आप की नज़र में राम राज्य का अर्थ क्या है ?

रामराज्य का अपना महत्व है । हर कोई चाहता है कि रामराज्य स्थापित होना चाहिए । परन्तु ऐसा करने के लिए प्रशासन व राजनेताओं को अपनी छवि में सुधार करना होगा । तभी रामराज्य की कल्पना की जा सकती है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
ये सच है  गांधी बापू ने रामराज्य की कल्पना की थी धर्म, जाति-भेद , रंग भेद गरीब अमीर की दूरी मिटा वे राम-राज्य लाना  चाहते थे जहां प्रजा और राजा का सीधा संपर्क हो! 
श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम थे! प्रजा की खुशी राजा का सच्चा सुख होता है! सुख, शांति, बेखौफ सत्य के साथ समानता लिए राजा का प्रजा के साथ सीधा  संपर्क होता था! श्री राम ने लोक जीवन और निजी जीवन में समानता  रखते हुए न्याय को प्रधानता दी है! उनके शासन में सभी सुखी थे ! मर्यादा और सच्चाई थी! 
आज मोदी जी  मर्यादा पुरुषोत्तम  लगते हैं! आशा ही नहीं  सभी को विश्वास है कि भारत में अब रामराज्य जरुर आयेगा!  सभी सुखी,निरोगी होने के साथ मानवधर्म अपनायेंगे! 
सभी को शिक्षा का अधिकार होगा! भ्रष्टाचार नहीं होगा! लोग स्वतंत्र विचार लिए भाईचारे के साथ रहेंगे !गांधी का सपना केवल कल्पना नहीं सच होगा और यही रामराज्य है! 
- चंद्रिका व्यास 
 मुंबई - महाराष्ट्र
रामराज्य देखा तो नहीं हां ,सुना और पढ़ा जरूर है।अब पौराणिक परिवेश रहा नहीं और ना हीं, लोग हीं आज उतने सरल, सज्जन और सब का हित चाहने वाले रहे। आज परिस्थिति दिनों- दिन बद से बद्तर होती जा रहीं हैं।वो सतयुग था यह कलयुग है जिसका प्रभाव स्वत: देखा जा सकता है। मेरे विचार से रामराज्य का अर्थ ये है कि भाईचारा की भावना हो आपस में ना कि भाई हीं भाई के खून का प्यासा हो।लोग संस्कारी हों ना कि दुराचारी।एक दूसरे के प्रति आदर ,प्यार की भावना समाहित और प्रवाहित होता रहे। हम मानव नहीं "इंसान "बने।छल- कपट, प्रपंच, द्वेष, षड्यंत्र ना हो बल्कि परस्पर सहयोग की भावना हो, आत्मीयता हो। सबसे बड़ी बात नारी का सम्मान हो।नारी को श्रद्धा भाव से देखें ना कि मात्र भोग की वस्तु समझे।हर युग में नारी को कदापि अग्नि परीक्षा ना देना पड़े।आपसी वैमनस्यता मिटा लोग एक-दूसरे के साथ प्यार और भाईचारे के साथ प्रभु द्वारा सृजित इस संसार का और अपने समय का भरपूर आनंद लें। ऐसा राज्य हो ।यह हमारे देश कि विडंबना हीं है कि आज चार सौ बेरानबे वर्षों के बाद श्री राम जी पुनः अपने जन्म स्थान पर स्थापित कीये गये हैं।आशा करती हूं पुनः एक बार सही मायने में रामराज्य जो पहले था उसका कुछ भी प्रभाव परिलक्षित हो तो हम सब धन्य हो जायेंगे।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
तुलसीदासजी ने कहा है
दैहिक दैविक भौतिक तापा रामराज्य काहू नहीं व्यापा
     और बस इन्ही पंक्तियों में निहित है राम राज्य की संकल्पना। रामराज्य एक आध्यात्मिक स्थिति है एक पवित्र पावन मानसिक स्थिति है - - - यदि हर एक मानव वह स्थिति पा लेता है-- समायोजन स्थापित कर लेता है - - - मानव बन जाता है तो होने को बनने को कुछ शेष नहीं रहता। इंसान को इंसान बनना है - - भगवान नहीं। हर व्यक्ति के भीतर दया क्षमा शांति करुणा इंसानियत और मानवीयता का वास हो जाये बस यहीं से रामराज्य की नींव पड़ जाती है 
    - - साईं इतना दीजिए जामें कुटुंब समाय मैं भी भूखा ना रहूं साधु न भूखा जाये---जिस दिन हदय में इतनी करुणा और संवेदनाओं का विस्तार हो जाए--उस दिन रामराज्य हो जायेगा। भूख दुनिया का सबसे बड़ा सच और पाप का मूल है। जब सबको सबकी भूख का ख्याल रहे तो दुनिया की आधी समस्याएं पहले ही सुलझ जाएंगी। और मैंने इस आलेख के शुरुआती सृजन में ही जिन मानसिक स्थितियों की चर्चा की है बस वे ही सबके भीतर विद्यमान हो जायें तो मद मोह लोभ काम क्रोध पर  इंद्रिय नियंत्रण अपने आप स्थापित हो जाएगा और रामराज्य की प्रात्यक्षिक संकल्पना स्वयं सिद्ध हो जाएगी। 
     मोटे मोटे तौर पर रामराज्य को एक राजनीतिक स्थिति से भी जोड़ा जाता है और सरकारों को रामराज्य का प्रवर्तक पोषक संरक्षक माना जाता है। राजा राम के सिद्धांतों पर शासक चलें ये अपेक्षित होता है। लेकिन सच कहें तो ये युगों के साथ चलनेवाली स्थितियां होती हैं। राम के युग का समय, संस्कृति, रीति-रिवाज, सुख सुविधा, मूल्य मानदंड आज के दौर से बिलकुल ही अलग होते हैं। प्रजा के मनः रंजन के लिए अपनी गर्भवती पत्नी को त्याग देना आज के दौर का समन्वय नहीं है। 
          तात्पर्य यही कि मेरी निगाह में रामराज्य का अर्थ सभी के भीतर एक पवित्र पावन गुणशील मनोवृत्ति का उद्गगम और उसके अनुसार संचालित जीवन ही रामराज्य है - - रामराज्य का अर्थ और स्वरूप है। 
- हेमलता मिश्र "मानवी" 
नागपुर - महाराष्ट्र
मेरी नज़र में राम राज्य का अर्थ दो संदर्भ में है -
1. प्रथम व्यक्ति में संस्कारित,अनुशासित जीवन जीना l राम ने जिस प्रकार अपने दायित्वों, कर्तव्यों का वहन किया उसी प्रकार हम दायित्वों और कर्तव्यों का परिवार, समाज और राष्ट्र के प्रति करें l आदर्श व्यक्तित्व का निरूपण हम अपने जीवन में करें l 
2. दूसरे अर्थ में जीवन में स्वच्छंदता पूर्वक विचरण करना, अनुशासनहीन जीवन जीना और मनोच्चारितः आचरण करना l अपने दायित्वों व कर्तव्यों से जी चुराना l वर्तमान समय में सामाजिक राजनैतिक आर्थिक यहाँ तक कि आत्मिक प्रदूषण के चलते स्वच्छन्दचारिता l 
  महामना श्री मदन मोहन जी मालवीय ने कहा है -"रामायण में हिन्दू सभ्यता के जिस ऊँचे आदर्श का इतिहास है, वह सदा पढ़ने औरमनन करने योग्य है रामायण में भक्ति रस का प्रवाह जीवन को पवित्र कर देता है l रामायण में हिन्दू गृहस्थ जीवन का आदर्श बतलाया गया है l इसमें बताये गये मार्ग पर चलकर श्री राम के अनुकरण से राम राज्य आता हैl"
           राजाओं के मुकुट मणि भगवान राम के पृथ्वी पर राज्य करते समय प्रत्येक व्यक्ति सद्गुणों से युक्त था l वह सारी सम्पत्ति से सम्पन्न था, उचित ढंग से अपना काम करता था, धर्माचरण में ततपर और सुत -परिजन आदि से संयुक्त और बुद्धिमान था l 
   श्री राम राज्य में सभी दैहिक-दैविक और भौतिक तापों से मुक्त थे l श्रुति सम्मत, साधुमत, भक्तमत, लोकमत और राजमत का सर्वथा समादर था l वर्णाश्रम की पूर्ण प्रतिष्ठा थी l लोकरंजन के लिए श्री राम ने सती साध्वी प्राणप्रिया सीता की अग्नि परीक्षा ली, वहाँ कालांतर में उनका त्याग कर दिया l नीति, प्रीति, स्वार्थ और परमार्थ का निर्वाह जिस तरह राम ने किया अनुकरणीय हैl 
, समाज में न्याय व्यवस्था हो, सभी समृद्ध और खुशहाल रहें सभी समान हो, कोई भूखा न रहे सभी सम्पन्न हों, सभी का आदर हो l यहीं राम राज्य की कल्पना हैl मर्यादा की रक्षा करते हुए स्वयं को कष्ट सहन करके भी मानव के ऐहलौकिक -पालौकिक कल्याण के लिए सत्य, धर्म, न्याय, सदाचार, शिष्टाचार की स्थापना ही राम राज्य है जिसकी कल्पना महात्मा गाँधी ने भी की थी l मानव को अपने स्वरूप कर्तव्य -अकर्तव्य तथा मानवता के स्वरूप का पूर्ण ज्ञान राम के चरित्र से होता है l 
         चलते चलते ----
आज भूमि पूजन पर प्रधानमंत्री जी ने कहा -भारत अब राम की नीति "भय बिनु होइ न प्रीति "पर चलेगा l 
2.आया नवल विहान रे 
नई किरण की नई प्रातः में ढले नया इंसान l 
धरती को तुम स्वर्ग बना दो बाणों का मुख मोड़ दो 
अंधविश्वासों की लहरों को ठोकर मारो तोड़ दो 
राम राज्य की सही कल्पना वास्तव में साकार हो l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
यहाँ  "राम" एक  सांकेतिक शब्द है
     जिसका अर्थ है जनता के दुखों का निवारण करके राज्य में शांति व सन्तुष्टि की स्थापना करना । 
    जिसका अर्थ है जनता की आवाज सुनना और उसे क्रियात्मक रूप देना 
   जिसका अर्थ है सुवृत्तियो से कुवृत्तियों का निवारण कर सत गुण को पोषित  करना ।
    जिसका अर्थ है राज्य में आपसी सहायता , संवेदना और सौहार्द्र से रहना ।
   जिसका अर्थ है अपना सुख भूल कर दूसरे के दुखों को समझ उनका निवारण करना 
   लेकिन उपरोक्त  गुण युक्त  शासन करने का अर्थ अपने निजी  परिवार , परम्पराओ ,वचनों को नजरअंदाज कर उन्हें मरने के लिए अकेला छोड़ देना  रामराज्य नही कहा जा सकता क्योंकि परिवार भी जनता की ही एक इकाई है । 
    कुवृत्तियाँ राम के समय मे भी थी । स्वयं राम में भी थी जिन्हें उन्होंने जनता में नही आने दिया ।यह उनका राज व व्यक्तिगत धर्म था जिसका निर्वहन उन्होंने बड़े संयम और कुशलता से किया क्योकि वह पुरुषोत्तम बना रहना चाहते थे ।।
      आज के गणतन्त्र की परिभाषा स्वयं रामराज्य को परिभाषित कर रही है लेकिन भ्र्ष्टाचार उसे प्रमाणित करने कहाँ देता है ।
- सुशीला जोशी
मुजफ्फरनगर - उत्तर प्रदेश
           जय श्रीराम मेरी नज़र में राम राज्य का अर्थ है। वसुधैवकुटुम्ब की भावना सबके अंदर हो। सभी को समान दृष्टि से देखा जाय। जाति पांति का कोई भेद भाव न हो।ऊंच नीच का कोई खेल न हो। सबको समान रूप से , सहज रीति से जीने का हक़ हो।सबको उचित सम्मान मिले। कोई भूखा न हो, कोई नंगा न रहे। किसी को कोई तकलीफ न हो। किसी का किसी से किसी प्रकार का कोई भी झगड़ा न हो। न कोई वाद-विवाद हो।
                सबसे बड़ी रामराज में कोई रोगी न हो। सब निरोग रहें। कोई महामारी न हो। मानव क्या जानवर भी  स्वच्छंद रूप से अरण्य में विचरण करें। किसी को किसी भी प्रकार का कोई भय न हो। सबकी बातें सुनी जाय। सबको समान रूप से उचित शिक्षा मिले और उसका सही रूप से सदुपयोग हो।
             सभी को उसकी योग्यता के अनुसार काम मिले। सभी सुखी रहें, सभी स्वस्स्थ रहें, सभी शांति से रहें। एक दूसरे का सहयोगी बने। देश प्रेमी बनें। 
                  मेरे विचार से राम राज्य का यही अर्थ है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं बगाल
रामराज का अर्थ होता है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार रहें और सभी सुखी रहें शिक्षा सभी को सामान्य रूप से प्राप्त हो जिससे वह अपना और अपने राष्ट्र का विकास कर सके राज्य में कोई अमीरी गरीबी का भेदभाव ना रहे सभी को रोटी कपड़ा और मकान में ले राम की तरह त्याग की भावना रहे क्योंकि राम का अर्थ जिसने समझ लिया उसके अंदर स्वयं ही त्याग की भावना आ जाएगी।
*जय श्री राम*
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
     हमने घोषणा तो कर दी, कि राम राज्य भारत को बनाया जायेगा।  त्रैत्रायुग में राम राज्य का अपना एक समय था जब त्वरित प्रतिक्रिया, कार्यवाही हुआ करती थी। राजा स्वयं अपना मुखौटा बदलकर समयानुसार आमजनों के बीच उपस्थित होकर, दूसरे ही दिन अपने सहयोगियों के साथ, अपना अभिमत, अभिभूत प्रस्तुत करता था। आमजन, आमतौर पर रात में दरवाजे खुले कर चैन से सोया करता था। किसी भी तरह की कोई चिंताऐं नहीं थी। आरामदायनी जीवन जी रहा था। जिसे राम राज्य कहा जाने लगा था। प्रश्न यह उठता हैं, कि अभी तो राम जन्म भूमि पर भव्यता के साथ मंदिर निर्माण किया जा रहा हैं। राम राज्य तो काफी दूर हैं। 
वर्तमान समय में तो अराजकता, भ्रष्टाचार, बलात्कार, बेरोजगारी, लूट-खसौत चरम सीमा पर पहुँच गया हैं। जिसे ही नियंत्रित करने में ही काफी समय लग सकता हैं, फिर राम राज्य के सपने देखना दूरगामी परिणाम केवल घोषणाओं का जाल हैं । आज का राजा मूलतः सैन्य व्यवस्थाओं, गुप्तचरों, अपने-अपनों  से घिरा हुआ हैं, मात्र सूचना तंत्रों के माध्यमों से सामूहिकता में विध्वंसकता  झलक रही हैं। आज स्थितियां यह हैं, कि रुपया वेतनों पर, विभिन्न प्रकार के कार्यकलापों पर व्यय हो रहा हैं। रुपयों का मूल्यांकन समझ में नहीं आ रहा हैं। हम तो कह रहे हैं, समस्त क्षेत्रों में कार्यों को सम्पादित किया जा रहा हैं।  जबकि खुले मैदान में कुछ और हैं? राम राज्य जैसा परिवर्तित करना हैं, तो राम राज्य के अर्थों को वृहद स्तर पर समझना पड़ेगा, नहीं तो अर्थ का अनर्थ हो जायें?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
   बालाघाट - मध्यप्रदेश
 मेरी नजर में रामराज्य का अर्थ सुख ,शांति ,संतोष  आनंद एवं परम आनंद के साथ निरंतर जीना ही राम   राज्य  है।  अखंड समाज मे मानव जाति ज्ञान संपन्न होने से ही समाधान पूर्वक  जिएगा, यही सुख है। इसकी निरंतरता बना रहना ही  परमसुख है।
 हर परिवार में धन का स्रोत बना रहे जिससे परिवार में रहने वाले सभी सदस्यों किआवश्यकता की पूर्ति हो सके अर्थात समृद्धि के भाव में जीना  शांति पूर्वक जीना है ,क्योंकि धन के अभाव   और नासमझी के कारण झगड़ा होते हैं । अभाव से मुक्त होने से घर में शांति का वातावरण बना रहेगा।
  समाज में विश्वास के साथ जीना अर्थात मानवीय आचरण के साथ जीना है विश्वास के साथ जीना है। हर व्यक्ति मानवीय आचरण के साथ  जीता हुआ एक दूसरे का सम्मान करते हैं तो विश्वास का भाव बढ़ता है और समाज में भय से मुक्त होकर अभय के साथ जीता है तभी संतुष्ट के साथ जीना होता है वहीं संतुष्टि ही संतोष के साथ जीना है। प्रकृति में रितु संतुलन के साथ जीना अर्थात प्रकृति में चार अवस्थाएं हैं पदार्थ ,वनस्पति , जीव जंतु और मानव इन चारों अवस्थाओं में तालमेल अर्थात पारिस्थितिक तंत्र बने रहने से ही रितु संतुलन बना रहेगा जिससे वातावरण में शुद्धता बनी रहेगी कहीं भी प्रदूषण नहीं रहेगा जब प्रकृति में शुद्ध वातावरण के साथ जीना होगा, यही आनंद के साथ जीना है। इस तरह हर मानव में सुख, परिवार में शांति ,समाज में अभय एवं प्रकृति  मैं आनंद के साथ जीना परमानंद के साथ जीना है।   जिस दिन मानव इन्हीं भावों के साथ जिएगा वही राम राज्य के साथ जीता हुआ मानव कहलाएगा अभी रामराज्य के साथ जीना मात्र चाहत भर है। सभी तो भौतिक  चकाचौंध  की आडंबर में फंसे हुए हैं।  राम को हम ना तो जानते हैं ना तो मानते हैं ना तो पहचानते हैं ना राम की आचरण का पालन करते हैं। राम जैसे जीने की चाहत भर है जी नहीं पा रहे हैं जिस दिन राम के आचरण में जीना होगा उसी दिन  राम राज्य की स्थापना होगी।
 अभी स्थूल स्वरूप की ही पूजा की व्यवस्था है जबकि शूक्ष्म स्वरूप की पूजा हीै भ्रम से मुक्ति कर मोक्ष की ओर ले जाती है। यही राम की असली पूजा है ।राम की पूजा भ्रम से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करने के लिए की जाती है एवं राम की आचरण हमारे अंदर ज्ञान स्वरूप में है। उसी ज्ञान को पहचानना ही मानव का ज्ञान है ज्ञान का उपयोग सुख, शांति, संतोष ,आनंद के साथ जीने के लिए है ना कि लड़ झगड़ कर मरने के लिए ।वर्तमान समाज में यही देखा जा रहा है ,तो हम कहां जान पा रहे हैं राम को राम को जानाना ,बराबर सत्य को जानना ,सत्य को मानना ,सत्य को पहचानना ,सत्य का निर्वाह करना एवं सत्य आचरण के साथ निरंतर सुख समृद्धि  के साथ  जीना ही रामराज्य के साथ जीना है। राम राज्य में दुख नहीं है राम राज्य में केवल सुख और सुख ही है। इसीलिए   राम को सुखसागर कहा गया है। 
 वर्णों  के आधार पर राम का अर्थ है र+ आ+म=र का मतलब रस अर्थात भाव ,आ  का मतलब आत्मा एवं मा का मतलब मध्यस्थ। इसका अर्थ है जिस राज्य की जनता आत्मा में मध्यस्थ भाव का धारण कर आचरण स्वरूप में अंतरात्मा में धारण कर व्यवहार स्वरूप में व्यक्त करता है वही व्यक्ति राम राज्य के साथ जीता है अर्थात भाव के साथ जीता है श्री रामचंद्र जी भाव के भूखे हैं ना की भौतिकी वस्तु के पीछे अतः भावों में जीने वाला व्यक्ति रामचंद्र जी को पाता है ।जानता है ।मानता है। पहचानता है और भावों के साथ जीता हुआ भवसागर को पार कर लेता है यही रामराज्य है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
      मेरी नज़र में 'रामराज्य' शब्द आस्था और विश्वास का वह काल्पनिक स्वप्न है। जो कभी सार्थक नहीं हो सकता।
      इस सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि राजा इतना भी शक्तिहीन एवं असमर्थ नहीं होना चाहिए। जो असभ्य नागरिक के कहने पर अपनी गर्भवती पत्नी का त्याग करदे। वह राजा जिसने समस्त नागरिकों को सुखों से परिपूर्ण कर रखा हो और स्वयं  विरह की आग में झुलसे। ऐसे मर्यादा पुरुषोत्तम का क्या लाभ?
      रामराज्य का अर्थ यह कतई नहीं होना चाहिए कि अपराधी को छोड़कर निरापराधी को दण्ड दिया जाए। सभ्यता के नाम पर असभ्यता को बढ़ावा दिया जाए।
      सीताहरण का दण्ड जब रावण को दे दिया गया था। सीता जब अग्नि परीक्षा दे चुकी थी। उसके बाद भी नारी जाति पर शंका क्यों? क्यों लव और कुश के कारण सीता माता की पवित्रता की जांच का गंभीर प्रश्न उत्पन्न हुआ। क्यों माता सीता को अपनी पवित्रता सिद्ध करने के लिए धरती में समाना पड़ा? उस पर विडम्बना यह है कि इन प्रश्नों के उत्तर आज भी लुप्त हैं। 
      अतः रामराज्य शाब्दिक बिंदु का अर्थ कुछ भी हो। लेकिन एक बात स्पष्ट है कि उस राज्य में राजा-रानी एवं उनके बच्चे सुखी नहीं रहे। वे उन असभ्य नागरिकों के अपराधों का दण्ड भोगते रहे।जिन अपराधियों को कभी दण्ड नहीं मिला। इसलिए मेरी नज़र में 'रामराज्य' उत्तम श्रेणी का राज्य नहीं है।
- इन्दु भूषण बाली 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
 रामराज्य का अर्थ वही है जो सभी की नज़र में है। रामराज्य का सदैव एक ही अर्थ रहेगा।  कभी नहीं बदलेगा।  सदियां बीत जायेंगी, युग बदलेंगे किन्तु रामराज्य कभी न बदलेगा।  रामराज्य में मनुष्य आपस में भाईचारे, सौहाद्र्र और प्रेम से रहेंगे।  अमानुषिक शक्तियों का नाश होगा।  न्याय का डंका गूंजेगा। भ्रष्टाचार जैसा कोई नाम न होगा। स्त्रियों का सम्मान हो। बुजुर्गों का सम्मान हो। सभी ज्ञान से भरपूर हों। शिक्षकों का आचरण सार्थक हो। शिक्षकों का सम्मान हो। बच्चे कुशाग्र बुद्धि आज्ञाकारी, स्वावलम्बी, तार्किक बनें। लालच का कोई स्थान न हो। आपस में एक दूसरे के प्रति पूर्ण सम्मान का भाव हो। कोई गरीब बदहाल न हो। एक दूसरे के प्रति सेवा समर्पण का भाव हो। रघुकुल रीत सदा चली आई, प्राण जाएं पर वचन न जाई, ऐसा रामराज्य हों। जय श्रीराम।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
हिन्दू धर्म (संस्कृत: सनातन धर्म) एक धर्म (या, जीवन पद्धति) है जिसके अनुयायी अधिकांशतः भारत ,नेपाल और मॉरिशस में बहुमत में हैं। इसे विश्व का प्राचीनतम धर्म माना जाता है। इसे 'वैदिक सनातन वर्णाश्रम धर्म' भी कहते हैं जिसका अर्थ है कि इसकी उत्पत्ति मानव की उत्पत्ति से भी पहले से है।[1] विद्वान लोग हिन्दू धर्म को भारत की विभिन्न संस्कृतियों एवं परम्पराओं का सम्मिश्रण मानते हैं जिसका कोई संस्थापक नहीं है।
रामराज्य की अद्भुत विशेषता यह भी रही की उन्होंने ऐसी व्यवस्था की थी कि सभी वर्ग के लोग उनसे सरलतापूर्वक मिल सकते थे, बतिया सकते थे, अपने दुःख-दर्द बांट सकते थे। हम रामकथाओं में आधी रात के समय भी किसी का रुदन सुनकर श्री राम द्वारा अपना विश्राम भंग कर उसकी सेवा में उद्यत होने के बारे में सुनते हैं।
रामराज्य शब्द का भावार्थ यह है कि उसमें गरीबों की संपूर्ण रक्षा होगी, सब कार्य धर्मपूर्वक किए जाएंगे और लोकमत का हमेशा आदर किया जाएगा. ... सच्चा चिंतन तो वही है जिसमें रामराज्य के लिए योग्य साधन का ही उपयोग किया गया हो. यह याद रहे कि रामराज्य स्थापित करने के लिए हमें पाण्डित्य की कोई आवश्यकता नहीं है.
दैहिक दैविक भौतिक तापा। राम राज नहिं काहुहि ब्यापा॥ सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीती॥1॥
भावार्थ 'रामराज्य' में दैहिक, दैविक और भौतिक ताप किसी को नहीं व्यापते। सब मनुष्य परस्पर प्रेम करते हैं और वेदों में बताई हुई नीति (मर्यादा) में तत्पर रहकर अपने-अपने धर्म का पालन करते हैं॥1॥
मेरी नज़र में राम राज्य का अर्थ सिधा व सरल है हुकुमत जनता की सुने भेदभाव न करे , सबको एक नज़र से देखा जाए ,  सुख शांति अमन हो 
राम राज्य का मतलब है सब को एक नज़र से देखना 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
वाल्मीकि के रामायण में एक प्रसंग है जब श्री राम ने असुर रावण को मार के नीति चरित्र  के संस्कारवान विभीषण को लंका का राजा बना दिया था तब विभीषण श्री राम को रोकना चाहते थे लेकिन श्री राम अपनी जन्मभूमि अयोध्या को जाने के लिए अधीर हो गए तभी  अपने भाई लक्ष्मण से कहा -
" अपि स्वर्णमयी लंका  , न मे लक्ष्मण रोचते ।
जननी , जन्मभूमिश्च , स्वर्गादपि  गरीयसी ।।" 
कहने मतलब यही है कि हे लक्ष्मण यह लंका सोने की बनी हुई है , मेरा मन यहाँ नहीं लग रहा है ।अयोध्या लौटना चाहता हूँ क्योंकि माँ और जन्मभूमि स्वर्ग से महान होती है । कवि वाल्मीकि ने माँ और जन्मभूमि के प्रति प्रेम को दर्शा के दोनों की महिमा को दर्शाया है ।
लंका में असुर वृत्तियों , अधर्म , अन्याय के रावण का हनन कर के मानवता , मूल्यों की स्थापना करके श्री राम ने रामराज्य को स्थापित किया ।
आज के स्वार्थी  परिवेश में मानवजाति को अनूठा  प्रेम सन्देश दिया । 
राष्ट्र पुरुष मर्यादा पुरुषोत्तम राजा राम , प्रभु राम लला आध्यात्मिक नगरी अयोध्या में अपनेजन्मस्थान पर विश्वव्यापी मानवता को ले कर और मूल्यों  की स्थापना के लिए और रामराज्य पुनर्स्थापित करने आए हैं ।
ऐतिहासिक क्षण आज 5 अगस्त  2020 का है ।हनुमान गढ़ी में हनुमान का पूजन किया । परिजात वृक्ष का रोपण करके पर्यावरण संरक्षण , हरियाली का संदेश दिया। सनातन संस्कृति में पौधों के पूजन का महत्त्व दिया है ।500साल का संघर्ष के बाद आज राम कृपा से सात्विकता को पहने श्री राम भूतल पर आए हैं ।
 राम रस का पान कितने बार किया जाए किसी का मन नहीं भरता है । राम अंखड है , सर्वशक्तिमान हैं 
राम विसंगतियों को सह के साधरण मानव बनके धैर्य से सहके असाधरण बन के निषाद , वानर , भीलनी आदि निम्न जातियों को ,  जनमानस को एक सूत्र में बाँधा है । यही संदेश हमें राम के आचरण से मिलता है प्रतिकूलता में अनूकलता की सोच से काम करें ।
सन्त समाज , गणमान्य अतिथि इस दिव्य अलौकिक भूमि  पूजन में शामिल हुए हैं   ।  राम जी ने देश की नकारात्मक सोच का हनन किया है । आज पूरा देश हर भारतीय , सरयू  की लहरें हर जड़ -  चेतन  उल्लासित है ।
सत्य संकल्प को देने वाले श्री राम की शक्ति का अभिर्भाव हुआ है
अभिजीत मुहूर्त के दुपहर 12 बज के 12 मिनट , 12 सेकिंड में हमारे प्रधानमंत्री मोदी जी राम मंदिर का भूमि पूजन करके  चाँदी की आधार शिला नींव में रख के पूजन किया । सनातन युगान्तकारी घटना के साक्षी बनें ।
हर इंसान , चेतना , विश्व , समाज , देश राममय  हो गया ।
हमारे परिवार की ओर से जय श्री राम , जय राजा राम !
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
जब अवधपुरी के राजा मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्र थे, उस काल को रामराज्य कहा जाता है। जैसा कि सर्वविदित है अपने वचन पर मिटने वाले रघुकुल नंदन, एकपत्नीव्रत  श्रीराम को पुरुषोत्तम कहा जाता है। उनके शासनकाल में राज्य की प्रजा संतुष्ट और सुखी थी। राजा राम अपने प्रजा की खुशी को सर्वोपरि मानते थे। प्रजा की संतुष्टि के लिए अपनी भावनाओं और अपने सुखों की तिलांजलि अत्यंत ही सरलतापूर्वक दे देते थे। सुख, वैभव और समृद्धि युक्त उनके राज्य की तरह की परिस्थिति यदि कहीं भी बनती है तो हम उसे रामराज्य की संज्ञा देते हैं। 
       यद्यपि आज की वर्तमान परिस्थिति की तुलना उस काल से नहीं की जा सकती है। अब परिस्थितियाँ बहुत बदल गई हैं। लेकिन किसी भी राज्य की प्रजा यदि पूर्णतया सुखी और संतुष्ट हो, सरकार यदि प्रत्येक आम नागरिक की भावनाओं की कद्र करती है, शासनकर्ता के मन में किसी भी प्रकार की स्वार्थभावना नहीं हो और वो तन मन धन से अपने देश के लिए समर्पित हो तब हम कह सकते हैं कि उस प्रदेश में रामराज्य स्थापित हो गया है।
- रूणा रश्मि "दीप्त"
राँची - झारखंड
हिंदू संस्कृति में श्री राम द्वारा किया गया आदर्श शासन राम राज्य के नाम से प्रसिद्ध है।
 वर्तमान समय में रामराज्य का प्रयोग सर्वोत्कृष्ट शासन या आदर्श शासन के प्रतीक के रूप में माना जाता है ।
रामराज्य लोकतंत्र का परिमार्जित स्वरूप माना जाता है। 
राम राज्य की अवधारणा किसी धार्मिक संकीर्णता की द्योतक नहीं है, बल्कि एक जनहितकारी अवधारणा है ।
इस पर गंभीर मनन व चिंतन की आवश्यकता है ।
रामराज्य मे स्वाभाविक रूप से प्रकृति प्रदत्त उपहारों का उपयोग ही रामराज्य का आदर्श है ।
आज का मानव जिन विसंगतियों और विडंबनाओं का सामना कर रहा है वह रामराज्य का उल्टा है।
 समाज अनेक वर्गों और वर्णों में विभाजित हो चुका है ।मानव मानव के बीच विषमता शिखर पर पहुंच गई है ।एक दूसरे के प्रति घृणा से परिचालित हो रहा है यह समाज ।
 समूचे संसार में इन दिनों भावनात्मक एकता की कमी हो गई है ।
राजा द्वारा किसी तरह का पक्षपात नही था ।समदर्शी होना राजा होने का सबसे महत्वपूर्ण स्वरूप  माना जाता था ।
आज जरूरत पड़ गई है फिर से रामराज्य की ।
जिस राम राज्य का सारांश था,,,
 नहि दरिद्र कोउ दुखी न दीना ।
नहि कोउ अबुध सुलच्छन हीना।
 वैश्विक स्तर पर राम राज्य की स्थापना गांधीजी की चाह थी उन्होंने अंग्रेजी शासन से मुक्ति के बाद स्वराज के रूप में रामराज्य की कल्पना की थी ।
मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के सिहासन पर आसीन होते ही सर्वत्र   सुख शांति व्याप्त हो गया था सारे भाइयों  के अशोक दूर हो गए थे। एवं दैहिक दैविक और भौतिक पापों से मुक्ति मिल गई थी ।कोई भी अकाल मृत्यु, रोग, पीड़ा से ग्रस्त नहीं था । सभी स्वस्थ ,बुद्धिमान ,साक्षर, कृतज्ञ व  ज्ञानी थे।
 तुलसीदासजी ने लिखा है कि
 जासु राज प्रिय प्रजा दुखारी। सोइ नृप अवइ नर्क अधिकारी।
 अर्थात जिस राजा के राज्य में प्रजा दुखी है अभावग्रस्त जीवन व्यतीत कर रही है तो निश्चय ही नर्क का  अधिकारी है।
 बाल्मीकि रामायण एवं  रामचरितमानस में है पर्यावरण संबंधी विशेषताओं का भी उल्लेख किया गया है ,
वानिकी जो सिद्धांत प्रिसिपल ऑफ सस्टेंड यील्ड प्रतिपादित किया गया वहां रामचरितमानस में पहले से मौजूद था ।
राम राज्य में गाय व चारा की कमी न होने से गाय पर्याप्त दूध देती थी यही कारण था   कि सभी लोग स्वस्थ और निरोग थे। रामराज्य में सभी नदियां शुद्ध, निर्मल ,शीतल पेय जल से परिपूर्ण थी और न जल प्रदूषण था न वायु प्रदूषण और ना ही मृदा  प्रदूषण था इसी से लोग  बीमार नहीं होते थे एवं धरती हरी भरी थी ।इससे किसान संपन्न थे और राज्य समृद्धिशाली  था।
 अभाव व गरीबी का नामोनिशान नहीं था ।
शिक्षा के केंद्र गुरुकुल, समाज से दूर प्राकृतिक वातावरण में होते थे जहां शिक्षार्थियों को स्वावलम्बन  के साथ-साथ नैतिक ज्ञान की शिक्षा और अन्य विषयों की शिक्षा युद्ध कला आदि  की शिक्षा दी जाती थी ,जिससे समाज की बुराइयों का असर शिक्षार्थियों पर  नहीं पड़ता था ।वह बड़े होकर ज्ञानी ,विद्वान ,गुणवान नीतिज्ञ  और शौर्यवाह  होकर वापस समाज में लौटते थे।
 कुल मिलाकर हम कर सकते हैं रामराज्य का अर्थ तो यही था कि जहां किसी भी प्रकार का भेदभाव राजा द्वारा नहीं किया जाता था। वहां का वातावरण ,जल ,मृदा, वायु सब पूर्णतया सुरक्षित थे । कृषि ,गोधन ,फल ,फूल  पशुधन आदि से परिपूर्ण था रामराज्य ।
जिसके कारण समृद्धि थी,,,,, खुशहाली थी ,,,एवं लोग संपन्नता के कारण मानसिक और शारीरिक रूप से स्वस्थ थे ,,।और इसीलिए आपस में ईर्ष्या द्वेष  कम था जलन कम थी झगड़े कम नही थे नफरतें नही थीं ।
 लोग बाहर से गुरुकुल में शिक्षा पाकर आते थे जिसमें नैतिक शिक्षा और स्वावलम्बन  पर विशेष बल दिया जाता था जो व्यक्ति को आर्थिक व भावनात्मक रूप से मजबूत बनाता था।
 कुल मिलाकर एक दूसरे के प्रति प्रेम था ,समर्पण था ,प्यार था ,सेवा भाव था  एवं कृतज्ञता भी थी ।
देश प्रेम था ,गुरु प्रेम था ,परिवार प्रेम था ।
यही था रामराज ,,।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
रामराज्य की कल्पना राम से जुड़ी है।राम को पुरुषोत्तम समझा जाता है। उनके चरित्र और विचार को सर्वोत्तम माना गया है। यद्यपि आज के संदर्भ में उन विचारों में कुछ परिवर्तन की आवश्यकता है।
परिवर्तन से उनके मूल नियमों में कोई बदलाव नहीं होने चाहिए। इस तरह के शासन तब होते थे जब भारत के भागों में बँटा था। तब राजाओं की तुलना होती थी। जहाँ की प्रजा ज्यादा सुखी होती थी, वह राजा ज्यादा प्रभावशाली माना जाता था। उसी संदर्भ में रामराज्य भी प्रजा को निर्भय और जागरूक बनाता है। इसमें प्रजा अपने राजा से सीधा संपर्क करती थी। जिससे अन्य कर्मचारी, प्रजा का आदर करने पर विवश होते हैं। वे भ्रष्टाचार व अन्य कुकर्मों को करने की सोच भी नहीं सकते हैं। यही रामराज्य का स्वरूप है। 
 इस तरह एक स्वरूप जनता के सामने आता है कि जो शासक प्रजा की जरूरतों को समझ सके, उसका हल निकाल सके और शत्रु से लड़ने की ताकत रखे वही सही शासक है। राजा और प्रजा का संबंध पिता और संतान का संबंध होता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
आज की चर्चा में जहाँ तक इस बात का प्रश्न है कि आपकी नजरों में रामराज्य का क्या अर्थ है तो मेरी वाइफ नजरों में रामराज्य का अर्थ है मर्यादित राज्य मर्यादित नागरिक मर्यादित व्यवस्था मर्यादित व्यवहार और संस्कारित पीढ़ियां जो देश समाज के निर्माण में अपनी भूमिका को बेहतर ढंग से निभा सके स्वार्थपरता से परे सार्वभौमिक सत्य की ओर अग्रसर युवा पीढ़ी जो अपने बुजुर्गों माता-पिता और सभी बड़ों का सम्मान करती हो जहाँ स्वतंत्रता का अर्थ स्वच्छंदता कदापि न हो और सभी प्रेम पूर्वक एक साथ रह सके जहां केवल निहित स्वार्थी उद्देश्य नहीं हो मेरी नजरों में यही अर्थ है रामराज्य का 
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद  - उत्तर प्रदेश
भगवान राम हमारे आराध्य  हैं। उनका आदर्शमय जीवन संपूर्ण मानवजीवन के लिए एक मानक है। जिस शुचिता, निष्पक्षता और मर्यादा का उन्होंने अपने जीवन में पालन किया है, वह जीवन जीने का कला भी है और संदेश भी है।  उनका निजी जीवन हो या लोक जीवन हरेक रूप में उन्होंने प्रेम और न्याय को प्राथमिकता दी है। ऐसा उन्होंने करके निभाया भी है और दिखाया भी है। उनके शासनकाल में राष्ट्र धर्म का पालन करते  हुए प्रजा के हित और सुखों का पूरा-पूरा ध्यान रखा है। कहते हैं उनके शासन काल में न कोई दुखी था, न रोगी, न अभावग्रस्त और न ही किसी से पीड़ित। इसीलिए उनके शासन काल को रामराज्य का नाम दिया गया है। 
  ये त्रेतायुग की बातें हैं। 
आज वैसी परिकल्पना करना और वैसी अपेक्षा रखना, अति अपेक्षा होगी। माना कि असंभव नहीं है पर कठिन... बहुत कठिन... तो है ही। 
 अतः संतोष के लिए वर्तमान परिवेश में प्रजा याने समाज जितना अधिक से अधिक रोग, कष्ट, अभाव,चिंता से मुक्त हो, उसे न्याय मिले , उतना रामराज्य के करीब होना कह सकते हैं। कड़वा सच तो यह भी है कि इतना होना भी कठिन है ।
अस्तु।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
राम ,मर्यादा पुरुषोत्तम राम थे ,उनके रामराज्य का उल्लेख हमने रामचरित मानस में पढ़ा है ।उसके आधार पर तो आज के राम राज्य की कल्पना नहीं की जा
 सकती ।लेकिन ,ऐसी राज्य व्यवस्था जहाँ कोई दैनिक जरुरतों के लिए आभवग्रस्त न  हो ,जन -जन भय मुक्त हो या शान्ती से जीवन गुजार सके ।
रामराज्य में मर्यादा का पालन हो अर्थात सारे रिश्तों में मर्यादा हो,सभी  एक दूसरे का सम्मान करें । छोटी जात -बड़ीजात जैसे शब्द न हों । सबको अपनी बात कहने का हक हो । आज भी हमारा नेतृत्व कर्ता निर्भीक ,सबको साथ लेकर चलने वाला हो  । जनता यदि सुख ,सुकुन और शान्ती का अनुभव करती है तो मैं उसे राम राज्य ही मानूँगी ।
                     - कमला अग्रवाल 
                          गाजियाबाद  - उत्तर प्रदेश
  रामराज्य का अर्थ ---हृदय में समभाव को स्थापित कर मानवता के आधार पर इंसान को इंसान समझें। जातिगत आधार पर भेदभाव दिल में न रखकर कर्म के आधार पर सब को सम्मान दें। जाति के आधार पर किसी को पूज्य और किसी को तुच्छ न समझें।
  शोषक और शोषित का फासला मिटा कर हम सभी श्री राम के सच्चे अनुयाई बनें। उन्हें आदर्श मानकर उनके विचारों का अनुसरण करें। प्राचीन काल के राजा आज बदले हुए रूप में पूंजीपति बन गरीबों का शोषण व दोहन कर रहे हैं। सत्ताधारी स्वार्थलोलुप बन आर्थिक रूप से मजबूर लोगों के परेशानियों और जज्बातों को नजरअंदाज कर रहे हैं।
    रामराज्य की स्थापना तभी होगी जब सर्वांगीण विकास हो। जमीनी स्तर पर कार्य कर आर्थिक असमानता की खाई को पाटा जाए। सत्य और अहिंसा का मार्ग पर चलकर गरीबों की संपूर्ण रक्षा हो। कर्म रूपी धर्म का पालन करते हुए लोकमत का हमेशा आदर हो। 
  रामराज्य के लिए किसी पांडित्य की आवश्यकता नहीं। हर वर्ग,धर्म, जाति के स्त्री-पुरुष, वृद्ध, बच्चों को सम्मान और अधिकार की रक्षा करते हुए उनके खुशहाल जीवन को प्रोत्साहित और सींचित करते रहना ही रामराज्य है । प्रभु  हर रूप में कण- कण में वास करते हैं। न्यायप्रिय प्रभु राम को आदर्श मान उनके विचारों का अनुसरण कर समदृष्टि भाव से आदर, प्रेम, सम्मान के साथ रामराज्य की स्थापना हो। यही उनकी सच्ची आराधना है।
                       - सुनीता रानी राठौर 
                    ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
 रामराज का अर्थ भगवान राम,भगवान, सर्वोच्च आत्मा, आकर्षक होता हैं । राम के राज में मानव कल्याण करना,बिना किसी भेदभाव के जाति-धर्म,छोटा-बड़ा  सब को एक ही नजर से देखना।
श्रीराम के नजर में कोई भेदभाव नहीं था। 
समदर्शिता के सर्वोच्च मानक है ....... श्री राम समता के मूल सर्व अभय दाता है।माता शबरी के जूठे बेर खाए,नहीं पूछे माई के जात पात।मां ने दिया तो पुत्र के समान सर झुका कर  स्वीकार किए।श्री राम केवट राज के सामने भी सिर झुका कर याचना किए नदिया पार करा दो।शिलावत अहिल्या को पुनः प्राण दिए।
श्री राम किस जाति के हिंदुओं के नहीं बल्कि समस्त मानव जाति भारतीय राष्ट्रीयता भले ही किसी धर्माबली के हो । श्री राम  जटायु के प्रति भी अगाध स्नेह था। जबकि खग आमिस भोगी था फिर भी गिद्ध राज को भी गले लगाये और मुक्ति प्रदान किए। दूसरे के वेदना देखकर श्री राम को आंसू आते।
युद्ध में रावण को परास्त करने के बाद ,लक्ष्मण को रावण के पास आदर और सम्मान के भाव से भेजें।
*यह है रामराज क्या अर्थ* सबको एक नजर से देखो।
लेखक का विचार:- राम राज्य के अर्थ समदृष्टि से संसार को देखना यानी बिना भेदभाव तथा परिधि को देखें।
- विजेंयेद्र मोहन
बोकारो - झारखंड
यह विषय यह स्पष्ट करता है कि सबका साथ सबका विकास सिर्फ एक धर्म मानव धर्म रामराज रामराज की कल्पना महात्मा गांधी ने शुरू किया था उनका यह संदेश भारत के लिए था भारत में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के राज्य के समान ही भारत भी रामराज्य स्थापित करें।
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के रामराज्य का सीधा अर्थ यह है कि देश के नागरिक सर्वोपरि है एक राजा अपने राज्य के सभी निवासी के साथ समानता रखें व्यक्तित्व का मूल्य अमीर गरीब या पढ़ा लिखा धर्म जाति के आधार पर नहीं आंकना है राजा का कर्तव्य है अपने राज्य के निगरानी करना यही कारण था कि भगवान श्री राम अपने वेश बदल कर राज्य में घूमा करते थे और स्वयं यह महसूस करना चाहते थे हमारे राज्य के नागरिक सुखी संपन्न है या नहीं कहां किसको परेशानियां हो रही है साथ ही साथ उनके राज्य में काम करने वाले मंत्री महामंत्री अन्य कर्मचारी भी इसकी सूचना देते रहते थे और दोनों के तुलनात्मक रूप को आंकते हुए अपनी शासन प्रणाली की रूपरेखा तैयार करते
रामराज्य का मतलब बहुजन हिताय बहुजन सुखाय
सबका साथ सबका विकास
आत्मनिर्भरता आत्मविश्वास समान शिक्षा प्रणाली सामाजिक मान मर्यादा में समानता इत्यादि
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
कलयुग में रामराज्य की कल्पना मन को असीम शांति की अनुभूति कराती है। कितना सुन्दर शब्द है रामराज्य! मगर वर्तमान युग में, शास्त्रों में वर्णित रामराज्य के समान परिदृश्य देखना स्वप्न देखने के समान है।
किसी भी दौर में रामराज्य का अर्थ ढूंढा जाये तो सर्वप्रथम सत्ता को पवित्र और सत्ता के केन्द्र में रहने वाले व्यक्तियों का चरित्र उत्तम होना रामराज्य की पहली प्राथमिकता है।
मेरी नजर में रामराज्य उसी स्थान पर हो सकता है जहां व्यक्तिगत स्वार्थों और सत्ता की भूख मिटाने के लिए अलोकतांत्रिक एवं निम्नस्तरीय कार्य करने वाले व्यक्ति ना हों। जब तक राज्य में ऐसे लोग हैं तो ये रामराज्य की परिकल्पना को यथार्थ रूप में कभी परिवर्तित नहीं होने देंगे। इसलिए स्वयं को राज्य से बड़ा मानने वाले लोग रामराज्य में स्वीकार्य नहीं हो सकते।
रामराज्य की एक शर्त यह भी है कि न्याय व्यवस्था निष्पक्ष, निष्कपट और निष्कलंक हो। न्यायिक व्यवस्था में राजा-रंक एकसमान हों।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता भी रामराज्य का एक गुण है परन्तु साथ ही इस स्वतन्त्रता का उपयोग करने वाले नागरिकों का मस्तिष्क भी प्रखर एवं अभिव्यक्ति की सीमाओं को समझने वाला होना चाहिए।
मेरी नजर में रामराज्य सच्चे अर्थों में तभी परिलक्षित होता है जब उस राज्य का एक-एक नागरिक मानवीय मूल्यों का पालन करेगा। राज्य के नागरिकों का मानवीय गुणों से परिपूर्ण होना रामराज्य की स्थापना के लिए अति आवश्यक है।
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
        रामचरितमानस की चौपाइयों को पढ़ें तो उधर साफ शब्दों में लिखा है कि 'रामचरित हरि वहु विधि कीन्हा अति आनंद दासहि कह दीन्हा'। कहने का भाव यह है कि उनके राज्य में छोटे से छोटा कर्मचारी भी सुखमय जीवन व्यतीत कर रहा था अथवा हरेक हरेक को अपनी बात रखने का अधिकार था। यही नहीं उनकी बात सुनकर उस पर कार्रवाई भी की जाती थी। श्रीराम चंद्र स्वयं राजा होकर एक साधारण व्यक्ति का जीवन व्यतीत करते थे और रात को भेस बदलकर गांव-गांव जाकर गांववासियों की सुद्ध लेते थे कि उनके राज्य में दुखिया असहाय व्यक्ति तो नहीं है। अगर है तो क्यों। यहां तक कि यह भी अनुमान लगाते थे कि कोई मेरे कारण दुखी तो नहीं है या मेरे में क्या तृटियां हैं। इस बात का उदाहरण साफ झलकता है जब उन्होंने ने चंद गांव वासियों के कहने पर सीता माता को फिर से बनवास भेज दिया तथा लोगों की सहमति नहीं होते हुए सीता माता को वापिस लाने में असमर्थ समझा। हालांकि वो निर्दोष थी। फिर भी उन्होंने लोगों की आवाज को महत्व दिया। जिससे यह मालूम होता है कि रामराज्य में लोगों की आवाज को ही भगवान की आवाज समझा जाता था। इस बात से यह कथन ठीक बैठता है कि जैसा राजा वैसी प्रजा। कहने का तात्पर्य यह है कि अगर राजा अच्छे आचरण वाला हो तो प्रजा सुखी व अच्छे आचरण वाली होती है। जिससे यह प्रतीत होता है कि रामराज्य का अर्थ सुखमय जीवन व्यतीत करना अथवा न्यायपूर्वक राज्य का होना जिसमें राज्य की स्थिरता, संतुलन व शांति हो वही रामराज्य कहलाता है। ऐसे राज्य में निर्णायक कदम उठाना संतुलित तरीके का जीवन जीना व बिना किसी क्रोध की भावना से कार्य करना इत्यादि आता है।
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मेरी नजर में राम राज्य का अर्थ ऐसा आदर्श शासन जिस में जनमत को सर्वोपरि स्थान, धर्म-जाति के आधार पर कोई भेद भाव न हो, समानता का अधिकार, राजा -रंक एक बराबर, कर्तव्य परायणता और औरतों का शोषण न हो।वी. आई.पी. कल्चर बंद हो।लोगों में भी भाईचारा, सह्रदयता,संस्कार और नि:स्वारथ भावना हो ।
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
रामराज बैठे त्रैलोका। हरषित भए गए सब सोका।।  
दैहिक दैविक भौतिक तापा। रामराज सपनेहुं नहीं  व्यापा।।
बचपन में रामचरितमानस की ये चौपाइयां कक्षा चार या पांच में पढ़ी थीं। यही हमारे रामराज्य की कल्पना है। 
एक ऐसी व्यवस्था जिसमें किसी को कोई कष्ट न हो, रामराज्य की कल्पना का मुख्य अंग है,और यही अर्थ भी है रामराज का। 
यह कल्पना तब भी कल्पना ही रही जब राम राज था।भले ही इसे प्रभुलीला की संज्ञा दें हम, लेकिन क्या रामचंद्र जी स्वयं भी दुखों से बच सके? सुख,दुख के बीच के अनुपात में जब सुख अधिक हो,दुख कम हो तब रामराज मान सकते हैं। युग काल कोई भी रहा हो राज्य के दायित्वों में सुरक्षा, चिकित्सा और शिक्षा की व्यवस्था पर ध्यान देना विशेष रहा है। अब भी शासन इन पर विशेष ध्यान दें रहा है। राक्षस और दुसरे प्रवृत्ति के लोग तब भी थे,अब भी हैं। धर्मकार्यों में अवरोध तब भी होता था,अब भी होता है। राजा की निंदा करने वाले तब भी होते थे,अब भी हैं। हां तब शंबूक वध जैसी कपोल कल्पित कथाएं प्रचारित प्रसारित करने में दुष्ट सफल हो जाते थे। अब मीडिया की सक्रियता के कारण ऐसी झूठी कहानियां पनप ही नहीं पाती।राज्य के दायित्वों के निर्वहन में शासन, तत्कालीन शासन से कहीं कमतर नहीं। बस एक अंतर है जब राजपरिवार सत्यता का युग था और अब लोकसत्ता का युग है। परिस्थितियां तब भी विषम थी,अब भी विषम है। राज सत्ता कोई भी हो, किसी भी काल की हो जनहित से पीछे नहीं रहती। विदेशी आक्रमणकारी शासकों पर यह बात लागू नहीं होती। 
आज देश में बेहतर चिकित्सा,सुरक्षा और शिक्षा व्यवस्था है। यह और भी बेहतर हो, यही रामराज का अर्थ है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
राम एक नाम ही नहीं इसमें एक संदेश छिपा है मानव के लिए सभी का सम्मान समता की भावना आदर सम्मान मर्यादा जीवन को मर्यादित और सुसंस्कृत रखने की सीख-
गुरु साधु संत महंत, माता पिता परिवार के अन्य नाते रिश्ते मित्र सखा से व्यवहार एक राजा का अपने राज्य के प्रति कर्तव्य राज्य के प्रति राजा का कर्तव्य है सर्वोपरि है फिर उसके बाद ही वहां अपने परिवार के लिए हैं।
राम राज्य में भी यही व्यवस्था थी।
आज भी वही व्यवस्था है देश का प्रधानमंत्री हो तो उसके लिए सबसे पहले राष्ट्रहित देशहित ही सर्वोपरि है।
और जो राष्ट्र और देश के हित के लिए कार्य करते हैं निश्चित ही वह सदियों सदियों तक संसार में पूजित होते हैं
संसार के लिए एक प्रेरणा है एक सीख यही हमारी सनातन परंपरा है।
*ना त्यागो तुम अपने राज्य को
ना त्यागो तुम अपने कर्तव्य को
केवल त्यागो अपने  द्वेष ईर्ष्या अहंकार को सभी मानव समान है।
*राम जो सब में रम जाय मिल  जाय 
वह राम है* 
 राम शबरी भीलनी के बेर झूठे बेर खाए, केवट निषाद उनके सखा, पक्षीराज गरुड़, वानर रूप में हनुमान,
जामवंत रीछ रुप , सुग्रीव उनके मित्र
अनेक ऐसे उदाहरण है प्रकृति प्रेम प्रकृति का संरक्षण यह सब राम रूप ही तो है। परंपरा संस्कार संस्कृति
मर्यादित हो अनुशासित में रहें 
इसीलिए मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम कहे जाते हैं उनका युग था आज फिर से सब ने कल्पना की है उसी रामराज्य की प्रकृति अपना विभिन्न रूपों में
विनाश लीला दिखला रही है निश्चित ही आज रामराज्य की फिर से  राष्ट्र को देश को समाज को परिवार को संयमित अनुशासित रहने के लिए
आवश्यकता है।  राम जाति धर्म से ऊपर है सिर्फ मानवता ही मानव धर्म
सभी से प्रेम धैर्य और धीरज का प्रतीक है रामराज्य का अर्थ मेरी नज़र में 
सभी में रम जाए सभी में मिल जाए सब समान हो ना कोई ऊंचा ना कोई नीचा ना कोई भेदभाव ना डर ना भय ना आतंक ना कोई खौफ किसी प्रकार का समाज में उत्पन्न रहे ना कोई दबाव
किसी भी प्रकार का सभी का जीवन सुचारित रूप से संचालित रहे
यही  रामराज्य का मूल अर्थ है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
 रामराज्य का अर्थ सभी का खुशहाल होना  तथा प्रेम पूर्वक रहना है। रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है "दैहिक दैविक भौतिक तापा ।राम राज नहिं काहुहि ब्यापा।।
 सब नर करहिं परस्पर प्रीती। चलहिं स्वधर्म निरत श्रुति नीति।।
          अर्थात राम राज्य में किसी को भी किसी तरह का शारीरिक, मानसिक या दैविक कष्ट नहीं था समस्त प्राणी वेद पुराणों में बताई हुई नीति के अनुसार चलते थे। कहा तो यह भी जाता है कि राम राज्य में शेर और गाय भी एक ही घाट पर पानी पीते थे अर्थात जानवर भी नीतिगत कार्य करते थे। किसी तरह का अनाचार  तथा दुराचार नहीं होता था। चारों ओर खुशी एवं मंगल फैला हुआ था। राजा अपनी बजाय  जन समुदाय की भावनाओं का सम्मान करके उन्हें प्राथमिकता देते थे। यही कारण है कि श्री राम ने एक पत्नी व्रत होते हुए भी अपनी पतिव्रता पत्नी सीता का परित्याग कर दिया था और सीता जी ने भी उसे मन से स्वीकार कर लिया ताकि भगवान राम पर कोई दोषारोपण न कर सके। इसीलिए सीता जी आज भी नारी जाति का सम्मान मानी जाती है और श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम कहलाते हैं। कुल मिलाकर,
  *बहुजन सुखाय बहुजन हिताय*
 किया गया कार्य एवं व्यवस्था तथा सभी लोगों का  उसको पालन किया जाना ही मेरी नजर में *राम राज्य *है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
सभ्यता संकल्प संस्कृति की नींव का अर्थ होता है रामराज्य।राम भूमि पर राम मंदिर  का बनना ऐतिहासिक धरोहर अपनी माटी पर परचम राम नाम का होना होगा।रामराज्य मे संवेदनशील तत्वों कालीन होते है मानसिक शांति, वाणी मधुमेह की भातिं।राम मयार्दापुरूषार्थ थें त्याग बलिदान की भावनाओं की आधार ही रामराज्य का अर्थ हो सकता है।रामायण काल में कुबार्नी, बलिदान की गाथाएं व्यर्थ नही जायेगीं।रामराज्य का आना घोर कलयूग मे सार्थक सिद्ध होगा। सत्य, अहिंसा परमो धर्मों का आलेख ही रामराज्य का अर्थ है।दीप प्रचंड शिखर पर उजियारा तमस हरेगा ,अंधकार घटा धवस्त हो रामराज्य आयेगा।मानवता के मुल्यों की पहचान ही रामराज्य का सही पहचान है।पथनिर्माण रामदेव की आरती गूंज ,बन चारों दिशाओं मे गुजें,चरणामृत, पंचानन धरा पर रामपाल विराजमानहोगी।शंखनाद, शंखपुष्पी ,उद्धघोषक स्वर वृंदगान बजेगें,मेरे राम ,मेरे राम मंदिर भव्य सजें तब मानस के हृदय से पीडा़ कम हो जायेगी।हो रही धरती माँ प्रसन्न चिन्हित तिलक लगाने सें वर्षों के दबीं उम्मीद के चिराग जलेगीं। हर्षोल्लास ,मानस हृदय प्रफुल्लित 
जन्म भूमि राम रामायण गीता, महाभारत काल की सौंदर्य सौपान चढेगीं।रामराज्य आयें तब सारी प्रतिस्पर्धा खत्म हो जायेगीं
पचंमी अगस्त इतिहास पन्नों पर स्वर्णाक्षरित होगें।अयोध्या में,राम ,हे राम  
मानसमुख गुजें,रामलला श्री राम विरासत की आधार विश्राम गृह बनेगें हिंदुओं ,आध्यात्मिक भावनाओं,केंद्र रामराज्य आयोजन होगें।गुबंदों पर गोलियां छलनी की वीरों के छाती पर
आंतकवाद के घेराव से भुमि में आजादी की दहलीज होगीं।रामपाल की जन्मभूमि रामराज्य स्थापित होगींजय श्री राम जय श्री राम की ध्वनि गंगन पार जायेगीं।राम मंदिर बनने से रामराज्य की नींव भी पडे़गी मानवीय संवेदनाओं को उच्चतम स्तर पर आंकलन किया जायेगा।जहां शांतिपूर्ण तरीके से इक दूसरे की भावनाओं की रक्षार्थ हो, आपस के संबंधों मे मिठास हो ,एहसास की परस्पर वार्तालाप हो ,रामराज्य का अर्थ सिद्ध होगा।साहित्यिक ,साधक अनुभूति के चरणों में शब्दों के इमारतों में सतयुगी शब्दावली हो।ऐसी मनोवृत्तियों से ही संसार में रामराज्य को स्थापित करेगा।मुख मे राम हे रामका श्लोकन श्रद्धा से किया जाये।लोभ,मोह को परित्याग हो ऐसा रामराज्य का अर्थ है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
 जमशेदपुर - झारखंड
रामराज्य का अर्थ है  राज्य में  प्रजा  को किसी प्रकार का कोई दुख ना हो ।
राज्य में  प्रजा  का कोई भी प्राणी भूख, गरीबी और किसी के द्वारा सताया गया न हो। 
अन्याय का विरोध हो, न्याय संगत व्यवहार हो।
देश का राजा सब का ख्याल रखें और अपनी प्रजा को सुखी रखने
 के लिए चाहे अपने सुखों का त्याग कर दे।
उस देश के राजा का राज्य रामराज्य कहलाएगा।
 रघुकुल रीत सदा चली आ ए,
प्राण जाए पर वचन न जाए।
जिस प्रकार राम ने अपनी रघुकुल की रीत को सदा बनाए रखा जनता यानि  प्रजा से जो वचन किया वह पूरा किया।
  इसलिए राम का शासनकाल रामराज्य कहलाया ।
- रंजना हरित  
           बिजनौर -  उत्तर प्रदेश

" मेरी  दृष्टि में " रामराज्य का अर्थ है कि  गरीबों की समूचित रक्षा व विकास का प्रवाधान होना चाहिए । इससे ही रामराज्य कहना उचित रहेगा । बाकी सब कुछ अधूरा है ।
                                                       - बीजेन्द्र जैमिनी


सम्मान पत्र

Comments

  1. रामराज्य मैं सभी प्राणी परस्पर प्रेम भाव से शास्त्रोक्त विधियों का पालन करते हुए रहते थे। राजा पूर्णरूपेण जनता के प्रति समर्पित थे और अपने बच्चे की तरह प्रजा जनों का ध्यान रखते थे। इसीलिए रामराज्य को एक अच्छे शासन-प्रशासन के संदर्भ में लिया जाता है हालांकि उसमें कुछ अपवाद भी थे। श्री राम ने राजा के रूप में तो अपना दायित्व निभाया किंतु अपनी गर्भवती पत्नी एवं उदरस्थ बच्चों के संबंध में नहीं सोचा। उन्होंने पारिवारिक जिम्मेदारी को नजरअंदाज कर दिया। जनसाधारण की भाषा में रामराज्य से मतलब सही प्रशासन व्यवस्था, आपसी प्रेम भाईचारा शांति हर व्यक्ति के प्रति जवाबदेही से है। आज की परिस्थितियां त्रेता युग से अलग है। सर्वत्र अराजकता फैल रही है विप्लव उत्पात होते रहते हैं ।उस समय की प्रशासन प्रणाली और आज की प्रशासन प्रणाली में बहुत फर्क है ।जब समस्त प्रशासन तंत्र राम की तरह ऊर्जावान कर्तव्यनिष्ठ एवं त्यागी होगा और जनता भी सुसंस्कृत तथा भाई चारे वाली हो तभी कल्पना का रामराज्य वास्तविक राम राज्य में परिणित होगा।

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