क्या जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता है ?

जीवन में सहनशीलता बहुत जरुरी है । बिना सहनशीलता के जीवन नंरक के समान है । सहनशीलता से ही जीवन में अनुशासन आता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
सहनशीलता का अर्थ है सहनशील होना , सहन करना , सहिष्णुता होना है सहनशील होना मानव के जीवन का गुण है । इस गुण  को बचपन से ही संस्कार ढाल लें हमारा  वर्तमान , भविष्य दोनों टिकाऊ बनते हैं ।
जितने भी सन्त ,  महापुरुष हुए हैं उन्होंने इस  सहनशीलता को अपने जीवन में धारण किया है । महात्मा गांधी जी  इसकी मिसाल  हैं । उन्होंने  कहा था , कोई तुम्हें गाल पर  एक थप्पड़ मारे तो दूसरा भी आगे कर दो । 
कर्ण बचपन में धनुर विद्या सीखने के लिए भगवान परशुराम के पास पहुंच जाते हैं, लेकिन भगवान परशुराम भी सिर्फ ब्राह्मणों को ही विद्या देते थे। अब कर्ण किसी भी तरह से धनुर विधा सीखना चाहता था, तो वह भगवान परशुराम से झूठ बोलता है कि वह ब्राह्मण है। भगवान परशुराम भी कर्ण को ब्राह्मण समझकर उसे शिक्षा देने लगते हैं।
जब कर्ण की शिक्षा खत्म होने वाली थी तब एक दिन उनके गुरु भगवान परशुराम दोपहर के समय कर्ण की जंघा पर सिर रखकर सो रहे थे थोड़े समय बाद वहां एक बिच्छू आया । बिच्छू ने कर्ण के जंघा को का डंक मार दिया तो कर्ण ने उस विषैला जहर और पीड़ा को चुपचाप सहता रहा । कर्ण ने उफ्फ भी नहीं की  कहीं गुरु परशुराम की नींद  न टूट जाए। इसलिए, वह बिच्छू को हटाने की बजाय उसे डंक मारने देता है। कर्ण काफी समय तक बिच्छू के डंक से होने वाले दर्द को सहता रहता हैऔर खून को बहने दिया ।
कुछ समय बाद गुरु परशुराम नींद से उठे तो उन्होंने देखा
 कि कर्ण के जांघ से खून बह रहा है। यह देखकर भगवान परशुराम गुस्से में कहा , “इतनी सहनशीलता सिर्फ किसी क्षत्रिय में ही हो सकती है। तुमने मुझसे झूठ बोलकर ज्ञान हासिल किया है, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि जब भी तुम्हें मेरी दी हुई विद्या की सबसे ज्यादा जरूरत होगी, उस समय वह काम नहीं आएगी।”
सहनशीलता के गुण की  हमारे धार्मिक ग्रन्थों , नैतिक मूल्यों में  महिमा गायी है । सहनशीलता के दम पर हम बहुत दी समस्याओं को हल कर सकते हैं ।
आज की पीढ़ी में सहनशक्ति का गुण कम देखने को मिलता है । उनका तनावपूर्ण जीवन खुद का बनाया हुआ है ।ऐसे में  वे अपने से बड़ों , माता - पिता की  जो बात मन को पसंद नहीं आती है वे उनकी बात सहन नहीं कर पाते हैं  जो आत्महत्या , हिंसा को जन्म देता है ।
 सहनशीलता की ताकत से हम सकारात्मक तो बनते हैं ।
समस्याओं को समाधान भी मिलता है ।
 15 सदी के कबीर जी  ने  समाज में  में अपने विरोधियों 
 की गलत बातें सुन के शांत रहते थे । कभी किसी व्यक्ति से लड़ाई आदि नहीं किया था । एक बार कबीर जी घर में मेहमान आए तो कबीर ने अपनी पत्नी को मिठाई लाने के लिए  कहा तो वह नमक ले आयी फिर कबीर ने उसे जलाता दीया लाने को  कहा तो वह बिना जला ले आयी । कबीर ने अपनी पत्नी की इन गलतियों के लिए कुछ भी नहीं कहा ।  यह सहनशीलता हर इंसान सीख ले तो झगड़े ही नहीं होंगे ।
सहनशीलता की धारण करके अपने उद्देश्य की इर इंसान आगे बढ़ता जाए । इसी में हमारा विकास, प्रगति नुहित है ।
- डॉ  मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
सहनशीलता हमारी कमजोरी नही हमारा गुण है । सहनशीलता का समबंध व्यवहार से है । कुछ  लोग जैसा व्यवहार  मिलता है वैसा लौटा देते हैं । किसी  ने एक कहा भला वो क्यों पीछे रहेंगे दो बुरे बोल  बोलकर वैमनस्यता बढ़ा लेते हैं ।जो बर्दाश कर लेता है उसे ही सहनशील कहते हैं । सहन करने का परिणाम हमेशा अच्छा होता है ।हमारे अंदर सकारात्मक ऊर्जा दौड़ने लगती है हम जिंदगी  की परेशानियों से जूझने के लिए मजबूत बनते हैं ।सहनशीलता अंहिसा को जन्म देती है ,हमें मानवता सिखाती है ।बुराईयों में नही उलझकर हम सहनशील बने ।सभी महापुरुषों में सहनशीलता का गुण था ।जीवन मे ऊचाँईयों तक पहुँचने के लिए सहनशीलता का गुण होना आवश्यक है ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
हर व्यक्ति का अपना अलग व्यक्तित्व होता है ! व्यक्ति का व्यक्तित्व ही उसका आचरण होता है अतः हर व्यक्ति के सहनशील की शक्ति नापी नहीं जा सकती !  सहनशीलता के साथ व्यक्ति में धैर्य का गुण भी होता है! 
  नारी मात्र ही सहनशीलता का अनुपम उदाहरण है ! उनका त्याग, सेवा दया भाव और समर्पण का भाव उनकी सहिष्णुता के कारण ही संभव होता है !हर मौसम को बर्दाश्त करती स्त्री अपने परिवार को कोई तकलीफ नहीं होने देती !
यदि कोई हमें मारकर अथवा कटुवचन कह दुख देता है तो हममे सहिष्णुता है तो हम कभी भी क्रोध कर तुरंत इट का जवाब पत्थर से नहीं देंगे बल्कि सहनशीलता के जरिये ही वातावरण को तनाव मुक्त कर सामान्य बनाया जा सकता है किसी भी प्रकार की तनातनी होने पर हमें सहनशीलता का परिचय देना चाहिए !
सहनशीलता को कभी कभी लोग हमारी कायरता समझते हैं किंतु देखा जाऐ तो वह हमारी ताकत है !
अंत में कहूंगी  यदि सहनशीलता कायरता है तो प्रकृति जो निस्वार्थ हमें  हमारी हर जरुरतों का ध्यान रख मौसम के अनुसार हमारा ध्यान रखती  है हमने उन्हां प्रदूषण के अलावा क्या दिया! क्या यह उसकी सहनशीलता नही है!  अतः प्रकृति की सहनशीलता को देखते हुए मैं कहती हूं यह सहनशीलता  उसकी ताकत है !
सहनशीलता सहिष्णुता नारी में कुटकुट कर है इसीलिए तो नारी महान है! 
- चंद्रिका व्यास 
 मुंबई - महाराष्ट्र
 जीवन के मूल मंत्र में धैर्य, संयम, , सहनशीलता,परोपकार दया भाव, दक्षता आदि मुख्य हैं।
   सहनशीलता मनुष्य का आभूषण है।
सहनशीलता व्यक्तित्व का सबसे उत्कृष्ट गुण है। जिस व्यक्ति में सहनशीलता नहीं वह विपरीत परिस्थितियों में टूट जाता है। अगर व्यक्ति में सहनशीलता का भाव न हो तो उसे कई बार अप्रिय स्थितियों से गुजरना पड़ता है। इसके अभाव में व्यक्ति में क्रोध पैदा होता है। क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
उत्तम चरित्र के निर्माण में सहनशीलता एक आधारस्तंभ है। समाज में हो रही हिंसक घटनाएं सहनशीलता के अभाव में जन्म ले रही है। किशोर युवा सहनशीलता के अभाव में आक्रामक हो खून खराबा कर रहे हैं और गलत मार्ग पर भटक रहे हैं।
   हमें पारिवारिक जीवन में भी यही सिखाया जाता है कि संवेदनशीलता और सहनशीलता सफल जीवन का मूल मंत्र है। यह मन का सबसे बड़ा उपहार है क्योंकि यही हमें पशुओं से अलग करता है और हम एक आदर्श समाज की परिकल्पना करते हुए सामाजिक प्राणी के रूप में सभी से मिलजुल कर रहते हैं।
                       - सुनीता रानी राठौर
                        ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
हर मनुष्य अपना जीवन सुखमय जीना चाहता है। जिस तरह शरीर पांच तत्व से निर्मित माना जाता है उसी तरह जीवन के कई मूल मंत्र हैं जिससे  जीवन सुखमय बनता है जैसे कर्मठता, दृढ़ संकल्प, आत्म विश्वास, संयम,बुद्धि और विवेक आदि।बुद्धि, विवेक और संयम का आधार सहनशीलता है। हम इसे जीवन के मूल मंत्र में से एक मान सकते हैं। सहनशीलता एक भावनात्मक शक्ति है जो हमें सफलता की सीढ़ी तक ले जाती है।सहनशीलता के अभाव में मनुष्य अपना विवेक खो देता है और बनता काम भी बिगड़ जाता है ।
          सिर्फ सहनशीलता से ही जीवन नहीं चलता है उसके साथ मेहनत, दृढ़ निश्चय, आत्म विश्वास, चिंतनशील होना भी जरूरी है। जैसे सोना आग में तप कर कुंदन बनता है उसी तरह कुंदन रूपी सुखमय जीवन के लिए   सहनशीलता की भट्टी में तपना जरूरी है। संसार में जितने भी महान आत्मा हुए है, वो सभी सहनशीलता से लबरेज़ थे और उन्होंने  अपने जीवन की कामयाबी के पीछे बहुत कुछ सहन किया था। तभी कहा जाता है कि सब्र का फल मीठा होता है। सहनशीलता का मतलब है कि हम अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में सामान्य व्यवहार करें और धैर्य बनाए रखें। सहनशीलता व्यक्ति के समाज में सभी के साथ अच्छे समबन्ध बनते हैं। वह बिगड़ते कामों को भी संभाल सकता है। उस का यह गुण उसे साधारण लोगों से अलग करता है और महान बनाने में सहायक होता है। इस तरह हम कह सकते हैं कि जीवन के आधार मूल मंत्र में से सहनशीलता भी प्रमुख हैं। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब  
व्यक्ति का प्रत्येक  परिस्थिति का संयम और धैर्य से सामना करना ही सहनशीलता है। यदि हम सहनशीलता को अपनी ढाल, अपना कवच बना लेते हैं तो हम अपने जीवन की हर चुनौती का सामना करने के लिए और भी मजबूत हो जाते हैं।  धैर्य से सभी कठिनाइयों को स्वीकार करने वालों की सदैव जीत होती है। हमारे समाज में महिलाएं सहनशीलता का अनुपम उदाहरण है उनका ,त्याग सेवा ,दया और परिवार के प्रति समर्पण भाव सहनशीलता के कारण ही संभव होता है। एक कामकाजी महिला की अपेक्षा एक ग्रहणी ज्यादा सहनशील है जो पूरा दिन केवल अपने परिवार और घर के लिए पूर्णरूपेण समर्पित है।  सहनशीलता व्यक्ति में आत्मविश्वास पैदा कर आत्मनिर्भर बनाती है। सहनशील व्यक्ति को समाज में सदैव श्रेष्ठ स्थान मिलता है। सहनशीलता का भाव हम प्रकृति से ग्रहण करते हैं जो विपरीत परिस्थितियों में भी स्थिरता बनाए रखती है ,उसी प्रकार सहनशील व्यक्ति भी  जीवन में बड़ी से बड़ी कठिनाइयों का सामना आसानी से कर सकता है, हिम्मत नहीं हारता। मानव जीवन का मूल मंत्र सहनशीलता जैसे गुण में ही निहित है सुखी और सफल जीवन का आधार सहनशीलता ही है त्याग और समर्पण भाव सहनशीलता के जनक है। भारतीय संयुक्त परिवारों को यह गुण विरासत में मिला है। परिवार के बड़े बूढ़ों में यही त्याग और समर्पण का भाव था जो  पूरे परिवार को जोड़कर रखता था यही भाव जीवन के मूल मंत्र सहनशीलता के दर्शन कराता है। सहनशील राजा श्री राम विषम परिस्थितियों में भी नीति संपत रहे उन्होंने वेदों और मर्यादा का पालन करते हुए सुखी राज्य की स्थापना की । माता कैकई की आज्ञा से वन में 14 वर्ष बिताए,  समुद्र पर विशाल सेतु बनाने के लिए तपस्या की , सीता को त्यागने के बाद राजा होते हुए भी सन्यासी की भांति जीवन बिताया ,यह उनकी सहनशीलता की पराकाष्ठा है अतः सहनशीलता को जीवन का मूल मंत्र मानते हुए अपनी भावनाओं और सुखों से समझौता करना होता है तथा  न्याय और सत्य का साथ देना होता है। इन गुणों को अपनाकर मानव जीवन सफल और सुखी बनता है।
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश 
 सहनशीलता का अर्थ है ,अन्याय से प्रभावित ना होना। मानव जीवन के मूल मंत्र का एक अंश है ," सहनशीलता" लेकिन संबंधों के साथ जीवन जीने में महत्वपूर्ण भाव है ।सहनशीलता से ही हम न्याय को पाते हैं ,क्योंकि अन्याय किसी को स्वीकार नहीं होता है। अतः जो संबंधों या रिश्तो से अन्याय मिलता है, तो उससे प्रभावित नहीं होना है ।बल्कि उनके अच्छाइयों से प्रेरणा लेना
 है  ।प्रभावित करने वाला अर्थात अन्याय करने वाला व्यक्ति एक न एक दिन प्रभावित न कर,  प्रेरणा की ओर मन लगा लेता है ।अतः सहनशीलता अन्याय को भी न्यायिक बना देता है ।इसलिए यही कहते बनता है कि मानव जीवन में किसी से अर्थात प्राकृतिक वातावरण ,सामाजिक वातावरण ,पारिवारिक वातावरण और अन्य से प्रभावित न ,होकर प्रेरित होना चाहिए ।ताकि हमारा व्यवस्था में जिना बना रहे ।मानव  सही की प्रेरणा  और गलत से प्रभावित होते हैं ।अतः मनुष्य को प्रभावित नहीं प्रेरित होना चाहिए प्रभावित होना दुख की ओर और प्रेरित होना सुख की ओर इंगित करता है। सहनशीलता मानव जीवन का एक महत्वपूर्ण भाव है। इस भाव का निर्वहन करना मानव जीवन में अत्यंत उपयोगी है ।
- उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
जीवन में जीसने सहनशीलता का गहना धारण किया वह हर कार्य सफलता पूर्वक तो करता ही है सबके ह्दय में विराजमान रहता है । सहनशील व्यक्ति से हर कोई प्यार करता है । आदर करता गयहै । 
सफलता के लिए उदारता और सहनशीलता अनिवार्य है। बात-बात में उलेजित होने से सफलता से आप दूर होती हैं।
जीवन में आगे बढ़ने के लिए सहनशील होना अति आवश्यक है। सहनशीलता व्यक्ति को मजबूत बनाती है, जिससे बड़ी से बड़ी परेशानी डटकर मुकाबला कर सकता है। सहनशील व्यक्ति के आगे पहाड़ जैसी परेशानियां भी चींटी समान हो जाती हैं। सहनशील का तात्पर्य किसी को कायर बनाना नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा गुण है, जिससे कांटों भरे पथ पर भी इंसान हंसते हुए अपनी मंजिल की ओर बढ़ना सीख जाता है। कभी-कभी देखने को मिलता है कि हम छोटी-छोटी बातों पर भी गुस्सा कर देते हैं, जिससे बात आगे बढ़ जाती है और अनिष्ट भी हो जाता है लेकिन ऐसी ही छोटी-छोटी बातों को मुस्कुराते हुए सुनने वाला व्यक्ति ही सहनशील है। स्कूल से ही बच्चों को अच्छे-बुरे की समझ हो जाती है। उनमें गुण और अवगुणों का विकास होता है। यही सही समय होता है जब देश के भविष्य को अच्छे सदाचार सिखाए जाएं। सहनशील बालक ही परीक्षा की कसौटी पर खरे उतरते हैं।
सहनशीलता का पाठ ही जीवन में कामयाब होने का मूलमंत्र है। हमें अच्छे और बुरे की समझ के साथ बुराइयों से दूर रहकर खुद को कामयाबी के लिए तैयार करना होगा।
मुश्किल घड़ी में अगर हम अपना धैर्य खो देंगे तो मुश्किल का हल निकालने के बारे में सोच भी नहीं सकेंगे। सहनशीलता हर मुश्किल घड़ी में रास्ता दिखाएगी।
जिस व्यक्ति में सहनशीलता नहीं वह विपरीत परिस्थितियों में टूट जाता है। जबकि प्रतिकूल परिस्थितियों सहनशील व्यक्ति को और मजबूत बनाती है। शिक्षा हो या अन्य कोई क्षेत्र सहनशील व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं। चंदन वृक्ष की उदारता तथा सहनशीलता का अनुपम उदाहरण है। क्योंकि चंदन का वृक्ष कुल्हाड़ी से काटे जाने के बाद भी कुल्हाड़ी के साथ वातावरण को सुगंधित किए बिना नहीं रहता।
कई लोग सहिष्णुता का अर्थ कमजोरी समझ लेते हैं, यह उनकी गलत सोच है। कई लोग ईट का जवाब पत्थर से देने को आतुर रहते हैं। इससे बात खत्म होने के बजाए बढ़ती जाती है। आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू होता है। जिससे तनाव होता है। सहिष्णुता के जरिए ही वातावरण को तनाव मुक्त कर सामान्य बनाया जा सकता है। हमें अपने रूख में लचीलापन रखना चाहिए न कि हठीलापन। आपने देखा होगा कि जब आंधी आती है तो देवदार के वृक्ष अकड़कर खड़े रहते हैं और ऐसे वृक्षों के टूटकर गिरने की आशंका रहती है। इसके विपरीत घास आधी चलने की दिशा की ओर झुक जाती है। इससे वह सही सलामत बची रहती है। सहिष्णुता का गुण हम प्रकृति से सीख सकते हैं। अगर हम युवा वर्ग को चरित्रवान व सहिष्णु बनाना चाहते हैं तो उन्हें भी यह सिखाना होगा कि सहिष्णुता कमजोरी नहीं, ताकत है। इससे उनके मन में दया व सहिष्णुता भाव का संचार होने लगता है। आज युवा वर्ग को संस्कार दिए जाए तो वे देश के श्रेष्ठ नागरिक बन सकते हैं।
सहनशीलता वह गुण है जो हर बिगड़ा काम बना देती है , लड़ाई झगड़ा रोक देती है !
सहनशीलता बहुत किमती जेवर है इसके धारण करने से कई विकट परिस्थितियाँ सम्भल जाती है , दुश्मन नतमस्तक हो जाते है ! 
इस लिए सहनशील बनिए और सुखी रहे जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता है उसे धारण करे ! 
और करवाए 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
निश्चित ही जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता ही है ।
और सहनशीलता शांत मन की उपज है । जब तक मन उद्विग्न है तब तक सहनशीलता दिखावे व
 आडंबर के अतिरिक्त कुछ भी नहीं । भीतर तो क्रोध है और ऊपर से सहनशीलता का दिखावा करना केवल दमन है ।
यही मूलमंत्र हमारे जीवन में हमें रास्ता दिखाता है ।हम सही पथ पर अग्रसर हो सकते हैं ।जीवन के अनेक रहस्यों से हमारा परिचय होता है ।
अगर सहनशीलता न हो तो पग- पग पर घेरती कठिनाइयां हमे आगे नहीं बढ़ने देती और हम जीवन की परम धन्यता से वंचित रह जाते है । किसी भी कार्य को सम्पन्न करना हो मन का शांत होना आवश्यक है क्योंकि तब हमें हमारा रास्ता साफ -साफ दिखाई देता है ।यही है सहनशीलता का महत्व।
सहनशीलता समझ से उत्पन्न होती है  अर्थात विवेक से ।जब यह सब आरोपित नहीं होता ।जब यह किसी सरिता के सहज प्रवाह की तरह होता है । कई बार यह प्रवाह इतना शांत होता है कि उसमें एक पारदर्शिता होती है ।ऐसा ही हमारा मन है ।अगर सहजता है तो ही सहनशीलता है । नहीं तो कई बार ऐसा होता है  जब एक व्यक्ति  क्रोधित होता है तो सामने वाला किसी विवशता के कारण हँस देता है लेकिन भीतर ज्वाला मुखी धधक रहा होता है ।ऐसी ओढ़ी हुई सहनशीलता को सहनशीलता नहीं कह सकते ।वास्तव में परिस्थिति कोई भी हो उसे सहजता से स्वीकार करना ही सहनशीलता है । अर्थात स्वीकार भाव ही सहनशीलता का मुख्य आधार है । और यह भीतर से आना चाहिए तो हमारा संबंध कुछ ऐसा हो जाता है जैसे कुंआ भीतर सागर से जुड़ जाता है । ऐसे ही हमारे जीवन में  सहनशीलता घटित होती है। हम हर प्रकार की कठिनाइयों का सामना कर सकते हैं ।किसी भी कार्य को सुचारू रूप से करना और परिणाम की चिंता न करने में ही ऊर्ध्वगमन है । ऐसे चित्त की दशा में हमें हर क्षेत्र में  सफलता प्राप्त हो सकती  है ।
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा

विषय का संबंध व्यक्ति के गुणों से है जीवन का मूल मंत्र सहनशीलता अवश्य है लेकिन सहनशीलता के अतिरिक्त भी कई अन्य गुण हैं जैसे त्याग धैर्य वाणी में मिठास परिश्रम इत्यादि
सहनशीलता एक ऐसा गुण है जो इंसान को जीवन में सुख दुख को स्वीकारने में मदद करता है
सहनशीलता के कारण है धैर्य जीवन में आता है क्रोध कम होता है अच्छे व्यक्तित्व की पहचान सहनशीलता है 
सहनशीलता एक तपस्या है जिसके माध्यम से प्रयत्न सफल होता है
सहनशीलता के कारण ही अच्छे आचरण का निर्माण होता है
व्यवहार कुशल होने के लिए सहनशीलता आवश्यक है
ऐसा माना गया है कि पुरुष और महिलाओं की तुलना में महिलाओं में सहनशीलता की शक्ति ज्यादा होती है
जिसने जीवन में सहनशीलता का मूल मंत्र अपनाया वह एक सफल प्राणी कहलाया
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जहांँ तक आज की चर्चा में यह प्रश्न है कि क्या जीवन का मूल मंत्र सहनशीलता है तो इस पर मैं यह कहना चाहूंगा कि वास्तव में सहनशीलता बहुत बड़ी शक्ति है जो प्राय सभी व्यक्तियों में नहीं पाई जाती इसके लिए समझ बूझ त्याग सौहार्द प्रेम और परस्पर सहयोग की भावना का होना परम आवश्यक है हां यह अवश्य है कि सहनशील व्यक्ति बहुत सारे विवादों से बचा रहता है और जब विवादों से बचा रहता है तो अपने सभी कामों को ठीक ढंग से कर पाता है और शांतिपूर्ण तरीके से अपनी सामर्थ्य का उपयोग करते हुए सफलता की ओर बढ़ता है इस प्रकार वह न केवल अपने लिए बल्कि परिवार के लिए समाज के लिए बहुत ही उपयोगी सिद्ध होता है तो इस प्रकार कहा जा सकता है की सहनशीलता जीवन में सफलता का पर्याय है और जीवन का मूल मंत्र भी....!
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
जीवन जीने के लिए अनेक चीजों की आवश्यकता पड़ती है, जिनकी पूर्ति के लिए हमें अपने दैनिक जीवन में अनेक लोगों से जुड़ना पड़ता है। इसके लिए पारस्परिक व्यवहार सद्भाव और सहयोगात्मक होंगे तो हर काम सरल और सहज होंगे वरना टकराव की स्थिति बन सकती है और परिणाम में संघर्ष बढ़ने के साथ- साथ अप्रिय और तनावमय स्थिति बन जाती है। अतः हमें सदैव धैर्यवान और सहनशीलता वाला होना चाहिए। ये ऐसे गुण हैं जो हर कार्य को सुखद और सफल बनाने में सहायक होते हैं।  यही जीवन का मूलमंत्र है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
सहनशीलता का शाब्दिक अर्थ है:- शरीर और मन की अनुकूलता और प्रतिकूलता को सहन करना।
यही मूलमंत्र है सुखी जीवन का। 
हर व्यक्ति के जीवन में प्रत्येक परिस्थितियों को संयम और धैर्य के सामना करता है यानि उसमे सहनशीलता है।
जिसने सहनशीलता को अपना कवच बनाया उसके जीवन में आत्मनिर्भर भी मजबूत हो जाती है। इसमे सभी कठिनाइयों को स्वीकार करने वालों की सदैव जीत होती है।
आप यो देखें पूरे विश्व में पुरुषों से ज्यादा महिलाएं सहनशीलता वाली होती है ।विश्व में अनुपम उदाहरण है,उनके त्याग,सेवा,दया परिवार और बच्चों के प्रति अतुल्य समर्पण भाव प्रकट करता है।
प्रत्येक स्थिति -परिस्थिति को बर्दाश्त करती हुई अपने परिवार और बच्चों को तकलीफ नहीं होने देती है।
लेखक का विचार :-महिलाएं के सकारात्मक गुणों का प्रभाव पड़ता है। कहा जाता है कि बच्चों की प्रथम गुरु होती है ।मॉ,अगर बच्चों को सहनशीलता सचरित्रों के गुण देती है तो बच्चा तदनुसार आचरण कर समाज के समक्ष श्रेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत करता है। सहनशील बनने की शुरुआत स्वंय के मन व अपने से ही कर सकते हैं।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
संसार में हर व्यक्ति अलग होता है तो उसके जीवन जीने का ढंग भी अलग होता है। जीवन जीने के लिए कुछ गुणों का व्यक्ति में होना आवश्यक है। मिष्टभाषी, मितभाषी, परिश्रमी, परोपकारी होना, निस्वार्थ होना, निष्काम कर्म करना....ये सभी गुण कम या अधिक प्रतिशत में सब में होते हैं।
          ऐसे ही गुणों में धैर्य और सहनशीलता हैं जो हर व्यक्ति में होने जरूरी होते हैं और इनका भी प्रतिशत हर व्यक्ति में कम और अधिक अधिक होता है। ये गुण मेरी दृष्टि में जीवन की आधारशिला हैं। क्रोध की अधिकता को धैर्य ही कम करता है। क्रोध करने वाले को धैर्यवान व्यक्ति ही संभाल पाता है। धैर्य ही व्यक्ति को सहनशील बनाता है। सोचने-समझने की शक्ति और विवेक प्रदान करता है। सहनशीलता का गुण व्यक्ति को निखारता है, बिगड़ी हुई परिस्थितियों को सुधारने की सूझबूझ और शक्ति प्रदान करता है, बड़ी से बड़ी कठिन और विषम परिस्थिति में विचलित नहीं होने देता। मर्यादा पुरुषोत्तम राम और आधुनिक युग में हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी और मुख्यमंत्री योगी इसके श्रेष्ठ उदाहरण हैं।   
           धैर्य और सहनशीलता दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और जीवन का सर्वोत्तम आधार तथा मूलमंत्र भी हैं। इन गुणों को अपने भीतर समाहित करने वाला व्यक्ति जीवन को उसके श्रेष्ठ रूप में जीने का अधिकारी बन सकता है क्योंकि वह जानता है कि धैर्य और सहनशीलता से ही बड़ी से बड़ी कठिनाइयों पर विजय पायी जा सकती है। वह अगर प्रतिकार भी करेगा तो उसका ढंग शालीन और तर्कसंगत होगा ।ऐसा व्यक्ति समय पर प्रतिकार करता है अन्यथा वह अपने कर्म पथ पर चालता रहता है। 
         अतः हम कह सकते हैं कि सहनशीलता, जिसमें धैर्य समाहित है,
जीवन का मूलमंत्र है इसे सबको याद रखना और जीवन में अपनाना भी है।
- डा .भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
एक कहावत है कि "कम खाना और गम खाना" मनुष्य के लिए सदैव लाभदायक होता है। "गम खाना" मतलब गुस्से पर नियन्त्रण। 'गुस्से पर नियन्त्रण' मतलब सहनशीलता का परिचायक।
मनुष्य जीवन में ऐसी अनेक परिस्थितियां आती हैं जब उसकी सहनशीलता जवाब देने लगती हैं। इन परिस्थितियों की उत्पत्ति का कारण मनुष्य की पारिवारिक, सामाजिक अथवा आर्थिक स्थिति की विपरीतता हो सकती है। परन्तु मनुष्य की सहनशक्ति की असली परीक्षा विपरीत परिस्थितियों में ही होती है।
यह भी अटल सत्य है कि किसी भी विपरीत परिस्थिति का सामना यदि मनुष्य सहनशीलता से करता है तो अवश्य विजयी होता है। 
इसीलिए कहता हूं कि...... 
"आँधियाँ तो हैं हिस्सा, चुनौती है जीवन डगर। 
मुश्किलों के तूफानों से डरकर, न धैर्य गंवा साथी।। 
अपने हौसलों को न्यूनतम, न कभी समझ। 
धरा से सहनशीलता शैल से शिखरता सीख साथी।।" 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
 सहनशीलता व्यक्ति का  सबसे उत्कुष्ट गुण है, जिस इन्सान में सहनशीलता नहीं वह विपरीत परिस्थितियों में टूट जाता है। 
यही नहीं सहनशीलता को सफलता का मूल मंत्र भी कहा जाता है, इसका बल अतुलनिय है। 
हर क्षेत्र में सहनशील व्यक्ति को सभी पसंद करते हैं, क्योंकी वातावरण को तनाव मुक्त बनाने के लिए सहनशीलता बहुत महत्वपूर्ण है। 
मगर आजकल सहनशीलता का ग्राफ  नीचे की तरफ लुढ़क रहा है जिस का मूल काऱण  बच्चों में संस्कार की कमी देखने को मिल रही है, 
क्योंकी माता पिता अपने बच्चों को सहनशीलता और  सचरित्रता के गुण नहीं दे पा रहे हैं जिससे  बालक बाल्यकाल से ही अपना धैर्य  खो  देते हैं और  जीवन मे आने वाली  मुसीवतों को झेल नहीं पाते यहां तक की आत्महत्या तक कर बैठते हैं। 
इसलिए अगर मां बच्चे को सहनशीलता और सचरित्रता के गुण बचपन से ही देना शूरू करे तो वो बच्चा समाज में ऋेष्ठ उदाहरण प्रस्तुत  करेगा क्योंकी मां से वड़ा स्कूल कोई नहीं होता। 
 किन्तु आजकल की दौड़ धूप में हर इन्सान कम समय में  महारत हासिल करना चाहता है और जब पाने में नकाम हो जाता है तो अपना धीरज खो वैठता है  और रास्ता भढ़क जाता है जबकि हर कार्य धैर्य से होता है, 
कहा भी गया है, 
"धीरे धीरे रे मना धीरे सब कुछ होय, माली सींचे सौ घड़ा ऋतु आये ही फल होय"।  
कहने का भाव है की सयंम रखना बहुत जरूरी है, क्योंकी सहने की शक्ति मनुष्य को महान बनाती है। 
 सच कहा है, 
 " यदि बनना है  जीवन में महान तो अपनाना होगा सहनशीलता का ज्ञान"। 
सच है, जो शीतल, शुशील व सहनशील होते हैं वही  शहनशाह बनते हैं 
यही नहीं सहनशीलता का कवच जीवन की हर चुनौती को हराने में मदद करता है। 
इसलिए बच्चों में सहनशीलता के बीज बोने की सख्त जरुरत है तथा उनके मार्ग मेंआने वाली समस्याओं के लिए तैयार करने की,  उनको महात्मा बुदध वा राष्टृपिता महात्मा गांधी जैसे महान   इन्सानों के  संस्कारों की  वातें  सुनानी चाहिएं ताकी वो भी कोई कार्य करते अपना धैर्य न खोंएं। 
अगर  युवा वर्ग को चरित्रवान, व चतुर बनाना चाहते हो तो उन्हें सहनशीलता का मुल मंत्र सिखाना होगा,  क्योंकी सहनशीलता ही जीवन का मूलमंत्र है।   
आखिरकार यही कहुंगा, 
सब्र एक ऐसी सवारी है जो सवार को कभी गिरने नहीं देती अता सहनशीलता, क्षमता से अधिक ऋेष्ठ हैऔर धैर्य सौन्दर्य सेअधिक इसलिए सहनशीलता मन का सबसे बड़ा उपहार है इसे हमेशा संभाल कर रखें। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
*एक चुप सौ सुख*
पर यह तात्पर्य कतई नहीं है कि गलत
बात का साथ दें या जबरदस्ती किसी दबाव में रहें बस बिना बात किसी भी बात में बहस करना  बीच में पड़ना दूसरे और स्वयं को भी परेशान करना
इन सब व्यर्थ की बातों से पूरी कोशिश करनी चाहिए जितना हम बच सकते हैं उतना हमें दूर रहना चाहिए ऐसा करने से हमारे अंदर सकारात्मक सोच हमेशा बनी रहती है आत्मविश्वास धैर्य
सहनशीलता स्वस्थ मन स्वस्थ तन रखने में बहुत आवश्यक है और हमारी सोच का हमारे मन और मस्तिष्क पर बहुत गहरा असर होता है व्यर्थ की
क्रिया प्रतिक्रिया टीका टिप्पणी से दूर रहना चाहिए ऐसा करने से हम अपने साथ-साथ अपने आस का वातावरण भी सकारात्मक बनाए रखने में सहायक होते हैं अत: हम कह सकते हैं कि सहनशीलता एक स्वस्थ जीवन जीने का मूल मंत्र है जियो और जीने दो सभी सुखी रहें जीवन में आगे बढ़ते रहें ।
सर्वे भवंतु सुखिनः 
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
        जीवन  के मूलमंत्रों में कई गुण शामिल हैंं,जिनमें से एक गुण सहनशीलता भी है। पर उसकी भी एक सीमा होती है। सामान्य स्थिति में तो सहनशीलता ठीक है। लेकिन कभी-कभी ऐसी स्थिति आ जाती है कि सहनशीलता तोड़ना जरूरी हो जाता है। जैसे कि अभी हाल में चीन एवं पाकिस्तान के द्वारा गलत गतिविधियां करने की वजह से भारतीय सेना को अपनी सहनशीलता तोड़कर उनको जवाब देना पड़ा। अपनी बुआ के लड़के शिशुपाल को भगवान श्री कृष्ण ने 101 गलती माफ करने का बोला था, तब तक वह सहन करते रहे किंतु 101 के बाद उन्होंने तब सुदर्शन चक्र चलाकर शिशुपाल का वध कर दिया। सीमा का अतिक्रमण होने पर सहनशीलता तोड़ना ही पड़ती है ,वह भी न्यायोचित है। जितना आवश्यक हो उतना ही सहनशील होना चाहिए आवश्यकता से अधिक नहीं।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
       निस्संदेह सहनशीलता जीवन का मूलमंत्र है। किंतु इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि सामने वाला आपको पागल,सुप्त,असावधान,मूर्ख की संज्ञा देते हुए आपको आपके अधिकारों से वंचित करते हुए स्पष्ट कहे कि आप अपने अधिकारों के प्रति सतर्क नहीं हैं। तो ऐसी परिस्थितियों में व्यक्ति विशेष सहनशीलता दिखाएगा, तो उसे सहनशीलता नहीं कायरता कहते हैं।
       शत्रु आंखें दिखाए और आप शांति की रट लगाते हुए सहनशीलता दिखाएंगे तो भविष्य आपको कभी माफ नहीं करेगा बल्कि आने वाली पीढ़ियां आपकी कायरता पर थूकेंगी।
       महाभारत का महायुद्ध सहनशीलता का ही परिणाम था और युद्धक्षेत्र में अर्जुन को शत्रुपक्ष में खड़े अपने सगे-संबंधियों पर प्रहार न करने की कायरता के कलंक से बचाने के लिए श्रीकृष्ण जी को गीता का उपदेश देना पड़ा था।
       अतः सहनशीलता का परिचय तब तक ही शुभ माना जाएगा जब तक सामने वाला आपकी सहनशीलता का उपहास न उड़ाते हुए उसका सम्मान करेगा।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
निःसंदेह जीवन का मूल मंत्र सहनशीलता है।  हमें अपने जीवन में सहनशील होना बहुत जरूरी है।  पर साथ ही हम यह भी समझ लें कि हमारे सहनशील होने का यह कतई अर्थ नहीं है कि हम कमजोर हैं।  हमारे सहनशील होने का अर्थ है कि हम मज़बूत हैं, विवेकशील हैं।  यदि हम पर कोई कटु शब्दों की बौछार कर दे तो हम उसे झेल सकते हैं।  हमारा सहनशील होना हमारे धर्म और हमारी संस्कृति के लिए होना आवश्यक है।  सहनशील न होने से हम अनेक मानसिक विकृतियों का शिकार हो सकते हैं। सहनशील होकर हम जीवन में सही मार्ग पर चल सकेंगे। हमारा सहनशील होना हमारे जीवन के लिए मूलमंत्र है, इसमें कोई संदेह नहीं।  
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली 
     गुरु माँ बच्चों को प्रथम सकारात्मकता तथा नकारात्मता की शिक्षा-दीक्षा देती हैं, जो अपने माध्यमों से ऊर्जा का संचार करती हैं। उज्वल भविष्य की कामनाऐं देती हैं। गर्भवस्था के दौरान जैसा माहौल होगा,  वैसा ही बच्चों का संचार। सम्पूर्ण दुनियां की खासकर भारतीय महिलाएं सहनशीलता की अनुपम उदाहरण हैं। उनका त्याग, सेवा, दया, परिवार जनों के प्रति समर्पण भाव सहनशीलता के कारण ही संभव हो पाता हैं। जिसे वसुदेव कुटुंबकम् कहते हैं। जिस देश का राजा सहनशील तथा कर्तव्यनिष्ठ हो, वहां हमेशा चहुंओर विकास प्रगति के सोपानों की ओर अग्रेषित होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल होता हैं। गुरु कुल में सहनशीलता धैर्य शक्ति का पाठ पढ़ाया जाता हैं। अनेकों महापुरुषों, ॠषि मुनी को देखिये सहनशीलता का अनुपम उदाहरण हैं। जिसमें सहनशीलता हैं, हमेशा बड़े-बड़े कार्यों को सम्पादित करने में सफल हो होते जाते हैं।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जीवन जीने का हर किसी का अपना ढंग होता है। लेकिन परिवार या समाज के साथ चलने के लिए कुछ मूल नियमों का पालन करना जरूरी होता है। इससे परिवार के सदस्यों या समाज के बीच मर्यादा बनी रहती है और सभी से सम्मान मिलता है।
 मूल नियमों में धैर्य और सहनशीलता मुख्य है। धैर्य सही निर्णय लेने की क्षमता बढ़ाता है और सहनशीलता सामने वालों को गलत-सही का आभास कराती है। इसलिए जीवन में इस मंत्र को उतार लेने से जीने की धारा ही बदल जाती है।
व्यक्ति अपनी आत्म-शक्ति और सोच को अच्छे और नए कामों के लिए बचा सकता है। यह सृजनात्मक कार्य के लिए बहुत जरूरी है। अपनी पहचान के लिए तो कुछ  नया और अलग हटकर करना ही पड़ेगा ।
- संगीता गोविल 
पटना - बिहार
सहनशीलता जीवन का ऐसा स्तंभ है।जिसमें अनुभव की धूप और कडी होती है।जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता ही है।इससे इंसान को धैर्यवान बनने की प्रेरणा मिलती है।सहनशीलता का गुण उच्चतम स्तर के गुणों मे शामिल होती है।अगर मानव विपरीत परिस्थितियों मे सहनशीलता केंद्र को अपने अंदर समाविष्ट करता है ।तो दुखद पलों की कसौटी भीषण भूकंप भी थमने लगता है।सहृदय सहनशीलता सरलीकरण सहजता प्रदान करता है।मानव को अपने वचनों का पालन करना चाहिए।और सहनशीलता के भावनाओं मे जिंदगी को जीने का प्रत्यन करना अति आवश्यक है।सत्य असत्य की मोह माया मे मृत्यु एक सत्य है।परंतु हम साधारण मनुष्य इस पीडा़ को बेहद गभीरता से स्वीकार करते है।जब अपने खो जाते तब हम सहनशीलता को भी खो देते है।और नुकसान एवं पतनोन्मुख जीवन की ओर आकर्षित हो जाते हैं।लेकिन जब सहनशीलता का आभास होता है तब महत्वपूर्ण तथ्यों को ना चाहते हुये भी स्वीकार करना होता है।जीवन बेहद खूबसूरत है।परंतु मौसम के रंगों मे दुख सुख किताब लिखा हुआ है।दुखद पहलू को हम सहन नही कर पाते और अपने ब़जूद को खोन लगते है।पर जीवन का अद्भुत क्षमता मूलमंत्र सहनशीलता को अपनाने से पीर कम होने लगती है।और आसूओं के सैलाब को विरामावस्था मे लाते हैं।जब सहने की शक्ति ही नही हमारे अंदर तो हम छोटी सी तुफान से भी डगमगाने लगते ।मानव जीवन मे जब सागर की लहरें तकलीफों के लिफाफे लेकर बहती है।विपरीत परिस्थितियों मे सब्र का बाँध टूटकर बिखरने लगता है तब।सहनशीलता के मंत्र को हम ग्रहण कर अपने जीवन मे आगे बढ़ते है।
जीवन का आधार ही सहनशीलता है।अगर अपने जीवन मे इसे धारण नही करते तो सफलतापूर्वक जीवन यापन भी नही कर सकते हैं।मूलमंत्र मे सहनशीलता का गुण बेहद आवश्यक है।परिस्थितियों का प्रभाव पडा़व आता है।बह.धैर्यवान होकर ढृढ़तापूर्वक आगे बढ़ने की कोशिश करना है।सहिष्णुता गुणवत्ता वाले ही इंसान जीवन मे आगे बढ़ने का हौंसला रखते है।कच्ची मिट्टी मे तो पानी भी नही ठहरते।ये तो कठिन परिश्रम का समावेश जीवन है।सहनशीलता की पक्की मिट्टी से इसे परतों को मजबूत करके जीवन की समयानुसार जिंदगी को जीने की कला ही उजाला को फैलाती है।जीवन का मूलमंत्र ही सहनशीलता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
जीवन में हर कोई चाहता है सुख और शांति। हर इंसान को इतना भी मालूम होता है कि हर रात के बाद सुबह आएगी इसी तरह दुःख के बाद सुख भी आएगा।
 जिंदगी में आशा निराशा का चक्र चलता ही रहता है
 मनुष्य को चाहिए कि अपने जीवन में समझ ,समर्पण सहभागिता को अपनाए ।
अगर हमारे जीवन में समझ समर्पण और सहभागिता रहेगी तब हम स्वयं ही अनुशासित हो जाएंगे अनुशासित होने के साथ ही सहनशीलता का मूल मंत्र भी सीख जाएंगे।
 जीवन में आपसी मतभेद के साथ-साथ, एक दूसरे को समझने का प्रयास आवश्यक रूप से करना चाहिए ।
क्योंकि जीवन में समझ - प्रेम और विश्वास का बंधन है।
बिना सहनशीलता के जीवन नीरस हो जाता है। सहनशीलता से ही जीवन में अनुशासन  आता है। 
इसलिए हमें बोलने से पहले सोचना चाहिए ।
हारने से पहले कोशिश करनी चाहिए ।
और मरने से पहले खुल कर जीना सीखना चाहिए।
अंत में कहना चाहूंगी कि जीवन में अपने एक हाथ से समय और दूसरे हाथ में धैर्य का साथ पकड़ना चाहिए।
हमारे जीवन में "सहनशीलता ही जीवन का मूल मंत्र" है। 
- रंजना हरित              
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
          जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता है भी और नहीं भी। वैसे सहनशीलता एक बहुत अच्छा गन है। यदि हम सहनशील बनें तो बहुत जगह शांति स्थापित हो सकती है।परिवार का जो मुखिया होता है उसे बहुत कुछ सहन करना पड़ता है। तभी परिवार सही ढंग से चल पाता है। माँ बहुत कुछ सहन करती है तभी वह माँ कहलाती है। धरती माँ कितना कुछ सहन करती है।तभी दोनों महान कहलाती हैं।
            पेड़ कितना कुछ सहन करता है। धूप बारिस से लोगों को बचाता है। पत्थर खा खा कर घायल हो जाता है फिर भी वह सबको फल ही देता है।नदी भी कितनी सहनशील होती है। इन सबके जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता ही है। इन पर कितना भी अत्याचार करो ये सहन करते ही जायेंगे। उफ तक नहीं करेंगे क्योंकि इनके जीवन का मूलमंत्र सहनशीलता ही है।
       दूसरी तरफ ज्यादा सहनशील बनने से लोग उसे खा ही जायेंगे,कहेंगे ये डरता है कुछ बोलता ही नहीं।लोग उसे कई तरह सर तंग करते रहेंगे।गाँवों में तो उसका जीवन जीना मुश्किल हो जाएगा। सहनशीलता की भी एक सीमा होती है। आये दिन पाकिस्तान चीन हमारे सीमाओं का उलंघन करते हैं, घुसपैठ करते हैं,सीजफायर करते हैं।इस तरह की बहुत सारी गलत हरकत करते हैं।यदि हम सहन शील बने रहें तो ये ठीक नहीं। सहनशील बने रहने से वो हमारे जमीन पर कब्जा ही कर लेंगे। ऐसे जगहों पर सहनशीलता बिल्कुल ही ठीक नहीं। उसे माकूल जवाब देना ही पड़ेगा। यहाँ सहनशीलता जीवन का मूलमंत्र नहीं हो सकता।
         इस तरह हम देखते हैं कि सहनशीलता हर जगह जीवन का मूलमंत्र नहीं हो सकती हैं। वैसे  सहनशीलता बहुत अच्छी बात है सब इसे माने तो अति उत्तम है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
सहनशीलता जीवन के लिए मूल मंत्र बन जाता है यदि व्यक्ति सहनशील बनने के लिए प्रयासरत हो सहजता सरलता की पराकाष्ठा है सहनशीलता । अपने विपरीत परिस्थितियों को देखते हुए भी जब व्यक्ति सहज बना रहता है तो वह सहनशील कहलाता है और सहनशीलता का गुण अभ्यास से सीखा जा सकता है। प्रत्येक कार्य करने की योजना एक सुनिश्चित ढंग से बनाने और उस पर अमल करने से ही सही दिशा में बदलाव संभव है। इसके लिए तनाव और बिखराव बैरी हैं जबकि अच्छे लोगों की संगति, चिंतन व विचारों को शुद्ध बनाए रखना मित्र हैं और इनके माध्यम से ही समाज में प्रतिष्ठा प्राप्त हो सकती है। प्रयोग बताते हैं कि सहनशीलता का गुण आ जाने से दोस्तों और पड़ोसियों के बीच ही आदर नही होता है बल्कि हिंसक पशु भी मित्रवत् व्यवहार करने लगते हैं । क्योंकि सहनशील व्यक्ति एकाग्रता को शीघ्र ग्रहण करने लगता है और उसको जल्दी तनाव या क्रोध नहीं आ पाता, इसलिए सहनशील बने रहकर निज लक्ष्य को प्राप्त करना आसान हो जाता है । अत: हम कह सकते हैं कि अगर सहनशीलता जीवन में आ जाए तो यह जीवन को सफलता के मार्ग पर बढ़ा देती है अर्थात् यह वह मूल मंत्र है जिसे सभी को अपनाना चाहिए ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
वर्तमान  समय  को  देखें  तो  हम  पाते  हैं  कि  सभी  उम्र  के  लोगों  में  सहनशीलता  की  अत्यधिक  कमी  नज़र  आती  है  ।  जिसका  परिणाम  हिंसा, लड़ाई-झगड़े, खून - खराबा, हत्यायें  आदि  प्रतिदिन  होते  रहते  हैं  । 
       सहनशीलता  के  बगैर  पारिवारिक  रिश्ते  वेंटिलेटर  पर  आ  जाते  हैं  ।  ये  भी  सत्य  है  कि  सहनशील  व्यक्तियों  को  अनेक  दुखों  और  परेशानियों  का  सामना  करना  पड़ता  है , उस  पर  सभी  हावी  होने  का  प्रयास  करते  हैं  । 
      सहनशीलता  और  धैर्य  वह  गुण  है  सभी  को  जोड़  कर  रखता  है  जो  जीवन  के  लिए  आवश्यक  है  ।  इस  गुण  का  आदर  किया  जाना  चाहिये  । 
      सहनशीलता  एक  सीमा  तक  ही  उपयुक्त  है  क्योंकि  हर  चीज  की  एक  सीमा  होती  है क्योंकि  न्याय  और  अन्याय  में  फर्क  होता  है  यदि  अन्यायी  का  अन्याय  ही  सहते  रहेंगे  तो  फिर  न्याय  का  क्या  औचित्य  है  ।  
        - बसन्ती  पंवार 
         जोधपुर - राजस्थान 
हमें सिखाया जाता रहा है कि संवेदनशीलता और सहनशीलता जीवन का मूल मंत्र है। सहनशीलता एक ऐसा सत्य है जिससे प्रायः सभी लोगों को अपने जीवन काल में रूबरू होना पड़ता है ।यह ऐसा गुण है जिससे जीवन का वास्तविक विकास होता है ।
असहिष्णु व्यक्ति कभी बलवान नहीं होता। बलवान वह है जो सहनशीलता का वस्त्र ओढ़े हैं। क्योंकि यह गुण हमें पशुओं से अलग करता है ।
अतः जीवन में सहनशीलता को आत्मसात करना चाहिए ।
उत्तम चरित्र में सहनशीलता एक आधार स्तंभ है ।
समाज में हो रही हिंसक घटनाएं सहनशीलता के अभाव में जन्म लेती हैं।
 सामाजिक व पारिवारिक मूल्यों का अभाव इसका प्रमुख कारण है।
 यदि हम आदर्श समाज की परिकल्पना करते हैं तो सबसे पहले हमें सहिष्णुता को आत्मसात करना होगा ,इसी की मदद से एक श्रेष्ठ राष्ट्र का निर्माण हो सकता है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
सहनशीलता बीज मंत्र से व्यक्ति सुख दुःख एक समान समझता हैl  जिस व्यक्ति में सहनशीलता का गुण है वह प्रत्येक व्यक्ति से निभा कर चलता है, कितनी ही बातों को पचा लेता है जिस कारण बहुत से झगड़े स्वतः ही मिट जाते हैं परन्तु कभी कभी सहनशीलता के कारण कुछ नहीं कह पाने की स्थिति में आ जाता है जिसका खामियाजा भी भुगतना पड़ता है l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जीवन है तो उसमें सर्दी- गर्मी, सुख-दुख, मान- अपमान, परिस्थितियों की अनुकूलता- प्रतिकूलता अवश्य देखने को मिलती है। लेकिन हमारे जीवन का मूलमंत्र यही होना चाहिए कि हम विषम परिस्थितियों में भी धैर्य और प्रसन्नता के साथ विभिन्न प्रकार की कठिनाइयों को सहन करने की योग्यता अपने में हासिल करें। क्योंकि सहनशीलता से सभी विपरीत परिस्थितियों पर हम विजय पा लेते हैं ।
   यह सहनशीलता हमारे जीवन में एक तप की तरह सिद्ध होती है जो हर मनुष्य के जीवन में अत्यंत आवश्यक है।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि मे " सहनशीलता जीवन का आधार है । जो जीवन के हर क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है । जिससे प्रगति सम्भव होती है । यही जीवन का मूलमंत्र है । 
                                    - बीजेन्द्र जैमिनी
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Comments

  1. निस्संदेह सहनशीलता जीवन के मूल मंत्रौंं में से एक है। ठीक तरह से उसका कार्यान्वयन करना चाहिए। धैर्य सहनशीलता से बड़ी परेशानियां भी दूर हो जाती है इसलिए इस गुण को अपने जीवन में धारण करना चाहिए

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  2. दया, धैर्य, विनम्रता और सहनशीलता जीवन का मूलमंत्र है जो हमे अच्छे संस्कारों से प्राप्त होती है

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