नई शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा का क्या योगदान होना चाहिए ?

मातृभाषा में जो सिखा जा सकता है ।वह अन्य भाषा में बहुत ही मुश्किल होता है । फिर भी अन्य भाषा में सिखाया जाता है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
मातृभाषा  अर्थात  माँ  की भषा  । बच्चे  जन्म  से  जिस  भाषा  को  सुनते  हैं, सुन कर  समझते  हैं  और  बोलना  सीखते  हैं, धीरे-धीरे  उसमें  पारंगत  होते  जाते  हैं  । 
       बच्चे  सर्वप्रथम  प्रथम  सुन कर  सीखते  हैं  और  उसी  के  अनुरूप  अपने  क्रियाकलापों  को  अंजाम  देते  हैं  ।  ये  सीखना  स्थाई  होता  है  । 
        नई  शिक्षा  प्रणाली  में  पांचवीं  तक  मातृभाषा  में  पढ़ाई  का  विकल्प  है  जो  बच्चों  के  लिए  बहुत  उपयोगी  सिद्ध  होगा  क्योंकि  ये  पढ़ाई  उसे  बोझ  नहीं  लगेगी  । पढ़ाई  गयी  विषयवस्तु  को  वे  समझ  सकेंगे, किसी  विषय   को  रटना  नहीं  पड़ेगा , उनकी  नींव  मजबूत  होगी  । 
       उम्र  बढ़ने  पर  अन्य  भाषाएं  सीखना  भी  उनके  लिए  सरल  होगा  क्योंकि  मजबूत  नींव  पर  ही  भांति-भांति  के  कंगूरे  बनाए  जा  सकते  हैं । 
        डाक्टर  कलाम  साहब  ने  भी  कहा  था  कि  उन्होंने  विज्ञान  और  गणित  की  पढ़ाई  मातृभाषा  में  की  जिसके  फलस्वरूप  ही  वे  अपने  इन  विषयों  में  पारंगत  हो  सके ।
       अतः  नई  शिक्षा  प्रणाली  में  प्राथमिक  शिक्षा  मातृभाषा  में  प्रदान  करने  का  निर्णय  स्वागत  योग्य  है  । 
           - बसन्ती  पंवार 
             जोधपुर  -  राजस्थान 
किसी भी देश की राष्ट्र की उन्नति उसकी स्वयं की अभिव्यक्ति अपनी
मातृभाषा में होने पर अति गर्व का अनुभव होता है।
नई शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा का
योगदान प्रारंभिक स्तर पर मातृभाषा में
शिक्षा देने से आप अपने सभ्यता संस्कृति परंपरा को ध्यान में रखते हुए विषय वस्तु तैयार करें नैतिक शिक्षा
व्यावहारिक शिक्षा भी बच्चों के विकास में अति सहायक सिद्ध होती है। कोई भी व्यक्ति अपनी बात को
पूर्ण रूप से अपनी मातृभाषा में अभिव्यक्त कर सकता है और ज्यादा विस्तार से बता सकता है मातृभाषा से उसका एक आत्मिक लगाव होता है
मातृभाषा में शिक्षा देने से संस्कार
का बीजारोपण किया जा सकता है।
शुरू में तो आपको उसका लाभ नहीं दिखाई देगा लेकिन जब विद्यार्थी स्कूली पढ़ाई समाप्त कर कॉलेज
जाता है तो उसमें कुछ परिपक्वता आने लगती है उचित अनुचित बातों को समझने लगता है सबसे बड़ी बात यह कि युवाओं का आत्मिक मनोबल बढ़ाने में बहुत सहायक होता है। जो कि आज कल के युवाओं ‌में  यह एक गंभीर समस्या है कि वह मन से बहुत
कमजोर होते हैं आए दिन युवाओं में आत्महत्या की प्रवृत्तियां बढ़ रही हैबच्चे परिवार माता-पिता से दूर होते जा रहे हैं परिवारिक आत्मिक लगाव
और अधिक होगा पारिवारिक विघटन में कमी होगी संयुक्त परिवार की महत्ता बढ़ेगी परिवार और समाज का महत्व भी आने वाली पीढ़ी को महसूस होगा
 आत्मविश्वास बढ़ाने में सहायक होगा
मातृभाषा अपने देश के प्रति सम्मान
समर्पित भाव  सिंचन करता है।
निश्चित ही मातृभाषा नई शिक्षा प्रणाली
आने वाले समय में राष्ट्र समाज हित में
सहायक सिद्ध होगी ।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली
शिक्षा नीति किसी भी राष्ट्र की मूलभूत आवश्यकता होती है, जिसमें अतीत का विश्लेषण वर्तमान की आवश्यकता तथा भविष्य की संभावनाएं निहित होती हैं।
नई शिक्षा प्रणाली में भारतीय भाषाओं को शामिल करने का उद्देश्य उन्हें सहेजना और मजबूत बनाना है ।
शिक्षा में स्थानीय भाषा शामिल करने से लुप्त हो रही भाषाओं को नया जीवनदान मिलेगा और बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने में मदद मिलेगी ,क्योंकि मातृभाषा में शिक्षा बालक के उन्मुक्त विकास में ज्यादा कारगर होती है ।
मातृभाषा का समुचित समावेश इसे प्रभावी बनाएगा यह नए भारत की मजबूत नींव साबित होगी।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
माँ की भाषा में जो बच्चा सीखता है, बोलता है, अपनी मनोभावनाएं व्यक्त करता है, वह मातृभाषा है l भारतीय शिक्षा प्रणाली में 34 वर्ष बाद बदलाव हुए हैं जो काफी महत्वपूर्ण हैं l जिसमें स्कूली शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक सम्पूर्ण विकास लक्ष्य है तथा 10+2 के स्थान पर 5+3+3+4
पैटर्न लागू किया जा रहा है l मातृभाषा और स्थानीय भाषा को महत्त्व दिया जायेगा l बच्चों के अधिगम में मातृभाषा, क्षेत्रीय भाषा के योगदान को देखते हुए त्रि भाषा फार्मूला चलेगा जिसमें संस्कृत के साथ तीन अन्य भारतीय भाषाओं का विकल्प होगा, विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल से होगी l 
मातृभाषा का योगदान --
1. मातृभाषा /स्थानीय भाषा का संयोजन बच्चों को विषयवस्तु समझने और संस्कृति से जोड़े रखती है l बालक घरों में बोली जाने वाली भाषा में सीखकर आत्मसात कर सकेंगे l 
2. नई प्रणाली में शामिल मातृभाषा अन्य भाषाओं को नया जीवन दान देने वाली साबित होगी, जो लुप्त प्रायः हो रही हैं l 
3. पाँचवी कक्षा तक शिक्षा मातृभाषा /स्थानीय भाषा में होने से आत्मीयता के साथ जुड़ेगा तथा खेल खेल में सीखेगा l 
4. मातृभाषा में शिक्षा से पढ़ने लिखने  व संख्यात्मक (जोड़ प्लस घटाव )जैसी बुनियादी शिक्षा और संख्यात्मक ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे l 
5. क्षेत्रीय व स्वरोजगार की दृष्टि से नई शिक्षा नीति में बच्चों को यह आजादी रहेगी कि किसी भी कोर्स के बीच में ब्रेक लेकर अन्य कोर्स कर सकेगा l नई शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा विषयवस्तु के आत्मसात एवं प्रयोगीकरण में अपना योगदान देगी l 
7. बच्चों पर परीक्षा का बोझ कम करने के लिए बोर्ड परीक्षा साल में दोबार कराने का प्रस्ताव है जिससे अपनी भाषा -अपना ज्ञान के तहत सीखने और आकलन पर जोर देंगें जिससे रट्टा मारने की प्रवृति पर विराम लगेगा l 
          -----चलते चलते 
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, 
बिन निज भाषा ज्ञान के मिटे न हिय शूल l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
            मातृभाषा का सबसे बड़ा योगदान उस के माध्यम से कही गई या लिखी गई बात, बालक / बालिका के समझ में आना चाहिए। जिन भाव या विषयों को उस के माध्यम से बताया जा रहा है वह बालक /बालिका के मानस पटल पर उतरना चाहिए। ताकि  वह विषय वस्तु को ग्रहण करके आगे बढ़ सके, तरक्की कर सके। इसी में उसकी सार्थकता है, यही उसका योगदान है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
नई शिक्षा प्रणाली में मात्र भाषा को सम्मान देने के लिए पर्याप्त रूप से प्रयोग किए जाने चाहिए । पहले ही मात्र भाषा को सीखने की प्रक्रिया बहुत मद्धम है अंग्रेज़ी भाषा के प्रचार प्रसार के सामने हिन्दी भाषा बहुत पिछड़ गयी है । वर्तमान में बच्चों को माँ बाप हिन्दी सीखने के लिए बधाई नही देते बल्कि अंग्रेज़ी भाषा सीखने पर ज़ोर देते हैं और बोलने पर बहुत बधाई देते हैं । ऐसी स्थिति में मात्र भाषा का अपमान होता दिखाई देता है नई शिक्षा प्रणाली में मात्र भाषा को सीखने बोलने के लिये प्रोत्साहित करना ही सब कुछ नही है बल्कि सम्मानित किया जाना चाहिए ताकि जैसा इस बर्ष परीक्षा में देखा गया है वैसा आगे पुनरावृत्ति न हो । विदित हो हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा में इस बर्ष फेल होने वाले विद्यार्थियों की संख्या मात्र भाषा में बहुत अधिक है जो उचित नही । 
मात्र भाषा को सीखने व सिखाने वाले दोनों ही के लिए कुछ दण्ड और पारितोषिक का प्रावधान किया जाना चाहिए । 
- डॉ भूपेन्द्र कुमार धामपुर
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा में चीजों को जल्दी सीखते और समझते हैं। इसीलिए शिक्षा नीति ंमें मातृभाषा में कम से कम कक्षा पहली से ही , माध्यम मातृभाषा, स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा होना चाहिए ! उसके बाद स्थानीय भाषा को अगर संभव हो तो एक अन्य भाषा के रूप में पढ़ाया जाता रहे ये सरकारी और निजी दोनों स्कूलों द्वारा किया जाना चाहिए  । विज्ञान सहित उच्च गुणवत्ता वाली पाठ्यपुस्तकें मातृभाषा या स्थानीय भाषा में उपलब्ध करवाई जाएं ! शुरुआती शिक्षा में भी बच्चों को अलग-अलग भाषाएं पढाई जाए लेकिन विशेष जोर मातृभाषा पर हो । शुरुआती शिक्षा में लिखना और पढ़ना मातृभाषा में सिखाया जाए । और फिर कक्षा तीन और उसके बाद से दूसरी भाषाओ में लिखना और पढ़ना सिखा कर कौशल विकास किया जाए । 
छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा में चीजों को जल्दी सीखते और समझते हैं। हम प्रयास करें कि उच्च गुणवत्ता वाली किताबें और विज्ञान एवं गणित के लिए पठन-पाठन सामग्री द्विभाषी हो ताकि सभी छात्र इन दोनों विषयों को अंग्रेजी के साथ-साथ अपनी अपनी स्थानीय भाषा में पढ़ सकें और समझ सकें।
ताकी बच्चे अपनी मातृभाषा में पढना लिखना सिख मातृ भाषा का विकास कर सके , 
मातृ भाषा का गौरव व सम्मान हो ! 
- डॉ अलका पाण्डेय
 मुम्बई - महाराष्ट्र
 जहाँ तक यह प्रश्न है की नई शिक्षा प्रणाली में  मातृभाषा का क्या योगदान होना चाहिए तो इस पर मेरा विचार है की हम अपनी मातृभाषा को बहुत अच्छी तरह से समझ पाते हैं बोल पाते और उसी में अपने विचारों को बहुत अच्छी तरह से व्यक्त कर पाते हैं अन्य किसी भी भाषा की तुलना में नई शिक्षा नीति में सभी विषय को चाहे वह गणित है विज्ञान है या कोई और विषय है मातृभाषा में समझने में बहुत आसानी छात्रों को रहती है और वह उसके भाव को उसके अर्थ हो बहुत अच्छी तरह से समझ पाते इसलिए अध्ययन अध्यापन और पठन-पाठन की संपूर्ण सामग्री मातृभाषा में ही उपलब्ध होनी चाहिए और स्कूलों में भी केवल और केवल मातृभाषा में ही संपूर्ण विषय की शिक्षा दी जानी चाहिए तो वह बहुत अधिक लाभदायक होगा और अपनी मातृभाषा का गौरव भी बढ़ेगा हम उसके महत्व को समझेंगे और अध्ययन और अध्यापन पठन-पाठन में रुचि बढ़ेगी इस प्रकार से छात्र अधिक रुचि लेंगे और विषय उन्हें अधिक जटिल प्रतीत नहीं होगा इसलिए मैं कहना चाहूंगा कि नहीं शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा का बहुत अधिक योगदान हो सकता है
- प्रमोद कुमार प्रेम
 नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
 बच्चों को मां के ममता जरूरी है। उसी प्रकार से मातृभाषा/स्थानीय भाषा को भी सीखना जरूरी है।चूँकि छोटे बच्चे अपनी मातृभाषा में चीजो को जल्दी सीखते हैं, समझते हैं।
क्यों है मातृभाषा जरूरी  छोटे बच्चों को मातृभाषा और स्थानीय भाषा संस्कृति से जुड़े रखते हुए,उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना है। अपनी मातृभाषा /स्थानीय भाषा में बच्चे को पढ़ने में आसानी होगी और वह जल्द ही सीख पाएंगे।
नई शिक्षा प्रणाली में भारतीय भाषाओं को शामिल करने का खास उद्देश्य उन्हें सहेजना और मजबूत बनाना है।
नई शिक्षा प्रणाली से स्थानीय भाषा को नया जीवनदान मिलेगा और बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने में मदद मिलेगी।
34 साल के बाद भारतीय शिक्षा नीति में बदलाव किए गए हैं।
नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति काफी महत्वपूर्ण है ।स्कूली पढ़ाई से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बदलाव किए गए हैं। जिसका मुख्य उद्देश्य बच्चों को पूर्ण रूप से विकास और उन्हें विश्व स्तर पर सशक्त बनाना है।
स्कूली शिक्षा में मातृभाषा और स्थानीय भाषा को दी गई है अहमियत।
लेखक का विचार :-शिक्षा में मातृभाषा /स्थानीय भाषा को शामिल करने का उद्देश्य जो लुप्त हो रही है भाषाओं को नया जीवनदान मिलेगा और बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने में मदद मिलेगी ।
- विजयेंद्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
नयी शिक्षा प्रणाली में कक्षा - 5 तक पढ़ाई का माध्यम मातृभाषा में रखने की बात कही गयी है। क्योंकि एक बच्चा जन्म से ही मातृभाषा प्रयोग करने वाले परिवार और समाज के मध्य रहता है इसलिए वह बिना किसी अतिरिक्त प्रयास के उसका अभ्यस्त हो जाता है। मातृभाषा के ज्ञान के अभाव में शब्दों व कथन का अर्थ समझने में अत्यन्त कठिनाई होती है। मातृभाषा हमें विचारों के आदान प्रदान में सहयोग करती है। चूंकि एक बच्चे के जन्म के समय से ही उसके चारों ओर मातृभाषा का वातावरण होता है इसलिए स्वाभाविक रूप से जब वह प्रारम्भिक शिक्षा के लिए स्कूल जाता है तो पढ़ने का माध्यम मातृभाषा होने के कारण उसे ज्ञानार्जन करने में सहजता-सरलता होती है। मातृभाषा बच्चों को प्रत्येक विषय को शीघ्र और सरलता से सीखने-समझने के लिए अत्यन्त सहायक होती है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि नयी शिक्षा प्रणाली के उपयोगी बनने की दिशा में मातृभाषा नींव का कार्य करेगी। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
नई शिक्षा प्रणाली २०२०जो लगभग ३४ बर्ष बाद लागू की जा रही है, जिसमें स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च तक कई बड़े बदलाव रखे गए हैं, उसके लिए समस्त भारतीय, माननिय नरेन्द्र मोदी जी का हृदयतल से आभार प्रकट करते हैं जिन्होंने  इसे  कैबिनिट में  पारित कर दिया है।  
१९८६के बाद  नई शिक्षा प्रणाली लागू होने जा रही है, इस शिक्षा प्रणाली में बहुत सारी नई बातें रखी गई हैं जो सराहनीय योग्य हैं, 
इनमें मातृभाषा भी एक है जो एक अनिवार्य कदम है, क्योंकी शिक्षा में स्थानिय भाषा शामिल करने से लुप्त हो रही भाषाओं को नया जीवनदान मिलेगा, बच्चों को अपनी स्स्कृति से जोड़े रखने में मदद मिलेगी। 
जिससे आशिक्षत भी शिक्षा ग्रहण करने में रूची लेंगे, जो समय की मांग भी है। 
सच कहा है, 
"आशिक्षत को शिक्षा दो, अज्ञानी को ज्ञान, शिक्षा से ही बन  सकता है, मेरा भारत महान"। 
मातृभाषा को वढाबा देना देश को वढ़ाबा देने के बराबर है, यहां तक की अंतररार्ष्टृीय मानवाधिकारों के तहत बच्चों को मातृभाषा में शिक्षा न देना मानवाधिकारों का हनन है, यही नहीं मातृभाषा समग्र विकास तथा शैक्षिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। 
इस भाषा का इस्तेमाल करने से  वच्चों के दादी दादा, नानी, नाना इत्यादी खुलकर संवाद करेंगे व संस्कार भरी कहानीयां भी सुना पांएगे, साथ में उनके साथ जो अच्छे ढंग से पढ़ते धे कैसे थे किस मंजिल पर पहुंच गए, जो  अच्छे नहीं थे उनका क्या हुआ  यह  सब  सुनकर बच्चों को अच्छे संस्कार मिलसकेंगे। 
जैसे अपनी वीती सुनाने में उनको भी मजा आएगा, 
"संग पढे़ बचपन के साथी, कौन कहां कल जाएगा, स्कूल में जो संग  बिताया बक्त बहुत याद आएगा। 
इसमें संदेह नहीं शिक्षा का पूरा लाभ लेने के लिए मातृभाषा में शिक्षा का दिया जाना तथा मातृभाषा का सम्मान करना नितांत है, 
यही नहीं मातृभाषा में कोई भी सीख  लेने में कम समय लगेगा बच्चे शिक्षा को बोझ नहीं समझेंगे तथा अपनी वात रखने में संकोच नहीं करेंगे, बाकि  कुछ पाने के लिए मेहनत तो करनी ही पढंती है, सच कहा है, 
" टुटनें लगें हौंसले तो यह याद रखना, बिना मेहनत के तख्तो ताज नहीं मिलते, ढूंढ लेते हैंअंधेरों में मंजिल अपनी, क्योंकी जुगनू कभी रोशनी के मोहताज नहीं होते। 
कहने का मतलब है की बच्चों को आगे वढ़ने के लिए मेहनत तो करनी है  लेकिन जो चीज हम अपनी  मातृभाषा में सीख  लेंगे उसका कोई मुकाबला नहीं है वो सिखाने वाले को भी आसान लगेगी और सीखने वाले को भी, 
जैसे की तकनीकी शिक्षा जो हमारे पूर्वजों के पास थीं लुप्त होती जा रहीं हैं  मातृभाषा लागू होने के कारण फिर से उभर कर आएंगी  इसलिए देश की तरक्की वा वेरोजगारी को दूर करने के लिए मातृभाषा का बहुत वड़ा  योगदान है, इसको नई शिक्षा प्रणाली में ज्यादा से ज्यादा महत्ब  देना चाहिए और तरूंत लागू कर देना चाहिए ताकी बच्चे अपने  संस्कारों को अच्छी तरह से समझ सकें और अपनी मातृभुमी की  रक्षा कर सकें। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा 
जम्मू - जम्मू कश्मीर
मातृभाषा में प्राथमिक स्तर की शिक्षा के लिए नई शिक्षा नीति में विशेष जोर दिया गया है। प्राथमिक स्तर पर, मातृभाषा में ही बालक को पढ़ाया जाएगा, ऐसा नई शिक्षा नीति की अब तक आई सूचनाओं में कहा गया है। इसमें मातृभाषा का क्या योगदान हो सकता है? यही 
आज का विचारणीय विषय है। मातृभाषा में सिखाई गई, पढ़ाई गई, बात संस्कार हमेशा बने रहते हैं। मातृभाषा में बालक जल्दी ही चारों दक्षताओं में निपुण हो जाता है। यह दक्षताएं हैं- सुनना, बोलना, पढ़ना और लिखना। जब बालक इन दक्षताओं में निपुण हो जाता है तो फिर आगे कहीं भी उसके पिछड़ने का कोई अवसर नहीं होता। इसके प्रयोग से बालक का चहुंमुखी विकास होता है। सबसे बड़ी बात यह यह कि आत्म अभिव्यक्ति का गुण विशेष रुप से विकसित हो जाता है। जब संस्कार और अभिव्यक्ति के गुण विकसित हो जाएं तो बालक की नींव मजबूत हो ही जाएगी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर -उत्तर प्रदेश
          नई शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा का योगदान अवश्य होना चाहिए।मनुष्य कोई भी बात अपनी मातृभाषा में जितनी बढिया से,जितनी आसानी से समझ सकता है अन्य भाषाओं में थोड़ी परेशानी होती है। अगर परेशानी न भी हो तो थोड़ी दिक्कत तो अवश्य होती है।
       जिस प्रकार माँ अपने बच्चे को कोई भी बात आसानी से समझा देती है या बच्चा आसानी से समझ लेता है। ठीक उसी प्रकार यदि किसी को शिक्षा अपनी भाषा में मिलती है तो वो झट से सिख लेता है।कोउ परेशानी नहीं होती है। माँ अगर  छोटे बच्चे को इशारे से भी कुछ कहती है तो वह तुरंत समझ जाता है। वही बात यहाँ भी लागू होती है।
            आज पूरे विश्व में सभी देश अपनी भाषा अपनी बोली अपनी संस्कृति में ही सबकुछ करते हैं और किसी से कम नहीं है। और एक हम हैं जो एक विदेशी भाषा अंग्रेजी के पीछे पड़े हुए हैं।
           हमारी मातृभाषा पूर्ण समृद्ध है। नई शिक्षा नीति में इसके योगदान को कतई अस्वीकार नहीं कर सकते।
हम सबको अपनी मातृभाषा पर गर्व है। नई शिक्षा प्रणाली में इसका समावेश तो होना ही चाहिए।
        आज दुनिया के हर भाषाओं में कंप्यूटर का अविष्कार हो गया है यानी किसी भी भाषा में कंप्यूटर पर लिख सकते हैं तो फिर पढ़ाई सिर्फ अंग्रेजी में ही क्यों मातृभाषा में क्यों नहीं। ये कार्य तो बहुत पहले ही हो जाना चाहिए था।
           इस तरह नई शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा का योगदान अवश्य होना चाहिए।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
हम जिस भाषा की गोद में पलते -बढ़ते हैं वह हमारी रगों में समा जाती है नई शिक्षा नीति के तहत पाँचवी कक्षा तक हिंदी पढ़ना है हम अपनी मातृभाषा  के जरिए  चीजों को ज्यादा स्पस्टता के साथ बोल और लिख सकते हैं ।दूसरी भाषा हमारे लिए आधी -अधूरी है या कामचलाउ है  । गाँवों में रहने वाले विद्यार्थी भी नई शिक्षानीति  में शामिल की गयी कैशलविकास से लाभान्वित होंगे ।
मातृभाषा के वर्चस्व से राष्ट्र्ीय चेतना जगेगी ।अपनी भाषा पर श्रद्धा रख युवा आत्मनिर्भर और चिंतनशील बनेंगे । सभी विकासशील देश अपनी भाषा को अपना कर ही तकनीकि क्षेत्र में आगे बढ़े हैं ।कवि और चिंतक अज्ञेयजी का कहना है कि भाषा कल्पवृक्ष है ।श्रद्धा पूर्वक उससे जो मांगो वो देती है ।यदि मांगा ही न जाय तो कल्पवृक्ष भी कुछ नहीं देता ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
नई शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा को समलित करने का मुख्य उद्देश्य उसे सशक्त बनाना है। जो लुप्त होने की कगार पर है। जिससे उसे नया जीवनदान मिलेगा और बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े रखने में सहायता मिलेगी।
      सर्वविदित है कि नई शिक्षा नीति-2020 को कैबिनेट की स्वीकृति मिल चुकी है। इससे पहले 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी। 1992 में इस नीति में कुछ संशोधन किए गए थे। अर्थात 34 साल बाद देश में एक नई शिक्षा नीति लागू की जा रही है। जिसमें स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं।
      जिसमें महत्वपूर्ण बात यह है कि पाँचवी क्लास तक मातृभाषा अर्थात स्थानीय या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। जिसे कक्षा आठ या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। 
        नई शिक्षा नीति में यहां तक कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा। जिससे मातृभाषा को ही नहीं बल्कि स्थानिय लेखकों को भी प्रोत्साहन मिलेगा। उनकी पुस्तकों को स्थान मिलेगा, लेखकों को प्राथमिकता एवं पहचान मिलेगी। जिससे उनकी माली हालत में सुधार होगा और लेखकों को लेखन कार्य में स्वरोजगार प्राप्त होगा। 
       अतः नई शिक्षा प्रणाली से मातृभूमि की मातृभाषा एवं मातृभाषा के कलमकारों को संजीवनी आशीर्वाद प्राप्त होगा। जिससे 'आमों के आम और गुठलियों के दाम' वाली कहावत सम्पूर्ण चरितार्थ होगी और स्थानीय लेखकों की खोई हुई प्रतिष्ठा पुनः प्राप्त होगी।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
     हमारी भारतीय संस्कृति की मातृभाषा में 34 साल बाद नई शिक्षा प्रणाली में सुधार एक अहम फैसला सामने आया, जिसके परिपेक्ष्य में जो बच्चे घरों में जो बोल चाल की भाषा का प्रयोग करते हैं, वही स्कूलों में अध्ययन-अध्यापन करते हुए अपने लक्ष्य की ओर अग्रेषित होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो सकते हैं। जो अपने-अपने मातृभूमि के परिदृश्यों में अपनी मातृभाषा का ज्ञान अर्जित कर सकते हैं। ताकि आने वाली पीढ़ियाँ लाभांवित होकर  योगदान दे सकती हैं। पांचवीं कक्षा तक कम से कम तो क्षेत्रीय स्थानीयता का वर्चस्ववादी सामाजिक के स्तरों का विकास होगा तथा उच्च शिक्षा में महत्ता का महत्व समझ में आयेगा।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट -मध्यप्रदेश
 नई शिक्षा नीति के अनुसार   इस वर्ष यह निर्णय लिया गया है  कि  पांचवी कक्षा तक    मातृ  भाषा में ही पढ़ाया जाना चाहिए |    नई शिक्षा पद्धति   में  कक्षा   पांच  तक   स्थानीय व क्षेत्रीय  भाषा के साथ साथ  मातृ भाषा  को  सबसे अधिक  महत्वपूर्ण  स्थान  दिया गया है  |और जो विदेशी भाषाएं पढ़ाई  जाएंगी  वे आगामी    कक्षाओं के लिए   उपयोगी होंगी | क्योंकि किसी भी राष्ट्र को वैश्विक महाशक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए  शिक्षा की अहम भूमिका होती है| और वह शिक्षा मातृभाषा में ही होनी चाहिए| 
 इससे हमारी मातृभाषा   संरक्षण ,  विकास और मजबूती को उपलब्ध होगी|  नई शिक्षा नीति में   मातृ भाषा के प्रयोग पर अधिक बल दिया गया है | इसका मूल उद्देश्य है  -- बच्चों को उनकी मातृभाषा और भारतीय संस्कृति से जोड़े  रखते हुए उन्हें शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ाना |  सबसे बड़ी बात तो यह है कि अपनी मातृभाषा  मे सीखना सबसे सुगम है|  जितना  अधिक हम मातृभाषा के समीप जाएंगे ; उसे समझेंगे  हमें  उसकी गहराई और उसकी व्यापकता का ज्ञान होगा  | और   बच्चों को पढ़ने में सुगमता होगी | इससे वे  बहुत आसानी से अपने रास्ते पर अग्रसर हो सकते    हैं | और अपने ज्ञान के क्षेत्र को बढ़ा सकते हैं |  आज तक हमारी ही मातृभाषा को  बच्चों को  उचित संस्कार देने  का अवसर प्राप्त नहीं हुआ था  | बच्चों को अपनी मातृभाषा सीखना सबसे कठिन प्रतीत होता था | इसलिए वह अपनी मातृभाषा से कभी जुड़ नहीं पाये  थे | अपनी भाषा से जुड़कर  वह न केवल अपनी भाषा को बल्कि उसके उद्भव और उसके विकास को समझ सकते हैं|  अपनी मातृभाषा में आए तत्सम शब्दों का ज्ञान होने पर  उन्हें संस्कृत में भी उत्सुकता उत्पन्न हो सकती  है| अगर ऐसा हुआ  तो   उन्हें   हमारी  प्राचीन धरोहर--  हमारी संस्कृति  का विशेष ज्ञान उपलब्ध हो सकता है| यह भी हो सकता है कि नई शिक्षा पद्धति न केवल कक्षा पांच तक बल्कि कक्षा  आठ  तक भी इस प्रक्रिया को उपयोग में लाएं|  इस प्रकार  मातृभाषा   के माध्यम से  बच्चे ...जो शिक्षा का अर्जन करेंगे | उससे  उन्हें  अपनी संभावनाओं का विकास करने का अवसर  मिलेगा | इस पद्धति के माध्यम  से उनकी क्षमताओं  का आंकलन भी किया जाएगा | 
इससे सबसे अधिक लाभ यह होगा कि  बच्चों  पर  तोता  रटंत  होने का दबाव नहीं होगा  और न ही नंबरो के कारण  उनकी प्रतिभा को आंका  जाएगा | नई शिक्षा पद्धति में और भी बहुत से बदलाव किए गए हैं| लेकिन   मुख्य  बदलाव  मातृ  भाषा को लेकर किया गया है| अत: इस नयी शिक्षा पद्धति  में  मातृ   भाषा  का समावेश किये जाने के कारण    बच्चों के जीवन का सर्वांगीण विकास होने की संभावना  विकसित होती दिखाई देती है |  यह  पद्धति हमारे लिए वरदान सिद्ध हो सकती है| और थी इसका  सबसे बड़ा योगदान होगा |
- चंद्रकांता अग्निहोत्री
पंचकूला - हरियाणा
शिक्षा विधा को मातृभाषा का योगदान अमूल्य रहा है।हमारी नई शिशा प्रणाली मे हमारी मातृभाषा हिन्दी का अहम योगदान रहा।हिंदी का अलग महत्व है।पहचान की इक ईमारत है मातृभाषा।शिक्षा को नयीं दिशानिर्देश देती है मातृभाषा ।इसकी खूशबू देश विदेश नीति में घूमती है।हिन्दी साहित्य जगत मे विशेष महत्व रखती है।और अभी नई शिक्षा प्रणाली का लेखांकन हो रहा इसमे मातृभाषा का अलग योगदान होता है।मातृभाषा की लयबद्ध प्रणाली बेहद खूबसूरत और सरलीकरण होती है संविधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है हिन्दी।विदेशी भाषा में भी अब हमारी मातृभाषा महत्त्वपूर्ण कार्य करने को अग्रिम पंक्ति में है।शिक्षण संस्थानों में हिन्दी मातृभाषा से भविष्य की ओर आकर्षित करने वाले अपने युवापीढ़ी के बच्चों में मातृभाषा के प्रति जागरूक किया गया है।जीवनशैली मे सरलीकरण और सभ्यता, संस्कृति को बनाने मे जींवत रखने में अपनी मातृभाषा का महत्वपूर्ण स्थान है।शिक्षा विभाग में सहजतापूर्ण अपनाया जाता है।जीवन चक्र में सफलतापूर्वक संपन्न यात्रा और शिक्षा प्रणाली को नया आयाम अभिव्यक्ति देती है मातृभाषा।इसका योगदान अहम होता है।हिंदी विषय की महत्व को शिक्षा प्रणाली में अभिन्न अंग माना जाता है।मानव संसाधन प्रबंधन को विकसित करने के लिए शिक्षित व्यक्ति का होना अतिआवश्यक है।इस प्रणाली मे मातृभाषा की खूशबू अपनी भुमिका निभाती है।कला, संस्कृति को विकसित करने की नींव है अपनी मातृभाषा ।
शिक्षा को नयें राह दिशानिर्देश देकर जनजाति में नयीं ऊर्जा को स्थापित करती  ये धरोहर स्तंभ हमारे भारतवर्ष का कहलाता है।यह भारतीवक्ष की प्रथम बेटी है।जो हिन्दुस्तान की आँचल में आँगन मे बोली जाती है।और इसकी पहचान बेहद खूबसूरत होती है।अब शिक्षा की नई नीति से विदेशियों को भी यह  भाषा मनभावन लगता है।रामकृष्ण, रामकथा पर परिचर्चा  विदेशियों का मिश्रित रूप से इच्छाओं पर होने लगी है।मातृभाषा की भूमिका वहां के पर्यटकों में फूलों की भातिं समाविष्ट होती है।शिक्षा प्रणाली मे मातृभाषा की भुमिका ही अद्भुत शक्ति है।शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा कि योगदान होने से जीवनशैली सरल हो जायेगी और सभ्यता संस्कृति के प्रति लोगों में जागरूकता होगी।जन कल्याण में सभ्यता और संस्कृति नींव पडेगी।मातृभाषा की अहमियत नई शिक्षा प्रणाली में अपनी छाप छोडे़गी।हमारे युवापीढ़ी कें बच्चें इससे रूबरू होगे अपने देश और मातृभूमि मातृत्व से जूडे़ रहेंगे।नयी संचार मातृभाषा माध्यमों से देशभर और अपनी भूमि के प्रति आत्मप्रेम जागेगा।मातृभाषा शिक्षा प्रणाली में सरलीकरण को समझने योग्य होगे।और संभ्यता संस्कृति की धरोहर फलीभूत अपने चरम आनंद पर होगी।और चारों दिशाओं में मातृभाषा की खूशबू फैलगीं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमेशदपुर - झारखंड
  नयी शिक्षा नीति 2020 भारत सरकार के कैबिनेट मंजूरी के बाद लागु कर दी गई है। यह शिक्षा नीति अपने नये स्वरूप मे लगभग 34 साल बाद आयी है।
     नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति मे पाँचवी तक लेकिन यथासंभव आठवीं कक्षा या उसके बाद भी शिक्षा का माध्यम मातृ भाषा रखा रखा गया है। अपनी मातृभाषा को विकसित करने का यह एक अच्छा प्रयास है। बच्चों के लिए मातृभाषा मे पढ़ना लिखना ज्यादा सरल और सुगम होगा। खास कर ग्रामीण बच्चे अंग्रेजी के अनावश्यक बोझ से हल्का महसूस करेंगे।
             मूलतः हमारी शिक्षा अपनी भाषा मे होनी चाहिए। अपनी भाषा अपनी ताकत होती है। ऐसा करने से हम जापान, चीन ,रसिया अन्य ऐसे देशों की श्रेणी मे धीरे धीरे आ जाएंगे जहाँ मेडिकल और इंजीनियरिंग की पढ़ाई अंग्रेजी मे नही बल्कि उनकी अपनी भाषा मे होती है। 
इस शिक्षा नीति मे मातृभाषा का स्थान देने से हमारी राष्ट्रीय भाषा हिन्दी को भी राष्ट्रीय बल मिलेगा।
        - रंजना सिंह
       पटना - बिहार
हिंदुस्तान के मातृभाषा हिंदी है यह एक ऐसी भाषा है जिसमें हर इंसान अपनी भावनाओं अनुभूतियों को स्पष्ट तौर पर लिख सकता है व्यक्त कर सकता है हम लोग इसी भाषा के गोद में पले हैं बड़े हुए हैं अन्य भाषाएं को अपनाया गया है अपनाई हुई भाषा मैं उतनी सहज का सरलता नहीं हो पाए हैं सुखी वह सार्वजनिक नहीं हो पाता है
कोई भी देश चाहे वह हिंदुस्तान हो या अन्य कोई देश हो अपनी मातृभाषा के माध्यम से ही विकास की सीढ़ी को तय करता है हिंदुस्तान की मातृभाषा हिंदी है और इसी हिंदी के माध्यम से ही देश का विकास निर्भर करता है
हमारे देश में दो प्रकार के रहन-सहन हैं एक शहरी वातावरण में और दूसरा ग्रामीण वातावरण में भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसमें शहरी वातावरण के लोग भी सहज सरल रहे और ग्रामीण वातावरण में पढ़ने लिखने वाले भी सहज और सरल रहे चुकी विकास दोनों का होगा तभी देश का विकास होगा इसलिए मातृभाषा को हर क्षेत्र में प्रधानता मिलनी चाहिए शिक्षा नीति के शुरुआत से लेकर के उच्चतर स्तर तक मातृभाषा का महत्व होना आवश्यक है ।
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
मातृभाषा  बहुत हीं  सरल और सुगम भाषा होती है ।जिस भाषा को आप बोल चाल में निरंतर प्रयोग करते हैं उसे बिना सीखें आप उसमें धाराप्रवाह बोल सकते हो।अब यदि इसी मातृभाषा में वर्ग पांच तक बच्चे को शिक्षा दी जायेगी तो निश्चित रूप से हीं बच्चों को इससे सरलतापूर्वक सीखने में दिक्कत नहीं होगी। नयी शिक्षाप्रणाली बहुत स्वागत योग्य है।इसके लागु हो जाने से साक्षरता मिशन में बढ़ोतरी की काफी उम्मीदें हैं। अंग्रेजी भाषा सभी के लिए बहुत कठिन हो जाता है जिसके कारण बच्चे पढ़ाई में पिछड़ या जी चुराने लगते हैं। अतः भाषा जितनी सरल हो उससे सदैव बच्चे लाभान्वित होंगे। बहुत सारे विषय होते हैं और यदि वह बच्चों को उनकी मातृभाषा में बताई और पढ़ाई जायेगी तो निश्चित रूप से बच्चों का आकर्षण बढ़ेगा।जैसे गणित जैसे कठिन विषय को खेल खेल में पढ़ाया जाता है तो बच्चे जल्द सीख लेते हैं।इसी प्रकार मातृभाषा में पढ़ाया जाना वाला हर विषय बच्चों को सहज और सरल लगने लगेगा। हमारे देश हिंदुस्तान में हिंदी को अभी इस मुख्य हाशिये पर लाकर सरकार ने एक अच्छी पहल की है तो निश्चित हीं परिणाम भी अच्छे आयेंगे।
- डॉ पूनम देवा
पटना -बिहार
मातृ भाषा सदैव ही सरलतम और सफलतम संवाद की भाषा रही है।  हमारे देश में अनेक भाषाएं बोली जाती हैं अर्थात् उतनी ही मातृ भाषाएं हैं।  सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा ‘हिन्दी’ को राजभाषा का दर्जा प्राप्त है।  नई शिक्षा प्रणाली में मातृ भाषा में प्राइमरी स्तर तक शिक्षा दिये जाने का प्रावधान है।  यह निश्चय ही एक स्वागत योग्य कदम है। विद्यार्थियों को मातृ भाषा के माध्यम से किसी भी विषय को समझने में आसानी होती है। प्राइमरी शिक्षा के अंतिम पड़ाव में पहुंचने के बाद विद्यार्थी का आधार मजबूत हो चुका होता है।  उसकी समझने की शक्ति विकसित होना शुरू कर चुकी होती है।  प्राइमरी के बाद अन्य भाषाओं से परिचय होने में उसे परेशानी नहीं होती।  नई शिक्षा प्रणाली में मातृ भाषा, देश की अन्य भाषाओं और विदेशी भाषाओं को सम्मिलित करने से विद्यार्थी के सर्वांगीण विकास की संभावनाएं सशक्त हो जाती हैं।  अतः नई शिक्षा प्रणाली में मातृ भाषा का योगदान विद्यार्थी के शिक्षा आधार की मजबूत नींव बनाने का होना चाहिए जिस पर शिक्षा का मजबूत भवन निर्मित हो सके तथा विद्यार्थी अनेक विधाओं में पारंगत हो कर वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने में सक्षम हो सके।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
शिक्षा नीति 2020 थ्री लैंग्वेज फॉर्मूला पर बनी है; जिसमें पांचवी क्लास तक मातृभाषा में पढ़ाई को आवश्यक किया है।यदि विद्यार्थी की अभिरुचि अपनी मातृभाषा में ही आगे तक पढ़ने की है तो वह कक्षा 8 तक भी इसे जारी रख सकता है; ऐसा प्रावधान है। 
           इसी प्रकार यदि प्राथमिक से लेकर उच्च स्तर तक के अध्ययन, अध्यापन में भी इसकी अनिवार्यता हो जाए तो  इस योगदान से भी शिक्षण में सहजता, सुलभता भी शिक्षार्थी को हासिल होगी। रविंद्र नाथ ठाकुर ने कहा भी था कि--"- यदि विज्ञान को सुलभ बनाना है तो मातृभाषा के माध्यम से विज्ञान की शिक्षा दी जानी चाहिए।" माननीय अब्दुल कलाम ने भी अपनी गणित और विज्ञानकी पढ़ाई मातृभाषा में करके स्वयं सिद्ध कर दिया था।
       आज अति आधुनिक युग में शिक्षा प्रणाली को समुन्नत सुचारू सहज और गुणवत्ता प्रदान करने के लिए शिक्षण सामग्री की उपलब्धता पर भी सरकार को ध्यान देना होगा। तभी नई शिक्षा प्रणाली में *भारतीयता* की अमिट छाप के दर्शन होंगे। मातृभाषा के इस योगदान से रोजगार के अवसरों की सुलभता तथा साक्षरता का प्रतिशत भी बढ़ेगा।
 - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
ज्ञान की नींव बाल्यावस्था से ही रखी जाती है। अभी तक सरकारी स्कूलों में मातृभाषा का उपयोग किया जाता रहा है, लेकिन प्राइवेट विद्यालयों में अंग्रेजी भाषा पर ही जोर दिया जाता रहा है। इसके लिए उनकी फीस का भारी-भरक्कम बोझ अभिभावक पर लाद दिया जाता है। 
 नई शिक्षा नीति से उम्मीदें बढ़ीं हैं । इसमें मातृभाषा को अनिवार्य कर दिया गया है।
अब बच्चों में अपनी भाषा के प्रति रुचि जागने की संभावना ज्यादा है। इससे वे मातृभाषा की शुद्धता और महत्व को समझ पाएंगे। इससे उन्हें अपने विषय को समझने में सहूलियत होगी। उच्चारण और व्याकर्णीय गलतियों को सुधारा जा सकेगा। यह हमारी मातृभाषा हिंदी के उत्थान में भी मदद करेगी। 
 इस शिक्षा नीति के बदलाव से हिंदी का भविष्य उज्जवल होने की कामना है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
 नौनिहाल बच्चों की बुनियादी पाठशाला घर परिवार होता है। बच्चा जब बोलने  समझने लायक होता है ,तो वह अपनी मातृभाषा में ही वस्तु को पहचानता है। समझता है। बोलता है ।इसलिए मातृभाषा से बच्चे को बेहतरीन शैली के माध्यम से शिक्षा दी जा सकती है ।जैसे जैसे बच्चे की मानसिक  विकसित होते जाता है तो अन्य भाषाओं का ज्ञान वह स्वयं सीख लेता है ।अतः नई शिक्षा नीति में माततृ भाषा के माध्यम से कक्षा तीसरी तक मातृभाषा में शिक्षा देना बच्चों के लिए बेहतरीन अनुकूल रहेगा। मातृ भाषा के माध्यम से बच्चों को स्कूल और परिवार दोनों जगह एक समझने मे एक सूत्रता  रहने से समझने में सरलता होगी।रटने की  आवश्यकता नहीं होगी। जहां बच्चों में कुछ अटकाव या समस्या आएगी तो घरवाले उसे सहज से सहयोग कर सकेंगे ।नई शिक्षा नीति में मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा। बच्चे पाँच विधि से ज्ञान सिकते हैं।
अनुकरण ,अनुसरण  आज्ञा पालन ,अनुशासन और अनुशासन।  मातृभाषा के माध्यम से इन विधियों से बच्चे सहज तरीके से ज्ञान पा सकेंगे। अतः नई शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा का विशेष योगदान होना चाहिए।
  - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
नई शिक्षा प्रणाली में प्राइमरी शिक्षा मातृभाषा का जो प्रावधान  है स्वागत  योग्य है! 
प्रथम पाठशाला बच्चे की उसका घर होता है! घर पर बोली जाने वाली भाषा आसानी से वह समझने लगता है! बहुत ही सहजता से उसके ज्ञान का विकास होता है! हमारी राजभाषा हिंदी है! हमारे देश में गांवों में शहर में सर्वाधिक तौर से बोली जाने वाली भाषा हिंदी है !सरल एवं सहज ,सुगम होने से सबकी जबान पर आती है! देश में गांव और शहर  को जोड़ने वाली कड़ी व्यापार, विनिमय भी हिंदी में ही होता है! 
बच्चे का मानसिक विकास बढ़कर जब  बाहर आता है तब बिना किसी मानसिक तनाव के वह खेल खेल में अन्य भाषा सीख  लेता है!हमारा देश अनेकता में एकता लिए है रह गौरव योग्य है किंतु  प्रत्येक देश की अपनी एक भाषा है अतः शिक्षा के क्षेत्र में हमारी मातृभाषा पांचवी कक्षा तक रखने का प्रावधान सराहनीय है! अपनी मातृभाषा में बहुत ही सरल तरीके से हम समझ जाते हैं! 
विकास की दौड़ में विश्व में हम उनके प्रतिस्पर्धि बन खड़े रहेंगे! 
राह में कुछ कठिनाईयांए, बाधाएं आएंगी ,समय लगेगा किंतु सफलता की ओर बढ़ने का प्रथम चरण सराहनीय है! 
- चंद्रिका व्यास 
 मुंबई - महाराष्ट्र
नई शिक्षा नीति में मातृभाषा का योगदान
 आजादी के बाद हमारी  नई शिक्षा नीति में तीसरी बार में सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।
 माननीय कस्तूरीरंगन जी की अध्यक्षता में ऐसा शिक्षा में परिवर्तन 2020 में  पहली बार हुआ ।
वरना अभी तक ब्रिटिश काल की अपने लिए कुछ क्लर्क तैयार करने वहीं चली आ रही थी गुलामी की व्यवस्था को पक्का करने के लिए कुछ क्लर्क बनाने के लिए अंग्रेजी शिक्षा की पढ़ाई प्रारंभ की थी और आजादी से आज तक भी शिक्षा व्यवस्था चली आ रही थी 34 वर्ष बाद आज शिक्षा नीति में  जो बदलाव आया है । 
वह यह है की भारत अपनी मातृभाषा में अपनी शिक्षा व्यवस्था के द्वारा आत्मनिर्भर भारत का निर्माण करेगा ।
पहली शिक्षा नीति 1968 में तथा दूसरी शिक्षा नीति 1986 में इंदिरा गांधी व राजीव गांधी जी के समय में बनी। परंतु शिक्षा नीति में कोई बदलाव नहीं किया गया अंग्रेजी शिक्षा पर जोर देकर हमारे युवा न तो अपने ही देश के रहे और ना ही अंग्रेजी में एक्सपर्ट होकर आत्म सम्मान की जिंदगी जी सकते।
 सभी देश अब तक अपनी ही भाषा में अपनी  शिक्षा व्यवस्था को चलाते हैं जापान देश इतना छोटा देश है वहां के देशवासी इंग्लिश में नहीं जानते ।अपने ही देश की जापानी भाषा में ही अंतरराष्ट्रीय व्यापार कर रहे हैं।
 तब फिर हम अपनी ही भाषा में क्यों नहीं?
 अंतर्राष्ट्रीय व्यापार कर सकते हिंदी में तो एक शब्द के कई शब्द होते हैं ।
परंतु इंग्लिश में हिंदी भाषा से कम शब्द पाए जाते हैं ।जैसे उदाहरण के तौर पर अंग्रेजी में  सूरज को Sun  ही कहेंगे ।
परंतु हमारी हिंदी भाषा में सूरज को कई शब्दों में  रवि ,भानु, भास्कर, दिनकर, दिनेश ।
इसी तरह अंग्रेजी में पानी को वाटर परंतु हिंदी में पानी को हम कई नाम से जानते हैं ।तो हम हिंदी में कंप्यूटर का ज्ञान अंतरराष्ट्रीय व्यापार क्यों नहीं कर सकते।
 इसीलिए जरूरी है  कि अपनी मातृभाषा में ही प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ  करके अपने देश का स्वाभिमान और सम्मान बढ़ाया जाए न कि अपने देश के युवाओं को दूसरे देश की भाषा  थोपकर आत्मग्लानि से भरकर संकोची बनाया जाए ।
नई शिक्षा नीति में 5 + 3 + 3+4 के फॉर्मेट पर नई शिक्षा नीति लागू की गई है ।जिसमें 5 साल प्रारंभिक शिक्षा हो मातृभाषा स्थानीय भाषा तथा राष्ट्रभाषा पर आधारित की गई है ।
इसमें अंग्रेजी विषय की अनिवार्यता नहीं होगी पांचवी तक बच्चों को अपनी ही मातृभाषा स्थानीय भाषा या राष्ट्रभाषा में बच्चों को शिक्षा प्रदान की जाएगी जिसमें 3 + 1 + 1.
 3 साल प्री प्राइमरी तथा 1 साल पहले और दूसरी कक्षा पढ़ाया जाएगा इसमें किताबों का कोई बोझ नहीं होगा ।8 साल तक बच्चों का कोई एग्जाम नहीं होगा सीखने व समझने को प्राथमिकता दी जाएगी ।
नई शिक्षा नीति में 5 वर्ष छात्रों के लिए मजबूत नींव का काम करेंगे शुरू के 5 साल फाउंडेशन स्टेज मानी जाएगी इसके तहत एनसीईआरटी के तहत शिक्षा होगी। मातृभाषा में शिक्षा के कारण सभी पढ़ पाएंगे ।
अतः नई शिक्षा नीति में मातृभाषा का महत्वपूर्ण योगदान रहेगा।
- रंजना हरित 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश

" मेरी दृष्टि में "  मातृभाषा में ज्ञान प्राप्त करने में कोई  कठिनाई नहीं होती है । विदेशी भाषा में ज्ञान अधुरा रह जाता है। मातृभाषा में लिखना पढना सीखने से ही सफलता में जाती है । यहीं मातृभाषा का कमाल है ।
                                                  - बीजेन्द्र जैमिनी 
डिजिटल सम्मान



Comments

  1. मातृभाषा का पढ़ाई में अहम योगदान है। उसके द्वारा अच्छी तरह से भावों की अभिव्यक्ति की जा सकती है एवं पठन-पाठन लेखन भी सुलभ एवं सरस हो जाता है। शुरू से बच्चे जिस भाषा को सुनते आ रहे हैं उससे समझने में उन्हें आसानी होती है। विषय वस्तु जो भी पढ़ाई जा रही यह लिखाई जा रही हो वह विद्यार्थी के मानस पटल पर अच्छी तरह से बैठ जाए उन भावों को उस वस्तु को उस विषय को भी अच्छे से समझ सके आत्मसात कर सकें यही मातृभाषा का योगदान है।

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  2. मातृभाषा का महत्व विशेष रूप से बच्चों के लिए होता है। बच्चों को उनकी मातृभाषा में शिक्षा प्राप्त करने से उनकी सोचने की क्षमता और अभिव्यक्ति क्षमता मजबूत होती है। हिंदी के माध्यम से शिक्षा लेने से बच्चों का अध्ययन भी अधिक प्रभावी होता है और वे अपनी भाषा को समझने और उसमें माहिर होने में सक्षम होते हैं - hindi sahayak

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