अच्छे आदमी राजनीति से क्यों दूर होते जा रहे हैं ?

अब समय बदल रहा है । राजनीति में अच्छे आदमी बहुत कम नज़र आते हैं । इस का क्या कारण है ? पहले अच्छे - अच्छे आदमियों का बोलबाला रहा है । जिसके कारण से भारत आजाद हुआ है । परन्तु वर्तमान में राजनीति में अच्छे आदमियों की कमी स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है । यही जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
सवाल होना चाहिए था कि ऐसा क्या है राजनीति में कि अच्छे व्यक्ति अच्छे नेता क्यों नहीं बन पाते हैं..।
किसी राजनेता को गरीबी की हालात में नहीं देखा जा सकता है। संभव ही नहीं है। क्योंकि राजनेता गरीब होते ही नहीं हैं। उन्हें भीड़ में मंदिर के दर्शन करने नहीं जाना पड़ता। उन्हें रेल का टिकट लेने के लिए लाइन में नहीं लगना पड़ता। उन्हें अपने बच्चों को अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने के लिए दर-दर भटकना नहीं पड़ता। उन सबकी जाति का एक नाम होता है, वीआईपी या वीवीआईपी।
भारतीय राजनीति में स्वांग इतनी बार दोहराया जाता है कि त्रासदी का तत्व अव्यक्त ही रह जाता है।
जब मुस्लिम परिवार शरणार्थी शिविरों में रहने पर मजबूर किये जाते हैं तो कोई तथ्यान्वेषी दल उनकी हालत देखने नहीं जाता है। चुनाव सिर्फ कुछ माह दूर रहता है तो दल में पुनः, पुनः ‘हिन्दू कार्ड’ खेलने का निर्णय ले लिया जाता है ।  खतरनाक सांप्रदायिक आयाम का कोई तार्किक स्पष्टीकरण नहीं हो सकता है..। खेद है कि ‘सबका साथ सबका विकास’ केवल नारा है।
राजनीति नकदी को लेने, सीट देने की कवायद भर रह गई है।  कानून निर्माताओं के मन में कानून का कोई खौफ नहीं है। मौजूदा राजनीतिक संस्कृति कुछ ऐसी है कि प्रत्येक दल गुनाह स्वीकारने की बजाय निर्ल्लजता पर उतर आता है। ‘सूटकेस’ सौदेबाजी राजनीतिक मंच को अच्छे लोगों से दूर करने में सफल है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
संविधान के अनुसार भारत एक प्रधान समाजवादी, धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक राज्य है यहां  पर सरकार जनता के द्वारा चुनी जाती है, 
इसलिए हमें ऐसे लोंगों को आगे लाना चाहिए जो जोसमाज सेवा में, साक्रिय हों, ऐसा करने से राजनीति का शुद्दिकरण व अच्छा नेतृत्व भी मिलेगा, लेकिन आजकल बहुत कम लोग राजनीति में हिस्सा ले रहे हैं जबकि  अच्छे पढ़े लिखे व समाज सेवी भी  राजनीति से दूर होते जा रहे हैं, इसका क्या कारण है, 
आईये आज इसी बात पर चर्चा करते हैं कि अच्छे  आदमी राजनीति से क्यों दूर होते जा रहे हैं, 
मेरे ख्याल में राजनीति समाज के अंदर तमाम  प्रकार की समस्याओं  और आवश्यकाताओं को बाहर निकालने काएक मात्र स्रोत है, यह लोगों की स्थिति व परिस्थितियों को  रेखाकिंत करने का मात्र एक तरीका है जो सरकार व समाज के सामने प्रकट करते हैं, इसमें  वुदिमान व दयावान भी शामिल हो सकते  हैं  क्योकी समाज व परिवार मात्र एक ऐसा समूह है जो व्यक्ति व परिवार को संचालित करता है इसलिए राजनीति वास्तव में सेवा का क्षेत्र है, लेकिन अब राजनीति व्यक्तियों का  निहित स्वार्थ बन गई है जो अच्छे लोगों को दूर करती नजर आ रही है क्योकी अच्छे लोग अपने स्वार्थ से दुसरों के   स्वार्थ को प्राथमिकता देते हैं और ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा  क्योंकी धर्म और राजनीति साथ साथ नहीं चलते इसलिए अच्छे लोग राजनीति से दूर हटते नजर आ रहे हैं क्योंकी आजकल उम्मीदें जरूरत से ज्यादा रखी जाती  हैं जिन पर खरा उतरना  सच्चे व साफ सुथरे आदमी के वश में नही है।  
क्योंकी वो आडम्बर, नाटक  अबसरवादित व झूठ के द्वारा जनता को भ्रमित नहीं कर सकता लेकिन अगर अच्छे लोगों के हाथों में राजनीति आ जाए तो अभूतपूर्व परिवर्तन हो सकते हैं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू -जम्मू कश्मीर
आजकल राजनीति में  भ्रष्टाचार  एवं स्वार्थपरता  का बोलबाला है ।अच्छे आदमियों की कोई कीमत नहीं है जो व्यक्ति चापलूसी करता है अपने स्वार्थ हेतु कुछ भी करने को तैयार हो जाता है उसका उपयोग भ्रष्ट राजनीतिज्ञ कर लेते हैं और उसे भी उनसे सहारा मिलता है। नगाड़ों में तूती की आवाज के समान होते हैं आज के समय में अच्छे आदमी जिनकी कोई सुनवाई नहीं होती जिन पर कोई ध्यान नहीं देता। स्वार्थ केंद्रित व्यक्ति भ्रष्टाचारियों का साथ देते हैं, जिससे उन्हीं की पूछ होती है। यही कारण है की अच्छे-अच्छे राजनीति से दूर होते जा रहे हैं। कई बार तो अच्छे आदमियों को अपनी अच्छाई की बदौलत सत्यता की बदौलत बुरा परिणाम भी भुगतना पड़ता है ।कभी सामाजिक तौर से, कभी परिवारिक तौर पर कभी राजनीतिक तौर पर उसे अपनी अच्छाई का काफी मूल्य चुकाना पड़ता है ।इसलिए भी अच्छे लोग राजनीति से दूर हो जाते हैं। उस पर से विश्वास उठ जाता है परेशानी उठानी पड़ती है सो अलग।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
चुनावों उपरान्त अगर वोटों का अनुपात कम या ज्यादा रहा तो अपने वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं, जिसका सीधा सा प्रभाव आमजनों, गणमान्यजनों को होता हैं, जिसके कारण व्यवस्थाओं पर पश्न चिंह उठने स्वाभाविक ही हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः अपराधित्व प्रवृत्तियों के जन उच्च पदों पर पदस्थ होकर अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं। जिसके कारण अच्छे आदमी राजनीति  से दूरी बनाए रखना उचित ही समझते हैं और जिनके बस की बात भी नहीं, आज कमीशन बाजी दौर चल रहा हैं, कार्य सुचारू रूप से सम्पादित करने में परेशानियों का सामना करना पड़ सकता हैं। जिस दिन अच्छे आदमियों का राजनीति में प्रवेश हो गया, उस दिन लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं की परिभाषाएं ही बदल जायेगी और आमतौर पर आमजनों के आत्मविश्वास में जागरूकता आयेगी?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
बालाघाट - मध्यप्रदेश
राजनीति   नाम से ही स्पष्टीकरण हो रहा है की नीति से किया गया राज अब राज हेतु नीति सही हो या गलत
येन केन प्रकारेण पाँच वर्ष के कार्यकाल में हमें जनता को आगे पाँच वर्षो के लिए भी जीतना है उसके लिए झूठ का पुलिंदा बांधकर उसपर ही शासन किया जाता है। राजनीति में अब चुनाव के साथ -साथ गठबंधन की रीति भी निकल पड़ी अब सरकार का गठबंधन प्रेम के आधार पर होता है परन्तु प्रेम में स्वार्थ का बोलबाला अधिक रहता है तो जहां पाँव रखते ही बुराई का दलदल हो वहाँ एक अच्छा इंसान क्यू पाँव डालेगा इसलिए आजकल सरकार व राजनीति में अच्छे इंसान दूर होते जा रहे हैं। 
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
अच्छे को तो अब जनता ही कम चुनती है।अच्छे और बुरे की तो बात ही नहीं अब।अब तो बात बुरे और बहुत बुरे की है।अच्छा कौन?
जो सरल हो,सच्चा हो,त्याग और सेवा भावना वाला हो आदि आदि।तो सोचिए क्या राजनीति में ऐसे लोगों को स्वीकारा जाता है। नहीं न, वहां तो असत्य भाषण और दिवास्वप्न दिखाने वाले हमेशा से सफल होते रहे हैं।
अब तो अपराधी नेताओं की संख्या निर्वाचित माननीय सांसदों में  लगभग चालीस फीसदी है। 25-5-2019 को एक चुनाव विश्लेषक एजेंसी ए डी आर की रिपोर्ट मीडिया में आयी थी,न। जिसके मुताबिक सत्रहवीं लोकसभा में 542 में से 233 सांसदों पर अपराधिक मुकद्दमें चल रहे हैं। इनमें से 159 पर तो बलात्कार और हत्या के मुकदमे है। जब जनता ने इनको माननीय बनाया है तो फिर इनके सामने हारने वाले लोग और उनके जैसे लोग क्या हिम्मत करेंगे राजनीति में आने की। ऐसा भी नहीं कि अच्छे लोग आ ही नहीं सकते या नहीं आते।पर जब वोटर अपने वोट का मतदान से पहले ही भरपूर लाभ धन,सामान के रुप में वसूलने की प्रवृत्ति पाले रहे तो फिर इन अच्छे के पैर इस राजनीति के रास्ते पर नहीं जम सकते।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कुछ हद तक यह बात सत्य है, कि अच्छे आदमी राजनीति से दूर होते जा रहे हैं. अच्छे उद्देश्य के लिए अच्छा माध्यम चाहिए. राजनीति में आने वाला राजनेता कहलाता है. आज राजनीति में विश्वास का संकट है. कोई किसी पर विश्वास ही नहीं करता. समाज में 'राजनेता' शब्द को नकारात्मक दृष्टिकोण से देखा जाता है. राजनेता की एक नकारात्मक छवि बनी हुई है. जैसे उसे चतुर और कुछ अधिक ही चालाक होना चाहिए. उसे ग़लत काम ज्यादा करना चाहिए. यही दृष्टिकोण अच्छे आदमियों को राजनीति से दूर करता जा रहा है. फिर भी अच्छे आदमी राजनीति से संपर्क बनाए रखने में आ रहे हैं. जनता उन्हें पहचान देती है और उनकी छवि साफ-सुथरे राजनेता की बनी रहती है. राजनीति से महज विवादास्पदता और सही बातों पर विरोध करना रुक जाए या कम हो जाए, तो सम्भवतः अच्छे आदमी राजनीति से दूर नहीं होंगे.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
       वर्तमान राजनीति पैसों का खेल बन चुका है और पैसे कमाने का अच्छा धंधा भी माना जा रहा है। जिसमें भले आदमी और समाजसेवी भी पिस रहे हैं। चूंकि साधारण व्यक्ति उन्हें भी शक की दृष्टि से देखते हैं।
         एक समय था जब राजनीति में भी सेवाभाव होते थे। कुछ करने की चुनौतियां होती थी। संवैधानिक पद पाने की होड़ नहीं बल्कि संवैधानिक व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण करने की इच्छाशक्ति होती थी। 
        माननीय पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री जी राजनीति में संवैधानिक उदाहरण हैं। जिनके स्वर्गवास के बाद भी उन पर ऋण शेष रहा था। जिसका भुगतान उनके बच्चों ने किया था। हालांकि सरकार वह ऋण माफ करना चाहती थी। सर्वविदित है कि यदि वह भी भ्रष्टाचार का समर्थन करते तो उन्हें कौन रोकता। देशभक्ति पर वह प्राण न्यौछावर करने में भी पीछे नहीं हटे। वह युगों-युगों तक ईमानदारी के उदाहरण बने रहेंगे।
       परंतु वर्तमान राजनीति इतनी अपमानित हो चुकी है कि अच्छे लोग इससे दूर रहना ही पसंद करते हैं और यदि कोई युवा इस दलदल में घुस कर इसकी गंदगी साफ करने का साहस करें भी, तो उन्हें उनके परिजन और मित्रवर तंज कर-कर भगा देते हैं। चूंकि अच्छे कार्य करने वाले को ही 'पागल' की संज्ञा ही नहीं बल्कि उन्हें 'खानदानी पागल' कह कर चिढ़ाया भी जाता है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
आज की राजनीति बहुत ही भयावह है !संसदीय जनतंत्र में बहुमत का राज है सभी की अपनी तानाशाही है ! राजनीति अब एक ऐसा उद्योग है जहां आसानी से पैसे बनाये जा सकते हैं ! वोट बैंक के लिए अल्पसंख्यक  जातिवाद है ! जातिवाद में आरक्षण है ! यदि आप राजनीति में आकर देश की सेवा करना चाहते हैं तो उस दलदल में पूर्ण तरह डूबकर पहले उसका मुआयजा लेना होगा ! हम कितने भी अच्छे हों हमारी भावनाएं देश के लिए कितनी भी अच्छी हो प्रथम हमें उनके बीच रहकर उन जैसा बन उन्हें विश्वास में लेना होगा ! राजनीति एक ऐसा दलदल है जो अच्छे अच्छे को गर्क कर जाता है !  पहले हमें स्वयं पर विश्वास करना होगा  कि मैं दलदल में रहकर भी अपनी छबि साफ रखूंगा !कितने भी छींटे आये विचलित नहीं होऊंगा ! वैसे देश की सेवा राजनीति में आकर भी कर सकते हैं बस दृढसंकल्पता के साथ टिके रहना है चाहे प्राणों की आहुति क्यों न देनी पडे़ ! यदि देश के लिए कुछ कर दिखाना है तो राजनीति में आकर देश सेवा की जा सकती है ! अच्छे लोग दूर इसलिए भागते हैं क्योंकि इसमे दलदल में धंसने की संभावना है ! हम पहले स्वयं को बदलना होगा ! अच्छे लोग की पहचान है की वे कुछ कर दिखाएं भागे नहीं !
            -  चंद्रिका व्यास
                 मुंबई - महाराष्ट्र
जनतंत्र में राजनीति जनहित में आमजन की सेवा का माध्यम है। राजनीति में अच्छे आदमी इस सिद्धांत को लेकर कार्य करते थे परन्तु यह सिद्धांत अब अपना आस्तित्व खो चुका है। वर्तमान राजनीति बहुमत की शक्ति पर आधारित है और प्रत्येक राजनीतिक पार्टी साम-दाम-दण्ड-भेद की नीति अपनाकर बहुमत प्राप्त करना चाहती है। आज की राजनीति धन-बल, बाहु-बल के आधार पर किसी भी प्रकार से सत्ता प्राप्ति पर आधारित हो गयी है। 
अच्छे आदमी राजनीति में सैद्धांतिक मूल्यों की चिन्ता करते हैं। वर्तमान स्वार्थी राजनीति में ऐसे सिद्धांतप्रिय लोग टिक ही नहीं पाते। वे, भेड़ियों के झुंड में फंसे हुए स्वयं को बेबस पाते हैं। 
इसीलिए वर्तमान राजनीति का विकृत रूप देखकर अच्छे आदमी धीरे-धीरे स्वयं को राजनीति से दूर करते जा रहे हैं। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
    भारत लोकतंत्र देश है।हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था चुनाव के उपर निर्भर करती है। आजादी के बाद इसी प्रणाली को अपना कर भारत ने अभूतपूर्व विकास किया है लेकिन सात दशक के बाद इस में ठहराव सा आ गया है। अब इस में कुछ बदलाव करने इच्छा जताई गई है। 
     लोकतंत्र प्रणाली में सांसद चुनाव के आधार पर चुन कर आता है लेकिन समय के साथ अपनी जीत के लिए प्रत्याशी बाहुबल और धन का अनुचित प्रयोग करके अपनी जीत दर्ज करा लेता है। जिस से सांसद में ऐसे लोग चुनकर आ जाते हैं जो विवेकहीन और भरष्ट होते हैं। वो अपने कार्य काल में देश का विकास नहीं, अपना घर भरते हैं। अपने आप को महाराजा और जनता को कीड़े-मकौड़े समझते हैं। इस लिए अच्छे आदमी राजनीति से दूर होते जा रहे हैं। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब
अच्छे आदमी राजनीति से इसलिए दूर होते जा रहे हैं कि राजनीति अब भले लोगों के वश की बात नहीं रही।
आजकल राजनीति चोरों, डकैतों, रिश्वतखोरों, लुटेरों, झुठबोलने वालों , वादा फरोश, दंगा फैलाने वालों, धार्मिक उन्मादियों, बेईमानों और इनसे मिलते जुलते लोगों के वश की बात हो गई है। इसलिए भले लोग राजनीति में नहीं जाना  चाहते हैं। जिन्हें देश से नहीं केवल कुर्सी से प्यार है वही आज राजनीति में जा रहे हैं। भले लोगों को कोई वोट नहीं देगा या वो जनता को धमका नहीं सकते हैं। वोट से दो दिन पहले गुंडे बदमाश आते हैं लोगों को धमका कर जाते हैं अमुक आदमी को वोट देना नहीं ये करेंगे वो करेंगें। लोग भय से उन्हें वोट दे देते हैं।
    पहले राजनीति देश सेवा के लिए होती थी आज राजनीति अपनी सेवा के लिये होती है। पहले लोग वोट में अपना पैसा लगाते थे अब दूसरों से डरा धमका कर पैसे लेते हैं। फिर पैसा देने वाला अपनी  मनमानी करता है कोई कुछ बोलता नहीं। भले लोगों से ये सब सहन नहीं होगा इसलिए वे राजनीति में नहीं जाते हैं।
        गरीब जनता की गाढ़ी कमाई टैक्स के रूप में वसूल कर मुफ्त में खाना, मुफ्त में घूमना, उस पर से और कई तरह की सुविधाएं लेना,फिर घोटाला करना। अपना वेतन बढ़ाने के लिए एक हो जाना। जनता की सुविधा की बात आये तो आपस में लड़कर एक दूसरे को दोष देना। पाँच साल कार्य काल के लिए पेंशन लेना। किसी प्रकार का टैक्स नहीं देना। तीस चालीस साल कार्य करने वालों को पेंशन नहीं देना। ये सब जो कर सकता है, वही राजनीति में जा सकता है। भले आदमी से ये सब अन्याय नहीं होगा इसलिए अच्छे आदमी राजनीति में नहीं जाते हैं।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
अच्छे आदमियों का राजनीति से दूर होना स्वाभाविक है क्योंकि आज कल की राजनीति से लोगों का विश्वास उठ गया है। आधुनिक राजनीति में आम आदमी निराश और हताश है।
 इस राजनीति में विचार आधारित अभियानों का अभाव है यहां केवल सत्ता ही सर्वोपरि है। विचारों का कोई मतलब नहीं है केवल और केवल गठबंधन बनाने का काम ही युगधर्म बन गया है । 
आज जनतंत्र जनता हितैषी नहीं परंतु लूट तंत्र अवश्य बन गया है भ्रष्टाचार का बोलबाला है वोट बैंक के लिए सांप्रदायिक अल्पसंख्यक वाद और जातिवाद है। ईमानदार आदमी को मूर्ख माना जाता है ।चालाक भ्रष्ट लोगों का बोलबाला है। 
ऐसे में अच्छे लोग राजनीति से किनारा कर लेते हैं । ऐसा नहीं है कि भारत जैसे विशाल देश में अच्छे लोगों की कमी है। सभी दलों/ पार्टियों में अच्छे और विचार निष्ठ लोग हैं लेकिन नीति निर्माण में जब उनका हस्तक्षेप नहीं है, तो दूरी बनाना ही श्रेयकर मानते हैं ।
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
अच्छे आदमी राजनीति से दूर इसीलिए होते जा रहे हैं क्योंकि वर्तमान राजनीति में अच्छे आदमी की विचारधारा महत्वहीन होती जा रही है। राजनीति के मंच पर अधिकतर झूठ, लालच, बेईमानी, अविश्वास का कब्जा है और ये सब अच्छे आदमी के गुणों से मेल नहीं खाते। अच्छा आदमी यदि आज की राजनीति में आता है तो उसे अपने मूलभूत गुणों का त्याग करना होगा। मजबूत चरित्र वाला अच्छा आदमी यह नहीं कर पाता। इसीलिए आज राजनीति में लाल बहादुर शास्त्री जैसे अच्छे आदमी चिराग लेकर ढूंढने पर भी नहीं मिलते।
- सुदर्शन खन्ना
दिल्ली
अच्छे आदमी आज राजनीति से दूर होते जा रहे हैं; यह सच है। मात्र भौतिकवादी परिवेश में सामान्यतः लोग स्वार्थी, सत्ता लोलुप, भ्रष्टाचारी और अमानवीय हो गए हैं। जीवन के हर क्षेत्र में राजनीति तो एक ऐसा रतन है जिसकी प्राप्ति के लिए  अधिकांशतः उस व्यक्ति की आदमियत ही दफन हो जाती है। देश का विकास,  प्रगति, सुचारू परिचालन ,योग्य नेताओं व उनकी सरकार के ऊपर बहुत कुछ निर्भर करता है। जब ये राजनीतिज्ञ पढें लिखे, सुयोग्य, तुष्टिकरण की मति से दूर, भाई- भतीजावाद व उत्तराधिकारी नियमों की अवहेलना से युक्त, शुद्ध- बुध, विवेकी होकर मात्र देश के हित व मानवता से युक्त राजनीति में क़दम रखता है; तो ऐसे पहरेदारों और चौकीदार से युक्त भले मानस देश के सफल संचालक होते हैं।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि अच्छे आदमी राजनीति से क्यों दूर होते जा रहे हैं तो इस पर मैं कहना चाहूंगा की राजनीति में अब सिद्धांतों की कोई अहमियत नहीं रही है केवल अवसरवादीता ही हावी है ऐसे में सिद्धांत वादी लोग अच्छे लोग राजनीति से दूर होते जा रहे हैं अब राजनीति करने वाले लोग जीतने के लिए विभिन्न प्रकार के हथकंडे अपनाते तरह-तरह के प्रलोभन वोटर्स को देते हैं जिससे चुनाव लड़ने का खर्च भी लगातार बढ़ा है ऐसे में अच्छे लोग राजनीति से दूर होते जा रहे हैं जो आदमी जितना दिन धन चुनाव में खर्च करता है चुनाव जीतने के पश्चात वह उसे पूरा भी करना चाहता है और इस चक्कर में फिर वह ठीक ढंग से काम नहीं कर पाता जबकि अच्छे लोग यह सब नहीं कर सकते ना ही वह बहुत अधिक धन चुनाव लड़ने में खर्च कर सकते और ना ही सिद्धांतों के बिना काम कर सकते और ना दूसरे तरीके अपना सकते यही कारण है कि अच्छे लोग राजनीति से दूर होते जा रहे हैं!
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
राजनीति का अर्थ है विशेष लोगों द्वारा विशेष लक्ष्य की प्राप्ति है  । राजनीति शुरु से होती आयी है ।महाभारत ग्रन्थ इसका बहुत बड़ा उदाहरण है ।पाण्डवों को चौसर के खेल में हरा देना ,कितनी कुटिल राजनीति थी । आज तो हम कलयुग में जी रहे हैं ।धर्म का दिनों दिन पतन हो रहा है अतः राजनीति का स्तर भी गिरता जा रहा है ।आज की राजनीति स्वार्थ की नीति है । कुछ अच्छे व्यक्ति भी हैं लेकिन उनकी संख्या बहुत कम है ।फिर तो वही बात हुई   ..अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता ..। आज की राजनीति में भ्रष्टाचार है ,,नैतिकता का पतन है ,धर्म के नाम पर बँटवारा है ।अच्छे व्यक्ति इन सब को पसंद नही करते हैं वो आवाज उठायेंगे यातो मारे जायेगें या कोई लांक्षन लग जायेगा । अतः वे राजनीति से दूरी बनाये रखना चाहते हैं ।
- कमला अग्रवाल
गाजियाबाद - उत्तर प्रदेश
प्रश्न बहुत ही जटिल है, अच्छे लोग राजनीति में नहीं आते, जिसे लोक सेवा का सर्वोच्च स्वरूप समझा जाता है।
मौजूदा राजनीतिक संस्कृति कुछ ऐसी है कि प्रत्येक दल गुनाह स्वीकारने की बजाय निर्लज्जता  पर उतर आने वाले को प्राथमिकता देती है।
 तब आप किसी दल के सदस्य हो सकते हैं। उसे चतुर और कुछ अधिक ही चालाक होना चाहिए उसे गलत काम ज्यादा करना चाहिए। अपने को जरूरत से ज्यादा दिखावे करना चाहिए। अपने पास दोलत बेशुमार का दिखावा करना चाहिए। समाज में कोई खास समूह में पैठ होना चाहिए। राजनीति में आने के लिए इस सब पैमाना है।
अच्छे पढ़े-लिखे लोग राजनीति में आना चाहते हैं तो वह कार्यकर्ता  बनने को रहे। वो सीधे नेता बनना चाहते हैं। यहविरोधाभास हो जाता है इसलिए अच्छे लोग नहीं आ पाते। क्योंकि खोटे सिक्के खरे सिक्के को चलन से बाहर रखना चाहते हैं, खोटे सिक्के असली मुद्रा है। नतीजा सामने देख रहे हैं, इन्हीं कारणों से अच्छे पढ़े-लिखे लोग राजनीति से दूर रहते हैं।
लेखक का विचार:-दलतंत्र प्रतिभाशाली लोगों को आकर्षित नहीं करता है। दल अब पारिवारिक संपत्तिया है या हाईकमान नियंत्रित कंपनियां। कुछेक दलों की राजनीति कट्टरपंथी लोगों के इशारों पर भी चल रही है। सिर्फ भारतीय जनता दल(बीजेपी) ऐसा राष्ट्रीय दल है जहां सिद्धांत पर  कार्य होता है। वहां सब  का मान - सम्मान एक है, चाहे कार्यकर्ता हो या नेता हो अच्छी बात सबके सुनी जाती है। 
मेरा सुझाव है भारतीय राजनीति का शीर्ष नेतृत्व आत्म चिंतन करें।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखंड
राजनीति शुरू से ही गलत रास्ते पर चलने का जरिया है। इसके अंदर केवल 'स्व ' को जगह दी जाती है। जब भारत को आजादी मिली थी उस वक्त चरित्रवान नेताओं की कमी नहीं थी, लेकिन सभी के जीवन के रहस्य भरे अंत ने राजनीति के प्रति लोगों की रुचि कम कर दी है। अब केवल शक्तिशाली सख्शियत ही यहाँ पाँव टिका पाते हैं। 
  सत्य की इस क्षेत्र में कोई आवश्यकता नहीं है और न हीं देशभक्ति की भावना रह गई है। बहुत कम ही ऐसे राजनीतिज्ञ हैं जिनको देश की भलाई की परवाह है, जो देश की उन्नति चाहते हैं। हर कोई इस दलदल से दूर भागता है।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
अच्छे आदमी राजनीति से दूर होते जा रहे हैं क्योंकि सभी राजनीतिक दलों को सरकार चलाने हेतु जोड़-तोड़ का सहारा लेना ही पड़ता है । पूर्ण बहुत न होने की स्थिति में गठबंधन की सरकार बनती है , जहाँ सबका केवल एक मूल मंत्र रह जाता है , येन केन प्रकारेण पाँच साल तक स्वयं को घसीटना ।
इस जद्दोजहद में वे अपने मूल सिद्धांतों से भी पीछे हटने में  भी गुरेज नहीं करते हैं । सबको मंत्रियों वाली सुविधाएँ मिलती रहीं , वे अपने - अपने राजनैतिक हित साधते हुए अपनी - अपनी रोटियाँ सेकते रहते हैं । 
राजनीति में जातिवाद, भाई - भतीजावाद, परिवार , ऐसे ही न जाने कितने वाद और विवादों की उलझन यहाँ चलती रहती है । कथनी और करनी का भेद तो लगभग हर राजनेता  के व्यवहार से परिलक्षित होता है । इसलिए अच्छे आदमी राजनीति से दूर होते जा रहे हैं ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
राजनीति  अर्थात  वह नीति जिसके  द्वारा  शासन  संचालित  होता  है  जिसमें  साम, दाम, दण्ड, भेद  सभी  सम्मिलित  होते हैं, अच्छे  लोगों  ऐसी नीतियों  का  सहारा  नहीं  ले पाते  इसलिए  उन्हें  सफलता  भी नहीं  मिलती  क्योंकि  ये लोग  भ्रष्टाचार, छल, कपट आदि  से दूरी  बनाकर  चलते  हैं   । ऐसे  लोग  यदि  राजनीति  में  आ भी जाए तो उनका  टिकना  मुश्किल  होता  है  । इस क्षेत्र  में  ईमानदार  लोगों  की संख्या  नहीं  के बराबर  होती  है  अतः  या तो उन्हें  पद से हटना  पड़ता  है  या हटा  दिये जाते  हैं  अथवा  उनकी  हत्या  करवा  दी  जाती  है  । 
       अच्छे  लोग  ईमानदारी  से  शासन  चलना  चाहते हैं  लेकिन  कदम-कदम  पर फरेब  के चलते   राजनीति  से  दूर  होते  जा रहे  हैं  । 
                - बसन्ती  पंवार 
           जोधपुर  - राजस्थान 
अच्छे लोग राजनीति से दूर होते जा रहे हैं जिसके कई कारण है। आज के समय में राजनीति में अपराधीकरण, भ्रष्टाचार, जातिवाद और परिवारवाद हावी है। देश में जो शिक्षित लोग हैं वह राजनीति में पार्टिसिपेट नहीं करते हैं। भाग नहीं लेते हैं, क्योंकि आजकल जो पार्लियामेंट के अंदर आप देखे तो इसमें काफी पढ़े लिखे लोग हैं और करीब 90% से ज्यादा लोग ऐसे हैं जो या तो ग्रेजुएट है। उससे भी अधिक क्वालिफाइड है। आजकल की जो राजनीति है उसके अंदर बहुत ही ज्यादा गैरकानूनी पैसे की जरूरत होती है। गैर कानूनी काम करना पड़ता है, क्योंकि आप सीधे रास्ते से जो है वो राजनीति में सफलता नहीं पाते। यह भी एक बात सच है कि भारत में राजनेता की एक नकारात्मक छवि बनी हुई है। जैसे उसे चतुर और कुछ अधिक चालाक होना चाहिए। उसे गलत काम ज्यादा करना चाहिए। जहां पर राजनीति में नैतिकता की दृष्टि से एक दोस्त पूर्ण वातावरण में पूर्णता की आशा करना और वास्तविक और एक तरफा होगा।वहीं दूसरी ओर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि राजनीति में जो मानदंड स्थापित किए गए हैं वह शासन के अन्य पहलुओं पर महत्वपूर्ण असर डालते हैं। राजनीति का अपराधीकरण ज्यादा हो गया है।अपराधियों के चुनाव प्रक्रिया में भाग लेना यह हमारी निर्वाचन व्यवस्था पर एक नाजुक अंग बन गया है। समाज में अपराधिक हिंसा में वृद्धि होने के अनेक मूल कारण है। कानूनों की अनदेखी सेवाओं की खराब गुणवत्ता और वर्तमान भ्रष्टाचार कानून तोड़ने वालों की राजनीति वर्ग श्रेणी संप्रदाय या जाति के आधार पर आरक्षण, अपराधों की जांच में पक्षपात पूर्ण तरीका, मामलों का धीमा अभियोजन, न्यायिक प्रक्रिया में वर्षों का असाधारण विलन और ऊंची लागत, अनेकों मामलों का वापस लिया जाना, फिर उनकी अंधाधुन मंजूरी ऐसे कारण है जो अधिक महत्वपूर्ण है।
 देश में आज का युवा वर्ग सरकारी नौकरी करना बेहतर समझता है चाहे वह क्लार्क या चपरासी का ही पद क्यों ना हो,  वो राजनीति में आने से बहुत दूर भागता है। इस देश में अच्छे लोग राजनीति में इसलिए नहीं आना चाहते क्योंकि इसके लिए काले धन की जरूरत होती है। चुनाव में करोड़ों खर्च करने पड़ते हैं और जब चुनाव जीत जाए जाता है तो उसकी वसूली गलत तरीके से की जाती है। इस परिस्थिति में जो अच्छे लोग हैं वो नहीं चाहेंगे कि पैसे और ताकत के बल पर राजनीति की जाए। यही सब कारण है कि अच्छे लोग और युवा वर्ग राजनीति में नहीं आना चाहता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " अच्छे आदमियों से ही राजनीति होनी चाहिए । जिससे देश व जनता की तरक्की सम्भव है । अच्छे आदमी ही राजनीति का भविष्य है ।बाकी का इतिहास भी नहीं बनता है । 
- बीजेन्द्र जैमिनी

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