लॉक डाउन में सामाजिक संस्थाओं का योगदान कितना सार्थक साबित हुआ ?

लॉक डाउन में सामाजिक सस्थाओं ने लोगों की सेवा में बहुत बड़ी भूमिका निभाई है । कहीं गरीबों को खाना , मास्क आदि बाटें जा रहे हैं । मानवता के लिए ये योगदान  बहुत बड़ा है । इस मे छोटी - बड़ी सभी सस्थाओं ने योगदान दिया है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : - 
वर्तमान स्थिति को देखते हुए कहा जा सकता है कि सामाजिक संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान है ,लॉक डाउन मे,वैसे तो 100 परसेंट सामाजिक संस्थाओं की उत्पत्ति इसलिए ही होती है कि वो अपना सर्वस्व त्याग कर समाज और जन हित में कार्य करे और बहुत से लोग सर्वजन हिताय को चरितार्थ भी करते है और ऐसा करने मे वो अपना दायित्व समझते है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है और कई लोग संस्था का निर्माण ही इसलिए करते हैं कि 5रु का दान करे और 5लाख के स्वामी बन जाए सोशल मीडिया के जमाने में ऐसे ही लोग ज्यादा है जो काम तो कम करते हैं पर प्रचार प्रसार के लिए समाज के सामने वैश्विक आवरण बने रहते हैं, इस विषय मे सबके विचार अलग अलग हो सकते है,मेरे हिसाब से जिसको समाज के लिए कोई काम करना होता है वो बिना बनावट और दिखावे के काम करता है उसे न ये परवाह होती है कि मुझे लोग क्या कहेंगे न उन्हें किसी भी कवरेज की परवाह होती है बल्कि वो  अपना समाज के प्रति दायित्व बड़ी ही जिम्मेदारी और लगन के साथ निभाते जाते है और इस लॉक डाउन के दौरान भी कई संस्थान आँख मूँदकर बिना किसी की परवाह किए बगैर, तन मन धन से अपने दायित्वों का निर्वहन कर रही हैं और इस कोरोना वाइरस को भगाने के लिए जुटी हुई है, मेरे विचार से ऐसे लोग और ऐसे संस्थान जो शासकीय नियमो का पालन करते हुए जन सेवा मे जुटे हुए हैं वो संस्थान और लोग किसी भगवान से कम नही है क्योंकि जरा सी चूक से वो अपने को इससे संक्रमित होने से नही बचा पाते,मेरे विचार से इस समय जो सभी नियम का पालन करते हुए,दिखावे और प्रलोभन से दूर सिर्फ काम कर रही है वही असली समाज सेवा है और उसे इस बात से भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है कि उसके इस योगदान के बदले उसे कुछ समाज से लेना है, ऐसी संस्थाएं वास्तव में प्रसंशनीय है, जिसे शायद अभी तक किसी ने देखा भी न होगा और वही सही मायने मे सौ टके का काम कर रही है और मील का पत्थर साबित होंगी और इन सबके कारण ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि संस्थाओं की भूमिका और योगदान लॉक डाउन के समय में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।
- मंजुला ठाकुर
भोपाल - मध्यप्रदेश
सामाजिक संस्थाओं ने जो जनसेवा का  योगदान दिए है।यह बहुत ही सार्थक प्रयास रहा। जो मजदूर ,और गरीब लॉक डाउन की बजह से बहुत परेशान थे। उनके लिए सामाजिक संस्थाओं ने भोजन की व्यवस्था कर बहुत बड़ी पहल की है। और ऐसी कई संस्थान है जो कैमरे की नजर में नही आये और गरीबो के घर घर मे जाकर भोजन बाटे है। मानव मानव को पहचानने के वक्त सब एक दूसरे के काम आ रहे है। जाती धर्म का रिश्ता लोगो मे खत्म कर मानवता का काम किया है। और लोगो ने बेसहारों की खूब मदद की है। यह बहुत ही सराहनीय कार्य है। लॉक डाउन में सभी संस्थाओं ने जो योगदान दिया है यह बड़ा सार्थक प्रयास रहा है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
        हम सभी जानते हैं कि भारत में सामाजिक संस्थाओं की संख्या बहुत अधिक  है  और उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। वस्तुतः सामाजिक संस्थाएं किसी भी देश के  विकास कार्यों में रीढ़ की हड्डी के समान होती है।  देश के विकास की गतिविधियों में इनका बड़ा योगदान होता है। समाज के हितों को ध्यान में रखकर समाज के ही कुछ जागरूक एवं शिक्षित लोगों द्वारा इनका गठन किया जाता है और ये सामाजिक कार्यों को सही तरीके से करने में सहायता करती हैं। वर्तमान समय में कोरोना (कोविड19 वायरस ) के संक्रमण के कारण पूरा देश एक बड़े खतरे का सामना कर रहा है। ऐसी स्थिति में लॉक डाउन हमारे देश में लगा हुआ है। लॉक डाउन के दौरान गरीब वर्ग के लिए भोजन की समस्या, दैनिक जीवन में रोजमर्रा की वस्तुओं की समस्या, दवाइयों की समस्या सामने आती है ।ऐसी स्थिति में सरकारी संस्थाएं तो अपना कार्य करती ही है लेकिन पूरे देश में बिस्तारित  सामाजिक संस्थाएं भी बहुत सक्रिय होकर इस वक़्त जरूरतमंद लोगों की मदद करती दिख रही हैं ।इससे यह स्पष्ट होता है कि सामाजिक संस्थाओं का योगदान पहले भी बहुत संतोषजनक था लेकिन वर्तमान समय में संतोषजनक से अधिक है।बे दिन-रात काम कर रही हैं। उनके सक्रिय सहयोग से ही गरीब आदमी व मध्यमवर्गीय  लोग लाॅक डाउन  के दौरान अपने घर में रहकर अपना दैनिक जीवन व्यतीत  कर पा रहा है ।
 - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
दतिया - मध्य प्रदेश
 
 लॉक डाउन के दौरान भारत में कई सामाजिक संस्थाओं ने इस विषम परिस्थिति में बढ़-चढ़कर सहयोग किया है ।इस समय जब देश एक असाधारण संकट से गुजर रहा है तो देश की कई सामाजिक संस्थाएं भी सहयोग करने के लिए कमर कस चुकी हैं। सरकार और प्रशासन अपने अपने  तरीके से कोरोनावायरस को निपटने और देश की जनता को बचाने का प्रयास कर रहे हैं।
 सामाजिक संस्थाओं का दृष्टिकोण  पूर्णतया मानवीय  है ।सेवा भाव को ही परम कर्तव्य मान सामाजिक संस्थाएं गरीबों की बुनियादी जरूरत को पूरा करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं ,एवं पूरी तरह सक्रिय हैं। उनका समर्पण व प्रतिबद्धता सराहनीय है ।यह  संस्थाएं व सामाजिक संगठन अंधविश्वास दूर करने में भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं।अशिक्षितों को सामाजिक दूरी के मायने भी समझा रहे हैं ।
विभिन्न सामाजिक संस्थाएं रास्ते में फंसे हुए यात्री ,आसपास के कल कारखाने वाले मजदूरों को गरीब रिक्शा वालों को खाने के पैकेट बाँट रहे हैं । गरीबों को खाना खिला रहे हैं ।कई संस्थानो ने  राशन वितरण किया है ,अलग-अलग  झुग्गी झोपड़ियो मे राशन  बांट रहे हैं।  कुछ सामाजिक संस्थाएं  दोनों टाइम का खाना वितरित कर रही हैं। खाने में मिक्स सब्जी ,सोयाबीन,  दाल, रोटी, चावल आदि शामिल होता है ।
लॉक डाउन होने से प्रवासी मजदूर ,रिक्शावाले ,रोज कमाने वालों के सामने समस्या का पहाड़ टूट पड़ा है ।उनके लिए खाद एवं सुरक्षा का संकट खड़ा हो गया है सामाजिक संस्थाएं उनको खाद्य सामग्री ,राशन के साथ साथ घर के  बने  मास्क एवं सैनिटाइजर भी बांट रहे हैं । कुछ सामाजिक संस्थाएं बच्चों को कापी ,किताबें भी बांट रही है , ताकि गरीब बच्चो की पढ़ाई भी जारी रहे ।
यह पुनीत कार्य है और  नैतिक जिम्मेदारी भी ।देश के हर नागरिक का कर्तव्य है कि यथा संभव इस समय आपातकाल की स्थिति में देश की मदद करें ।इस समय गरीब लाचारों  की कुछ न कुछ सहायता  हम सबको अवश्य करनी चाहिए ,क्योंकि मानव सेवा से बढ़कर न कोई  सेवा है न कोई धर्म है ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन के समय हर राज्य की सामाजिक संस्थाएँ तन ,मन  , धन से  दिल खोलकर कर मदद कर रही हैं । कोरोना के कहर से दम घोटते मानव समाज में भारतीय संस्कृति की आत्मा मानवता इस संकट में भारत में दिखाई देती है । केंद्र और राज्य सरकार , प्रशासन , धर्मार्थ संस्थाएँ और गैर सरकारी संगठन आदि लोंगों का जीवन बचाने का ,उनकी सहायता करके पूरा पराया स कर रही हैं । चारों तरफ से मदद के हाथ उठा रहे हैं ।
यही भारत की एकात्मकता , संगठन की शक्ति है ।
 इन संस्था का सबसे बड़ा काम  कोई भी जरूरतमंद , असहाय व्यक्ति भूखा नहीं रहे । ये संस्थाएँ मदद करने में आगे खड़ी हैं ।
 कोरोना योद्धा पुलिस और स्थानीय प्रशासन के द्वारा राहत कैंपों में ठहरे लोग जो लाकडाउन की वजह से किसी  दूसरे शहर , कस्बा , नगर आदि में फँस गए थे ।
उन लोगों को सरकार के साथ ये संस्थाएँ घर की तरह पूरा सहयोग दे रहीं हैं । उन लोगों की दैनिक जीवन की जरूरत का सामान जैसे टूथपेस्ट , साबुन , तौलिया आदि भी दे रही हैं । सेनिटाइजर , मॉस्क आदि भी बाँटे जा रहे हैं ।
जरूरतमंदों को  ये संस्था गूगल से जानकारी ले उनके राहत शिविर में खाना के पैकेट , पीने के लिए पानी की बोतल , कपड़ा आदि पहुंचाते हैं ।
  हर शहर की इस्कॉन संस्था गरीबों खाना बनाकर खिला रही है । बेजुबानों को खाना - पानी की व्यवस्था कर रही हैं 
नीता अंबानी अपनी जीयो संस्था से कई हजार लोगों को ताजा खाना शिविरों  में लोगों के लिए पहुँचा रही है ।
 देश में 33 लाख संगठनों को सरकार आर्थिक सहायता देती है । इन संस्थाओं को ऐसे संकट के समय में समाज के पीड़ितों की मदद करनी चाहिए ।
 लेकिन एक तरफ मानवता के काम हो रहे हैं ।
वहीं दूसरी ओर  अमानवीयता का घिनौना रूप दिखायी देता है । तेलंगाना से छत्तीसगढ़ अपने घर जाने के लिए मजदूरों के संग 12 साल की बच्ची उनके साथ जंगल के रास्ते 100 किलोमीटर का सफर तय कर लिया था और घर से 14 किलोमीटर की दूरी पर रह गया था । रास्ते में   ही उस बच्ची ने दम तोड़ दिया । 
प्रवासी मजदूरों की सहायता करने के लिए किधर केंद्र सरकार , राज्य सरकार ,  प्रशासन , पुलिस  और सामाजिक संस्थाओं की मदद है । सड़क पर मजदूर है ।
इस सड़ी गर्मी में मजदूर अपने घर जाना चाहते हैं । 
साधन सिर्फ पैदल का ही है । न ही परिवाहन का कोई साधन है । इन मजदूरों के काम नहीं होने से भूखे पेट चल रहे हैं ।  अंटी में न ही पैसे हैं ।  लाकडाउन का कब खुलेगा किसी को नहीं मालूम है । भूखे पेट गर्मी की मार सहते हुए पैरों में छाले की पीड़ा लिए अपनी मंजिल की ओर रास्ते में रुकते , सोते , पानी पीते हुए चलते जारहे हैं ।  पूरे देश मजदूरों की यही व्यथा है । 
गुंटूर में शहर से बाहर रहते हैं  , जो लोग कचरा बीन के  अपना पेट भरते थे । अब ये कमजोर वर्ग लाकडाउन से ये अपना काम नहीं कर पा रहे हैं । सरकार इन्हें राशनरही  प्रति व्यक्ति 5 किलो चावल  आदि मुफ्त में दे रही है ।
गरीब कल्याण योजना के तहत गरीबों को सहायता मिल 
रही है ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
लॉकडाउन के समय सरकारी और गैर सरकारी संस्थाओं का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। क्योंकि यह संस्थाएं वृद्ध, गरीब , और असहये लोगो को भोजन, दवाई पहुंचा रहे है। यह लोग लोगो को समझा रहे है कि घर पर ही रहे और लोगो को लॉकडॉउन के नियम बता रहे है। यह लोग लोगो की हर तरीके से मदद कर रहे। यह लोग पुलिस और डॉक्टरों की भी मदद कर रहे है। यह लोग इस वक्त की घड़ी में हमारी बहुत मदद कर रहे है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
कोरोना महामारी की त्रासदी से शासन-प्रशासन पूरी हिम्मत से लड़ रहा है परन्तु उसकी भी अपनी सीमाएं हैं, इसलिए ऐसे समय में सामाजिक संस्थाओं की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण है। वर्तमान में भारत में लाखों की संख्या में गैर सरकारी संगठन पंजीकृत हैं जिन्हें केन्द्र और राज्य सरकार से आर्थिक सहायता मिलती है। इनमें से अनेक संगठन/संस्थाएं लाॅकडाउन में सराहनीय भूमिका निभा रहे हैं। विभिन्न शहरों में स्थानीय सामाजिक संस्थाएं राशन वितरण, पशु-पक्षियों के भोजन की व्यवस्था आदि के साथ-साथ कोरोना से बचाव के उपायों हेतु जन-जाग्रति का कार्य कर रहे हैं। 
लाॅकडाउन में जब शासन-प्रशासन को विभिन्न मोर्चों पर कार्य करना पड़ रहा है, तब सामाजिक संस्थाओं का योगदान नागरिकों और प्रशासन के लिए अति आवश्यक है। जो भी संस्थाएं अपने सामाजिक दायित्व का निर्वहन कर रही हैं उनका योगदान निश्चित रूप से सार्थक सिद्ध हुआ है, परन्तु अभी भी आवश्यकता है कि इस संकट के समय और अधिक संख्या में सामाजिक संस्थाएं अपने उद्देश्यों और लक्ष्यों के अनुसार कार्य करते हुए अपनी भूमिका  से न्याय करें।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
लाकडाउन के समय सरकारी और गैर-सरकारी तथा निजी मददगार जरुरतमंद के लिए मानव के रुप में ईश्वर है।
मदद और सेवा सही माने में मन से की जाती है ।
उन सभी लोगों को भारतीय नागरिकों का प्रणाम और सम्मान करते हैं।उन सैनिकों के बल पर  ही अन्य लाकडाउन में सुरक्षित है। प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रुप से हम सभी एक साथ है। घर घर जाकर दवा खाना पहुचाना सराहनीय काम है।इस काम में तीन कारक की महत्वपूर्ण भूमिका हो रही है। पैसा की व्यवस्था सामानों की व्यवस्था और उसका फिर पका हुआ खाना का रुप देना तीसरा पैकिंग और समय पर जरुरतमंदों तक पहुंचाना अत्यधिक , सराहनीय काम है सभी को नमन 
- डॉ . कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
जब से लॉकडॉउन हुआ है तभी से अनेक सामाजिक संस्थाएं अपना हर संभव योगदान दे रही हैं। कई स्थानों पर तो इनका सहयोग सार्थक भी सिद्ध हो रहा है किंतु कई जगह स्थिति इसके विपरीत है। इन संस्थाओं से जुड़े लोग ऐसी जगह नहीं पहुंच पाते जहां वास्तव में अच्छा राशन तक भी नहीं पहुंचता। फोटो खिंचवाने के चक्कर में खास खास जगह तक ही सीमित रह जाते हैं।
                   हालांकि कुछ सामाजिक संस्थाएं ऐसी भी हैं जो लोक डाउन के चलते कच्चे राशन के साथ-साथ पका हुआ भोजन भी देने का काम कर रही हैं। ऐसी संस्थाओं की और इन के सदस्यों की दिन-रात की मेहनत वास्तव में सराहनीय है जो हर रोज सूखे राशन की किट तो उपलब्ध करा ही रहे हैं साथ ही दोपहर के साथ-साथ शाम का
खाना भी पहुंचाते हैं। इनका यह प्रयास वास्तव में सार्थक सिद्ध हो रहा है।
                अंत में मैं इतना ध्यान अवश्य दिलाना चाहूंगी कि सामाजिक संस्थाओं के साथ साथ साहित्यिक संस्थाएं भी लॉक डाउन की इस घड़ी में अपना भरपूर सहयोग दे रही हैं। हम सामने भले ना आ पाएं, किंतु अपनी कविताओं, रचनाओं एवं देश भक्ति गीतों के माध्यम से लोगों को जागरूक भी कर रहे हैं और उन्हें भी आगे आने के लिए प्रेरित कर रहे हैं।     
            - मधु गोयल
       कैथल - हरियाणा
लाकडाउन में सामाजिक संस्थाओं का सहयोग और समाज में किया गया सेवा कार्य, इस संकट के समय में बहुत सार्थक रहा है। विभिन्न सामाजिक संस्थाओं के द्वारा खाने के पैकेट्स, राशन के पैकेट्स जरूरतमंद लोगों को उपलब्ध कराए गए। जहां लाक डाउन में लोगों को कोई सामान मिलने में समस्या थी, इन संस्थाओं ने उन क्षेत्रों में पहुंचकर सामान उपलब्ध कराया। दैनिक उपभोग की वस्तुएं वंचित और निर्बल वर्ग के लोगों तक पहुंचाकर इन संस्थाओं ने प्रशंसनीय कार्य किया है।इतना ही नहीं समाज के सक्षम वर्ग में जनजागरण और प्रेरित करने का कार्य कर पी एम केयर्स खाते में दान भी दिलाया। अपने अपने स्तर से चंदा कर राहत कोष में भिजवाने का काम भी ये संस्थाएं बखूबी कर रही हैं। प्रारंभ के दिनों में जब मजदूर वर्ग के लोग वाहन न मिलने पर पैदल यात्रा कर रहे थे,तब इन संस्थाओं के द्वारा उनको भोजन, पानी और यहां तक कि रात को रुकने की सुविधा भी उपलब्ध कराने के प्रबंध किए गये।इनके योगदान को सदैव याद किया जाएगा।
-  डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
आज की लाँक डाउन की  स्थिति में सामाजिक संस्थाओं का भी बड़ा योगदान रहा है लोग एक दूसरे की भावनाओं को प्रफुल्लित कर रहे हैं। और संस्थाओं के माध्यम से जगह-जगह पर मानव सेवा भी की जा रही है ,जो गरीब हैं भूखे हैं उन लोगों को संस्थाओं ने अपनी क्षमता अनुसार अपने पैसे से खाना खिलाने में प्रयासरत  हैं। इससे एक प्रभाव पड़ रहा है सामाजिक संस्थाओं का एक  मानवीय संवेदना असर  बना हुआ है ,लोग मानव सेवा में लगे हुए हैं एक दूसरे से इकट्ठा कर चंदे से खाना की व्यवस्था कर रहे  और इसके साथ-साथ हमारी सामाजिक संस्थाओं का योगदान भी सार्थक साबित हो रहा है मैं खुद बहुत सारी संस्थाओं से जुड़ी हुई हूं और संस्थाओं को देख रही हूं मूल्यों को संबोधित कर रहे हैं। बहुत सारी है जागरूकता  अभियान भी फैला रहे हैं कोरोना  से बचाव के उपाय बताए जा रहे हैं ।सामाजिक संस्थाओं के द्वारा मास्क ,सैनिटाइजर बांटे जा रहे हैं वह सारे कच्ची सामग्रियों को  भी बांटे जा रहे हैं साथ यही कहना चाहती हूं कि सामाजिक संस्थाओं का यह मानवीय मूल्य  के प्रति सराहनीय कार्य है। एक दूसरे से वह जागरूक भी हो रहे ,कुछ कुछ ऐसे सामाजिक संस्थाएं भी हैं जो अपने-अपने संस्थाओं के नाम के लिए ही वह फोटो खिंचा रहे हैं और प्रशासन ने भी इसका विरोध किया है सामग्री बांटते समय फोटो ना ली जाये, भावनाएं अच्छी होती हैं तो जागरूकता के माध्यम से सामाजिक संस्थाओं ने निरंतर अपने कार्यों का निर्वहन कर रही हैं और इस लोक डॉन के इस स्थिति में अपनी-अपनी भूमिका अपनी अपनी क्षमता अनुसार शक्ति अनुसार निभा रही हैं यह एक सहज और यह एक बहुत ही मानवीय मूल्यों को प्रदर्शित करता हुआ एक सराहनीय कदम है समाज के लोग इससे लाभप्रद हो रहे है 
- अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर - झारखंड
लॉक डाउन के चलते मुसीबत में फंसे लोगो की मदद को अनेक सामाजिक संस्थाओ ने अपना योगदान दिया। लॉक डाउन मे फंसे अनेक मजदूर को भोजन की मदद की नगर निगम ने समाजिक संस्थाओं से गुहार लगाई सभी सामाजिक संस्था आगे आयी सहयोग किया संस्था अपनी इच्छा से दाल चावल आटा राशन का समान तेल मसाले लॉक डाउन मे फंसी जनता तक पहुंचा रही कई संस्थाओं ने आपदा की घड़ी मे सहयोग किया जब जनता कोरोना बिमारी के चलते लॉक डाउन मे अपने अपने घरो को पैदल जा रही थी तब सामाजिक संस्थाओं ने भोजन के पैकेट और वाहन भी उपलब्ध कराये देश मे कोई भी संकट की घड़ी हो हमेशा सामाजिक संस्था सार्थक सिद्ध हुई है। लॉक डाउन मे समाजिक धार्मिक संगठन व्यापारी लगातार शहरो मे गरीबो को भोजन के पैकेट राशन जरूरत की चीजे वितरित की व्यापारियों व विभिन्न सामाजिक संगठनों के सहयोग से अनेक क्षेत्रो मे जरूरतमंदो को मास्क सेनेटाइजर बांटे गये।
घर घर जाकर राशन उपलबध कराये लॉक डाउन के चलते सामाजिक संस्थाओं का बड़ा योगदान था और योगदान सार्थक भी हुआ मै आभारी हुँ उन संस्थाओं की जिनकी वजह से ना जाने कितने को पेट भरने को भोजन मिला इस आपत्ति काल मे गरीबो के मसिहा बने है जब देश का मजदूर  बेरोजगार है लॉक डाउन में फंसा है तब राशन खाना जरूरत का सामान पहुंचाने का काम समाजिक संस्थाए कर रही है। पशुओं के लिए चारा बेजुबान प पशु पाक्षियों के लिए भी आगे आयी समाजिक संस्था लॉक डाउन के चलते मेरे देश में सामाजिक संस्थाओं का बहुत बड़ा योगदान है।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
लॉकडाउन में सामाजिक संस्थानों का योगदान कितना सार्थक साबित हुआ ?लॉकडाउन में राज्य केंद्र सरकार और प्रशासन का पूरा योगदान रहा है किंतु 12 -15 करोड़ की आबादी सभी जगह तो प्रशासन नहीं पहुंच सकती ऐसे वक्त में नैतिक रूप से मानवता के नाम पर सभी का कर्तव्य होता है किसी भी तरह से हम मानव की मदद करें ! अकेले तो हम ज्यादा नहीं कर सकते किंतु बड़ी-बड़ी संस्थाएं होती है वह कृत्रिम आपदा के समय उन्हें दवाइयां खाना कपड़ा आदि देकर उनकी मदद करते हैं !आज लॉक डाउन में प्रशासन के साथ-साथ संस्थाओं का भी चाहे प्राइवेट हो पूर्ण अनुदान है कोई भोजन देकर कर रहा है ,मास्क देकर ,रहने की जगह देकर किसी न किसी रूप में योगदान कर रहे हैं !बड़े-बड़े मंदिरों से भी चैरिटेबल ट्रस्ट मदद कर रहे हैं मजदूरों को दोनों समय खाना देना , एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ती कर रहे हैं!
 इसके अलावा ऐसी कई संस्थाएं गठित हैं जिन्हें सरकार चलाने में मदद करती है यदि न्याय पूर्वक लॉकडाउन के समय जब उनका सहयोग करना बहुत ही महत्व रखता है और हिसाब से अब उन्हें लोगों की मदद करना ही चाहिए तभी सरकार द्वारा मदद में मिली धनराशि उस संस्था के लिए सार्थक सिद्ध होगी !
 ऐसे वक्त के लिए ही सरकार भी संस्थाओं की मदद करते हैं  हां भ्रष्टाचार में सरकार द्वारा दिया दान अंदर ही अंदर जो हजम हो जाता है फिर तो उन्हें कैसे भी मदद करनी चाहिए अन्यथा ऐसी संस्था गठित ही नहीं होनी चाहिए !छोटी-छोटी संस्थाएं तो तहे दिल से मदद करती हैं और उनका योगदान सार्थक होता है !
अंत में कहूंगी  किसी भी समय आई हुई विपत्ती में किसी जरूरतमंद की मदद  मन से और दिल से करें!  मानव सेवा ईश्वर तुल्य है !बड़ी-बड़ी संस्थाओं को सामने आकर अपनी नैतिकता दिखाते हुए मानवता का परिचय देना चाहिए तभी उनका योगदान सार्थक साबित होगा !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन में सामाजिक संस्थाओं ने जिस प्रकार अपनी भूमिका निभाई है,उसे देखकर ये कहा जा सकता है कि इन संगठनों ने कोरोना के विरुद्ध इस युद्ध मे देश को एक बहुत बड़ा सहारा दिया है।जिस तरह ये संस्थायें मदद के लिए आगे आयी है उससे देश को एकजुटता का जो अहसास हुआ है वो सभी भारतीयों के लिए बड़े गौरव की बात है।अलग अलग तरह से सभी संस्थाएं जो कार्य कर रही हैं,चाहे वो राशन वितरण का कार्य हो या फिर मास्क बनाने का कार्य हो अथवा घर घर जाकर राहत सामग्री पहुंचाने का कार्य हो,सभी स्वागत और नमन योग्य कार्य हैं।संकट के समय इन संस्थाओं का आगे आना इस युद्व मे विजय की एक किरण जगाता प्रतीत होता है।कई संस्थाये स्वयं भोजन बनाकर राह पर पड़े मजबूर और जरूरतमंदों तक पहुंचा रही हैं।इन्ही संस्थाओं की वजह से भारत अपनी शक्ति को बढ़ा पा रहा है।मुझे पूरी आशा ही नही बल्कि विश्वास है कि देश के प्रत्येक नागरिक एवं इन संस्थाओं के द्वारा कंधे से कंधा मिलाकर जिस एकता का परिचय दिया जा रहा है वो भारत को निश्चित ही इस युद्ध मे विजयी करेगा। घर पर रहें,देश सुरक्षित करें।
-  कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
मदद करने के लिए सिर्फ धन की ही जरूरत नही होती,उसके लिए एक अच्छे मन की जरूरत होती है।।
लाकडाऊन। के चलते समाजिक संस्थाओं ने बहुतकाम किया है जो वास्तव में काम करती है ... जगह जगह खाना देना अनाज बाँटना आदि काम कर रही है बड़ी बड़ी समाजिक संस्थाओं के माध्यम से गरीबो को रोज भोजन दिया जा रहा 
जनजागृति लाने में भी समाजिक संस्थाएँ आगे रहती है
सरकार हर जगह नहीं पहूची 
संस्थाओं द्वारा ही काम होताहै 
कुँछ नाम के लिये ही सही 
काम तो करती है। 
कुछ ग़रीबों को सहायता तो मिलती है, 
बहुत से समाजिक कार्यकर्ता भी सहयोग कर रहे है , किसी ने मास्क बना कर बाँटे , किसी ने घर में सेनेटाइज बना कर बाँटा 
इस समय हर इंसान अपने अपने तरीक़े से मदद कर रहा है , 
मेरी संस्था अग्निशिखा मंच ने 
पंचास किलो चावल , पचास किलो आटा , पच्चीस किलो दाल , नमक , हल्दी , शक्कर , चाय पत्ती , ग़रीबों को बाँटा है । 
और कही पता लगता है, तो छोटी मोटी मदद करते है , 
संस्था के पास फ़ंड नहीं है फिर भी संस्था द्वारा व्यक्तिगत मदद करती हूँ । बहुत नहीं पर जो बन पड़े, जो हो सकता है करती रहती हूँ । 
मुझे लगता है यह ऐसा समय है कि हर ियक्ति जो थोड़ा भी सक्षम है , कुछ न कुछ मददत कर रहाँ है 
कोरोना वायरस के संक्रमण को रोकने की मुहिम में रेलवे के कर्मचारी भी अपना योगदान दे रहे हैं। अपनी ड्यूटी के बाद का वक्त वे अपने घर में मास्क तैयार कर रहे हैं। खास बात ये है कि धोकर दोबारा इस्तेमाल करने योग्य मास्क ,  अपने बनाए मास्क वे उन रेल कर्मियों को प्रदान कर रहे, जो लॉक डाउन में भी निरंतर ड्यूटी कर देश की प्रगति की राह सुनिश्चित कर रहे।
कोरोना संक्रमण से बचाव को लेकर लॉकडाउन किया गया ताकि लोग अपने घरों में सुरक्षित रहें। इनमें ऐसे परिवार भी हैं जिनको सामान की जरूर है, लेकिन उनके पास इसके लिए पैसा नहीं है। ऐसे लाेगाें के लिए सामाजिक संस्थाएं काम कर रही हैं। इनकी ओर से जरूरतमंदाें काे राशन व भाेजन पहुंचाया जा रहा है।
कुछ संस्थाऐ  मिलकर रोज सुबह शाम एक क्विंटल दूध सप्लाई करती है, गर्भवती महिलाओं व बच्चों को फल व दूध की अधिक आवश्यकता होती है इसलिए संस्थाओं ने जरूरतमंदों को दूध पहुंचाने का निर्णय लिया है।
ब्रहामण समाज , अग्रवाल समाज , गुरुद्वारा प्रबंधन, 
कान्यकुब्ज ब्राह्मण समाज 
आदि समाज में अपनी सेवाऐ दे रहे है । 
फ़िल्म स्टार , खिलाड़ियों , वआमजनता  ने अपनी तरफ़ से पी एम को बहुत फंड दिया है कोरोना के लिये 
टाटा , रिलांयस आदि तो मददत करते ही आ रहे है । 
संस्थाओं के द्वारा  बहुत अच्छा काम हो रहा है 
हर शहर हर कस्में के लोग आगे आ कर मदद कर रहे है ...
मैं नमन करती हूँ सभी कार्यकर्ताओं को 
- डॉ  अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
समाज में जब तक सामाजिक संस्थाएं समाज के हितों और सहयोग के लिए अग्रणी नहीं होंगी, तब तक ' सर्व हिताय ' के कार्य अधूरे ही रहेंगे। शासकीय और प्रशासनिक कार्य कहीं न कहीं नियमों,कानूनों और शर्तों में बंधे होते हैं। परंतु सामाजिक संस्थाओं के लिए ऐसा कोई बंधन नहीं होता । उनकी सेवा , सद्भावना और सहयोग का क्षेत्र  स्वतंत्र ,सीधा ,सरल, सहज और त्वरित होता है।  इसीलिए ऐसी संस्थाओं की समाज को नितांत और सदैव आवश्यकता होती है।
लॉक डाउन में सामाजिक संस्थाएं जितनी समर्पित भावना से  सेवा और सहयोग कर रही हैं , वह वंदनीय है। इनकी सेवाओं  अनेक असहायों और पीड़ितों के लिए नवजीवन देने जैसा कार्य कर रही हैं। कोरोना की आपदा ने समुचे देश में संकट और संघर्ष का भूचाल सा ला दिया है। ऐसे में     इन संस्थाओं ने प्रत्यक्ष में पीड़ितों को और अप्रत्यक्ष में शासन को सहयोग देकर अपने उद्देश्य को शत प्रतिशत सार्थक किया है। उनका यह सहयोग विषम परिस्थितियों में समाज के लिए रामबाण साबित हुआ है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
 जैसा नाम है वैसा उसका काम है अर्थात समाजिक का मतलब है समाज में जीने वाले लोगों के प्रति  संकट के समय सहयोग करना। संस्था का अर्थ है संतुष्टि होने के लिए स्थान अर्थात जितने भी सामाजिक संस्थाएं मनुष्य की संतुष्टि के लिए बनाई जाती है। जब-जब समाज में सार्वजनिक कोई समस्याएं आती है तो उस समय सामाजिक संस्थाएं अपने आम भूमिका निर्वहन करते हैं जो मानव के कल्याण के लिए या मानव के हितार्थ के लिए सुविचार करने वाले लोग इस संस्थान से जुड़े रहते हैं एवं उपकार भाव से या परोपकार भाव से समाज के लोगों का सहायता करते हैं कोई अपने मन तन धन तीनों अर्थ लगाकर मानव को समस्या से मुक्ति दिलाने का प्रयास करते हैं। अभी वर्तमान में विश्व महामारी कोरोना वायरस ने पूरे विश्व में तहलका मचा दिया है सभी तरफ भय आशंका और मौतें हो रही है इससे निजात पाने के लिए हमारे देश में सर्वस्व चाहने वाले संस्थान में भागीदारी करने वाले लोग इस विपत्ति के समय अपना पूरा योगदान जरूरतमंद लोगों को कर रहे हैं यह उनकी महानता है यही मानव मानव त्व के लायक होते हैं। हमारे देश में अनेक सार्वजनिक संस्थाएं हैं जो अपने मन तन धन का सदुपयोग करते हुए इस समस्या से निजात पाने के लिए जनसेवा में लगे हुए हैं लाभ डाउन में सामाजिक संस्थाओं का यही योगदान सार्थक साबित हुआ है। हमारे गांव में भी कुछ ऐसे ही प्रवृत्ति के लोग हैं जो जरूरतमंद लोगों को सहयोग प्रदान कर रहे हैं ज्यादातर इस रोग से बचने के लिए जिन जिन वस्तुओं की आवश्यकता है जैसे  मास्क, हाथ धोने के लिए साबुन और कुछ जरूरतमंद वस्तुएं खाने के लिए साग भाजी चावल तो सरकार दे रही है सब्जी की आवश्यकता है तू जहां जहां पांव में सब्जियां हो रही है वहां से सब्जियां लेकर लोगों में वितरण किया जा रहा है इस तरह से गांव से लेकर सहरसा संस्थाओं का योगदान सार्थक साबित हो रहा है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
देश असाधारण संकट के दौर में है l  सामाजिक संस्थाओं का दृष्टिकोण सदा मानवीय होता है तथा इनका सम्पर्क व्यापक होता है l सेवाभाव के कारण लोगों का इन पर विश्वास भी होता है l संकट काल में संस्थाओं का समर्पण भाव और उनकी प्रतिबद्धता सराहना योग्य है l 
      वैसे तो सेवाभाव का मूल्यांकन का कोई पैमाना नहीं है और मूल्यांकन करना भी नहीं चाहिए ,लेकिन संस्थाओं के सेवा भाव me शुद्र स्वार्थ के चलते कतिपय संस्थाएँ भोजन वितरण करते हुए फोटो खिंचवाना ,अपना प्रचार प्रसार करना यह प्रमाणित करता है कि वे अपने किये दान का तुरंत प्रतिदान चाहते है जबकि पशु पक्षी भी ऐसा नहीं चाहते हैं l 
अपने योगदान के समय सामाजिक दूरी व एडवाइजरी की पालना के संदर्भ में कहीं कहीं प्रश्न चिन्ह लग जाता है l 
कहीं कहीं सियासी प्रतिबद्धता भी जन प्रतिनिधिओं और उनके अनुयाइयों द्वारा की गई गतिविधियों पर भी प्रश्न चिन्ह लगा देती हैं l सामाजिक संस्थाएं बुराइओं और समस्याओं के कारणों की पहचान करके इस संकट काल में उपचारात्मक कार्यवाही कर रहे हैं l तथापि समाज अपेक्षा करता है कि सामाजिक दूरी व गाइड लाइन की पालना सुनिश्चित करें तथा समाज कल्याण के सकारात्मक उपायों के साथ साथ ध्वनि निर्देश भी दे सकते हैं l सार्थकता का मूल्यांकन यदि करना है तो बिना किसी पूर्वाग्रह और मानवीय संवेदना ,उपादेयता के आधार पर करना चाहिए l 
सामाजिक संस्थाओं को अपना योगदान धैर्य और आत्मनियंत्रण के साथ व्यक्तिगत पसंद और अनुशासनहीन कल्पना और इच्छाधारी सोच के अध्याधीन नहीं अपितु "वसुधैव कुटुंबकम "की भावना से प्रेरित होकर करनी चाहिए l संस्थाएँ अपने समूह में संवाद स्थापित कर आवश्यकता आधारित योगदान दें l 
सेवाभावी सामाजिक संस्थाएँ सेवाभाव से ही कार्य कर रही हैं लेकिन सामाजिक दूरी एवं सम्पर्क का ध्यान नहीं रखेंगे तो लॉक डाउन का उद्देश्य ही फेल हो जाएगा l अतः संस्थाएँ जागरूकता अभियान चलाकर अपना अमूल्य योगदान दे सकती हैं l डिस्टेंसिंग नियम की पालना स्वयं भी करें और लोक मानस को भी प्रेरित करें l 
       जान है तो जहांन है l 
      आज एकल हो जाइये ,
       कल सोशल हो जाइएगा l 
कोरोना संकट में हमारी स्वास्थ्य सेवाएँ अतिरिक्त भार तले दबी हैं l ऊपर से मानसिक उन्मादी लोगों का दल हमारे जीवन रक्षकों पर हमले कर रहे हैं ऐसे में सामाजिक संस्थाएँ येन केन प्रकारेण ऐसे लोगों को समझाएं और समय रहते उनका तात्कालिक उपचार कराने में अपना बोधिउत्तरदायित्व निभाएँ क्योंकि मनुष्य की योनि कर्म योनि है l शेष भोग योनि ....
      कोरोना वायरस क्रिया कर रहा है l न्यूट्रन की गति के तृतीय नियम की पालना में आपको प्रतिक्रिया करनी ही होगी l सामाजिक संस्थाओं का योगदान प्रशंसनीय है लेकिन मेरी मान्यता है कि कोई भी युद्ध भय से नहीं ,धैर्य ,विश्वास ,संकल्प ,संयम ,साहस ,सावधानी ,सहयोग और रणनीति से जीते जाते हैं l 
इस कोरोना जंग me सामाजिक संस्थाएँ ही हमारे प्राणों की रक्षा करें l मानव मात्र अपना धर्म निभाकर इस लड़ाई में अपना योगदान दें l 
चलते चलते -
1. राष्ट्र रत्न माननीय प्रधामंत्री हमारे प्राणों को बचाने के लिए यज्ञ का अनुष्ठान कर रहे हैं अर्थात ह्रदय से सबके कल्याण के लिए निःस्वार्थ भाव से हाथ जोड़कर प्रार्थना की आहुति दे रहे हैं l इस यज्ञ में सकारात्मक परिणाम अवश्यसंभावी है लेकिन हम होशियार नहीं ,संस्कारी बनें , देशहित सर्वजन हिताय l लॉक डाउन में अनुशासन की पालना करके मानव कल्याण के लिए किये जा रहे अनुष्ठान में अपनी भागीदारी निभाएँ l 
2. ये कहकर मेरे दिल ने ,
      हौंसले बढ़ाये हैं l 
    ग़मों की धूप के आगे ,
       ख़ुशी के साये हैं l
- डॉ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
लॉक डाउन में सर्वाधिक योगदान सामाजिक संस्थाओं का ही रहा है । सरकारी योजनाओं को सही लोगों तक पहुँचाने का कार्य ये बाखूबी करती हैं ।  इन संस्थाओं ने न केवल जनता की मदद की वरन ये पशुधन के लिए उतने ही मनोयोग से आगे आयीं । बहुत से ऐसे लोग हैं जिनका जनधन खाता नहीं, राशनकार्ड नहीं , बृद्ध हैं उन सबको भी सुविधा मुहैया कराने का कार्य इन संस्थाओं ने किया । ऐसी संस्थाओं से ही मानवता का पोषण होता है । रेडक्रॉस इसमें सबसे अग्रणी भूमिका निभा रहा है । हम सबको भी अपनी क्षमतानुसार ऐसी संस्थाओं को आर्थिक मदद देनी चाहिए । संकट की घड़ी में जो मदद करता है वही सच्चा मानव कहलाने योग्य होता है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
भारत देश पर जब जब विपत्तियां आई है। इस देश के लोगों ने तन मन धन से उस विपत्तियों का सामना किया है। चाहे वह आज़ादी की लड़ाई हो या सन् पैंसठ का आकाल चाहे वह प्लेग, कोरोना जैसी महामारी हो या भूकंप,सुनामी जैसी प्राकृतिक आपदाएं।
आज विश्व जिस महामारी से जूझ रहा है उससे भारत भी अछूता नही है।
वसुधैव कुटुम्बकम् की भावना रखने वाला हर भारतीय विपत्ति के समय देश के साथ खड़ा रहता है।
24 मार्च को देशव्यापी ताला बंदी की घोषणा के पश्चात से सम्पूर्ण भारत की रफ्तार रुक गयी है। भारत देश में जहां धनाढ्य लोग रहते है वहाँ अत्याधिक गरीब लोग भी बसते है। कई लोग ऐसे है जो एक दिन काम न करें तो उनके घर का चूल्हा जलना मुश्किल हो जाता है।
यह एक अघोषित युद्ध है, जिसमें हमारा दुश्मन छुपा हुआ है।ऐसे कठिन समय में सरकारों के साथ कई सामाजिक संगठन भी आगे आते है। इन संगठनों ने आर्थिक रूप से तो सरकार की मदद की ही है, साथ ही जिस संगठन से जितना बन सका अपने आस पास के इलाकों में गरीबों की सहायता करी है। संगठनों ने लॉक डाउन में कोरोना से बचने के और खुद को सुरक्षित रखने के उपाय भी जन जन तक पहुँचाने का प्रयास किया है। 
मगर इस देश में लोग ज्ञान लेना कहाँ जानते है? अगर किसी व्यक्ति को सेनिटाइजेशन के फायदे बता दिए गए है और वह ऐसे दौर में सेनिटाईजेशन नही करता तो इसमें उसे बताने वाले कि नाकामी नही होगी।
सामाजिक संस्थान और सरकार की मदद के बावजूद भी कुछ लोगों की गलतियों और कही मदद देरी से पहुँचने पर स्थिति गंभीर हुई है। लेकिन हमें यह सोचना विचारना होगा कि हम कहाँ चूक कर रहे है। क्योंकि जिस देश की जनता को छोटी से छोटी बात भी समझानी पड़ती है। वहाँ घटनाक्रम में कुछ सकारात्मक के साथ नकारात्मक प्रभाव भी आएंगे।
- कमल पुरोहित " अपरिचित "
कोलकाता - पं बंगाल
संस्थानों ने लॉक डाउन में उत्पन्न होने वाली समस्या को सुलझाने में काफी मदद की है । खास कर नीचे तबके के लोगों को काम बंद हो जाने की वजह से भारी मुसीबतों का सामना करना पड़ा है । समस्या तो यहाँ तक बढ़ गई कि लोग 1000-1000 किलोमीटर की पैदल यात्रा को मजबूर हो गए। उन्हें इसका भी ख्याल न रहा कि घर पहुंच पाएंगे या नहीं । छोटे बच्चे कैसे चल पाएंगे । इन सब के बीच एक अच्छी बात हुई कि सभी को गाँव का महत्व पता चल गया। शहर मेहनत का पैसा देता है, बैठे को नहीं खिला सकता ।
मोदी जी के आह्वान पर संस्थान -सरकारी हो या गैर-सरकारी, सभी ने आगे आकर कइयों की जान बचाई। उन्हें जीने की हिम्मत दी।
 अलग-अलग लोगों ने भी तरह-तरह से मदद की। कई ने अनाज बांटे, लेकिन इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में प्रतिशत बहुत कम रहा है। यह भी भीड़ जमा होने का कारण बन गया । लोग आपस में झगड़ने लगे । कई जगहों पर तो लाठीचार्ज की नौबत आ गई। इससे बचाव कम नुकसान ज्यादा हो रहा है।
मीडिया में भी बार-बार त्रासदी से लड़ते लोगों की जानकारी देना भी सवाल खड़ा करता है कि क्या उनकी अनदेखी हो रही है? या कुछ गोरखधंधा चल रहा है ? क्यों इतना सब कुछ इतने बड़े पैमाने पर करने के बाबजूद लोग भूखे कैसे हैं? मीडिया उन तक पहुंच रहा है तो संस्थानें पीछे कैसे? 
इसके लिए सभी समाचारों के तह तक जाना जरूरी है । साथ हीं सच्चाई सामने आना भी जरूरी है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में " लॉक डाउन में सब से बड़ी सेवा गुरुद्वारों की रही है । कितनी भी बड़ी सख्या में जनता क्यों नहीं हो । सब को खाने देने की व्यवस्था की है । यह मानवता की सब से बड़ी सेवा है । बाकी सस्थाओं की सेवा में भी कोई कमी नहीं है ।
                                                           - बीजेन्द्र जैमिनी






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