कोई बुरा बर्ताव करें तो आप को क्या करना चाहिए ?

जब बुरा बर्ताव होता है तो आप की भी परीक्षा होती है । ऐसे में क्या करना चाहिए । क्या नहीं करना चाहिए । यह अग्नि परीक्षा से कम नहीं है ।अगर आप चोकिनें नहीं है तो आप का बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है । इसी से बचने का प्रयास करना चाहिए । यही सब कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
इन्सान को  हमेशा अच्छे कार्य करने के लिए मानव जन्म मिला है, सही मनुष्य कहलाने का उसे ही हक है जो सभी का भला सोचता है व हरेक के लिए अच्छे कार्य करता है व छोटे वड़े के लिए अपना फर्ज अदा करता है, 
लेकिन क्या यह आदर भाव या अच्छे कर्म व अपने फर्ज क्या एक तरफ से ही होने चाहिए, 
तो आइयै आज की चर्चा इस बात पर कर्ते हैं कि अगर कोई आप के साथ बुरा वर्ताब भी करे तो आप को कैसा वर्ताब करना चाहिए, क्या ईंट का जबाब पत्थर होना चाहिए या हमें उसके साथ भलाई से पेश आना चाहिए। 
मेरा मानना है कि इन्सान गल्ती का पुतला है और उसे माफ करना एक खुदाई सिफ्त है, कहने का भाव है कि अगर कोई आपकी भलाई के वदले बुराई से पेश आता है तो  आप  उसके साध फिर भलाई ही करो उसे कम से कम दो बार सुधरने का मौका दो ताकि उसे खुद अपने किए पर पछतावा होने लगे की मैने   अच्छाई के वदले अच्छाई ही करनी चाहिए थी, 
अगर फिर भी उसे ऐसा महसूस न हो तो ऐसा व्यक्ति के साथ विना कुछ कहे किनारा कर लेना चाहिए ताकि उसको फिर महसूस होने लगे कि मैंने ऐसा क्या कर दिया जिससे वो मेरे से बात तक नहीं कर रहा, 
ऐसा करने से झगड़े की नौवत भी नहीं आऐगी और दुसरे को सुधरने का मौका भी मिल जाऐगा।
अन्त में यही कहुंगा की बुरा वर्ताब करने वाले को सुधरने का मौका देना चाहिए यही एक अच्छे इन्सान का फर्ज है कहते भी हैं भला करने वाले भलाई किए जा बुराई के वदले भलाई दिए जा। 
मानव को इस जोनि मैं यहां तक संभव हो सके भलाई ही करनी चाहिए और दुसरों को भी यही समझाना चाहिए कि हरेक साथ हमेशा अच्छा वर्ताब र खना चाहिए जिससे आपसी भाईचारा बना रहे और वदले की भावना पनपने  ही न पाए, अच्छा इन्सान वोही कहलाता है जो आपस में भेदभाव न करे झगड़े से बचे सच कहा है, 
इन्सान का हो इन्सान से भाईचारा यही इल्जाम हमारा
यही इल्जाम हमारा। 
अत:हमें बुराई की भावना किसी के साथ भी नहीं रखनी चाहिए दुसरा चाहे भलाई का जबाब बराई से ही दे एक दिन अवश्य आयेगा जब बुरा भी अपने आप मैं सुधार लाऐगा वशर्ते हम वदले की भावना न रखें। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू -  जम्मू कश्मीर
यदि कोई अपने साथ बुरा बर्ताव करे तो सर्वप्रथम उसे समझाने का प्रयास करना चाहिए और यदि दो तीन प्रयासों के बाद भी वह न माने तो उससे दूरी बना लेना ही बेहतर है। कुछ व्यक्तियों का स्वभाव इस तरह का होता है, वे किसी का भी बुरा करने से नहीं हिचकते उनकी मानसिकता सही नहीं होती। संकीर्ण विचारधारा वाले लोग कुछ इस तरह का व्यवहार अपनाते हैं। कुछ लोग तो चिकने घड़े की तरह होते हैं उन्हें कितना भी समझाया जाए पर वह अपनी हरकतों से बाज नहीं आते। ऐसे व्यक्तियों से उलझने की बजाए संबंध विच्छेद कर लेना बेहतर उपाय रहता है। कुछ व्यक्तियों में अपेक्षाकृत मानसिकता ठीक रहती है ऐसे व्यक्ति दो चार बार के समझाने से बात मान जाते हैं और अपनी गलती को स्वीकार करके अच्छा व्यवहार करने लगते हैं।  समझाना ,सुलह करना प्राथमिकी है, उसके बाद संबंध विच्छेद।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर -  मध्य प्रदेश
     मानव जीवन में बुरा बर्ताव एक श्रृंखला हैं, जिसके बिना जीवन संभव नहीं हैं, लाभ-हानि, जस-अपयश एक भागीदारी हैं। हम कितना भी सोच ले, किसी से बुरा बर्ताव नहीं करें, लेकिन हो ही जाता हैं, फिर पश्चात भी होता हैं और अनन्त समय तक चलता रहता हैं । हो सकें तो समझाईश दी जा सकती, परन्तु समझाईश भी एक समस्या बन जाती हैं, जहाँ कानूनी कार्यवाही का सिलसिला शुरू हो जाता हैं। मातृ प्रेम बच्चों को, शिशु अवस्था में प्रेरणा दे सकता हैं, किन्तु वही शिशु युवा अवस्था में बुरा बर्ताव कर, अभिशाप बन जाता हैं, दोष हमारा नहीं अपितु यह परम्परा अनन्त समय से चली आ रही हैं।  जब तक हम इस परम्परा को तोड़ने का प्रयास नहीं कर सकते,  तब तक हमें समझोता वादी परनीति अपनानी होगी, तभी चली आ रही, परम्परा को तोड़ कर, स्वास्थ्य जीवन को परिदृश्यों में बदलाव लाना होगा?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
बुरे व्यक्ति के साथ किया जाने वाला बर्ताव हमारे व्यक्तित्व, संस्कार, आचार -विचार पर निर्भर करेगा, संस्कारित व्यक्ति इस भावना का पोषक होगा l
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोय l
जो दिल खोजा आपणा, मुझसे बुरा न कोय ll
बुरे व्यक्ति के साथ बुरा बर्ताव करके अपनी आत्मिक और मानसिक शांति भंग नहीं करनी चाहिए l दूसरी बात -किया जाने वाला व्यवहार, हमारे और उसके रिश्ते पर निर्भर करेगा l अगर वे हमारे निकटतम रिश्तेदार है तो हमारी जिंदगी में उनकी कोई जगह नहीं होगी l छोटी मोटी बात पर उत्तेजित होना, शब्दों की मर्यादा भंग करना इस बात का प्रतीक है कि सामने वाला मनुष्य ओछे विचारों का है लेकिन हमें अपनी मर्यादा भंग नहीं करनी है l मानवीय प्रकृति का यह स्वभाव है कि वह क्रिया की प्रतिक्रिया करता है l हमारी प्रतिक्रिया निजी सोच व संस्कारों पर निर्भर करती है l सामने वाले के द्वारा हमारा लाख बुरा सोचने पर भी हम उसके मंगल की कामना करेंगे l मानस में कहा है -"जाकी रही भावना जैसी प्रभु मूरत दिखे तिन तैसी l "हमें बुरे व्यक्ति में भी अच्छी सूरत दिखाई देगी l
       ---- चलते चलते
बुरे व्यक्ति के साथ किया जाने वाला व्यवहार इन पंक्तियों के अध्याधीन रहेगा l
"सियाराममय सब जग जानिl 
करहु प्रणाम जोरि जुग पानि ll"
      - डॉo छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
क्रिया की प्रतिक्रिया, मानव ही नहीं,निर्जीव वस्तु भी करती है। कीचड़ में पत्थर फेंकिए,तो उसकी प्रतिक्रिया आपका हुलिया तो बिगाड़ ही देगी। वादियों में, कुएं में जैसा शब्द बोलो वैसा ही सुनाई देता है। यानि बुरा तो बुरा,भला तो भला। किसी को प्रेम से देखो,बोलो तो वैसी ही प्रतिक्रिया मिलेगी,और तीखे शब्द बोले, क्रोधित नजरों से देखा तो फिर वैसा ही बर्ताव मिलेगा। हमें शठे, शाठ्यम समाचरेत और टिट फॉर टेट का ही फार्मूला अपनाना चाहिए। हां इतना जरुरी है कि बेवजह किसी से बुरा बर्ताव नहीं करना चाहिए, लेकिन कोई करने ही लगे तो फिर उसके साथ बुरा उससे भी बुरा बनना ही पड़ेगा।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
हमारे साथ कोई बुरा बर्ताव करे तो हमको उसका कुछ-न-कुछ प्रतिकार तो करना ही होगा. यह बहुत-सी बातों पर निर्भर करता है, कि हमारा बर्ताव क्या होगा. सब कुछ निर्भर करता है कि सामने वाले ने कितना बुरा किया और हमारा बुरा करने का उसका तरीका क्या था. एक और बात ये कि जिसने हमारा बुरा किया उसका और हमारा रिश्ता क्या है.
अगर वो हमारा रिश्तेदार है तो उस पर हम कोई तीखा पलटवार तो नही करेंगे पर हाँ एक बार बुरा करने के बाद उसकी हमारी जिंदगी में कोई जगह नहीं होगी.
अगर वो यूँ ही हमसे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में मिलने वाला शख्स है तो हाँ पलटवार जरूर करेंगे, क्योंकि पलटवार न करने पर उसे जब भी मौका मिलेगा वो फिर आपका बुरा करेगा.
अगर किसी ने सिर्फ हमें बातों से चोट पहुँचाई है तो हमारा पलटवार भी बातों से ही होगा. एक बार तो बुरा बर्ताव करने वाले को माफ किया जा सकता है, दूसरी बार चेतावनी दी जा सकती है, उसके बाद भी न सुधरे तो उसे बुरा वर्ताव करने के लायक ननीं छोड़ना ही उचित होगा. यह सब करने के लिए सबसे पहले अपने तन-मन की शक्ति को तोलना होगा. एक बात और- रिश्तेदार हो या मित्र, मालिक हो याऑफिस का बॉस, उसको अहसास तो अवश्य करवाना होगा, कि उसका बर्ताव उचित नहीं है. कभी-कभी इससे भी बात बन जाती है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
      कहते हैं बुरे को मत मारो बल्कि बुरे की मां को मारो। जिसने उसे पैदा किया है अर्थात बुराई के उत्पादक को समाप्त करो। ताकि बुराई जड़ से समाप्त की जा सके।
      उल्लेखनीय है कि बुरा बर्ताव करना या बुरे बर्ताव को सहना दोनों सूरतों में बुरा ही होता है। इसलिए किसी भी दृष्टि में बुरे बर्ताव को रोकना अत्यंत आवश्यक एवं महत्वपूर्ण है। क्योंकि यही बुरा बर्ताव आगे चलकर आपके जीवन को बर्बाद कर देगा।
      चूंकि बुराई को न रोकना बुराई को बढ़ावा देने के समान है। इसलिए बुराई, बिमारी और ऋण को कभी छोटा नहीं आंकना चाहिए और ध्यान रखना चाहिए कि एक चिंगारी पूरे जंगल को राख करने में सक्षम होती है। अतः किसी के भी बुरे बर्ताव को उसी क्षण रोकना चाहिए अर्थात बुराई के बीज को पनपने से पहले ही समाप्त करने के प्रयास करने चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
"जैेसे को तैसा" अक्सर देखा गया है कि कोई अगर किसी के साथ बुरा करता है और फिर उसके साथ कोई अप्रिय घटना घट जाती है तो लोग ऐसा कहते सुने जा सकते हैं। कोई बुरा बर्ताव करे तो कई बार यहीं जी करता है कि उसके साथ भी वैसा ही किया जाय ताकि वो भी उस दुःख या तकलीफ को महसूस कर सके जो उसके बुरे बर्ताव से हमें होती है।
परन्तु हर बार हम बदले के भाव से ही काम करें ये उचित नहीं है।कई बार किसी इंसान के बुरे बर्ताव के पीछे उसकी कोई मानसिक,व्यक्तिगत, शारिरिक या सामाजिक समस्या हो सकती है।इस कारण कोई व्यक्ति अगर बुरा बर्ताव करे तो क्रोध करने के बजाय उसे प्यार से इस बर्ताव का कारण पूछा जाए तथा उसकी समस्या जान कर उसका समाधान ढूंढने की कोशिश करनी चाहिए ताकि वह अपने दुःख से बाहर निकल आए और फिर से सामान्य जीवन व्यतीत कर सके।
- संगीता राय
पंचकुला -  हरियाणा
किसी के बुरे बर्ताव को सहने की प्रत्येक व्यक्ति में अलग-अलग सीमा हो सकती है। 
कोई व्यक्ति अति सहनशील भी है तब भी अंततः एक-न-एक दिन उसका धैर्य जवाब दे जायेगा, जब उसके साथ बुरा बर्ताव करने वाला सारी सीमाएं लांघ जायेगा। 
"बिच्छु और नदी में नहाते हुए साधु" की कहानी सन्देश देती है कि जब दुष्ट अपनी कुटिल प्रवृत्ति नहीं छोड़ता तो साधु अपनी सद्वृत्ति क्यों छोड़े। 
इस कहानी के प्रभावस्वरूप अक्सर मैं सोचता हूं कि बुरे व्यक्ति के जैसा मैं बुरा क्यों बनूं। परन्तु आज के समय में यह सोच स्वयं को मानसिक तनाव और शारीरिक क्षति ही पहुंचाएगी। क्योंकि बुरा बर्ताव करने वाला व्यक्ति समझाने से स्वयं में सुधार लाने को तैयार ही नहीं होता बल्कि हमारी सहनशीलता उसके द्वारा हमारे प्रति किए जा रहे बुरे बर्ताव में वृद्धि ही करेगी। 
इसीलिये मेरा मानना है कि किसी के बुरे बर्ताव के प्रत्युत्तर में प्रथमतः तो उसे समझाना चाहिए। यदि उसके द्वारा किया जा रहा बुरा बर्ताव अनजाने में किया जा रहा है अथवा हमारी किसी बात के कारण है तो उसका समाधान निकालकर उसके बर्ताव को समाप्त किया जा सकता है। परन्तु यदि दूसरा व्यक्ति बात करने के बावजूद भी अपना बुरा बर्ताव अपनी कुटिल प्रवृत्ति के कारण जारी रखता है तो उसके साथ "जैसे को तैसा" वाला व्यवहार करना ही चाहिए। 
बुरा बर्ताव करने वाले को जब तक उसी की भाषा में जवाब न दिया जाये तब तक वह मानेगा नही, क्योंकि आज स्वयं पर दृष्टिपात करने की बात कोई सोचता तक नहीं । 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
जीवन में अच्छाई और बुराई मनुष्य के बीच रहता ही है। यह सदियों से चलते आ रहा है। यह बात भी सच है कि बुराई पर अच्छाई की, असत्य पर सत्य की जीत जरूर होती है। यह सभी जानते हैं कि गांधीजी के तीन विचार थे। बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत करो। इसके बाद भी यदि कोई हमारे साथ जानबूझकर  बुरा बर्ताव करता है तो हमारे स्वाभिमान को ठेस पहुंचता है। इस परिस्थिति में उसको उसी की भाषा में जवाब देना जरूरी हो जाता है, क्योंकि एक बार उसके बुरे बर्ताव का उत्तर नहीं दिया तो उसका मनोबल बढ़ेगा और फिर आपके साथ बुरा व्यवहार करेगा। सब कुछ निर्भर करता है कि सामने वाले ने आपके साथ कितना बुरा बर्ताव किया और उसका तरीका क्या था। एक बात यह भी है कि जिसने हमारे साथ बुरा बर्ताव किया उसका हमारे साथ रिश्ता क्या है। अगर वह हमारा रिश्तेदार है तो उस पर हम कोई पलटवार नहीं करेंगे। पर हां एक बात जरूर है कि बुरा बर्ताव करने के बाद उसकी हमारी जिंदगी में कोई जगह और महत्व नहीं रह जाएगा। अगर वह यूं ही हमसे हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में मिलने वाला व्यक्ति है तो हां पटवा जरूर करेंगे, क्योंकि पटवार ना करने पर उसे जब भी मौका मिलेगा वह फिर वही काम करेगा। अगर उसने सिर्फ बातों से चोट पहुंचाई तो हम भी बातों से उसको जवाब देंगे। जीवन में अच्छी और बुरी घटना है घटते रहती है। संसार में भले और बुरे सभी तरह के लोग हैं। हर व्यक्ति के अंदर कुछ बुराई तो कुछ अच्छा जरूर होती है। यह समझते हुए जो लोग अपने मस्ती को संतुलित रखते हैं वही बुद्धिमान है। जरा जरा सी बात पर उत्तेजित होना, क्रोधित हो जाना, कड़वे शब्द कहने लगना या दूसरे परिभाषा के दोषारोपण करने लगना इस बात का प्रतीक है कि वह व्यक्ति अच्छा नहीं है। जो लोग छोटी-छोटी बातों को बड़ी मान बैठते हैं वही अधीर और उत्तेजित होते हैं। चिंता निराशा या उत्तेजना उन्हें ही आती है। उसमें आवश्यक संजीदगी और गंभीरता हो तो आपा खो देने का कोई कारण नहीं है। क्रोध में लिया गया फैसला हमेशा गलत ही साबित होता है, इसलिए खुद पर काबू रखना बहुत जरूरी है। गुस्से में हमेशा अक्सर वह काम हो जाता है जिससे हम दूसरे को और खुद को भी नुकसान पहुंचाने के साथ लोगों के दिलों में नफरत पैदा कर देता हैं। जिसका हमें बाद में खुद भी बहुत अफसोस होता है। अक्सर व्यक्ति बदला लेकर दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है, पर इस प्रयास में कभी-कभी वह खुद भी बहुत नीचे गिर जाता है। जल्दी बाजी, क्षणिक विचार, अभी अभी वह, अभी करो, अभी प्यार, अभी प्रशंसा, अभी निंदा, अभी विरोध, अभी समर्थन ऐसे अव्यवस्थित अस्त-व्यस्त स्वभाव का होना दर्शाता है कि वह व्यक्ति भीतर से खोखला है। उसका कोई सिद्धांत नहीं है। अपनी कोई निर्णय शक्ति नहीं है। जब जो बस समझ में आ जाती है वह उसी तरह करने लगता है। इस प्रकार के हलके व्यक्ति दूसरे को आंखों में अपना कोई स्थान नहीं बना सकते हैं। इन परिस्थितियों में बुरा बर्ताव करने वाले लोगों से दूरी ही बना कर आने में अपनी भलाई और समझदारी है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
जीवन में अच्छी और बुरी घटनाएं आती रहती है।
संसार में भले और बुरे सभी तरह के लोग हैं।हर आदमी के अंदर कुछ अच्छाई कुछ बुराई  होते हैं।यह समझते हुए अपने मस्तिष्क को संतुलित रखते हुए बुद्धिमानी से इस सवाल का दो तरह से जवाब देना चाहूंगा।
१) अगर कोई एक बार करें तो उसे माफ     कर दें। दूसरी बार करें तो चेतावनी दें, और यदि तीसरी बार करें तो उसे बुरा बर्ताव करने के लायक ना छोड़े।
२)आप उसका बर्ताव सहते रहिए एक दिन थक हार कर वह खुद ही अच्छा बर्ताव करने लगेगा क्योंकि महात्मा गांधी ने कहा है *हिंसा को सिर्फ अहिंसा से ही जीता जा सकता है*,।
लेखक का विचार:--सामने वाले आवेश में आकर बुरा बर्ताव करते हैं उन्हें क्षमा देना अपना बड़प्पन है। क्षमा करने से गुजरा हुआ कल तो नहीं बदलता है लेकिन इससे आने वाला कल सुनहरा हो जाएगा।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
कोई बुरा बर्ताव करता है तो हमें गुस्सा आता है। क्रोध में लिया गया फैसला अक्सर गलत साबित होता है। इस लिए खुद पर काबू रखना बहुत जरूरी है। गुस्से में हमेशा हम खुद को भी और दूसरे को भी नुकसान पहुंचाने के साथ में नफरत पैदा कर देते हैं। जिस का हमें बाद में बहुत पछतावा होता है। कई बार मनुष्य बदला लेने के लिए  दूसरे को नीचा दिखाना चाहता है और उकसाने के लिए बुरा बर्ताव करता है ताकि वह समाज में उसे अपमानित कर सके।कई बार ऐसी प्रवृति के लोग खुद सभी की नजरों में गिर जाते हैं। 
       संसार में सभी तरह के लोग होते हैं। कुछ भले और कुछ बुरे।परन्तु हरेक आदमी के अंदर कुछ बुराई है तो  कुछ अच्छाई भी होती है। यह बात समझते हुए हमें मन मस्तिष्क को संतुलन में रखना चाहिए। छोटी छोटी बातें पर उत्तेजित होना, कड़वे शब्द बोलना,क्रोधित होना,दूसरे पर दोषारोपण करना आदि मनुष्य का ओछापन प्रगट करता है। इस लिए किसी द्वारा किए गए बुरे बर्ताव पर उत्तेजित नहीं होना चाहिए। उस बर्ताव का कारण जानने की कोशिश करनी चाहिए कि कहीं हमारी ओर से तो कोई कमी नहीं है। हमें आत्म निरीक्षण भी करना चाहिए। 
        गम्भीरता और क्षमा दोनों प्रभावशाली व्यक्तितव के आधार हैं। जो लोग छोटी छोटी बातों पर आवेश में नहीं आते,गम्भीर रहते हैं, उनकी संजीदगी दूसरों की नजर में उनका मान बढ़ देती है। क्षमा हमें उठाती है और आगे बढ़ने में मदद करती है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
कोई बुरा बर्ताव करे तो पहले उससे पूछना चाहिये कि तुम या आप ऐसा क्यों कर रहे हो। अगर आप की गलती साबित करता है तो ठीक है अगर नहीं साबित करता है तो फिर उसे समझना चाहिए कि तुम जो कर रहे हो वह गलत है। ऐसा नहीं करना चाहिए। गुस्से को रोकना चाहिए। यह समझना चाहिए कि बुरा किया तो अपने लिए अच्छा किया तो अपने लिए। क्योंकि कर्म का फल तो मिलना ही है अच्छे का अच्छा बुरे का बुरा। जो हमारे साथ बुरा बर्ताव करेगा अवश्य ही कोई न कोई उसके साथ भी बुरा बर्ताव करेगा। अगर कोई आपके साथ बुरा बर्ताव किया और आप कुछ नहीं बोले तो वो आदमी अवश्य ही बाद में पश्चाताप करेगा कि वो क्यों आपके साथ गलत व्यवहार किया। उसके गलत व्यवहार का जवाब न देना भी उसके लिए एक सजा है।कोई कितना भी बकबक करे यदि आप उत्तर नहीं देते हैं तो वह स्वयं बकबक करना बंद  कर  देगा। वह सोचेगा कि उसके गुस्से का या उसके बुरे बर्ताव का उसने कुछ महत्व ही नहीं देगा और वो खुद हीनभावना से ग्रसित हो जायेगा।
किसी के साथ बुरा बर्ताव करना उसका गुण हो सकता है मेरा नहीं। वो मेरे जैसा नहीं बन सकता तो मैं क्यों उसके जैसा बनूँ। कीचड़ में पत्थर फेंकने से छीटा अपने ऊपर ही आता है। सबका अपना-अपना स्वभाव होता है। जब अगला अपना स्वभाव नहीं छोड़ता तो मैं क्यों छोड़ूँ। ऐसे में 
मैं उसके बुरे बर्ताव को क्षमा कर दूँगा। पानी गर्म होने के बाद भी आग को बुझा देता है। बुरे बर्ताव वाले के साथ अगर हम भी बुरा करते हैं तो इस तरह से बुराई बढ़ती ही जाएगी। इसे दमन करने के लिए अच्छाई को तो आगे आना ही होगा। कीचड़ धोने के लिये पानी की आवश्यकता होती है।कीचड़ से कीचड़ नहीं धुलता है। इसलिये उसे माफ कर देना ही उचित होगा।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - प. बंगाल
आदर्शवाद तो ये ही कहता है -
जो  तो  को  काँटे  बुएँ, वा को बू दो फूल ।
तो को फूल के फूल हैं, वा को है त्रिशूल ।।
     विषय मर्म स्पर्शी है वैसे तो जन साधारण सामान्य रूप से जो जैसे वर्ताव करता है उसके साथ वैसा ही वर्ताव करने की कोशिश करते हैं पर ये ठीक नही है क्योंकि ये संदेश दिया जाता है बुरा वर्ताव कर रहे व्यक्ति से बचना चाहिए । 
समय और धन की हानि से बचने के लिए स्वविवेक का प्रयोग करते हुए व्यक्ति को सदैव अच्छे व्यवहार को अपनाना चाहिए ।  वैसे मानवीय स्वभाव कुछ इस तरह से प्रतिक्रिया करता है कि अगर कोई गाली दे तो बदले में गाली देना ज़रूरी लगता है । देखने से पता लगता है कि प्रकृति की प्रत्येक कृति मे प्रतिक्रिया का स्वभाव पाया जाता है अच्छे का अच्छा और बुरे का बुरा जवाब देना । ऐसी दशा में मानव तो प्रकृति की श्रेष्ठ कृति है फिर तो विशुद्ध रूप से प्रतिक्रिया करना स्वभाविक है फिर भी विद्वान और मनीषियों की तार्किक क्षमता का परिणाम तो आदर्शवादिता का प्रतिपादन ही करता है जिसका मानव जीवन में सदैव अच्छा परिणाम ही मिलता देखा गया है ।
    कभी कभी प्रतिक्रिया करना मजबूरी बन जाती है तो कभी क्षमाशील भी होना पड़ता है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
 धामपुर - उत्तर प्रदेश
इस जगत में हर जगह अच्छे और बुरे लोग मिलते ही हैं। स्वाभाविक सी बात है कि बुरा व्यक्ति कभी अच्छा व्यवहार नहीं करेगा। यह भ्रांति भी हो सकती है।
   किसी अपने या पराये ने भी ,जिस पर हमारा भरोसा है। परिस्थिति के अनुसार, स्वार्थ के मद्देनजर वह कभी-कभी बुरा बर्ताव करता है।जिससे हमें क्रोध आता है,हम वाद-विवाद करने लग जाते हैं। 
   परंतु कहा जाता है ना कि व्यक्ति, बुरा नहीं होता, उसकी परिस्थिति बुरी होती है।अच्छा व्यक्ति भी बुरा बर्ताव करने लग जाता है।
    हमें बुरा बर्ताव करने वाले को एक मौका देना चाहिए, उसे समझने की कोशिश करनी चाहिए कि उसने ऐसा क्यों किया?
    इसके लिए हमें संवेदनशील होना होगा।यह नहीं कि बुरे के साथ हम बुरा करने लग जायें। 
   बुरे के साथ तो सभी बुरा करते ही हैं । हम भी ऐसा करें तो उसमें हममें क्या फर्क रहेगा।आखिर इंसानियत भी तो कोई चीज है। 
   याद रखें कि कमल पुष्प कीचड़ में ही खिलता है। कोई भूखा है और उसने एक रोटी चुराकर खा लिया ।उसने कोई जघन्य अपराध तो नहीं किया ना।क्या उसके भूखे रहने के लिए समाज और व्यक्ति दोषी नहीं है। 
  तो हमें बुरा बर्ताव करने वाले के साथ मानवता से पेश आना चाहिए। 
 -  डाॅ•मधुकर राव लारोकर 
 नागपुर - महाराष्ट्र

" मेरी दृष्टि में " आज के युग में बुरा बर्ताव तो हर कोई करता नज़र आ रहा है । इसलिए सभी को अपने आपको बचाने का रास्ता निकालना पड़ता है । यह सब जागरूक हो कर किया जा सकता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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