क्या जागरूकता को ही ध्यान कहते है ?

जागरूकता जीवन में बहुत ही जरुरी है । हर काम के लिए जागरूक होना आवश्यक है । जागरूकता से ही ध्यान की सीढी पर चढा जा सकता है । यही सब कुछ जैमिनी अकादमी द्वारा " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : - 
ध्यान और जागरुकता में कुछ अंतर है जैसे किसी भी कार्य को हम करते हैं तो उसे पूर्ण करते तक हमारा ध्यान केवल उस पर टिका रहता है ! हमारी मंशा केवल उस कार्य को पूरा करने की रहती है किंतु जागरुकता में हमारा ध्यान काम के साथ साथ उसके अन्य गुण दोषों पर भी जाता है कि कार्य सही ढंग से तो हो रहा है ना अथवा इससे हमें कोई हानि तो नही है आदि आदि ! यानीकि जागरुकता में वह पक्का काम करता है ताकि पुनः कोई गल्ती ना हो ! 
पहले स्त्रियां केवल पुरुषों पर आधारित थी ! उनकी मान -मर्यादा सब का ध्यान घर की चार दिवारी तहत पुरुष ही रखते थे ! स्त्री केवल कोमल एवं भोग की वस्तु थी ! उनकी सोचने की वृत्ति केवल यहीं तक सीमित थी किंतु स्त्री के अधिकारों को लेकर जागरुकता आई यानि हमारे सोचने की वृत्ति में विस्तार हुआ ! इसी तरह अन्य कई मतभेदों को लेकर उठे विचार हैं जिसमें जागरुकता लाने से ही देश में शांति और एकता विस्थापित होगी !
आध्यात्मिक की दृष्टि से हम जब सुख का आनंद लेते हैं तो हमारा ध्यान ,हमारा चित  केवल आनंद लेने में ही रहता है !हमारे आसपास क्या हो रहा है उधर अंधकार होता है चूंकि सारा फोकस तो आनंद लेने में ही है किंतु दुख के आते ही उसके चित्त  से हटकर उसकी सोच उसकी वृत्ति से प्रकाश की किरणें जो आनंद पर ही केद्रित थी चारों तरफ फैल जाती है यानि जागरुकता आ जाती हैं ! वह जागरुक हो प्रभु के ध्यान में आता है ! मन चंचल है यदि मन को ध्यान में लगाते हैं तो हमारा चित भी जागरुक हो जाता है ! 
बस ध्यान मे , चित्त की वृत्ति के प्रकाश का फोकस केवल एक जगह होता है और जागरुकता में चारों तरफ ...।
             - चंद्रिका व्यास
             मुंबई - महाराष्ट्र
जागरूकता की बात  करें तो इसका अर्थ है खुद की क्षमताओं को पहचानना और यहां तक ध्यान की बात करें इसका अर्थ है चित को एकाग्र 
करना और उसे एक लक्ष्य पर  स्थिर करना यानी किसी विषय वस्तु पर एकाग्रता या 
  चिंतन की क्रिया ध्यान कहलाती है।  
   ऐसा भी कह सकते हैं कि मानसिक शक्तियों का एक स्थान पर केन्द्रीकरण होने की क्रिया को  ध्यान कहा जाता है।  
आईये  आज इसी विषय पर चर्चा करते हैं कि  क्या जागरूकता को ही ध्यान कहते  हैं?। 
मेरे ख्याल में ध्यान अपने मन के प्रति जागरूक होने की साधारण सी प्रक्रिया है,  
कई बार हम कोई घटना को देख कर उस की तरफ हामी भर देते हैं या उस को गल्त या सही कह देते हैं जिस से मन वश में नहीं रहता कहने का भाव है जो हो रहा हो उसे देखो उसके पक्ष या विपक्ष में मत उतरो हमें कोई निर्णय नहीं लेना चाहिए व निर्णय रहित रहना चाहिए क्योंकी निर्णय लेते ही ध्यान खो जाता है या तुम किसी के मित्र बन जाते हो या शत्रु  कहने का मतलब हम संबध स्थापित कर लेते हैं, 
जबकि ध्यान का  मतलब संबध तोड़ना , शांत रहनाव स्थिर रहना, जो भी हो रहा हो उसके प्रति भाव रखना, ऐसा करने से व्यक्ति बोधपूर्ण हो जाता है कि विचार कम होते जा रहे हैं, जब हम बोधपूर्ण होते हैं सब विचार खत्म हो जाते हैं उसी क्षण को ध्यान कहते हैं। 
यह भी ध्यान रहे बोध के बिना  स्वतंत्रता एक खोखला विचार है, बिना बोधपूर्ण हुए तुम सचमु स्वतंत्र हो ही नहीं लकते। तुम सोच सकते हो कि स्वतंत्र हो  लेकिन होते नहीं हो  तुम सिर्फ मूल व अंधी प्रवृतिषों के शिकार होते हो और काम वासना के शिकार व गुलाम  रहते हो 
कहने का मतलब स्वतंत्रता केवल बोध से आती है, इसलिए हरेक साधक का यही कार्य होना चाहिए की अधिक से अधिक वोध  जगाए ताकि स्वतंत्रता खुद ही हो जाए क्योंकी स्वतंत्रता जागरूकता के फूल की सुवास है। 
एक मात्र ध्यान ही ऐसा बल्ब है कि उस की साधना से सब सधते हैं,  अन्त में  यही कहुंगा कि चित को एक जगह लगाना ही ध्यान कहलाता है। यहां तक की ध्यान का मतलब पूर्णतया संबध तोड़ना शांत रहना है, 
इसलिए हमें अपने आप में जागरूक रहने की आवश्यकता है   ताकी हम अनावश्यक कल्पनाओं व  विचारों को हटाकर एकाचित ध्यान लगा सकें, इसलिए जागरूकता  से ही ध्यान उतपन्न होता है। 
- सुदर्शन कुमार शर्मा
जम्म् - जम्म् कश्मीर
अनेकानेक बार लगा कि अपनी मनोस्थिति व परिस्थितियों को समझने के लिए मुझे बस जागना होगा। अलग-अलग आध्यात्मिक कार्य जैसे कि समाज के लिए नि:स्वार्थ सेवा, ॐ का जाप या साहित्य व शास्त्रों का अध्ययन मुझे मेरी नींद से जगाने में मदद करते रहे। यही मेरे ध्यान के माध्यम थे और जागने के आधार। इस बाहरी जागरूकता के आधार से ही मैं अपनी आन्तरिक जागरूकता प्राप्त की।
- विभा रानी श्रीवास्तव
पटना - बिहार
     जीवन में हमेशा जागरूकता बनने से शारीरिक और मानसिक ध्यान केन्द्रित होता हैं। शिक्षा, संस्कृति और अपने सार्थकता की ओर अग्रसर होता हैं। आज वर्तमान परिदृश्य में देखिए अधिकांशतः ध्यान, योग, अभ्यासों में तत्पर रहते हैं और अनन्त समय तक स्वस्थ्य, बलवान होकर अपना वर्चस्व स्थापित करने में सफल हो रहे हैं। जिसमें अनेकों कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता हैं, जहाँ युवा शक्ति को अपनी संस्कृति और विरासतों से अवगत कराते हुए स्वाभाविक, स्वामित्व से परिपक्व बनाया जाता हैं। जब तक हम जागरूकता के प्रति ध्यानाकर्षण नहीं करते, तब तक हमारा लक्ष्य की ओर अग्रसर नहीं हो सकते, आज की भागदौड़ जिंदगी में जागरूकता को ही ध्यान कह सकते हैं?
- आचार्य डाॅ.वीरेन्द्र सिंह गहरवार 'वीर' 
  बालाघाट - मध्यप्रदेश
जागरूकता ही नहीं अपितु समग्र जागरूकता ही ध्यान है जिसका केंद्र बिंदू एकाग्रता है l हमारा मन शब्दों का भंडार, स्मृतियो का संग्रह और भावी योजनाओं का स्वप्न दृष्टा है अर्थात ध्यान क्रियाओ और बुद्धि की सूक्ष्म दृष्टा बनकर देखना मात्र है, उनका साक्षी होना है l इस अवस्था के लिए हमें अपने अंदर जागरूकता विकसित करनी चाहिए l तभी हम आत्म केंद्रित हो सकेंगे l
       ------चलते चलते
आत्मा को महसूस करने के लिए....
जागरुकता की शक्ति आवश्यक है.... और
एकाग्रता की शक्ति.....
विश्वास से उतपन्न होती है l
ध्यान रहे, एकाग्र मन मित्र है,
चंचल मन शत्रु है l
   -डॉo छाया शर्मा
 अजमेर - राजस्थान
जागरूकता के मायने है चैतन्यता।जो जागा हुआ है,जो अपने कार्य में रत है,जो समय कीमत और महत्व समझता है वही तो ध्यानस्थ है।
   ध्यान है जीवन में गतिशील रहना ,जीवन को सहेजना,संवारना।हम अगर जागरूक नहीं रहेंगे तो हम,अपनी सफलता से विलग हो जायेंगे।कुछ हासिल नहीं कर पायेंगे और मात्र भीड़ का हिस्सा बनकर ही रह जायेंगे। 
    यहाँ ध्यान का अर्थ आंखें बंद कर समाधिस्थ हो जाना नहीं है बल्कि आंखें खुली रखकर कर्मशील होना है। कर्मशील वही होगा जो जागरूक (चैतन्य)रहेगा। वही कर्म करता हुआ सानंद जीवन व्यतीत करेगा।
   - डाॅ•मधुकर राव लारोकर 
   नागपुर - महाराष्ट्र
जागरूकताऔर ध्यान दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं।
दोनों की ही जीवन जीने में बहुत ही आवश्यकता पड़ती है।
जागरूक होना मनुष्य के लिए अति आवश्यक है क्योंकि यदि आप अपने अधिकार और कर्तव्य के प्रति जागरूक नहीं रहेंगे तो आपका जीवन जीना बहुत ही दूभर हो जाएगा मनुष्य को अपने जीवन को सुचारू रूप से जीने के लिए जागृत होना चाहिए क्योंकि इतना भी सरल नहीं होना चाहिए कि दूसरा आपके अधिकारों का हनन कर ले।
फिर आपको मूर्ख कहा जाएगा।
अपने भीतर गहन पर प्रशांत अवस्था मन की शक्ति शक्ति और स्थिरता का सूत्र है मनुष्य अपने भीतर मौन होने पर मन के क्रियाकलापों को जान लेता है ध्यान निरर्थक क्रिया है प्रार्थना और ध्यान मन के मन में ही संभव है यद्यपि यह सच है कि मनुष्य देवी सत्ता की वाणी का श्रवण करता है और धीरे-धीरे उसके अंदर एक अलौकिक ज्ञान प्राप्त होता है ध्यान मन का कोई कठिन और श्रम दायक व्यायाम नहीं है, बल्कि इसकी एक प्रयत्न रहित और सरल अन्तर्यात्रा है ,जिसमे मनुष्य अपनी इच्छा से करता है।
सुशांत मन मनुष्य को एक सार्थक और सुख में जीवन यापन करने के लिए सक्षम बना देता है।
जागरूकता और ध्यान से वह अपने जीवन में उच्च आदर्श नागरिक बन जाता है। 
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
      यह अत्यन्त जटिल प्रश्न है। क्योंकि जागते रहने की अवस्था अर्थात जाग्रतावस्था को ही जागरूकता कहते हैं। जिसमें सतर्कता व सावधानी का विशेष ध्यान रखना पड़ता है। विशेषकर क्रांतिकारी एवं विधिक जागरूकता में इसका प्रयोग और भी बढ़ जाता है और पग-पग एवं बिंदु-बिंदु पर ध्यान देना पड़ता है।
      चूंकि विधिक जागरूकता से विधिक संस्कृति को बढ़ावा मिलता है, कानूनों के निर्माण में लोगों की भागीदारी बढ़ती है और कानून के शासन की स्थापना की दिशा में प्रगति होती है और क्रांतिकारियों के बिना बदलाव नहीं आते। जिन पर ध्यान अति आवश्यक होता है। जैसे बसों और ट्रकों पर लिखा होता है ध्यान हटे तो दुर्घटना घटे।
      यदि मैं कहूं कि किसी मानव में जागरूकता की मात्रा सामान्य से थोड़ी अधिक हो जाए और वह असाधारण रूप धारण कर लेता है। जिसे विभाग एवं समाज के अहंकारी लोग "पागल" की संज्ञा देने से भी नहीं चूकते और उन्हें कड़े से कड़े दण्ड देते हैं। जिनके अनेक उदाहरण हैं जैसे मीरां को प्रभु गिरधर नागर की बावली, सुकरात को विष पिलाना, यीशु मसीह/ईसा मसीह को सलीब पर लटकाना इत्यादि प्रमुख हैं।
        इसे यूं भी कहा जाए तो गलत नहीं है कि ध्यान एकाग्रता नहीं बल्कि समग्र जागरूकता है। जिसमें विचारों के प्रवाह को ऐसे देखें जैसे सड़क पर चलते लोगों को देखते हैं और उन पर ध्यान नहीं देते अर्थात उनमें रस नहीं लेते हुए आगे बढ़ जाते हैं। उससे आपकी चेतना विचलित नहीं होती। यही ध्यान है।
      अतः धार्मिक गुरु, ऋषि, मुनि, साधु संत इत्यादि भी मुक्ति के लिए मन चित को एकाग्रता से ईश्वर में लीन होने को भी ध्यान ही कहते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्म् - जम्म् कश्मीर
जागरुकता को ध्यान नही कह सकते।जागरुकता हमारी किसे विषय के प्रति  भागीदारी होती है जबकि ध्यान एक अवस्था जिस में सामने बिना किसी विषय के हम पूरी तरह जागरुक होते हैं। ध्यान हमारी जड़ स्वभाव है। भीतर से जाग जाना ध्यान है सदैव निर्विचार की दशा में रहना  ध्यान है ।जबकि जागरुकता जीवन की प्रकृति होती है। जागरुकता में अपनी कोई खूबी या गुण नहीं होता ।जागरुकता मन में ही प्रतिबिंबित होती हैं। ध्यान का अर्थ क्रियाओं से मुक्ति,  विचारों से मुक्ति है। इस लिए जागरुकता और ध्यान में फर्क है। 
- कैलाश ठाकुर 
नंगल टाउनशिप -  पंजाब
जागरूकता' की अवस्था में मन जाग्रतावस्था में रहता है। इस जाग्रतावस्था में मनुष्य स्वयं को, स्वयं के आस्तित्व को, एवं स्वयं की क्षमताओं को भली प्रकार पहचानने की शक्ति से परिपूर्ण हो जाता है। 
'ध्यान' एक ऐसी अवस्था है जिसमें मन को चेतना की एक विशेष अवस्था प्राप्त होती है। ध्यान का अर्थ है आत्म-निरीक्षण करना, आत्म-परीक्षण करना। तदोपरांत पूरी निष्ठा, लगन तथा ईमानदारी से आत्म-नियन्त्रण कर मनुष्य को ईश्वर द्वारा प्रदत्त शक्तियों का सदुपयोग करने की क्षमता ध्यान के माध्यम से ही संजोई जा सकती हैं। 
जागरूक मन-मस्तिष्क ध्यान क्रिया में शीघ्र पारंगत हो जाता है क्योंकि मन की सुप्तावस्था ध्यान की सफल अवस्था तक पहुंचने में बहुत बड़ी बाधा होती है। 
मनुष्य के सुप्त मन-मस्तिष्क को सचेत और जागरूक करने के लिए ध्यान एक सशक्त माध्यम है इसीलिए जो मनुष्य ध्यान की क्रिया को सफल रूप में आत्मसात कर लेता है वह निश्चित रूप से जागरूकता को प्राप्त कर लेता है। 
- सतेन्द्र शर्मा 'तरंग' 
देहरादून - उत्तराखण्ड
ध्यान एक विश्राम है। यह किसी वस्तु पर अपने विचारों का केंद्रीकरण या एकाग्रता नहीं है। अभी तो यह अपने आप में विश्राम पाने की प्रक्रिया है। ध्यान करने से हम अपने किसी भी कार्य को एकाग्रता पूर्व कर सकते हैं। जागरूकता के लिए ध्यान का होना बहुत ही जरूरी है। ध्यान के कारण शरीर की आंतरिक क्रियाओं में विशेष परिवर्तन होते हैं और शरीर की प्रत्येक कोशिका वजह से भर जाती है। शरीर में प्राण तत्व के पढ़ने से प्रसंता शांति और उत्साह का संचार भी बढ़ जाता है। ध्यान का कोई धर्म नहीं है और किसी भी विचारधारा को मानने वाले इसका अभ्यास कर सकते हैं। ध्यान से लागू को महसूस करने के लिए नियमित अभ्यास आवश्यक है। प्रतिदिन या कुछ ही समय लेता है।  प्रतिदिन की दिनचर्या में एक बार आत्मसात कर लेने पर ध्यान दिन का सर्वश्रेष्ठ अंश  बन जाता है।ध्यान एक बीज की तरह है। जब आप बीज को प्यार से विकसित करते हैं तो वह उतना ही खिलता जाता है। प्रतिदिन सभी क्षेत्रों में व्यस्त व्यक्ति आभार पूर्वक अपने कार्यों को रोकते हैं और ध्यान को ताजगी भरी छोड़ो का आनंद लेते हैं। अपने अनंत गहराइयों में जाएं और जीवन को समृद्ध बनाएं। जागरूकता के लिए ध्यान का होना बहुत ही जरूरी है। इसे आपकी चिंता है कम हो जाती है।आपकी समस्याएं छोटी हो जाती है ध्यान से आपकी चेतना को लाभ मिलता है। ध्यान से आपके भीतर सामंजस्य साथ बढ़ती है।जब भी आप भावनात्मक रूप से परेशान हो जाते हैं तो ध्यान आपको भी तरसे स्वच्छ निर्मल और शांत करते हुए हिम्मत और हौसला बढ़ाता है।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
धी धृति समाधि योग प्राणायाम ध्यान 
जागे जो मन मेरा तो समझू तन में जान 
आत्मा सो परमात्मा 
सृष्टि के रचनाकार से वार्तालाप करने का एक मात्र साधन है ध्यान , प्रेम , जागरूक हो जाना आज के योगी अपने परम पिता से साक्षात संबंध स्थापित करने के लिए इन्ही प्रक्रियाओं का प्रयोग करते करते उस के दर्शन प्राप्त करने में सफल हो जाते हैं , यूँ तो वो निराकार ब्रह्म किसी भी आकार में नही मात्र ऊर्जा है वो लेकिन सबकी अपनी2 एक सोच के रूप मे उसके असँख्य आकार हो गए हैं, मैं अपने अनुभव से कहूँ तो वो निराकार ब्रह्म निराकार ही है।
अब उसके ध्यान मनन करने से बस उस ऊर्जा से आपकी wavelength व frequency एक सुर में आते ही उन उर्जा रश्मियों से आप अपने ब्रह्म अंश अर्थात आत्मा से परमात्मा से जुड़ जाते हो ये अगम नही तो कठिन तो है ही। 
सुलभ नही है मग़र सघन तो है ही इतना आसान नही , *ध्यान से जागरूकता*
को पाना आसान है दैनिक कार्यों में इसका परिसीमन श्वास की लय से हो पाना असंभव नही । 
यही *जागरूकता का प्रथम सोपान भी है*
*एकाग्रता भरोसा श्रद्धा यम नियम हठ व सतत प्रयास व ध्यान सब उसी तरफ ले जाने के प्रमाण हैं* 
ध्यान से प्राप्त जागरूकता आपको आत्मिक बल देती है।
जागरूकता जन्य ध्यान आपको मानवीय संवेदनाएं देती है। 
व ऐसा जागृत इंसान समग्र संसार समाज को प्रभु प्रदत्त निकाय अनुरूप विकसित करने में सम्बल देता है 
- डॉ. अरुण कुमार शास्त्री
दिल्ली
जागरूकता और ध्यान मिलते-जुलते शब्द हैं, पर उनके अर्थ और रूप में बहुत अंतर है. जागरूकता शब्द का प्रयोग प्रमुखतः नींद से जागने के अर्थ में किया जाता है. यह नींद शरीर की भी हो सकती है, अज्ञान की भी. शारीरिक रूप से जागना तो जागरूकता है ही, अज्ञान को हटाकर ज्ञान प्राप्त करना भी जागरूकता है. 
ध्यान अपने मन के प्रति जागरूक होने की साधारण-सी प्रक्रिया है. मन को वश में करने का प्रयास ही ध्यान कहलाता है. सामान्यतया ध्यान को बहुत जटिल प्रक्रिया मानकर इसके लिए अलग से समय न निकाल पाने की विवशता जाहिर की जाती है, पर ग़ौर से देखा जाए, तो ध्यान के लिए अलग से समय निकालने की आवश्यकता ही नहीं है. जो भी काम किया जाए, उसमें हमारा ध्यान केंद्रित होना चाहिए. 
रोजमर्रा के एक उदाहरण से इस बात को समझने का प्रयास करते हैं. दूध उबालते समय हम दूध को उबलकर गिरने न देने के लिए बहुत जागरूक होकर ध्यान रखते हैं, पर कभी-कभी ऐन वक्त पर हमारा ध्यान इधर-उधर हो जाता है और दूध उबलकर गिर जाता है. एकाग्र होकर ध्यान केंद्रित करना ही जागरूकता कहलाता है, चाहे वह शरीर-सांस के प्रति हो, या किसी विषय-कार्य के प्रति.
- लीला तिवानी 
दिल्ली
मेरे विचार से जागरूकता को ध्यान कह सकते हैं। जागरूक रहना यानी सतर्क रहना। जीवन के हर क्षेत्र में हर कार्य पर ध्यान देना। हर चीज पर नज़र रखना। हर खबर पर नज़र रखना। उसे जागरुक कहते हैं। लेकिन कभी-कभी दोनों के अलग -अलग अर्थ जो जाते हैं। जैसे  जागरूक मतलब चारों तरफ नज़र रखना। जबकि ध्यान का ध्यान का अर्थ होता है किसी एक चीज में ध्यान लगाना। मन को किसी एक चीज पर केंद्रित करना। शांत होकर बैठना। प्रभु चरणों में लीन हो जाना। पढ़ाई पर ही ध्यान लगाना। केवल खेल पर ही ध्यान देना। इस तरह हम देखते हैं कि कभी दोनों एक ही हैं। कभी दोनों अलग हैं। जागरूकता के लिए चारों तरफ ध्यान देना जरूरी है। जबकि ध्यान के लिये एक जगह पर ध्यान रखना है।
- दिनेश चंद्र प्रसाद "दीनेश" 
कलकत्ता - पं बंगाल
ध्यान अवस्था में इंसान उस निराकार अमूर्त ईश्वर से एकाकार होने का प्रयास करता है। जब तरंग दैर्घ्य चलने लगती हैं, एक दूसरे से एकाकार होने लगती है तब उस अवस्था में प्राप्त ज्ञान या कहे जागृति ही जागरूकता कहलाती है। यह जागरूकता विश्वकल्याण  करने वाली भावना होती है।  इस तरह का ज्ञान या जागरूकता बोध ज्ञान होता है  जैसे महात्मा गौतम बुद्ध और महावीर स्वामी ने प्राप्त किया था।
    एक अन्य तरह की  जागरूकता ज्ञान के द्वारा सोच विचार कर ध्यानस्थ होने की होती है। यह मानवीय संवेदनाओं को संप्रेषित करती है।
- श्रीमती गायत्री ठाकुर "सक्षम"
 नरसिंहपुर - मध्य प्रदेश
मेरी नजर में जागरूकता को ध्यान कहा जावे या ध्यान को जागरूकता, एक ही आशय होगा। चिंतन के ये दोनों रूप किसी भी स्थिति में हों, किसी भी पथ पर हों, जीने का मार्ग प्रशस्त भी करते हैं और आश्वस्त भी। हमारे ज्ञान चक्षुओं को खोलकर जीवन अभिप्राय का आशय समझाते हैं। जीवन,धर्म, ईश्वर, अस्तित्व, जन्म-मरण की बारिकियों का ज्ञान देकर  उलझनों को सुलझाने की युक्ति और सूक्ति देने की सामर्थ्य देते हैं।
और यह सब आवश्यक, महत्वपूर्ण और सार्थक भी है। जब तक हम जागरूक नहीं होंगे, जिन्दगी को न सही ढंग से जी पाएंगे और न ही अन्य जिन्दगी के लिए सहायक बनेंगे।
सार यही कि जागरूकता को ही ध्यान कहते हैं और ध्यान को ही जागरूकता।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
शाब्दिक रुप से तो जागरुकता और ध्यान समानार्थी ही है। पर ध्यान और जागरूकता में अंतर तो होता ही हैं। ध्यान करना,और ध्यान रखना दोनों में जिस प्रकार अतंर है,उसी तरह ध्यान और जागरूकता में भी है।
ध्यान मन-मस्तिष्क की विशिष्ट भाव स्थिति होती है। जिसमें उस भाव के अतिरिक्त किसी अन्य भाव के प्रति  मन मस्तिष्क जागरुक नहीं होता।यह धार्मिक हो या किसी अन्य दिशा में यह अपना काम कर गुजरता है।
ध्यान रहता है कि गंदगी नहीं फैलानी चाहिए, लेकिन फिर भी फैला देते हैं यह है जागरूकता की कमी।  अब देखें ध्यान, बालक नरेंद्र , ध्यानावस्था में थे,पास से सांप गुजर रहा है।बच्चों ने शोर मचाया,पर बच्चों की आवाज का उनको पता ही नहीं चला। ध्यान का दूसरा उदाहरण पत्नी के ध्यान में तुलसीदास ने मुर्दे पर बैठकर नदी पार की,सांप को रस्सी समझ लिया,और जब पत्नी ने कहा तो जागरुकता आयी और फिर जो प्रभु की ओर ध्यान लगा, दुनिया जानती है। 
सबको ध्यान रहता है कि क्या सही,क्या गलत
लेकिन जागरूकता की कमी के कारण गलतियां अधिक करते हैं। 
- डॉ.अनिल शर्मा 'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
*ध्यान*  अपने मन की प्रति जागरूक होने की साधारण सी प्रक्रिया है। 
*भगवान महावीर आत्मज्ञान और भगवान बुध निर्माण ज्ञान कहते हैं*।
मन के साथ लड़ना नहीं है,ना इसे बस में करने का प्रयास करना है।
सिर्फ ध्यान से देखो लेकिन हमें निर्णय नहीं लेना है ।जैसे हम निर्णय लेते हैं ध्यान खो जाएगा ।
जब तक व्यक्ति मूर्छा को जागरूकता में रूपांतरित नहीं करता तब तक कोई स्वतंत्र नहीं है। वे सचमुच स्वतंत्रता से जी सके क्योंकि वह बोधपूर्ण जिए, और हर एक व्यक्ति का यही कार्य होना चाहिए।
अधिक से अधिक बोध जगाना।
तब स्वतंत्रता स्वयं ही आ जाती है।
स्वतंत्रता जागरूकता के फूल की सुधास है।
लेखक का विचार:-- ध्यान एकाग्रता नहीं बल्कि समग्र जागरूकता है।
- विजयेन्द्र मोहन
बोकारो - झारखण्ड


" मेरी दृष्टि में " ध्यान की सभी विधियां जागरूकता पर आधारित हैं । जागरूक इंसान ही सफलता के शिखर पर पहुंचता है । जागरूक और ध्यान एक दूसरे को पूरक है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी

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