क्या उच्च शिक्षा का आधार बन सकती है भारतीयें भाषाएं

अभी तक उच्च शिक्षा  अग्रेंजी माध्यम से हो रही है परन्तु भविष्य में भारतीयें भाषाएं में उच्च शिक्षा प्राप्त हो सकती हैं । जिससे शिक्षा में एक क्रांति आ सकती है । जो शिक्षा में अभूतपूर्व परिवर्तन होने की सम्भावना है । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
विभिन्न आयोगों, समितियों और परिषदों द्वारा प्रस्तुत किए सुझावों में एक सुर में क्षेत्रीय भाषाओं या मातृभाषाओं को प्रथम स्थान प्रदान किया गया है। साथ ही लगभग सभी ने त्रिभाषा-सूत्र के पालन पर ज़ोर दिया है।
'त्रि-भाषा सूत्र' राज्यों के बीच भाषाई अन्तर को समाप्त कर राष्ट्रीय एकता में वृद्धि का विचार रखता है।
"त्रि भाषा फ़ॉर्मूला" जिसको आगे बढ़ना है उसके लिए स्थानीय भाषा (मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा) के साथ-साथ हिन्दी और अँग्रेज़ी सीखना भी अनिवार्य किया जाना चाहिए और ऐसा करने से देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में किसी को भाषाई आधार पर कोई समस्या नहीं होगी... ।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
शिक्षा प्रणाली की यदि बात करें तो उच्च शिक्षा निति भी अपनी भाषा में देनी चाहिए , 
जिसकी स्थिती काफी देर से बदली नहीं थी और भारतिय भाषाएं निरंतर पिछड़ती गईं, 
लेकिन आज स्थिती कुछ और है। 
आईये आज की चर्चा शूरू करते हैं कि क्या उच्च शिक्षा का आधार बन सकती हैं भारतिय भाषाएं, 
मेरा मानना है कि नई शिक्षा निति अवश्य  कुछ उम्मीद जताती है जिसमें भारतिय भाषाओं को महत्व देने की पहल दी गई है, 
अब इंजीनियरिंग और मैडिकल को  लेकर समस्त उच्च शिक्षा में भारतिय  भाषाओं को महत्व मिलेगा। 
इससे अंग्रेजी के आधिपत्य पर ़भी अंकुश लगेगा जिससे  आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद मजवूत होगी, 
इस उदेश्य के लिए आई आई टी , बीएचयू को चिन्निहित कर लिया है और अन्य चयन की परिक्षा जारी है। 
बहुत पहले भी यानी १९६४,१९६५में दौलत सिहं कोठारी आयोग ने भी अपनी रिपोट में कहा था की उच्च शिक्षा भी अपनी भाषा मे होनी चाहिए और यह बात संसद मे भी मानी थी लेकिन इन वीते  बर्षों से आज ऐसा लग रहा है कि  भारत कि शिक्षा की सबसे वड़ी कमी उसका अंग्रेजी पर निर्भर रहना  है, लेकिन नई ़शिक्षा निति मेंअब शीघ्र ही सभी उच्च शिक्षाएं भारतिय भाषाओं में ही दी जांएगी, 
केन्द्रिय  शिक्षा मंत्री का कहना है कि नई शिक्षा निती जगत के लिए क्रांतिकारी  परिबर्तन लेकर आऐगी जिसके तहत मैडिकल, नीट, आई आई टी  राय्टृिय भर्ती परिक्षा में भारतिय भाषाओं का ही चयन होगा जो भारत के लिए एक सराहिनय कदम है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भारतवर्ष में बहुत सी क्षेत्रीय भाषाएं प्रचलित हैं।हर एक का अपना साहित्य एवं सामाजिक परिवेश है। उच्च शिक्षा के लिए एकरूपता लाने  के दृष्टिकोण से हिंदी ही सर्वोत्तम माध्यम हो सकती है। सभी लोग हर जगह की हर प्रांत की स्थानीय भाषा से परिचित नहीं होते। जब तक अच्छी तरह किसी भाषा का ज्ञान नहीं हो तब तक उच्च स्तर पर राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय  स्तर पर भी पढ़ाई करना असंभव है। कुछ विशिष्ट प्रतिभायें तो आदिकाल से ही पैदा होती रही है। पर सभी नागरिक एवम संपूर्ण समाज विशिष्ट नहीं होते उनके लिए एक सूत्र में बांधने वाली एक ही भाषा है और वह हिंदी जोकि देश के अधिकांश क्षेत्रों में बोली जाती है। उसे ही उच्च शिक्षा का आधार बनाना चाहिए।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
जी, हां उच्च शिक्षा के लिए भारतीय भाषाएं मजबूत आधार बन सकती हैं।जब भारत विश्वगुरु कहलाता था,जब भारत में विश्व के सर्वोत्तम विश्वविद्यालय थे,जब इन विश्वविद्यालयों में समृद्ध पुस्तकालय थे,जब विदेशी छात्र भी शिक्षा पाने यहां आते थे,तब भला कौन सी विदेशी भाषा में पढ़ाई होती थी? भारतीय भाषाओं में ही होती थी।उस समय शिक्षा, अनुसंधान के क्षेत्र में भारत विश्व में अपनी विशिष्ट पहचान रखता था। तो यह अब भी संभव है। उच्च शिक्षा  में जब भारतीय भाषाओं का प्रयोग होगा तो निश्चित तौर पर हमारी सफलता की गति बढ़ेगी।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
अवश्य बन सकती है !  स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश में स्वाभाविक रुप से अपनी भाषा में शिक्षा दी जाती है ! पिछले कुछ वर्षों से भारतीय भाषाओं को बढ़ाने के उद्दैश्य से मेडिकल की नीट परीक्षा ,आइ.आइ.आइटी एंट्रेंस राष्ट्रीय भर्ती परीक्षा आदि में भारतीय भाषाओं में परीक्षा देने की सुविधा हो गई है और अब इंजीनियरिंग ,मेडिकल कॉलेज में अगले सत्र में भारतीय भाषाओं में शिक्षण का प्रावधान है ! यदि यह  मूर्त रुप लेता है , तो यह शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी कदम होगा ! आरंभ में कठिनाईयां आयेंगी ,मुश्किलें बढे़गी चूंकि स्वतंत्रता के बाद भी अंग्रेजी की जड़े ऐसी फैल गई है कि आज लोकसेवा से लेकर प्रशासनिक परीक्षाएं अंग्रेजी में ली जाती हैं ! इसके लिए अंग्रेजी की जड़े काट अपने देश के राज्य की भाषा ,क्षेत्रिय भाषा एवं मातृ भाषा के पौधों की जड़ो को मजबूत करना होगा !  शिक्षा की नयी निती केवल कागजों तक ही नहीं सिमटनी चाहिए !   अगर भारतीय भाषाएं शिक्षा के तत्वावधान में विशिष्ठ महत्व रखती है तो उच्च शिक्षा का आधार भी बन सकती हैं ! 
            - चंद्रिका व्यास
            मुंबई - महाराष्ट्र
होने को कुछ भी हो सकता है - सच में ऐसा ही था , पौराणिक काल में तो था ही अभी कुछ साल पहले अध्यतन भारत में भी यही था * विश्व गुरु *  था हमारा  * भारत * । और भाषा थी संस्कृत देव भाषा संस्कृत जिस को सीख २ आज अन्य असंख्य देश अपनी वर्तमान समृद्धता को हांसिल हुए।  आएगा वो समय पुनः उच्च शिक्षा का माध्यम भी हमारे प्रादेशिक भाषाएँ ही होंगी लेकिन तब * जब हम सबसे पहले अपने देश की इन भाषाओँ का सम्मान करना सीख जाएंगे अपने देश की इन सभी भाषाओँ में पढ़ना लिखना बोलना  सीख जायेंगे। - स्कूल के स्तर पर भिन्न 2 राज्यो  में सब कुछ व्यवस्थित है - तो यही सब उच्च शिक्षा स्तर पर भी हो सकता है |   
भारत की आपसी फूट, जाति वाद सत्ता लोभ एक दुसरे की टाँग खिचाई उसकी कमीज मेरी कमीज से सफ़ेद कैसे वाली मानसिकता से पहले निजात चाहिए वसुधैव कुटुंबकम से पहले अपने घर में देश में प्रान्त में आपसी फूट, जाति वाद सत्ता लोभ का त्याग करना सीखना होगा निस्वार्थ भाव से देश हित का सोचना होगा।  तब मिलेगी सभी भारतीय भाषाओं को सच में उनकी पहचान 
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश में अपनी भाषाओं में शिक्षा तो स्वाभाविक रूप से दी जानी चाहिए थी, मगर आजादी के तुरंत बाद अंग्रेजी के पक्ष में लगातार ऐसा माहौल बनाया जाता रहा है कि शिक्षा जगत से लेकर लोक सेवा आयोग तक भारतीय भाषाएं हाशिए पर सिमटती गईं. प्रायः यही माना जाता रहा है, कि उच्च शिक्षा के लिए भारतीय भाषाएं सक्षम नहीं हैं. हमारी यही नकारात्मक सोच उच्च शिक्षा का आधार भारतीय भाषाएं बनते-बनते रह जाती हैं. इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों में अगले सत्र से भारतीय भाषाओं में शिक्षण उपलब्ध कराने की योजना चल रही है. एक बार यह योजना मूर्त रूप ले लेती है, तो भारतीय भाषाओं की पुस्तकें भी उपलब्ध होने लगेंगी. हमारे पास न तो प्रतिभा की की कमी है अय्र न ही भारतीय भाषाएं अक्षम है. हमारा दृढ़ संकल्प ही भारतीय भाषाओं को उच्च शिक्षा के लिए सक्षम बना सकता है. समावेशी और आत्मनिर्भर भारत का संकल्प भारतीय भाषाओं के माध्यम से ही प्राप्त किया जा सकता है. आइए अपनी सोच को सकारात्मक बनाएं और भारतीय भाषाओं को उच्च शिक्षा का आधार बनाएं. यह बिलकुल संभव है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
     प्राचीन काल से भारतीय भाषाएं का महत्वपूर्ण योगदान रहा हैं, किन्तु  16-17 शताब्दी के पश्चात ब्रिटिशों का व्यापार की दृष्टि से आगमन, फिर सम्पूर्ण शासन, तदोपरान्त शिक्षा प्रणाली के कारण, आजादी उपरान्त भी भारतीय उम्मीदों को सर्वोच्च प्राथमिकता के आधार पर अंग्रेजी अध्ययन-अध्यापन योगदान देकर अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर हैं, जिसके परिपेक्ष्य में दिनों-दिन भारतीय भाषाएं का महत्वपूर्ण कम होता गया, लेकिन भारतीय शासन प्रणाली के तहत काफी हद तक मातृ-राज्य भाषाओं में सुधार करते हुए बच्चों को स्वावलंबी बनाने प्रयत्नशील हैं, जिसके कारण उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं  को आधार  बनाने प्रयत्नशील हैं, जहाँ भविष्य में आने वाली पीढ़ियों को अपनी विरासत को समझने में सुविधानुसार सफलता का बोघ हो।
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
क्या उच्च शिक्षा का आधार बन सकती है भारतीय भाषाएं? यह आज की चर्चा का विषय है। इस विषय को लेकर मैं कोठारी आयोग की याद दिलाना चाहती हूं,  वर्ष 1964 -66 में  कोठारी आयोग ने मुख्यतः  इसी बात पर जोर दिया था कि  केवल स्कूली शिक्षा ही नहीं बल्कि उच्च शिक्षा भी अपनी भाषा में दी जानी चाहिए। उसमें देश के बुद्धिजीवी वर्ग ने भी इस बात को माना  था और संसद में भी यह विषय उठाया गया था परंतु धरातल पर स्थिति वैसी की वैसी बनी रही।
 आजादी के बाद लोक सेवाओं से लेकर तकनीकी शिक्षा में अंग्रेजी भाषा का दबदबा बढ़ता ही गया और भारतीय भाषाएं लगातार पिछड़ती गई। अब नई शिक्षा नीति से अवश्य कुछ उम्मीद जागेगी जिसमें भारतीय भाषाओं को अपेक्षित महत्व देने की पहल की गई है ।  
जब  इंजीनियरिंग  और मेडिकल से लेकर सभी उच्च शिक्षा में भारतीय भाषाओं को स्थान मिलेगा तभी लोक सेवाओं के साथ-साथ अन्य सरकारी एवं गैर-सरकारी  नौकरियों में भारतीय भाषी छात्रों का  भविष्य अवश्य चमकेगा।
 हमें उत्तर प्रदेश के छात्र की दुर्गति को नहीं भूलना चाहिए जो लोक सेवा आयोग में हिंदी माध्यम का परीक्षार्थी था अपने साथ हुए अन्याय से दुखी होकर उस छात्र ने आत्महत्या कर ली थी ।
बहुत दुख होता है जब अपने देश की भाषाओं में पढ़े हुए मेधावी छात्रों  को इन स्थितियों से गुजरना पड़ता है।
अतः  भारतीय भाषाओं को  उचित महत्व मिलना ही चाहिए ।यदि ऐसा होता है तो अंग्रेजी के अधिपत्य पर भी अंकुश लगेगा और साथ ही आत्मनिर्भर भारत की बुनियाद भी मजबूत हो पाएगी।
- शीला सिंह
 बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
          प्रत्येक भारतीय भाषा किसी भी विषय की उच्च शिक्षा का ठोस आधार बन सकती है। परंतु उस उच्च शिक्षा प्राप्ति का क्या लाभ, जिसमें भाषाओं का ही नहीं बल्कि भारतीय सभ्यता और संस्कृति का ही मूल नाश हो जाए?
        चूंकि पश्चिम भाषा अंग्रेजी है और अंग्रेजों की सभ्यता और संस्कृति भारतीय सभ्यता और संस्कृति से बिल्कुल मेल नहीं खाती। यहां तक कि मौसम भी विपरीत है।
        किन्तु भारत भारतीय और भारतीयता का दुर्भाग्य यह है कि हर उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाला शिक्षित पश्चिम भाषा अंग्रेजी के साथ-साथ पश्चिम सभ्यता और संस्कृति से अत्यंत प्रभावित हैं और उसी की ओर आकर्षित भी हैं। जिसके अधिकांश उदाहरण हाई सोसाइटी में अमूमन मिल जाते हैं।
       क्योंकि मीडियम सोसायटी में अभी भी सिन्दूर की एक चुटकी की कीमत अनमोल मानी जाती है। शादी के सात फेरों में सात जन्मों की कस्में आज भी खाई ही नहीं बल्कि निभाई जाती हैं।
       अतः हमें भारतीय भाषाओं को उच्च शिक्षा का आधार बनाने के साथ-साथ भारतीय प्राचीनतम सभ्यता और संस्कृति के संरक्षण पर भी बल देना चाहिए।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
भारतीय भाषाएं की विविधता है लेकिन विविधता में भी एकता है मदर टंग मातृभाषा हमारी हिंदी है भारत की मातृभाषा चुकी हिंदी है और क्षेत्रीय भाषा क्षेत्र के अनुसार सभी राज्यों की अलग-अलग है उच्च शिक्षा में अभी तक मातृभाषा की प्रमुखता रही है विषय आप जो भी ले लेकिन मातृभाषा सब का होना अति आवश्यक है उसके अलावा क्षेत्रीय भाषा का उपयोग प्रयोग कर सकते हैं उच्च शिक्षा जैसे इंजीनियरिंग मेडिकल की पढ़ाई में या तकनीकी शिक्षा में भारतीय भाषाओं की प्रमुखता देते हुए सिर्फ टेक्निकल शब्दों का उपयोग अन्य भाषा में की जाती रही तो उस शिक्षा में भी भारतीय भाषाएं सर्वाधिक महत्वपूर्ण समझी जाएंगी
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
भारत,  लोकतांत्रिक देश है, अपनी भाषाओं में शिक्षा तो स्वाभाविक रूप से दी जानी चाहिए।
 देश के आजाद होने के बाद तुरंत यह कदम उठाना चाहिए था। लेकिन हमारे नीति निर्णायक अंग्रेजी के पधार रहे, क्योंकि हमारे देश में भिन्न-भिन्न तरह की भाषा की संस्कृति है इसलिए अंग्रेजी को महत्व दिया गया।
इन्हीं कारणों से भारतीय भाषाएं हाशिए पर सिमट गई। 
दूसरा कारण आजादी के बाद से शिक्षा मंत्री हिंदी और भारतीय भाषा के पक्षधर नहीं रहे।
लेकिन अभी जो शिक्षा मंत्री है, श्री रमेश पोखरियाल निशंक ने हिंदी और भारतीय भाषा के पक्षधर हैं। इसलिए शिक्षा जगत मे  क्रांतिकारी परिवर्तन करने की घोषणा किए हैं ।यह स्वागत योग्य है। इनकी घोषणा में हिंदी भाषा तथा स्थानीय भाषा को महत्व क्लास 5 तक दिया गया है। देश के हर कोने से स्वागत हुआ है।
जब हर देश में अपनी अपनी भाषा में ही उच्च शिक्षा दी जाती है तो मेरे देश में क्यों नहीं इसे बढ़ावा देना है।
अभी हाल ही में संघ लोक सेवा आयोग से लेकर राज्यों के प्रशासनिक परीक्षाओं में अंग्रेजी का महत्व कम किया गया है।
यह दृष्टिकोण से नई शिक्षा नीति अवश्य कुछ उम्मीद जगाती है।
लेखक का विचार:-इंजीनियरिंग और मेडिकल की भी पढ़ाई हिंदी में शुरुआत करनी आवश्यक है।
 हिंदी राष्ट्रीय भाषा घोषित करना उचित है। स्थानीय भाषा के साथ-साथ हिंदी को सम्मिलित किया जाए।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड
 भाषा से ही भाव व्यक्त होती है। अगर भाव महत्वपूर्ण है तो इसे कोई भी भाषा से व्यक्त की जा सकती है हां इतना जरूर है कि जिस भाषा कि समाज मैं अधिक बोली जाती है तो उसी भाषा से कोई भी ज्ञान शिक्षा के माध्यम से दी जाती है तो जरूर वहां उच्च शिक्षा का आधार बन सकता है उच्च शिक्षा से ही व्यक्ति विभिन्न क्षेत्रों में से ज्ञान प्राप्त कर विकास करता है उच्च शिक्षा के अंतर्गत 2 शिक्षा क्षेत्र में ज्ञान अर्जन करने की आवश्यकता है एक व्यवहार क्षेत्र और दूसरा स्किल क्षेत्र मनुष्य के पास व्यवहार के साथ-साथ इसके लिए  ज्ञान होना चाहिए। यही दोनों ज्ञान व्यवहार ज्ञान और कार्य ज्ञान व्यवहार ज्ञान से समझ बढ़ती है और स्किल ज्ञान से आय के स्रोत बनती है। इन दोनों ज्ञान को ही सर्वोच्च ज्ञान की दर्जा दी जाती है। अभी स्कील ज्ञान तो है, लेकिन व्यवहारिक ज्ञान की कमी महसूस की जा रही है। अभी सभी मानव की मनः स्वस्थता ठीक नहीं है। तो निश्चित तौर से यही कहा जा सकता है, कि उच्च शिक्षा का आधार बन सकती है। भाषाएं भाषा से ही भाव व्यक्त होता है और भाव में जीना ही सुखी जिंदगी होता है। और यही मानव का लक्ष्य है की निरंतर सुखी हो कर के जी ना। 
- उर्मिला सिदार
 रायगढ़ - छत्तीसगढ़
अवश्य बन सकती हैं भारतीय भाषाएं उच्च शिक्षा का आधार। आज अंग्रेजी के बाद हिंदी जानने वालों की संख्या बहुत है। जब कंप्यूटर पर सारी भाषाएं लिखी जा सकती हैं तो उन भाषाओं में शिक्षा क्यों नहीं दी जा सकती है। आज शिक्षा का आधार कप्यूटर ही है। और सभी भारतीय भाषाएं कंप्यूटर पर लिखी जा सकती हैं तो फिर शिक्षा क्यों नहीं दी जा सकती हैं।अवश्य दी जा सकती हैं। हिंदी में बहुत सारी सॉफ्टवेयर तैयार हो चुकी हैं। बाकी की जरूरत के अनुसार तैयार कर लेंगे, फिर कोई भी शिक्षा अपनी भाषा में दे सकते हैं। चाहे वो उच्च शिक्षा हो या कोई औऱ। 
   आज चाइनीज जपानी जैसी भाषा मे शिक्षा दी जा सकती हैं तो हमारी भारतीय भाषाएं तो उनसे सरल और सहज हैं। लिखने या पढने में।
इसलिए मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि भारतिय भाषाओं में ऊंच शिक्षा दी जा सकती है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश"
 कलकत्ता - पं. बंगाल
जी बिल्कुल भारतीय भाषाएं उच्च शिक्षा का आधार बन सकते हैं ।
इंजीनियरिंग और मेडिकल कॉलेजों मैं अगले सत्र से भारतीय भाषाओं में उच्च शिक्षण उपलब्ध कराने की केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक की घोषणा यदि मूर्ख मूर्त रूप लेती है तो यह शिक्षा जगत के लिए क्रांतिकारी परिवर्तन होगा ।
इसे पिछले कुछ वर्षों से भारतीय भाषा को बढ़ाने की उसी की कड़ी के रूप में देखने की जरूरत है, जिसके तहत मेडिकल की नीट परीक्षा आईआईटी एंट्रेंस ,राष्ट्रीय भर्ती परीक्षा में भारतीय भाषाओं के परीक्षा देने की सुविधा मिल चुकी है।
 एक स्वतंत्र लोकतांत्रिक देश में अपनी भाषा के शिक्षा जगत से लेकर लोक सेवा आयोग तक भारतीय भाषाएं हाशिए पर सिमट गई ।
शिक्षा मंत्री की इस घोषणा का महत्व और बढ़ जाता है कि हाल में संघ लोक सेवा आयोग से लेकर राज्यों की प्रशासनिक परीक्षा में अंग्रेजी का वर्चस्व अप्रत्याशित रूप से बड़ा है।
 यह विडंबना ही है कि अपने देश की भाषाओं में पड़े मेधावी छात्रों के साथ ऐसा सलूक हो रहा है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
गुलामी से पूर्व भारतीय शिक्षाओं का विश्व में डंका बजता था। ब्रिटिश शासक भारतीयों के ज्ञान से स्तब्ध रहे। ज्यादा विस्तार में नहीं जाना चाहूंगा। उसके बाद उन्होंने भारतीय शिक्षा को जिस प्रकार से धूमिल किया यह उनकी शिक्षा नीतियों से उजागर हो जाता है। अंग्रेज चले गए अंग्रेजी की पौध लगा गए जिसे बढ़ने में मदद की हमारे सिस्टम ने और आज हम अंग्रेजी के गुलाम हो गए हैं। हमें भारतीय भाषाओं के अलावा अन्य भाषाओं को भी समझना होगा जिस प्रकार विदेशियों ने आकर हमारे ज्ञान को समझा। भारतीय भाषाएं अभी भी उच्च शिक्षा का आधार बन सकती हैं परन्तु इसके लिए धैर्य और हर तरफ से समर्थन और संगठन चाहिए। इस दिशा में कदम बढ़ाए जा सकते हैं परन्तु बहुत अधिक समय लगेगा। निरन्तर इस दिशा में कार्य करने पर काफी हद तक संभव हो सकता है। हम अपना एक आधार बना सकते हैं। विश्वास रखना होगा।
- सुदर्शन खन्ना
 दिल्ली 
भारत विभिन्न भाषा- भाषी प्रांतों वाला देश है। भारतीय भाषाएं 22 हैं- असमिया, बंगाली, बोडो, डोगरी, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कांगड़ी, मैथिली, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, संताली, सिंधी, तमिल, तेलुगूऔर उर्दू इत्यादि। पर विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई या व्यवसायिक डिग्रियों की प्राप्ति के लिए अभी तक मात्र भाषा के साथ-साथ अधिकांश तः अंग्रेजी की प्रमुखता ही रही है। मेडिकल, इंजीनियरिंग की पढ़ाई अभी तक अंग्रेजी माध्यम से ही दी जा रही है। अधिक समय तक रहे अंग्रेजी शासन के कारण कहीं-कहीं जनमानस और फिर राजनीतिक स्तर पर अनदेखी के कारण यह मानसिकता अभी तक नहीं बदली है।
         विभिन्न भारतीय भाषाओं  को उच्च शिक्षा का आधार बनाने में  प्रथमतः भाषा के अच्छे अनुवादको का होना अत्यन्त आवश्यक है साथ ही प्रांतीय स्तर पर जनता के सहयोग की बलवती आकांक्षा के साथ-साथ सरकार का पूर्ण सहयोग भी  अति अनिवार्य है। भावों विचारों की अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम मातृभाषा होती है ।अतः शिक्षा में इसकी अनिवार्यता और महत्व को समझा जाना चाहिये।
-  डॉ. रेखा सक्सेना
 मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
आज की चर्चा में जहां तक यह प्रश्न है कि क्या उच्च शिक्षा का आधार बन सकती है भारतीय भाषाएं तो इस पर मैं कहना चाहूंगा यह हम सभी को अच्छी प्रकार विदित है कि हम अपनी मातृभाषा में जिस चीज को बहुत आसानी से समझ सकते हैं बोल सकते दूसरों को समझा सकते अर्थात अपने विचारों का संप्रेषण कर सकते उतना अच्छी तरह से यह सब कुछ किसी अन्य भाषा में संभव नहीं है और न ही यह आसान काम है अतः यदि उच्च शिक्षा का आधार भारतीय भाषाओं को बनाया जाए तो यह देश समाज और युवा वर्ग के भविष्य के लिए बहुत अच्छा होगा बस जरूरत है दृढ़ इच्छा शक्ति की एक ऐसे संकल्प की जिसमें हम नव निर्माण की ओर अग्रसर हूं यह एक दीर्घकालिक प्रक्रिया हो सकती है और आरंभ में कुछ विषयों को लिया जा सकता है परंतु ऐसा असंभव नहीं है कि उच्च शिक्षा का आधार भारतीय भाषाओं को न बनाया जा सके और यदि ऐसा होता है तो यह इस देश के युवाओं के लिए इस देश के भविष्य के लिए इसकी उन्नति के लिए इसके विकास के लिए बहुत अच्छा रहेगा।
- प्रमोद कुमार प्रेम 
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
भारतीय भाषाएं उच्च शिक्षा का आधार बन सकती है। यह कोई नई बात नहीं है बल्कि क्षेत्रीय भाषाओं की प्राथमिकता शुरू से मिलती रही है। देश की नई शिक्षा नीति मैं बहुत सारे बातों को प्राथमिकता से रखा गया है। इससे पहले 1986 में शिक्षा नीति लागू की गई थी। 1992 में इस नीति में कुछ संशोधन किए गए थे। यानी 34 साल बाद देश में एक नई शिक्षा नीति लागू की जा रही है। पूर्व इसरो प्रमुख कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने इसका मसौदा तैयार किया था, जिसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। नई शिक्षा नीति में स्कूल शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक कई बड़े बदलाव किए गए हैं। नई शिक्षा नीति में पांचवी क्लास तक मातृभाषा, स्थानीय क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाई का माध्यम रखने की बात कही गई है। इसे क्लास 8 या उससे आगे भी बढ़ाया जा सकता है। विदेशी भाषाओं की पढ़ाई सेकेंडरी लेवल में होगी। हालांकि नई शिक्षा नीति में यह भी कहा गया है कि किसी भी भाषा को थोपा नहीं जाएगा। वर्ष 2030 30 तारीख स्कूली शिक्षा में 100% जी आई के साथ माध्यमिक स्तर तक एजुकेशन फॉर ऑल का लक्ष्य रखा गया है। अभी स्कूल में दूर रहे दो करो बच्चों को दोबारा मुख्यधारा में लाया जाएगा। इसके लिए स्कूल के बुनियादी ढांचे का विकास और नवीन शिक्षा केंद्र की स्थापना की जाएगी। वर्तमान समय में अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अनुसार माध्यमिक स्तर तक मातृभाषा यानी क्षेत्रीय भाषा को शिक्षा का माध्यम स्वीकार किया गया है, लेकिन उच्च शिक्षा स्तर पर आज भी यह समस्या बनी है कि क्या इस स्तर पर शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही हो। अनेक महाविद्यालय में अधिकांश विद्यार्थियों को हिंदी भाषा के माध्यम से शिक्षा प्रदान किया जा रहा है। ऐसा हिंदी भाषी क्षेत्रों में ही है।केंद्र शासित क्षेत्रों व केंद्रीय विश्वविद्यालय में शिक्षा का माध्यम अंग्रेजी ही है। उनके शिक्षा संस्थानों में हिंदी क्षेत्रीय भाषा तथा अंग्रेजी भाषाओं के माध्यम से शिक्षा प्रदान प्राप्त की जाती है। विभिन्न आयोगों, समितियों और परिषदों द्वारा प्रस्तुत किए गए सुझाव में एक सुर में क्षेत्रीय भाषाओं को मातृ भाषाओं को प्रथम स्थान प्रदान किया गया है। साथ ही लगभग सभी ने त्रिभाषा सूत्र के पालन पर जोर दिया है।इसके अलावा अंग्रेजी को धीरे-धीरे शिक्षा के माध्यम की मुख्यधारा से हटाने का भी सुझाव प्रस्तुत किया गया है। सबसे बड़ी विडंबना तो यह है कि एक तरफ लगभग सभी नीति निर्माता इस बात पर सहमत है कि भारत में ब्रिटिश काल के दौरान टुकड़े टुकड़े में बटे देश को एक सूत्र में पिरोने का कार्य करने वाली एक मात्र भाषा अंग्रेजी ही रही है। देश में स्थानीय भाषाओं को जोड़ देना बहुत ही जरूरी। अपनी शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा को स्थानीय मातृभाषा पर आधारित किया जाना समय की मांग है। प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए अंग्रेजी एवं स्थानीय मातृभाषा दोनों का प्रयोग किया जाना चाहिए इसके लिए आवेदन पत्र द्वारा स्थानीय मातृभाषा के उम्मीदवारों की संख्या ज्ञात करके उनके अनुसार प्रश्न पत्रों का निर्माण किया जाना जरूरी है। संस्कृत, उर्दू एवं अन्य भारतीय भाषाओं के साथ साथ अंतरराष्ट्रीय भाषाओं को वैकल्पिक रूप में पढ़ाया जाए, जिससे विद्यार्थियों को उचित सहयोग एवं प्रसार प्रदान किया जा सके। यह तय माना जा रहा है देश में उच्च शिक्षा का आधार भारतीय भाषाएं और स्थानीय बताएं बन सकती है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
 जमशेदपुर - झारखंड


" मेरी दृष्टि में " भारतीयें भाषाएं बहुत है । उन सब से उच्च शिक्षा प्राप्त करना बहुत ही महेनत का कार्य है । परन्तु असम्भव नहीं है । फिर भी सभी भाषाओं में भी सम्भव नहीं हो सकता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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