क्या लॉकडाउन में रामायण और महाभारत ने पुराने दिनों की यादों को ताजा कर दिया है ?

लॉकडाउन में भारत सरकार ने लोगों के लिए अच्छा समय बिताने के लिए दूरदर्शन पर रामायण और महाभारत का सीरियल का पुनः प्रसारण शुरू किया है । जिससे पुराने दिनों की याद ताजा हो रही हैं । ये सब के लिए अच्छा अनुभव साबित हो रहा है । यहीं " आज की चर्चा " का प्रमुख विषय है । अब आये विचारों को भी देखते हैं : -                      
लॉकडाउन के चलते दूरदर्शन द्वारा अपने दो चैनल डी डी नेशनल एवं डी डी भारती के माध्यम से दो पुराने एवं 90 एवं 2000 के दशक के धारावाहिक 'रामायण' एवं 'महाभारत' पुनः प्रसारित किये जा रहे हैं। मात्र ये ही नहीं वरन अन्य पुराने धारावाहिक उदाहरणार्थ 'चाणक्य', 'व्योमकेश बनर्जी' एवं 90 के दशक के बच्चों का सर्वाधिक प्रिय धारावाहिक 'शक्तिमान' भी प्रारंभ कर दिया गया है। इन सभी धारावाहिकों से दूरदर्शन की टी.आर. पी. भी लौट आयी है जो कि लगभग अपना स्थान नये नये चैनल आने की वजह से खो चुकी थी।
90 के दशक में रामायण और महाभारत सर्वाधिक लोकप्रिय धारावाहिक थे जो कि धार्मिक होने के बावजूद भी सभी धर्मों के अनुयायियो को सुख प्रदान करते थे। आज एक बार पुनः इनके प्रसारण ने उन दिनों को ताजा कर दिया जब इन धारावाहिकों को देखने के लिए कैसे मौहल्ले में एक साथ इकठ्ठा हो जाया करते थे और उन दिनों जिसके पास भी टेलीविज़न होता था, वो राजा से कम नही समझा जाता था। विशेषतः रामायण के लिए रामलीलाओं का आयोजन होता था जिनका स्थान वर्तमान में पर्दे ने ले लिया है और ये उत्सुकता समय के साथ कम होती जा रही है किंतु लॉकडाउन के कारण एक बार पुनः प्रसारित इन दोनों धारावाहिकों ने निरंतर कम होती जा रही इस उत्सुकता को पुनः एक नया जीवन प्रदान किया और अपने पुरातन दिवस याद दिलवाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इन दोनों धारावाहिको के माध्यम से धर्म और नीति की जो शिक्षा मिलती है, वह वर्तमान समय को दृष्टिगत रखते हुए परमावश्यक है। भारत में निरंतर अपने पग जमाती पश्चिमी सभ्यता रोकने के लिए इस प्रकार के धारावाहिकों का निरंतर प्रसारित होना भी आवश्यक है क्योंकि इनके माध्यम से बच्चों को अच्छे संस्कार दिये जा सकते हैं।
साथ ही उस समय हम छोटे होने के कारण इन दोनों धारावाहिको के मूल गूढ़ रहस्य को समझने में भी असमर्थ थे परंतु वर्तमान में इनके पुनः प्रसारण ने अब इनका रहस्योद्घाटन भी कर दिया है अतः हम गर्व से कह सकते है कि लॉकडाउन में रामायण और महाभारत पुराने दिनों की याद को ताजा कर रहे हैं।
- विभोर अग्रवाल 
धामपुर - उत्तर प्रदेश
लांक डाउन मैं रामायण और महाभारत पुराने दिनों की यादें ताजा कर रहे हैं।जब यह नाटक आते थे टीवी पर तो हम बहुत छोटे थे और बच्चे थे तो हम तीर कमान को एक खेल की दृष्टि से ही देखते थे और यह सब हमें ठीक से समझ भी नहीं आते थे इनके ज्ञान और शिक्षा हमने अपने बड़ों के मुंह से सुना था और हम और हमारे बच्चे दोनों इसे साथ मिलकर देख रहे हैं यह एक बहुत बड़ा सुखद अनुभव है।
रामायण में राम हमारे संस्कृति के प्रतीक हैं लोक मर्यादा की
स्थापना कर, जीवन के सभी स्वरूपों को आदर्श रूप प्रदान किया गया है। विषम से विषम परिस्थितियों में मनुष्य किस प्रकार अपने विवेक को जागृत कर कर जन-जन के हिताय की भावना से प्रेरित हो लोकमंगल के हित के लिए प्रेरित हो सकता है हमें तुलसी के रामचरितमानस में यह सब मिलता है। लेकिन रामानंद सागर जी ने बाल्मीकि रामायण तुलसी रामायण तमिल तेलुगू भाषा की अन्य रामायण ओं को मिलाकर इस सीरियल को एक शोध के माध्यम से हमें सच्चाई और राम के चरित्र को सही ढंग से दर्शाया है। मनोरंजन के माध्यम से हमें ज्ञान मिलता है जो कि आज की पीढ़ी के लिए बहुत जरूरी है इसके पास ज्ञान तो बहुत है पर संस्कार नहीं है और यह संस्कार हमें रामायण और महाभारत के माध्यम से ही मिलता है।
महाभारत में एक भाई दूसरे भाई के प्रति त्याग नहीं करता है भगवान कृष्ण सच्चाई का साथ देते हैं दोनों ही सीरियलों में या काव्य ग्रंथों में सच्चाई की जीत ही हमेशा होती है सच की राह में चलना हमें सिखाया जाता है।
जब एक दूसरे भाई को राज्य अपनी मर्जी से दे देता है । या एक दूसरे के लिए अपने भाई के प्रेम में सब त्यागने को तैयार रहता है तब रामायण होती है।
जब एक भाई दूसरे भाई को उसी राज्य मुकुट के लिए अपनी स्वेच्छा से नहीं पहना था और देने को नहीं तैयार होता समर्पण की प्रेम की भावना नहीं होती तो महाभारत हो जाती है।
आज के समाज में पिता पुत्र की आज्ञा मानकर वनवास नहीं जाता उल्टा पिता को ही मार देता है इसीलिए महाभारत होता है।
मानस का प्रत्येक सोपान एक अमृत में हैं। महाभारत में पूरा गीता का ज्ञान है। हमारी सारी परेशानियों और उलझन का हल इसी महाकाव्य में है।
आज देश हमारा बहुत कठिन दौर से गुजर रहा है चारों ओर स्वार्थ का तांडव नेत्र कर रहा है देश की एकता एवं अखंडता पर एक अनजाने राक्षस वायरस रूपी का हमला है हमें इनसे छुटकारा दिलाने के लिए अपना प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए मन का स्वस्थ रहना बहुत जरूरी है और दिमाग में अच्छी सोचो का उत्पन्न होना। आज यह टीवी सीरियल शुरू करके बहुत अच्छा काम सरकार ने किया है। हम अपने देश में शांति बनी रहे और लोगों के उच्च विचारों के द्वारा उत्थान हो सके और हम मानव को मानव समझ सके। हम सब मिलजुल कर इस लड़ाई को लड़ सके उसकी हिम्मत हमें इसी महाकाव्य में ही मिलती है कि बुराई और अंधकार ज्यादा दिन तक नहीं टिकता और सच्चाई की राह में चलने वाले को विजय अवश्य प्राप्त होती है।
हे हनुमान जी कोई संजीवनी बूटी लेकर आज तुम प्रगट हो जाओ और इस समस्या का हल ढूंढो ऐसी कामना में मैं भगवान आप से करती हूं।
काम क्रोध मद लोभ, नाथ नरक के पंथ।
सब परि हरि रघु वीरहि, भजहु
भजति जेहि संत।।
रामानंद सागर में और बी आर चोपड़ा ने एक बहुत ही महान ग्रंथ लिखा है जो जन जन तक देश विदेश में पहुंच चुका है।
बाल्मीकि गोस्वामी तुलसीदास रामायण के रचयिता थे और महाभारत महर्षि वेदव्यास ने लिखी थी एक समय ऐसा आएगा जब यह दोनों के नाम के साथ रामानंद सागर और बीआर चोपड़ा के भी नाम जुड़ जाएंगे क्योंकि उन्होंने जन-जन तक पहुंचाया और इन लोगों ने घर-घर में पहुंचाई है।
पात्रों का भी चुनाव दोनों ने बहुत ही उत्तम किया है वे सजीव लगते हैं। यह दोनों ग्रंथ है ऐसे हैं इनके बारे में जितना लिखो उतना ही काम है।
जाकि रही भावना जैसी प्रभु मूरत देखी तिन तैसी...
- प्रीति मिश्रा 
जबलपुर - मध्य प्रदेश
जी हाँ ये पूर्णतः सच है रामायण और महाभारत के पुनः प्रसारण ने पुराने दिनों की याद ताज़ा की है और ये भी आभास करा दिया कि हम कितने बदल गए हमसे मतलब कि टेक्नोलॉजी कितनी बदल गई । बक्से नुमा ब्लैक एंड व्हाइट टीवी एक सरकारी चैनल मेरा मतलब दूरदर्शन छत पर खड़ा एन्टिना, बस क्या कहें देखने वालों में से एक तो एन्टिना सीधा करने पर और एक नीचे टीवी स्क्रीन पर देखकर बताने पर कि थोड़ा इधर और थोड़ा उधर, तनिक सा हाथ हिला और मच्छर जैसी आकृति स्क्रीन पर हाज़िर पूरा समय इसी उधेड़ बुन ख़त्म हो जाता एपिसोड पूरा हुआ और हम अपने घर । पूरे गाँव में एक ही टीवी देखने वालों की भीड़ फिर भी तिरपाल और पल्ला बिछाया जाता सम्मान की कमी नही कुछ साल पहले क्या माहौल था और आज कितना परिवर्तन वाक़ई हम कितने बदल गए । रामायण और महाभारत के पुनः प्रसारण ने बचपन याद दिला दिया जब रामायण एपिसोड पूरा होता तो बतासें बाँटे जाते और हम प्रसाद पाने के लिए तैयार रहते अब लगता है कि हम रामायण देखने से ज़्यादा बतासें खाने के लिए तैयारी करते थे करें भी क्यों न एक सप्ताह में एक बार ही अवसर मिलता था । ये ऐसे संस्मरण है जिन्हे कभी भूला नही जा सकता है ।
      पुराने दिनों की याद दिलाता रामायण और महाभारत का पुनः प्रसारण बहुत सही निर्णय है जितना गंभीरता से अब देख रहे हैं उतना पहले नहीं देखा जीवंत पात्रों की मेहनत आने वाली पीढ़ियों को प्रेरणा का स्रोत बनेगी संस्कृति की रक्षा होगी ये पुनः प्रसारण पुनः पुनः होता रहे । नव पीढ़ी वैसे तो नही देख पाती लेकिन लॉक डाउन के चलते ज़रूर देख रही होगी । - डॉ. भूपेन्द्र कुमार 
बिजनौर - उत्तर प्रदेश
यह सच्चाई है कि लॉक डाउन के कारण हम सभी अपने घरों में ही सीमित होकर रह गए हैं  और ऐसी स्थिति में समय बिताने के लिए  टीवी  धारावाहिक और अन्य कार्यक्रमों पर  काफी निर्भर करते हैं । सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने भी इस बात को ध्यान में रखते हुए रामायण और महाभारत को अपने चैनलों के माध्यम से प्रसारित करना शुरू किया है। 90 के दशक के ये दोनों  धारावाहिक धर्म, नीति, संस्कार आदि की शिक्षा देने के साथ-साथ बहुत रोचक भी हैं। इन दोनों धारावाहिकों में बच्चों से लेकर वड़ों तक के लिए कुछ ना कुछ है। प्रतिदिन के प्रसारण  में रोचकता  आज भी कायम हैं । यदि इन्हें बार-बार भी देखा जाए तो भी इनका आकर्षण कम नहीं होता  ।वर्तमान  काल में भी 90 के दशक में देखे हुए ये धारावाहिक हमें  पुराने दिनों  का वह समय याद दिलाते हैं जब इनके प्रसारण के समय गांवों तथा शहरों में कर्फ्यू जैसे हालात हो जाया करते  थे। लोग अपने-अपने घरों में टीवी सैट से चिपक कर बैठ जाते थे। इन दोनों धारावाहिकों में पात्रों का चयन व अभिनय  इतना सजीव है की ऐसा महसूस होता है कि अभिनय नहीं बल्कि सच्चाई देख रहे हैं ।यह प्रभाव 90 के दशक में भी था और आज भी है ।निःसन्देह, ये दोनों धारावाहिक  पुराने दिनों की याद आज भी ताजा कर रहे है ।
- डॉ अरविंद श्रीवास्तव 'असीम'
 दतिया - मध्य प्रदेश
भारतीय परिवेश में रामायण और महाभारत के प्रसंगों का बहुत गहरा प्रभाव है और दोनों ने ही जनमानस को उत्तम संस्कारों के सन्देश दिये हैं। 
वर्तमान में रामायण-महाभारत के पुन: प्रसारण को देखते समय पुरानी स्मृतियों में खो जाना स्वाभाविक है। आज लाॅकडाउन एक मजबूरी है जबकि इनके प्रथम प्रसारण के समय समाज में स्वत: लाॅकडाउन का होना स्वयं में अभूतपूर्व स्मृति है।
उस समय प्रत्येक घर में टेलीविजन नहीं होता था जिसके कारण अनेक परिवार सामूहिक रूप से एक साथ रामायण देखते थे। आज कोरोना के चलते सामाजिक दूरी का पालन करने की विवशता है परन्तु याद आता है रामायण का प्रथम प्रसारण जिसने सामाजिक दूरियां कम करने में मुख्य भूमिका निभाई थी। 
इसके साथ ही टेलीविजन में "श्रीराम" को देखते ही जब सामूहिक रूप से 'जै श्रीराम' का उद्घोष होता था तब आज अपने परिवार के मात्र दो-तीन सदस्यों के साथ बैठकर रामायण देखते हुए वह दृश्य रोमांचित कर जाता है।
वास्तव में लाॅकडाउन में रामायण-महाभारत के प्रसारण ने पुरानी यादों को ताजा कर दिया है।
- सत्येन्द्र शर्मा 'तरंग'
देहरादून - उत्तराखंड
लोक डॉन की स्थिति में रामायण और महाभारत जैसे धारावाहिक जो हमारे दूरदर्शन पर चल रही हैं पुराने दिनों की यादों को तरोताजा कर रही है ।
ऐसा लगता है जैसे रामयुग का प्रचलन हो चला है लोगों को बेसब्री से रामायण और महाभारत देखने का इंतजार होता है सभी लोग लोग आज  की स्थिति में घरों में कैद और सुरक्षित हैं तभी रामायण और महाभारत की अपनी भूमिका बनती है और जल्दी-जल्दी सारे कामों को निपटारा कर के रामायण और महाभारत धारावाहिक को लोग देखते हैं ताकि दिलों में भावनाओं के बीजों का अंकुरण और अच्छे संवेदना को संबोधित कर सके ।भावनाएं प्रफुल्लित होती है एक दूसरे के साथ लोग विचारों से घर पे लोग चिंतन मनन करते हैं और रामराज्य में लोग आनंद में पलों से भाव विभोर होते हैं। ऐसा ही पल हमारे देश में हर दम होना चाहिए राम की कथा और महाभारत की कथा से जन-जन को संबोधित हो ।
ऐसी स्थिति में रामायण और महाभारत के महाभारत धारावाहिक पुरानी यादों को ताजा कर दी गई है आजकल की भागदौड़ की जिंदगी में रामायण और महाभारत लेकर से हमारे मानवीय संवेदनाओं को जोड़ती है मैं कहती हूं कि लोग में रामायण और महाभारत बिल्कुल पुराने दिनों की अपनी भूमिका और यादों से अवगत हो रहे और पुरानी यादों को तरोताजा करते हैं और ऐसे ही राम राज्य में राम के सत्य मर्यादा की ज्ञान को समावेश करते रहे 
धन्यवाद 
- अंकिता सिन्हा
जमशेदपुर- झारखंड
लॉक डाउन के चलते फिर से रामायण महाभारत ने फिर से यादे ताजा कर दी है बाकई मे उन दिनों की यादे ताजा हो गयी है। वो दिन भी क्या थे दिन जब दिन रविवार का आता था सुबह से हल चल रहती थी।
उस समय एक ही चैनल दूरदर्शन चलता था रविवार के दिन जल्दी उठकर फटाफट सारे काम करते थे कही देर ना हो जाये एक उमंग उत्साह बना रहता था उस समय सभी घरों में टेलीविजन नही होते थे लोग रामायण देखने के लिए जगह जगह इकट्ठा होते थे।
हमारे यहाँ टीवी था पूरा मौहल्ला इकट्ठा होता था धार्मिक स्थल बन जाता था सभी शांत बैठकर आनन्द लेते थे। उस समय लोगो को लॉक डाउन का अर्थ मालूम नही था जब २ामायण महाभारत आता था पूरे देश मे लॉक डाउन की स्थिति होती थी गली मोहल्ले बाजारो मे सन्नाटा पसरा रहता था इक्का दूक्का लोग ही नज़र आते थे  । फिर से दूरदर्शन ने पहल की और लॉक डाउन के चलते महाभारत और रामायण की प्रस्तुति दी  जैसे पुराने दिन लौट आये तब हम बच्चे थे आज अपने बच्चो के साथ बैठकर देखते हैं वही गलियों बाजारों मे सन्नाटा और परिवार संग बैठने का आन्नद ले रहे।
- नीमा शर्मा हँसमुख
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
देशभर में फैले कोरोना संक्रमण से बचाने के लिए घरों में कैद लोगों के मनोरंजन के लिए दूरदर्शन के नेशनल चैनल पर रामायण धारावाहिक का दोबारा प्रसारण शुरू किया गया है। दोबारा शुरू किए इन धारावाहिकों को देखकर लोग अपने पुराने दिनों की यादों ताजा कर रहे हैं। इसके अलावा वे लोग जो पिछले कुछ दिनों से लॉकडाउन होने होने से घरों में कैद हैं, उनके लिए रामायण सीरियल का शुरू होना बेहतर रहा। उनका कुछ वक्त रामायण के साथ गुजरा। जो लोग अक्सर ऑफिस काम धंधों में व्यस्थ रहते थे वे भी घरों में रामायण सीरियल देखते नजर आए।
उल्लेखनीय है कि लगभग 33 साल पहले रामानंद सागर द्वारा निर्देशित रामायण के प्रसारण के दौरान सड़के सूनी हो जाती थीा। धारावाहिक रामायण का प्रसारण दूरदर्शन पर 9 बजे और महाभारत का प्रसारण 12बजे शुरू कर दिया गया है। शहर में अपने कई मित्रों से पूछने पर उन्होंने बताया कि वे जिस प्रकार बचपन में रामायण और महाभारत के सीरियल को आनंद और रुचि पूर्ण ढंग से देखते थे वही आनंद अब भी उन्हें सीरियल देखने में आ रहा है और ऐसा लग रहा है जैसे वे उन दिनों में वापस पहुंच गए हो।इन दोनों सीरियलों को देखकर केवल बड़े और बुजुर्ग लोग ही पुराने समय को याद नहीं कर रहे अपितु छोटे बच्चे भी जो प्रथम बार इन धारावाहिकों को देख रहे हैं वह भी अच्छे संस्कारों से लाभान्वित होकर अपना जीवन आदर्श युक्त बना रहे हैं। रामायण और महाभारत दोनों धारावाहिक टीवी इतिहास के दो ऐसे धारावाहिक हैं जिनकी पहचान तब तक रहेगी जब तक टीवी लोगों के समक्ष रहेगा।
आप सभी घर पर रहें, सुरक्षित रहें।
- कवि कपिल जैन
नजीबाबाद - उत्तर प्रदेश
आज जो पूरे विश्व की स्थिति है कि कोई चोरी, डकैती,बम आदि से भय नहीं और ना ही किसी बाहरी देशों के आक्रमण से आज भय है एक महामारी से और महामारी भी ऐसी जो मानव से मानव में फैलती है अर्थात आज भी भगवान है जो ऐसी स्थिति लाया अगर इसका आध्यात्मिक अध्ययन करें तो स्पष्ट होता है बढ़ रहे बलात्कार बढ़ रही भ्रष्टाचार और शिक्षा के लिए हर घर से दूर किये जा रहे बच्चे जो अपनी सभ्यता, संस्कृति,तीज त्योहार से वंचित हो रहे हैं,और ना ही माता-पिता के लिए उनके मन में सम्मान ही रह गया अकेले रहने की इतनी आदत हो जाती है कि वही बच्चे बूढ़े मां-बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आते हैं।
     ‌‌ तो समझने की बात है कि रामायण, महाभारत का‌ प्रारंभ होना,सभी का घर एक साथ फिर से देखना बच्चों का अपनी संस्कृति को जानना एक करिश्मा है ईश्वर का ।ख्वाहिशों का सिमट कर कोने में दुबक जाना बच्चों का दादी से श्री राम,श्री कृष्ण के बारे में सवाल पूछना और दादी का उनके सर पर हाथ फैर फैर कर जवाब देते आंसू बहाते हूए ये कहना।
 ‌ आओ मेरे जिगर के टुकड़ों तुम्हैं 
सब बताती हूं
अच्छा किया मेरे राम ने मेरे कृष्ण ने ये पल भेजे तुम रामायण, महाभारत देखो मैं तुम्हारे लिए पकवान भी बनाती हूं 
तो सच में ये वो दिन याद कराते हैं
जब हम जो माता-पिता बन चुके हैं या कुछ तो दादा -दादी भी भी
वही पुराना समय जब बेसब्री से धो बजने का इंतजार किया जाता था। जल्दी जागकर घर का काम निपटा लिया जाता था।वो पल फिर से जिने को मिलें अब अपने बच्चों के साथ और माता-पिता के साथ तीन पीढ़ियों का एक साथ बैठकर रामायण महाभारत देखना और समसामयिक परिस्थितियों के अनुसार यह एक करिश्मा ही है।
    ‌- ज्योति वधवा "रंजना"
बीकानेर - राजस्थान
 निःसंदेह पुराने दिनों की याद ताजा हो गई है। ये दिन दो प्रकार के हैं। पहला वे दिन जब इन महाकाव्यों का फिल्मी रूप हमने पहली बार धारावाहिक की तरह देखा और दूसरा वे दिन जो हमारी कल्पनाओं में सदैव थे और जिनकी छिटपुट कहानियाँ हम माँ बाप दादा दादी नाना नानी से सुना करते थे। पहले प्रकार के दिन तो अभी हर तरह से याद आ रहे हैं क्योंकि भागदौड़ भरी जिंदगी में पीछे मुड़कर देखने का इतना लंबा अवसर बड़े दिनों के बाद मिला है। हालांकि ये चुनौतियों से भरा है मगर इसका उपयोग तो किया ही जा सकता है। जिन दिनों में ये धारावाहिक प्रसारित होते थे वे दिन मेरे छात्रावास के दिन थे। जीवन की दिशा तलाशने के दिन। उन दिनों में प्राचीन ग्रंथों को पूरा पढ़ पाना संभव नहीं था। 
इसलिए पूरा विवरण रोचक दृश्यांकन् के मध्यम से देखने को सहज ही मिल गया। उस  समय पूरा भारतीय समाज अपने अतीत के गौरव को मंचित होते भीगे नयनों से देख रहा था और रोमांचित हो रहा था। 
जहाँ तक दूसरे प्रकार के दिनों का प्रश्न है उनका काल क्रम, वैभव, अति मानवीयता, पतन, धर्म रक्षण सब कुछ बार बार याद करने लायक तो है ही। ये साहित्य का ही कमाल है कि वे दिन इतनी सुंदर दृश्य रचना के साथ हमारे सांस्कृतिक गौरव के साथ जोड़ दिए गए। हम आज भी उस श्रेष्ठ साहित्य पर गर्व करते हैं।
 - मनोज पाँचाल 
 इंदौर - मध्यप्रदेश
सच वहीं माहौल जो रामायण के समय होता था सब नहाकर  टीवी के सामने बैठ जाते थे , सब अपना अपना काम छोड़ कर , जल्दी जल्दी काम निपटा कर , आज़मी वहीं आँखों के सामने पुराने दिन याद आ जाते हैं फ़र्क़ इतना है तब में नई नवेली बहू थी 
आज दादी बन गई सास व दादी का किरदार निभा रही हूँ .. 
कहा जाता है कि उस दौर में रामायण के प्रसारण के दौरान अफसर से लेकर नेता तक किसी से मिलना तो क्या किसी का फोन भी उठाना पसंद नहीं करते थे। 78 एपिसोड वाले रामायण का प्रसारण जब होता था तो देश की सड़कों और गलियों में कर्फ्यू जैसा सन्नाटा छा जाता था।
भारत के तमाम शहरों और गांवों में रामायण के टेलीकास्ट के समय लोग अगरबत्ती जलाकर बैठा करते थे। चप्पलें कमरे के बाहर उतार दी जाती थीं। आज भी देश की स्थिति कुछ वैसी ही हो गई है। सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। पुलिस की गाड़ियों के साइरन की आवाज गूंज रही है। खाली सड़कों को देखकर वही रामायण वाला दौर याद आने लगा है।
गौरतलब है कि रामानंद सागर की रामायण का प्रसारण साल 1987 और बीआर चोपड़ा की महाभारत का प्रसारण साल 1988 में पहली बार दूरदर्शन पर हुआ था।  इन दोनों का लोगों पर ऐसा प्रभाव हुआ कि आजतक इसकी यादें जहन में ताजा हैं। कई बार रामायण और महाभारत पर आधारित सीरियल बने लेकिन उनमें वो पुरानी वाली बात नहीं थी।
अस्सी के अंतिम सालों में बड़े हो रहे लोगों को वो सुबह याद होंगी, जब बिना किसी कर्फ़्यू के रास्तों पर सन्नाटा पसर जाता था। कोरोना वायरस कोविड 19 के प्रकोप के चलते जो सन्नाटा सड़कों पर इस वक़्त है, कुछ वैसा ही वीराना तब नज़र आता था, जब रामायण और महाभारत के दीवाने अपने-अपने घरों में लॉकडाउन हो जाया करते थे। एक बार फिर उसी दौर की यादें ताज़ा हो गई है फ़र्क़ इतना तब सिरियल ख़त्म होते ही लोग अपने अपनेकाम  करने लग जाते थे , कर्फ़्यू हट जाता था , अब लम्बा हो गया है .....
कोरोना वायरस के लॉकडाउन के चलते लोगों को स्वस्थ मनोरंजन देने के उद्देश्य से भारतीय टीवी इतिहास के इन दोनों सफलतम शोज़ का प्रसारण फिर किया जा रहा है
- डॉ अलका पाण्डेय
मुम्बई - महाराष्ट्र
       निश्संदेह रामायण और महाभारत पुराने दिनों की ही नहीं बल्कि त्रेता और द्वापर युग की याद ताजा करवा रहे हैं।जिसमें बताया जा रहा है कि वे युग भी कलयुग की भांति पाप से अछूते नहीं थे।
     जैसे त्रेता युग के सीताहरण और धोबी के कहने पर सीता त्याग का दृश्य पीड़ा-प्रताड़ना को व्यक्त करता है।यही नहीं समस्त ऋषियों-मुणियों सहित राजसभा के उच्च पदाधिकारियों द्वारा चुप्पी साधना घोर अन्याय का समर्थन करता है।जो नकारात्मक ऊर्जा ही प्रवाहित करते हुए उन युगों की कलंकित यादों को ताजा करता है।
     उल्लेखनीय है कि द्वापर युग की तथाकथित महा शक्तिमानों की राजसभा में जुआ खेलना उचित था। जिसमें धर्मपत्नी को दाव पर लगाना गलत नहीं था।उसी राजसभा का शक्तिशाली युवराज द्रौपदी को उसके बाल पकड़ कर खींच लाने का आदेश देने में सक्षम था।वह इतना साहसी था कि 'द्रौपदी' को 'नग्न' देखने के लिए अपने छोटे भाई को उसकी साड़ी वीरों की भरी सभा में उतारने का आदेश देने का साहस रखता था।जिस पर पूरी राजसभा में दासी पुत्र के अलावा कोई विरोध नहीं कर सका था।जिसमें इस बात का ज्ञान भी बांटा गया है कि दासी भोग विलास के साधन के अलावा कोई मान-सम्मान नहीं रखती थी।इसलिए वही गलती यदि वर्तमान के युग अर्थात कलयुग में की होती तो उस युवराज को निश्संदेह फांसी दे दी जाती।
      ऊपरोक्त निंदनीय दृश्य आज भी नकारात्मक ऊर्जा प्रवाहित करते हुए उन युगों की कलंकित यादों को ताजा करते हुए शर्मसार करते हैं।
- इन्दु भूषण बाली
जम्मू - जम्मू कश्मीर
लॉक डाउन में रामायण और महाभारत का प्रसारण लोगों को जहाँ एकसाथ घर में बैठने को मजबूर कर रहा है, वहीं नई पीढ़ी को पुरानी संस्कृति का ज्ञान भी कराता है।
 आज की तेज रफ्तार जिंदगी ने बच्चों को  इतना समय ही नहीं दिया कि वो पीछे के इतिहास को देखें और समझें । न्यूक्लियर फैमिली होने के कारण बच्चों को दादा-दादी या नाना-नानी का साथ नहीं मिला। इसलिए वे परियों और राजा-रानी की दुनिया में गए ही नहीं । 
आज रामायण और महाभारत उतना ही प्रासंगिक है जितना आज के 'पोगो' और 'डिज्नी' । बच्चों को राम के आदर्श और रावण के अपराधिक स्वभाव को समझने में मदद मिली है । यह अवसर इस कोरोनाने दिया है। शायद बच्चे अच्छे-बुरे का फर्क समझ सकें। उनकी पाशविक प्रवृति को कोरोना दिमाग से निकाल दे और वे अच्छे विचार के साथ उज्जवल भविष्य का निर्माण का सकेंगे । इसी उम्मीद के साथ क्वेरेंटिन में रहें और आत्ममंथन करें ।
- संगीता गोविल
पटना - बिहार
रामायण और महाभारत काफी पसंदीदा सीरियल रहे हैं। उन दिनों प्रसारण के दौरान जिनके पास साधन नहीं होते थे वे अपनी जान पहचान वालों के यहां अथवा  देखने के लिए अपनी सुविधा से कहीं न कहीं  स्थान बना लेते थे। और जिनके यहां टी.व्ही. होता था वे भी मना नहीं करते थे । घर-परिवार, पड़ोसी,  राहगीर सब सौहार्दपूर्ण वातावरण में चुपचाप शांति बनाकर सीरियल को देखते थे। उस समय स्थिति ये हो जाती थी कि प्रसारण के समय सड़कें सूनी हो जातीं थीं। सीरियल समाप्ति के बाद भीड़ का जो रेला निकलता था, वह दृश्य भी कोतुहल का रहता था। उन दिनों टी.व्ही. की भी बहुत बिक्री हुई थी।
लॉक डाउन में इनका प्रसारण हो तो रहा है परंतु लोगों में वैसा रुझान नजर नहीं आ रहा है। बच्चे भी उतनी लगन और रुचि से लुत्फ़ नहीं ले रहे हैं। मगर मजा आ रहा है,इसमें कोई दो मत नहीं। उस दौरान जो लोग किसी कारणवश वह प्रसारण पूरे नहीं देख पाए थे। इस बार वह कमी उन्होंने पूरी कर ली है। कुलमिलाकर आनंद ही आनंद है। अवसर का लाभ मिला है। 
- नरेन्द्र श्रीवास्तव
गाडरवारा - मध्यप्रदेश
कहते हैं बीते दिन लौटा नहीं करते किंतु लॉक डाउन ने ये मुमकिन कर दिया । अब पुनः परिवार के सभी सदस्य मिलकर रामायण व महाभारत को न सिर्फ देखते हैं बल्कि उस पर  सार्थक चर्चा भी करते हैं । बहुत से प्रश्नों के उत्तर जानने हेतु  बच्चे इन ग्रन्थों को पढ़ रहे हैं ।
पहले कहने पर भी इनका अध्यन नहीं करते थे पर आज इन सीरियलों ने पुनः युवा पीढ़ी को संस्कार देने का बीड़ा उठा लिया है ।
आ. रामानन्द सागर जी व आ. बी आर चौपड़ा जी को शत शत नमन जिन्होंने हमें इतना कलात्मक व रचनात्मक उपहार दिया ।
- छाया सक्सेना प्रभु
जबलपुर - मध्यप्रदेश
रामायण और महाभारत बचपन में हम लोग रोज देखा करते थे। रामायण में एक तरफ राजा दशरथ के जेष्ठ आज्ञाकारी पुत्र मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम । दूसरी ओर अहंकारी रावण का घमण्ड। मगर रावण महापंडित था। उसे सब ज्ञान था की राम विष्णु के अवतार है। इसलिए लीला के अनुसार सीता का हरण हुआ और रावण अशोक वाटिका में ले आया। रावण ने समस्त राक्षस जाती जैसे खर, दूषण, कुम्भकरण, मेघनाथ, अक्ष कुमार, को श्रीराम के हाथों मरवाकर दिया। ताकि समस्त राक्षस जाती का नाश हो सके। रावण भी अपने अंतिम समय मे श्रीराम कहकर पुकारा था। रामायण में कौरव और पांडवों की लड़ाई और सत्य की विजय जैसे अनेक लीलाओ का वर्णन है। रामायण और महाभारत देखने से अच्छे ज्ञान और संस्कार भी सीखने मिलते है। अपने बच्चों को भी रामायण देखने के लिए प्रेरित करना चाहिए। लॉक डाउन के चलते रामायण और महाभारत ने पुरानी यादों को ताज कर बच्चों को भी रामायण देखने को मिली और ज्ञान का संचार भी हुआ।
- राम नारायण साहू "राज"
रायपुर - छत्तीसगढ़
पुराने दिनों की याद नये वातावरण में नये लोगों के साथ देखने को मिल रहा है। तेतीस वर्ष पूर्व रामायण और महाभारत का ज्ञान लोगों में टेलिविज़न के माध्यम से सार्वजनिक तौर पर सभी देशवासियों को हुआ था सभी आदरणीय रामानंद सागर और भी आर चोपड़ा जी को हार्दिक शुभकामनाएं और आशीर्वाद देती हूं। भारतीय संस्कृति इन तीस वर्षों में बहुत बदल गया । आधुनिकता का चोला पहन लिया लेकिन यह वायरस लोगों को पुनः जाग्रत कर दिया। पुराने समय में जब रामायण चलता था ऐसा लगता था मानो पूरे शहर में एक घण्टे का स्वाभाविक कर्फ्यू लग गया है।
आज़ लाकडाउन में महाभारत रामायण देशवासियों में तीन पीढ़ियों के साथ देखा जा रहा है 
नयी पीढ़ी को भी अपनी जीवनशैली सभ्यता संस्कृति की जानकारी मि रही है 
     मूल तथ्य यह है कि जीवन में उतार चढाव सुख दुःख छाया की तरह घूमते रहता है। धैर्य संयम सहनशीलता के माध्यम से ही दूर किया जा सकता है
    समय कभी काल बनकर तो कभी वक्त और अवसर बनकर अवश्य दरवाजा खटखटाया करता है इसलिए समय बलवान है उसकी आदर सम्मान अवश्य होनी चाहिए । अपने व्यक्तित्व में कर्म का महत्व है।
- डॉ. कुमकुम वेदसेन
मुम्बई - महाराष्ट्र
रामायण और महाभारत हमारे ऐसे दो धार्मिक ग्रंथ है जो जीवन के पग-पग पर हमारा मार्ग दर्शन करते हैं।आज जब लॉक डाउन में मानव अपने घरों में बंद है उसके मन को नकारात्मक विचारों ने घेरा है, ऐसे समय में रामायण हमें अपने परिवार से जोड़ने का काम करती है। रिश्तों को परिभाषित करती है। वही महाभारत हमें जीवन की उन विषम परिस्थितियों  के लिए भी तैयार करता है, जो अनायास ही हमारे सामने आ जाती है। ‌वक़्त का पहिया फिर से घूमा और आज कल प्रसारित होने वाले टी.वी. सीरियल रामायण और महाभारत ने फिर से पुराने दिनों की याद ताजा करवा दी। रामायण जो कि रविवार को सुबह 10 बजे प्रसारित होता था, उस समय सभी घर के सदस्य एक साथ बैठ कर सीरियल  के शुरू होने से पहले टी.वी.के आगे जम जाते थे। बच्चे,बूढ़े या जवान और तो और गृहणियां भी अपने सारे कार्य निपटाकर रामायण आने का इंतजार करते थे। कितना अच्छा समय था जब सब परिवार एक साथ होता था। ‌आज हालात कुछ वैसे ही है। सब घर में अपने परिवार के साथ समय बिता रहे हैं और सड़कों पर सन्नाटा छाया है। ऐसा लगता है फिर से वही समय आ गया है जिसने बीते दिनों की याद ताजा कर दी है।  लॉक डाउन के बहाने ही सही, कोरोना ने परिवार को साथ जोड़ा है।
‌-  सीमा मोंगा
‌रोहिणी - दिल्ली
बचपन में रामलीला, कृष्णलीला देखते थे। उस समय जो देखते थे वही अच्छा और सच लगता था। रामायण और महाभारत जिन दिनों दूरदर्शन में आया करता था तब नौकरी के कारण अरुणाचल प्रदेश में थी। पर अपनी माँ और पापा से सुना करती थी कि रामायण-महाभारत आने के दिनों में किस तरह लोग जल्दी-जल्दी काम निबटा, नहा-धोकर तैयार हो जाते थे देखने के लिए। सड़कें भी सुनसान रहती थी।
          लॉकडाउन ने सभी के लिए घर में रहने की बाध्यता उत्पन्न कर दी। ऐसे में दूरदर्शन पर रामायण-महाभारत का आना किसी वरदान और सौभाग्य की तरह प्रतीत हुआ। घर में सभी एक साथ मिल कर इन्हें देख रहे हैं, आपस में चर्चा, विचार-विमर्श कर रहे हैं। मैं स्वयं अब परिपक्व आयु में इन्हें देख रही हूँ तो पहले के बने विचार व्यर्थ लग रहे हैं और नई दृष्टि से वैचारिक परिपक्वता की भूमि पर इन्हें देखने से कई भ्रांतियाँ मिट रही हैं। घर के बच्चे और अधिक जानने की जिज्ञासा से रामचरितमानस पढ़ने की इच्छा कर रहे, गूगल पर भी अपने प्रश्नों के उत्तर खोज रहे और अपने विचार भी रख रहे हैं। तो मेरे विचार से लॉकडाउन ने सबके परिवारों को इस विवशता पूर्ण समय को रामायण-महाभारत देखने का अवसर प्रदान कर इसे सार्थक बनाने का अवसर दिया है।
- डा० भारती वर्मा बौड़ाई
   देहरादून - उत्तराखंड
 लाख डाउन में रामायण और महाभारत ने पुराने दिनों की याद को अवश्य तरोताजा कर रहे हैं। यह समय महाभारत रामायण का प्रसारण हुआ उस समय लोग अपने काम को छोड़कर इस सीरियल को अवश्य देखा करते थे सब एक साथ बैठकर हमारे पूर्वज में आदर्श चरित्रों की किस तरह से अपने जमाने में घटनाएं हो रहे थे इन घटनाओं के आधार पर आने वाली पीढ़ी या वर्तमान में जी रहे लोगों को उनकी आदर्श चरित्र को देखकर प्रेरणा मिल सके ऐसा उम्मीद लेकर के इन सीरियल को भी बनाया गया था लेकिन वर्तमान में कोई भी व्यक्ति उनसे प्रेरणा लेकर अपने जीवन को सुधारें ऐसा देखने को बहुत कम मिलते हैं आजकल हर चीज मनोरंजन है मनोज पूरा दुनिया ही मनोरंजन है मनोरंजन आज समाज को मूल्य ,चरित्र और नैतिकता से ह्रास की ओर ले जा रही हैं। जिस समय यह सीरियल शुरुआत हुआ गांव गली में जब तक यह कार्यक्रम खत्म नहीं होता तब तक  सुना रहता था। वैसे ही आज बने हुए हैं करुणा के चलते आज गांव गली सुना है लोग अपने ही घर पर दुबके हुए मनोरंजन के लिए या कहो ज्ञान वर्धन के लिए रामायण और महाभारत सीरियल देख रहे हैं और अपने पुरानी यादों को तरोताजा कर रहे हैं। कोई मनोरंजन के लिए देखता है तो कोई प्रेरणा देने के लिए लिख तो कोई प्रेरणा लेने के लिए तो कोई समय पास करने के लिए इस तरह से भिन्न-भिन्न ना विचार के लोग सीरियल देखते हैं जो समीक्षात्मक देखते हैं वही व्यक्ति क्या सही क्या गलत है उसको देख पाता है अगर गलत है तो उसको सुधारा जाए अगर  सही है तो स्वीकारा जाए। ऐसे समझ कर देखने वाले  लोगों का देखना सार्थक होता है फिलहाल अभी स्थिति को संभालने के लिए पुरानी घटनाएं याद आ रही है और अपना दिनचर्या को सार्थक बनाने में लगे हुए हैं ताकि  करुणा से जल्दी निपटा जा सके
- उर्मिला सिदार
रायगढ़ - छत्तीसगढ़
 आज तीन पीढ़ियां एक साथ बैठकर रामायण और महाभारत देख रहे हैं जो वृद्ध हो चुके हैं फिर अपनी जवानी के उन दिनों को याद करते हुए रामायण, महाभारत देख भाव विभोर हो जाते हैं ! जो 16- 17 साल की उम्र के थे वह आज प्रोढ़ हो अपने बच्चों को पौराणिक गाथा सुनाते हुए अपने यौवन के दिनों की याद ताजा करते हैं !
33 - 34 साल और आज की संस्कृति और संस्कार में काफी बदलाव आया है!  उन दिनों जिनके घर टीवी था वहां रामायण चालू होते ही भीड़ लग जाती थी! हमारे घर पर तो सभी बैठकर देखते थे रामायण खत्म होते ही ऐसा लगता था मानो सिनेमा हॉल से निकले हो ! उन दिनों सभी के घर पर टीवी नहीं था किंतु भावनाएं इतनी मृदुल थी कि कोई मना ही नहीं करता था ! रामायण के कारण ही टीवी भी घर-घर पहुंच गया पैसे वाले से लेकर हर मजदूर के झोपड़ी तक ! 
रामायण चालू होते ही 9:10 बजे सड़के शांत हो जाती थी सभी घर पर रामायण में व्यस्त रहते थे मानो लोक डाउन हो किंतु वह स्वाभाविक और कुछ समय के लिए था !
 आज आधुनिकता की दौड़ में हमारी भौतिक सुखसुख, भारतीय संस्कृति, हमारा आचरण ,संस्कार सभी में 33 -35 वर्ष में काफी बदलाव आया है और ऐसा लगता है इस वायरस के चलते जो 
लॉकडाउन हुआ है वह  मानों हमें हमारी भूल को सुधारने का मौका देने आया है ! हमें परिवार का महत्व ,संयम, धैर्य ,भावुकता ,दूसरों के प्रति हमारी संवेदना ,धर्म ,अधर्म आदि आदि का हमें बोध पाठ करवा रहा है !
इस लॉकडाउन में रामायण महाभारत जैसी सीरियल का पुनः प्रसारण करने का जो फैसला राष्ट्रीय चैनल ने लेकर लॉकडाउन के पालन में तो सफलता पाई है साथ ही हमारी आज की पीढ़ी को भी हमारी पौराणिक गाथा का ज्ञान और संस्कार मर्यादा, धैर्य ,संयम के साथ ईश्वर की लीला जो है उस पर दृष्टिगोचर कर कर्म की राह पर चलने को प्रोत्साहित करती है! अंत में कहूंगी ईश्वर और समय दोनों को मान 
दें !समय बड़ा बलवान होता है !
- चन्द्रिका व्यास
मुम्बई - महाराष्ट्र
"मानवता की  प्रहरी -भारतीय संस्कृति "
"देश प्रेम पर विष ने किया प्रयोग "और विष के प्रयोग ने नैतिकता को टूटते तटबँधो तक पहुंचा दिया है .........I आलंबन देने का कार्य किया है ,लॉक डाउन में प्रसारित होने वाली रामायण और महाभारत ने कोरोना संकट काल में मानव भय और तनाव से ग्रस्त है तो दूसरी तरफ टूटते रिश्ते l ऐसे परिवेश में पुराने समय की न केवल यादें ताजा हो गई है अपितु हमारा शरीर -मन -बुद्धि की एकात्मता को साधते हुए अपने विस्तृत्व अस्तित्व के साथ परिवार ,समाज ,राष्ट्र और सृष्टि के साथ जोड़ने का असंभव कार्य को यह प्रसारण सम्भव कर रहे हैं l आज विश्वव्यापी महामारी के निवारण के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ही नहीं वरन वैश्विक तादात्म्य की आवश्यकता है l प्रकृति के साथ क्रूर मज़ाक करने का प्रतिफल तो भुगतना ही पड़ रहा है ,साथ ही साथ हमारे सामने प्रश्न आ खड़ा हुआ है कि कोरोना संकट के बाद सामान्य जीवन भी सम्भव हो सकेगा ?इन सबका समाधान साहित्य और धर्म ग्रंथो में है l लॉक डाउन में दूरदर्शन पर धार्मिक सीरियल जो प्रसारित हो रहे हैं ,वे नव सृजन की चेतना को जाग्रत करके मानव वृतियों को 
सृजनात्मक क्षेत्रों की तरफ मार्गान्तरित करने में अहम क़िरदार निभाएंगे l जो लॉक मानस में दूरदर्शी विवेकशीलता की ऐसी वर्षा करेगा जिसके प्रभाव से औचित्य का ही सर्वत्र स्वागत किया जायेगा l विवेक और औचित्य के तो आधार ही धार्मिक प्रसारणों के जरिये नव जीवन की स्थापना करेंगे l 
  रामायण और महाभारत आज लॉक मानस पर यह अमिट छाप छोड़ रहें है कि मानव उन प्रत्यों को छोड़ दे जो मानवीय गरिमा के प्रतिकूल है अथवा आत्मविकास में बाधक है l 
     जिंदगी में कभी किसी का मज़ाक मत बनाना क्योंकि जब समय मौका देता है फिर वही उसी प्रकार से धोका भी देता है l महाभारत का संदेश -
  "राह संघर्ष की जो चलता है 
    वो ही संसार को बदलता है 
   जिसने रातों से जंग जीती है 
   सूर्य बनकर वही निकलता है l "
"  कर्मण्ये मा फलेषु कदाचिन "
कर्म प्रधान विश्व रचि राखा -
   उपर्युक्त पंक्तियाँ भारतीय संस्कृति की कार्य प्रधानता को 
रेखांकित करती है l जैसा कर्म करेगा वैसा फल देगा भगवान ,इस शाश्वत सत्य को युवापीढ़ी को धरोहर के रूप में हस्तांतरित करने का कार्य प्रसारित होने वाले सीरियल बखूबी कर रहें हैं l सत्य ,अहिंसा ,सर्वांगीणता ,vishalta,उदारता ,प्रेम और सहिष्णुता जैसे भारतीय संस्कृति के अमर तत्वों की अमिट छाप युवा मन पर छोड़ रहे हैं l 
  रामायण ,महाभारत तथा अन्य धार्मिक ,साहित्यिक प्रसारण लॉक डाउन में जब "बस्ती बस्ती भय के साये ,कहां मुसाफ़िर रात बिताये "
का माहौल है मानव समूह को अपने आंतरिक और बाह्य जीवन को तथा अपनी शारीरिक ,मानसिक शक्तियों को संस्कारवान ,विकसित और दृढ़ बना रहे हैं जिसका अंतिम उत्पाद हमारी प्रशंसा और सम्मान प्राप्त होना है l 
भारतीय धर्म यदि "सरोवर "है तो 
"कमल "उसकी संस्कृति है l इसी खजाने को लॉक डाउन में प्रसारित रामायण और महाभारत जैसे सीरियल लॉक डाउन me बांटने का प्रयास कर रहे हैं l 
भारतीय संस्कृति "आत्मा  को परमात्मा मानती है l "
सियाराम मय सब जग जानि ,
करहु प्रणाम जोरि जुग पानि l 
आत्मा और परमात्मा का मिलन योग है l महाभारत व रामायण की घटनाएँ इस तथ्य को रेखांकित करती है कि मानव के योगी बनने के लिए शरीर और मन की शुद्धि आवश्यक है l जब तक मनुष्य का बाह्य तथा अंतर्मन शुद्ध नहीं होता तब तक वह अन्याय और त्रुटी पूर्ण विचारों को भी सही मानता है ,दुर्योधन ने मृत्युपर्यन्त यही किया ,परिणाम था महाभारत l 
कर्म क्षेत्र को आधार बनाकर चलने वाले मानव मरने के बाद भी लोक मानस पर राज्य करते रहते हैं और जन जन की आस्था के केंद्र बन जाते हैं l यहाँ पर यह रेखांकित करता है कि भगवान श्री राम ,कृष्ण ,पांडव ,हनुमान 
हमारे लिए अनुकरणीय और पूजनीय हो गये l 
धार्मिक ,सांस्कृतिक ,नैतिक पतन का संक्रमण और कोरोना संक्रमण के घटाटोप अंधकार से उज्ज्वल भविष्य की ओर जाना है तो समस्त साम्प्रदायिक वेम्नस्यों को भुलाकर भारतीय संस्कृति के अमर तत्वों को अंगीकार करना ही होगा l 
चलते चलते -
"धर्मे रक्षति रक्षतः "मनु स्मृति के आठवें अध्याय के अनुसार जो लोग धर्म की रक्षा करते हैं ,उनकी रक्षा स्वयं हो जाती है l जब जब भी धर्म की हानि होती है अधर्म का नाश धर्म संस्थापनार्थ श्री कृष्ण जन्म लेते हैं l यहाँ धर्म का व्यापक अर्थ है ,मनुष्य के धारण करने योग्य कर्तव्य जो वैधायिक मान्य हों l
- डॉ. छाया शर्मा
अजमेर - राजस्थान
जी हां, आज लॉक डाउन के दिनों में परिवार के साथ बैठकर जो रामायण, महाभारत के सीरियल देखते हैं। वास्तव में संपूर्ण विगत स्मृतियां, परिदृश्य पुनः जीवंत हो रहे हैं। उन दिनों टीवी पर रामायण आने का इंतजार किसी मंदिर दर्शन से कम नहीं होता था। रामायण शुरू होते ही हाथ जोड़ना, अंत तक एकाग्रता बनाए रखना। फिर मम्मी शब्द का संबोधन मां तथा बड़े भाई साहब की जगह बड़े भैय्या कहने में संपूर्ण प्यार की अनुभूति परक शब्द कथन हमारे यहां तो आज तक बना हुआ है। क्या सुव्यवस्थित दिनचर्या थी उस समय। बिना कोरोना वायरस के भी संपूर्ण देश लाॅक डाउन हो जाता था। बिना किसी डर के परिवार, समाज, राष्ट्रपरक आदर्शों ,जीवन- मूल्यों की बिना पढ़ाई के  ही शिक्षा दे जाता था।
        तत्कालीन सरकार ने भी मर्यादित आचरण के प्रतीक- प्रभु श्री राम का अयोध्या में विवादित मंदिर का ताला ही खुलवा दिया था अंशत: तो सरकारों को भी लगा होगा कि जो युग अनुकूल हो; वही धर्म है।उस समय लोगों की भावनाएं भी राममय हो गईं थीं।
              ऐसे ही पुराने दिनों की महाभारत चोपड़ा जी के निर्देशन वाली ही जो आज कल दिन में 12:00 और शाम 7:00 बजे शुरू होती है लाॅक डाउन के समय में तो और भी प्रसांगिक है। लाक्षागृह के चूहे वाले प्रसंग में दुर्योधन के द्वारा पांडवों के लिए कहे गए शब्द के बिल में ही रहता है ; से सबक लेना होगा। परिस्थिति और विपत्ति के समय में तो चूहा बने रहने में ही समझदारी है ।
            रामायण और महाभारत टीवी सीरियल के प्रसारण को लगभग  तीन दशक से अधिक का समय हो रहा है। पर सच है अतीत से ही वर्तमान की राह निकलती है; जिसमें क्या करना है रामायण सिखाती है ।क्या नहीं करना चाहिए महाभारत।
        भारतीय संस्कृति के सत्य, सनातन यह दो अमर ग्रंथ मनुष्य के व्यावहारिक जीवन के आदर्श और यथार्थ की वास्तविकता के प्रेरक एवं शिक्षक हैं; जो सार्वकालिक सार्वभौमिक और सार्वजनिक  हैं; जिनकी उपादेयता लॉक डाउन के दिनों में तो हर प्रकार  से स्वयं सिद्ध हो रही है ।
- डॉ. रेखा सक्सेना
मुरादाबाद - उत्तर प्रदेश
जी हाँ लाकडाउन में रामायण और महाभारत ने पुराने दिनों की याद को ताजा करा रहे हैं ।केंद्र सरकार का यह प्रयास सराहनीय है । जिससे  जनता  घर  में रहकर सोशल डिस्टसिंग का पालन हो जाएगा । रामायण को महाज्ञानी कवि बाल्मीकि ने लिखा जो संसार  का प्रथम महाकाव्य कहलाया । वेदव्यास जी नेबुद्धि , विवेक ज्ञान के देवता विघ्नविनाशक प्रभु गणेश जी से महाभारत लिखवाया था ।दोनों ग्रन्थों में भारत की आध्यात्मिक , ऐतिहासिक , सामाजिक , पौराणिक,  पारिवारिक , भौगोलिक  परिस्थतियों देश काल सीमा का दर्शन होता है ।  रामायण के द्वारा जनता को त्रेता युग व भगवान पुरुषोत्तम राम की विराट लीलाओं का भक्तों से साक्षात्कार कराया है ।  द्वापर में महाभारत में श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं से लेकर कुरुक्षेत्र में कृष्ण मुख से निकली गीता की वाणी से अपने मित्र , शिष्य अर्जुन का अपने संबंधियों के प्रति मोह और शंका को दूर कराया था।
 महाभारत और रामायण के द्वारा मानव के अंतर में बसे नीति , अनीति , बुराई , अच्छाई , झूठ , सच , हिंसा ,आदि अहिंसा  आदि से युक्त किरदारों का चरित्र चित्रण किया है । 
जिसका सार यही है हर व्यक्ति अपनी आत्मा के सिमकार्ड को प्रभु रूपी  मूल्यों  के सद्गुणों  की बैटरी से चार्ज करके ईश के दिव्यता को प्राप्त कर सकता है ।
रामायण और महाभारत  भारतीय संस्कृति की मिसाल बनके  दोनों ही शिक्षाप्रद प्रेरणात्मक सीरियल हैं ।
इन सीरियल से  बच्चे से लेकर बड़ा , व्रद्ध , युवा नारी सब जुड़ जाते हैं जो सबको  एक सूत्र में बांधती हैं । 
 90 के दशक के ये सीरियल आज भी उतने ही जीवंत हैं जितने उस जमाने थे ।  वो जमाना मैंने खुद अपनी आँखों से देखा है कि हर रविवार को लोग  जिनके घरों में दूरदर्शन होता था , उन घरों में जान - पहचान के लोग , मित्र , रिश्तेदार एक साथ इन सीरियल को देखते थे । जो एकता , संगठन , भाईचारे को दर्शाता है । सारी सड़कों , शहर में सन्नाटा हो जाता था । सिर्फ सीरियल के किरदारों की आवाज ही परिवेश में गूँजती थी । ऐसा लगता था कि जैसे कि कर्फ्यू  सरका र ने लगा दिया हो ।
       भारत में 25 अप्रैल 2020 से लगा लाकडाउन में ये सीरियल आज तक 
घर में   कैद लोगों का मनोरंजन के साथ भारतीय संस्कृति से जोड़ रहा है। नयी पीढ़ी अपनी परंपरा विरासत की विराटता के ज्ञान को  सँजो सकेगी ।
- डॉ मंजु गुप्ता 
 मुंबई - महाराष्ट्र
हां  बिल्कुल, बहुत पहले देखी गई ये दोनों  हीं  अद्भुत सबसे ज्यादा देखी जाने वाली महान् प्रचलित धार्मिक  पौराणिक कथाएं हैं । आज लगभग  २५ वर्षों के लंबे अंतराल के बाद आज इस लाॅक डाउन के  उबाऊ समय में इन दोनों को दूरदर्शन पर प्रसारित किया जाना बहुत हीं मनोरंजक है । आज लोगों के पास प्रचुर समय है फलत: समय इन दोनों बेजोड़ प्रस्तुति को देखकर बहुत अच्छा लग रहा है। रामायण देखकर अद्भुत त्याग, मर्यादा, धर्मपरायणता, आदर _सम्मान , सब अनूठा था,,जो देख कर लगता है कि सचमुच वो समय रामराज्य था जब लोग घरों में ताले नहीं लगाते थे,ऐसा कहा जाता है । सुंदर संवाद और ज्ञान की बातें सुनकर बहुत अच्छा लगता है । ठीक रामायण के विपरित महाभारत में छल, प्रपंच, धूर्तता, लोभ _लोलुपता , कूटनीति की  प्रचुरता पाई जाती है  
दोनों अपने-अपने जगह शिक्षा और ज्ञान देती है । 
पुराने दिन की यादें इन दोनों के दिखाए जाने पर पुनः एक बार सजीव हो उठीं है ।
- डॉ पूनम देवा
पटना - बिहार
दर्शन एवं श्रवण दोनों ही ऐसी क्रियाएं हैं जिनका सभी के अंतर्मन पर गहरा प्रभाव अवश्य ही पड़ता है। मनोविज्ञान के अनुसार जैसा वातावरण हमारे चारों ओर रहता है ,धीरे-धीरे हम उसके प्रभाव में आने लगते हैं ।लॉक डाउन की
इस विषम परिस्थिति में एक सुंदर सकारात्मक चीज हम लोगों को सरकार से प्राप्त हुई है, वह है धार्मिक सीरियल ,रामायण व महाभारत।हम ये कह सकते हैं कि इन सीरियल्स को देखकर  पुराने दिनों की यादें ताजा कर रहे हैं ।इनको परिवार के साथ बैठकर अवश्य देखना चाहिए ।इनका हम सभी  पर सकारात्मक प्रभाव अवश्य  ही पड़ेगा। पुरानी यादें ताजा तो होंगी  ही साथ में नैतिक एवं ऐतिहासिक ज्ञान में वृद्धि भी होगी । बता दें कि रामानंद सागर की रामायण सन 1987 में शूट हुई, बी आर चोपड़ा कृत महाभारत1988 में। उस समय ऐसा दौर था कि  भगवान का किरदार निभाते  अभिनेताओं को वाकई  लोग वाकई भगवान का रूप मान लेते थे ,और जिस भी शहर कस्बे में यह कलाकार जाया करते थे भगवान सरीखा ही उन्हें सम्मान दिया जाता था। कोरोनावायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लॉक डाउन किया गया है ऐसे लोगों में धार्मिक सीरियल्स देखकर अपने समय का सदुपयोग कर पा रहे हैं  80 के दशक के मशहूर सीरियल रामायण महाभारत जिस वक्त दिखाये जाते थे उस वक्त सड़कें सुनी हो जाती थी ।भारतीय मायथोलॉजी की मदद से पहली बार  इस शो को छोटे पर्दे पर उतारा गया था ।जिसकी वजह से रामायण ने आसमान की ऊंचाईयां छू ली थी । उस समय टीवी पर एक्टर्स को भगवान का किरदार निभाते लोग अभिनेताओं को वाकई भगवान का रूप मान लेते थे और जिस भी शहर व कस्बे में यह कलाकार जाया करते थे भगवान सरीखा ही उन्हें सम्मान दिया जाता था ।वायरस के संक्रमण को रोकने के लिए देशभर में लागू किया गया है ,ऐसे में धार्मिक  सीरियल दिखाने का सरकार का सर्वोत्तम फैसला मान रहे हैं । अगर हिंदू धर्म ग्रंथों की बात करें तो दो पुराण  बहुत महत्वपूर्ण हैं वह है रामायण ,महाभारत। इन दोनों काल में एक से बढ़कर एक योद्धा शूरवीर हुए ।जहां एक तरफ रामायण में भगवान श्री राम और रावण के बीच युद्ध हुआ वहीं दूसरी तरफ महाभारत काल में पांडवों और कौरवों के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में 18 दिनों तक भयंकर युद्ध हुआ और यह दोनों ही अपने आप में ऐतिहासिक एवं अभूतपूर्व युद्ध हुए और इन पर बनाए जाने वाले दोनों सीरियल भी अभूतपूर्व साबित हुए ।इन दोनों सीरियल्स का प्रसारण जब 90 के दशक में होता था तो सड़के सूनी हो जाती थी ।इन दोनों सीरियलों में सफलता की  जो इबारत  लिखी उसे फिर से दोहराया न जा सका और यह ऐतिहासिक साबित हुए। इन में काम करने वाले अभिनेता अपने आप में लीजेंड हो गए। इन्होंने  सफलता का जो इतिहास रचा है  वह अतुलनीय है ।इनके अभिनेताओं ने इतना सम्मान प्राप्त किया कि वह जिधर भी जिस गांव नगर से गुजरते थे उधर लोग उनको नतमस्तक हो जाते थे ।यह इस समय की बड़ी उपलब्धि है  भगवान श्री राम और कृष्ण के व्यक्तित्व को पर्दे पर देख रहे हैं। जिसका देश की जनता के ऊपर सकारात्मक प्रभाव तो पड़ेगा ही बचपन की यादें भी ताजा होंगी 
- सुषमा दीक्षित शुक्ला
लखनऊ - उत्तर प्रदेश
अयोध्या में राम जन्मभूमि की जीत बाद से ही रामायण धारावाहिक के पुनः प्रसारण की मांग उठ रही थी। चूँकि लाॅकडाउन के कारण विभिन्न धारावाहिकों की शूटिंग रुकी होने के कारण और लोगों की इच्छा को देखते हुए भारत सरकार ने रामायण और महाभारत धारावाहिकों के पुनः प्रसारण की आज्ञा दे दी ।
आज से लगभग 30-31 साल पहलें प्रसारित होने वाले इन दोनों ही धारावाहिकों ने अपनी पटकथा, निर्देशन, पात्रों के अभिनय एवं संवादों के कारण इतनी सुर्खियाँ बटोरी जो इतिहास बन गई । अब तक लोग रामचरितमानस का केवल पाठ ही करते थे । कभी कोई इक्का-दुक्का फिल्में भी देखीं हो ।
 पर अपने ही घर में टीवी पर हर रविवार एक घंटे इन धारावाहिकों को देखना एक अनूठा आनंद था । जिसकी छवि लोगों के मन मस्तिष्क पर अंकित हो गई। धारावाहिकों के पात्र और संवाद इतने जीवंत और लोगों के हृदय के इतने करीब थे, कि लोग वास्तव में उन्हे भगवान मान कर श्रद्धा से इन धारावाहिकों को देखते थे। 
सुबह नौ बजे नहा धोकर,अपने सभी  कार्य छोड़ , लोग टीवी के सामने जा बैठते । (उन दिनों के टीवी अलग माॅडल के हुआ करते थे जिसमें शटर होता था।) बाकायदा टीवी के सामने अच्छी खुशबूदार अगरबत्ती लगाई जाती । 
रामायण महाभारत के प्रति लोगों का लगाव ऐसा, कि बाहर सड़कों पर अघोषित कर्फ्यू लग जाता। इस बीच यदि किसी को बाहर जाने का मौका आता, तो सबके घरों से केवल इन धारावाहिकों की ही आवाजें सुनाई देतीं।  इस बीच न दूधवाला आता न सब्जी वाला, पेपर वाला न दही वाला । लोग भी एकाग्र होकर इस तरह भग्न होकर कार्यक्रम देखते, कि घर में यदि चोर भी घुस जाए, तो पता न चले और यदि पता चल भी जाए तो इतने प्रिय धारावाहिक छोड़ कर उठे कौन  ?
हम जबलपुर में ओ.एफ.के. एस्टेट में रहते थे । सुरक्षा की दृष्टि से इस केन्द्रीय सुरक्षा संस्थान के नियम बहुत कठोर थे और सुरक्षा भी बहुत चाक चौबंद । संस्थान के आठ द्वार में से चार द्वार कर्मचारियों हेतु सुबह शाम  खुलते थे ।  चारों द्वारों  पर सिक्यूरिटी गार्डों का कड़ा पहरा। सुबह साढ़े सात से शाम छः बजे तक का समय था । बीच में एक घंटा भोजन अवकाश में कर्मचारी बाहर जा सकते थे । विशेष परिस्थिति में यदि किसी को बीच मे ही बाहर जाना हो तो आउट पास दिखाकर ही बाहर जाने की आदेश था । 
एशिया का सबसे बड़ा सुरक्षा संस्थान, जहाँ उस वक्त कर्मचारी संख्या 10,000 के लगभग रही होगी । विशेष परिस्थितियों जैसे किसी त्योहारों या वर्ष के अंत में उत्पादन का लक्ष्य पूरा करने के लिए, रविवार के अवकाश में भी एक्स्ट्रा ओवरटाइम में  कार्य होता था।  
अब चूंकि रविवार को इतने महत्वपूर्ण धारावाहिकों को कोई छोड़ना नहीं चाहता था। कर्मचारियों ने महाप्रबंधक से रामायण देखने  हेतु एक घंटे के अवकाश का निवेदन किया किन्तु नियम के तहत महाप्रबंधक ऐसा नहीं कर सकते थे ।
पर रामायण का आकर्षण ऐसा कि कर्मचारी 8:30 बजे ही संस्थान के बंद द्वारों के पास बाहर निकलने भीड़ मचा कर तैयार रहते । और  8:45 पर जय श्री राम का उद्घोष करते हुए  सभी सिक्यूरिटी गार्डों को धका कर भीड़ की भीड़ बाहर निकल आती । जिसका अद्भुत दृश्य होता । और एक घंटे बाद धारावाहिक समाप्त होने पर लोग  स्वतः ही संस्थान में चले जाते ।
शुरू-शुरू में तो महाप्रबंधक ने  उनपर अनुशासनात्मक कार्यवाही की, किन्तु इतनी बड़ी भीड़ और उनकी आस्था को देखते हुए वो भी कुछ नरम पड़ गए ।
तो लोगों के मानस पर कुछ ऐसा था उन धारावाहिकों का प्रभाव  । आज जब पुनः इन धारावाहिकों का प्रसारण शुरू तो पुरानी यादें ताजा हो आईं ।
- वंदना दुबे 
  धार - मध्य प्रदेश
रामायण और महाभारत हिन्दू सनातन धर्म का महान ग्रंथ है। लोगों में इसकी विशेष आस्था है। जब रामानंद सागर जी और बी आर चोपड़ा जी ने इसे दूरदर्शन पर प्रसारित किया था। तब आलम ऐसा था कि सड़कें सूनी हो जाती थी। लोग अपना सारा काम निपटा कर टेलिविज़न के सामने बैठ जाते थे। आज भी वही स्थिति है। हम लाॅक डाउन में है। कोरोना ने सबको अपने-अपने घरों में बंद कर दिया है। सास - बहू के सारे सीरियल बंद पड़े है, जहाँ रिश्तों की कोई अहमियत नहीं है। पुरानी फिल्मों और अर्थपूर्ण सीरियलों का टेलिविज़न पर बोलबाला है। लोगों के पास वक्त ही वक्त है, और परिवार आपस में सिमट गए है। इन सबके बीच रामायण और महाभारत का प्रसारण एक नयी ऊर्जा लिए पुराने दिनों की याद ताजा कर रहा है। जब हम शाम को बगीचे में बैठते थे। रात को साथ खाना खाते थे। बडों का आदर और सम्मान करते थे। देर रात माॅल में घूमना, छुट्टी के दिन बाहर खाना खाना, ये सब हमारी दिनचर्या में नहीं थे।
                        ऐसा लगता है कि प्रकृति ने हमें अपनी संस्कृति को फिर से आत्मसात करने के लिए ही घर में बंद किया है। शायद हम प्रकृति के साथ ही साथ पशु - पक्षियों से भी प्यार करना सीखें।
                        - कल्याणी झा
                        राँची - झारखंड

" मेरी दृष्टि में " लॉकडाउन में सबको अच्छा लगा है । रामायण और महाभारत सीरियल का पुनः प्रसारण । इससे पुरानी यादें ताजा हो रही है । नई पीढी को  को प्राचीन सस्कृति को देखने का अवसर मिल रहा है । ये लॉकडाउन का सबसे अच्छा उपयोग माना जाऐगा ।
                                                         - बीजेन्द्र जैमिनी
सम्मान पत्र







Comments

  1. प्रीति मिश्रा जी आपको बहुत बहुत बधाइयां।💐
    वाकई वापस पूरे परिवार के साथ रानायन ओर महाभारत देखना मुझे फिर से मेरे बचपन में ले गया।

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