आरक्षण में क्रीमी लेयर किन - किन को मानना चाहिए ?

आरक्षण का लाभ जिन को मिलना चाहिए । उन्हें नहीं मिल रहा है । इसके लिए सुप्रीम कोर्ट भी चिंतित है । राज्य सरकारों को कुछ अघिकार दिये जा रहे हैं । दलित आरक्षण में क्रीमी लेयर तैयार हो गई है । जो आरक्षण का लाभ अपने तक सीमित रखें हुये हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
आरक्षण वस्तुत: जो समाज या जो वर्ग अति पिछड़ा हुआ है और जिसकी *आय * बहुत निम्न है जो आयकर छूट से भी परे हो वैसे लोग आते हैं। आरक्षण में क्रीमी लेयर उन लोगों को बोल सकते हैं जिनकी आय अधिक होती है और वह आयकर देने योग्य भी होते हैं परन्तु वह हेरा फेरी कर अपनी आय कम दिखा कर आकर्षण का लाभ उठाते हैं। आरक्षण के असली हकदार को ये लाभ न मिलकर ओछी बुद्धि और मानसिकता वाले व्यक्ति ग़लत नीतियां अपना कर अपना हक इस आरक्षण पर जमा कर मज़ा ले रहें हैं।आरक्षण हमारे समाज में व्याप्त एक कुप्रथा के समान होती जा रही है ।आज आरक्षण किसी अन्य देश में नहीं है यह सिर्फ हमारे देश में हीं लागू है ।आरक्षण के कारण कितनी योग्यता प्राप्त करने के बावजूद भी वह व्यक्ति पिछड़ जाता है और कम योग्यता प्राप्त व्यक्ति उस पर काबिज हो जाता है,जो अत्यंत दुखदाई है।आरक्षण हेतु एक सीमा निर्धारित की गई थी जो कि *आय* होती थी परंतु अब *आय* अधिक रहते हुए भी व्यक्ति आरक्षण का लाभ उठा रहा है । आरक्षण  समाप्त हो जाए तो बेहतर होगा लेकिन इसकी संभावना नहीं दिखती।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
क्रीमी लेयर O. B. C. से संबंधित है l 1979 में मंडल का मिशन में प्रस्ताव था उसके प्रतिवेदन के आधार पर 1989 में वी. पी. सिंह सरकार ने 27% आरक्षण स्वीकार किया l 16 नवंबर 1992 को सुप्रीम कोर्ट ने निर्णय दिया कि ये आरक्षण विधि मान्य है लेकिन शर्त रहेगी जो O. B. C. क्रीमी लेयर में आते हैं उन्हें इस लाभ से वंचित रखा जायेगा अर्थात सामाजिक रूप से एडवांस O. B. C.  वाले इसमें वंचित रहेंगे l लेकिन कोर्ट ने इसे परिभाषित नहीं किया l अतः इस संदर्भ में समिति बनी, सिफारिश की कि इनकम और वेल्स के आधार पर सम्पन्न लोगों को क्रीमी लेयर माना जाये जिसमें अभ्यार्थी के माता -पिता  की वार्षिक आय शामिल की जाती है, अभ्यार्थी की नहीं l वर्तमान में यह सीमा आठ लाख रूपये निर्धारित की गई है l 
दूसरा प्रश्न यह उठता है कि अलग अलग राज्यों में अलग अलग कास्ट O. B. C.  में शामिल हैं किन्हें क्रीमी लेयर में माना जायेगा और किन्हें नहीं l फिर S. C., S. T. में यह लागू नहीं होता केवल O. B. C.  में ही लागू होता है l सुप्रीम कोर्ट ने विचाराधीनवाद में बहस इस बात पर चल रही है कि प्रमोशन में जब O. B. C.  के अमीर लोगों को भी क्रीमी लेयर के सिद्धांत पर 27% आरक्षण लाभ से वंचित किया (समता समिति के वाद के अनुसार )तो S. C., S. T. के लोगों को पदोन्नति में 
आरक्षण से वंचित क्यों नहीं किया जा रहा है l 
O. B. C. में आनेवाली जातियों का आर्थिक आधार पर बँटवारा किया गया है l जातिगत बँटवारा नहीं l ये भिन्नता कैसे? 
           चलते चलते ----
1. अंगूठा मांग लेना एकलव्य की वीरता से कहीं द्रोणाचार्य की मानसिक दुर्बलता दर्शाता है l 
2. बिना परिश्रम अव्वल आना, योग्य होने का ढोंग, अपनी दुर्बलता छिपाकर दूसरों का अधिकार हनन सदियों से बदस्तूर जारी है l 
विडंबना तो देखिये अंगूठे आज भी कट रहे हैं और द्रोणाचार्य ने दुर्बलता को अब भी क़ानून बना रखा है l 
मत बांटो देश को जाती धर्म के आधार पर 
         - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
क्रीमी लेयर  शब्द का इस्तेमाल मंडल आयोग के प्रावधानों के मुताबिक किया जाता है, और इसका सीधा मतलव ओबीसी वर्ग के बीच संपन लोगों से हैओबीसी समूह के वो  उम्मीँदवार क्रीमी लेयर से माने जाते हैं, जिनके परिवार की सलाना आमदन  आठ लाख या उससे कम होती है। 
इसका सीधा मतलब है की ओबीसी के  क्रीमी लेयर को  आरक्षण का लाभ नहीं मिलता, लेकिन एससी, एसटी की क्रीमी लेयर वालों को यह लाभ मिल रहा है।  
जबकी  सुप्रीम कोर्ट ने २०१८में कहा था अनुसुचित जाती अथवा अनुसुचित जनजाति के क्रीमी लोगों को आरक्षण नहीं दिया जा सकता। 
जवकि केन्द्र की नरेंन्द्र मोदी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को अपील की है की  एस सी एस टी समुदाय के क्रीमी लेयर को आरक्षण के लाभ से बाहर रखने के अपने आदेश पर  पुनाविचार के लिए सात सदस्यीय सविधान पीठ के पास भेजे।  
उम्मीद है  शीघ्र ही इसमें सुधार होगा वा  यह ओबीसी   क्रीमी लेयर को भी इसका लाभ मिलेगा। 
मेरे ख्याल में क्रीमी लेयर में जातपात नहीं होनी  चाहिए  और यह  सभी समुदाय के क्रीमी लेयर को मिलना चाहिए। सही लिखा है, 
आरक्षण गर मिट जाए, तो कंकड़ पहाड़ बन सकता है, हक मिले काबिल को तो तिल का ताड़ बन सकता है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भारत की पुरातन जाति व्यवस्था और छुआछूत जैसी  कुप्रथाओं से देश में आरक्षण व्यवस्था की उत्पत्ति हुई। अतः सामाजिक और आर्थिक समानता को दृष्टिगत रखते हुए ओबीसी, एससी, एस टी वर्ग के लिए आरक्षण की व्यवस्था संविधान के अंतर्गत रखी गई। आरक्षण में क्रीमी लेयर की शुरुआत 1993 से हुई। इसके अंतर्गत इस वर्ग के लोगों में भी ऐसे लोग जो अपनी जातियों में सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से मजबूत हैं यानी जिनकी वार्षिक आय एक लाख से बढ़कर 12 लाख तक हो चुकी है; न्यायालय की दृष्टि में सांकेतिक रूप से यह क्रीमी लेयर यानी मलाईदार तबका हैं। इनको आरक्षण का लाभ नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में नहीं दिया जाएगा।
        इस क्रीमी लेयर के अंतर्गत निम्न लिखित लोग आते हैं---- नंबर 1 संवैधानिक पद वाले व्यक्ति यथा राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति उच्च न्यायाधीश, मुख्य निर्वाचन आयुक्त, संघ एवं राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्य। 
नंबर दो केंद्र एवं राज्य सेवा के ए और बी ग्रुप के अधिकारी, बीमा कंपनियों के अधिकारी ,यूनिवर्सिटी, बैंक अधिकारी ,।
नंबर 3 तीनों सेनाओं में सबसे ऊपर रैंक वाले लोग।
   नंबर 4 शहरी क्षेत्रों में आवश्यकता से अधिक भवन भूमि कृषि, भूमि वाले लोग। नंबर पांच बड़े उद्योग व्यापार में लगे हुए लोग।
 नंबर 6 डॉक्टर, इंजीनियर अधिवक्ता, इत्यादि साथ ही बड़े लेखक भी क्रीमी लेयर के अंतर्गत आते हैं।
- डॉ रेखा सक्सेना
मुरादाबाद- उत्तर प्रदेश
 जहांँ तक यह प्रश्न है की क्रीमी लेयर में किस-किस को मानना चाहिए तो इस पर मेरा विचार है की आर्थिक रूप से मजबूत ऐसे सभी व्यक्तियों को परिवारों को जिनकी सालाना आमदनी 1500000 रुपए से ऊपर है क्रीमी लेयर में माना जाना चाहिए क्योंकि इस समय महंगाई का दौर है बच्चों की शिक्षा स्वास्थ्य एवं शादी विवाह जैसी जिम्मेदारियां बहुत खर्चीली जिम्मेदारियां हैं सभी परिवारों में कोई ना कोई बीमारी से ग्रसित है और आए दिन काफी खर्च उस पर भी होता रहता है तो वर्तमान परिस्थितियों को देखते हुए 1500000 रुपए सालाना की आमदनी बहुत ज्यादा अच्छी स्थिति मैं नहीं मानी जा सकती ऐसे परिवार जिनमें कम से कम तीन या चार बच्चे और परिवार के मुखिया के माता पिता सम्मिलित है उनके लिए यह धन बहुत बड़ा धन नहीं है अतः कम से कम यह सीमा ₹1500000 से ऊपर ही रखी जानी चाहिए इससे कम सालाना आर्थिक आय वाले परिवारों को क्रीमी लेयर में माना जाना चाहिए 
- प्रमोद कुमार  प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
यह प्रश्न राजनीति से प्रेरित है इस पर अधिक कुछ कहना बुद्धिमता नहीं है।
फिर भी हम पहले यह बताना चाहते हैं:- क्या होता है क्रीमी लेयर।यह शब्द का प्रयोग मंडल आयोग के प्रावधानों के अनुसार जो लोग इस समय  मतलब यह की ओबीसी वर्ग के बीच संपन्न लोग को क्रीमी लेयर में आने वाले  को आरक्षण के लाभ से वंचित रखा गया है ।
संपन्न लोग यानि जिनके परिवार की सालाना आय ₹8 लाख हो।
एससी/ एसटी का क्रीमी लेयर ओबीसी के क्रीमी लेयर मैं अंतर है। 
क्यों की एससी एसटी के समर्थक का कहना है, हम लोग सामाजिक आर्थिक और ऐतिहासिक रूप से वंचित रहे हैं ।हमें समाज से बाहर रहने के लिए मजबूर किया गया है। मेरे खिलाफ अन्याय का भाव अब भी समाज में बरकरार है।
 जबकि ओबीसी  के पास भूमि है, साधन है, शिक्षा है।
 भारत के संविधान में अनुसूचित जाति और जनजाति को एक वर्ग के तौर पर माना गया है।
लेखक का विचार:- 70 साल से आरक्षण का बोझ  भारतीय समाज के लोग ढोह  रहे हैं। 
बाबा साहब अंबेडकर सिर्फ 10 साल के लिए संविधान में सुझाव दिए थे ।लेकिन वोट की राजनीति के कारण अब तक इसे ढोह रहे हैं।
आरक्षण की राजनीति छोड़कर हम भारतीय हैं पर विचार करें।
 अगर देश को प्रगति पथ पर ले जाना है, तो किसी भी जाति या धर्म के हो ,अगर वह टैलेंट है उन्हें आगे बढ़ने का मौका देना चाहिए, चाहे उच्च जाति या अनुसूचित जाति या कोई भी धर्म के भी क्यों ना हो पहले हम यह सोचे हम भारतीय है।
- विजेंयद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
क्रीमी लेयर’ शब्द अन्य पिछड़ा वर्ग के बेहतर आर्थिक स्थिति वाले एवं शिक्षित समूहों के सन्दर्भ में प्रयोग किया जाता है, और आर्थिक आधार पर उनको क्रीमी लेयर में रखते हुए सरकार द्वारा आरक्षित वर्ग को दी जाने वाली विशेष सुविधाओं का पात्र नहीं माना जाता। 
अन्य पिछड़ा वर्गों (ओबीसी) के लिये क्रीमी लेयर के प्राविधान लागू हैं, लेकिन अनुसूचित जाति एवं जनजाति को इससे दूर रखा गया है। 
वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ग में अमीर-गरीब की खाई बहुत बड़ी हो चुकी है। सामान्यत: आरक्षित जातियों में भी आर्थिक रूप से सक्षम एक बहुत बड़ा वर्ग क्रीमी लेयर की श्रेणी में रखे जाने योग्य है। आर्थिक सक्षमता के कारण सामाजिक तौर पर भी इस वर्ग से भेदभाव नहीं किया जाता। फिर ऐसे सम्पन्न लोग, चाहे किसी भी वर्ग के हों, आरक्षण का लेकर वास्तविक पात्रों के हितों पर डाका डालते हैं। 
इसलिए मेरे विचार से आर्थिक रूप से सक्षम प्रत्येक व्यक्ति अथवा समूह को आरक्षण में क्रीमी लेयर मानना चाहिए। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
आरक्षण में क्रीमीलेयर किसे माने? बहुत ज्वलंत और विचारणीय विषय है। क्रीमीलेयर अन्य पिछड़ा वर्ग की जाति के लिए ही अभी तक लागू है इसके अंतर्गत वह लोग शामिल हैं जिनकी वार्षिक आय आठ लाख रुपए है। इसे ऐसा समझें कि यदि किसी पिछड़ी जाति के घर की वार्षिक आय आठ लाख रुपए या अधिक है तो उसे पिछड़ी जाति के आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा। अब यह सीमा बारह से पंद्रह लाख करने की  चर्चा भी सुनी जा रही है।
क्रीमीलेयर के लिए भूमि स्वामित्व को भी आधार माना गया है। इसमें दस हेक्टेएर भूमि ,चार हेक्टेयर सिंचित भूमि की सीमा है। क्रीमीलेयर वह केटेगरी हुई जिसे नौकरी में 27 प्रतिशत आरक्षण का लाभ नहीं मिलेगा।
यह क्रीमीलेयर व्यवस्था अनुसूचित जाति के लिए नहीं है। उसमें कितनी भी आमदनी हो आरक्षण का लाभ मिलेगा ही।यह तो रही सरकारी व्यवस्था की बात।अब आज का विषय आरक्षण किनको क्रीमीलेयर माना जाना चाहिए। इसमें उन परिवारों को जिनमें आरक्षण का लाभ एक बार मिल चुका है, क्रीमीलेयर माना जाना चाहिए और इसमें जाति की केटेगरी को समाप्त करना चाहिए। आरक्षण आर्थिक आधार पर मिलना चाहिए।बस इतना ही हैं जाएं तो स्थिति बहुत परिवर्तित हो सकती है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
              आरक्षण में क्रीमी लेयर उन सभी लोगों को मानना चाहिए जो जो कर देते हैं। उन सभी लोगों को मानना चाहिए जो कर तो नहीं देते पर उनके पास अपार संपति है। क्रीमी लेयर उन लोगों को ही मानना चाहिए जिनके पास बंगला है घर है गाड़ी है। क्रीमी लेयर उन्हें भी मानना चाहिये जिनके पास खेती लायक पूरी जमीन है। आरक्षण में  क्रीमी लेयर उनको भी मानना चाहिए जिनके परिवार में कई -कई सरकारी नौकरी में है।
            आरक्षण में क्रीमी लेयर उन सभी को मानना चाहिए जो हर दृष्टि कोण से सक्षम हो।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - प. बंगाल
जब भी आरक्षण पर परिर्चचा होती है ,क्रीमी लेयर शब्द का प्रयोग होता है ।क्रीमी लेयर शब्द हमारे ऊच्चन्यायलय की देन है ।
क्रीमी लेयर में आने वाले पिछड़े वर्ग के कुछ लोग आरक्षण के दायरे से बाहर हो जाते हैं । इस पर युवाओं के बीच   संघर्ष हुआ जिसकी वजह से एक कमेटी का गठन हुआ जिसमें निश्चित किया गया किसको -किसको क्रीमी  लेयर माना जाय जो न्याय संगत 
हो । वो निमन्न लिखित है ---
1. पिछड़े वर्ग के प्रतिष्ठित लोगों को क्रीमी लेयर में रखा गया क्योंकि ये आर्थिक रुप से सक्षम थे ।
2.जिनके माता -पिता की आय आठ लाख या उससे ज्यादा थी 
3. सेना के तीनों घटकों के कर्नल से ऊपर आसीन लोगों के परिवार  को ।
4.पब्लिक सेक्टर में तीन साल के Incom Tax के आधार पर लोगों को चुना गया ।
5. जो पचास साल से आरक्षण से लाभ उठा रहे थे ,उनकी पारी समाप्त की गयी ।
6. कमेटी ने पिछड़् वर्ग को तीन भीगों में बाँटा ।प्रथम वर्ग क्रीमी लेयर में आये ।
 तिसरे वर्ग को आरक्षण की प्राथमिकता दी गयी । सामाजिक न्याय के लिए यह जरुरी था ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
आरक्षण में क्रीमी लेयर किन-किन को माना जाए इस पर अनेक चर्चाएं होती रही हैं और कानून बने हैं।  भारत का संविधान लिखते समय डाॅ. भीमराव अम्बेडकर ने पिछड़े लोगों को आरक्षण के जरिए समाज की मुख्यधारा में लाने के लिए 10 वर्ष की समय सीमा तय की थी। पर राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के चलते यह बांध टूट चुका है।  डाॅ. अम्बेडकर ने भी इतनी दूर की कभी न सोची होगी। आरक्षण प्राप्त के एक अभिजात्य वर्ग में सांसद, विधायक, प्रशासनिक अधिकारी, प्रोफेसर, इंजीनियर, डाॅक्टर व उच्च पदों पर आसीन कर्मचारी हैं जो कई पीढ़ियों से अपना हक जमाये बैठे हैं। बड़़े-बड़े नेता जो आरक्षण के दायरे में आये हुए हैं वे इतने समृद्धिशाली हैं कि उनकी सात पुश्तें कोई काम न करें तो भी आराम से जीवन बिता सकती हैं। आरक्षण का लालच इतना अधिक हो गया है कि लोग अन्तरजातीय विवाह करके आरक्षण का लाभ उठाने में व्यस्त हैं। आरक्षण में क्रीमी लेयर में ये सभी आने चाहिएं क्योंकि आरक्षण का मूल उद्देश्य भी वास्तविक गरीब और पिछड़े दलित लोगों के उत्थान के लिए था।  शिक्षा प्राप्ति में भी आरक्षण केवल फीस तक सीमित होना चाहिए।  नम्बरों में रियायत दिया जाना किसी अन्याय से कम नहीं है।  मैरिट के आधार पर उच्च शिक्षा होनी चाहिए अन्यथा आरक्षण के बल पर कम नम्बरों में ही प्रवेश पा जाने वाले विद्यार्थियों से क्या उम्मीद लगाई जा सकती है? बहरहाल जो आर्थिक रूप से सक्षम होने के दायरे में आते हैं उन्हें हर क्षेत्र में क्रीमी लेयर में मानना चाहिए।  यदि ऐसा न हुआ तो क्रीमी लेयर हमेशा ही आरक्षण का लाभ उठाती रहेगी और वास्तविक गरीब और पिछड़े दलित उसी स्थिति में रहेंगे।
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली 
आरक्षण एक ऐसा काला नाग है जिसने वर्षों से हमारे समाज मैं अपना ज़हर फैला रखा है .अयोग्य व्यक्तियों का चयन और प्रतिभावान व्यक्तियों केसाथ अन्याय इसके दुष्परिणाम हैं .
इस मैं क्रीमी लेयर मैं वो सपन्न परिवार आते हैं जो पूर्ण रूप से साधन सपन्न होते हैं और जो आरक्षण का लाभ उठानेमैं प्रथम होते हैं क्यूंकि वे आरक्षित वर्ग से होते हैं
वास्तव मैं आरक्षण के समस्त लाभ सब आरक्षित परिवारों तक नहीं पहुँच पाते विशेषकर जो अति ज़रूरतमंद हों
.आश्चर्य की बात यह है कीआरक्षण की जो प्रथा निम्न वर्ग को सम्मान दिलाने के लिए शुरू की गयी थी आजराजनीति को चमकाने और समाज मैं भेदभाव उत्पन्न करने के लिए उपयोग की जाने लगी है
संपूर्ण विश्व मैं केवल भारत ही ऐसा एकमात्र देश है जिसमें आरक्षण लागू है व इसको शीघ्रताशीघ्र समाप्त करने की आवश्यकता है
- नंदिता बाली
सोलन - हिमाचल प्रदेश
समाज में फैल रहे बिष दंश रूपी आरक्षण में क्रीमी लेयर मानने के लिए कुछ मानक तय किए गए हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि अमुक व्यक्ति आरक्षण का पात्र है और अमुक व्यक्ति पात्र नहीं है । इसे ठीक से समझने के लिए हमें क्रीमी लेयर की अवधारणा को समझना चाहिए  ।
दरअसल क्रीमी लेयर किसी समूह विशेष के उस हिस्से को कहते हैं जो अपने समूह के अन्य लोगों की अपेक्षा सामाजिक तथा आर्थिक रूप से सशक्त होते हैं । भारत में इसकी परिभाषा काफी विस्तृत है।
इसमें मुख्यतः राष्ट्रपति, उप-राष्ट्रपति, सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट के न्यायाधीश, मुख्य चुनाव आयुक्त और कैग जैसे संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों को शामिल किया जाता है।
ज्ञात है कि क्रीमी लेयर की अवधारणा सर्वप्रथम इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दी गई थी। यह सर्वोच्च न्यायालय की 9 सदस्यीय पीठ द्वारा 16 नवंबर, 1992 को दिया गया एक ऐतिहासिक फैसला था।
इंद्रा साहनी बनाम भारत सरकार मामले में सर्वोच्च न्यायलय ने मंडल आयोग की रिपोर्ट के आधार पर अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) को 27 प्रतिशत आरक्षण देने के सरकार के कदम को बरकरार रखा। परंतु साथ ही यह निर्णय भी दिया कि अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के क्रीमी लेयर या सामाजिक रूप से सशक्त हिस्से को पिछड़े वर्ग में शामिल नहीं किया जाना चाहिये।
न्यायालय की 9 सदस्यीय पीठ ने कहा था कि किसी वर्ग विशेष में क्रीमी लेयर की पहचान करने के लिये ‘आर्थिक मापदंड’ को एक संकेत के रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
साथ ही न्यायालय ने केंद्र सरकार को आय और संपत्ति के संबंध में कुछ मापदंड निर्धारित करने के निर्देश भी दिये थे।
वर्ष 1993 में क्रीमी लेयर की अधिकतम सीमा 1 लाख रुपए तय की गई जिसके बाद उसे वर्ष 2004 में बढ़ाकर 2.5 लाख रुपए, वर्ष 2008 में बढ़ाकर 4.5 लाख रुपए, वर्ष 2013 में बढ़ाकर 6 लाख रुपए और 2017 में बढ़ाकर 8 लाख रुपए कर दिया गया।
8 लाख से बढ़ाकर 12 लाख हो सकती है क्रीमी लेयर की सीमा
क्रीमी लेयर के तौर पर 8 लाख रुपये की मौजूदा आय सीमा को बढ़ाकर 12 लाख रुपये किए जाने का प्रस्ताव है। इसका मतलब होगा कि अगर किसी परिवार की सालाना आय 12 लाख रुपये से ज्यादा होगी तब उसके सदस्य ओबीसी आरक्षण के हकदार नहीं होंगे। क्रीमी लेयर की सीमा से अधिक आय वालों को ओबीसी के तहत सरकारी नौकरियों और शिक्षा में मिलने वाले 27 प्रतिशत आरक्षण की सीमा से बाहर रखा जाता है। 
अभी क्रीमी लेयर के लिए सैलरी, कृषि आय नहीं गिनी जाती
फिलहाल क्रीमी लेयर को 'अन्य स्रोत से आय' के आधार पर तय किया जाता है। इसमें 'सैलरी' और 'कृषि से आय' को नहीं जोड़ा जाता है। यह व्यवस्था 1993 से ही चली आ रही है। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय का प्रस्ताव अगर स्वीकार हुआ तो 3 दशकों से चली आ रही व्यवस्था में बहुत बड़ा बदलाव हो जाएगा।
वैसे क्रीमी लेयर अवधारणा को अविलंब लागू किया जाना चाहिए क्योंकि इसके बिना आरक्षण के पात्र अपने हक़ से वंचित रह जाते हैं ।
-डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
     देश आजाद हुआ, आर्थिक और विकास की ओर ध्यानाकर्षण हुआ, जहाँ पिछड़े वर्ग को वृहद स्तर पर विभिन्न श्रेणियों में विभक्त करने की योजनाबद्ध तरीके से अंतिम रुप दिया गया। आर्थिक स्थिति का आंकलन  करते हुए 27 प्रतिशत आरक्षण अन्य पिछड़ा वर्गीकरण में शासकीय सेवाओं, शिक्षण संस्थानों में माना गया,  लेकिन जिनकी वार्षिक आय 8 लाख रुपये से अधिक हैं, उन्हें सम्मिलित नहीं किया गया। वैसे क्रीमी लेयर का शाब्दिक अर्थ हैं "मलाईदार तबका" इस लेयर के माध्यम से अन्य पिछड़ा वर्ग में आने वाली जातियों का 
आर्थिक आधार पर बंटवारा किया जाता हैं। क्रीमी लेयर की सीमा 1993 से प्रारंभ हुआ, जो शनैः-शनै: वार्षिक आय के आधार पर बढ़ोत्तरी की जाती रही हैं। संवैधानिक पदाधिकारियों, केन्द्रीय-राज्य में ए-ब ग्रुप के अधिकारी, इंजीनियर, ड़ाँक्टर, वकील , कलाकार, सेना में कर्नल  , उद्योगपतियों,  शहरी क्षेत्रों में जिन के पास भवन तथा अनेकों भूमियाँ इन्हें क्रीमी लेयर की सीमा से दूर रखा गया। इनके परिवार जनों के सदस्यों को आरक्षण का लाभ नहीं दिया जायेगा।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी के लिए 27% आरक्षण है लेकिन परिवार की वार्षिक आय क्रीमी लेयर के दायरे में ना आती हो। पहले सालाना वार्षिक आय ₹600000 थी जिसे बढ़ाकर 800000 कर दिया गया। वर्ष 1993 में इसकी सीमा ₹100000 थी। अब तक इसे संशोधन कर तीन बार बढ़ाया जा चुका है। वर्ष 2004 में  आय सीमा ढाई लाख रुपए बढ़ाई गई। 2008 में इसे बढ़ाकर 4:30 लाख कर दिया गया है, जबकि वर्ष 2013 में 600000 और वर्ष 2017 में इसे बढ़ाकर ₹800000 कर दिया गया है।
अनुसूचित जाति और जनजाति को सरकारी प्रमोशन में आरक्षण के मामले में अमीर लोगों को क्रीमी लेयर के सिद्धांत के तहत आरक्षण के लाभ से वंचित रखा जाता है। उसी तरह एससी एसटी के अमीर लोगों को प्रमोशन में आरक्षण के लाभ से वंचित क्यों नहीं किया जाता है इसके लिए देश की सर्वोच्च न्यायालय के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान पीठ ने अपनी टिप्पणी में कहा है की नौकरी की शुरुआत में अगर कोई व्यक्ति आरक्षण का लाभ लेकर राज्य के मुख्य सचिव बन जाता है तो क्या यह तर्कसंगत होगा उसके बच्चों को पिछड़ा वर्ग नौकरी में प्रमोशन में आरक्षण दिया जाए और जिसकी और जिससे परिणामी वरिष्ठता भी मिलती हो। सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद यह जानना जरूरी है की क्रीमी लेयर का लाभ किन को दिया जाए। क्रीमी लेयर में आने के बाद पिछड़ा वर्ग के लोग आरक्षण के दायरे से बाहर आ जाते हैं। क्रीमी लेयर का शाब्दिक अर्थ मलाईदार तब का होता है इसलिए के माध्यम से अन्य पिछड़ा वर्ग में आने वाली जातियों का आर्थिक आधार पर बंटवारा किया जाता है। यानी कि जो व्यक्ति इस लेयर के अधीन आता है उसको सरकारी नौकरियों और शिक्षण संस्थानों में ओबीसी केटेगरी में आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाता है।
- अंकिता सिन्हा साहित्यकार
 जमशेदपुर - झारखंड
मेरा यह मानना है कि आरक्षण समाज के अति पिछड़े हुए वर्गो निम्न वर्गों जिनकी सालाना आय बहुत ही कम है और जिन्हें सामाजिक स्तर पर भी समानता नहीं है इसके विपरीत वह वर्ग जो आर्थिक ,सामाजिक हर तरह से सशक्त है ,संपन्न है चाहे वह अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित, जनजाति, पिछड़ा वर्ग से संबंधित है क्रीमी लेयर में आना चाहिए । SC/ ST  संपन्न वर्ग ना तो आर्थिक मार झेलता है और ना ही सामाजिक ,जातिगत अन्याय भी उसके साथ नहीं होता, अपनी संपन्न सामर्थ्य अनुसार वह सुविधाएं जुटा लेता है। आय  स्त्रोत  संपन्न होता है । आर्थिक पक्ष यदि मजबूत है तो इस वर्ग के लिए आरक्षण का कोई अर्थ नहीं । बड़े बड़े जमींदार, फैक्ट्री मालिक, बागवान ,उद्योग मालिक जो संपन्न, सशक्त है  क्रीमी लेयर में मानना चाहिए । अतःएस. सी. /एस. टी. / ओबीसी का वह सशक्त संपन्न वर्ग जो आर्थिक आधार पर धनाढ्य है, समाज में प्रतिष्ठित है, क्रीमी लेयर मानना चाहिए
- शीला सिंह
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
       आरक्षण और क्रीम दो अलग-अलग पहलु हैं। क्योंकि जब शब्द आरक्षण लगा दिया जाता है तो क्रीम का प्रश्न ही नहीं उठता।
       क्योंकि योग्यता बूट पालिश करती रह जाती है और अयोग्यता सर्वोच्च पदों पर आसीन होकर देश का बेड़ा गर्क करती रहती है‌।
       चूंकि आरक्षण की दौड़ में यदि एक को दौड़ाया जाए तो वही जीतेगा। देश स्वतंत्रता का 74वां वर्ष मना रहा है और आज आरक्षण का शब्द शोभनीय नहीं है।
       अतः स्वतंत्र भारत को स्वतंत्रता से विकास करने में बाधक न बनें। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी योग्यता दिखाने का प्रयास करना चाहिए और आरक्षण की व्यवस्था समाप्त करनी चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
क्रीमी लेयर आरक्षित श्रेणी की सूची में
आने वाले संपन्न लोग जिनको की  आरक्षण  का लाभ नहीं दिया जाता है दूसरी ओर आरक्षित सूची में अनुसूचित जाति जनजाति जिनको कि आरक्षण का लाभ दिया जाता है।
इनको दो आधारों में बांट दिया गया है।
 क्रीमी लेयर के अंतर्गत प्रशासनिक
 सेवा में पदस्थ अधिकारी  जो कि संपन्न है और राजनीति में जो बड़े राजनेता है संपन्न है वह सब क्रीमी लेयर के अंतर्गत  आते हैं ।
इनको आरक्षण का लाभ नहीं दिया जाना चाहिए और जो आर्थिक रूप से
कमजोर है आरक्षित श्रेणी में आते हैं उनको आरक्षण का लाभ मिलना चाहिए । इसके लिए सरकार ने राज्य की शक्तियों की सीमा निर्धारित की है
इसमें 50% कोटा की छत बरकरार की गई है इसमें लिंग आधार पर भी कोटा का आरक्षण है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
          जिनकी आर्थिक स्थिति अच्छी हो, जो अपनी निम्नतम स्थिति से ऊपर उठ चुके हों अर्थात बीपीएल में नहीं आते हो एवं जो अपना सामाजिक जीवन संपन्नता से जी रहे हों , बिना किसी अभाव के। जिनके पास आय के पर्याप्त साधन हों ।मेरे ख्याल से ऐसे लोगों को क्रीमी लेयर मानना चाहिए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " आरक्षण का लाभ क्रीमी लेयर तक सीमित हो गया है । इस का लाभ गरीब दलित को नहीं मिल रहा है । गरीब दलितों को लाभ पहुचने के लिए आरक्षण पर कुछ अघिकार राज्य सरकारों को मिलने जा रहे हैं । इससे उम्मीद हो रही हैं कि गरीब दलितों तक आरक्षण का लाभ पहुंचेगा।
                                                 - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान



Comments

  1. इस संबंध में मैं एक ही बात कहना चाहूंगी कि जो वास्तव में गरीब स्थिति में है जो इनकम टैक्स नहीं देते और जो आर्थिक दृष्टि से संपन्न है उन्हें आरक्षण नहीं मिलना चाहिए चाहे वह किसी भी जाति के हो क्रीमी लेयर को केवल पिछड़ा वर्ग तक सीमित ना रखा जाए एससी एसटी वर्ग में भी संपन्न वर्ग से है और वे उसका भरपूर फायदा उठा रहे हैं ।कभी वह पिछड़े थे पर आज स्थिति बदल गई है। हर जगह हर चीज में आरक्षण ठीक नहीं। इससे प्रतिभाएं आगे नहीं बढ़ पाती।

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    1. मैं आपकी बात से सहमत हूं

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  2. मैं इस बात से बिल्कुल भी सहमत नहीं हूं क्या आरक्षण खत्म होना चाहिए क्योंकि अगर आरक्षण खत्म हो गया तो जो गरीब तबके के लोग हैं वह दवे के दबे ही रह जाएंगे वह सक्षम लोगों से कंपटीशन नहीं कर पाएंगे लेकिन जो लोग सक्षम हो चुके हैं उनको आरक्षण की जरूरत नहीं है जो सच में आरक्षण का हकदार है उसको आरक्षण मिलना चाहिए चाहे वह किसी भी जाति वर्ग का हो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता और जो लोग सक्षम हो चुके हैं उनके लिए यह खत्म कर देना चाहिए ताकि दूसरे लोगों को मौका मिल सके भारत ने देश को बर्बाद नहीं किया बल्कि आरक्षण नहीं देश की दशा सुधारी है और उन लोगों को हक दिलाया है जिनको कभी कुछ समझा ही नहीं इसलिए देश की बर्बादी आरक्षण नहीं देश के गद्दार राजनेता और देश में फैला भ्रष्टाचार और गंदी नीतियां है

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