विचारों में उदारता क्यों आवश्यक है ?

विचारों में उदारता बहुत ही आवश्यक है । उदारता के बिना मानवता सम्भव नहीं है । विचारों का भण्डार उदारता पर टीका है । बाकी तो विचारों का कोई अन्त नहीं है । यहीं जैमिनी अकादमी द्वारा "आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है। अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
विचारों का सतत प्रवाह हमारे मन को निरूपित करता है और मन हमारे व्यवहार को रेखांकित करता है l अतः विचारों में उदारता व्यवहार का श्रंगार है l इनमें उदारता नितांत आवश्यक है, क्योंकि -
अयो निजः परोवेति गणना लघु चेतसाम l
उदारचरितनाम तु वसुधैवकुटुंबकम ll उदार चरित वाले सम्पूर्ण विश्व को अपना परिवार मानते हैं l कानों की शोभा कुंडल से नहीं अपितु ज्ञान की बातें सुनने से होती है, हाथों की शोभा दान से,उदार चरित व्यक्तियों का शरीर ही परहित के लिए होता है l
सत्यम, शिवम, सुंदरम तीनों शाश्वत मूल्यों की पुष्टि में उदारता अपनी मुख्य भूमिका अदा करती है l आज भारत भूमि पर उदारता के स्थान पर पाश्चात्य अंधानुकरण के चलते स्वार्थ का स्थानस्वार्थ ने  ले लिया है l हमारे नैतिक व आध्यात्मिक मूल्यों का अधोगामी पतन हो रहा है l ऐसे परिवेश में विचारों में उदारता रखनी ही होगी l l दुर्जनों की प्रशंसा के स्थान पर सज्जनों की गाली अच्छी होती है l
    चलते चलते ----
ये उदारता थी उनकी जो हमसे दोस्ती कर ली l
वरना इस योग्य तो हम थे नहीं ll
        - डॉ. छाया शर्मा
अजमेर -  राजस्थान
विचारों में उदारता इसलिए आवश्यक है कि इससे बातचीत में सहूलियत होती है। अगला हमारे विचारों को सही ढंग से समझता है। अगर किसी समस्या पर विचार होता है तो इसका कोई सुंदर हल निकलता है। आपसी प्रेम और सौहार्द्र बना रहता है। खुशी का माहौल बनता है। एक दूसरे की भावनाओं को समझने में आसानी होती है। विचारों की उदारता किसी का दिल नहीं दुःखाती है। दूसरे की भावनाओं की कद्र करती है। एक दूसरे के प्रति एक दूसरे की इज्जत बढ़ती है। इसलिए विचारों की उदारता आवश्यक है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं. बंगाल
विचारों की उदारता एक महान गुण है, इसीलिए यह हर मनुष्य के जीवन में और उनके व्यवहार में आवश्यक है। मनुष्य के जीवन को सफल और उन्नत बनाने वाले अनेकों गुण होते हैं, जैसे सच्चाई, न्याय प्रिय ता,  धैर्य, दया, क्षमा परोपकार आदि। इनमें से तो कुछ भूल ऐसे होते हैं जिससे वह व्यक्ति सोए हैं अपने जीवन को आगे बढ़ाने में लाभ उठाता है और कुछ गुण ऐसे होते हैं जिनके द्वारा अन्य लोगों का उपकार भी होता है और अपनी भी आत्मोंत्ती होती है। वास्तव में उदारता ऐसा ही महान गुण है। मनुष्य के जीवन में उसके व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाली यदि कोई वस्तु है तो वह उदारता ही है। उदारता प्रेम का रूप है। भीम में कभी-कभी स्वार्थ भावना छिपी रहती है। क मथुर मनुष्य अपनी प्रेयसी से प्रेम करता है पर जब उसकी प्रेम वासना की तृप्ति हो जाती है तो वह उसे भुला देता है।जिस स्त्री से काम में पुरुष अपने यौवन काल और आरोग्य अवस्था में प्रेम करता है उसी को वृद्धावस्था में अथवा रुग्ण अवस्था में तिरस्कार की दृष्टि से देखने लगता है। पिता का पुत्र के प्रति प्रेम, मित्र का मित्र के प्रति प्रेम तथा देशभक्त का अपने देशवासियों के प्रति प्रेम में स्वार्थ भाव भी रहता है। जब पिता का पुत्र से, भाई का भाई से, मित्र का मित्र से, देश भक्तों का देशवासियों से किसी प्रकार का स्वार्थ भाव नहीं होता तो वे अपने प्रिय जनों से उदासीन हो जाते हैं पर जिस प्रेम का आधार उदारता होती है वह इस प्रकार नष्ट नहीं होता। उदार मनुष्य दूसरे से प्रेम अपने स्वार्थ साधना के लिए नहीं करता वरना उनके कल्याण और अपने स्वभाव के कारण करता है। इससे उदारता युक्त प्रेम सेवा का रूप धारण कर लेता है। इस प्रकार का प्रेम देवी रूप से प्रकाशित होता है। उदारता से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का अद्भुत विकास होता है जो व्यक्ति अपने कमाए धन का जितना अधिक दान करता है वह अपने अंदर और धन कमा सकेगा उतना ही अधिक आत्मविश्वास उत्पन्न कर लेता है सच्चे उदार व्यक्ति को अपनी उदारता के लिए कभी अफसोस नहीं करना पड़ता उदार व्यक्ति को आत्म भर्त्सना नहीं होती सेवा भाव से किया गया कोई भी कार्य मानसिकता ले आता है इसके कारण सभी प्रकार के भीतर मन में उथल-पुथल पैदा ना करके शांत हो जाते हैं और उदार व्यक्ति अनेक प्रकार का आगा पीछा सोचता है। उदार व्यक्ति इस प्रकार की बात नहीं सोचता। भलाई का परिणाम भला ही होता है। चाहे वह किसी व्यक्ति के प्रति क्यों न हो जाए। इससे एक और भले विचारों का संचार उदारता के पात्र के मन में होता है और दूसरी और अपने विचार  भले बनते हैं। प्रकृति का अटल नियम है कि कोई भी त्यागी व्यर्थ नहीं जाता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
जीवन एकाकी से नहीं जिया जा सकता। जीने के लिए हमें जरूरतों की आवश्यकता पड़ती है, जो औरों से ही प्राप्त होती है। यह आवश्यकता जैसी हमें है, वैसे ही औरों को भी है याने कि पारस्परिक। इसीलिए कहा गया है कि मिलजुलकर रहना चाहिए। ऐसा निभाने के लिए हममें प्रेम और सद्भाव होना आवश्यक और महत्वपूर्ण है। यह सहयोग और सौहार्द्र से संभव है। इसके लिए त्याग भावना श्रेष्ठ होती है। हम जितने त्यागी और हितैषी होंगे, उतने सरल और सहज रहेंगे। इससे हमारा जीवन सरस होगा। हमें औरों से सहयोग भी मिलेगा और सम्मान भी। ... और यह सब तभी आसान होगा जब हमारे विचारों में सकारात्मकता रहेगी। कहा गया है हम जैसा सोचते हैं हमारा स्वभाव और आचरण भी वैसा बनने लगता है और फिर वैसा बन भी जाता है। इसीलिए जब हम सकारात्मक विचारों के साथ होंगे तो हमारे विचारों में उदारता पनपेगी जो शनैः- शनैः बलवती होगी और यही जीवन का आधार है। प्रतिभावान और संस्कारवान बनने का मार्ग है। यही नैतिकता है,धर्म है, जीवन का उद्देश्य है।
इसीलिए विचारों में उदारता आवश्यक है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
मनुष्य के व्यक्तितव को सार्थक बनाने के लिए विचारों में उदारता प्रमुख गुण है। उदारता एक दैवीय गुण है। 
     मनुष्य की बाहरी सुन्दरता का कोई मोल नहीं अगर उस के विचारों में उदारता नहीं है। मनुष्य जीवन को सफल बनाने के लिए अनेक गुणों के साथ उदारता का गुण होना बहुत जरूरी है। क्योंकि मनुष्य के व्यक्तितव को आकर्षक बनाने के लिए उदारता बहुत जरूरी है। उदार मनुष्य धन दौलत के पीछे नहीं भागता बल्कि वह यश रुपी धन कमाता है। उदार मनुष्य संवेदनशील होता है। वह दूसरों के दुख में दुखी होता है और उन का दुख दूर करने के लिए अपना तन,मन,धन लगा देता है। उदारता से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का विकास होता है अगर मन अच्छा तो तन अपने आप अच्छा होगा। उदारता मनुष्य बीमारियों से भी बचा रहता  है कयोंकि वह द्वेष की भावना नहीं रखता।अगर हम सभी उदारता का गुण अपनाएं तो सुन्दर समाज की सृजना हो सकती है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप - पंजाब 
अधिकतर सामाजिक बुराईयों के जड़ में छिपी रहती है हमारी संकीर्ण मानसिकता। किसी भी काम में या किसी के भी काम करने में नुक्स निकालना एक बहुत ही निम्न स्तरीय सोच  का नतीजा है।अपने विचारों में उदारता का भाव होने से मन प्रसन्ना रहता है। प्रसन्नता का भाव  हमें हर घड़ी उल्लासित और उ त्साहित रखता है।और उत्साहित मन हमें अच्छे काम करने को प्रेरित किया करता है। विचारों में उदारता से हम दूसरों की पीड़ा आसानी से समझ सकते हैं और यथाशक्ति मदद कर सकते हैं।इसके द्वारा हम अपने से भिन्न मत रखने वालों के नज़रिए को समझने की कोशिश करते हुए उस नज़रिए का सम्मान करना भी सीखते हैं। विचारों में उदारता से हमारी-आपकी जिंदगी अधिक आसान और उपयोगी होती है।
- संगीता राय
पंचकुला - हरियाणा
मनु्ष्य को सफल  और उन्नत बनानो वाले अनेकों गुण होते हैं जैसे सच्चाई, न्यायप्रियता, धैर्य दृढता, साहस, दया , क्षमा परोपकार आदि लेकिन मनुष्य के व्यक्तिव को आकर्षक बनाने  वाली कोई चीज है तो वह है उदारता, 
तो आईये आज की चर्चा  इसी पर करते हैं कि विचारों में उदारता क्यों आवश्यक है। 
 मेरा मानना है कि अगर विचारों में उदारता नहीं तो सुंदरता का कोई मोल नहीं, उदारता ही प्रेम का परिष्कृत रूप है, मनुष्य मैं विनय, उदारता चरित्र के गुणों के विकास के लिए बहुत जरूरी है। उदारता और दूरदर्शिता एक महान गुण है लेकिन उदारता एक दैवीय गुण है, 
जो देव देने में जितना ही अधिक उदार हैं वह  उतना ही  पुज्यनिय है। 
शिवजी भगवान की सहज उदारता को सभी जानते हैं यही उनकी महानता का महान कारक है, मर्यादा पुरषोतम राम जी की उदारता को कौन नहीं जानता तभी वो भक्तों केभगवान हैं, कहने का भाव यह है कि उदारता ही विचारों को उत्तम बनाती है। 
      सही मायने में उदारता का मतलब दानशीलता, सज्जनताऔर त्यागशीलता आदी होता है और उदारता के कारण ही आदमी दुसरों की मदद करता है जिसकी वजह से वो खुद भी शान्ति व सुख प्राप्त करता है, सही मायने में उदारता धर्म की जननी है, 
प्रत्येक युग का इतिहास साक्षी है की उद्दार मनुष्य ही पुज्यनिय होते हैं कहा गया है उदारता और दान में देह और प्राण जैसा संबध है जैसे प्राण के वगैर देह शव हो जाता है  उसी प्रकार उदारता के विना दान के लिए हाथ नहीं उठते और दान की भावना न होने से उदारता की भ्रूण हत्या हो जाती है, यही नहीं दान के भाव उदार  व्यक्ति के हृदय में जन्म लेते हैं। 
अन्त मे यही कहुंगा, विचारों में उदारता अति आवश्यक है, 
       महापुरूषों नें उदारता को बहुमुल्य मानविय आभूषण एंव अनुकरणीय आचरण वताया है यही नहीं
दान, सेवा, क्षमा आदी सदगुणों की जननी उदारता है
मनुष्य में दयालुता और उदारता के गुण होने चाहिए, 
उदारता एक ईश्वरीय गुण है  यह बहुत कम  इन्सानों में पाया जाता है लेकिन इसके वगैर इन्सान अधुरा है क्योंकी वो सुंदरता सुंदर नही होती जिसमें  दुसरों के प्रति उदारता नहीं। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्मू - जम्मू कश्मीर
उदारता का अर्थ है अपने और आसपास के वातावरण के प्रति सद्भाव सहानुभूति मदद करने की प्रवृत्ति इसे उदारता कहते हैं जब तक विचारों में इस प्रकार की भावनाओं का समावेश नहीं रहेगा व्यवहार में उदारता नहीं मिलेगी।।।
जैसे इंसान अपनी सोच रखेगा विचार रखेगा व्यवहार उसी प्रकार दिखेगा निरंतर यदि सकारात्मक सोच मानव ह्रदय में आता रहे तो व्यवहार में सकारात्मकता के साथ-साथ उदारता भी रहेगी
एक ऐसे वकील साहब के जीवन के कुछ पलों को मैं प्रस्तुत कर रही हैं वकील साहब पेशे से वकील थे कमाई बहुत ज्यादा नहीं थी पर उदारता चरम सीमा पर और उनका कोई काम रुकता भी नहीं था मुश्किलें आती थी पैसों का अभाव होता था पर सही समय पर किसी न किसी रूप में कोई न कोई व्यक्ति कभी क्लाइंट बंद कर कभी हितैषी बनकर कभी शुभचिंतक बंद कर उनके पास चला आता और पैसों का बंदोबस्त हो जाता वह खुद कहा करते थे हम लोग कौन होते हैं सब तो ईश्वर कर रहे हैं मेरा काम है हमारे पास कोई अपनी समस्या लेकर आए और पैसों का अभाव रहे तो उसे छोड़ नहीं देना है किसी न किसी तरह से उसकी समस्या का समाधान करते हुए कहने का मतलब पैसों को प्राथमिकता नहीं देना है इंसानियत को प्राथमिकता देना और यही उदारता है तो विचारों में उनके उदारता थी यही कारण है व्यवहार में भी उदारता थी
- कुमकुम वेद सेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
उदार पुरुष दूसरों के प्रति उदार भाव रखता है,वो दूसरों के विचारों को आदर करता है और समाज में सेवक भाव से काम करता है। जैसे हमारे  देश के अभी *प्रधान सेवक* है।
*मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाली यदि कोई वस्तु है वह उदारता*।
 उदारता प्रेम के परिष्कृत रूप है। प्रेम में कभी कभी स्वार्थ भावना छिपी रहती है।
 जैसे पिता को पुत्र के प्रति प्रेम, मित्र को मित्र के प्रति प्रेम तथा देश भक्त को अपने देशवासियों के प्रति प्रेम में स्वार्थ भाव भी रहता है। अगर किसी प्रकार का स्वार्थ भाव नहीं होता तो अपने प्रियजनों से उदासीन हो जाते हैं। 
उदार मनुष्य दूसरे से प्रेम अपने स्वार्थ साधन हेतु नहीं करता वरऩ उनके *कल्याण* और अपने *स्वभाव* के कारण करता है। इससे उदारता युक्त प्रेम सेवा का रूप धारण कर लेता है।
उदार मनुष्य दूसरे के दुख से दुखी होता है उसे अपने सुख-दुख की इतनी चिंता नहीं रहती है जितनी दूसरे के सुख -दुख की रहती  है।
लेखक का विचार:--उदारता से मनुष्य के मानसिक शक्तियों का अद्भुत विकास होता है।जो व्यक्ति अपने कमाए धन का जितना अधिक दान करता है वह अपने अंदर और धन कमा सकने का उतना ही अधिक आत्मविश्वास उत्पन्न कर लेता है। सच्चे उधार व्यक्ति को अपनी उदारता के लिए अफसोस नहीं करना पड़ता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो -झारखंड
मानव विभिन्न गुणों को जैसे क्रोध,विवेक ,दया ,द्वेष ,अहंकार ,धैर्य आदि अनेक गुणों अवगुणों को समाहित करके रहता है ,उसमे उदारता भी एक गुण है !
 एक उदार व्यक्ति बिना किसी स्वार्थ के दूसरे पर अपनी उदारता दिखलाता है  उस समय उसके विचार भी उत्तम होते हैं ! यदि उदारता कल्याण के भाव लिए होती है तो उसके विचार अवश्य स्वार्थ को  छोड़ दूसरों की भलाई का ही होगा !  गौतम बुद्ध ने भी अपने दुखों की निवृति के लिए मोह का त्याग नहीं किया था अपितु सभी को अपितु समस्त प्राणी मात्र को कल्याण का मार्ग
दिखाना चाहते थे ! 
उदारता तो मनुष्य के वयक्तित्व को निखारती है ! हम किसी की मदद उदार भाव से करते हैं अच्छी भावना के साथ तो हमारे भाव भी उत्तम विचार लिये रहते हैं !जबर्दसती कटुता लिए यदि हम कोई कार्य किसी के लिए करते हैं तो हमारे विचार भी अथवा हमारी भावनाएं भी उसके लिये निर्मल नहीं होते किंतु निःस्वार्थ भाव से किये गये कार्य में उसके विचार भी उत्कष्ट होते हैं ! अतः विचारों में कोमलता का लचीलापन और उदारता का होना आवश्यक है !
               - चंद्रिका व्यास
             मुंबई - महाराष्ट्र
        मानव गुणों में उदारता भी एक विशेष गुण है। परंतु इसका अर्थ यह नहीं है कि बाकी गुण निषेध हैं या महत्वहीन हैं। क्योंकि प्रत्येक गुण अपना-अपना महत्व रखता है। जैसे रसों में मीठे, खट्टे, फीके, खट्टे-मीठे, नमकीन एवं कड़वे इत्यादि का अपना ही अलग-अलग महत्व होता है।
       जैसे युद्ध में शत्रु पर उदारता करना, अपनी मौत को बुलावा देना माना जाता है। जबकि युद्धबंदी पर उदारता करना मानवता का परिचय देना होता है। जिसमें अपनी सभ्यता और संस्कृति का प्रतीकात्मक संदेश देना होता है।
        अतः प्रत्येक गुण और गुणवत्ता का विशेष महत्व होता है। जिसे समय और स्थान देख कर प्रयोग करना बुद्धिमता होती है। इसलिए बिना शक विचारों की उदारता श्रेष्ठ से श्रेष्ठतम श्रेणी में आती है।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
’गति’ के लिए ‘चरण’
और
‘प्रगति’ के लिए ‘आचरण’ बहुत जरूरी है.
मनुष्य जीवन को प्रगतिशील, सफल और उन्नत बनाने वाले अनेक गुण हैं जैसे सच्चाई, न्यायप्रियता, धैर्य, दृढ़ता, साहस, दया, क्षमा, परोपकार आदि. उदारता एक महान गुण है. उदारता मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने के साथ-साथ प्रेम का परिष्कृत रूप भी है. उदार मनुष्य दूसरे से प्रेम अपने स्वार्थ साधन हेतु नहीं करता, वरन उनके कल्याण और अपने स्वभाव के कारण करता है. इससे उदारता युक्त प्रेम सेवा का रूप धारण कर लेता है. उदार मनुष्य दूसरे के दुख से दुखी होता है. उदारता से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का अद्भुत विकास होता है. ऐसे व्यक्ति नर श्रेष्ठ कहे जाते हैं. उदारता एक दैवीय गुण है, जो सबके कल्याण में अपना कल्याण देखने में समर्थ बनाता है. सचमुच उदार व्यक्ति का कल्याण प्रकृति और दैवीय शक्ति स्वयं ही कर देती है. उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों का आदर करता है और समाज में सेवक भाव से रहता है. केवल धन से उदारता ही उदारता नहीं है, सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाए.  इसके अतिरिक्त यह भी आवश्यक है, कि उपकृत के प्रति किसी प्रकार का अहसान न जताया जाए. अहसान दिखाना उपकृत को नीचा दिखाना है. अहसान जताकर उपकार करना अनुपकार है. आज संसार सोनू सूद जैसे निष्काम-निःस्वार्थ-उदार लोगों के कारण धन्य हो गया है.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
हर सामाजिक प्राणी उदार होता है, उसके विचारों में उदारता स्वाभाविक रुप से होती है।उदार होना, सहमत होना नहीं होता। मेरे विचार से,असहमत होते हुए भी सम्मान भाव बनाए रखना,उदारता कही जा सकती है।यह परिस्थिति हर सामाजिक प्राणी के साथ होती है।अब बात यह कि यह उदारता क्यों आवश्यक है,तो इसका एक ही कारण हम कह सकते हैं कि हम सबका जीवन एक दूसरे पर निर्भर करता है, इसलिए एक दूसरे के प्रति उदारता आवश्यक है। कभी कभी देखने में आता है कि एक व्यक्ति सबके प्रति उदार नहीं होता,सबके प्रति कठोर भी नहीं होता। किसी के प्रति हमेशा उदार हो, ऐसा भी नहीं होता।तो उदारता भी परिस्थिति पर निर्भर करती है।उदारता के अनुकूल परिस्थितियां होने पर ही उदार होना, मानवीय गुण है। विपरीत परिस्थिति होते ही उदारता उड़न छू हो जाती है। हां इससे इंकार नहीं किया जा सकता कि समाज में रहने के लिए उदारता का गुण होना अनिवार्य है।
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
नैतिकता और मानवता का साम्राज्य स्थापित करने हेतु उदारता उसका अवलंब होता है । उदारता का अभिप्राय केवल निसंकोच भाव से किसी को धन दे डालना ही नहीं हो जाता है अपितु दूसरों के प्रति उदार भाव रखना भी होता है। उदार मनुष्य सदा दूसरों के विचारों का भी सम्मान करता है और समाज में सेवक भाव से रहता है। हम यह समझने की भूल करते हैं कि केवल धन से उदारता हो सकती है। सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाए। धन की उदारता के साथ सबसे बड़ी एक और उदारता की आवश्यकता है, वह यह है कि उपकृत के प्रति किसी प्रकार का अहसान न जताया जाए। अहसान दिखाना उपकृत को नीचा दिखाना है। अहसान जताकर उपकार करना अनुपकार करने समान है।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
किसी भी व्यक्ति के विचारों से ही उसके अच्छे बुरे होने का आकलन किया जा सकता है ।
यदि किसी के विचार अच्छे हैं तो उसे समाज अच्छी नजरों से देखता है । 
परंतु यदि विचार दूषित होंगे तो उस व्यक्ति का समाज में ना आदर होता है ना ही ऐसे व्यक्ति का समाज के बीच रुतबा होता है ।हमें चाहिये की सब के साथ मिल जुल कर रहें और अपने विचारों को तनाव से परे रखें ।
मानव जन्म मिला है तो इस जन्म को सार्थक बनाने के लिये अपने विचारों में उदारता रखनी चहिये ।
      गारीबों और असहाय लोगों की दिल खोल कर सहायता करनी चाहिये ।।
    -  सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश
आपसी समन्वय हेतु विचारों में उदारता लाना आवश्यक है। समाज में हर व्यक्ति का एक जैसा  दृष्टिकोण नहीं होता ,हर एक की अपनी सोच होती है ,अपना नजरिया होता है, अतः विचार भेद होना स्वाभाविक है। वाद विवाद की स्थिति में तालमेल बैठाने के लिए कहीं न कहीं उदारता  पूर्ण रवैया अपनाना पड़ता है और आपसी सामंजस्य बिठाना पड़ता है, तभी शांति प्रयास संभव हो पाता है अन्यथा बात बिगड़ती चली जाती है  उसमें बुराई के सिवा कुछ नसीब नहीं होता इसलिए किसी भी अपरिहार्य परिस्थिति में विचारों में उदारता लाना अत्यावश्यक है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
     शांत चित मन मस्तिष्क में उदारता  के कारण विचारधारा को रोचक बनाने  प्रयत्नशील हैं। उसी का परिणाम प्रत्यक्ष उदाहरण हैं। जिसके परिपेक्ष्य में परिणाम सार्थक होते जाते हैं। उदारता पूर्वक कार्य सुचारू रूप से सम्पादित होने से सामने वाला प्रभावित होता हैं। महान ॠषि मुनियों ने उदारता पूर्वक ही कार्य दिशाओं में सभी को अपने विचारों से अवगत कराया जाता रहा हैं और आवश्यक भी प्रतीत होता हैं। 
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर'
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
उदारता एक  सुन्दर  मानवीय गुण है। अगर हमारे विचारों में भी उदारता का भाव  हो तब तो सोने में सुहागा। व्यक्ति  यदि विचारों से उदारता का भाव  रखता है तब वह  दूसरों के प्रति दया भाव भी रखता है। व्यक्ति अपने आचार, विचार, व्यवहार  से हीं  जाना पहचाना जाता है। अत: विचारों में उदारता एक अति आवश्यक गुण है जो व्यक्ति  की अच्छाई  को दर्शाता है।
- डॉ पूनम देवा 
पटना - बिहार
स्वस्थ सामाजिक जीवन,परिवारिक जीवन और सामाजिक व्यवस्था में विचारों में उदारता अति आवश्यक है।वैचारिक कट्टरता जितनी इंसान के लिए घातक होती है, उतनी ही वैचारिक उदारता जीवनदायनी, मैत्रीपूर्ण तथा स्वस्थ सामाजिक व्यवस्था में सहायक होता है।अगर कोई व्यवस्था या प्रणाली व्यक्ति के लिए, समाज के लिए लाभप्रद है तो थोड़ी अपने विचारों में उदारता ला कर उसे अपनाना सर्वथा उचित निर्णय होता है।वैचारिक कट्टरता से जहाँ रिश्तों में खटास और वैमनस्य उत्पन्न होता है , वही वैचारिक उदारता से सुदृढ़ समाज का निर्माण तथा इंसान प्रगति के पथ पर अग्रसर होता है।वैचारिक उदारता इंसान को महान तथा सही निर्णय लेने की समझ एवं हिम्मत देता है।
              -   रंजना वर्मा उन्मुक्त
              रांची - झारखण्ड
उदार व्यक्ति दूसरों के प्रति उदार भाव रखता है और समाज में सेवा भाव से रहता है।
 सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाए, क्योंकि एहसान जताकर उपकार करना अनुपकार है ।
मेरी एक रचना  इसी विषय में है,,, 
बन प्रसून खुशबू बिखरा दो,
 मधुबन जैसी उदारता ।
तालमेल काटों सँग सीखो,
 पुष्प हृदय सी विशालता।
 बहुत से लोग परिस्थितियों की प्रतिकूलता का बहाना करके दूसरों की सेवा और सहायता के कामों से बचना चाहते हैं जो कि सर्वथाअनुचित ही है ।
 मनुष्य जीवन को सफल और उन्नत बनाने वाले अनेकों गुण होते हैं जैसे सच्चाई ,न्याय प्रियता धैर्य, साहस, दया ,क्षमा ,परोपकार आदि ।इनमें से कुछ तो  ऐसे  गुण होते हैं जिससे वह व्यक्ति स्वयं ही लाभ उठाता है ,और कुछ ऐसे गुण भी होते हैं जिनके द्वारा परोपकार भी होता है और अपनी आत्मोन्नति भी होती रहती है। उदारता भी एक ऐसा  ही महान गुण है ।
 मनुष्य के व्यक्तित्व को आकर्षक बनाने वाली यदि कोई वस्तु है तो वह उदारता है ,,,उदारता प्रेम का परिष्कृत रूप है ।
प्रेम में कभी कभी स्वार्थ भावना भी छिपी रहती है ।
उदार मनुष्य दूसरों से प्रेम अपने स्वार्थ साधन हेतु नहीं करता और उनके कल्याण और अपने स्वभाव के कारण करता है ।
इससे उदारता युक्त प्रेम सेवा का रूप कर लेता है, इस प्रकार का उदार प्रेम दैवीरूप से प्रकाशित होता है ।
उदार व्यक्ति दूसरों के दुख से भी दुखी हो जाता है ।
भगवान बुध अपने दुख से जंगल में नहीं गए वरन संसार के सभी प्राणियों के दुखों को देख , मुक्ति दिलाने के विचार से राजमहल त्याग कर बनवासी बने थे। ऐसे ही व्यक्ति नरश्रेष्ठ कहे  जाते हैं।
 उदारता से मनुष्य की मानसिक शक्तियों का अद्भुत विकास होता है ।
सच्चे उदार व्यक्ति अपनी उदारता का कभी अफसोस नहीं करते।
  सेवा भाव से किया गया कोई भी कार्य  व्यर्थ नहीं जाता एवं मानसिक दृढ़ता प्रदान करता है यही प्रकृति का नियम है।
 अतः विचारों में उदारता परमावश्यक है।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
 अगर विचारों में उदारता नहीं होगा तो परस्परता मे जीना नहीं बनेगा ।परस्परता में जीने के लिए उदारता का होना जरूरी है। उदारता का अर्थ है उत्सव पूर्वक दया भाव से मूल्यों में जीते हुए स्वयं विकास और जागृति में जीते हुए, दूसरे की विकास और जागृति के लिए अपने मन, तन, धन का समर्पित करना इसीलिए विचारों में उदारता की आवश्यकता होती है ।मन  ,तन, धन का सही उपयोग करने से मनुष्य संतुष्टि के साथ परस्परता में जी सकता है ।अतः हर मनुष्य को विचारों में उदार भाव से जीने की आवश्यकता है।
 - उर्मिला सिदार 
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
काल और परिस्थिति के अनुसार हर चीज परिवर्तनशील है मानव को सतत प्रगति के लिए विचारों में उदारता लाना अत्यंत आवश्यक है
विचारों की उदारता कठिन कार्य को भी सरल बना देती है और आपके लिए आगे का मार्ग प्रशस्त करती है जिससे आप अपने लक्ष्य तक पहुंच सकते हैं विचारों की उदारता कई नए संवाद के लिए भी आपको विचार और समय देती है सकारात्मक पहलुओं का जन्म होता है।
- आरती तिवारी सनत
 दिल्ली

" मेरी दृष्टि में " विचारों मे उदारता होना चाहिए । तभी विचारों से लाभ उठाया जा सकते हैं । जो देश - विदेश में विचारों को फैलाया जा सकता है । जिन विचारों में उदारता नहीं है वे शोषण व तानाशाही का प्रतीक होते है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी 

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