क्या कोरोना के चलते बन्द पड़े स्कूलों को एक सितंबर से खोल देना चाहिए ?

कोरोना के चलते बच्चों के स्कूल बन्द पड़े हैं । शिक्षा के लिए बच्चें भटक रहे हैं । परन्तु स्कूलों का खुलना कोई निश्चित नहीं है । फिर भी एक सितम्बर से स्कूल खुलने की उम्मीद पालें बैठे हैं । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
नहीं कोरोना का संक्रमण अभि ख़त्म नहीं हुआ है बढ़ ही रहा है ऐसे में स्कूल नहीं खुलना चाहिए 
बच्चों को हम ज़्यादा रोक नहीं सकते मिलने जुलने से ....
बच्चों की जान से ज्यादा कुछ भी नहीं है. बच्चे सुरक्षित रहेंगे तो आगे पढ़ भी सकेंगे, लेकिन किसी भी कारण से किसी भी बच्चे की जान पर खतरा बन आए तो यह अच्छा नहीं होगा. 
लोग खुद को नहीं बचा पा रहे हैं, तो हम स्कूल के छोटे बच्चों से कैसे यह उम्मीद कर सकते हैं. बच्चे अभी घरों में हैं, जिस दौरान वो पूरी तरह से मास्क नहीं लगा पाते, तो स्कूलों में 8 घंटे कैसे मास्क लगा पाएंगे , अधिक देर मास्क बडे नहीं सहन कर पाते तो बच्चे तो बच्चे है । 
बच्चे समाजिक दूरी का पालन नहीं कर पायेंगे , 
इस साल स्कूल नहीं खेलना चाहिए 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
अभी स्कूलों को खोल देना उचित नहीं है क्योंकि बच्चे बहुत छोटे हैं वह सोशल डिस्टेंसिंग को फॉलो नहीं कर सकते हैं कक्षा 1 से लेकर 12 तक के बच्चे बिना खेलें कहां मान सकते हैं।
स्कूलों में इतने सारे बच्चों को संभालना टीचर और स्कूल स्टाफ के लिए भी बहुत मुश्किल होगा। बच्चे स्कूल में शहर से अलग-अलग जगह से भी आते हैं उन सब को बस में भी दूर दूर तक आना जाना पड़ता है।
अभी संक्रमण का खतरा कम नहीं हुआ है केस बढ़ते ही जा रहे हैं ऑनलाइन पढ़ाई या तो स्कूलों में हो ही रही है जबकि हमारे यहां कुछ काम हो जाए तब स्कूल धीरे-धीरे खोला जा सकता है। बच्चों की जान से बढ़कर कुछ भी नहीं है उसके साथ खिलवाड़ करना उचित नहीं होगा।
जैसे इतने दिनों तक स्कूल बंद थे वैसे कुछ दिन और भी बंद रह सकते हैं इससे कुछ नहीं बिगड़ेगा।
स्वास्थ्य ही सच्चा धन है।
स्वस्थ रहें मस्त रहें।
जय हिंद जय हिंदी
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
कोरोन के कारण कुछ माह पहले स्कूलों को बंद कर दिया गया था बंद करना समझदारी का कार्य था और नैतिक ज़िम्मेदारी भी। ऐसे माहौल में स्कूलों को खोलकर रखने कोरोना वायरस भयानक रूप ले सकता था घरों में ठहरकर भारत के नागरिकों ने जो समझदारी भरा कार्य किया है वह निश्चित रूप से सराहनीय है अब जनता को कोरोनावायरस के साथ जीवन कैसे जीना है संभवतः आ ही गया है ऐसे में अब स्कूलों को खोल देना चाहिए क्योंकि पढ़ाई का नुक़सान तो हुआ ही है साथ ही साथ पुरानी व्यवस्था को कोरोना ने बदलने को मजबूर कर दिया है ऑनलाइन पढ़ाई करने वाले बच्चें घरों में क़ैद हो कर रह गये हैं इससे उनके स्वास्थ्य पर मानसिक व शारीरिक रूप से आघात हो रहा है ये प्रकिया कब तक चलाई जा सकती है कोई निश्चित समय सीमा नही है सोशल डिस्टेंसिग, मास्क जैसी महत्वपूर्ण चुनौतियों लगभग बच्चों व बड़ों ने अपना लिया है इन सावधानियों को कड़ाई से पालन करने की ज़रूरत है शेष स्कूलों के बंद करने से अभिभावकों व स्कूल मैनेजमेंट को फ़ीस को लेकर काफ़ी चिंतित होना पड़ रहा है । कुछ ख़बरों में मिल रही रिपोर्टों के अनुसार शिक्षकों को मास्क और दस्ताने पहनने की आवश्यकता होगी। स्कूलों में थर्मल स्कैनर लगाए जाएंगे। केवल दो छात्र तीन-सीटों पर बैठेंगे। सीसीटीवी से पूरी निगरानी रखी जाएगी कि फिजिकल डिस्‍टेंस के नियमों का पालन किया जा रहा है या नहीं। इसके अलावा, सुरक्षा दिशा-निर्देशों को प्रत्येक स्कूल में कई स्थानों पर चस्‍पा किया जाएगा और प्रत्येक संबंधित क्षेत्र के एसडीएम और डीएम कोविड -19 सुरक्षा दिशा-निर्देशों को आवश्यक रूप से अमल कराएंगे। ऐसा करना कुछ ग़लत नहीं है वायरस के संक्रमण को सावधानी से रोका जा सकता है वेशक शरीर में मौजूद रोग प्रतिरोधक क्षमता अपना कर रही हो ।
निष्कर्ष ये है कि अब स्कूलों को खोल देना चाहिए और सरकार को कोविड-19 के नियमों को लागू करते हुए नियमावली को निश्चित करना चाहिए ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     भारत में पहली बार कोरोना महामारी के कारण यातायात व्यवस्था के साथ-साथ शासकीय एवं अर्द्धशासकीय स्कूल-काँलेज मार्च से बन्द पड़े हैं। पूर्व में सामान्य परीक्षा फल तो घोषित किया जा चुका हैं, किन्तु चालू सत्रों की व्यवस्थाऐं चरमरा  गई हैं। आनलाईन अध्ययन-अध्यापन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा हैं, अभिभावकों को भावी रुप रेखाओं को नियंत्रित करने में सोचने पर मजबूर कर दिया हैं। शक ऐसी चीज हैं, जिसके कारण निर्णय लेने की स्थिति में कोई भी सामने नजर नहीं आ रहा हैं। वैसे भी निरंतर बीमारियों की संख्याओं में दिनोंदिन बढ़ोत्तियां होती जा रही हैं, ऐसी विषम परिस्थितियों में एक सितम्बर से खोला  जाना असंभव सा प्रतीत हो रहा हैं? दूरगामी पहल को देखते हुए आज नहीं तो कल तो खोलना तथा समस्या का समाधान तो करना ही होगा और उक्त तथाकथित बीमारियों से प्रत्यक्ष रूप से लड़ने की क्षमता, साहस तो जुटाना पड़ेगा। अगर प्रधान घोषित कर देगा तो तत्काल रुप से पूर्व की भांति व्यवस्थाएं यथावत हो जायेगी?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
 क्या करो ना के चलते बंद पड़े स्कूलों को 1 सितंबर से खोल देना चाहिए ऐसी सहमति मांगी गई है लेकिन इसकी इस पछताना होने के कारण कौन स्पष्ट जानकारी दे पाएगा अभी जो ऐसी थी भारत में करुणा की है उसी स्थिति को देखते हुए 1 सितंबर तो क्या जब तक करो ना की खेती ठीक नहीं हो जाती तब तक स्कूल नहीं खुलना चाहिए। क्योंकि स्कूल खोलने से नियम का पालन ना कर पाने से समस्या और गंभीर हो सकती है इसलिए गंभीर समस्या से निपटने के लिए फिलहाल अभी सभी बच्चों को घर पर ही पढ़ाई करनी चाहिए उनके माता-पिता को अच्छा अवसर मिला है कि वह अपने बच्चे को गुरु बनकर पढ़ाएं क्योंकि टीचरों को अक्सर शिकायत करते हैं कि टीचर नहीं पढ़ाते हैं अभी उनको अच्छा सुनहरा मौका मिला है कि वह अपने बच्चों को कितनी अच्छी पढ़ा पाते हैं  स्वयं का मूल्यांकन हो जाएगा। अंतिम यही कहते बनता है कि फिर हाल अभी 1 सितंबर तक स्कूल नहीं खोलना चाहिए।
- उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
मेरे विचार में स्कूल सितम्बर में नही खोले जाने चाहिए । अभी केवल कालेज खुलने तक ही ये फ़ैसला लागु होना चाहिए । स्कूल के बच्चे नादान होते है । उनको एक दूसरे से दूर बैठाना बड़ा मुश्किल होगा । खुदा ना करे पर फिर भी अगर वो किसी तरह कोरोना की चपेट में आ जाता है तो उसे सम्भालने में भी परेशानी आएगी । 
- नीलम नारंग
हिसार - हरियाणा
मैं यही कहना चाहूंगी अभी कोरोना वायरस की वैक्सीन उपलब्ध नहीं है और बच्चों की रोग प्रतिरोधक शक्ति भी कम होती है! इससे बड़ी बात तो यह है कि बच्चे चंचल और नादान होते हैं क्या सुरक्षा की दृष्टि से वे नियम का पालन कर पायेंगे! 
मानाकि स्कूल पूर्णता से नियम पालन करते हुए जिम्मेदारी उठा रही  है किंतु बच्चों की नादानी भारी पड़ सकती  है! उनके घर में उम्र वाले वृद्धजनों को पूरा खतरा  है! अधिकतर अभिभावक बच्चों को इस हाल में जब कोरोना की वैक्सीन भी नहीं  है भेजना नहीं चाहेंगे! फिर भी यदि सरकारी पदाधिकार स्कूल खोलते हैं तो यह खतरे की घंटी है!जर्मनी में स्कूल खोलते ही कोरोना में वृद्धि होते देख बंद करना पड़ा! 
बाकी निर्णय तो सुकिल लेगी किंतु जनता का प्रतिसाद कितना मिलता है देखे !
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
बच्चे ही देश का भविष्य है अतः बच्चों के लिए सबसे जरूरी है सुरक्षा फिर शिक्षा।
 भारत में कोरोना संक्रमण के चलते मार्च के आखिरी हफ्ते से ही सभी स्कूल बंद है जो कि    सरकार का उचित फैसला था ।
मेरी समझ से अभी स्कूलों को कुछ माह और बंद रखने की जरूरत है, क्योंकि बच्चे ना तो सोशल डिस्टेंस का उतना पालन कर सकेंगे जितनी की जरूरत है कोरोनावायरस  से बचने के लिए  ।अगर स्कूल के एक भी बच्चे को कोरोनावायरस  हुआ तो यह आग की तरह फैल कर सारे बच्चों को होने के चान्स बन सकते हैं , क्योंकि बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी वयस्कों से कम होती है।
 वैसे भी घर रहकर ऑनलाइन पढ़ाई तो कर ही रहे हैं बच्चे।
 मानती हूं वह बात नहीं है की on line पढ़ाई मेंजो कि स्कूल जाकर होती ,मगर कम से कम जान की हिफाजत तो है।
 स्कूल जा कर पढ़ने के मुकाबले ऑनलाइन में कुछ दिक्कतें हैं लेकिन कोरोनावायरस से बचाव भी तो है, और सबसे बड़ी बात यह है कि घर रहकर बच्चे सुरक्षित हैं ।
हर व्यक्ति सोचता है कि,, चाहे मैं बीमार ही पड़ जाऊं मगर मेरे बच्चे सुरक्षित रहें,,
 रही बात देश के अति गरीब वर्ग के बच्चों के तो उनके घर एंड्रॉयड फोन न होने से पढ़ाई बाधित हो रही है ऐसे में सरकार को चाहिए कि एक दो माह जब तक स्कूल न खोले जा सके ,गरीब बच्चों को एंड्रॉयड फोन उपलब्ध करा दिया जाए ताकि गरीबों के बच्चे भी घर बैठकर पढ़ाई कर सकें और सुरक्षित भी रहे, क्योंकि बच्चे हैं तो देश है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
जहांँ तक आज की चर्चा में यह प्रश्न है कि क्या कोरोना के चलते बंद पड़े स्कूलों को खोल देना चाहिए तो इस पर मेरा अपना विचार है कि कोरोना का संकट अभी टला नहीं है और संक्रमण जहां-तहां फैल रहा है छोटे बच्चों और बुजुर्गों में संक्रमण होने की संभावना काफी अधिक रहती है तो छोटी उम्र के बच्चों को जहां तक संभव हो सके इस संकट का कोई न कोई हल निकलने तक सुरक्षित ही रखना चाहिए हालांकि सुरक्षा तो सभी के लिए आवश्यक है परंतु फिर भी जो बड़े बच्चे हैं उनमें संक्रमण का डर कम रहता है और स्कूलों को भी हमेशा के लिए बंद नहीं रखा जा सकता अभी सरकार का प्रयास है कि धीरे-धीरे स्थिति को सामान्य बनाया जाए इसी क्रम में अभी B.Ed की परीक्षा संपन्न हुई है और अब संभवत है डिग्री कॉलेज में भी परीक्षाएं होने जा रही हैं इसी क्रम में मैं चाहूंगा कि कुछ ना कुछ ऐसी व्यवस्था जरूर बनाई जाए जिससे माध्यमिक विद्यालय के बड़े बच्चे भी स्कूल के संपर्क में भले ही नियमित रूप से ना हो कम से कम सप्ताह में एक या दो दिन जरूर रहे जिससे उनका प्रयोगात्मक कार्य जो है वह आरंभ कराया जा सके और यदि ऑनलाइन शिक्षण में उन्हें कुछ समस्या आ रही है तो जब वह विद्यालय जाएं अपनी उस समस्या को भी ठीक तरह से दूर कर सकें क्योंकि कुछ ऐसे ही इलाके हैं जहां नेट की बहुत अधिक समस्या है और बच्चों तक जो कुछ भी शिक्षण सामग्री है वह ठीक से नहीं पहुंच पा रही है या नियमित रूप से उन्हें उपलब्ध नहीं हो पा रही है यह सब बहुत ही सुरक्षात्मक ढंग से किया जाना चाहिए जिससे हम इस कार्य को भी गति दे सकें और किसी को कोई हानि न पहुंचे इसमें ऐसा किया जा सकता है कि बच्चों को डिस्टेंस के साथ थोड़ी-थोड़ी संख्या में बुलाया जा सकता है क्योंकि हमे अब इस कोरोना के साथ साथ जीना सीखना होगा हमेशा के लिए स्कूल और विद्यालय को बंद नहीं रखा जा सकता यह मेरा व्यक्तिगत विचार है और शायद सरकार की भी यही मंशा है वह धीरे-धीरे स्थिति को सामान्य करने के प्रयास में है और ऐसा होना भी चाहिए..............कडे सुरक्षा उपायों के साथ........।
- प्रमोद शर्मा प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कोरोना के चलते बंद पड़े स्कूलों को एक सितंबर से खोले जाने का प्रस्ताव हालांकि संबंधित जिम्मेदार लोगों का निर्णय है, उनका अधिकार क्षेत्र है। 
परंतु इस बात में कोई संदेह नहीं कि यह निर्णय जोखिम भरा हो सकता है। स्कूल याने वह विद्यालय , जिसमें बच्चे पढ़ते हों। बच्चे याने नादान, नासमझ, अपरिपक्व। ऐसे में वे कोरोना. संक्रमण से बचाव में आवश्यक उपायों के प्रति कितने सही तरीकों से पालन कर पायेंगे, यह संदेहास्पद ही रहेगा। उनके द्वारा की गई छोटी सी भूल,गलती या लापरवाही उनके लिए भी और औरों के लिए भी परेशानियों का कारण बन सकती है। स्कूलों में सभी वर्ग के बच्चे पढ़ने आते हैं। वैसे तो सभी वर्ग के बच्चों के लिए विषम परिस्थिति चिंताजनक होगी परंतु जो गरीब और मध्यम वर्ग से होंगे, उनके लिए तो अत्यंत परेशानियों का सबब बन सकती है। कहते हैं , 'जान है तो जहान है' अतः जान की सुरक्षा की फिक्र प्राथमिकता से हो। शिक्षा में विलंब हो जाना , जान से, बड़ा नुकसान कदापि नहीं हो सकता। अतः जब कोरोना संकट अभी विषम स्थिति में है और नियंत्रण में नहीं है। ऐसे में कोरोना से निपटने के एक ही उपाय हैं, अपनेआप में सुरक्षित रहना।, सुरक्षा नियमों का पालन करना, सुरक्षा के साधनों का  सही इतरीके से उपयोग करना। इसके लिए बच्चों से ऐसी उम्मीद करना कि वे इसमें सक्षम है, कहना, सोचना और मानना ठीक नहीं होगा।
अतः इस विषय पर दूरदर्शीता और गंभीरतापूर्वक चिंतन-मनन से निर्णय लेने की आवश्यकता है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
जितने तीव्र गति से कोरोना संक्रमण हमारे देश में फैल रहा है उसको देखते हुए बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ करना उचित नहीं लगता। अभी कुछ दिन हमें और सतर्कता बरतने की आवश्यकता है। जान है तो जहान है। एक -दो महीना और इसी तरह बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई कर सकते हैं पर अगर दूसरे नजर से देखें तो जब मंदिर मस्जिद और अन्य चीजों को जब जनता के लिए खोल दिया गया तब विद्यालय क्यों नहीं खुलना चाहिए? क्योंकि उचित शिक्षा का पूर्ण प्रभाव हमारे जीवन पर पड़ता है। 
   आज दूरदराज गांव के गरीब बच्चे ऑनलाइन शिक्षा का फायदा नहीं उठा पा रहे हैं। दूरदराज गांव में इंटरनेट की सुविधा अभी भी नहीं है अगर है भी तो नेटवर्क उपलब्ध नहीं रहता । दूसरी बात गरीब मां बाप अपने बच्चों को स्मार्ट फोन भी नहीं खरीद कर दे सकते। उन बच्चों की पढ़ाई बिल्कुल ठप हो चुकी है। उन बच्चों के भविष्य के बारे में अगर हम ध्यान से सोचे ,उनकी परेशानियों को समझें तब एहतियात बरतते हुए विद्यालय संस्थापकों को विद्यालय 1 सितंबर से खोलने पर विचार करना चाहिए ताकि बच्चे आकर शिक्षा ग्रहण कर सकें। हां, बहुत ही सावधानियां बरतने की भी जरूरत महसूस होगी क्योंकि ज्यादातर  छोटे बच्चे नासमझ होते हैैं। प्राइमरी क्लास के बच्चों के लिए ज्यादा रिस्क होगा। पर अब मजबूरी है कि हमें सावधानियां बरतते हुए अपने कार्य को सुचारू करना है।
- सुनीता रानी राठौर
 ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
मेरे विचार से अभी स्कूल नहीं खुलना चाहिए। समाचारों से माध्यम द्वारा यह मालूम हुआ है की एक सर्वे रिपोर्ट आया है उसके अनुसार दिल्ली एनसीआर, महाराष्ट्र,मध्य प्रदेश,गुजरात, बिहार से 61% अभिभावक का कहना है  की स्कूल खुलेगा तो हम अपने बच्चे को नहीं भेजेंगे जब तक देश में कोरोना समाप्त नहीं होगा ।उनका कहना है की अमेरिका में स्कूल खोला गया तो कोरोनावायरस के रफ्तार में बढ़ोतरी हो गई ।अतः हम लोग अपने बच्चों के साथ रिस्क नहीं लेंगे।
दुनिया भर में स्कूलों को खोलने के लिए हलचल शुरू हो गई है उसी के तहत केंद्र सरकार भी फैसला लिया की चरणबद्ध तरीके से स्कूल खोला जाए। 
केंद्र सरकार अपना गाइडलाइन 31 अगस्त तक जारी कर देगी। उसमें हर राज्य को अपना अधिकार के अनुसार फैसला ले सकते हैं।
केंद्र सरकार का गाइडलाइन ऐसा होगा ,क्लास नौवीं से बारहवीं तक बच्चे  अल्टरनेट डे आये,अगर एक क्लास में 4 सेक्शन है तो आधे को ही बुलाया जाए और आगे दूसरे दिन।क्लास का समय रहेगा 5-6 घंटा, एक डेस्क पर दो बच्चे ही बैठे। इनमें दो-तीन घंटे तक ही बच्चों को क्लास में दूरी बना कर बैठना है। केंद्र सरकार के मसौदे के अनुसार एक बेंच पर  दो ही बच्चे होंगे।
बीच के समय में सैनिटाइजेशन के लिए एक घंटा के ब्रेक रहेगा। इस व्यवस्था को देखते हुए पुनर्विचार किया जाएगा क्लास 5 से 8 क्लास के बच्चे को बुलाने के लिए। छोटे बच्चे को नए सेशन से बुलाया जाएगा।
लेखक का विचार:- अभिभावक अपने बच्चे पर निगरानी रखें स्कूल से आने के बाद उन्हे सफाई पर ध्यान देना होगा क्योंकि आपके घर में अगर कोई बुजुर्ग हैं तो वह जल्दी ही प्रभावित होंगे। इसलिए पूरे सैनिटाइज घर को भी  करें।
- विजयेंद्र मोहन 
बोकारो - झारखंड
नन्हीं कलियाँ अभी बनी है, मासूम है कहीं ऐसा न हो जाये कि खिलने से पहले ही ये मुरझा जायें l ए, गुलशन के मालिक जरा इनकी ओर तो देख l इनका बचपन तू इनसे न छीन l 
       जब कोरोना राक्षस से बड़े बड़े समझदार नहीं बच पाये तो ये तो नादान है l घर पर ही थोड़ाबहुत सीख कर संस्कारित तो बन पाएंगे l ऐसी भी क्या जल्दी है, पीक पर कोरोना है कलियों को आग में झोंकना है, कहाँ की समझदारी है l माना की कोरोना के संग जीना है पर नन्हीं कलियों के जीवन से खिलवाड़ क्यों? 
शिक्षण संस्थाओं में कितनी सुविधा है जो कोरोना से बचाव हो सके? यह प्रश्न अत्यंत गंभीर और चिंतन योग्य है l खतरों के खिलाडी न बनें l जान जोख़िम में न डालकर, नन्हीं जान को बचाने का प्रयास करें l 
स्वयं सेनेटाइजर का उपयोग करें, मास्क लगाये, सोशलडिस्टेंसिंग की पालना करते हुए दूसरों से भी यह पालना करवाए l स्वयं का बचाव करके आप न जाने कितनी जिंदगियों को बचा सकते हैं l 
  हम  समझदार होकर नासमझी की बातें क्यों करें l 
       चलते चलते ---
ये वो नन्हें फूल हैं जो  भगवान को
लगते प्यारे, बच्चे मन के सच्चे l 
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
इस विषय पर जो सुझाव मेरा है वह यह है कि वर्तमान समय में स्कूल को खोलना बहुत उचित नहीं है पर निर्णय करने वाले सरकारी पदाधिकारी और नियमावली है।
सामाजिक तौर पर प्राइमरी स्कूल के बच्चे अपरिपक्व होते हैं उन्हें सुरक्षित रखना बहुत आवश्यक है हायर स्कूल के विद्यार्थियों में थोड़ी परिपक्वता होती है और कोई खास नियमावली के अनुसार यदि हाई स्कूल को खोला जाए तो शायद ठीक रहेगा पर प्राथमिक और सेकेंडरी के तो बच्चों के लिए सूचना भी अभी के समय में उचित नहीं है
कितने जगह में तो स्कूल को कोरोनटाइन जगह बनाया गया है यदि खुलने के बात भी होती है तो सबसे पहले पूरे बिल्डिंग को सेंटेंस करना पड़ेगा स्कूल जब भी खुले उसके पहले सनराइज करना होगा और नियमों में परिवर्तन भी लाना होगा ताकि बच्चे सुरक्षित रहें
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
कोरोना भी चल रहा है और जीवन भी चल रहा है। दुनिया को कोरोना की आदत सी होती जा रही है। सरकार भी दिन-प्रतिदिन मरीजों की बढ़ती संख्या से चिंतित होने की अपेक्षा इस बात पर इतरा रही है कि हमारे यहां कोरोना से ठीक होने वाले मरीजों की प्रतिशतता बहुत अच्छी है। परन्तु कोरोना से ग्रसित होने वाले मरीजों की हालत और अस्पतालों में चिकित्सा की सीमितता पर गौर करना भी अति आवश्यक है। 
स्कूल एक ऐसा स्थान है जहां यदि कोरोना ने एक बार पैर पसार लिए तो उसका संक्रमण तूफान की तरह कहर बरपायेगा। इसलिए इस समय स्कूलों को खोलना आत्मघाती कदम होगा। स्कूल खोलने पर स्थिति कितनी भयावह हो सकती है, यह कल्पना करना मुश्किल नहीं है। क्या हमारे स्कूल इतने समर्थ हैं कि कोरोना से बचाव के सभी साधनों का कड़ाई से पालन कर सकें? 
क्या हम व्यवहारिक तौर पर इतने सक्षम हैं कि स्कूलों में बच्चों को कोरोना के प्रकोप से बचाने हेतु व्यवस्था कर सकें? 
साथ ही जब स्थान-स्थान पर वयस्कों के व्यवहार से लापरवाही झलकती नजर आती है तो बच्चों के अपरिपक्व मन-मस्तिष्क से सावधानी की आशा करना क्या उचित है? 
इन प्रश्नों का उत्तर नहीं में है। 
वर्तमान में अभिभावक कतई नहीं चाहते कि स्कूल खोले जायें। शिक्षाविद् भी इस बात के लिए तैयार नहीं होंगे। 
संभवतः स्कूल ना खोलने के कुछ हानिकारक प्रभाव भी होंगे, जिनकी भरपाई करने में भी समय लगेगा। परन्तु यदि हमें अपनी भावी पीढ़ी को सुरक्षित रखना है तो एक सितम्बर से स्कूल किसी भी दशा में नहीं खोलने चाहिए। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
कोरोना का कहर अभी खल्म नहीं  हुआ है, इसका आकड़ा दिन प्रतिदिन बढ़ता चलता जा रहा  है,  अभी तक  कोई एैसा अनूमान नहीं लगाया जा सकता कि इसकी रोकथाम कब होगी, न ही कोई ऐसी दबाई कारगार सिद्ध हुई है जिससे इसकी रोकथाम सभंव हो सके  ना ही कोई इन्जैक्सन तैयार हुआ है। 
इसलिए स्कूलों को  खौलना  ठीक नही होगा। 
क्योंकी  बच्चों के लिए सभी नियमों को ताक में रखकर चलना संभव नहीं  होगा  वो एक दुसरे के साथ गुलमिल जाएंगे जिससे कोरोना का प्रकोप भयंकर रूप धारण कर सकता है। 
साथ में कोई भी मां वाप अपने बच्चों को ऐसे हालातों को देखते हुए  स्कूल भेजने के लिए राजी नहीं होगा। 
इसलिए जब तक कोई कोरोना का सही इलाज नहीं आता स्कूलों को  तब तक नहीं खोलना चाहिए, सितम्वर तो क्या  चाहे  चन्द महीने ज्यादा भी लग जांए हमें  तव तक   इन्तजार कर  लेना चाहिए जव तक हम  अपना और अपने बच्चों का भबिश्य सुरक्षित  रख सकें क्योंकी जान है तो जहान है। इसलिए स्कूलों को फिलहाल बन्द रखना जरुरी है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
एक सितंबर से स्कूल खोलना,न खोलना सरकारी निर्णयानुसार होगा,और सरकार जो भी निर्णय लेगी, जनहित में ही होगा। हमें पूर्ण विश्वास है। अध्यापक तो एक जुलाई से स्कूल खोल ही रहे हैं, केवल बच्चों का ही अवकाश चल रहा है। इसमें भी आनलाइन क्लास जैसी गतिविधियां जारी हैं ही। स्कूल जाने आने में कितने ही टीचर्स कोरोना से संक्रमित हो गये है। कोरोनाकाल में अभिभावकों में जागरूकता बढ़ी है और वह हालात सामान्य होने तक बच्चों को स्कूल भेजने के लिए तैयार नहीं है। किसी भी तरह टाइप रिस्क लेने की बात से साफ इंकार कर रहे हैं अभिभावक। उनका स्पष्ट कहना है कि पढ़ाई भी तो तभी कारगर होगी,जब स्वस्थ रहेंगे।अभी संक्रमण का खतरा बढ़ रहा है,नित नये के स सामने आ रहे हैं। यह बात ठीक है कि रिकवरी की दर बढ़ी है, लेकिन खतरा टला नहीं है। उपचार के लिए दवा,वेक्सीन अभी उपलब्ध नहीं। मेरा व्यक्तिगत विचार यह है कि जब तक कोरोना से बचाव के लिए वेक्सीनेशन जैसी सुविधा उपलब्ध न हो जाएं,तब तक कोई बड़ा खतरा उठाने से बचना चाहिए। वर्तमान स्थिति में स्कूल बच्चों के लिए बहुत बड़ा खतरा होगा।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर-  उत्तर प्रदेश
वैश्विक महामारी पूरे विश्व में है यह जान के लिए बहुत बड़ा खतरा है अभी तक इसकी कोई दवा और वैक्सीन  नहीं आई डब्ल्यूएचओ और डॉक्टर सभी कह रहे हैैं सरकार भी बड़े-बड़े विज्ञापनों समाचार के माध्यम से जनता को सतर्क कर रही है देश के प्रधानमंत्री का भी वक्तव्य बीच-बीच में जारी होता है घर में रहे सुरक्षित रहे
ठीक है कि धीरे-धीरे अनलॉक की प्रक्रिया शुरू हो गई है लेकिन हालात में भी स्थितियां सुधारने के बजाय और बिगड़ भी रही है स्कूल जाने वाले बच्चे छोटे-छोटे हैं छोटे बच्चों पर और बूढ़े पर मैं अधिक प्रभावी कारक होकर जाने के लिए खतरा है ठीक है कि स्कूल के प्रबंधक अध्यापक चाहते हैं कि स्कूल खोला जाए उनको इसके लिए फीस भी मिलेगी। बच्चों की पढ़ाई ऑनलाइन हो रही है बच्चों का साल तो बिगड़ रहा है बच्चे भी घर में रहकर वह सब कुछ नहीं कर पा रहे हैं जो स्कूल में वह कर पाते थे लेकिन
फिर भी जीवन अनमोल है अगर कुछ प्रतिशत कम आते हैं तो भी बच्चों के अभिभावक बच्चों की जान की सुरक्षा ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं बहुत लोगों से इस विषय पर उनकी राय जानने की
कोशिश की उनका यही जवाब है कि
स्कूल खुल भी जाए तो भी अभी हम अपने बच्चों को नहीं भेजेंगे। कॉलेज के बच्चों का केवल परीक्षा ही ली जाए
वह  भी दूरी को बनाए रखते हुए।
भारत ही नहीं दूसरे देशों में भी करोना की स्थितियां और ज्यादा बिगड़ रही हैं
 ऐसी स्थिति में अभिभावक नहीं चाह रहे हैं कि स्कूलों को खोला जाए ।
बड़े-बड़े सिलेब्रिटीज, राजनेता, सभी इसके शिकार हो रहे हैं  इन  सभी स्थितियों को देखते हुए बंद पड़े स्कूलों को ‌अभी नहीं खोलना चाहिए थोड़ा और समय लेना चाहिए ।
आखिर जीवन और मृत्यु का प्रश्न है।
जीवन रहेगा तो आगे पढ़ाई हो जाएगी
साल भर की देर ही सही जिंदगी बचेगी।
*जीवन अनमोल है*
- आरती तिवारी सनत
दिल्ली
          कोरोना की वजह से बच्चों का शैक्षणिक ह्रास हो रहा है। ऑनलाइन पढ़ाईयां कुछ कारगर नहीं हो रही हैं। कोरोना केस तो लगातार बढ़ते ही जा रहे हैं। बरसात भी अब चालू हो गई है। बड़े बच्चे  अपनी सावधानी रख सकते हैं किंतु छोटे बच्चों के साथ थोड़ी दिक्कत होगी। इसीलिए उनके लिए 1 माह और बढ़ा देना चाहिए अर्थात 30 सितंबर तक।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
             मेरे विचार से कोरोना के चलते बन्द पड़े स्कूल तभी खोलना चाहिए जब कोरोना का जोर कमजोर हो जाये। वैसे तो हर दृष्टि से साल 2020 तो बेकार ही हो गया।
           पढ़ाई तो कुछ हुआ नहीं, जो कुछ भी बच्चे जानते होंगें कुछ न कुछ तो भूल ही गए होंगे। ऑन लाईन पढ़ाई और सामने पढ़ाई में बहुत अंतर होता है।
               वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए ऐसा नहीं लगता है कि कोरोना एक सितंबर से पहले कंट्रोल में आ जायेगा। मास्क लगाकर और सेनेटाइज कर के स्कूल चलाना संभव नहीं हो पायेगा।
            ऐसी परिस्थिति में किसी बच्चे या शिक्षक को कोरोना हो गया तो हंगामा हो जाएगा। किसी को हो गया तो कुछ संभाल सकता है।लेकिन किसी बच्चे का संक्रमित होना बहुत भयानक परिस्थिति हो जाएगी।।   
                 शिक्षकों को तो वैसे भी सरकार किसी न किसी कार्य मे लगती रहती है। वो तो मजबूर हैं ड्यूटी करने के लिए।लेकिन कोई माँ-बाप अपने बच्चे को स्कूल भेजेगा। मेरे खयाल से शायद नहीं भेजेगा। सबके अंदर एक भय का माहौल बना रहेगा। एक सितंबर को स्कूल खोलना बहुत रिस्की काम हो सकता है।
    इसलिए मेरे विचार से एक सितंबर से पहले स्कूल खोलने का विचार नहीं करना चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
कोरो ना के चलते बन्द हुए स्कूलों को अभी सितम्बर से खोलना ठीक नहीं है । क्योंकि और भी ज्यादा कोरोना पेशेंट बढ़ने के चांस है ।  किंयोकी हजारों की संख्या में जब बच्चे घर से स्कूल आएंगे  पता नहीं किस बच्चे को या किस अभिभावक को कोरो ना  के लक्षण हो सकते हैं ।
अभिभावक से बच्चे को व बच्चे से उसके साथी को ,साथी से पूरी क क्षा  को, क क्षा से पूरे स्कूल में होने कि संभावना होगी ।
जब तक कोविड 19की वैक्सीन नहीं आजाती त था जब तक स्कूल के बच्चो का वैक्सीनेशन नहीं ही जाता  तब तक स्कूलों को बन्द कर बचाव जरूरी है।
वरना अगर कोई एक भी बच्चा संक्रमित होता है  तो उसका परिवार तो 100% ही संक्रमित हो ता है । 
ओर अगर कोई स्टूडेंट  कम होता है तब उस परिवार का तो सबकुछ ही लुट जाता है।
 मेरी राय में तो स्कूलों में जो स्टाफ  का आना अनिवार्य किया हुआ है उनको भी आने की अनुमति नहीं होनी चाहिए ।
- रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
       स्कूल भविष्य की धरोहर होते हैं। जिनसे ज्ञान, विज्ञान, कला और संस्कृति का प्रकाश होता है। इसलिए शराब के ठेके खोलने से अधिक स्कूल खोलने की व्यवस्था सुनिश्चित करने की आवश्यकता है।
       वर्णनीय है कि कोरोना से बचने के लिए सरकार द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर हर संभव प्रयास किए जा चुके हैं। परंतु वह फिर भी फैल रहा है। उसके रोकथाम हेतु ही भविष्य दांव पर लगाया हुआ है। जिस पर गंभीर प्रश्न उठ रहे हैं कि स्कूल कब तक बंद रखे जाएंगे?
       उल्लेखनीय है कि स्कूलों के साथ-साथ ट्यूशन सेंटर भी बंद पड़े हैं और अधिकांश ट्यूशन सेंटर युवा वर्ग ने कमरे किराए पर लेकर चलाए हुए हैं। जिसके कारण किसानों की भांति युवा वर्ग की भी कमर टूट रही है।
       अतः सरकार को चाहिए कि युवाओं एवं बच्चों अर्थात वर्तमान एवं भविष्य को बचाने के लिए सम्पूर्ण व्यवस्था सुनिश्चित करते हुए निजी व सरकारी शिक्षा संस्थान एवं ट्यूशन सेंटर खोल देने चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मेरे विचार में नहीं खोला जाना चाहिए।  कोरोना का प्रकोप अभी बना हुआ है।  स्कूलों में जाने वाले विद्यार्थी अलग-अलग क्षेत्रों से, अलग-अलग माध्यमों से स्कूल आना जाना करते हैं।  स्कूल के विद्यार्थियों की इम्यूनिटी भी इतनी मजबूत नहीं होती कि वह कोरोना के साथ पूर्ण शक्ति से मुकाबला कर उसे परास्त कर सके।  जो उपाय कोरोना से सुरक्षित रहने के लिए बताए गए हैं उन्हें पूर्ण रूप से लागू करना फिलहाल संभव नहीं है। नियमित सैनिटाइजेशन भी नुकसान कर सकता है क्योंकि उनमें रसायन मिले होते हैं।  हर किसी को अल्कोहल की महक माफिक नहीं बैठती। प्रदूषित वातावरण के चलते बहुत से बच्चे श्वसन-रोग से ग्रसित होते हैं और अनेक तो अपने पास इनहेलर रखते हैं। उनके लिए तो स्कूल जाना बिल्कुल भी ठीक न होगा। बार-बार हाथ धोने या सैनिटाइजर प्रयोग करना असंभव होगा। हर स्कूल में ऐसी व्यवस्था नहीं है कि 50-50 विद्यार्थियों की एक कक्षा में सामाजिक दूरी और मास्क के नियमों का पालन किया जाए।   अध्यापकों/अध्यापिकाओं का मास्क लगे हुए बोलकर पढ़ाना भी संभव नहीं है।  पढ़ाते समय लगातार बोलने से श्वसन क्रिया की गति तेज होती है जिसमें अधिक कार्बनडाइआक्साअड बाहर निकलती है।  ऐसे में तंग कमरे की क्लास में कार्बनडाइआक्साइड का आधिक्य हो जाएगा जो विद्यार्थियों और शिक्षकों दोनों के हित में नहीं होगा।  स्कूल में जाने वाले विद्यार्थियों की आयु ऐसी होती है कि उनमें चंचलता रहती है। कुछ शैतान किस्म के भी होते हैं। उन पर नियन्त्रण करना भी संभव न होगा। यदि किसी स्कूल में कुछेक विद्यार्थी कोरोना पाजिटिव हो गये तो फिर से मुश्किल हो जायेगी। यहां तक कि स्वयं स्कूल प्रबन्धक, शिक्षक वर्ग और अभिभावक भी इस पक्ष में नहीं हैं कि देश की भावी पीढ़ी कोरोना जैसे संक्रामक रोग से ग्रसित होकर कमजोर बने। स्थिति बहुत विकट है। देशवासी भी परेशान हैं। पर समय की मांग है कि सुरक्षा ही सर्वोत्तम उपाय है।  अतः कोरोनावायरस के चलते बंद पड़े स्कूलों को 1 सितंबर से नहीं खोला जाना चाहिए और आॅनलाइन व्यवस्था ही सर्वोत्तम माध्यम है। 
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
संक्रामक महामारी कोरोना के चलते हुए 1 सितंबर 2020 से मेरी समझ से स्कूल नहीं खुलने चाहिए क्योंकि इस समय कोरोना संक्रमित लोगों की संख्या दिन प्रतिदिन तेजी से बढ़ रही है ऐसे में भले ही डिस्टेंसिंग और सैनिटाइजर और मास्क द्वारा कितनी भी सावधानी बरती जाए लेकिन बाल समूह और किशोरावस्था के बालकों को इतने दिनों बाद मिली छूट के बाद स्कूल पहुंचना सबके लिए खतरे से खाली नहीं होगा.। ऐसे में सामुदायिक संक्रमण तेजी से बढ़ सकता है।
       हमारे बच्चे भारत का भविष्य हैं ।उनकी जान है तो हमारा जहान है।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
बच्चे देश के भविष्य होते हैं
परिवार की उम्मीद और जान होते हैं
इसलिए बच्चों की स्वास्थ्य और सुरक्षा हेतु ,कोविड-19 संक्रमण काल में 1 सितंबर से स्कूलों का खोला जाना किसी भी दृष्टि से न्यायोचित, तर्कसंगत और परिपक्व फैसला नहीं है, क्योंकि कोविड-19 से बचने के लिए जो गाइडलाइन बनाए गए हैं उस पर सही सही अमल करना बड़े बुजुर्गों और समझदार लोगों के लिए तो संभव नहीं हो पा रहा है,
तो फिर यह सोचने और समझने की बात है कि  बच्चे इन नियमों का पालन कैसे कर पाएंगे।
लगातार सात आठ घंटे स्कूल में मास्क पहनकर रहना ,हैंड वॉश करना और सामाजिक दूरी कायम रखना बच्चों के लिए संभव ही नहीं है।
*जान है तो जहान है*.....
जीवन रहेगा तो बच्चे पढ़ लिख ही लेंगे।
ये सही है कि बच्चों की पढ़ाई में बाधाएं आ रही है लेकिन ऑनलाइन क्लासेस से ये समस्या भी बहुत हद तक सुलझ रही है।
कोविड-19 संक्रमण काल में हम अभिभावकों और माता-पिता के लिए यह जरूरी है कि हम बच्चों को स्व अध्ययन (self-study) के लिए प्रेरित करें। इससे उनमें एक अच्छी आदत की शुरुआत होगी।
       इसलिए मेरे विचार से कोरोना संक्रमण पर जब तक पूर्णता नियंत्रण नहीं हो जाता, स्कूलों का खुलना सही नहीं है।
- बिम्मी प्रसाद "वीणा"
रांची  -झारखंड
एक अभिभावक होने के नाते तथा स्वास्थ्य एवं सुरक्षा की दृष्टि से मैं इस विचार को पूर्ण सहमति नहीं देती हूँ।
विद्यार्थी जीवन भविष्य के कर्णधार हैं ।इनके आज के बस्ते वाले कंधों पर कल संपूर्ण राष्ट्र का भार सौंपा जाएगा।
 कोरोना काल की भयावहता में स्कूल और बच्चें प्रयोगशाला न बनाए जाएं इसकी जबाबदेही हम अभिवावकों और जिम्मेदार शिक्षकों की ही होगी। जहाँ आज जीवन से जंग है ऐसी परिस्थिति में नौनिहालों के भविष्य को खतरे में डालना हमारी बेवकूफी होगी।
अतः सितंबर माह में स्कूल खुलने की मंजूरी नहीं दी जानी चाहिए।
- संगीता सहाय "अनुभूति"
रांची - झारखण्ड

" मेरी दृष्टि में " कोरोना से स्कूलों में शिक्षा का स्तर काफी गिर गया हैं । बाकी तो समय ही बता रहा है । वर्तमान में शिक्षा का क्या स्तर रह गया है।
                                            - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान



Comments

  1. बड़े बच्चे समझदार होते हैं और अब उनको मास्क के साथ जीना भी आ गया है। सावधानियां बरतकर उनकी पढ़ाई जारी रखी जा सकती है किंतु छोटे बच्चों प्राइमरी लेवल के बच्चों के साथ कुछ समस्या हो सकती है। इसलिए उनके लिए तो अभी एक-दो माह देखने की जरूरत है।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )