वरिष्ट लघुकथाकार उर्मिला कौल की स्मृति में लघुकथा उत्सव

उर्मिला कौल का जन्म 25 फरवरी 1931 में अम्बाला ( हरियाणा ) में हुआ है । इन की 16 से अधिक हिन्दी - अग्रेजी की पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । इनके इन्द्रधनुष कैसा होता है , स्वान्तः सुखाय आदि लघुकथा संग्रह हैं । इन का स्वर्गवास 15 अगस्त 2014 को हुआ है ।
जैमिनी अकादमी द्वारा उर्मिला कौल की स्मृति में "  लघुकथा उत्सव " का आयोजन किया गया है । जिसमें 45 से अधिक लघुकथाकारों ने भाग लिया है । परन्तु नियम के अनुसार 21 को ही सम्मानित किया जा रहा है : -
                                   खामोशी                               
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राम लाल और लक्ष्मी से खुशी सँभाले नहीं सँभल रही थी क्योकि आज वो अपने बेटे,बहु, पोते और पोती के पास रहने शहर जा रहे हैं ।उन के बेटे दीपक ने कई बार कहा, "आप ने मुझे पढ़ाने के लिए बहुत मेहनत की है और अब सेवा करने की मेरी बारी है ।मेरे पास चार कमरे का फ्लैट और सब सुख सुविधाएं हैं ।आप मेरे पास आकर आराम से रहो ।
       गाड़ी में बैठ कर राम लाल ने अतीत को याद करते हुए लक्ष्मी से कहा, "तुम्हे याद है-----जब दीपक छोटा था तो घंटों मुझे घोड़ा बना कर मेरे उपर झूले लेता था ।छोटी बहन रेनू को चिढ़ाता था कि यह तो मेरा घोड़ा है तुम अम्मा को घोड़ा बनाओ ।घर में कितनी रौनक रहती थी ।बेटी पढ़ लिख कर विदेश चलीं गई और बेटा पढ़ लिख कर शहर आ गया ।घर में पसर गई "खामोशी "।लक्ष्मी ने कहा,अब पिछली बातें भूल जाओ,अब परिवार में जाकर बच्चों का बचपन फिर से जी लेंगे 
        शहर में बेटा, बहु सुबह 9बजे काम पर जाते और रात को 8बजे घर लौटते ।बच्चे भी साथ ही चले जाते ।काम करने वाली बाई सुबह का नाश्ता और बाकी काम करके चली जाती ।दोपहर को चार बजे जब बच्चे वापस आते ,तब बाई आकर दोपहर का खाना  बना देती ।दुबारा रात को फिर आ जाती ।
      बच्चे आकर खाना खाते और लैपटॉप पर वीडियो गेमज खेलने लग जाते ।दादा,दादी से  हां जी" नहीं जी"से ज्यादा बात ना होती ।रात को जब बेटा, बहु घर आते तो रिलेक्स होने के लिए वो भी वटसअप और फेसबुक पर लगे रहते ।शनिवार और रविवार को फिर कभी कोई पार्टीऔर कभी खरीदारी ।
         राम लाल और लक्ष्मी को यह शहरी जीवन शैली रास ना आई। जिस खामोशी से भाग कर, कुछ सपने लेकर बेटे के पास आए थे,यहां तो उस से भी गहन खामोशी थी।गाँव में तो पशु-पक्षियों की आवाज़ें हमारी खामोशी को भेदतीं ।कभी कभार आता जाता कोई ना कोई बात कर लेता था लेकिन यहां-------इस गहन खामोशी में रहना मुश्किल है ।
         सुबह उठते ही राम लाल ने दीपक से कहा, "बेटा, हमारी वापसी की टिकट करवा दो ।बहुत दिन हो गए आए हुए, सभी को मिल भी लिये ।फिर आ जाएंगे ।तुम भी बच्चों को लेकर छुट्टियों में गाँव आना ।
             राम लाल और लक्ष्मी अब गाँव जाते हुए खुश थे कयोंकि गहन खामोशी छोड़ आये थे 
   - कैलाश ठाकुर 
                   नंगल टाउनशिप - पंजाब                  
                            वफ़ादारी की कीमत                          
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"हाँ ठीक है,वे पिताजी की सेवा में तब से थे जब मेरा जन्म भी नहीं हुआ था।माना कि उन दिनों पिताजी ने व्यवसाय प्रारम्भ ही किया था और उनकी आर्थिक स्थिति सामान्य ही थी, तभी से वे पूरी सेवा भाव से ईमानदारी पूर्वक काम करते रहे लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं कि उन्होंने हम पर कोई एहसान किया हो।"दादा के उठावने से लौटते हुए उसने अपने मित्र से कहा।
"लेकिन भाई,आजकल इतनी ईमानदारी और वफादारी लोगों में बची कहाँ है।उन्होंने अपनी पूरी जिन्दगी तुम्हारे परिवार के लिए खपा दी।और अब तो तूम लोगों की गिनती करोड़पतियों में होती है।"
"हाँ,तो क्या हुआ!हम भी उनको बराबर तनख्वाह देते थे बल्कि यहाँ तक हमने किया कि जब वे मेहनत का काम करने में असमर्थ हो गए तो  उनके लायक हल्का काम दे दिया।आखिर हम भी व्यवसायी हैं ,फिर भी उनपर दया की"
"लेकिन अमित तुमने उनकी तनख्वाह भी तो कम कर दी थी।तभी से वे बहुत दुखी हो गए थे,भीतर ही भीतर टूट से गए थे।अपने आखिरी समय पर भी तुमको बहुत याद कर रहे थे लेकिन तुम उनसे मिलने नहीं पहुँचे।तुमको तो उन्होंने अपने बच्चे जैसा ही रखा था।तुमसे उनको बहुत स्नेह भी था।लोगों का कहना है कि तुम उनसे मिलने इसलिए नहीं पहुँचे कि कहीं वे तुमसे उधार न मांग ले।"
"अरे नहीं सब बकवास है।हमने उनको बीमार होने के बाद भी नौकरी से नहीं निकाला और तीन महीने उनके बीमार रहने पर भी पाँच-पाँच हजार की सहायता देते रहे।चलो छोड़ो,अब चलता हूँ।उनके गुजर जाने का मुझे भी बहुत दुख है।हमारे परिवार के सदस्य जैसे ही थे।आखिर उनकी गोद में खेलकर ही तो हम बड़े हुए थे।"
इतना कहकर जब वह वापस हुआ तो  सोच रहा था कि मित्र राहुल की बात में कितनी सच्चाई है क्योंकि दादा की गंभीर बीमारी  को उसने बहुत ही हल्के में लिया था  ,कल भी जब खबर आई कि वे अपने आखिरी समय में मिलना चाहते है तब भी उनसे मिलना इसीलिए टालता रहा कि कहीं दादा बीमारी के नाम पर वफादारी की कीमत न वसूल ले।
              -  डॉ प्रदीप उपाध्याय                 
                          देवास - मध्यप्रदेश                        
                                   सुरक्षा                             
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महामारी ने अपना विकराल रूप ले लिया था।सरकार को मजबूरन पूर्ण तालाबंदी करनी पड़ी।
     इस बार सख्ती भी ज्यादा थी।लोग समझने को तैयार ही नहीं थे कि थोड़ी सी असावधानी से मौत को दावत दी जा सकती है।
    दो वरिष्ठ नागरिक मुंह को रूमाल से ढ़ंक कर दूध लेने डेयरी जा रहे थे।नेहरू चौक पर आफिसर ने उन्हें रोका-"देखिये ये रूमाल नहीं चलेंगे।जाईये पास के मेडिकल स्टोर से मास्क लाकर पहनिये।वरना अगली बार जुर्माना लग जायेगा।दोनों बुजुर्गों ने मास्क खरीदा और चुपचाप चले गये।
    एक अन्य कर्मचारी ने एक दिहाड़ी मजदूर को पकड़ा था।उस गरीब ने एक पुराना गमछा लपेटा हुआ था।वे लोग सौ रूपये फाईन माँग रहे थे।मजदूर की जेब में मात्र  पचास रूपये थे।वह धिधिया रहा था।
     वे लोग मानने को तैयार न थे।तभी पास से एक सुरक्षा कर्मी गुजरा।उसने भी गमछा ही लपेटा हुआ था।उसे देखकर मजदूर ने ईशारा किया तो अधिकारी ने गाली देते हुए कहा-"ये तो हम सब की सुरक्षा के लिये धूम रहे है।तुम लोग क्यों मरने के लिये घर से निकलते हो?"
    मजदूर की आँखों में विवशता के आँसू थे।वह कहना चाह रहा था कि साहब घर से निकलेंगे नहीं, काम नहीं करेंगे तो पूरा परिवार मर जायेगा।
    वह कुछ कह न सका। चुपचाप हाथ जोड़कर जाने देने के लिये विनंती करने लगा।
                               -   महेश राजा                               
                          महासमुंद - छतीसगढ़                       
                              पेड़ लगाओ                            
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राघव जी शहर के प्रतिष्ठित व्यापारी थे और सामाजिक कार्यों में भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते रहते थे। शहर में कई सामाजिक संस्थाओं के वह पदाधिकारी भी थे। ऐसी ही एक संस्था ने ‘पेड़ लगाओ पर्यावरण बचाओ’ के अभियान के तहत पेड़ लगाने का प्रस्ताव पारित किया। राघव जी ने अपने सहयोगियों के साथ सड़क के किनारे-किनारे वृक्ष लगाने के कार्य का जिम्मा संभाल लिया और काम में जी जान से जुट गए। 
उनके दोस्त श्रवण ने यूं ही सवाल किया, “राघव यार, मुझे एक बात समझ नहीं आई कि दूसरे सभी लोग कालोनियों और पार्कों में पेड़ लगाने में लगे हैं, और तुम सड़कों के किनारे पेड़ लगाने में जुटे हो, जबकि सड़कों के किनारे पेड़ लगाना तो सरकार का काम है।” 
“यार पेड़ लगाने का काम तो सभी का साझा होता है, सभी को लगाने चाहिए। इसमें सभी को लाभ मिलता है। इसमें क्या सोचना कि सरकार की तरफ से ही लगने चाहिए। सरकार और जनता अलग-अलग थोड़े ही हैं। दोनों को मिलजुल कर कार्य करना चाहिए, तभी तो देश का भविष्य उज्जवल होगा और हमारी आने वाली पीढ़ियों का भी,” राघव जी ने कहा, “वैसे एक निजी कारण भी है सड़क के किनारे-किनारे पेड़ लगाने का।“ 
“वह क्या?” उनका दोस्त बोला। 
“एक बार मैं सैर से वापस आ रहा था, तो मैंने एक व्यक्ति को कार चलाते हुए गलत दिशा से यानी मेरे सामने से लहराता हुआ आते देखा। उसे देखते ही मैं समझ गया कि उसने खूब शराब पी रखी है। उसने कार मेरे ऊपर चढ़ा ही देनी थी यदि मैं तुरंत छलांग लगाकर एक पेड़ की ओट में न हो गया होता। कार एकदम से उस पेड़ से टकराई और रुक गई। उस दिन पेड़ की वजह से ही मेरी जान बच गई थी वरना...।”
 - विजय कुमार
 अम्बाला छावनी - हरियाणा
                          पंद्रह अगस्त का जश्न                        
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राष्ट्रीय पर्व पन्द्रह अगस्त पर  नारंगी , सफेद , हरे गुब्बारों , झंडों  से सजा पंडाल देश - प्रेम , देश - भक्ति के जोश जज्बा आजादी  को जता रहा था । 
 आजादी के भव्य  समारोह  में  नेता जी के द्वारा ध्वाजारोहण  हो जाने के बाद भाषण दे के  और फोटो  खिंचवा के  जनता जनार्दन के साथ नेता जी अपने  हाथ  में मिठाई के डिब्बे  लिए  अपनी - अपनी राह पर चल दिए  ।
वहीं खड़ी दस साल की भिखारिन ने  पंडाल से  तिरंगें झंडे  ,  नारंगी , सफेद , हरे गुब्बारों को उतार कर अपनी चुन्नी को बिछाकर  उन्हें सुशोभित कर के बेचने के लिए  हाथ में झंडा उठाकर  आवाज देने लगी , 
    बाबू जी ! उन वीर  , शहीद सपूतों  के नाम पर तिरंगा खरीद लो जिन्होंने भारत माँ की सेवा की थी   । देश भक्ति से भरे नेता जी ने पाँच सौ रुपये का नोट थमा  के सारे  झंडे खरीद के देश-प्रेम  को मुखरित कर दिया।
  भिखारिन नोट को देख के अपनी भूख से आजादी पाने का जश्न अपने छोटे भाई के साथ मनाने के लिए तिरंगे की तरह झूमने लगी । 
                             - डॉ . मंजु गुप्ता                              
                             मुंबई - महाराष्ट्र                             
संवेदना विहीन 
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सर्दी, खांसी और बुखार के मामुली लक्षण से परेशान हो वह मोहल्ले के क्लिनिक में पहुंचा । उसका चेक-अप करने के बाद डॉक्टर ने उसे तत्काल कोरोना वाइरस की जांच के लिए शासन द्वारा निर्धारित फीवर  क्लिनिक की ओर भेज दिया । वहां उसकी जांच-पड़ताल कर रिपोर्ट आने तक कुछ दवाईयां तीन दिन लेने को कहा साथ ही उसका नाम, पता, मोबाइल नंबर सब जानकारी लेकर आराम करने व काढ़ा लेते रहने की सलाह दे घर की ओर भेज दिया । 
वह घर लौट आया । 
तीन दिन बाद  उसकी रिपोर्ट पाॅजिटिव आने से    उसके घर एम्बुलेंस घन-घनाते हुए आ गई । पूरे घर को सील करते हुए । परिवार के सदस्यों को एम्बुलेंस में बैठने का निर्देश दिया । 
घर पर ताला लगाते हुए उसने देखा आस-पड़ोस के लोग जो कभी सुख-दुख में साझीदार थे आज   घर के झरोखों से कातर निगाहों से झांक रहे थे ।
कुछ दिनों में वे सब कोरोना महामारी को मात देकर परिवार सहित स्वस्थ हो घर तो आ गये लेकिन अब भी मानवीय संवेदनाओं से परे पड़ोसी  उनके घर-परिवार  से दूरी बनाए हुए हैं।****
- मनोज सेवलकर
इन्दौर - मध्यप्रदेश
ठीक कहा
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'' सुनो जी, बबलू को आनलाइन क्लास में मिला, होमवर्क करते कराते मेरी तो आंखों में जलन और सिर में दर्द होने लगा है। शाम को खाने की व्यवस्था खुद ही कर लेना।"
"ठीक है,पिछले पंद्रह दिनों से कर रहे हैं,आज भी कर लेंगे।अच्छा सुनो,अब कल से तुम ये सब छोड़ कर अपनी आंखों और दिमाग को आराम दो। बबलू से भी कहो टेंशन न लें। स्वास्थ्य होगा तभी कुछ कर पाएंगे न पढ़ाई का।"
"पर वो..."
"पर,वर कुछ नहीं। तुम छोड़ो ये सब।पहला सुख निरोगी काया नहीं सुना तुमने।"
"जी ठीक कहा आपने।" 
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- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
 तनख्वाह 
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       शर्मा जी अत्यन्त चिन्तित होकर, सब्जी काटती हुई अपनी धर्मपत्नी रमा से कह रहे थे - सुनो! कोरोना के बहाने से सरकार ने हमारा मंहगाई भत्ता रोक लिया है। 
ये भी कोई बात हुई। सरकार अपने खजाने का मुंह क्यों नहीं खोलती, झुंझलाती हुई रमा देवी ने सरकार के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त किया।
       शर्मा जी फिर बड़बड़ाये....सरकार को तो बस हम ही रईस नजर आते हैं। कल हमारे साहब फोन पर कह रहे थे कि आपको घर बैठे सरकार तनख्वाह दे रही है।
अरे! हम अपनी मर्जी से तो घर पर नहीं बैठे। कोरोना जैसी महामारी में सरकारी लाॅकडाउन ने ही हमें काम पर ना जाने के लिए मजबूर किया है.... इसमें हमारा क्या दोष? 
हम इतने वर्षों से सरकार की सेवा कर रहे हैं तो क्या इस संकटकाल में हमें वेतन और अन्य सुविधाएं देना सरकार का फर्ज नहीं है? 
उन्होंने जिस प्रत्युत्तर की अपेक्षा में धर्मपत्नी की ओर देखते हुए यह बात कही थी....वैसा ही उत्तर मिला....
       और नहीं तो क्या? यह सरकार का फर्ज है... रमा देवी ने उनकी अपेक्षानुसार उत्तर देते हुए रसोईघर की ओर प्रस्थान किया।
       सुबह-सुबह पत्नी के साथ एक दूसरी आवाज की बहस को सुनकर शर्मा जी की आंख खुली तो कान लगाये। दूसरी आवाज जो कि उनके घरेलू कार्य करने वाली लक्ष्मी की थी, झट से पहचान ली।
लक्ष्मी का कहना सुनाई दिया कि... "हम गरीब लोग हैं, पति दिहाड़ी मजदूर हैं जो कोरोना के कारण दिहाड़ी पर नहीं जा सकते, बच्चे छोटे है...घर में एक दाना नहीं है मैडम!
मैडम जी! आपके यहां तो मैं इतने वर्षों से मासिक वेतन पर काम कर रही हूं....अब कोरोना वायरस की वजह से आपने ही काम पर आने के लिए मना किया है तो इसमें मेरा क्या कसूर?
आप मुझे महीने की तनख्वाह दे दोगी तो आपका बहुत अहसान होगा... लगभग रुआंसी आवाज में लक्ष्मी बोली। 
रमा देवी झिड़कते हुए बोली.... जब काम नहीं तो तनख्वाह क्यों?
और....
शर्मा जी की आंखों के सामने कल शाम के दृश्य आ रहे थे..... याद आ रही थी घर बैठे तनख्वाह देने वाली सरकार.... याद आ रहा था कुछ महीनों के मंहगाई भत्ता के ना मिलने पर अपना आक्रोश....और सामने थी लगभग गिड़गिड़ाती लक्ष्मी।
       शर्मा जी ने बिना एक पल की देरी किए अलमारी से रुपये निकालकर लक्ष्मी के हाथ पर रख दिए।
धर्मपत्नी तीखी नजरों सें उन्हें घूर रही थीं.... लक्ष्मी उन्हें दुआयें दे रही थी....और शर्मा जी एक अपराध से बच जाने के समान शीतल, सुखद शान्ति की अनुभूति कर रहे थे।****
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
अवतर हुए भगवान
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          ड्राइविंग लाइसेंस में रक्त समूह भी लिखा जाता है इसलिए पुलक पैथोलॉजी लैब पहुँचा अपनी रिपोर्ट लेने के लिए। उसे देखते ही वहाँ का एक कार्यकर्ता बड़ी तेजी से उसकी तरफ आया तो वह घबरा गया।
      अपने को किसी तरह शांत किया और पूछा कि बात क्या है?
        वह बोला...” दो घंटे से सामने एक वृद्ध व्यक्ति यहाँ बैठा हुआ है जिसकी पत्नी को बी पॉजिटीव रक्त कीओ आवश्यकता है। कोई देने को तैयार नहीं। बहुत गरीब है, खाने तक का ठिकाना नहीं, ऐसे में पैसे से रक्त खरीदना यह सोच भी नहीं सकता। आपके रक्त का समूह वही है जो इसे चाहिए। अगर आप इसकी सहायता कर सकें तो इसका बहुत बड़ा काम हो जायेगा।
          सुनते ही वह उस वृद्ध के पास गया और बोला...”बाबा! बोलो कहाँ चलना है?”
           अस्पताल पहुँच उसने रक्त दिया। जाते समय वृद्ध कुर्ते की जेब से तुड़े-मुड़े पचास रुपए उसे देने लगा तो उसने वृद्ध के हाथ पकड़ लिए और बोला....” माँ के लिए कुछ करने का कर्तव्य तो मेरा भी है। आप बस उनका ध्यान रखें”... कह कर हजार रुपए उनके हाथ पर रख चला आया।
          वृद्ध उस अचानक अवतरित हुए भगवान को देख निशब्द थे।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड 
            पहला मालिक           
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  मजदूर बस्ती की रमा दादी आज जीवन के साठवें साल में भी सोलह साल की फूर्ति और खुशी में अपने पुत्र रमिया के नये पक्के मकान में सबका स्वागत कर रही थी। रमिया मजबूत कदकाठी ,सूर्य की तपिश से कोयला हुआ बदन पर आँखों में चमक लिए माँ को देख रहा था।आठ भाई -बहनों में वह सब से बड़ा होने के कारण मजदूर माँ के संघर्ष को जानता था। उसके पिता भी राजगीर थे। दिन भर हाड़ तोड़ मेहनत पर रात को देसी दारु पीकर माँ और सभी बच्चों को पीटते। मजदूर बस्ती में यह रोज का दृश्य था। किसी ना किसी घर में रोज होता।
          धीरे -धीरे  बुरी आदतें बढ़ीऔर परिवार भूख और रोग से घटा।बचपन में माँ और घर की दयनीय हालत ने एक अच्छा काम तो किया कि रमिया को शराब से नफरत करवा दी। अब माँ का एकमात्र सहारा वह  था पढ़ता और मजदूरी करता। कम उम्र में विवाह हुआ। भाग्यवश रानी भी शराबी माता-पिता और अपशब्दों से त्रस्त थी इसलिए रमिया को पा कर फूली ना समाई ।
         अब माँ हल्का -फूल्का काम करती और वो दोनों हाड़-तोड़ मेहनत।जब बाकी मजदूर अपनी किस्मत को कोसते, भगवान को दोष देते तब रमिया रानी को कहता "देख जब तक हम किसी मकान को बनाते हैं ,उसमें  रहते भी  हैं कभी -कभी।जिस का घर है वो तो बाद में रहता है हम पहले ।"सोच इस तरह हमारे पास हर शहर में कितने घर होंगे। पहले मालिक तो हम ही हैं।
          उसने   अपने दोनों बच्चों को सरकारी विधालय में भेजा और साथ ही प्लास्टर के काम में मदद भी लेता था।  अपना ही नही पर साथियों को भी  सरकार की भामाशाह ,बी.पी.एल .जैसी योजनाओं को  बता कर  सब की सहायता करताऔर.मदद के लिए तैयार रहता था।  मजदूर था पर मजबूरी को जीवन पर हावी नहीं होने दिया।  पूरे मोहल्ले में उसका अपना पक्का  घर  बना जिस का वह पहला और अंतिम मालिक वही था।***
- ड़ा नीना छिब्बर
जोधपुर - राजस्थान
आभास हो गया था
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हमेशा की तरह आज भी सुबह की सैर के लिए मैंने जुते पहनना शुरू किया ही था तो ' टॉम ' के तेवर बदलने लगे। वह बेचैनी से अपनी पूंछ को हिलाने लगा और बार बार मुझसे चिपकने लगा।मानो कह रहा हो जल्दी चलो।इतनी देर क्यों लगा रहे हो।जब कि मैं रोज की ही रफ्तार से कर रहा था सबकुछ।फिर हम दोनों बाहर निकले, गेट बन्द किया और दोनों ही सड़क पर निकल गए।
     आज रविवार था तो हम उसी तरफ निकल गए जहां करतार चाचा की दुकान पड़ती है। अकसर हम रविवार को 2 से 3 किलोमीटर इसी रोड पर चलते हैं और घर जाने से पहले चाचा की दुकान पर रुकते हैं। मैं सबसे मिलता हूं। टॉम चाचा के पास जाकर अपना बिस्कुट लेकर आता था और मेरी ही बगल में बैठकर खाता रहता था।
          आज माहौल कुछ और था।टॉम ने जल्दी ही चाचा की दुकान की तरफ मोड़ लिया।दुकान की तरफ बढ़ते समय मैंने टॉम से कहा आज इतनी जल्दी क्यों है।उसने आंखें झुकाई और तेजी से बढ़ने लगा।जैसे दुकान दिखी तो देखा वहां खूब भीड़ लगी है और दुकान का शटर भी बन्द है।मुझसे पहले ही टॉम भीड़ पर जाकर रुक गया। मैं भी पहुंचा तो देखा सुना कि अब कौन खोलेगा समय पर दुकान चाचा जी तो गुजर गए कल रात।सभी आपस में ही बातें कर रहे थे।टॉम जाकर थोड़ी दूर पर मायूस बैठ गया।मानो अपना कोई सगा को दिया हो।तब मेरी भी समझ में आ गया कि टॉम को इस अनहोनी का अहसास पहले ही हो गया था तभी यहां आने की जल्दी में था।फिर बड़ी मुश्किल से टॉम को मनाकर घर की तरफ बड़ने लगे दोनों।मानो हम दोनों का ही में भारी सा हो गया हो।****
- नरेश सिंह नयाल
देहरादून - उत्तराखंड
  आज़ादी के मायने   
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मां ! आज इतना भोंपू क्यूं बज रहा है? अपने पांच वर्षीय गोलू की बात  से मां खिन्न सी हो गई । मां ! आज बगल  वाले स्कूल में जलेबी बंटने वाली है,कल सोनू भैया बता रहे थे ।
बेचारी रमिया का मन इन बाल _ सुलभ बातों से व्यथित हो उठा ।उसे क्या करना है इन बातों से ।
रमिया को तो रोज ठाकुर की हवेली पर जाकर गोइठा थापना हीं है । जिसके बदले ठाकुर जो रुपए देता है,उसी से उसका चूल्हा जलता है ।अपने इकलोते बेटे को अपने साथ ही सटाए रहती है । पहले पति ठाकुर का बंधुवा मजदूर था,, उसकी मृत्यु के बाद रमिया हीं उसकी जगह हाजिरी लगाती है । आज भी अपने पति की तरह गुलामी का दंश झेल रही है।
दोनों हवेली काम पर पहुंचते हैं। गोलू ठाकुर के लड़के के हाथ  में झंडा देख  उसके नजदीक जाता है । गोलू को कोतूहल सा देख ठाकुर का बेटा  उसे झंडा और स्वतंत्रता दिवस के बारे में विस्तार से बताया है , गोलू आज तक इन बातों से अनजान था । बालमन पर ठाकुर साहब के बेटे की कही सारी बातें मानों अंकित हो गयी हों ।
गोलू दौडता हुआ  मां के पास आकर बोलता है,,,,, मां आज तो हमें आजादी मिली थी,,और आज सब की छुट्टियां  भी  है ,,भैया अभी बता रहे  थे । मां उपले थापते  हुए जोर से बोलती है ,,,,,ये आजादी और छुट्टी हम सब के नसीब में नहीं है,   आओ मेरा हाथ  बंटाओ ।  मां को गुस्से में देख सहमा गोलू भी पल भर में आजादी , छुट्टी सारी बातें भूल कर मां के साथ काम में लग गया ।  काम करते-करते रमिया  खुद से बोलती है_____आज  हमें भले ठाकुर रूपये ना दे, लेकिन आज हम दोनों आजादी और छुट्टी ,, दोनों मनायेंगे ।चल स्कूल हम भी जलेबी लेंगे।  गोलू का हाथ खींचते हुए , काम को नजरंदाज कर   सिर उठा  कर निकल जाती है । पीछे भोंपू से गाना बज रहा था ,,,,"अपनी आज़ादी को हम हरगिज़ भूला सकते नहीं" ।****
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
मासूम
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      साकेत हाइटेक सोसाइटी में रहता है। स्कूल से आने के बाद वो अपनी आया दीदी के साथ था।  उसने आज ठीक से खाना  नहीं खाया और खेलने भी नहीं गया। आठ बजे पापा- मम्मी के आते ही, साकेत दौड़ कर अपनी मम्मी के 
 पास जाकर कहने लगा -   " मम्मी मेरी तबीयत ठीक नहीं 
 लग रही है। सर में दर्द है, और सर्दी भी हो गई है।" ... अरे! 
 बेटा, मेरी कल मीटिंग है। मुझे पेपर तैयार करना है। "
" पुष्पा ऽऽऽऽ... देख, साकेत क्या बोल रहा है। " साकेत 
वहाँ से दौड़कर अपने पापा के पास दूसरे कमरे में गया। 
उसके पापा महँगी मशीनों के साथ कसरत कर रहे थे, और 
जोर का संगीत बज रहा था।  साकेत वहाँ से भागते हुए वापस अपनी मम्मी के पास आकर बोला - " मम्मी दादी को बुला दो ना, वो बहुत प्यार करती है। बाल में तेल की मालिश भी कर देती है।"  इतना सुनते ही रीमा तुनकते हुए 
संदीप के पास आयी, और जोर - जोर से बोलने लगी - "तुमने ही इसे सिखाया होगा। तभी साकेत मुझसे कह रहा है कि दादी को बुलाओ। मुझे नहीं सुनना उनका लेक्चर - 
" तुम लोग साकेत को प्यार नहीं करते हो। समय नहीं देते हो।  तुम लोग का सोने और उठने का कोई समय नहीं है। 
उन्हें तो हमारी लाइफस्टाइल पसंद ही नहीं आती है। "
             रीमा को इतना नाराज देखकर साकेत डर गया और अपने कमरे में जाकर कीमती खिलौनों के बीच रोते-रोते सो गया। रीमा ने अपना गुस्सा उतारने के लिए साकेत के लिए छोटी कार ( पच्चीस हजार) जो हाॅल में चला सकता था। आर्डर कर दिया ।           
  - कल्याणी झा 
                          राँची - झारखंड                         
रिश्तों की मिठास 
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उड़द की दाल की पीठी वाली कचौड़ी ,मालपुएँ,दही बड़े ,सीता फल की सब्ज़ी ,साथ में मलाई कोफ्ते सब बहुत ही स्वादिष्ट बनाया,ख़ासतौर हाथ से थेप कर उड़द की दाल की पीठी  वाली कचौड़ी इतनी बड़ी ,और करारी ,!
"बहू बहुत ही बढ़िया बनाई है तुमने "अरे मीना देखो बहू ने उड़द की दाल की पीठी की कचौड़ी कितनी बढ़िया बनायी है बिलकुल तुम्हारी ही जैसी "
पेट भर गया खाना खा कर पर मन नहीं भरा,तुमने जब से पैर की हड्डी टूटी ,बिस्तर पकडा़ रट लगा रखी थी कि इस बार गणगौर पुजा पर पक्का खाना कौन बनायेगा  ।और तुम्हारी पसन्द की पीठी की कचौड़ी नहीं मिल पायेगी खाने को ,।"पुजा समाप्त हो गयी माँ ,अब  लिजीये आप भी खाना खा लिजीये !बहू ने सास को थाली पकड़ाते हुएँ कहाँ ।"बहू तुम्हारी माँ ने तो बताया था ।तुमको ज़्यादा कुछ बनाना नहीं आता ,तुमने तो सभी खाना बहुत स्वादिष्ट बनाया है और ये कचौड़ी किससे सीखी है "गरम कचौड़ी खाते हुएँ ,स्नेह से बहू को देखते हुएँ मीना बोली।चलो सब बन गया तो तुम भी हमारे संग खा लो ।"माँ ये सब तो आप को बनाते देखकर ही सीखा है !जब आप बनाती थी मैं रसोई में आपकी सहायता करती थी "।कह अपनी थाली ला बहूँ भी संग खाने लगी ।****
- बबिता कंसल 
दिल्ली
उजाले की ओर 
************

खुसर फुसर सी आती आवाजों से वह चौंक पड़ी! रात का वक्त और घना अंधेरा, कोई भी तो नहीं था वहां! उसके क़दम उस आवाज की ओर बढ़ गये।
अम्मी को किसी से बात करते सुन वह वहीं ठिठक गई। आवाज़ उसे कुछ जानी पहचानी-सी लगी!
"तू घबरा मत, कुछ दिनों की ही बात है! मैं ले चलूंगा तुम्हें और ट्रेनिंग भी दिलवा दूंगा!" वह बोला
"और हमारी लाड़ो?" अम्मी की आवाज़ में घबराहट साफ़ झलक रही थी।
"उसे थोड़े समय के लिए अम्मी के पास छोड़ देना, अपना मक़सद पूरा होते ही उसे भी साथ ले चलेंगे।"
उसकी आँखे ख़ुशी से चमक उठी, ओह यह तो मेरे अब्बा हैं, जिन्हें देखने को लिए वह बरसों से तड़प रही थी! उनके पास जाने के लिए उसके क़दम उतावले हो उठे। तभी उसके कानों में जैसे किसी ने खौलता सीसा डाल दिया हो, वह वहीं जड़ हो गई।
"हमारा जेहाद तब तक चलेगा जब तक यह देश हमारा नहीं हो जाता! तुम तैयार रहना और लाल कोठी पर मेरा इंतजार करना।" कहकर वह मुँह लपेटे दीवार फांदकर बाहर निकल गया।
उसकी मुट्ठियां तन गई! वह बुदबुदा उठी, "तो यह वही जेहादी है जिसे पुलिस घर घर ढूंढ रही है और वह उस की बेटी...नही ..नही..यह कभी नहीं हो सकता!"
उसके कदम तेज़ी से पुलिस थाने की ओर बढ़ चले।****
- सीमा वर्मा
लुधियाना - पंजाब
राम
***
 नाइट शो  और फिर पति रोहित के साथ बाइक पर थोड़ी सी मस्ती ने उसकी जिंदगी में ऐसा भयावह तूफान लाया कि आज वह अस्पताल के बेड पर पड़ी असीम वेदना को सहन कर रही थी। आकस्मिक आए इस भयानक तूफान ने उसकी जिंदगी को तहस-नहस कर ही दिया था ,ऊपर से लगातार न्यूज़ चैनलों पर ,मीडिया और लोगों की जुबान पर इस चर्चा में उसकी तकलीफ को और बढ़ा दिया था। हर कोई उन हवशी रावणों को दोष ना देकर ,उनकी क्षणिक मस्ती पर ही सारा दोष मढ़ रहा था। आरम्भ से एक दो बार उसके सास- ससुर उसे देखने आए तो सास की जलती हुई निगाहों में उसके लिए सहानुभूति की जगह नफरत और सारा उसका ही अपराध दृष्टिगत हो रहा था। वह हर बार उसकी मां को यह जता चुकी थी कि उसकी वजह से ही उन्हें कितनी बदनामी का सामना करना पड़ रहा है। उनके घर में अब उसके लिए कोई जगह नहीं है। उनका राम जैसा बेटा उनकी ही बात मानेगा और वह उससे तलाक ले लेगा।
    उसकी दुनिया ही उजड़ गई थी ।भगवान राम ने जैसे लोक लाज और बदनामी के कारण सीता का परित्याग किया था ,क्या रोहित भी उसे छोड़ देगा? उसे तलाक दे देगा ?रोहित आता, उसके पास बैठता तो उसकी निगाहों में अपनी पत्नी की रक्षा न कर पाने की दर्द स्पष्ट झलकता था।
   अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली थी। उन दरिंदों के साथ उसकी न्यायिक जंग शुरू होने वाली है।....." मुझे लड़ने की आंतरिक शक्ति तुमसे ही मिलेगी, रोहित ।"..... उसका हृदय चित्कार  करता ।
  आखिरकार वह पल आ गया। उसकी माँ ने घर जाने के लिए सामान बांध लिया ।लेकिन उसकी निगाहें रोहित को तलाश कर रही थी, और रोहित आ गया ।वह बोला," मैं भगवान राम के समान तुम्हें रावण से तो नहीं बचा पाया, लेकिन दरिंदों के खिलाफ तुम्हारी जंग में तुम्हारा साथ नहीं छोडूँगा।"
 " मुझे राम का यह अवतार पसंद है।".... वह मुस्कुरा उठी।****
                 - रंजना वर्मा "उन्मुक्त "            
                 राँची - झारखंड                
भक्त
****

"काव्या आजकल बहुत भक्ति करने लगी हो."
"इस कोरोना काल में यह मौका मिला है वरना तो पूजा की फारमेंटली ही पूरी करते थे."
"एक अच्छी बात है तुम्हारे साथ पिंटू भी उतनी देर आंख बंद कर बैठा रहता है."
और कुछ बुदबुदाता भी रहता है."
"क्या? "
"उसी से पूछों."
"पिंटू तुम रोज भगवान से क्या कहते हो."
"पिंटू मां के आंचल में मुंह छुपाते हुए मैं नहीं बताऊंगा, आप गुस्सा करोंगे."
"बिल्कुल भी गुस्सा नहीं करेंगे प्रामिस, अब बताओ."
"वो... हम भगवान जी से कहते हैं कोरोना को कभी मत खत्म करना."
आश्चर्य से "क्यों.. ? लेकिन कोरोना तो बुरा है."
"नहीं, बहुत अच्छा है, देखो न मुझे क्रैश भी नहीं जाना पड़ता है आप लोग झगड़ा भी नहीं करते मम्मी भी कितना प्यार करती है पापा आप भी तो हमारे साथ खेलते हो न कोरोना यदि चला गया तो फिर सब पहले जैसा हो जाएगा."
****
- मधु जैन
 जबलपुर - मध्यप्रदेश
 मिक्सदाल
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 "क्या है मम्मी? यह क्या दाल बनाई है"; बेटे ने पहला कौर खाते ही मां से पूछा ।
"बेटा तुम और तुम्हारे पापा दोनों ही एक जैसे हो"
 "क्यों क्यों?? यह तो पसंद- पसंद की बात है। मुझे तो केवल उड़द की धुली दाल  चाहिए"- बेटे ने उत्तर दिया। 
"तुम तो रामपुरी नवाब ही हो रहे हो। तुम्हें पता है मिक्स दाल में कितनी ताकत होती है। अरे एक दाल में एक ही प्रकार की पोषकता होती है; पर जब हम कई दाल मिलाकर बनाते हैं, तो उसकी पोषकता, ताकत और मजा गजब का होता है; जैसे --संयुक्त परिवार की विशेषताएं ,ऐसा मां ने बेटे से कहा"। ****
- डाॅ.रेखा सक्सेना 
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
 परी की उड़ान 
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कभी-कभी गले में अपनी चुन्नी को टाईनुमा पहन,रद्दी किताबों का ढेर बगल में  दबाए,
मालकिन की बेटी के द्वारा भेंट की गई  डायरी और पैन लेकर परी बरामदे में घर के फालतू सामानों  के बीच रखे पुराने धुंधले पड़े आदमकद दर्पण  के सामने खड़ी होकर खुद को अपलक निहारती हुई खुद से ही कहती-
-ओहो!पढ़ी लिखी परी ही लग रही हो आज तो! फिल्मी हीरोइन से  भी कोई कम नहीं हो  तुम.चलो एक बार उड़कर देख  ही लो जरा आसमान में.देखी जाएगी.
-पागल है क्या?दिमाग ठिकाने पर तो है न तेरा..भूल मत घरेलू सेविका की गरीब बेटी है तू ,गंदी बस्ती में रहने वाली घर की पांच बहनों में  सबसे बड़ी ...बाबा भी छेद वाले बनियान के नीचे पैबंद लगा,घिसा हुआ सूती पायजामा पहनकर कबाड़ी का बिजनेस करने निकलते हैं,बहनें तेल,नून,दाल,चावल और ईंधन के लिये सूखी लकड़ी ढूंढने आज भी निकल लेती हैं बासी मुंह..कूड़े से पन्नी बीनना तो दैनिक कार्य बन चुका है उनका,फिर आजकल तो स्वच्छता अभियान की वैन ने कूड़े पर भी झपट्टा सा मार रखा है.सपने मत देख पगली..
परी का मन-मस्तिष्क उसे झिंझोड़ रहा था.
-तो क्या हुआ?सब मेहनत मजूरी ही तो करते हैं.हमारे भी दिन फिरेंगे जरूर..कल ही तो हिंदी वाली मैम ने शेर सुनाया था-"गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में,वो लोग क्या गिरेंगे,जो घुटनों के बल चलें".
-अरी!तेरी टीचर जी आई थीं झुग्गी पै,ये कागज दिये हैं तेरे लिये..कल फारम भरके दे दीजो सकूल में.कहके गई हैं.
घर से अचानक आई परी की अम्मां हड़बड़ाकर बोलीं .
-अरी अम्मां!जे तो वजीफे के कागज हैं.मुझे स्काॅलरशिप मिली है . तुझे काम करने की जरूरत ना पड़ेगी अब. हर महीने  पूरे आठ हजार रूपये मिलेंगे और  पांच साल तक काॅलेज की पढ़ाई भी फ्री हो जाएगी मेरी.
अब तो यूँ मान के तेरा बेटा कलेक्टर  बनके ही मानेगा.
-राम जी की किरपा है बस...सच्ची कह री है बेट्टा सी  हो गई  तू तो फेर... बेटी के सिर पर दुआ का हाथ धरकर सरला कहे जा रही थी.
उसे लगा जैसे बेटियों की मां ने कोई हारी हुई बाजी जीत ली है.
खुशी के आंसू उसके गालों पर ढुलक आए थे.परी के सशक्त हाथ में अपना हाथ थमाकर वह बस्ती की ओर बढ़ चली थी.
उधर बंगले वाले मालिक टेबुल पर व्हिस्की का गिलास रखे ,शतरंज की बिसात बिछाकर,साथ खेलने के लिये अपने उस निकम्मे बेटे को बार-बार आवाज लगा रहे थे,जो बारहवीं बोर्ड परीक्षा में लगातार पिछले दो वर्षों से फेल होता चला आ रहा था. ***
- डा. अंजु लता सिंह 
 दिल्ली  
      
अभिशप्त 
*********

सदानंद जी हीरे के प्रतिष्ठित व्यापारी हैं। उनकी पत्नी सुमन का स्वास्थ्य बिगड़ा तो उन्हें अस्पताल ले गए। चेकअप में सुमन कोरोना पॉजिटिव निकलीं। अस्पताल में एडमिट रहने के दौरान उनकी मृत्यु हो गई। अस्पताल से डॉक्टर का फोन आया कि, “सदानंद जी आपकी पत्नी सुमन की मृत्यु हो गई है।” सदानंद जी ने सुना तो सन्न रह गए। वे निढाल हो गये और उनका शरीर कांपने लगा। उन्होंने पूरी कोशिश की, कि पत्नी का शव उन्हें मिल जाये पर ऐसा नहीं हो सका। उन्हें याद आया कि सुमन अक्सर कहा करती थीं कि, “अगर मैं पहले मरूं तो तुलसी और गंगाजल मेरे मुंह में डालना, शादी का जोड़ा पहनाना और सोलह श्रृंगार भी तुम ही अपने हाथों से करना।”
सदानंद करूण विलाप करते हुये कहे जा रहे थे, “सुमन मैं कितना अभागा हूं? कितना अभिशप्त हूं कि मैं तुम्हारा पति होते हुये भी तुम्हारी अंतिम इच्छा पूरी नही कर सका। मुझे माफ कर दो। सुमन मुझे माफ कर दो।"
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- प्रज्ञा गुप्ता 
बाँसवाड़ा - राजस्थान
विवशता
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सुधा अपने बेटे विनय के साथ उसके घर दिल्ली नहीं जाना चाहती थी | लेकिन विनय के बार बार कहने पर साथ चलने के लिए राजी हो गई|
 उसे पता था कि उसकी बहू विनीता को उसका इस तरह चले आना अच्छा नहीं लगेगा|  फिर भी वह अपने बेटे की बात को नहीं टाल सकी | विनीता बैंक में  मैनेजर के पद पर कार्य करती है | सांझ  को वह अक्सर लेट हो जाती | थक जाती थी, इसलिए सांझ  के काम में सुधा उसका हाथ बंटा देती|
एक  सांझ जब सुधा किचन में जाने लगी तो उसने ड्राइंग रूम से  दोनों की आवाजें सुनी |शायद दोनों आपस में झगड़ रहे थे| वह उनके पास गई और कहा......क्या हुआ?
.......क्या हुआ?आपको पता था न हमारे बीच कुछ ठीक नहीं चल रहा है तो भी आप यहां  चली आई , क्यों  ?हम अकेले होते तो निपट लेते|
.......अकेले ही तो रहते हो यहां| मैं तो आना ही नहीं चाहती थी लेकिन विनय के बार बार कहने पर आ गई| अपनी मर्जी से नहीं आई|
.......अपनी मर्जी से नहीं आई |.....वह मुंह चिढ़ाते हुए बोली  |
फिर नीचे वाले कमरे में जाकर बेड से गद्दा  उठाकर,घसीटते हुए ऊपर अपने कमरे में ले गई| और सुधा को भी  जबरदस्ती पकड़कर अपने कमरे में ले गई|
बोली.........दिनभर मां बेटा पता नहीं क्या-क्या बातें करते हैं? रात को भी यहीं रहो दीवार बनकर हमारे बीच |
विनय का रोम-रोम क्रोध से कांप उठा |लेकिन वह अपनी मां का और अधिक अपमान नहीं करवाना चाहता था| वह अपनी मां को संभालता  नीचे वाले कमरे में ले गया  |***
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा

उपरोक्त के अतिरिक्त अंजली खेर , डॉ. मधुकर राव लारोकर , अनिल अयान, गीता चौबे, डॉ. विभा रंजक कनक, सुरेन्द्र कुमार अरोड़ा, मनोरमा जैन पाखी, अजय गोयल, चन्द्रिका व्यास, डॉ. विनीता राहुरीकर , जयप्रकाश सूर्य वंशी , अनिता रश्मि , नीलम नारंग , अमृता सिन्हा , मीरा जैन, राकेश कुमार जैनबन्धु, रंजनी कान्त , डॉ. संगीता शर्मा, सुनीता रानी राठौर , प्रतिभा सिंह, अनिल शर्मा नील, अर्चना मिश्र, सुदर्शन रत्नाकर, सुख वर्षा पाठक, पूनम झा आदि ने भी अपनी - अपनी लघुकथा पेश की है । लगभग सभी लघुकथा अच्छी है । परन्तु नियम के अनुसार 21 को ही डिजिटल सम्मान पत्र दिया गया है ।



Comments

  1. सभी सम्मानित रचनाकारों को हार्दिक बधाई । सुदर्शन रत्नाकर

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