क्या कर्म ही निराशा का एक मात्र उपचार है ?

निराशा को दूर करने के लिए कर्म करना आवश्यक है । बिना कर्म के निराशा कभी दूर नहीं होती है । बल्कि बढती जाती है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
   मेरी यह सोच  है कि  कर्म निराशा का उपचार है या नहीं इस विषय पर पहुंचने के पहले यह जान लेना जरूरी है कि कर्म क्या है ।संस्कृत में कर्म का अर्थ है- कार्य या  क्रिया। शरीर, वाणी और मन से की गई प्रत्येक  क्रिया कर्म है। संसार में हर व्यक्ति कुछ ना कुछ कर्म करने में जीवन भर लगा रहता है। गीता 3.5 के अनुसार ---कोई भी  मनुष्य किसी भी अवस्था में क्षण मात्र भी कर्म किए बिना नहीं रह सकता। सारी क्रियाएं जो शरीर, मन व वाणी से की जाती है, वे भूतकाल का प्रतिस्पंदन और भविष्य का कारण कही जाती है। इस प्रकार से हर व्यक्ति हर क्षण कर्म में संलग्न होता है।
                अब हमारा विषय यह है कि क्या  कर्म निराशा का उपचार है। मेरा मानना यह है कि कर्म निराशा का उपचार हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता है।उदाहरणार्थ, हर व्यक्ति हर समय कर्म करता है फिर भी उसे निराशा आ जाती है। ऐसी स्थिति में निराशा का उपचार आशावादी दृष्टिकोण  रखना ,सकारात्मक सोच रखना, उत्प्रेरक बातों से जुड़े रहना, अच्छे व सफल लोगों का सानिध्य,  निराशा का उपचार हो सकता है। कई बार देखा जाता है कि निराशऔर हताश व्यक्ति किसी महापुरुष या प्रेरक विचार रखने वाले व्यक्ति के सानिध्य में आकर अपनी निराशा का भाव छोड़ देता है। कर्म भी अगर शुभ किए जाएं  तो काफी हद तक निराशा को दूर कर सकते हैं। 
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम' 
 दतिया - मध्यप्रदेश
अजगर करे ना चाकरी पंछी करे ना काम
दास मलूका कह गए सब के दाता राम।
शायद सच होता हो लेकिन सफलता की राह पर ले जाने वाला एक मात्र साधन 'कर्म' ही है।
इस वैश्विक युद्ध काल में भी मनुष्यों को समझ में आ गया होगा कि  सामने जब भी बड़ी से बड़ी मुसीबत आ जाए, उनका डटकर मुकाबला किया जाना चाहिए। असफलताओं से निराशा संग आये तो निराशा में भी आशा खोज ली जाए और सफलता की राह पकड़ मंजिल तक जा पहुँचाना है।
मैं अपने उम्र के इस पड़ाव पर यही जाना है... जिसे जो रुचिकर लगे और स्व हित समाज हित के लिए लाभकारी हो उसमें अपना सौ प्रतिशत श्रम दें उचित कर्म करें।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
     जैसा कर्म करोगे तो उसे वैसा ही फल भोगेगा यह चरित्रार्थ हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं और अंत में बुरी तरह से सामना करना पड़ता हैं। हम निराशावादी नहीं, आशावादी बनने से समस्त प्रकार की समस्याओं का समाधान तभी हो सकता है जब तक किसी भी तरह की कोई विफलताओं का सामना करना पड़ता हैं और यही से प्रारंभ होता हैं, कर्मों का फल? मानव निराश तब होता, जब सभी तरह से परेशान हो जायें, फिर याद किया जाता हैं, अपने पूर्व जन्मों के कर्मों को। इसलिए कहा जाता हैं, कि जीवन रुपी संसार में विचारों से अवगत कराइये और अच्छा  कर्म करते जायें। वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः अपराधित्व प्रवृत्तियों, अत्याचार एवं शोषण के अनेकानेक निन्दनीय कृत्यों से ग्रस्त हो  गये हैं, जहाँ स्वार्थों के बिना कोई भी तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है कि कोई जानबूझकर यहाँ विभिन्न प्रकार के कार्यों को सम्पादित करने में सक्षम रहते हैं, भले ही बाद में अपने किये का पश्चाताप करना पड़ता हैं, मनुष्य आदतन हैं, सब कुछ पृथ्वी पर भोगने हैं और कुछ ही बिरले निकल जायें, जहाँ कर्म ही निराशा का एक मात्र उपचार हैं, जहाँ से सदगति प्राप्त हो जायें?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
कर्मण्येवधिकारसते मा फलेषु कदाचन l
हे मानव!
तेरा कर्म करने में ही अधिकार है उसके फल में कभी नहीं लेकिन जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान ये है गीता ज्ञान और समसामायिक आज की चर्चा l
     कोरोना संकट और बेरोजगारी से त्रस्त युवा वर्ग घोर निराशा के साये में है लेकिन कर्म ही निराशा का उपचार मात्र है l हमारे कर्म को कौशल के रूप में प्रतिष्ठित किया जाये l कर्म में कौशल उसी अवस्था में आयेगा जब हमारी भक्ति, बुद्धि, स्थिर और निर्विवाद हो जाती है और यह तभी संभव है जब हम सर्वोच्च चेतना के अधीन होकर कर्म करें l यह तभी संभव है जब मन को अलग करके इन्द्रियों से हटाकर बुद्धि में विलय कर दिया जावे l ऐसे कर्म का परिणाम निराशा हो ही नहीं सकता l इसीलिए गीता में कृष्ण ने अर्जुन से कहा -कर्म में आसक्ति का स्थान नहीं होना चाहिए l कृष्ण का यह उपदेश महाभारत काल की अपेक्षा आज ज्यादा प्रासंगिक है l व्यक्ति कर्म करते समय उसके फल पर केंद्रित रहकर तनाव में आ जाते है, तनाव का परिणाम है मनोरोग भय आदि l जो व्यक्ति कर्म को पूजा, उपासना मानकर करते है उन्हें निराशा छू भी नहीं सकती l
     गीता में श्री कृष्ण ने कर्म, अकर्म और विकर्म के आधार पर मनुष्यों को विभाजित करते हुए बताया कि जिसके सभी कर्म कामना रहित और सभी कर्म ज्ञान रूपी अग्नि से भस्म हो गये है ऐसे बुद्धिमान व्यक्ति यह मानकर कर्म करते हैं कि वास्तविक कर्ता तो परमात्मा है, वह तो निमित्त मात्र है l इस भाव से जो व्यक्ति कर्म करते हैं वे ही जीवन में निराशा नहीं सफलता को प्राप्त करते हैं l
     ----चलते चलते
1. मत पड़ना कमजोर कभी तू हालात कभी जो बिगड़ते जाये
संघर्ष का नाम ही जीवन है
बिना स्वार्थ तू कर्म करता जा
2. तुझे फल देंगें भगवान
डटे रहना मैदान में,चाहें जितना भी शोर हो
इक दिन ये जमाना तुम्हारे गीत गायेगा l
     - डॉo छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
जिन्दगी की चुनौतियों से घबराकर मन में जब निराशा के भाव आने लगे तो.....
देख लेना कभी चिड़िया को तिनका-तिनका एकत्र कर घोंसला बनाते हुए.....
देख लेना कभी चींटी को एक-एक दाना अन्न ले जाते हुए..... 
देख लेना किसी नौका को तूफान की लहरों से जूझते हुए.....
देख लेना किसी दिव्यांग की जिजीविषा को कर्म करते हुए..... 
मनुष्य जीवन उतार-चढ़ाव के पथ का साक्षी होता है। जीवन की दिशा जब चढ़ाव अर्थात् सफलता की ओर अग्रसर होती है तो मानव आशा के झूले पर सवार होता है, परन्तु उतार अर्थात् असफलताएं मनुष्य को निराशा के भंवर में डुबा देती हैं। 
निराशा के इस भंवर से तभी निकला जा सकता है जब मनुष्य हाथ-पांव हिलाये अर्थात् कर्म करे। 
कहते हैं कि मनुष्य जीवन में कर्म प्रधान होता है। कर्मशीलता मनुष्य के मन-मस्तिष्क को सक्रिय रखने का उत्तम साधन है और सक्रियता मनुष्य के विचारों के प्रवाह को सदैव आशावान रखती है। 
अत: इसमें कोई दो राय नहीं कि अन्य कारणों के साथ-साथ कर्म भी निराशा का उपचार करने में अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
इसीलिये कहता हूं कि..... 
"विचारों की स्पष्ट लय और हृदय की पावन धड़कन, 
मानव कर्म समेटे है आशा की उत्कृष्ट थिरकन।
आश्रित है सब कुछ मानव के चिन्तन और कर्म पर, 
बन निराशा रूपी धूल या आशाओं का उबटन।।"
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
        जीवन आशा-निराशा, सुख-दुख ,हार -जीत, कर्म और उदासीनता का निरंतर चलने वाला चक्र है।इसकी गति चलती रहे इसी में सभी की भलाई है।जब भी जीवन में निराशा आ जाए तो उस का समाधान कर्म ही हो सकता है यह जरूरी नहीं है। शरीर,मन और आत्मा भी थक जाती है। उसे भी आराम चाहिए। जो क्षति निरंतर काम करने से हुई है उसकी पूर्ति विश्राम करके हो सकती है। 
जिस प्रकार सुख दुख के अनेक रूप होते हैं ।वैसे ही निराशा भी कई प्रकार की होती है।  व्यक्ति उसे व्यक्तिगत और सामाजिक रूप से भी दूर कर सकता है। 
निराश मन के लिए मनोरंजन, हल्का -फुल्का साहित्य भी उपयोगी हो सकता है। हमारे भीतर का नैराश्य अपने इष्ट की आराधना, भक्ति और विशेष पूजन से भी हट सकता है। 
हर व्यक्ति की निराशा किसी सेट फार्मुले से नहीं हो
  सकती है। निराशा के समय कोशिश यह होनी चाहिए कि हम सकरात्मक सोचे ।अपनों के बीच रहें और निराशा को अपने ऊपर हावी ना होने दें। कर्म करने से ध्यान तो बट जाएगा पर नैराष्य को.खत्म तो भीतरी वक्ती और शांति ही कर सकती है ।
  मौलिक और स्वरचित हैः 
   - ड़ा.नीना छिब्बर
   जोधपुर - राजस्थान
निराशा यानि नकारात्मक विचार से बचने
 के लिए कर्म को प्रधान बनाइए तो निराशा अपने आप ध्यान से हट जाएगा।
जीवन में जब कभी आपके मन पर निराशा की छाया पड़ने लगे तो तुरंत उन क्षणों को याद करने की कोशिश करें, जब आपने कोई बहुत बड़ा काम किया था, या कोई बड़ी उपलब्धि प्राप्त की थी, और किस तरह  लोगों ने आप की प्रशंसा की थी ।
ऐसे पलों को याद करने से मन मस्तिष्क का बोझ हल्का हो जाएगा।
अगर कोई संशय रह जाए तो नए रास्ते तलाश करें खाली न बैठे । खाली बैठने पर मन पर ज्यादा बोझ पड़ता है। इसलिए अपने को किसी न किसी काम में लगाए रखें।
एक छोटा सा उदाहरण दे रहे हैं:-निराश होकर लौटती लोमड़ी भले ही अंगूरों को खट्टे कहती हो,लेकिन आशावादी मनुष्य के लिए अंगूर कभी खट्टे नहीं रहे।
आशा और निराशा को लेकर मनुष्य और पशु में शुरू से ही एक बड़ा अंतर है।
इसलिए मनुष्य सभी प्राणियों को अपने वश में करने की ताकत रखता है।
लेखक का विचार:-अर्जुन के रूप में जब मनुष्य कुरुक्षेत्र की रणभूमि में कर्तव्य से विमुख हताश- निराश होकर बैठ गया तो श्रीकृष्ण सरीखे साक्षी से कर्म की प्रेरणा पाकर निराशा त्याग गांडीव संभाला और कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन....!की राह पर चलकर शत्रुओं का नाश करते हुए पुनः अपने कर्तव्य निभाने लगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
असफलताएं जीवन में कुछ और नहीं बल्कि एक नई दिशा देने में सक्षम है।ये हमें निराश तो करती हैं लेकिन यही हमें नये सिरे से कमर कसने के लिए भी प्रेरित भी बहुत करती हैं।जब हम फिर से कर्म का सहारा लेते हैं तो प्रसाद के रूप में सफलता प्राप्त होती है और निराशा हमेशा के लिए हमसे कोसों दूर जाकर बैठ जाती है।हम जितना अधिक परिश्रम करते हैं उतना अधिक फूलते- फलते हैं और। फलस्वरूप हम आधिक प्रभावशाली और खुशहाल जीवन जी सकते हैं।ऐसे लोग दूसरों के सपनों को पूरा करने में मदद करते हैैं और उनके सुख-दुख के साथी भी होते हैं।तो अगर जीवन के किसी मोड़ पर नाकामी हाथ लगे तो निराशा के गर्त में डूबने से अच्छा है कि हम कर्म का दामन थामकर एक बार फिर से उपर उठने की कोशिश करें।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
हाँ ! कर्म ही निराशा का एक मात्र उपचार है। क्योंकि सफलता मीले या न मिले कर्म करना ही पड़ेगा। बिना कर्म किये इस जहाँ में कुछ भी मिलने वाला नहीं। कर्म तो करतें ही रहना पड़ेगा। चाहे फल मीले या न मिले। लेकिन कर करने पर फल तो मिलना ही है कम या ज्यादा। किसान फसल बोता है कभी बाढ़ से तो कभी सूखा से फसल बर्बाद होता ही रहता है। पर कुसं निराश नहीं होता है वोहर साल फिर नए जोश वो खरोश के साथ फसल लगाता है। निराश होकर वह अपना कर्म नहीं छोड़ता है। निराशा कर्म सर ही दूर हो सकती है और होती भी है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश " 
कलकत्ता - पं बंगाल
जब तक जीवन है, जीवन के लिए कर्म अत्यावश्यक है. कर्म करने में सफलता भी मिलती है, विफलता भी. सफलता से मन में आशा का संचार होता है, विफलता से निराशा का प्रहार होता है. एक हद तक यह सही है, कि कर्म ही निराशा का उपचार है, लेकिन केवल कर्म ही निराशा का एकमात्र उपचार नहीं हो सकता. इसके लिए सबसे अधिक आवश्यक है कर्म की दिशा का सही होना. कर्म की सही दिशा हमें किसी योग्य दिग्दर्शक से मिल सकती है. अर्जुन के रूप में जब मनुष्य कुरुक्षेत्र की रणभूमि में कर्त्तव्य से विमुख हताश-निराश होकर बैठ गया, तो श्रीकृष्ण सरीखे सारथि से कर्म की प्रेरणा पाकर निराशा त्याग गांडीव संभाला और 'कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन...' की राह पर चलकर शुत्रओं का नाश करते हुए पुनः अपने कर्म-पथ की सही दिशा की ओर उन्मुख हुआ. इसके अतिरिक्त आत्मविश्वास, लगन. परिश्रम, सही नियोजन और समय-समय पर अपने कर्म का आकलन करना भी आवश्यक है. ऐसा होने पर ही कर्म निराशा का उपचार हो सकता है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
 निराशा सबसे बड़ा रोग है। जिसका एक मात्र उपचार संघर्षशील साकारात्मक कर्म हैं। क्योंकि कर्म जीवन का आधार है। जिसे हर मानव करता ही करता है।
       आशा और निराशा भी मानव प्रवृत्ति है। आशा मानव जीवन पर साकारात्मक संदेश डालती है। जबकि निराशा नकारात्मक प्रभाव डालती है।
       परम सत्य यह है कि आशा ही निराशा की जननी है। यदि आशा की अभिलाषा न की जाए तो निराशा आ ही नहीं सकती। इसलिए साधु-संत सत्यकर्म करते हैं और ईश्वर पर छोड़ देते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कर्म से ही व्यक्ति में उर्जा का, उत्साह का, उमंगों का, आशाओं का संचार होते रहता है। जब व्यक्ति कर्म विहीन हो जाता हैं तो उसका मन नकारात्मक विचारों की गिरफ्त में और वह निराशा की गर्त में जाने लगता है इसलिये निराशा से बचने के लिए व्यक्ति को सदैव कर्म करते ही रहना चाहिए।
- दर्शना जैन
खंडवा - मध्यप्रदेश
लोग संसार की विषमाताओं और कठिनाईयों से हारकर निराश होकर वैठ जाते हैं, जबकि निराशा पराजय तथा पलायन का भाव है जो इस दुर्भाव को अपने जीवन में स्थान देता है वो नित्य ही जीवन की बाजी हार जाता है, 
इसलिए निराशा को पास न आने दें यह जीवन प्रगति की भारी शत्रु है। आईये आज इसी पर चर्चा करते हैं कि क्या कर्म ही निराशा का एक मात्र उपचार है? मेरा मानना है कि नित्य कर्म करें और निराशा से वचें इस के वगैर निराशा से वचने का और कोई उपाय नहीं है, कर्म ही महान माना गया है, कहा भी गया है, 
"कर्म किए जा फल की इच्छा मत करना इन्सान जैसे कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान"। कहने का मतलब जीवन में जब भीआपके मन पर निराशा की छाया पड़ने लगे तो तुरंत उन क्षणों को याद करो जब आपने कोई  बहुत बड़ा काम किया था तो लोगों ने खूब सराहा था, यही सोचें कि  आज फिर में तन मन से ऐसा ही करके दिखाऊंगा ताकि लोग मुझे फिर सराहें, ऐसा करने से आप में फिर से आशा कि किरण जाग उठेगी और निराशा पनपने नहीं पायेगी। निराशा के साथ खाली वैठकर मन पर ज्यादा वोझ पड़ता है इसलिए अपने मन को किसी न किसी काम में लगाए रखें क्योंकी आशावादी लोग कभी निराश नहीं होते केवल कुछ कर के दिखाते हैं।  मनुष्ष के सामने जब भी वड़ी से वड़ी मुसीबत आई तो उसने उस का डट कर मुकाबला किया और निराशा में भी आशा ढूंढ ली और सफलता के शिखर पर पहुंच गया। हम सभी को यह याद रखना चाहिए कि हर काली रात के बाद एक प्रकाशमान दिन तैयार रहता है, सभी को विश्वास होता है कि रात बीतेगी और शीघ्र ही प्रभात आएगी, इसी तरह से निराशा भी एक तरह का काला अन्धकार होता है ओर शीघ्र ही समाप्त हे जाता है वशर्ते हम अच्छे कर्म करते रहें और आशावादी रहेंव दुखों का डट कर मुकाबला करें फिर वो दिन दूर नहीं जब आप निराशा को भगाकर अवश्य आशावादी व महान बनेंगे। इसलिए निराशा का वातावरण आने पर घवराना नहीं चाहिए क्योंकी लोग सफल व असफल भी होते हैं किन्तु संघर्ष करते रहते हैं और साहसपूर्वक आगे वढ़ते हैं, निराशा कायरता का लक्षण है पुरूषत्व नहीं यदि सारे मनुष्य निराशा से परास्त होकर जीवन को निस्सार कर दें तो आज इतिहास में महापुरूषों का नाम ही नहीं होता। 
अन्त में यही कहुंगा कि  जीवन में दुख कष्ट अभाव  , असफलता जो भी आए उसको सुख सुख संतोष के साथ स्वीकार करके उस का डट कर मुकाबला करना चाहिए, क्योंकी संसार दुखों का घर है इससे टक्कर लेकर आगे बढ़ना ही जीवन है, इसलिए निराशा कभी नहीं होना चाहिए, याद रहे कि आपके जीवन में वांछित परिवर्तन तभी संभव होगा जब आप निराशा से पल्लु छुड़ा कर आशावादी बनेंगे व निष्काम कर्म करेंगे इसलिए कर्म ही निराशा का एक मात्र उपचार है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
कहते हैं कि आशा और निराशा के दो पहलू होते हैं। आशा है तो हौसले हैं, हौसले हैं तो उम्मीद है, उम्मीद है तो सफलता है। इसके विपरीत निराशा है तो कुछ भी नहीं।  ना होश, ना उम्मीद और ना ही सफलता। इस परिस्थिति में कर्म ही निराशा का एकमात्र उपचार है। इस बात को सभी लोग भली-भांति जानते हैं की अच्छे कर्म करने से ही समाज में मान सम्मान, प्रतिष्ठा और इज्जत मिलती है। सफलता को प्राप्त करने के लिए कर्म करना बहुत ही जरूरी है। लोगों के जीवन में निराशा एक मनोदशा है जो काम के प्रति अरुचि को दर्शाती है। निराश व्यक्ति अपने आपको इतना हताश पाता है कि उसके दिमाग में आत्महत्या करने तक का ख्याल आने लगता है। निराशा के भंवर से निकलने के कई रास्ते हैं। जिस तरह हम अंधेरी रात के बाद उजली सुबह होती है। उसी तरह निराशा के पार आशा की किरण है। बस हमारे आपके देखने का फर्क है। कुछ लोग निराशा के अंदर कार्य में खोए रहते हैं। अंधेरे को देखकर उन्हें लगता है कि अंधेरा ही सब कुछ है, जबकि बाकी लोग अंधकार में रखकर आशा की किरण की खोज करते हैं, क्योंकि भी अंधेरे की पहचान करके आशा की खोज में निकल पड़ते हैं। जब अंधेरा है तो प्रकाश भी होगा। जैसे कि जन्म है तो मृत्यु भी सत्य है। यह बात गांठ बांधने की अंधेरे का जन्म हुआ है तो उजाले को भी आना है। निराशा इंसान को कभी भी सफलता दिला सकती है। इस बात को पक्का मान लीजिए। जीवन में आपको कुछ करना है तो आपको आशावान होना ही पड़ेगा। उसके लिए आपको सैद्धांतिक रूप से तैयार होना पड़ेगा। पक्के इरादे के साथ आगे बढ़ना होगा। क्योंकि आपके कर्म अच्छे होंगे तो आपको हर तरफ सफलता मिलेगी, क्योंकि कर्म ही निराशा को समाप्त करने का एकमात्र उपचार है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
मानव जीवन सदा एक सा नही होता।इस में भी कई उतार चढ़ाव आते रहते हैं। कई बार खुशी मिलती है और कई बार निराशा हाथ लगती है। निराशा असफलताओं और इच्छाओं को आपूर्ति के कारण आती है। 
     आशा और निराशा सिक्के के दो पहलू हैं। आशा है तो हौसला है, हौसला है तो उम्मीद है,उमीद है तो सफलता है। अगर निराशा है तो न हौसला रहता है और न उम्मीद। मनुष्य टूट जाता है। उदास और बेबस हो जाता है। निस्संदेह उस समय कर्म ही निराशा का एक मात्र उपचार है। अपने आप में आत्मविश्वास पैदा करके कर्म मे जुट जाना चाहिए और कर्म करते रहना चाहिए। इच्छाओं को कम करना चाहिए  सारा ध्यान कर्म पर ही होना चाहिए। जितनी इच्छाओं  और कामनाओं  की अधिकता होगी उतनी निराशा और पतन होगा। सो कर्म ही निराशा का एक मात्र उपचार है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
निराशा का भाव मन में उपजता ही तभी है जब हम कम काम करके ज्यादा लाभ की इच्छा रखते हैं । 
सकल पदारथ हैं जग माहीं,  करमहीन  नर पावत नहीं ।।
तुलसीदास जी की ये चौपाई पूर्णतया सत्य है । जो निरन्तर कुछ न कुछ करता रहेगा वो अवश्य ही सफल होगा । आलसी लोग ही अपने भाग्य का रोना लेकर बैठे रहते हैं । अंत में निराश होकर परिस्थितियों से समझौता करके ये जीवन गुजार देते हैं ।
कर्मयोगी की भाँति , सही योजना बनाकर सदैव कर्म करते रहना चाहिए । अवश्य ही आशानुकूल फल मिलेगा ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
कर्म करके हम निराशा से दूर रह सकते हैं। आलसी व्यक्ति कभी भी जीवन में कुछ नहीं कर सकता।
धैर्य की ताकत से ही कर्म पूरे होते हैं। यदि हम आदर्शों के प्रति जिसको हमने अपना आया है उस मार्ग में चलने के प्रति अपने आप को ग्रहण किया है ,निष्ठावान हैं तो अपनी लड़ाई हमने आधी जीत ली ।  संघर्षों से हम  घबराना नहीं चाहिए। अपने साहस और धैर्य के बल पर ही हम सफलता को प्राप्त कर सकते हैं।  साहस का अर्थ दूसरों को धक्का देना नहीं है। मनुष्य को जो आदर्श के लिए संघर्ष करता हो वह अपने पतन से कभी भयभीत नहीं होता व्यक्ति लड़ता है और गिरता है और गिर कर भी जब ऊपर उठता है तो वह कभी पराजित नहीं होता ।यह प्रेरणा हमें चीटियों से लेनी चाहिए पतन होता है और अभाव में ही हम ज्यादा संघर्ष कर लेते हैं उच्च आदर्शों के प्रति समर्पण द्वारा ही अमरत्व प्राप्त कर लेते हैं।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश 
बिल्कुल सही कथन है निराशा मन में होती है यह एक भावना है नकारात्मक भावना है जब इंसान को सफलता नहीं मिलती है यह अपनों से धोखा मिलता है चोट पहुंचती है तो मन में निराशा होने लगती है यह मन की भावना है तो भावनाओं को बदलने के लिए कर्म करना ही पड़ेगा कर्म से भावना बदलते हैं कुछ बोलते हैं कुछ आगे की ओर सोचते हैं इसलिए भावना का उपचार है सुंदरकांड में तुलसीदास ने यह लिखा है देव देव आलसी पुकारा
कहानी का अर्थ है जो व्यक्ति हालत में रहते हैं वह हर काम को ईश्वर के ऊपर छोड़ कर भगवान हे भगवान की तुम गुहार करते रहते हैं भगवान सहायक होंगे जब आप अपने हाथ आगे बढ़ाएंगे तो कर्म करेंगे तो कर्म ही निराशा का एकमात्र उपचार है भाग्य बदलेगा मन का निराशा दूर करेगा और मन में उत्साह पैदा करेगा
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मां फलेषु कदाचन"
     श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने यही संदेश दिया है कि कर्म करो फल की चिंता नहीं करो कर्म पर आपका अधिकार है फल पर नहीं। यदि व्यक्ति अपना कार्य सही ढंग से संपादित कर रहा है तो उसे निराश होने की जरूरत नहीं है क्योंकि उसने अपना संपूर्ण उस कार्य के लिए प्रदान किया है। यदि वह अपना कार्य ठीक से नहीं करता तब उसे निराश होने की आवश्यकता होती है वह मलाल कर सकता था कि उसने सही ढंग से कार्य नहीं किया।
      श्री रामचरितमानस में तुलसीदास जी ने भी लिखा है 
"कर्म प्रधान विश्व करि राखा"।
 कार्य को प्रमुखता देना चाहिए। ऐसा करने से ने निराशा का भाव हटकर आशा जन्म लेती है ।व्यक्ति का मनोबल एवं उत्साह बढ़ता है। अतः हम कह सकते हैं कि कर्म ही निराशा का एकमात्र उपचार है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश

" मेरी दृष्टि में " कर्म जीवन का आधार है । बिना कर्म के कुछ भी सम्भव नहीं है । निराशा का दूर करने के लिए भी कर्म जरूरी है । यही कर्म से जीवन सम्भव होता है । जीवन के हर क्षण कर्म करने वाले इंसान को ही सफलता मिलती है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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