लॉक डाउन के चलते आपके बच्चें कैसे समय बिता रहें हैं ?
लॉक डाउन के चलते सबसे अधिक प्रभावित बच्चें हो रहे हैं । अभिभावक के लिए समस्या कोई छोटी नहीं है । बच्चों को नियत्रंण करने के लिए तरह - तरह के प्रलोभन देने पड़ रहें हैं । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -
लॉक डाउन के समय बच्चे साथ रहते तो सोने पर सुहागा होता, बेटा लॉक डाउन के चलते नोएडा से आ नहीं पाया और बेटी ससुराल में। तो ले दे कर घर में हम दो।
फोन से हम दोनों बच्चों से लगभग रोज ही बात करते हैं और एक-दूसरे की गतिविधियों से परिचित रहते हुए पास भी बने रहते हैं। बेटा घर से ही अपना काम कर रहा है। यू ट्यूब से देख कर कुछ नयी डिशेज बनाता है, अपने घर की सफाई स्वयं करता है, व्यायाम करता है। बेटी घर पर अॉनलाइन क्लॉस लेती है, ग्लास पेंटिंग, पॉट पेंटिंग कर रही है।
फोन पर हम अपने किए जा रहे कामों को बता कर और एक-दूसरे को नया करने के सुझाव देते हैं। करके फिर बताते हैं। इस तरह अपनी रुचि के कामों को , जिन्हें वे और हम भी नहीं कर पा रहे थे, अब कर रहे हैं।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
देहरादून - उत्तराखंड
लॉक डाउन के चलते हमारे बच्चे बढ़िया खुशी खुशी समय बिता रहे हैं बहुत दिनों के बाद बच्चों को पूरे परिवार के साथ हराने का मौका मिला है गांव से हैं गांव मैं सभी का काम बच्चे से लेकर बूढ़े तक जाता है हमारे बच्चे सुबह दादा जी के साथ बाड़ी जाते हैं बाड़ी में खीरा ककड़ी तोड़ते हैं सब्जियां सोते हैं और घूमते फिरते 8:00 बजे तक आते हैं आने के बाद में उनको नाश्ता दिया जाता है नाश्ता करने के बाद में थोड़ा आपस में सब बच्चे बैठकर अपने अपने पसंद के अनुसार बातें करते हैं 10:00 बजे थोड़ा बहुत टीवी देखते हैं और अभी मूंगफली उड़ान का चौड़ाई हो रहा है इतने बच्चे यथाशक्ति भागीदारी निर्वहन करते हैं हमारे पोते एक एवं दो पोतिया है होता क्लास वन में होती क्लास लाइफ में और छोटी पोती के जी 1 मैं पढ़ रहे हैं। टीवी देख कर कुछ खेलते हैं कि गांव के खेल ,नदी पहाड , रेस टीप ,चुटकुला,जनुला, रोज कुछ ना कुछ बदल कर खेलते हैं आम कच्चा आम तोड़कर खाना बेल का शरबत बनाना पलाश का शरबत बनाना बच्चे अपने से मम्मी लोगों से पूछ कर खेलते खेलते बनाकर पी लेते हैं उनको बड़ा मजा आता है कभी गुड्डा गुड्डी रोज दिन कुछ न कुछ नया नया खेल खेलते रहते हैं माने की बात दो-तीन घंटा लेखन का काम पढ़ाई का काम होता है उसके बाद ना हां टीवी देखते हैं कैरम खेलते हैं। अपने अपने दोस्त सहेलियों से कुछ ना कुछ काम करते हैं गमलों में पानी देना और जो घर के लोग काम करते हैं उसमें सहयोग देना कबूतरों को चावल एवं पानी देना गाय के नाद में चारा डालना जो जो काम घर के लोग करते हैं उनको भागीदारी करने से अच्छा लगता है शाम को तलाव जाना घूमने के लिए दादा के साथ तो कभी दादी के साथ शाम को भी गाड़ी जाने के लिए जिद करते हैं बालकनी में जाकर दूर-दूर तक गांव की दृश्य को देखते हैं और उसके बारे में चर्चा करते हैं इस तरह से बच्चे खेलना हो रहा है खाना हो रहा है घर के कामों में भागीदारी भी हो रही है साथ साथ पढ़ाई भी हो रहा है और सब भाई बहन एक साथ बैठकर अपने अपने जानकारी के अनुसार बातें करते हैं कभी-कभी धमाचौकड़ी और लड़ते भी हैं किस तरह से बच्चों का जो अभिव्यक्त हो रहा है बड़ा अच्छा लगता है इस तरह से हमारे बच्चे रात में दादा दादी से कहानी लोरी आदि सुनते हैं और वह भी अपने स्कूल का गीत सुनाते हैं किस तरह से हमारे बच्चों का दिनचर्या खुशी खुशी बीत रहा है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लॉक डाउन में बच्चे और माता-पिता को एक दूसरे के साथ समय व्यतीत करने का बहुत ही अच्छा मौका मिला है !
आजकल हमसे ज्यादा व्यस्त बच्चे रहते हैं !उनकी व्यस्तता इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि उन्हें स्वयं खेलने की इच्छा होती है अथवा घर में बैठ टीवी देखना चाहता है किंतु व्यस्त होने की वजह से नहीं कर पाता ! कॉन्पिटिशन इतनी बढ़ गई है कि पढ़ाई के अलावा अन्य क्षेत्र में जैसे डांस ,संगीत ,ड्रॉइंग ,ट्यूशन ,हैंड राइटिंग जाने कौन-कौन सी क्लास करते हैं स्कूल से आते ही क्लासेस की टाइम होते हैं स्कूल का होमवर्क ,ट्यूशन क्लास के होम वर्क आदि आदि 7 -8 ऐसे ही बज जाते हैं ! बच्चा थोड़ी देर टीवी ,मोबाइल लेकर बैठता है और थक कर सो जाता है सुबह स्कूल जाना है ! पूरा सप्ताह ऐसे ही बीत जाता है ,ना माता-पिता को बच्चों को लाड लड़ाने का समय है और ना बच्चों को !
लॉक डाउन में बच्चों के साथ माता-पिता भी उनका सामीप्य मिलने से खुश हैं ! तरह-तरह के उनकी पसंद के व्यंजन बनते हैं लूडो, कैरम अन्य नाना प्रकार के खेल खेलकर दोनों एक दूसरे से खुश हैं !
टीवी में महाभारत, रामलीला साथ देखते हैं ! बच्चे हमारी भारतीय संस्कृति ,संस्कार क्या है जान पाते हैं ! प्रश्न पूछने पर माता-पिता बताते हैं !
पिता अपने पुराने अनुभव को दोहराते हैं और बच्चों के साथ आनंद लेते हैं !
वैसे ऑनलाइन क्लासेस भी शुरू हो गई है तो चार-पांच घंटे उसी में जाते हैं ! थोड़े बड़े बच्चे मोबाइल खेलना पसंद करते हैं किंतु ध्यान देना है कि किसी भी गैजेट का वह एडिक्ट ना हो जाए, एक दो घंटा ठीक है !
क्राफ्ट ,पेंटिंग ,संगीत, जो भी सीखते हैं अथवा उनकी हॉबी है करने दें !
अंत में कहूंगी बच्चे तो फूल हैं आपको उनका पूर्ण ख्याल रखना है और उनकी मासूमियत को यूं ही खिलखिलाने में उनकी मदद करें ! लॉकडाउन से बच्चों ने भी बहुत कुछ सीखा है ! इसका अनुभव सदा जीवन में रहेगा कि हमें समय का उपयोग और समय से समझौता कैसे करना चाहिए !
वैसे 24 घंटे बच्चों को संभालना खेल नहीं हैं
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन के चलते छुट्टियों इजहार बाल मन में आनंद का संचार कर जाता है l लेकिन जब उन्हें ज्ञात होता है कि वह दोस्तों के साथ खेल नहीं सकते तब उनका दिल मायूस हो उठता है l तब उन्हें प्यार से समझाया जाता है कि यह किस प्रकार छूत की बीमारी है और हमें किस प्रकार अपने स्वास्थ्य और स्वच्छता काध्यान रखना है l उनकी समझ में आ जाता है l जब प्रातः अपने घर के बगीचे में जल्दी उठकर बालमन जाता है चिहुँक उठता है ,माँ ..माँ देखो ,चिड़िया ,तोता ,गिलहरी कैसे खेल रहे हैं l माँ क्यारी में कितने सुंदर फूल खिले हैं अहा !आज तो मज़ा आ गया l ठंडी ठंडी हवा चल रही है l माँ ,मेरा दूध तो आप यहीं ला दो ,मै इनके साथ ही बातें करूंगा l कितना अच्छा लग रहा है l तब दूध बनाकर मैंने कविता के माध्यम से बताया -
एक चिड़िया के बच्चे चार
घर से निकले पँख पसार
पूरब से पशिचम को आये
उत्तर से फिर दक्खिन धाए
देख लिया हमनें जग सारा
अपना घर है सबसे प्यारा
और खिलखिलाकर हँस पड़े l इस प्रकार वे खेल ही खेल में परिवार ,घर का महत्त्व जान गये l चिड़ियों को दाना चुग्गाडालना परिंडे में पानी भरना ,छोटे छोटे चिड़ियों के घर जिसमें छोटे छोटे चिड़ियों के बच्चें,चिड़िया का बार बार आना जाना उन्हें सुखद लगता l पौधों में पानी देना तो उनका जैसे उनका रोज का काम हो गया l
9A.M.पर रामायण सीरियल देखने तुरंत दौड़ कर आ जाते l तब उन्हें बताया इस धरती पर जो भी इंसान पैदा होता है उसका एक धर्म होता है l धर्म नाम धारण या विचार के निश्चय का है l कोई इसे मज़हब कहता है और कोई रिलीजन l
जो इंसान अपने ज्ञान से दुनियाँ को सही रास्ता दिखाता है ,अँधेरे से उजाले की ओर ले जाता है ,वह महान है और यह दुनिया उसे ही भगवान मानती है l नहा धो कर बच्चें घर के मंदिर में प्रार्थना करते हैं -
नन्हें मुन्ने बच्चों चलो आओ चले
प्यारे प्रभु से हम बातें करें
अच्छी अच्छी चीजें वो देता हमें
मम्मी पापा भाई बहिन
मिल के चले ......
ततपश्चात कोई इनडोर गेम खेलता है ,कोई कहानी पढ़ता है l भोजन के समय सभी एक साथ बैठ भोजन करते है l भोजन के बाद रचनात्मक कार्य कागज़ ,रंग ब्रश ,पेन्सिल से तरह तरह की चित्रकारी करते है तो कभी पहेलियाँ ,अंत्याक्षरी खेलते नज़र आते है l कभीकभी घर के कार्यो में भी हाथ बंटाते है ,तब उन्हें शाबासी दी जाती है वह इतने खुश होते है जैसे मानो उन्हें बहुत बड़ा पारितोषिक मिल गया हो l काम करने की होड़ लग जाती है l दादी माँ उनकी इन गतिविधियों को देख मुस्कराती है ,कहती है -
नन्हीं चींटी जब दाना लेकर चलती है
चढ़ती दीवार पर सौ बार फिसलती है ....
बच्चों ,अच्छा अच्छा सोचा करो
मीठा मीठा बोला करो
मिलजुल कर साथ रहो
नया हमेशा करते रहो l
कभी कभी मै भी उनसे पत्र या किसी भी विषय पर उनसे लिखने के लिए अथवा मौखिक अभ्व्यक्ति हेतु प्रेरित करतीहूं l तुम्हें बड़े होकर क्या बनना है तो लॉक डाउन की चर्चा तो सुनते ही है ,न्यूज भी देख लेते है ,कहते है -हम भी डॉक्टर बनेंगे ,सेवा करेंगे l बच्चों इसके लिए बहुत पढ़ना पड़ता है l वह देखो ,पंछी आसमां छूने जा रहा है तुम्हें भी अपना सपना पूरा करना है कड़ी मेहनत से l शाम के समय फिर वहीं अपने बगीचे में झूला झूलना ,घास में लोट लगाना और फिर संध्या वंदन करना l रात्रि को दादी माँ से छोटी छोटी रोचक ,उनकी मातृभाषा में मनोरंजक कहानियां जो जीवन को पवित्र बनाने की प्रेरणा देती हैं ,सुनते है फिर उनके अजीबो गरीब प्रश्न उनके उत्तर और दादी माँ की हंसी ठिठोली l
अहा !बाल्य जीवन भी क्या
न कोई चिंता ,न कोई फिकर
बस मौज और मस्ती l
चलते चलते -
हम भी अगर बच्चे होते
नाम हमारा होता अब्लू ,डब्लू
खाने को मिलते लड्डू ..
- डॉ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
लॉक डाउन में बच्चों का समय सबसे अच्छा बीत रहा है। मगर अब इन्हें भी स्कूल की याद आ रही है। क्योंकि घर मे रहकर बोरियत महसूस कर रहे है। हालांकि खाली समय मे बहुत कुछ सीख भी रहे है। किताबी ज्ञान के अलावा, धार्मिक ज्ञान भी माता पिता के द्वारा प्राप्त कर रहे है। तरह तरह के खेल घर के अन्दर ही खेल रहे है। साँप सीढ़ी, लूडो, गिल्ली डण्डा, और अन्य खेलों का आनंद उठा रहे है। साथ ही दादा, दादी के पौराणिक कहानी, कथाओ को भी सुन रहे है। और परिवार के हर सदस्यों भी अपने साथ खेलने की जिद कर रहे है। अपने हिसाब से खाने की फरमाइश भी कर रहे है। और दिनभर पूरे घर मे इधर से उधर दौड़ रहे है। मतलब लॉक डाउन में बच्चों का समय खाने, खेलने और पढ़ाई में अच्छा बीत रहा है।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
कोरोना संक्रमण महामारी में लॉकडाउन में केन्द्र सरकार के आदेश पर देशभर के स्कूल कॉलेज बंद है। बच्चों को घरों में ही कैद रहना पड़ रहा है। लेकिन उन्हें कोई फिक्र नही है। न तो स्कूल जाने की चिंता और न ही टयूशन का झंझट। स्कूल की ओर से ऑनलाइन पढ़ाई हो रही है।
अब रही बच्चों को घर पर समय बिताने की तो वे मोबाईल और टीवी देखने मे बिता रहे है। मोबाईल में बच्चे कार्टून अधिक देख रहे हैं। उनका पसंदीदा कार्टून में मोटू पतलू, छोटा भीम, स्पाईडरमैन, डोरी मॉम, टॉम एंड जरी, जुगनू की पूछ, फुकरे है। इसके अलावे मोबाईल पर गेम में लूडो, पब्जी, फ्री फायर, कैडी क्र्स, कार रेसिंग का आनंद उठा रहे हैं। वही बड़े बच्चे मोबाईल पर टिक टॉक देखने के साथ साथ उसे बना भी रहे है। साथ ही कैरमबोर्ड भी खेल रहे है। कुछ बच्चे चित्रकला पर ध्यान दे रहे हैं।
घर पर बच्चे खाने में चोकस, मैगी, चॉमिंग, अंडा रोल खाकर मजा ले रहे हैं। इसके वाबजूद बच्चों में उनकी पढ़ाई की भी चिंता सता रही है। उन्हें डर है कि स्कूल बंद होने व पढ़ाई न होने पर उनका परीक्षा में रिजल्ट खराब न हो जाय।
- अंकिता सिन्हा कवयित्री
जमशेदपुर - झारखंड
सबसे मुश्किल काम है बच्चो को सँभाल पाना।
बच्चे रोज रोज एक कार्य करके बोर हो जाते है मैने अपने बच्चो की प्रतिभा को देखते हुए उन्हे उसी कार्य की प्रेरणा दी मेरे बड़े बेटे को पेटिंग का शौक है लॉक डाउन के चलते वह अपनी कला को निखार रहा है तरह तरह की चित्रकारी वॉल पेटिंग के माध्यम से बना रहा है। छोटा बेटा तबले मे प्रभाकर कर रहा है स्कूल के चलते ज्यादा प्रैक्टिस नही कर पाते वह तबले की प्रैक्टिस करता हैै फिर कुछ समय । लूड़ो कैरम बोर्ड मोबाइल पर ऑन लाइन गेम भी खेलते हैै जिससे आई क्यू लेबल बढ़ता है। घर के कार्यो में मेरा हाथ बंटाते है। जब मै लेखन कार्य करती हुँ तब वह भी अपनी पढ़ाई करते है आज कल ऑनलाइन क्लास चल रही है कुछ समय तो क्लास में बित जाता है। शाम को सब छत पर जाते है थोड़ा खेलते है लॉक डाउन में बच्चों ने नया काम किया छत पर मिट्टी डालकर तोरी लौकी गोभी के बीज बोये है शाम को उनकी देखरेख पानी पौधो में पानी डालते है बच्चो को काफी समय मिल रहा है हर क्षेत्र में कार्य को समझने का सब मिलकर समाचार देखते है देश विदेश मे घट रही घटनाओं के बारे में जानकारी मिलती है आजकल रामायण चल रही है बच्चे शौक से देखते है उसके बात फिल्म देखते है इसी तरह दिनचर्या समाप्त हो जाती है । लॉक डाउन के चलते बच्चों को परिवार के साथ रहने का ज्यादा से ज्यादा समय मिल रहा हैै एक दूसरे को आपस में समझ पा रहे है आपसी प्रेम भाईचारा बढ़ रहा हैै बच्चे घर में रहकर सभी नियमो का पालन कर रहे है।
- नीमा शर्मा हंसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
वैश्विक महामारी कोरोना ने आज जहां पूरे विश्व में त्राहि-त्राहि मचा रखी है, वहीं भारत के प्रधानमंत्री द्वारा लागू किए गए लॉक डाउन का पालन भी सहर्ष भारतीय जनता द्वारा किया जा रहा है। जिसके कारण अन्य देशों की तुलना में आज भारत जैसी विशाल जनसंख्या वाला देश कोरोना की चपेट में आंशिक रूप से ही आया है।
आज घरों में कामकाजी माता पिता भी अपने अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत कर रहे हैं।अब बच्चों के पास यह कहने का मौका नहीं है कि उनके माता-पिता के पास उनके लिए समय नहीं है और न ही अब माता-पिता को यह शिकायत है कि उनका बच्चा उनकी बात नहीं सुनता है।यह वह सुनहरा अवसर है जिसमें माता-पिता को भी चाहिए कि वे अपने बच्चों को समझें और उनका मनोबल बढ़ाएं। ऐसी विषम परिस्थितियों में घर के अंदर कैद होना बच्चों के लिए एक सजा जैसा ही है,परंतु जिस जिम्मेदारी से घर के बड़े बुजुर्ग लॉक डाउन का पालन कर रहे हैं बिल्कुल उसी प्रकार बच्चे भी इसमें अपना पूर्णतः सहयोग दे रहे हैं। जिन घरों में बहुत छोटे बच्चे हैं, वहां माता-पिता उनके साथ खेलकूद में समय व्यतीत कर रहे हैं, बच्चों को कहानियां सुनाते हैं तो कहीं उन्हें छोटी-छोटी गतिविधियों में शामिल करते हैं। वही बड़े बच्चे ऑनलाइन पढ़ाई तथा कंप्यूटर जैसे यंत्रों के साथ अपना समय व्यतीत कर रहे हैं, बच्चों के पास जो पाठ्यक्रम से भिन्न अतिरिक्त पुस्तकें है उन्हें पढ़कर वे उनका पूरा पूरा लाभ उठा रहे हैं, साथ ही साथ वे अपने माता-पिता के साथ घरेलू कार्यों में भी सहायता कर रहे हैं।
सचमुच यह समय बच्चों और बड़ों सभी के लिए मिलजुलकर परस्पर प्रेम के साथ व्यतीत करने का सुनहरा अवसर है।
- डॉ.विभा जोशी (विभूति)
दिल्ली
जब से लाकडाउन शुरू हुआ है तभी से मैं परिवार के साथ घर पर ही हूँ।इन वक़्त सबसे बड़ी समस्या बच्चो के साथ है, की वो आखिर कब तक स्वयं को कैद रखें,कब तक अपनी ऊर्जा को रोक कर रखें।इस समय उनके मनोभाव को समझना बहुत आवश्यक है।मैं एक कवि होने के साथ साथ एक शिक्षक भी हूँ, तो मैंने अपने बच्चों को एक नई गतिविधि से जोड़ दिया है।इसमें उन्हें रोज एक कविता की सरल पंक्ति देता हूँ और उसमें उनके द्वारा नई पंक्ति जोड़ने को कहता हूं।विश्वास कीजिये उन्हें यह इतना पसंद आया कि अब वो इसमे पूरी तरह डूब गए हैं, और उनकी नन्हीं रचनात्मक सोच मुझे भी हतप्रभ कर रही है।अपने स्कूल द्वारा कराई जा रही ऑनलाइन पढ़ाई में तो व्यस्त हो ही रहे हैं,इसके साथ ही साथ प्रतिदिन रामायण देखकर उसकी समाप्ति के पश्चात उससे सम्बंधित प्रश्नों के उत्तर भी बडी ऊर्जा से देते हैं,जो मैं उनसे पूछता हूँ।इसके अतिरिक्त उनके द्वारा क्राफ्ट वर्क भी किया जा है।जिसमे वो बहुत रूचि ले हैं।आशा करता हूँ आप सभी इसी प्रकार विभिन्न क्रियाकलापों के माध्यम से अपने अपने बच्चों के साथ समय बिता रहे होंगे।
घर पर रहें,सुरक्षित रहें।
- कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आ रहा है बच्चों को मज़ा रामायण व महाभारत व अच्छी फ़िल्में देख रहे है !
न स्कूल की मस्ती ना कोचिंग,
न होम वर्क ख़त्म करने का टेंशन
ना दोस्तों से मिलना, ना ही बाहर जाकर खेलना, घरों में हैं मम्मी पापा तो पढ़ाई के संग संग घर ही है मस्ती का ठिकाना... लॉकडाउन के चलते बच्चे स्ट्रीट फूड, रोडसाइड मंचिंग और बर्गर पिज़्ज़ा से दूर हैं और घर पर ही रह रहे हैं। ऐसे में बच्चे घर में उदास ना हो इसके लिए अभिभावकों ने अपनी कमर को कस लिया है वह बच्चों संग खुद बच्चा बन उनको नए-नए रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रख रहे हैं तो वहीं उनके पसंदीदा पकवानों को घर पर ही तैयार कर उनके संग लुत्फ उठा रहे हैं।
शहरों के घरों में बच्चे ड्रवाइंग, पेंटिंग, सिंगिंग, डांसिंग, बेकिंग कर अपने दिन को सार्थक बना रहे हैं। फिर भी इन दिनों घर में बच्चों को रोकना एक मुश्किल काम है। माल सिनेमाघर और पार्क बंद होने से बच्चे कहीं जा नहीं पा रहे हैं जिस कारण न ही साइकिलिंग कर पा रहे हैं और ना ही आउटडोर गेम्स खेल पा रहे हैं ऐसे में उन को रिझाने के लिए हम लोग को आम दिनों की अपेक्षा ज्यादा मेहनत करनी पड़ रही है।
लोग लॉकडाउन -के कारण अपने घर में ही गार्नड , बना खेल खिलाना पड़ रहा है इस वक्त परेशानी छोटे बच्चों की है जो कोरोना की खबर टीवी और अपने बड़ों के जरिए सुनते तो हैं लेकिन उसके भयावह तस्वीर को समझ नहीं पा रहे. हालांकि इस वक्त बच्चों को भी घर पर माता-पिता के साथ पूरा वक्त बिताने को मिल रहा है.
हमने टाइम टेबल बना दिया है बच्चों का सुबह उठ कर अपनी रुम साफ़ करें फिर घर में फुटबाल की प्रैक्टिस कर नहाना फिर दादू के साथ बैठ कर होम वर्क फिर कैरम , लूडो आदि खेलना , दोपहर तीन बजे के बाद
टीवी देखना शाम को फिर मेरे साथ खेलना , बेटा ंउनके साथ खेलता है , ड्राइंग करना कभी डांस , अपने सांथ काम में लगा लेना ,
हँसते हँसते काम करवाना
समय कट ही रहा है !
बच्चे कभी-कभी बहुत परेशान करते है तब कहानी सुना कर उनका मन शांत करने का काम करती हूँ ।
पर सारा दिन छोटे बच्चों को सम्भालना व समझाना उनके अजीबो गरीब प्रश्नों के उत्तर देना कभी कभी भारी पड़ता है
आज के बच्चे हमारे से कहीं आगे है ....
तब यू। बच्चों के संग खेलती हूँ
पानी ऊपर नाव रेस.....
डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
आओ चून्नु , आओ मुन्नु , आओ देखो ,
कागज की ये नाव रे !
पानी बरसा तनमन हर्षा
खुशियों का इन्द्रधनुष खिला
तट के उस पार लिये चला
सुंदर सपनों का संसार रे
कागज़ की ये नाव रे !
तूफानों से ना ये घबराये
लहरों पर इतराती जाये
बिना मोल की विहार करायें
देखो कैसी इसकी शान रे
कागज़ की ये नाव रे !
गीत मेरे सुर तुम्हारे
आओ सब मिल-जुलकर गायें
भोला बचपन लौट आये
नाचो देकर ताल रे !
डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
आओ चून्नु आओ मुन्नू आओ आओ देखो पानी ऊपर काग़ज़ की नाव रे
हम सब मिल कर खेले
संघर्षो में जीना सिखे
एक दुसरे का सहारा बने
तुफानो से न घबराये
मंज़िल पर रखे नज़र
डगमग डोले डगमग डोले
पानी ऊपर नाव रे
डॉ अलका पाण्डेय
इस तरह की कुछ बाल गीत लिखे हैं वो सुनाती हूँ समय कट रहा है , बचा है वह भी कट ही जायेगा !
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
बच्चे अपने परिवार को चौबीसों घंटे नजदीक पाकर आनंदित हैं। कोरोना आपदा और लॉकडाउन को भी अपनी उम्र के अनुसार समझ भी रहे हैं। घर के अंदर रहते हुए मन चाहा काम कर रहे हैं। खेलकूद रहे हैं। कोई जिद नहीं, कोई खाने की फरमाइश नहीं। आपस में लड़ना-झगड़ना भी नहीं कर रहे हैं। इतने शांत, प्रसन्न और आज्ञाकारी बच्चों को पहले कभी नहीं देखा। वे बाहरी परिस्थितियों को समझ रहे हैं और अपने परिवार के सदस्यों के साथ सहयोग करते हुए आनंद के पलों में डूबे रहना चाहते हैं। होम सर्विस से आर्डर कर कुछ खाने-पीने की चीजें कभी आइसक्रीम, कभी तरबूज,कभी कोई पेय मंगा लेते हैं और मिलकर एक साथ खा रहे हैं। ऐसा अवसर, ऐसा दृश्य ऐसा,वातावरण और ऐसा संघर्ष भी पहले कभी नहीं देखा। बच्चे हों या बुजुर्ग, सभी को बहुत सीखने मिल रहा है।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
संकट में वायरस की रोकथाम नहीं होने से 21 दिन से बढ़कर 40 दिन तक का हो गया । यानी 3 मई 2020 तक की केंद्र सरकार ने घोषणा की है। अगर कोराना का संकट खत्म नहीं हुआ तो फिर से लाकडाउन बढ़ सकता है ।
ऐसे में सोशल डिस्टेंसिंग के लिए लोग घर में कैद है ।
ऐसे में परिवार अपने बच्चों को उनकी रुचियों के अनुसार क्राफ्ट , कुकिंग , सिलाई आदि सिखाएँ ।
मेरी दो डाक्टर बेटियाँ शादीशुदा हैं । बड़ी बेटी डॉ हिमानी मुम्बई के बीआरसी के हॉस्पिटल में कोरोना वारियर्स बन के सेवा दे रही है । डाक्टर की ऑन लाइन इंटरनेशनल वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग में कोरोना नए शोधों की जानकारी मिलती है । उन्हें इस से संबंधित अपना अनमोल जानकारी देती है ।
दूसरी बेटी डॉ शुचि गुप्ता कनाडा में है । उसे घर से ही वीडियो कॉल , वीडियो कांफ्रेंसिंग के द्वारा मरीजों उनकी समस्याओं को सुलझती है ।
बचपन में उनकी गर्मी की छुट्टियों में मैं उन्हें समर कैंपस नहीं भेजती थी । उन्हें मैं ड्राइंग , क्राफ्ट , कुकिंग , सिलाई योग आदि सिखाती थी , जो उनके लिए महत्त्वपूर्ण लर्निंग ग्राउंड आज उनके जीवन में साबित हो रहा है । मेरी दोनों बेटियाँ आत्मनिर्भर बनके महिला सशक्तिकरण की मिसाल हैं ।
मुझे अपनी बेटियों पर गर्व होता है , डाक्टर बन समाज सेवा और देश सेवा कर रही हैं ।
- डॉ मंजु गुप्ता
मुंबई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन के दौरान हमें बहुत अच्छा मौका मिला है कि हम अपने बच्चों को बहुत सारी अच्छी बातें सिखा सकते हैं और उनके साथ समय भी मिटा सकते हैं।आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में बच्चे स्कूल घर कोचिंग ट्यूशन उनके पास समय ही कहां रहता है यह समय उनके विकास करने के लिए बहुत अच्छा है हम उन्हें संस्कार दे सकते हैं।
१) लॉक डाउन के दौरान हमें अपने बच्चों को कहानियां सुना सकते हैं जैसे हमारे नानी दादी हमें कहानी सुना कर हमें संस्कार देती थी।
२)हम अपने बच्चों को शुद्ध शाकाहारी पौष्टिक खाना भी बनाकर खिला सकते हैं और बनाना भी सिखा सकती हैं जैसे भीगा हुआ चना मूंग बादाम खिला सकते हैं और खाने की आदत डाल सकते हैं।
३) बच्चों के साथ लूडो सांप सीढ़ी बैडमिंटन छत पर वॉलीबॉल गेम से भी शिक्षक खेल सकते हैं बच्चे आजकल बहुत ही से हमें सिखा देते हैं और उनके मन में कुछ बातें रह जाती है वह भी हम उनके से बातें भी शेयर कर सकते हैं।
५)मां बाप के पास बच्चों के लिए समय नहीं है इसीलिए इतनी हिंसा होती है और बच्चे गलत रास्ते पर जाते हैं पास रहेंगे उन्हें समझेंगे तो एक दूसरे के प्रति इज्जत की आदर भाव भी आते हैं।
भागदौड़ की जिंदगी में यह बहुत जरूरी है कि हम अपने बच्चों को जरूरी संसाधन की वजह संस्कार दें।
*सद्गुण को अपनाइए, सद्गुण सुख की खान।*
*सद्गुण से साहस मिले, नीचा हो अभिमान।*
- प्रीति मिश्रा
जबलपुर - मध्य प्रदेश
लॉक डाउन जब शुरू हुआ उस दौरान कॉलेज और स्कूल के परीक्षायें हो चुकी थी और बच्चे घर पर ही थे ,लेकिन जैसे ही पता लगा अब 21 दिन हमे घर पर ही रहना है तो ऐसे में बिना किसी व्यवस्थित दिनचर्या के समय बिताना समय को बर्बाद करना था ।तब मेरी दोनों बेटियों ने सबसे पहले स्वास्थ्य को ध्यान में रखते हुए अपने सुबह की शुरआत मेरे साथ योगा करने से की ,फिर उस दिन का समाचार पत्रिका पढ़ती और समाचार सुनती ।सफाई में पूरी तरह से मदद करती ।उसके बाद अपने मनपसंद काम जो हॉबी क्लासेस जॉइन करके करती वो सब घर पर ही किया ,सिरेमिक पेंटिंग,फैब्रिक पैंटिंग, ट्रैवेल जर्नल बनाए, मोटिवेशनल कोट्स बनाये ,होम डेकॉर किया,बागवानी की ,कभी कभार अपनी पसंद की चीजें रसोई में बनाने की कोशिश की ।कहने का तात्पर्य बच्चे हर पल को खुशी से बिता रहे हैं ,आम दिनों में वही भागमभाग लगी रहती है ,ये पल उनके लिए अपने बड़ो के साथ बिताना बहुत खुशनुमा और सुकून भरा लग रहा है।अब जब 14 अप्रैल से लॉक डाउन की अवधी बढ़ गई है तो इधर कॉलेज और स्कूल दोनों में ऑनलाइन पढ़ाई शुरू हो गई है ,वो भी बहुत सुचारू रूप से चल रहा है ।कहने का तात्पर्य पढ़ाई भी हो रही है और साथ मे मनोरंजन भी ।समय का पूरा सदुपयोग कर रहे हैं ,एक बहुत बड़ा अनुभव उनके जीवन मे रहेगा : -
विधार्थी जीवन तभी सफल होता है जब वो अपने समय के हर क्षण का उपयोग करता है और अपना काम समय अनुसार करता है।
- ज्योति वाजपेयी
अजमेर - राजस्थान
लॉक डाउन के चलते बच्चों को घर में रहकर समय बिताना बहुत मुश्किल हो रहा है मोबाइल और लैपटॉप चलाने की सीमा पार कर दी है इंटरनेट पर खेल और ऑनलाइन क्लास एक साथ होने के कारण थकान व ऊब होना स्वाभाविक है ऐसे में अन्य खेलों जैसे लूडो, शतरंज, ताश ने भी बच्चों को ऊबने से बचाने का काम किया । बच्चें कभी खेलना कभी खाना कभी सोना इसी में पूरा दिन गुज़ार रहे हैं । हाँ थोड़ा चिड़चिड़ापन भी बच्चों में देखने को मिला है उम्मीद है यह अस्थायी है और लॉक डाउन समाप्त होने पर स्वत: ही ठीक हो जाएगा ।
वैसे बच्चों के उपर पढ़ाई का अतिरिक्त बोझ कम होने से खुश भी हैं स्कूल जाने की झंझट से छुटकारा मिल जाने से बेफ़िक्री से सोते हैं, उठते हैं शायद स्वतंत्र महसूस भी कर रहे हैं ।
बच्चे रुचिकर बिषयों में फ़्री स्टाइल एक्टिविटि कर रहे हैं । बड़े बच्चे कैरियर प्लानिंग कर रहे हैं कुछ भी हो लॉक डाउन के चलते कुछ खोया है तो कुछ पाया भी है सारे एक साथ घर का बना खाना खाते हैं और एक परिवार को क्या चाहिए एक दूसरे को भरपूर समय देना ही महत्वपूर्ण उपलब्धि है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
वर्तमान *लाॅक डाउन* की स्थिति हम सबों के जीवन में अलग-अलग तरीके से अपना असर दिखा रही है। बड़े बुजुर्गो के लिए अलग, पुरूषों के लिए अलग, महिलाओं के लिए अलग, नौकरी करने वालोंं के लिए अलग, व्यापार या पेशा करने वाले के लिए अलग, और बच्चों के लिए अलग। सभी अपने-अपने तरीके से समय का उपयोग करने की जुगत में लगे हैं। दुसरों की दृष्टि से वो समय का सदुपयोग भी हो सकता है या दुरूपयोग भी, ये तो दृष्टिकोण की बात है। फिलहाल तो हम चर्चा में लगे हैं कि बच्चे इस लाॅक डाउन के दौरान समय कैसे व्यतीत कर रहे हैं।
बच्चों को छुट्टियां तो बहुत भाती, न कोई स्कूल- कालेज जाने की हड़बड़ी न देरी होने की टोका टोकी, न युनिफाॅर्म साफ़ और प्रेस किये जाने की चिन्ता और सब के ऊपर न ही टास्क पूरा करने का रोज़ रोज़ का सिरदर्द। कुल मिलाकर फुल ऑन मस्ती। कुछ दिन तो बड़ा मज़ा आया इस अनसिडियुल्ड छुट्टी का, घर में बड़े कुछ ज़्यादा टोका टोकी नहीं करते कि चलो छुट्टी है।
अलग-अलग बच्चों की दिलचस्पी भी अलग-अलग होती है। किसी को पढ़ने में, किसी को खेलने में, किसी को पेन्टिंग/ क्राफ्ट्स में, किसी को म्युजिक, किसी को खाने में, किसी को खाना बनाने में, किसी को बागबानी में, किसी को साइकिलिंग में, किसी को स्विमिंग में, किसी को .............. और किसी को सोने में। लाॅक डाउन की स्थिति है कि समय तो पूरा २४ घंटे का है पास, किन्तु बाहर जाने पर पाबन्दी यानी कि घर के चारदीवारी के अन्दर ही दुनिया है, ऊपर से बड़े बुजुर्गो की चौकीदारी।
कोई अपनी पुस्तकों और कापियों के जिल्द बदल कर नया स्वरूप देने पर लगा हुआ है, तो कोई बाकी होमवर्क पूरा करने में लगा हुआ है, कोई खिलौने की अलमारी साफ़ कर रहा है, कोई अपनी गुड्डे-गुड़ियों के परिधान बदलने में लगा है, कोई घर में पड़े बोर्ड गेम्स को बारी बारी से निकाल कर खेलने में लगा है, कोई टीवी से चिपका, तो कोई कम्प्यूटर पर नेट के जरिए सर्फिंग कर दुनिया के नए आयामों को देखने समझने में लगा हुआ है, कोई अपने लोगों के मोबाइल में गेम्स, कार्टून इत्यादि देख देख का उसकी बैटरी डिस्चार्ज करने में लगे हुए हैं, तो कोई घर में ही रह कर सेहत बनाने की कवायद में जुटा है, कोई पाक कला में अपने हाथ आजमाईश करने में लगा है। घर की चारदीवारी के अन्दर किये और खेले जाने वाले खेल और आयामों को ढ़ूढां और कुछ की इजात भी की जा रही है। अपने आपको सभी घरवालों के साथ एक चारदीवारी के अन्दर परिमित संसाधनों के साथ खुश खुश रहना एक बहुत बड़ी कला है, जो हमारे बच्चे अभी सिख रहे हैं।
बच्चों का मन तो स्वभाव से ही चंचल होता है। इस घड़ी में घर के बड़ों की विशेष जिम्मेदारी हो गई की वे इस बात का सतत् प्रयास में रहें कि कैसे घर के बच्चे खुश रहें, वे अपनी पढ़ाई-लिखाई में भी न पिछड़े, घर के काम काज में सब एक दूसरे का हाथ बटाएं, सहभागिता का एहसास हो, वे अपनी रुचि के अनुरूप कुछ सृजन करें, परिमित संसाधनों में साथ साथ जीने की कला सीखें। अतः अभी घर के बड़ों की जिम्मेदारी बढ़ जाती है। बच्चों को समझाना है कि यह लाॅक डाउन का समय ऊबने का नहीं बल्किा साथ- साथ ,खुश- खुश रहने और सिखाने का सुनहरा अवसर है। कहते हैं It is Blessings in disguise.
- रंजना वर्मा "उन्मुक्त "
रांची - झारखण्ड
लाकडाउन के चलते हुए बच्चे, इन दिनों घर में ही हैं। घर में रहते हुए सारे समय न तो पढ़ा जा सकता है,न मनोरंजन किया जा सकता है, न खेला जा सकता है। इन सबके बीच समयानुसार संतुलन करते हुए बच्चे मजे से अपना समय गुजार रहे हैं। हां एक बात तो है, इन दिनों उनका नटखटपन, शरारतें सामान्य दिनों से कम हो गयी हैं। वो शायद इसलिए कि उनको अपने दोस्तों का साथ नहीं मिल रहा। लेकिन मोबाइल पर अपने मित्रों के संपर्क में बने हुए हैं। इन दिनों घर के छोटे मोटे कामों में हाथ बंटाने में भी पीछे नहीं हैं बच्चे। इस तरह इन दिनों बच्चे पढ़ते हैं,खेलते हैं बतियाते हैं मोबाइल पर। फिल्म बगैरा देखते हैं, अखबार पढ़ते, समाचार सुनते हैं। एक बात और खास है,खाने के नखरे भी कम हुए हैं।शायद बच्चे भी परिस्थिति समझ रहे हैं,यानि समझदार हो रहे हैं।
- डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
दुनिया भर में कोरोनावायरस को लेकर तमाम तरह की जानकारियां सामने आ रही हैं, इनमें से कई जानकारियां भ्रामक भी होती हैं। इस समय पर अभिभावक की यह जिम्मेदारी है की सही व तथ्यपरक जानकारी ही अपने बच्चे को दें। कोरोनावायरस के बारे में बच्चों की वैज्ञानिक समझ को विकसित करना हर अभिभावक की जिम्मेदारी है ।ऐसे में बच्चो से खुलकर बात करनी चाहिए उनकी बात सुननी भी चाहिए। बच्चों के मन में उठ रहे सवालों को नजरअंदाज ना करें। बच्चों के जेहन में तमाम सवाल उठते होंगे,जैसे कि मेरा स्कूल क्यों बंद है ? वायरस क्या है ? कैसा दिखता है ?घर पर क्यों रह रहे हैं? इस समय बार-बार हाथ क्यों धोना है ?अपने दोस्तों के साथ में बाहर क्यों नहीं जा सकता ? दर्जनों सवाल बच्चों के मन मस्तिष्क में इस समय निश्चित से उठ रहे हैं तो अभिभावक सही जानकारी देकर उनकी जिज्ञासा को दूर करें ।अलग-अलग उम्र के हिसाब से बच्चों की मानसिक क्षमता अलग अलग होती है ।
8 साल से ज्यादा उम्र के बच्चे तकनीक में काफी एडवांस होते हैं, ऐसे में जरूरी है किउन्हें गेम्स या कुछ एक्टिविटीज से जोड़ा जाए ,एवं अच्छी ज्ञानवर्धक पुस्तके उनके उम्र के अनुसार पढ़ने को प्रेरित कर सकते हैं। बच्चों का रूटीन बनाएं और परिस्थिति से मानसिक सामंजस्य बिठाने के अनुरूप तैयार करने की कोशिश करें ।उनकी कार्मिक एवं व्यवहारिक दक्षता बढ़ाने हेतु उन्हें घर के कामों में शामिल करें ।घर की सफाई के काम सिखाएं ।पूरे परिवार को चाहिए कि एक साथ बैठकर ज्ञानवर्धक प्रोग्राम देखें, ध्यान रहे लॉक डाउन के कारण बच्चो के बाल मन मे किसी तरह की नेगेटिविटी नहीं आनी चाहिए ।इस समय उनके साथ बैठकर ज्ञानवर्धक व फनी प्रोग्राम देखें। उनका रुटीन खराब न होने पाये यह बात विशेष रूप ध्यान देनी है। उनको यूट्यूब से पढ़ने के लिए भी प्रेरित करें।
ऐसे में बच्चो की फिजिकल एक्टिविटीज पर ध्यान देना भी परम आवश्यक है। अगर बच्चों की फिजिकल एक्टिविटी रुक जाएगी तो उनका मानसिक एवं शारीरिक विकास भी प्रभावित होगा ।उनको हेल्थी डाइट देने की जरूरत है ताकि उनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बनी रहे एवं उनका शरीर फिट रहें। इस समय कोरोनावायरस के तहत लॉक डाउन के कारण बाहर के जंक फूड से मुक्ति मिली हुई है ,यह भी अच्छी बात ही है ।परन्तु घर पर ही बच्चो के रुचिकर स्वादिष्ट डिस बनाकर देना चाहिए ।ताकि बच्चे खुश होकर अपने काम पूरे करें साथ बच्चों के लिए बहुत खेलना बहुत जरूरी है । अगर छत की बाउंड्री वाल मजबूत बनी है, तो वह सुबह शाम टेरिस पर कोई एक्टिविटी वाले खेल खेल सकते हैं ।घर के अंदर भी लूडो ,चेस आदि कोई मनपसंद इंडोर गेम बच्चों के साथ आप स्वयं भी खेलें ,बच्चों के मनोविज्ञान के अनुसार बच्चों को समूह मे खेलना बहुत पसन्द होता है ,ऐसे मे आप अपने बच्चो के साथ कोई खेल खेलें ,क्योंकि वह अपने दोस्तों से इस समय नहीं मिल सकते हैं ।बच्चों के साथ बैठकर कार्टून आदि प्रोग्राम देखें तो बच्चे मनोरंजन कर सकेंगे, आजकल टीवी पर धार्मिक एवं ज्ञान वर्धक सीरियल आ रहे हैं तो बच्चो को वह सब देखने के लिए प्रेरित करें ।जिससे उनका नैतिक एवं ऐतिहासिक ज्ञान इतिहास ज्ञान मजबूत होगा ,और बच्चे अच्छी बातें सीखेंगे ।
घर पर ही बच्चों के मनपसंद मनपसंद खाना फ्रेंच फ्राई ,बर्गर, सैंडविच बना कर दे सकते हैं जिससे बच्चे संतुष्ट रहेंगे और मन लगाकर पढ़ाई करेंगे और बाहर जाने को बार-बार आप नहीं तंग करेंगे। इस प्रकार लॉक डाउन के दौरान भी बच्चों की पढ़ाई ,खेलकूद ,सेहत और मनोरंजन को बेहतर बनाया जा सकता है ,ताकि लॉक डाउन का बच्चों के मासूम मन पर कोई बुरा प्रभाव न पड़ सके ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
वर्तमान समय में लॉक डाउन के कारण सबसे अधिक परेशानी बच्चे महसूस करते हैं। कारण यह है कि उनकी बाहर की सभी गतिविधियां जैसे स्कूल जाना ,पार्क जाना,घूमने जाना, कभी-कभी बाहर स्नैक्स या भोजन आदि के लिए जाना सभी लगभग बंद हो गई हैं और ऐसी स्थिति में उन्हें घर में ऊब से बचाने के लिए बच्चों को कुछ घरेलू गतिविधियों में निरंतर सक्रिय बनाए रखते हैं । बे कुछ समय पढ़ाई की गतिविधियों में संलग्न हो जाते हैं । पढ़ाई के अलावा महत्वपूर्ण व ज्ञानवर्धक सीरियल तथा कार्टून फिल्म आदि में बे पर्याप्त रूचि लेते हैं । रामायण ,महाभारत जैसे ज्ञानवर्धक सीरियल भी खूब देखते हैं ।इसके अलावा इंडोर गेम्स भी खूब पसन्द करते है । लूडो ,सांप -सीढ़ी ,शतरंज तथा कैरम आदि खेल खेलते हैं। समय-समय पर बच्चों के बीच में अंताक्षरी, गायन ,कविता पाठ आदि का घर पर ही आयोजन रखा जाता है और इसमें बे बहुत रूचि लेते हैं। घर में होने वाले भजन आदि में भी उन्हें बैठने के लिए प्रेरित करते हैं। इस तरह लॉक डाउन के चलते बच्चे अपना समय अच्छी तरह से बिता लेते हैं
- डाॅ•अरविंद श्रीवास्तव 'असीम '
दतिया - मध्य प्रदेश
लॉक डाउन में सबसे ज्यादा परेशानी बच्चों को है । बड़े बच्चे हैं तो समझदार हैं । सभी घर में घर के कामों में समय बिता रहे हैं । कुछ घर से ऑफिस का काम कर रहे हैं। कुछ बच्चे अपने शौक को पूरा करने में लगे हैं । लेकिन छोटे बच्चे , जो बाहर खेलने जाते थे वे परेशान हैं । उन्हें हमउम्र का साथ चाहिए । जैसा मैंने अगल-बगल को देखा है माता-पिता उनके साथ तरह- तरह के खेल खेल रहे हैं, कुछ छोटे-छोटे कामों में उनकी मदद लेते हैं । इससे वे घर के कामों में दिलचस्पी लेने लगे हैं। यह समय बहुत तरह से व्यक्ति को मानसिक परेशानियों से जूझने का वक्त है । उसी तरह मासूम बच्चों को भी मानसिक तनाव है । कोरोना क्या है? हमको क्या होगा? इस तरह के कई प्रश्न उनके दिमाग में हलचल मचा रहा है । उनके सवालों का सही तरीके से समाधान देना भी जरूरी है।
वैसे तो सभी बच्चे माता-पिता के साथ का मजा ले रहे हैं । क्योंकि इस वक्त बिना किसी तनाव के वे बच्चों की बातें सुन रहे हैं और उसे मान भी रहे हैं ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
यह एक सुखद तथ्य है कि लाॅकडाउन की परिस्थितियों को बच्चों ने मन से स्वीकार किया है और उनके व्यवहार में एक समझदार बचपन दृष्टिगत होता है। फिर भी माता-पिता का यह कर्तव्य है कि बच्चे तनावग्रस्त न हो जायें, इसके लिए उनका समय विभिन्न गतिविधियों में व्यतीत होना चाहिए।
सामान्य दिनों की अपेक्षा लाॅकडाउन में हमारे द्वारा (माता-पिता) अपने बच्चों से अधिकाधिक वार्तालाप किया जा रहा है अर्थात् कुछ अपने अनुभव उन्हें सुनाये जा रहे हैं, कुछ उनके मन में झांका जा रहा है। ये फुर्सत के क्षण माता-पिता के लिए बच्चों का मित्र बनने का सुनहरा अवसर है।
इस समय स्कूलों द्वारा आनलाइन क्लास चलाई जा रही हैं जिससे बच्चे पढ़ाई में व्यस्त हो गये हैं। इसके अतिरिक्त बच्चे नृत्य, संगीत आदि में अपनी उर्जा का सदुपयोग कर रहे हैं। साथ ही बच्चों के अन्दर घरेलू कार्यों (मुख्यत: रसोई-कार्य और घर की सफाई आदि) में सहयोग की भावना स्वत: उत्पन्न हो रही है। मैंने यह भी देखा है कि बच्चे न्यूज चैनल देखने में कम रुचि रखते थे, इस समय मुख्य रूप से न्यूज देख रहे हैं।
इसलिए मैं कह सकता हूं कि 'लाॅकडाउन के चलते बच्चे अपने समय का सकारात्मक उपयोग कर रहे हैं।
- सत्येन्द्र शर्मा' तरंग '
देहरादून - उत्तराखण्ड
घर के बच्चे लाकडाउन में सबसे पहले मर्जी से खूब सो रहें हैं
दूसरी बात यदि माता-पिता उन्हें एक अच्छी दिनचर्या निश्चित कर देते हैं तो बहुत ही अच्छा नहीं तो बच्चों की मनमानी रहेगी। मोबाइल टी भी के सिवा दूसरा कोई विकल्प उन्हें नही दिखाईं दे ता है । चूंकि मार्च महीने से य लाकडाउन शुरू हुआ है तो स्कूल से रिजल्ट नयी क़िताबें मिली नहीं है उनके मजबूरी का यह बहुत बड़ा कारण है करें तो क्या करें पढ़ाई कैसे करें । सामान्य तौर पर इनडोर गेम का ही लुत्फ उठा रहें हैं
बच्चे माता-पिता के साथ का आनंद उठा रहे हैं
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
" मेरी दृष्टि में " लॉक डाउन से हर कोई परेशान हैं । परन्तु कोरोना वायरस से बचाओं का इस से अच्छा कोई इलाज नहीं है । लॉक डाउन में बच्चों की अपनी समस्या हैं जो अभिभावकों को सामना करना पड़ता है ।
- बीजेन्द्र जैमिनी




























बच्चों के व्यक्तित्व विकास का बहुत अच्छा अवसर है. ऐसा पिछले दो-तीन दशक में नहीं हुआ होगा कि माता-पिता एकसाथ अपने बच्चों के साथ हैं. ऐसे में वे उनको सकारात्मक सोच विकसित कराने की तरफ ले जाएँ तो बेहतर होगा.
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