भक्तिविनोद ठाकुर स्मृति सम्मान - 2025

        कहते हैं भरोसे पर दुनियां क़ायम है। क्या यह वास्तविकता है। भरोसे से बहुत कुछ हो जाता है। जिस की उम्मीद भी नहीं होती है। वह भी हो जाता है। फिर भरोसे से क्या सिद्ध होता है। यही कुछ चर्चा परिचर्चा का विषय तैयार हुआ है। जैमिनी अकादमी ने परिचर्चा के माध्यम से भरोसे की व्याख्या करने का प्रयास किया है। जो आयें विचारों पर निर्भर हैं : -
      भरोसा-जीवन का अभिन्न अंग है, बिना भरोसा किए कुछ ही नहीं हो सकता, भरोसे पर सृष्टिकाल टीका हुआ है और भरोसे के लिए रोता है, कोई भरोसा करके रोता है। पुराणिक कथाओं, वैवाहिक बंधन [मर्यादित], समसामयिक, रचनात्मक, राजनैतिक [ईवीएम मशीन एक जबरदस्त भरोसा भी है और जिस पर रो भी रहे है] पर अग्रसरित तो है। श्रीराम भी पिताश्री दशरथ पर भरोसा करके ही वनगमन प्रस्थान किए थे। कैकेयी ने भी दशरथ पर भरोसा करके अपनी बात कहीं, श्रीराम को वन और भरत का राज्याभिषेक, इतना सुन दशरथ भरोसा कर रोते रहे, अंतिम समय कोई पुत्र भी पास नहीं? अनगिनत उदाहरण मिलते है, यह भी तो एक भरोसा है, अच्छे-अच्छे अचंभित काम भी सम्पन्न हो जाते है। पूर्व काल में भरोसा करके ही मुख से शब्द बाण निकलता था और आज वर्तमान परिदृश्य में भरोसे का समझौता पत्र जारी हो चुका है। साहूकार के यहाँ आभूषण भरोसा करके रखा जाता है, समय पर चुकता नहीं किया तो, भरोसा टूट जाता है और चक्रवर्ती ब्याज का रोना प्रारंभ भरोसा टूटा-दिल टूटा.....?

 - आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार "वीर"

       बालाघाट- मध्यप्रदेश

"मनुष्य के जीवन में सबसे बड़ी आवश्यकता है — भरोसा।कुछ लोग इसलिए रोते हैं क्योंकि उनके पास कोई अपना नहीं, जिस पर वे विश्वास कर सकें। वे भरोसे की तलाश में भटकते हैं।वहीं, कुछ लोग इसलिए रोते हैं क्योंकि उन्होंने जिसे अपना मानकर भरोसा किया, वही भरोसा तोड़ देता है। इसलिए एक पीड़ा सहारे के अभाव से जन्म लेती है, और दूसरी पीड़ा भरोसे के टूट जाने से।" यही वाक्य हमें यह सिखाता है कि भरोसा देना भी पुण्य है और निभाना उससे भी बड़ा धर्म।

 - डॉ. छाया शर्मा 

  अजमेर - राजस्थान 

    भरोसे के लिए बहुत कम लोग रोते हैं. लेकिन भरोसा कर के बहुत ज्यादा लोग रोते हैं. मैं स्वयं इसका भुक्त भोगी हूँ. एक आदमी के भरोसे में आकर कुछ पैसा एक कंपनी में निवेश किया था. वो कंपनी भी बंद हो गई और वह आदमी भी भाग गया. कुछ जमीन भी लिखवाया था  उसके भरोसे उसमें भी कुछ समस्याएं पैदा हो गई है. एक का तो अता पता नहीं है. दूसरा का है तो वह फोन ही नहीं उठाता है. इस तरह मैं भरोसा कर के आज रो रहा हूँ.भरोसे के लिए कम लोग रोते हैं उसे कोई न कोई भरोसा करने वाला मिल जाता है या नहीं मिलता है तो उसका काम किसी तरह हो ही जाता है. भले देर होता है. किसी के भरोसे कोई काम नहीं  करना चाहिए या छोड़ना चाहिए. दूसरों के भरोसे वालों का ही काम अटकता है ya वह किसी झमेला में फंसता है. जो तैरना नहीं जानता है और दूसरों के भरोसे नदी में उतरने वाला ही डूबता है. इसलिए न ही किसी पर भरोसा कारें और न ही किसी के भरोसे के लिए रोयें. 

- दिनेश चंद्र प्रासाद " दीनेश "

     कलकत्ता - प. बंगाल 

       इंसान के दिल में चोर ना हो तो भरोसा कर नहीं रोता और दिल में चोर तो गला फाड़ कर रोता है ये चोर कहाँ से आ गया ये वही जो दिखाई नहीं देता अंतरात्मा में वास कर आत्मा की आवाज में घंटी बजा सचेत करता है !आगे अंधेरा है उजाले का सहारा लो नहीं तो गिर जाओगे फिर कोई देख तो नहीं रहा आब्जर्व करते हो और अपने ही बालिस्ट बाजूओं का सहारा ले भरोसा कर आगे बढ़ अपनी कहानी गर्व से चकित कर सुनाते हो और यदि किसी ने देख लिया भरोसा कर रोने लगते हो कहने का मतलब अपनी ख़ामयाज़ी का भूकतान ख़ुद भुगते हो ! साहस सच्चाई का सामना कर जीवन की राहे सवाँर सकते हो  । भरोसा ही कामयाबी मंजिल है ।जो आपको आपके गंतव्य तक पहुँचा कर ही दम लेती है ! निराशा बुझदली को पास आने नहीं देती कर्म हाँथों की लकीरों पर भरोसा हो जाए तो पत्थर भी कोहिनर बन चमक उठती हैं भरोसा कर बुलंद इमारत खड़ी करते श्रमदान कर मूल्य चुकाते रोते नही ऋणी बनाते है नियति करती नही अन्याय दुविधा की बात ना सोचो  कल के ये कर्णधार बनोगे ग़म हो या ख़ुशी मुसकानों में जीतअपनी हस्ती स्वयं बनाते है  कर्म इंसानियत पाक इरादे होते ।हर कदम अपनों के साथ होते इन्हें कमजोर कड़ीं ना समझे । चालीस से इकचालिस बनते है ज़िंदगी मिलती नही दुबारा नियति करती नही अन्याय कर्म भरोसा रख आगे बढ़ जाते है !कर्म इंसान की कुंजी है वक़्त भरोसे की पूँजी है कोई भरोसे के लिए रोता है कोई भरोसा कर के रोता है  !

    - अनिता शरद झा 

    रायपुर - छत्तीसगढ़

            जैसे हमारे के रूप-रंग अलग-अलग होते हैं वैसे ही हमारे स्वभाव भी अलग-अलग होते हैं। यहाँ तक कि हमारे सगे भाई-बहन के स्वभाव में भी बहुधा भिन्नता  होती है। इसीलिए जीवन में सामंजस्य बनाना आवश्यक होता है क्योंकि हमारा जीवन पारिवारिक एवं सामाजिक होता है। जिसमें हमें विनम्रता,त्याग, मिलनसारिता आदि स्वभावगत चारित्रिक विशेषताओं का निर्वहन करना होता है तभी हम अच्छे यानी खुशहाल वातावरण में अपना जीवनयापन करने में सफल हो सकते हैं। व्यवहारिक जीवन में प्रेम के अलावा विश्वास की भी महती आवश्यकता पड़ती है। ईश्वर ने हमें में अनेक विशेषताओं से परिपूर्ण किया है, मगर इस सबके बावजूद हम,औरों के मन में क्या है, यह नहीं जान पाते और भरोसा कर लेते हैं। ऐसे में अनेक बार हमारा भरोसा बना भी रहता है और अनेक बार टूट भी जाता है यानी हम जिन पर भरोसा कर रहे हैं वह भरोसेमंद है या नहीं, यह हमें संबंधित कार्य पूरा होने के बाद ही लगता है। इसे ही भरोसा करके रोना कहते हैं। अत: यदि हम किसी पर भरोसा कर रहे हैं तो हमें यह विकल्प तो अपने पास रखना ही होगा कि भरोसा टूट भी सकता है। साथ ही साथ ऐसा भी होता है कि जो किसी का भरोसा तोड़ता है तो वह अपनों के बीच मान-सम्मान भी खो देता है। वह  फिर सुधर भी जाए किंतु लोग उस पर फिर भरोसा नहीं करते  और तब वह भरोसे के लिए रोता फिरता है।सार यह कि हम पर कोई भरोसा करता है तो हमें उसके भरोसे को  बनाए रखना चाहिए। फिर कैसी भी परिस्थितियाँ बने, भरोसा नहीं तोड़ना चाहिए। क्योंकि भरोसा तोड़कर हम उसे जो व्यथित करते हैं, जो त्रास देते हैं, उससे निकलने वाली आह, हमें दंड स्वरूप कभी न कभी बहुत बुरे अंजाम तक पहुँचाती है। यह सुनिश्चित है।     

   - नरेन्द्र श्रीवास्तव

  गाडरवारा - मध्यप्रदेश 

       भरोसा एक ऐसा शब्द है जिसमें किसी को धोखा न मिला हो अथवा स्वयं ने किसी को धोखा न दिया हो...मित्र का दावा सभी लोग करते हैं और मित्रों पर भरोसा भी खूब किया जाता है शायद खुद से भी अधिक। वह अपनी हर बात उससे शेयर करता है किंतु उसी मित्र से जो धोखा मिलता है तो मित्र से विश्वास उठ जाता है। गलतियां तो सभी से होती है।पश्चाताप के बाद वही धोखेबाज मित्र अपनी बात को सही बताने के लिए कहता है कि मेरा विश्वास करो,  मेरी बात पर भरोसा करो किंतु " दुध का जला छाछ भी फूंक फूंक कर पीता है" कोई उसकी बात पर भरोसा नहीं करता। पति पत्नी का संबंध भी अटूट भरोसे का होता है किंतु दोनों में से किसी का भी एक पर से विश्वास उठ जाता है फिर वह उसका भरोसा कभी नहीं करता।कहना यही है.... दूसरे का भरोसा जितने के लिए पहले हमें भरोसा मंद होना चाहिए। जब हम बेईमानी करते हैं तो दूसरे से भरोसे की आशा कैसे रख सकते हैं। 

    - चंद्रिका व्यास 

     मुंबई - महाराष्ट्र 

         इंसान को कभी भी भरोसे के लिए नहीं जीना चाहिए।बाद में रोना हो जाता है।इंसान को कभी भी भरोसा नहीं करना चाहिए कि वह मुझे कोई चीज पूरा कर देगा।अगर वह पूरा नहीं करेगा तो फिर रोना आ जाएगा।इसलिए मनुष्य को स्वावलंबी और परिश्रमी बनना चाहिए। कभी किसी व्यक्ति पर आश्रित नहीं होना चाहिए।जब हम स्वावलंबी बनेंगे , तब हम अवश्य सफल होंगे।मेरा लोग गुणगान करेंगे।

     - दुर्गेश मोहन

     पटना - बिहार

         "भरोसा" आज के दौर में सबसे खतरनाक भ्रामक और अविश्वसनीय शब्द बन गया है। भरोसा किस कर करें यही सबसे बड़ा प्रश्न है। हमारे यहां एक कहावत है "भरोसे की भैंस दूध नहीं देती" अर्थात जिस पर ज्यादा विश्वास रखें वही वक्त पर काम नहीं आता। इसलिये सच्चाई यही है कि किसी पर अधिक भरोसा करना भी हानिकारक है। अपने कर्म पर विश्वास रखें। एक सच्चाई यह भी कि हम  दूसरों के भरोसे के काबिल बने। हम विश्वासपात्र बने। सबकी नजरों में हमारे लिये स्नेह प्रेम और सम्मान हो। इतिहास ऐसे उदाहरणों से भरा है। अभी-अभी रक्षाबंधन गया है। रानी कर्मवती ने हुमायूं को राखी भेज कर रक्षा सूत्र पाया था। तात्पर्य यही कि सदैव अपनों पर भरोसा करें और दूसरों के भरोसे का सम्मान करें

- हेमलता मिश्र मानवी 

    नागपुर - महाराष्ट्र 

         भरोसा एक ऐसा शब्द है जिसके बिना जीवन में एक कदम भी आगे बढ़ पाना मुश्किल है लेकिन कईबार धोखे जैसे शब्द भी भरोसे के साथ ही यात्रा करते हैं तो आईये  आज की चर्चा इसी बात पर करते हैं कि कोई भरोसे के लिए रोता है और कोई भरोसा करके रोता है यह अटूट सत्य है  कि भरोसा एक जटिल मानवीय भावना है, यहाँ एक तरफ भरोसे की चाहत होती है और दुसरी तरफ भरोसा टूट जाने का दर्द लेकिन जिन लोगों को भरोसे की जरूरत होती है वो चाहते हैं कि कोई उन पर भरोसा करे या वह किसी पर भरोसा करें लेकिन जब उनको भरोसे की कमी महसूस होती है तो वह भरोसे के लिए रोते हैं लेकिन दुसरी और कुछ लोग दुसरों पर शीघ्र ही भरोसा कर लेते हैं और जब उनका भरोसा टूट जाता है तो उन्हें निराशा ही हाथ लगती है जिसके कारण उनके पास रोने के सिवा कुछ नहीं होता इसलिए भरोसे के दो पहलू  होते हैं  एक भरोसा पाने का संघर्ष और दुसरा  भरोसा खोने का दुख, जब भरोसा टूटता है  इससे दुख, निराशा और असहायता की भावनाएं आती हैं जिससे रोने को मन करता है क्योंकि इससे गहरा भावनात्मक दुख होता है जिससे रोना स्वाभाविक है, देखा जाए भरोसा वो नाजुक धागा है जो दिलों को बाँधता है जो न दिखता है न ही उसे छू सकते हैं लेकिन टूटने पर इतनी आवाज करता है कि दिल फूट फूट कर रोने लगता है इसमें कोई दो राय नहीं कि रिश्ते भरोसे पर ही चलते हैं और भरोसा वो शीशा है जब टूट जाए , जुड़ तो सकता है पर निशान छोड़ जाता है  तभी तो कहा है, रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़यो   चटकाये  टूटे से फिर न  जुड़े, जुड़े गाँठ पड़ जाए,  कहने का मतलब यहाँ भरोसा होता है वहाँ प्रेम भी बढ़ जाता है  और भरोसा टूटने पर प्रेम, बंधन सब टूट जाते हैं सिवाय रोने के कुछ पास नहीं टिकता सत्य तो यह  कि भरोसा एक भावना है जो समय के साथ व्यक्तिगत व्यवहार के आधार पर बनती है जिससे अधिक गहरा और सक्रिय विश्वास बनता है जो रिश्तों में विकसित होता है , इसलिए भरोसे की कमी महसूस होने पर और भरोसा टूटने के वक्त रोना संभव है, अन्त में यही कहुँगा कि जब भावनात्मक और मानसिक रूप में  चोट पहुँचती है चाहे भरोसा बनाते वक्त या भरोसा टूटते वक्त जब भी स्वार्थ और धोखे का खेल रचा जाता है तो, रोने के सिवाय कोई साथ नहीं देता। 

 - डॉ सुदर्शन कुमार शर्मा

     जम्मू - जम्मू व कश्मीर

 " मेरी दृष्टि में " भरोसे से दुनियां नहीं चलती है। आज़ का समय ऐसा नहीं है। सब एक दूसरे को चकमा देकर आगे निकलने में लग हुए हैं। फिर भी सभी अपना - अपना जीवन जीतें हैं। समय के साथ भरोसे की परिभाषा बदल गई है। आज़ जिस पर भरोसा है। यह जरूरी नहीं है कि कल भी भरोसा बना रहे। 

          - बीजेन्द्र जैमिनी 

       (संपादन व संचालन)


Comments


  1. भरोसा एक बहुत ही व्यक्तिगत दृष्टिकोण है ।भरोसा कर के वे लोग रोते जो दूसरों को भी अपने जैसा समझते हैं ।भरोसे के लिए वे लोग रोते हैं जो किसी का भरोसा जीत नही पाते।भरोसा कर के रोना स्वयं को दूसरे के भरोसे लायक नही समझना हैऔर तब भरोसे के लिए रोने वाली विकट परिस्थिति खड़ी हो जाती है।
    - अर्चना अनुपम
    रायपुर -छत्तीसगढ़
    (WhatsApp ग्रुप से साभार)

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