कोरोना के चलते गरीबों को खाना देते हुए फोटों खिचना क्या उचित है ?

कोरोना के चलते लोगों को लॉक डाउन में रहना पड़ रहा है । गरीब व मध्यम वर्गीय परिवार को बहुत कुछ सहन करना पड़ रहा है । सरकार काफी हंद तक सहायता भी पहुंच रही है । फिर भी कुछ लोगों की आय पूरी तरह से खत्म होने के कारण से खाने के लाले पड़ गये हैं ।ऐसे लोगों को खाना देकर फोटों खिचवा रहे हैं और उन को सोशल मीडिया पर डाल रहें हैं । क्या यह उचित है । यही " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । आये लोगों के विचारों भी देखते हैं : -
 कोई भी परिस्थिति में गरीबों को खाना देते समय फोटो खींचा ना व्यावहारिक तौर से उचित नहीं माना जाता है। मनुष्य वर्तमान में अपना पहचान रूप, बल  पद,धन में ढूंढ रहा है ,जबकि यह मनुष्य का स्थाई पूंजी नहीं है ।स्थाई पूंजी तो मानवीयता पूर्ण आचरण के साथ  जीना है। इस पर मनुष्य का ध्यान नहीं जा रहा है बल्कि दिखावा में जा रहा है। दिखावा जिंदगी औरों एवं स्वयं के लिए ठीक नहीं होता ।इससे कुछ पल के लिए क्षणिक सुख मिलता है। स्थाई नहीं। जरूरतमंद लोगों को परिस्थिति वश सहयोग  कर देना देना हमारा मानवीय गुण है। हम मानव हैं  मानव मुसीबत के समय यथासंभव सहयोग कर माननीय दायित्व का निर्वहन करते हैं। ताकि अभी जो समस्या है उस समस्या का कुछ पल के लिए निवारण हो जाए। बस इतना सी बात है इसमें फोटो खिंचवाना, वायरल कर  सभी को दिखाना चाहे वह बड़े आदमी हो या छोटे उचित नहीं माना जाता। सीधी सी बात दिखावा माना जाता है कुछ लोग दिखाकर जनता से सम्मान या प्रशंसा पाना भी चाहते हैं ऐसा सोचना भ्रम है ,क्योंकि मनुष्य सामान से कभी सम्मान नहीं पाता है। मनुष्य की उपयोगिता ही उसका सम्मान है। मनुष्य स्वयं, परिवार, समाज  प्रकृति के लिए जितना अधिक उपयोगी होता है। उतना ही सम्मानित होता है जो मनुष्य स्वयं में सम्मानित रहता है। उसे किसी की सम्मान  के लाले नहीं होता ।वह स्वयं सम्मानित रह कर सुख चैन से जीता हुआ एवं औरों को सम्मान पूर्वक जीने का प्रेरणा देता है ना कि दिखावा कर सम्मान अर्जित करता है। गरीबों को सहयोग दिखावा पूर्वक करता है ऐसे लोगों में अहंकार और गरीबों में अपमान प्रवृत्ति प्रायः  ऐसा देखा जाता है। गरीबों का सहयोग अंतरात्मा से खुश होकर किया जाता है ।जिसमें कोई दिखावा नहीं होता ।  अपनत्व भाव  माननीय गुण होता है ।ऐसे लोगों को दिखावे की आवश्यकता नहीं होती। ऐसे लोग धन का उपयोग किसी की पोषण संरक्षण के लिए उपयोगी कर पाए इतने में ही संतुष्ट एवं औरों को संतुष्ट करता है यह हमारा भारतीय संस्कृति है। विशेष परिस्थिति में समाज के जरूरतमंद लोगों के लिए मेरा मन, तन, धन का सदुपयोग हो यही मेरा मानव होने का प्रयोजन है। ऐसा सोचने वाला दिखावा नहीं करता ।अतः कहा जा सकता है कि वर्तमान में करोना समस्या से पीड़ित लोगों का सहयोग करते फोटो खींचा ना व्यावहारिक तौर पर दिखावा और अनुचित है चाहे कोई भी वर्गों के लोग हों दिखावा ही माना जाता है।
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
कदापि नहीं ! आज हम पर बहुत बड़ी विपत्ति आई है !
अच्छे-अच्छे के हौसले पस्त हो गए हैं किंतु कोरोना के चलते जो गरीबों की हालत गिरी है भगवान किसी को ना दिखाए फिर भी बहुत सी संस्थाएं ,प्रशासन उनकी अनाज, खाना दे मदद कर रहे हैं ! अब प्रश्न यह है कि उनके साथ फोटो खिंचवाने की ---यह तो बिल्कुल नहीं करना चाहिए!
 बहुत सी संस्थाएं अनाज बाटते समय अपनी संस्था का नाम बोरी में लिख डालते हैं बहुत से व्यक्ति अनाज, खाने के पैकेट देते समय अपना फोटो उसके साथ खिंचवाते हैं सही मायने में वे दान नहीं अपना अहम दिखाते हैं !
अपनी अमीरी का अहंकार दिखा उसके साथ फोटो ले उसकी गरीबी का मजाक उड़ाते हैं और यह अधिकार किसी ने उन्हें नहीं दिया है कि मजबूरी में उनका मखौल उड़ाये! 
मानव सेवा को ईश्वर सेवा तुल्य माना गया है !आदमी की पहचान उसके कर्म और व्यवहार से होती है !
उसे बताना नहीं पड़ता कि उसने समाज में पीड़ित लोगों के लिए क्या-क्या किया!
 एक व्यवहार कुशल व्यक्ति निःस्वार्थ भाव से ,बिना अहंकार के गरीब की मान सम्मान को ठेस न पहुंचे इसका ध्यान रखता है ! जो व्यक्ति गरीब की मदद करते वक्त अनाज देते हुए फोटो खींचा , दिखाने की चाहना रखता है तो मतलब साफ है वह सेवा नहीं करता बल्कि उस सेवा में उसका अहंकार होता है ! 
अंत में कहूंगी विपत्ति का स्वाद किसने नहीं चखा स्वयं प्रभु भी अछूते नहीं रहे अहंकार का त्याग कर जो सेवा करता है वही असली सेवा है !
प्रभु ने कहा है निःस्वार्थ सेवा ही परम धर्म है!
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
"तुम्हारा बायां हाथ जो देता है,उसे दायाँ हाथ न जान पाए ।"
                           -बाइबिल
 गरीबों को कोरोना संकट काल में खाना देते फोटो खिंचवाना करुणा, दान ,मानव प्रेमनहीँ हमारा जुनून और स्वार्थ का सबब बन जाता है l जो हम है उसे नहीं मानकर अपने पर अहम को शांत करने का एक माध्यम है "अन्नदान"का प्रदर्शन l ऐसा फोटू खिंचवाना अपने किये का तुरन्त प्रतिदान चाहना है और यही आज के मानव के मूल दुःखों का कारण है l जबकि चिड़िया, पशु, पक्षी भी ऐसा नहीँ चाहते हैं l ऐसी गतिविधियाँ अन्नदान का भौंडा प्रदर्शन ही होगा l
हे करुणा, तू हर मन बसती है
पर हाथों पर तू क्यों जमती है
करुणा तू हर मन बसती है
देखे कोई क्षुधा से व्याकुल
व्याकुल तू भी तो लगती है
खिलाती है रोटी पर, क्यों तू"मजबूरी"कोफोटू खिंचवाकर फंसाती है,करुणा तू हर मन बसती है
आज जीवन संकट काल में 
बस जा तू हाथों में
निर्झर झरना बनकर
अविरल बहती जा
हर मन आँगन द्वारे
बहती जा हर आँगन द्वारे
करुणा मन में है पर
 कर्मों में स्वार्थ भरा
फोटू खिचवानेवालों
काश,यह करुणा 
हमारे कर्मों में झलकती l
इसलिए मोन हूँ
क्योकि मुझे पता नहीँ कौन हूँ मैं
मन विचलित और बेचैन हूँ
"मुखोटे" लगाए घूम रहा है इंसान
के रूप में l भ्रान्त अहंकार को मेरा कदम कदम पर मेरा अपमान बचती रहती हूँ मैं कैमरे की नजर से बचाने को अपना सम्मान l 
मत कीजिए आप द्वारा किए गए अन्नदान का अपमान l
मैं कौन हूँ-
मैं हिंदी की कविता, वो उर्दू की ग़ज़ल जैसी l
मेँ भगवान की करुणा, वो अल्लाह की फ़जल जैसी ll
  चलते चलते-
आपके हाथों फोटू खिंचवाकर अन्न ग्रहण करने वालों के उदगार
तेरी अतुल्य काया और माया 
को हमारा सज़दा है
तू रहे हमेशा सलामत
यही"प्रभु"से दुआ है l
- डाँ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
कोरोना के चलते गरीबों को खाना देते हुए फोटो - वीडियो आदि निकलवाना उनके लिए उचित है, जो ऐसा करके अपने दानवीर होने के प्रमाण तैयार करना चाहते हैं।
    जो मन मेंआज गरीबों के प्रति सचमुच संवेदनाएं रखते हैं, वे केवल अपना कर्म करके ही संतुष्ट हो जाते हैं।
 दिखावा करने वलों को शायद  अपने कर्म का रिकार्ड बनाने की इच्छा प्रबल होती है।
 -  डा. चंद्रा सायता
 इंदौर - मध्यप्रदेश
कोरोना के चलते या बिना कोरोना के भी, कहीं पर भी, गरीबों को खाना देते हुए उनके साथ व्यक्तिगत रूप से फोटो खिंचवाना उचित नहीं है। जिस को जो भी पुण्य कार्य करना है ; उसके लिए पब्लिसिटी स्टंट की क्या आवश्यकता है अर्थात कोई आवश्यकता नहीं; क्योंकि कोई भी दान स्वेच्छा से होता है फिर इतना प्रचार, प्रसार, दिखावा ठीक नहीं। भूखे को भोजन, प्यासे को पानी इससे बड़ा कोई दान नहीं है। किसी का जीवन बचाना और उसे जीवन देना परमधर्म एवं परोपकार है। जनता के अच्छे  कार्यों  ( गरीबों को भोजन वितरण, दैनिक आवश्यकता की प्रतिपूर्ति) के लिए यदि जनता के चुने हुए हजारों, लाखों लोगों का प्रतिनिधित्व करते प्रतिनिधियों का मीडिया फोटो खींचकर यदि वायरल करता है तो यह मीडिया की अनिवार्यता है तथा समाज के लिए एक प्रेरणास्पद मैसेज होता है पर व्यक्तिगत स्तर पर गरीबों, भूखों को भोजन खिलाते समय पर फोटो, सेल्फी इत्यादि क्रियाएं मात्र प्रशंसा, दिखावा व यश- लालसा की प्रतीकात्मकताएं हैं।
        अत: आम लोगो द्वारा गरीबों को भोजन- वितरण, निस्वार्थ, निष्काम भाव से, दिखावे से दूर, परमार्थिक  होना चाहिए ।
- डाॅ.रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
फोटो खींचना किसी का शौक या हॉबी हो सकती है । मैं इसके खिलाफ नहीं हूँ। लेकिन फोटो खींचने के बाद सोशल मीडिया पर डालने से पहले समझ लेना चाहिए कि कहीं वह फोटो भारत की छवि को बिगाड़ तो नहीं रहा? 
आप अपनी बात करें , खुद को सामान ले जाते हुए दिखाएं , परन्तु उन दुखियों की फोटो सार्वजनिक करना सामाजिक कार्य को ठेस पहुंचाना है । किसी भी देश से सामान का वितरण करते हुए कोई भी फोटो नहीं आई है । कार्यकर्ता की फोटो है, परंतु अपने जरूरतमंदों को विश्व के सामने कोई भी नहीं लाता है। यहाँ तक कि मौत की खबरें भी छिपाई जाती हैं जैसा कि चीन और अमेरिका में किया गया है। 
हमारे भारत की विश्वसनीयता पर सवाल न खड़ा होने दें । आज मोदी जी के निर्णय पर विश्व ने भरोसा जताया है और उन्हें अपना लीडर माना है। हमारी सभ्यता की नींव विश्वास है । तब्लीगी जमाती व निहंग जमात भारत के दुश्मन बन कर उभरे हैं । उन्हें उसी तरह अपना दुश्मन मानना चाहिए जिस तरह घर को तोड़ने वाले को माना जाता है। इन दुश्मनों का सामना भी समाज के साथ करना होगा । अगर तस्वीर प्रकाशित ही करवानी है तो उन्हें पहचान कर उनकी तस्वीर के साथ आप आएं ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
कोरोना के समय हो या अन्य किसी दान या सहयोग करने के अवसर पर फोटो खिंंचवाना और फिर प्रचार- प्रसार करना  शोभनीय नहीं कहा जा सकता। यद्यपि कार्य प्रशंसनीय है। हालाकि ऐसे भी परोपकारी और हितैषी वर्ग भी हैं जो व्यक्तिगत अथवा समिति बनाकर जनहित के कार्य में लगे हुए हैं और कभी प्रचार-प्रसार में दिलचस्पी लेते हुए नहीं देखे गये हैं। जनहित का कार्य इतना संवेदनशील और महत्वपूर्ण सामाजिक कार्य है कि रूप और प्रतिक्रिया जैसी भी हो, आवश्यक तो है। यदि ऐसे कार्य में वे फोटो भी खिंचा रहे हैं तो इसे व्यक्तिगत सोच मानकर चुप रहना समझदारी होगी। उनकी यह लालसा ही सही, इसके एवज़ में किसी जरूरतमंद की जरूरत की पूर्ति तो हो रही है। 
  अतः सभी सामर्थ्यवानों को जनहित के कार्यों में विशेषकर असहाय,बेबस,लाचार, भूखे, अबला आदि के लिए अपनी सामर्थ्य से दान-सेवा जरूर करना चाहिए।
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
 गाडरवारा - मध्यप्रदेश
वैसे तो यह आजकल लोग हर छोटी बड़ी बात की फोटो सोशल मीडिया पर डालते ही रहते हैं। फिर कोई सामाजिक कार्य और गरीबों की सहायता जैसे कार्य करते समय फोटो खींचकर अपनी वाहवाही कराने का लोभ कैसे संवरण कैसे कर सकते हैं। यदि मात्र दिखावे के मकसद से ही फोटो खिंचवाई जाती है तब ये गलत बात है। हमारे यहाँ तो पुरानी कहावत भी है कि 
      "नेकी कर, दरिया में डाल"
इस बात को हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। 
        लेकिन यदि दूसरे नजरिए से देखें तब पाएंगे कि कभी कभी ऐसी तसवीरें दूसरों के लिए प्रेरणादायक सिद्ध होती हैं। तसवीरें देखकर अन्य व्यक्ति भी प्रेरित होकर इन सामाजिक कार्यों में अपनी सहभागिता के लिए आगे आते हैं और तत्परता दिखाते हैं। और इससे समाज का भला ही होता है।
               - रूणा रश्मि
            राँची -  झारखंड
किसी भी चीज की जब अति होने लगती है तो उसकी उपादेयता पर प्रश्न चिन्ह स्वाभाविक होता है । अक्सर देखने में आता है कि लोग देते कम दिखावा ज्यादा करते हैं । हमारे धर्म शास्त्रों में कहा गया है कि दान ऐसा हो जो दायाँ हाथ दे तो बाएँ हाथ को भी पता न चले ।
ये तो पुरानी बात हो गयी । आजकल सबके हाथ में मोबाइल है तो फ़ोटो तो खींची ही जायेगी । वैसे भी जब लोग सेना तक से सबूत माँगते हैं कि आप फ़ोटो दिखाइए तो अवश्य ही जब ये महामारी मिट जायेगी तो पूछा जायेगा कि हम कैसे मान लें कि आपने मदद की , और इसमें कोई आश्चर्य नहीं कि जिसकी मदद करो वही प्रश्न चिन्ह लगा देता है कि मुझे तो मिला ही नहीं ,सो फ़ोटो रहने से ये पता चलता कि खाने की मात्रा व गुणवत्ता कैसी दिख रही है ।
दूसरा लाभ ये भी है कि भले ही ये दिखावा हो पर फ़ोटो पोस्ट करने के चक्कर में ही सही लोग कुछ अच्छा कार्य कर रहे हैं व दूसरों को भी प्रेरित कर रहे हैं ।  
समझदारी इस बात में है कि संकट के दौर में यदि हम दिखावे से दूर होकर अच्छा कार्य करें तो अवश्य ही बिना फ़ोटो के भी नाम होगा क्योंकि काम बोलता ही है । अतः अच्छे कर्म पर ध्यान दें, फ़ोटो खींचने खिंचवाने के बहुत अवसर मिलेंगे यदि जन मानस की भावना आहत होती है तो इससे बचना चाहिए ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
गरीबों को खाना खिलाने समय फोटो खिंचवाने की जो परम्परा उचित भी है अनुचित भी है फर्क इतना है कि उसके पीछे व्यक्ति का उद्देश्य क्या है।
यदि उद्देश्य सिर्फ अपनी पब्लिसिटी करवाना है तो यह बिल्कुल अनुचित है समाजिक दृष्टि कोण की ओर से।
यदि समाजिक सुरक्षा व्यवस्था को लोगों को सूचित करने का उद्देश्य है तो उचित समझा जाएगा।
मदद कर उसका पब्लिसिटी करना स्वयं के लिए अहितकर है चूंकि मदद करना या दान देना हमेशा गुप्त ही होना चाहिए
- डाँ. कुमकुम वेदसेन मनोवैज्ञानिक
मुम्बई - महाराष्ट्र
किसी को दान करते समय उसका फोटो खींचना नहीं चाहिए क्योंकि दिखावा करना सही अर्थों में दान करना नहीं होता मतलब आप फोटो खिंचवाने के लिए दान कर रहे हो आप दिल से दान नहीं कर रहे हो जो दिल से दान करते हैं वह व्यक्ति दान करने का ढिंढोरा नहीं पीते।
हमारी प्रकृति और धरती हमें अनेकों चीजें देती है और बदले में वह हमसे कुछ नहीं चाहती।
फलों से लदी हुई डाली झुकी हुई रहती है। नदी भी अपना पानी सबको समान देती है।
अधिक संचय करने वाले व्यक्ति अपनी प्रसिद्धि पाने के लिए दान का कार्य करते हैं और फोटो खींच आते हैं महापुरुष और जो व्यक्ति सच्चे अर्थों में दान करते हैं वह अपना कभी नाम नहीं आने देते।
ईमानदारी से मेहनत करते रहो और सच्ची सेवा करते रहो यही हमारा दे होना चाहिए मानव सेवा ही परम धर्म है।
हमारे धर्म ग्रंथ और बड़े महापुरुष भी हमें हृदय से सच्ची सेवा करने की ही शिक्षा देते हैं
सच्ची सेवा और निष्ठा से ही मनुष्य सच्चे अर्थों में ही परोपकार कर सकता है।
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
शर्म आनी चाहिए । गरीबों को खाना खिलाते समय फोटो खिंचवाना और वह भी अकेले नहीं पूरे परिवार के साथ बड़ी ही चिंता का विषय है। कई बार देखती हूं तो अपने ऊपर भी ग्लानि होती है कि मैं यह सब देख कर खामोश क्यों रहती हूं, पर क्या करूं कोई सुने तो ना।
                 कई लोग तो मैंने ऐसे देखे हैं जो पैसा तो लोगों से लेते हैं और खाना खिलाने का सारा क्रेडिट खुद लेते हैं यह कहकर कि फ्री सेवा कर रहे हैं। कहीं छोटे बच्चे मुंह बाय इनकी बाट देखते हैं तो कहीं पर खाना मांगने के बहाने वे लोग भी आगे आ जाते हैं जिन्हें खाने की ज्यादा जरूरत महसूस नहीं होती।
               कम से कम ऐसे समय में जब राष्ट्र ऐसी विकट महामारी का सामना कर रहा हो और गरीबी रेखा से नीचे जीने वाले लोग भी खाने तक से वंचित  रह रहे हों, तब इन खाना बांटने वालों को कुछ तो सोचना चाहिए। फोटो का क्या है वह तो यूं ही हम आपस में एक दूसरे की खींच भी लेते हैं लेकिन ऐसे समय में भी गरीबी का मजाक उड़ाना वास्तव में डूब मरने जैसा है। हमें कतई ऐसा नहीं करना चाहिए और ना ही किसी दूसरे को करने देना चाहिए। भले ही वे हमसे नाराज क्यों ना हो जाए। एक बात और कहना चाहूंगी कि खाना वास्तविक गरीबों तक तो बहुत कम पहुंचता है, लोग अपना घर भी भरने से बाज नहीं आते।
                 कुछेक को तो हमने स्वयं भी देखा है। तीन - तीन महीने तक का राशन अपने घरों में इकट्ठा करके बैठे हैं। ऐसे में किससे शिकायत करें। रोटी का एक टुकड़ा भी यदि हम सच्चे मन से फोटो खिंचवाने की लालसा ना रखते हुए इन गरीबों को देने की कृपा करेंगे तो मेरा विश्वास मानिए, वह दिन दूर नहीं जब हम इन गरीबों की सच्चे मन से सुन लेंगे तो बदले में यह हमें आशीर्वाद के रूप में ना जाने कितना कुछ दे दें।
        - मधु गोयल
    कैथल - हरियाणा
 लोग केवल फ़ोटो के लिए खाना देते हैं तो बिल्कुल ग़लत है और यदि वास्तव में सेवा के उद्देश्य से खाना खिला रहे हैं और फ़ोटो खींच ली जाती है तो यह अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बनता है । वर्तमान में फ़ोटो खींचने के साधनों का प्रयोग एक सरल प्रक्रिया है जिसमें खर्च भी नहीं होता है इसलिए लोग इसका भरपूर लाभ के साथ मनोरंजन के रूप में प्रयोग करते हैं । 
विपरीत परिस्थितियों में सेवा भाव से कार्य करने वाले लोग कभी फ़ोटो के भूखे नही होते हैं और फ़ोटो के भूखे लोग सेवा भाव कम दिखावा ज़्यादा करते हैं जो ग़लत है ये नैतिकता के विपरीत है ।
- डॉ भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
कोरोना के चलते गरीबो को खाना देते हुए फोटो खींचना या खिंचवाना  गरीबी का मजाक बना रहे लोग सिर्फ अपनी ईज्जत देख रहे है। सारी दुनिया पेट के लिए काम करती है। लेकिन समय का दुर्भाग्य देखो , किसी गरीब का भला करने वाले लोग खाना देने से ज्यादा उनका ध्यान सेल्फी और फोटो खिंचाने में रहता है। फिर लोग उसी फोटो को फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर पर शेयर करते हुए अपने आपको दानदाता बताने की कोशिश करते है। उस समय ऐसे लोगो को गरीबो के ईज्जत का ख्याल तिनका भी नही आता। लेकिन सच तो यही है कि जो व्यक्ति  दिल से गरीबो को खाना खिलाता या खाना देता है वो व्यक्ति  फोटो और सेल्फी के चक्कर मे नही पड़ता ।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
कोरोना के चलते गरीबो को खाना देते हुए फोटो खिचवाना उचित नही है । दुनिया कोरोना वायरस महामारी  काल में संकट का सामना कर रही है। गरीब लोग जिनके पास रहने को घर खाने को भोजन नही है महामारी की मार गरीबों पर पड़ी है। लेकिन कुछ समाजिक २ाजनैतिक पार्टीयाँ भोजन दे रही है ।
गरीबो के साथ फोटो खिचाकर सोशल मिडिया पर डाल रहे है ये बिल्कुल गलत है हमारेशास्त्रो में कहाँ है इस हाथ दे दूसरे हाथ को पता नही लगना चाहिए।
रामचरित मानस में तुलसीदास जी ने कहाँ है पर हित के समान कोई धर्म नही । अन्न का दाने देने से अन्न की प्राप्ति होती है किसी की गरीबी का मज़ाक न बनाओं गुप्त दान ही महादान हैै।
 रोटी देते एक
फोटो खिचे अनेक I
देखो आँखो की पीड़ा
उठाये हो धर्म का बीड़ा ।
मज़ाक उनको न बनाओ
खिच कर छायाचित्र 
बनो उनके सच्चे मित्र ।
- नीमा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से आज सृष्टि के अधिकतम शहर और गाँव लॉक डाउन हो चुके है। यह महामारी जो एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में कई प्रकार से चली जाती है इसकी वजह से लॉक डाउन का निर्णय लिया गया है ताकि यह महामारी अधिक न फैले। सम्पूर्ण विश्व में इस महामारी से करीब 19 लाख लोग ग्रसित हो चुके है जिनमे से कुछ ठीक हो गए तो वहीं एक लाख से अधिक मनुष्य मारे जा चुके है। 
ऐसे समय में जो लोग निर्धन है या जिनका घरबार रोजाना की कमाई से चलता था उनकी हालत बिगड़ती जा रही है। इनकी सहायता करने कुछ समाजसेवी और समाज सेवी संस्थाएं आगे आई है। जिससे जितना बन पड़ रहा है, उतना कर रहा है। 
संकट के दौर पहले भी आये है और आज भी आया है। समाजसेवक तब भी सहायता करते थे, आज भी करते हैं।
हम कई मंदिर, या धर्मशाला,या अस्पताल में जाते हैं, तो देखते है वहाँ की दीवार पर सैकड़ो लोगो के नाम लिखे होते है और उन्होंने कितनी धनराशि दी है यह भी लिखी होती है। समाजसेवी का नाम हो और लोगो तक उनके भले कार्य की चर्चा पहुँचे यह बहुत अच्छी बात है और होनी भी चाहिए।लेकिन कभी किसी मंदिर धर्मशाला या संस्था में किसी की मजबूर या असहाय की दान लेते हुए की तस्वीर कभी नही देखी। 
लेकिन आज सोशल मीडिया में लोग अपना गुणगान करवाने के लिए गरीबो को थोड़ा सा राशन देते हुए की तस्वीर वीडियो डाल देते है। यह बुरा समय तो निकल जाएगा मगर जिनके वीडियो और फोटो बने है वे हमेशा के लिए सोशल मीडिया में पड़े हुए रहेंगे और कल जब इनके बच्चे बड़े होंगे तो वे इन सब वीडियो को देख कर शर्मिंदा ही होंगे।
मेरा मानना है कि किसी भी व्यक्ति ने कोई सामाजिक कार्य किया है तो उसे सोशल मीडिया पर जरूर बताये लोग उससे प्रेरणा लेंगे।
मगर यह कार्य बिना तस्वीर और वीडियो के भी हो सकता है।
इस संकट के दौर में कब किसे किसकी जरूरत पड़ जाए। इसका ख्याल रखते हुए सेवा सच्चे हृदय से करिये, बिना दिखावे के करिये।
क्योंकि आपको हमको देने वाला कोई और है और वह सब देख रहा है कि कौन मनुष्य क्या कर रहा है।

एक शेर यूँ भी है कि

"वीडियो को बना कर गरीबों का यूँ
मुफ़लिसी की न इनको सज़ा दीजिये"

स्वच्छ रहे, सुरक्षित रहें।
- कमल पुरोहित "अपरिचित"
कोलकत्ता - प.बंगाल
एक बड़ी प्रसिद्ध कहावत है - नेकी कर दरिया में डाल - इस कहावत के बावजूद अनेकानेक दानी महापुरुषों की गाथाएं हम पढ़ते आये हैं। यदि ऐसी प्रेरक गाथाएं दरिया में डाल दी जाती तो समाज इनके द्वारा प्रेषित एक प्रेरक सकारात्मक सन्देश से वंचित रह जाता। 
आज के भौतिक समय में जब इन्सान केवल 'स्व' तक सीमित रह गया है तब विपदा काल में किसी सामाजिक संस्था अथवा व्यक्तिगत रूप से दान करने वाले यदि अपने पावन सुकृत्य का फोटो खींचकर सोशल मीडिया के माध्यम से समाज के समक्ष एक उदाहरण प्रस्तुत करते हुए सकारात्मक सन्देश देने का प्रयास करते हैं तो इसमें अनुचित क्या है? 
वास्तविकता यह है कि अन्य कोरोना योद्धाओं की तरह ये दानदाता (दान चाहे धन का हो या भोजन का) भी कोरोना योद्धाओं की श्रेणी में आते हैं और इनको भी समाज द्वारा सराहा जाना चाहिए ताकि उनके इस पवित्र कार्य से अन्य वर्ग या व्यक्ति प्रेरणा लेकर समाज हित में ऐसी ही भूमिका निभाने हेतु स्वेच्छा से आगे आयें। 
अत: मेरे विचार से "कोरोना के चलते दान देने अथवा खाना देते हुए फोटो खींचना सर्वथा उचित है। 
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
 देहरादून -उत्तराखंड
मेरा मतानुसार कोरोना के चलते गरीबों को खाना देते हुए फोटो खिंचाना  उचित नहीं है । दान के बारे में नीति में कहा गया है - 
हाथ से दान ऐसा दिया जाता है कि दूसरे हाथ को भी मालूम नहीं पड़ना चाहिए । आज  लाकडाउन में कुछ स्वार्थी इंसान समाज के  गरीबों को खाना देकर फोटो खींच के अपना ढ़ीढोंरा दुनिया में पीटना चाहता है । इस तरह की फोटो हमें अखबारों , दूरदर्शन पर खूब देखने को मिलती है ।
वहीं दूसरी ओर ऐसे कोरोना वॉरियर्स हैं । जिनकी कर्म करना ही शक्ति है ।समाज में , देश में ऐसे भामाशाहों की कमी नहीं है । जो बिना फोटो खिंचाएँ मिसाल बने हैं ।
महेंद्रा एन्ड महेंद्रा के मालिक आनंद महेंद्रा को दुनिया जानती हैं । वे रोज 10 हजार लोगों को अपनी कंपनी के मेस यानी रसोई  में  तैयार  2 वक्त का खाना गरीबों  को पहुंचाते हैं ।
कितनी सामाजिक संस्थाएँ , संगठन  जरूरतमंदों , असहाय लोगों को खाना बनाकर भूखों का पेट भर के अपना राष्ट्र धर्म निभा रहे हैं । कोई गरीब भूखा नहीं सो सके ।
 कितने लोग अपने जन्मदिन , शादी के सालगिरह पर गरीबों को खाना खिलाकर अपनी खुशियाँ बाँट रहे हैं ।
कोरोना के चलते युवा पीढ़ी भी अपने खर्चे से  गरीब मजदूर , असहाय लोगों को अशक्त  और व्याकुल बुजुर्गों को खुद के हाथों से बना खाना खिला। के सेवा कर  रहे हैं । 
 संकट के समय में यही असली मानवता की सेवा है ।
- मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
कोरोना के चलते गरीबों को खाना देता समय फोटो खींचना उचित भी हैं और नही भी। वैसे तो लोग कहते हैं जो भी आप दान करें गुप्त दान करें। कुछ हद तक सही भी हैं। आजकल जितना लोगो मे सेवा करने का भाव आया है। कहीं न कहीं सोशल मीडिया के द्वारा भी इजाफा हुआ है। इसका कारण है दान के समय किसी का फोटोज लोग देखते हैं तो देखने वाले के मन मे भी दान के प्रति उत्साह बढ़ता है और कुछ लोग आगे भी आते हैं और ज्यादा से ज्यादा लोंगो को सेवा दे पाते हैं। फोटो खींचकर फ़ेसबुक या व्हाट्सएप या कोई अन्य साइट पर फोटो अपलोड करते हैं ताकि लोग जागरूक हो और गरीबों की मदद के लिए आगे आये। समाज मे देखा भी जाता हैं कि लोग किसी को देखकर जनसेवा  के लिए आगे भी आते हैं। फोटोज के पीछे एक लालच भी होता हैं कि मेरा नाम हो।
मुझे फोटो में कोई बुराई नजर नही आता । बल्कि मैं देखी हूं फोटो देखकर लोग प्रोत्साहित हुए और समाज सेवा करने के लिए आगे भी आये है।
      - प्रेमलता सिंह
 पटना - बिहार
आप अपनी स्वत:प्रेरणा से,मानवता के नाते इस भीषण आपदा में गरीबों की सहायता कर रहे हैं। किसी ने आप पर दवाब नहीं बनाया कि सहायता करो। इन दिनों और  सामान्य दिनों में बस इतना सा अंतर है, कि तब आपके द्वार जरुरतमंद आता है, और अब, आप जरुरतमंद के द्वार जा रहे हैं। आप किसी को कुछ देते हुए फोटो न खींचिए,ये जरुरतमंद हालात से मजबूर हैं, कोई पेशेवर भिखारी नहीं।सोशल मीडिया में प्रचार करने के लिए सहायता करनी है तो इससे अच्छा है न करें। भोजन देते किसी को ये फोटो मत खींच/शुभकर्मों में जुटा रहा,निज किस्मत को सींच। 
इस आपतकाल में भी कुछ लोग जरुरतमंद को अपने यहां बुलाकर सामान देते हुए फोटो लेने और प्रचार करने में जुटे हैं।हमारे नगर में एक कथित समाजसेवी ने कुछ लोगों की सहायता कर उनके फोटो सोशल मीडिया में प्रचारित कर दिये,जब उन लोगों को पता चला तो सहायता में मिली सारी सामग्री समाजसेवी के घर जाकर वापस कर दी।कितनी जलालत का काम हुआ यह। कुदरत का आभार कर,तू है योग्य समर्थ/फोटो और प्रचार में,पुण्य गवां न व्यर्थ।
- डॉ अनिल शर्मा'अनिल'
धामपुर - उत्तर प्रदेश
कोरोना महामारी (COVID-19) के चलते देशव्यापी लॉकडाउन के कारण कई गरीब परिवार ऐसे हैं जिनके लिए दो वक्त का खाना जुटाना तक मुश्किल हो गया है। इनमें दिहाड़ी मजदूर और ऐसे लोग शामिल हैं जिनकी आय रोज के काम पर निर्भर है।
ऐसे में पुलिस प्रशासन के साथ-साथ कई एनजीओ, समाजसेवी और आम लोग हैं जो इन लोगों की हरसंभव मदद कर रहे हैं। सब मिलकर इन्हें खाना, राशन और बाकी जरूरत के सामान उपलब्ध करवा रहे हैं। इनके बीच कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने गरीबों की इस हालत को सिर्फ एक फोटो खिंचाने का जरिया बना लिया है।
कई लोग हैं जो मदद कम करते हैं और फोटो ज्यादा खिंचवाते हैं। ऐसे लोगों ने गरीबों की इस हालत का मजाक बनाकर रख दिया है। ऐसे ही लोगों पर सख्ती के लिए राज्य में मदद के दौरान फोटोग्राफी करने को बैन किया गया है। राज्य सरकार के इस कदम का सोशल मीडिया यूजर्स तारीफ कर रहे हैं। लोगों ने इसे एक बहुत जरूरी और उचित कदम बताया। लोगों ने कहा कि इस कदम से वे लोग डरेंगे जिनका काम मदद ना करके सिर्फ दिखावा करना है।
लाखों बेघर-मजदूरों का जीवन तबाह हो गया है. न उन्हें काम मिल पा रहा है और न दो वक्त की रोटी.
सरकार के एक फ़ैसले ने उन्हें सड़कों पर ला दिया है..
लाकडाऊन ने दर्जनों मजदूर तो कोरोना से पहले भूख से ही मर जायेगे ।कुछ मजदूर आज की परिस्थिति को नोटबंदी से भी बदतर बता रहे है उनका कहना था, ‘आज जैसी दुर्गति तो नोटबंदी के समय भी नहीं थी. पता नहीं यह वक्त कब और कैसे पार होगा.
कोरोना महामारी में गरीबों की मदद के नाम पर सरकार ने स्वास्थ्य संबंधी मामूली घोषणाएं की हैं. इन घोषणाओं से हमें उम्मीद नहीं कि जब एक गरीब आदमी कोरोना से ग्रसित होगा तो उसे उचित स्वास्थ्य सुविधा मिल सकेगा.
लाखों लोगो को  तीन दिनों से उन्हें दो वक्त का खाना नहीं मिल पा रहा था, अगर कभी मिलता भी है तो वह पेट भरने के लिए पर्याप्त नहीं होता.
खाना बंटने की अफवाह पर सैकड़ों लोगों की भीड़ इकट्ठा हो जाती है. विकलांग, बुजुर्ग, महिलाएं और बच्चे इस भीड़ में पीछे रह जाते हैं. लोग अपने स्वाभिमान की बलि देकर आधा पेट भोजन पा रहे हैं.
यह दुखद है कि सरकार के एक फ़ैसले के कारण खड़ी हुई परेशानी ने मजदूरों को किसी के आगे हाथ बढ़ाने को मजबूर किया है. सभी लोगों को सम्मानजनक तरीके से भोजन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी सरकार की होनी चाहिए , 
जो ग़रीबों को राशन पानी देगा वह फ़ोटो तो जरुर खिंचेगा , 
जो काम सरकार को करना था वह N. G ,0. और जनता कर रही  है । अपनी फ़ोटो तो वह खिंचेगा ही फ़ेस बुक में डालने व अपने दोस्तों के दिखा उन्हें भी इस काम के लिंए प्रेरित करने कितने ऐसे लोग होते हैं जो दूसरे को देखकर करते है । 
तो सही काम कर रहे है तो एक
दो फ़ोटो बनती है । 
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
कहते हैं नर सेवा नारायण सेवा । यदि हम जरुरत मंद की किसी भी रुप में सेवा करते हैं तो हमारे धर्म के अनुसार हम भगवान की ही सेवा करते हैं । करोना त्रासदी के दौरान भूखों और जरुरत मंदों को खाना और खाद्द्य पदार्थ वितरीत करते हुए फोटो या वीडियो बनाना इन्सानीयत का तकाजा नहीं ।
ये केवल ओछापन है जो कतई व्यवाहरिक नहिं ।धर्म में दान वही भगवान को स्वीकार्य है चाहे दानी कम या ज्यादा दे पर दान देने वाले हाथ का दूसरे हाथ तक को पता ना चले कि क्या दिया । दिखा दिखा कर दान देना तो दान ना देने के समान है ।
           - सुरेन्द्र मिन्हास 
बिलासपुर - हिमाचल प्रदेश


" मेरी दृष्टि में " लोगों को सहायता देकर फोटों खिचने पर कई राज्यों में पाबंदी लगा दी गई है । यह सरकार ने अच्छा कदम उठाया है । लोगों की मजबूरी को अपने स्वार्थ के लिए उपयोग नहीं होना चाहिए ।
                                                        - बीजेन्द्र जैमिनी













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