अपराध को बढावा देने में किन - किन की भूमिका होती है ?

अपराधी कभी जन्म से नहीं होता है । अपराधी बनाने में बहुत सी भूमिका हो सकती हैं । जो अपराध के नंरक में ले जाती हैं । जो उसे समय - समय पर सुविधा सी नज़र आती हैं । जिससे अपराधी अपनी ताकत लोगों को समय - समय पर दिखाता रहता है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को देखते हैं : -
अपराध को बढ़ावा देने में बहुत से फ़ैक्टर काम करते हैं कौन कौन से फ़ैक्टर होते हैं ये बढ़ावा देने में इनकी भूमिका होती है ये जानने के लिए हमें अपराध को जानना होगा ।अपराध एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है और यह उसी समय से प्रचलन में है जबसे सभ्यता विकसित हुई। वस्तुत: अपराध तभी से होने प्रारंभ हो गए थे जबसे मानव ने धीरे-धीरे सभ्य होना शुरू किया था। अपराध प्रत्येक युग और हर समाज में पाई जाने वाली घटना है। कुछ उदारवादी विद्वान मानते हैं कि अपराध एक मानव-व्यवहार है। साथ ही ये विद्वान यह भी कहते हैं कि सभी मानव-व्यवहार, अपराध नहीं होते हैं। केवल उन्हीं मानव-व्यवहारों को अपराध कहा जा सकता है जो सामाजिक मान्यताओं और नैतिकता के प्रतिकूल सोच एक सार्वभौमिक घटना है लेकिन इसकी परिभाषा/व्याख्या में सार्वभौमिकता का अभाव पाया जाता है। इसका कारण यह है कि अपराध की अवधारणा, स्थान, समय, परिस्थितियों और आदर्शों से संबंधित होती है। अक्सर ऐसा भी देखा गया है कि कोई अपराध विशेष, शेष विश्व के लिए तो अपराध होता है लेकिन किसी क्षेत्र विशेष या वर्ग विशेष में उसे अपराध नहीं माना जाता है। अपराध, 'CRIME' का हिन्दी पर्याय है। क्राइम एक फ्रेंच शब्द है जिसे जुर्म, कसूर, पाप और गुनाह आदि के पर्यायवाची के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। वास्तव में 'CRIME' शब्द लैटिन भाषा के शब्द 'CRIMEN' से उत्पन्न हुआ है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है विलगाव अथवा अलगाव। इस प्रकार अपराध एक ऐसी घटना है जिसके करने से अपराधी, समाज से विलग हो जाता है अर्थात् उसके मन में समाज के प्रति अलगाव पैदा हो जाता है। अपराध का एक दुर्भाग्यपूर्ण पहलू यह है कि न्यायालय, मनोवैज्ञानिक, अभियोजन अधिकारी, पुलिस आदि सभी अपराधों को रोकने में जुटे हैं लेकिन अपराधों का ग्राफ लगातार बढ़ता जा रहा है।
समाजविज्ञानी अपराधी बनने के पीछे कुछ परिस्थितियों को ज़िम्मेदार कहते हैं - पारिवारिक परिस्थितियों के कारण बच्चे अपराध की दुनिया में प्रवेश करते हैं :
माता-पिता का बच्चों के प्रति असंतुलित व्यवहार, माता-पिता द्वारा लगातार आपस में लड़ना, परिवार की आर्थिक दरिद्रता, परिवार की नैतिक क्षीणता, परिवार के किसी अपराधी का अनुकरण, अभिभावक द्वारा दिए गए अनुचित निर्देश, विभिन्न प्रकार के मानसिक रोग, दुर्बलता या दोष।
 मनोवैज्ञानिकों ने अपराध के निम्नलिखित मनोवैज्ञानिक आधारों की पहचान की है :- मानसिक दोष, मानसिक दुर्बलता, पैतृक विशेषताएं , 
दमित इच्छा, अनुकरण, प्रवृत्तिशीलता
पारिवारिक कारण, निर्धनता, 
भौतिकतावादी संस्कृति , आधुनिकता, 
आदि कारणों से अपराध को बढ़ावा मिलता है । इसके अलावा आज के भौतिक और आधुनिक जीवन में व्यक्ति की इच्छाएं असीमित हो गई हैं, वह रातोंरात अमीर बनकर सारे ऐशोआराम पा लेना चाहता है, सारी सुख-सुविधाएं जुटा लेना चाहता है। ऐसे भौतिकतावादी इच्छाओं के कारण व्यक्ति तनाव का शिकार होकर कई ऐसे मानसिक रोगों का शिकार हो जाता है जिनके कारण वह अपराध करने लगता है। 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
 कोई भी व्यक्ति तीन कारण से ही अपराध करता है अज्ञानता, अभाव और अत्यासा अर्थात अधिक पाने की इच्छा आसक्ति।
 इन्हीं तीन कारणों से मनुष्य  अपराध करता  और करवाता है। जो अमानवीय तत्व के अंतर्गत आता है मनुष्य को अमान्य तत्व स्वीकार नहीं होता ।ऐसे अपराधी व्यक्ति लाभो उन्माद, भोगोउन्माद कामोउन्माद के स्वरूप में समाज में दिखाई देता हैं। जिसके फलन में समस्याएं उत्पन्न होती है  जो मनुष्य का दुःख का कारण बनता है।  वर्तमान समाज आज इन्हीं प्रवृत्तियों से लिप्त होकर अपराध करते जा रहा है। व्यक्ति वर्तमान में इन्हीं प्रवृत्तियों को भ्रम वश श्रेष्ठ मानकर अपनी पहचान बनाने में व्यस्त है ।ऐसी पहचान का मानव जीवन में कोई अर्थ नहीं है ।अनर्थ कार्य में लिप्त होकर सुख ढूंढने का लाभो उन्मादी ,भोगोउन्मादीऔर कामो उन्मादी व्यक्ति भरपूर प्रयास कर रहा है और इसकी पूर्ति अपराध प्रवृति अपनाकर पूर्ति करने का प्रयास कर रहा है। अपराध को बढ़ावा देने में किनको  इंगित करें, जो व्यक्ति शोषण मानसिकता से लाभ कमाता है और उस धन को भोगने अर्थात साधन सुविधा दिखावा आडंबर में लगाता है ऐसे व्यक्ति भी अपराधी कहलाता है। भोगो उन्माद व्यक्ति जितना अधिक साधन सुविधा को महत्व देता है उतना अधिक शोषण अपराध करता है एवं कामोन्माद प्रवृत्ति  वर्तमान की सबसे जघन्य अपराध में गण्य है।  कामोन्माद व्यक्ति वर्तमान समाज में ज्यादा देखने के लिए मिल रहा है। इस तरह कुल मिलाकर समाज में भोगोउन्माद,  लाभोउन्माद कामोन्माद व्यक्ति अज्ञानत,  अभाव और अति पाने की आशा से अपराध करता है ।इस नियम से कोई भी व्यक्ति जांच सकता है। स्वयं को, कि वह किस उन्माद के अंतर्गत है अगर तीनों  उन्माद से परे है तो  वह व्यक्ति  निरा अपराधी है। क्योंकि हर व्यक्ति  को स्वयं का मूल्यांकन कर सकने का अधिकार है। अतः हर व्यक्ति नियम के आधार पर मूल्यांकन कर अपराध को कौन बढ़ावा देता है पता लगा सकता है। भ्रमित मानव ही अपराध करता है जागृत माहव नीरा अपराधी होता है।
 - उर्मिला सिदार
 रायगढ़ -  छत्तीसगढ़
     अपराध एक लक्ष्य हैं, जो जीविकोपार्जन करने का साधन बन वृहद स्तर पर विभिन्न श्रेणियों में विभक्त हो गया हैं। जिसके कारण कब कौन सी घटनाऐं घटित हो जा कहा नहीं जा सकता हैं, जो बताकर नहीं आती हैं। जब बाल्यावस्था से परिवारजनों की अनेकों परेशानियों का सामना करते-करते वह इतना प्रबल हो जाता हैं, जो शिक्षा, सम सामयिक नैतिक दायित्व, अनभिज्ञता, प्रचार-प्रसार से काफी दूर निकल जाता हैं, तब धीरे-धीरे अपराध की ओर अग्रसर होने लगता हैं। उसे मालूम हैं, जेल में समस्त प्रकार की सुख सुविधाओं का केन्द्र हैं, जहाँ रहकर भी जीवनयापन किया जा सकता हैं, इसी जेल में महत्वपूर्ण महानुभावों से भेंट होती हैं और उनके सम्पर्कों में आने पश्चात वह समस्त प्रकार की क्रियाकलापों को अच्छी तरह से समझने लगता हैं, जिसे आशीर्वाद प्राप्त होकर शनैः-शनैः अपराधों में लिप्त होता चला जाता हैं। फिर क्या देखना, महानुभावों के आशीर्वादों से ऊंचाइयों की बुलंदियों की ओर अग्रसर होता जाता हैं और एक निम्न अपराध से प्रारंभ होकर अपराध में ही अंत हो जाता हैं। अगर हम शिशु अवस्था में ही अपराध को ही रोक लगा दी जायें, तो भविष्य में उग्रता नहीं झलकेगी। वैसे बाल सुधार केन्द्र भी स्थापित हैं, उसके उपरान्त भी ऐसी स्थिति निर्मित हो रही हैं, ऐसा प्रतीत होता हैं, कि हम कहीं न कहीं अपराध को जड़ों से नहीं मिटा पा रहे हैं। जो अपराधियों को बढ़ावा देने में अहम् भूमिका अदा कर रहे हैं, उन्हें ही वृहद स्तर पर सुधारने की आवश्यकता प्रतीत होती हैं। अगर अपराध लक्ष्य ही सार्थक हैं, तो स्वतंत्रता भारत में अपराधियों की रोकथाम के लिए कार्यशाला आयोजित करना चाहिए?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
इन दिनों देशभर में हत्या, चोरी, लूट, बलात्कार, आत्महत्या जैसी घटनाऐं अधिक होने लगी हैं. आम आदमी अपराध की इन घटनाओं से सहम गया है....
हर व्यक्ति अपने लिए बेहतर चाहता है. हमारे देश की मान्यता थी कि साधु इतना दीजिए जामे कुटुम समाए , मैं भी भूखा न रहूं साधु भी भूखा न जाए वहां पर अब लोग अपने पेट की भूख को शांत करने में लगे हुए हैं. दूसरी ओर लोगों में सहनशीलता, त्याग, करूणा, दया, लोगों को सुनने की क्षमता, समझने की क्षमता और बड़ों का आदर समाप्त होता जा रहा है. ऐसे में लोग अपना संतुलन खो रहे हैं। 
बढती जनसंख्या, बेरोज़गारी , परिवार विघटन , असीमित जरुरतो , दिखावा व क़ानून व्यवस्था का लचर होना , उचित संस्कारों का अभाव , 
मेरी नज़र में यह सब कारण है अपराध को बढ़ावा देने के ....!
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
छोटे-छोटे  अपराधों  का  श्रीगणेश  घर-परिवार  से  प्रारम्भ  होता  है  । यदि  समय  पर  अंकुश  न  लगाया  जाए  तो  यह  प्रवृत्ति  बढ़ती  जाती  है  । 
      परिवार  के  पश्चात  वातावरण,  संगी-साथी, प्रबल  आकांक्षाएं, कमजोर  आर्थिक  स्थिति, निठल्लापन,  रातों-रात  अमीर  बनने  की  चाहत,  देखा- देखी  आदि  की  महताऊ  भूमिका  होती  है  । 
       राजनेता, समाज  के  असमाजिक  तत्व  भी  अपराधों  को  बढ़ावा  देते  हैं  ।  कई  मजबूरीवश  भी  लोग  अपराध  जगत  से  जुड़  जाते  हैं  । 
      वर्तमान  समय  में  संस्कारों  का  ह्रास........संवेदनाओं ......भावनाओं  का  ह्रास .......परिवारों  का  बिखराव ........एकाकीपन ......तनाव .......आपसी  सामंजस्य  का  अभाव  इत्यादि  भी  कहीं  न  कहीं  इस  वृति  के  जिम्मेदार  हैं  । 
       अतः  आवश्यकता  है  धैर्य, सामंजस्य .....आपसी  सौहार्द........अपनत्व   की  । 
         - बसन्ती  पंवार 
          जोधपुर  - राजस्थान 
मानसिकता विचारों की जननी है।  अपराधी प्रवृति मुख्यतः बौद्धिक विक्षिप्तता का परिणाम है। 
प्राणी जगत में सर्वश्रेष्ठ स्थान रखनेवाले प्रजाति इंसानों की मानी जाती है। परंतु अफसोस बुद्धि , विवेक , ज्ञान और मस्तिष्क धारण किए हम मनुष्यों में आपराधिक भाव प्रबल होते हैं।
कुंठित मानसिकता तथा प्रतिकूल परिस्थितियां अपराध को बढ़ावा देने के लिए जिम्मेदार है। "अरस्तू" ने कहा है - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है।
इस संदर्भ में प्रत्येक नागरिक का अपने सामाजिक दायित्वों का निर्वहन न करते हुए अधिकारों की प्रचुरता भी अपराधी को जन्म देती है। 
निष्कर्षतः स्वार्थ लोलुपता , कलुषित विचार, अधिकारों का हनन , कर्तव्यनिष्ठा का लोप तथा समुचित कठोर दंड विधान का अभाव भी अपराध को बढ़ावा देने में अहम भूमिका निभाता है।
- संगीता सहाय "अनुभूति"
रांची - झारखंड
अपराध को बढ़ावा देने में सबसे पहली भूमिका- नेताओं की होती है, जो अपने फायदे के लिए अपराधियों को न केवल प्रश्रय देते हैं बल्कि उनके गलत कारनामों पर पर्दा डाल कर उन्हें बचाते हैं तथा न्याय पालिका और कार्यपालिका पर दबाव बना कर उन्हें बरी करवा लेते हैं ।
दूसरी भूमिका प्रशासनिक अधिकारियों की होती है जो  सियासतदानों के दंड से बचने के लिए अपना कर्तव्य और ईमानदारी छोड़ कर ऐसे खूंखार अपराधियों के अपराध  नजरअंदाज कर देते हैं ।
तीसरी भूमिका में न्याय पालिका आती है जिसे अब संदेह की दृष्टि से देखा जाने लगा है । अब वह समय नहीं रहा,  जब पंचो के मुख से परमेश्वर बोलते थे । अब जब निर्णायक ही सौदागर हो जाए तो अन्याय, अत्याचार और अपराध को बढ़ावा देने से कौन रोक सकता है ?
अपराध को बढ़ावा देने में  लोकतंत्र का चौथा स्तंभ, महती भूमिका में रहता है जो सत्य से ध्यान भटकने के लिए 
व्यर्थ के डेबिट करा कर सिर्फ हिंसा और अपराध दिखा कर सामाजिक व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करता है। पहले समाचार वाचक केवल सूचनादाता थे आज बिका हुआ मीडिया कठपुतली की तरह कार्य कर रहा है ।
इसी के साथ सोशल मीडिया ने भी अपराध को बढ़ावा देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। 
पांचवीं भूमिका विपक्ष की होती है जो इस डर से, उन गुंडे बदमाशों पर कठोर  कार्यवाही की मांग नहीं पाते कि भविष्य में सत्ता मिलने पर यही गुंडे  उनके काम आएंगे ।
अपराध को बढ़ावा देने में परोक्ष रूप से महत्वपूर्ण  भूमिका अभिभावक, शिक्षक एवं समाज की भी होती है ।
यदि ये तीनों अपना उचित उत्तरदायित्व निभाते हुए एक शिक्षित, संस्कारवान, ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ,  वैचारिक दृढ, एवं सत्य के प्रति तटस्थ रहने वाली, विवेकवान पीढ़ी को तैयार करेंगे, तो निश्चित ही ये अपराध, अपराधी एवं उन्हें प्रश्रय देने वालों पर हावी हो जाएंगे ।
फिर सत्ता-बल और धन-बल से कोई उन्हें खरीद और तोड़ नहीं सकेगा ।
अंत में कहना चाहूँगी कि  राजनीति जहाँ बड़े-बड़े  अपराध पनपते हैं जो अपराधों  का अड्डा बन चुकी है उसकी शुचिता अत्यंत आवश्यकता है और शुचिता  जनजागृति द्वारा ही संभव है ,जन आक्रोश ही इस पर नियंत्रण ला सकता है ।
- वंदना दुबे 
 धार - मध्यप्रदेश
अपराध को बढ़ावा देने में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से, वे सभी बढ़ावा देने में अपनी भूमिका अदा कर रहे हैं, जिन्हें इसे रोकने और खत्म करने की जिम्मेवारी है। राजनीतिक, प्रशासनिक, सामाजिक और पारिवारिक सभी में ऐसे जिम्मेदार लोग हैं जो इस विकृति को पनपने में संरक्षण देने  का घृणित कार्य कर रहे हैं। सभी अपनी नैतिक जिम्मेदारी को भूलकर, स्वार्थ और लालच के वशीभूत हैं। वरना सभी इतने सक्षम हैं कि मजाल कोई अपराधी चीं चपाट करने का दुःसाहस कर सके। इस बात के अनेक उदाहरण मिलते हैं कि जब उन्हें किसी अपराधी को दंडित कराना ही होता है तो वे उस अपराधी को आकाश-पाताल में भी छुपा हो, खोजकर निकलवा लेते हैं और जिनको बचाना है वह  निर्भीकता से घूमता रहता है और दस्तावेजों में फरारी दर्ज रहा आता है।
धार की बहन वंदना जी ने जो बिंदुवार ऐसे लोगों के विषय के बारे में विस्तार से बिल्कुल सही बतलाया है।
 और गहराई से इसे समझने के लिए तह तक जावें तो अपराध की प्रवृत्ति की शुरुआत घर के वातावरण से मनोवैज्ञानिक तौर पर होती है, फिर संगत का असर और फिर उसके बचाव और संरक्षण में शामिल होने वाले। यह एक ऐसा अदृश्य चक्र होता है जिसमें अपराधी आदतों में ढीठ और बुद्धि से कमजोर  होता जाता है। हिंसा और क्रूरता बढ़ती जाती है और दया, दूरदर्शिता खत्म होती जाती है। जिसका अंजाम वह तो भुगतता ही है, उसके परिजन और उसके द्वारा प्रताड़ित पीड़ितों को भी भुगतना पड़ता है। 
अतः हरेक बचपन को उत्तम शिक्षा देने और  संस्कारवान बनाने की बहुत जरूरत है। इसके लिए सभी संबंधितों को सजग और समर्पित होना होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
ये अक्सर कहा जाता है कि कोई भी इंसान माँ के पेट से अपराधी बनकर पैदा नही होता है परंतु ये भी हकीकत है कि किसी भी इंसान को अपराधी बनाने में माँ बाप का अहम रोल होता है । बच्चो को दिए गए संस्कार ही उनके भविष्य का निर्माण करते है । प्रथम स्टेज तो घर का माहौल और संस्कार तथा माँ बाप का बच्चों के साथ सामंजस्य है , जो बच्चो को उनका मार्ग चुनने में मदद करते है । बच्चो दी गई ज्यादा ढील और उनकी छोटी छोटी गलतियों को नजर अंदाज कर घर के लोग ही उसे बड़े अपराध की ओर अग्रेसित करते है । 
उसके बाद हमारे समाज मे अपराधी को अपराध करते पकड़ लेने के बाद भी कानून व न्याय तंत्र द्वारा उचित सजा न मिलना भी अपराध को बढ़ावा देता है । दरअसल मार पीट , क्षेत्र में गोली चल जाना , किसी को गोली मार देने जैसे कांड तक को तो पुलिस ले देकर रफा दफा करा देती है और यधपि पुलिस अपना काम करे भी तो दुनिया भर की पार्टियों के क्षेत्रीय नेता पुलिस को अपना काम नही करने देते । अर्थात इतने बड़े मामले भी न्यायालय तक नही पहुंच पाते , अब इन क्रियाकलापों से अपराध और अपराधी बलवान ही होंगे । 
- परीक्षीत गुप्ता
बिजनौर - उत्तरप्रदेश
 कोई भी व्यक्ति जन्मजात अपराधी नहीं होता है। उसे बनने के लिए यह सब कारण हो सकता है:-
आर्थिक तंगी,मनोवैज्ञानिक,  शारीरिक विकार, स्वस्थ्य मनोरंजन के  साधनों की कमी,बातावरण,चलचित्र है।
मनोवैज्ञानिक:- अपराध करने की इच्छा से युक्त मन। 
अपराधिक गैंग ,राजनीतिक दल यह सब सक्रिय रहते हैं ,और ध्यान रखते हैं कौन सा व्यक्ति मेरे लिए उपयुक्त है,उसे प्रलोभन देकर अपनी और आकर्षित कर लेते हैं। और उसे अपराध की दुनिया में उतार देते हैं। 
हम वातावरण के प्रमुख प्रभाव अस्वीकार भी नहीं कर सकते हैं। असाधारण अनुभव है कि उचित वातावरण अपराध करने की भावना को प्रोत्साहन देता है।
अपराध क्या है:- अपराध समाज विरोधी क्रिया है, निर्धारित आचरण का उल्लंघन करना अपराध है, इसके मतलब बनाए नियमों का उल्लंघन करना अपराध है।
शारीरिक विकार अपराधी होने के लिए यह भी बहुत महत्वपूर्ण कारण है।
हमारे देश में स्वस्थ्य मनोरंजन की कमी भी एक कारण है।
चलचित्र भी अपराध की दुनिया में उतरने के लिए उकसाता है।
वातावरण:- अगर कोई छोटे शिशु को अपराधियों के गैंग के साथ रख दिया जाए तो क्रमशः उसकी मनोवृति उसी ओर अग्रसर होता है ।
नियमतः ऐसे बच्चों को सुधार के लिए प्रोबेशन एक्ट लागू हुआ है।
 उन्हें अलग वातावरण में रखने का किया गया है ।अपराधियों के सुधार में सहायता मिलती है ।उन्हें उपयोगी व्यवसाय की शिक्षा दी जाती है। ताकि दंड की निर्धारित अवधि पूरी करने पर घर  लौटने पर सच्चाई से अपनी जीविका चला सके।
लेखक का विचार:- कोई भी व्यक्ति जन्म से अपराधी नहीं होते हैं ।उसे गैंग चालक या राजनीतिक दल या वातावरण बना बना देता है।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
विषय सामाजिक पारिवारिक चारित्रिक और राजनैतिक भी है अपराध को पनपने में और बढ़ावा देने में 4 स्थाई स्तंभ है पहला पारिवारिक दूसरा आर्थिक तीसरा सामाजिक चौथा मनोवैज्ञानिक पांचवा राजनैतिक
पारिवारिक का अर्थ हुआ की परवरिश में दोष होने के वजह से अपराधी प्रवृत्ति विकसित हो जाते हैं परिवार में जब उसी प्रकार की चर्चा होती रहती है और कमाने की जरिया भी वहीं रहता है तो प्रारंभ से ही बच्चे यह सृष्टि जाते हैं कि यही सही तरीका है
समाजिक अवहेलना बेरोजगारी और आर्थिक रुप से तंगी होने पर अपनी जरूरतों को पूरी करने के लिए छोटा अपराध से शुरुआत करता है और एक बड़ा अपराधी बन जाता है बड़ा अपराधी बनने पर उसे राजनैतिक सहायता भी मिलने जब लगते हैं तो अपराध की रूपरेखा बिल्कुल ही बदल जाती है
मनोवैज्ञानिक कारण भी अपराध को बढ़ावा बहुत हद तक देते हैं जैसे निराशा कुंठा बदले की भावना विद्रोह की भावना यह मानसिक कारण है जिसके कारण इंसान अपराध की ओर आगे बढ़ जाता है और जब वो अपराधी प्रवृत्ति का हो जाता है वह उस चंगुल से जब निकलना भी चाहता है तो नहीं निकल पाता है कहीं न कहीं उसे वैसे इंसान का सपोर्ट मिला रहता है जिनका की राजनीतिक दुनिया में अपना बोलबाला है
इसलिए यदि अपराध को कम करना है तो चारों क्षेत्र में सुधार की आवश्यकता होगी चाहे वह राजनीतिक क्षेत्र हो ब्यूरोक्रेट्स का क्षेत्र हो कहीं ना कहीं हमारा न्यायालय भी इसमें दोषी होता है पेंडिंग अपराध का पेंडिंग इतना ज्यादा चलता है कि न्याय नहीं मिल पाता है तो असंतोष की भावना बढ़ जाती है तो न्यायपालिका व्यवस्थापिका और कार्यपालिका अगर अपने आप में नीति का सही मूल्यांकन करें और लागू करें तो मेरे समझ से अपराध खत्म तो नहीं हो सकता है पर कम अवश्य हो सकता है
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
अपराध की प्रकृति ही ऐसी है कि यदि उसे बढ़ावा देने वाली परिस्थितियां मिलती रहें तो वह निरन्तर वीभत्स होता जाता है। कोई भी अपराधी बिना किसी सहारे के अपराध की राह पर लम्बे समय तक नहीं चल सकता। 
अपराध को बढ़ावा देने में परिवार, समाज, सत्ता सभी की कुछ न कुछ भूमिका होती है। 
परिवार और समाज अपराध की प्रारम्भिक स्थिति में अपराधियों के अपराधों को अनदेखा कर अपनी नकारात्मक भूमिका निभाता है। 
परन्तु अपराध को बढ़ावा देने में मुख्य रूप से शासन-प्रशासन में बैठे तत्वों की भूमिका अधिकाधिक होती है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
अपराध को बढ़ावा देने में अपराधी की स्वयं की मनोदशा के साथ-साथ उसका परिवेश,उसके संपर्क में रहने वाले और उस अपराध से लाभ उठाने वाले लोग सहयोगी होते हैं। इनमें से कुछ प्रत्यक्ष सहयोगी और कुछ अप्रत्यक्ष सहयोगी होते हैं। जब व्यक्ति पहली बार कोई अपराध करता है तो निश्चित रूप से उसमें अपराध बोध होता है।इसी समय उसके इस भाव को, उसकी मनोदशा पर प्रभावी नहीं होने देने के लिए, जो लोग उसके आसपास होते हैं, वह विभिन्न तर्क कुतर्क के माध्यम से अपराधी के अपराध को सही ठहराते हुए उसे निर्दोष होने का भरोसा दिला देते हैं। बस यहीं से शुरू होता है अपराधी मनोवृति का विकास। इस अपराध विकास यात्रा में कुछ ऐसे पड़ाव आते हैं जो अपराधी को और भी अपराध करने के लिए प्रेरित करते हैं, जैसे जेल यात्रा। जब व्यक्ति गिरफ्तार होकर जेल जाता है, तो वहां मिलने वाले अन्य कैदियों के साथ उसकी अपराधी प्रवृत्ति अपराध की मनोदशा और भी परिपक्व होती है। ऐसा नहीं कि जेल यात्रा के बाद अपराधी सुधरते नहीं, सुधरते भी है। लेकिन फिर यदि अपराध करते हैं तो वह पहले से अधिक बड़ा अपराध होता है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
           अपराधी के सहायक सभी लोग चाहे वे परिवार के हों या समाज के या फिर प्रशासन से संबंधित। इन सभी की भूमिका होती है, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से। कोई खुलकर उनका सहयोग करते हैं तो कोई चुप रह कर बिना विरोध किए सहयोग करते हैं। उनके अपराधों पर पर्दा डालने की कोशिश और उनकी जगह दूसरों को सजा मिलना ,प्रताड़ित करना या फिर किसी गलत काम में उनको शामिल करके दिखाना यह सब भी अपराधियों को बढ़ाने की भूमिका में आते हैं। उनको अच्छा दिखाने के लिए डर कर उनकी चापलूसी करना यह भी  उनको बढ़ावा देना है। गलत कार्य का हमेशा प्रतिकार किया जाना चाहिए एवं उस पर संज्ञान लिया जाना चाहिए। तदनुसार उपयुक्त सजा दी जानी चाहिए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
             अगर देखा जाय तो अपराध को बढ़ावा देने में कहीं न कहीं थोड़ी बहुत भूमिका सभी की होती है। बचपन में माँ-बाप की भूमिका बड़ी महत्वपूर्ण होती है। कि उनका बच्चा किस प्रवृत्ति का है। वो उसे जिस ढंग से पालन पोषण करेंगे बच्चा वैसा ही होगा।उसको कैसे संस्कार वो दे रहे हैं बच्चा उसी तरह का होगा।
             दूसरी बात समाज के लोग भी अपराध को बढ़ाने में मदद करते हैं। ये सब छोटे-मोटे अपराधों की बात है।किसी भी अपराधी या अपराध को यदि पहले ही दमन कर दिया जाय तो वो बढ़ नहीं पायेगा।
                  तीसरी बात अपराध को बढ़ावा देने में मित्रों और दोस्तों की भी होती है। इनके बहकावे में आकर भी बहुत से लोग अपराधी बन जाते हैं।
                चौथी बात अपराध को बढ़ावा देने में पुलिस और नेताओं की सबसे बड़ी भूमिका है। वो चाहते हैं कि अपराध और अपराधी बने रहे तो उनकी चांदी कटती रहे।किसी निरपराधी को पकड़ उसके साथ ऐसा व्यवहार करते हैं कि वो अपराधी बन जाता है।नेता चाहते हैं कि उनके अंडर में कुछ अपराधी रहें जिससे वो कहीं भी तोड़फोड़ ,लूट खसोट, दंगा फसाद करवा सकें और अपना सिक्का जमाये रखें।
          किसी भी सही आदमी के साथ बार-बार गलत व्यवहार हो तो वह अपराधी किस्म का आदमी हो जाता है। वो सोचता है मैं सही हूँ फिर भी लोग मुझे गलत समझ रहे हैं। तो फिर वह जानबूझकर अपराधी बन जाता है।
   बेरोजगारी भी अपराध को बढ़ावा देता है। गरीबी भी अपराध को बढ़ावा देता है।यहाँ तक पैसा भी अपराध को बढ़ावा देता है।
        इस तरह से हम देखते हैं कि अपराध या अपराधी को बढ़ावा देने में समाज के हर वर्ग का कुछ न कुछ हाथ रहता है।ये बात जग जाहिर है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
        संक्षिप्त में कहुं तो सर्वप्रथम अपराध को बढ़ावा देने में सामाजिक कायरता अग्रिम भूमिका निभाती है। उसके उपरांत अपराधिक प्रवृत्ति को सहन करने वाले अर्थात पीड़ा/प्रताड़ना का विरोध न करने वालों की भूमिका वर्णनीय है।
        उल्लेखनीय है कि हम भारतीय लम्बी अवधि तक पराधीन रहे हैं। जिससे हम अपनी वीरता संस्कृति भूल कर क्रूरता सहन करने के आदी हो चुके हैं। परंतु जो स्वतंत्रता एवं न्याय प्रिय शूरवीर शूरवीरता से अपराध और अपराधियों का सामना करते हैं। उन्हें भ्रष्टाचार का फैला सशक्त साम्राज्य जो पुलिस, प्रशासन, विपक्ष एवं सत्तापक्ष, पत्रकारों, न्यायपालिका की न्यायालयों के न्यायाधीशों से लेकर सत्ता हस्तांतरण संधि अधिनियम 1947 तक अपनी सशक्त भूमिका का निर्वाह करते हुए उनकी कमर तोड़ देते हैं।
      अतः दृष्टि होते हुए हमारे अंधेपन और जीब्हा होते हुए हमारे गूंगेपन एवं शक्ति होते हुए हमारी निर्बलता की भूमिका पर जब तक प्रश्न उठते रहेंगे तब तक किसी ना किसी रूप में कहीं ना कहीं हम सब अपराध को बढ़ावा देने की भूमिका निभा रहे हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
अपराध को बढ़ावा देने में गरीबी, भुखमरी, अमीर-गरीब के बीच की चैड़ी खाई, मजबूरी आदि परिस्थितियों की मुख्य भूमिका होती है। जब ये परिस्थितियां हावी होकर अपना प्रभाव डालना शुरू करती हैं तो अपराध और अपराधी का जन्म होता है। जन्म से कोई अपराधी पैदा नहीं होता। जब किसी भूखे को रोटी नहीं मिलती तो वह अपनी जान बचाने के लिए चोरी जैसा अपराध करता है। जब किसी गरीब के पास अपना या अपने परिजनों का इलाज कराने के लिए दवाइयों के पैसे नहीं होते तो वह मजबूरी में कई अपराध कर जाता है। अक्सर देखा गया है कि जो गरीब अपराध के रास्ते पर चल पड़ा है तो अपराध के सागर के बड़े मगरमच्छ धन का लालच देकर उससे अनेक अपराध करवाते हैं। चौराहे पर भीख मांगते भिखारी जब खाली हाथ लौटते हैं तो उनमें अपराध जन्म लेता है और वह भीख मांगना छोड़कर छोटे-मोटे अपराधों में लिप्त हो जाते हैं। गरीब का बच्चा जब स्कूल में पढ़ नहीं पाता या पढ़ते हुए फीस नहीं दे पाता तो उसे स्कूल से निकाल दिया जाता है, नतीजा वह भी अपराध की दुनिया में कदम रख देता है क्योंकि जीने के लिए पैसे के लिए जब शिक्षा ही नहीं मिली तो अपराध ही सही। यह भी देखा गया है कि माशूका को खुश करने के लिए लड़के मोबाइल झपटना, चेन खींचना, गाड़ियों में से लैपटाप और बैग उड़ाना जैसे अपराध कर बैठते हैं। ऐसे छुटपुट अपराध करने वालों पर बड़े अपराधियों की नजर होती है और मौका मिलते ही वह उसे अपने गैंग में शामिल कर अपराध की दुनिया के गुर सिखाते हैं। अपहरण कर फिरौती मांगना भी अमीरी-गरीबी का खाई का परिणाम होता है। जब किसी अमीर के घर में गरीब नौकर या नौकरानी को अमानुषिक तरीके से डांट कर जलील किया जाता है तो उनमें अपराध भाव जन्म लेता है और परिणिति होती है अपहरण, हत्या, लूट, डकैती जैसे मामलों में। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति न होगी कि इन अपराधियों के सरपरस्त अधिकतर अपराधी छवि वाले नेता भी होते हैं। अनेक मामलों में पुलिस भी अपराधियों के साथ संलिप्त पाई गई है। अगर पुलिस किसी अपराधी को पकड़ लेती है तो ऊंची पहुंच वालों के फोन उसे छोड़ देने पर मजबूर कर देते हैं।  जब अपराधी को सुरक्षा मिलती रहेगी तो अपराध को तो बढ़ावा मिलता ही रहेगा। 
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली
मेरे विचार से अपराध को बढ़ावा देने में सबसे प्रमुख भुमिका होती है हमारे देश की कानून व्यवस्था की हमारे देश की न्याय व्यवस्था की प्रकिया इतनी धीमी है कि अपराधी को सजा मिलते मिलते सालो गुजर जाते है अपराध करने वाला एक के बाद एक अपराध करता ही  चला जाता है और उसका केस  न्यालाय में सालो चलता ही रहता है और अगर सालो बाद अपराधी को सजा मिल भी जाए तो बेल लेकर वह फिर से समाज में एक नए अपराध को जन्म  देता है।
इसके साथ ही सोशल मीडिया के कुछ नकरात्मक पहलू, बच्चो में नैतिक मूल्यों में कमी,गरीबी , बेरोजगारी ,युवाओं में बढ़ते नशे के मामले आदि कुछ ऐसे कारक है जिसे हम  कह सकते हैं कि अपराध को बढ़ावा देने में मुख्य भूमिका   निभाते है।
         -  सुधा कर्ण 
           रांची - झारखण्ड
अपराध इस समय चर्म शिखा पर  पहुंच चुका है और इसके कदम दिन व दिन बढत की तरफ हैं,  कोई एेसा दिन नहीं होता जिस दिन इसका ग्राफ कम दिखे, इसको बढावा देने में कई कारण  होते हैं जिनको हम नजरअंदाज कर देते हैं जिस का खमियाजा सभी को भोगना पड़ता है, शूरू शुरू में जव वच्चे छोटे होते हैं तो कई वार जब वो अपराधिक कार्य करते हैं त हम उनके  द्वारा किए अपराधों का माफ कर देते हैं कि अभी छोटा है वाद में सुधर जाएगा जिससे बच्चों में हिम्मत बढ़ने लगती है ओर वाद में वो वड़े   से वडे़ अपराध शूरू कर देते हैं एैसे बच्चों को माता पिता अपराधी वनाने में  भूमिका  निभाने कार्य करते हैं। उसके वाद  कुछ शिक्षक भी बच्चो को अच्छे संस्कार नही दे पाते जिससे बच्चे बिगड़ कर अपराध करना शूरू कर देते है़
कुछ अपराधीयों को सिफारश कर के सजा होने से छूट मिल जाती है, एेैसा करने से भी  अपराध को बढावा मिलता है, जवकि पुलिस कर्मचारी अपराधी को सही सजा नहीं दे पाते। 
वडे़ वडे़ अपराध घूश लेने के वाद माफ कर दिए जाते हैं  जिससे अपराध को वढावा मिलता है। इसलिए अपराध को बढावा देने में वहुत   सी वातों की भूमिका कार्य करती है, जैसे घर का माहौल, शिक्षकों की अनदेखी, कानून की अनदेखी, रिश्वतखोरी वा सिफारिश के साथ  नेतागीरी इत्यादी शामिल हैं अता इन सव चीजों की भूमिका ही अपराध को बढावा देने में कारगार सिद्ध  हो रही है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मेरे विचार से अपराध को बढावा देने में पुलिस ,प्रशासन और
 जनता तीनों की भूमिका है । विडंबना ये है कि इन्हीं तीनों के हाथों में अपराध को  नियंत्रित करने की क्षमता भी है।
लेकिन  सही गलत का फर्क समझते हुए भी आत्मचिंतन 
के अभाव में स्वार्थ ,लालच ,अशिक्षा और जागरूकता की कमी के कारण अपराध रूपी आग को हवा मिलती रहती है।
- बिम्मी प्रसाद "वीणा"
रांची - झारखंड
अपराध को बढ़ावा देने में पुलिस, प्रशासन, राजनेता,वकील और थोड़ी बहुत भूमिका आम जनता और समाज की भी होती है।
 अपराध भी कई किस्म के होते हैं-- व्यक्तिगत और संगठित। व्यक्तिगत अपराध बदले की भावना, कुंठाग्रस्त स्थिति या पथभ्रष्ट होने के कारण अकेला व्यक्ति करता है। इस पर पुलिस चाहे तो तुरंत नियंत्रण कर सकती है जबकि संगठित अपराध बहुत ही भयावह और सामाजिक क्षति पहुंचाने वाला होता है। इसमें जो गिरोह बनता है उसमें पुलिस और नेताओं की सहभागिता होती है। प्रशासन की तरफ से भी शह मिला होता है।
 वर्तमान में सबसे ज्यादा अपराध शिक्षित वर्ग के  उच्च पद पर बैठे नामचीन लोग करोड़ों का घोटाला   कर के कर रहे हैं। बिना मिलीभगत के इतना बड़ा घोटाला संभव नहीं हो सकता। ये सफेदपोश अपराधी सबसे ज्यादा खतरनाक है जो हमारे समाज और देश को खोखला कर रहे हैं।
   आम जनता की गलती यह रहती है कि वे अपने व्यक्तिगत नुकसान के डर से उसके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते क्योंकि इन अपराधियों की पहुंच ऊपर तक होती है। इस कारण दिनदहाड़े गुंडागर्दी, कोई भी अपराध या गोरखधंधा करने से ये नहीं हिचकते। 
  जनता डर से आंख मूंदे रहती है। पुलिस रिश्वत लेकर चुप हो जाती है। राजनेता अपने स्वार्थ हेतु अपराधियों को शरण देते हैं। प्रशासन खुद को अच्छा साबित करने के चक्कर में अपराधों पर पर्दा डालते रहती है। इन सभी वजह से अपराध जगत फलता-फूलता रहता है। प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से अपराध को बढ़ावा देने में किसी का कम तो किसी का ज्यादा भूमिका होती ही होती है।
                  -  सुनीता रानी राठौर
               ग्रेटर नोएडा - उत्तर प्रदेश
प्रथम हमे अपने घर से ही शुरुआत करनी होगी! यदि बच्चा कोई अपराध करता है तो उसे छूपाने अथवा सह देने की जगह उसे समझाएं अथवा तुरंत दण्ड दे !  किसी भी तरह का अपराध  हो अपराधी को दंड मिलने में लंबा समय मिलने पर वह पुनः उसी अपराध की पुनरावृति करता  है! 
समय पर न्याय का न होना :--
हमारे यहाँ न्यायालय में न्याय मिलते  मिलते चप्पल घिस जाती  है! वकील  तारीख पर तारीख लेता है! अपराधी जमानत पर छूट सांड की तरह बिंदास अपने वकील की छत्रछाया में बाहर गुनाह पर गुनाह करता है!  वकील का अपना पेशा है! जितना बड़ा गुनाह उतनी तगड़ी फीस ! अपराधी तुरंत दंडित नहीं होता और वह बेखौफ, निर्भिक होकर रहता हैऔर निर्भया जैसे जधन्य अपराध को जन्म देता है! 
किसी की मजबूरी या ऊची ख्वाहिशे का फायदा उठा, अथवा शॉर्टकट मारकर पैसे कमाने की इच्छा भी अपराध  को बढ़ाती है! 
राजनीति अखाडा़ अपराधी और अपराध का गढ़ है ! यहां से अपराध को बढ़ावा मिलता है! चंद प्रलोभन दे देश के रक्षक कहलाने वाले सफेद पोश धारण कर काले करतूत वाले ये नेता दूसरे के कंधे में बंदूक लिए अपना काम निकाल इन्हें अपने संरक्षण में रख अपराध को बढ़ावा देते हैं! 
आगे चलकर यही अपराधी राजनीति दांव पेंच सीख  अपने क्षेत्र के विधायक बनते हैं तत्पश्चात एक उच्चचरित्रवान नेता  जिसपर जनता के हिफाजत की बागडोर होती है! 
 अपराध को कम करना है तो हमारी न्यायपालिका में कुछ संशोधन करने होंगे! न्याय सुय पर मिले एवं अपराधी को कठोर से कठोर दंड दिया जाय! 
इस मामले में संविधान के नियमों में भी नया प्रस्ताव पारित करना होगा जैसे जधन्य अपराध में फांसी की सजा होनी चाहिए ताकि दूसरी बार अपराध करने से भी डरा! 
- चंद्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
आज की चर्चा से पूर्व यह जानना आवश्यक है कि अपराध (crime )है क्या? 
अपराध क़ानून का उलंघ्घन करने की नकारात्मक प्रक्रिया है, जिससे समाज के तत्वों का विनाश होता है तथा दोषी व्यक्ति को क़ानून द्वारा निर्धारित दण्ड दिया जाता है l 
अपराध को बढ़ावा देने में सबसे अहम रोल अपराध करने की इच्छा से युक्त मन का होता है l कुटिल विचारों की परिणति ही अपराध है l क्षणिक आवेग गुस्से में भी व्यक्ति अपराध कर बैठता है, फिर पश्चाताप की अग्नि में जलता है l भावी विनाश से रक्षा की वृति में राजनैतिक हत्याएँ आती हैं ऐसे अपराध पूर्व नियोजित षड्यंत्र रचकर किये जाते है l 
मेरे विचारों में अपराधीकरण को निम्न बिंदू जन्म देते हैं --
1. आर्थिक कारण 
2. मनोवैज्ञानिक कारण 
3. शारीरिक विकार, विक्षिप्तता मानसिक असंतुलन 
4. स्वस्थ्य मनोरंजन के साधनों की कमी 
5. चलचित्र 
उपर्युक्त के अतिरिक्त वातावरण भी अपराध को बढ़ाता है या यूँ कहे कि कलुषित वातावरण अपराध बनने की भावना को प्रोत्साहित करता है l नेक चलनी पर सजावधि से पूर्व जेल से रिहा करना इसी का अंग है l 
        आज पुलिस, अपराधों की रोकथाम के लिए जवाब देह है लेकिन अपराधियों में विश्वास और आमजन में भय वाली छवि भी अपराधों को प्रोत्साहन दे रही है अर्थात पुलिस की शक्ति का उपयोग वैध उद्देश्य के लिए हो l 
             मंत्रीगण व्यक्तिगत और राजनैतिक कारणों से अपराधियों के संरक्षण स्थली के रूप में उभर रहे हैं अतः विशेषज्ञों से यह सुझाव आये है कि राजनीतिक कार्यकारिणी की शक्तियों का दायरा क़ानून के तहत सीमित किया जाना चाहिए l 
  मैं सी लंब्रोसो के इस कथन से बिल्कुल सहमत नहीं हूँ कि अपराधी जन्म जात होते है l कोई भी व्यक्ति माँ की कोख से सीखकर नहीं आता, परिवेश उसे अपराधी बनाता है l 
              चलते चलते -----
एक अपराधी की लाचारी कहें जो उसे इसी राह पर बढ़ने को बाध्य करती है l 
बस यही अपराध में हर बार करता हूँ l 
करता नहीं अपराध पर स्वीकार करता हूँ ll 
             कटु सत्य --
1. माना किताबों में हम अपराध रोकना पढ़ सकते हैं  
 लेकिन संस्कार तो आज भी हम अपने परिवार से सीखते हैं l 
2. मंजिलों को जोड़ती है आरम्भ से, फिर भी ड़गर क्यों मौन है? 
चीर खिंचता द्रौपदी का सभा में, पितामह मगर मौन क्यों हैं? 
हो रहे हैं अपराध प्रतिदिन, जाने हुआ क्या सबको धरा पर, 
अख़बार छपते रोज अनगिनत यहाँ फिर भी ख़बर क्यों मौन है? 
अपराध कुछ इतने घिनोने हुए हैं इस संसार से 
आज गंगाजल के बजाय शराब से हाथ धोने पड़ रहे हैं l 
        - डॉ छाया शर्मा
 अजमेर -  राजस्थान
आज वैश्विक स्तर पर सर्वत्र अपराधों में बढ़ावा हो रहा है; जो सार्वजनिक स्तर पर गंभीर चिंतन का विषय है । वर्तमान समय में हर देश की राजनीति रतन हो गई है और आदमियत दफ़न हो गई है । देखा जाता है कि कभी-कभी कोई राजनीतिक पार्टी जीवन पर्यंत अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए तुष्टीकरण की नीतियों को अपनाकर जात पात, वर्ग- भेद, सांप्रदायिकता जैसे भयंकर अपराधों को अदूरदर्शिता के कारण जन्म दे देती है। जिसके दूरगामी परिणाम आतंक व अपराध के मूल में मानवता को कुचल डालते हैं। साथ ही प्रशासन भी कभी-कभी मूक व कठपुतली बना अपराध जगत का साथी बन जाता है। जिसकी वास्तविकता आम व भोली जनता की पहुंच से कोसो दूर ही बनी रहती है।फलस्वरूप  अराजक तत्व पनपने लगते हैं।ऐसे लोगो द्वारा  अपना प्रभुत्व बनाए रखने के लिए सही सिद्धांतों का भी विरोध किया जाता है और जिसके लिए एक गुंडे मवाली तबके की संख्या बढ़ा ली जाती है और राजनीतिक संरक्षण के तले वह पनपते, फलते- फूलते रहते हैं और समय-समय पर उनकी सहायता से ऐसे भयावह अंजाम दिए जाते हैं कि जिसकी आप और हम कल्पना भी नहीं कर सकते।
        इसके अलावा परिवार, समाज और राष्ट्र में स्वार्थ व अहमन्यता के कारण भी आज अपराधों में बढ़ोतरी हुई है।
        सार रूप में यही कहा जा सकता है कि  संस्कार- विहीन परिवार, भौतिक कारक, बेरोजगारी, निर्धनता, भुखमरी तथा सस्ती राजनीति ने भी आज अपराध को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की है।
-  डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
 समाज जो आचरण निर्धारित करता है  अगर उसका कोई उल्लंघन करता है तो उसे अपराध कहा जाता है|
सबसे पहले माता -पिता का कर्तव्य है कि  वे शिशु का पालन -पोषण उचित प्रकार से  करें, और उसके भविष्य के निर्माण में सहयोगी हों |जिन बच्चों को माता -पिता का प्रेम मिलता है उनमे अपराध की भावना विकसित नहीं हो सकती |
 अपराध करने के कई कारण हो सकते हैं जैसे  भावी विनाश से रक्षा करने का प्रयत्न, भावुकता  , आवेग आदि  |कई लोग राजनीतिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए भी अपराध करते हैं | लेकिन ऐसा  क्षणिक  आवेग में नहीं हो  सकता |   अपराध करने के निम्नलिखित कारण हो सकते है| जैसे कई बार कोई व्यक्ति अपराध करने वाले को अगर आश्रय देता है तो वह भी अपराध की श्रेणी में आता है| आर्थिक कारण, मनोवैज्ञानिक कारण, शारीरिक विकार  आदि  भी  अपराध करने में सहयोगी हो सकते हैं
 कई बार कोई व्यक्ति परिस्थिति से मजबूर होकर ही अपराध की ओर अग्रसर होता है| विक्षिप्तता  या मानसिक असंतुलन भी अपराध को बढ़ावा देते हैं|   मनुष्य की अंतहीन इच्छाएं भी उसे अपराध की ओर अग्रसर करती  हैं| कई बार किसी व्यक्ति का बाल्यकाल प्रेम और प्रोत्साहन के वातावरण में नहीं बीतता उसके मन में अनेक प्रकार की चिंता की ग्रंथियां बन जाती  हैं|
 बहुत  बार व्यक्ति  गलत व्यक्तियों के संग  के कारण भी  अपराध की ओर अग्रसर हो जाता है| समाज की व्यवस्था भी अपराध को बढ़ावा देने में सहायक होती है| जाति और धर्म के प्रति कट्टरता होने के कारण भी अपराध उत्पन्न होता  है | ईर्ष्या  और जलन भी  अपराध को जन्म देती है| अपराध की प्रवृत्ति के पीछे कई कारण हैं  जैसे  सामाजिक भेदभाव, शोषण, आर्थिक भेदभाव, किसी  को नीचा दिखाने की प्रवृत्ति,  हमारी राजनीतिक कार्य प्रणाली|  फिल्म जगत में भी अपराध को बढ़ावा देने कई  तरीके बताए जाते हैं| जिन्हें देखकर अपराधी को अपराध करने में बड़ी सुगमता होती है| हमारी शिक्षा प्रणाली भी  व्यक्ति के  भीतरी विकास में कोई सहयोग नहीं देती | परिणाम स्वरूप छात्र विश्वविद्यालय से  चालाकी , दोगलापन,, दिखावा  वह प्रतिस्पर्धा की  भावना का विकास करके लौटता है| इसलिए वह समाज को कुछ नहीं दे पाता | उसकी शिक्षा केवल व्यावसायिक होकर रह जाती  है | संक्षेप में अगर हम कहें  मुख्य कारण यही हैं जो  व्यक्ति को   उनकी संभावनाओं के विकास के लिए  अग्रसर नहीं होने देते|यह भी  हो सकता है  किताब जीवन में केवल असफलता ही मिले  तो अपराध की वृत्ति  उत्पन्न हो सकती है|
 - चंद्रकांता अग्निहोत्री
 पंचकूला - हरियाणा
अपराध को बढ़ावा देने में बहुत सारी पृष्ठभूमि काम करती है।कुछ व्यक्ति की परिस्थिति कुछ परिवेश कुछ समाजिक कारणवश इत्यादि। अराजक ऐसा घृणित कार्य कुछ अच्छे लोगों द्वारा किया या करवाया जा रहा है।ऐसे व्यक्ति अपने पावर के मद्द में इतने चूर होते हैं कि वह अच्छाई- बुराई की परिभाषा हीं भूल गए हैं। अब ऐसा हाल हो गया है कि कुछ खद्दर धारी  जान बुझकर ऐसे अपराधियों को पालते हैं ताकि वो उनके लिए गैरकानूनी काम करें और अगर कहीं पकड़ा भी जाए तो अपने पैसे और रौब के बल पर वैसे अपराधी को रिहाई भी करा दी जाती है। हमारी कानून व्यवस्था भी सही नहीं है जिसके कारण बहुत से अपराधी छूट जातें हैं,और पुनः उसी आपराधिक कृत्य में लिप्त हो जातें हैं।साथ हीं अगर कोई बेकसूर गलती से कानूनी दांव+ पेंच का शिकार बन जाता है तो ऐसा व्यक्ति भी बदलें की भावना से अपराध की ओर कदम बढ़ा देता है। कुछ भ्रष्टाचार आफिसर के ग़लत कारनामों के कारण भी अपराध को बढ़ावा मिलता है। शिक्षा का अभाव,भूख, ग़रीबी, मजबूरी भी व्यक्ति को अपराध की दुनिया में धकेल देती है। कानून सख्त हो और त्वरित कार्रवाई करे तो अपराध को बढ़ावा कम मिलेगा। अपराधियों में लचर कानून व्यवस्था के कारण बिल्कुल खौंफ नहीं है इसलिए अपराध को बढ़ावा मिलता है।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
बढ़ते अपराधों से कांपता समाज और बेबस से खड़े सब बस तमाशा देखते रह जाते हैं। आखिर क्यों दिनोंदिन अपराध बढ़ते जा रहे हैं और हम सब मूक बधिर से खड़े रह जाते हैं। सबसे मूल कारण है मानसिकता
1)मानसिकता अपराध करने वालों की।
2)मानसिकता अपराध सहने वालों की।
पहले हम अपराध करने वालों को मानसिकता को देखते हैं-अपराध जान बूझकर किया गया है या गलती से हुआ है।
उदाहरण के लिए एक आदमी जुआ खेलकर पैसा घर पर लाता है और उसे घर के लोग अपनी सहमति से रख कर उसे फिर से अपराध करने के लिए बाध्य करते हैं चाहे इसका कारण उनकी आर्थिक स्थिति क्यों न हो।इस स्थिति में अपराधी के अपराध को छिपाया गया है जिससे उसे फिर से अपराध करने की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिला।अगर यही पर उसके परिवार वाले उसे गलत कार्य करने से रोकते और उसका अपराध छिपाया न गया होता तो वह अपराध करने से पहले खुद के ज़मीर को टटोलता। और आगे अपराध नहीं करता।
इसके लिए हम इतिहास का एक किस्सा सब जानते हैं कि जब वाल्मीकि डाकू बन कर सबको लूटते रहे तब तक उनके परिवार वाले उनके साथ थे मगर जैसे ही उन्हें ये बोध हुआ कि मेरे दोषों की सजा में मेरा परिवार साथ नहीं है वही उन्होंने अपना मार्ग बदल लिया और महाऋषि वाल्मीकि बने। तो परिवार, मित्र और संगी साथी इसमें मुख्य भूमिका निभाते हैं।
दूसरा उदाहरण-अगर कोई व्यक्ति यातायात के नियम को अनदेखा करते हुए जल्दबाजी में कानून तोड़ देता है तो वह भी दंड का भागी है परन्तु वह अगली बार सचेत रहता है और फिर से कानों नहीं तोड़ता।
अपराध को बढ़ावा देने में उस व्यक्ति की अपनी सोच, उसकी आर्थिक स्थिति,उसका परिवेश(जैसे शिक्षा का आभाव, अपरिपक्वता) और दण्ड का प्रावधान तथा लचीला कानून और सामाजिक परिस्थिति भी मुख्य रूप से जिम्मेदार होती है। पहले झूठ बोलना भी अपराध था। आज झूठ इस सफ़ाई से बोला जाता है कि झूठ सच बन जाता है और सच दण्डित हो जाता है।
2)अपराध को बढ़ावा देने में अपराध को चुपचाप सहने की आदत भी अपराध को बढ़ावा देती है। आज भ्रष्टाचार का चारों ओर बोलबाला है।ये भ्रष्टाचार इसलिए इतना फलफूला कि सबने सिर्फ अपने फायदे को सर्वोपरि रखा। जो हो रहा है उससे उन्हें कोई मलतब नहीं बस अपना काम हो जाए।फिर वो चाहे कोई भी तरीका हो। यही अगर सब मिलकर इस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाए तो ये कभी फलफूल नहीं सकता था।
आज हर कोई स्वार्थी हो गया है। देश से, अपने समाज से, अपने कर्तव्यों से किसी को कुछ लेना देना नहीं है। आँख मूंदकर जो जैसा चल रहा है चलता रहना चाहिए।अपराधी सरे आम सड़क पर गोलियां चलाए या किसी की इज्जत से खिलवाड़ करें, सब चुपचाप सहते है।
- सीमा मोंगा
रोहिणी -  दिल्ली
अपराध की शुरुआत सच पूछा जाए तो माँ-बाप से होती है। बच्चे जब जन्म लेते हैं तो उनका पालन-पोषण किस वातावरण में हुआ है यह बहुत मायने रखता है। एक-से-एक गरीबों को ईमानदारी से काम करते देखा है। आर्थिक कमजोरी उनकी भावना पर असर करती है, लेकिन उसे अपराध नहीं कह कर गलती या मजबूरी कह सकते हैं। 
पहली अपराध की शिक्षा घर से मिलती है। उसके बाद समाज पर जिम्मेदारी आती है। समाज से सहानुभूति की अपेक्षा करने पर अगर उपेक्षा मिलती है तो एक बच्चा छोटे-छोटे अपराध करने लगता है। आगे यही बड़े अपराध का रूप ले लेता है। इसके बाद संरक्षक की भूमिका होती है , जो इसको हवा, पानी देता है। यहाँ उसकी जिंदगी की दिशा तय होती है। इसमें न्यायालय, पुलिस व पैसे वालों का बहुत हाथ होता है।
 किसी को भी अपराधी होने से रोकने का एक ही तरीका है कि उसे कैदी या अपराध की दुनिया में जाने से बचाना। इसके लिए समाज को अच्छी सोच देनी होगी।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
किसी भी समाज में अपराध पहले से निश्चित नहीं रहता समय काल परिस्थितियों पर बहुत कुछ निर्भर करता है इसके बहुत से कारण होते हैं गरीबी ,आप की संगति ,पारिवारिक पृष्ठभूमि किस तरह की है, स्वार्थ लोलुपता, अति महत्त्वाकांक्षाओं का होना, अपनी बाहुबल का प्रदर्शन
आदि बहुत से सामाजिक घटक होते हैं जो कि समाज में अपराध को जन्म देते हैं और धीरे-धीरे यह विकृत और विकराल रूप धारण कर लेता है घर परिवार, समाज  देश सभी के लिए अहितकर है इससे समाज में भय का वातावरण दहशत आतंक फैलता है।
कुछ हद तक राजनीतिक नेताओं का भी हाथ होता है जो अपनी कुर्सी की खातिर अपराधी प्रवृत्ति के लोगों का इस्तेमाल करते हैं और अपराध प्रवृति को बढ़ावा देते हैं , भ्रष्टाचार भी प्रमुख घटक है उपरोक्त बातों को यदि मद्देनजर रखते हुए हम देखते हैं तो
इससे कहीं भी किसी भी समाज और देश की उन्नति नहीं होती है।
देश के विकास में नासूर की भांति रहता है जो कि अवरोध उत्पन्न करता है।  ऐसी स्थिति में हमें स्वस्थ समाज की स्थापना हेतु कदम बढ़ाने की आवश्यकता है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली

" मेरी दृष्टि में "  अपराधी को बनाने में मां - बाप से लेकर , पुलिस , नेता और न्यायालय की बराबर भूमिका  होती है । न्यायालय अपराधी को बार - बार जमानत देकर अपराधी का मनोबल बढाते है । ये स्थिति बहुत भयानक है । परन्तु सरकार इस और ध्यान नहीं देती है । इसी का फायदा अपराधी उठाते हैं ।
                             - बीजेन्द्र जैमिनी
डिजिटल सम्मान



Comments

  1. यह शाश्वत सत्य है कि कोई भी व्यक्ति जन्मजात अपराधी नहीं होता। परिस्थितियां ,कारण ,बदला ,लड़ाई, ईर्ष्या आदि कुछ इस तरह के घटनाक्रम उसे अपराधी तत्व बनाने में सहायक होते हैं। प्रथम बार अपराध करने पर उसको रोकने का प्रयास किया जाए ।उसकी विचारधारा बदलवाने का प्रयत्न किया जाए और यदि उसमें सफलता मिल जाए तो अपराधी प्रवृत्ति रुक जाएगी किंतु यदि ऐसा नहीं किया गया तो वह निरंतर अपराध की ओर अग्रसर होता जाएगा। इस तरह के लोगों को उन्हीं की भांति सोच वाले लोग भी अनायास ही मिल जाते हैं क्योंकि ऐसे लोगों की कमी नहीं रहती और फिर वे उसका फायदा उठाते हैं। एक बार जो पतन के रास्ते पर चल पड़ा उसका उबरना मुश्किल हो जाता है। अपराध रोकने के लिए अपराधी के साथ-साथ जो भी उसके सहयोगी हो परिवार से ,समाज से ,प्रशासन से, मित्र वर्ग से सभी को सजा दी जानी चाहिए। उनके सहयोग से ही अपराध फलता फूलता है इसलिए वे भी सजा के उतने ही भागी होते हैं। जेल प्रशासन भी चुस्त दुरुस्त होना चाहिए ।आए दिन सुनने में आता है अपराधी तत्वों को जेल में प्रोटेक्शन मिलता है ,सुविधाएं मिलती हैं ।यह सब गलत है और इस तरह के अधिकारियों और खासकर उनके ऊपर के अधिकारी क्योंकि वह तो मोहरे मात्र होते हैं ।तो जो ऊपर के अधिकारी हैं उनको तो निश्चित रूप से ही सजा दी जानी चाहिए। न्यायपालिका कार्यपालिका सभी को सत्य पथ पर चलकर कड़ाई से नियम का पालन करना चाहिए।

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  2. आपराधिक मनोवृति को बढ़ावा देने के संदर्भ में आए हुए सारे विचार प्रासंगिक है लेकिन मुझे संगीता सहानुभूति के विचार बहुत अच्छे लगे ।
    कठोर दंड विधान का अभाव अपराधिक प्रवृत्ति को अधिक बढ़ाते हैं उनकी यह बात मुझे बहुत तर्कसंगत लगी।

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  3. धन्यवाद आप ने मुझे ब्लॉक में स्थान दिया धन्यवाद

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  4. धन्यवाद आप ने मुझे ब्लॉक में स्थान दिया धन्यवाद

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  5. सभी रचनाकारो को बहुत बहुत बधाई

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