क्या लॉकडाउन में हर कोई एक - दूसरे का सहयोगी बन गया है ?

कोरोना की वजह से लॉकडाउन चल रहा है । फिर भी हम सब मिलकर इस महा बिमारी से लड़ रहे हैं । ये संकट के समय एकता की मिशाल है । जो एक दूसरे के काम आ रहे हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को देखते हैं : -
लॉक डाउन के चलते एक_ दूसरे का सहयोगी बन गये है। जी हाँ इस कोरोना संक्रमण के चलते लॉक डाउन की स्थिति मे अनेक सहयोगी संस्था आगे आयी है सामाजिक धार्मिक सभी के सहयोग से गरीबी की मार झेल रहे मजदूरो को भोजन ओर जरूरत की सामग्री घर घर पहुंचा रहे हैं। हमारे देश में महामारी संकट काल जल रहा है इस संकट की घड़ी मे सबसे ज्यादा सहयोग पुलिस बल और डाक्टर्स का है जो अपनी जान की परवाह ना करते हुए देश सेवा में लगे है।
नम्‌न हैै उन वीर योद्धाओ का जिनके सहयोग से इतनी बड़ी जंग लड़ रहे हैं। और रही बात घर की तो घर मे भी सभी एक दूसरे का सहयोग कर है लॉक डाउन है सारा दिन घर पर खाली बिताना मुश्किल है तो आजकल सभी सबसे ज्यादा किचन मे सहयोग कर रहे हैं बच्चे भी लॉक डाउन के चलते पढ़ाई का बोझ कम है तो थोड़ा बहुत सहयोग कर देते है। लॉक डाउन किसी भी समान की आवश्यकता हो तो दुकानदार घर पर ही राशन साम्रगी भिजवा देते है दवाई भी घर पर आ जाती है इससे ज्यादा क्या सहयोग चाहिए धन्यवाद सरकार का जिसने इस लॉक डाउन के चलते किसी देश वासी को कोई समस्या या कमी ना आने दी
जब लॉक डाउन मे सारी जनता शहर से गाँव व अपने घरो को पलायन कर रही थी तो आम जनता ने सहयोग किया रास्ते मे गाँव वालो ने भोजन पानी की व्यवस्था की कई सामाजिक संस्थाओ ने वाहन भी लगाये उन्हे मंजिल तक पहुंचाने को ये मेरा देश है यहाँ सहयोग की भावना कूट कूट कर भरी है हर भारतीय एक दूसरे के सहयोग मे तत्पर रहता है।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आज के समय में लॉक डाउन ने सीखा दिया कि जाति धर्म के बढ़कर मानवता होती है। आज का हाहाकार देखो की बचाने वाला भी कोरोना से खुद नही बच पा रहा है। और लोग कोरोना के डर से नही बल्कि पुलिस के डंडे की वजह से घर में है। दूसरी तरफ काम धंधा बन्द होने से लोग भूखे मरने की नौबत आ गई है। लोग परेशान है। इसी बीच लोगो ने मानवता का फर्ज अदा किया गरीबो का मसीहा बनकर। लोगो को जरूरत का सामान देकर। आज लोग यह नही देख रहे कि ये कौन है, कौन सा धर्म का है। आज बस कोई सहयोग दे रहा है और कोई सहयोग ले रहा है।आज वाकई में लोग कोरोना वायरस को हराने का लक्ष्य लेकर इंसान एक दूसरे का सहयोगी बनकर मानवता का बहुत बड़ा परिचय दिया है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
आज कोरोना वायरस ने मानव की संवेदनाओं को जाग्रत कर रहा है, लोगअपने   अलावा दूसरों की मददतकर रहे है , हर कोई अपने आसपास के जरुरत मंद लोगों को खाना दे रहे है दवांईयां दे रहे है , इस कठिन दौर में सब एक दूसरे के प्रति चिंतातुर हो उठे है . जो जितना सक्षम हैमददत कर रहे.,
ग़रीबों के प्रति लोगों को नजरीयां बदला है , लोग उनके लिये चिंतित नज़र आते है , 
अखबार, टीवी, सोशल मीडिया, दोस्तों, परिजनों... सभी में इस समय कोरोना वायरस पर बात हो रही है। इससे कुछ लोगों में डर महसूस किया जा रहा है। खासकर महिलाएं और बुजुर्ग बेचैनी और घबराहट महसूस कर रहे हैं।
ऐसे में केंद्र सरकार ने एडवाइजरी जारी कर कुछ ऐसी गतिविधियां सुझाई हैं, जिन्हें करते हुए घरों में समय बिता रहे लोग खुद को व्यस्त रख सकते हैं। इस समय सबसे जरूरी है कि हम एक-दूसरे की मदद करें। दरअसल, हम मानसिक रूप से स्वस्थ रहेंगे तभी इस महामारी से जंग जीत सकेंगे।
जितने कम लोग बाहर, संक्रमण उतना कम
सबसे पहले यह जान लें कि संक्रमण को एक व्यक्ति से दूसरे में फैलने से रोकने के लिए यह लॉकडाउन किया गया है। अतिआवश्यक न हो तो खरीदारी के लिए न निकलें। जितने कम लोग बाहर निकलेंगे, संक्रमण की आशंका उतनी घटेगी।
सोशल मीडिया पर आप लोगों के ज़रूरतमंदों की मदद करने वाली कई कहानियां सुनते होंगे. आपने सुना होगा कि कोरोना के चलते किस तरह बड़े शहरों में रह रहे प्रवासी मज़दूर सैकड़ों किलोमीटर दूर अपने घरों के लिए पैदल ही चल पड़े.
कई लोग इन मज़दूरों को खाना-पानी मुहैया करा रहे हैं. मदद करने वाले धैर्य के साथ चेक पॉइंट्स पर खड़े रहते हैं.
लोग ग्रोसरी स्टोर्स पर लंबे इंतज़ार के बाद सामान ख़रीदते हैं ताकि इससे ज़रूरतमंदों को दिया जा सके.
यही नहीं हर शहर हर क़स्बे में लोग मददत को आगे आरहे है 
जिससे जितना बन पड रहा है मददत कर रहें है।?
जिदंगी के शहर में 
मौत का खौफ छाया है 
यह अमीरों से और ग़रीबों 
से एक सा करता प्यार है 
कब कहाँ हमसे लिपट जायेगा 
कुछ पता नहीं चल पायेगा 
एक ही धर्म है एक कर्म है 
घर में रहना और घरवालों को सुरक्षित करना । 
सरकार डरी हुई है । 
डाक्टर घबराये है । 
सरकार का कहना मानो 
देश का कल्याण करों 
अफ़वाहों पर ध्यान न धरो 
मूंह को ँढको , हाथ बार बार धोते रहना । 
मौत से गठबंधन तोड़ना है गर 
सब को एकांत में ध्यान धरना है 
आप की गलती हज़ारों की मौत जान 
सबको बेमौत न मार , घर में रह
 लोगों की मददत कर खुद भी बच औरों को बचा यह कर्त्तव्य निभा ,
मददत को हाथ बढा , क्रमो का खाता खोल , ऊपर की बैंक में नेकीयां जमा कर ले....
जिंदगी के शहर में 
सन्नाटा ही सन्नाटा 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
हमेशा से ही मनुष्य सामाजिक प्राणी रहा है । परस्पर सहयोग भाव से ही इतनी उन्नति हुई है । लॉक डाउन के दौरान ये भाव और तेजी जाग्रत हो रहा है क्योंकि इन दिनों अधिकांश लोग खाली हैं । उन्हें घर में रहने का भरपूर समय मिल रहा है जिसका सदुपयोग करते हुए वे स्वयं को निखार रहे हैं । साथ ही किसी न किसी रूप में   मदद करने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं । हर व्यक्ति अपनी- अपनी क्षमतानुसार एक दूसरे का सहयोग कर रहा है । कुछ नहीं तो फोन पर ही हाल- चाल पूछने से  राहत मिल जाती है ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - महाराष्ट्र
लॉकडाउन में बंधुत्व की भावना को देखने को मिला है क्योंकि इस संकट की घड़ी में सभी व्यक्ति एक-दूसरे की सहायता बिना किसी भेदभाव के कर रहे हैं। प्रत्येक व्यक्ति चाहे किसी भी माध्यम से सम्भव हो, दूसरे व्यक्ति का सहयोग करने का प्रयास कर रहा है। यद्यपि यह सहयोग भोजन, धन अथवा अन्य किसी प्रकार का हो सकता है तथापि सहयोग की भावना में निरंतर वृध्दि ही देखने को मिल रही हैं। यहाँ तक कि एक-दूसरे से नफ़रत करने वाले पड़ोसी, जिन्हें होली का त्यौहार भी मिला ना सका, इस लॉकडाउन में न सिर्फ़ आपस में वार्तालाप कर रहे हैं अपितु एक-दूसरे की मदद करने में भी पीछे नहीं हट रहे हैं। इन दिनों अनजान व्यक्ति की भी भोजनादि से भी पूर्णत मदद कर रहे हैं, प्रशासन का सहयोग भी उतना ही विश्वास से किया जा रहा है जितना कि प्रशासन को उम्मीद होती है अतः यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि लॉकडाउन में हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी बन गया है।
- विभोर अग्रवाल 
 बिजनौर - उत्तर प्रदेश
हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी बन गया है इस  लाक डाउन में,यह कहना ठीक ही है, क्योंकि इस वैश्विक संकट के समय समाज में जो स्थिति बनी ह,उसमें व्यक्ति अपनी हैसियत के अनुसार वंचित वर्ग का भरपूर सहयोग कर रहा है। अपने साथ साथ, अपने पड़ोसी,और मिलने वालों का ही ध्यान नहीं रख रहा,वरन अनजान और अजनबियों को भी भोजनादि का सहयोग किया जा रहा है। इस समय जो समाज में स्थिति बनी उसमें सहयोग भावना बढ़ना स्वाभाविक था,क्योंकि संकट के समय में मानव जीवन यथार्थ के निकट होता है।उसमें दिखावट और बनावट नहीं रहती। रहता है बस जीवन का सच। समाज में लोगों ने एक दूसरे की खाद्यान्न सामग्री से ही नहीं, धन से भी भरपूर सहायता की। यह सहायता का ही भाव है कि आपदा राहत कोष में समाज का हर व्यक्ति अपनी इच्छा के अनुसार सहायता राशि जमा करा रहा है। इस स्थिति का एक दूसरा विपरीत पहलू भी है, कुछ व्यक्ति अपने तक ही सीमित हो गये। स्वयं तक सीमित, उन्हें अपने परिवारजनों से जैसे कोई मतलब ही नहीं। संकट की इस परिस्थिति में उन पर  वक्त नहीं कि अपने अलावा किसी और की तरफ भी देख लें। लेकिन ऐसे लोग किसी को परेशान नहीं कर रहे,यह भी सहयोग ही माना जाएगा।
- डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
 यह एक मनोवैज्ञानिक सत्य है कि संकट की स्थिति में  मनुष्य ही नहीं  बल्कि पशु-पक्षी भी  एक दूसरे की मदद करने के लिए सहयोगी बन जाते हैं । लाॅक डाउन की स्थिति में सभी इस तरह की मानसिकता से गुजर रहे हैं । सभी देशवासी संक्रमण के खतरे से अपने आप को घिरा हुआ महसूस कर रहे हैं। ऐसे हालात  में सरकार की अपील,  नैतिकता के आधार और देश की संस्कृति व संस्कारों के अनुसार सभी विशेष रुप से संपन्न वर्ग, उच्च  मध्यमवर्ग,व्यापारी, वेतन भोगी ,सामाजिक संगठन आदि  सहायता करने के लिए आगे आए हैं ।इस समय  सबका उद्देश्य एक ही है कि हम इस संक्रमण के संकट की घड़ी से बाहर आ जाएं इसलिए ऐसा प्रतीत होता है लॉक डाउन में जहां पुलिस कर्मी,  स्वास्थ्य कर्मी,सरकारी अधिकारी व कर्मचारी ,सफाई कर्मी सहयोग के भाव से आगे आए हैं उसी तरह देश में अन्य सभी एक दूसरे का सहयोग करते प्रतीत हो रहे हैं ।
 - डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
दतिया  - मध्य प्रदेश 
यह यथार्थ है कि विपत्तिकाल में जिस देश, समाज के नागरिक एक-दूसरे के सहयोगी बनते हैं वही देश/समाज विपत्ति की दुश्वारियों पर विजय प्राप्त करता है। 
कोरोना वायरस की वजह से उत्पन्न लाॅकडाउन में भारतीय जिस प्रकार एक-दूसरे का सहयोग कर रहे हैं वह अत्यन्त आशाप्रद है और सकारात्मक भाव उत्पन्न करते हुए आम नागरिकों के मनोबल में वृद्धि करता है। 
क्या हमारे चिकित्साकर्मी, सुरक्षाकर्मी, स्वच्छताकर्मी, पत्रकार बन्धु एवं अन्य कोरोना योद्धा मात्र अपनी ड्यूटी कर रहे हैं? 
नहीं! 
मात्र ड्यूटी का स्वरूप ऐसा नहीं होता बल्कि वे सब ड्यूटी के अनुबन्धों से बहुत ऊपर उठकर भारतीय नागरिकों को कोरोना वायरस से बचाने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह न करके पूर्ण समर्पण की भावना से ऐसा अतुलनीय सहयोग कर रहे हैं जो सदियों तक अविस्मरणीय रहेगा।
साथ ही नगर-नगर में सामाजिक संस्थाओं एवं नागरिक सुरक्षा संगठन द्वारा अनजान गरीब नागरिकों के भोजन और रहने की व्यवस्था करना एक-दूसरे के सहयोग की भावना से ही सम्भव है। यह सहयोगी प्रवृति केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं है बल्कि अनेक नागरिक एवं सामाजिक संगठन पशु-पक्षियों के लिए भोजन-पानी की व्यवस्था कर रहे हैं। 
इस सहयोग की भावना को आम नागरिकों में भी देखा जा सकता है। स्मरण कीजिए, लाॅकडाउन में राजस्थान के एक स्कूल में क्वांरटाइन में रह रहे लोगों ने गांव वालों की आवाभगत से प्रसन्न होकर उस स्कूल में रंग-रोगन कर स्कूल की कायापलट कर दी। यह ग्रामवासियों और क्वांरटाइन में रह रहे लोगों का एक-दूसरे के प्रति सहयोग का प्रेरक उदाहरण है।
सबसे उत्साहवर्धक बात यह है कि हमारा युवा वर्ग सहयोगात्मक कार्यों में सबसे आगे है।
इस प्रकार मेरे विचार में "लाॅकडाउन में निश्चित रूप से हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी बन गया है।"
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
लॉकडाउन में हर कोई बना एक दुसरे के सहयोगी
कोरोना कोविड 19 पूरे विश्व मे महामारी का रूप ले चुका है। विश्व में 1 लाख 92 हजार लोगों की मौत हो चुकी है। 24 लाख लोग दुनिया मे करीना संक्रमित हैं। भारत मे कोरोना के अब तक 24 हजार 500 संक्रमित है, जबकि 745 लोगो की जान चली गई है। भारत मे कोरोना के मरीज बहुत ही तेजी से बढ़ रहे है। इस लॉकडॉउन में हर कोई एक दुज़रे को सहयोग कर रहा हैं। यह बात इनदिनों बिल्कुल ही सच साबित हो रही है। उदाहरण के तौर पर यदि कोई पड़ोसी बाजार सामानों की खरीदारी करने जा रहा है तो अगल बगल रहने वाले भी पैसा देकर अपनी जरूरत की सामानों को मंगवा ले रहे है। इसके साथ ही कुछ सामान घर मे नही है तो वो एक दूसरे से उधार मांग कर अपना काम चला ले रहे है भले ही बाद में उसे वापस कर दे रहे है। इसी तरह घरोँ में बने खाने के समान भी आपस मे बांटकर आनंद उठा रहे हैं। लॉकडाउन में सक्षम लोग अपने आस पास रहने वाले वैसे गरीब लोगों को कच्चा राशन सामग्री, आलू प्याज व हरी सब्जियों का वितरण कर रहे हैं। कई मुहल्लों में लोग जरूरतमंद लोगो को दिन में खिचडी व रात में पूड़ी सब्जी का पैकेट बनाकर वितरण कर रहे हैं। आस पास में कोई भूखा न रहे लोग इसका भी ध्यान दे रहे हैं। इस लॉकडाउन में लोगो मे आपसी सौहार्द व भाईचारा काफी बढ़ गया है। इस मुसीबत में हर कोइ एक दुसरे का सहारा बन रहे हैं।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
मनुष्य सदियों से एक दूसरे की मदद करता है और एक दूसरे के साथ ही रहता है वह अकेले रह नहीं सकता अरस्तु ने कहा है मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है यह बात उसने बिल्कुल सही कही है हम एक दूसरे के साथ रहते हैं अपने  पड़ोसी, मित्र सबकी मदद करते हैं। एक दूसरे के सुख दुख बांटते हैं हमारे त्यौहार भी हम एक दूसरे के साथ मिलजुल कर मनाते हैं चाहे दिवाली दशहरा होली कोई भी त्यौहार हो हम आपस में मिलजुल कर ही रहते हैं कितनी भी लड़ाई हो लेकिन अगर हमारा पड़ोसी दुखी होता है तो हम उसकी मदद को जरूर करते हैं। इसी सामाजिक भावना के कारण जब यह आपदा आई तो पुलिस और डॉक्टरों की मदद करने के लिए खाना पचाने के लिए बहुत सारे सामाजिक संगठन और हमारे युवा वर्ग उन सब का सहयोग करने लग गए क्योंकि हमें बचपन से यही सिखाया भी जाता है कि सुख में भले हम किसी से दूर रहें लेकिन दुख में हमें सब की मदद करनी चाहिए जब देश और परिवार हमारा पड़ोसी सभी सुखी रहेंगे उनके सुख में ही हमारा सुख है। हंसते खिलखिलाते लोग रौनक होते हैं। इस महामारी के आर्थिक संकट में हम सबको मिलजुल कर एक दूसरे का सहयोग करना चाहिए आस-पास बहुत सारे बुजुर्ग लोग हैं।
बीमारों को दवाई खाना राशन आदि चीजें हमारा पुलिस के लोग भी बहुत सहयोग कर रहे हैं वह बेचारे यह सहयोग भावना से ही अपनी ड्यूटी भी कर रहे हैं और जरूरतमंदों की मदद कर रहे हैं जिस तरह से वह सहायता कर सकते हैं।

हे 
प्रभु
मदद 
कर देना
रोटी के लिए
न तरसे कोई
भगवान सबको।
- प्रीति मिश्रा
 जबलपुर - मध्य प्रदेश
आज जो वक्त आया है वास्तव में व्यक्ति की पहचान का समय है या यूं कहिए कि अपने-पराये या सर्वार्थ-परमार्थ की पहचान का समय है। कुछ लोग मात्र अपनी जरूरत को समझ कर पूरा कर रहें है वहीं दूसरी और कुछ लोग उन लोगों की मदद को ही अपना लक्ष्य बनाकर उस लक्ष्य को प्राप्त करने में लगे हैं । आज का समय चाहे कठिन आया है पर एक दूसरे का सहयोग करना भी सीखा रहा है और उस सहयोग से कितना आनन्द मिलता है उसका एहसास करवा रहा है मैंने कल भी कहा था कि यह ईश्वर का कोई करिश्मा ही है  
वो कैसे ? तो गहराई से सोचिए हम हमारा घर हर वर्ष किस तरह दिपावली पर साफ करते हैं। अनावश्यक सामान , फैलती गन्दगी को‌ साफ करते हैं
तो हम सब भी तो ईश्वर का परिवार और पृथ्वी ईश्वर का घर तो अदृश्य रूप से ईश्वर अपने परिवार को‌ सहयोग, मदद, इमानदारी जैसी अच्छाइयों को सिखा भी रहा है और समझने की बुद्धि भी प्रदान कर रहा है और पृथ्वी रूपी घर में फैली बहुत सी बुराईयों रूपी गन्दगी को साफ कर रहा है तभी तो छोटे छोटे बच्चे भी अपनी पोकेट मनी तक जरूरत मन्दों को दे रहे हैं।
  अतः
  ‌‌ "माना कठिन समय है बथेरा
पर अब कि होगा नया सवेरा
याद रखेंगी  संस्कृति पिड़िया
भारत चला फिर बनने 
सोने की चिड़िया"
- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान

ये दौर बहुत रहस्यमयी सा लग रहा है। खास तौर पर सहयोग के मामले में। अब आप हमारी कॉलोनी का ही दृश्य देख लीजिये। एक टेलर मास्टर इन दिनों सब्ज़ी विक्रेता बन गया है। पुलिस से छुपते छुपाते अलसुबह कहीं से सब्ज़ी लाता है और फिर सभी का सहयोगी बनकर थोड़े ज्यादा ही मुनाफे पर लोगों को बेचता है। लोग भी खुश हैं कि उन्हें इस कठिन और बंद समय में सब्ज़ी मिल रही है। सब्ज़ी बेचने वाला खुश है कि उसे किसी तरह रोजगार मिला हुआ है। अब कोई उसको सहयोगो कह सकता है। लेकिन असल में सभी अपना अपना काम निकाल रहे हैं। अभी कल ही जब उसके यहाँ अचानक पुलिस आ धमकी तो कोई वहाँ नहीं फटका। उल्टे खुसर पुसर होने लगी। कहीं इसे कर्फ्यू के उल्लंघन में पकड़ने तो नही आई? 
खैर आज फिर वही सिलसिला चल पड़ा। ऐसा ही किस्सा एक किराना व्यापारी का है जो कॉलोनी से ही अपना व्यापार चला रहा है जबकि उसकी कॉलोनी के बाहर की दुकान से आम दिनों में कम ही लोग सामान खरीदते हैं क्योंकि अन्य बड़ी दुकाने जो विकल्प के रूप में उपलब्ध हैं। आज वही दुकान दार सबका सहयोगी बना हुआ है। असल में इस दौर का सहयोग थोड़ा बहुत दिखावटी किस्म का है। और फिर अभी लोग डर के मारे एक दूसरे से दूर दूर खड़े हैं तो वास्तविक सहयोग कहाँ दिखाई दे रहा है। हाँ पुलिस, डॉक्टर ज़रूर सहयोगी दिखाई देते है क्योंकि वो जान जोखिम में डाल कर अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। 
- मनोज पाँचाल
इंदौर - मध्यप्रदेश
जी हां, बिल्कुल! लॉक डाउन में हर कोई एक दूसरे का सहयोगी बना हुआ है। सहयोग की भावना पूरे देश मे देखने को मिल रही है, क्या शहर, क्या गाँव, हमारे देश की युवा पीढी इस कठिन समय मे आगे आकर वालंटियर्स का काम कर रही है। यही नही, घर पर रहते हुए भी हम एक दूसरे की मदद कैसे कर सकते है यह सोशल मीडिया पर दिख रहा है।लोग ट्विटर, फेसबुक, व्हाट्सएप के जरिये भी लोग एक दूसरे का हालचाल पूछ रहे हैं और साथ ही मदद करने को हाथ बढ़ा रहें हैं।जो जैसे जितनी मदद कर सकते हैं , कर रहे हैं। ये है हमारी भारतीय संस्कृति हम सहयोग और मदद करने में कभी पीछे नहीं रहते ।
अंत मे यही कहना चाहूंगी -
"युग -युग से ही कहते आये  गीता, वेद, पुराण, सहयोग भावना में ही बसते भगवान।"
- ज्योति वाजपेयी, 
अजमेर - राजस्थान
हमारी संस्कृति की यह भी एक विशेष पहचान है कि हम " वसुदैव कुटुम्बकम " के ध्येय को लेकर जीते हैं । " परहित सरस धर्म नहीं भाई, पर पीड़ा सम नहीं अधमाई। " के अनुसार पारस्परिक सौहार्द्र और सहयोग की भावना के साथ सामंजस्य बनाते हुए जीवनयापन करते हैं। 
  ' लॉक डाउन '  की स्थिति में ऐसा हम करके दिखा भी रहे हैं। हमारी इस भावना, सहयोग और एकता की विश्वभर में प्रशंसा हो रही है और मिसाल दी जा रही है।
    ' लॉक डाउन ' में प्रत्येक भारतवासी द्वारा, शासन -प्रशासन के नियमों और निर्देशों का जिस उत्साह, रुचि और लगन के साथ शुचिता ,सजगता ,दृढ़ संकल्पित होकर निर्भीकता से पालन किया जा रहा है, वह अनुपम है, ' अनेकता में एकता ' का परिचायक है। हम अपनी जिंदगी, अपने परिवार के साथ आनंदित रहते हुए तो गुजार ही रहे हैं,साथ ही साथ औरों की परेशानियों एवं दुःख-दर्द को भी समझ रहे हैं और अपनी सामर्थ्य से उन्हें दूर करने में पूरा-पूरा सहयोग भी कर रहे हैं। 
     जनहित के इस कार्य के निष्पादन में कोई आडंबर नहीं, कोई बनावट नहीं, कोई औपचारिकता नहीं बल्कि पूरी समर्पण भावना से रुचि और तल्लीनता के साथ अपनी सहभागिता , अपना नैतिक कर्तव्य निभा रहे हैं। 
     वास्तव में ऐसा ही प्रतीत हो रहा है कि '" लॉक डाउन में हर कोई एक-दूसरे  का सहयोगी बन गया है। "
   इससे हमारी राष्ट्रीय और सामाजिक भावना बलवती हुई है। जिसके अभी तो सुखद परिणाम आ ही रहे हैं, भविष्य में भी हमें सफल, सुख और समृद्ध करेंगे।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
आज हम जिस दौर से गुज़र रहे हैं, मानसिक दबाव सभी महसूस कर रहे हैं। ये वक़्त है खुद को संभालने का, और एक-दूसरे के काम आने का। 
लॉक डाउन के कारण घर के सभी सदस्य घर पर ही है। ज़ाहिर है घर का काम और सभी सदस्यों की खाने की फरमाइशों को पूरा करने का भार औरतों पर  होता है, लेकिन जब सब मिलजुल कर काम करते हैं तो यही वक्त हँसते-हँसते बीत जाता है।
आज घर के बच्चे,बूढ़े या मर्द सभी घर के काम में मदद कर रहे हैं। पड़ोस की बुजुर्ग महिला तो अपने घर के दरवाज़े के हत्थे को भी दिन में कई साफ करती नज़र आई। घर के पुरूष भी सफाई में मदद कर रहे हैं। बच्चे भी अपने कपड़े तय लगाना या इस्त्री करना, बिस्तर लगाना या घर समेटना सभी तरह के कामों में सहयोग कर रहे हैं। सुबह-सुबह घर के बुजुर्गों को पौधों को पानी देते हुए देखा जा सकता है। पतिदेव भी सिर्फ हुकुम चलाकर नहीं, चाय-पकौड़े बनाने जैसे काम बड़े मनोयोग से कर रहे हैं। सारा घर एक सूत्र में बंधा नज़र आ रहा है।
ऐसा ही कुछ हमारे मोहल्ले, सोसाइटी में भी देखने को मिल रहा है। पिछले हफ्ते पड़ोस की एक महिला की तबीयत अचानक खराब हो गई, उनके पति बहुत घबरा गए थे, हस्पताल ले जाने के लिए उनके पास अपना कोई वाहन नहीं था और न ही कोई साधन लॉक डाउन के चलते मिलने की उम्मीद थी । तब मोहल्ले के एक सज्जन ने अपनी गाड़ी  में उन्हें बिठाया और पास के एक हस्पताल में पहुँचाया। डॉक्टर ने उन्हें बताया कि अगर आने में थोड़ी-सी भी देर हो जाती तो उनका बचना मुश्किल था। 
आजकल बहुत-सी सोसाइटी से हर घर से दो पैकेट खाना लेकर, पुलिसकर्मियों की मदद से भूखे गरीब लोगों तक (जो फुटपाथ या पटरी पर रहने वाले) पहुँचाया जा रहा है।
आज पुलिस की छवि जनता के बीच बहुत अच्छी नज़र आती है। ये एक स्वस्थ समाज की नई पहल का नतीजा है कि घरों के आस पास रहने वाले जनवरो को भी लोग खाना दे रहे हैं। 
इस तरह इस मुश्किल घड़ी में घरबके भीतर ही नहीं समाज के भी सब लोग एक दूसरे के साथ खड़े नजर आ रहे हैं।
-  सीमा मोंगा
रोहिणी - दिल्ली
प्रकृति समय-समय पर हमें बहुत कुछ सिखाती है ! आज इस महामारी ने इस कथन को सत्य साबित कर दिया है ! समस्त विश्व हिल गया है ! यह भी सत्य है कि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी होने की वजह से वह समूह में मित्र ,परिवार ,और समाज के साथ रहना पसंद करता है!  वह स्वार्थी भी होता है यह कोई बुरी बात नहीं है अपनी और अपने परिवार की भलाई के लिए सभी स्वार्थी होते हैं किंतु समय आने पर संयम के साथ रहते हुए दूसरों की भी मदद करनी चाहिए !
आज लॉक डाउन में हमारे स्वार्थ में भी मदद की भावना है जो कि इस महामारी में यदि हम बाहर निकलते हैं तो दूसरों को बीमारी से ग्रसित करने में या यूं कहो संक्रमण बढ़ाने में सहभागी होते हैं!
 प्रथम तो हम घर पर रहे यही हमारा सबसे बड़ा सहयोग है !
मनुष्य में मानवता के गुण होते हैं और इसी गुण के चलते उसमे दया, करुणा ,सेवा, किसी की मदद करने की भावना, यह सभी गुण होते हैं ! आज लॉक डाउन में हमें एक दूसरे में मानवीयता के गुण स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं ! 
आज सभी की हालत एक जैसी है मानव सहम गया है ! प्रत्येक एक दूसरे की तकलीफ महसूस कर रहे हैं !  एक दूसरे की तकलीफ को दूर करने किसी न किसी रूप में आ रहे हैं कोई मजदूरों  को ,गरीबों को भोजन दे रहा है, कोई मास्क दे रहा है, कोई दवाइयां और हमारे जवान डॉक्टर, पुलिस ,सफाई कर्मचारी निःस्वार्थ जान की बाजी लगाकर 24 घंटे खड़े पैर सहयोग दे रहे हैं फिर हम स्वार्थी बन घर पर रहकर इतनी मदद तो कर सकते हैं कि औरों को संक्रमण फैला संक्रमित ना करें ! शायद आपको यह नहीं मालूम यह आपका सबसे बड़ा सहयोग है ! 
यदि हम दूसरी मदद नहीं कर सकते तो इतना तो कर ही सकते हैं हमारा यह सहयोग एक फौजी की सेवा से कम नहीं आंका जाएगा ! 
लोग सरकारी कोष में अपनी हैसियत के अनुसार राशि अनुदान कर रहे हैं ताकि सरकार पीड़ितों की पूरी मदद कर सके यह भी हमारा बहुत बड़ा सहयोग है !
आवश्यक वस्तु पर सभी नियंत्रण का पालन कर रहे हैं सबसे बड़ा सहयोग है !
लोगों को अब यह समझने लगा है स्वयं पर बीतती है तब दूसरों की तकलीफों का अहसास होता है !
इस लॉकडाउन ने लोगों की जीवनशैली बदल दी है !
इस लोक डाउन में परिवार में भी सभी पति बीवी बच्चे माता-पिता की किसी न किसी तरह से सहयोग कर रहे हैं !
 अंत में कहूंगी - लाकडाउन से कठिनाइयां तो बहुत उठानी पड़ रही है किंतु लाभ यह हुआ है कि लोगों में संयम ,धैर्य तो जागा साथ साथ भेदभाव छोड़ एक दूसरे की भावनाओं का आदर कर उनका सहयोग करना ,एक दूसरे को समझना ,सकारात्मकता के भाव जागे ,और सबसे अच्छी बात यह है कि पूरा परिवार साथ है अतः बच्चे भी परिस्थिति से कैसे जूझना ,अभी से समझ गए एवं हमारे डॉक्टर कर्मचारी पुलिस से अपने कर्तव्य की भावना को समझ उनका सम्मान करना एवं जरूरतमंदों की मदद कर सहयोग देना सीख गए !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई -महाराष्ट्र
कोरोना महामारी की भयंकर विपत्ति से छुटकारा पाने का एकमात्र विकल्प लॉक डाउन में अधिकतर लोग सरकार के आदेशों की पालना में प्राणी मात्र के लिए संकट की घड़ी में एक दूसरे के सहयोगी बने हैं। कोई आर्थिक सहयोग करके तो कोई सामाजिक दीन- दुखी हेतु संस्थाओं के माध्यम से गरीबों, असहायों, जरूरतमंदों को हरसंभव सहायता पहुंचा कर सहयोग दे रहे हैं।
  डॉक्टर, नर्स, पुलिस का सहयोग तो उनके तप- त्याग, अथक सेवा- श्रम से युक्त ईश तुल्य भगवान विष्णुस्वरूपा ही हैं।
        महान हस्तियों से लेकर हर वर्ग के लोगों ने सरकार को भी आर्थिक सहयोग किया है। हमारी भारत सरकार ने भी अन्य देशों में दवाइयों का सहयोग किया। श्रीलंका को भी कोरोना संकट में भारत से मांगी मदद के अनुसार सहयोग की तैयारी की है( 40 करोड़ डालर करेंसी बदलने की) हमारा भारत, हम भारत के लोग समस्या नहीं, समाधान का हिस्सा बनकर उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। अपने -अपने स्तर से लोग संवेदनात्मक दायित्वबोध के साथ हर स्तर पर यथासंभव सहयोग कर रहे हैं ।
   कुछ प्रतिशत लोग इसकी गंभीरता से अनभिज्ञ या जानबूझकर असहयोगी हुए हैं पर यह संकट स्वयं सबके  चक्षु खोल कर रख रहा है। अतः वह भी इस सत्य को स्वीकार करेंगे; क्योंकि भारतीय संस्कृति का सामाजिक आईना सर्वमंगल की कामना में अपनी सहयोग की कर्तव्यपूर्ति में उज्ज्वल ही दीख पड़ता है ।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
लाकडाउन में  हर कोई दूसरे का सहयोगी है यह तो मानवीय स्वभाव है चूंकि मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। सबसे। पहले अपने आप से सहयोग करना यदि स्वयं सुरक्षित है तो समाज सुरक्षित है। परोक्ष अपरोक्ष दोनों तरीकों से हर इंसान हर वक्त एक दूसरे को मदद करने को तत्पर है । कोई सेवा से, कोई अर्थ से, कोई भोजन से कोई चिकित्सा से तो कोई नियम कानून का पालन करवाकर देश समाज और परिवार की सहायता कर रहा है।
आज़ सभी की हालत एक जैसी है सभी भावनात्मक रूप से एक ही धारा में बह रहें हैं इस लाक डाउन की स्थिति में प्रकृति ने मानवीय संवेदना को परिष्कृत कर दिया है । 
- डॉ.कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
हम कह सकते हैं कि लॉक डाउन में हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी बन गया है। इस भीषण त्रासदी के हालात मे लोग पुरानी नफ़रतें भुलाकर  एक दूसरे का साथ दे रहे हैं।
 सरकार से लेकर व्यक्तिगत संस्थान के साथ-साथ हर व्यक्ति एक दूसरे के सहयोग को ही समय अपना प्रथम कर्तव्य स्वीकार कर मानव धर्म निभा रहा है, यह वाकई मानवता की मिसाल है ।सहयोग तो हर कोई कर रहा है, वह सहयोग चाहे आर्थिक हो ,शारीरिक या भावनात्मक ही सही ,कुछ  न कुछ तो जरूर साथ दे रहे हैं  सभी एक दूसरे का ।  इस समय लोगों के अंदर मानवता जाग्रत हुई है  यही मानव धर्म है सरकारी नौकरी वाले अधिकांश विभागों के लोग मुख्यमंत्री राहत कोष में धन जमा करने के लिए एक या दो दिन का वेतन कटा रहे हैं।  है एवं अन्य भी अनगिनत लोगों ने भी मुख्यमंत्री राहत कोष में पैसा जमा किया है ।कुछ लोगों के पास ज्यादा पैसा नही है फिर भी उन्होंने अपना पैसा मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा किया है ।यह मानवता की मिसाल है ।कई अभिनेता अक्षय कुमार से लेकर असलमान खान व अन्य लोग तथा बड़े-बड़े उद्योगपति जैसे टाटा व अंबानी ने करोड़ों रुपए मुख्यमंत्री राहत कोष में जमा किए हैं इस प्रकार बहुत आर्थिक सहयोग किया है ।  राजनेताओं ने भी 1 साल तक वेतन में कटौती करने का फैसला लिया है ,जो स्वागत योग्य  है ।सामाजिक संगठन  तो लोगों को दवाएं ,खाना, राशन ,सेनीटाइजर से लेकर मास्क तक बांट रहे हैं। कापी किताबें भी मुहैया करा रहे हैं ।
इन सबके साथ हीअपना कर्तव्य परायणता की अग्नि परीक्षा से गुजरते हुए हमारे मेडिकल स्टाफ, टेक्नीशियन ,डॉक्टर्स ,पुलिस कर्मी ,सफाई कर्मी भी  अपने प्राणों की बाजी लगाकर जनता के सहयोग पर डटे हुए हैं ,एवं मानवता की मिसाल पेश कर रहे हैं ।लोगों का काम  कर रहे हैं यह सहयोग नहीं तो क्या है ।
मकान मालिक गरीबों से किराया नहीं ले रहे हैं पर उन्हें अपने घरों में रखे हैं यह सहयोग है मानवता है  ।लोग अपने  घरेलू काम करने वाले सहायको को  बिना काम एडवांस पैसे देकर छूट्टी दिये हैं और काम स्वयं ही कर  रहे हैं यह सहयोग ही तो है ।
 सरकार घर बैठे लोगों को वेतन उनके खाते में पहुंचा रही है,जबकि इसकी कीमत सरकार को चुकानी पड़ेगी ।यह सहयोग नहीं तो क्या है । लॉक डाउन मे फंसे लोगों को विशेष व्यवस्था से उनके घरों तक पंहुचाना भी बड़ा भी इस समय बड़ा सहयोग  है।हर किसी का अपना सहयोग का एक तरीका है ।  इस समय जब देश भयंकर त्रासदी से गुजर रहा है ऐसे मे 
 लोगों के अंदर मानवता जागृत हुई है ,लोग वाकई  एक दूसरे की मदद को ही अपना धर्म समझ रहे हैं ,जो कि सराहनीय है ,स्वागत योग्य है ।
- सुषमा दिक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
इतिहास साक्षी है कि जब भी देश पर कोई संकट आया तो देश का हर व्यक्ति एकता के सूत्र में बँधा हुआ, देशहित में एकजुट होकर, परस्पर सहयोग से उसका सामना करता हुआ दिखा।
          लॉक डाउन की स्थिति भी ऐसी ही है। कोरोना महामारी वैश्विक संकट के रूप में हर देश के सामने आई। हर देश अपने इस संकट का सामना कर रहा है और अपनी क्षमतानुसार दूसरे देशों को भी अपना सहयोग देने में पीछे नहीं हट रहा है। हमारा देश भारत भी दूसरे देशों को भी सहयोग दे रहा है और स्वयं भी युद्ध स्तर पर इस संकट से निकलने के लिए पूरी तैयारी से तत्पर है।
           लॉक डाउन ने सबके अंदर समानता और समरसता की भावना को मजबूत किया है। मनभेद, मतभेद को मिटा कर परस्पर आवश्यकता में काम आने, सहयोग करने की भावना का विकास किया है। आज हर व्यक्ति यह सोच रहा है कि भले ही मैं प्रधानमंत्री कोष में कोई राशि जमा करा पाऊँ या न करा पाऊँ, पर अपने आसपास के किसी भी व्यक्ति को कम से कम भूखा तो नहीं ही रहने दूँगा। इसी भावना के तहत कितने ही लोग भोजन बना कर उसके पैकेट, सूखा राशन, थोड़ी-बहुत आर्थिक सहायता देने में लगे हुए हैं।लोगों का सोचने का नजरिया बदला है, घर में ही रहने के कारण जा नहीं पा रहे हैं तो फोन से ही कुशल-मंगल लेते रहते हैं।
         कोई भी बड़ा संकट बड़ी परेशानियाँ लाता है तो उसका सामना करने के लिए लोगों को मजबूत बनाने का भी काम करता है ताकि सब अपनी-अपनी तैयारी से एक-दूसरे को सहयोग देते हुए संकट से निबट सकें। इस समय भी ऐसा ही हो रहा है। यही हमारे देश की और हमारी विशेषता है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून -  उत्तराखंड
 हर परिवार गांव से जुड़ा है गांव शहर से जुड़ा है पूरा  परिवार गांव शहर देश से जुड़ा हुआ जुड़े होने का अर्थ है कि जब भी आवश्यकता पड़े या देश में समस्याएं तो ऐसी स्थिति में परिवार गांव शहर देश में रहने वाले लोगों का सहयोग करें अर्थात अस्तित्व में सहयोग की भावना बनी हुई है हर व्यक्ति अपने आप में उपयोगी है और दूसरों के लिए पूरकता के रूप में सहयोगी बनकर समाधान करने की कोशिश करते हैं हर व्यक्ति समस्या में जीना नहीं चाहता समाधान में जीता हुआ अपने को संतुष्टि करता है संतुष्टि मनुष्य का लक्ष्य है वर्तमान में कोरोनावायरस के चलते लाभ डाउन हुआ है एक तो करो ना के चलते समस्या उत्पन्न हो गई है और लाभ डाउन के चलते लोगों को आवश्यकताओं की निश्चित पूर्ति ना होने से परेशानी हो रही है। ऐसी खेती में हर व्यक्ति जो परिवार में रहता है वह परिवार में सहयोग करता है जो गांव में रहता है वह गांव में सहयोग करता है और गांव के लोग शहर के लोगों को सहयोग कर रहे हैं और एक शहर दूसरे शहर एवं पूरे देश में सहयोग की भावना उमड़ पड़ी है यह मनुष्य की प्रवृत्ति है अगर ठीक रहता है मनुष्य का मानसिकता तो एक दूसरे का सहयोग करें या ना करें सुख के समय यह पता नहीं चलता है लेकिन विपत्ति के समय दुश्मन भी अपने दुश्मन का मन में सहयोग करने की भावना बने ही रहती है अतः हर मनुष्य में प्रकृति प्रदत्त सहयोग की भावना बनी रहती है और यह भावना विपत्ति के समय कार्य व्यवहार के रूप में देखने को मिलता है हर व्यक्ति एक दूसरे का सहयोग करके खुशी-खुशी जीने का चाहत रखता है लेकिन अज्ञानता के कारण कहीं  कहीं मनुष्य में सहयोग की भावना नहीं दिखती है ऐसे मनुष्य मैं मनुष्यता का मूड नहीं होता है ऐसे मनुष्य स्वार्थी कहलाते हैं परमार्थी व्यक्ति में हमेशा सहयोग की भावना बनी रहती है वह अपने सहयोग करके ही अपनी उपयोगिता को प्रमाणित करता है इसी तरह अभी पूरे विश्व में हर व्यक्ति एक दूसरे का सहयोग कर रहे हैं कोई मन से कर रहा है तो कोई धन से कर रहा है तो कोई तन से कर रहा है लेकिन कुछ ना कुछ रूप में सहयोग जरूर कर रहा है यही मनुष्य की मान्यता प्रवृत्ति है वर्तमान में लाभ हानि के चलते हर कोई एक-दूसरे का सहयोगी  बना हुआ है या बन गया है यह हमारे मानव जाति के लिए एक सुखद घटना है जो हम एक दूसरे को अपना तो मान करके सहयोग कर रहे हैं यही मनुष्य का मूल्य को प्रमाणित करता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लाॅक डाउन में जिन पड़ोसियों को हम कभी-कभी ही देख पाते थे, या उनसे कभी-कभी ही मिलना होता था।वो अब शाम को छत पर एक दूसरे को देखकर मुस्कुराते है। हाल - चाल पूछते है। अपने-अपने बच्चों की चिंता करते है, जो दूसरे शहरों में रह रहे है। एक दूसरे के घर उठना बैठना नहीं हो रहा है। पर बालकनी में और छत पर एक दूसरे को देखकर सूकून का आभास हो रहा है। जो कुछ दिन पहले तक यह सब नसीब नहीं था। सभी अपनी-अपनी दुनिया में मस्त रहते थे। जहाँ तक सहयोग की बात है सभी कामवाली का पैसा नहीं काट रहे है, जो काम करने नहीं आ रही है। उनके बच्चे के लिए कपड़े और खाने का सामान भेज रहे हैं। जो सामाजिक संस्थानों से जुड़े है। वे बढ़ - चढ़ कर इस काम में लगे है कि हर भूखे के पास खाना पहुँच सके। इतना सब करने के बाद भी कुछ न कुछ छूट रहा है। लोगों के व्यवहार में भी एक ठहराव सा आया है। लोगों की भागती दौड़ती जिंदगी ठहर सी गयी है, जो उन्हें भी राहत पहुँचा रही है। अब तो भगवान से यही प्रार्थना है कि सब कुछ सामान्य हो जाए। लोगों में जो नई भावना का संचार हुआ है। वह बरकरार रहे।
              -  कल्याणी झा
             राँची - झारखंड
सर्वे भवन्तु सुखिनः ,सर्वे सन्तु निरामयः l 
सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित दुखःभगभवेत ll 
यह भावनाएं हमारी भारतीय संस्कृति की अमूल्य धरोहर है l विश्व गुरु की उपाधि से अलंकृत भारत देश में व्यक्तिगत व सामाजिक संधर्भो me जीवन के शाश्वत मूल्यों को समय समय पर विश्व के सामने प्रस्तुत किया लेकिन आज लॉक डाउन में कोरोना वैश्विक संकट के रूप में उभर रहा है l इस महामारी में गरीब और मजदूर वर्ग पर घोर संकट है ऐसी स्थिति में अपनी चिंता किये बगैर ,आवश्यकतानुसार यथा शक्ति हर सम्भव उपाय से मदद करना  ही वीरों का धर्म है l ऐसी सीख उसनेप्रकृति से प्रेरणा लेकरऔर  नित मानवीय धर्म की पालना कर रहा है नीतिकारों ने कहा है -
"परोपकाराय संता विभूतयः "
ऐसी व्यवस्थाएं जो भूखे को रोटी प्यासे को पानी और दवा इत्यादि की व्यवस्थाएं कर रहा है इस लॉक डाउन में वंदनीय है l भारतीय संस्कृति में धर्म पूर्वक अर्थ कमाने की वास्तविक व्याख्या यही है कि किसी को दुःखी -पीड़ित एवं शोषित करके धन न कमाओ बल्कि उससे सभी का असमर्थों और प्रतिदिन रोजी रोटी कमाने वालों का उत्थान सम्भव हों सकें l लॉक डाउन में सभी समर्थ कार्मिक ,डॉक्टर ,कितनी ही संस्थाएं एक साथ सहयोग की भावना से अपनी चिंता छोड़ ,जग चिंता में हाथ बँटा रहे है l मन भेद ,जाति भेद को भूलकर हर कोई एक दूसरे का सहयोगी बन गया है l माताएं ,बच्चे उनके पिता जिनका त्याग भुलाये नहीं भूला जा सकता l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान

" मेरी दृष्टि में "  लोगों द्वारा लॉकडाउन में प्रवासी मजदूरों की बहुत सेवा हो  रही हैं । सरकार के भरोसे नहीं थे लोग । अपनी जेब से या संस्थाओं से मजदूरों की सेवा कर रहे है । ये बहुत बड़ा सहयोग है एक - दूसरे के लिए ...।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी         
 सम्मान पत्र 









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