भारतरत्न एम एस सुब्बुलक्ष्मी स्मृति सम्मान - 2025
नम्रता अच्छा संस्कार, अच्छा गुण है। परंतु जो आपकी नम्रता को कायरता समझने लगे उसे नम्रता व दृढ़ता से जताना आवश्यक है कि हम आपकी कदर करते हैं, आपका सम्मान करते हैं परंतु इसका अर्थ यह कदापि नहीं कि हमें अपने स्वाभिमान की कदर नहीं। अहम को आड़े नहीं आना चाहिए परंतु स्वाभिमान से जीना आवश्यक है। हरिवंशराय बच्चन जी की कविता की यह पंक्ति हमेशा ज़हन में ताज़ा रखनी चाहिए। *हम हैं उनके साथ जो सीधी रखते अपनी रीढ़।* बहस का न बने परंतु वार्तालाप चलते रहना चाहिए। बातचीत जिंदगी की बहुत सी समस्याओं को सुलझाने में कारगर सिद्ध होती है। हमारी नम्रता के कारण यदि कोई हमें हेय समझे व तुच्छ दृष्टि से देखे तो उसे आप अपना वास्तविक परिचय देना, अपने श्रेष्ठ कार्यों द्वारा उस भीड़, उस व्यक्ति से उपर उठ जाना अत्यंत ओवश्यक होता है। यदि व्यक्ति गरिमामय, समझदार होगा तो एक न एक दिन आपकी कदर अवश्य करेगा। और यदि नहीं करे तो वो उसकी समस्या, उसकी बदकिस्मती है।
बिल्कुल सही बात है , हमें उसकी इज़्ज़त करनी चाहिए , जो उस इज़्ज़त लायक हो , और जो आपकी भी इज़्ज़त करे, आपको भी सम्मान दे, और आपकी भावनाओं को समझे !! इतने भी अच्छे न बने कि लोग आपकी दी हुई इज़्ज़त का मजाक बनाएं , और आपके साथ सम्मानजनक व्यवहार भी न करें ! इज़्ज़त मैं बराबरी होती है , एक हाथ से इज़्ज़त दी जाती है , तो दूसरे हाथ से इज़्ज़त वांछित होती है !! उनकी इज़्ज़त करने का क्या फायदा जो आपकी दी हुई इज़्ज़त का सम्मान ही न करें !! जो अच्छे होते हैं स्वभाव के , वे सबकी इज़्ज़त करते है ! आजकल की दुनियां मैं यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि जिसकी हम कद्र कर रहे हैं , वो उसका पात्र है भी या नहीं !! अनावश्यक सम्मान देनेवाले को आजकल बेवकूफ साझा जाता है , वो उसकी इज़्ज़त सरेआम नीलम होती है !! अच्छे बनें अवश्य , पर खुद को , इस प्रक्रिया में, हंसी का पात्र न बनाएं !! इज़्ज़त दें , पर स्वयं की इज़्ज़त नीलाम न होने दें !!
- रेनू चौहान
दिल्ली
आज के समाज में अपने से बड़ों, माता पिता और गुरूओं के सम्मान में कमी देखने को महसूस हो रही है जबकि मानवता या इंसानियत इज्जत को एक महत्वपूर्ण नैतिक मुल्य मानती है लेकिन फिर भी इज्जत, मान,प्रतिष्ठा या सम्मान में कमी क्यों आंकी जा रही है आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि क्या कदर उसी की करनी चाहिए जो तुम्हारी करे या ज्यादा आदर मान करने से इज्जत निलाम होती है,मेरा मानना है कि इज्जत एक ऐसा अनमोल खजाना है जिसे कमाना आसान नहीं और खो देना पल भर का काम है इसलिए पहले हमें कदर करना आनी चाहिए तकि दुसरा भी इसे बरक़रार रख सके क्योंकि इज्जत ही इंसान की असली पहचान व उसके व्यक्तित्व का आईना होती है और इसे हर कोई कमाना चाहता है इसलिए कि दुसरों को देने से दोगुनी लौट कर आती है, मगर यह तो सम्मान, आदर,भरोसे और अच्छे कर्मों से कमाई जाती है इसलिए इसको पाने के लिए इन सभी बातों का ध्यान रखना पड़ता है, तभी लोग ज्यादातर उसी व्यक्ति की इज्जत करते हैं जो अपने शब्दों पर कायम रहता हो, दुसरों का सम्मान करता हो और अपने काम के प्रति ईमानदार हो, क्योंकि इज्जत व्यक्ति की पहचान और नैतिकता का प्रतीक है जो आत्मविश्वास और संतुष्टि देती है जो अच्छे कर्मों,व्यवहार और अच्छे मुल्यों का परिणाम होती है तथा मनुष्य के चरित्र को दर्शाती है इसे खरीदा नहीं जा सकता मगर इसे अच्छा व्यवहार, ईमानदारी व सम्मान देकर ग्रहण किया जा सकता है क्योंकि यह एक ऐसी प्रक्रिया है यहाँ एक दुसरे का सम्मान किया जाए इसलिए कि किसी भी रिश्ते की गरिमा तब तक कायम है जब दोनों तरफ से एक दुसरे को बराबरी का दर्जा मिलता है यदि दुसरा व्यक्ति लगातार आपकी भावनाओं को नजरअंदाज कर रहा है तो अपनी सीमाएँ तय करना जरूरी है इसलिए कि अपने आत्म सम्मान को ठेस न पहुँच सके,अन्त में यही कहुंगा कि प्यार और सम्मान एक सिक्के के दो पहलु हैं किसी एक के बिना रिश्ता अधूरा दिखता है अगर कोई प्यार करता है तो इज्जत नहीं करता तो प्यार अधूरा है,इसलिए दोनों तरफ से कदर होनी चाहिए ताकि रिश्तों में दरार न आ सके लेकिन पहल तो एक तरफ से करनी पड़ती है क्योंकि प्रेम और सम्मान रिश्तों को संजीवनी प्रदान करते हैं इसलिए एक दुसरे की कदर करते वक्त हमें कतराना नहीं चाहिए बल्कि एक दुसरे का सम्मान मेल जोल से करना चाहिए यही इंसानियत का परम धर्म है, तभी तो कहा है,आपना जमाना आप बनाते हैं अहल - दिल,हम वो नहीं कि जिनको जमाना बना गया।
- डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू व कश्मीर
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
कदर उस की करो जो तुम्हारी करे, बात सही है। ताली एक हाथ से नहीं बजती। कदर चाहते हो तो कदर करनी भी पड़ेगी। मान-सम्मान लेना चाहते हो तो मान-सम्मान देना भी होगा। स्वाभिमान सबका होता है। इसलिए यदि कदर नहीं हो रही है, उपेक्षा की जा रही है फिर भी हम प्रतिकार नहीं कर रहे हैं तो यह सब इज्जत नीलाम करना ही है। अत: सार यही कि व्यवहारिक जीवन में संत तुलसीदास जी की इस सूक्ति को चित्त में रखना भी होगा और निर्वहन भी करना होगा -" आवत ही हरषे नहीं, नैनन नहीं सनेह। तुलसी तहाँ न जाइये, कंचन बरसे मेह।।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मेरे विचार से महत्वपूर्ण संदेश है जो हमें रिश्तों में सामजस्य और सम्मान का महत्व समझा समझने के लिए प्रेरित करता है रिश्तों में संतुलन सम्मान और कृतज्ञता रखना बहुत जरूरी है। रामायण कर किरदार अपनी निभाने सक्षम है !लक्ष्मण ने सीमा निर्धारित कर रेखांकन ना किया होता तो रामायण कथा पूरी ना होती पांचाली का चिर हरण ना होता महाभारत ना होती नर और नारी में सामंजस्य ना हो कृतज्ञता ना होती तो प्रकृति संसार का निर्माण ना होता ! जीवन है तो कदर है रिश्तों की सीमाओं को निर्धारित करना और उनका सम्मान करना भी महत्वपूर्ण है। रिश्तों में संचार और समझ की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है, जिससे हम एक दूसरे की भावनाओं और जरूरतों को समझ सकें।इज्जत आत्म-सम्मान की रक्षा करना जरूरी है ! सीमाओं को बंधन में बाँधना जरूरी है ! संसार चलने चलाने वो सारी चीजें जरूरी है जिसका हम स्तमाल करते है सुई और धागा समय रंग दिखाते है ! हाथी को चींटी से हार माननी पड़ती है !ज़हर इंसान ने बोया हैं तक़दीर को दोष देने से क्या फ़ायदा मज़हब इंसान ने बनाया तक़दीर पर भरोसा हैं क़दर इंसान की कर जहाँ बना लो झूँठ फ़रेब से हट कर दुआओ इंसानियत से कर लो ।खुदा की रहमत में दुआए ही दुआए हैं !क़दर उसकी करो जो तुम्हारी करे ! वरना दुनिया में झूठ फ़रेब धोखा ही धोखा है ! जहाँ इंसान इज्जत क़द से नहीं कद्र से आँकी जाती है ! नीलाम होने की बाते महज खड्ड में समाहित बीज मिट्टी रह जाती है ! प्रकृति मौसम से लहलहा नीलाम होने से बच तालीम पूरीकर इज्जत के साथ अपना वजूद हासिल कर कदर इंसान की दुआओं का असर दिखाती है! जंग हौसलों से जीती जाती है उड़ानों से नहीं ! विचार की समीक्षा अवश्य होनी चाहिए कदर करने वालों को सम्मान जरूर मिलना चाहिए!
- अनिता शरद झा
रायपुर - छत्तीसगढ़
जीवन में दीर्घकाल का साथी वही है जो कदर तुम्हारी हमेशा करते रहता है, सुख के साथी सभी रहते है, बड़ी-बड़ी बाते करते रहते है, ऐसा करेगें, वैसा करेगें, जब दु:ख का समय आता है, कोई साथ नहीं देता है, सब मतलब के साथी रहते है, यह कड़वा सत्य है। सफर में वही साथी अच्छा रहता है, जो साथ-साथ चले, परिस्थितियों को समझे। कदर उस की करों जो तुम्हारी करें, ज्यादा अंदर करने से इज्जत नीलाम होती है। यह सत्य है अपने दिल की बात उतनी बताईए, अन्यथा अगला हमारी कमजोरी समझ जाता है, जो कभी भी हमें हानि पहुंचा सकता है.....
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"
बालाघाट - मध्यप्रदेश
कदर उसकी करो जो तुम्हारी कदर करते हैं। यह एक बहुत ही समझदारी भरी बात है कि हमें उन लोगों की कदर करनी चाहिए जो हमारी कदर करें। ज्यादा कदर करने से इज्जत नीलाम होने की बात भी सही है। अगर हम किसी की बहुत ज्यादा कदर करते हैं और उसके सामने अपने आप को बहुत हीन या कमतर दिखाते हैं, तो इससे हमारी इज्जत और आत्मसम्मान कम हो सकता है। हमें अपने आत्मसम्मान को बनाए रखना और स्वाभिमान के साथ जीना चाहिए।और हमें अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान को बनाए रखना चाहिए। ज्यादा कदर करने से इज्जत नीलाम हो सकती है, वो हमें कम समझने की भूल करता है।इसलिए संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
- रंजना हरित
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
जो व्यक्ति हमारी कद्र करते हैं, हमें उसी की कद्र करनी चाहिए।अकारण उनकी इज़्ज़त जरूरत से ज़्यादा नहीं करनी चाहिए।जो इंसान मुझे जितना महत्व देगा,मैं भी उसे उतना ही महत्व दूंगा।वह अगर मेरा मुसीबत में साथ देगा तो मैं भी हमेशा उसकी भलाई के लिए तैयार रहूंगा।जो हमारे साथ जैसा व्यवहार करेंगे,मैं भी उनके साथ वैसे ही पेश आऊंगा।अतः हमें लोगों की कद्र करनी चाहिए।
- दुर्गेश मोहन
पटना - बिहार
किसी को इज़्ज़त देना एक बहुत बड़ी चीज होती है, लेकिन जिसे हम इज़्ज़त दे रहे हैं उसके अंदर कुछ तो ऐसा होना चाहिए कि हम इज़्ज़त दें, सिर्फ पद के कारण या सिर्फ अपने से बड़े होने के कारण जो इज़्ज़त दी जाती है वह बेमानी होती है। अगर वह व्यक्ति उस इज़्ज़त के काबिल है तो इज़्ज़त बहुत बड़ी चीज है। हमें बदले में उनसे इज़्ज़त नहीं मिली वह बात अलग है, लेकिन हमारी भावनाओं को समझते हुए, हमारे समर्पण को समझते हुए यदि उसकी कोई कदर नहीं कर सकता भले ही वह कितना ही बड़ा व्यक्ति क्यों हो, तब हमको अपनी वह भावना लुटानी नहीं चाहिए। हमें वह इज़्ज़त बचा के रखनी चाहिए जो उसका समुचित पात्र हो उसको ही देना चाहिए, भले ही वह उच्च पदाधिकारी ना हो, भले ही वह बहुत सामाजिक प्रतिष्ठा वाला ना हो लेकिन हमारी दृष्टि में वह व्यक्ति वाकई इज़्ज़त का हकदार होना चाहिए । अपना इज़्ज़त देने का पैमाना हम खुद ही बनाते हैं और इसीलिए हमें अपनी भावनाओं को वही व्यक्त करना चाहिए जहां उसको समुचित समझा जाए। जहां उस इज़्ज़त को कोई प्रेम पूर्वक स्वीकार करें और बदले में भले एक मुस्कान के साथ हमको अभिभूत ही करें।
- रेखा श्रीवास्तव
कानपुर - उत्तर प्रदेश
हम किसी की कदर करते हैं तो वह हमारी संस्कृति, हमारी परवरिश, हमारा परिवेश प्रदर्शित करता है। सम्मान पाकर बदले में अगर सामने वाले को अहम् (गलतफहमी का कोई निदान नहीं) हो जाए अपने सर्वोश्रेष्ठ हो जाने का तो उसमें अकड़ हो जाना स्वाभाविक हो जाएगा। ऐसे लोग सम्मान देने वाले को ही हीन समझने की भूल करने लगते हैं। तब अपनी प्रतिष्ठा की रक्षा करना सम्मान देने वालों के लिए आवश्यक हो जाता है कि अकड़ वाले (उन्हें यकीन नहीं होता कि उनमें अकड़ का प्रवेश है भी) से दूरी बना ले। नहीं तो बार-बार अपमानित होना उचित बिलकुल नहीं होगा। अपनी इज्जत को नीलाम करने से बचना चाहिए किसी ऐसे व्यक्ति को ज़्यादा आदर देने में।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
इसमें कोई दो राय नहीं है बिल्कुल सही है.. आज हम जिस प्रकार के माहौल में रहते हैं वहाँ यही देखने को मिलता है। "एक हाथ दे तो एक हाथ ले"। सम्मान दोगे तो सम्मान मिलेगा। हर कोई अपेक्षा रखता है कि उसकी बात को मान दे, उसकी इज्जत करें, सम्मान दे। दूसरी तरफ यदि हम विनम्रता से किसी के साथ पेश आते हैं (उम्र का लिहाज रखते हुए )चाहे वह हमें कुछ भी कहता है फिर भी हम कुछ नहीं कहते किंतु जब अपने मान सम्मान पर आँच आती है तब हमें कदम उठाना ही पड़ता है। सभी का अपना स्वाभिमान होता है। वो कहते हैं ना.. "नम्र बनों पर इतना भी नहीं कि कोई हमें झुका दे" अपना मान- सम्मान बनाए रखना हमारे व्यवहार पर निर्भर करता है। व्यक्ति का व्यवहार ही उसके व्यक्तित्व को बनाकर रखता है।
- चंद्रिका व्यास
मुंबई - महाराष्ट्र
इसका भाव है कि सम्मान, स्नेह और विश्वास हमेशा आपसी होना चाहिए। जो आपकी कद्र करता है, आपके लिए समय निकालता है, आपके सुख-दुख को समझता है — वही सच्चा संबंध है। ऐसे व्यक्ति की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। सम्मान पाने से पहले देना सीखें और जो आपको सच्चा मान देता है, उसे हमेशा महत्व दें। यह हिस्सा जीवन में संतुलन रखने की ओर इशारा करता है। किसी को ज़रूरत से ज्यादा अपने निजी जीवन, समस्याओं या भावनाओं के “अंदर” आने देना कई बार उल्टा पड़ जाता है। लोग आपकी कमजोरी का फायदा उठा सकते हैं या आपकी मर्यादा को चोट पहुँचा सकते हैं। हर रिश्ते में दूरी और मर्यादा ज़रूरी है। आत्मसम्मान बनाए रखें, तभी समाज में आपकी इज्जत बनी रहेगी। सम्मान हमेशा आपसी हो।विश्वास करें, मगर सीमाएँ भी तय करें। अपने आत्मसम्मान और मर्यादा से कभी समझौता न करें।
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
" मेरी दृष्टि में " आदर की भी सीमा होती है। उस सीमा का उल्लघंन नहीं होना चाहिए । जब जब सीमा का उल्लघंन होता है तो बहुत बड़ी समस्या का सामना करना पड़ता है। यही जरूरत से ज्यादा आदर का परिणाम होता है।
कदर उसकी करो जो तुम्हारी कदर करते हैं। यह एक बहुत ही समझदारी भरी बात है कि हमें उन लोगों की कदर करनी चाहिए जो हमारी कदर करें।
ReplyDeleteज्यादा कदर करने से इज्जत नीलाम होने की बात भी सही है। अगर हम किसी की बहुत ज्यादा कदर करते हैं और उसके सामने अपने आप को बहुत हीन या कमतर दिखाते हैं, तो इससे हमारी इज्जत और आत्मसम्मान कम हो सकता है। हमें अपने आत्मसम्मान को बनाए रखना और स्वाभिमान के साथ जीना चाहिए।
और हमें अपने आत्मसम्मान और स्वाभिमान को बनाए रखना चाहिए। ज्यादा कदर करने से इज्जत नीलाम हो सकती है, वो हमें कम समझने की भूल करता है।इसलिए संतुलन बनाए रखना जरूरी है।
रंजना हरित बिजनौर