अप्रैल - 2020



सूचना देने वाले को चालीस हजार का ईनाम
राम गोपाल सिंह  एक सेवानिवृत अध्यापक हैं । सुबह  दस बजे तक ये एकदम स्वस्थ प्रतीत हो  रहे थे । शाम के सात बजते-बजते तेज बुखार के साथ-साथ वे सारे लक्षण दिखायी देने लगे जो एक कोरोना पॉजीटिव मरीज के अंदर दिखाई देते हैं।
परिवार के सदस्यों के चेहरों पर खौफ़ साफ़ दिखाई पड़ रहा था । उनकी चारपाई घर के एक पुराने बड़े से बाहरी कमरे में डाल दी गयी जिसमें इनके पालतू कुत्ते "मार्शल" का बसेरा है । राम गोपाल जी कुछ साल पहले एक छोटा सा घायल पिल्ला सड़क से उठाकर लाये थे और अपने बच्चे की तरह पालकर इसको नाम दिया मार्शल। 

इस कमरे में अब राम गोपाल जी , उनकी चारपाई और उनका प्यारा मार्शल हैं ।दोनों बेटों -बहुओं ने दूरी बना ली और बच्चों को भी पास ना जानें के निर्देश दे दिए गये सरकार द्वारा जारी किये गये नंबर पर फोन करके सूचना दे दी गयी । खबर मुहल्ले भर में फैल चुकी थी लेकिन मिलने कोई नहीं आया । 
साड़ी के पल्ले से मुँह लपेटे हुए,  हाथ में छड़ी लिये पड़ोस की कोई एक बूढी अम्मा आई और राम गोपाल जी की पत्नी से बोली -"अरे कोई इसके पास दूर से खाना भी सरका दो , वे अस्पताल वाले तो इसे भूखे को ही ले जाएँगे उठा के" । 
अब प्रश्न ये था कि उनको खाना देनें  के लिये कौन जाए  । बहुओं ने खाना अपनी सास को पकड़ा दिया अब राम गोपाल जी की पत्नी के हाथ , थाली पकड़ते ही काँपने लगे , पैर मानो खूँटे से बाँध दिये गए हों । 
इतना देखकर वह पड़ोसन बूढ़ी अम्मा बोली "अरी तेरा तो  पति है तू भी ........।  मुँह बाँध के चली जा और दूर से थाली सरका दे वो अपने आप उठाकर खा लेगा"। 

सारा वार्तालाप राम  गोपाल जी चुपचाप सुन रहे थे , उनकी आँखें नम थी और काँपते होठों से  उन्होंने कहा कि "कोई मेरे पास ना आये तो बेहतर है , मुझे भूख भी नहीं है" । इसी बीच एम्बुलेंस आ जाती है और राम गोपाल जी को एम्बुलेंस में बैठने के लिये बोला जाता है । 

राम गोपाल जी घर के दरवाजे पर आकर एक बार पलटकर अपने घर की तरफ देखते हैं । पोती -पोते प्रथम तल की खिड़की से मास्क लगाए दादा को निहारते हुए और उन बच्चों के पीछे सर पर पल्लू रखे उनकी दोनों बहुएँ दिखाई पड़ती हैं । घर के दरवाजे से हटकर बरामदे पर, दोनों बेटे काफी दूर अपनी माँ के साथ खड़े थे। विचारों का तूफान राम गोपाल  जी के अंदर उमड़ रहा था।   उनकी पोती ने उनकी तरफ हाथ हिलाते हुए टाटा एवं बाई बाई कहा । एक क्षण को उन्हें लगा कि 'जिंदगी ने  अलविदा कह दिया'।
राम गोपाल जी की आँखें लबलबा उठी । उन्होंने बैठकर अपने घर की देहरी को चूमा और एम्बुलेंस में जाकर बैठ गये ।  
उनकी पत्नी ने तुरंत पानी से  भरी बाल्टी घर की उस  देहरी पर उलेड दी जिसको राम गोपाल चूमकर एम्बुलेंस में बैठे थे।  
इसे तिरस्कार कहो या मजबूरी , लेकिन ये दृश्य देखकर कुत्ता भी रो पड़ा और उसी एम्बुलेंस के पीछे - पीछे हो लिया जो राम गोपाल जी को अस्पताल लेकर जा रही थी। 

राम गोपाल जी अस्पताल में 14 दिनों के  अब्ज़र्वेशन पीरियड में  रहे । उनकी सभी जाँच सामान्य थी । उन्हें पूर्णतः स्वस्थ घोषित करके छुट्टी दे दी गयी । जब वह अस्पताल से बाहर निकले तो उनको अस्पताल के गेट पर उनका कुत्ता मार्शल बैठा दिखाई दिया । दोनों एक दूसरे से लिपट गये । एक की आँखों से गंगा तो एक की आँखों से यमुना बहे जा रही थी । 
जब तक उनके बेटों की लम्बी गाड़ी उन्हें लेने पहुँचती तब तक वो अपने कुत्ते को लेकर किसी दूसरी दिशा की ओर निकल चुके थे । उसके बाद वो कभी दिखाई नहीं दिये । 

आज उनके फोटो के साथ उनकी  गुमशुदगी की खबर  छपी है अखबार में लिखा है कि   सूचना देने वाले को 40 हजार का ईनाम दिया जायेगा । 40 हजार - हाँ पढ़कर  ध्यान आया कि इतनी ही तो मासिक पेंशन आती थी उनकी जिसको वो परिवार के ऊपर हँसते गाते उड़ा दिया करते थे।
एक बार रामगोपाल जी के जगह पर स्वयं को खड़ा करो कल्पना करो कि इस कहानी में किरादार आप हो ।आपका सारा अहंकार और सब मोहमाया खत्म हो जाएगा।
इसलिए मैं आप सभी से निवेदन करता हूं कि कुछ पुण्य कर्म कर लिया कीजिए, गरीब भूखे लचारो की सहायता किया कीजिए,, जीवन में कुछ नहीं है कोई अपना नहीं है जब तक स्वार्थ है तभी तक आपके सब हैं।
जीवन एक सफ़र है मौत उसकी मंजिल है मोक्ष का द्वार कर्म है।यही सत्य है ।

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ये भी खूब रही!
आज सुबह की पॉजिटिव रिपोर्ट ने मुझे दो घंटे तक दांव पर लगाकर रखा ,...
सुबह आठ बजे मेरे पड़ोसी ने मेरी बाइक की चाबी मांगी कहा 
"मुझे लैब से एक रिपोर्ट लानी है ।"
मैंने कहा "ठीक है भाई ले जा" 
थोड़ी देर बाद पड़ोसी रिपोर्ट ले कर वापिस आया, चाबी वापिस दी और मुझे गले लगाया और "बहुत बहुत धन्यवाद" कह कर अपने घर चला गया..
जैसे ही वह अपने घर गया, गेट पर ही खड़े होकर ऊपर वाली मंजिल में काम कर रही अपनी पत्नी से कहने लगा, 
" रिपोर्ट पॉजिटिव आयी है"
जब वह बात मेरे कान में पड़ी तो मैं गिरते गिरते बचा ।  घबरा कर मैंने अपने हाथ सैनिटाइज़र से साफ़ किये, फिर बाइक को दो बार सर्फ से धोया, फिर याद आया मुझे उसने गले भी लगया था, मैंने मन मे सोचा 
"मारा गया तू तो , तुझे भी अब कोरोना होगा। "
मैं डेटोल साबुन से रगड़ रगड़ कर नहाया और दुखी हो कर बैठ गया ।
थोड़ी देर बाद मैंने उसे किया और रुआसी आवाज में  बोला 
"भाई अगर आपकी रिपोर्ट पॉजिटिव थी तो कम से कम मुझे तो बख्श देते ! गले तो न लगाते...! मैं बेचारा गरीब तो बच जाता !"
पड़ोसी जोर जोर से हंसने लगा और कहने लगा 
" वो रिपोर्ट..?"
वो रिपोर्ट तो आपकी भाभी की प्रेग्नेंसी की रिपोर्ट थी जो पोजटिव आयी है !
ये सुन कर मेरी जान में जान आयी और मैं भी अब दिल पर हाथ रख कर हँसने लगा ।
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आलेख                                                                   
डिप्रेशन अर्थात अवसाद        
                                                        - इन्दु भूषण बाली
                                                                जम्मू
   
      डिप्रेशन के कई नाम हैं।जैसे अवसाद, गिराव, खिन्नता इत्यादि।जो अत्याधिक तनाव से उत्पन्न होता है।जिसे मानव प्रकृति का मात्र एक भाग माना गया है।जो प्रत्येक व्यक्ति में होता है।जिसकी प्रतिशत मात्रा किसी में कम और किसी में अधिक होती है।जिसे प्राकृतिक कहना उचित और अनुचित की दोनों श्रेणीयों मेंं सटीक माना गया है। 
      क्योंकि अकारण डिप्रेशन की उत्पत्ति को प्राकृतिक मानने के अलावा कोई विकल्प शेष नहीं रहता।जबकि डिप्रेशन के समस्त आधार जब स्पष्ट हों, तब उस परिस्थिति को प्राकृतिक कहना प्रकृति को गाली देने के समान है।अर्थात प्रकृति का घोर अपमान है।
      चूंकि मानव का मस्तिष्क होता है।जिसपर सोचने समझने और मंथन करने का उत्तरदायित्व होता है।उसी उत्तरदायित्व में धर्मग्रंथों में मानव को मानवता, आशा-निराशा, आर्थिक व सामाजिक विकासशीलता, अनुशासन, धर्म एवं संस्कृति, राष्ट्र और राष्ट्रप्रेम के साथ-साथ संविधान का पाठ भी बाल्यावस्था मेंं पढ़ाया जाता है।जिसका प्रभाव मानव के मस्तिष्क पर पड़ना स्वाभाविक है।
      उल्लेखनीय है कि मानव जब समाज की उपरोक्त विपरीत परिस्थितियों का सामना करता है, तो उसमें भावनात्मक प्रतिक्रियाएं उत्पन्न होती हैं।जिनका टकराव धर्म, संस्कृति, सामाजिक मान्यताओं, स्वाभिमान, राष्ट्र और राष्ट्रप्रेम, संवैधानिक कर्त्तव्यों और आधिकारों, आशाओं और निराशाओं, न्याय और अन्याय से होता है।जिनसे सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।जिसका सीधा प्रभाव मानव मस्तिष्क पर पड़ता है।जिससे  मानव के मस्तिष्क में प्रतिद्वंद आरंभ होता है।उसी प्रतिद्वंद से तनाव पैदा होता है। जिसकी निरंतर नकारात्मक तिरंगों से उत्पन्न प्रतिक्रियात्मक सामाजिक संबंध और दूरियों के विषाक्त द्रव को ही 'डिप्रेशन अर्थात अवसाद' कहते हैं।
      जिसकी समस्त चुनौतियों से उभरने के लिए सार्थक साक्ष्यों से मनोबल को बढ़ाकर उनका दृढ़ता से सामना करना और मस्तिष्क के चारों ओर रचे गए विरोधी नकारात्मक ऊर्जा के चक्रव्यूह को सकारात्मक ऊर्जा के रामबाण से भेदना एकमात्र उपाय है।
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