लॉक डाउन में बढती घरेलू हिंसा का क्या समाधान है ?

लॉक डाउन में लोगो के मानसिक सतुलन बिगड़ रहा है । जो इंसानों को चिड़चिड़ा बना रहा है । लोग हिसंक हो गये है । इन को अब इलाज की आवश्यकता है । यहीं " आज की चर्चा " का विषय भी है ।  अब आये विचारों को देखते हैं : -
लाॅकडाउन का एक नकारात्मक पक्ष है - घरेलू हिंसा में वृद्धि। यह भी स्पष्ट है कि जहां पर पूर्व में घरेलू हिंसा होती रही है वहां पर इसमें वृद्धि होना अधिक संभावित है। घरेलू हिंसा उन्हीं घरों में अधिक होती है जिन पुरुषों में अपने परिवार के प्रति समर्पण भाव में कमी है जबकि कोरोना ने हमें समझा दिया है कि इन्सान को अन्ततः अपना घर और परिवार के सदस्यों से ही सम्बल और सुरक्षा प्राप्त होती है। इसके अतिरिक्त खराब आर्थिक स्थिति से उत्पन्न तनाव और धैर्य की कमी भी घरेलू हिंसा के कारणों में से एक कारण हैं। 
इसके समाधान के सन्दर्भ में मेरा विचार है कि ऐसी त्रासद परिस्थितियों में परिवार के पुरुषों और महिलाओं को अत्याधिक धैर्य, परिस्थितियों से समझौते की प्रवृत्ति और मन-मस्तिष्क की दृढ़ता के साथ-साथ परिवार के प्रति पूर्ण समर्पण की भावना बनाये रखने की बहुत अधिक आवश्यकता है।
लाॅकडाउन में प्रत्येक स्त्री-पुरूष को अपनी दिनचर्या में अध्यात्म और योग को अनिवार्य रूप से सम्मिलित करना चाहिए।
सर्वविदित है कि 'नशा' घरेलू हिंसा का मुख्य कारण है और ऐसे समय में जब पुरुषों को लगातार घर में ही रहना है तब नशा उनके अन्दर के जानवर को जगायेगा । इसलिए प्रत्येक राज्य सरकार को चाहिए कि लाॅकडाउन में शराब या अन्य किसी प्रकार के नशे की उपलब्धता को प्रतिबन्धित करने की सख्त कार्यवाही की जाये।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखण्ड
लॉक डाउन के चलते सभी मनुष्य के अपने कार्य ठप हो गए हैं सब लोग अपने घर में बंद हो गए हैं, मनुष्य पहले से सीमित था अब और सीमित हो गया है।घर बैठकर उसके पास कोई काम नहीं रह गया है बस उसके पास खाना और सोना काम रह गया है 
"खाली दिमाग शैतान का घर होता है"बड़े बुजुर्गों ने बिल्कुल ठीक कहा है काम और दिनचर्या में व्यस्त रहने के कारण लोगों को हिंसा करने का समय ही नहीं मिलता था सब अपने आप में खोए रहते थे पर खाली बैठने के कारण लड़ाई झगड़े शुरू हो जाते हैं। लड़ाई झगड़े से निदान पाने के लिए हमें अपने घर के छोटे-मोटे काम करने चाहिए और सब की मदद करनी चाहिए एक अकेला कितना काम करेगा वह काम करेगा तो उसे गुस्सा ही आएगा और झगड़ा ही होगा।
दूसरा कारण हिंसा का पैसा भी है आजकल लोग जो रोज का काम करते थे वह लोग अपना काम नहीं कर पा रहे हैं तो धन के अभाव में भी हिंसा होती है। लॉक डॉग के चलते घर में भी बच्चों को और महिलाओं को खाना बनाने में बड़ी परेशानी हो रही है सब्जी और खाद्य सामग्री की भी कभी-कभी कमी हो जाती है इसमें भी सबके नाराजगी के कारण हिंसा होती है।
इस हिंसा का उपाय यह है कि हम कुछ दिन अपने आपको घर में सीमित रख लेंगे और जब हम जिंदा रहेंगे तभी हम स्वस्थ अच्छी जिंदगी जी सकेंगे
यह लोग डॉन हमारी भलाई के लिए है।यदि हम रेड जोन से ग्रीन जोन में आ जाएंगे तो धीरे-धीरे हमें पहले की तरह फिर से आजादी मिल जाएगी इस बीमारी की गंभीरता को समझना चाहिए यह सब हमारी भलाई के लिए ही है यदि हमारा जीवन ही नहीं रहेगा...
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है इस समाज में हर तरह के लोग रहते हैं हमें समझदारी से काम करना चाहिए हम इंसान हैं हमें थोड़ी समझदारी दिखानी चाहिए हम से अच्छे तो जानवर हैं जो कम से कम विषम परिस्थितियों में एक होकर तो रहते हैं इंसान उन्हें देखकर भी कुछ नहीं सीखता प्रकृति के साथ खिलवाड़ करने का ही यह सब नतीजा है प्रकृति हमें वार्निंग दी रही है कि संभल जाओ। समय की गंभीरता को समझना चाहिए और हमें एक होकर इस लड़ाई से लड़ना है मन के हारे हार है मन के जीते जी इसी विश्वास के साथ हमें इस जंग को जीतना है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
वर्तमान में कोरोना वायरस के बढ़ते प्रसार ने वैश्विक आबादी को घरों में रहने को मज़बूर कर दिया है। भारत सहित विश्व के लगभग सभी देशों में स्वास्थ्य क्षेत्र के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में चल रही समस्त मानवीय गतिविधियों को पूरी तरह से प्रतिबंधित कर संपूर्ण लॉकडाउन या आंशिक लॉकडाउन को अपना लिया गया है। इस समय लॉकडाउन का एकमात्र उद्देश्य अमूल्य मानवीय जीवन की रक्षा करना है। कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने में जहाँ एक ओर लॉकडाउन निश्चित ही एक प्रभावकारी उपाय साबित हो रहा है, वहीँ दूसरी ओर इस वैश्विक संकट के दौर में भी महिलाओं एवं बच्चों को घरेलू हिंसा का सामना करना पड़ रहा है। 
घरेलू हिंसा की वैश्विक स्थिति की गंभीरता का अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जब संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुतरेस ने ऐसे हालात में महिलाओं एवं बच्चों के प्रति घरेलू हिंसा के मामलों में ‘भयावह बढ़ोत्तरी’ दर्ज किये जाने पर चिंता जताते हुए सरकारों से ठोस कार्रवाई का आहवान किया। अपने संदेश में यूएन महासचिव ने बताया कि हिंसा महज़ रणक्षेत्र तक ही सीमित नहीं है बल्कि  महिलाओं एवं बच्चों के लिये सबसे ज़्यादा ख़तरा तब होता है जब उन्हें अपने घरों में सबसे सुरक्षित होना चाहिये।
कडाउन के बाद घरेलू हिंसा की वैश्विक स्थिति 
इस महामारी के कारण उपजी आर्थिक व सामाजिक चुनौतियों और आवाजाही पर पाबंदी लगने से लगभग सभी देशों में महिलाओं व बच्चों के साथ दुर्व्यवहार के मामलों में भारी वृद्धि दर्ज की गई है। 
हालाँकि कोरोना वायरस के फैलाव से पहले भी आँकड़े स्पष्टता से इस समस्या को बयाँ करते रहे हैं। दुनिया भर में क़रीब एक-तिहाई महिलाएँ अपने जीवन में किसी ना किसी रूप में हिंसा का अनुभव अवश्य करती हैं। यह मुद्दा विकसित और अल्पविकसित, दोनों प्रकार की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करता है।
संयुक्त राष्ट्र के मुताबिक, COVID-19  महामारी के शुरू होने के बाद से लेबनान और मलेशिया में ‘महिला हेल्पलाइन’ पर आने वाली फ़ोन कॉल की संख्या दोगुनी हो गई है जबकि चीन में यह संख्या तीन गुनी हुई है।
लॉकडाउन के बाद आस्ट्रेलिया में घरेलू हिंसा के मामलों में 75 प्रतिशत तक की वृद्धि दर्ज़ की गई है। आस्ट्रेलिया के न्यूसाउथ वेल्स प्रांत में सर्वाधिक घरेलू हिंसा के मामलें रिपोर्ट किये गए 
कोरोना वायरस से बुरी तरह प्रभावित स्पेन से खबरें आईं कि कुछ महिलाओं ने घरेलू यातना से बचने के लिये खुद को कमरे या बाथरूम में बंद करना शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप स्पेन की सरकार को लॉकडाउन के कड़े नियमों के बावजूद महिलाओं के लिये ढील बरतनी पड़ी।
इस वैश्विक संकट के दौर में जहाँ एक ओर अफ्रीका व पश्चिम एशिया में गृहयुद्ध से जूझ रहे देशों में भी संयुक्त राष्ट्र महासचिव के युद्धविराम की अपील का असर तो दिखाई दे रहा है, परंतु वहीँ दूसरी ओर इन देशों में भी महिलाओं के प्रति होने वाली घरेलू हिंसा में वृद्धि देखी जा रही है।
इतना ही नहीं सभ्यता व शिष्टाचार के शिखर पर होने का दावा करने वाले पश्चिमी दुनिया के देशों में भी घरेलू हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी जा रही है।
लॉकडाउन के कारण दंपति के सामने रोज़गार की असुरक्षा का प्रश्न उठ खड़ा हुआ है, जिससे महिला और पुरुष दोनों तनावग्रस्त हो गए हैं, तनाव के कारण पारिवारिक कलह बढ़ जाती है जो अंततः घरेलू हिंसा में परिणत होती है। 
लॉकडाउन के कारण बच्चों के स्कूलों में भी अनिश्चितकालीन अवकाश कर दिया गया है और पार्कों में खेलने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया है, जिससे बच्चे घर में ही खेलकूद करते हैं परिणामस्वरूप अनावश्यक शोरगुल होता है, जो बच्चों व महिलाओं के प्रति हिंसा का कारण बनता है। 
लॉकडाउन के कारण घर में रहने के बाद भी मदद पा सकती हैं।
एडवा की प्रदेश उपाध्यक्ष मधु गर्ग ने जारी बयान में बताया कि महिला आयोग की रिपोर्ट और लगातार पीड़ित महिलाओं के फोन के बाद यह अंदाजा लगाया जा सकता है घरेलू हिंसा नहीं रुकी है। उन्होंने बताया कि लॉकडाउन में महिलाएं खुद को असहाय न समझें बल्कि जुर्म के खिलाफ आवाज उठाएं।
- अश्विन पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉकडॉडॉउन में घर पर मिलजुलकर रहे एक दूसरे का ख्याल रखे । कोरोना कोविड 19 के इस संक्रमण महामारी में मोदी सरकार द्वारा 21 दिनों के बाद फिर से 19 दिन के लॉकडॉउन बढ़ा दिया गया है ताकि देश मे बढ़ रहे कोरोना पोजेटिव केश पर नियंत्रण किया जा सके।
इस लॉकडॉउन में कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए लोगों को अपने अपने घरों पर ही परिवार के साथ रहना जरूरी कर दिया गया है।
घरों पर रहने के कारण घरेलू हिंसा बढ़ी है। खासकर पति व पत्नी के बीच कलह झगड़ा अधिक बढ़ गया है, जिसके कारण आत्महत्या की घटनाओं में वृद्धि हो रही है।घरेलू हिंसा को रोकने के लिए सबसे जरूरी पति पत्नी को एक दूसरे के प्रति नफरत के बजाय प्यार बढ़ाना होगा।शिकायत से बचने, एक दूसरे पर ताना, छीटाकशी से बचना जरूरी है। इसके साथ ही परिवार में बच्चों पर ध्यान देना, उनकी जरूरतों को पूरा करना, जरूरत के सामानों का प्रबंध करना, राशन सामग्री, दवा, दूध ये सारे चीजो का प्रबंध आवश्यक है। जब घर और जरूरत के समान  होंगे, एक दूसरे के प्रति श्रद्धा भाव रखना, प्रेम बढ़ाना, बच्चों  की देख रेख जरूरी है।
- अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर - झारखंड
लॉक डाउन मे बढ़ती हिंसा का समाधान हमे इस बिमारी से जूझ रहे वीर योद्वा हमारे डाक्टर नर्स पुलिस प्रशासन का सहयोग करना है। इस महामारी के काल मे घरो मे सिर्फ घरो मे रहना है । ये योद्धा हमारी रक्षा के लिए दिन रात लगे है अपना घर परिवार छोड़कर देश को महामारी से बचाने मे लगे है। हमे इनका सहयोग करना है इनके साथ दुर्रव्यवहार नही करना है। पुलिस प्रसाशन हर परिस्थिति मे जनता के साथ खड़ी है जनता की किसी प्रकार की कमी नही आने दी जायेगी तो जनता का फर्ज बनता है उनको उनका काम करने दे हिंसक ना हो सहयोग करे। ये संकट काल है सभी घरो मे है ये परिवार छोड़कर सड़को और अस्पतालो मे जंग लड़ २हे है।
जाहिल पन की अन्तिम सीमा ना दिखलाओ तुम
बने वीर योद्धाओं पर पत्थर न बरसाओ तुम ।
लॉक डाउन महामारी मे इनका साथ निभाओं तुम
पत्थर नही इन पर प्रेम पुष्प बरसाओ तुम ।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
 लॉकडाउन में आदमी कैद होकर रह गया है मानो उसकी स्वतंत्रता छीन गई हो ऐसा होना स्वाभाविक है !
 एक लंबे समय से बीमार व्यक्ति अपने आप को असहाय समझने लगता है कहीं आना जाना नहीं खाने पीने का रिस्ट्रिक्शन एवं केवल दवाइयां और दूसरों पर निर्भर हो जाता है तो वह फ्रस्ट्रेशन और डिप्रेशन में आ जाता है फिर एक स्वस्थ कामकाजी आदमी जो लॉक डाउन के नियमों में बंध कर अपनी स्वतंत्रता को खोने का अनुभव करता है स्वाभाविक है वह फ्रस्टेड हो ही जाता है !
चिंताओं से मानसिक तनाव का आना स्वाभाविक है इस लॉकडाउन में अच्छे अच्छे आर्थिक तंगी के दौर से गुजर रहे हैं फिर इस महामारी का भय !
 घर का कर्ता इस लॉकडाउन के बाद अपनी नौकरी की चिंता, बच्चों की पढ़ाई ,घर का खर्चा इन सब बातों को लेकर मानसिक तनाव में आ जाता है क्योंकि उसे अपने परिवार की चिंता है!
 सभी अपने परिवार से बेहद प्यार करते हैं !
 मानसिक तनाव की वजह से वह अपना फ्रस्टेशन पत्नी पर निकालता है किंतु यही फ्रस्टेशन यदि हिंसा का रूप ले लेती है तो फिर घातक होती है किसी को शराब ना मिलने से जो उसका व्यसन है हिंसा पर उतर आता है जो भी हो हर हाल में ज्यादातर महिला ही प्रताड़ित होती है !
जिस घर में वह सुरक्षित रह सकती है वही घर अब चिंताजनक स्थान बन गया है ऐसी परिस्थिति में हमें घर में सभी को एक दूसरे का साथ मर्यादा में रहकर संयम और धैर्य के साथ देना है किसी भी बात को दिल से नहीं लगाना चाहिए !
2) हंसते हुए एक दूसरे के काम में मदद करनी चाहिए !
 3)पति पत्नी दोनों को एक दूसरे के लिए निजी स्पेश,
और वक्त देना चाहिए !
4) बच्चों के साथ समय बिताना चाहिए !
5)जो क्रिएटिविटी हमारी है उसे लेकर व्यस्त रहना चाहिए !
6) पुरानी नई फिल्में देखी पुरानी यादें ताजा करें !
7) बच्चों के साथ कैरम लूडो आदि आदि खेल में समय दें !अपने आप को खुश रखें बच्चों की पढ़ाई में ध्यान दें ! 
8) महिलाएं स्वादिष्ट व्यंजन बना 
परिवार को खुशी दे !चूंकि स्त्रियों के लिए तो परिवार की खुशी ही उसकी खुशी है !
9) योगा करें भगवान का नाम ले टीवी देखें घर में ही वॉक करने की कोशिश करें ! 
10) सबसे बड़ी और जरूरी बात लॉकडाउन में समझौता करें हर वक्तअपने आप को व्यस्त रखें !
लिखने का शौक है तो लिखें किताबें पढे़ !
फिर भी मानसिक तनाव आता है और हिंसा की घटना होती है तो मनोचिकित्सक की मदद ले डॉक्टर को दिखाएं ! 
 महिलाओं के साथ हिंसक घटना होती है तो पुलिस की मदद और पड़ोसियों की मदद ली जानी चाहिए !
अंत में कहूंगी लॉकडाउन में एक नहीं अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है किंतु इन सब की एक ही दवा है 
"धैर्य और संयम" 
कालिमा सदा नहीं रहती धवलता लिए फिर उजाला देती है !
" जान है तो जहान है "को गुरु मंत्र बना लॉक डाउन का सामना करें !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
प्रेम प्रतीति सबसे बड़ी,एकजुट हो जाओ।
घर के भीतर रहकर, घरेलू हिंसा न बढ़ाओ।
    लॉक डाउन के चलते सभी को अपने घरों के भीतर ही रहना पड़ रहा है, जिस कारण घर की महिलाओं पर घरेलू कार्य का दबाव अत्यधिक बढ़ गया है। ऐसे समय में अत्यधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है। इस समय न केवल पुरुषों को अपितु  बच्चों को भी घरेलू कार्य करने के लिए प्रेरणा लेनी चाहिए। घर के वातावरण को खुशहाल और मनोरंजक बनाने के लिए सभी को बराबर का सहयोग देना चाहिए। यह बहुत सुनहरा अवसर है जब पूरा परिवार एक सूत्र में बंधा हुआ है। अन्यथा जीवन की इस भागा दौड़ी में परिवार के साथ समय व्यतीत करने के लिए लोगों के पास समय का अभाव होता है। मनोरंजक गतिविधियों द्वारा घरेलू कार्यों को निपटाया जा सकता है। प्रतिदिन किसी एक विशेष कार्य पर ध्यान केंद्रित करते हुए बड़े कार्य को निपटाना चाहिए जैसे अलमारी की साफ- सफाई बच्चों के साथ मिलकर पिता कर लें, वही मां सबका मनपसंद भोजन बनाकर सबको आनंदित करें। किसी दिन कार्य को कम करके पूरा परिवार मिलकर एक दूसरे की पसंद नापसंद को पूछे, कभी बैठकर साथ साथ टीवी देखा जाए, कभी सामान्य ज्ञान पर चर्चा छेड़ी जाए, कभी अंत्याक्षरी खेली जाए, कभी पेंटिंग की जाए तो कभी पुरानी एल्बम निकालकर पुरानी यादें ताजा की जाएं। इस प्रकार हम अपने घर परिवार में हंसी खुशी का माहौल बना सकते हैं।
    आपसी मनमुटाव बढ़ने से न केवल घर का वातावरण ही खराब होगा अपितु स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ेगा अंत में मैं यही कहना चाहूंगी कि
     यह जीवन बहुत सुहाना है,
     हर रिश्ता यहां निभाना है।
     खूबसूरत सी इस दुनिया में,
     बस प्रीत का फूल खिलाना है।
  - डॉ.विभा जोशी (विभूति)
   दिल्ली
 गरिमामय तरीके से जीने के अधिकार का हनन ही घरेलू हिंसा कहलाता है। वर्तमान समय में कोरोनावायरस के बढ़ते प्रसार ने वैश्विक आबादी को घरों में रहने को मजबूर कर दिया है। लॉक डाउन के तहत घरेलू हिंसा की समस्याओं की दर भी तेजी से बढ़ रही है ।घरेलू हिंसा अर्थात कोई भी ऐसा कार्य जो किसी महिला एवं 18 वर्ष से कम आयु के बालक एवं बालिका के स्वास्थ्य, सुरक्षा ,जीवन पर संकट ,आर्थिक क्षति और ऐसी  पीड़ा जो असहनीय हो तथा ऐसी महिलाएं बच्चे को अपमान सहना पड़े, घरेलू हिंसा के दायरे में आता है। घरेलू हिंसा पर शोध कर रहे विशेषज्ञ बताते हैं कि लॉक डाउन के दौरान दंपत्ति के सामने रोजगार की सुरक्षा से व्याप्त तनाव ,महिलाओं पर अतिरिक्त कार्यभार के कारण थकान से तनाव , विवाहेत्तर सम्बन्धो पर शक  ,मोबाइल से  अत्यधिक जुड़ाव ,आपस के झगड़े को बढ़ावा दे रहे हैं ।  बच्चों के स्कूल में अनिश्चितकालीन छुट्टियाँ ,पार्क में भी खेलने से मनाही आदि का नतीजा है घरेलू हिंसा ।बच्चे घरों में रहकर शोर-शराबा करते हैं आपस मे  झगड़ा मारपीट और गाली-गलौज का माहौल उत्पन्न होता है ,बाहर लोगों से भी मेल मिला पर प्रतिबंध लगा हुआ है, जिससे लोग अवसाद ग्रस्त होकर घरेलू हिंसा को अंजाम देते हैं। इस संकट की घड़ी में भारत में घरेलू हिंसा में सुधार लाने के लिए सबसे पहले कदम के तौर पर यह आवश्यक होगा कि पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ रखने के स्थान पर पुरुषों को इस समाधान का भाग बनाया जाए, मर्दानगी की भावना को स्वस्थ माइनों में बढ़ावा देने और पुराने घिसे पिटे ढर्रे  से छुटकारा पाना जरूरी होगा ।भारत सरकार ने महिलाओं और बच्चों को घरेलू हिंसा से संरक्षण देने के लिए घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 को संसद में पारित कराया है ।यदि किसी भी महिला को कोई रिश्तेदार प्रताड़ित करता है तो वह घरेलू हिंसा के तहत आता है ।सरकार ने वन स्टॉप सेंटर जैसी योजनाएं प्रारंभ की जिनका उद्देश्य पीड़ित महिलाओं की सहायता करना है। कई जागरूकता अभियान भी चलाए गए हैं ।लॉक डाउन के समय घरेलू हिंसा से निपटने के लिए पुलिस की अलग विंग बनाने की जरूरत है ।इस कार्य में सिविल डिफेंस के कार्यरत लोगों की सहायता ली जा सकती है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने घरेलू हिंसा पीड़ित की मदद के लिए 15 से अधिक गैर सरकारी संगठन की एक टास्क फोर्स बनाने का निर्णय लिया है ,ताकि महिलाओं को जरूरत के हिसाब से मदद की जा सके ।लॉक डाउन के दरमियान घरेलू हिंसा के मामले तीन गुना बढ़  गए हैं । बलात्कार व  बलात्कार के प्रयास के  मामलों में भी तेजी से वृद्धि हुई है ।मारपीट के मामले भी काफी बढ़े हैं ।जिनसे पीड़ित को मुक्ति दिलाना जरूरी है । अतः घरेलू हिंसा का निजी   स्तर व सरकारी पर समाधान  अति आवश्यक है क्योंकि हर किसी को स्वाभिमान से जीने का अधिकार मिलना चाहिए ।
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
कोरोना संकट की वजह से घरों में कैद लोगों का गुस्सा दिन-ब-दिन बढ़ रहा है. परिवारों में बढ़ते तनाव का आसान शिकार बन रही हैं औरतें. कि हिंसा घरेलू हिंसा से खौफ न खाए शिकायत दर्ज कराएं.। 
''सामान्य दिनों में वर्क फ्राम होम काम के बीच परिवार के साथ वक्त बिताने का एक अच्छा मौका होता है लेकिन इस समय इसे कोई एन्जवॉय नहीं कर रहा. पुरुष पूरा दिन घर में हैं. घरेलू महिलाओं के पास खुद के लिए बिल्कुल वक्त नहीं. जो कामकाजी हैं उनके लिए भी दिक्कतें कम नहीं. ऐसे में जो औरतें या लड़कियां पहले से ही घरेलू हिंसा का शिकार थीं. उन पर तो मानसिक और शारीरिक हिंसा दोनों के मामले और भी बढ़ गए हैं.''
महामारी के इस दौर में मानसिक तनाव बढ़ने का कारण मन में उठते वह सवाल हैं जो लोगों को अस्थिर कर रहे हैं. जैसे-लोग घबराए हुए हैं कि नौकरी बचेगी या नहीं? घर में कब तक कैद रहना पड़ेगा? कहीं परिवार में कोई इस महामारी की चपेट में न आ जाए? नतीजतन जैसा कि हमेशा होता आया है गुस्सा महिलाओं पर ही फूटता है ।
भारत में सुधार लाने के लिये सबसे पहले कदम के तौर पर यह आवश्यक होगा कि “पुरुषों को महिलाओं के खिलाफ रखने” के स्थान पर पुरुषों को इस समाधान का भाग बनाया जाए। मर्दानगी की भावना को स्वस्थ मायनों में बढ़ावा देने और पुराने घिसे-पिटे ढर्रे से छुटकारा पाना अनिवार्य होगा।
भारत सरकार ने महिलाओं और बच्चों को घरेलू हिंसा से संरक्षण देने के लिये घरेलू हिंसा अधिनियम, 2005 को संसद से पारित कराया है। इस कानून में निहित सभी प्रावधानों का पूर्ण लाभ प्राप्त करने के लिये यह समझना ज़रूरी है कि पीड़ित कौन है। यदि आप एक महिला हैं और रिश्तेदारों में कोई व्यक्ति आपके प्रति दुर्व्यवहार करता है तो आप इस अधिनियम के तहत पीड़ित हैंl 
लॉकडाउन के दौरान सामाजिक स्तर पर लोगों का मेल-मिलाप प्रतिबंधित हो गया है, जिससे लोग अपना समय व्यतीत करने व अपने परिजन व मित्रों से बात करने के लिये सोशल नेटवर्किंग साइट्स व मोबाइल फोन का अत्यधिक प्रयोग करने लगे हैं जो दंपतियों के बीच कलह का प्रमुख कारण बन गया है। 
लॉकडाउन के बाद से महिला पर परिवार, बच्चों की देखरेख, घरेलू कार्य के अलावा पति की यौनाचार इच्छाओं की पूर्ति की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी से दबाव बढ़ गया है। जिससे अवसाद में वृद्धि होने से पारिवारिक कलह बढ़ा है। 
विवाहेत्तर संबंधों में लिप्त होने का शक, ससुराल वालों की देखभाल न करना, बच्चों की उपेक्षा करना तथा स्वादिष्ट खाना न बनाने के कारण भी परिवार के सदस्यों द्वारा उन पर हमले का कारण बनता है।
लॉकडाउन के पालन में लगी पुलिस की व्यस्तता के कारण इन शिकायतों का त्वरित समाधान नहीं हो पा रहा है जिससे इस प्रकार के कृत्यों को अंजाम देने वाले पुरुषों को प्रोत्साहन मिल रहा है।
यदि किसी व्यक्ति ने अपने जीवन में घरेलू हिंसा का सामना किया है तो उसके लिये इस डर से बाहर आ पाना अत्यधिक कठिन होता है। अनवरत रूप से घरेलू हिंसा का शिकार होने के बाद व्यक्ति की सोच में नकारात्मकता हावी हो जाती है। उस व्यक्ति को स्थिर जीवनशैली की मुख्यधारा में लौटने में कई वर्ष लग जाते हैं। 
घरेलू हिंसा का सबसे बुरा पहलू यह है कि इससे पीड़ित व्यक्ति मानसिक आघात से वापस नहीं आ पाता है। ऐसे मामलों में अक्सर देखा गया है कि लोग या तो अपना मानसिक संतुलन खो बैठते हैं या फिर अवसाद का शिकार हो जाते हैं। 
घरेलू हिंसा की यह सबसे खतरनाक और दुखद स्थिति है कि जिन लोगों पर हम इतना भरोसा करते हैं और जिनके साथ रहते हैं जब वही हमें इस तरह का दुख देते हैं तो व्यक्ति का रिश्तों पर से विश्वास उठ जाता है और वह स्वयं को अकेला कर लेता है। कई बार इस स्थिति में लोग आत्महत्या तक कर लेते हैं।
घरेलू हिंसा का सबसे व्यापक प्रभाव बच्चों पर पड़ता है। सीटी स्कैन से पता चलता है कि जिन बच्चों ने घरेलू हिंसा में अपना जीवन बिताया है उनके मस्तिष्क का कॉर्पस कॉलोसम और हिप्पोकैम्पस नामक भाग सिकुड़ जाता है, जिससे उनकी सीखने, संज्ञानात्मक क्षमता और भावनात्मक विनियमन की शक्ति प्रभावित हो जाती है। 
प्रत्येक व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है क्योंकि हिंसा की शिकार हुई महिलाएँ समाजिक जीवन की विभिन्न गतिविधियों में कम भाग लेती हैं। 
बालक अपने पिता से गुस्सैल व आक्रामक व्यवहार सीखते हैं। इस का असर ऐसे बच्चों का अन्य कमज़ोर बच्चों व जानवरों के साथ हिंसा करते हुए देखा जा सकता है।
बालिकाएँ नकारात्मक व्यवहार सीखती हैं और वे प्रायः दब्बू, चुप-चुप रहने वाली या परिस्थितियों से दूर भागने वाली बन जाती हैं। 
- डॉ अलका पाण्डेय 
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन हो या वैसे भी , घरेलू हिंसा का विषय गंभीर और चिंताजनक है। इसके निदान के लिए परिवार ,फिर समाज ,फिर पड़ोसियों को आगे आकर वस्तुस्थिति की पता जानना  चाहिए और उस वजह को धैर्य और प्रेममय वातावरण के साथ निष्पक्ष रूप से दूर करने का प्रयास किया जाना चाहिए। जहाँ तक कोशिश यही हो कि आपस में सामंजस्य बन जाये। परिवार का बिखराव या सदैव तनाव का माहौल हमेशा दुःखद और नीरसमय रहता है। बच्चों पर भी बहुत बुरा असर पड़ता है। यह भी देखना होगा कि  इसमें पीड़ित पति-पत्नी हैं या भाई-भाई, पिता-पुत्र,माता-पुत्र, या ऐसे अन्य संबंधी सभी के लिए अलग-अलग उपाय होंगे। हाँ, समझाइश तो प्रायः -प्रायः समान ही होती हैं।यदि समझाइश से सामंजस्य की स्थिति नहीं बन पा रही है तो कुछ दिनों के लिए अलग-अलग रहने का भी तरीका आजमाया जा सकता है।  सार यह कि जहाँ तक हो कोर्ट-कचहरी न जाना पड़े तो हितकर होगा। इसकी वजाय जो शासकीय परामर्श संस्थाएं हैं, उनसे मदद ली जा सकती है।
स्थितियां कोई भी हों,करीबियों को आगे आकर निपटारा करना चाहिए और परिवार को टूटने या अप्रिय स्थिति न बन पाए इसका हर संभव प्रयास होना चाहिए।
  लॉक डाउन में भी यही सुझाव है, दो के बीच तीसरे को कुशल निर्णायक बनकर निष्पक्षता से सकारात्मक निदान करना आवश्यक और महत्वपूर्ण होगा।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
लॉक डाउन के समय बढ़ती घरेलू हिंसा का समाधान आपस  में ही सुलझाने की कोशिश करनी चाहिए। क्योकि आपसी विवाद कुछ समय के लिए होता है मगर कई विवाद लंबे भी होते है। किसी भी प्रकार की हिंसा कभी कोर्ट कचहरी में नही निपटती ।और वर्तमान में लॉक डाउन की वजह से कोर्ट बंद है।और थाना के सभी पुलिस  अपनी कोरोना वायरस  वचाव के काम मे लगें है। आपके घरेलू हिंसा का निपटारे के लिए समय भी लग सकता और ये भी हो सकता है आपका  विवाद कुछ समय के लिए ही हो, अतः घरेलू जैसे हिंसा को बिना समय बर्बाद किये घर में ही तुरतं निपटारा कर लेना चाहिए। और ऐसी हिंसा को शीघ्र पूर्ण विराम लगा देना चाहिए। और हमेशा सामंजस्य बनाने एवं प्रयत्न करना  चाहिए कि घरेलू हिंसा कभी न हो। क्योकि इससे सिर्फ पारिवारिक क्षति ही होती है किसी का भला नही।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
हिंसा का जन्म मानसिक असन्तोष से होता है । जब हमारा व्यक्तिगत स्पेस कम होता है, आर्थिक तंगी ,  पारिवारिक कलह, विचारों की भिन्नता व समय का सदुपयोग नहीं होता है ;  तब ताकतवर व्यक्ति लड़ाई - झगड़े व मार - पीट पर उतर आता है । अचानक से महामारी का आना, लॉक डाउन का होना इससे कई परिवारों में घरेलू हिंसा साफ सुनाई व दिखाई दे रही है । पहले सभी अपने - अपने कार्यों में व्यस्त रहते थे,  कोई किसी की गतिविधियों में दखल नहीं देता था पर अब तो छोटी - छोटी गलतियां भी पकड़ में आ रही हैं । सीमित संसाधन,   आगे भविष्य की चिंता, पैसे की तंगी ।  जिन घरों में महिलाएँ कुशल संचालक नहीं हैं वहाँ ये समस्या भयावह रूप धर कर सामने आ रही है । बच्चे भी शारीरिक गतिविधियों से दूर होकर या तो मोबाइल या कोई  हॉबी में अपना समय बिता रहे हैं । एक- दो कमरे में रहने वाले लोगों में ज्यादा आक्रोश पनप रहा है । लगातार इतने दिनों तक   साथ- साथ 24 घण्टे रहना मानसिक क्लेश व हिंसा को बढ़ावा तो देगा ही ।
इससे बचने हेतु योग का सहारा लेना चाहिए । ऐसे समय में मौन रहना भी एक उपाय का कार्य करता है । ये दिन भी गुजर जायेंगे ये सोचकर धैर्य रखें,  परिवार ही संकट में काम आता है जो है उसी में निभाना है ये सोचकर पूजा पाठ करते रहें जिससे आत्मविश्वास व मानसिक शक्ति प्रबल होगी ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
बढ़ती घरेलू हिंसा का कारण आर्थिक तंगी , भविष्य अंधकारमय , बच्चों की पढ़ाई अनियमित पुरुष का दिन भर घर में होने से ,हर वक्त डर बना रहना परिवार का भरण-पोषण  बहुत सारी समस्याओं से जूझ रहे हैं ऐसी परिस्थिति में मानसिक दबाव चिन्ता तनाव की स्थिति बनी हुई है परिणाम स्वरूप कुछ घरों में सहनशीलता और धैर्य की कमी होने , से हिंसा हो रहें हैं।
अब चलिए समस्या समाधान पर चर्चा करते हैं
1   परिस्थितियों को स्वीकार करना होगा । accept the situation
2अनरगल इच्छा को छोड़ने के सिवा कोई उपाय नहींavoid unwanted factors
3    Alter the situation  परिस्थितियों में बदलाव लाना होगा 
Emotional support परिवार में तार्किक तरीके से आपस में बनाना होगा 
दोषारोपण की प्रक्रिया को छोड़ कर आगे बढ़ना होगा ।
महिलाओं एवं पुरुषों दोनों को अपनी गुणवत्ता को विस्तारित करना आवश्यक है।
अपनी जीवनशैली में बदलाव करना आवश्यक है 
खान-पान की शैली में बदलाव लाना ही होगा  
कोरोनावायरस से ज़माने को बदल दिया है अगर पुरानी जीवन शैली में रहने की कोशिश की जाएगी तो जान जोखिम में डालने के बराबर है ।
S1. S2  एक फार्मूला। S1 से self होता है s2 सेsurroundingहोता है । क्या आप अपनी surrounding को आसानी से बदल सकते हैं तो ज़बाब मिलेगा    नहीं 
तो फिर सोचिए आप के सामने क्या है अपने आप को बदलना 
घरेलू हिंसा स्वत समाप्त हो जाएगी  । परिस्थिति के अनुसार बदलना ही समाधान है
- डाँ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
लॉक डाउन के कारण घर के सभी सदस्य चौबीस घंटे घर में ही रहने के लिए विवश हैं। ऐसे में किसी को भी अपने लिए व्यक्तिगत स्पेस मिल पाना असंभव है। ऐसी ही स्थिति में मानसिक असंतोष घर करने लगता है। घर में पत्नी सब सदस्यों की इच्छानुसार खाना, नाश्ता बनाते, और घर के सभी कामों की जिम्मेदारियाँ निभाते हुए परेशान हो जाती है। यह परेशानी तब और भी बढ़ जाती है जब घर के किसी भी सदस्य का उसे सहयोग प्राप्त नहीं होता और उसकी खराब होती तबियत की ओर भी कोई ध्यान नहीं देता। सब अपने खेलने, खाने, सोने और टेलीविजन देखने में लगे रहते हैं और कुछ कह देने पर विवाद की स्थिति पैदा हो जाती है। आर्थिक संसाधन भी सीमित होने से ऐसी स्थिति आती है।
        इस स्थिति से निबटने के लिए घर की महिला को गृह और वित्त मंत्रालय कुशलता से संभाल कर कम में काम चलाना सबको सिखाना चाहिए। खाने की बरबादी न हो, बचा खाना रात को खाया जाये, बिजली, पानी की खपत कम रहे इसका भी ध्यान रखना सबको बताना चाहिए। उससे भी बड़ी बात,,, जब सब घर में ही रह रहे हैं तो घर के कामों को करने की जिम्मेदारी सब में बाँट देनी चाहिए ताकि एक ही व्यक्ति के ऊपर कामों का बोझ न पड़े।
         इसके अतिरिक्त नियम बना कर उनका पालन करवाया जाए... सुबह-शाम योग-व्यायाम हो, काम ख़त्म होने के बाद अपनी रुचियों के अनुसार पेंटिंग, बनाई, कढ़ाई, पुरानी चीजों से कुछ नया बनाना, किचन गार्डन, संगीत, नृत्य आदि काम सब करें, मिल कर लूडो, साँप-सीढ़ी, कैरम, अंताक्षरी खेलें। ऐसा करने से सब व्यस्त रहेंगे और साथ रहने का आनंद भी उठायेंगे, काम में हाथ भी बटायेंगे, मिलजुल कर साथ रहना भी सीखेंगे। बढ़ती घरेलू हिंसा पर अंकुश भी लगेगा।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
    देहरादून -  उत्तराखंड
लाॅकडाऊन में घरेलू हिंसा का नया प्रारूप सामने आ रहा है। ऐसे माहौल बन रहा है जिसमें परिवार में आत्मसंतुष्टि नहीं बन रही है। जिसके कारण आपसी तनाव पनप रहा है तथा सहनशीलता व संयम की कमी झलकती है इस कारण आपसी तनाव आखिर चरम सीमा तक पहुंच जाता है और वह हिंसा का रुप धारण कर लेता है। इस तनाव से बचने के लिए सहनशीलता बढ़ाने के लिए संयमित रहने के लिए नियमित योग तथा शारीरिक अभ्यास करना चाहिए। निठल्ले कभी नहीं रहना चाहिए जिससे नुक्स न होते हुए नुक्स दिखाई देते हैं और झगड़े का कारण बनते हैं और मारपीट तक की नौबत आ जाती है। घरेलू हिंसा से नित्य क्रियाशील रहना चाहिए यही एक मात्र उपाय है। तनाव से मुक्त होने का।।
- हीरा सिंह कौशल 
 मंडी - हिमाचल प्रदेश
 लाभ डाउन में बढ़ती घरेलू हिंसा का समाधान है हर व्यक्ति को इस विपत्ति की घड़ी में समझ कर व्यवहार कार्य करना चाहिए अगर कोई चीज का अभाव है तो उसे किस तरह से पूरा किया जाए इस पर घर परिवार के लोग बैठकर आपस में इस अभाव का समाधान ढूंढना चाहिए ना की झगड़ा झंझट होना है। कोई भी व्यक्ति जब भी झगड़ा झंझट करता है उसके दो कारण होते हैं एक तो कोई वस्तु की अभाव के कारण होगा या उनके मनपसंद का कार्य ना होने पर होता है लेकिन कहीं भी घरेलू हिंसा होना किसी को स्वीकार्य नहीं होता अतः समाधान का एक ही उपाय है कि हर व्यक्ति को जब भी विपत्ति आई वहां पर सोच समझकर के परिवार की व्यवस्था को बनाए रखना चाहिए ।हर व्यक्ति सम्मान के साथ जीना चाहता है अतः सभी का सम्मान करते हुए एक दूसरे का सहयोग भाव रखते हुए आपस में स्नेह अभाव के साथ हर कार्य को मिल कर खुशी खुशी करना चाहिए।
 घरेलू हिंसा का समाधान वास्तु के अभाव को मेंटेनेंस कर एवं एक दूसरे को समझ कर व्यवहार और कार्य करें घर पर रहे ।समस्या है तो समाधान है ही आज नहीं तो कल।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
लंका के यातना शिविर के बाद भी देनी पड़ी अग्नि परीक्षा मुझे ,देनी पड़ी अग्नि परीक्षा मुझे l 
महाभारत रामायण काल से लेकर आज 21वीं सदी तक अग्नि परीक्षाएं अनवरत गतिमान हैं l मानव समुदाय में इन यातनाओं के पीछे कहीं न कहीं हमारा भ्रांत अहंकार तो नहीं है l लॉक डाउन के चलते घरेलू हिंसा के मामले 
40%तक बढ़ गये हैं l वर्तमान परिस्थितियों में इनकी सुनवाई भी नहीं है l घरेलू हिंसा में लैंगिक हस्ताक्षेप नहीं है l ये दो तरफा चैनल है जिसमें सीमित पारिवारिक संवेदनाओं की कमी ने  इस लॉक डाउन में इस दौर को हवा दी है -
किसी के ज़ख्म पर चाहत से पट्टी कौन बांधेगा l 
अगर बहनें नहीं होंगी तो राखी कौन बांधेगा ll 
हमारे सामाजिक ,पारिवारिक ,आर्थिक और नैतिक मूल्यों का जिस दर से अधोगामी पतन हो रहा है ,मंजर यों है कि -
हालात है कुछ ऐसे ,
यहाँ हवाओं में भी ख़ौफ़ रहता है , 
हर नारी झूंठी लगती है ,
यहाँ हर मर्द पवित्र लगता है l 
  23मार्च से 30मार्च तक घरेलू हिंसा की 80% शिकायतें राष्ट्रीय महिला आयोग को प्राप्त हुई हैं l मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मानसिक तनाव ,नौकरी छूटना और अन्य पारिवारिक समस्याओं से उतपन्न होकर हमारा तनाव घरेलू हिंसा का रूप लेता है l इससे बचने का hl यही है कि पारिवारिक सदस्य इस समय सामंजस्य पूर्वक जीवन यापन करें l घरेलू हिंसा से बचाव के लिए वर्तमान में रिश्तों के परिपक्वता की अहम आवश्यकता है l यद्यपि कमाई व आय को लेकर तनाव अवश्यसंभावी है l 
महिलाएं अवांछित लाभ लेने पर उतारू हैं l पुरुष वर्ग घर में है और वह काम का बँटवारा चाहती है ,विभाजन चाहती है l उन्मादी अवस्था में वह आक्रामक रूप अख्तियार करती है l घरेलू हिंसा का समाधान मेरी नज़र में -
1 . छोटी गलतियों को नज़र अंदाज करें l 
2. दोनों पक्षों को अच्छाई और बुराई को स्वीकार करना चाहिए लिए l 
3. एक दूसरे के प्रति सकारात्मक व्यवहार रखें l 
4. कमियों को पकड़कर ज्यादा टोकाटाकी न करें और 5. सिर से पानी गुजर जाये तो राष्ट्रीय महिला आयोग को 7217735372 पर शिकायत करें l 
नैतिक मूल्यों का अधोगामी पतन ने दहेज हिंसा को सुरसा की भाँति हमारे सामने कर दिया है l 
       चलते चलते -
मांग ने मांग मिटाई ,
जब मांग सासरे आई l 
रात लगाई मेहँदी ,
सुबह देख न पाई ll 
ये लोभी कागला !
कांई जाने बागां की अमराई l 
मांग ने मांग मिटाई l
मानवता पर कलंक    
  दहेज आक्रांता
- डाँ. छाया शर्मा
अजेमर - राजस्थान
लॉक डाउन में परिवार के सदस्य घर में रहने को विवश हैं। परिवार के पोषण के लिए आर्थिक समस्या, सबकी फरमाइशी पूरी करने हेतु महिलाओं पर अतिरिक्त काम का बोझ होने से कहीं मानसिक तो, कहीं शारीरिक हिंसा बढ़ी हैं।
 विशेषकर अशिक्षित व श्रमिक वर्ग में इसकी अतिशयता अधिक है। शिक्षित वर्ग में यह हिंसा मानसिक हिंसा का रूप ले लेती है। अब समाधान तो यही है कि हिंसा होने से पूर्व ही परिस्थिति को भाँपकर परिवार के मुखिया को यानी पति- पत्नी को बहुत सूझबूझ से काम लेना है। चाहे मौन रहकर शांति व प्रसन्नता का वातावरण बनाना है या फिर घर में ही रहकर बच्चों के साथ, बुजुर्गों के साथ विनम्रता पूर्ण वार्तालाप कर समाधान करना होगा। परिस्थिति को समझना होगा यह भी हो सकता है, हिंसा का शिकार होने से पहले एक दूसरे के मनोभावों को समझ कर या तो उनके अनुरूप काम करते जाओ अथवा उन्हें अपने अनुरूप ढाल लो। किसी के बन जाओ या किसी को अपना बना लो; यही एक सफल नुस्खा है; इस घरेलू हिंसा से बचने का। इस स्थिति में अपार धैर्य व समझदारी की आवश्यकता है।
        मान कर चलो; दुख या संकट स्थाई नहीं होते, आते हैं और चले जाते हैं। एक रात के बाद अगले दिन सूर्य का प्रकाश निश्चित है।
  - डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
घरेलू हिंसा पनपती है जब घर में या तो एक व्यक्ति अपना वर्चस्व कायम करना चाहता है या फिर वे एक दूसरे के विचारों के विपरीत प्रकृति के हों या एक पक्ष कमजोर हो और वह लगातार दूसरे पक्ष द्वारा प्रताड़ित होता हो ।
 हमें देखना होगा कि इस हिंसा में क्या हो रहा है । पहले वाली ही स्थिति है या उसके विपरीत परिणाम देखने को मिल रहे हैं । क्योंकि इस काल में दोनों पक्ष को घर में ही रहना है। पुरुष वर्ग को चाहे वह रोजगार वाले हो या बेरोजगार, घर में रहने की आदत नहीं है। वे अधिकतर घर के बाहर ही दिखते हैं, कभी दोस्तों के साथ या सड़क पर टहलते नजर आएंगे ।स्त्री वर्ग के ऊपर घर के अंदर की सारी जिम्मेदारी है। बच्चे भी पालने हैं, खाने का इंतजाम भी करना है, आमदनी का जरिया भी ढूँढना है। लेकिन इस आपातकाल में दोनों ही घर में हैं । सभी मानसिक तनाव की स्थिति को झेल रहे हैं , जिम्मेदारियों के लिए तनाव है, साथ ही एक दूसरे की खामियां ढूंढ रहे हैं और यही स्थिति हिंसा का रूप ले रही है।
इससे बचाव तभी सम्भव है, जब परिवार के सभी सदस्य एक दूसरे के तनाव को समझेंगे और एक दूसरे से बातचीत करेंगे। खुद से बाहर निकल कर परिवार के लिए सोचना है। हर व्यक्ति की मनोदशा के अनुसार तनावमुक्त वातावरण तैयार करना हर वयस्क की जिम्मेदारी है। पति-पत्नी को एक-दूसरे की जिम्मेदारी को बांटते हुए कुछ ऐसे कार्य की रूपरेखा तैयार करनी होगी जिसमें हर सदस्य की भूमिका हो। हर किसी को लगे कि उन्होंने घर को संभाला है । एक दूसरे की बुराइयों को ढूँढना छोड़ कर अच्छाइयों को आगे करने की पहल ही इस हिंसा से छुटकारा दिला सकती है ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
पुरुष प्रधान समाज में सदियों से महिला घरेलू हिंसा का शिकार रही है । अब लाकडाउन से पुरुष अपने घर परिवार से बाहर नहीं निकल पा रहा है ,  तो अपनी पत्नी पर हिंसा करके भड़ास निकालता है । यह हिंसा तो कोरोना से भी ज्यादा खराब है ।
घरेलू हिंसा की शिकायत राष्ट्रीय महिला आयोग , पुलिस के पास भी रोज  महिलाओं की इस तरह की शिकायत आ रही हैं ।
इन शिकायतों के लिए तो पुलिस विभाग से कॉन्सलिग की व्यवस्था होनी चाहिए । जिससे उनके संहहणे से दंपतियों में साकारात्मक सोच से घरेलू विवाद रुकेंगे ।शिकायत होने से पुलिस विभाग को पीड़िता की मदद करनी चाहिए ।
हर वर्ग चाहे मध्यम वर्ग हो , गरीब वर्ग , अमीर वर्ग में घरेलू हिंसा देखने को मिलती है । लेकिन अमीर वर्ग की महिला पुलिस में शिकायत नहीं करती हैं । 
 काम की नोकरानी न आने से हर घर  में स्त्री का काम बढ़ गया ,  तो  इसे लेकर घर के रिश्तेदारों , पति से विवाद बढ़ता है । ऐसे संकट के समय दंपतियों को अपनी सोच परिपक्व करनी चाहिए । परिवार के हर सदस्य  को मिलजुल कर कसम करना चाहिए । सास बहू को  टोके नहीं   । सबआपस में साकारात्मक व्यवहार करें । छोटी गलतियों पर ध्यान नहीं दें ।
तभी घर में शांति से हिंसा को समाधान मिलेगा ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
मेरे विचार से आजकल सहनशीलता, धैर्य , त्याग जो पहले की नारियों में प्रचुर मात्रा में होता था, आज उसमें अत्यंत कमी होती जा रही है । बहुत हद तक ये भी कारण हो सकता है कि आज की महिलाएं भी घर से बाहर भी हर क्षेत्र में अग्रणी है ।शायद ये भी एक कारण है कि अब महिलाएं स्वालंबी हो गयी है, तो एक तो उनके पास भी समय की कमी आ गई है । फलत: महिलाएं आजकल घर के कामों में पुरुषों का सहयोग चाहती है।जब सहयोग नहीं मिलता तो घरेलू हिंसात्मक घटनाओं में वृद्धि होती है। समाधान तो यही है कि आपस में एक-दूसरे का सहयोग करें ,एक दूसरे को समझें ,एक दूसरे की महत्ता को स्वीकार करें ।जीवन की गाड़ी दोनों पहिए से चलती है। फलत: दोनों को यह बात समझनी पड़ेगी।आज लाॅक डाउन के कारण लोगों के पास काफ़ी समय है,,भागा_ भागी वाली जिंदगी पूर्णतः थम सी गई है। इसी कारण लोग आदतन अचानक से ऐसी बंदी वाली जिंदगी से ऊब रहें हैं । बात बिना बात के जरा सा में हीं ऊलझ जा रहें हैं और झगड़ा तूल पकड़ लेता है, परिणाम स्वरूप हिंसात्मक अंत ज्यादा विवाद बढ़ जाने के कारण । आपसी प्यार,आदर, त्याग की भावना,एक दूसरे का मान सम्मान करना,इगो को परे रख कर सहनशीलता अपनाया जाए छोटे-बड़ो का लिहाज किया जाए ,, फिर शायद हम ऐसी घरेलू हिंसात्मक घटनाओं को रोकने में काफी हद तक सफल हो सकतें हैं ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार

" मेरी दृष्टि में "  लॉक डाउन में अच्छे - अच्छे का मानसिक सतुलन बिगड़ जाता है । इस को सबसे अच्छा इलाज योगा है । प्रतिदिन सभी को योगा कर के अपने आप को फीट रखना चाहिए । और अपने आप पर संयम अवश्य रखें ।
                                                          - बीजेन्द्र जैमिनी








Comments

Popular posts from this blog

वृद्धाश्रमों की आवश्यकता क्यों हो रही हैं ?

हिन्दी के प्रमुख लघुकथाकार ( ई - लघुकथा संकलन ) - सम्पादक : बीजेन्द्र जैमिनी

लघुकथा - 2023 ( ई - लघुकथा संकलन )