क्या चिंता का इलाज सिंह प्रार्थना है ?

चिंता कभी नहीं करनी चाहिए । चिंता का दूसरा नाम मौत है । चिंता से बचने के लिए बड़ें - बेंड़ महात्मा बहुत से उपाय बताते है । जिनमें से एक है प्रार्थना ! वास्तव में हर समस्या का उपाय होता है । सही समय पर सही उपाय मिल जाऐ तो फिर चिंता नहीं होती है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं :-
व्यक्ति अपनी क्षमतानुसार , मुसीबत से लड़ने का प्रयास करता है । किन्तु जब हार जाता है तब चिंता में डूबकर हथियार डाल देता है, फिर प्रार्थना के अलावा उसके पास कोई चारा नहीं बचता । वह किसी चमत्कार की उम्मीद करने लगता है । कर्म और चमत्कार के बीच यही वह बारीक रेखा होती है जिसे समझने में वह चूक कर बैठता  है। 
दरअसल चिंता के स्थान पर यदि चिंतन किया जाए तो बहुत सी समस्याओं के समाधान आसान हो जाएं । 
सर्वप्रथम किसी समस्यात्मक विषय और उसके समाधान  पर मनन किया जाए, फिर  योजना बनाकर ,शान्त मन  से धीरे-धीरे उसे कार्यान्वित किया जाए । 
समस्या को देख कर हताश होने की बजाय उसे सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ाने से उसका समाधान मिल सकता है। 
केवल प्रार्थना का अर्थ, स्वयं की शक्ति पर अविश्वास करना है। प्रार्थना मानसिक बल देती है किन्तु मुसीबत के समय उसके निराकरण के उपाय खोजने के स्थान पर,  भयभीत और निराश हो कर प्रार्थना में रत हो जाना साहस का सूचक नहीं। 
क्योंकि- हिम्मत ए मर्दा, मदद ए खुदा। ( ईश्वरभी उन्ही की सहायता करते हैं, जो अपनी सहायता स्वयं करते हैं )
इस दृष्टि से प्रार्थना का अर्थ ही नहीं रह गया।  
अतः चिंता के स्थान पर चिंतन करें। और प्रार्थना , किसी अभिलाषा के पूरा करने के अस्त्र के रूप में न इस्तेमाल हो कर, केवल मन की शांति एंव मन दृढता के लिए हो ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्यप्रदेश
मेरे विचार से चिंता का इलाज सिर्फ प्रार्थना नहीं है। चिंता की उपज कहां से हुई, चिंता का कारण क्या है इसका निवारण कैसे हो  इन मुद्दों पर ध्यान देने से ही चिंता का इलाज संभव है।
" चिंता चिता के समान होती है।"
मात्र प्रार्थना करने से कभी भी चिंता नहीं जाती।
अगर किसी विद्यार्थी की परीक्षा होने वाली है और उसे चिंता हो रही है कि वो पास होगा या नहीं तो इस चिंता से बचने के लिए अगर वो बस प्रार्थना ही करता रह जाए पढ़ाई न करें तो क्या वो पास होगा उसकी चिंता समाप्त होगी ।
अगर कोई मां इस चिंता में कि मेरे बच्चों को भोजन कहां से मिलेगा भगवान से प्रार्थना करती रह जाए तो क्या उसके बच्चों को भोजन नसीब होगा,एक मां की चिंता दुर होगी।
उसी तरह डॉ की आपरेशन की चिंता, कलाकार का अपनी कला की चिंता, इंजीनियर की अपनी प्रोजेक्ट की चिंता का अंत केवल प्रार्थना करने से नहीं होगा उसे सही दिशा में काम करना होगा।
अगर मैं इस चिंता में केवल प्रार्थना ही करती रह जाती कि आज के  चर्चा के विषय पर लिखना है तो मैं बस प्रार्थना ही करती रह गई होती, लेकिन जैसे ही आज का विषय मिला मैंने पहले प्रार्थना किया कि  मैं इस विषय पर लिख संकुचित फिर लिखना प्रारम्भ किया ।
अतः: हम संक्षेप में यह कह सकते है कि  चिंता  का इलाज मात्र प्रार्थना नहीं है,सही काम करना आवश्यक है ।
- सुधा कर्ण
रांची - झारखंड
 हमारे जीवन में चिंता करना  चिता के  समान है । जीते जी जिंदा इंसान मुर्दे के समान हो जाते हैं। हमारी आंतरिक ऊर्जा शक्ति  को विनाश करने लगती है ।
आज की भौतिकवादी , भागदौड़ की जिंदगी चिंताओं से भरी हुई है । चिंता करनेवाला व्यक्ति बीमारियों ग्रसित हो जाता है । चिंता दीमक की तरह हमारे जीवन को खा जाती है. चिंता के निवारण के लिए हमें कारण को जान के उसे हल करना होगा ।  चिंताओं से मुक्त होने के लिए हमें दवाओं का सहारा नहीं लेना चाहिए ।
  ऐसे तनाव युक्त , चिंता ग्रसित होने पर हमें सकारात्मक रहना चाहिए । नकारात्मकता के विचारों को हमें दिल , दिमाग से बाहर फेंकना होगा ।
हमें नित्य विधायक कामों में चित्त लगाना जैसे योग करना , किताबें पढ़ना , ईश से प्रार्थना करना रचनात्मक काम करना आदि हैं जोहमें चिंता से मुक्त करेंगे । आशा , आत्मविश्वास का दामन थामें रहना चाहिए। 
 अगर हमको  चिंता सताए जा रही है तो हम किसी अपने मित्र  रिश्तेदार से चिंता को सांझा करके उससे अपना दुख हल्का जार सकते हैं ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
    नहीं ! बिल्कुल भी नहीं।
ईश्वर जब परीक्षा की घड़ी में धकेलता है तो वह हमारे सामर्थ्य की परीक्षा लेता है। यह भी कहता है कि ‘ तुम स्वयं की मदद करो,तभी मैं तुम्हारी मदद करूँगा।’
    आस्था,आत्मिक बल बढ़ाती है, इसमें दो राय नहीं,किन्तु बिना परिश्रम कुछ भी सम्भव नहीं।
   प्रार्थना,शक्ति सामर्थ्य बढ़ाने में सहायक है,अत: बहुत ज़रूरी है।ध्यान केन्द्रित करने की शक्ति देती है। किन्तु मात्र प्रार्थना में डूबे रहना पलायन होगा, समस्या का सच्चा समाधान नहीं।
       विधि के विधान को स्वीकारते हुए, हमें चिन्तित करने वाली परिस्थितियों का सामना भी करना होगा, तभी  चिंता मुक्त हुआ जा सकता है।चिंता भी एक चुनौती है। सकारात्मक सोच से,सबल हो कर,
चिंता पर विजय पाना ही चिंता का इलाज है।परिश्रम के बिना कुछ भी सम्भव नहीं।
- डॉ० दुर्गा सिन्हा ‘ उदार ‘
फरीदाबाद - उत्तर प्रदेश
चिंता सिर्फ़ प्रार्थना से नहीं जाती हमें अपना स्वभाव बदलना पड़ता है वह सम्भव है ध्यान योग प्रार्थना से ..
ध्यान करने से तनाव दूर होता है और आप अपने विचारों को स्पष्ट रूप से परख पाते है. ध्यान का मक़सद, बाहरी दुनिया से अलग कर, अपने अंदर की दुनिया और ख़ुद से रूबरू होना है. ध्यान करने के और भी कई उद्देश्य होते है, जैसे मानसिक शांति, एकाग्रता, दृढ़ मनोबल, ईश्वर की खोज, मन को विचार मुक्त करना, मन पर क़ाबू पाना, आदि.
रोज़ाना ध्यान करने से आप अपने ऊपर काफ़ी प्रभाव महसूस करेंगे , हालाँकि, यह बिलकुल हल्का और आतंरिक होता है. आपके विचार, निर्णय, व्यवहार, मन और गतिविधियों में ख़ास बदलाव आएगा. ध्यान करना दिखावा नहीं, बल्कि ख़ुद की ही उपलब्धि है.
हर तरह के ध्यान के अलग-अलग लाभ व फ़ायदे है. कुछ प्रक्रिया  मन को एकाग्र करते है, कुछ विचारों को शांत, तो कुछ आपको ताजा करते है और कुछ आपको हील. कई हज़ार वर्षों की “शोध “के बाद ये पता चला की ध्यान करना स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है. ऐंज़ाइयटी, स्ट्रेस, डिप्रेशन, अनिद्रा व दर्द के इलाज के लिए ध्यान काफ़ी फ़ायदेमंद है.
ध्यान सिर्फ़ विचारों तक सीमित नहीं. बल्कि यह आपके मस्तिष्क के हर मर्ज़ की दवा है. ध्यान करने से आपके भय और चिंता सब दूर हो जाते है. स्ट्रेस रीलीविंग के लिए बेस्ट है, ध्यान करना.
ध्यान करने से हमारा इम्यून सिस्टम बेहतर होता है. यानी रोगों से लड़ने में शरीर सशक्त बनता है. ध्यान मेडिकल ट्रीटमेंट तो नहीं, पर यह हीलिंग ज़रूर है.
चिंता बहुत ख़तरनाक है चिंता करने वाला मानव को चिंता ही नसीब होती है यह कहावत है तो चिंता नहीं करना चाहिऐ चिंता करने से कुछ होता नहीं बस हमें कई शारीरिक समस्याओं से जुझना पड़ता है ! 
तो ध्यान , प्रार्थना योग से हमें चिंता मुक्ती दिलाने में सहायक हैं पर कोंशिश हमारी होनी चाहिऐ  
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
 निश्चित ही जहाँ प्रार्थना है वहां चिंता कैसी ?लेकिन प्रार्थना के स्वरूप को जानना भी आवश्यक है 
प्रार्थना तो सहृदयी  के आकाश से उतरती रिमझिम है, जहां भावों के मेघ घिरते हैं ,आंसू की झड़ी  लगती है; प्रेम के फूल खिलते हैं | जैसे हवाएं मदमस्त होकर हर कली फूल पेड़ व पौधों के साथ लयबद्ध  हो नृत्य में लीन हो जाती हैं | और जब  सारा अस्तित्व सुरताल  में आबद्ध  प्रतीत होता है | तो कुछ ऐसी ही भावना पूर्ण स्थिति में भाव का प्रस्फुटन होता है इसी को प्रार्थना कहा जा सकता है| ऐसा तब होता है जब चित्त  निर्विचार होता है|
और जहां प्रार्थना हो वहां चिंता कैसी?  सामान्यता मनुष्य भयभीत होकर, दुखों से घबराकर ,मन में न जाने कितने ऊहापोह से घिरकरअंततःउस परमपिता परमात्मा से मांगने का भाव्  लेकर कर्म कांडों में फंस कर जो भी  करता है--वह प्रार्थना नहीं  ,   प्रार्थना का दिखावा है| ऐसी प्रार्थना से  चिंता नहीं मिटती | बस पल   भर के लिए हम अपने को सांत्वना लेते हैं  और कुछ नहीं|  क्योंकि  हमारे हृदय में भावों के जल स्रोत फूटे ही नहीं और हम चले धूप दीप लेकर| मैं यह नहीं कहती कि धूप दीप जलाना ठीक नहीं| केवल धूप दीप जलाना ही प्रार्थना नहीं है और रटी रटाई प्रार्थना को दोहरा कर ऊंचे स्वर में गाना भी प्रार्थना नहीं है| जिस  पुजारी के पास हम  जाते हैं और वह  मंदिर में घंटा बजाता है लेकिन याद रहे उसके भीतर कुछ भी नहीं बज रहा होता है| वैसे  भी कुछ कहा भी नहीं जा सकता क्योंकि प्रार्थना शब्दातीत घटना  है |और शब्दों मेंप्रार्थना चुक  नहीं जाती| सच तो यह है कि कुछ न भी बोलो तो भी प्रार्थना घट सकती है|
प्रार्थना तो घटी मीरा में ,सहजो में,चैतन्य महाप्रभु में क्योंकि वहां कोई मांग नहीं थी| कोई इच्छा नहीं थी ,कोई लिप्सा  नहीं थी | इसलिए इन्हें कोई चिंता नहीं थी | लेकिन हमारी  प्रार्थना भय और लोभ  से पैदा होती है|प्रार्थना अगर किसी कारण से उत्पन्न होती है ,तो कारण के मिटते ही प्रार्थना का भाव भी समाप्त हो जाता है |इसलिए ऐसी प्रार्थना को प्रार्थना नहीं कहा जा सकता|प्रार्थना का अधिकारी  तो वही  हो सकता है जो निमित्त मात्र है | फिर बजती है प्रार्थना की बंसी |  
 प्रार्थना तो सीधे हृदय  में उतरती  गंगा है जहां  केवल पवित्र  भाव  ही  होते हैं और वहां कोई मांग नहीं होती  | जहां मनुष्य केवल अहोभाव से भरता है उसके प्रति जिसने उसे इतना दिया है कि उसका अपना पात्र ही छोटा पड़ गया है|    जो मिला है , अगर वह भी न मिलता तो क्या कर लेते?इस असहाय अवस्था को जो हृदय से जान लेता है उसी के भीतर प्रार्थना का प्रादुर्भाव होता है | अहोभाव ही प्रार्थना  है |और इसी  भाव दशा में प्रार्थना का जन्म होता है |और जहां प्रार्थना है वहां चिंता कैसी ?
- चन्द्रकान्ता अग्निहोत्री 
पंचकूला - हरियाणा
    जी नहीं..कदापि नहीं.कहा भी गया है,कि-"चिंता चित्त को जलाती है और चिता स्वयं जलकर सहिष्णुता का भाव दे जाती है."          प्रभु के समक्ष नित्यप्रति प्रार्थना और पूजा आदि करना उत्तम संस्कार माने गए  हैं, लेकिन जो नास्तिक हैं अथवा भक्ति-विधान में सम्मिलित नहीं होते वे लोग भी सच्चरित्र, आदर्श और जीवन-मूल्यों के पक्षधर हो सकते हैं.फिर तो चिंता के निवारण में  केवल पूजा,भक्ति और प्रार्थना की ही मुख्य भूमिका सुनिश्चित कर दी जाए,ऐसा संभव ही नहीं है. यह अनुचित सोच ही होगी.अपने हाथ-पैर हिलाकर(कर्मठता से)मुसीबतों का डटकर  सामना करके,मन से सुदृढ़ और आत्मविश्वासी होकर,संघर्ष करना और चुनौतियों को स्वीकार कर जोखिम उठाना ही चिंता को दूर करने में  कारगर उपाय हैं.                     
- डा.अंजु लता सिंह
 दिल्ली
चिंता का इलाज सिर्फ प्रार्थना, नहीं हो सकता है।चिंता अकेले नहीं आती वरन् अपने साथ रोग, व्यथा,परेशानी, तनाव अन्य विकार साथ लाती है। 
    जीवन में सभी को किसी न किसी रूप में, चिंता रहती ही है।परंतु क्या हम चिंता दूर करने के लिए, सिर्फ प्रार्थना करेंगे तो चिंता दूर हो जायेगी?
     वस्तुतः चिंता का कोई इलाज नहीं है, प्रार्थना तो कतई नहीं है।वरन् चिंता तो चिता जैसी होती है। जो व्यक्ति को घुन की तरह, खा जाती है।
      चिंता अगर समस्या है तो उसका समाधान भी है।उदाहरणार्थ रोग की चिंता है तो उपचार करवाना,गरीबी की चिंता है तो परिश्रम करके पैसा कमाना ,नौकरी की चिंता है तो शिक्षित होकर प्रतिस्पर्धा में, प्रतिभागी बनना आदि।
      प्रभू भी प्रार्थना स्वीकार करते समय ,देखते हैं कि निदान के लिए, व्यक्ति ने क्या और कैसे प्रयत्न किया है।  
- डॉ. मधुकर राव लारोकर 
नागपुर - महाराष्ट्र
जहाँ तक आज की चर्चा में प्रश्न है कि क्या चिंता का इलाज सिर्फ प्रार्थना है तो मेरा विचार है की सिर्फ चिंता करने से कुछ नहीं होता इसी प्रकार सिर्फ प्रार्थना करने से ही कुछ नहीं होता हाँ इतना जरूर है तो ईश्वर संबल अवश्य प्रदान करते है परंतु यदि हम अपनी समस्याओं के समाधान के लिए पुरुषार्थ नहीं करेंगे उनके हल के लिए कुछ तरीके नहीं खोजेगें या आपस में विचार-विमर्श नहीं करेंगे और कोई रास्ता नहीं निकालेंगे तो सिर्फ चिंता करने से समस्या और बढ़ेगी और संकट गहराएगा प्रार्थना करना अच्छी बात है पूजा पाठ करना अच्छी बात है इससे मन को शांति और मनोबल मिलता है परंतु यदि आप समस्याओं से घिरे हैं तो यह भी सर्वविदित सत्य है  कि ऐसे समय में मन प्रार्थना और पूजा पाठ में भी नहीं लगता और जब पूजा पाठ प्रार्थना सच्चे मन से नहीं की जा रही हो या ध्यान लगाकर न की जा रही हो तो वह निष्फल ही रहती है ऐसा संत महात्मा और शास्त्र भी कहते हैं जिंदगी मे चिंता की  अवस्था तभी पैदा होती है जब व्यक्ति किसी न किसी समस्या से घिर जाता है और बिना पुरुषार्थ किये किसी भी समस्या का हल निकालना बड़ा मुश्किल है इसलिए केवल प्रार्थना करने से चिंता का हल नहीं हो सकता प्रार्थना के साथ साथ हमें समस्या के हल के लिए प्रयास करना चाहिए पुरुषार्थ करना चाहिए विचार-विमर्श करके कोई न कोई रास्ता निकालना चाहिए और प्रार्थना भी करनी चाहिए कि हे प्रभु मेरी समस्या का हल आप जल्दी से जल्दी प्रदान करें और मुझे सद्बुद्धि दें कि मैं इस समस्या को जल्द ही हल कर सकूँ।
- प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
कहते हैं चिंता, चिता की तरह होती है, याने शरीर को जलाने का काम करती है। यह कहना औरों को सहज और सरल लगता हो, पीड़ित के लिए इससे उबरना या बेपरवाह होना बहुत कठिन होता है। शायद  बहुत कम ही ऐसे होंगे जो चिंता से बेपरवाह होते होंगे। चिंता , वैसे काल्पनिक होती है और भययुक्त एक धारणा होती है जो मन- मस्तिष्क में घर बनाकर बेधती रहती है। ऐसे समय में सच कहा है,भगवान पर ही आस और विश्वास टिका होता है। इसीलिए चिंता के बीच प्रार्थना और भक्ति बहुत सहारा बनती है। वह प्रार्थना को आखिरी उपाय और इलाज समझता है। अतः चिंता का इलाज सिर्फ प्रार्थना है, यह सिर्फ पीड़ित की ही धारणा होती है।  हितैषी और परिजनों को चाहिए कि वे पूर्ण सहयोग, सद्भाव और समर्पण भावना से ऐसी विषम स्थिति में पीड़ित का पूरा साथ दे और ढाढ़स बंधाए। साथ ही संबंधित समस्या के निदान के सभी विकल्पों को लेकर धैर्यता पूर्वक प्रयास करे। प्रार्थना के बाद, पीड़ित के लिए उनके यही परिजन और हितैषी ही सहारे की उम्मीद बनते हैं।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 आज का वातावरण मे भागदौड़ की जिंदगी है तो चिंताए होना स्वाभाविक हो जाता है।लेकिन इन चिंताओं से मुक्ति के लिए ईश्वर के चरणों में कुछ पल बिताए यानी निश्चित रूप से प्रार्थना करें ।तब आप महसूस करेंगे एक दिव्य शक्ति का आगमन शरीर में हुआ। जिससे आपका आत्मविश्वास में बढ़ोतरी होगी ।सकारात्मक भाव से कार्य करने में रुचि भी होगी। आप हमेशा अपना बेस्ट देने का प्रयास करेंगे और यह श्रेयस्कर  माना जाएगा। 
खुद की बुराई भी ना करें और हमेशा अच्छी बातों को सोचे, बस आपकी चिंता दूर हो जाएगी।
शारीरिक गतिविधि ,सेहतमंद खाने ,नियमित नींद ,तनाव दूर करने के लिए योग व्यायाम से भी चिंता को कम करने में मदद मिलती है।
लेखक का विचार:- सिर्फ  प्रार्थना से चिंता मुक्त नहीं हो सकते है,  साथ-साथ आत्मविश्वास का होना बहुत जरूरी है। 
अगर आप आत्मविश्वास से भरे हुए हैं, तो किसी भी परिस्थिति में कुल रह सकते हैं ।यह तभी संभव है जब आप नियमित प्रार्थना ,योग, व्यायाम करते हैं ।तो आप चिंता मुक्त रहेंगे।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
चिंतित अवस्था में, मन को संबल प्रदान करने के लिए प्रार्थना बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है परन्तु सिर्फ प्रार्थना ही चिंता का इलाज नहीं है।
आज की भागती-दौड़ती जिन्दगी में कुछ लोगों के अन्दर तो उनकी बेलगाम कामनाओं की पूर्ति न होना चिंता को जन्म देता है, ऐसे लोगों की चिंताओं को तो प्रार्थना से भी कोई सहारा नहीं मिलता, क्योंकि उनकी चिंतायें तब उत्पन्न होती हैं जब वे बिना कोई कर्म किये जमीं पर रहकर आसमां में उड़ने के ख्याली पुलाव पकाते हुये स्वयं चिंता को निमंत्रण देते हैं। 
परन्तु अधिकांश यह देखा जाता है कि बहुत से लोग जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए चिंतित होते हैं। ये वे लोग होते हैं जो जीवन-पथ पर कदम-कदम पर संघर्ष करते हैं और इस संघर्ष में कभी-कभी पराजय का सामना भी करना पड़ता है। यही पराजय चिंता का कारण बनती है। 
निश्चित रूप से ऐसे समय में प्रार्थना मन को शक्ति और उर्जा प्रदान करती है। 
जब मनुष्य प्रार्थना से उत्पन्न इस शक्ति और उर्जा के सदुपयोग से समस्या का समाधान करके चिंता को समाप्त करने के लिए कर्म के धरातल पर परिश्रम करता है तभी प्रार्थना भी फलीभूत होती है और चिंता का निवारण होता है। 
इस प्रकार मेरे विचार से प्रार्थना और परिश्रम दोनों मिलकर किसी भी चिंता का इलाज हैं। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
कहा गया है चिन्ता चिता के समान होती है लेकिन मेरे ख्याल में चिंता चिता से भी कष्टदायक होती है क्योंकी चिता तो इन्सान को मरने के वाद जलाती है जवकि चिंता प्राणी को हर पल जलाती रहती है। 
पर चिंता क्यों होती है इसके कई कारण हैं  , अपने पर विश्वास नहीं होने से,  समय का सदपयोग नही करने से, किसी के  साथ  तुलना करने से, अतीत वा भविष्य को लेकर के  अपनी क्षमता से अधिक पाने  की इच्छा से अथवा वहुत से अन्य कार्य हैं जो हमें फालतू का सोचने पर मजबूर करते हैं वा हमारी चिन्ता का कारण वनते हैं। 
किन्तु हमें चिंता से हमेशा दूर रहना चाहिए ताकी हम जिन्दगी का हर लम्हा चैन से  वा लुत्फ भरा गुजार सकें। 
इसके लिए हमें चिन्तन की जरूरत है  हमें वर्तमान को लेकर चलना चाहिए अगर वर्तमान का सदपयोग किया जाए  तो हमारा अतीत और भविष्य भी सुधर जाएगा इसलिए कर्म करें फल अबश्य मिलेगा, कर्म हमारे हाथ में है फिर चिंता किस वात की। 
फिर भी अगर किसी कारणवश चिंता हो जाती है तो इसे दूर करने के बहूत से कार्य हैं जैसे अपने मन को कंटृोल में रखें, अपने पसंद के कार्य करें, पाजिटव लोगों  के साथ समय विताएं अपनी पसंद का  संगीत लगाकर डॉस करें, खुलकर हंसें, अपनी तुलना किसी के साथ मत करें अपने मन की वात अपने चेहते को सुनाएं, अपने आप पर भरोसा रखें कंयोकीं अपने आप को काविल वनाना अपने हाथ में होता है। 
कबीर जी ने सृच लिखा है, 
कस्तुरी कुंडल वसे मृग ढूंढे वन माही ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहि कहने का भाव यह है कि   हमें खुशी अपने आप से प्राप्त हो सकती है कहीं  भटकने की जरूरत नहीं जव हम निस्वार्थ  व मन को कंटृोल करके कोई भी कार्य करेंगे  हमेंअवश्य शान्ती मिलेगी। 
 इसके ऐलावा साघारण भोजन खाएं रोज कसरत करें
  अपनी पहुच्ं से वाहिर होकर कार्य न करें हमेशा पाजिटव रहें इससे वढ़ कर चिंता का कोई इलाज नहीं है  किसी ने सच कहा है दाल रोटी खाओ प्रभू के गुण गाओ 
हमेशा खुश मिजाज रहो,   
चिंता हमेशा दूर भागेगी। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आज की परिचर्चा के विषय से  क्या शब्द और प्रश्नवाचक चिन्ह हटा दें,तो यह वाक्य ही उत्तर बन जाता है इस प्रश्न का। चिंता एक मानसिक प्रक्रिया है, और प्रार्थना भी मानसिक प्रक्रिया है।
मानसिक समस्या का समाधान मानसिक उपचार से ही सहज संभव है। विभिन्न रसायनिक औषधियों के प्रयोग से विभिन्न हार्मोंस के स्राव आदि को नियंत्रित कर चिंता मुक्त करने की कोशिश, प्रार्थना के सामने बहुत बौनी है।
प्रार्थना से मन शांत होकर सकारात्मक उर्जा से भर जाता है। यह उर्जा मिलते ही व्यक्ति कर्म की ओर प्रेरित होता है,और यही वह समय होता है जबकि चिंता उड़नछू हो जाती है।प्रार्थना की शक्ति से चिंता ही नहीं कितनी ही मानसिक तथा शारीरिक समस्याएं हल हो जाती हैं। प्रार्थना पर हुए शोध बताते हैं कि इसके प्रभाव से भाग्यवादी लोग कर्मवादी हुए हैं। इसके सकारात्मक प्रभाव से चिंता जैसी समस्या पास भी नहीं फटकती।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर  - उत्तर प्रदेश
  चिंता चिता के समान है
जीवन जीने का अर्थ सकारात्मक दृष्टिकोण रखकर ही जिया जा सकता है और जीवन का आनंद भी इसी में है।
चिंता जीवन के हर स्तर पर हर आयु वर्ग में होती है इसे दृढ़ इच्छाशक्ति
आत्मविश्वास सबंल से ही जीत सकते हैं ईश्वरी प्रार्थना वंदना आत्मिक चेतना को मजबूती प्रदान करती है।
आपका आत्मिक मनोबल बढ़ता है
जिसके कारण सारी चिंताएं दूर होती हैं
साथ ही कर्म की प्रधानता है कर्म के बिना आप कुछ भी प्राप्त नहीं कर सकते चाहे वह किसी भी प्रकार की चिंता ही क्यों ना हो।
प्रार्थना से आत्मविश्वास आत्मिक शक्ति बढ़ती है जिससे सभी प्रकार की चिंताओं को दूर किया जा सकता है।
दृष्टि कोण भी सकारात्मक रखकर तभी आप चिंता मुक्त हो सकते हैं।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
         नहीं ,केवल प्रार्थना करने से कुछ नहीं होता ।किसी भी कार्य की पूर्णता के लिए उसके समाधान के लिए प्रयास करना जरूरी है। कोरी प्रार्थना करने से कुछ नहीं होगा। जैसा कि गीता में श्री कृष्ण ने कहां है,
" कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन "।
अर्थात कर्म करो फल की चिंता छोड़ दो । अगर कर्म ही नहीं करेंगे  तो निदान कैसे होगा? वही नितांत आवश्यक है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
           नहीं , चिंता का इलाज सिर्फ प्रार्थना नहीं है। प्रार्थना तो चिंता मुक्त हो कर ही किया जाता है। अक्सर प्रार्थना करते समय ही कई तरह की चिंताएं आ जाती है। वैसे कभी-कभी ये प्रयोग सफल भी हो जाता है।यदि की किसी तरह की क्षणिक चिंता होती है तो भगवान का नाम जाप करने से चिंता से ध्यान हट जाता है।
            चिंताएं कई तरह की होती है। कुछ चिंताएं क्षणिक चिंताएं होती हैं, कुछ स्थायी होती हैं, कुछ अस्थायी होती हैं। स्थाई चिंता तभी खत्म होती है जब वो कार्य पूरा हो जाता है या जिस समस्या के कारण वो चिंता आई है और वो समस्या खत्म हो जाती है।जैसे कोई  व्यक्ति संतान की कामना के लिए या नौकरी के लिए चिंतित है तो उसे मिलने से उसकी चिंता दूर होगी।यहाँ पर प्रार्थना करने से अगर उसकी प्रार्थना सुन ली जाती है तो प्रार्थना से चिंता दूर।लेकिन जो दूसरी तरह की चिंता है उसके लिए ध्यान योग ही इलाज है। आध्यात्मिक बातें ही उसका इलाज है।
            किसी को बीमारी के कारण चिंता है तो जब तक बीमारी खत्म नहीं होती चिंता भी खत्म नहीं होगी। एक चिंता से कई और तरह की चिंता उतपन्न होती जाएगी। दवा की चिंता समय की चिंता पैसे की चिंता और कई तरह की चिंताएं आ जायेगी। यहाँ पर यदि हम कहें कि प्रार्थना से चिंता दूर होगी तो शायद उचित नहीं होगा।       
             जो साधारण चिंता है उसे दूर करने का सीधा उपाय ध्यान को दूसरी दिशा में मोड़ देना या ले जाना ।इसके लिए अध्यात्म की तरफ जाना होगा। आध्यात्मिक बातें आध्यात्मिक पुस्तकें आध्यात्मिक ग्रंथ को पढ़ना और सुनना होगा। मित्रों के साथ विचार विमर्श करने आनन्द की बातें करने ,अच्छी जगहों पर भ्रमण करने से हमें चिंता से राहत मिल सकती है।
                   दोस्तों मित्रों से खुलकर बातें करने पर समस्या का समाधान भी मिल सकता है या कोई उनके द्वारा मदद मिल सकती है।जब समस्या खत्म तो चिंता खत्म।अगर नहीं भी होती है तो कुछ देर के लिए ही सही हम चिंता मुक्त तो अवश्य ही हो जायेंगे।
          दूसरी और सबसे अहम बात ये है कि जब तक हम इस संसार में हैं कोई न कोई चिंता हमेशा घिरे रहेगी।
सभी चिंताएं सिर्फ प्रार्थना से नहीं जाएंगी। कुछ समस्या के समाधान से जाएगी, कुछ अध्यात्म से,कुछ योग ध्यान से, कुछ मनोरंजन से,कुछ भ्रमण से,कुछ विचार विमर्श से, कुछ पठन-पाठन से और मन को दूसरी तरफ ले जाने से।
             अंत मैं यही कहूंगा कि चिंता करनी ही नहीं चाहिए क्योंकि चिंता से कुछ होता नहीं है और शरीर खराब होता है। जो होना है वही होगा। इसलिए नो चिंता। 
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - प.बंगाल
नहीं, चिन्ता का इलाज सिर्फ प्रार्थना ही नहीं है। आधुनिक जीवन शैली भागदौड़ वाली है।  चिंताएं तो रहती ही हैं।  सभी एक दूसरे को राय देते हैं ‘चिन्ता मत करो, सब ठीक होगा’।  किन्तु जिसके मन मस्तिष्क पर चिन्ता सवार हो जाती है यह तो वही जाने कि वह चिन्ता से कितना परेशान हो चुका है।  कभी-कभी लोग चिन्ता से मुक्ति के लिए दवाई का सहारा लेते हैं पर यह भी उचित नहीं है।  चिन्ता को दवा से दूर नहीं किया जा सकता।  यह भी स्वाभाविक है कि जिसके सिर पर चिन्ता सवार हो जाती है उसे अपना ईष्ट स्मरण हो आता है।  यहां तक कि नास्तिक भी किसी न किसी अदृश्य शक्ति की शरण में चले जाते हैं।  चिन्ता होते ही दिल की धड़कन अनियमित हो जाती है।  अगर आपको प्रार्थना करने से चिन्ता में कमी महसूस होती हो तो आप प्रार्थना करें।  उसमें कोई हर्ज नहीं है।  अपनी चिन्ता का हर किसी से जिक्र न करें।  जितने मुंह उतनी राय।  आपकी चिन्ता बढ़ सकती है।  आपको तो चिन्ता का कारण मालूम ही होता है।  आप यह सोचें कि उसका समाधान क्या हो सकता है?  फिर इस समाधान को धीरे-धीरे अपनायें।  अपने आत्मविश्वास को बढ़ाएं।  संभव हो तो कुछ ऐसा साहित्य पढ़ें जिससे आप सहज महसूस करें।  कभी-कभी हम एकदम परफेक्ट होने के चक्कर में चिंता से घिर जाते हैं। इस सोच से बाहर आयें।  अपना सबसे बेहतरीन परफार्मेंस दें। पर यह न सोचते रहें कि मैं सौ प्रतिशत नहीं कर पाया।  यही चिन्ता का कारण बन जाता है।  कभी-कभी आप अपनी चिन्ता का समाधान नहीं खोज पा रहे हों तो अपने किसी हमदर्द के साथ बांटें। आपको हल मिल सकता है।  चिन्ता से घिर जाने के बाद असामान्य व्यवहार न करें। खाना-पीना और नींद ठीक रखें।  थोड़ा मुश्किल हो सकता है पर असंभव नहीं।  यह भी मान लीजिए कि हर चिन्ता आपको नए-नए अनुभव सिखाती है।  चिन्ता का सामना करें, पीछे नहीं हटें।  चिन्ता का सीधा प्रभाव स्वास्थ्य पर पड़ता है जो सही नहीं है।  चिन्ता दूर करने के लिए मनपसंद कार्य करें, गीत सुनें, चित्रकारी करें जिससे तनाव कम हो।  चिन्ताओं को आश्रय न दें।  
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
चिंता एक ऐसी मानसिक बीमारी है जो आज के युग में हर मनुष्य को हैंl चिंता कभी भी वक्त के साथ खत्म नहीं होती है, या तो वह कम हो जाती है या वह बढ़ जाती हैl चिंता मनुष्य की सोच को कमजोर बनाती है जिससे अगर वह किसी  मुश्किल में पड़ जाता है तो आसपास अनेकों उपाय होने के बावजूद भी वह उस संकट का हल निकालने में विफल रह जाता है, और भगवान को याद करने लगता हैl भगवान को याद करना ऐसे कोई बुरी बात नहीं है, हर धर्म के लोग अपने-अपने भगवान को मानते हैं वह एक श्रद्धा है,  लेकिन भगवान पर ही निर्भर हो जाना यह बेवकूफी है। ऐसे में मनुष्य को चाहिए कि वह अपने  मुश्किलों को अपने  प्रियजनों के साथ साझा करें और मिलकर हल ढूंढने का प्रयत्न करेंl जिस प्रकार हम अपनी इच्छाओं की पूर्ति के लिए सकारात्मक सोच से मेहनत करते हैं उसी प्रकार हमें चिंता से मुक्त  होने के लिए हमें कर्म करना चाहिए ना की सिर्फ प्रार्थना करनी चाहिएl
- मीरा प्रकाश
 पटना - बिहार
"चिंता चिता समान"
जीवित मनुष्य को भी चिंता दीमक की तरह अंदर ही अंदर खोखला कर देती है। स्वयं के मन - मस्तिष्क पर ही जब हम नियंत्रण खो बैठते हैं ऐसी स्थिति में हमारे शरीर पर चिंता का आधिपत्य हो जाता है। 
बीते हुए कल को और आनेवाले कल पर हम इंसानों का कोई वश नहीं चलता । नियति की कठपुतली बन हम नाचने को विवश होते हैं , परंतु कर्म सदैव हमारे अधीन होता है । गीतोपदेश में कहा गया है - कर्मण्यधिकार स्ते मां फलेषु कदाचन।
अतः सदैव कर्मयोगी बनकर सतत प्रयासरत होकर एवं साधक रूप में साधना व प्रार्थना करते हुए हम चिंता नामक असुर को पराजित करने में सक्षम है।
- संगीता सहाय "अनुभूति"
रांची - झारखण्ड
चिंता व्यक्ति को जीते जी मार डालती है ये कहावत सौ प्रतिशत सत्य है। चिंता मुक्त रहने के लिए व्यक्ति जीवन भर उपाय खोजता रहता है चिंता मन का विकल्प है यह सबके लिए अलग अलग स्तर पर अपना प्रभाव रखती है अर्थात् जिस बात की चिंता एक व्यक्ति को होती है हो सकता है वही बात किसी दूसरे व्यक्ति को आनंद देती हो । किसी प्रकार के अभाव का होना यह मानसिक या शारीरिक दोनों प्रकार का हो सकता है जो चिंता का कारण है और चिंता को दूर करने के लिए अभाव पूर्ति ही एक मात्र उपाय है इसमें प्रार्थना भी एक श्रेष्ठ साधन है ये सदैव ध्यान रखना होगा कि प्रार्थना मनुष्य केवल उसी से करता है जो उसे उससे बलशाली लगता है और कभी कमजोर से प्रार्थना नहीं करता । दूसरे अपने अभाव की जहां से पूर्ति होने की व्यक्ति को संभावना होती है वही प्रार्थना करता है। भय और भूख दो ऐसी समस्या हैं जिनकी पूर्ति के लिये व्यक्ति प्रार्थना व संघर्ष करता रहता है शुरू में संघर्ष करता है और जब संघर्ष में सफलता प्राप्त नहीं होती तो प्रार्थना भी करता है आस्तिक प्रार्थना को सर्वोपरि मानते हैं और नास्तिक संघर्ष को । विचारणीय ये है कि एक मात्र मनुष्य को ही क्यों प्रार्थना की ज़रूरत पड़ती है जबकि प्रकृति में समस्त जीवधारी बिना चिंता के जीते हैं तो प्रार्थना भी नहीं करते मनुष्य चिंता युक्त जीवन जीते हैं इसलिए प्रार्थना करना भी ज़रूरी हो जाता है लेकिन ये कहना की चिंता का इलाज सिर्फ़ प्रार्थना है उचित नही क्योंकि मेडिकल साइंस ने ब्रेन की स्थितियों को जाँच और परख कर निष्कर्ष दिए हैं कि चिंता संबंधी विकार मानसिक बीमारियों का एक समूह है चिंता कोई रोग या बीमारी नहीं है, यह एक शारीरिक, मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्थिति है चिंता विकार का इलाज दवा, मनोचिकित्सा या संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी के साथ किया जा सकता है। 
प्रार्थना भी एक कारगर थेरेपी के रूप प्रयोग किये जाने वाला टूल है प्रार्थना को धार्मिक और आध्यात्मिक स्तर पर मुख्य टूल के रूप में स्वीकार किया जाते है । ज़्यादातर चिंता भविष्य के बारे में की जाती है चूँकि हम अतीत या भविष्य में ही जीते हैं तो चिंता होना भी स्वाभाविक है और प्रार्थना करना भी ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     चिंता एक शारीरिक और मानसिक  रोग हैं,  अपार धन सम्पदा रहने के उपरान्त भी, जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अपना व्यक्तित्व खो देता हैं और पतन की ओर अग्रसरित होते जाता हैं। चिता मरने के बाद जलायी जाती हैं, अपितु जीवन चिंता से ग्रसित होकर अस्पतालों में पहुँच जाता हैं? प्रायः देखने में आता हैं, कि अगर कोई व्यक्ति घबराहट, बुरे सपने देखता  बार-बार हाथ धोता, नींद न आना, हाथ-पैरों में पसीना बहते रहना, दिल की धड़कन तेज होना, समझिये चिंता ग्रस्त हैं, इसका इलाज एक ही हैं, प्रतिदिन प्रातः और रात्रि जीवन को एकाग्र कीजिये, चिंता मुक्त होने में प्रार्थना ही आश्वासन का सर्वश्रेष्ठ स्त्रोत हैं। योगाभ्यास, सूर्य नमस्कार, दोनों हाथ ऊपर कर सूर्य को जल अर्पित कीजिये, धार्मिक, साहित्य, समसामयिक रचनात्मक ग्रंथों का अध्ययन-अध्यापन-मनन-नमन कीजिये। प्राकृतिक तेलों से मालिश कीजिये, जिससे शारीरिक-मानसिकता को वृहद स्तर पर बल मिलेगा और चिंता मुक्त जीवन, जीवित अवस्था में पहुँचेगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट -मध्यप्रदेश
चिंता,  किसी खास समस्या के नहीं सुलझने पर उत्पन्न होती है। इसका अर्थ होता है कि व्यक्ति का प्रयास सही दिशा में नहीं है। तभी समस्या का खात्मा मुश्किल हो रहा है। 
लोग घबड़ाकर ईश्वर की शरण में जाते हैं। इस घबड़ाहट में वे सारे प्रयास से मुँह मोड़ लेते हैं। उन्हें मुक्ति का कोई साधन नहीं नजर आता है। इस तरह व्यक्ति की समस्या बड़ी होती जाती है।
उससे निज़ात पाने के लिए अपने प्रयत्नों की दिशा बदलने पर एकाग्रता बढ़ानी होगी। हल ढूँढने के लिए अपने शुभचिंतकों से सलाह-मशविरा करना चाहिए। ईश्वर पर विश्वास रखना कोई बुरी बात नहीं है, लेकिन ईश्वर भी तभी साथ देता है जब मानव खुद से प्रयत्नरत होता है।
'सोए हुए शेर के मुख में भोजन नहीं आ सकता '
आस्था और प्रार्थना करें परन्तु प्रयास न छोड़ें ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
चिंता कोई रोग या बीमारी नहीं है। यह एक शारीरिक मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक स्थिति है जिसके परिणाम स्वरूप हम शंकित व्यवहार करते हैं। चिंता विकार के माध्यम से अधिकांश लोग अवसाद में चले जाते हैं। इसके वजह से बेचैनी, नींद में परेशानी, वजन में बढ़ोतरी, भूख में गड़बड़ी आदि लक्षण दिखाई देने लगते हैं। 
चिता तो मुर्दे को जलाती है पर चिंता तो जीवित को ही मार देती है।
चिंता का इलाज प्रार्थना के साथ-साथ उसके निदान का प्रयास करना भी है। बिना प्रयास के किसी समस्या का समाधान संभव नहीं‌। चिंता विकार का इलाज मनोचिकित्सा या संज्ञानात्मक व्यवहार थेरेपी (Cognitive behavioral therapy) के साथ किया जा सकता है। चिंता मुक्त होने का  सबसे सरल और सही तरीका योग साधना है।
इसके साथ हीं सकारात्मक सोच बनाएं। नकारात्मक सोच से दूर रहें। अकेले में न बैठें, किसी न किसी काम में व्यस्त रहें। धार्मिक और संदेशप्रद पुस्तकें पढ़ें। आत्मविश्वास को बनाए रखें।
 इन विधियों को अपनाकर हम चिंता से मुक्त होने में सक्षम हो सकते हैं।
                           - सुनीता रानी राठौर 
                       ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
 "चिंता है तो चिंतन नहीं ।
चिंतन है तो चिंता नहीं।"
           मध्यस्थ दर्शन
 अर्थात समस्याएं समझ न होने के कारण आती है।  समस्या आने से चिंता होती है ।चिंता होना अर्थात समस्या होना । चिंतन होना अर्थात समाधान होना, समस्या से मुक्त होना। चिंतन समाधान के लिए की जाती है और चिंता समस्या आने से की जाती है। हर व्यक्ति अब मूल्यांकन कर सकता है कि चिंता अर्थात समस्या प्रार्थना से ठीक होता है कि जो समस्या के कारण चिंता है मन में ,उस चिंता को समझ कर अर्थात समस्या को समझ कर उसका समाधान ढूंढा जाना चाहिए कि ,प्रार्थना करना चाहिए ।हर इंसान समीक्षा कर सकता है।  पूर्वज से यही तो करते आ रहे हैं लेकिन इस संसार में प्रार्थना से समाधान नहीं मिला बल्कि सुरसा की तरह चहूँ ओर समस्या का जाल  फैला हुआ है।
  मनुष्य समस्या में जन्म ले रहा है समस्या में जी रहा है और समस्या में ही मरता हुआ इस संसार में दिखाई दे रहा है। वर्तमान में करुणा से बड़ा उदाहरण और क्या हो सकता है भयभीत होकर सभी इंसान जिंदा रहने के तौर तरीके ढूंढ रहे हैं। समस्या क्यों होती है इसके बारे में किसी को सोचने चिंतन करने की आवश्यकता नहीं है  बल्कि समस्या पैदा करने वाला वैज्ञानिकों का बोलबाला है। समर्थन करने वाले लोग इस संसार में भरे पड़े हैं इसलिए संसार भी समस्या से भरा पड़ा है। विज्ञान गलत नहीं है विज्ञान को दिशा देने वाले गलत है विज्ञान विकास के अर्थ में है ना कि विनाश के अर्थ में व्यक्ति ज्ञान को अभी तक समझ नहीं पाया है की विज्ञान की क्या उपयोगिता है। प्रार्थना का अर्थ है हाथ जोड़कर विनती करना नहीं न्याय धर्म सत्य को जीकर प्रमाणित करना ही ईश्वर की प्रार्थना है। इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता है। हाथ जोड़कर प्रार्थना करना सरल है लेकिन न्याय में जीना कठिन है। यही समस्या का जड़ है जो आडंबर प्रार्थना कर संतुष्ट होने की चेष्टा करते हैं उनका यही स्थिति बनता है कि नहीं मामा से काना मामा ही सही वाली कहावतें की भांति देखने को मिलता है। अंतिम में यही कहते बनता है कि प्रार्थना से चिंता दूर नहीं होता ज्ञान को न्याय धर्म सत्य के रूप में प्रमाणित करने से ही चिंता अर्थात समस्या दूर होगा यह अकाट्य सत्य है चिंतन करके देखो ,चिंतन से समाधान होती है। समस्या अर्थात चिंता नहीं। पता हर व्यक्ति को चिंता नहीं चिंतन करने की आवश्यकता है।  तभी चिंता से मुक्ति हो सकते हैं।
  - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
प्रार्थना  का  संबंध  आस्था  और  विश्वास  से  है । जैसे  डाॅक्टर  अपने  सभी  प्रयासों  के  बाद  अंत  हार  कर  ईश्वर  से  प्रार्थना  के  लिए  कहते  हैं ।  वही  स्थिति  चिंतित  व्यक्तियों  की  होती  है  । 
        प्रार्थना  के  साथ- साथ   धैर्य, सकारात्मक  सोच  और  समस्या  के  समाधान  हेतु  प्रयासरत  रहना  भी  अति  आवश्यक  है  ।  चिंताएं  लगी  रहती  हैं  । समस्याएं  है  तो  समाधान  भी  है,  कई  बार  समस्या  में  ही  समाधान  छुपा  रहता  है  । 
       समय  रुकता  नहीं  है  तो  समस्याएं  भी  नहीं  रुकती  । रात  के  पश्चात  सवेरा  होगा  ही  । 
      उचित  खान-पान, योग  और  ध्यान  से  चिंता  को  कम  किया  जा  सकता  है ।
       " यह  भी  चला  जाएगा " इस  वाक्य  को  मन  में  रखते  हुए  सूझ-बूझ  का  परिचय  देते  हुए  समस्या  के  समाधान  द्वारा  चिंता  को  बहुत  हद  तक  दूर  किया  जा  सकता  है ।
         - बसन्ती  पंवार 
         जोधपुर  - राजस्थान 
यह एक मानसिक तनाव है और यह मनुष्य की स्वभाविक  प्रवृति है! बच्चों को पढाई की चिंता ,माता पिता की अपनी चिंता, सरकार की अनी चिंता! मेरा कहना है चिंता अनेक प्रकार लिये होती है! कितु विषम परिस्थिती में या चिंता में जो नकारात्मक सोच है उससे भानू के लिये  एक बार तो सम भगवान को अवश्य याद करते हैं! पता  है कि हमे स्वयं इससे बचने का रास्ता ढूढ़ना होगा फिर भी ईश्वर की प्रार्थना से हमे शक्ति और आत्मबल मिलता है और हमे पूर्ण विश्वास  होता है कि सब अच्छा  हो जायेगा! ईश्वर की रक्षा के साथ  
नवीन ऊर्जा और सकारात्मक सोच के साथ कार्य करून लगळे हैं! ईश्वर की प्रार्थना से हमारा डर जो होता है वा भाग जाता है! 
में नहीं कहती अंधऋद्धा खरो किंतु  ईश्वर की प्रार्थना दवा  का काम तो करती है! 
आज कोरोना काल में हम  संघर्ष कर रहे हैं! समस्त विश्व इससे बचने के लिए  हर संभव प्रयत्न कर रहा है! तरह तरह के उपचार, दर्यांत, वैक्सीन बनाने का प्रयत्न कर रहा है ताकि तुरंत उपचार हो पूरी तरह से कर्मशील है कितनी बड़ी चिंता और चुनौती है! पर ईश्वर से भी प्रार्थना कर रहा है! 
चूंकि उसकी शक्ती बहुत बडी ताकत है !
अतःचिंता का इलाज कर्म के साथ ईश्वर की अपार ऋद्धा भी है! 
- चंद्रिका व्यास
 मुंबई - महाराष्ट्र
मनुष्य जीवन धूप -छाँव है ।सुख और दुःख दोनों ही जिन्दगी के साथी हैं । जब जीवन हँसी -खुशी बीता तब ठीक -ठीक और जब दुःख की शुरुआत हुई ,बस चिन्ता का जन्म हो जाता है ।लेकिन हर कोई इसे दूर करने का भरसक प्रयास करता है ,और यही उचित है कि हम तरह -तरह की जानकारियों के माध्यम से अपनी चिंता का निदान खोजें अथक परिश्रम कर हम उसे दूर भी कर लेते हैं ।लेकिन कभी -कभी ऐसी  परिस्थिती आजाती है कि उसे दूर करना असंभव लगता है  उस समय ईश्वर की प्रार्थना ही एक सहारा नजर आता है ॥लेकिन प्रर्थना से परेशानी हल हो जाएगी और चिंता दूर होगी ऐसा जरुरी नहीं है ।यह एक इत्फाक होता है  । चिंता के समय हमें धैर्य , स्वयं पर विश्वास और उचित मार्गदर्शन की जरुरत होती है । 
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
चिंता - चिता तक ले जाती है। यह सर्वविदित है। लेकिन चिंता करने से किसी भी समस्या का हल नहीं होता है। समस्या का समाधान शांत चित्त से ही ढूंढा जा सकता हैं। बजाए परिस्थितियों से घबराकर हार मानने के उद्यम करने और अपने आत्मविश्वास को बटोर कर फिर से रास्ता ढूंढने से ही मिलता है। उस समय ईश्वरीय सहारा ही हमें मनोबल देता है। कुछ चीजें और हालात हमारे बस में नहीं होते। उस समय सिर्फ प्रार्थना और ध्यान लगाने से हम अपने मन में उठने वाले का सामना शांति से खोज सकते हैं।जब हमारा मन अशांत होता है सभी रास्ते बंद नजर आते हैं तो प्रभु से की गई सच्ची प्रार्थना से चिंता से मुक्त हो सकते हैं।
- सीमा मोंगा
रोहिणी -  दिल्ली
बेकार की चिंता करते हो 
बस इतना सा फलसफा है 
फ़िक्र में होते हैं तो खुद जलते हैं 
बेफिक्र होते हैं तो दुनियाँ जलती है l 
भुजाओं में जब बल नहीं, 
तलवार की चिंता करते हो l 
तिलों में तुम्हारे तेल नहीं, 
तुम धार की चिंता करते हो ll 
         आज की चर्चा के प्रश्न का उत्तर उक्त पंक्तियों में ही छिपा है, आवश्यकता है अपने आप को मथने की l 
चिंता-विकार, अत्यधिक बेचैनी मनोविकार का रूप लेकर हमारा अंत कर देता है l 
            प्रार्थना तो केवल हमें अनुशासित जीवन मार्ग की तरफ गतिशील करती है, चलना तो हमें स्वयं को ही पड़ेगा क्योंकि चिंता का इलाज़ सिर्फ प्रार्थना नहीं है l जब इस मार्ग पर चलेंगे तो आत्मविश्वास का झरना प्रस्फुटित होगा वह हमें चिंता मुक्त कर देगा l प्रार्थना के अतिरिक्त चिंता मुक्त होने के लिए अपने आप को आश्वस्त करें कि "होगा वही जो राम रचि राखा l "प्रार्थना के साथ ही साथ ---
1. चित्त की शांति के लिए ध्यान करें, जीवन के प्रत्येक पल को आनंद एवं हँसी ख़ुशी जीये ll
2. विचार करें कि आप दूसरों के लिए क्या कर सकते हैं l 
3. स्रष्टि के अस्थाई स्वभाव को समझें l 
4. अतीत की ऐसी स्थिति को याद करें जब आप चिंता से उभर पाये थे l 
5. अपने आसपास सकारात्मक संगत रखें l 
6. आत्मविश्वास नहीं खोये, यही मनुष्य का सबल पक्ष है, आत्मविश्वास है, तो चिंता, भय आपके जीवन में नहीं होंगे l 
7. आप अपनी हॉबी को क्रिएटिव बनाकर चिंता को किनारे कर सकते हो l 
      ईश्वर के अस्तित्त्व और प्रार्थना के बारे में अमेरिका के राष्ट्रपति वाल्टेयर ने कहा कि --
If god is does not exit. 
It would be necessory to 
Invent him. परमात्मा सर्वत्र विद्यमान है, जिस रूप में जिस दृष्टि से उसे आप देखेंगे वैसा ही पाएंगे l आप देखेंगे और वह आपके साथ होगा l 
                 चलते चलते -----
बेकार की चिंता करते हो, 
धीरज धरें संघर्ष करें l 
पीड़ा भागे हमसे दूर, 
कुदरत का है यही दस्तूर ll 
       - डॉ. छाया शर्मा 
      अजमेर -  राजस्थान
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
 परिवार ,समाज और कार्यस्थल पर कभी-कभी कुछ ऐसी घटनाएं या वैचारिक मतभेद हो जाते हैं जिसमें मन स्थिति को आशांति मिलती है।
 यही स्थिति हमारी चिंता कहलाती है  ।
                      कहते हैं कि - चिंता चिता के समान होती है ।
अगर हम किसी विषय पर चिंता करके दुखी होते रहते हैं और कोई समाधान नहीं सोचते । तो चिंता ही हमें परेशान करती  रहती है। और यह परेशानी एक दिन  हमें रोगी बना कर रख देती हैं।
 चिंता के कारण आज- कल हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज अल्जाइमर (भूलने की बीमारी) आदि पता नहीं कौन-कौन सी बीमारी घर करने लगी हैं।
 चिंता करने से कुछ नहीं होता , बल्कि चिंता को दूर करने का उपाय सोचना चाहिए ।
 हां ईश्वर से चिंता दूर करने की प्रार्थना भी करनी चाहिए।
प्रार्थना करते हैं तो मन शांत हो जाता है जैसे किसी बच्चे को अपने पिता के साथ रहते हैं कोई भय नहीं रहता ,।
उसी प्रकार अपने इष्ट देवता से प्रार्थना करें कि -हे ईश्वर ! 
    मेरी सारी चिंताएं आपकी है क्योंकि आपको मेरा ध्यान हैं तथा आप  ही मेरी चिंताओं को दूर  करेंगे  ,तो मन में शांति अवश्य मिलेगी ।और ईश्वर  प्रार्थना से हमें मानसिक शांति मिलेगी तथा हम चिंता  रूपी समस्या का समाधान करने में सफल अवश्य होंगे।

दिल में दया, उदारता,
 मन  में  प्रेम अपार ।
         हिय  में धैर्य  ,वीरता,
         भर    देना    करतार।
- रंजना हरित 
            बिजनौर -  उत्तर प्रदेश
       गीता के उपदेश में कहा गया है कि क्यों व्यर्थ में चिंता करते हो? जो बना है वह टूटेगा और जो जन्मा है वह मरेगा। जो पाया यहीं से पाया जो खोया यहीं पे खोया। खाली हाथ आए थे खाली ही जाना है। जो हुआ अच्छा हुआ जो होगा अच्छा ही होगा और वर्तमान चल रहा है‌।
        महाज्ञानियों के अनुसार गीता के उपदेश से बड़ा ज्ञान नहीं है। किन्तु इसके बावजूद चिंता होती है। जिस पर कोई वश नहीं चलता। क्योंकि चिंता एक मानसिक पीड़ादायक रोग है। जो मनोबल घटने से उत्पन्न होता है।
       मानसिक रोग का उपचार आलोपेथिक, होम्योपैथिक, आयुर्विज्ञान एवं मनोवैज्ञानिक पद्धतियों के रूप में संभव है। जिसमें ईश्वरीय प्रार्थना भी रोगी का एक अद्वितीय उपचार है। जिससे मानसिक स्थिरता, मानसिक संतुलन और मनोबल बढ़ता है और चिंता दूर हो जाती है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर


" मेरी दृष्टि में " चिंता से बचने के लिए प्रार्थना बहुत बड़ी कारगर सिद्ध होती है । प्रार्थना से ध्यान को स्थिर किया जाता है । इसलिए प्रार्थना का बहुत महत्व है ।
                                      - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान




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  1. चिंता चिता के समान होती है इसलिए चिंता ना कर के चिंतन करना चाहिए चिंतन करने से बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है। चिंतन और मनन करने से मन में अनेक प्रकार के भाव उत्पन्न होते हैं। जो मन को शांत करने में और मन के अनेक ज्ञानेंद्रियों को वश में करने के शक्ति को जागृत करते हैं जिसे कहते हैं कुंडली को जागृत करना। और यह तभी संभव हो हो सकता है योग योग से बड़े-बड़े महात्मा विद्वान अपनी कुंडली को जागृत करके मन को बस में कर लेते हैं वे चिंतन करते हैं, चिंतन भी प्रकार से प्रभु की भक्ति भावना को स्पष्ट रूप से दर्शाता है औरआस्था पर विश्वास करने के लिए प्रेरित करता है। इसलिए व्यक्ति को चिंता न करके चिंतन करना चाहिए और कर्म पर विश्वास करना चाहिए। कर्म ही सबसे बड़ी पूजा है । प्रार्थना नहीं।
    -अन्नपूर्णा मालवीय सुभाषिनी प्रयागराज

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  2. चिंता चिता के समान होती है। पर अकेली प्रार्थना करने से काम नहीं चलता। यह पता करना जरूरी है की चिंता की वजह क्या है? जो भी वजह हो उसका समाधान ढूंढ कर प्रयास करना चाहिए ताकि चिंता को कम या खत्म किया जा सके। ईश्वर से प्रार्थना करने में कोई बुराई नहीं है किंतु अकेली प्रार्थना नहीं उसके साथ उपाय जरूरी है। प्रार्थना से मानसिक शांति मिलती है और इंसान को वह सहारा प्रतीत होने लगती है।

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