा का संचय होता है परिपक्वता आती हैं,ओर सही समय पर सही शब्दो का उपयोग होता है। मौन सबसे उत्तम औषधी है ।
- अलका पांडेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कहा गया है कि "मौन की भाषा जो समझे अन्तर का सुख वो पता है." तो फिर मौन कष्टकारी कैसे हो सकता है. लेकिन ये बात सत्य हो सकता है उनके लिए जिन्हें ज़बर्दस्ती मौन कराया गया हो. शब्दों की कीमत जानने वाले ही मौन का कष्ट समझ सकते हैं. मौन रहना बहुत कठिन कार्य है. एक कहावत है कि एक चुप व्यक्ति सौ वक्ताओं को हरा सकता है. मौन में इतनी ताकत होती है. बहुत सी औरतें मौन का कष्ट सहकर ही बड़े बड़े संकट को टाल देती हैं और परिवार में कलह होने से बचा लेती हैं. वो शब्दों की कीमत जानती हैं और मौन का कष्ट भी. एक शब्द सारे घर में आग लगा सकते हैं. लेकिन आज कल बहुत से ऐसे लोग हैं जो न तो मौन का कष्ट जानते हैं न शब्दों की क़ीमत. आज तो पूरे देश में ऐसे लोगों की संख्या बहुत ज्यादा हो गई है. जिन्हें पता ही नहीं कहा मौन रहना है कहाँ बोलना है. कष्ट जानने वाले ही कीमत जान सकते हैं.
- दिनेश चंद्र प्रसाद " दीनेश "
कलकत्ता - पं. बंगाल
जो मौन का कष्ट जानते हैं, वो शब्दों की कीमत जानते हैं।मेरी समझ में मौन से हम अपनी इन्द्रियों को वश में कर सकते हैं। मानव- प्रवृत्ति ही ऐसी होती है कि शब्दों के प्रहार से जब मन आल्हादित होता है तब मौन ही ऐसा बाण है जो उसके क्रोध को शांत कर सकता है। अथवा किसी के द्वारा बोले गए अप-शब्दों को भी अमृत समझ घूंट लेता है, सहन कर लेता है। हालांकि उससे उसे असहनीय पीड़ा होती है किंतु मौन उसे मन की स्थिरता प्रदान करता है और इसी स्थिरता की वजह से मन में तनाव कम रहता है, हमारा आत्म नियंत्रण विकसीत होता है एवं मन को आंतरिक शांति मिलती है। जिससे हममें नवीन ऊर्जा का संचार होता है एवं तनाव एवं चिंता से राहत मिलती है। अपनी इंद्रियों पर काबु पाना मनुष्य की सबसे बड़ी परीक्षा है। यदि आपस में किसी तरह का विवाद बढ़ता है तो शांति के लिए एक का मौन रहना ही बेहतर है ऐसी स्थिति में हम कहते हैं " न बोलने में ही नौ गुण है"। हाँ! यदि आध्यात्म की दृष्टि से हम देखते हैं कि ईश्वर की प्राप्ति के लिए मौन रहकर मनुष्य अपनी हरेक इंद्रियों पर काबु पा लेता है ,(क्रोध, काम, मोह, लालच आदि आदि ) जीत हासिल कर लेता है तो समझो उसने ईश्वर को पा लिया । कृष्ण के अनुसार मौन सबसे अच्छा उत्तर है ,ऐसे व्यक्ति के लिए जो आपके शब्दों को महत्व नहीं देता। कहने का मतलब यदि किसी के भले के लिए कुछ कहा जाए और वह आपकी बात नहीं सुनता अपनी मनमानी करता है चाहे परिणाम जो हो ,तब हमारा मौन रहना ही उचित है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
जो लोग मौन की पीड़ा सह चुके हैं, वही समझते हैं कि शब्द केवल ध्वनि नहीं, बल्कि संवेदना और सहारा भी होते हैं। “जो मौन का कष्ट जानते हैं, वो शब्दों की कीमत जानते हैं।” जब कोई व्यक्ति अपनी बात कह नहीं पाता, मन में बहुत कुछ होते हुए भी शब्दों का सहारा नहीं मिलता, तब वह मौन उसके लिए कष्ट बन जाता है। यह स्थिति तब भी आती है जब सामने वाला सुनने वाला न हो, या परिस्थिति हमें बोलने न दे।शब्द केवल अक्षरों का मेल नहीं होते, वे हृदय के भाव, विचार और अनुभव का वाहक होते हैं। जो लोग बोल नहीं पाते, वही समझते हैं कि बोलने का अवसर और शब्दों का सहारा कितना अनमोल है। इस वाक्य का भाव है कि हमें अपनी वाणी का प्रयोग सोच-समझकर करना चाहिए। क्योंकि जिसको बोलने का अवसर है, वह यदि चुप रह जाए या कठोर शब्द बोल दे, तो उसका असर गहरा होता है। वहीं, जिसको बोलने का अवसर नहीं मिलता, वह शब्दों की मूल्यवानता को सबसे गहराई से महसूस करता है। यह वाक्य हमें संवेदनशील बनाता है।यह सिखाता है कि हमें शब्दों का अपव्यय नहीं करना चाहिए और हर स्थिति में बोलने के अधिकार का सम्मान करना चाहिए। साथ ही यह भी कि मौन और शब्द दोनों की अपनी-अपनी भाषा होती है। जो मौन को भोगता है, वही समझ पाता है कि शब्द कितने राहत देने वाले, कितने जीवनदायी हो सकते हैं।
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जो व्यक्ति किसी की गलत बातों को सुनकर भी मौन रह जाए,उसमें काबियत है।भले थोड़ा सा कष्ट ही क्यों न हो।किसी को प्रतिकार के लिए अधिक बोलना भी सही नहीं है।हमें समय पर बोलने के लिए शब्दों की कीमत जानना चाहिए। हमें हमेशा सोच समझकर बोलना चाहिए।सही शब्दों का प्रयोग करना चाहिए,जो इंसान इसका पालन करते हैं,वे अवश्य आगे बढ़ते हैं।इस प्रकार स्पष्ट है कि मनुष्य को शब्दों की कीमत जानना चाहिए।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
कहते हैं "मौनं सर्वस्व साधनमं" - - लेकिन आज की सच्चाई यह है कि आपके मौन को लोग आपकी कमजोरी समझ लेते हैं। मौन बड़ा कष्टदायी हो जाता है तब शब्दों की कीमत समझ में आती है। लेकिन संतुलन यहां भी जरूरी होता है। अपने शब्दों को व्यर्थ गँवाना अर्थात उनकी कीमत कम करना हो जाता है। इसलिये जरूरी है कि हमारे सोच और जागरूकता इतनी प्रगल्भ अवश्य हो कि हम शब्दों की और मौन की जरूरत जान लें। अपने सम्मान की कीमत पर मौन न रहें और अनावश्यक बोल कर अपना मान न घटायें। आज का इंसान बहुत बदल रहा है। चारों ओर स्वार्थ का बोलबाला है। ऐसे समय में किताबो सोच में रहकर अपना नुकसान न करें शब्दों से अपना पक्ष अवश्य रखें - - अपने मन को तौलें - - मन को साधें क्योंकि "मन के हारे हार है मन के जीते जीत "! मन को जो स्वीकार हो वे शब्द लें और जहां मन को इनकार हो वहाँ मौन रहें--मन ही देवता मन ही ईश्वर मन सबका आधार होता है। "मौन का कष्ट और शब्दों की कीमत " हमारा मन जानता है।
- हेमलता मिश्र "मानवी"
नागपुर - महाराष्ट्र
मौन अपने आप में एक संपूर्ण भाषा है। इस भाषा को समझने वाले और समझाने वाले दोनों का संप्रेषण एक ऐसा संप्रेषण है। जो शब्दों के बिना बहुत कुछ कह जाता है। वास्तव में मौन कोई साधारण अभिव्यक्ति नहीं है। साधारण या असाधारण व्यक्तित्व मौन रहकर के एक ऐसा संदेश किसी भी व्यक्ति को दे, दे। तो वह बड़े बड़े स्तंभों को हिला सकता है। मौन अपने आप में एक बहुत बड़ी साधना है। इसे करते हुए,कष्ट होना स्वाभाविक है। शब्द की कीमत जानना इस साधक को क्यों मुश्किल होगा। उसने अपनी जुबां पर ताला लगाते हुए, कितना हार्दिक कष्ट झेला होगा , वही जान सकता है। शब्द यानि अक्षर "अक्षय" सत्य है जो मिट नहीं सकते। जिन्हें एक बार जुबान से निकल जाने पर वापस नहीं लौटाया जा सकता है। शब्दों का भाव क्या है ? यह शब्द कहने वाले और सुनने वाले पर निर्भर करता है । मीठे शब्द होंगे तो तो मन, मस्तिष्क, हृदय को सकून देने वाले होंगे यदि यही सब कड़वे होंगे तो सुनने वाला तो आहत होता ही है। जैसा कहा भी गया है कि "शब्दों के घाव भरा नहीं करते" जब एक बार जुबान से निकल जाते हैं तो कहने वाले को भी बाद में कष्ट और पश्चाताप होता है। लेकिन पश्चाताप के बावजूद भी इन प्रायश्चित नहीं होता है । यह शूल की भांति कहने वाले को भी आहत करते रहते है, धन्यवाद।
- डॉ. रविंद्र कुमार ठाकुर
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
सच हीं कहा गया है कि व्यक्ति को तोल मोल कर हीं बोलनी चाहिए। मुंह से निकला कोई भी शब्द कब क्या असर दिखा दे यह बोलने के बाद हीं पता चलता है। इसीलिए मौन भले कष्टदायक होता है और यह बहुत हद तक संभव भी नहीं हो पाता व्यक्ति के लिए, लेकिन मौन रह जाना बहुत बार सही होता है ,यदि आपके शब्द या बोल सही ना हों तो। शब्द मुंह से निकलने के बाद वापस लिये नहीं जा सकते फिर। इसीलिए व्यक्ति को कभी भी बोलने के पहले शब्दों का प्रभाव समझ कर हीं बोलनी चाहिए।
- डॉ. पूनम देवा
पटना - बिहार
समझदारी यही है कि वहीं बोलो, जहाँ आपके शब्दों की कीमत हो, आपकी बात को महत्व दिया जावे। वर्ना मौन रहना ही अच्छा है। भले ही मौन रहने में छटपटाहट हो, कष्ट हो। दिल बार-बार बोलने को आकुल हो। बोलने और मौन रहने के संबंध में अलग-अलग नीतिगत कथन हैं। संत कबीर जी का दोहा है बालू जैसी करकरी , उज्जवल जैसी धूप। ऐसी मीठी कछु नहीं जैसी मीठी चूप। यहाँ चूप से आशय मौन से ही है। यह दोहा मौन रहने के महत्व को बतलाता है। इसी तरह शब्दों की महिमा है। क्रोध में जहाँ तीर की तरह चुभने वाले निकलते हैं,वहीं सम्मान और स्नेहमय भाव में फूल की तरह मुलायम और महक लिए होते हैं। स्पष्टवादियों के शब्द सीधे और सरल भले ही होते हैं , लेकिन खरे होते हैं। विशुद्ध भाव वाले होते हैं। बनावटी नहीं होते। कुछ शब्द सुझाव , सुरक्षा और सावधानी रखने के लिए होते हैं, कुछ शब्द डांट-फटकार के होते हैं। यह एक लंबा विषय है। संक्षेप में यही माना जावे कि वर्तमान में जब रिश्तों में संघर्ष बढ़ गया है, तब शब्दों में सावधानी अपनाने की बहुत जरूरत है, अन्यथा बात का बतंगड़ बनने में देर नहीं लगती।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मौन से कष्ट शब्द इसलिए जोड़ा गया क्योंकि अपनी भावनाओं के बवंडर को , तमतमाते क्रोध को , उग्र विचारों को , मन के आवेग को , शब्दों में बयान न करके, नियंत्रण मे रखना , कुछ न कहना , चुप हो जाना , ही मौन कहलाता है !! ये सब करना आसान नहीं , अपितु बेहद कष्टकारी स्थिति है !! जो इससे गुजरा है , वो ही समझ सकता है !! जो ये कष्ट झेलते हैं ,वो शब्दों की कीमत भी अच्छी तरह से जानते हैं !! भावावेश को रोककर , कुछ न कहना , कई अप्रिय परिस्थितियां से बचाता है !! कहते हैं ....... एक चुप , सौ सुख। मौन धारण करना कठिन है पर इसकी शक्ति अपार है !!विवाद के समय मैं धारण करके , उचित समय पर वो ही बात कहके , कई समस्याओं को सुलझाया जा सकता है !! विडंबना ये है कि मौन धारण करने के लिए सहनशक्ति चाहिए , जो आजकल के लोगों में बहुत कम है !!
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
आजकल के दौर में सहनशक्ति बहुत कम देखने को मिलती है,हरेक के बोलने का अपना अपना अंदाज होता है,कुछ लोग आपेसे बाहर होकर कुछ भी बोल देते हैं जिसके कारण लड़ाई झगड़े तक की नौबत आम बात हो गई है,इसके साथ साथ कुछ सिखने,सुनने या विचार करके बोलने की कला भी बहुत कम हो चुकी है लेकिन फिर भी कुछ अच्छे घर में पले बढ़े हुए लोग काफी हद तक लड़ाई झगड़े के माहौल में या कुछ ग्रहण करने के माहौल में चुप्पी साध लेते हैं ,शान्त रहते हैं या मौन रहते क्योंकि वो जानते हैं कि मौन रहने की कीमत क्या होती है, तो आाईये आज का रूख इसी चर्चा पर करते हैं,जो मौन का कष्ट जानते हैं वो शब्दों की कीमत जानते हैं, यह अटूट सत्य है कि मौन रहने पर आत्म चिंतन,क्रोध को थाम कर रखने अपने मन के भावों को दबा कर रखने का बहुत कष्ट तो सहन करना पड़ता है लेकिन मौन रहने के कारण कई लाभ भी होते हैं जैसा घर का कलेश कम होना,क्रोध को पी जाना,विचार करके बोलना,शान्त होकर सीख लेना और दुसरे के गुस्से को शान्त करना इत्यादि लाभ मिलते हैं और मौन रहने वाले को संस्कारी भी कहा जाता है क्योंकि ऐसे व्यक्ति के एक एक बोल की कीमत आंकी जा सकती है, सच में मौन विचारों को शांत करने और एक शांत मानसिक अवस्था प्राप्त करने का तरीका है,जिससे बहस ,कड़वाहट लड़ाई झगड़े में संतुलन बना रहता है, इसके साथ साथ क्रोध ,अंहकार,दुसरों की निंदा,प्रशंसा बगैरा सुनते समय मौन अति लाभदायक माना जाता है,यही नहीं मौन रख कर सुनना,सीखना अधिक लाभदायक है तथा खुशी और गमी के समय में भी मौन बहुत कुछ कह देता है इसे सकारात्मक और आंतरिक शक्ति का स्रोत कहा जात है तभी तो कहा है कि मौन भाषा है,भाव है,शब्द है और अर्थ है,मौन ही साधना है मौन ही भक्ति है और मौन ही शक्ति है, देखा जाए शब्द हमेशा हमारे साथी होते हैं लेकिन इनको कब इस्तेमाल करना है कैसे करना है और कब विराम देना है हमारे संस्कारों पर निर्भर करता है,इन्हीं से भावनाएं प्रकट होती हैं और रिश्ते नाते जुड़ते हैं लेकिन जो इनको ताक कर मौन अवस्था में आ जाता है वोही शब्दों की कीमत को जानता है,तभी तो कहा है,शब्द सम्हारे बोलिए,शब्द के हाथ न पांव,एक शब्द औषधि करे एक करे घाव,कहने का भाव तब बोलो जब विश्वास हो जाए कि जो मैं बोलने जा रहा हुं उसमें सत्य,न्याय और नम्रता भरी है नहीं तो मौन रहना ही लाभदायक है क्योंकि मौन से बाहरी दबाव कम हों और आंतरिक जागरूकता को बढावा मिले असल में मौन की ताकत का पता उन लोगों को होता है जो आत्मचिंतन,मानसिक शान्ति ओर आंतरिक स्पष्टता के महत्व को जानते हैं इसके साथ साथ मौन का कष्ट वो दर्द ,पीड़ा होती है जो हम अपने अंदर दबाऐ रखते हैं और व्यक्त नहीं कर पाते और जो लोग मौन रखते हैं वो समझते हैं कि शब्दों की कीमत अधिक होती है क्योंकि शब्दों के माध्यम से हम अपने विचारों और भावनाओं को प्रकट सही समय पर कर सकते हैं,अन्त में यही कहुंगा कि मौन का कष्ट जानने वाले ही शब्दों की कीमत जानते हैं क्योंकि उनको अपने जीवन में शब्दों का उपयोग करने के महत्व की जानकारी होती है।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
मेरे विचार आप समीक्षक के सामने?मौन एक भाव है !जो शब्दों की कीमत मौन और कष्ट को जानते है ! शब्द ही हमारे विचार है ! जो शब्दों को वश मे रखना जानते है !तभी इंसान याने मैं (घमंड) को जोड़ कर अपने साथ सामने वाले की भावनाओ को भी समझता समझाता है !यह एक बहुत ही गहरा और अर्थपूर्ण वाक्य है ! जो मौन और शब्दों के महत्व को दर्शाता । शब्द ही मेरी पहचान है शब्दों को वश में रखियेगा वो आपके विचार बनेगे ! उसे सुनकर इंसान कष्ट रहित होता है !या कष्ट मुक्त होता है ! जिसे इंसान पढ़ या इंसान मौन रह उचित समझता है !जब उसे आक्रोश भय घेरता है तो वह क्रोध कर मुक्ति चाहता है ! सामने वाला अपने मनोभाव से मौन रह मुक्त करता है !या आक्रोशित हो तनाव से शारीरिक मानसिक पीड़ा देता है ! ये परिस्थितियाँ दोनों विधा हानिकारक होती है जिसमे मौन रहना ही उपचार है!या विचारों से अवगत करा उत्साह सहानुभूति दिखाता है पथप्रदर्शक बनता बनाता हूँ!और तब इंसानियत दिखा इंसान कहता है शब्द ही आपकी पहचान है शब्दों को आप वश में रखेंगे वो आपके विचार और विचारों को वश में रखेंगे वो आपके कर्म आदत बनेगे! और वही आपके चरित्र बन ,मौन का महत्व दे ,मौन आत्म-चिंतन कर, आत्म-मंथन कर उचित अनुचित मार्ग प्रसस्त करेंगे! शांति और एकाग्रता , एकाग्रता को बढ़ावा देंगे!जिससे हम अपने विचारों को स्पष्ट कर सकते हैं।शब्दों की कीमत भावनाओं की अभिव्यक्ति। शब्द हमें अपनी भावनाओं और विचारों को व्यक्त करने का एक माध्यम प्रदान करते हैं। संचार और समझ*: शब्द संचार और समझ को बढ़ावा देते हैं, जिससे हम दूसरों के साथ जुड़ सकते हैं ! और अपने विचारों को साझा कर सकते हैं।मौन और शब्दों का संतुलन सोच-समझकर बोलना है! मौन और शब्दों का संतुलन हमें सोच-समझकर बोलने अपने शब्दों का महत्व समझने में मदद करता है। भावनाओं का सम्मान । मौन और शब्दों का संतुलन हमें दूसरों की भावनाओं का सम्मान करने और उनके साथ संवेदनशीलता से पेश आने में मदद करता है। और हम कहते साहित्य का समाज से जुड़ाव होना चाहिए! अच्छे बुरे परिणाम वर्तमान हम देख रहे किस तरह लोग इंटरनेट मीडिया के काँव -काँव से कैसे प्रभावित जिसका परिणाम भी हम सब के समक्ष है !
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
मौन एक शांत और विचार पूर्ण अवस्था है जिसमें गहरे विचार और आत्म संवाद होता है । मौन रहकर हमें अपने विचारो को सुनने और अन्दर की बातो को समझने का अवसर मिलता है। चर्चा का बिषय सौलह आने सच है कि जो मौन रहने का कष्ट जानते हैं, वे मौन की कीमत भी जानते हैं। क्योकि मौन की कीमत समझने के लिए अक्सर हमें इसके साथ जुड़े संघर्ष या चुनौतियों का अनुभव करना पड़ता है। मौन में एक बड़ी शक्ति होती है। यह हमें अपने विचारों को सुनने, आत्म-संवाद करने और अपने अंदर की शांति को खोजने में मदद करता है। जो लोग मौन का अभ्यास करते हैं या मौन के महत्व को समझते हैं, वे अक्सर इसके मूल्य को अधिक गहराई से जानते हैं। जिन्होंने मौन के साथ जुड़े अनुभवों को महसूस किया है। रही मौन रहने के कष्ट की बात मौन हमें अपने अंदर की दुनिया को समझने और बाहरी विवादों को नजरअंदाज कर शांति प्राप्त करने में मदद करता है।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
नपे तुले शब्दों में अपनी बात को कहना एक कला है और चुप रहना उससे भी बड़ी कला है। जब बहुत कुछ कहना हो तब, कष्ट झेलकर मौन रहना सबसे बड़ी कला है। मौन रहने वाले एक-एक शब्द की कीमत जानते हैं। वे निरर्थक शब्द कभी नहीं कहते। बहुत सारे मीठे शब्द बोलने के बाद अगर दो शब्द भी कड़वे किसी को बोल दिए जाएं तब वही कड़वे शब्द दिमाग में गूंजते रहते हैं। भीतर एक गहरा जख्म बना देते हैं। जैसे एक पिता बच्चों को बहुत फटकार लगता है और मां उसको बचाते हुए दो मीठे शब्द बोल देती है तो बच्चा पिता की डांट का बुरा नहीं मानता। शब्दों में बहुत ताकत होती है। कुछ शब्द घाव देते हैं, कुछ घाव सील देते हैं। कभी भी मौन व्यक्ति को गूंगा मत समझिए, वह भी बहुत कुछ बोल सकता है लेकिन वह शब्दों की कीमत जानता है इसलिए वह चुप रहता है। वह सिर्फ सुनता है और अपने काम की और ध्यान देता है। जो प्रायः मौन रहते हैं उनके अंदर शब्दों का अथाह भंडार होता है वह समय आने पर ही बोलते हैं और कई बार हम देखते हैं मौन भी चीखता है मौन भी कुछ कहता है, मौन भी अपनी उपस्थिति का आभास करवाता है। कई बार मौन भी महंगी माया रच देता है और सब दांतों तले उंगली दबाते रह जाते हैं।
- डॉ. संतोष गर्ग 'तोष'
पंचकूला - हरियाणा
मौन में कष्ट नहीं होता यदि वह अंतरमन का मौन हो। कष्ट तब होता है जब हमारा मन झंझावात में फंसा है, पर हम कलह के डर से मुख का मौन करते हैं। मुख का मौन है, पर मन में तूफान चल रहा है, मौन में कष्ट है ही नहीं। और जो मौन का सच्चा अर्थ समझ गया, उसे शब्दों की कीमत अपने आप ही आ जाती है। कम शब्दों में अपनी बात रखना आ ही जाता है। मौन का एक अर्थ शब्दों का संतुलन बनाए रखना भी हो सकता है, जो लोग किसी भी परिस्थितियों में सोच समझ कर, भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कम शब्दों में अपनी बात रखते हैं, उनकी बात प्रभावशाली होती है।
- रश्मि पाण्डेय शुभि
जबलपुर - मध्यप्रदेश
शब्दों की कीमत जानना हो तो उनसे पूछिए जाकर जो सारी दुनिया भर की बातें धैर्य से सुनते हैं लेकिन स्वयं कुछ बोल नहीं सकते। सभी ज्यादातर यह मानते हैं कि मौन रहने से आंतरिक शक्ति व सुदृढ़ता बढती है। यह सच भी है। लेकिन इस मौन रहने में और बोल नहीं सकने के कारण मौन रहने में बहुत फर्क है।जब मौन कुछ समय का हो या निश्चित अवधि का हो तब हमको यह पता होता है कि इस अंतराल के बाद हम बोलने के लिए स्वतंत्र व सक्षम होंगे इसलिए वह मौन आत्म संतुष्टि देता है। लेकिन जब यह मालूम हो कि इस मौन की अवधि ऐसी है जो कभी खत्म नहीं होगी, तब वह मौन सुखकारी होने की बजाय कष्टकारी हो जाता है।इसलिये सच ही कहा गया है कि जो मौन का कष्ट जानके हैं वो शब्दों की कीमत जानते हैं।
- सुखमिला अग्रवाल भूमिजा
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " शुरू में मौन रहने का प्रयास किया जाता है। जो कुछ कष्ट दे सकता है। इसी बीच दिमाग में शब्दों का जन्म होता है। ये बात कवि , लेखक आदि बहुत अच्छी तरह से समझते हैं। इन शब्दों से कविता, लेखक आदि बहुत कुछ लिखते हैं।इन्ही से किताब या ग्रन्थ आदि तैयार हो जाते हैं।
सादर धन्यवाद आदरणीय, मौन शब्द पर विस्तार से विचार पढ़ने को मिले🙏😊
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